डेली न्यूज़ (20 Jul, 2019)



जनजातियों की शैक्षिक स्थिति में सुधार

चर्चा में क्यों?

केरल के सुदूर क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातीय आबादी राज्य साक्षरता मिशन (State Literacy Mission-SLM) के अंतर्गत 100% साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करने की राह पर अग्रसर है।

प्रमुख बिंदु

  • अपने प्रयासों के तहत, SLM ने प्रभावी स्कूली रणनीतियों को विकसित करने हेतु एक रूपरेखा के अंतर्गत समग्र (Samagra) के अलावा निम्नलिखित कार्यक्रम भी लागू किये हैं जिनका उद्देश्य हाशिये पर रहने वाले लोगों के मध्य निरक्षरता अंतराल को कम करना है-
    • वायनाड लिटरेसी इक्वीवैलेंसी (Wayanad Literacy Equivalency)
    • अट्टापदी लिटरेसी इक्वीवैलेंसी कार्यक्रम (Attappadi Literacy Equivalency programmes)
  • इन पहलों के माध्यम से वर्ष 2020 के अंत तक वायनाड में आदिवासी लोगों के बीच 100% साक्षरता सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी।
  • अब तक, साक्षरता अभियान ने वायनाड ज़िले की 2,000 बस्तियों के बीच अपनी पहुँच बनाई है।
  • दूसरे चरण में SLM ने 200 आदिवासी बस्तियों में 4,371 घरों का सर्वेक्षण किया और इनमें 3,133 महिलाओं सहित 5,342 व्यक्तियों को निरक्षर पाया।
  • शिक्षकों की मदद से 3,179 निवासियों जिनमें 2,590 महिलाएँ भी शामिल थीं, की साक्षरता परीक्षा ली गई और इस साक्षरता परीक्षा के दौरान उनमें प्रगति भी देखी गई।
  • अब परियोजना के अंतर्गत तीसरे चरण में शेष 1,517 आवासों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, और इसमें व्यापक जन भागीदारी देखी गई है। जल्द ही यहाँ भी कक्षाएँ शुरू हो जाएंगी।

जनजातीय शिक्षा में समकालीन चिंताएँ:

  • उच्च ड्रॉपआउट दर: विशेष रूप से माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक चरणों में जनजातीय छात्रों के बीच विद्यालय छोड़ने की दर बहुत अधिक है (स्कूल शिक्षा के आँकड़े, 2010-11 के अनुसार दसवीं कक्षा में 73 प्रतिशत, ग्यारहवीं कक्षा में 84 प्रतिशत और बारहवीं कक्षा में 86 प्रतिशत)।
    • RTE अधिनियम के पहले और उपरांत कार्यान्वित ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ जनजातीय समुदाय के छात्रों को पढ़ने, लिखने और अंकगणित में बुनियादी कौशल हासिल करने का अवसर नहीं देता।
  • 'कुशल’ शिक्षकों की कमी: RTE अधिनियम के तहत निर्धारित पात्रता मानदंड को पूरा करने वाले शिक्षकों की कमी भी जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा के अधिकार की पूर्ति में एक बाधा है। प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी के कारण जनजातीय छात्रों की उपलब्धि का स्तर कम रहता है।
  • जनजातीय छात्रों के लिये भाषायी बाधाएँ: भारत में अधिकांश जनजातीय समुदायों की अपनी मातृभाषा है, लेकिन अधिकांश राज्यों में, कक्षा शिक्षण के लिये आधिकारिक/क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग किया जाता है, जिन्हें प्राथमिक स्तर पर जनजातीय बच्चे नहीं समझ पाते।
  • घुमंतू जनजातियों की शिक्षा: घुमंतू जनजातियाँ मौसम, व्यवसायों और आजीविका के अवसरों के आधार पर लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर गमन करती रहती हैं। इस कारण इस समुदाय के बच्चे प्राथमिक स्तर की स्कूली शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

सरकार द्वारा की गई पहलें

  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय: वर्ष 2022 तक प्रत्येक आदिवासी क्षेत्र में नवोदय मॉडल पर आधारित आवासीय विद्यालय।
  • राजीव गांधी राष्ट्रीय फैलोशिप योजना (Rajiv Gandhi National Fellowship Scheme-RGNF): RGNF को वर्ष 2005-2006 में ST समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिये प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से लाई गई थी।
  • प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजनाएँ।
  • जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र: इस योजना का उद्देश्य ST छात्रों के कौशल को उनकी योग्यता और वर्तमान बाज़ार के रुझान के आधार पर विकसित करना है।

सिफारिशें

  • कोठारी आयोग (Kothari Commission) ने जनजातियों (ST) की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने पर ज़ोर दिया।
  • शाशा समिति (XaXa Committee) ने शिक्षा में लैंगिक असमानता को दूर करने पर अधिक ध्यान देने की सिफारिश की।
  • अभिभावकों में व्यवहार में परिवर्तन लाने हेतु जागरूकता अभियान, नुक्कड़ नाटक, शिविर परामर्श सत्र का आयोजन किया जाना चाहिये।
  • कैरियर या नौकरी उन्मुख पाठ्यक्रम पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।

