डेली न्यूज़ (21 Feb, 2019)



ब्रह्मांड के नए नक्शे में 3 लाख से ज़्यादा आकाशगंगाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में LOFAR (Low-Frequency Array) दूरबीन का प्रयोग करके मानचित्र पर रात में आकाश के भाग का एक नया नक्शा प्रकाशित किया गया जिसमें पूर्व अज्ञात सैकड़ों आकाशगंगाओं के चित्र दिखाए गए हैं। ये मानचित्र प्रकाशीय उपकरण द्वारा नहीं देखे जा सकते हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वैज्ञानिकों ने इस अब तक ज्ञात इस ब्रह्मांड का आकार बहुत बड़ा होने की जानकारी दी है। जिसे उन्होंने ब्रह्मांड में एक ‘नई खिड़की’ (New Window) की संज्ञा दी है।
  • अभूतपूर्व अंतरिक्ष सर्वेक्षण करने वाली अंतर्राष्ट्रीय टीम ने बताया है कि इस खोज द्वारा ब्रह्मांड के कुछ गूढ़ रहस्यों, जैसे - ब्लैक होल की भौतिकी और आकाशगंगाओं के समूह कैसे विकसित हुए, पर नई जानकारी प्राप्त हुई है।
  • 18 देशों के 200 से अधिक खगोलविदों ने अपने इस अध्ययन में उत्तरी गोलार्द्ध के ऊपर आकाश के एक भाग को देखने के लिये ‘रेडियो खगोल विज्ञान’ का उपयोग किया, और 3,00,000 ऐसे अनदेखे प्रकाश स्रोतों की पहचान की जिन्हें पहले नहीं प्राप्त किया जा सका था।
  • खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी पत्रिका (Journal Astronomy & Astrophysics) में प्रकाशित LOFAR दूरबीन के अवलोकन द्वारा बनाए गए इस नक्शे में केवल दो प्रतिशत आँकड़े प्राप्त किये जा सके हैं, जबकि दूरबीन में दस मिलियन डीवीडी की क्षमता के बराबर आँकड़े शामिल हैं।

प्राचीन विकिरण (Ancient Radiation)

  • वैज्ञानिकों की टीम ने नीदरलैंड्स में लो-फ्रिक्वेंसी एरे (LOFAR) टेलीस्कोप से उन प्राचीन विकिरणों का पता लगाया जब आकाशगंगायें एक साथ जुड़ी थी जो पहले कभी प्राप्त नहीं हुईं। ये विकिरण लाखों प्रकाश वर्ष तक विस्तार कर सकते हैं।
  • वैज्ञानिको के अनुसार, रेडियो विकिरण द्वारा उन विरल माध्यमों से विकिरण का पता लगाया जा सकता है जो आकाशगंगाओं के बीच मौजूद होते हैं।
  • नए प्रकाश स्रोतों की खोज से वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष की सबसे गूढ़ घटनाओं में से एक के व्यवहार को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिल सकती है।
  • ब्लैक होल भी जब अन्य उच्च द्रव्यमान वाली वस्तुओं, जैसे कि तारे और गैस के बादलों को खुद में समाहित करते हैं तो विकिरण का उत्सर्जन करते हैं।
  • नई अवलोकन तकनीक खगोलविदों को आने वाले समय में ब्लैक होल की तुलना करने में सहयोग करेगी कि कैसे ये बनते हैं या विकसित होते हैं क्योंकि इस तकनीक से बहुत पुराने इलेक्ट्रॉन एवं विकिरणों को देखा जा सकता है।
  • वैज्ञानिकों ने हबल टेलीस्कोप द्वारा ब्रह्मांड में 100 बिलियन से अधिक आकाशगंगाएँ होने के मानचित्र दिये है हालाँकि कई पारंपरिक पहचान तकनीकों का उपयोग करके पाया गया कि आकशगंगा के ये चित्र बहुत पुराने और दूर के हैं।

LOFAR टेलीस्कोप

  • लो-फ्रिक्वेंसी एरे या LOFAR एक बड़ा रेडियो टेलीस्कोप नेटवर्क है जो मुख्य रूप से नीदरलैंड्स में स्थित है।
  • यह टेलीस्कोप सात देशों के रेडियो एंटीना के नेटवर्क से बना है, जो 1,300 किलोमीटर के व्यास वाले सैटेलाइट डिश (Satellite Dish) के बराबर है।

