डेली न्यूज़ (22 Feb, 2020)



बयाद-ए-गालिब समारोह

प्रीलिम्स के लिये:

मिर्ज़ा गालिब

मेन्स के लिये:

मिर्ज़ा गालिब का ऊर्दू साहित्य और शायरी नामक विधा में अभूतपूर्व योगदान

चर्चा में क्यों?

मिर्ज़ा गालिब द्वारा अपनी पेंशन के बारे में पता लगाने के लिये कोलकाता आने के लगभग 190 वर्ष बाद 21 फरवरी, 2020 से कोलकाता में बयाद-ए-गालिब नामक समारोह आयोजित किया जा रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • इस समारोह को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) के अवसर पर प्रारंभ किया गया है।
  • मिर्ज़ा गालिब 20 फरवरी, 1828 से 1 अक्तूबर, 1829 के बीच कोलकाता में किराएदार के रूप में रहे।
  • मिर्ज़ा गालिब ने गवर्नर हाउस, राइटर बिल्डिंग और राष्ट्रीय पुस्तकालय सहित महत्त्वपूर्ण स्थलों का दौरा किया, जो वरिष्ठ ब्रिटिश अधिकारियों का निवास स्थान हुआ करता था।

कार्यक्रम का आयोजन:

  • पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी द्वारा इस अवसर पर आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों में उन स्थानों का भ्रमण किया जाएगा जहाँ गालिब का निवास स्थान था और जहाँ वे आते-जाते रहते थे, जिनमें शिमला बाज़ार और मध्य कोलकाता स्थित कथल बागान शामिल थे।
  • मिर्ज़ा गालिब की कोलकाता यात्रा की जानकारी को जन-सामान्य तक पहुँचाने के लिये एक स्मारक टिकट जारी किया जाएगा।
  • इस कार्यक्रम में गालिब को केंद्रीय विषय के रूप में रखते हुए पाँच नाटकों का मंचन किया जाएगा।
  • इन पाँच नाटकों के मंचन में ‘गालिब और कोलकाता मुशायरा’ नामक नाटक को भी शामिल किया जाएगा जो वर्ष 1828 में कलकत्ता मदरसा में आयोजित किये गए एक मुशायरे पर आधारित है जिसमें मिर्ज़ा गालिब ने भाग लिया था।
  • इस समारोह में शिक्षाविदों से लेकर छात्रों और आम लोगों को सम्मिलित किया जाएगा।

मिर्ज़ा गालिब की रचनाओं का बांग्ला में अनुवाद:

  • इस अवसर पर आयोजित अन्य कार्यक्रमों में बनारस में गालिब द्वारा लिखित चराग-ए डायर (Charagh-e Dair) के बांग्ला अनुवाद और उर्दू एवं बंगाली के आठ लघु कथाकारों को प्रस्तुत किया जाएगा, जिन्होंने लघु कथाओं के रूप में गालिब के जीवन का काल्पनिक संस्करण पेश किया है।

मिर्ज़ा गालिब:

  • मिर्ज़ा गालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 को तुर्की वंश के एक अभिजात परिवार में आगरा में हुआ था।
  • मिर्ज़ा गालिब का मूल नाम मिर्ज़ा असदउल्लाह बेग खान था, गालिब नाम को उन्होंने बाद में अपनाया। उन्होंने इस नाम के साथ अत्यधिक प्रसिद्धि हासिल की।
  • मिर्ज़ा गालिब का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था।
  • मिर्ज़ा गालिब बहादुर शाह ज़फर II के दरबार के महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक थे।
  • मुगल सम्राट जो कि उनका छात्र भी था, ने गालिब को डब्बर-उल-मुल्क (Dabber-ul-Mulk) और नज्म-उद-दौला (Najm-ud-Daulah) के शाही खिताब से सम्मानित किया।
  • उन्होंने 11 साल की उम्र में अपनी पहली शायरी लिखी थी और वे उर्दू, फारसी एवं तुर्की आदि कई भाषाओं के जानकार थे।
  • 15 फरवरी, 1869 को दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई।
  • मिर्ज़ा असदउल्लाह बेग खान 'गालिब' का स्थान उर्दू के सर्वोच्च शायर के रूप में सदैव अक्षुण्ण रहेगा।
  • उन्होंने उर्दू साहित्य को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। उर्दू और फारसी के एक बेहतरीन शायर के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा अरब एवं अन्य राष्ट्रों में भी वे अत्यंत लोकप्रिय हुए।
  • गालिब की शायरी में बेहतरीन भाषाई पकड़ मिलती है जो सहज ही पाठक के मन को छू लेती है।

स्रोत: द हिंदू


दारा शिकोह

प्रीलिम्स के लिये:

दारा शिकोह की प्रमुख रचनाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संस्कृति मंत्रालय ने मुगल राजकुमार दारा शिकोह (1615-59) की कब्र का पता लगाने के लिये भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) का सात सदस्यीय पैनल गठित किया। ऐसा माना जाता है कि दारा शिकोह (Dara Shikoh) को दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के परिसर में कहीं दफनाया गया था, जो मुगल वंश की लगभग 140 कब्रों में से एक है।

  • इसके लिये पैनल को तीन महीने का समय दिया गया है। आवश्यकता पड़ने पर इस समय को तीन महीने के लिये और बढ़ाया भी जा सकता है। इस विषय में सटीक जानकारी प्राप्त करने के लिये पैनल उस समय के वास्तुशिल्प साक्ष्यों, लिखित इतिहास और अन्य जानकारी, जिसे सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, का उपयोग करेगा।

दारा शिकोह का परिचय

Dara-Sikoh

दारा शिकोह मुगल सम्राट शाहजहाँ का सबसे बड़ा पुत्र (जीवनकाल 1615 ई॰ से 1659 ई॰ तक) था। शाहजहाँ उसे अपना राजपद देना चाहता था लेकिन उत्तराधिकार के संघर्ष में दाराशिकोह के भाई औरंगज़ेब ने उसकी हत्या कर दी। दारा शिकोह ने अपने समय के श्रेष्ठ संस्कृत पंडितों, ज्ञानियों और सूफी संतों की सत्संगति में वेदांत तथा इस्लाम के दर्शन का गहन अध्ययन किया साथ ही फारसी एवं संस्कृत में इन दोनों दर्शनों की समान विचारधारा को लेकर विपुल साहित्य लिखा।

दारा शिकोह की विरासत (Dara Shikoh’s legacy)

