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डेली न्यूज़

  • 22 Apr, 2019
  • 14 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

अंडमान पूर्वी एशियाई पक्षियों के ठहराव का प्रमुख स्थल

चर्चा में क्यों?

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ZSI) के शोधकर्त्ताओं के अनुसार, 2004 के इंडोनेशियाई सूनामी के बाद से अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह पूर्वी एशियाई पक्षियों की प्रजातियों के प्रथम ठहराव का प्रमुख स्थल बन गया है।

प्रमुख बिंदु

  • पीठ पर हरे और भूरे रंग तथा आकार में छोटे हॉर्सफील्ड की कांस्य कोयल (Bronze Cuckoo) (Chalcites basalis) जो ऑस्ट्रेलिया और न्यू गिनी में मूल रूप से पाया जाने वाला पक्षी है, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में देखा गया है।
  • शोधकर्त्ताओं ने लगभग 15 सेमी लंबी तथा 22 ग्राम वज़न वाले इस पक्षी को 7 जुलाई, 2017 को अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के ग्रेट निकोबार में देखा। यह भारत में देखे जाने वाले पूर्वी एशियाई पक्षियों का पहला रिकॉर्डेड उदाहरण था।
  • 2017-18 में इन द्वीपों पर पहली बार दो अन्य आगंतुक पक्षियों को भी देखा गया।
  • Zappey’s flycatcher (Cyanoptila cumatilis), एक सांग बर्ड (Song bird) जो चीन में प्रजनन करती है और सर्दियों में मलय प्रायद्वीप, सुमात्रा और जावा में प्रवास करती है, को मार्च 2017 तथा दिसंबर 2017 को अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के विभिन्न क्षेत्रों में छह बार देखा गया।

थाई आगंतुक पक्षी

  • शोधकर्त्ताओं ने जावा पॉन्ड हेरोन (Javan Pond Heron-adreola speciosa) नामक पक्षी की उपस्थिति भी दर्ज की है जो आमतौर पर थाईलैंड और कंबोडिया में पाया जाता है।
  • इस क्षेत्र में पाए गए अन्य थाई पक्षियों में Mugimaki Flycatcher (Ficedula mugimaki), Blue-winged Pitta (Pitta moluccensis), Chines Egret (Egretta eulophotes) तथा Chines paradise flycatcher (Terpsiphone incei) शामिल हैं। इन्हें 26 अगस्त, 2018 को देखा गया था।
  • अनुसंधानकर्त्ताओं के मुताबिक, उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवास के दौरान ये पक्षी अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह पर रुकते हैं।
  • इस अनुसंधान से संबंधित विस्तृत विवरण ‘Birding ASIA’ नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

पूर्वी एशियाई फ्लाईवे

  • पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण एशियाई मूल के कुछ अन्य पक्षियों की प्रवास के दौरान अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में उपस्थिति दर्ज की गई है।
  • नए रिकॉर्ड्स में Mugimaki flycatcher (Ficedula mugimaki), Blue-Winged Pitta (Pitta moluccensis), Chinese Egret (Egretta eulophotes) और Chinese Paradise Flycatcher (Terpsiphone incei) शामिल हैं।
  • ये पक्षी पूर्वी एशियाई-ऑस्ट्रेलियन फ्लाईवे (EAAF) में उड़ने से पहले कुछ हफ़्तों तक आराम करने के लिये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का उपयोग भी करते हैं।
  • एक आधिकारिक अनुमान के अनुसार, अंडमान और निकोबार द्वीप देश के लगभग 0.25% भूभाग के साथ, विदेशी पक्षियों की लगभग 350 प्रजातियों का आवास है।

स्रोत : द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्रोनोस मैलवेयर

चर्चा में क्यों?

एक ब्रिटिश साइबर सुरक्षा खोजकर्त्ता को क्रोनोस नामक मैलवेयर विकसित करने के लिये दोषी ठहराया गया है। ऐसा कहा जा रहा है कि शोधकर्त्ता ने बैंकिंग संबंधी जानकारियाँ चोरी करने के उद्देश्य से यह मैलवेयर विकसित किया था।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि यह वही शोधकर्त्ता है जिसे ‘WannaCry’ वायरस को रोकने का तरीका खोजने के पश्चात् काफी सराहा गया था।

♦ ‘WannaCry’ वायरस एक क्रिप्टोकरेंसीवेयर था, जिसे ‘WannaCrypt’ के नाम से भी जाना जाता है। इस वायरस ने मई, 2017 में भारत सहित 150 देशों के हज़ारों कंप्यूटरों को प्रभावित किया था।