कृष्ण-छिद्र Black Hole

  • कृष्ण-छिद्र अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता।
  • चूँकि इनसे प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता, अतः हमें कृष्ण छिद्र दिखाई नहीं देते अर्थात वे अदृश्य होते हैं। हालाँकि विशेष उपकरणों से युक्त अंतरिक्ष टेलीस्कोप की मदद से कृष्ण-छिद्रों की पहचान की जा सकती है।
  • ये उपकरण यह जानकारी प्राप्त करने में भी सक्षम हैं कि कृष्ण-छिद्रों के निकट स्थित तारे अन्य प्रकार के तारों से किस प्रकार भिन्न व्यवहार करते हैं।

रेडियो खगोल विज्ञान (Radio Astronomy)

  • यह खगोल विज्ञान का एक उप-क्षेत्र है जो रेडियो फ्रिक्वेंसी पर आकाशीय वस्तुओं का अध्ययन करता है। 1932 में एक खगोलीय वस्तु से रेडियो तरंगों की पहली बार पहचान की गई थी।

स्रोत – द हिंदू


आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक कार्रवाई के लिये भारत तैयार

चर्चा में क्यों?

भारत की यात्रा पर आए सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के प्रायोजकों और आतंकवादियों के लिये सुरक्षित ठिकानों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा दबाव बनाने की अपील की।

प्रमुख बिंदु

  • संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सऊदी प्रिंस ने कहा कि उनका देश भारत तथा आतंकवाद से प्रभावित अन्य देशों के साथ खुफिया जानकारी साझा करेगा।
  • एक संयुक्त बयान में पुलवामा में 14 फरवरी को हुए भारतीय सुरक्षा बलों पर आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की गई। सऊदी क्राउन प्रिंस ने इस मुद्दे पर भारत का पूरा साथ देने का वादा किया।
  • भारत और सऊदी अरब के बीच पुराने एवं घनिष्ट संबंध रहे हैं। दोनों देशों के ऊर्जा और कृषि के क्षेत्र में समान लक्ष्य हैं। साथ ही दोनों देशों ने इस भावना को अन्य क्षेत्रों में विविधता प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई।
  • दोनों देशों ने अपने संयुक्त बयान में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र के व्यापक अभिसमय (UN Comprehensive Convention on International Terrorism) को जल्द अपनाने और संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘आतंकवादियों तथा उनके संगठनों पर व्यापक प्रतिबंध’ लगाने के लिये कड़ा कदम उठाने का आग्रह किया।
  • दोनों पक्षों ने ‘व्यापक सुरक्षा संवाद’ (Coprehensive Security Dialogue) बनाने का भी संकल्प लिया। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने मिलकर काउंटर टेररिज्म पर एक संयुक्त कार्यदल की भी स्थापना की।
  • दोनों पक्षों ने एक रणनीतिक साझेदारी परिषद (Strategic Partenership Council) की भी शुरुआत की जिसका नेतृत्व भारत के प्रधानमंत्री तथा सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस करेंगे।
  • मोहम्मद बिन सलमान की यात्रा के दौरान सऊदी अरब अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में शामिल हो गया। दोनों देशों ने आर्थिक संबंधों को नई ऊँचाई पर ले जाने का फैसला किया।
  • सऊदी का सहयोग विशेषकर परमाणु ऊर्जा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अहम है। कारोबार और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये सऊदी नागरिकों के लिये ई-वीजा जारी करने का फैसला भी लिया गया।
  • उल्लेखनीय है कि सऊदी क्राउन प्रिंस ने भारत यात्रा से पूर्व पाकिस्तान की यात्रा की थी तथा पाकिस्तान के साथ 20 अरब डॉलर (करीब 1 लाख 43 हज़ार करोड़ रुपए) का करार किया था।
  • सऊदी अरब पाकिस्तान को पहले से ही छह अरब डॉलर (करीब 43 हज़ार करोड़ रुपए) का क़र्ज़ दे चुका है। यात्रा के दौरान उन्होंने भारत तथा पाकिस्तान के बीच संवेदनशील मुद्दों पर आपस में वार्ता करने का सुझाव दिया था।
  • सऊदी अरब, भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करेगा। सऊदी अरब की ओर से यह निवेश ऊर्जा, तेलशोधन, पेट्रोकेमिकल्स, आधारभूत ढाँचा जैसे क्षेत्रों में किया जाएगा।