  • औरंगज़ेब के खिलाफ उत्तराधिकार के युद्ध में दारा शिकोह मारा गया। इतिहास में दारा शिकोह को एक "उदार मुस्लिम" के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसने हिंदू और इस्लामी परंपराओं के बीच समानताएँ खोजने का प्रयास किया।
  • कुछ विशेषज्ञों दारा शिकोह को "उस समय के सबसे महान मुक्त विचारकों में से एक" के रूप में वर्णित करते है।
  • फारसी में उसके ग्रंथ हैं- सारीनतुल् औलिया, सकीनतुल् औलिया, हसनातुल् आरफीन (सूफी संतों की जीवनियाँ), तरीकतुल् हकीकत, रिसाल-ए-हकनुमा, आलमे नासूत, आलमे मलकूत (सूफी दर्शन के प्रतिपादक ग्रंथ), सिर्र-ए-अकबर (उपनिषदों का अनुवाद)। उसने श्रीमद्भगवद्गीता और योगवासिष्ठ का भी फारसी भाषा में अनुवाद किया। ‘मज्म-उल्-बहरैन्’ फारसी में उसकी अमर कृति है, जिसमें उसने इस्लाम और वेदांत की अवधारणाओं में मूलभूत समानताएँ बताई हैं। दाराशिकोह ने ‘समुद्रसंगम’ (मज़्म-उल-बहरैन) नाम से संस्कृत में भी रचना की। दारा शिकोह ने 52 उपनिषदों का अनुवाद ‘सिर्र-ए-अकबर’ नाम से किया।

दारा शिकोह और औरंगज़ेब

(Dara Shikoh & Aurangzeb)

  • कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यदि औरंगज़ेब के बजाय मुगल सिंहासन पर दारा शिकोह का राज होता तो धार्मिक संघर्ष में मारे गए हज़ारों लोगों की जान बच सकती थी। अविक चंदा की किताब 'दारा शिकोह, द मैन हू वुड बी किंग' में कहा गया है कि ‘दारा शिकोह का व्यक्तित्व बहुत बहुमुखी था। वह एक विचारक, विद्वान, सूफी और कला की गहरी समझ रखने वाला शख्स था। लेकिन इसके साथ साथ वह एक उदासीन प्रशासक और युद्ध के मैदान में अप्रभावी भी था। जहाँ एक ओर शाहजहाँ ने दारा शिकोह को सैन्य मुहिमों से दूर रखा वहीं औरंगज़ेब को 16 वर्ष की आयु में एक बड़ी सैन्य मुहिम की कमान सौंप दी।

दारा शिकोह के अवशेष

  • शाहजहाँनामा के अनुसार, औरंगज़ेब द्वारा पराजित होने के बाद दारा शिकोह को जंजीरों में बाँधकर दिल्ली लाया गया। उसका सिर काट कर आगरा किले में शाहजहाँ के पास भेज दिया गया, जबकि उसके धड़ को हुमायूँ के मकबरे के परिसर में दफनाया गया।
  • हालाँकि इस विषय में कोई जानकारी नहीं है कि वास्तव में दारा शिकोह को कहाँ दफनाया गया था। अभी तक केवल यही पता है कि हुमायूँ के मकबरे के परिसर में एक छोटी सी कब्र है, जिसे दारा की कब्र बताया जाता है। यह हुमायूँ के मकबरे के पश्चिमी हिस्से में है। इस इलाके में रहने वाले लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही बात सुनते आ रहे हैं और पुरातत्त्व विभाग के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी ऐसा ही मानते हैं, लेकिन इसके अलावा इस विषय में कोई और साक्ष्य नहीं है।
  • इतिहासकारों के अनुसार, वर्ष 1857 तक मुगल परिवार के सभी सदस्यों को इसी परिसर में दफनाया गया था, यूरोपीय इतिहासकारों के साथ-साथ फारसी भी इसी बात की ओर इशारा करते हैं कि दारा शिकोह को वास्तव में हुमायूँ के मकबरे में ही दफनाया गया था।

ASI की समस्या तथा आगे की राह

  • ASI की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस परिसर में मौजूद कब्रों पर कोई नाम उल्लेखित नहीं है। पैनल के एक सदस्य के अनुसार, "मुहम्मद सालेह कम्बोह द्वारा संकलित शाहजहाँनामा ने दारा शिकोह के अंतिम दिनों के विषय में कम से कम दो पृष्ठों में यह बताया है कि किस प्रकार उसकी निर्मम हत्या की गई और फिर उसे परिसर में कहीं दफना दिया गया।” हालाँकि इस विषय में प्रमाणिक साक्ष्य किस प्रकार प्राप्त होंगे इसके विषय में अभी संशय बना हुआ है। निश्चित रूप से पैनल इस संदर्भ में आवश्यक शोध, अनुसंधान और अध्ययन करेगा ताकि किसी प्रमाणिक परिणाम तक पहुँचा जा सकें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नाइजीरिया में स्वास्थ्य आपातकाल

प्रीलिम्स के लिये:

लासा बुखार, कोरोना वायरस

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य आपातकाल से संबंधित मुद्दे, लासा बुखार का कारण, प्रभाव एवं रोकथाम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नाइजीरियाई विज्ञान अकादमी (Nigerian Academy of Science) ने देश में लासा बुखार (Lassa Fever) के मौजूदा प्रकोप की गंभीरता के कारण राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल (National Health Emergency) घोषित करने का आह्वान किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्ष 1969 में जब इसे पहली बार पहचाना गया था तो यह केवल 2 राज्यों में फैला था जो वर्ष 2019 तक नाइजीरिया के 23 राज्यों में फैल चुका है।
  • वर्ष 2018 में नाइजीरियन सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (Nigerian Centre for Disease Control) ने 600 से अधिक पुष्ट मामलों और 170 से अधिक मौत से संबंधित मामलों की सूचना दी थी।
  • इसके अतिरिक्त हाल ही में चीन में फैले कोरोना वायरस के व्यापक प्रसार एवं प्रभाव के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने ‘अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ घोषित किया है।

संक्रमण का कारण

  • लासा बुखार एक वायरल रक्तस्रावी रोग है जो लासा वायरस के कारण होता है। यह वायरस चूहों के मल-मूत्र के संपर्क में आने से मनुष्य में प्रेषित होता है।
  • लासा वायरस खाँसी, छींक, स्तनपान और अन्य मानव संपर्क के साथ-साथ टिशू, रक्त, शरीर के तरल पदार्थ, स्राव या उत्सर्जन के संपर्क में आने से मानव में फैलता है तथा अस्पतालों में यह बीमारी दूषित उपकरणों से फैलती है।
  • लासा बुखार जानलेवा रोग है लेकिन अगर इसके बारे में जल्द पता चल जाए तो इसका इलाज किया जा सकता है। बीमारी के इलाज के लिये दवा भी उपलब्ध है। लेकिन इसके बावजूद इसका प्रभाव कम नहीं हो रहा है क्योंकि नाइजीरिया में प्रयोगशालाएँ अक्षम हैं तथा रोगियों को अस्पताल में देर से भर्ती किया जाता है।
  • इस रोग के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण देश में चूहों की संख्या में वृद्धि है जिसके कारण लोग प्रतिदिन चूहों के संपर्क में आते हैं और यह वायरस उन तक फैलता है।
  • इसके अतिरिक्त बीमारी पर अपर्याप्त ध्यान दिया जाना, टीकाकरण और दवाओं में शोध के लिये वित्तपोषण का अभाव, कमज़ोर रोग निगरानी और प्रतिक्रिया प्रणाली इत्यादि कारणों से भी नाइजीरिया में आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हुई है।

रोग के लक्षण:

