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डेली न्यूज़

  • 20 Apr, 2019
  • 25 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

भारतीयों में ज़िंक की कमी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हार्वर्ड टी. एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (Harvard T.H. Chan School of Public Health) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, हवा में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ने से भारतीय फसलों में ज़िंक/जस्ते की कमी हो रही है, जिससे मनुष्यों के भोजन के पोषण स्तर पर असर पड़ रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 1983 से 2012 के बीच जस्ता सेवन में कमी की राष्ट्रीय दर 17% से 25% तक बढ़ गई, जिससे विशेष रूप से बच्चों में मलेरिया, डायरिया और निमोनिया जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है।
  • बढ़ते कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन के अलावा लोगों के नियमित आहार में परिवर्तन तथा जनसंख्या की बढ़ती आयु भी ज़िंक की कमी को बढ़ाने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • एक अध्ययन के अनुसार, ज़िंक के अपर्याप्त सेवन की उच्चतम दर मुख्य रूप से दक्षिणी और उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे कि केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मणिपुर और मेघालय में है जहाँ का मुख्य आहार चावल है।
  • क्योंकि चावल में ज़िंक की मात्रा बहुत कम पाई जाती है। अतः जिनकी खाद्य निर्भरता चावल के फसलों पर अधिक होती है ऐसे लोगों के आहार में इसकी कमी बढ़ जाती है।
  • आने वाले दशकों में CO2 का स्तर बढ़ने से इस प्रवृत्ति में और भी तेज़ी आ सकती है।

ज़िंक/जस्ता का महत्त्व

  • मनुष्य के शरीर में जस्ते की उपस्थिति मानव प्रतिरक्षा प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शरीर में इसकी उपस्थिति बीमारियों की भेद्यता बढ़ाती है।
  • अध्ययन के अनुसार, शहरी आबादी विशेष रूप से शहरी धनी समूहों, जिनके आहार में उच्च कैलोरी और पोषक तत्त्व साथ ही खराब वसा और शर्करा का अनुपात अधिक पाया जाता है, उनमें जस्ते की कमी की दर उच्च होती है।

ज़िंक: Zn

  • ज़िंक या जस्ता एक रासायनिक तत्त्व है जो संक्रमण धातु समूह का एक सदस्य है।
  • इसका परमाणु क्रमांक 30 है।
  • रासायनिक दृष्टि से इसके गुण मैग्नीसियम से मिलते-जुलते हैं।
  • मनुष्य जस्ते का प्रयोग प्राचीनकाल से कर रहा है।
  • कांसा, जो ताँबे व जस्ते की मिश्र धातु है, के उपयोग की जानकारी 10वीं सदी ईसा पूर्व में प्राप्त हुई।
  • 9वीं शताब्दी ई.पू. से राजस्थान में शुद्ध जस्ता बनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं और छठीं शताब्दी ई.पू. की एक जस्ते की खान भी राजस्थान में मिली है।
  • लोहे पर जस्ता चढ़ाने से ज़ंग नहीं लगता तथा जस्ते का प्रयोग बैट्रियों में भी बहुत होता है।

zinc

  • बदलते परिवेश में भारतीय आहार भी परिवर्तित हो रहे हैं, मोटे अनाज जैसे बाजरा, ज्वार आदि का सेवन धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। परिणामस्वरुप पोषण स्तर बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
  • आबादी की आयु (जीवन प्रत्याशा) बढ़ने से औसत भारतीय के लिये जस्ते की आवश्यकता 5% बढ़ गई है, क्योंकि वयस्कों को बच्चों की तुलना में अधिक जस्ते की आवश्यकता होती है।

स्रोत- टाइम्स ऑफ इंडिया


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

WTO में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) ने चीन द्वारा चावल, गेहूँ और मक्का पर टैरिफ-रेट कोटा (Tariff-Rate Quota- TRQ) के उपयोग के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका के पक्ष में फैसला सुनाया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस मामले की सुनवाई के लिये WTO के विवाद निपटान निकाय द्वारा विशेषज्ञों का एक पैनल बनाया गया था।
  • उक्त पैनल ने अपने फैसले में कहा कि चीन TRQ को पारदर्शी, पूर्वानुमानित और उचित आधार पर प्रशासित न करने के कारण 2001 में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनते समय किये गए वादों का पालन करने में विफल रहा है।
  • पैनल ने हालाँकि यह भी कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका यह दिखाने में विफल रहा है कि चीन ने TRQ के संबंध में सामान्य समझौते के तहत टैरिफ एवं ट्रेड (General Agreement on Tariffs and Trade- GATT) के सार्वजनिक नोटिस की बाध्यता का उल्लंघन किया है।

