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डेली न्यूज़

  • 20 Jun, 2019
  • 44 min read
शासन व्यवस्था

उत्तर प्रदेश के सभी निजी विश्वविद्यालयों के लिये एक कानून

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश निजी विश्वविद्यालय अध्यादेश, 2019 (Uttar Pradesh Private University Ordinance-UPPUO) को मंज़ूरी दी। इस अध्यादेश के बाद उत्तर प्रदेश के सभी निजी विश्वविद्यालय एक समान कानून से शासित होंगे।

मुख्य बिंदु

  • राष्ट्रीय एकीकरण, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक सद्भाव, अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना, नैतिक उन्नति और देशभक्ति को UPPUO के तहत विश्वविद्यालयों के उद्देश्यों में शामिल किया गया है।
  • विश्वविद्यालय का निर्माण अथवा गठन करने के लिये अब एक वचन पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होगा। वचन पत्र में ये घोषणा करनी होगी कि विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी प्रकार की देश विरोधी गतिविधियों का संचालन नहीं होने दिया जाएगा। यदि इस प्रकार के कृत्य परिसर में होते हुए पाए जाते हैं तो इनको विश्वविद्यालय निर्माण की शर्तों का उल्लंघन माना जाएगा। ऐसे मामलों में उत्तर प्रदेश सरकार आवश्यक कार्यवाही करने के लिये अधिकृत होगी।
  • उत्तर प्रदेश के सभी नए निजी विश्वविद्यालय तथा पुराने 27 विश्वविद्यालय UPPUO से शासित होंगे इससे पहले सभी निजी विश्वविद्यालय भिन्न-भिन्न अधिनियमों के माध्यम से शासित होते थे।
  • नई प्रणाली में शुल्क संरचना, शिक्षा की गुणवत्ता तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) के दिशा-निर्देशों को लागू कराने में एकरूपता लाई जाएगी। अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के अनुभवों का उपयोग भी इस प्रणाली में किया जाएगा।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

(University Grants Commission- UGC)

  • 28 दिसंबर, 1953 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने औपचारिक तौर पर यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन की नींव रखी थी।
  • विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग विश्‍वविद्यालयी शिक्षा के मापदंडों के समन्‍वय, निर्धारण और अनुरक्षण हेतु 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा स्‍थापित एक स्‍वायत्‍त संगठन है।
  • पात्र विश्‍वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के अतिरिक्‍त, आयोग केंद्र और राज्‍य सरकारों को उच्‍चतर शिक्षा के विकास हेतु आवश्‍यक उपायों पर सुझाव भी देता है।
  • इसका मुख्यालय देश की राजधानी नई दिल्ली में अवस्थित है। इसके छः क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलूरू में हैं।
  • विश्वविद्यालय में न्यूनतम 75 प्रतिशत स्थाई शिक्षकों का होना आवश्यक होगा तथा शिक्षकों गुणवत्ता की ऑनलाइन निगरानी की जाएगी।
  • शहर में किसी विश्वविद्यालय के निर्माण के लिये न्यूनतम 20 एकड़ भूमि का होना आवश्यक होगा जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वविद्यालय निर्माण के लिये 50 एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी। मौजूदा 27 विश्वविद्यालयों को इस स्थिति में आने के लिये एक वर्ष का समय दिया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अधिक शक्तिशाली एंथ्रेक्स (Anthrax) टीका

चर्चा में क्यों?

भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने हाल ही में एंथ्रेक्स (Anthrax) नामक बीमारी का नया टीका विकसित किया है जिसके संदर्भ में यह दावा किया जा रहा है कि यह पहले से मौजूद टीके से काफी अधिक प्रभावशाली है, क्योंकि यह न सिर्फ एंथ्रेक्स विष (AnthraxToxin) के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता है बल्कि उसके बीजाणुओं (Spores) से भी हमारी रक्षा करता है।

मुख्य बिंदु :

  • एंथ्रेक्स (Anthrax) एक जानलेवा संक्रामक रोग है जो अन्थ्रासिस (Anthracis) जीवाणुओं के संपर्क में आने से होता है। यह इंसानों सहित कई जानवरों जैसे - घोड़ों, गायों, बकरियों और भेड़ों को भी प्रभावित कर सकता है।
  • वर्ष 2001 में एंथ्रेक्स बीजाणुओं का प्रयोग कुछ लोगों द्वारा जैव-आतंकवाद (Bio-Terrorism) के लिये किया गया था, कुछ अमेरिकी लोगों को ऐसे पत्र प्राप्त प्राप्त हुए थे जिनमे ये बीजाणु मौजूद थे, इस घटना के कारण कई अमेरिकी नागरिकों की मृत्यु हो गई थी और कई लोग संक्रमित हुए थे।
  • एंथ्रेक्स के जीवाणु मिट्टी में मौजूद होते हैं और कई वर्षों तक अव्यक्त (Latent) अवस्था में रहते हैं।
  • हालाँकि अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थियों में ये जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं और संक्रमित कर सकते हैं। अक्सर जानवर घास खाने के दौरान अन्थ्रासिस (Anthracis) जीवाणुओं को भी ग्रहण कर लेते हैं जिससे उनके भीतर विषाक्त पदार्थ उत्पन्न हो जाते हैं और वे इस जानलेवा बीमारी का शिकार हो जाते हैं।

