राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR)
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर
मेन्स के लिये:
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तथा जनसंख्या से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register) को अद्यतन करने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल से 3,941 करोड़ रुपए की मांग की है।
मुख्य बिंदु:
- गृह मंत्रालय ने वर्ष 2021 की जनगणना के लिये 8,754 करोड़ रुपए और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अद्यतन करने के लिये 3,941 करोड़ रुपए की मांग की है।
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का अद्यतन डेटा जनगणना-2021 के प्रथम चरण के आँकड़ों के साथ प्रकाशित किया जाएगा।
- इस अद्यतन प्रक्रिया के दौरान बायोमेट्रिक आँकड़ों को एकत्रित नहीं किया जाएगा।
नया क्या होगा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में?
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अद्यतन करने के लिये 21 बिंदुओं के आधार पर डेटा एकत्रित किया जाएगा, जबकि वर्ष 2010 का राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर 15 बिंदुओं के आधार पर एकत्रित आँकड़ों के अनुसार तैयार किया गया था ।
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अद्यतन करने की प्रक्रिया के दौरान माता-पिता की जन्म-तिथि और जन्म-स्थान को एक बिंदु के रुप में शामिल किया जाएगा, यह बिंदु पहले तैयार किये गए राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में शामिल नहीं था।
- वहीं इस राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में अंतिम निवास स्थान, पासपोर्ट नंबर, आधार आईडी, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर, वोटर आईडी कार्ड और मोबाइल नंबर को भी अद्यतन आँकड़ों के रूप में शामिल किया जाएगा, इन आँकड़ों को वर्ष 2010 के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में शामिल नहीं किया गया था।
- इस राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में माँ का नाम, पिता का नाम, पति और पत्नी के नाम से संबंधित तीन बिंदुओं को एक ही बिंदु में समाहित किया जाएगा।
क्या है राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर?
- यह ‘देश के सामान्य निवासियों’ की एक सूची है जो नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, उप-ज़िला, ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बनाई जाती है।
- कोई भी व्यक्ति जो 6 महीने या उससे अधिक समय से भारत में रह रहा है या अगले 6 महीने या उससे अधिक समय तक यहाँ रहने का इरादा रखता है, उसे राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराना होता है।
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को नागरिकता कानून, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान-पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के अनुसार तैयार किया जाता है।
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में पंजीकरण कराना भारत के प्रत्येक ‘सामान्य निवासी’ के लिये अनिवार्य है।
- देश के नागरिकों की पहचान का डेटाबेस एकत्र करने के लिये वर्ष 2010 में इसकी शुरुआत की गई थी।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
प्रसव से संबंधित गुजरात मॉडल पर एडवाइजरी
प्रीलिम्स के लिये
ऑक्सिटोसिन, WHO
मेन्स के लिये
प्रसव से संबंधित दिशा-निर्देश एवं उससे जुड़े मुद्दे, महिला स्वास्थ्य और महिला अधिकार से संबंधित मुद्दे
संदर्भ
हाल में ही केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने “प्रसव के अंतिम चरणों के दौरान गैर-पारंपरिक दृष्टिकोण” से संबंधित गुजरात मॉडल (Gujarat Model) को सभी राज्यों द्वारा अपनाने हेतु एडवाइजरी जारी की है।
- इस एडवाइजरी में जीवन रक्षक दवाओं के देर से प्रयोग की सलाह ने एक नए विवाद को जन्म दिया है।
एडवाइजरी के संदर्भ में :
- सरकार द्वारा जारी की गई एडवाइजरी मुख्य रूप से प्राकृतिक प्रसव प्रक्रिया (Natural Childbirth Process) को अपनाने पर बल देती है तथा प्रसव के अंतिम चरण के दौरान गैर-परंपरागत दृष्टिकोण को अपनाने की वकालत करती है।
- इसमें गर्भाशय से गर्भनाल (Placenta) के अलग होने के बाद ही इसको दबाने और काटने का प्रावधान है।
- इसमें प्राकृतिक प्रसव के पश्चात गर्भनाल के गर्भाशय से बाहर निकलने के बाद ही माता पर जीवन रक्षक दवाओं जैसे ऑक्सिटोसिन के प्रयोग की बात कही गई है जो इस एडवाइजरी का विवादित बिंदु है।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, यह एडवाइजरी महिलाओं के लिये प्रसव को प्राकृतिक एवं सकारात्मक अनुभव बनाने के लिये है।
एडवाइजरी से जुड़े विवादास्पद मुद्दे :
- भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Orgnisation- WHO) के प्रसव से संबंधित दिशा-निर्देशों को अपनाया है किंतु भारत की यह एडवाइजरी WHO के दिशा-निर्देशों के विपरीत है।
- WHO के अनुसार, प्रसव के तीसरे चरण से ही सक्रिय प्रबंधन (Active Management) की आवश्यकता है और इसी चरण में माता पर ऑक्सिटोसिन का प्रयोग कर के प्रसव प्रक्रिया को जोखिम रहित बनाना है।
- जबकि इस एडवाइजरी के अनुसार, प्रसव के अंतिम चरण में गैर-परंपरागत दृष्टिकोण को अपनाना है तथा गर्भनाल के गर्भाशय से बाहर निकलने के बाद ही माता पर ऑक्सिटोसिन का प्रयोग करना है।