Tariff-Rate Quota- TRQ

  • TRQ द्विस्तरीय टैरिफ है। इसमें आयात की सीमित मात्रा के लिये ‘इन-कोटा’ के अंतर्गत कम टैरिफ लगाया जाता है और सीमित मात्रा से अधिक आयात पर ‘आउट-ऑफ-कोटा’ के अंतर्गत अधिक टैरिफ लगाया जाता है।

पृष्ठभूमि

  • चीन की TRQ प्रणाली के कारण अमेरिकी अनाज चीन के बाज़ार तक नहीं पहुँच पाता है।
  • ज्ञातव्य है कि इसे लेकर दिसंबर 2016 में ओबामा प्रशासन द्वारा विश्व व्यापार संगठन में एक शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि अमेरिकी चावल, गेहूँ और मक्का के आयात पर चीनी प्रतिबंध अवैध हैं।
  • इसमें यह भी कहा गया था कि चीन द्वारा टैरिफ-रेट कोटा (TRQ) प्रणाली का उपयोग अपारदर्शी और अप्रत्याशित रूप में किया जाता है।

विश्व व्यापार संगठन

  • विश्व व्यापार संगठन विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 1995 में मारकेश संधि के तहत की गई थी।
  • इसका मुख्यालय जनेवा में है।
  • वर्तमान में विश्व के अधिकतम देश इसके सदस्य हैं। सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मलेन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।

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स्रोत: द हिंदू बिज़नस लाइन


जैव विविधता और पर्यावरण

गंगा में सबसे ज़्यादा बैक्टीरियोफेज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित आयोग के अंतर्गत किये गए एक अध्ययन के अनुसार गंगा के ‘अद्वितीय गुणों’ की जाँच में नदी के पानी में जीवाणुरोधी गुणों वाले जीवों का अनुपात काफी अधिक पाया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन के अनुसार, भारत की दूसरी नदियों में भी जीवाणुरोधी गुणों वाले जीव उपस्थित हैं लेकिन गंगा में विशेषकर इसके ऊपरी हिमालयी हिस्सों में ये अधिक है।
  • वर्ष 2016 में ‘गंगा नदी के विशेष गुणों को समझने के लिये जल की गुणवत्ता और तलछट के आकलन' हेतु अध्ययन शुरू किया गया था।
  • अध्ययन कार्य का संचालन नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग और अनुसंधान संस्थान (NEERI), द्वारा किया गया।
  • NEERI टीम को भागीरथी (गंगा की एक सहायक नदी) और गंगा में ‘रेडियोलॉजिकल, माइक्रोबायोलॉजिकल और जैविक’ मापदंडों के लिये पानी की गुणवत्ता का आकलन करने का काम सौंपा गया था।

क्रियाविधि

  • मूल्यांकन के तहत पाँच रोगजनक प्रजातियों वाले बैक्टीरिया- एस्चेरिचिया, एंटरोबैक्टर, साल्मोनेला, शिगेला, वाइब्रियो (Escherichia, Enterobacter, Salmonella, Shigella, Vibrio) को गंगा, यमुना और नर्मदा से लिया गया और उनकी संख्या की तुलना नदी के पानी में मौजूद बैक्टीरियोफेज (Bacteriophages) से की गई।
  • बैक्टीरियोफेज एक प्रकार के वायरस हैं जो बैक्टीरिया को मारते हैं।
  • गंगा नदी के सैम्पल में लगभग 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज थे, जबकि यमुना और नर्मदा से प्राप्त नमूनों में 200 से कम प्रजातियाँ पाई गईं।
  • हालाँकि, इन बैक्टीरियोफेज की संख्या नदी के विस्तार के साथ व्यापक रूप से भिन्न है। जैसे कि माना से हरिद्वार तथा बिजनौर से वाराणसी की अपेक्षा गोमुख से टिहरी तक के क्षेत्र में 33% ज्यादा बैक्टीरियोफेज थे।

निष्कर्ष

ब्रिटिश औपनिवेशिक वैज्ञानिकों द्वारा लगभग 200 साल पहले बताया गया था कि गंगा में अद्वितीय सूक्ष्मजीव जीवन हो सकता है। यह अध्ययन नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों और ज्ञान का उपयोग करके इन गुणों की पुष्टि करता है।

स्रोत- द हिंदू


विविध

सेंट्रल बैंक 251 करोड़ रुपए मूल्य के एनपीए की बिक्री करेगा

चर्चा में क्यों?

सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने हाल ही में स्विस चैलेंज मेथड के माध्यम से 251 करोड़ रुपए की दो गैर-निष्पादित संपत्तियों (NPA’s) को बिक्री के लिये प्रस्तुत किया है।

प्रमुख बिंदु

  • बिक्री हेतु श्रीनगर बनिहाल एक्सप्रेसवे (200 करोड़ रुपए) तथा माँ महामाया इंडस्ट्रीज़ (51 करोड़ रुपए) को 100 प्रतिशत नकद आधार पर बिक्री के लिये पेश किये गए हैं।
  • श्रीनगर बनिहाल एक्सप्रेसवे के लिये आरक्षित मूल्य 146 करोड़ रुपए निर्धारित किया गया है, जिसमें 27 प्रतिशत हेयरकट (haircut) (इष्टतम से कम) है, जबकि 34 करोड़ रुपए आरक्षित मूल्य माँ महामाया के लिये निर्धारित किया गया जिसमें सेंट्रल बैंक द्वारा 34 प्रतिशत हेयरकट रखा गया है।
  • उपर्युक्त खातों की नीलामी ’स्विस चैलेंज मेथड’ (Swiss Challange Method) के माध्यम से वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (Securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Securities Interest Act, 2002 - SARFAESI) के तहत किया जाएगा।
  • रेटिंग एजेंसी इक्रा (Icra) ने 2018 में श्रीनगर बनिहाल एक्सप्रेसवे के लिये ऋण उपकरणों (Debt Instruments) को घटाकर 1,440 करोड़ रुपए तथा माँ महामाया इंडस्ट्रीज के लिये 455 करोड़ रुपए कर दिया था।
  • मार्च में बैंक ने 3,322 करोड़ रुपए मूल्य की संपत्ति को ब्लाक स्ट्रेस्ड एसेट (Block Stressed Assets) के रूप में घोषित किया जिसमें एस्सार स्टील इंडिया, भूषण पावर एंड स्टील तथा आलोक इंडस्ट्रीज़ शामिल थे।

स्विस चैलेंज मेथड

  • स्विस चैलेंज मेथड बोली लगाने की एक विधि है जिसका उपयोग अक्सर सार्वजनिक परियोजनाओं में किया जाता है जिसमें एक इच्छुक पार्टी एक अनुबंध के लिये प्रस्ताव या एक परियोजना के लिये बोली शुरू करती है।
  • इस मेथड के ज़रिये परियोजना का विवरण जनता के सामने रखा जाता है और इसे क्रियान्वित करने के इच्छुक अन्य लोगों से प्रस्ताव आमंत्रित किया जाता है।
  • इन बोलियों की प्राप्ति पर मूल प्रस्तावक को सर्वश्रेष्ठ बोली का मिलान करने का अवसर दिया जाता है।
  • यदि मूल प्रस्तावक बोली का मिलान करने में विफल रहता है तो परियोजना का सर्वश्रेष्ठ बोली लगाने वाले को दे दिया जाता है।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

बिजली-अधिशेष राष्ट्र बनने से चूका भारत

चर्चा में क्यों?

भारत एक बार फिर बहुत ही कम अंतर से बिजली-अधिशेष राष्ट्र (Power Surplus Nation) बनने से चूक गया।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2018-19 में पीक पॉवर डेफिसिट (Peak Power Deficit) 0.8 फीसदी और कुल ऊर्जा घाटा 0.6 फीसदी रहने के कारण भारत ने बिजली-अधिशेष राष्ट्र बनने का मौका गँवा दिया।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority- CEA)) ने 2018-19 के लिये अपनी ‘लोड जेनरेशन बैलेंसिंग रिपोर्ट’ (Load Generation Balancing Report- LGBR) में क्रमशः कुल ऊर्जा और पीक पॉवर के आँकड़ों में 4.6 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत की वृद्धि की संभावना व्यक्त की थी। इससे यह संकेत मिल रहा था कि इस वित्तीय वर्ष में भारत एक बिजली-अधिशेष देश होगा।
  • CEA ने वर्ष 2017 में भी अपने ‘लोड जेनरेशन बैलेंसिंग रिपोर्ट’ में अनुमान लगाया था कि भारत 2017-18 में एक शक्ति-अधिशेष राष्ट्र बन जाएगा।
  • लेकिन 2017-18 में भी पीक पॉवर डेफिसिट 2.1 प्रतिशत और पूरे देश में कुल बिजली घाटा 0.7 प्रतिशत था।
  • CEA के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, 2018-19 में पीक आवर्स के दौरान 177.02 गीगावॉट मांग के मुकाबले 175.52 गीगावॉट (जीडब्ल्यू) की आपूर्ति की गई थी जिस कारण 1.49 गीगावॉट या 0.8 प्रतिशत की कमी रह गई।
  • आँकड़ों से पता चलता है कि 2018-19 के दौरान 1,274.56 बिलियन यूनिट्स (बीयू) की मांग के मुकाबले 1,267.29 बिलियन यूनिट बिजली की आपूर्ति की गई, जिससे 7.35 बिलियन यूनिट या 0.6 प्रतिशत की कुल बिजली या ऊर्जा की कमी हुई।
  • मार्च में 108.66 बीयू की मांग के मुकाबले 108.19 बीयू बिजली की आपूर्ति की गई थी। अत: मार्च 2019 के दौरान कुल ऊर्जा घाटा 0.4 प्रतिशत था।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति बिजली खरीदने में डिस्कॉम के अक्षम नहीं होने के कारण है। इस साल जनवरी तक उनका कुल बकाया 40,698 करोड़ रुपए था
  • भारत एक शक्ति-अधिशेष राज्य हो सकता है क्योंकि इसकी स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 177 गीगावॉट की मांग के मुकाबले 356 गीगावॉट है
  • बिजली उत्पादन को दोगुना किया जा सकता है बशर्ते वितरण कंपनियाँ (डिस्कॉम) अपने बकाए का भुगतान शीघ्र करें।

