डेली न्यूज़ (20 Jun, 2020)



सूर्य ग्रहण का विज्ञान

प्रीलिम्स के लिये

सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का अर्थ

मेन्स के लिये

सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण के लिये आवश्यक परिस्थितियाँ, ग्रहण का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

21 जून, 2020 को भारत के उत्तरी हिस्सों में वलयाकार सूर्य ग्रहण दिखाई देगा, जो कि एक महत्त्वपूर्ण खगोलीय घटना है। उल्लेखनीय है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के नैनीताल स्थित स्वायत्त संस्थान ‘आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान’ (Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences-ARIES) द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से इस वलयाकार सूर्य ग्रहण के प्रसारण की व्यवस्था की जाएगी।

प्रमुख बिंदु 

  • ध्यातव्य है कि यह वर्ष 2020 का पहला सूर्य ग्रहण है , जो कि सर्वाधिक भारत के उत्तरी हिस्से में दिखाई देगा।
  • इससे पूर्व वलयाकार सूर्य ग्रहण 26 दिसंबर, 2019 को दक्षिण भारत में देखा गया था।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, अगला वलयाकार सूर्य ग्रहण भारत में 21 मई 2031 को दिखाई देगा, जबकि अगला पूर्व सूर्य ग्रहण 20 मार्च, 2034 को देखा जाएगा।

ग्रहण का अर्थ

  • ग्रहण एक प्रकार की महत्त्वपूर्ण खगोलीय घटना है, यह मुख्यतः तब घटित होती है जब एक खगोल-काय जैसे चंद्रमा अथवा ग्रह किसी अन्य खगोल-काय की छाया के बीच में आ जाता है।
  • पृथ्वी पर मुख्यतः दो प्रकार के ग्रहण होते हैं- पहला सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) और दूसरा चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse)

सूर्य ग्रहण का अर्थ

Solar-Eclipse

  • चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा में घूमता है और उसी समय पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। इस परिक्रमा के दौरान कभी-कभी चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है। खगोलशास्त्र में इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। 
  • इस दौरान सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता और पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से पर दिन में अँधेरा छा जाता है।
  • सूर्य ग्रहण तभी होता है जब चंद्रमा अमावस्या को पृथ्वी के कक्षीय समतल के निकट होता है।
  • चंद्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा की रात को होता है, जबकि सूर्य ग्रहण अमावस्या की रात को होता है।
  • सूर्य ग्रहण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse), वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse) तथा पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse)।

आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse)

  • जब चंद्रमा की परछाई सूर्य के पूरे भाग को ढकने की बजाय किसी एक हिस्से को ही ढके तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है। इस दौरान सूर्य के केवल एक छोटे हिस्से पर अंधेरा छा जाता है। 

वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse) 

  • वलयाकार सूर्य ग्रहण की यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है तथा इसका आकार छोटा दिखाई देता है।
  • इस दौरान चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से ढक नहीं पाता है, और सूर्य एक अग्नि वलय (Ring of Fire) की भाँति प्रतीत होता है।

पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse)

  • पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं, इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह से अँधेरा छा जाता है।
  • यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा, पृथ्वी के निकट होता है।
  • सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के एक सीधी रेखा में होने के कारण, जो लोग पूर्ण सूर्य ग्रहण को देख रहे होते हैं वे इस चंद्रमा की छाया क्षेत्र के केंद्र में होते हैं।

छाया और उपच्छाया 

  • सूर्य ग्रहण की स्थिति में पृथ्वी पर चंद्रमा की दो परछाइयाँ बनती हैं जिसमें से पहली को छाया (Umbra) और दूसरी को उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं।
    • छाया (Umbra): इसका आकार पृथ्वी पर पहुँचते हुए काफी छोटा हो जाता है और इसके क्षेत्र में खड़े लोगों को ही पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।
    • उपच्छाया (Penumbra): इसका आकार पृथ्वी पर पहुँचते हुए बड़ा होता जाता है और इसके क्षेत्र में खड़े लोगों को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।

Umbra

सूर्य ग्रहण का महत्त्व

  • सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) सूर्य (Sun) की शीर्ष परत अर्थात कोरोना का अध्ययन करने हेतु काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं ।
  • इस प्रकार की खगोलीय घटनाओं को समझना काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये पृथ्वी समेत सौर प्रणाली के शेष सभी हिस्सों को प्रभावित करते हैं।
  • सदियों पूर्व ग्रहण के दौरान चंद्रमा का अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने यह पाया था कि पृथ्वी का आकार गोल है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रमा की सतह का विस्तार से अध्ययन करने के लिये ग्रहण का उपयोग किया जा रहा है।

सूर्य ग्रहण के दौरान सावधानियाँ 

  • पूर्ण सूर्य ग्रहण की अल्पावधि के दौरान जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है तो इस घटना के दौरान सूर्य को प्रत्यक्ष रूप से देखना हानिकारक नहीं होता है, हालाँकि यह अवधि इतनी अल्प होती है कि यह जानना कि कब सुरक्षा उपकरण का प्रयोग करना है और कब नहीं, यह काफी महत्त्वपूर्ण होता है।
  • इसके विपरीत आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण को बिना उपयुक्त तकनीक तथा यंत्रों के नहीं देखा जाना चाहिये, यह हमारी आँखों के लिये काफी नुकसानदायक होता है।
  • सूर्य ग्रहण को आँखों में बिना कोई उपकरण लगाए देखना खतरनाक साबित हो सकता है जिससे स्थायी अंधापन या रेटिना में जलन हो सकती है जिसे सोलर रेटिनोपैथी (Solar Retinopathy) कहते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


