भारतीय समाज
वैश्विक सामाजिक गतिशीलता सूचकांक-2020
प्रीलिम्स के लिये:वैश्विक सामाजिक गतिशीलता सूचकांक मेन्स के लिये:वैश्विक सामाजिक गतिशीलता सूचकांक का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum-WEF) द्वारा पहला सामाजिक गतिशीलता सूचकांक जारी किया गया है।
सूचकांक के प्रमुख निष्कर्ष:
वैश्विक संदर्भ में-
- वैश्विक सामाजिक गतिशीलता सूचकांक में 82 देशों को शामिल किया गया जिनमें भारत 76वें स्थान पर है।
- 85.2 के सामाजिक गतिशीलता स्कोर के साथ डेनमार्क जारी सूचकांक में शीर्ष स्थान पर है, इसके बाद क्रमशः फिनलैंड (83.6), नॉर्वे (83.6), स्वीडन (83.5) और आइसलैंड (82.7) है।
- जी 7 अर्थव्यवस्थाओं में, जर्मनी सबसे बेहतर स्थिति के साथ 11 वें स्थान पर, फ्रांस 12 वें स्थान पर, जापान 15वें, यूनाइटेड किंगडम 21वें, संयुक्त राज्य अमेरिका 27वें और इटली 34वें और कनाडा 14 वें स्थान पर है ।
- ब्रिक्स देशों में रूस 39वें स्थान पर, चीन 45वें स्थान पर ब्राजील 60वें, भारत 76वें और दक्षिण अफ्रीका 77वें स्थान पर है।
भारत के संदर्भ में:
- भारत 42.7 के स्कोर के साथ सूचकांक में 76 वें स्थान पर है।
- सूचकांक के अनुसार, भारत में एक गरीब परिवार के सदस्य को औसत आय प्राप्त करने में अभी भी सात पीढ़ियों का समय लगेगा।
- पूर्ण गरीबी में रहने वाले लोगों के प्रतिशत में उल्लेखनीय कमी होने के बावजूद, भारत के लिये अपनी आबादी को अधिक समान रूप से समान अवसर प्रदान करने के लिये सुधार के कई क्षेत्र हैं जिन्हें विभिन्न स्तंभों में दर्शाया गया हैं-
सामाजिक गतिशीलता सूचकांक के उपर्युक्त 10 स्तंभों पर भारत की स्थिति:
पैरामीटर | रैंक (82 देशों में से) |
स्वास्थ्य | 73 |
शिक्षा तक पहुँच | 66 |
शिक्षा में गुणवत्ता और समानता | 77 |
उम्र भर सीखना | 41 |
प्रौद्योगिकी तक पहुँच | 73 |
कार्य का अवसर | 75 |
उचित वेतन वितरण | 79 |
काम करने की स्थिति | 53 |
सामाजिक सुरक्षा | 76 |
समावेशी संस्थान | 67 |
सूचकांक के बारे में:
- क्या है सामाजिक गतिशीलता ?
- सामाजिक गतिशीलता को किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत परिस्थितियों में परिवर्तन (की अपने माता-पिता की तुलना में) के रूप में समझा जा सकता है अर्थात् व्यक्ति की परिस्थितियाँ उसके माता-पिता की परिस्थितियों की तुलना में ‘उच्च स्तर’ (Upward) की हैं या उससे ‘निम्न स्तर’ (Downward) की हैं। कुल मिलाकर यह एक बच्चे के लिये अपने माता-पिता की तुलना में बेहतर जीवन का अनुभव करने की क्षमता है। जबकि सापेक्ष सामाजिक गतिशीलता किसी व्यक्ति के जीवन में मिलने वाले परिणामों पर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के प्रभाव का आकलन है।
- सामाजिक गतिशीलता सूचकांक की गणना:
WEF के सामाजिक गतिशीलता सूचकांक का निर्धारण पाँच प्रमुख आयामों तथा इनके अंतर्गत 10 स्तंभों के आधार पर किया गया है जो इस प्रकार हैं-
1. स्वास्थ्य (Health)
2. शिक्षा (Education):
- पहुँच (Access)
- गुणवत्ता और समानता (Quality and Equity)
- आजीवन अध्ययन, (Lifelong Learning)
3. प्रौद्योगिकी (Technology)
4. कार्य (Work):
- अवसर(Opportunities)
- मज़दूरी(Wages)
- शर्तें (Conditions)
5. संरक्षण और संस्थाएँ (Protection and Institutions):
- सामाजिक संरक्षण और समावेशी संस्थान (Social Protection and Inclusive Institutions)
- अतः सामाजिक असमानता की अवधारणा आय असमानता की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है जो अपने आप में कई अवधारणाओं एवं चिंताओं को समाहित करती है, जैसे-
- अंतरा: क्रियात्मक गतिशीलता (Intragenerational Mobility)- किसी व्यक्ति के अपने जीवनकाल के दौरान स्वयं को सामाजिक-आर्थिक वर्गों के बीच स्थानांतरित करने की क्षमता।
- अंतःक्रियात्मक गतिशीलता (Intergenerational Mobility)- एक या अधिक पीढ़ियों की अवधि के दौरान सामाजिक-आर्थिक उतार-चढ़ाव को ऊपर या नीचे करने के लिये एक पारिवारिक समूह की क्षमता।
- पूर्ण आय गतिशीलता (Absolute Income Mobility)- किसी व्यक्ति की अपने जीवन के दौरान अपने माता-पिता की तुलना में अधिक या वास्तविक आय अर्जित करने की क्षमता।
- पूर्ण शैक्षिक गतिशीलता (Absolute Educational Mobility)- किसी व्यक्ति के लिये अपने माता-पिता की तुलना में उच्च शिक्षा स्तर प्राप्त करने की क्षमता।
- सापेक्ष आय गतिशीलता (Relative Income Mobility)- किसी व्यक्ति की आय का कितना हिस्सा उनके माता-पिता की आय से निर्धारित होता है।
- सापेक्ष शैक्षिक गतिशीलता (Relative Educational Mobility)- किसी व्यक्ति की शिक्षा प्राप्ति का कितना हिस्सा उनके माता-पिता की शैक्षिक प्राप्ति से निर्धारित होता है।
सूचकांक की आवश्यकता :
- तेज़ी से वैश्विक विकास के बावजूद दुनिया भर में असमानताएँ बढ़ रही हैं।
- असमानता के बढ़ने से न केवल बड़े पैमाने पर सामाजिक अशांति पैदा हुई है, बल्कि इस तरह की आर्थिक नीतियों पर वैश्विक सहमति भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है जिसके चलते पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर में व्यापार संरक्षणवाद को बढ़ावा मिला है। अतः अधिक-से-अधिक व्यापार संरक्षणवाद, घरेलू श्रमिकों का डर और आशंकाओं को दूर करने में यह सूचकांक मददगार साबित होगा।
महत्त्व:
- सामाजिक गतिशीलता का महत्त्व हमारे लिये तब ओर बढ़ जाता है जब यह पता लगाना हो कि शीर्ष पर स्थित लोगों तक पहुँचने के लिये निचले भाग पर स्थित लोगों को कितना समय लगेगा अर्थात् यह कितने समय बाद जो किसी व्यक्ति के लिये एक निश्चित अवधि में ऊपर ले जाने तथा सामाजिक गतिशीलता के लिये आवश्यक होंगे।