- ध्यातव्य है कि प्रथम चरण प्रसव के लिये शारीरिक परिवर्तन से संबंधित है जबकि दूसरे चरण का संबंध प्रसव प्रक्रिया से है।
- प्रसूति रोग विशेषज्ञों का मानना है कि यह एडवाइजरी WHO की अनुशंसाओं और विश्व की अन्य एडवाइजरियों के विपरीत है और यह एडवाइजरी उनके द्वारा प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव एवं रक्तस्त्राव से माताओं की मृत्यु को रोकने के सभी पूर्ववत प्रयासों को विफल कर देगी।
- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association) ने केंद्र सरकार से यह मांग की है कि प्रसूति से संबंधित नैदानिक निर्णय डॉक्टरों को ही लेने दिया जाए और यह एडवाइजरी वापस ले ली जाए क्योंकि इससे डॉक्टर तथा बर्थिंग असिटेंट (Birthing Assistants) को विरोधाभासी संदेश जाता है।
- प्रसूति रोग विशेषज्ञों की सबसे बड़ी चिंता माता पर ऑक्सिटोसिन के देर से प्रयोग को लेकर है क्योंकि प्रसव के तीसरे और चौथे चरण में गर्भाशय के संकुचन में देरी से अत्यधिक मात्र में रक्तस्त्राव होता है, जबकि ऑक्सिटोसिन शिशु के निकलने के तुरंत बाद गर्भाशय के संकुचन और बिना रक्त स्त्राव के गर्भनाल के निष्कासन में मदद करता है।
प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव (Post Partum Haemorrhage- PPH) :
बच्चे के जन्म के बाद के पहले 24 घंटों के भीतर लगभग 500 मिलीलीटर से 1,000 मिलीलीटर या अधिक रक्तस्राव होता है। ध्यातव्य है कि प्रसवोत्तर रक्तस्राव भारत में प्रसव के दौरान महिलाओं की मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है, जिसके कारण वार्षिक रूप से 1.2 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु होती है।
गुजरात मॉडल के संदर्भ में :
यह मॉडल प्राकृतिक प्रसव की प्रक्रिया को बढ़ावा देने से संबंधित है। केंद्र द्वारा दिया गया यह दिशा निर्देश यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (Randomised Controlled Trial) पर आधारित हैं।
ध्यातव्य है कि गुजरात और कोलकाता के एक छोटे अस्पताल में लगभग 450 महिलाओं का प्राकृतिक प्रसव कराया गया तथा फिजियोलॉजिकल कॉर्ड ब्लड क्लैम्पिंग (Physiological Cord Blood Clamping) के प्रभाव का अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में माता द्वारा शिशु को जल्द दुग्धपान कराने, दुग्ध में आयरन में वृद्धि, बच्चे की प्रतिरक्षा में वृद्धि तथा संज्ञानात्मक और विकासात्मक वृद्धि संबंधी परिणाम सामने आये हैं। इस आधार पर इन दिशा-निर्देशों को जारी किया गया है।
प्रसव प्रक्रिया को जोखिम रहित बनाने के लिये WHO द्वारा उठाए गए कदम :
- WHO प्रसव के तीसरे चरण में ही सक्रिय प्रबंधन और गैर-परंपरागत दृष्टिकोण की वकालत करता है क्योंकि तीसरा चरण शिशु के प्रसव और गर्भनाल के निष्कासन के बीच का समय है जिसकी अवधि 6 मिनट से 30 मिनट तक हो सकती है। इस दौरान रक्तस्त्राव इस बात पर निर्भर करता है कि गर्भनाल को गर्भाशय की दीवार से अलग होने में कितना समय लगता है और गर्भाशय की मांसपेशियाँ प्रसव के बाद कितने प्रभावी रूप से सिकुड़ती हैं?
- गौरतलब है कि यह समय काफी मुश्किल का समय होता है। इसलिये वर्ष 2012 में WHO ने “प्रसव के तीसरे चरण का प्रबंधन (Active Management of Third Stage of Labour- AMTSL)” की पुष्टि की। जिसमें उपयोग की जाने वाली यूटेरोटॉनिक्स (Uterotonics) (गर्भाशय को प्रबंधित और रक्तस्त्राव को कम करने की दवा) प्रसव प्रक्रिया को जोखिम रहित बनाने में सबसे अच्छा उपाय है।
प्रसव प्रक्रिया को जोखिम रहित बनाने के लिये भारत में उठाए गए कदम :
- केरल ने प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव की घटनाओं को कम करने के लिये नाइस इंटरनेशनल (NICE International) नामक संस्था के साथ मिलकर प्रसूति देखभाल की गुणवत्ता मानकों को विकसित और क्रियान्वित किया है जिसके फलस्वरूप केरल ने वर्ष 2013 में प्रसवोत्तर रक्तस्राव को कम करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है।
ऑक्सिटोसिन (Oxytocine)
- ऑक्सिटोसिन एक हार्मोन है जो मस्तिष्क में अवस्थित पिट्यूटरी ग्रंथि से स्रावित होता है।
- मनुष्य के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण ऑक्सिटोसिन को ‘लव हार्मोन’ नाम से भी जाना जाता है।
स्रोत: द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस
प्राचीन नदी सरस्वती
प्रीलिम्स के लिये
घघ्घर नदी की भौगोलिक स्थिति
मेन्स के लिये
सरस्वती नदी के साक्ष्य घघ्घर के रूप में
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भौतिक शोध प्रयोगशाला (Physical Research Laboratory- PRL) तथा आई.आई.टी. बॉम्बे (Indian Institute of Technology Bombay) के शोधार्थियों ने राजस्थान में बहने वाली मानसूनी नदी के अपवाह क्षेत्र में पौराणिक नदी सरस्वती के प्रमाण खोजने का प्रयास किया।
मुख्य बिंदु:
- हड़प्पा सभ्यता के लगभग 1000 से अधिक पुरातात्त्विक केंद्र आधुनिक घघ्घर नदी के सूखे हुए किनारों पर पाए गए हैं।
- वर्तमान में घघ्घर एक मौसमी नदी है जिसके जल का मुख्य स्रोत मानसूनी वर्षा है।
- यह नदी हिमाचल प्रदेश में हिमालय की शिवालिक श्रेणी से निकलती है और राजस्थान तथा पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में बहते हुए थार के मरुस्थल में सूख जाती है।
- यहाँ प्रश्न उठता है कि हड़प्पा सभ्यता के निवासी किसी बारहमासी नदी (Perennial River) के किनारे रहते थे या किसी मौसमी नदी के किनारे? या प्राचीन घघ्घर (Paleo Ghaggar) का स्वरूप कैसा था?
