भारतीय राजनीति
राष्ट्रपति द्वारा संसद के दोनों सदनों को संबोधन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित किया। उल्लेखनीय है कि पिछले महीने ही लोकसभा का चुनाव संपन्न हुआ तथा 17वीं लोकसभा का गठन किया गया अतः राष्ट्रपति ने अपनी विधायी शक्तियों के अंतर्गत इस संयुक्त सत्र को संबोधित किया है।
संबोधन के प्रमुख बिंदु
- अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने सरकार के लक्ष्यों एवं कार्यों पर प्रकाश डाला।
- महिलाओं से संबंधित मुद्दों जैसे तीन तलाक, निकाह हलाला पर भी गंभीरता से चर्चा की।
- इस लोकसभा में लगभग आधे सांसद पहली बार निर्वाचित हुए हैं जिसमें 78 महिलाएँ है जो भारत की नई तस्वीर को प्रस्तुत करता है।
- नई सरकार के आने वाले पाँच सालों की संकल्पना ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के साथ नए भारत के निर्माण की विस्तृत रूपरेखा भी प्रस्तुत की।
- सरकार की प्राथमिकता ‘एक राष्ट्र, एक साथ चुनाव’ (One Nation, One Election) को समय की मांग बताते हुए सभी सांसदों को देश के विकासोन्मुख प्रस्ताव पर गंभीरतापूर्वक विचार करने को कहा।
- विगत वर्षों में दुनिया भर में भारत की एक अच्छी छवि बनी है, वर्ष 2022 में होने वाले G-20 शिखर सम्मलेन की मेजबानी भारत द्वारा की जायेगी जिसकी सर्वोच्च प्राथमिकता आतंकवाद के खिलाफ विश्व का एकजुट करना और राष्ट्रीय सुरक्षा है।
- पहली बार सरकार द्वारा छोटे दुकानदारों के लिये पेंशन योजना लाई गई है।
- जल संरक्षण के लिये आंदोलन, लंबित सिंचाई योजनाओं को पूरा किया जाना तथा कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये आगामी वर्षों में 25 लाख करोड़ का निवेश किया जाएगा।
- नई औद्योगिक नीति के तहत ‘ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस’ में शीर्ष 50 देशों की सूची में आना सरकार का लक्ष्य है।
- गंगा नदी के साथ-साथ अन्य नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने पर विशेष बल दिया जाएगा।
भारतीय संविधान, अनुच्छेद 87
- संविधान के अनुच्छेद 87 में दिये गए प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति विधायी शक्तियों के अंतर्गत दो बार संसद के दोनों सदनों को संबोधित करता है- प्रत्येक नए चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को।
- इसके अंतर्गत राष्ट्रपति के विशेष अभिभाषण में सरकार की आगे की नीतियों, प्राथमिकताओं और योजनाओं का उल्लेख किया जाता है।
स्रोत- PIB
जैव विविधता और पर्यावरण
बिटकॉइन के उपयोग से बड़ी मात्रा में CO2 का उत्सर्जन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जर्मनी में टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्यूनिख (Technical University of Munich- TUM) के शोधकर्त्ताओं ने बिटकॉइन प्रणाली के कार्बन पदचिह्न (Carbon Footprint) के बारे में अब तक की सबसे विस्तृत गणना की।
अध्ययन के अनुसार, बिटकॉइन (एक लोकप्रिय आभासी मुद्रा) का उपयोग करने से सालाना 22 मेगाटन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन होता है जो लास वेगास और वियना जैसे शहरों से होने वाले कुल CO2 उत्सर्जन के बराबर है।
बिटकॉइन या क्रिप्टोकरेंसी
- बिटकॉइन एक डिजिटल करेंसी है जिसका इस्तेमाल दुनिया भर में लोग लेन-देन के लिये करते हैं। उल्लेखनीय है कि यह ‘मुख्य वित्तीय सिस्टम’ और ‘बैंकिंग प्रणाली’ से बाहर रहकर काम करती है। यही कारण है कि इसके स्रोत और सुरक्षा को लेकर गंभीर प्रश्न उठते रहते हैं।
- इसे किसी केंद्रीय या सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी नहीं किया जाता है। अतः सैद्धांतिक रूप से यह सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त है।
- सन् 2009 में किसी समूह या व्यक्ति ने सतोशी नाकामोतो के छद्म नाम से ‘बिटकॉइन’ के नाम से पहली क्रिप्टोकरेंसी बनाई।
- वैश्विक बिटकॉइन नेटवर्क में बिटकॉइन के हस्तांतरण एवं उसको वैध बनने की प्रक्रिया में किसी भी कंप्यूटर से एक गणितीय पहेली को हल करना आवश्यक होता है।