- जैसे भारत में निम्न-आय वाले परिवार में जन्म लेने वाले लोगों के लिये यह सात पीढ़ियों तक का समय लेगा जबकि डेनमार्क में केवल दो पीढ़ियों का समय लगेगा।
देश | एक गरीब परिवार के सदस्य के लिये आवश्यक आय स्तर को प्राप्त करने हेतु आवश्यक पीढ़ियों की संख्या |
डेनमार्क | 2 |
यूनाइटेड स्टेट्स / यूनाइटेड किंगडम | 5 |
जर्मनी/फ़्रांस | 6 |
भारत/चीन | 7 |
ब्राज़ील/दक्षिण अफ्रीका | 9 |
- सूचकांक में सापेक्ष सामाजिक गतिशीलता के उच्च स्तर वाले देश, जैसे- फिनलैंड, नॉर्वे या डेनमार्क आय असमानता के निचले स्तर को प्रदर्शित करते हैं।
- कम सापेक्ष सामाजिक गतिशीलता वाले देश, जैसे- भारत, दक्षिण अफ्रीका या ब्राजील भी आर्थिक असमानता के उच्च स्तर का प्रदर्शन करते हैं। इसलिये यह भारत जैसे देश की सामाजिक गतिशीलता बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
आगे की राह :
सूचकांक बताता है कि सरकारों को सभी नागरिकों के लिये सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना सभी के लिये समान भूमिका निभानी चाहिये जिसमें निम्नलिखित सुझावों को शामिल किया जा सकता है-
- सामाजिक गतिशीलता के लिये एक नया वित्तपोषण मॉडल विकसित करना जो व्यक्तिगत आय पर कर प्रगति में सुधार, धन के संचयन को संबोधित करने वाली नीतियाँ और कराधान के स्रोतों को व्यापक रूप से संतुलित करे।
- एक व्यक्ति के कार्यशील जीवन में कौशल विकास को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास करना।
- एक नया सामाजिक सुरक्षा अनुबंध विकसित करना जो सभी श्रमिकों को उनके रोज़गार की स्थिति की परवाह किये बिना समग्र सुरक्षा प्रदान करे।
विश्व आर्थिक मंच (WEF)-
- यह एक गैर-लाभकारी एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, इसकी स्थापना 1971 में स्विट्जरलैंड (जिनेवा) में हुई।
- यह संगठन वैश्विक, क्षेत्रीय और उद्योग एजेंडा को आकार देने के लिये व्यापार, राजनीतिक, शैक्षणिक और समाज के अन्य नेताओं को एक साथ वैश्विक मंच पर लाकर स्थिति में सुधार करने के लिये प्रतिबद्ध करता है।
विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी अन्य रिपोर्ट्स-
- ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट (Global Gender Gap Report)
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट (Global Competitiveness Report)
- ग्लोबल ह्यूमन कैपिटल रिपोर्ट (Global Human Capital Report)
- यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट (Travel and Tourism Competitiveness Report)
- वैश्विक जोखिम रिपोर्ट (Global Risks Report)
- समावेशी संवृद्धि और विकास रिपोर्ट (Inclusive Growth and Development Report)
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र का कार्यक्रम
प्रीलिम्स के लिये:UNAIDS का गोलमेज़ सम्मेलन मेन्स के लिये:विश्व में एचआईवी/एड्स से प्रभावित व्यक्तियों की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक फोरम की वार्षिक बैठक के दौरान ‘एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र का कार्यक्रम’ (The Joint United Nations Programme on HIV/AIDS- UNAIDS) के उच्च स्तरीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।
मुख्य बिंदु:
- इस गोलमेज़ सम्मेलन का विषय (Theme) ‘एक्सेस फॉर ऑलः लीवरेजिंग इनोवेशंस, इंवेस्टमेंट्स एंड पार्टनरशिप्स फॉर हेल्थ’ (Access for all: Leveraging Innovations, Investments and Partnerships for Health) है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरे के रूप में एड्स को समाप्त करने हेतु समर्पित संयुक्त राष्ट्र की यह एजेंसी दुनिया भर के शीर्ष राजनेताओं और सरकारों के सहयोग से यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती है कि गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा का अधिकार केवल अमीरों का विशेषाधिकार न रहे बल्कि सभी को समान रूप से उपलब्ध हो।
स्वास्थ्य संबंधी वैश्विक परिदृश्य:
अत्यधिक गरीबी की स्थिति :
- UNAIDS के अनुसार, पूरे विश्व में सौ मिलियन से अधिक व्यक्ति अत्यधिक गरीबी (प्रतिदिन $ 1.90 या उससे कम की आय) की स्थिति में जी रहे हैं।
- वैश्विक आबादी के लगभग 12% (930 मिलियन से अधिक) व्यक्तियों को अपने घरेलू बजट का कम-से-कम 10% स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करना पड़ता है।
- UNAIDS के अनुसार, विश्व में प्रत्येक दो मिनट के दौरान एक महिला की मृत्यु बच्चे को जन्म देते समय हो जाती है।
- कई देशों में महँगी स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण वहाँ के नागरिकों को खराब गुणवत्ता की स्वास्थ्य सुविधाएँ प्राप्त हो पाती हैं या वे स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।
- सामाजिक अस्वीकृति और भेदभाव के कारण गरीब और कमज़ोर लोग विशेष रूप से महिलाएँ को स्वास्थ्य अधिकारों से वंचित रह जाती हैं।
महिलाएँ और लड़कियाँ सर्वाधिक सुभेद्य:
- UNAIDS के अनुसार, हर सप्ताह विश्व में 6,000 युवा महिलाएँ एचआईवी (Human Immunodeficiency Virus- HIV) से संक्रमित होती हैं।
- अकेले उप-सहारा अफ्रीका में किशोरों में एचआईवी संक्रमण के पाँच में से चार नए मामले लड़कियों के दर्ज किये जाते हैं और एड्स से संबंधित बीमारियाँ इस क्षेत्र में प्रजनन आयु की महिलाओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है।