स्थानीय शिक्षकों की भर्ती की जानी चाहिये जो आदिवासी संस्कृति और प्रथाओं को समझते हों तथा उनका सम्मान करते हों और इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि वे स्थानीय भाषा से अच्छी तरह से परिचित हों।

स्रोत: द हिंदू


मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को अधिक समावेशी और कुशल बनाने हेतु लोकसभा ने मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 [The Protection of Human Rights (Amendment) Bill] पारित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • हालिया संशोधन के तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो।
  • राज्य आयोग के सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर 2 से 3 किया जाएगा, जिसमे एक महिला सदस्य भी होगी।
  • मानवाधिकार आयोग में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और दिव्यांगजनों संबंधी मुख्य आयुक्त को भी सदस्यों के रूप में सम्मिलित किया जा सकेगा।
  • राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों के कार्यकाल की अवधि को 5 वर्ष से कम करके 3 वर्ष किया जाएगा और वे पुनर्नियुक्ति के भी पात्र होंगे।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग और मानवाधिकार न्यायालयों के गठन की व्यवस्था करता है।

संशोधन से क्या लाभ होंगे?

पेरिस सिद्धांत (Paris Principles) के आधार पर इस प्रस्तावित संशोधन से राष्ट्रीय आयोग के साथ-साथ राज्य आयोगों को भी स्वायत्तता, स्वतंत्रता, बहुलवाद और मानव अधिकारों के प्रभावी संरक्षण तथा उनका संवर्द्धन करने हेतु बल मिलेगा।

पेरिस सिद्धांत (Paris Principles)

  • 20 दिसंबर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु पेरिस सिद्धांतों को अपनाया था।
  • इसने दुनिया के सभी देशों को राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएँ स्थापित करने के लिये निर्देश दिये थे।
  • पेरिस सिद्धांतों के अनुसार, मानवाधिकार आयोग एक स्वायत्त एवं स्वतंत्र संस्था होगी।
  • यह शिक्षा, मीडिया, प्रकाशन, प्रशिक्षण आदि माध्यमों से मानव अधिकारों को भी बढ़ावा देता हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को की गई थी।
  • मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • यह संविधान द्वारा दिये गए मानवाधिकारों जैसे- जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि की रक्षा करता है और उनके प्रहरी के रूप में कार्य करता है।

स्रोत: पीआईबी


फास्टैग (FASTag)

चर्चा में क्यों ?

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इस वर्ष 1 दिसंबर, 2019 से देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित टोल फ्री प्लाज़ा पर सभी लेन को ‘फास्टैग लेन’ (FASTag Lanes) घोषित करने का निर्णय किया है।

प्रमुख बिंदु :

  • राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दर निर्धारण एवं संग्रह) नियम, 2008 के अनुसार टोल प्लाज़ा में फास्टैग लेन केवल फास्टैग उपयोगकर्त्ताओं की आवाजाही के लिये आरक्षित होती है। इस नियम के अंतर्गत प्रावधान है कि गैर-फास्टैग उपयोगकर्त्ताओं द्वारा फास्टैग लेन से गुजरने पर उनसे दोहरा शुल्क वसूला जाता है।
  • हालाँकि प्रत्येक टोल प्लाज़ा पर बहुत बड़े आकार (Oversized) के वाहनों के सुगम आवागमन व निगरानी के लिये एक हाइब्रिड लेन होगी जिसे समयबद्ध रूप से फास्टैग लेन में परिवर्तित किया जा सकेगा। इस लेन में भुगतान के लिये फास्टैग के अलावा अन्य माध्यम भी स्वीकार किये जाएंगे।
  • उपरोक्त निर्णय डिजिटल माध्यम से त्वरित शुल्क भुगतान को बढ़ावा देने, वाहनों की सुचारू आवाजाही को सुनिश्चित करने और टोल प्लाज़ा पर लगने वाले ट्रैफिक जाम को रोकने के उद्देश्य से लिया गया है।
  • आर.एफ.आई.डी. (RFID) आधारित फास्टैग वाहन की विंडस्क्रीन पर लगाए जाते है। इसमें प्रीपेड भुगतान अथवा संबद्ध बचत खाते से शुल्क के सीधे भुगतान की सुविधा होती है और वाहनों को लेन-देन के लिये रुके बिना आवागमन की सुविधा मिलती है।
  • वर्तमान में बिना फास्टैग वाले वाहनचालक भी फास्टैग लेन का उपयोग करते हैं जिसके कारण इस लेन में ट्रैफिक जाम की स्थिति बन जाती है और फास्टैग लगाने का उद्देश्य विफल हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप फास्टैग के माध्यम से टोल उगाही में वांछित वृद्धि नहीं हो पाती है।
  • 1 दिसंबर, 2019 से इसके कार्यान्वयन के लिये सभी टोल प्लाज़ा पर आवश्यक व्यक्तियों की नियुक्ति एवं इलेक्ट्रॉनिक अवसंरचना का प्रावधान किया जाएगा।

फास्टैग क्या है?