  • क्रोनोस एक प्रकार का ट्रोजन है। ट्रोजन आमतौर पर ईमेल अटैचमेंट के माध्यम से भेजे जाते हैं और एक बार डाउनलोड होने के बाद हमलावरों को वित्तीय डेटा, ईमेल और पासवर्ड जैसी संवेदनशील जानकारी पर निगरानी रखने और चोरी करने की स्वतंत्रता दे सकते हैं।

♦ क्रोनोस पहली बार 2014 में एक रूसी भूमिगत मंच पर ऑनलाइन दिखाई दिये।

इंटरनेट पर सुरक्षा संबंधी खतरे

  • कंप्यूटर वायरस

♦ कंप्यूटर वायरस एक छोटा सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम होता है, यह वायरस एक कंप्यूटर से किसी अन्य कंप्यूटर में फैल जाता है और कंप्यूटर के संचालन को बाधित करता है।

♦ वायरस कंप्यूटर पर मौजूद डेटा को प्रभावित कर सकता है, उसे हटा सकता है, किसी अन्य कंप्यूटर पर फैलाने के लिये किसी ईमेल का उपयोग कर सकता है या हार्ड डिस्क पर मौजूद प्रत्येक चीज़ को डिलीट भी कर सकता है।

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♦ कंप्यूटर वायरस अक्सर ईमेल संदेशों में मौजूद अटैचमेंट या सेवा संदेशों द्वारा प्रसारित होते हैं।

  • फिशिंग (Phishing)

♦ इसे हिंदी में ऑनलाइन जालसाज़ी की संज्ञा दी गई है। इसके तहत अपराधी फिशिंग के माध्‍यम से नकली ई-मेल या संदेश भेजते हैं, जो किसी प्रतिष्ठित कंपनी, आपके बैंक, क्रेडिट कार्ड, ऑनलाइन शॉपिंग की तरह होते हैं।

♦ अगर सतर्कता नहीं बरती जाए तो इनके फंदे में फँसना तय है। इन जाली ई-मेल या संदेशों का उद्देश्‍य लोगों की निजी पहचान से जुड़ी जानकारियों (Personally Identifiable Information) को चुराना है।

♦ इसके तहत किसी व्यक्ति की निजी जानकारियँ आती हैं, जिनमें नाम, ई-मेल. यूज़र ID, पासवर्ड, मोबाइल नंबर, पता, बैंक खाता संख्या, ATM/डेबिट या क्रेडिट कार्ड नंबर और इनका पिन नंबर तथा जन्मतिथि आदि शामिल हैं।

  • रैनसमवेयर

♦ रैनसमवेयर एक प्रकार का फिरौती मांगने वाला सॉफ्टवेयर है। इसे इस तरह से बनाया जाता है कि वह किसी भी कंप्यूटर सिस्टम की सभी फाइलों को एनक्रिप्ट कर देता है।

♦ यह सॉफ्टवेयर द्वारा इन फाइलों को एनक्रिप्ट करते ही फिरौती मांगने लगता है और धमकी देता है कि यदि अमुक राशि नहीं चुकाई तो वह उस कंप्यूटर की सभी फाइलों को करप्ट कर देगा।

♦ इसके बाद इन फाइलों तक कंप्यूटर उपयोगकर्त्ता की तब तक पहुँच नहीं हो पाती, जब तक वह फिरौती में मांगी गई राशि का भुगतान नहीं कर देता।

♦ इस तरह के वायरस को किसी संदिग्ध स्थान से कोई फाइल डाउनलोड करके पहुँचाया जा सकता है।

स्रोत- द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (22 April)