Anthrax

  • बाज़ार में उपलब्ध एंटी-एंथ्रेक्स टीके बैसिलस प्रोटीन (Bacillus Protein), जो हमारी कोशिकाओं में विषाक्त पदार्थों के संचार के लिये उत्तरदायी हैं, के विरुद्ध प्रतिरक्षा क्षमता उत्पन्न करते हैं। जिसका अर्थ है कि ये टीके तभी कार्य करते हैं जब बीजाणु शरीर में अंकुरित हो जाते हैं या सक्रिय होते हैं।
  • परंतु शोधकर्त्ताओं का मानना था कि हमारे शरीर में कुछ निष्क्रिय बीजाणु भी होते हैं जो दीर्घकाल में हमे प्रभावित कर सकते हैं।
  • रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (Defence Research and Development Laboratory) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University - JNU) के शोधकर्त्ताओं ने इसी विषय के साथ ऐसे टीके का निर्माण किया जो विषाक्त पदार्थों और बीजाणुओं दोनों के विरुद्ध कुशलता से कार्य कर सके।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार यह टीका मानवीय दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह संक्रमण किसी के लिये भी 2-3 दिनों के भीतर जानलेवा साबित हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन


शासन व्यवस्था

सूखे से निपटने के लिये नया टूलबॉक्स

संदर्भ

सूखे के स्थिति का निर्धारण करने की प्रक्रिया लगभग सभी देशों में बहुत ही बोझिल एवं जटिल है और कई बार इसके प्रतिकूल परिणाम भी देखने को मिलते हैं। इस जटिल प्रक्रिया को समाप्त करने के लिये सभी देशों द्वारा वैश्विक स्तर पर अथक प्रयास किये गए हैं जिसके परिणामस्वरूप विशेषज्ञों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने आसानी-से-प्रयोग होने वाला एक सूखा निगरानी और पूर्वानुमान तंत्र विकसित किया है।

प्रमुख बिंदु :

  • वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (The United Nations Convention to Combat Desertification - UNCCD) इस टूलबॉक्स का परीक्षण कर रहा है।
  • UNCCD के अनुसार यह टूलबॉक्स सूखे के खतरे और उस भौगोलिक क्षेत्र की संवेदनशीलता की जाँच करने के लिये कुल 15 से 30 मापदंडों का प्रयोग करता है।
  • UNCCD इस टूलबॉक्स को डिज़ाइन करने के लिये अमरीका स्थित नेब्रास्का विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अतिरिक्त कई अन्य संयुक्त राष्ट्र संगठनों जैसे- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation) और खाद्य और कृषि संगठन सहित (Food and Agriculture Organisation) आदि के साथ भी काम कर रहा है।
  • यह टूलबॉक्स एक ऑनलाइन वेब प्लेटफॉर्म है जहाँ सूखे से बचाव के लिये सभी उपाय मौजूद होंगे और साथ ही इससे संबंधित सभी अन्य संगठनों के लिंक भी मौजूद होंगे।
  • इस टूलबॉक्स को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है

1. निर्णयकर्त्ताओं द्वारा उपयोग होना वाला निगरानी, पूर्व चेतावनी और पूर्वानुमान यंत्र (monitoring, early warning and forecasting tools)

2. हॉटस्पॉट ज्ञात करने के लिये संवेदनशीलता मूल्यांकन यंत्र (vulnerability assessment tools)

3. प्रमुख नीतियों और उपायों के साथ जोखिम न्यून उपकरण (risk mitigation tools)

  • उपकरण की आवश्यकता
    • इसका उपयोग सभी देशों द्वारा सूखे की संवेदनशीलता का आकलन और मूल्यांकन करने के लिये किया जाएगा।
    • यह देशों को सूखे से निपटने के लिये उनकी तैयारियों को मज़बूत करने में भी मदद करेगा।

‘संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन’

  • संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत तीन रियो समझौतों (Rio Conventions) में से एक है। अन्य दो समझौते हैं-
    • जैव विविधता पर समझौता (Convention on Biological Diversity- CBD)।
    • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता (United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC)।
  • UNCCD एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
  • मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाने की घोषणा वर्ष 1994 में की गई थी।
  • तब से प्रत्येक वर्ष 17 जून को ‘विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रिज़र्व बैंक बेसल III मानकों को पूरा करने में पीछे

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में बैंकों के पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (Basel Committee on Bank Supervision-BCBS) की अर्द्ध वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक बेसल III मानकों को लागू करने में अपने लक्ष्य से पीछे है।

मुख्य बिंदु

  • समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत के केंद्रीय बैंक ने अब तक कुल हानि-अवशोषण क्षमता (Total Loss-Absorbing Capacity-TLAC) ज़रूरतों पर प्रतिभूतिकरण रूपरेखा (Securitisation Framework) और नियमों को अब तक प्रकाशित नहीं किया है जबकि वैश्विक स्तर पर ये नियम 1 जनवरी 2018 से लागू हो गए थे।

बेसल III (Basel III)

  • बेसल III मानक बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • ये मानक बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों की एक श्रंखला प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा बैंकों के विनियमों को सुधारने, जोखिम प्रबंधन और बैंकों का पर्यवेक्षण किया जाता है।
  • बेसल III मानक 2008 की मंदी के बाद लाए गए थे।

बेसल 3 मानक तीन स्तंभों पर आधारित हैं:

स्तंभ 1: वित्तीय और आर्थिक अस्थिरता से उत्पन्न होने वाले उतार-चढ़ाव को अवशोषित करने की बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता में सुधार।

स्तंभ 2: बैंकिंग क्षेत्र की जोखिम प्रबंधन क्षमता और शासन में सुधार।

स्तंभ 3: बैंकों की पारदर्शिता और प्रकटीकरण को मज़बूत करना।

Basel III

  • भारतीय रिज़र्व बैंक TLAC ज़रूरतों को पूरा करने के समय से भी चूक गया है। TLAC आवश्यकताएँ सुनिश्चित करती हैं की बैंकों के पास पर्याप्त रूप से हानि को अवशोषित करने तथा पुन:पूँजीकरण की पर्याप्त क्षमता (loss absorbing and recapitalisation capacity) हो ताकि कठिन समय में भी बैंकों के आवश्यक कार्य बेहतर तरीके से संचालित होते रहें।
  • TLAC जोखिम-भारित परिसंपत्तियों (Risk-Weighted Assets) का 16% से 20% हिस्सा होता है। जोखिम-भारित संपत्ति का उपयोग पूंजी की न्यूनतम राशि निर्धारित करने के लिये किया जाता है जो कि दिवालिया होने के जोखिम को कम करने के लिये बैंकों और अन्य संस्थानों द्वारा आयोजित की जानी चाहिये। पूंजी की आवश्यकता प्रत्येक प्रकार की बैंक संपत्ति के लिये जोखिम मूल्यांकन पर आधारित होती है। उदाहरण के लिये, एक ऋण जिसे ऋण पत्र द्वारा सुरक्षित किया जाता है, उसे जोखिम भरा माना जाता है।

बैंक सर्वेक्षण पर बेसल समिति

(Basel Committee on Bank Survey- BCBS)

  • बैंक सर्वेक्षण पर बेसल समिति (Basel Committee on Bank Survey- BCBS) अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (Bank For International Settlements-BIS) के अंतर्गत एक समिति है जो वैश्विक प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंकों (Global Systemically Important Banks: G-sibs) में बेसल III नियमों को लागू होने की स्थिति पर नज़र रखती है इस समिति का मुख्य कार्य बैंकों में पर्यवेक्षण की गुणवत्ता को वैश्विक स्तर पर सुधारना है।
    • वर्ष 1930 में स्थापित BIS 60 केंद्रीय बैंकों के स्वामित्व में है, जो दुनिया भर के देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा कुल वैश्विक GDP में इनकी हिस्सेदारी 95% है।
    • BIS मुख्यालय बासेल, स्विटज़रलैंड में है।
  • समिति एक पद्धति जिसमें मात्रात्मक संकेतक और गुणात्मक तत्त्व दोनों शामिल होते हैं का उपयोग करते हुए वैश्विक प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंकों (G-sibs) की पहचान करती है ।

G-sibs

  • वैश्विक रूप से महत्त्वपूर्ण बैंक (Global Systemically Important Banks: G-sibs) एक ऐसा बैंक है जिसका प्रणालीगत जोखिम प्रोफ़ाइल इस तरह के महत्त्ब के रूप में माना जाता है कि बैंक की विफलता एक व्यापक वित्तीय संकट को जन्म दे सकती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये संकट की स्थिति उत्त्पन्न हो सकती है।