- एड्स से संबंधित मौतों और नए एचआईवी संक्रमण को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद वर्ष 2018 में 1.7 मिलियन नए एचआईवी संक्रमण के मामले सामने आए तथा लगभग 15 मिलियन व्यक्तियों को अभी भी एचआईवी उपचार प्राप्त नहीं हो सका है।
सरकारों को करने होंगे प्रयास:
- UNAIDS के अनुसार, सभी के लिये स्वास्थ्य की देखभाल करना सरकारों का प्रमुख कार्य है लेकिन बहुत सारे देशों की सरकारें इसे पूरा नहीं कर पा रही हैं।
- इस संबंध में थाईलैंड तथा दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने उल्लेखनीय प्रगति की है।
करों का भुगतान न करना:
- UNAIDS के अनुसार, यह अस्वीकार्य है कि धनी व्यक्ति और बड़ी कंपनियाँ कर देने से बच रही हैं और आम जनमानस को अपने खराब स्वास्थ्य के चलते इसका भुगतान करना पड़े।
- बड़ी कंपनियों को करों का भुगतान कर कर्मचारियों (विशेषकर महिलाएँ) के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिये तथा समान कार्य के लिये समान वेतन प्रदान कर सुरक्षित कार्यशील स्थिति प्रदान करना चाहिये।
मानवाधिकारों से वंचित करना:
- UNAIDS के अनुसार, खराब स्वास्थ्य सेवाओं का एक मुख्य कारण मानवाधिकारों का हनन भी है।
- विश्व बैंक के अनुसार, एक अरब से अधिक महिलाओं को घरेलू हिंसा के खिलाफ कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।
- कम-से-कम 65 देशों में समलैंगिकता एक अपराध है जिससे समलैंगिक व्यक्तियों के स्वास्थ्य देखभाल संबंधी कानूनी अधिकारों पर प्रभाव पड़ता है।
भारत का पक्ष:
- केंद्रीय नौवहन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री द्वारा इस कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्त्व किया गया।
- स्वास्थ्य तक सबकी सुगम पहुँच होनी चाहिये, नवाचारी प्रौद्योगिकियां और समाधान इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- भारत में विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) तथा सबको सस्ती और बेहतर दवाएँ प्रदान करने के लिये प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना चलाई जा रही है।
आगे की राह:
उल्लेखनीय है कि एचआईवी संबंधी जीवन रक्षक सेवाएँ प्रदान करने के लिये सरकारों, निजी क्षेत्र और समुदायों के नेतृत्व को साथ लाने और उन्हें एक-दूसरे से जोड़ने के लिये UNAIDS दिशा-निर्देश, समन्वय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। सतत् विकास लक्ष्यों के मद्देनज़र जन-स्वास्थ्य के लिये खतरनाक एड्स को वर्ष 2030 तक समाप्त करने हेतु UNAIDS वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है।
स्रोत- पीआईबी
भारतीय राजनीति
विधायी सदन के अध्यक्ष के अधिकारों की समीक्षा
प्रीलिम्स के लिये10वीं अनुसूची व 52वां संविधान संशोधन मेन्स के लियेदल- बदल विरोधी कानून की आवश्यकता तथा प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) के अंतर्गत संसद तथा विधानसभा सदस्यों को अयोग्य ठहराने संबंधी लोकसभा और विधानसभा अध्यक्षों को प्राप्त अनन्य शक्ति की समीक्षा करने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक व्यवस्था देते हुए कहा कि संसद को विचार करना होगा कि क्या किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर निर्णय करने का अधिकार लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष को अर्द्धन्यायिक प्राधिकारी के रूप में दिया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार लोकसभा और विधानसभा अध्यक्ष राजनीतिक दल से संबंधित होते हैं, ऐसे में ये सदस्यों की अयोग्यता का निर्णय करते समय राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने विचार व्यक्त किया है कि किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने का अधिकार लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष की बजाय संसदीय ट्रिब्यूनल को देने के लिये संविधान संशोधन पर संसद को गंभीरता से विचार करना चाहिये।
- न्यायालय का विचार है कि इस ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश के द्वारा की जा सकती है।
- न्यायालय ने कहा कि संसद किसी और वैकल्पिक व्यवस्था पर भी विचार कर सकती है जिसमें निष्पक्ष और तेज गति से निर्णय लिये जा सकें।
क्या है दल- बदल विरोधी कानून
- 52वें संविधान संशोधन,1985 द्वारा भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची में 'दल बदल विरोधी कानून' (Anti-Defection Law) की व्यवस्था की गई है।
- दल- बदल विरोधी कानून की रूपरेखा राजनीतिक दल- बदल के दोषों, दुष्प्रभावों तथा पद के प्रलोभन अथवा भौतिक पदार्थों के प्रलोभन पर रोक लगाने के लिये की गई है।
- इसका उद्देश्य भारतीय संसदीय लोकतंत्र को मज़बूती प्रदान करना तथा अनैतिक दल- बदल पर रोक लगाना है।
अयोग्य घोषित करने का आधार
- यदि किसी राजनीतिक दल का सदस्य स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल की सदस्यता त्याग देता है।
- यदि वह उस सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है या मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिन के भीतर क्षमादान न पाया हो।
- यदि कोई निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर लेता है।
- यदि किसी सदन का नामनिर्देशित सदस्य उस सदन में अपना स्थान ग्रहण करने के छह माह बाद किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर लेता है।
अपवाद
- यदि कोई सदस्य पीठासीन अधिकारी के रूप में चुना जाता है तो वह अपने राजनीतिक दल से त्यागपत्र दे सकता है और अपने कार्यकाल के बाद फिर से राजनीतिक दल में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। उसे यह उन्मुक्ति पद की मर्यादा और निष्पक्षता के लिये दी गई है।
- दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य विलय के पक्ष में हों।
लाभ
- यह कानून सदन के सदस्यों की दल- बदल की प्रवृत्ति पर रोक लगाकर राजनीतिक संस्था में उच्च स्थिरता प्रदान करता है।
- यह राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को कम करता है तथा अनियमित निर्वाचनों पर होने वाले अप्रगतिशील खर्च को कम करता है।
- यह कानून विद्यमान राजनीतिक दलों को एक संवैधानिक पहचान देता है।
आलोचना
- यह असहमति तथा दल- बदल के बीच अंतर को स्पष्ट नही कर पाया। इसने विधायिका की असहमति के अधिकार तथा सदविवेक की स्वतंत्रता में अवरोध उत्पन्न किया।
- इस कानून ने दल के अनुशासन के नाम पर दल के स्वामित्व तथा अनुमति की कठोरता को आगे बढ़ाया।
- इसने छोटे स्तर पर होने वाले दल- बदल पर तो रोक लगाई परंतु बड़े स्तर पर होने वाले दल- बदल को कानूनी रूप प्रदान किया।
- यह किसी सदस्य द्वारा सदन के बाहर किये गए कार्यकलापों हेतु उसके निष्कासन की व्यवस्था नहीं करता है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
आर्थिक असमानता पर ‘टाइम टू केयर रिपोर्ट’
प्रीलिम्स के लिये:‘टाइम टू केयर’ रिपोर्ट के मुख्य बिंदु मेन्स के लिये:‘टाइम टू केयर’ रिपोर्ट का भारतीय परिदृश्य में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑक्सफैम (Oxfam) द्वारा वैश्विक गरीबी उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करने हेतु ‘टाइम टू केयर’ (Time to Care) नामक रिपोर्ट का प्रकाशन किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- इस रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक असमानता का कारण अत्यधिक गरीबी और अधिकतम धन पर कुछ लोगों का नियंत्रण होना है।
- वर्ष 2019 में पूरे विश्व के 2,153 अरबपतियों के पास 4.6 बिलियन (वैश्विक आबादी का 60 प्रतिशत) लोगों से अधिक संपत्ति है।
- दुनिया के 22 सबसे अमीर पुरुषों के पास अफ्रीका की सभी महिलाओं की संपत्ति की तुलना में अधिक संपत्ति है।
- दुनिया के सबसे अमीर 1% लोगों के पास 6.9 बिलियन लोगों की तुलना में दोगुनी से अधिक संपत्ति है।
- वर्ष 2011-2017 के बीच जी-7 देशों में औसत मज़दूरी 3% बढ़ी, जबकि अमीर शेयरधारकों के लाभांश में 31% की वृद्धि देखी गई है।
- अगले 10 वर्षों में सबसे अमीर 1% लोगों की संपत्ति पर अतिरिक्त 0.5% कर लगाकर शिक्षा, स्वास्थ्य और बुजुर्ग देखभाल आदि क्षेत्रों में 117 मिलियन लोगों के लिये नौकरियों का सृजन किया जा सकता है।
महिलाओं के संदर्भ में:
- विश्व स्तर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं की गरीबी दर 4% अधिक है। महिलाओं की चरम उत्पादक और प्रजनन आयु के दौरान यह अंतर 22% तक बढ़ जाता है।
- दुनिया भर में छह प्रतिशत पुरुषों की तुलना में कार्यशील आयु की 42 प्रतिशत महिलाओं को नौकरी नहीं मिल सकती क्योंकि वे सभी केवल देखभाल संबंधी कार्यों में संलिप्त हैं।
- वैश्विक स्तर पर महिलाओं और लड़कियों को 12.5 बिलियन घंटे अवैतनिक देखभाल के कार्यों में लगाया जाता है, जो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में हर वर्ष कम-से-कम 10.8 ट्रिलियन डॉलर का योगदान के बराबर है।
- दुनिया भर में अनुमानित 67 मिलियन घरेलू श्रमिकों में 80% महिलाएँ हैं।
- अनुमानित रूप से 90% घरेलू श्रमिकों की पहुँच सामाजिक सुरक्षा जैसे-मातृत्व संरक्षण और लाभ तक नहीं है।
- दुनिया भर में 5-9 वर्ष आयु वर्ग और 10-14 वर्ष के आयु वर्ग की लड़कियाँ समान उम्र के लड़कों की तुलना में अवैतनिक देखभाल के काम पर क्रमशः 30% और 50% अधिक समय खर्च करती हैं।
सुझाव/आगे की राह:
- सरकारों की नीतियों के चलते असमानता का संकट पैदा हुआ है, अतः अब सरकारों को इसकी समाप्ति की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि निगम और धनी व्यक्ति कर का उचित हिस्सा दें तथा सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाया जाए।
- महिलाओं और लड़कियों द्वारा किये जाने वाले देखभाल के कार्य के संबंध में कानून पारित किया जाना चाहिये।
- सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों को करने वाले लोगों को उनके द्वारा किये गए कार्य का समय पर भुगतान किया जाए।
- सरकारों को एक ऐसी अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिये कार्य करना होगा, जो सभी लोगों के कल्याण के लिये हो, न कि केवल कुछ खास लोगों पर केंद्रित हो।
ऑक्सफैम
- ऑक्सफैम एक प्रमुख गैर-लाभकारी समूह है जो 19 स्वतंत्र चैरिटेबल संगठनों का एक संघ है।
- ऑक्सफैम की स्थापना 1942 में हुई । इसका मुख्यालय केन्या की राजधानी नैरोबी में स्थित है।
- इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक गरीबी को कम करने पर केंद्रित है तथा यह स्थानीय संगठनों के माध्यम से कार्य करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
ReITs एवं InvITs से संबंधित दिशा-निर्देश
प्रीलिम्स के लिये:ReIT, InvITs, SEBI मेन्स के लिये:SEBI एवं प्रतिभूति बाज़ार, REITs तथा InvITs का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Security Exchange Board of India- SEBI) ने रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (Real Estate Investment Trust- ReIT) और बुनियादी ढाँचा निवेश ट्रस्ट (Infrastructure Investment Trust- InviTs) द्वारा सूचीबद्ध इकाइयों के अधिकारों के मुद्दों (Rights Issue) से संबंधित दिशा-निर्देशों की घोषणा की है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- 17 जनवरी को SEBI ने REITs और InvITs के लिये दो अलग-अलग दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- ध्यातव्य है कि इससे पहले नवंबर 2019 में SEBI ने REITs द्वारा सूचीबद्ध इकाइयों के अधिमान्य मुद्दों (Preferential Issue) और संस्थागत प्लेसमेंट (Institutional Placement) के लिये निर्देश जारी किए थे।