  • इस बुखार की इनक्यूबेशन अवधि लगभग 10 दिन (6-21 दिन की रेंज) है। शुरू में इसके लक्षण हल्के होते हैं और इनमें लो ग्रेड का बुखार एवं सामान्य कमज़ोरी शामिल है।
  • इसके बाद सिरदर्द और खाँसी, उबकाई और उल्टी-दस्त, मुँह के छाले तथा लसिका ग्रंथियों में सूजन इत्यादि समस्याएँ आती हैं।
  • इसके अतिरिक्त कुछ रोगियों को मांसपेशियों, पेट और सीने में दर्द की शिकायत भी होती है, बाद में मरीज़ों की गर्दन एवं चेहरे सूज जाते हैं तथा उनके मुँह और आंतरिक अंगों से खून निकलने लगता है।
  • आखिरी चरण में सदमा, दौरे, कंपकंपाहट और कोमा की दशा हो सकती है।

Lassa-fever

संक्रमण की रोकथाम के लिये संभावित उपाय

  • राज्य और संघीय स्तर पर सरकारों द्वारा एक व्यापक और निरंतर सार्वजनिक लासा बुखार रोकथाम और नियंत्रण जागरूकता कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये।
  • राज्यों को लासा बुखार पीड़ितों का उपचार करने हेतु एक अलग वार्ड निर्मित करना चाहिये जिससे कि यह अन्य रोगियों में न फैले।
  • चूहों की जनसंख्या के साथ-साथ चूहों के साथ मानव संपर्क को कम करने के लिये पूरे देश में पर्यावरण स्वच्छता में सुधार हेतु एक तंत्र स्थापित करना चाहिये।
  • लासा बुखार के इलाज के लिये नई दवाओं की खोज और लासा बुखार के टीके के विकास हेतु फंड भी उपलब्ध कराया जाना चाहिये।

सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने का उद्देश्य

  • वर्ष 2014 में नाइजीरिया ने इबोला वायरस के प्रकोप से निपटने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल लागू किया था जिसके परिणामस्वरूप 93 दिनों में राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं पर्याप्त वित्तपोषण के कारण इसके प्रकोप को रोका जा सका था।
  • इसी प्रकार लासा बुखार के प्रकोप को भी आपातकालीन स्तर पर प्रयासों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
  • संदिग्ध मामलों के विश्वसनीय और कुशल निदान के लिये राष्ट्रीय प्रयोगशाला नेटवर्क की क्षमता बढ़ाने हेतु सरकार द्वारा व्यापक प्रयास किया जाना अपेक्षित है क्योंकि इसके अभाव में आमतौर पर लासा बुखार के संदिग्ध मामलों में से मात्र 20 प्रतिशत मामलों का ही निदान संभव हो पा रहा है।

आगे की राह

  • सरकार को संवेदनशील रोग निगरानी और प्रतिक्रिया प्रणाली के लिये पर्याप्त धनराशि प्रदान करनी चाहिये।
  • सरकार को देश में स्वास्थ्य गतिविधियों पर निगरानी बनाए रखनी चाहिये तथा किसी भी अनियमितता की स्थिति में तुरंत रोकथाम का प्रयास करना चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारत और मालदीव

प्रीलिम्स के लिये:

SAARC, BIMSTEC

मेन्स के लिये:

भारत-मालदीव द्विपक्षीय संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री और मालदीव के उनके समकक्ष के बीच मुलाकात में सुरक्षा, पुलिसिंग एवं कानून प्रवर्तन, आतंकवाद-रोधी अभियान, कट्टरता-रोधी सहयोग, संगठित अपराध, मादक पदार्थों की तस्करी और क्षमता निर्माण जैसे द्विपक्षीय मुद्दों के सहयोग पर चर्चा की गई।

संबंधों की पृष्ठभूमि:

  • ऐतिहासिक दृष्टि से भारत-मालदीव के संबंध सौहार्दपूर्ण रहे हैं, जहाँ प्राचीन काल से ही दोनों देशों के बीच भाषायी, सांस्कृतिक, धार्मिक और वाणिज्यिक जैसे साझा संबंध रहे हैं। वर्ष 1965 में मालदीव की स्वतंत्रता के बाद स्वतंत्र मालदीव को मान्यता देने तथा उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले प्रारंभिक देशों में भारत शामिल था।

मालदीव गणराज्य:

  • मालदीव का क्षेत्रफल 298 वर्ग किमी. है, जो हिंद महासागर में श्रीलंका के 600 किमी. दक्षिण पश्चिम में 1,200 प्रवाल द्वीपों में विस्तृत है, जिनमें से केवल 202 द्वीपों पर ही निवास है।
  • इन द्वीपों की औसत ऊँचाई लगभग एक मीटर है।
  • यहाँ का सबसे बड़ा धार्मिक संप्रदाय मुस्लिम धर्म है जो की कुल जनसंख्या का लगभग 99.04% है।

राजनीतिक संबंध:

  • राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद भारत के लगभग सभी प्रधानमंत्रियों ने मालदीव का दौरा किया, मालदीव की ओर से भी पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत के कई दौरे किये। इसके अलावा उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय यात्राओं का भी नियमित आदान-प्रदान होता रहा है।
  • भारत और मालदीव ने संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रमंडल, गुटनिरपेक्ष आंदोलन तथा दक्षेस जैसे बहुपक्षीय मंचों में लगातार एक-दूसरे का समर्थन किया है।

द्विपक्षीय सहायता:

  • मालदीव के विकास में भारत एक प्रमुख भागीदार रहा है और उसने मालदीव के कई प्रमुख संस्थानों की स्थापना करने में मदद की है।
  • भारत ने मालदीव को उसकी आवश्यकता के समय हमेशा सहायता की पेशकश की है, 26 दिसंबर 2004 को मालदीव में आई सुनामी के बाद मालदीव को राहत और सहायता पहुँचाने वाला भारत पहला देश था।
  • जुलाई 2007 में भी ज्वारीय घटनाओं में वृद्धि के बाद भारत ने 10 करोड़ रुपए प्रदान किये।
  • वर्तमान में भारत ने मालदीव को 100 मिलियन डाॅलर की स्टैंड-बाय क्रेडिट सुविधा (SCF) प्रदान की है।

Kochi

क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:

  • भारत अनेक योजनाओं के तहत मालदीव के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है और उसने मालदीव के शिक्षा क्षेत्र में ‘तकनीक अनुकूलन कार्यक्रम’ के तहत 5.30 मिलियन डाॅलर का वित्तपोषण किया।
  • इनके अलावा मालदीव के कई राजनयिकों ने भारत में प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:

  • भारत और मालदीव ने वर्ष 1981 में एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे जो आवश्यक वस्तुओं के निर्यात का प्रावधान करता है। इस मामूली शुरुआत से आगे बढ़कर द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में 700 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है।

मालदीव में भारतीय व्यापार:

  • भारतीय स्टेट बैंक फरवरी 1974 से मालदीव के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • साथ ही ताज ग्रुप ऑफ इंडिया, रेजीडेंसी समूह, टाटा हाउसिंग डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड जैसी अनेक कम्पनियाँ वर्तमान में मालदीव में कार्य कर रही हैं।

