भारत की भुगतान संतुलन स्थिति का आकलन
चर्चा में क्यों?
- भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार 2017-18 के लिये भारत का भुगतान संतुलन यह प्रदर्शित करता है कि चालू खाता घाटा (CAD) 48.72 बिलियन डॉलर है जो कि 2012-13 के रिकॉर्ड 88.16 बिलियन डॉलर के बाद से सर्वाधिक है।
- हाल ही में स्विस निवेश बैंक क्रेडिट सुईस ने 2018-19 में भारत के लिये 55 बिलियन डॉलर के शुद्ध पूंजी प्रवाह की भविष्यवाणी की है जो कि 75 बिलियन डॉलर के अनुमानित चालू खाता घाटे से कम है। इस कारण से 2011-12 से लेकर अब तक पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने की संभावना है।
- रिज़र्व बैंक के आँकड़े पहले ही यह प्रदर्शित करते हैं कि 8 जून, 2018 को विदेशी मुद्रा भंडार 413.11 बिलियन डॉलर रहा, इसमें मार्च 2018 की समाप्ति के स्तर से 11.43 बिलियन डॉलर की कमी आई है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मार्च 2018 तक 424.55 बिलियन डॉलर का था जो कि विश्व में आठवाँ सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है, इससे 10.9 माह की आयात ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है।
- इस दृष्टिकोण से आर्थिक तंगी का कोई भी संकेत पूरी तरह गलत होगा क्योंकि रिज़र्व बैंक का वर्तमान मुद्रा भंडार तत्काल आयात ज़रूरतों और रुपए पर आने वाले संकट दोनों को टालने के लिये पूर्णतः पर्याप्त है।
- सामान्यतः सभी राष्ट्र आयातों की तुलना में निर्यातों से अपने मुद्रा भंडार को संचित करते हैं। निर्यात के मुकाबले वाणिज्यिक वस्तुओं के आयात की कीमतों के साथ भारत को हमेशा अपने पण्य व्यापार खाते पर घाटे का सामना करना पड़ा है। परंतु उसी दौरान देश को परंपरागत रूप से अपने अदृश्य खाते पर अधिशेष का लाभ मिला है।
- अदृश्य खाते में मूलतः सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात से प्राप्तियाँ, प्रवासी श्रमिकों द्वारा आवक प्रेषण और पर्यटन तथा दूसरी तरफ बैंकिंग, बीमा और शिपिंग सेवाओं के अलावा ब्याज भुगतान, विदेशी ऋण पर लाभांश एवं रॉयल्टी, निवेश और प्रौद्योगिकी/ब्राण्डों को शामिल किया जाता है।
- लेकिन अदृश्य अधिशेष 2001-02 से 2003-04 के तीन वर्षों के अलावा व्यापार घाटे से अधिक नहीं है इसके परिणामस्वरूप देश लगातार चालू खाता घाटा दर्ज कर रहा है।
- चालू खाता घाटा 2012-13 के 88.16 बिलियन डॉलर से घटकर 2016-17 में 15.30 बिलियन डॉलर हो गया, इसका मुख्य कारण भारत के तेल आयात बिल में लगभग आधे की कमी होना है जो कि 164.04 बिलियन डॉलर से घटकर 86.87 बिलियन डॉलर हो गया।
- हालाँकि, 2017-18 में चालू खाता घाटा 48.72 बिलियन डॉलर हो गया और कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में पुनः बढ़ोत्तरी के कारण इस वित्त वर्ष में इसके 75 बिलियन डॉलर से ज़्यादा होने की उम्मीद है।
- भारत के संदर्भ में अब पूंजी प्रवाह के कम होते जाने के संकेत मिल रहे हैं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 1 अप्रैल से भारतीय इक्विटी और ऋण बाजारों में 7.9 बिलियन डॉलर की शुद्ध बिक्री की है। यह अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरों और यूरोपीय सेंट्रल बैंक की 2018 के अंत तक अपने मौद्रिक प्रोत्साहन कार्यक्रम को समाप्त करने की योजना के फलस्वरूप उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में एक बड़े बिकने वाले पैटर्न का हिस्सा है।
भारत द्वारा चालू खाता घाटे का प्रबंधन