स्रोत: लाइव मिंट


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ICANN और NASSCOM की साझेदारी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैश्विक इंटरनेट निकाय ICANN और भारतीय आईटी उद्योग निकाय NASSCOM ने पहचानकर्त्ता तकनीक (Identifier Technology) जिसका उपयोग इंटरनेट का उपयोग करने वाले उपकरणों और बुनियादी ढाँचे के प्रबंधन के लिये किया जा सकता है को विकसित करने के लिये आपसी साझेदारी की घोषणा की।

  • इस साझेदारी/सहयोग के अंतर्गत दोनों निकाय पहले ‘डोमेन नेम सिस्टम’ (Domain Name System- DNS) का उपयोग करके इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things- IoT) उपकरणों को अपडेट करेंगे। अपडेट प्रक्रिया उस स्थिति में भी की जाएगी जब निर्माता या आपूर्तिकर्त्ता ने व्यवसाय बंद कर दिया हो।
  • यह सहयोग दोनों निकायों को संयुक्त रूप से अनुसंधान परियोजनाओं की पहचान करने के लिये, विशेष रूप से अद्वितीय पहचानकर्त्ताओं की इंटरनेट प्रणाली से संबंधित नई तकनीकों हेतु एक संरचना प्रदान करता है।
  • पहली अनुसंधान परियोजना IoT फर्मवेयर को आधुनिक बनाने के लिये DNS के उपयोग का परीक्षण करने और एक प्रयोगशाला के बाहर के वातावरण में प्रस्तावित तकनीक को विकसित करने पर केंद्रित है।

इंटरनेट ऑफ थिंग्स

Internet of Thing (IoT)

    • इंटरनेट ऑफ थिंग्स सरल सेंसर से लेकर स्मार्टफोन और धारणीय उपकरणों से मिलकर बना है।
    • IoT दूसरों के साथ संचार करने के बाद बंद निजी इंटरनेट कनेक्शन पर उपकरणों की अनुमति देता है और इंटरनेट ऑफ थिंग्स उन नेटवर्क को एक साथ लाता है।
    • यह उपकरणों के लिये न केवल एक समान नेटवर्क में बल्कि विभिन्न नेटवर्किंग प्रकारों में संचार करने का अवसर देता है जिससे एक मज़बूत नेटवर्क बनता है।
  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) सामान्य रूप से इंटरनेट का एक नेटवर्क है जो उन वस्तुओं को आपस में जोड़ता है जो डेटा को संग्रहित और परिवर्तित करने में सक्षम हैं।
  • इसके मुख्यतः दो भाग होते हैं-
    • इंटरनेट: यह कनेक्टीविटी का आधार होता है।
    • थिंग: इसके अंतर्गत वस्तुयें या उपकरण आते हैं।

इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स

(Internet Corporation for Assigned Names and Numbers-ICANN)

  • यह एक गैर-लाभकारी संगठन है।
  • यह इंटरनेट के नेमस्पेस और न्यूमेरिकल स्पेस से संबंधित कई डेटाबेस के रख-रखाव और विभिन्न प्रक्रियाओं के बीच समन्वय के लिये ज़िम्मेदार है जो नेटवर्क के स्थिर और सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करता है।
  • यह विभिन्न डेटाबेस के रखरखाव और कार्यप्रणाली के समन्वय जो अद्वितीय पहचानकर्त्ताओं के साथ, इंटरनेट के नेमस्पेस से संबंधित है, के लिये ज़िम्मेदार है। इस तरह यह नेटवर्क के स्थिर और सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करता है।
  • ICANN विविध निदेशक मंडल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संचालित होता है, जो नीति निर्माण प्रक्रिया की देखरेख करता है। I

नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज

(National Association of Software and Services Companies- NASSCOM)

  • NASSCOM एक गैर-लाभकारी औद्योगिक संघ है जो भारत में IT उद्योग के लिये सर्वोच्च निकाय है
  • वर्ष 1988 में स्थापित NASSCOM के महत्त्वपूर्ण प्रयासों के कारण भारत के IT (Information Technology) और BPO (Business Process Outsourcing) उद्योग में काफी सहयोग मिल रहा है।
  • इसने भारत के GDP, निर्यात, रोजगार, बुनियादी ढाँचे और वैश्विक दृश्यता में अभूतपूर्व योगदान दिया है।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड्स


सामाजिक न्याय

अवेयर (AWARe)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने एक वैश्विक अभियान के तहत सभी देशों से अपने नए ऑनलाइन टूल अवेयर (AWARe) को अपनाने का आग्रह किया है।

