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डेली न्यूज़

  • 20 Mar, 2019
  • 12 min read
सामाजिक न्याय

डोंगरिया कोंध

संदर्भ

ओडिशा के नियमगिरि की पहाड़ियों में रहने वाले डोंगरिया कोंध आदिवासी पहाड़ों में बॉक्साइट के खनन के कारण लगातार विस्थापित हो रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • अनेक योजनाओं, संवैधानिक और वैधानिक उपायों के बावजूद डोंगरिया समुदाय अब भी पिछड़े हैं और मुख्यधारा से अलग-थलग हैं।
  • इसका मुख्या कारण है शिक्षा एवं संचार साधनों की पहुँच इन दुर्गम क्षेत्रों तक न होना।
  • साथ ही इनके प्राकृतिक संसाधनों पर भी पूर्णतया इनका अधिकार नहीं है जिस कारण ये लगातार जंगलों से विस्थापित हो रहे हैं।

पृष्ठभूमि

  • 2000 के दशक के प्रारंभ तक डोंगरिया कोंध आदिवासी नियमगिरि रेंज के ढलानों पर रायगढ़ ज़िले के बिस्सम कटक, मुनिगुड़ा तथा कल्याणसिंहपुर ब्लॉक और कालाहांडी ज़िले के लांजीगढ़ ब्लॉक में जैसे दुर्गम रूप क्षेत्रों में शांति से रहते थे।
  • 2004 में ‘वेदांत’ कंपनी ने नियामगिरि की तलहटी पर बसे एक गाँव लांजीगढ़ में एल्युमीनियम रिफाइनरी की स्थापना की।
  • बॉक्साइट, एल्युमीनियम के लिये कच्चा माल है और ओडिशा में 700 मिलियन टन ज्ञात बॉक्साइट भंडार में से 88 मिलियन टन नियामगिरि में पाए जाने का अनुमान है।
  • इस क्षेत्र में खनन अधिकार को प्राप्त करने की हड़बड़ी में पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन किया गया था और डोंगरिया समुदाय की सहमति नहीं ली गई थी।
  • 18 अप्रैल, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि खनन मंज़ूरी तभी दी जा सकती है जब डोंगरिया ग्राम सभा इस परियोजना से सहमत हो।
  • सरकार द्वारा चयनित सभी 12 गाँवों ने परियोजना के खिलाफ मतदान किया।

आगे की राह

  • सरकार को चाहिये कि पेसा एक्ट, 1996 (PESA Act, 1996) को नियमत: लागू करवाए।
  • जनजातियों को उनके अधिकारों की जानकारी, उनके लिये चलाई जा रही योजनाओं की उन तक पहुँच सुनिश्चित करे।
  • खनन कंपनियों को लाइसेंस देते वक़्त स्थानीय समुदायों के हित और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को सर्वोपरि रखे।
  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996
  • पेसा एक्ट, 1996 में प्रावधान है कि अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा या पंचायतों से उचित स्तर पर परामर्श किया जाएगा।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में परियोजनाओं की वास्तविक योजना और कार्यान्वयन राज्य स्तर पर समन्वित किया जाएगा, जिससे स्थानीय जनजातियों के हितों को हानि न पहुँचे।

स्रोत: द हिन्दू


जैव विविधता और पर्यावरण

सेप्टिक टैंकों के मानदंड पूरे होंगे

संदर्भ

केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार, सेप्टिक टैंक और एकल गड्ढा (single pits) सुरक्षित स्वच्छता प्रौद्योगिकियाँ हैं जो सतत् विकास लक्ष्यों द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करती हैं।

सर्वेक्षण का परिणाम

  • राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण (NARSS) 2018-19 के आँकड़ों के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि केवल 26% ग्रामीण जुड़वाँ-लीच गड्ढों (tween-leach pits) और ग्रामीण शौचालयों का उपयोग करते हैं। ग्रामीण शौचालयों के अवशेष (जो दो अंतर्संबंधित गड्ढों का उपयोग नहीं करते हैं) एक नई भयावह स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं।
  • ट्विन पिट का उपयोग न करना स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये हानिकारक हो सकता है और नई पीढ़ी को मैनुअल स्कैवेंजिंग की ओर धकेल सकता है।
  • सेप्टिक टैंक सबसे लोकप्रिय विकल्प हैं जिसमें 28% शौचालय एक सेप्टिक टैंक से जुड़े होते हैं जो सोख गड्ढे (soak pit) के साथ होते हैं तथा 6% टैंक बिना सोख गड्ढे के होते हैं।

केंद्रीय मंत्रालय की प्रतिक्रिया

  • मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि सेप्टिक टैंक और एकल गड्ढे सुरक्षित स्वच्छता प्रौद्योगिकियाँ हैं जो सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करती हैं।
  • ट्विन-लीच पिट शौचालय सबसे किफायती और सुरक्षित स्वच्छता प्रौद्योगिकियों में से एक हैं और इसे व्यापक रूप से अपनाया गया है।
  • मंत्रालय ने स्वीकार किया कि देश के सामाजिक स्वरूप तथा जातिगत पूर्वाग्रहों को देखते हुए इस तरह के टैंकों को खाली करने और साफ करने के लिये मैनपावर एक बड़ी चुनौती है।
  • मंत्रालय इस तरह की समस्या के तकनीकी और उद्यमशील समाधान तैयार करने पर काम कर रहा है।

राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण (NARSS) 2018-19

  • यह सर्वेक्षण विश्व बैंक सहायता परियोजना के तहत एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के लिये किया गया था।
  • ट्विन-पिट और सिंगल-पिट सिस्टम ट्विन पिट फ्लश वॉटर सील टॉयलेट यानी दो गड्ढों और पानी उड़ेलकर मल निस्तारण वाली जल अवरोध प्रणाली पर आधारित शौचालय होता है।
  • इन्हें दो गड्ढों वाला इसलिये कहा जाता है क्योंकि इनमें जलमल को इकट्ठा करने के लिये दो गड्ढों की व्यवस्था की जाती है।
  • इन दो गड्ढों को बारी-बारी से इस्तेमाल किया जाता है। दोनों गड्ढों को एक ओर जंक्शन चैंबर से जोड़ा जाता है।
  • गड्ढे की दीवारों में हनीकॉम्ब यानी मधुमक्खी के छत्ते के आकार में ईंटों से चिनाई की जाती है। गड्ढे के तले पर पलस्तर नहीं किया जाता और तला मिट्टी का बना होता है।
  • शौचालय का इस्तेमाल करने वालों की संख्या को ध्यान में रखते हुए गड्ढे का आकार घटता-बढ़ता है। हर गड्ढे की क्षमता आमतौर पर तीन साल रखी जाती है।
  • करीब तीन साल में जब पहला गड्ढा भर जाता है तो जंक्शन चैंबर से उसे बंद कर दिया जाता है और दूसरे गड्ढे को चालू कर दिया जाता है।
  • मानव मल का जलीय अंश हनीकॉम्ब ढाँचे से होकर ज़मीन में अवशोषित कर लिया जाता है। दो साल तक बंद रहने के बाद पहले गड्ढे में जमा पदार्थ पूरी तरह सड़कर ठोस, गंधहीन और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं से मुक्त खाद में परिवर्तित हो जाता है।
  • इसे खोदकर बाहर निकाल लिया जाता है और कृषि तथा बागवानी में इसका उपयोग किया जाता है।
  • जब दूसरा गड्ढा भी भर जाता है तो उसे भी जंक्शन चैंबर से बंद कर दिया जाता है और पहले गड्ढे को चालू कर दिया जाता है। इस तरह दोनों गड्ढों का बारी-बारी से उपयोग किया जाता है।

स्रोत : द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (20 March)

  • गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद विधानसभा स्पीकर प्रमोद सावंत ने ली मुख्यमंत्री पद की शपथ। राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने उन्हें गोवा के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई। इसके आलावा महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (MGP) के सुदीन धवलीकर और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विजई सरदेसाई ने उप-मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
  • आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र डिजिटल चुनावी साक्षरता को बढ़ावा देने हेतु असम में ‘i-help’ पहल शुरू की गई है। ‘i-help’ मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के कार्यालय और कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSC) की एक संयुक्त पहल है। यह विशेष पहल डिजिटल खाई को पाटने के साथ-साथ आम चुनाव को अधिक समावेशी और सहभागी बनाने के उद्देश्य को पूरा करेगी।
  • वैश्विक पुनर्चक्रण दिवस (Global Recycling Day) की शुरुआत 2018 में की गई थी ताकि हमारे ग्रह, पृथ्वी के भविष्य के साथ-साथ प्रमुख संसाधनों को सुरक्षित रखने में पुनर्चक्रण की भूमिका की पहचान की जा सके। 2018 से ही 18 मार्च को वैश्विक पुनर्चक्रण दिवस मनाया जाता है। ग्लोबल रिसाइक्लिंग फाउंडेशन ने वर्ष 2019 हेतु वैश्विक पुनर्चक्रण दिवस का विषय ‘Recycling into the Future’ रखा है।
  • हाल ही में रघु कर्नाड को प्रतिष्ठित विंडहम कैंपबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गौरतलब है कि यह पुरस्कार नॉन-फिक्शन श्रेणी में उनकी किताब ‘फारदेस्ट फील्ड: एन इंडियन स्टोरी ऑफ द सेकेंड वर्ल्ड वॉर’ के लिये दिया गया है। 2013 में शुरू हुआ यह पुरस्कार अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी द्वारा दिया जाता है। इस साल यह पुरस्कार दुनिया भर से चुने गए 8 लेखकों को प्रदान किया गया है। रघु कर्नाड को अपनी इस किताब के लिये साल 2016 में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार (अंग्रेज़ी) भी मिल चुका है। यह किताब दूसरे विश्व युद्ध से जुड़े कुछ भारतीयों के अनुभवों के बारे में है।
  • प्रसिद्ध बंगाली अभिनेता चिन्मय रॉय का 79 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन। तेन्यदा के पात्र से लेकर ‘बसंता बिलाप’, ‘मोचक' से लेकर 'गालपो होलो सोती' तक उनके अभिनय ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था। चिन्मय रॉय का जन्म 1940 में कुमिला ज़िले में हुआ था जो वर्तमान में बांग्लादेश में है। चिन्मय रॉय ने 60 के दशक में बंगाली फिल्मों से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी।
  • भारतीय शटलर बी.साई प्रणीत स्विस ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट का खिताब अपने नाम करने से एक कदम पीछे रह गए। पुरुष एकल के फाइनल में बी.साई प्रणीत को चीनी खिलाड़ी शी यूकी ने मात दी। वह मैच का पहला गेम जीतने में सफल रहे थे किंतु यूकी ने फाइनल में खिताब अपने नाम कर लिया। 68 मिनट तक चले मुकाबले में बी.साई प्रणीत को 21-19 18-21, 12-21 से शिकस्त झेलनी पड़ी। आपको बता दें कि भारतीय शटलर बी.साई प्रणीत ने अंतिम बार जून 2017 में थाईलैंड ओपन के फाइनल में पहुँचकर खिताब अपने नाम किया था।

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