  • फास्ट टैग एक रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) कार्ड होता है जिसे वाहन की विंडस्क्रीन पर लगाया जाता है।
  • वाहनों को रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) कार्ड के रूप में एक रेडियो फ्रीक्वेंसी टैग (Radio Frequency Tag) जारी किया जाता है।
  • प्रत्येक टोल प्लाज़ा पर एक RFID रीडर लगा होता है जो एक सेंसर के रूप में कार्य करता है और रेडियो फ्रीक्वेंसी द्वारा कार्ड की वैधता एवं धनराशि की जाँच करता है।
  • यदि कार्ड में धनराशि उपलब्ध है तो टोल शुल्क का भुगतान स्वतः ही कार्ड से हो जाता है और वाहन टोल पर बिना रुके वहाँ से गुज़र जाता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


IUCN की रेड लिस्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों से संबंधित लाल सूची (Red List) से पता चलता है कि मूल्यांकित की गई अधिकांश प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है।

प्रमुख बिंदु :

  • IUCN की सूची में 1,05,732 प्रजातियों का आकलन किया गया है, जिसमें से 28,338 प्रजातियों पर विलुप्ति का ख़तरा मंडरा रहा है।
  • कुल मूल्यांकन में से 873 पहले से ही विलुप्त हैं।
  • यह सूची दर्शाती है कि ताज़े पानी और समुद्री पानी में रहने वाले कई जीवों की संख्या में कमी की दर काफी अधिक है। उदाहरण के लिये, जापान की स्थानीय ताज़े पानी की 50 प्रतिशत से अधिक मछलियाँ विलुप्ति की कगार पर हैं।
  • स्थानीय नदियों की संख्या में हो रही कमी और लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण को इस प्रकार की कमी का मुख्य कारण माना जा सकता है।
  • IUCN द्वारा मूल्यांकित 50 प्रतिशत प्रजातियों को ‘कम चिंताजनक’ प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है। जिसका अर्थ यह हुआ की शेष बची 50 प्रतिशत प्रजातियाँ खतरे के अलग-अलग स्तर पर हैं और उनके विषय में चिंता किया जाना आवश्यक है।
  • सूची से यह स्पष्ट होता है कि मानवजाति वन्यजीवों का आवश्यकता से अधिक शोषण कर रही है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ

(The International Union for Conservation of Nature)

  • IUCN सरकारों तथा नागरिकों दोनों से मिलकर बना एक सदस्यता संघ है।
  • यह दुनिया की प्राकृतिक स्थिति को संरक्षित रखने के लिये एक वैश्विक प्राधिकरण है जिसकी स्थापना वर्ष 1948 में की गई थी।
  • इसका मुख्यालय स्विटज़रलैंड में स्थित है।
  • IUCN द्वारा जारी की जाने वाली लाल सूची दुनिया की सबसे व्यापक सूची है, जिसमें पौधों और जानवरों की प्रजातियों की वैश्विक संरक्षण की स्थिति को दर्शाया जाता है।
    • IUCN प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का मूल्यांकन करने के लिये कुछ विशेष मापदंडों का उपयोग करता है। ये मानदंड दुनिया की अधिकांश प्रजातियों के लिये प्रासंगिक हैं।
    • इसे जैविक विविधता की स्थिति जानने के लिये सबसे उत्तम स्रोत माना जाता है।
    • यह SDG का एक प्रमुख संकेतक भी है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


RCEP तथा भारत-चीन व्यापार मुद्दा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) संधि के तहत चीन ने अपने बाज़ार को और अधिक उदार बनाने की बात कही है, लेकिन चीन के इस तरह के निर्णय से भारत के समक्ष और अधिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई है।

प्रमुख बिंदु

  • चीन एवं भारत के बीच विभिन्न वार्ताओं के दौरान व्यापार के लिये बहुत सी वस्तुओं पर टैरिफ समाप्त किये गए हैं। हाल ही में चीन ने और अधिक वस्तुओं पर टैरिफ समाप्त करने का प्रस्ताव दिया है।
  • चीन और भारत दोनों ही RCEP के सदस्य देश हैं, लेकिन भारत को RCEP के तहत टैरिफ समाप्त करने से लाभ की संभावना कम है क्योंकि पहले से ही चीन का भारत से व्यापार आधिक्य (Trade Surplus) है।
  • RCEP के बहुत से भागीदार देश, जिसमें 10 सदस्य देशों वाला आसियान (ASEAN), जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी शामिल हैं, चीन के इस प्रस्ताव पर भारत को अतिशीघ्र निर्णय लेने के लिये दबाव बना रहे हैं।
  • RCEP सदस्य देशों द्वारा इस वर्ष के अंत तक RCEP समझौता किया जा सकता है, जिसके लिये 3 सदस्यीय टीम बनाई गई है।
  • यह समझौता लागू होने के बाद RCEP दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन सकता है क्योंकि इसके अंतर्गत सदस्य देशों के रूप में इसकी हिस्सेदारी वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 25 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार में 30 प्रतिशत, वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 26 प्रतिशत तथा कुल वैश्विक जनसंख्या का 45 प्रतिशत है।