- SEBI के अनुसार, राइट्स जारीकर्त्ता को संबंधित दस्तावेज़ में पार्टी से संबंधित लेनदेन, मूल्यांकन, वित्तीय विवरण, क्रेडिट रेटिंग की समीक्षा और शिकायत निवारण तंत्र से संबंधित वस्तुओं का खुलासा करना होगा।
- SEBI के अनुसार, मूल्य निर्धारण के संबंध में लीड मर्चेंट बैंकर (Lead Merchant Banker) के परामर्श से REITs और InvITs की ओर से निवेश प्रबंधक द्वारा रिकॉर्ड तिथि (Record Date) की घोषणा करने से पहले निर्गम मूल्य तय किया जाएगा।
- अधिकार पत्र (Rights Issues) में ऑफर लेटर के जरिये प्राप्त होने वाली न्यूनतम सदस्यता इश्यू साइज का 90 प्रतिशत होनी चाहिये।
- इन दिशा-निर्देशों के अनुसार, ReITs या InvITs की ओर से मर्चेंट बैंकर को रिकॉर्ड तिथि की घोषणा से कम से कम तीन कार्य दिवसों से पहले स्टॉक एक्सचेंजों को रिकॉर्ड तिथि की घोषणा करनी चाहिये। रिकॉर्ड तिथि की घोषणा के बाद InvIT और REIT अपने राइट इश्यू को वापस नहीं ले सकते हैं।
इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट
(Infrastructure Investment Trust-InvIT):
- InvIT म्यूचुअल फंड की तरह एक सामूहिक निवेश योजना है|
- म्यूचुअल फंड इक्विटी शेयरों में निवेश करने का अवसर प्रदान करते हैं, जबकि InvIT सड़क और बिजली जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में निवेश की अनुमति देता है।
- InvIT को सेबी (इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) विनियमन, 2014 द्वारा विनियमित किया जाता है।
रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट
(Real Estate Investment Trust-ReIT):
- ReITs अचल संपत्ति से जुड़ी प्रतिभूतियाँ हैं और सूचीबद्ध होने के बाद इनका स्टॉक एक्सचेंजों पर कारोबार किया जा सकता है।
- ReITs की संरचना एक म्यूचुअल फंड के समान है। म्यूचुअल फंड की तरह ही ReITs में प्रायोजक, ट्रस्टी, फंड मैनेजर और यूनिट धारक होते हैं।
- हालाँकि म्यूचुअल फंड के माध्यम से अंतर्निहित संपत्ति, बॉण्ड, स्टॉक और सोना में निवेश किया जाता है, जबकि ReITs में भौतिक अचल संपत्ति (Physical Real Estate) में निवेश किया जाता है।
- इस प्रणाली में आय-उत्पादक रियल एस्टेट से एकत्र किये गए धन को यूनिट धारकों के बीच वितरित किया जाता है। इसके साथ ही किराये और पट्टों से होने वाली नियमित आय के अलावा अचल संपत्ति से लाभ भी यूनिट धारकों के लिये एक आय का माध्यम बनता है।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI):
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
- इसका मुख्यालय मुंबई में है।
- इसके मुख्य कार्य हैं -
- प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना
- प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।
स्रोत: फाइनेंशियल एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद मेन्स के लिये:राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद को अधिसूचित करने का उद्देश्य तथा लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद (National Startup Advisory Council- NSAC) नामक एक परिषद को अधिसूचित किया है।
मुख्य बिंदु:
- इस परिषद की स्थापना सतत आर्थिक विकास की अवधारणा के अंतर्गत की गई है, ताकि भारत को ‘व्यापार सुगमता सूचकांक’ (Ease Of Doing Business) जैसे सूचकांकों में बेहतर स्थिति प्रदान की जा सके।
राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद की संरचना:
- राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद की अध्यक्षता वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री द्वारा की जाएगी।
- इस परिषद में गैर-आधिकारिक सदस्य भी होंगे जो कि सरकार द्वारा सफल स्टार्टअप्स के संस्थापकों, भारत में कंपनी बनाने और उसे विकसित करने वाले अनुभवी व्यक्तियों, स्टार्टअप्स में निवेशकों के हितों का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम व्यक्तियों, इन्क्यूबेटरों (Incubators) एवं उत्प्रेरकों के हितों का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम व्यक्तियों और स्टार्टअप्स के हितधारकों के संघों एवं औद्योगिक संघों के प्रतिनिधियों जैसे विभिन्न वर्गों में से नामांकित किये जाएंगे।
- राष्ट्रीय स्टार्टअप्स सलाहकार परिषद के गैर-आधिकारिक सदस्यों का कार्यकाल दो वर्ष का होगा।
- संबंधित मंत्रियों/विभागों/संगठनों के नामित व्यक्ति जो भारत सरकार में संयुक्त सचिव के पद से नीचे के न हों, परिषद के पदेन सदस्य (Ex-officio Members) होंगे।
- उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade) का संयुक्त सचिव इस परिषद का संयोजक नियुक्त किया जाएगा।
राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद के गठन का उद्देश्य:
नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा:
- इस परिषद का उद्देश्य देश में नवाचार और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिये एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण हेतु सरकार को आवश्यक सुझाव देना है।
- यह परिषद नागरिकों और विशेषतः छात्रों में नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देगी।