पीपल-टू-पीपल संपर्क:

  • दोनों देशों की निकटता और हवाई संपर्क में सुधार के कारण पर्यटन तथा व्यापार के लिये मालदीव जाने वाले भारतीयों की संख्या में वृद्धि हुई है, वहीं भारत भी शिक्षा, चिकित्सा उपचार, मनोरंजन एवं व्यवसाय के लिये मालदीव का पसंदीदा स्थान है।

सांस्कृतिक संबंध:

  • दोनों देशों का लंबा सांस्कृतिक इतिहास रहा है और इन संबंधों को और मज़बूत करने के लिये निरंतर प्रयास जारी है।
  • जुलाई 2011 में माले में स्थापित भारतीय सांस्कृतिक केंद्र योग, शास्त्रीय संगीत और नृत्य के नियमित पाठ्यक्रम संचालित करता है।

भारतीय समुदाय:

  • मालदीव में लगभग 26,000 भारतीय रह रहे हैं, यह दूसरा सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है।

वर्तमान परिदृश्य एवं संबंधित समस्याएँ:

  • भारत द्वारा हाल ही के वर्षों में ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ’ (SAARC) के स्थान पर ‘बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी की पहल’ (BIMSTEC) को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप भारत का मालदीव के प्रति बदलता दृष्टिकोण दिखाई दे रहा है।
  • मालदीव रणनीतिक रूप से भारत के नज़दीक और हिंद महासागर में महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग पर स्थित है। मालदीव में चीन जैसी किसी प्रतिस्पर्द्धी शक्ति की मौजूदगी भारत के सुरक्षा हितों के संदर्भ में उचित नहीं है।
  • चीन वैश्विक व्यापार और इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान के माध्यम से मालदीव जैसे देशों में तेज़ी से अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति यामीन भी ‘इंडिया फर्स्ट’ की नीति अपनाने का ज़ोर-शोर से दावा करते थे लेकिन जब भारत ने उनके निरंकुश शासन का समर्थन नहीं किया तो उन्होंने चीन और पाकिस्तान का रुख कर लिया। इस संदर्भ में तीन वजहों से भारत की चिंताएँ उभरकर सामने आई थीं।
    • पहली, मालदीव में चीन की आर्थिक और रणनीतिक उपस्थिति में वृद्धि।
    • दूसरी, भारतीय परियोजनाओं और विकास गतिविधियों में व्यवधान, जिसकी वजह से भारत के तकनीकी कर्मचारियों को मालदीव द्वारा वीज़ा देने से इनकार किया जाना।
    • तीसरी, इस्लामी कट्टरपंथियों का बढ़ता डर।

समस्या से निपटने के प्रयास:

  • भारत ने विश्वास बहाली उपायों को अपनाने को लगातार महत्त्व दिया है।
  • प्रत्यक्ष सहायता के स्थान पर विकास कार्यो में सहयोग करने की दिशा में किये जाने वाले प्रयासों में वृद्धि हुई है।

आगे की राह:

  • मालदीव का भारत के लिये बहुत अधिक रणनीतिक महत्त्व है, अत: भारत के लिये मालदीव के साथ मधुर संबंध बनाए रखना समय और परिस्थिति दोनों दृष्टिकोणों से आवश्यक है। हाल ही में मालदीव में सत्ता परिवर्तन भारत के लिये सकारात्मक प्रतीत होता है, किंतु मालदीव में चीन के बढ़ते वर्चस्व पर लगाम लगाने हेतु भारत को यह अवसर भुनाना होगा। अपनी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए भारत को नई सत्ता के साथ समझदारी से काम लेते हुए मालदीव का साथ देना होगा।

स्रोत: द हिंदू


वर्ल्ड वाइड एजुकेटिंग फॉर द फ्यूचर इंडेक्स

प्रीलिम्स के लिये:

द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट, वर्ल्ड वाइड एजुकेटिंग फॉर द फ्यूचर इंडेक्स

मेन्स के लिये:

भारत में शिक्षा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (The Economist Intellligence Unit) नामक संस्था द्वारा जारी वर्ल्ड वाइड एजुकेटिंग फॉर द फ्यूचर इंडेक्स (Worldwide Educating for the Future Index), 2019 में भारत को 35वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह सूचकांक छात्रों को कौशल-आधारित शिक्षा से लैस करने की देशों की क्षमताओं के आधार पर रैंक प्रदान करता है।
  • यह रिपोर्ट कौशल आधारित शिक्षा के परिप्रेक्ष्य से महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण, समस्या को सुलझाने की क्षमता, नेतृत्व, सहयोग, रचनात्मकता और उद्यमशीलता तथा डिजिटल एवं तकनीकी कौशल जैसे क्षेत्रों में शिक्षा प्रणाली का विश्लेषण करती है।
  • इस रिपोर्ट में दी जाने वाली रैंकिंग तीन श्रेणियों पर आधारित है:
    • नीतिगत वातावरण
    • शैक्षणिक वातावरण
    • समग्र सामाजिक-आर्थिक वातावरण
  • वर्ष 2019 में सूचकांक का विषय "नीति से अभ्यास तक” (From Policy to Practice) है।

वर्ल्ड वाइड एजुकेटिंग फॉर द फ्यूचर इंडेक्स

  • इस सूचकांक (इंडेक्स) और रिपोर्ट को येडान प्राइस फाउंडेशन (Yidan Prize Foundation) द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
  • तेज़ी से बदलते परिदृश्य में कार्य और बेहतर जीवनयापन के लिये छात्रों को तैयार करने में शिक्षा प्रणालियों की प्रभावशीलता का आकलन करने हेतु इसे विकसित किया गया था।

सूचकांक के मुख्य बिंदु

  • फिनलैंड इस सूचकांक में शीर्ष पर है जबकि स्वीडन दूसरे स्थान पर है।
  • वर्ष 2019 में तीनों श्रेणियों (नीतिगत वातावरण, शैक्षणिक वातावरण और समग्र सामाजिक-आर्थिक वातावरण) के आधार पर 53 के कुल स्कोर के साथ भारत समग्र सूचकांक में 35वें स्थान पर रहा। वर्ष 2018 में इन्हीं श्रेणियों में 41.2 के समग्र स्कोर के साथ भारत 40वें स्थान पर था।
  • भारत का स्कोर नीतिगत वातावरण के संदर्भ में वर्ष 2018 में 61.5 की तुलना में वर्ष 2019 में घटकर 56.3 हो गया है। इसके अतिरिक्त शैक्षणिक वातावरण श्रेणी एवं समग्र सामाजिक-आर्थिक वातावरण श्रेणी में भारत का स्कोर वर्ष 2018 में क्रमशः 32.2 एवं 33.3 की तुलना में बढ़कर क्रमशः 52.2 और 50.1 हो गया है।

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सूचकांक में भारत की स्थिति में सुधार के कारण