- इस नेटवर्क में कोई भी शामिल हो सकता है और पहेली सुलझाने वाले को बदले में पुरस्कार के रूप में बिटकॉइन मिलता है।
- इस पूरी प्रक्रिया में प्रयुक्त कंप्यूटिंग क्षमता जिसे ‘बिटकॉइन माइनिंग’ (Bitcoin Mining) के रूप में जाना जाता है, हाल के वर्षों में तेज़ी से इजाफा हुआ है।
- आँकड़ों के अनुसार, केवल वर्ष 2018 में इसमें चार गुना वृद्धि हुई है।
- परिणामस्वरुप बिटकॉइन की होड़ से जलवायु परिवर्तन पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
- कई अध्ययनों में ‘बिटकॉइन माइनिंग’ से होने वाले CO2 के उत्सर्जन का पता लगाने का प्रयास किया गया है। हालाँकि ये अध्ययन अनुमानों पर आधारित हैं।
अध्ययन के आँकड़े
- अनुसंधानकर्त्ताओं ने इसके लिये इंटरनेट के माध्यम से सर्च इंजनों का इस्तेमाल कर बिटकॉइन माइनर के आईपी एड्रेसेस (IP addresses) का पता लगाया और फिर इससे प्राप्त नतीजों से निष्कर्षों की दोबारा जाँच की।
- शोधकर्त्ताओं ने बिटकॉइन की वार्षिक बिजली खपत को नवंबर 2018 तक लगभग 46 TWh [TeraWatt Hour(s)] निर्धारित किया।
- माइनिंग पूल के लाइव ट्रैकिंग डेटा ने इस ऊर्जा के उपयोग के साथ CO2 के रूप में उत्सर्जित ऊर्जा के बारे में निर्णायक जानकारी प्रदान की।
- इन आँकड़ों के आधार पर अनुसंधानकर्त्ताओं की टीम एशियाई देशों में 68%, यूरोपीय देशों में 17% और उत्तरी अमेरिका में 15% बिटकॉइन नेटवर्क कंप्यूटिंग शक्ति का स्थानीयकरण करने में सफल हुई।
अध्ययन के निष्कर्ष
- अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार, बिटकॉइन प्रणाली के चलते प्रतिवर्ष 22 और 22.9 मेगाटन कार्बन फुटप्रिंट होता है जो हैमबर्ग, वियना या लास वेगास जैसे शहरों के फुटप्रिंट के बराबर हैं।
- बिटकॉइन का उपयोग स्वाभाविक रूप से जलवायु परिवर्तन में योगदान करने वाले बड़े कारकों में से एक है।
- उन स्थानों पर जहाँ कार्बन फुटप्रिंट ज़्यादा है, क्रिप्टोक्यूरेंसी माइनिंग को विनियमित करने की संभावना पर चर्चा की जानी चाहिये।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
अरविंद सुब्रमण्यन के शोधपत्र पर PMEAC का विस्तृत नोट
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद (Prime Minister’s Economic Advisory Council - PMEAC) ने हाल ही में ‘भारत में GDP आकलन– परिप्रेक्ष्य और तथ्य’ (GDP estimation in India- Perspectives and Facts) नाम से एक विस्तृत नोट जारी किया है जिसमे पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन द्वारा जारी किये गए पेपर में GDP आकलन की पद्धति का खंडन किया गया है।
मुख्य बिंदु :
- अरविंद सुब्रमण्यन ने हाल ही में हार्वर्ड विश्विद्यालय से प्रकाशित अपने शोध-पत्र में यह कहा था कि वर्ष 2011 से 2017 के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को 2.5 प्रतिशत अधिक प्रस्तुत किया गया था। उनके अनुसार इस अवधि में भारत की वास्तविक GDP 4.5 प्रतिशत होनी चाहिये थी जबकि आधिकारिक आकड़ों के अनुसार यह दर 7 प्रतिशत थी।
- सुब्रमण्यन के इसी शोध-पत्र का खंडन करते हुए प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद ने इस संदर्भ में एक विस्तृत नोट जारी किया है जिसमे PMEAC ने कहा है कि इस शोध-पात्र में कठोरता का अभाव है।
- अरविंद सुब्रमण्यन ने 17 सूचकों के विश्लेषण के आधार पर ही GDP में कमी होने का दावा दिया था, परंतु PMEAC ने अपने नोट में यह स्पष्ट किया है कि उन्होंने जिन सूचकों का प्रयोग किया है वे अर्थव्यवस्था में सिर्फ उद्योगों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि हमारी अर्थव्यवस्था में GDP को प्रभावित करने वाले कई अन्य कारक जैसे - सेवा क्षेत्र और कृषि क्षेत्र भी हैं।
- PMEAC के अनुसार अरविंद सुब्रमण्यन ने अपने विश्लेषण में कर (Tax) को शामिल नहीं किया है, क्योंकि उनका मानना है कि “कर में हुए बड़े परिवर्तनों ने GDP के साथ उसके संबंध को अस्थायी कर दिया है”, परंतु कर GDP का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं और सुब्रमण्यन जिन बड़े परिवर्तनों (GST) की बात कर रहे हैं वे उनकी विश्लेषण अवधि के बाद हुए हैं।