- ऋग्वेद में प्राचीन सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है जिसके किनारे इसकी रचना हुई थी। ऋग्वेद में इस नदी को विशाल तथा सदानीरा कहा गया है।
शोध के परिणाम:
- शोधार्थियों द्वारा आधुनिक घघ्घर नदी की सतह से 3-10 मीटर की गहराई में स्थित रेत के नमूने का विश्लेषण किया गया। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्राचीन-काल में यह नदी हिमालय में स्थित ग्लेशियर से निकलती थी।
- नदी की तलछट में पाई गई सफेद तथा ग्रे रंग की दानेदार रेत में माइका अधिकांश मात्रा में मौजूद था।
- घघ्घर नदी के किनारों पर 300 किलोमीटर की लंबाई में किये गए सर्वेक्षण में यह रेत दोनों किनारों पर पाई गई। इससे प्राचीन-काल में इस स्थान पर एक विशाल नदी के मौजूद होने के संकेत मिलते हैं।
- टीम ने खुदाई से प्राप्त रेत के स्रोतों की जाँच करने के लिये स्ट्रॉन्टियम-निओडाईमियम समस्थानिक अनुपात (Strontium-Neodymium Isotopic Ratio) का प्रयोग किया एवं रेत में प्राप्त माइका (Mica) की उम्र ज्ञात करने के लिये आर्गन-आर्गन डेटिंग (Argon-Argon Dating) विधि का प्रयोग किया।
- उपरोक्त दोनों विधियों से प्राप्त रेत कणों की उम्र से ज्ञात होता है कि इनकी उम्र उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसे चट्टानों के समान है।
- इसके अलावा नदी के मार्ग में स्थित निक्षेपों (Deposits) के उम्र का पता लगाने के लिये रेडियोकार्बन डेटिंग (Radiocarbon Dating) तथा निक्षेपों से प्राप्त घोंघे के बाहरी आवरण की उम्र ज्ञात करने के लिये ऑप्टिकल डेटिंग (Optical Dating) विधि का प्रयोग किया गया।
- निष्कर्षतः इस शोध के माध्यम से कहा गया कि घघ्घर नदी प्राचीन काल में उच्च हिमालयी क्षेत्र से प्रवाहित होती थी एवं कोई नदी जो कि इतनी ऊँचाई से बहती हो उसमें जल का प्रवाह वर्ष भर बना रहता है।
- शोध के निष्कर्ष में यह भी कहा गया कि घघ्घर नदी पूर्व में दो भिन्न-भिन्न कालखंडों में सदानीरा स्वरूप में रही है। पहला- 80,000-20,000 वर्ष तक तथा दूसरा 9,000-4,500 वर्ष तक।
- इस शोध में यह भी दावा किया गया कि घघ्घर नदी से प्राप्त प्रमाणों को देखते हुए यह माना जा सकता है कि 9,000-4,500 वर्ष पूर्व इसे ही सरस्वती नदी कहा गया है तथा संभवतः हड़प्पाकालीन बस्तियाँ इसके किनारों पर बसी हों।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय भेषज संहिता
प्रीलिम्स के लिये
भारतीय भेषज संहिता क्या है?
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अफगानिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा भारतीय भेषज संहिता (Indian Pharmacopoeia- IP) को औपचारिक तौर पर स्वीकृति दे दी गई। इसके बाद IP का प्रयोग अफगानिस्तान में दवाओं व अन्य स्वास्थ्य उत्पादों के निर्माण में किया जाएगा।
मुख्य बिंदु:
- IP को औपचारिक तौर पर स्वीकृति देने वाला अफगानिस्तान पहला देश है।
- IP आधिकारिक तौर पर स्वीकृत एक पुस्तक है जिसे ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम, 1940 तथा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स नियम, 1945 के तहत निर्धारित मानकों के अनुसार बनाया गया है।
- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की दूसरी अनुसूची के तहत IP को एक आधिकारिक पुस्तक का दर्जा दिया गया है। इसका कार्य देश में आयातित और/अथवा निर्मित दवाओं की बिक्री, स्टॉक, प्रदर्शनी या वितरण हेतु मानदंड निर्धारित करना है।
- यह देश में दवाओं की पहचान, गुणवत्ता, शुद्धता तथा क्षमता को ध्यान में रखते हुए उनके निर्माण एवं बिक्री के लिये मानक तय करता है।
- IP के निर्माण के लिये उत्तरदायी संस्था भारतीय भेषज संहिता आयोग (Indian Pharmacopoeia Commission- IPC) है।
- भारतीय भेषज संहिता आयोग भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्था है।
भेषज संहिता (Pharmacopoeia):
यह एक प्रकार की पुस्तक होती है जिसमें विभिन्न फार्मास्यूटिकल पदार्थों के फार्मूले तथा उनके निर्माण की विधियाँ संकलित होती हैं।
- देश में मानव तथा पशुओं के स्वास्थ्य के लिये आवश्यक दवाओं हेतु प्रमाणिक एवं आधिकारिक मानकों का निर्धारण IPC द्वारा किया जाता है।साथ ही निर्धारित मानकों का प्रयोग भारत में दवाओं की गुणवत्ता के नियंत्रण हेतु विभिन्न प्राधिकारियों द्वारा किया जाता है।
- इसके अलावा IPC द्वारा IP संदर्भ पदार्थों (IP Reference Substances- IPRS) का निर्माण किया जाता है जो एक मानक (Fingerprints) की तरह कार्य करते हैं। इनका प्रयोग IP मोनोग्राफ के तहत किसी पदार्थ के परीक्षण एवं शुद्धता की जाँच के लिये किया जाता है।
- IP के अलावा विश्व में अधिकांश देशों की दवाओं की विवरणिका (Registry) है जिसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे- अमेरिका की U.S.P., ब्रिटेन की B.P. आदि।
- दवाओं के नामों के साथ अक्सर IP, BP, या USP लिखा जाता है जिससे यह पता चलता है कि वह दवा किस देश के भेषज संहिता के फॉर्मूले पर आधारित है।
स्रोत: पी.आई.बी.