  • इसका उद्देश्य सुरक्षित रूप से और अधिक प्रभावी ढंग से एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करने के लिये नीति-निर्माताओं और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं का मार्गदर्शन करना तथा प्रतिरोध के जोखिम वाली दवाओं को सीमित करना है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान में एंटीबायोटिक दवाओं के सभी वर्गों द्वारा अनुपचारित संक्रमणों के उभरने से प्रतिसूक्ष्मजीवी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) ‘एक अदृश्य महामारी’ बन गया है।
  • नई दवाओं के विकास की अनुपस्थिति में इन कीमती (अंतिम स्तर पर देने वाली) एंटीबायोटिक दवाओं को सुरक्षित करना वर्तमान समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है ताकि गंभीर संक्रमणों का इलाज और रोकथाम सुनिश्चित किया जा सके।
  • इस उपकरण को 'AWARe' के रूप में जाना जाता है, यह एंटीबायोटिक दवाओं को तीन समूहों में वर्गीकृत करता है:

1. एक्सेस (Access) समूह- एंटीबायोटिक्स का उपयोग सबसे आम और गंभीर संक्रमणों के इलाज के लिये किया जाता है।

2. निगरानी (Watch) समूह- स्वास्थ्य प्रणाली में एंटीबायोटिक्स की हर समय उपलब्धता।

3. रिज़र्व (Reserve) समूह- संयमपूर्वक उपयोग की जाने वाली अथवा संरक्षित दवाएँ जिनका प्रयोग केवल अंतिम उपयोग के रूप में किया जाता है।

  • इस अभियान का लक्ष्य एक्सेस समूह के तहत एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में 60 प्रतिशत की वृद्धि हासिल करना है इसके अंतर्गत सस्ती, 'संकीर्ण-स्पेक्ट्रम' दवाइयों को शामिल किया गया है जो कई के बजाय एक विशिष्ट सूक्ष्मजीव को लक्षित करती हैं और वॉच और रिज़र्व समूहों से प्रतिरोध के जोखिम पर एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग में कमी लाएँ।
  • एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस वर्तमान समय के सबसे जरूरी स्वास्थ्य जोखिमों में से एक है।
  • सभी देशों की जीवन-रक्षक एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने और सबसे मुश्किल उपचार संक्रमणों के लिये कुछ एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को सीमित करके दवा प्रतिरोध को कम करने हेतु संतुलन स्थापित किया जाना चाहिये।
  • ऐसी स्थिति में देशों ‘AWARe’ को अपनाना चाहिये क्योंकि यह एक मूल्यवान और व्यावहारिक उपकरण है।
  • एक ब्रिटिश समीक्षा के अनुसार, एंटीबायोटिक प्रतिरोध पहले से ही सबसे बड़े स्वास्थ्य जोखिमों में से एक है इसके कारण वर्ष 2050 तक दुनिया भर में 50 मिलियन लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया है।
  • हाल ही में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध पर अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समूह द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, कई देशों में 50 प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग अनुचित तरीके से किया जाता है, उदाहरण के लिये वायरस के इलाज हेतु बैक्टीरिया के संक्रमण या गलत एंटीबायोटिक का उपयोग किया जाता है।
  • इसके अलावा कई निम्न और मध्यम-आय वाले देशों में प्रभावी और उचित एंटीबायोटिक दवाओं तक कम पहुँच बाल मृत्यु अथवा बचपन में ही बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष एजेंसी है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) को बढ़ावा देना है।
  • इसकी स्थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी। इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में अवस्थित है। डब्ल्यू.एच.ओ. संयुक्त राष्ट्र विकास समूह (United Nations Development Group) का सदस्य है। इसकी पूर्ववर्ती संस्था ‘स्वास्थ्य संगठन’ लीग ऑफ नेशंस की एजेंसी थी।
  • यह दुनिया में स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी मामलों में नेतृत्‍व प्रदान करने, स्‍वास्‍थ्‍य अनुसंधान एजेंडा को आकार देने, नियम और मानक तय करने, प्रमाण आधारित नीतिगत विकल्‍प पेश करने, देशों को तकनीकी समर्थन प्रदान करने और स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी रुझानों की निगरानी और आकलन करने के लिये ज़िम्‍मेदार है।
  • यह आमतौर पर सदस्‍य देशों के साथ उनके स्वास्थ्य मंत्रालयों के ज़रिये जुड़कर काम करता है।

एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध

  • आज से लगभग 88 वर्ष पहले कई बीमारियों से लड़ने के लिये चिकित्सा जगत में कोई कारगर दवा नहीं थी। लेकिन, एंटीबायोटिक के अविष्कार ने चिकित्सा जगत को एक मैजिक बुलेट थमा दी।
  • 20वीं सदी के शुरुआत से पहले सामान्य और छोटी बीमारियों से भी छुटकारा पाने में महीनों लगते थे, लेकिन एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स (एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, और एंटीवायरल दवाएँ) के इस्तेमाल से बीमारियों का त्वरित और सुविधाजनक इलाज़ होने लगा।
  • एंटीबायोटिक समेत एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स का अत्याधिक सेवन स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स के अधिक और अनियमित प्रयोग से इसका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जाता है।
  • विदित हो कि प्रत्यके व्यक्ति एक सीमित स्तर तक ही एंटीबायोटिक ले सकता है, इससे अधिक एंटीबायोटिक लेने से मानव शरीर एंटीबायोटिक के प्रति अक्रियाशील हो जाता है।
  • प्रायः देखा जाता है कि वायरस के कारण होने वाली बीमारियों में भी लोग जानकारी के अभाव के चलते एंटीबायोटिक दवा लेने लगते हैं।
  • किसी नए प्रकार के आक्रमण से बचाव के लिये एक अलग प्रकार का प्रतिरोध विकसित करना प्रत्येक जीव का स्वाभाविक गुण है और सूक्ष्मजीवियों के साथ भी यही हुआ है।
  • गौरतलब है कि सूक्ष्मजीवियों को प्रतिरोध विकसित करने का अवसर उपलब्ध कराया है, एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स के अत्यधिक उपयोग ने।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

विकसित देशों में टीकाकरण के प्रति कम विश्वसनीयता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए एक नए अध्ययन में पाया गया कि संपन्न और अधिक विकसित राष्ट्र विकासशील देशों की तुलना में टीकाकरण (Vaccination) पर कम भरोसा करते हैं। यह अध्ययन Wellcome तथा Gallup द्वारा किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वेक्षण के अनुसार, यूरोप के लोग टीकाकरण में सबसे कम भरोसा करते है।
  • संपन्न देशों में रहने वाले नागरिकों को टीकों में सबसे कम विश्वास है जिसके परिणामस्वरुप टीकाकरण विरोधी आंदोलन प्रारंभ हो गए हैं। इन देशों में रहने वाले लोग टीकाकरण के लाभों पर विश्वास करने से इनकार करते हैं तथा यह दावा करते हैं कि टीकाकरण उपचार खतरनाक व जानलेवा है
  • फ्राँस के नागरिकों में टीकाकरण पर विश्वसनीयता का स्तर निम्नतम स्तर पर है, क्योंकि यहाँ के एक तिहाई (33%) लोग इस बात से सहमत नहीं हैं कि टीकाकरण सुरक्षित है।
  • वैश्विक स्तर पर 79% लोग इस बात से सहमत थे कि टीके सुरक्षित हैं जबकि 84% लोगों का मानना है कि प्रभावी टीकाकरण प्रभावी रूप से कार्य करता है।
  • बांग्लादेश और रवांडा में टीकों में विश्वसनीयता उच्चतम स्तर पर थी, इन दोनों देशों में लगभग 100% नागरिक इस बात से सहमत थे कि टीके बच्चों के लिये सुरक्षित एवं प्रभावी हैं।
  • टीकों में कम विश्वास से अमेरिका, फिलीपींस और यूक्रेन जैसे देशों खसरा रोग स्वास्थ्य से जुड़े जोखिमों में से एक है।
  • अप्रैल, 2019 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2010 से 2017 के बीच खसरे के टीके की पहली खुराक से लगभग 169 मिलियन बच्चे छूट गए थे।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कार्बन क्वांटम डॉट्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम के वैज्ञानिकों की टीम ने एक रासायनिक प्रक्रिया विकसित की है जिसके द्वारा खराब कोयले को बायोमेडिकल ’डॉट’ के रूप में बदला जा सकता है। इसके माध्यम से कैंसर कोशिकाओं (Cancer cell) का पता लगाने में सहायता मिलती है।

  • वैज्ञानिकों ने इस रासायनिक प्रविधि के पेटेंट हेतु आवेदन किया है, जो सस्ते, प्रचुर मात्रा में उपलब्ध, निम्न-गुणवत्ता और उच्च-सल्फर वाले कोयले से कार्बन क्वांटम डॉट्स (Carbon Quantum Dots-CQDs) बनाने में सहायक है।