- परिषद ने अपने नोट का अंत यह कहते हुए किया है कि “भारत में GDP आकलन की पद्धति पूरी तरह से सटीक नहीं है और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय आर्थिक आँकड़ों की सटीकता को बेहतर बनाने के विविध पहलुओं पर काम कर रहा है।”
प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद
(Prime Minister’s Economic Advisory Council- PMEAC)
- प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद या 'PMEAC' भारत में प्रधानमंत्री को आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली समिति है।
- इसमें एक अध्यक्ष तथा चार सदस्य होते हैं।
- इसके सदस्यों का कार्यकाल प्रधानमंत्री के कार्यकाल के बराबर होता है।
- आमतौर पर प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण के बाद सलाहकार समिति के सदस्यों की नियुक्ति होती है।
- प्रधानमंत्री द्वारा पद मुक्त होने के साथ ही सलाहकार समिति के सदस्य भी त्यागपत्र दे देते हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
क्यू.एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग (QS World University Rankings) लिस्ट जारी की गई जिसमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (Indian Institute of Technology-IIT Bombay) ने 152वाँ स्थान हासिल किया है और लगातार दूसरे वर्ष भारत का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय बना हुआ है।
प्रमुख बिंदु
- मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Massachusetts Institute of Technology- MIT) ने लगातार आठवें वर्ष क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।
- IIT बॉम्बे के अलावा दो अन्य भारतीय विश्वविद्यालय, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली (Indian Institute of Technology-IIT Delhi) और भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू (Indian Institute of Science, IISc Bengaluru) ने विश्व स्तर के 200 प्रमुख संस्थानों की सूची में जगह बनाई है। ये दोनों संस्थान क्रमशः 182वें तथा 184वें स्थान पर हैं।
- शीर्ष 500 में शामिल विश्वविद्यालयों में अन्य भारतीय संस्थान इस प्रकार हैं-
संस्थान | क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग |
IIT-मद्रास | 271 |
IIT-खड़गपुर | 281 |
IIT- कानपुर | 291 |
IIT- रुड़की | 383 |
दिल्ली विश्वविद्यालय | 474 |
IIT- गुवाहाटी | 491 |
- वैश्विक स्तर पर शीर्ष 1,000 शैक्षणिक संस्थानों की सूची में कुल 23 भारतीय संस्थान शामिल हैं। इसमें अधिकांश सरकार द्वारा वित्तपोषित विश्वविद्यालय तथा पाँच निजी वित्तपोषित विश्वविद्यालय भी हैं।
- मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (Manipal Academy of Higher Education) की रैंकिंग 701-750 के बीच है, जो इस सूची में देश का शीर्ष निजी विश्वविद्यालय है।
- निजी संस्थानों के संदर्भ में शिक्षक-छात्र अनुपात, अंतर्राष्ट्रीय संकाय और छात्र आबादी जैसे मानक तय किये गए थे जिनके आधार पर इन्होने शीर्ष सूची में स्थान प्राप्त किया है।
QS World University Rankings
क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग
- QS एक ऐसा वैश्विक मंच है जो महत्वाकांक्षी पेशेवरों को उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास को प्रोत्साहित करने हेतु एक प्रमुख वैश्विक कैरियर और शिक्षा नेटवर्क प्रदान करता है।
- QS संस्थानों में उपलब्ध संसाधनों के आधार पर तुलनात्मक डेटा संग्रह और विश्लेषण के तरीकों को विकसित करता है और उनकी स्थिति को सुनिश्चित करता है।
- QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग, वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष विश्वविद्यालय रैंकिंग का प्रकाशन करता है।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
SC/ST समुदायों के सशक्तीकरण हेतु सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर
चर्चा में क्यों?