चीन द्वारा बांग्लादेश को टैरिफ छूट की घोषणा

प्रीलिम्स के लिये: 

एशिया प्रशांत व्यापार समझौता 

मेन्स के लिये: 

चीन द्वारा बांग्लादेश को दी गई टैरिफ छूट का भारत के आर्थिक हितों पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण एशिया में आर्थिक कूटनीतिक संबंधों के चलते चीन द्वारा बांग्लादेश से चीन में निर्यात होने वाले सामान पर 97% टैरिफ छूट देने की घोषणा की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय द्वारा इस बात की जानकारी दी गई है कि मत्स्य और चमड़े के उत्पादों को कवर करने वाली 97% वस्तुओं को चीनी टैरिफ से छूट दी जाएगी।
  • चीन का यह कदम ‘ढाका-बीजिंग संबंधों’ के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • एक महीने पहले बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा COVID-19 महामारी के चलते व्यापार में आई आर्थिक कठिनाई पर चर्चा करने के लिये इस संदर्भ में बात की गई थी। जिसे ध्यान में रखते हुए चीन द्वारा यह कदम उठाया गया है।
  • बांग्लादेश पहले ही ‘एशिया प्रशांत व्यापार समझौते’ (Asia-Pacific Trade Agreement -APTA) के तहत 3095 वस्तुओं के लिये टैरिफ-छूट प्राप्त करता है। 
  • चीन द्वारा की गई नवीनतम घोषणा के परिणामस्वरूप, बांग्लादेश के अब कुल 8256 सामानों को चीनी टैरिफ से छूट दी जाएगी। 

बांग्लादेश के लिये इस छूट का महत्त्व: 

  • बांग्लादेश चीन से लगभग 15 बिलियन डॉलर का आयात करता है। जबकि चीन में बांग्लादेश से निर्यात की जाने वाले वस्तुओं की कीमत आयात के मुकाबले काफी कम है।
  • इस छूट के माध्यम से बांग्लादेश के चीन के साथ व्यापार घाटे में कुछ कमी होने की आशा है साथ ही बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी।

चीन की रणनीति:

  • भारत चीन के मध्य ‘लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल’ पर जारी तनाव के बीच चीन अपनी आर्थिक कूटनीति (Economic Diplomacy of China) के तहत भारत के पड़ोसी देशों को अपने पक्ष में करने का कार्य कर रहा है।
  • इससे पहले चीन द्वारा श्रीलंका, नेपाल तथा पाकिस्तान के साथ भी यही रणनीति अपनाई जा चुकी है। 
  • अब चीन का रुख बांग्लादेश की तरफ है। इसी कड़ी में चीन ने बांग्लादेश से निर्यात की जाने वाली 97 फीसदी वस्तुओं को टैक्स से छूट देने की घोषणा की है।

भारत की रणनीति: 

  • एक तरफ जहाँ चीन द्वारा भारत को सामरिक एवं आर्थिक मोर्चे पर घेरने की रणनीति बनाई  जा रही है तो भारत भी इसका जबाव दे रहा है।
  • भारत द्वारा अब चीन से आयातित वस्तुओं पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से जल्द ही ‘ई-कॉमर्स नीति’ घोषित करने की तैयारी कर ली गई है।
  • इस नीति के तहत कंपनियों के लिये यह स्पष्ट करना अनिवार्य होगा कि उनके द्वारा बेची जा रही वस्तुओं को भारत में उत्पादित किया गया है या नहीं।
  • दूसरी तरफ भारत द्वारा चीन समेत भारत की सीमा से लगे किसी भी देश से ‘पेंशन कोष’ में विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रस्ताव पेश किया है।
  •  ‘पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण’ (Pension Fund Regulatory and Development Authority) PFRDA के नियमन के तहत पेंशन कोष में स्वत: मार्ग से 49 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति है।
  • इस प्रस्ताव के तहत चीन समेत भारत की सीमा से लगने वाले किसी भी देश की किसी भी निवेश इकाई या व्यक्ति को निवेश के लिये सरकार की मंज़ूरी की जरूरत होगी। 

आगे की राह:

  • भारत की विदेश नीति पंचशील सिद्धांत पर आधारित है इस सिद्धांत को ध्यान में रखते  हुए ही वर्ष 1954 में नेहरू और झोउ एनलाई (Zhou Enlai) द्वारा ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे के साथ पंचशील सिद्धांत पर हस्ताक्षर किये गए थे, ताकि क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिये कार्ययोजना तैयार की जा सके।
  • वर्ष 2019 में भारत तथा चीन के बीच होने वाले व्यापार की मात्रा 92.68 बिलियन डॉलर रही। भारत में औद्योगिक पार्कों, ई-कॉमर्स तथा अन्य क्षेत्रों में 1,000 से अधिक चीनी कंपनियों द्वारा निवेश किया हुआ है। भारतीय की भी लगभग दो-तिहाई से अधिक कंपनियाँ चीन के बाज़ार में सक्रिय हैं।
  • 2.7 बिलियन से अधिक लोगों के संयुक्त बाज़ार तथा दुनिया के 20% के सकल घरेलू उत्पाद के साथ, भारत और चीन के लिये आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएँ विद्यमान हैं।अतः वर्तमान समय में उत्पन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर दोनों ही देशों को एक-दूसरे देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करते हुए पंचशील के सिद्धांतों की महत्ता को स्वीकार करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू


इंटरनेशनल हॉर्सशू क्रैब डे

प्रीलिम्स के लिये: 

हॉर्सशू केकड़ा

मेन्स के लिये: 

पर्यावरण एवं जैव विविधता के संरक्षण में हॉर्सशू क्रैब(केकड़ा) का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

चीन के किनझोउ शहर (Qinzhou City) में ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर’ (The International Union for Conservation of Nature- IUCN) के ‘हॉर्सशू  क्रैब स्पेशलिस्ट ग्रुप’ (Horseshoe Crab Specialist Group) की बैठक में 20 जून, 2020  को प्रथम ‘इंटरनेशनल हॉर्सशू  क्रैब डे’ (International Horseshoe Crab Day) के रूप में घोषित किया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

  • हर वर्ष भारत के झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ तथा अन्य राज्यों में हॉर्सशू क्रैब (केकड़ा) के माँस एवं इनके कवच की आपूर्ति के लिये ओडिशा में सैकड़ों केकड़ों को मारा जाता है।
  • इनके अलावा ऐसा विश्वास है कि इसके कामोत्तेजक गुण के कारण भी इसे मारा जाता है जिस कारण ओडिशा में केकड़े की यह प्रजाति गंभीर खतरे में है।
  • हॉर्सशू क्रैब वैश्विक वातावरण एवं जैव विविधता के मध्य एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में अपना सांस्कृतिक महत्त्व रखते हैं।
  • दुर्भाग्य से, इस पारिस्थितिक लिंक को उन क्षेत्रों में जहां हॉर्सशू केकड़ों का जनसंख्या घनत्व कम है, तोड़ा जा रहा है।
  • हॉर्सशू पारिस्थितिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है अपने इस पारिस्थितिक कार्य के तहत ये समुद्र तट पर करोड़ों अंडे देते है, जो समुद्र के किनारे, मछली और अन्य वन्यजीवों का भोजन है।
  • भारत में हॉर्सशू केकड़ों को केंद्रपाड़ा, बालासोर तथा भद्रक ज़िलों के समुद्र तटीय क्षेत्रों से चुना जाता है और अन्य राज्यों में भेजा जाता है।

Horseshoe-Crab

हॉर्सशू क्रैब (केकड़ा) डे का महत्त्व: 

  • ये हॉर्सशू केकड़े डायनासोर के समय से लगभग अपरिवर्तित हैं अर्थात अपने उसी रूप को बनाए हुए है अतः ऐसे में ये पारिस्थितिक तंत्र के महत्त्वपूर्ण इंजीनियर हैं जो आधुनिक अंतःविषय वातावरण में छोटे जीवों का भक्षण करते हैं।
  • 20 जून को अंतर्राष्ट्रीय हॉर्सशू केकड़ा दिवस के रूप में घोषित का उद्देश्य इन प्राचीन प्राणियों के लिये लोगों में अधिक से अधिक जागरूकता उत्पन्न करना है ताकि इन्हे संरक्षित करने में मदद मिल सके।

हॉर्सशू क्रैब के संरक्षण हेतु प्रयास: 

  • हॉर्सशू क्रैब (केकड़) के संरक्षण के लिये आवश्यक है कि इनका अवैध शिकार करने वाले किसी भी व्यक्ति/संस्था पर सख्त कार्रवाई की जाए।
  • इसके लिये आवश्यकता है कि ओडिशा, बिहार, झारखंड और अन्य राज्य में जहाँ इसकी आपूर्ति की जाती है वहाँ की पुलिस एवं वन्यजीव अधिकारियों के बीच बेहतर, अंतर-राज्यीय समन्वय हो। 

हॉर्सशू क्रैब के बारे में: 

  • वैज्ञानिक नाम (Scientific Name): लिमुलिडा (Limulidae)
  • फाइलम (Phylum): आर्थ्रोपोडा (Arthropoda)
  • घोड़े की नाल के सामान दिखाई देने कारण हॉर्सशू क्रैब (केकड़ा) कहा जाता है।
  • हॉर्सशू क्रैब को 9 सितंबर, 2009 में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची IV में शामिल किया गया था।
  • जिसके तहत हॉर्सशू क्रैब को पकड़ना और मारना अपराध है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