दोनों देशों के बीच पाँच करारों पर हस्ताक्षर

  • भारत और सऊदी अरब के बीच ऊर्जा को लेकर करार
  • पर्यटन के क्षेत्र में MOU पर हस्ताक्षर
  • द्वीपक्षीय कारोबार को बढ़ावा देने के लिये हस्ताक्षर
  • प्रसार भारती और सऊदी अरब के बीच प्रसारण साझा करने पर करार
  • इंटरनेशनल सोलर अलायन्स के क्षेत्र में करार

सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी पार्टनर

  • सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है। 2017-18 के दौरान दोनों देशों के बीच 1.95 लाख करोड़ रुपए का सालाना कारोबार हुआ।
  • सऊदी अरब भारत की कुल ज़रूरत का 17% कच्चा तेल और 32% एलपीजी मुहैया करा रहा है।
  • दोनों देशों के बीच समग्र द्विपक्षीय व्यापार 25 बिलियन डॉलर से अधिक है। रत्नागिरि रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल परियोजना के लिये 44 बिलियन डॉलर के संयुक्त उद्यम द्वारा दोनों देश पारंपरिक खरीदार-विक्रेता संबंध के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं।
  • सऊदी अरब में तीन मिलियन से अधिक भारतीय रहते हैं जिन्हें वह सालाना लगभग 10 बिलियन डॉलर का भुगतान करता है।

दक्षिण एशिया महाद्वीप में सऊदी अरब का संतुलन बनाने का प्रयास

  • सऊदी अरब और अन्य पश्चिम एशियाई देशों के साथ अच्छे संबंध प्रवासी भारतीय समुदाय के कल्याण के लिये आवश्यक हैं।
  • पश्चिमी हिंद महासागर में आतंकवाद और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में पश्चिम एशिया भी एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है।
  • नरेंद्र मोदी सरकार ने पश्चिम एशियाई देशों के साथ संबंध बढ़ाने के लिये अच्छा काम किया है।
  • UAE और सऊदी अरब दोनों ने बड़े निवेश किये हैं। भारत ने इस क्षेत्र में अपने प्रतिद्वंद्वियों ईरान, कतर और इज़राइल के साथ संबंध बेहतर बनाए हैं।
  • सऊदी अरब और UAE दोनों ही पाकिस्तान के खिलाफ भारत के साथ बहुत दूर तक आगे बढ़ने की स्थिति में नहीं हैं। इसका कारण केवल धर्म नहीं है। दोनों देशों में कुलीन परिवार पाकिस्तान में पारिवारिक और अन्य सामाजिक कनेक्शन साझा करते हैं।
  • भारत-सऊदी अरब संबंध कई मायनों से महत्त्वपूर्ण हैं। भारत और सऊदी अरब के बीच एक मजबूत स्वतंत्र रणनीतिक भागीदारी है और इसे रणनीतिक साझेदारी परिषद के लॉन्च के साथ और मजबूत बनाया जाएगा जो आपसी हित के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर करेगा।

स्रोत : द हिंदू


ग्रामीण भारत की एक बड़ी समस्या है संदूषित जल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय (Ministry of Drinking Water and Sanitation) की एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली (Integrated Management Information System-IMIS) द्वारा दिये आँकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 4 करोड़ ग्रामीण पीने के लिये धातु-संदूषित जल (Metal-Contaminated Water) का उपयोग करते हैं।

  • जल में पाए जाने वाले प्रमुख भारी धातु फ्लोराइड, आर्सेनिक और नाइट्रेट हैं।
  • आर्सेनिक संदूषण में बंगाल और राजस्थान शीर्ष पर हैं।

व्यापक समस्या (Widespread Problem)