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के सशक्तीकरण हेतु डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (Dr. Ambedkar International Centre- DAIC) तथा दलित इंडियन चैंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज़ (Dalit Indian Chamber of Commerce and Industry-DICCI) ने एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- इस समझौता ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SC) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) की महिलाओं और युवाओं के बीच दलित उद्यमिता, सशक्तीकरण, कौशल विकास क्षमता निर्माण तथा सामाजिक आर्थिक स्थितियों पर विभिन्न सरकारी योजनाओं के प्रभाव का अनुसंधान के माध्यम से सशक्तीकरण करना है।
- इस संयुक्त उपक्रम के माध्यम से डॉ. अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (DAIC), SC और ST के व्यवसायिक क्षेत्रों की जानकारी/आँकड़े प्राप्त कर सकेगा।
- प्राप्त आँकडों से दलित युवाओं में पर्याप्त उद्यमिता की भावना विकसित नहीं किये जाने का पता लगाया जा सकेगा साथ ही उन्हें वैश्विक समाज की मुख्य धारा से जोड़ने में सहायता भी प्राप्त होगी।
डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र
(Dr. Ambedkar International Centre- DAIC)
- इसका उद्घाटन नई दिल्ली में 7 दिसंबर 2017 को भारत के प्रधान मंत्री द्वारा किया गया।
- यह सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के क्षेत्र में अध्ययन, अनुसंधान, विश्लेषण और नीति निर्माण के लिये एक उत्कृष्ट केंद्र है।
- केंद्र का मुख्य बिंदु दृढ़ और आधिकारिक अनुसंधान का संचालन करके सामाजिक तथा आर्थिक विषमताओं को कम करना है।
दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
(Dalit Indian Chamber of Commerce and Industry- DICCI)
- इसकी स्थापना 2005 में एक सिविल इंजीनियर एवं उद्यमी मिलिंद कांबले ने की थी।
- यह पुणे में अवस्थित है, मिलिंद कांबले वर्तमान में इसके अध्यक्ष हैं।
- यह संगठन 18 स्टेट चैप्टर और 7 इंटरनेशनल चैप्टर की मदद से विकसित हुआ है।
- इसका सदस्यता का आधार तेज़ी से बढ़ रहा है क्योंकि अब दलित उद्यमी इसकी गतिविधियों से ज़्यादा अवगत हो गए हैं।
DAIC और DICCI के बीच सहयोग के मुख्य क्षेत्र इस प्रकार हैं :
- अनुसंधान और प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहयोगात्मक प्रयास करने के लिये DAIC और औद्योगिक संगठनों के बीच संबंधों को मज़बूत करना।
- ज्ञान बैंक (Knowledge Bank) बनाने के लिये संयुक्त प्रयास करना, जिसका उपयोग विद्वानों, शोधकर्त्ताओं और नीति निर्माताओं की सुविधा के लिये किया जा सकता है।
- शैक्षिक सामग्री और प्रकाशनों का आदान-प्रदान करना।
- व्याख्यान कार्यक्रम, सेमिनार, संगोष्ठी और अन्य प्रकार की शैक्षिक चर्चाओं का आयोजन करना तथा कर्मचारियों के लिये संयुक्त अनुसंधान कार्य करना, जिससे पाठ्यक्रम की समीक्षा तथा शिक्षण एवं अनुसंधान कौशल को निखारा जा सकें।
- संयुक्त रूप से सलाहकारी सेवाएँ देना।
- बेहतर अनुसंधान और नीतिगत सुझावों के लिये शिक्षा संस्थाओं में उद्योग के तकनीकी ज्ञान को शामिल करने हेतु पृष्ठभूमि तैयार करना।
- शैक्षणिक और नीतिगत अनुसंधान से संबंधित गतिविधियों और स्टार्ट-अप के लिये क्षमता निर्माण हेतु उद्योगों और संस्थानों, मंत्रालयों, अनुसंधान केंद्रों और एजेंसियों द्वारा DAIC और DICCI की परियोजनाओं को प्रायोजित करने के लिये एक सामान्य आधार तैयार करना।
- DAIC और DICCI दोनों को आपसी प्रयासों से बनाये गए ज्ञान उत्पादों पर बौद्धिक संपदा का अधिकार होगा।
- मूल शैक्षिक अनुसंधानों के लिये परिसर में निःशुल्क सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
- अनुभव-साझा करने और संस्थागत निर्माण गतिविधियों में भागीदारी।
- राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षण गतिविधियों के रूप में नियमित क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करना। उदाहरण के लिये, इसमें भारतीय प्रशासन प्रणाली की विशेष परियोजनाओं और गतिविधियों के अंतर्गत शिक्षण एवं समर्थन सेवाएँ शामिल हो सकती हैं।