- एक देश का विदेशी मुद्रा भंडार न केवल वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात से संचित होता है बल्कि विदेशी निवेश, वाणिज्यिक उधारियाँ या विदेशी सहायता के रास्ते पूंजी प्रवाह से भी प्राप्त होता है।
- इसी वज़ह से कई वर्षों से चालू खाता घाटा होने के बावजूद भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बना हुआ है क्योंकि अधिकांश वर्षों में भारत में शुद्ध पूंजी प्रवाह, चालू खाता घाटे से ज़्यादा रहा है। यही पूंजी प्रवाह का अधिशेष विदेशी मुद्रा भंडार के निर्माण में सहायक होता है।
- इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण वर्ष 2007-08 में देखने को मिला, जब शुद्ध विदेशी पूंजी अंतर्वाह 107.90 बिलियन डॉलर था, जो 15.74 बिलियन डॉलर के चालू खाता घाटे से काफी अधिक हो गया, जिससे एक वर्ष के दौरान ही विदेशी मुद्रा भंडार में 92.16 बिलियन डॉलर की अभिवृद्धि हो गई।
- हालाँकि, 2008-09 और 2011-12 जैसे कुछ वर्ष भी रहे हैं, जहाँ अपर्याप्त शुद्ध पूंजी प्रवाह के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में कमी देखी गई जिससे चालू खाता घाटे का वित्तपोषण भी संभव नहीं था।
भुगतान संतुलन के संबंध में भारत की विशेष स्थिति
- भारत और ब्राजील अर्थव्यवस्थाओं के अद्वितीय मामलों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्होंने भुगतान संतुलन के चालू खाते की बजाय अपनी पूंजी की ताकत पर बड़े स्तर के विदेशी मुद्रा भंडार बनाए हैं। भारत इस मामले में और भी विशेष है क्योंकि ब्राज़िलियन मुद्रा रियाल के विपरीत इसकी मुद्रा अपेक्षाकृत स्थिर है और लगातार कारोबारी उतार-चढ़ाव से होने वाले जोखिम से सुरक्षित है।
- सिद्धांततः, एक देश तब तक चालू खाता घाटे को वित्तपोषित करने के लिये पूंजीगत प्रवाह को आकर्षित कर सकता है जब तक इसकी विकास संभावनाएँ अच्छी हों और निवेश वातावरण भी समान रूप से बेहतर हो।
- हालाँकि, यदि ऐसा विदेशी निवेश सामान्य उत्पादन या घरेलू बाजार के लिये आयात करने के विपरीत अर्थव्यवस्था के विनिर्माण और सेवाओं की निर्यात क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में किया जाता है,तो भी सहायक होगा। लंबे समय तक यह चालू खाता घाटे को अधिक टिकाऊ स्तर तक सीमित करने में मदद कर सकता है।
सुरक्षा उपाय पर WTO का निर्णय अमेरिका के पक्ष में
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैश्विक व्यापार विवादों हेतु उच्चतम न्यायालय (Highest Court) द्वारा दिया गया एक विवादास्पद निर्णय अमेरिका के भारत, चीन, कनाडा, यूरोपीय संघ, मेक्सिको, नॉर्वे और अन्य के विरुद्ध एकतरफा दंडात्मक व्यापार उपाय को न्यायसंगत बनाने के लिये काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
प्रमुख बिंदु
- व्यापार विवादों के लिये विश्व व्यापार संगठन की सर्वोच्च अदालत अपीलीय निकाय ने अपने एक निर्णय में यह स्वीकार किया कि इंडोनेशिया द्वारा लगाए गए शुल्क सुरक्षा उपायों पर डब्ल्यूटीओ समझौते के तहत एक सुरक्षा उपाय नहीं है। इस तरह इंडोनेशिया के विरुद्ध लगाए गए आरोप को अपीलीय निकाय ने खारिज कर दिया।
- उल्लेखनीय है कि ताइपे और वियतनाम ने इंडोनेशिया द्वारा इस्पात एवं लोहे पर आरोपित शुल्क के विरुद्ध विश्व व्यापार संगठन की सर्वोच्च अदालत अपीलीय निकाय में शिकायत की गई थी जिसे अपीलीय इकाई द्वारा आम सहमति से खारिज़ कर दिया गया।
- अपीलीय निकाय द्वारा दिया गया निर्णय असामान्य था क्योंकि क्रिटिकल थ्रेसहोल्ड के मुद्दे पर शिकायतकर्त्ता और बचाव पक्ष के तर्क को खारिज़ कर दिया गया।