  • दिये गए आँकड़ों के अनुसार, भारत का सबसे अधिक 39 प्रतिशत प्रभावित आबादी वाला राज्य पश्चिम बंगाल है। बंगाल के लगभग 1.57 करोड़ ग्रामीण धातु-संदूषित जल का सेवन करते हैं।
  • राजस्थान में 65 लाख ग्रामीण पीने के लिये संदूषित जल का प्रयोग करते हैं जिससे उनका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित है, जबकि बिहार में 43 लाख लोग दूषित जल का सेवन करते हैं।
  • आँकड़ों के अनुसार, धातु-संदूषित जल सेवन के आधार पर 16 राज्यों में एक लाख से अधिक ग्रामीण आबादी है। जबकि सात राज्यों - पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार, पंजाब, असम, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा में 10 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं।
  • फ्लोराइड संदूषण के क्षेत्र में 33 लाख, लवणता संदूषण के क्षेत्र में 25 लाख तथा नाइट्रेट संदूषण के क्षेत्र में 7 लाख आबादी के साथ राज्यों की सूची में राजस्थान सबसे उपर है।
  • पश्चिम बंगाल में 96 लाख लोग आर्सेनिक और 49 लाख लोग लोहे के संदूषित जल का सेवन करते हैं।

धातु संदूषण (Metal Contamination)

  • देश के 22 लाख लोग धातु-संदूषित जल सेवन से प्रभावित हैं जिनमें पंजाब सबसे आगे है यहाँ पर सभी प्रकार के धात्विक जल संदूषण पाए जाते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल से किसी भी नाइट्रेट संदूषण की सूचना नहीं आई है।
  • भारी धातु एक धात्विक रासायन तत्व है। भारी धातुओं की उच्च सांद्रता से विषाक्तता हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, पीने के जल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा लोगों को हड्डियों को कमज़ोर बना देती है।
  • WHO ने चेतावनी दी है कि आर्सेनिक संदूषित जल के लंबे समय तक सेवन से आर्सेनिक पॉइज़निंग (Arsenic Poisoning) या आर्सेनिकोसिस Arsenicosis रोग होता है, इसमें त्वचा, मूत्राशय, गुर्दे, फेफड़े, त्वचा के विभिन्न रोग, रक्त वाहिकाओं का कैंसर आदि शामिल हैं जिसके कारण बहुत से अंग प्रभावित होते हैं।
  • हाल में WHO की रिपोर्ट में कहा गया है कि दूषित जल के सेवन से मधुमेह, उच्च रक्तचाप और प्रजनन संबंधी विकारों की शुरुआत के साथ ही इनके बीच एक संभावित संबंध हो सकता है।

केंद्रीय आवंटन (Central Allocation)

  • मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, केंद्र ने आर्सेनिक और फ्लोराइड संदूषण से निपटने के लिये सामुदायिक जल शोधन संयंत्रों और पाइपलाइन की अनंतिम आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये मार्च 2016 में 1,000 करोड़ रुपए जारी किये।
  • 2017 में मंत्रालय ने 27,544 आर्सेनिक / फ्लोराइड प्रभावित ग्रामीण बस्तियों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिये राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उप-मिशन (National Water Quality Sub-Mission) शुरू किया।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति राज्य सूची का विषय है, इसलिये पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ग्रामीण आबादी हेतु सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के माध्यम से राज्यों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

स्रोत – द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


1959 के तिब्बती विद्रोह के 60 साल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने 1 अप्रैल, 2019 तक के लिये विदेशी पर्यटकों के तिब्बत आगमन पर प्रतिबंध लगा दिया है। गौरतलब है कि चीन ने यह प्रतिबंध 1959 के तिब्बती विद्रोह की 60वीं वर्षगाँठ से पहले सुरक्षा कारणों से लगाया है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि 10 मार्च को चीन के खिलाफ 1959 में हुए आंदोलन के 60 साल पूरे हो रहे हैं। इसी आंदोलन के पश्चात् तिब्बत के बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा को निर्वासित होकर भारत आना पड़ा था।
  • लंबे समय से तिब्बत पर अपना अधिकार मानने वाली चीन सरकार ने दलाई लामा को खतरनाक अलगाववादी का दर्जा दिया है।
  • इसके अलावा, 2008 में ल्हासा में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों की भी 14 मार्च को वर्षगाँठ है। इन तारीखों को ध्यान में रखते हुए चीन ने विदेशी पत्रकारों, राजनयिकों और पर्यटकों का प्रवेश पूरी तरह बंद कर दिया है।
  • जानकारों का कहना है कि पर्यटकों के आगमन को प्रतिबंधित करने का यह सिलसिला हर साल चलता है।

क्या है 1959 का तिब्बती विद्रोह?