- भारतीय शिक्षाविदों, अधिकारियों और पेशेवरों के लिये विशेष रूप से सीखने के तरीकों, अनुसंधान और नीति विश्लेषण, प्रशासन, सामाजिक न्याय और सामाजिक तथा वित्तीय समावेशन के क्षेत्रों में प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- कौशल विकास के उभरते रूझानों और रोज़गार से संबंधित विषयों पर अनुसंधान सहयोग।
- श्रमिकों और वयस्कों के लिये दूरस्थ शिक्षा हेतु अभिनव शिक्षण कार्यक्रम विकसित करना।
निष्कर्ष
- DICCI दलित उद्यमियों को एक साथ जोड़ने के साथ-साथ इनके लिये एक संसाधन केंद्र के रूप में भी कार्य करता है, जिससे दलितों की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं के समाधान में मदद मिलती है। ऐसे में दलित समुदाय के आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य करने वाले DAIC का DICCI के साथ आना दलित समुदाय के उत्थान के लिये काफी महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा।
स्रोत- PIB
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सिरेमिक फिल्टर (Ceramic filters) और झिल्ली
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (Council of Scientific & Industrial Research-North East Institute of Science and Technology-CSIR-NEIST), जोरहाट के वैज्ञानिकों ने मिट्टी, धूल (Stone Dust) और चायपत्ती (अपशिष्ट) के मिश्रण से एक सिरेमिक झिल्ली विकसित की है जो कपड़ा उद्योग में रंगाई के उपरांत निकलने वाले अपशिष्ट रंगीन जल से रंगों को हटा सकती है।
प्रमुख बिंदु
- यह अध्ययन बुलेटिन ऑफ मैटेरियल साइंस (Bulletin of Material Science) में प्रकाशित हुआ।
- सिरेमिक फिल्टर (Ceramic filters) और झिल्ली का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है जैसे-खाद्य और पेय, दवा व रसायन, अपशिष्ट पुनर्चक्रण उद्योग आदि।
- सेरेमिक झिल्लियाँ सतत् सफाई, कठोर ऑपरेटिंग वातावरण (Harsh Operating Environments) और जहाँ अपशिष्ट के निरंतर प्रवाह वाली परिस्थितियों में सुचारू रूप से कार्य करती है।
- उन्हें पुनर्चक्रित भी किया जा सकता है एवं जलीय और गैर-जलीय दोनों प्रकार के विलयनों के पृथक्करण में इनका उपयोग किया जा सकता है।
- ये फिल्टर पेट्रोकेमिकल संबंधी प्रक्रियाओं (Petrochemical Processing) में विशेष रूप से प्रयुक्त होते हैं, जहाँ कार्बनिक झिल्ली का उपयोग करना संभव नहीं है।
- वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस नई झिल्ली में उच्च ताप और रासायनिक प्रभावों को झेलने की क्षमता है। यह झिल्ली मुख्य रूप से पानी में घुले दो रंगों- मिथाइलीन ब्लू (Methylene Blue) और कांगो रेड (Congo Red) को अलग करने में सक्षम है। इसमें मिथाइलीन ब्लू एक विषैला डाई/रंजक है, जबकि कांगो रेड एक कैंसरकारक पदार्थ है।
- इस्तेमाल की जा चुकी झिल्ली को उच्च ताप पर 30 मिनट तक पर गर्म करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है इस परिस्थिति में इसकी दक्षता थोड़ी-सी कम हो जाती है।
- इस झिल्ली का आधार बनाने में असम के गोलाघाट ज़िले के ढेकियाल क्षेत्र की मिट्टी का उपयोग किया गया है (पारंपरिक रूप से इस मिटटी का उपयोग ग्रामीण कुम्हारों द्वारा गन्ने से निर्मित गुड़ के भंडारण हेतु घड़े बनाने में किया जाता है) जो इसको सुनम्यता (Plasticity) प्रदान करती है। धूल (Stone Dust) को सुदृढीकरण सामग्री के रूप में तथा अपशिष्ट चायपत्ती का प्रयोग संरंध्रता प्रदान करने के लिये किया गया है।
- वैज्ञानिकों का उद्देश्य लागत कम करने के लिये यथासंभव आस-पास फैले अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग कर उनका यथासंभव इष्टतम प्रयोग सुनिश्चित करना था।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान
(Council of Scientific & Industrial Research-North East Institute of Science and Technology-CSIR-NEIST)