- गौरतलब है कि WTO के सदस्य आयात में अचानक हुए अप्रत्याशित उभार से “घरेलू उद्योग को नुकसान” से बचाने के लिये सुरक्षा उपायों को आरोपित करने के हकदार हैं।
- इसके अतिरिक्त जिस देश के उत्पादों पर सुरक्षा उपाय आरोपित किये गए वह सुरक्षा उपाय लागू करने वाले देश द्वारा WTO के समझौते में निर्धारित समझौते का पालन करने में असमर्थ रहने पर शुल्क आरोपित करने वाले देश के विरूद्ध शिकायत कर सकता है।
- न्यायाधीशों के समक्ष कार्यवाही में चीन, यूरोपीय संघ, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, रूस, अमेरिका और यूक्रेन के साथ भारत ने तीसरे पक्ष के रूप में भाग लिया था। भारत, चीन, यूरोपीय संघ, कोरिया और जापान ने कहा कि इंडोनेशिया द्वारा लगाए गए उपायों को सुरक्षा उपायों के रूप में माना जाना चाहिये।
- अमेरिका ने धारा 232 के तहत इस्पात पर 20% और एल्युमीनियम पर 10% के दंडात्मक शुल्कों को उचित ठहराया है। यह व्यापार और प्रशुल्क पर सामान्य समझौता (GATT)-1994 के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा प्रावधानों के साथ "संप्रभु निर्धारण" के रूप में कार्य करता है।
- अमेरिका ने बार-बार भारत, चीन, कनाडा, यूरोपीय संघ, मेक्सिको और नॉर्वे द्वारा की गई शिकायतों को खारिज कर दिया कि उसके द्वारा लगाए गए दंडनीय शुल्कों ने एक "प्रच्छन्न सुरक्षा" उपाय गठित किया है।
- इसके फलस्वरूप, पिछले महीने विवाद निपटान पैनल के समक्ष कार्यवाही के दौरान प्रतिशोध उपाय लागू करने को उचित ठहराया गया था। हालाँकि, अमेरिका छह देशों के तर्कों से असहमत था। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ने इस संदर्भ तर्क दिया कि
- उसने सुरक्षा उपायों को नहीं अपनाया है।
- इस तरह से देखा जाए तो अपीलीय निकाय का निर्णय आश्चर्यजनक है जो अमेरिका के इस्पात और एल्युमीनियम पर धारा 232 के तर्क को स्वीकार करता है। इससे यह भी ज़ाहिर हो जाता है कि WTO के अपीलीय निकाय ने अमेरिका को संतुष्ट करने के लिये अपना रुख बदल दिया जो व्यापार कानून और न्यायशास्त्र को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
ऋणग्रस्त हैं आधे कृषक परिवार: नाबार्ड
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा हाल ही में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, देश में आधे से अधिक कृषक परिवारों पर ऋण बकाया है और उनका औसत बकाया ऋण उनके औसत वार्षिक आय की तुलना में ज़्यादा है।
प्रमुख बिंदु
- नाबार्ड द्वारा किये गए इस अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण 2016-17 में 40,327 ग्रामीण परिवारों के 1.88 लाख लोगों को शामिल किया गया था।
- इनमें से केवल उन्हीं 48% परिवारों को कृषक परिवार के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनका कम-से-कम एक सदस्य कृषि में स्व-नियोजित है और जिन्हें पिछले वर्ष में कृषि गतिविधियों से उपज के मूल्य के रूप में 5,000 रुपए से अधिक प्राप्त हुआ है, चाहे उनके पास कोई ज़मीन हो या न हो।
- नाबार्ड ने पाया कि 52.5% कृषक परिवारों पर सर्वेक्षण की तारीख तक कम-से-कम एक ऋण बकाया था और इस प्रकार उन्हें ऋणी माना गया। ग्रामीण भारत में 42.8% गैर-कृषक परिवारों के पास कम-से-कम एक ऋण बकाया था।
उच्च देयता
- गैर-कृषक परिवारों की तुलना में कोई भी ऋण बकाया रखने वाले कृषक परिवारों के पास उच्च ऋण देयता थी। ऋणग्रस्त गैर-कृषक परिवारों के 76,731 रुपए की तुलना में ऋणग्रस्त कृषक परिवारों का औसत ऋण 1,04,602 रुपए था।
- इस सर्वेक्षण के अनुसार, कृषक परिवारों की औसत वार्षिक आय 1.07 लाख रुपए है जो कि उनके औसत बकाया ऋण से मात्र 2,500 रुपए अधिक है।