  • केंद्र सरकार केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की जमीन और सरकार द्वारा चिह्नित 'शत्रु संपत्ति' की बिक्री कर उससे धन जुटाने के लिये रीयल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (REET) जैसे विकल्प पर विचार कर रही है। रीट बाज़ार नियामक सेबी द्वारा नियंत्रित रीयल एस्टेट क्षेत्र में निवेश का एक साधन है। प्रतिभूतिकरण के रीट मॉडल के तहत ज़जमीन को एक ट्रस्ट को स्थानांतरित किया जाएगा जिसमें संस्थागत निवेशकों के लिये निवेश का अवसर होगा। अचल शत्रु संपत्ति के मौद्रीकरण के लिये भी रीट विकल्प पर विचार किया जा रहा है। इसके अलावा अन्य विकल्पों में भूमि संपत्ति की एकमुश्त बिक्री या पट्टे पर देना भी शामिल है। ज्ञातव्य है कि सेबी ने 2014 में रीट के दिशा-निर्देश अधिसूचित किये थे। शत्रु संपत्ति से तात्पर्य उन परिसंपत्तियों से है जो उन लोगों द्वारा छोड़ी गईं जो पाकिस्तान या चीन चले गए हैं और अब भारत के नागरिक नहीं हैं।
  • दवा की दुकानों पर लिखे दिखाई देने वाले शब्द 'केमिस्ट' और 'ड्रगिस्ट' (Chemist & Druggist) जल्दी ही गुज़रे ज़माने की बात हो जाएंगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इनके स्थान पर 'फार्मेसी' (Pharmacy) शब्द इस्तेमाल करने का फैसला किया है। इन नामों को बदलने के लिये फार्मा उद्योग जगत लंबे समय से मांग करता आ रहा था। केमिस्ट और ड्रगिस्ट शब्दों की उत्पत्ति लगभग सात दशक पहले हुई थी और वर्तमान परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता नहीं रह गई है। अब दवा बेचने वाली मेडिकल शॉप ‘फार्मेसी’ के नाम से पहचानी जाएगी, जो कि अंतर्राष्ट्रीय चलन के अनुरूप है। इसके लिये ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड (DTAB) नियम 65(15)(b) और 65(15)(c) में संशोधन करेगा ताकि मेडिकल शॉप्स को सिर्फ ‘फार्मेसी ’कहा जा सके।
  • नासा के कैसिनी अंतरिक्ष यान से जुटाए गए डेटा की मदद से वैज्ञानिकों को यह जानकारी मिली है कि शनि के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन पर मीथेन की 100 मीटर से ज़्यादा गहरी और छोटी झीलें हैं। टाइटन हमारे सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा दूसरा ऐसा खगोलीय पिंड है जिसकी सतह पर तरल मिलने की पुष्टि हुई है। टाइटन पर भी पृथ्वी की तरह एक हाइड्रोलॉजिकल चक्र चलता है, अंतर केवल इतना है कि पृथ्वी पर यह चक्र पानी के साथ चलता है, जिसमें समुद्र से पानी वाष्पित होता है, बादल बनते हैं और फिर वर्षा हो जाती है। टाइटन पर यह चक्र मीथेन और ईथेन के साथ पूरा होता है। पृथ्वी पर आमतौर पर मीथेन और ईथेन जैसे हाइड्रोकार्बन को गैस माना जाता है तथा उच्च दबाव में किसी टैंक में भरने पर ही इन्हें तरल में बदलना संभव हो पाता है, लेकिन टाइटन पर तापमान इतना कम है कि मीथेन और ईथेन जैसे हाइड्रोकार्बन वहाँ तरल रूप में ही रहते हैं। ज्ञातव्य है कि इससे पहले कैसिनी ने टाइटन के दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित बड़ी झील ओंटारियो लेकस का अध्ययन किया था।
  • नासा के एक अध्ययन में उपग्रह के ज़रिये किये गए आकलन ने उन आँकड़ों की पुष्टि की है जिनसे पता चला है कि पिछले 15 साल में पृथ्वी की सतह गरम हुई है। नासा के शोधार्थियों ने 2003 से 2007 तक उपग्रह आधारित ऐटमॉसफेरिक इन्फ्रा रेड साउन्डर (AIRS) नामक इन्फ्रारेड मेजरमेंट सिस्टम के ज़रिये प्राप्त पृथ्वी के तापमान का आकलन किया। अध्ययन दल ने इन आँकड़ों का गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज़ सरफेस टेंपरेचर एनालिसिस से मिलान किया। इसमें पिछले 15 वर्षों में दोनों डेटा संग्रह के बीच काफी समानता देखने को मिली। डेटा के दोनों सेटों के मिलान से पता चला कि पृथ्वी की सतह इस अवधि में गरम हुई और क्रमशः 2016, 2017 और 2015 सबसे गरम वर्ष रहे।
  • वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में हीलियम हाइड्राइड आयन को खोज निकाला है, जिसके बारे में माना जाता है कि ब्रह्मांड के विकास क्रम में सबसे पहला अणु यही बना था। इसी ने आगे चलकर आणविक हाइड्रोजन के निर्माण का रास्ता खोला और ब्रह्मांड वर्तमान स्वरूप में आया। वैज्ञानिकों का कहना है कि बिग बैंग के बाद जिस रासायनिक क्रिया को ब्रह्मांड के वर्तमान स्वरूप की नींव माना जाता है, यह उसका पहला प्रमाण है। फ्लाइंग ऑब्जर्वेटरी 'सोफिया' पर स्थापित फार इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर 'ग्रेट' की मदद से वैज्ञानिकों को एक ग्रह के निकट गैसीय बादल (Nebula) NCG 7027 में इस आयन का प्रमाण मिला है।

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