- इसकी स्थापना वर्ष 1961 में जोरहाट में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की बहु-विषयक प्रयोगशाला के रूप में हुई थी।
- इसकी अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का प्रमुख उद्देश्य स्वदेशी तकनीक द्वारा भारत की अपार प्राकृतिक संपदा का महत्तम उपयोग करना है।
- विगत वर्षों में, प्रयोगशाला ने एग्रोटेक्नोलाजी, जैविक और तेल क्षेत्र रसायन के क्षेत्रों में 100 से अधिक प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं, जिनमें से लगभग 40% प्रौद्योगिकियों ने विभिन्न उद्योगों की स्थापना करने एवं उनकी व्यावसायिक सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
CSIR की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ
- भारत में सबसे पहले DNA फिंगरप्रिंटिंग की शुरुआत।
- हंसा विमान की अभिकल्पना और विकास।
- भारत के पहले 14-सीटों वाले विमान सरस ’SARAS’ का विकास।
- देश में सबसे पहले भैंस के दूध से निर्मित अमूलस्प्रे नामक शिशु आहार का निर्माण।
- देश में चुनावों में इस्तेमाल होने वाली अमिट स्याही का सर्वप्रथम उत्पादन।
- एक भारतीय की पहली पूरी जीनोम सीक्वेंसिंग पूरी की।
- विषाक्त धुएँ का पता लगाने के लिये देश में सर्वप्रथम "इलेक्ट्रॉनिक नोज"का विकास।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन का विकासशील छोटे द्वीपीय राष्ट्रों पर प्रभाव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व जनसंख्या संभावना 2019 (World Population Prospects 2019) के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र (United Nation) की एक रिपोर्ट अनुसार, कई छोटे विकासशील द्वीपीय देश (Small Island Developing States-SIDS) बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिमों के कारण वर्ष 2030 तक अपने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल हो सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- ऐसा पाया गया है कि जनसंख्या वृद्धि सभी अल्प-विकासशील देशों को लक्ष्यों को पूरा करने में बाधक बन रही है, लेकिन यह समस्या SIDS में जलवायु परिवर्तन के साथ और जटिल हो जाती है।
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, कोमोरोस (Comoros), गिनी-बिसाऊ (Guinea-Bissau), साओ टोम (Sao Tome) और प्रिंसिप (Principe ), सोलोमन द्वीप समूह (Solomon Islands) और वानुअतु (Vanuatu) सहित कई SIDS देश तीव्र जनसंख्या वृद्धि का सामना कर रहे हैं।
- इन छोटे देशों के लिये जलवायु परिवर्तन, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि के कारण उनकी चुनौती बड़ी हो जाती है। वैश्विक स्तर पर इन देशों की जनसंख्या वृद्धि दर औसत से अधिक है।
- रिपोर्ट के अनुसार, कोमोरोस की जनसंख्या में 2.3 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही है, जो कुल वैश्विक विकास दर का 1.07 प्रतिशत है। ऐसे ही सोलोमन द्वीप समूह की जनसंख्या वृद्धि दर 2 प्रतिशत है, साओ टोम एवं प्रिंसिप की जनसंख्या वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत है तथा गिनी-बिसाऊ की आबादी 2.5 प्रतिशत की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है।
- वर्तमान में इन देशों की कुल जनसंख्या लगभग 71 मिलियन है, लेकिन जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने से वर्ष 2030 तक यह आँकड़ा 78 मिलियन और वर्ष 2050 तक 87 मिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
- SIDS देश समान रूप से सतत विकास की चुनौतियों को साझा करते हैं, जिनमें सापेक्षिक रूप से बढ़ती आबादी, सीमित संसाधन, दूरस्थता, प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अत्यधिक निर्भरता और संवेदनशील वातावरण शामिल हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन अर्थव्यवस्था के आकार अथवा स्थान की परवाह किये बिना सभी देशों के विकास को प्रभावित करता है। लेकिन गैर-द्वीपीय देशों में द्वीपीय देशों की तुलना में विनाशकारी घटनाओं की संभावना कम होती है।