- सर्वेक्षण में यह पाया गया कि सर्वेक्षण के समय तक केवल 10.5% कृषक परिवारों को वैध किसान क्रेडिट कार्ड मिल गया था। इस योजना का उद्देश्य किसानों को सरलीकृत और लचीली सिंगल-विंडो प्रक्रिया के तहत बैंकों से ऋण उपलब्ध कराना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन परिवारों के पास किसान क्रेडिट कार्ड है उन्होंने स्वीकृत क्रेडिट सीमा का 66% उपयोग किया था।
- कृषक परिवारों द्वारा ऋण लेने का सबसे बड़ा कारण कृषि उद्देश्यों के लिये पूंजीगत व्यय था, जो कि उनके द्वारा लिये गए सभी ऋणों का एक-चौथाई था। जबकि 19% ऋण कृषि उद्देश्यों के लिये चल रहे खर्चों को पूरा करने और 19% ऋण घरेलू ज़रूरतों के लिये लिया गया था। आवास और चिकित्सा खर्च के लिये क्रमशः 11% और 12% ऋण लिये गए।
- जबकि किसानों के सभी वर्ग ऋणग्रस्त थे, वहीं ऋणग्रस्तता के सर्वाधिक मामले उस वर्ग में हैं जिस वर्ग में किसानों के पास दो हेक्टेयर से अधिक भूमि थी। इस श्रेणी के 60% परिवार कर्ज़ में हैं।
- 0.4 हेक्टेयर से कम भूमि धारण करने वाले छोटे और सीमांत किसानों के 50% से कम परिवार ऋणग्रस्त थे। अधिक भूमि वाले लोगों की कई प्रकार के ऋण लेने की अधिक संभावना थी।
राज्य संबंधित आँकड़े
- दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना (79%), आंध्र प्रदेश (77%) और कर्नाटक (74%) में कृषक परिवारों की ऋणग्रस्तता का उच्चतम स्तर देखा गया। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश (69%), मणिपुर (61%), तमिलनाडु (60%), केरल (56%) और ओडिशा (54%) सर्वाधिक ऋणग्रस्त कृषक परिवार वाले राज्य हैं।
- जुलाई 2015 से जून 2016 के बीच लिये गए ऋणों के संदर्भ में इस सर्वेक्षण में पाया गया कि कृषक परिवारों ने अपने आधे से भी कम ऋण अर्थात् 46% ऋण वाणिज्यिक बैंकों से लिया था। इसके अतिरिक्त 10% ऋण स्वयं सहायता समूहों से, लगभग 40% ऋण गैर-संस्थागत स्रोतों जैसे- रिश्तेदारों, दोस्तों, साहूकारों और ज़मींदारों से लिया गया था।
- जबकि रिश्तेदारों और दोस्तों से प्राप्त ऋण ब्याज से मुक्त हो सकते हैं और समुदायों में सामाजिक एकीकरण को प्रदर्शित कर सकते हैं फिर भी सर्वेक्षण में पाया गया है कि 11.5% परिवारों के बड़े वर्ग ने स्थानीय साहूकारों और ज़मींदारों पर ऋण निर्भरता प्रदर्शित की, जो उन्हें अत्यधिक ब्याज का भुगतान करके शोषण के लिये बाध्य करता है।
- स्थानीय साहूकारों का सहारा लेने वाले व्यक्तियों में अक्सर अशिक्षित या बेहद गरीब लोग शामिल होते हैं जो औपचारिक संस्थानों से ऋण के लिये पात्र नहीं होते हैं, या फिर ऐसे परिवार होते हैं जिनके पास मज़बूत सामाजिक संजाल नहीं होता जो कि आवश्यकता के समय उनकी मदद कर सके।
नाबार्ड (NABARD)
- नाबार्ड कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये एक शीर्ष बैंक है। इसकी स्थापना शिवरमन समिति की सिफारिशों के आधार पर संसद के एक अधिनियम द्वारा 12 जुलाई, 1982 को की गई थी।
- इसका कार्य कृषि, लघु उद्योग, कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्पों के संवर्द्धन और विकास के लिये ऋण प्रवाह को उपलब्ध कराना है।
- इसके साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के अन्य संबद्ध आर्थिक क्रियाओं को समर्थन प्रदान कर गाँवों का सतत् विकास करना है।
बढ़ सकता है भारत का चालू खाता घाटा : मूडीज़