  • रिपोर्ट के अनुसार, सूचकांक की ‘शैक्षणिक वातावरण’ श्रेणी में भारत के बेहतर प्रदर्शन का प्रमुख कारण सरकार द्वारा शुरू की गई नई शिक्षा नीति है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2019 की शुरुआत में प्रकाशित एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण, संचार और उद्यमिता जैसे भविष्योन्मुखी कौशल का उल्लेख करते हुए नीतिगत माहौल में प्रगति की है।
    • केंद्रीय बजट 2020 में ‘एस्पिरेशनल इंडिया’ के तहत नई शिक्षा नीति पर प्रकाश डाला गया है जिसका उद्देश्य प्रतिभावान शिक्षकों को आकर्षित करने के लिये वित्त की अधिक से अधिक प्राप्ति, नई प्रयोगशालाओं का निर्माण और नवाचार करना है।
  • साथ ही 150 उच्च शिक्षण संस्थानों में अप्रेंटिसशिप एम्बेडेड डिग्री या डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के साथ डिग्री स्तर के पूर्ण-ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने का भी प्रस्ताव है जो मार्च 2021 तक शुरू हो जाएगा।

गौरतलब है कि ये सभी कारण भारत के इस सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन के लिये ज़िम्मेदार हैं।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • वर्ष 2018 की रिपोर्ट में उच्च शिक्षा प्रणाली के अंतर्राष्ट्रीयकरण के अवसर का उपयोग करने से संबंधित भारतीय शिक्षा प्रणाली की अक्षमता पर प्रकाश डाला गया था।
  • वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, विकेंद्रीकृत शिक्षा प्रणाली भी भारतीय शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी चुनौती है।
    • कौशल विकास से संबंधित सुविचारित नीतिगत लक्ष्य अक्सर ज़मीनी स्तर तक नहीं पहुँच पाते हैं जो कि अमेरिका और भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं में एक बड़ी समस्या है।

समाधान:

  • भारत को अपनी शिक्षा प्रणाली को विकसित करना चाहिये ताकि वह उच्च शिक्षा के लिये पसंदीदा स्थान बन जाए।
  • भारतीय शिक्षा पद्धति में व्यापक बदलाव किया जाना चाहिये एवं शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • भारत को अपने शैक्षणिक वातावरण, नीतिगत वातावरण एवं समग्र सामाजिक-आर्थिक वातावरण में सुधार के प्रयास करने चाहिये।
  • ध्यातव्य है कि भारत द्वारा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक बेहतर गंतव्य बनने के लिये स्टडी इन इंडिया (Study In India) एवं वज्र योजना के अंतर्गत प्रयास किया जा रहा है किंतु इसे और व्यापक स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन


केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये

CSE, CACB

मेन्स के लिये

जल प्रदूषण संबंधी रिपोर्ट के प्रमुख प्रावधान व महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB) ने पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में बायो-केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Bio-chemical Oxygen Demand-BOD) के मानक पर लगभग 60 नदियों के प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की है।

प्रमुख बिंदु

  • दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (Centre for Science and Environment-CSE) द्वारा पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर प्रकाशित एक वार्षिक वक्तव्य में संपूर्ण भारत की नदियों पर किये गए शोध के बारे में बताया गया है।
  • शोध के अनुसार, CPCB ने संपूर्ण भारत में 350 से अधिक नदियों के प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की है और इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
  • शोध में कहा गया है कि पूर्वोत्तर राज्यों में प्रदूषित नदियों का विस्तार असम में भरालू, बसीठा, कोलॉन्ग, बोको, कोपिली तथा मेघालय में वमुखराह, उम्शिरपी, विखिर्वी, रावका, कमइ-उम, उम-म्यनेसेह, उम्पई, म्यनेसेह और सारबंग तक है।
  • मणिपुर में यह विस्तार नम्बुल और कोंगबा, मिज़ोरम में चिते, नगालैंड में धनसिरी और त्रिपुरा में गुमति नदियों तक है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट

  • यह एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो भारत में पर्यावरण-विकास के मुद्दों पर थिंक टैंक के रूप में कार्य कर रहा है।
  • इस संगठन ने वायु और जल प्रदूषण, अपशिष्ट जल प्रबंधन, औद्योगिक प्रदूषण, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा संबंधी पर्यावरण के मुद्दों पर जागरूकता एवं शिक्षा का प्रसार करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1980 में की गई थी।
  • पर्यावरण शिक्षा और संरक्षण की दिशा में इसके योगदान के कारण वर्ष 2018 में इसे शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिये इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • शोध में पाया गया है कि औद्योगिक और खनन अपशिष्टों के निष्कासन तथा कचरे की डंपिंग से नदियों के प्रमुख प्रवाह क्षेत्र में प्रदूषण फैल रहा है। इस प्रदूषण का स्रोत अधिकतर कस्बों और शहरों के पास स्थित कारखाने और फैक्टरियाँ हैं।
  • शोध में बताया गया है कि 60% से अधिक अनुपचारित सीवेज को नदियों और नहरों में छोड़ दिया जाता है। परिणामस्वरूप देश की आधी नदियाँ प्रदूषित हो गई हैं, जिनमें गंगा, यमुना, साबरमती तथा दामोदर प्रमुख हैं।
  • शोध में नीति आयोग की समग्र जल प्रबंधन सूचकांक रिपोर्ट (Composition Water Management Index-CWMI) 2018 का संदर्भ लेते हुए बताया गया है कि देश में लगभग 70% ताज़े पानी के स्रोत दूषित हैं और 600 मिलियन से अधिक लोग अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक सांविधिक संगठन है। इसका गठन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अधीन सितंबर, 1974 में किया गया था।
  • इसके अलावा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम,1981 के अधीन भी शक्तियाँ और कार्य सौंपे गए हैं।
  • यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक फील्ड संगठन के रूप में कार्य करता है तथा मंत्रालय को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के उपबंधों के बारे में तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

कार्य

  • जल एवं वायु प्रदूषण के नियंत्रण एवं निवारण तथा वायु गुणवत्‍ता में सुधार से संबंधित किसी भी मामले पर केंद्र सरकार को सलाह देना।
  • राज्‍य बोर्डों की गतिविधियों के बीच समन्‍वय स्‍थापित करना और उनके बीच मतभेदों को सुलझाना।
  • जल एवं वायु प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और इसमें कमी हेतु एक राष्‍ट्रव्‍यापी कार्यक्रम के लिये योजना बनाना एवं उसका संचालन करना।
  • जल एवं वायु प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और इसमें कमी लाने के कार्य में लगे हुए कार्मियों हेतु प्रशिक्षण की योजना बनाना एवं प्रशिक्षण का आयोजन करना।
  • जल एवं वायु प्रदूषण से संबधित तकनीकी आँकड़े एकत्रि‍त करना, संग्रहण एवं प्रकाशित करना और जल एवं वायु प्रदूषण के प्रभावी निवारण, नियंत्रण या इसमें कमी हेतु उपाय करना।
  • शोध में यह भी बताया गया है कि पूर्वोत्तर भारत, जो कि देश के जल संसाधनों के लगभग 30% का प्रतिनिधित्व करता है, के कई क्षेत्रों में पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।
  • शोध के अनुसार, स्वच्छ और पर्याप्त पानी की उपलब्धता के आधार पर भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें स्थान पर है।