  • 1912 से लेकर 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना तक किसी भी चीनी सरकार ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region-TAR) पर नियंत्रण नहीं किया।
  • दलाई लामा की सरकार ने 1951 तक तिब्बत की भूमि पर शासन किया था। माओ-त्से-तुंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के तिब्बत पर कब्ज़ा करने से पहले तक यह चीन का हिस्सा नहीं था।
  • तिब्बती लोग तथा अन्य टिप्पणीकार चीन द्वारा किये गए इस कृत्य को ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ के रूप में वर्णित करते हैं।
  • तिब्बत वासियों ने मार्च 1959 में चीन सरकार को उखाड़ फेंकने का असफल प्रयास किया था, जिस वज़ह से 14वें दलाई लामा को भारत आना पड़ा था।

1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद

  • 1959 के विद्रोह के पश्चात् चीन सरकार लगातार तिब्बत पर अपनी पकड़ मज़बूत करती रही है।
  • तिब्बत में आज भी भाषण, धर्म या प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है और चीन की मनमानी जारी है।
  • ज़बरन गर्भपात, तिब्बती महिलाओं की नसबंदी और कम आय वाले चीनी नागरिकों के स्थानांतरण से तिब्बती संस्कृति के अस्तित्व को खतरा है।
  • हालाँकि चीन ने विशेष रूप से ल्हासा क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये निवेश किया है जिसकी वज़ह से हज़ारों हान चीनी समुदाय तिब्बत में स्थानांतरित हुए हैं और परिणामस्वरूप तिब्बत में जनसांख्यिकीय बदलाव आया है।
  • 14वें दलाई लामा भारत के धर्मशाला के उपनगर मैक्लॉयडगंज से तिब्बत की निर्वासित सरकार का नेतृत्व करते हैं।
  • दलाई लामा पूर्ण स्वतंत्रता की बजाय तिब्बत के लिये और अधिक स्वायत्तता की वकालत करते रहे हैं किंतु चीनी सरकार उनसे वार्ता करने से भी इनकार करती है।
  • तिब्बत को समय-समय पर अशांति का सामना करना पड़ता है।

तिब्बत

  • तिब्बत एशिया में तिब्बती पठार पर स्थित एक क्षेत्र है, जो लगभग 24 लाख वर्ग किमी. में फैला हुआ है और यह चीन के क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई है।
  • यह तिब्बती लोगों के साथ-साथ कुछ अन्य समुदायों की भी पारंपरिक मातृभूमि है।
  • तिब्बत पृथ्वी पर सबसे ऊँचा क्षेत्र है जिसकी औसत ऊँचाई 4,900 मीटर है।

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भारत-चीन संघर्ष की अन्य वज़ह

  • सीमा विवादों के अलावा भारत-चीन संघर्ष की एक वज़ह दलाई लामा भी हैं, जिन्हें भारत में आध्यात्मिक गुरु का दर्ज़ा प्राप्त है।
  • चीन दलाई लामा (जिनका तिब्बतियों पर बहुत प्रभाव है) को एक अलगाववादी मानता है।
  • यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है कि दलाई लामा ने 1974 में ही तिब्बत की स्वतंत्रता की वकालत छोड़ दी थी और अब वह केवल तिब्बती समुदाय पर चीन द्वारा किये जा रहे दमन को रोकना चाहते हैं।
  • पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तिब्बती शरणार्थियों को उनकी वापसी तक भारत में बसने के लिये सहायता प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की थी।
  • भारत सरकार ने तिब्बतियों के लिये विशेष स्कूल बनाए हैं जो मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं।
  • तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास में भारत की भूमिका को लेकर चीन का रवैया हमेशा से आलोचनात्मक रहा है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय निकायों और मानवाधिकार समूहों ने भारत के इस कदम की प्रशंसा की है।