प्रमुख बिंदु

  • CQDs कार्बन-आधारित अतिसूक्ष्म पदार्थ (Nanomaterials) हैं। जिनका आकार 10 नैनोमीटर या इससे भी कम होता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, कार्बन-आधारित नैनोमैटेरियल (Carbon-based nanomaterials) का उपयोग जैव-इमेजिंग के लिये नैदानिक ​​उपकरणों के रूप में किया जाता है तथा इनका प्रयोग विशेष रूप से कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने, रासायनिक संवेदन और ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स (Opto-Electronics) में किया जाता है।
  • जापान और अमेरिका की कई केमिकल कंपनियाँ इन CQDs का उत्पादन कर रही हैं। असम के वैज्ञानिकों ने फ्लोरोसेंट कार्बन नैनोमैटेरियल्स को CQDs की आयातित लागत से अत्यधिक कम कीमत (आयात लागत का 1/20 भाग) पर विकसित किया है।
  • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (Council of Scientific & Industrial Research-North East Institute of Science and Technology-CSIR-NEIST) के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किये गए अध्ययन को जर्नल ऑफ़ फ़ोटोकेमिस्ट्री एंड फ़ोटोबायोलॉजी (Journal of Photochemistry and Photobiology) में प्रकाशित किया गया। प्रकाशित अनुसंधान के अनुसार, CQDs में उच्च-स्थिरता (High-Stability), उत्तम-चालकता (Good-Conductivity) , कम-विषाक्तता (Low-Toxicity), पर्यावरण-मित्र (Environmental Friendliness) और अच्छे ऑप्टिकल गुण (Optical Properties) भी पाए जाते हैं।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रणाली में स्रोत के रूप में प्रयुक्त होने वाला कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है और इस निम्न गुणवत्ता वाले कोयले का प्रयोग बिजली उत्पादन के लिये भी नहीं किया जा सकता हैं।
  • CSIR-NEIST तकनीक द्वारा प्रतिदिन लगभग 1 लीटर CQDs का उत्पादन किया जा सकता है जिसमें आने वाला खर्च इसके आयात की लागत से भी कम होता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रविधि के अन्य लाभ ये हैं कि यह पर्यावरण के अनुकूल अभिकर्मकों के रूप में कार्य करता है तथा इसमें पानी का कम प्रयोग होता हैं। इस प्रक्रिया को एक प्रबंधनीय आपूर्ति श्रृंखला के साथ पुनर्चक्रित (Recycle) किया जा सकता है।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान

(Council of Scientific & Industrial Research-North East Institute of Science and Technology-CSIR-NEIST)

  • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में जोरहाट में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की बहु-विषयक प्रयोगशाला के रूप में हुई थी।
  • इसकी अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का प्रमुख उद्देश्य स्वदेशी तकनीक द्वारा भारत की अपार प्राकृतिक संपदा का महत्तम उपयोग करना है।
  • विगत वर्षों में, प्रयोगशाला ने एग्रोटेक्नोलाजी, जैविक और तेल क्षेत्र रसायन के क्षेत्रों में 100 से अधिक प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं, जिनमें से लगभग 40% प्रौद्योगिकियों ने विभिन्न उद्योगों की स्थापना करने एवं उनकी व्यावसायिक सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (20 June)