- इस परिषद के माध्यम से अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे देश में अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा:
- केंद्र सरकार ने सतत आर्थिक विकास और बड़े स्तर पर रोज़गार के अवसर सृजित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद की स्थापना की है।
- यह परिषद उत्पादकता और दक्षता में सुधार लाने के लिये अनुसंधान एवं विकास के साथ-साथ अभिनव विचारों के सृजन में सहायता करेगी।
स्टार्टअप्स को विशेष प्रोत्साहन:
- इससे स्टार्टअप्स के लिये पूंजी की उपलब्धता को आसान बनाया जाएगा तथा स्टार्टअप्स में घरेलू पूंजी के निवेश को प्रोत्सहित किया जाएगा।
- यह परिषद भारतीय स्टार्टअप्स में निवेश के लिये वैश्विक पूंजी को आकर्षित करने, मूल प्रमोटरों के साथ स्टार्टअप्स पर नियंत्रण बनाए रखने और भारतीय स्टार्टअप्स के लिये वैश्विक बाज़ार उपलब्ध कराने में भी सहयोग करेगी।
- इस परिषद का उद्देश्य बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देना है।
- इस परिषद का उद्देश्य विनियामक अनुपालन और लागत को कम करते हुए व्यापार शुरू करने, उसे संचालित, विकसित और बंद करने की प्रक्रिया को आसान बनाना है।
आगे की राह:
भारत को शिक्षा, अनुसंधान और विकास पर व्यय बढ़ाना चाहिये जिससे नीतियों के लिये बेहतर वातावरण एवं अवसंरचना का विकास किया जा सके। नवाचार क्षमता बढ़ाने हेतु उद्योगों और शैक्षिक संस्थानों के बीच अधिक समन्वय एवं सहयोग की आवश्यकता है। नवाचार के सभी हितधारक जैसे-शोधकर्त्ताओं और निवेशकों को शामिल करते हुए एक समग्र मंच विकसित किया जाना चाहिये। राज्य स्तर पर भी नवाचार और उद्यमशीलता के वातावरण में सुधार से संबंधित नीतियों का क्रियान्वयन किया जाना चाहिये।
स्रोत- पीआईबी
कृषि
ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग से संबंधित अध्ययन
प्रीलिम्स के लियेज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग मेन्स के लियेज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग से लाभ व चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
यूनाइटेड किंगडम के एबरडीन विश्वविद्यालय (University of Aberdeen) तथा जेम्स हट्टन इंस्टीट्यूट (James Hutton Institute) के द्वारा प्रकाशित जर्नल ‘प्रकृति वहनीयता (NATURE SUSTAINABILITY)’ में यह दावा किया गया है कि ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (Zero Budget Natural Farming-ZBNF) भारत में खाद्यान्न उपलब्धता के लक्ष्य को प्रभावित कर सकती है।
प्रमुख बिंदु
- एबरडीन विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित जर्नल में यह बताया गया है कि भारत सरकार वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने के लिये ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को व्यापक पैमाने पर प्रोत्साहित कर रही है।
- इस प्रकार की कृषि से भारत में खाद्यान्न का संकट उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि इससे फसल उत्पादन तथा उत्पादकता दोनों नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
- वर्तमान में भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का 17.71 प्रतिशत है। इसके वर्ष 2010 की 1.2 बिलियन जनसंख्या के सापेक्ष 33 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2050 तक 1.6 बिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
- जर्नल के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या सुपाच्य प्रोटीन, वसा तथा कैलोरी की निर्धारित मात्रा में कमी का अनुभव करेगी।
- कृषि भूमि के सीमित होते क्षेत्र पर खाद्यान्न की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिये फसल उत्पादन की दक्षता में वृद्धि की जानी चाहिये परंतु जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण तथा निर्जनीकरण भारतीय कृषि की दक्षता वृद्धि में बाधक हैं।
- ZBNF के प्रायोजकों का दावा है कि मृदा में पौधे के विकास के लिये आवश्यक सभी पोषक तत्त्व पहले से ही मौजूद होते हैं और यह सूक्ष्म जीवों की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप विमोचित होते हैं।
- जबकि केवल नाइट्रोजन ही सूक्ष्म जीवों की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप मृदा की ऊपरी परत से विमोचित होता है, इस प्रकार केवल नाइट्रोजन का विमोचन अन्य कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति को प्रभावित कर देता है और संभव है कि अग्रिम 20 वर्षो बाद मृदा की ऊपरी परत से सभी कार्बनिक पदार्थों का लोप हो जाए।
- इसलिये दीर्घकालिक रूप से ZBNF प्रत्येक क्षेत्र के लिये समान रूप से उपयोगी नहीं है।
क्या है ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग
- ZBNF मूल रूप से महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर द्वारा विकसित रसायन मुक्त कृषि (Chemical-Free Farming) का एक रूप है। यह विधि कृषि की पारंपरिक भारतीय प्रथाओं पर आधारित है।
- इस विधि में कृषि लागत जैसे कि उर्वरक, कीटनाशक और गहन सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। जिससे कृषि लागत में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आती है, इसलिये इसे ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का नाम दिया गया है।
- इस विधि के अंतर्गत किसी भी फसल का उत्पादन करने पर उसका लागत मूल्य शून्य (ज़ीरो) ही आता है।