भारत- चीन व्यापार भागीगारी

  • पिछले वित्त वर्ष में चीन ने भारत को 70 बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि भारत द्वारा चीन को किया जाने वाला निर्यात 16 बिलियन डॉलर का था।
  • भारत इस बात से आशंकित है कि टैरिफ उदारीकरण के बाद दोनों देशों के निर्यात में तो वृद्धि होगी, लेकिन चीन की वृद्धि भारत की तुलना में अनुपातिक रूप से बहुत अधिक होगी जिससे भारत का व्यापार घाटा बहुत बढ़ जाएगा।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • वर्तमान में भारतीय उद्योग चीनी बाज़ार में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के बजाय अपने घरेलू बाज़ार से चीनी सामानों को कम करने पर अधिक केंद्रित हैं।
  • भारतीय उद्योग, विशेषकर इस्पात, कपड़ा, ऑटोमोबाइल और इंजीनियरिंग क्षेत्रों ने सरकार से पहले से ही चीन से व्यापार संबंधों को कम करने का अनुरोध किया है।
  • उद्योग प्रतिनिधियों ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के साथ हाल ही में हुई बैठक में चीन से आयातित 42 प्रतिशत वस्तुओं पर करों को समाप्त करने के प्रस्ताव पर बने रहने का सुझाव दिया है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी

(Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP)

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement-FTA) है, जो आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) के बीच किया जाना है।

  • ज्ञातव्य है कि इन देशों का पहले से ही आसियान से मुक्त व्यापार समझौता है।
  • वस्तुतः RCEP वार्ता की औपचारिक शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में हुई थी।
  • RCEP को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (Trans Pacific Partnership- TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • RCEP के सदस्य देशों की कुल जीडीपी लगभग 21.3 ट्रिलियन डॉलर और जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 45 प्रतिशत है।
  • सदस्य देश: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड सहभागी (Partner) देश हैं।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


ADB ने घटाया भारत का विकास दर अनुमान

चर्चा में क्यों ?

ADB ने भारत की वर्तमान वित्तीय वर्ष (2019-2020) की विकास दर को 7.2% से घटाकर 7% रहने का अनुमान व्यक्त किया।

प्रमुख बिंदु:

  • एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank- ADB) ने हाल ही में ‘एशियन डेवलपमेंट आउटलुक 2019’ (Asian Development Outlook 2019) जारी की जिसमें वर्तमान वित्तीय वर्ष में भारत की विकास दर 7% रहने की संभावना जताई गई है।
  • ADB ने वर्ष 2019, 2020 में दक्षिण एशिया की विकास दर में क्रमशः 6.6% से 6.7% की वृद्धि बनी रहने की संभावना जताई है।
  • वैश्विक मांग में गिरावट और घरेलू स्तर पर राजस्व में कमी की संभावना के कारण बैंक ने अप्रैल में भारत की विकास दर के अनुमान को 2019-20 के दौरान 7.6% से घटाकर 7.2% कर दिया था।
  • पिछले महीने ‘फिच रेटिंग्स’ ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में विनिर्माण और कृषि क्षेत्रों में गिरावट के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर को 6.8% से घटाकर 6.6% कर दिया था।
  • ADB ने संभावना व्यक्त की है कि कारोबारी माहौल में सुधार, बैंकों की मज़बूती और बेहतर मानसून से कृषि की स्थिति सुधरने जैसे कारकों की वज़ह से भारत की विकास दर वित्तीय वर्ष 2021 में फिर से 7.2% से अधिक हो सकती है।
  • अमेरिका ने सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (Generalized System of Preferences) के तहत भारत की व्यापार वरीयता को समाप्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय निर्यातों का लाभ घटकर केवल 1.8% रह गया।

सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली

(Generalized System of Preferences)

  • GSP विकसित देशों (सुविधा प्रदाता देश) द्वारा विकासशील देशों (सुविधा प्राप्तकर्त्ता या लाभार्थी देश) के लिये विस्तारित एक अमेरिकी अधिमान्य प्रणाली है।
  • वर्ष 1974 के ट्रेड एक्ट (Trade Act) के तहत वर्ष 1976 में शुरू की गई GSP व्यवस्था के अंतर्गत विकासशील देशों को अमेरिका को निर्यात की गई कुछ सूचीबद्ध वस्तुओं पर शुल्कों से छूट मिलती है।
  • GSP अमेरिका की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी व्यापार तरजीही (Business Preferential) योजना है, जिसका उद्देश्य हज़ारों उत्पादों को आयात शुल्क में छूट देकर विकासशील देशों के आर्थिक विकास में मदद करना है।
  • भारत भी अब तक इसका एक लाभार्थी विकासशील देश था। ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, कनाडा, यूरोपीय संघ, आइसलैंड, जापान, कज़ाखस्तान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, रूसी संघ, स्विट्ज़रलैंड, तुर्की और अमेरिका GSP को प्राथमिकता देने वाले देशों में प्रमुख हैं।

एशियाई विकास बैंक

(Asian Development Bank- ADB)