वैश्विक शरणार्थी संकट

प्रीलिम्स के लिये

शरणार्थी, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त, सबंधित कानून 

मेन्स के लिये

वैश्विक शरणार्थी संकट, UNHCR की भूमिका, भारत और शरणार्थी संकट

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 के अंत तक लगभग 79.5 मिलियन लोग विभिन्न कारणों से विस्थापित हुए, जो कि वैश्विक आबादी का लगभग 1 प्रतिशत हैं, इसमें से अधिकांश बच्चे थे।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार, 79.5 मिलियन में से, 26 मिलियन क्रॉस-बॉर्डर शरणार्थी थे, 45.7 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित थे, 4.2 मिलियन शरण (Asylum) चाहने वाले थे और 3.6 मिलियन वेनेज़ुएला से अन्य देशों में जाने वाले विस्थापित थे।
  • इतनी बड़ी मात्रा में विस्थापन के मुख्य कारणों में उत्पीड़न, संघर्ष, हिंसा और मानवाधिकारों के उल्लंघन आदि को शामिल किया जा सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में प्रत्येक 97 लोगों में 1 व्यक्ति जबरन विस्थापन से प्रभावित हुआ, जबकि वर्ष 2010 में प्रत्येक 159 में से 1 व्यक्ति जबरन विस्थापन से प्रभावित था और वर्ष 2005 में प्रत्येक 174 में से 1 व्यक्ति इससे प्रभावित था।
  • UNHCR द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ के अनुसार, सर्वाधिक चिंताजनक यह है कि विस्थापित लोगों में से काफी कम लोग ही वापस अपने घर लौटने में सक्षम थे।
  • आँकड़ों के अनुसार, 1990 के दशक में प्रत्येक वर्ष औसतन 1.5 मिलियन शरणार्थी घर लौटने में सक्षम थे, जबकि पिछले एक दशक (2010-2019) में यह संख्या घटकर 385,000 रह गई है।
  • वर्ष 2019 के अंत में सीमा पार विस्थापित होने वाले 10 में से 8 लोग केवल 10 देशों से ही थे और इन 10 देशों में से 4 अफ्रीकी देश हैं।
    • अफगानिस्तान, सोमालिया, कांगो, सूडान और इरीट्रिया बीते एक दशक भर (2010-2019) में सीमा पार विस्थापन के लिये स्रोत देशों की शीर्ष 10 सूची में बने रहे।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 से सीरिया शरणार्थियों की उत्पत्ति के लिये एक प्रमुख देश रहा है। वर्ष 2019 के अंत में दुनिया भर के 126 देशों में कुल 6.6 मिलियन सीरियाई शरणार्थी थे।

कौन हैं शरणार्थी?

  • एक शरणार्थी का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से होता है जिसे उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण उसके देश से भागने के लिये मज़बूर किया गया है।
  • अधिकांश शरणार्थियों में नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक राय या किसी विशिष्ट समूह की सदस्यता के कारण उत्पीड़न का भय होता है, इसी भय के कारण कई शरणार्थी वापस अपने घर नहीं लौट पाते हैं।

वैश्विक शरणार्थी संकट

  • जानकारों का मानना है कि तथाकथित ‘वैश्विक शरणार्थी संकट’ की उत्पत्ति सर्वप्रथम द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के दौरान हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 20वीं शताब्दी में संकट उत्पन्न हुआ और लाखों लोगों को अपना घर छोड़कर एक सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा। 
  • एक अनुमान के अनुसार, इस दौरान यूरोप में लगभग 40 मिलियन लोगों को विस्थापित होना पड़ा था।
  • वर्ष 1945 में भले ही द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया, किंतु संघर्ष इसके बाद भी जारी रहा और इसके परिणामस्वरूप विश्व युद्ध के बाद भी लोगों का विस्थापन जारी रहा। 
  • अगस्त 1947 में भारत आज़ाद हो गया, इसी के साथ भारत का दो हिस्सों में विभाजन भी हो गया, लाखों लोगों को इस दौरान अपना सब कुछ छोड़ कर एक नए स्थान पर जाना पड़ा। आँकड़ों के अनुसार, इस दौरान तकरीबन 14 मिलियन लोगों ने पलायन किया था।
  • फिलिस्तीन में युद्ध के बाद यहूदी राज्य के गठन के कारण वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी, जॉर्डन, सीरिया और लेबनान में तकरीबन 750,000 लोगों का पलायन हुआ।
  • 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की शुरुआत एशिया और अफ्रीका में स्वतंत्रता आंदोलनों के साथ हुई। इस दौरान स्वतंत्रता संबंधी युद्धों और उसके बाद हुए नागरिक संघर्षों ने अल्जीरिया, कांगो, अंगोला, नाइजीरिया और अन्य देशों के लाखों लोगों को पलायन के संकट में ढकेल दिया।
  • वर्ष 1981 से वर्ष 1989 के बीच मध्य अमेरिका में गृहयुद्ध का दौर था, जिसमें लगभग 2 मिलियन लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
  • वर्ष 1971 में बांग्लादेश आज़ाद हो गया, इस दौरान तत्कालीन पूर्वी बंगाल से तकरीबन 10 मिलियन लोगों ने पलायन किया था।

भारत में शरणार्थी संबंध कानून 

  • भारत में अधिकारियों द्वारा विभिन्न कानूनों, जैसे–पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920; विदेशी कानून, 1946 इत्यादि को ध्यान में रखकर शरणार्थियों और आश्रय याचकों के प्रवेश के संबंध में विचार किया जाता है।
  • ये कानून शरणार्थियों को अन्य विदेशियों के समतुल्य मानते हैं और इस बात का विचार नहीं करते कि मानवीय आधार पर उन्हें विशेष दर्जा मिलना चाहिये। 
  • भारत में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सबसे अधिक शरणार्थी आबादी है लेकिन यहाँ अभी तक आश्रय याचकों के लिये एक समान कानून नहीं बनाया जा सका है।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त 

(United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR) 

  • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) एक संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी और एक वैश्विक संगठन है जो शरणार्थियों के जीवन बचाने, उसके अधिकारों की रक्षा करने और उनके लिये बेहतर भविष्य के निर्माण के प्रति समर्पित है।
  • संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी की स्थापना वर्ष 1950 में की गई थी और इसका मुख्यालय जिनेवा (Geneva) में स्थित है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विश्व सिकल सेल दिवस