- SIDS देशों की कुल आबादी का एक-तिहाई हिस्सा समुद्र की सतह से पाँच मीटर से कम ऊँची भूमि पर रहता है और उन पर समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, चक्रवात और तटीय विनाश का खतरा बराबर बना रहता है।
SIDS पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
(Impact of Climate Change on SIDS)
- SIDS देश वैश्विक स्तर पर होने वाले ग्रीन हाउस उत्सर्जन का 1% ही उत्सर्जित करते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के कारण होने वाले सर्वाधिक विनाश का खामियाज़ा सबसे पहले इन्हीं को भुगतना पड़ता है।
- कृषि, मत्स्य पालन से जुड़े क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादन में गिरावट आ रही है, जिससे आजीविका और आर्थिक विकास पर खतरा मंडरा रहा है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की मार से SIDS की भूमि, अचल संपत्ति और बुनियादी ढाँचे भी प्रभावित होते हैं और इससे इन देशों के आर्थिक विकास पर बेहद विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- कई SIDS देशों की अर्थव्यवस्थाएँ की पर्यटन पर टिकी हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इनके पर्यटन केंद्र भी इस संकट से अछूते नहीं हैं। पर्यटक चक्रवातों की आशंका में इन देशों की यात्रा नहीं कर रहे हैं जिसका इनकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
SIDS क्या है?
- ये कैरेबियन सागर और अटलांटिक महासागर, हिंद और प्रशांत महासागरों के द्वीपों पर स्थित देश हैं।
- पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में जून, 1992 में विकासशील देशों के एक अलग समूह के रूप में SIDS को मान्यता दी गई थी। SIDS देशों की कुल संख्या 38 है।
- सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सतत् विकास पर अपनाई गई ‘द फ्यूचर वी वांट’ (The Future We Want) में SIDS की समस्याओं को उजागर किया गया है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा का गठन जून 2012 में किया गया था। ध्यातव्य है कि सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन को RIO+20 या RIO 2012 भी कहा जाता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (21 June)
- 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया जाता है। भारत के प्रस्ताव पर 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इसके लिये 21 जून का दिन इसलिये चुना गया क्योंकि यह उत्तरी गोलार्द्ध में साल का सबसे बड़ा दिन होता है। 2015 से विश्व में यह दिवस मनाया जाने लगा। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम Climate Action रखी गई है और इसका मुख्य कार्यक्रम रांची के प्रभात तारा मैदान में हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिस्सा लिया।
- केंद्र सरकार ने नदियों की सफाई का काम का ज़िम्मा पर्यावरण मंत्रालय से वापस लेकर जलशक्ति मंत्रालय को सौंप दिया है। अब तक जलशक्ति मंत्रालय के पास सिर्फ गंगा और उसकी सहायक नदियों की सफाई का ही ज़िम्मा था, लेकिन अब वह शेष नदियों के प्रदूषण को दूर करने का काम भी देखेगा। राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय भी अब जलशक्ति मंत्रालय का हिस्सा होगा जो अब तक पर्यावरण मंत्रालय के पास था। कैबिनेट सचिवालय ने सरकार (कार्य आवंटन) नियम, 1961 में संशोधन करते हुए केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय का नाम बदलकर जलशक्ति मंत्रालय करने की अधिसूचना जारी कर दी है। इसके साथ ही पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय का विलय भी जलशक्ति मंत्रालय में कर दिया गया है। जलशक्ति मंत्रालय में अब दो विभाग होंगे- जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग तथा पेयजल और स्वच्छता विभाग।