स्रोत- द हिंदू


बांध बनाम सिंचित क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र सरकार 285 नए बड़े बांधों का निर्माण करा रही है। गौरतलब है कि भारत के लगभग 40% बड़े बांध (2,069) महाराष्ट्र में मौजूद हैं, जबकि राज्य में सिंचित क्षेत्रो का प्रतिशत मात्र 19 है,जो झारखण्ड, मणिपुर और सिक्किम से थोड़ा ही अधिक है।

प्रमुख बिंदु

  • ज्ञातव्य है की मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक में बड़े बांधों की संख्या क्रमश: 899, 620, 248 और 230 है, जबकि इनमें से मध्य प्रदेश के अलावा सभी राज्यों में सिंचित क्षेत्र 50% से कम हैं।
  • जहाँ पंजाब में केवल 14 बड़े बांध होने के बाद भी 100% सिंचित क्षेत्र है, वहीं हरियाणा में केवल 1 बड़े बांध के बावजूद सिंचित क्षेत्र 84% है।

नीचे दिये गए टेबल में विभिन्न राज्यों में बांधों की संख्या एवं सिंचित क्षेत्रों का प्रतिशत है:-

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  • सरकारी समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आज़ादी से लेकर अब तक भारत ने बड़े और मध्यम आकार के बांधों एवं जलाशयों पर लगभग 4 लाख करोड़ रुपए खर्च कर दिये हैं किंतु अब भी सिंचाई के शत-प्रतिशत लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका है।
  • इसका सबसे बड़ा कारण है कि हम केवल बांधों और जलाशयों के निर्माण पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं न कि उनके स्थायी परिणाम पर।
  • केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, दिसंबर 2018 तक देश में 5,701 बड़े बांध मौजूद थे, जिनमें से 5,264 का निर्माण हो चुका है और 437 निर्माणाधीन हैं।

निष्कर्ष

उपरोक्त टेबल और अन्य आँकड़ों के अध्ययन से हम पाते हैं कि सिंचित क्षेत्र, बांधों एवं जलाशयों की संख्या पर कम जबकि तकनीकी सहायता द्वारा बांधों एवं जलाशयों से खेतों तक जल की पर्याप्त मात्रा में पँहुच पर अधिक निर्भर करते हैं। नए बांधों के निर्माण से ज़्यादा ज़रूरी मौजूदा बांधों की कार्यकुशलता को बढ़ाना है, साथ ही परिणाम आधारित परियोजना पर ध्यान केंद्रित करना है।

स्रोत : द हिन्दू बिज़नस लाइन


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (21 February)