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मूडीज़ तथा अन्य आर्थिक विशेषज्ञों ने कहा है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और रुपए के मूल्य में गिरावट के कारण वित्त वर्ष 2018-19 में भारत का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit- CAD) बढ़कर कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2.5% तक पहुँच सकता है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में तुर्की में हुए राजनीतिक उथल-पुथल के चलते डॉलर के मुकाबले रुपया 70.32 के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया। वहीं, चीन की ओर से आर्थिक स्थिति को ठीक रखने के लिये संपत्तियों को सुरक्षित रखने पर ज़ोर देने के कारण भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रा पर दबाव बढ़ गया है।
विदेशी मुद्रा के अंत: और ब्राह्य प्रवाह के बीच के अंतर को चालू खाता घाटा CAD कहते है। |
चालू खाता घाटा में वृद्धि के कारण
- भारत का चालू खाता घाटा (CAD) जिसके 2018-19 में 2.5% तक बढ़ने की संभावना है, वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान यह 1.5% था।
- इसका प्रमुख कारण तेल की कीमतों में वृद्धि है। उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2017-18 में कुल तेल आयात GDP का 2.6% था, जिसके वित्तीय वर्ष 2018-2019 में और अधिक होने की संभावना व्यक्त की गई है।
- रुपए के मूल्य में गिरावट भारत के मौजूदा चालू खाता घाटे (CAD) को भी दर्शाता है।
- अमेरिकी फेडरल की मौद्रिक नीति के मज़बूत होने के कारण पूरी दुनिया में अमेरिकी डॉलर कि तुलना में अन्य देशों की मुद्राओं के मूल्य में गिरावट आई है।
- अर्जेंटीना, वेनेजुएला और तुर्की सहित कई बड़े उभरते बाज़ारों में पैदा हुए आर्थिक संकट भी भारतीय रुपए के लिये चिंता का विषय है जिसने वैश्विक निवेशकों को उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रा और सामान्य शेयरों के बारे में सतर्क कर दिया है।
रुपए के मूल्य में गिरावट का प्रभाव
नकारात्मक प्रभाव
- तेल का आयात महँगा होगा जिसके चलते भारत में महँगाई दर बढ़ने की संभावना है।
- बढ़ी हुई महँगाई दर का असर बुनियादी तथा अन्य आधारभूत संरचनाओं पर पड़ेगा।
- हालाँकि कमज़ोर होता रुपया निर्यातकों को लाभ पहुँचाएगा फिर भी व्यापार घाटे के कम होने की संभावना नहीं है, जो जुलाई 2018 में 18.02 बिलियन डॉलर के पाँच साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
सकारात्मक प्रभाव
- भारतीय मुद्रा के अधिमूल्यित (Overvalued) होने के कारण निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को हानि हो रही थी। ऐसे में रुपए का मूल्य गिरने के कारण भारतीय वस्तुओं तथा सेवाओं की निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में सुधार होगा।
- इसका सबसे अधिक लाभ निर्यात करने वाली आईटी कंपनियों को मिलेगा।
मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस (Moody's Investors Service)
- मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस (Moody's Investors Service), मूडीज़ कॉरपोरेशन की बॉण्ड-क्रेडिट की रेटिंग करने वाली कंपनी है। इसको संक्षेप में केवल 'मूडीज़' कहा जाता है।
- मूडीज़ की स्थापना 1909 में जॉन मूडी द्वारा स्टॉक और बॉण्ड तथा बॉण्ड और बॉण्ड रेटिंग से संबंधित सांख्यिकी का मैनुअल बनाने के लिये की गई थी।
- यू.एस. सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन के द्वारा वर्ष 1975 में कंपनी को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सांख्यिकी रेटिंग संगठन (NRSRO) के रूप में चिह्नित किया गया था।
- मूडीज़ की निवेशक सेवा वाणिज्यिक और सरकारी संस्थाओं के द्वारा जारी किये गए बॉण्डों पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय अनुसंधान का कार्य करती है।