स्रोत: AIR


डेयरी उद्योग से संबंधित पैनल का गठन

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड

मेन्स के लिये

किसानों की आय दोगुनी करने में डेयरी उद्योग की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने एक संकल्प प्रस्ताव के माध्यम से डेयरी उद्योग के लिये एक परामर्शदात्री निकाय स्थापित करने का निर्णय लिया है। यह निकाय डेयरी उद्योगों के विकास के लिये सरकार को सुझाव देगा तथा दोनों के बीच समन्वय स्थापित करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • डेयरी उद्योग की समस्याओं को सरकार तक पहुँचाने तथा दोनों के बीच बेहतर संवाद स्थापित करने के लिये निकाय दो माह के अंतराल पर एक समन्वय बैठक आयोजित करेगा।
  • आँकड़ों के अनुसार पूरे देश में प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ लीटर दुग्ध उत्पादन किया जाता है, जिसमें महाराष्ट्र की हिस्सेदारी लगभग 50% है।
  • इसमें लगभग 60% दुग्ध संग्रहण निजी डेयरी संचालकों जैसे लैक्टेलिस प्रभात, पराग डेयरी, इंदापुर मिल्क एंड मिल्क प्रोडक्ट्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है। शेष दुग्ध संग्रहण कोल्हापुर ज़िला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ, पुणे ज़िला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ, संगमनेर तालुका ज़िला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ तथा अन्य सहकारी संघों के द्वारा किया जाता है।
  • दुग्ध विपणन के शीर्ष निकाय राज्य दुग्ध विपणन महासंघ द्वारा दुग्ध संग्रहण और विपणन के कार्य में सक्रिय भूमिका न होने के कारण महाराष्ट्र के डेयरी उद्योग गुजरात और कर्नाटक के डेयरी उद्योगों के समान एकीकृत रूप से संगठित नहीं हो पाए हैं।
  • दुग्ध उत्पादों की कीमतों को लेकर निजी डेयरी उद्योग और सहकारी संघों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के चलते कई बार संघों को नुकसान उठाना पड़ता है।
  • अत्यधिक दुग्ध उत्पादन की स्थिति में निजी डेयरी उद्योगों को नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि इनके अधिकतर उत्पाद स्किम्ड मिल्क पाउडर से मिलकर बने होते हैं और अधिक उत्पादन की स्थिति में इन उत्पादों की मांग में कमी आ जाती है।

निकाय की आवश्यकता

  • राज्य विधानमंडल के नागपुर सत्र के दौरान डेयरी उद्योग प्रमुखों ने सरकार के सम्मुख इस क्षेत्र के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिये एक निकाय के गठन का आग्रह किया था।
  • दोनों के मध्य डेयरी उद्योग से संबंधित एक समिति के निर्माण पर सहमति हुई और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board-NDDB) द्वारा इस क्षेत्र के लिये एक सेतु के रूप में कार्य करने का आश्वासन भी दिया गया।

निकाय की संरचना

  • निकाय की कुल सदस्य संख्या 15 निर्धारित की गई है जिसमें 5 सदस्य सहकारी संघों का प्रतिनिधित्व करेंगे तथा 4 सदस्य निज़ी डेयरी उद्योग से संबंधित होंगे।
  • शेष 6 सदस्य सरकार तथा राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के प्रतिनिधि होंगे।

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड

  • NDDB की स्थापना जुलाई 1965 में गुजरात के आणंद नामक स्थान पर की गई थी।
  • इसकी स्थापना ‘मिल्क मैन’ के उपनाम से प्रसिद्ध डॉ. वर्गीज़ कुरियन ने की थी।

उद्देश्य

  • राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना उत्पादकों के स्वामित्व और उनके द्वारा नियंत्रित संगठनों को प्रोत्साहित करने और उन्हें आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से की गई थी।
  • राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के कार्यक्रम और गतिविधियों का उद्देश्य कृषक सहकारी संस्थाओं को सुदृढ़ करना तथा उन राष्ट्रीय नीतियों का समर्थन करना है जो ऐसी संस्थाओं के विकास के अनुकूल हैं।
  • राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के गठन के केंद्र में सहकारी सिद्धांत एवं सहकारी नीतियाँ हैं।

निकाय के उद्देश्य

  • निकाय का मुख्य उद्देश्य डेयरी उद्योग क्षेत्र और व्यापार की गतिशीलता पर सरकार को सलाह देना है।
  • निकाय डेयरी उद्योग की आवश्यकताओं को समझकर उसके विकास हेतु सरकार को परामर्श देगा।
  • डेयरी उद्योग और सरकार के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करेगा।

डेयरी उद्योग के प्रतिनिधियों की राय

  • प्रदेश के सभी डेयरी संचालकों ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे डेयरी उद्योग के विकास की दिशा में एक आवश्यक कदम बताया।
  • इससे पूर्व सरकार के पास इस क्षेत्र से संबंधित मुद्दों के बारे में जानकारी एकत्र करने का कोई विकल्प नहीं था।
  • इस क्षेत्र को उम्मीद है कि यह निकाय नीतिगत सुधारों पर ज़ोर देगा तथा डेयरी उद्योग के लिये प्रत्यक्ष उत्पादन प्रोत्साहन नीति को लागू करने की मांग का समर्थन करेगा।
  • डेयरी उद्योग के प्रतिनिधियों का सुझाव है कि अधिशेष दुग्ध उत्पादन की स्थिति में दूध की खपत हेतु मिड-डे-मील की भाँति एक अन्य वैकल्पिक व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आकाशगंगा XMM-2599

प्रीलिम्स के लिये

आकाशगंगा XMM-2599 से संबंधित तथ्य

मेन्स के लिये

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, आकाशगंगा व तारों का निर्माण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खगोलविदों की अंतर्राष्ट्रीय टीम ने एक आकाशगंगा XMM-2599 की खोज की है। आकार में असामान्य रूप से बड़ी यह आकाशगंगा लगभग 12 अरब वर्ष पूर्व अस्तित्व में थी। इसके अस्तित्त्व के समय ब्रह्मांड महज़ 1.8 बिलियन वर्ष पुराना था।