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व सिकल सेल दिवस, सिकल सेल रोग

मेन्स के लिये:

सिकल सेल रोग तथा इसके रोकथाम एवं प्रबंधन हेतु भारत सरकार के प्रयास

संदर्भ

राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease- SCD) के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये प्रत्येक वर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस (World Sickle Cell Day) के रूप में मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने आधिकारिक तौर पर वर्ष 2008 में यह घोषणा की थी कि प्रत्येक वर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
  • यह दिवस सिकल सेल रोग, इसके उपचार के उपायों के बारे में जागरूकता बढाने तथा विश्व भर में इस रोग पर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त करने के लिये मनाया जाता है।
  • प्रथम विश्व सिकल सेल दिवस वर्ष 2009 में मनाया गया था।
  • सिकल सेल दिवस के अवसर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) , फिक्की (FICCI), अपोलो हॉस्पिटल्स, नोवर्टिस और ग्लोबल अलायंस ऑफ सिकल सेल डिज़ीज़ आर्गेनाईज़ेशन (Global Alliance of Sickle Cell Disease Organizations- GASCDO) द्वारा नेशनल सिकल सेल कॉन्क्लेव (National Sickle Cell Conclave) नामक वेबिनार का आयोजन किया गया।
    • ग्लोबल अलायंस ऑफ सिकल सेल डिज़ीज़ आर्गेनाईज़ेशन की स्थापना 10 जनवरी, 2020 को एम्स्टर्डम, नीदरलैंड में की गई। 
    • यह विश्व में सिकल सेल रोग (SCD) से पीड़ित व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने के लिये स्थापित पहली इकाई है।
  • विश्व सिकल सेल दिवस 2020 के अवसर पर पिरामल फाउंडेशन द्वारा तैयार सिकल सेल सपोर्ट पोर्टल लॉन्च किया गया है। इसके अलावा द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (Economist Intelligence Unit- EIU) तथा नोवर्टिस इंडिया लिमिटेड द्वारा तैयार 'स्टेपिंग आउट ऑफ द शैडोज़- कॉम्बैटिंग सिकल सेल डिज़ीज़ इन इंडिया' (Stepping out of the shadows – Combating Sickle Cell Disease in India) नामक रिपोर्ट भी जारी की गई।

सिकल सेल रोग

(Sickle Cell Disease- SCD)

Sickle-cell

  • सिकल सेल रोग (SCD) या सिकल सेल एनीमिया (रक्ताल्पता) लाल रक्त कोशिकाओं से जुडी एक प्रमुख वंशानुगत विकार है जिसमें इन लाल रक्त कोशिकाओं का आकार अर्द्धचंद्र/हंसिया (Sickle) जैसा हो जाता है।
  • ये असामान्य आकार की लाल रक्त कोशिकाएँ (Red Blood Cells- RBCs) कठोर तथा चिपचिपी हो जाती हैं और रक्त वाहिकाओं में फँस जाती हैं, जिससे शरीर के कई हिस्सों में रक्त एवं ऑक्सीजन का प्रवाह या तो कम हो जाता है या रुक जाता है। यह आसामान्य आकार RBCs के जीवनकाल को भी कम करता है तथा एनीमिया (रक्ताल्पता) का कारण बनता है, जिसे सिकल सेल एनीमिया के नाम से जाना जाता है।

भारत में सिकल सेल रोग

  • भारत में यह बीमारी मुख्य रूप से पूर्वी गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिमी ओडिशा और उत्तरी तमिलनाडु और केरल में नीलगिरि पहाड़ी क्षेत्रों में व्याप्त है।
  • ओडिशा में, यह रोग आदिवासी समुदायों में अधिक प्रचलित है। उल्लेखनीय है कि ओडिशा सरकार से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संबलपुर ज़िले के बुरला में स्थित वीर सुरेंद्र साईं इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ एंड रिसर्च (Veer Surendra Sai Institute of Medical Sciences and Research- VIMSAR) के परिसर में अपना पहला सिकल सेल संस्थान स्थापित किया है। इसके अलावा संस्थान ने पश्चिमी ओडिशा के 12 ज़िलों में सिकल सेल इकाइयाँ भी स्थापित की हैं।
  • विभिन्न राज्यों द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, 1 करोड़ 13 लाख 83 हज़ार 664 लोगों की स्क्रीनिंग में से लगभग 9 लाख 96 हज़ार 368 (8.75%) में यह व्याधि परिलक्षित हुई और 9 लाख 49 हज़ार 57 लोगों में लक्षण और 47 हज़ार 311 लोगों में बीमारी पाई गई ।
  • भारत में यह बीमारी जनजाति समूहों में अधिक व्याप्त है और प्रत्येक 86 बच्चों में से एक बच्चे में यह बीमारी पाई जाती है।