  • 20 जून को दुनियाभर में विश्व शरणार्थी दिवस का आयोजन किया जाता है। यह दिवस शरणार्थियों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने और उनकी समस्याओं को हल करने के प्रति जागरूकता बढ़ाने हेतु मनाया जाता है। शरणार्थी उन्हें कहा जाता है, जिन्हें युद्ध, प्रताड़ना, संघर्ष और हिंसा की वज़ह से अपना देश छोड़कर अन्यत्र पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता है। दिसंबर 2000 में संयुक्त राष्ट्र ने अफ्रीका शरणार्थी दिवस यानी 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था और वर्ष 2001 से प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाता है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था United Nations High Commissioner for Refugees (UNHCR) शरणार्थियों की सहायता करने के लिये ही बनी है। इस वर्ष इस दिवस की थीम #StepWithRefugees—Take A Step on World Refugee Day रखी गई है।
  • राजस्थान के कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र से दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुए भाजपा के ओम बिड़ला निर्विरोध 17वीं लोकसभा के स्पीकर चुने गए। वह राजस्थान के हाड़ौती अंचल से देश के प्रमुख संवैधानिक पद पर बैठने वाले पहले नेता हैं। ओम बिड़ला ऊर्जा पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य हैं तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की याचिका समिति एवं परामर्श समिति के भी सदस्य हैं। गौरतलब है कि पिछली लोकसभा में इंदौर से भाजपा सांसद सुमित्रा महाजन स्पीकर थीं। लोकसभा के पहले स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर थे, जो 15 मई, 1952 से 27 फरवरी, 1956 तक पद पर रहे। लोकसभा स्पीकर के लिये संविधान में कहा गया है कि संसद सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और स्पीकर सदन के ही पूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। वह उस सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है जिसकी वह अध्यक्षता करता है। अतः यह अपेक्षा की जाती है कि इस उच्च गरिमा वाले पद पर एक ऐसा व्यक्ति आसीन हो, जो हर तरह से सदन का प्रतिनिधित्व कर सके।
  • 15 जून को विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार रोकथाम जागरूकता दिवस (World Elder Abuse Awareness Day) का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य संपूर्ण विश्व में बुजुर्गों के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार एवं उनके कष्टों के विरुद्ध आवाज़ उठाना है। ज्ञातव्य है कि विश्वभर में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है और उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार में भी बढ़ोतरी हो रही है। बुजुर्गों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार आज एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। हेल्पएज इंडिया ने अपने एक सर्वे के बाद 'भारत में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार: देखरेख करने में परिवार की भूमिका: चुनौतियाँ और प्रतिक्रिया रिपोर्ट पेश की है, जिसमें बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के विभिन्न तरीकों को लेकर चिंता जताई गई है। ज्ञातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2011 में पहली बार इस दिवस का आयोजन किया गया था। विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार रोकथाम जागरूकता दिवस की इस वर्ष की थीम Lifting Up Voices रखी गई है।
  • नेपाल में काठमांडू घाटी तथा उसके बाहर के कई बड़े निजी स्कूलों ने अपने विद्यार्थियों के लिये मंदारिन (चीनी भाषा) सीखना अनिवार्य कर दिया है। नेपाल में मंदारिन पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतन का भुगतान चीन की सरकार करेगी। माना जा रहा है कि इन स्कूलों ने इस नेपाली प्रावधान की अनदेखी की है कि वे किसी भी विषय को अनिवार्य नहीं बना सकते। नेपाल में स्कूल का पाठ्यक्रम तैयार करने वाली इकाई करिकुलम डिवेलपमेंट सेंटर के दिशा-निर्देश के मुताबिक, नेपाल के स्कूल विद्यार्थियों को विदेशी भाषा पढ़ा सकते हैं, लेकिन वह इसे अनिवार्य नहीं बना सकते। यदि किसी विषय को अनिवार्य किया जाना है, तो यह निर्णय केवल सरकार ही ले सकती है। चीन की तरफ नेपाल का लगातार झुकाव भारत के लिये चिंता का कारण हो सकता है। पिछले पाँच वर्षों में चीन ने नेपाल में भारी निवेश किया है तथा चीन के नेतृत्व वाली अरबों डॉलर लागत वाली मेगा बुनियादी ढाँचा परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में नेपाल भी शामिल है, जिसका भारत लगातार विरोध करता रहा है। गौरतलब है कि इस परियोजना के एक हिस्से के रूप में चीन काठमांडू से जाइगेज को जोड़ता हुआ एक ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क का निर्माण कर रहा है।
  • हाल ही में माउंट एवरेस्ट पर दुनिया के सबसे ऊँचे मौसम केंद्र स्थापित किए गए हैं। नेपाल सहित आठ देशों के वैज्ञानिकों और पर्वतारोहियों की टीम ने गत अप्रैल से जून के बीच पाँच मौसम केंद्र स्थापित किये हैं। इसके लिये द नेशनल जियोग्राफिक सोसायटी और नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में विशेष अभियान चलाया गया था। इनमें से एक केंद्र एवरेस्ट के बालकोनी क्षेत्र में 8430 मीटर की ऊँचाई पर और दूसरा साउथ कोल में 7945 मीटर की ऊँचाई पर स्थापित किया गया है। ये दोनों ही स्वचालित मौसम केंद्र हैं। इनके अलावा एवरेस्ट के बेस कैंप (5,315 मीटर), कैंप-2 (6,464 मीटर) और फोर्टसे (3,810 मीटर) पर तीन अलग-अलग मौसम केंद्र स्थापित किये गए हैं। ये सभी केंद्र तापमान, आर्द्रता, दबाव, हवा की गति और दिशा के बारे में जानकारी इकट्ठा करेंगे। इनके द्वारा जुटाए गए डेटा से पर्वतीय क्षेत्र में मौसम संबंधी खतरों का सही समय पर पूर्वानुमान लग सकेगा। बालकोनी क्षेत्र के मौसम केंद्र से हमारे वायुमंडल की दूसरी सतह यानी स्ट्रेटोस्फ़ीयर में होने वाले बदलाव की भी निगरानी की जा सकेगी।

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