प्रमुख बिंदु

  • बिग बैंग की घटना (जो कि 13.8 बिलियन वर्ष पूर्व हुई) और 12 बिलियन वर्ष के मध्य किसी समय इसमें तीव्र विस्फोट हुआ और तारों का तीव्र गति से निर्माण हुआ लेकिन यह विकास प्रक्रिया अचानक से बंद हो गई। इस परिघटना के पीछे की वज़हें अब भी अस्पष्ट हैं।
  • उल्लेखनीय है कि आकाशगंगा XMM-2599 ने ब्रह्माण्ड की आयु 1 अरब वर्ष होने से पूर्व ही 300 बिलियन तारों (सोलर मास) का विकास कर लिया था और ब्रह्माण्ड की आयु 1.8 अरब वर्ष होने तक यह निष्क्रिय भी हो गई।
  • खगोलविदों ने कुछ वर्ष पूर्व ZF-COSMOS-20115 नामक एक अन्य विशालकाय आकाशगंगा की भी खोज की थी जिसकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के 1.7 अरब वर्ष बाद हुई थी किंतु अचानक इसमें तारों का निर्माण बंद हो गया। हालाँकि ZF-COSMOS-20115 में XMM-2599 के सोलर मास की तुलना में केवल 170 अरब सोलर मास मौजूद थे।
  • वर्ष 2008 में EQ J100054+023435 नामक एक आकाशगंगा की खोज की गई थी जिसमें तारों का निर्माण प्रतिवर्ष 1,000 से अधिक सोलर मास की दर से हुआ था। आकर में यह आकाशगंगा XMM-2599 से बहुत छोटी है जिसमें केवल 10 अरब सोलर मास हैं।
  • अवलोकनों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि विशाल आकार प्राप्त करने हेतु इस आकाशगंगा में 500 मिलियन वर्षों तक लगभग 1,000 सौर द्रव्यमान प्रतिवर्ष की दर से तारों का निर्माण हुआ होगा।
  • ध्यातव्य है कि हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी (Milky Way) में प्रतिवर्ष 3 से 4 सौर द्रव्यमान ही निर्मित होते हैं।

अब तक के शोध से विपरीत परिघटना

  • खगोलविदों के मध्य अब तक यह मान्यता थी कि शुरुआती ब्रह्माण्ड में इतनी बड़ी आकाशगंगा का निर्माण नहीं हुआ होगा। हालाँकि हमारी तकनीक के उन्नत होने और दिक्-काल के दूरगामी क्षेत्रों में पहुँच स्थापित होने के साथ ही इन धारणाओं को चुनौती मिल रही है।
  • इस खोज से यह पता चला है कि प्रारंभिक ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर सोलर मास निर्मित हो रहे थे जो ब्रह्मांड संबंधी हमारे मॉडल से अलग है।
  • संख्यात्मक (Numerical) मॉडल अब XMM-2599 जैसी विशाल आकाशगंगाओं की गणना कर सकते हैं किंतु शुरुआती चरण में तारों का तीव्रता से निर्माण और फिर इस प्रक्रिया के अचानक से रुक जाने की परिघटना शोध और आश्चर्य का विषय बनी हुई है।

स्रोत: द हिंदू


जनवरी 2020 में रिकार्ड तापमान

प्रीलिम्स के लिये:

वैश्विक तापन, IMD

मेन्स के और लिये:

जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) के अनुसार जनवरी 2020, वर्ष 1919 के बाद से भारत का दूसरा सबसे गर्म महीना रहा, जिसका मापन औसत न्यूनतम तापमान के मानकों के अनुसार किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (National Oceanic and Atmospheric Administration- NOAA) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर वर्ष 1880 के बाद (भूमि और समुद्र की सतह के औसत तापमान के अनुसार) जनवरी 2020 सबसे गर्म रहा।

january-2020-temprature

भारत में तापमान का स्वरूप:

  • जनवरी माह का औसत न्यूनतम तापमान 20.59°C की तुलना में जनवरी 2020 में 21.92°C रहा जो कि औसत से 1.33°C अधिक रहा। इससे पहले जनवरी 1919 सर्वाधिक गर्म रहा जो कि लगभग 22.13°C रहा था।
  • इसके अलावा वर्ष 1901, 1906 और 1938 के जनवरी माह का तापमान भी सामान्य से अधिक रहा था।
  • वर्ष 1901 के बाद से जनवरी माह के औसत तापमान में पहली बार 1°C से अधिक की विसंगति देखी गई।
  • जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों सहित संपूर्ण उत्तर भारत में इस बार सर्दियाँ कठोर रहीं।
  • दिल्ली में दिसंबर माह में शीतकालीन ठंड ने उस समय कई रिकॉर्ड तोड़ दिये जब 17 दिनों तक लगातार तापमान 4°C तक गिर गया था। इसी तरह पंजाब और राजस्थान में भी दिसंबर और जनवरी में ठंड की स्थिति कठोर रही।

वैश्विक तापमान का स्वरूप:

  • NOAA के अनुसार, जनवरी 2020 में वैश्विक स्तर (भूमि और महासागर की सतह से तापमान का औसत तापमान )141 वर्षों की समयावधि में सबसे अधिक रहा है।
  • जनवरी 2016 और 2020 केवल ऐसे वर्ष रहे है जिनका तापमान विचलन 1°C से अधिक रहा है।
  • जनवरी 2020 में उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में एल नीनो का प्रभाव नहीं होने के बावजूद तापमान में यह विचलन रहा।

ग्लोबल वार्मिंग:

ग्लोबल वार्मिंग का तात्पर्य है “वैश्विक दीर्घकालिक औसत तापमान में धनात्मक वृद्धि”।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण:

  • ग्रीनहाउस गैसें: आधुनिक युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है जिसके कारण वैश्विक तापमान/ग्लोबल वार्मिंग में भी वृद्धि हो रही है।
  • भूमि के उपयोग में परिवर्तन: वृक्ष न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं। वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही हैं, वह काफी चिंतनीय है, क्योंकि वृक्ष वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक यंत्र के रूप में कार्य करते हैं।
  • शहरीकरण: शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया है। जीवन-शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव:

  • वर्षा के पैटर्न में बदलाव: पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और वर्षा आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है।
  • समुद्र जल के स्तर में वृद्धि: वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के दौरान ग्लेशियर पिघल जाते हैं और समुद्र का जल स्तर में भी वृद्धि होती है जिसके प्रभाव से समुद्र के आस-पास के द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • वन्यजीव प्रजाति का नुकसान: तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मज़बूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं।
  • रोगों का प्रसार और आर्थिक नुकसान: जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और अधिक बढ़ेंगी तथा इन्हें नियंत्रित करना कठिन होगा।
  • वनाग्नि: जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाली ऊष्म-लहरों ने वनाग्नि के लिये उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ पैदा की हैं।

समाधान के प्रयास

  • वैश्विक स्तर पर:
    • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC): यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है। यह समझौता जून 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया।
    • पेरिस समझौता: इस समझौते में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) की संकल्पना को अपनाया गया है। वर्ष 2015 में 30 नवंबर से लेकर 11 दिसंबर तक 195 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये संभावित नए वैश्विक समझौते पर चर्चा की।
  • भारत के प्रयास:
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (The National Action Plan on Climate Change-NAPCC): जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारंभ वर्ष 2008 में किया गया था। इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे तथा इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA): यह सौर ऊर्जा से संपन्न देशों का एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत भारत और फ्राँस ने 30 नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्‍मेलन के दौरान की।
    • भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (India’s Nationally Determined Contribution-INDC): पेरिस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान की संकल्पना को प्रस्तावित किया गया है, इसमें प्रत्येक राष्ट्र से यह अपेक्षा की गई है कि वह ऐच्छिक तौर पर अपने लिये उत्सर्जन के लक्ष्यों का निर्धारण करें।