पीक पॉवर डेफिसिट (Peak Power Deficit)

  • पीक डिमांड, पीक लोड या ऑन-पीक ऊर्जा क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली शब्दावलियाँ हैं।
  • यह एक ऐसी अवधि को दर्शाती है जिसमें औसत आपूर्ति स्तर की तुलना में अधिक एवं निरंतर बिजली प्रदान करने की उम्मीद की जाती है।
  • इसी अवधि में उर्जा मांग की तुलना में उर्जा आपूर्ति की कमी पीक पॉवर डेफिसिट कहलाती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (20 April)

  • भारत ने जम्मू-कश्मीर में दो स्थानों पर नियंत्रण रेखा (LOC) के ज़रिये होने वाला व्यापार अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर दिया है। भारत ने सीमापार के तत्त्वों द्वारा हथियार, मादक पदार्थों और नकली मुद्रा की तस्करी के लिये इस मार्ग का दुरुपयोग होने की रिपोर्ट मिलने के बाद यह कदम उठाया। कश्मीर क्षेत्र के बारामूला के सलामाबाद और जम्मू क्षेत्र के पुंछ ज़िले के चक्कन-दा-बाग में व्यापार रोकने के आदेश जारी किये गए हैं। भारत सरकार एक सख्त विनियामक और प्रवर्तन तंत्र तैयार करने की योजना पर काम कर रही है, जिसे विभिन्न एजेंसियों के साथ विचार-विमर्श के बाद लागू किया जाएगा। उसके बाद नियंत्रण रेखा के ज़रिये कारोबार फिर शुरू करने के मुद्दे पर विचार किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर सीमा पर होने वाले व्यापार के ज़रिये सामान्य उपयोग की चीज़ों-उत्पादों का आदान-प्रदान होता है। सप्ताह में चार दिन होने वाला यह व्यापार बार्टर सिस्टम और ज़ीरो ड्यूटी पर आधारित है।
  • रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की वार्षिक रिपोर्ट में प्रेस की आज़ादी के मामले में भारत को 180 देशों की सूची में 140वाँ स्थान मिला है, जो पिछले वर्ष की तुलना में दो पायदान नीचे है। सूचकांक में कहा गया है कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की वर्तमान स्थिति में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा प्रमुख कारण है, जिसमें पुलिस की हिंसा, माओवादियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019 में नॉर्वे लगातार तीसरे साल शीर्ष पर है तथा फिनलैंड को दूसरा स्थान मिला है। पाकिस्तान 142वें और बांग्लादेश 150वें स्थान पर है। पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (RSF) या रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स एक गैर,लाभकारी संगठन है जो दुनियाभर के पत्रकारों पर होने वाले हमलों का दस्तावेज़ीकरण करने और मुकाबला करने के लिये काम करता है।
  • भारत में ड्रोन विकास को गति देने के लिये जापान स्थित टेरा ड्रोन कॉर्पोरेशन, टेरा ड्रोन इंडिया और IIT हैदराबाद ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। भारत में मानव रहित हवाई वाहनों (UAV) के लिये बनने वाला अपनी तरह का यह पहला उत्कृष्टता केंद्र होगा। IIT हैदराबाद में प्रस्तावित इस केंद्र के लिये एक अद्वितीय शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जाएगा, जो अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं, उद्योगों के मज़बूत सहयोग और उद्यमशीलता के साथ इंटरैक्टिव लर्निंग से लैस होगा। गौरतलब है कि छह महाद्वीपों और 20 से अधिक देशों में टेरा ड्रोन कॉर्पोरेशन अपनी उपस्थिति के साथ औद्योगिक ड्रोन समाधानों के दुनिया के सबसे बड़े प्रदाताओं में से एक है।