विधानसभा सदस्य की सदस्यता रद्द
प्रीलिम्स के लिये:
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951
मेन्स के लिये:
न्यापालिका और विधायिका के पृथक्करण से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
16 दिसंबर, 2019 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िले की स्वार विधानसभा सीट से निर्वाचित विधानसभा सदस्य अब्दुल्ला आज़म खान की सदस्यता रद्द कर दी।
क्या था मामला?
- स्वार विधानसभा सीट पर वर्ष 2017 के चुनाव में पराजित उम्मीदवार द्वारा वर्ष 2017 में ही दाख़िल याचिका पर सुनवाई करते हुए 16 दिसंबर, 2019 को उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने प्रस्तुत साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर पाया कि चुनाव के वक्त (वर्ष 2017) में विजयी उम्मीदवार की आयु संविधान द्वारा निर्धारित आयु (25 वर्ष) से कम थी।
- उच्च न्यायालय की जाँच में विजयी उम्मीदवार के चुनावी हलफ़नामे (30 सितंबर, 1990) और हाई स्कूल अंकतालिका (1 जनवरी, 1993) में दर्ज जन्मतिथियों में अंतर पाया गया।
संविधान के अनुसार राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने की न्यूनतम योग्यता:
भारतीय संविधान में किसी भी व्यक्ति के राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने के लिये निम्नलिखित अनिवार्यताएँ प्रस्तावित हैं -
- वह भारत का नागरिक हो। (संविधान के अनुच्छेद 173 (1) के अनुसार)
- आवेदन करते समय प्रत्याशी की आयु न्यूनतम 25 वर्ष हो। (संविधान के अनुच्छेद 173(2) के अनुसार)
- प्रत्याशी को निर्वाचन आयोग द्वारा अधिकृत व्यक्ति के सामने निम्नलिखित शपथ अथवा प्रतिज्ञा लेनी अनिवार्य है -
- वह भारत के संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा रखेगा तथा इसके प्रति वफादार रहेगा।
- वह भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध रहेगा।
इसके अलावा प्रत्याशियों को संसद द्वारा पारित जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of peoples Act) 1951 की निम्न धाराओं का पालन करना अनिवार्य है-
- प्रत्याशी संबंधित राज्य की किसी विधानसभा का एक निर्वाचक हो। [जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 5 (3)]
- वह आरक्षित जाति या आरक्षित जनजाति से संबंधित हो यदि वह उपरोक्त जातियों के लिये आरक्षित किसी सीट से चुनाव लड़ना चाहता है।
प्रत्याशी की अयोग्यता से संबंधित प्रावधान :
- यदि वह किसी राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश में किसी लाभ के पद (Office of Profit) पर हो।
- यदि उसे किसी न्यायालय द्वारा मानसिक रूप से बीमार घोषित किया गया हो।
- यदि वह अघोषित रूप से दिवालिया हो।
- यदि वह भारत का नागरिक न हो अथवा उसके पास किसी विदेशी राष्ट्र की स्वेच्छा से ग्रहण की गई नागरिकता हो।
यदि वह संसद द्वारा पारित जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की निम्नलिखित में से किसी धारा के अनुसार अयोग्य हो-
- यदि वह किसी अपराध का दोषी है तथा उसे 2 वर्ष या इससे अधिक की सज़ा दी गई है। [जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3)]
- जेल में बंद कोई भी ऐसा व्यक्ति निर्वाचन में मत नहीं डाल सकता, जिसे कारावास की सज़ा दी गई हो, देश निकाला हो या पुलिस की कानूनी हिरासत में हो। [जन-प्रतिनिधित्व, अधिनियम, 1951 की धारा 62(5)]
- प्रत्याशी ने आवेदन के समय अपनी आय व संपत्ति का सही ब्यौरा न दिया हो।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
यूरोपीय संघ ग्रीन डील
प्रीलिम्स के लिये:
EU, पेरिस जलवायु समझौता, यूरोपीय संघ ग्रीन डील, जलवायु तटस्थता, क्योटो प्रोटोकॉल
मेन्स के लिये:
जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोपीय संघ (European Union- EU) की वार्षिक जलवायु वार्ता (Annual Climate Talk) स्पेन की राजधानी मैड्रिड में एक निराशाजनक परिणाम के साथ समाप्त हुई।
- यह वार्ता पेरिस जलवायु समझौते (Paris Climate Agreement) के तहत स्थापित किये जाने वाले एक नए कार्बन बाज़ार के नियमों को परिभाषित करने में विफल रही।
- वैज्ञानिक आकलन के मद्देनजर वर्तमान में जलवायु परिवर्तन से निपटने के मौजूदा प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।
- यूरोपीय संघ (जिसमें 28 सदस्य देश हैं) विश्व में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद ग्रीनहाउस गैसों के तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
- यूरोपीय संघ द्वारा जलवायु परिवर्तन पर अतिरिक्त उपायों की एक घोषणा, यूरोपीय संघ ग्रीन डील (European Union Green Deal) की गई थी।
यूरोपीय संघ ग्रीन डील के बारे में:
दो प्रमुख फैसले यूरोपीय ग्रीन डील के केंद्र में हैं।
- जलवायु तटस्थता (Climate Neutrality)
- यूरोपीय संघ ने वर्ष 2050 तक ‘जलवायु तटस्थ’ बनने हेतु सभी सदस्य देशों के लिये एक कानून लाने का वादा किया है।
- जलवायु तटस्थता जिसे सामान्यतः शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की स्थिति के रूप में व्यक्त किया जाता है, देश के कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करती है। इसके अंतर्गत वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों का अवशोषण और निष्कासन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
- वनों को बढ़ाकर अधिक कार्बन सिंक (Carbon Sink) द्वारा अवशोषण को बढ़ाया जा सकता है, जबकि कार्बन की मात्रा हटाने में कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (Carbon Capture and Storage) जैसी प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं।
- वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पिछले कुछ समय से देशों द्वारा मांग की जा रही थी । संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सितंबर में महासभा सत्र के मौके पर एक विशेष बैठक बुलाई थी ताकि देशों की प्रतिबद्धता सुनिश्चित की जा सके। इसके परिणामस्वरूप 60 से अधिक देशों ने अपने जलवायु कार्यवाही (Climate Action) या वर्ष 2050 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सहमति व्यक्त की थी, लेकिन ये सभी अपेक्षाकृत छोटे उत्सर्जक देश हैं।
- यूरोपीय संघ वर्ष 2050 तक जलवायु तटस्थता लक्ष्य की प्राप्ति पर सहमत होने वाला पहला बड़ा उत्सर्जक है। उसने कहा है कि वह लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये यूरोपीय संघ में अगले वर्ष मार्च तक एक प्रस्ताव लाएगा।
- 2030 उत्सर्जन कटौती लक्ष्य में वृद्धि:
- पेरिस जलवायु समझौते के तहत घोषित अपनी जलवायु कार्ययोजना में यूरोपीय संघ वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन में 40% की कमी करने के लिये प्रतिबद्ध है। अब इस कमी को कम-से-कम 50% तक बढ़ाने और 55% की दिशा में काम करने का वादा किया गया है।
- इसके विपरीत अन्य विकसित देशों द्वारा कम महत्त्वाकांक्षी उत्सर्जन लक्ष्य घोषित किये गए हैं। उदाहरण के लिये अमेरिका ने वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 26-28% की कटौती करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन पेरिस जलवायु समझौते से हटने के बाद अब वह उस लक्ष्य को पूरा करने के लिये भी बाध्य नहीं है।
- यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये वर्ष 1990 को आधार को बनाने के विपरीत अन्य सभी विकसित देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) के अनिवार्य लक्ष्य के तहत अपने आधार वर्ष को वर्ष 2005 या पेरिस जलवायु समझौते के तहत स्थानांतरित कर दिया है।
यूरोपीय संघ ग्रीन डील हेतु किये गए प्रयास:
- ग्रीन डील में इन दो समग्र लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये क्षेत्रीय योजनाएँ शामिल हैं और नीतिगत बदलावों के प्रस्ताव की भी आवश्यकता होती है।
- उदाहरणस्वरूप इसमें वर्ष 2030 तक इस्पात उद्योग को कार्बन-मुक्त बनाने, परिवहन और ऊर्जा क्षेत्रों के लिये नई रणनीति, रेलवे के प्रबंधन में संशोधन तथा उन्हें अधिक कुशल बनाने एवं वाहनों हेतु अधिक कठोर वायु प्रदूषण उत्सर्जन मानकों का प्रस्ताव है।
कार्बन उत्सर्जन पर अन्य देशों की स्थिति:
- यूरोपीय संघ उत्सर्जन को कम करने के लिये अन्य विकसित देशों की तुलना में बेहतर कार्य कर रहा है। उत्सर्जन में कमी के संदर्भ में यह संभवतः यूरोपीय संघ के बाहर किसी भी विकसित देश के विपरीत वर्ष 2020 के लक्ष्य को पूरा करने के लिये प्रगति पर है।
- कनाडा जो क्योटो प्रोटोकॉल से बाहर चला गया, ने पिछले वर्ष बताया कि वर्ष 2005 के उत्सर्जन से इसका उत्सर्जन 4% कम था, लेकिन यह वर्ष 1990 की तुलना में लगभग 16% अतिरिक्त था।
कार्बन उत्सर्जन से संबंधित अन्य मुद्दे:
- हालाँकि यूरोपीय संघ भी अपने सभी जलवायु दायित्वों को पूरा नहीं कर रहा है। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद के लिये विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्त और प्रौद्योगिकी स्थानांतरण करने का प्रावधान किया गया है।
- इस प्रावधान के तहत विकासशील देशों की अनुकूलन ज़रूरतों के लिये यूरोपीय संघ से वित्त का सीमित प्रवाह देखा गया है, साथ ही नई जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के पेटेंट और स्वामित्व से संबंधित नियमों में भी परिवर्तन किया गया है।
- यही कारण है कि वर्ष 2020 के पूर्व की अवधि में भारत और चीन जैसे विकासशील देश विकसित देशों के अप्रभावित दायित्वों के मुद्दे को बार-बार उठाते रहे हैं, जिनको क्योटो प्रोटोकॉल द्वारा कवर किया गया है।