- 17 जून को भारतीय नौसेना के पहले एयर स्क्वाड्रन (INS) 550 ने नौसेना के कोच्चि स्थित बेस में अपनी हीरक जयंती मनाई। 60 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में स्क्वाड्रन पर डाक टिकट का फर्स्ट डे कवर भी जारी किया गया। यह स्क्वाड्रन अब तक 14 विभिन्न प्रकार के विमान उड़ा चुका है, जिसमें सी-लैंड एयरक्राफ्ट से लेकर मौजूदा समय के डोर्नियर समुद्री टोही विमान शामिल हैं। स्क्वाड्रन वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध से लेकर दिसंबर 2004 में आई सुनामी, वर्ष 2017 में चक्रवात ‘ओखी’ और पिछले वर्ष केरल में आई विनाशकारी बाढ़ के दौरान मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियानों में हिस्सा ले चुका है। इसके साथ ही इस एयर स्क्वाड्रन ने नौसेना के समुद्री टोही पायलटों और पर्यवेक्षकों को प्रशिक्षित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- संकटग्रस्त निजी क्षेत्र की विमानन कंपनी जेट एयरवेज़ के लिये निवेशक खोजने में असफल रहने के बाद भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई में 26 बैंकों के गठजोड़ ने मामले को दिवाला संहिता के तहत कार्रवाई के लिये राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLAT) में भेज दिया। नकदी संकट और एयरलाइन को पट्टे पर विमान देने वाली कंपनियों को भुगतान नहीं कर पाने की वज़ह से गत 17 अप्रैल से जेट एयरवेज का परिचालन बंद है। जेट एयरवेज़ को कर्ज़ देने वाले बैंक पिछले पाँच महीने से एयरलाइन को चलती हालत में बेचने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन वे अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाए। गौरतलब है कि बैंकों को जेट एयरवेज़ से 8500 करोड़ रुपयए की वसूली करनी है। जेट एयरवेज़ देश की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी एयरलाइन के तौर पर जानी जाती है। ज्ञातव्य है कि जून 2016 में सरकार ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील प्राधिकरण का गठन कियाया था। इनका गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के तहत किया गया। NCLAT की 11 पीठ हैं, जिनमें इसकी मुख्य शाखा सहित दो पीठ नई दिल्ली में और अहमदाबाद, इलाहाबाद, बेंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता तथा मुंबई में एक-एक पीठ है। NCLAT के गठन के बाद कंपनी कानून 1956 के तहत गठित कंपनी कानून बोर्ड भंग हो गया।
- वैश्विक जनसंख्या वृद्धि पर संयुक्त राष्ट्र की एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। इसमें भारत की जनसंख्या सबसे तेज़ गति से बढ़ रही है और यही हालात रहे तो वर्ष 2027 तक चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। वर्तमान में भारत की जनसंख्या करीब 136 करोड़ और चीन की 142 करोड़ है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक दुनिया की आधी से अधिक जनसंख्या वृद्धि इन 9 देशों में होगी- भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, कांगो, इथोपिया, तंज़ानिया, इंडोनेशिया, मिस्र और अमेरिका। इन देशों को संभावित जनसंख्या वृद्धि के घटते क्रम में रखा गया है। रिपोर्ट में यह खुलासा भी किया गया है कि वर्ष 2019 में विश्व की जनसंख्या 7.7 अरब है, जो वर्ष 2050 तक 9.7 अरब और वर्ष 2100 तक 11 अरब हो जाएगी।
- 19-20 जून को दिल्ली में 12वीं RECAAP-IAC (Regional Cooperation Agreement on Combating Piracy and Armed Robbery against Ships in Asia) क्षमता निर्माण कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला में एशिया में जहाजों की समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैतियों से निपटने के लिये क्षेत्रीय सहयोग अनुबंध के बारे में विचार-विमर्श किया गया। RECAAP एशिया में समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती से निपटने के लिये विभिन्न सरकारों के बीच पहला क्षेत्रीय अनुबंध है और वर्तमान में इसके 20 सदस्य हैं। RECAAP अनुबंध के तहत जानकारी साझा करना, क्षमता निर्माण और पारस्परिक कानूनी सहायता सहयोग के तीन प्रमुख स्तंभ हैं। भारत सरकार ने RECAAP के लिये भारतीय तट रक्षक बल को भारत में केंद्रबिंदु के रूप में नामित किया है। भारत नवंबर, 2011 में गोवा में और दिसंबर 2017 में नई दिल्ली में इसकी कार्यशालाएँ आयोजित कर चुका है।