  • माली के प्रधानमंत्री ने देश में बढ़ती हिंसा से निबटने और गत महीने हुए नरसंहार को लेकर आलोचनाओं के बाद अपनी पूरी सरकार के साथ इस्तीफा दे दिया। हिंसा बढ़ने से उपजे व्यापक प्रदर्शनों के दो सप्ताह बाद प्रधानमंत्री सौमेयलोयू बोबेये मैगा के साथ उनके मंत्रियों का इस्तीफा राष्ट्रपति इब्राहिम बूबकर कीटा ने स्वीकार कर लिया। गौरतलब है कि अशांत मोपती क्षेत्र में हिंसा और 23 मार्च के नरसंहार से निबटने में नाकाम रहने पर सरकार पर दबाव बन गया था। बुर्किना फासो की सीमा के समीप ओगास्सागोउ गाँव में हुए नरसंहार में 160 लोग मारे गए थे।
  • अमेरिका के नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस (NASA) के वर्जिनिया स्थित केंद्र से 18 अप्रैल को नेपाल का पहला उपग्रह नेपालीसैट-1 लॉन्च किया गया। नेपाल विज्ञान व प्रौद्योगिकी अकादमी (NSAT) के अनुसार, इस उपग्रह को नेपाल के आभाष मस्की और हरिराम श्रेष्ठ ने जापान के क्यूशू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बनाया। नेपाल की भौगोलिक स्थिति के चित्र लेने के लिये उपग्रह में 5MP कैमरा और एक मैग्नोमीटर लगा है जिससे पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से संबंधित आँकड़ों का संग्रह किया जाएगा। यह उपग्रह पहले अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पहुँचेगा, फिर एक महीने बाद यह पृथ्वी की परिक्रमा करना शुरू कर देगा। नेपाल के इस उपग्रह के साथ श्रीलंका का भी पहला उपग्रह लॉन्च किया गया। रावण-1 नाम का यह उपग्रह पृथ्वी से 400 किलोमीटर की ऊँचाई पर परिक्रमा करेगा तथा इसका उद्देश्य श्रीलंका तथा इसके पड़ोसी देशों के चित्र लेना है। इसका निर्माण क्यूशू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दो श्रीलंकाई इंजीनियरों द्वारा किया गया है।
  • हाल ही में 51 प्रमुख वैज्ञानिकों को लंदन की रॉयल सोसाइटी के फेलो के लिये चुना गया है। इनमें भारतीय मूल की वैज्ञानिक गगनदीप कंग का नाम भी शामिल है। इस प्रकार गगनदीप रॉयल सोसाइटी फेलोशिप के 356 वर्षों के इतिहास में इसमें शामिल होने वाली भारतीय मूल की पहली महिला बन गई हैं। गगनदीप ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। वह भारत की अग्रणी वैज्ञानिक हैं और उनका ध्यान मुख्य रुप से बच्चों में होने वाले वायरल इंफेक्शन पर है। उन्हें 2016 में लाइफ सांइस कैटेगरी में उनके योगदान के लिये इंफोसिस सांइस फाउंडेशन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
  • नासा की अंतरिक्ष यात्री क्रिस्टीना कोच अंतरिक्ष में सबसे अधिक समय बिताने वाली महिला बनने जा रही हैं। क्रिस्टीना कोच के अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) में अभियान के दिनों में बढ़ोतरी की गई है। अब वह 328 दिन अंतरिक्ष में बिताएंगी और यह किसी महिला द्वारा अंतरिक्ष में बिताया गया सबसे लंबा समय होगा। क्रिस्टीना कोच इस साल 14 मार्च को ISS पहुँची थीं और अब तैयार समय सारिणी के अनुसार वह फरवरी 2020 तक वहाँ रहेंगी। इससे पहले 2016-17 में महिला अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिट्सन ने 288 दिन अंतरिक्ष स्टेशन में बिताने का रिकॉर्ड बनाया था। पुरुषों में सबसे अधिक 340 दिन स्कॉट केली ने अंतरिक्ष स्टेशन में बिताए हैं। उन्होंने यह रिकॉर्ड 2015-16 में बनाया था।

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