समझौते की घोषणा करते हुए यूरोपीय संघ ने अन्य देशों से भी इस कार्य के प्रति अपनी महत्वाकांक्षा को बढ़ाने का आग्रह किया क्योंकि सभी देशों के साझे प्रयास के बिना जलवायु परिवर्तन को रोक पाना संभव नही है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
GST परिषद की 38वीं बैठक
प्रीलिम्स के लिये:
GST परिषद, परिषद् में मतदान एवं कार्य
मेन्स के लिये:
GST, GST परिषद से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
18 दिसंबर, 2019 को GST परिषद (GST council) की 38वीं बैठक केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में संपन्न हुई जिसमें सभी लॉटरी (राज्य द्वारा संचालित या राज्य द्वारा अधिकृत किंतु निजी संस्था द्वारा संचालित) पर कर की 28% की एक समान दर को मंजूरी दे दी है।
- कर की यह दर 1 मार्च, 2020 से लागू होगी। यह बैठक इस कारण भी अत्यंत चर्चा का विषय है क्योंकि पहली बार GST परिषद में किसी प्रस्ताव को पारित करने के लिये मतदान करना पड़ा। ध्यातव्य है कि इसके पहले GST परिषद द्वारा लिये गए सभी फैसले सर्वसम्मति से लिये जाते थे।
बैठक से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु:
- लॉटरी के संबंध में कर की दर 28% करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित नहीं हो सका इसलिये GST इतिहास में पहली बार किसी विषय पर मतदान किया गया। गौरतलब है कि केरल के वित्त मंत्री के प्रस्ताव पर इस प्रस्ताव को मतदान के लिये रखा गया जिसे 21-7 के मतों से पारित किया गया। ध्यातव्य है की इससे पहले लॉटरी के संदर्भ में दोहरी दर व्यवस्था थी, राज्य द्वारा संचालित लॉटरी पर 12% तथा राज्य द्वारा अधिकृत किंतु निजी संस्थाओं द्वारा संचालित लॉटरी पर 28% की दर से कर का प्रावधान था।
- जिन करदाताओं ने जुलाई, 2017 से नवंबर, 2019 तक का GSTR-1 (GST Return- 1) दाखिल नहीं किया है और यदि वे 10 जनवरी, 2020 तक रिटर्न दाखिल करते हैं तो उनका विलंब भुगतान शुल्क माफ कर दिया जाएगा किंतु यदि वे समयसीमा में रिटर्न दाखिल नहीं करते है तो उनके ई-वे बिल भी ब्लाक कर दिया जाएगा।
- परिषद ने वर्ष 2017-18 के लिये वार्षिक रिटर्न GSTR-9 और GSTR-9(c) की अंतिम तिथि को भी 31 दिसंबर, 2019 से बढ़ाकर 31 जनवरी, 2020 कर दिया है।
- जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों की परिस्थितियों को देखते हुए कर भुगतान की समय सीमा नवंबर से बढ़ाकर वर्ष के अंत तक कर दी गई है।
- औद्योगिक पार्कों की स्थापना को सरल बनाने के उद्देश्य से परिषद ने केंद्र व राज्य सरकारों के 20% स्वामित्व वाली सभी संस्थाओं को 1 जनवरी, 2020 से दीर्घकालिक भूमि पट्टों में GST से छूट प्रदान की जाएगी। गौरतलब है कि इससे पहले केवल 50% सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं को ही यह छूट प्रदान की जाती थी ।
- परिषद ने बुने हुए और बिना बुने हुए बैग पर 1 जनवरी, 2020 से 18% की दर से GST लगाने का प्रावधान किया है।
GST के संदर्भ में राज्यों की चिंताएँ :
- कर राजस्व में कमी वर्तमान में आर्थिक मंदी और न्यूनतम खपत के समय व्यापक चिंता का विषय बना हुआ है। गौरतलब है कि पहले आठ महीनों में GST संग्रह के लक्ष्य का केवल 50% व क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह के लक्ष्य का केवल 60% ही संग्रहीत किया गया है।
- GST क्षतिपूर्ति में देरी राज्यों के लिये चिंता का विषय है। GST लागू करते समय राज्यों को 5 वर्षों तक क्षतिपूर्ति देने का आश्वासन दिया गया था। राज्यों द्वारा प्रायः यह शिकायत की जाती है कि केंद्र सरकार फंड होने के बावजूद राज्यों को पैसा नही देती है।
GST परिषद के बारे में :
- यह वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) से संबंधित मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकार को सिफारिश करने के लिये एक संवैधानिक निकाय है।
- 101वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 279A(1) में GST परिषद का प्रावधान किया गया है।
- सदस्य- सभी 28 राज्यों एवं तीन संघ-शासित क्षेत्रों ( दिल्ली, पुद्दुच्चेरी और जम्मू-कश्मीर) के वित्त मंत्री या राज्य सरकार द्वारा निर्वाचित कोई अन्य मंत्री अर्थात कुल मिलाकर 31 सदस्य होते हैं।
- GST परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करते हैं।
- यह एक संघीय निकाय के रूप में माना जाता है जहाँ केंद्र और राज्यों दोनों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।
GST परिषद की मतदान प्रणाली :
- GST परिषद का प्रत्येक निर्णय उपस्थित और मतदान के 75% भारित बहुमत (तीन चौथाई बहुमत) होने के बाद ही लिया जाता है।