  • केंद्र सरकार ने विमुक्त, घुमंतू और अर्द्धघुमंतू समुदायों के लिये विकास एवं कल्याण बोर्ड के गठन की मंज़ूरी दे दी। ये समुदाय देश के सबसे अधिक वंचित समुदाय हैं और इन तक पहुँच बनाना मुश्किल है, ये ज्यादा दिखाई नहीं देते और इसलिये अक्सर छूट जाते हैं। जहां अधिकतर विमुक्त, घुमंतू, अर्द्धघुमंतू समुदाय SC, ST या OBC श्रेणियों में शामिल हैं, वहीं कुछ विमुक्त घुमंतू समुदाय किसी भी श्रेणी में कवर नहीं हो पाए हैं। अब इसके लिये नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जा रहा है जो उन विमुक्त, घूमंतू, और अर्द्धघुमंतू समुदायों के लोगों की पहचान की प्रक्रिया को पूरा करेगी, जिन्हें अब तक औपचारिक रूप से वर्गीकृत नहीं किया गया है। आपको बता दें कि केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा अपनाये जा सकने वाले उचित उपाय सुझाने के लिये केंद्र सरकार ने जुलाई 2014 में तीन वर्षों की अवधि के लिये एक राष्ट्रीय आयोग का गठन भी किया था।
  • मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने वर्ष 2019-20 के लिये खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा वहन की जाने वाली 8,000 करोड़ की सब्सिडी सहित 12,054 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ मिड-डे-मील योजना के तहत कुछ मानदंडों को संशोधित करने की मंज़ूरी दे दी है। गौरतलब है कि मिड-डे-मील योजना केंद्र प्रायोजित है जिसमें देश के 11.4 लाख सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के पहली कक्षा से 8वीं कक्षा में में पढ़ रहे 12 करोड़ से ज्यादा बच्चे शामिल हैं। इस योजना के तहत भारत सरकार द्वारा प्रति खुराक वहन की जाने वाली औसत लागत प्राथमिक और अपर प्राथमिक कक्षाओं के लिये क्रमश: 6.64 रुपए और 9.59 रुपए है।
  • केंद्र सरकार ने दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) गलियारे को मंज़ूरी दे दी है। यह भारत में कार्यान्वित की जाने वाली अपने किस्म की पहली, रेल आधारित, उच्च रफ्तार, क्षेत्रीय ट्रांजिट प्रणाली है। एक बार चालू होते ही यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में सबसे तेज़, सबसे ज़्यादा आरामदायक तथा परिवहन का सबसे सुरक्षित साधन होगी। इस परियोजना में अन्य शहरी परिवहन प्रणालियों को दक्ष और प्रभावी ढंग से एकीकृत किया जाना शामिल है, जो केवल डिज़ाइनिंग, टेक्नोलॉजी तथा संस्थागत प्रबंधन की नवोन्मेषी पद्धतियों को अपनाए जाने से ही संभव है।
  • केंद्र सरकार ने एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है जिसका उद्देश्य आयकर अधिनियम की धारा 56 (2)(viib) के तहत स्टार्ट-अप्स के लिये रियायतों की प्रक्रिया को सरल बनाना है। इसके तहत स्टार्ट-अप्स की परिभाषा का विस्तार किया जाएगा। अब किसी भी निकाय को निगमन एवं पंजीकरण की तिथि से लेकर अगले 10 वर्षों तक एक स्टार्ट-अप के रूप में माना जाएगा, जबकि पहले इसके लिये 7 वर्षों की अवधि तय की गई थी। इसी तरह किसी निकाय को आगे भी निरंतर एक स्टार्ट-अप माना जाएगा, यदि निगमन एवं पंजीकरण के बाद किसी भी वित्त वर्ष में इसका कारोबार या टर्नओवर 100 करोड़ रुपए से ज़्यादा नहीं हुआ हो, जबकि पहले यह आँकड़ा 25 करोड़ रुपए तय किया गया था। अब हर उस स्टार्ट-अप को आयकर अधिनियम की धारा 56 (2)(viib) के तहत रियायत के लिये पात्र माना जाएगा, जो DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हो और कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में परिसंपत्ति में निवेश न कर रहा हो।
  • केंद्र सरकार ने दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय पुलिस एजेंसी और भारत के गृह मंत्रालय के बीच अंतर्राष्ट्रीय अपराध और पुलिस सहयोग विकसित करने पर आधारित एक समझौते को मंज़ूरी दी है। प्रस्तावित समझौते का लक्ष्य अपराधों की रोकथाम और इसे समाप्त करने में दोनों देशों के प्रभावी उपायों को बेहतर बनाना है। इन अपराधों में आतंकवाद तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध शामिल हैं। इस समझौते के तहत दोनों देशों के गुप्तचर अधिकारियों तथा कानून क्रियान्वयन करने वाली एजेंसियों के बीच आपसी सहयोग को बेहतर बनाने के लिये एक रूपरेखा बनाने का भी प्रस्ताव दिया गया है।