  • एशियाई विकास बैंक (ADB) एक क्षेत्रीय विकास बैंक है। इसकी स्थापना 19 दिसंबर, 1966 को हुई थी।
  • ADB का मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में है।
  • इसका उद्देश्य एशिया में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
  • ADB में 67 सदस्य हैं, जिनमें से 48 एशिया-प्रशांत क्षेत्र के हैं।
  • ADB में शेयरों का सबसे बड़ा अनुपात जापान का है।

स्रोत: इकोनामिक्स टाइम


वैश्विक जलवायु आपातकाल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 6 महाद्वीपों के 7,000 से अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेटवर्क ने जलवायु आपातकाल की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • नेटवर्क ने संकट का समाधान करने के लिये 3-सूत्री योजना प्रस्तुत की है:

1. वर्ष 2030 या वर्ष 2050 तक कार्बन न्यूट्रलिटी की प्रतिबद्धता।

2. जलवायु परिवर्तन के अनुसंधान और कौशल निर्माण के लिये अधिक संसाधनों को जुटाना।

3. शिक्षा, पाठ्यक्रम और परिसर में पर्यावरण स्थिरता कार्यक्रमों की पहुँच बढ़ाना।

  • एलायंस फॉर सस्टेनेबिलिटी लीडरशिप इन एजुकेशन (Alliance for Sustainability Leadership in Education), अमेरिका स्थित उच्चतर शिक्षा जलवायु कार्रवाई संगठन (Climate Action Organization), सेकण्ड नेचर (Second Nature), UNEP के युवा और शिक्षा गठबंधन (Youth and Education Alliance) आदि संस्थाओं ने पहली बार सामूहिक स्तर पर जलवायु आपातकाल के प्रति प्रतिबद्धता हेतु हाल ही में न्यूयार्क में बैठक की।
  • जलवायु आपातकाल से निपटने के लिये स्ट्रैथमोर (Strathmore) विश्वविद्यालय केन्या, तोंगजी (Tongji) विश्वविद्यालय चीन, केज (KEDGE) बिजनेस स्कूल फ्राँस, ग्लासगो विश्वविद्यालय (UK), कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी USA, जायद विश्वविद्यालय UAE और ग्वाडलजारा (Guadalajara) विश्वविद्यालय मेक्सिको आदि के साथ ही ग्लोबल एलायंस (Global Alliance) और ग्लोबली रिस्पॉन्सिबल लीडरशिप इनिशिएटिव (Globally Responsible Leadership Initiative) जैसे वैश्विक शिक्षा नेटवर्को ने भी कार्बन न्यूट्रलिटी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की।
  • जलवायु और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने एवं पर्यावरणीय स्थिरता को प्राप्त करने हेतु युवाओं के महत्त्वपूर्ण योगदान की आवश्यकता को इंगित किया गया है।
  • स्ट्रैथमोर विश्वविद्यालय में स्थापित 600 किलोवाट फोटोवोल्टिक ग्रिड सिस्टम के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा द्वारा इसका संचालन, तोंगजी विश्वविद्यालय द्वारा सतत् शिक्षा पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिये निवेश, जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से जलवायु आपातकाल से निपटने हेतु कई प्रयास पहले से किये जा रहे हैं।
  • कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय ने वर्ष 2025 तक कार्बन न्यूट्रलिटी के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है, जबकि अमेरिकन विश्वविद्यालय और कोलगेट विश्वविद्यालय पहले ही कार्बन न्यूट्रल हो चुके हैं।
  • उच्च शिक्षण संस्थाओं द्वारा अभी तक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये किये गए सीमित प्रयासों पर चिंता व्यक्त की गई।
  • बैठक में वर्ष 2019 के अंत तक 10,000 से अधिक उच्च संस्थाओं द्वारा अपने नेतृत्व में सरकारों को जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु प्रोत्साहित करने की उम्मीद की गई है।

एलायंस फॉर सस्टेनेबिलिटी लीडरशिप इन एजुकेशन

(Alliance for Sustainability Leadership in Education)

  • इसे EAUC के नाम से भी जाना जाता है।
  • इसमें कुल 2 मिलियन छात्र-छात्राएँ और लगभग 400,000 कर्मचारी शामिल हैं तथा इसका बजट 25 बिलियन डॉलर से अधिक है।
  • यह नेताओं, शिक्षाविदों और पेशेवरों को पर्यावरण के सतत् विकास में स्थिरता लाने में सहायता हेतु प्रेरित करता है।

सेकंड नेचर (Second Nature)

  • यह संस्थान उच्च शिक्षा के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने वाली गतिविधियों में तेज़ी लाने का काम करता है।
  • यह संस्थान त्वरित जलवायु प्रतिबद्धताओं पर कार्य करने, कैंपस में जलवायु परिवर्तन के प्रयास को मापने और नवीन जलवायु परिवर्तन के प्रयासों को तैयार करने में उच्च शिक्षण संस्थानों की सहायता करता है।
  • यह संस्थान वैश्विक नेताओं के साथ तत्काल जलवायु परिवर्तन से निपटने की प्राथमिकताओं को रेखांकित करता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सोमालिया में पहला पर्यावरण पत्रकार नेटवर्क