- भारित बहुमत का सिद्धांत- केंद्र सरकार का मान एक तिहाई वोट माना जाता है। सभी राज्य सरकारों का एक साथ मिलकर कुल मान दो-तिहाई वोट माना जाता है।
GST परिषद के कार्य :
GST परिषद् का कार्य निम्नलिखित विषयों पर केंद्र और राज्यों की सिफारिश करना है -
- केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय निकायों द्वारा वसूले जाने वाले कर, उपकर तथा अधिशुल्क; जिन्हें GST के अंतर्गत समाहित किया जा सके
- ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ, जिन्हें GST के अधीन या उससे छूट प्रदान की जा सके
- आदर्श GST कानून, उद्ग्रहण के सिद्धांत, IGST का बँटवारा और आपूर्ति के स्थान को प्रशासित करने वाले सिद्धांत
- वह सीमा रेखा, जिसके नीचे वस्तु और सेवा के टर्नओवर को GST से छूट प्रदान की जा सके
- वह दिनांक, जबसे कच्चे तेल, हाई स्पीड डीजल, मोटर स्पिरिट (पेट्रोल), प्राकृतिक गैस और एविएशन टरबाइन फ्यूल पर GST वसूला जा सके
- किसी भी प्राकृतिक आपदा या विपदा के दौरान अतिरिक्त संसाधन इकट्ठा करने हेतु किसी विशेष अवधि के लिये कोई विशेष दर या दरें
- उत्तर-पूर्वी एवं पर्वतीय राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के संबंध में विशेष प्रावधान
- GST परिषद द्वारा यथा निर्णय एवं GST से संबंधित कोई अन्य मामला, जिस पर परिषद निर्णय ले सकती है।
स्रोत: द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस
कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में गैंडों को लाने से संबंधित प्रस्ताव
प्रीलिम्स के लिये:
भारतीय वन्यजीव संस्थान, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व
मेन्स के लिये:
उत्तराखंड पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड (Uttarakhand State Wildlife Board) द्वारा कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व (Corbett Tiger Reserve) में गैंडों को लाने से संबंधित प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई है।
मुख्य बिंदु:
- उत्तराखंड वन्यजीव बोर्ड ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) द्वारा दिये गए प्रस्ताव को मानते हुए कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में गैंडों को पुनर्स्थापित करने की मंज़ूरी दी है इसका उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देना और निम्न ऊँचाई वाले घास-भूमि क्षेत्र में रहने वाली प्रजातियों को प्रोत्साहित करना है।
- पहले चरण में लगभग 10 गैंडों को कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में लाया जाएगा, तत्पश्चात् 10 गैंडों को और लाया जाएगा।
- उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड के अनुसार, असम या पश्चिम बंगाल या दोनों राज्यों से गैंडों को लाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा।
- विशेषज्ञों का दावा है कि इन गैंडों को अवैध शिकार से बचाना राज्य के वन विभाग के कर्मचारियों के लिये एकमात्र चुनौती होगी।
- उत्तराखंड वन्यजीव बोर्ड के अनुसार, कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व का भौगोलिक भू-भाग और यहाँ के पर्यावरण की स्थिति गैंडों के लिये उपयुक्त है।
- कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में गैंडों के आवास के लिये चुने गए आदर्श स्थल उत्तर में निम्न हिमालय, दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों और पूर्व में रामगंगा कुंड द्वारा घिरे हुए हैं, जो इन क्षेत्रों से गैंडों की आवाजाही को रोकने के लिये प्राकृतिक बाधाओं के रूप में कार्य करेंगे, जिससे जानवरों और मानव के बीच संघर्ष की घटनाओं में कमी आएगी।
- हालाँकि कुछ समय पहले उत्तराखंड राज्य और आस-पास के तराई-क्षेत्र में गैंडे पाए जाते थे, परंतु अवैध शिकार के कारण ये धीरे-धीरे समाप्त हो गए।
- गैंडों का अवैध शिकार इसलिये किया जाता है क्योंकि गैंडे के सींग का प्रयोग कामोत्तेजक औषधियों के निर्माण में किया जाता है।
- यहाँ प्रत्येक जानवर को जीपीएस रेडियो कॉलर (GPS Radio-Collar) के साथ संबंधित किया जाएगा।
- शोधकर्त्ताओं का एक दल इनके प्रतिमानों, भोजन संबंधी आदतों, जनसांख्यिकी और उपयोग किये जाने वाले आवास की निगरानी करेगा।
- वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, गैंडे हाथी-घास को खाकर इसके आकार को कम कर देते हैं। इससे कम ऊँचाई वाले घास-भूमि क्षेत्रों में रहने वाली प्रजातियाँ जैसे- हॉग डियर (Hog Deer), चीतल, सांभर और दलदली हिरण आदि प्रजातियों को भी प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
- वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, एक समय सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के अपवाह मैदानों में गैंडों की उपस्थिति थी, लेकिन वर्तमान में मानवजनित दबाव के परिणामस्वरूप ये केवल भारत और नेपाल के छोटे से भू-भाग तक ही सीमित रह गए हैं।
- गैंडों को उनकी ऐतिहासिक सीमा में पुनः स्थापित करने से न केवल इस प्रजाति की आबादी सुरक्षित रहेगी बल्कि इन दुर्गम इलाकों में उनकी पारिस्थितिक भूमिका भी पुनर्स्थापित होगी।
एक सींग वाला गैंडा (भारतीय गैंडा)
The Great one-horned Rhinoceros (Indian Rhinoceros):
- यह IUCN (International Union for Conservation of Nature) की रेड लिस्ट में सुभेद्य (Vulnerable) श्रेणी में शामिल है।
- भारत में गैंडे मुख्य रूप से काजीरंगा व मानस राष्ट्रीय उद्यान, पबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में पाए जाते हैं। ये हिमालय की तलहटी में लंबी घास भूमियों वाले प्रदेशों में भी पाए जाते हैं।
- गैंडे की सभी प्रजातियों में यह सबसे बड़ा होता है।
- गैंडों की संख्या में वृद्धि के लिये ‘इंडियन राइनो विज़न’ 2020 ( Indian Rhino Vision 2020) कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व
(Corbett Tiger Reserve):
- यह उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में स्थित है।
- वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर को कॉर्बेट नेशनल पार्क में लॉन्च किया गया था, जो कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व का हिस्सा है।
- कॉर्बेट नेशनल पार्क के मध्य बहने वाली प्रमुख नदियाँ रामगंगा, सोननदी, मंडल, पलायन और कोसी हैं।
- अगस्त 2019 तक भारत में 50 टाइगर रिज़र्व हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (21 दिसंबर, 2019)
सबसे पुराना जीवाश्म वन
अमेरिका में बलुआ पत्थर की खदान में लगभग 38.6 करोड़ वर्ष पुराने पेड़ों का एक व्यापक झुंड मिला है। वैज्ञानिक इसे दुनिया के सबसे पुराने जीवाश्म वन के अवशेष मान रहे हैं। ये जंगल अब तक के सबसे पुराने गिल्बोआ स्थित जंगलों से 20 से 30 लाख साल पुराने हैं। करंट बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि यह खोज पेड़ों के विकास और जिस दुनिया में हम रहे हैं उसके बदलाव पर एक नई रोशनी डालती है। शोध से पता चलता है कि जंगल में कम से कम दो प्रकार के पेड़ थे। एक तीसरे प्रकार के पेड़ का भी एक एकल उदाहरण भी देखने को मिला। माना जा रहा है कि यह लाइकोपोड हो सकता था। ये सभी पेड़ बीज के बजाय केवल बीजाणुओं का उपयोग कर विकसित हुए। शोधकर्त्ताओं ने पाया कि इन पेड़ों की जड़ें कई मीटर तक लंबी रही होंगी, जो एक नेटवर्क के रूप में कई एकड़ों में फैली हुई हो सकती हैं।
इंडियन फार्माकोपिया
अफगानिस्तान के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय के औषधि नियामक तथा स्वास्थ्य उत्पादों के राष्ट्रीय विभाग ने भारतीय औषधि कोष (द इंडियन फार्माकोपिया-आईपी) को औपचारिक रूप से मान्यता दे दी है। इसके साथ ही एक नई शुरूआत हुई है और अफगानिस्तान, भारतीय औषधि कोष (फार्माकोपिया) को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है। ऐसा वाणिज्य विभाग तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के प्रयासों से हुआ है। दवा और सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम, 1940 तथा इसके अंतर्गत नियम 1945 के मानकों के अनुसार, भारतीय औषधि कोष मान्यता प्राप्त शब्दकोष है। यह शब्दकोष दवाओं की पहचान, शुद्धता और शक्ति की दृष्टि से दवाओं को बनाने तथा विपणन के मानकों की जानकारी देता है।
सर्वश्रेष्ठ फुटबॉल टीम- बेल्जियम
फुटबॉल की नियामक संस्था-फीफा ने बेल्जियम को लगातार दूसरी बार वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फुटबॉल टीम के पुरस्कार से सम्मानित किया है। बेल्जियम इस समय फीफा विश्व रैंकिंग में शीर्ष पायदान पर मौजूद है। विश्व चैंपियन फ्राँस दूसरे और ब्राज़ील तीसरे नंबर पर हैं। इंग्लैंड एक स्थान ऊपर चढ़कर चौथे नंबर पर पहुँच गया है जबकि उरुग्वे दो पायदान ऊपर उठकर पांचवें नंबर पर आ गया है। बेल्जियम 2015 और 2018 साल की सर्वश्रेष्ठ टीम का पुरस्कार जीत चुकी है। बेल्जियम ने इस वर्ष सभी अपने 10 ए-स्तर के मैच जीते हैं और उसने यूईएफए यूरो-2020 के लिए क्वालीफाई किया है।
बोइंग का परीक्षण
बोइंग के सीएसटी-100 स्टारलाइनर अंतरिक्षयान को नासा के कमर्शियल क्रू कार्यक्रम के हिस्से के रूप में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (आईएसएस) पर एक मानवरहित मिशन के लिये पहले कक्षीय उड़ान परीक्षण के लिये तैयार किया जा रहा है। ध्यातव्य है कि स्टारलाइन 28 दिसंबर, 2019 को आईएसएस को कार्गो पहुँचाने के बाद वापस धरती पर लौट आएगा।