- ZBNF के अंतर्गत घरेलू संसाधनों द्वारा विकसित प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है जिससे किसानों को किसी भी फसल को उगाने में कम खर्चा आता है और कम लागत लगने के कारण उस फसल पर किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
ZBNF के घटक
- बीजामृत- यह प्रथम चरण होता है जिसमें गाय के गोबर, गोमूत्र तथा चूना व कृषि भूमि की मृदा से बीज शोधन किया जाता है।
- जीवामृत- गाय के गोबर, गोमूत्र व अन्य जैविक पदार्थों का एक घोल तैयार कर किण्वन किया जाता है। किण्वन के पश्चात् प्राप्त इस पदार्थ को उर्वरक व कीटनाशक के स्थान पर प्रयोग में लाया जाता है।
- मल्चिंग- इसमें जुताई के स्थान पर फसल के अवशेषों को भूमि पर आच्छादित कर दिया जाता है।
- वाफसा- इसमें सिंचाई के स्थान पर मृदा में नमी एवं वायु की उपस्थिति को महत्त्व दिया जाता है।
भारत में स्थिति
- आंध्र प्रदेश भारत का पहला ऐसा राज्य है जिसने वर्ष 2015 में ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की शुरुआत की।
- वर्ष 2024 तक आंध्र प्रदेश सरकार ने ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को प्रत्येक गाँव तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है।
- कर्नाटक के किसान संगठन, कर्नाटक राज्य रायथा संघ (Karnataka Rajya Raitha Sangha-KRRS) के द्वारा भी ZBNF को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को अपने राज्य में बढ़ावा देने के लिये एक परियोजना प्रारंभ की है।
स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन
भारतीय अर्थव्यवस्था
विश्व रोज़गार और सामाजिक दृष्टिकोण रुझान रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:ILO, WESO Trends Report, भारत में बेरोज़गारी से संबंधित आँकड़े मेन्स के लिये:वैश्विक एवं भारतीय परिदृश्य में बेरोज़गारी की समस्या, भारत में गरीबी और समावेशी विकास, बेरोज़गारी और गरीबी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (UN International Labour Organization- ILO) ने विश्व रोज़गार और सामाजिक दृष्टिकोण रुझान रिपोर्ट (World Employment and Social Outlook Trends Report- WESO Trends Report), 2020 को प्रकाशित किया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
WESO ट्रेंड रिपोर्ट में निहित महत्त्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं-
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक बेरोज़गारी में लगभग 2.5 मिलियन की वृद्धि का अनुमान है।
- गौरतलब है कि पिछले 9 वर्षों में वैश्विक बेरोज़गारी में स्थिरता की स्थिति बनी हुई थी किंतु धीमी वैश्विक विकास गति के कारण बढ़ते श्रमबल के अनुपात में रोज़गार का सृजन नहीं हो पा रहा है।
- रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में बेरोज़गारों की संख्या लगभग 188 मिलियन है। इसके अलावा लगभग 165 मिलियन लोगों के पास पर्याप्त आय वाला रोज़गार नहीं है और लगभग 120 मिलियन लोग या तो सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं या श्रम बाज़ार तक पहुँच से दूर हैं। इस प्रकार विश्व में लगभग 470 मिलियन लोग रोज़गार की समस्या से परेशान हैं।
- हाल ही में अर्थव्यवस्था पर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि विकसित देश धीमी वृद्धि का सामना कर रहे हैं और कुछ अफ्रीकी देश स्थिर हैं। परिणामतः बढ़ती श्रम शक्ति को उपयोग में लाने के लिये पर्याप्त मात्रा में नई नौकरियाँ सृजित नहीं हो पा रही हैं। इसके अलावा कई अफ्रीकी देश वास्तविक आय में गिरावट और गरीबी में वृद्धि का सामना कर रहे हैं।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में कार्यशील गरीबी (क्रय शक्ति समता शर्तों में प्रतिदिन 3.20 अमेरिकी डॉलर से कम आय के रूप में परिभाषित) वैश्विक स्तर पर कार्यशील आबादी में 630 मिलियन से अधिक या पाँच में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है।
- लिंग, आयु और भौगोलिक स्थिति से संबंधित असमानताएँ नौकरी के बाज़ार को प्रभावित करती हैं, रिपोर्ट में यह प्रदर्शित है कि ये कारक व्यक्तिगत अवसर और आर्थिक विकास दोनों को सीमित करते हैं।
- 15-24 वर्ष की आयु के कुछ 267 मिलियन युवा रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण में संलिप्त नहीं हैं तथा इससे अधिक लोग काम करने की खराब स्थिति को भी सहन कर रहे हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापार प्रतिबंधों और संरक्षणवाद में वृद्धि रोज़गार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं जिसके कारण इसे संभावित चिंता के रूप में देखा जा रहा है। ध्यातव्य है कि उत्पादन के कारकों की तुलना में मज़दूरी के रूप में प्राप्त आय में महत्त्वपूर्ण गिरावट आई है।
- वार्षिक WESO ट्रेंड रिपोर्ट में प्रमुख श्रम बाज़ार के मुद्दों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें बेरोज़गारी, श्रम का अभाव, कार्यशील गरीबी, आय असमानता, श्रम-आय हिस्सेदारी आदि कारक लोगों को उनकी प्रतिभा के अनुरूप रोज़गार से दूर करते हैं।
- आर्थिक विकास को देखते हुए यह पता चलता है कि विकास की वर्तमान गति और स्वरूप गरीबी को कम करने एवं कम आय वाले देशों में काम करने की स्थिति में सुधार के प्रयासों में सबसे बड़ी बाधा हैं।
रिपोर्ट में निहित बिंदुओं के निहितार्थ
- ILO की इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-2030 में विकासशील देशों में मध्यम या चरम कार्यशील गरीबी बढ़ने की उम्मीद है, जिससे वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलन पर सतत् विकास लक्ष्य 1 (SDG- 1) को प्राप्त करने में बाधा आएगी।