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सोमालिया (Somalia) की मीडिया ने पर्यावरण पत्रकारों का पहला नेटवर्क शुरू किया है।

  • प्रमुख बिंदु :
  • सोमालिया के पर्यावरण पत्रकार नेटवर्क (The Somali Environmental Journalists Network-SEJN) का उद्देश्य देश में पर्यावरण चुनौतियों पर मीडिया रिपोर्टिंग को बढ़ावा देने के लिये पत्रकारों को एक साथ लाना है।
  • यह शुरुआत देश के सभी पत्रकारों को एक साथ आने और उन्हें पर्यावरण संबंधी विषयों पर बात करने के लिये प्रोत्साहित करेगी।
  • पत्रकारों का यह नेटवर्क सोमालिया सरकार सहित निजी क्षेत्र और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के सहयोग से कार्य करेगा।
  • पत्रकारों का यह नेटवर्क पर्यावरण और सतत् विकास के मुद्दों पर चर्चा करने वाले सोमालिया के सभी पत्रकारों के लिये खुला है।
  • गौरतलब है कि वनों की कटाई और भूमि क्षरण सोमालिया में प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियाँ हैं।

सोमालिया:

  • सोमालिया गणराज्य का गठन वर्ष 1960 में किया गया था।
  • सोमालिया, अफ्रीका के सबसे पूरब में स्थित एक देश है, जिसकी राजधानी का नाम मोगादिशु है।
  • सोमालिया का प्रमुख धर्म इस्लाम है।
  • सोमालिया की अर्थव्यवस्था का मुख्य हिस्सा कृषि पर आधारित है, परंतु पशुपालन वहाँ की प्रमुख आर्थिक गतिविधि है।

Somalia

स्रोत: डाउन टू अर्थ


संकटग्रस्त हंगुल प्रजाति

चर्चा में क्यों?

कश्मीर घाटी में हंगुल प्रजातियों के मृगों की नवीनतम जनगणना से पता चला है कि हंगुल (Cervus hanglu) की आबादी में तेज़ी से गिरावट आई है।

प्रमुख बिंदु

  • नवीनतम हंगुल जनसंख्या निगरानी कार्यक्रम 22 मार्च से 30 मार्च, 2019 के बीच आयोजित किया गया था।
  • यह कार्यक्रम जम्मू और कश्मीर के वन्यजीव संरक्षण विभाग (Department of Wildlife Protection-DWLP) द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII) के सहयोग से आयोजित किया गया।
  • गणना के आँकड़ों से पता चला है कि प्रति 100 मादाओं पर 7.5% शिशु मृग जबकि प्रति 100 मादाओं पर 15.5% पुरुष मृग हैं। यह अनुपात वर्ष 2017 की गणना के दौरान क्रमशः 19.1 और 15.8 प्रतिशत था।
  • इस तरह के कार्यक्रमों को वैज्ञानिक तरीकों से वर्ष 2004 से दाचीगाम अभ्यारण्य में आयोजित किया गया है जिसमें शोधकर्त्ताओं, फील्ड स्टाफ, विश्वविद्यालय के छात्रों को शामिल किया जाता है।
  • कश्मीर में मादा-शिशु मृगों और नर-मादा अनुपात में गिरावट के प्रमुख कारण में वनों की कटाई और अवैध शिकार ने हंगुलों की आबादी को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
वर्ष अनुमानित हंगुल आबादी

नर/100 मादा

शिशु: प्रति 100 मादा

2004 197 19 23
2006 153 21 09
2009 175 26.52 27.82
2011 218 29.52 25.80
2015 183 22.33 14.33
2017 214 15.8 19.1
2019 237 15.3 9.1

आगे की राह

  • वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, हंगुल की संख्या में समग्र गिरावट की प्रवृत्ति को समझने के लिये घटता मादा-शिशु मृग एवं नर-मादा मृगों का अनुपात जनसंख्या असंतुलन का प्रमुख कारण है। इसलिये मृगों के संरक्षण हेतु समय रहते उचित प्रबंधन किये जाने की आवश्यकता है।
  • विशेषज्ञों ने कश्मीर वन्यजीव संरक्षण विभाग को हंगुल के संरक्षण हेतु एक विशेष परियोजना शुरू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
  • जम्मू और कश्मीर की सरकार को अपने राजकीय पशु की रक्षा करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता को दोहराना चाहिये और वास्तव में यदि हंगुल को बचाना है तो हंगुल के निवास स्थान को सुरक्षित एवं संरक्षित किया जाना चाहिये।