- यह दुनिया की तीन सबसे बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (standard and Poors) और फिच समूह (Fitch Group) के साथ शामिल है।
रुपए के मूल्य में गिरावट के मायने
संदर्भ
व्यापक व्यापार घाटे के साथ हाल ही में विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के कारण भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट दर्ज़ की गई और कुछ ही समय पहले यह अब तक के निचले स्तर पर पहुँच गया। रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था तक सभी के लिये चिंता का विषय बनी हुई है। ऐसे में यह जानकारी होना आवश्यक है कि रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट के मायने क्या हैं?
रुपया कमज़ोर या मज़बूत क्यों होता है?
- विदेशी मुद्रा भंडार के घटने या बढ़ने का असर किसी भी देश की मुद्रा पर पड़ता है। चूँकि अमेरिकी डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना गया है जिसका अर्थ यह है कि निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं की कीमत डॉलर में अदा की जाती है।
- अतः भारत की विदेशी मुद्रा में कमी का तात्पर्य यह है कि भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि तथा निर्यात मूल्य में कमी।
- उदहारण के लिये भारत को कच्चा तेल आदि खरीदने हेतु मूल्य डॉलर के रूप में चुकाना होता है, इस प्रकार भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार से जितने डॉलर खर्च कर तेल का आयात किया उतना उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ इसके लिये भारत उतने ही डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करे तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार में हुई कमी को पूरा किया जा सकता है। लेकिन यदि भारत से किये जाने वाले निर्यात के मूल्य में कमी हो तथा आयात कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही हो तो ऐसी स्थिति में डॉलर खरीदने की ज़रूरत होती है तथा एक डॉलर खरीदने के लिये जितना अधिक रुपया खर्च होगा वह उतना ही कमज़ोर होगा।
विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?प्रत्येक देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिसका प्रयोग वस्तुओं के आयत –निर्यात में किया जाता है, इसे ही विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। भारत में समय-समय पर इसके आंकडे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं। |
मुद्रास्फीति पर असर
- मुद्रा के मूल्य में ह्रास का पहला प्रभाव है कि आयात महँगा हो जाता है, जबकि निर्यात सस्ता।
- इसका कारण स्पष्ट है कि समान मात्रा में किसी वस्तु के आयात के लिये खरीदार को अधिक रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जबकि उतनी ही मात्रा में निर्यात करने पर दूसरे देश को कम डॉलर खर्च करने पड़ते हैं।
- अधिक महँगे आयात के कारण मुद्रास्फीति के बढ़ने की संभावना होती है, खासकर भारत जैसे देश में जहाँ कच्चा तेल, रत्न एवं आभूषण के साथ इलेक्ट्रिक वस्तुओं का एक बड़ा हिस्सा आयात किया जाता है।
- इसके अलावा, कमज़ोर होता रुपया तेल आयात के बिल को भी प्रभावित करता है क्योंकि इससे प्रति बैरल कच्चे तेल की खरीद पर अधिक रुपए खर्च होते हैं, जो मुद्रास्फीति को बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाता है।
मुद्रास्फीति (Inflation)
|
सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पर क्या असर पड़ता है?
- सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारकों की संख्या को देखते हुए यह एक और जटिल सवाल है। एक तरफ, महँगे और तैयार माल की कीमतों में होने वाली वृद्धि का सकल घरेलू उत्पाद पर सकारात्मक प्रभाव होना चाहिये। लेकिन उच्च कीमतों के कारण मांग में कमी हो सकती है।
- रुपए में कमज़ोरी के कारण निर्यात में वृद्धि होती है, जबकि आयात में कमी हो सकती है।
आपके लिये रुपए के मूल्य में गिरावट का क्या मतलब है?
- भारत अपनी ज़रूरत का अधिकांश पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है। रुपए में गिरावट के कारण पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महँगा हो जाएगा जिसके कारण तेल कंपनियाँ पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में वृद्धि कर सकती हैं। इन कीमतों में वृद्धि के परिणामस्वरूप माल की ढुलाई में वृद्धि होगी, जिसके चलते महँगाई बढ़ सकती है।
- भारत कच्चे तेल के अलावा बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है। रुपए में कमज़ोरी से घरेलू बाज़ार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतों में भी वृद्धि हो सकती है।
- रुपए में गिरावट के कारण माल एवं तेलों के महँगे होने के अलावा विदेशों में भ्रमण अधिक महँगा हो जाता है क्योंकि भारतीय पर्यटकों को डॉलर के मुकाबले अधिक रुपए अदा करने पड़ते हैं। इसके विपरीत घरेलू पर्यटन में वृद्धि हो सकती क्योंकि अधिकतर पर्यटक इस दौरान भारत आते हैं क्योंकि उनकी मुद्रा अब और अधिक खरीद कर सकती है।
- मध्यम अवधि में निर्यात उन्मुख उद्योग भी अधिक नौकरियाँ सृजित कर सकते हैं।
प्रीलिम्स फैक्ट्स: 20 अगस्त, 2018
पीएफआरडीए ने साइबर सुरक्षा से निपटने के लिये एक स्थायी समिति
पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) ने ग्राहकों के हितों की रक्षा के मद्देनज़र साइबर सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिये कदम उठाने का सुझाव देने हेतु एक स्थायी समिति की स्थापना की है।
पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण
- इस अधिनियम को 19 सितंबर, 2013 में अधिसूचित और 1 फरवरी, 2014 से लागू किया गया।
- राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) जिसके अभिदाताओं में केंद्र सरकार/राज्य सरकारों निजी संस्थानों/संगठनों और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी शामिल हैं, का नियमन पीएफआरडीए द्वारा किया जाता है।
- भारत में वृद्धावस्था आय सुरक्षा से सबंधित योजनाओं के अध्ययन के लिये भारत सरकार ने वर्ष 1999 में OASIS ( वृद्धावस्था सामजिक और आय सुरक्षा) नामक राष्ट्रीय परियोजना को मंजूरी दी थी।
- भारत सरकार द्वारा अंशदान पेंशन प्रणाली को 22 दिसंबर, 2003 में अधिसूचित किया गया जो 1 जनवरी, 2004 से लागू हुई और जिसे अब राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के नाम से जाना जाता है।
- 1 मई, 2009 से एनपीएस का विस्तार स्वैच्छिक आधार पर देश के सभी नागरिकों के लिये किया गया जिसमें स्वरोज़गार, पेशवरों और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों को भी शामिल किया गया है।
गेहूँ के जटिल जीनोम को समझने में मिली सफलता
एक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक सफलता में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक दल ने, जिसमें 18भारतीय भी हैं, गेहूँ के जटिल जीनोम को समझने में सफलता प्राप्त की है जिसे अभी तक असंभव माना जा रहा था।