- श्रम की कमी और खराब गुणवत्ता वाली नौकरियों का आशय है कि हमारी अर्थव्यवस्था और समाज मानव प्रतिभा के विशाल पूल के संभावित लाभों को गँवा रहे हैं।
- बढ़ती बेरोज़गारी से वैश्विक स्तर पर लोगों की आय क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा जिससे आय असमानता में वृद्धि होगी। नए उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि वैश्विक श्रम आय (Global Labour Income) का वितरण अत्यधिक असमान है।
- रोज़गार के सीमित अवसर लोगों को अधिक मात्रा में अनौपचारिक क्षेत्रों एवं सामाजिक सुरक्षा रहित श्रम में नियोजित होने को प्रेरित करेंगे। साथ ही आपराधिक प्रवृत्तियों जैसे- चोरी, डकैती इत्यादि को भी बढ़ावा देंगे।
भारत में बेरोज़गारी से संबंधित आँकड़े
- CMIE की अक्तूबर 2019 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शहरी बेरोज़गारी दर 8.9% और ग्रामीण बेरोज़गारी दर 8.3% अनुमानित है।
- उल्लेखनीय है अक्तूबर 2019 में भारत की बेरोज़गारी दर बढ़कर 8.5% हो गई, जो अगस्त 2016 के बाद का उच्चतम स्तर है।
- रिपोर्ट के अनुसार, राज्य स्तर पर सबसे अधिक बेरोज़गारी दर त्रिपुरा (27%) हरियाणा (23.4%) और हिमाचल प्रदेश (16.7) में आँकी गई।
- जबकि सबसे कम बेरोज़गारी दर तमिलनाडु (1.1%), पुद्दुचेरी (1.2%) और उत्तराखंड (1.5%) में अनुमानित है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
(International Labour Organization- ILO)
- यह ‘संयुक्त राष्ट्र’ की एक विशिष्ट एजेंसी है, जो श्रम संबंधी समस्याओं/मामलों, मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक, सामाजिक संरक्षा तथा सभी के लिये कार्य अवसर जैसे मामलों को देखती है।
- यह संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियों से इतर एक त्रिपक्षीय एजेंसी है, अर्थात् इसके पास एक ‘त्रिपक्षीय शासी संरचना’ (Tripartite Governing Structure) है, जो सरकारों, नियोक्ताओं तथा कर्मचारियों का (सामान्यतः 2:1:1 के अनुपात में) इस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करती है।
- यह संस्था अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं के खिलाफ शिकायतों को पंजीकृत तो कर सकती है, किंतु सरकारों पर प्रतिबंध आरोपित नहीं कर सकती है।
- इस संगठन की स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् ‘लीग ऑफ नेशन्स’ (League of Nations) की एक एजेंसी के रूप में सन् 1919 में की गई थी। भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य रहा है।
- इस संगठन का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।
- वर्तमान में 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं, जिनमें से 186 देश संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से हैं तथा एक अन्य दक्षिणी प्रशांत महासागर में अवस्थित ‘कुक्स द्वीप’ (Cook's Island) है।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1969 में इसे प्रतिष्ठित ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया था।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22 जनवरी, 2020
जलवायु परिवर्तन के लिये समर्पित रेडियो स्टेशन
आगामी गणतंत्र दिवस के अवसर पर महाराष्ट्र के लातूर में जलवायु परिवर्तन और कृषि के संदर्भ में जागरूकता बढ़ाने के लिये एक नए सामुदायिक रेडियो स्टेशन की शुरुआत की जाएगी। यह सामुदायिक रेडियो स्टेशन लातूर शहर के बाहरी इलाके में लोदगा गांव में स्थित होगा। इस स्टेशन की शुरुआत महाराष्ट्र राज्य कृषि लागत और मूल्य आयोग द्वारा की जा रही है, इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को जलवायु परिवर्तन के बारे में सूचित करने और इस संदर्भ में उनकी समस्याओं को हल करना है।
महाराष्ट्र के स्कूलों में संविधान की प्रस्तावना का पाठ अनिवार्य
महाराष्ट्र सरकार ने 26 जनवरी, 2020 से राज्य के सभी स्कूलों में प्रतिदिन सुबह की प्रार्थना के बाद संविधान की प्रस्तावना का पाठ अनिवार्य कर दिया है। विदित हो कि प्रस्तावना के पाठ की अनिवार्यता ‘संविधान की संप्रभुत्ता, सबका कल्याण’ अभियान का हिस्सा है। महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री वर्षा गायकवाड़ के अनुसार ‘छात्र संविधान की प्रस्तावना का पाठ करेंगे, ताकि वे इसका महत्त्व जान सकें।’
नगरपालिका चुनावों में फेस रिकग्निशन एप का प्रयोग
तेलंगाना राज्य चुनाव आयोग ने कोमपल्ली नगरपालिका चुनावों के दौरान चेहरों की पहचान करने वाली एप अर्थात् फेस रिकग्निशन एप (Facial Recognition App) के प्रयोग की घोषणा की है। इस तकनीक का प्रयोग 10 चयनित पोलिंग बूथ पर पायलट परियोजना के तौर पर किया जाएगा। तेलंगाना राज्य चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि इसमें फोटोग्राफ्स और अन्य डाटा को भंडारित नहीं किया जाएगा।
किरण मजूमदार शॉ
ऑस्ट्रेलिया ने बायोकॉन (Biocon) की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया’ से सम्मानित किया है। भारत में नियुक्त ऑस्ट्रेलिया की उच्चायुक्त हरिंदर सिद्धू ने बेंगलुरु में आयोजित एक समारोह में मजूमदार शॉ को ‘ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया’ की एक मानद उपाधि प्रदान की। ज्ञात हो कि फेडरेशन यूनिवर्सिटी ऑस्ट्रेलिया की पूर्व छात्रा किरण मजूमदार शॉ ‘बायोकॉन’ की संस्थापक हैं, जो भारत की सबसे बड़ी जैव-दवा कंपनियों में से एक है। किरण मजूमदार शॉ ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित होने वाली चौथी भारतीय नागरिक हैं।