कश्मीरी हंगुल

  • कश्मीरी बारहसिंगे को कश्मीर में स्थानीय रूप से हंगुल भी कहा जाता है जो भारत में यूरोपीय लाल हिरणों की एकमात्र उप-प्रजाति है। हंगुल जम्मू-कश्मीर का राजकीय पशु भी है।
  • पहली बार 1844 में अल्फ्रेड वैगनर द्वारा चिह्नित इस प्रजाति के बारे में कहा जाता है कि इसने मध्य एशिया के बुखारा से कश्मीर तक यात्रा की है। पहले यह प्रजाति कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले के कुछ हिस्सों, झेलम और चेनाब नदियों के उत्तर एवं पूर्व में 65 किलोमीटर के दायरे में पाई जाती थी।
  • वर्तमान में हंगुल की आबादी श्रीनगर के पास दाचीगाम वन्यजीव अभयारण्य (Dachigam Wildlife Sanctuary) तक सीमित है, जो 141 ​​वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) ने इसे गंभीर रूप से विलुप्तप्राय पशु घोषित किया है।
  • श्रीनगर के पास दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान (Dachigam National Park) को हंगुल का आखिरी अविवादित आवास माना जाता है।
  • हंगुल के सामने आने वाली चुनौतियों में अवैध शिकार, उग्रवाद से खतरा और भारत एवं पाकिस्तान के बीच सीमा संघर्ष शामिल हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


रामानुजन मशीन (Ramanujan Machine)

चर्चा में क्यों?

इज़राइल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Israel Institute of Technology) के वैज्ञानिकों ने भारतीय गणितज्ञ रामानुजन के नाम पर एक अवधारणा विकसित की है जिसे उन्होंने रामानुजन मशीन (Ramanujan Machine) का नाम दिया है।

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प्रमुख बिंदु:

  • यह एक मशीन न होकर एक कलन विधि/एल्गोरिथम (Algorithm) है जो गणित के किसी स्थिरांक के मान को क्रमागत भिन्न में परिवर्तित कर देती है जिसका मान उस स्थिरांक के बराबर होता है। उदाहरण के लिये यदि मशीन को पाई (π) इनपुट दिया जाए तो यह एक ऐसी शृंखला उत्पन्न करेगी जिसका मान पाई (π) की ओर अग्रसर होगा।
  • इस मशीन का उद्देश्य अनुमानों (Conjectures) को गणित के सूत्रों के रूप में स्थापित करना है ताकि भविष्य में उन्हें गणितीय रूप से प्रमाणित किया जा सके।
  • सामान्यतः एल्गोरिथम में कोई इनपुट दिया जाता है और यह समाधान (SOLUTION) उपलब्ध कराता है जबकि रामानुजन मशीन में इसकी विपरीत प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है।

अनुमान (Conjectures):

  • ये ऐसे गणितीय कथन हैं जो अभी तक प्रमाणित नहीं किये जा सके हैं। हालाँकि गणित में नये अनुमान (Conjectures) दुर्लभ है।
  • यह मशीन भविष्य के गणितज्ञों को प्रेरित करने का कार्य करेगी।

श्रीनिवास रामानुजन

  • यह कलन विधि/एल्गोरिथम रामानुजन के जीवन की उपलब्धियों को दर्शाती है। रामानुजन इंग्लैंड में प्रवास के दौरान रॉयल सोसाइटी (Royal Society) के सदस्य बने और कैंब्रिज विश्वविद्यालय (Cambridge University) से रिसर्च में डिग्री प्राप्त की।
  • रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को हुआ था।
  • भारत में 22 दिसंबर को श्रीनिवास रामानुजन की स्मृति में ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (20 July)