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में दशाश्वमेघ घाट के निकट गंगा किनारे स्थित ‘मान महल’ में नवस्थापित आभासी प्रायोगिक संग्रहालय (Virtual Experiential Museum-VEM) का उद्घाटन किया, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारक है। इस संग्रहालय की स्थापना भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम कर रही राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद ने की है। इस संग्रहालय में अत्याधुनिक एवं उत्कृष्ट वर्चुअल रियल्टी टेक्नोलॉजी के उपयोग के ज़रिये वाराणसी के विभिन्न मूर्त एवं अमूर्त सांस्कृतिक पहलुओं की झलक दिखाने का प्रयास किया गया है। स्मारक के साथ इस संग्रहालय के लिये प्रवेश शुल्क भारत और सार्क एवं बिम्सटेक देशों के आगंतुकों के लिये 25 रुपए है, जबकि अन्य विदेशी आगंतुकों से 300 रुपए लिये जाएंगे। 15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिये प्रवेश नि:शुल्क है।
  • भारतीय रेल ने तमिलनाडु के मंदिरों का दर्शन करने के इच्छुक श्रद्धालुओं के लिये एक रेलवे टूर पैकेज बनाया है, जिसे ‘रामसेतु एक्सप्रेस-तमिलनाडु टैंपल टूर’ नाम दिया गया है। इसके तहत भारत दर्शन ट्रेन के ज़रिये केवल 4885 रुपए में तमिलनाडु के मंदिरों की सैर की जा सकेगी। इस पैकेज के तहत कवर होने वाले स्थानों में श्रीरंगम, त्रिची, रामेश्वरम, मदुरै, तंजौर और कुंभकोनम शामिल हैं। आपको बता दें कि पिछले साल रेलवे ने भारत और श्रीलंका में मंदिरों से जुड़े स्थानों की यात्रा करने के इच्छुक लोगों के लिये रामायण एक्सप्रेस की शुरुआत की थी। रेलवे इससे पहले महाराष्ट्र में धार्मिक स्थानों के लिये सात दिवसीय टूर और बौद्ध महत्त्व वाले स्थलों को कवर करने के लिये समानता एक्सप्रेस टूरिस्ट ट्रेन की शुरुआत कर चुका है।
  • केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय ने पूर्वोत्तर भारत में रेशम क्षेत्र के विकास के लिये चार परियोजनाओं की शुरुआत की है। इनमें तुरा (मेघालय) में मूंगा सिल्क सीड उत्पादन केंद्र, अगरतला (त्रिपुरा) में रेशम छपाई और प्रसंस्करण इकाई, संगाइपत (इम्फाल) में इरी स्पन रेशम मिल और ममित (मिज़ोरम) में सेरीकल्चर का विकास करना शामिल है।
  • केंद्र सरकार ने अंतरिक्ष विभाग के तहत एक नई कंपनी की स्थापना को मंज़ूरी दी है, ताकि इसरो के केंद्रों तथा अंतरिक्ष विभाग की संबद्ध इकाइयों द्वारा संचालित अनुसंधान एवं विकास कार्य का वाणिज्यिक लाभ उठाया जा सके। उद्योग के लिये लघु उपग्रह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करने हेतु नई कंपनी इसरो से लाइसेंस तथा उद्योगों के लिये उप-लाइसेंस प्राप्त करेगी। यह नई कंपनी निजी क्षेत्र के सहयोग से लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SLV) का निर्माण करेगी। इसके अलावा, प्रक्षेपण तथा इस्तेमाल सहित अंतरिक्ष-आधारित उत्पादों और सेवाओं का उत्पादन तथा विपणन और इसरो केंद्रों तथा अंतरिक्ष विभाग की संबद्ध इकाइयों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण का काम भी यह कंपनी देखेगी।
  • केंद्र सरकार ने विश्व बैंक से ऋण सहायता के ज़रिये दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण आर्थिक रूपांतरण परियोजना नामक एक बाहरी सहायता प्राप्त योजना के कार्यान्वयन को मंज़ूरी दी है। NRETP द्वारा उपलब्ध कराई जा रही तकनीकी सहायता एवं परियोजना द्वारा सुगम कराए जाने वाले उच्चस्तरीय उपायों से आजीविका संवर्द्धन एवं वित्तीय सुविधा में बढ़ोतरी होगी तथा डिजिटल वित्त एवं आजीविका युक्तियों से संबंधित पहलों को बढ़ावा मिलेगा। गौरतलब है कि DAY-NRLM निर्धनों में से सबसे निर्धन एवं सबसे निर्बल समुदायों को लक्षित करने एवं उनके वित्तीय समावेशन पर विशेष बल देता है।
  • इज़राइल जल्द ही अपना पहला मिशन मून शुरू करने जा रहा है। लगभग 585 किलोग्राम वज़नी बेरेशीट (जीनेसिस) नामक यह यान अमेरिका में फ्लोरिडा के केप कैनवेरल से प्रक्षेपित किया जाना है। अभी तक केवल अमेरिका, चीन और रूस ही ऐसे देश हैं जो चंद्रमा पर अपना अंतरिक्ष यान भेजने में सफल हो पाए हैं। इज़राइल का यह मानवरहित अंतरिक्ष यान अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ डेटा शेयर करेगा।