- इस जानकारी से उन जीनों की पहचान करने में मदद मिलेगी जो कि अनाज के उत्पादन, गुणवत्ता, बीमारियों और कीड़ों के प्रति प्रतिरोध के साथ-साथ सूखा, गर्मी, जलभराव एवं खारे पानी के प्रति गेहूँ की सहनशीलता के लिये उत्तरदायी होते हैं।
- के जीनोम को समझने में मिली सफलता से मौसम की मार को सहन कर सकने योग्य गेहूँ की प्रजातियों को विकसित करनें में मदद मिलेगी जिससे कृषि उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सीमित किया जा सकेगा।
SAAW और हेलीना का सफल परीक्षण
देश में विकसित किये गए SAAW (स्मार्ट एंटी एयरफील्ड वेपन) का परीक्षण राजस्थान के चंदन रेंज से भारतीय वायुसेना के जगुआर विमान के माध्यम से सफलतापूर्वक किया गया।
- इसके अलावा टैंक रोधी निर्देशित मिसाइल हेलीना का भी राजस्थान के पोखरण में सफल परीक्षण किया गया।
- इन दोनों हथियारों को डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है।
- SAAW युद्धक सामग्री से लैस था और यह सटीकता के साथ लक्ष्य पर निशाना साधने में सफल रहा।
- इसमें बेहतरीन दिशासूचक यंत्र का इस्तेमाल किया गया है, जो विभिन्न ज़मीनी लक्ष्यों को नष्ट करने में सक्षम है।
- हेलीना दुनिया में अत्याधुनिक टैंक रोधी हथियारों में से एक है।
- SAAW को भारतीय वायुसेना के लिये जबकि हेलीना मिसाइल को भारतीय थलसेना के लिये विकसित किया जा रहा है।
एशियन गेम्स 2018:बजरंग पूनिया ने जीता पहला स्वर्ण पदक
हरियाणा के झज्जर ज़िले के 24 वर्षीय भारतीय पहलवान बजरंग पूनिया ने 18वें एशियन गेम्सके पहले ही दिन देश के लिये पहला स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
- बजरंग ने यह मेडल पुरुषों के 65 किलोग्राम भारवर्ग की फ्रीस्टाइल स्पर्द्धा में जापान के पहलवान ताकातिनी दायची को हराकर जीता।
- बजरंग ने सेमीफाइनल मुकाबले में मंगोलिया के बाटमगनाई बैटचुलुन को 10-0 से हराकर फाइनल में प्रवेश किया।
बजरंग पूनिया की बड़ी उपलब्धियाँ
स्वर्ण पदक | रजत पदक | कांस्य पदक |
एशियन गेम्स 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 एशियन चैंपियनशिप 2017 एशियन इंडोर गेम्स 2017 कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप 2017 कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप 2016 |
एशियन गेम्स 2014 एशियन चैंपियनशिप 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 वर्ल्ड अंडर-23 चैंपियनशिप 2013 |
एशियन चैंपियनशिप 2018 वर्ल्ड चैंपियनशिप 2013 एशियन चैंपियनशिप 2013 |
एशियन गेम्स के बारे में
- 18वें एशियाई खेलों (एशियन गेम्स) का आयोजन इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में किया जा रहा है। इससे पहले वर्ष 1962 में जकार्ता में इन खेलों का आयोजन किया गया था।
- एशियाई खेल- 2018 का आयोजन इंडोनेशिया के जकार्ता और पालेमबांग में किया जा रहा है। यह पहली बार है जब एशियाई खेलों का आयोजन दो शहरों में किया जा रहा है।
- एशियाई खेल- 2018 के उद्घाटन समारोह में भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने भारतीय दल की अगुवाई की।
- एशियाई खेलों में एशिया के 45 देशों के लगभग 11,000 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। ये सभी खिलाड़ी 40 खेलों की 465 स्पर्द्धाओं में भाग लेंगे।
- एशियाई खेलों को एशियाड नाम से भी जाना जाता है। इसका आयोजन प्रत्येक चार वर्ष में किया जाता है।
- 18वें एशियाई खेलों के तीन शुभंकर भिन-भिन (स्वर्ग की चिड़िया), अतुंग (एक हिरण) और काका (एक गैंडा) है।
- इन तीन शुभंकरों ने एक शुभंकर द्रावा का स्थान लिया है। ये तीनों शुभंकर देश के पूर्वी, पश्चिमी और मध्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।