  • जर्मनी की निवर्तमान रक्षा मंत्री उर्सुला वॉन डेर लेयेन को यूरोपीय यूनियन की कार्यकारी इकाई यूरोपीय कमीशन का अध्यक्ष चुना गया है। वह इस पद को संभालने वाली पहली महिला हैं। क्रिश्चियन डेमोक्रेट यूनियन की सदस्य उर्सुला, ज्याँ-क्लाउड जुनकर की जगह लेंगी। उन्हें जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल का विश्वस्त सहयोगी माना जाता है और बीते 50 साल में यह पहला अवसर है जब जर्मनी के किसी व्यक्ति को यूरोपीय कमीशन का अध्यक्ष चुना गया है। आपको बता दें कि यूरोपीय संघ का एक महत्त्वपूर्ण अंग है यूरोपीय कमीशन। इसके अलावा यूरोपीय संसद, यूरोपीय संघ परिषद तथा यूरोपीय सेंट्रल बैंक भी इसके महत्त्वपूर्ण अंग हैं। यूरोपीय संघ मुख्यतः यूरोप में स्थित 28 देशों का एक आर्थिक और राजनीतिक मंच है, जिनकी प्रशासकीय साझेदारी है तथा साझी मुद्रा (यूरो) के अलावा साझी विदेश, सुरक्षा, न्याय नीति भी है।
  • हाल ही में भारत के केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग तथा रेल मंत्री पीयूष गोयल ने लंदन में भारत-ब्रिटेन संयुक्त आर्थिक व्यापार समिति (जेटको) की बैठक में हिस्सा लिया। दोनों देश अनुसंधान और सेवा क्षेत्र में भारत-ब्रिटेन साझेदारी की नीति का आधार ‘ब्रिटेन में डिजाइनिंग–भारत में निर्मित’ को मानते हैं। इससे व्यापार, वाणिज्य और सेवा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ावा मिलेगा। जेटको प्लेटफॉर्म का उद्देश्य दोनों देशों को आपसी सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता करना तथा आपसी व्यापार से संबंधित मुद्दों का सरल समाधान तलाशना है। इसके अलावा भारत और ब्रिटेन ने खाद्य तथा पेय पदार्थों, स्वास्थ्य सेवा और डेटा सेवाओं के व्‍यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिये तीन नए द्विपक्षीय कार्य समूह गठित करने पर सहमति जताई। विदित हो कि भारत-ब्रिटेन के व्यापार और आर्थिक संबंधों की समीक्षा जेटको द्वारा प्रतिवर्ष वाणिज्य और उद्योग मंत्रियों के स्तर पर की जाती है। जेटको की अब तक 12 बैठकें हो चुकी हैं और अंतिम बैठक लंदन में 11 जून, 2018 को आयोजित की गई थी। द्विपक्षीय आर्थिक व्यापार और निवेश बढ़ाने की रणनीति के तहत भारत-ब्रिटेन संयुक्त आर्थिक व्यापार समिति का गठन 13 जनवरी, 2005 को किया गया था।
  • दो भारतीय पक्षियों गोडावण (Great Indian Bustard) और खरमोर (Lesser Florican) के विलुप्तप्राय: होने पर गंभीर चिंता जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इन प्रजातियों के संरक्षण के लिये आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना बनाने तथा उसे लागू करने के लिये उच्च अधिकार प्राप्त तीन सदस्यीय समिति गठित की है। इस समिति में ‘बाम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी’ के निदेशक, इस सोसायटी के पूर्व निदेशक डॉक्टर असद आर. रहमानी और उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक डॉक्टर धनंजय मोहन शामिल हैं। न्यायालय ने केंद्र और उन राज्यों की सरकारों से जवाब मांगा, जहाँ इन दो प्रजातियों के पक्षी सामान्य रूप से पाए जाते हैं। इन प्रजातियों के संरक्षण के लिये यह आदेश वन्यजीव कार्यकर्त्ताओं की याचिका पर दिया गया जिसमें कहा गया था कि मानसून सत्र में इन प्रजातियों के पक्षियों के तत्काल संरक्षण के लिये आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना तैयार करने हेतु निर्देश जारी करने की आवश्यकता है। बड़े आकार का गोंडावण पक्षी राजस्थान का राजकीय पक्षी है तथा IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में इसे 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' श्रेणी में तथा भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में रखा गया है। दूसरी तरफ खरमोर पक्षी मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश में पाया जाता है और कभी-कभी राजस्थान और गुजरात में भी देखने को मिल जाता है। दुनिया की संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल खरमोर को केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ने भी ‘संकटापन्न’ घोषित किया है।
  • एम्स दिल्ली तथा IIT दिल्ली ने मिलकर कृत्रिम त्वचा का विकास किया है। यह देश की महत्त्वपूर्ण चिकित्सकीय शोध परियोजनाओं में शामिल है। कई प्रकार के केमिकल्स व फाइबर का इस्तेमाल कर इसे तैयार किया गया है। इसके लिये एम्स में ‘त्वचा बैंक’ बनाया जाएगा, जहाँ कृत्रिम त्वचा बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध होगी, जो प्रत्यारोपण के बाद असली त्वचा की तरह काम करेगी। फिलहाल उत्तर भारत में केवल दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में ही ‘त्वचा बैंक’ है, लेकिन वहाँ भी इसकी उपलब्धता बहुत कम रहती है। प्लास्टिक सर्जरी, जलने, कैंसर व दुर्घटनाओं के मामलों में त्वचा की आवश्यकता पड़ती है। फिलहाल यह परीक्षण के दौर में है तथा जानवरों पर इसका ट्रायल चल रहा है। इसके बाद क्लीनिकल परीक्षण के लिये ड्रग कंट्रोलर से स्वीकृति ली जाएगी।
  • देश के सर्वोच्च न्यायालय की अतिरिक्त प्रशासनिक इमारत का उद्घाटन 17 जुलाई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया। इस इमारत की विशेषता यह ही कि इसमें ईंटों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि इनके स्थान पर टूटे हुए मलबे से बने 20 लाख ब्लॉक्स इस्तेमाल किये गए, जिससे 35 हजार मीट्रिक टन मिट्‌टी की बचत हुई। इस इमारत की नींव 27 सितंबर, 2012 को रखी गई थी और इसमें पाँच ब्लॉक हैं। इसमें जजों और वकीलों के लिये देश की सबसे बड़ी लाइब्रेरी बनाई गई है तथा मुकदमों की फाइलिंग, कोर्ट के आदेशों की कॉपियाँ लेने आदि सभी काम इस नई बिल्डिंग में होंगे। पूर्णतः हरित इस इमारत में बड़े-बड़े सोलर पैनल लगे हैं, जिनसे 1400 किलोवॉट सौर ऊर्जा का उत्पादन होगा। इस इमारत में 825 CCTV कैमरे भी लगाए गए हैं तथा अत्याधुनिक LED लाइटों का प्रयोग किया गया है, जो सेंसर प्रणाली पर काम करती हैं। अंधेरा होने पर ये अपने आप चालू हो जाएंगी और किसी के न रहने पर बंद भी हो जाएंगी।