समाधान से संबंधित चुनौतियाँ:

  • पेरिस समझौते जैसे पर्यावरणीय समझौतों में उन देशों के विरुद्ध कार्यवाही का कोई प्रावधान नहीं है, जो इसकी प्रतिबद्धताओं का सम्मान नहीं करते। यहाँ तक कि पेरिस समझौते में जवाबदेही तय करने व जाँच के लिये भी कोई नियामक संस्था नहीं है।
  • अमेरिका के वर्तमान रुख के प्रभाव के कारण जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये प्राप्त होने वाले वित्तीय संसाधनों यथा; हरित जलवायु कोष पर असर पड़ेगा, अतः इसकी अनुपस्थिति में समझौते के लक्ष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

हरित जलवायु कोष

(Green Climate Fund-GEF)

UNFCCC के ढाँचे के भीतर स्थापित एक कोष है जो जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये यह अनुकूलन और शमन प्रथाओं को अपनाने में विकासशील देशों की सहायता करता है।

  • अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के सिद्धांत यथा; समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों का सिद्धांत (Common But Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities- CBDR-RC) ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में कारगर नज़र नहीं आ रहा है।

समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों का सिद्धांत:

  • इसका अर्थ यह है कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्रवाई में विकासशील और अल्पविकसित देशों की तुलना में अधिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये क्योंकि विकसित होने की प्रक्रिया में इन देशों ने सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन किया है और ये देश जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं।
  • पेरिस जलवायु समझौते के अंतर्गत विभिन्न राष्ट्रों की भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए विभेदित उत्तरदायित्त्वों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांत का पालन किया गया है।

आगे की राह:

  • इस संबंध में कार्बन टैक्स की अवधारणा का प्रयोग कर वैश्विक स्तर पर कार्बन के उत्सर्जन पर टैक्स लगाया जा सकता है, इससे सभी देशों के कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की प्रतिबद्धता में बढ़ोतरी होगी।
  • सभी देशों की जवाबदेही तय करने और इस संबंध में उनके प्रयासों की जाँच करने के लिये एक नियामक संस्था का भी निर्माण किया जा सकता है, साथ ही जो देश अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में असफल रहेंगे उन पर प्रतिबंध और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। जुर्माने से प्राप्त हुई राशि का प्रयोग हरित परियोजनाओं के लिये किया जा सकता है।
  • वर्तमान में दुनिया भर की सरकारें जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी के लिये बहुत सारा पैसा खर्च कर रही हैं, जिसके कारण जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को बढ़ावा मिल रहा है। आवश्यक है कि सभी जीवाश्म ईंधनों की सब्सिडी पर वैश्विक प्रतिबंध लगाया जाए।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22 फरवरी, 2020

बुड्ढा नाला का नवीनीकरण

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की अध्यक्षता में पंजाब मंत्रिमंडल ने लुधियाना में अत्यंत प्रदूषित बुड्ढा नाला के नवीनीकरण हेतु 650 करोड़ रुपए की परियोजना को मंज़ूरी प्रदान की है। आधिकारिक सूचना के अनुसार इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना के तहत 27.5 करोड़ लीटर प्रतिदिन क्षमता के साथ एक अतिरिक्त सीवेज निस्तारण संयंत्र लगाया जाएगा और जिससे नाले के प्रदूषित होने की समस्या दूर होगी और सतलुज नदी का प्रदूषण भी घटेगा। ज्ञात हो कि इस नाले का उद्गम लुधियाना के कोउम कलां गाँव में होता है और वलीपुर कलां तक ​​47 किलोमीटर की यात्रा पूरी करने के पश्चात् यह सतलुज नदी में विलीन हो जाता है। इस नाले के कारण सतलुज नदी में काफी ज़्यादा प्रदूषण होता है, इस प्रकार बुड्ढा नाला के नवीनीकरण से सतलुज नदी के प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिलेगी।

मोहल्ला मार्शल

दिल्ली के महिला एवं बाल विकास मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने महिला सुरक्षा के मद्देनज़र राजधानी में मोहल्ला मार्शल तैनात करने और SC/ST महिला कल्याण सेल स्थापित करने का निर्णय लिया है। मंत्री ने बताया कि दिल्ली में तकरीबन 6,000-7,000 मोहल्ले हैं। प्रत्येक मोहल्ले में चार मार्शल तैनात किये जाएंगे। इनकी शिफ्ट आठ-आठ घंटे की होगी। दिन की शिफ्ट में एक-एक मार्शल रहेगा, जबकि रात की शिफ्ट में दो की तैनाती होगी। इस काम में सिविल डिफेंस या होमगार्ड के जवानों को लगाया जाएगा। इससे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। इसके अलावा दिल्ली महिला आयोग में विशेष SC/ST महिला कल्याण सेल स्थापित किया जाएगा। यह सेल SC/ST समुदाय से संबंधित महिलाओं और लड़कियों के कल्याण की दिशा में कार्य करेगा।

प्रधानमंत्री सलाहकार

सेवानिवृत IAS अधिकारियों भास्कर खुल्बे और अमरजीत सिन्हा को प्रधानमंत्री का सलाकार नियुक्त किया गया है। इस संदर्भ में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार दोनों अधिकारियों को ‘कैबिनेट की नियुक्ति समिति’ (ACC) ने सचिव के समकक्ष पद एवं वेतनमान पर प्रधानमंत्री कार्यालय में नियुक्ति को मंज़ूरी प्रदान की है। दोनों अधिकारियों की नियुक्ति दो वर्ष की अवधि के लिये की गई है, जिसे आगे बढ़ाया जा सकता है। भास्कर खुल्बे और अमरजीत सिन्हा दोनों ही 1983 बैच के IAS अधिकारी हैं। भास्कर खुल्बे पश्चिम बंगाल कैडर और अमरजीत सिन्हा बिहार कैडर से हैं। बीते वर्ष अमरजीत सिंहा ग्रामीण विकास सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे, जबकि खुलबे PMO में अपनी सेवाएँ दे चुके हैं।

राॅस टेलर

न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और बल्लेबाज राॅस टेलर (Ross Taylor) अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में 100 मैच खेलने वाले विश्व के पहले खिलाड़ी बन गए हैं। हाल ही में राॅस टेलर ने भारत के खिलाफ अपना 100वाँ टेस्ट मैच खेला था। इसके अलावा उन्होंने न्यूज़ीलैंड के लिये कुल 231 वनडे और 100 T20 भी खेले हैं। वर्ष 1984 में न्यूज़ीलैंड में पैदा हुए राॅस टेलर ने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच 1 मार्च, 2006 को वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध खेला था। राॅस टेलर के अंतर्राष्ट्रीय कैरियर की बात करें तो उन्होंने कुल 100 टेस्ट मैचों में 7219 रन, 231 वनडे में 8565 रन और 100 T20 में 1909 रन बनाए हैं। ध्यातव्य है कि राॅस टेलर इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) की ओर से खेलते हैं।