SCD के रोकथाम एवं प्रबंधन हेतु भारत सरकार के प्रयास

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग इस रोग के इलाज का अनुसंधान कर रही है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से राज्यों में कार्यशालाएं आयोजित की गयी है। बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए राज्यों को प्रोटोकॉल जारी किये गए हैं।
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK), जिसका उद्देश्य जन्म से लेकर18 वर्ष तक की आयु तक के बच्चों में विशिष्ट रोग सही 4D अर्थात् चार प्रकार की बीमारियों (जन्म दोष, बाल्यावस्था की बीमारियाँ, कमियाँ और विकासात्मक विलम्ब एवं अशक्तता) की शीघ्र पहचान और प्रारंभिक हस्तक्षेप करना है, के तहत सिकल सेल एनीमिया को भी शामिल किया गया है।
  • वर्ष 2016 में थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग से पीड़ित रोगियों के बेहतर भविष्य, उनकी देखभाल में सुधार तथा जाँच एवं जागरूकता रणनीतियों के माध्यम से हीमोग्लोबिन रुग्णता (Hemoglobinopathies) के प्रसारण को कम करने के लिये भारत में हीमोग्लोबिन रुग्णता की रोकथाम और नियंत्रण (Prevention and Control of Hemoglobinopathies in India) दिशा-निर्देश जारी किये गए। 
  • वर्ष 2018 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भारत में हीमोग्लोबिन रुग्णता- थैलेसीमिया, सिकल सेल रोग और भिन्न हेमोग्लोबिन की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये मसौदा नीति (Draft Policy For Prevention and Control of Hemoglobinopathies- Thalassemia, Sickle Cell Disease and variant Hemoglobins in India) जारी की थी।
  • राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के अनुसार, सभी रक्त बैंकों के लिये यह अनिवार्य है कि वे उन रोगियों के लिये निःशुल्क रक्त/रक्त घटक उपलब्ध कराएँ जिन्हें सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया और हीमोफिलिया जैसे रोगों के लिये जीवन रक्षक उपायों के रूप में आवर्ती रक्त आधान की आवश्यकता होती है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • वैश्विक जनसंख्या का अनुमानित 5 प्रतिशत हीमोग्लोबिन विकार विशेष रूप से सिकल सेल रोग तथा थैलेसीमिया के जीन का वाहक है।
  • हीमोग्लोबिन विकार वंशानुगत रक्त विकार है जो सामान्यतः माता-पिता (आम तौर पर स्वस्थ माता-पिता) दोनों से हीमोग्लोबिन जीन में उत्परिवर्तन की आनुवंशिकता के कारण होता है।
  • प्रत्येक वर्ष 300,000 से अधिक बच्चे गंभीर हीमोग्लोबिन विकारों के साथ जन्म लेते हैं।
  • सिकल सेल एनीमिया वंशानुगत है न कि संक्रामक।
  • अफ्रीका और एशिया में यह सबसे सामान्य सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।

आगे की राह:

सिकल सेल रोग के इलाज हेतु विश्व में कोई औषधि विकसित नहीं हुई है। SCD के रोगी को जीवित रखने के लिये आवर्ती रक्त आधान (Blood Transfusion) की आवश्यकता होती है। स्टेम सेल-थेरेपी, जीन-थेरेपी एवं बोनमैरो ट्रांसप्लान्टेशन के ज़रिये इस बीमारी का इलाज किया तो जाता है लेकिन उसमें भी रोगी के ज्यादा समय तक जीवित रहने की गारंटी नहीं होती। साथ ही ये तकनीकें इतनी महंगी हैं कि सभी के लिये सुलभ नहीं हो सकतीं। इसके निराकरण के लिये जन जागरूकता और इलाज आवश्यक है। यद्यपि सरकार इस बीमारी से निजात पाने के लिये कृतसंकल्प है लेकिन कारगर राष्ट्रीय योजना के अभाव में इस बीमारी को नियंत्रित कर पाना कठिन है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


चीनी के लिये न्यूनतम विक्रय मूल्य

प्रीलिम्स के लिये:

न्यूनतम विक्रय मूल्य, कृषि लागत और मूल्य आयोग

मेन्स के लिये:

न्यूनतम विक्रय मूल्य के निर्धारण में ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार किसानों के लगभग 22 हजार करोड़ रुपए के गन्ने की बकाया राशि का भुगतान करने में मदद करने के लिये चीनी के ‘न्यूनतम विक्रय मूल्य’ (Minimum Selling Price- MSP) को 31 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्र सरकार द्वारा चीनी के न्यूनतम विक्रय मूल्य को बढ़ाने के संबंध में राज्य सरकारों से भी अनुसंशा प्राप्त हुई है तथा नीति आयोग (Niti Aayog) द्वारा भी चीनी के न्यूनतम विक्रय मूल्य में बढ़ोतरी की सिफारिश प्रस्तुत की गई है।
  • न्यूनतम विक्रय मूल्य में बढ़ोत्तरी के संदर्भ में गन्ना एवं  चीनी उद्योग पर नीति आयोग द्वारा एक  टास्क फोर्स का गठन किया गया है जिसने चीनी मूल्य में दो रूपए प्रति किलोग्राम की वृद्धि की सिफारिश की गई है।

न्यूनतम विक्रय मूल्य:

  • न्यूनतम विक्रय मूल्य (MSP) वह दर है जिसके नीचे मिलें खुले बाज़ार में चीनी को थोक व्यापारी एवं थोक उपभोक्ता जैसे पेय और बिस्किट निर्माताओं को नहीं बेच सकती हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य:

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य वह न्यूनतम मूल्य होता है, जिस पर सरकार किसानों द्वारा बेचे जाने वाले अनाज की पूरी मात्रा क्रय करने के लिये तैयार रहती है।
  • जब बाज़ार में कृषि उत्पादों का मूल्य गिर रहा हो, तब सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों को क्रय कर उनके हितों की रक्षा करती है।
  • सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा फसल बोने से पहले करती है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की संस्तुति पर वर्ष में दो बार रबी और खरीफ के मौसम में की जाती है। 
  • चीनी के न्यूनतम विक्रय मूल्य में वृद्धि की संभावना इसलिये भी है क्योंकि ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ (Commission for Agricultural Costs and Prices-CACP) द्वारा वर्ष 2020-21 के लिये गन्ने के ‘उचित एवं पारिश्रमिक मूल्य’(Fair and Remunerative Price-FRP) को 10 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाकर 285 रूपए करने की सिफारिश प्रस्तुत की गई है।

उचित और पारिश्रमिक मूल्य:

  • उचित और पारिश्रमिक मूल्य वह न्यूनतम मूल्य वह है जो मिलों द्वारा किसानों को गन्ने की पेराई के 14 दिनों के भीतर भुगतान करना होता है।
  • सामान्यत इसका निर्धारण उत्पादन की वास्तविक लागत, चीनी की माँग-आपूर्ति, घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय कीमतों, चीनी के प्राथमिक उप-उत्पादों की कीमतों तथा संभावित प्रभाव को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है।
  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, चीनी मिलों द्वारा वर्ष 2019-20 के सीज़न में अब तक 27 मिलियन टन चीनी का उत्पादन किया गया है, जो पिछले वर्ष प्राप्त 33.1 मिलियन टन चीनी से कम रहा है।
  • पिछले वर्ष, सरकार ने चीनी मीलों द्वारा थोक खरीदारों को बिक्री की जाने वाली चीनी के मूल्य में 2रूपए/किलोग्राम की वृद्धि करके इसे 31 रुपये/किलोग्राम कर दिया गया था।

गन्ने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण:

  • गन्ने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की जगह उचित एवं लाभकारी मूल्य की घोषणा की जाती है। 
  • गन्ने का मूल्य निर्धारण आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा अनुमोदित किया जाता है।

चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य का निर्धारण: 

  • चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य का निर्धारण ‘उचित और पारिश्रमिक मूल्य’ (FRP) के घटकों और सबसे कुशल मिलों की न्यूनतम रूपांतरण लागत को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है।
  • चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य का निर्धारण गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य अर्थात न्यूनतम बिक्री मूल्य के अनुसार तय किया जाता है।
  •  यदि कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) द्वारा गन्ने के ‘उचित और पारिश्रमिक मूल्य’ में वृद्धि को मंज़ूरी दी जाती है तो चीनी के ‘न्यूनतम बिक्री मूल्य’ में भी वृद्धि हो जाती है

भुगतान की वर्तमान स्थिति: 

  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, चीनी मिलों द्वारा वर्ष 2019-20 (अक्तूबर-सितंबर) के दौरान किसानों से खरीदे गए गन्ने के लिये कुल 72,000 करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा। 
  • अधिकतम धनराशि का भुगतान किया जा चुका है तथा बची हुई कुल बकाया राशि लगभग 22,000 करोड़ रूपए है।
  • बकाया राशि में केंद्र द्वारा निर्धारित FRP तथा राज्यों द्वारा निर्धारित राज्य सलाहकार मूल्य (State Advisory Price- SAP) के आधार पर की जाने वाली भुगतान राशि शामिल है।
  • 22,000 करोड़ रुपये के बकाया में से, लगभग 17,683 करोड़ रूपए FRP दर पर आधारित है जबकि शेष SAP दरों पर आधारित हैं।

निष्कर्ष: 

सरकार द्वारा किये जा रहे इन उपायों के माध्यम से किसानों को पर्याप्त गन्ने की बकाया राशि का जल्द ही भुगतान हो जाएगा। इसके अलावा लॉकडाउन के बाद अब होटल, रेस्त्रां और कैंटीन खोलने की इजाज़त मिल चुकी है जिससे चीनी की माँग में थोड़ी वृद्धि होने की उम्मीद की जा रही है, जिससे कीमतों में भी हल्की तेज़ी देखी जा सकती है। अतः कहा जा सकता है कि आगामी दिनों में चीनी की कीमतों में सुधार होने का अनुमान है।

स्रोत: द इकोनॉमिक टाइम्स


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 जून, 2020

खेलो इंडिया केंद्र 

एथलीटों को ज़मीनी-स्तर का प्रशिक्षण प्रदान करने में पूर्व खेल चैंपियनों की विशेषज्ञता और अनुभव का दोहन करने के लिये और खेल पारिस्थितिकी तंत्र में उनके लिये आय का एक निरंतर स्रोत सुनिश्चित करने के लिये युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय ने पूरे देश में ज़िला-स्तर पर 1,000 खेलो इंडिया सेंटर (Khelo India Centres-KIC) स्थापित करने का फैसला किया है। इन केंद्रों का संचालन या तो किसी एक पूर्व चैंपियन अथवा किसी कोच द्वारा किया जाएगा। यह निर्णय ज़मीनी स्तर के खेलों को मज़बूती प्रदान करते हुए यह भी सुनिश्चित करेगा कि पूर्व चैंपियन (Champions) भारत को खेल के क्षेत्र में महाशक्ति बनाने में अपना योगदान दे सकें और खेलों के माध्यम से अपनी आजीविका भी अर्जित कर सकें। खेलो इंडिया केंद्रों (KIC) के देशव्यापी नेटवर्क का निर्माण करने के लिये भारतीय खेल प्राधिकरण (Sports Authority of India-SAI) के मौजूदा केंद्रों को KIC में परिवर्तित करने और योजना के अंतर्गत वित्तीय अनुदान का लाभ प्राप्त करने के लिये एक पूर्व चैंपियन की भर्ती करने का विकल्प प्रदान किया जाएगा। खेलो इंडिया केंद्रों (KIC) में 14 चिन्हित खेलों में प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें तीरंदाजी, एथलेटिक्स, मुक्केबाज़ी, बैडमिंटन, साइकिलिंग, तलवारबाजी, हॉकी, जूडो, नौकायन, शूटिंग, तैराकी, टेबल टेनिस, भारोत्तोलन, कुश्ती शामिल हैं। नए KIC की पहचान करने की प्रक्रिया को संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के खेल विभागों द्वारा ज़िला कलेक्टरों के साथ समन्वय के माध्यम से पूरा किया जाएगा और मूल्यांकन के लिये उस प्रस्ताव को भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) के क्षेत्रीय केंद्र में भेजा जाएगा। ध्यातव्य है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के दौरान कुल 100 खेलो इंडिया केंद्र (KIC) स्थापित करने की योजना बनाई गई है।

बी.पी.आर. विट्ठल

देश के वरिष्ठ अर्थशास्त्री और 1950 बैच के पूर्व IAS अधिकारी बी.पी.आर. विट्ठल का 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार संजय बारू के पिता बी.पी.आर. विट्ठल ने अविभाजित आंध्रप्रदेश में वर्ष 1972 से वर्ष 1982 तक सबसे लंबे समय के लिये वित्त एवं योजना सचिव के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। इसके अतिरिक्त वे राज्य योजना मंडल (State Planning Board) के उपाध्यक्ष और दसवें वित्त आयोग के सदस्य भी थे। मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक करने के बाद बी.पी.आर. विट्ठल वर्ष 1949 में हैदराबाद सिविल सर्विस (Hyderabad Civil Service) में शामिल हो गए। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व उन्होंने गांधी जी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। बी.पी.आर. विट्ठल ने अपने संपूर्ण जीवन में कई सारी पुस्तकें लिखीं जिसमें उनकी किताब ‘द तेलंगाना सरप्लस: ए केस स्टडी’ (The Telangana Surpluses: A Case Study)। माना जाता है कि उस किताब ने अलग तेलंगाना राज्य की मांग को आकार देने में प्रभावशाली भूमिका अदा की थी। वर्ष 1960 में उन्हें उस्मानिया विश्वविद्यालय (Osmania University) के रजिस्ट्रार के रूप में नियुक्त किया गया था। 

150 मिलियन डॉलर के मूल्य वाली पहली भारतीय कंपनी रिलायंस 

हाल ही में मुंबई स्थित भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड’ (Reliance Industries Limited-RIL) बाज़ार पूंजीकरण (Market Capitalisation) के मामले में 150 मिलियन डॉलर के मूल्य को प्राप्त करने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) के बाज़ार का आकार आगामी 3 वर्षों में दोगुना हो सकता है। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) के इस विकास में सबसे बड़ा योगदान जियो (Jio) का माना जा रहा है। इसके अतिरिक्त रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) ने स्वयं को पूरी तरह से ऋण मुक्त कंपनी घोषित कर दिया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ पर 31 मार्च, 2020 तक 1,61,035 करोड़ रुपए का शुद्ध ऋण था। इससे पूर्व रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) ने मात्र दो माह के भीतर वैश्विक निवेशकों और ‘राइट इश्यू’ तंत्र के माध्यम से कुल 1.69 लाख करोड़ रुपए प्राप्त किये थे। विश्व की सबसे अधिक मूल्यवान कंपनियों की सूची में 1.7 लाख करोड़ डॉलर के साथ सऊदी अरामको (Saudi Aramco) शीर्ष स्थान पर है। इसके बाद एप्पल (Apple), माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) और अमेज़न (Amazon) का स्थान आता है।

विश्व शरणार्थी दिवस

विश्व भर में शरणार्थियों की स्थिति के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्ष 20 जून को ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य विश्व भर के शरणार्थियों की शक्ति, हिम्मत और दृढ़ निश्चय एवं उनके प्रति सम्मान को स्वीकृति देना है। यह दिवस मुख्यतः उन लोगों के प्रति समर्पित है,  जिन्हें प्रताड़ना, संघर्ष और हिंसा की चुनौतियों के कारण अपना देश छोड़कर बाहर भागने को मज़बूर होना पड़ता है। इस दिवस का आयोजन वस्तुतः शरणार्थियों की दुर्दशा और समस्याओं का समाधान करने हेतु किया जाता है। वर्ष 2020 के लिये विश्व शरणार्थी दिवस की थीम ‘एवरी एक्शन काउंट्स’ (Every Action Counts) चुनी गई है। अफ्रीकी देशों की एकता को अभिव्यक्त करने के लिये 4 दिसंबर, 2000 को संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में वर्ष 2001 को शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित वर्ष 1951 की संधि की 50वीं वर्षगाँठ के रूप में चिह्नित किया गया। ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी (AOU) अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी दिवस को अफ्रीकी शरणार्थी दिवस के साथ 20 जून को मनाने के लिये सहमत हो गया। एक शरणार्थी का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से होता है जिसे उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण उसके देश से भागने के लिये मज़बूर किया गया है।