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डेली न्यूज़

  • 20 Jan, 2020
  • 44 min read
भूगोल

भारत में मानसून की तिथियों में परिवर्तन

प्रीलिम्स के लिये:

मानसून, IMD, WMO

मेन्स के लिये:

भारत में मानसून गतिविधियाँ और उनका प्रभाव, कृषि पर मानसून का प्रभाव, मानसून के आगमन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department- IMD) ने इस साल से देश के कुछ हिस्सों में मानसून की सामान्य शुरुआत और वापसी की तिथियों को संशोधित करने का फैसला किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम, जो कि देश की वार्षिक वर्षा का 70 प्रतिशत तक वर्षा करता है, आधिकारिक तौर पर 1 जून से केरल में मानसून की शुरुआत के साथ शुरू होता है और 30 सितंबर को समाप्त होता है।
  • केरल के तट पर टकराने के पश्चात पूरे देश में मानसून के फैलने में लगभग डेढ़ महीने लगते हैं और देश में मानसून के लौटने की शुरुआत भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में 1 सितंबर से होती है तथा मानसून के पूरे देश से वापस लौटने में भी लगभग 1 महीने का समय लगता है।
  • ध्यातव्य है कि केरल के तट पर मानसून के टकराने की तिथि को लेकर किसी भी संशोधन की आवश्यकता नहीं है किंतु देश के अन्य भागों में मानसून आने की तिथियों में संशोधन किया जा सकता हैं। उदाहरण के लिये मुंबई में बारिश शुरू होने की तिथि को 10 जून किया जा सकता है।
  • देश के अन्य हिस्सों के लिये मानसून की तिथियों में समायोजन किये जाने की संभावना है। मानसून वापसी की तारीखों में भी इसी तरह के बदलाव की उम्मीद है।
  • स्पष्टतः अब देश के अधिकांश हिस्सों में मानसून के आगमन और निवर्तन की तिथियों में परिवर्तन की उम्मीद है।

इस संशोधन की आवश्यकता क्यों थी?

  • सामान्य तिथियों में संशोधन का मुख्य कारण पिछले कई वर्षों में वर्षा के पैटर्न में आया बदलाव है। गौरतलब है कि पिछले 13 वर्षों में केवल एक बार केरल तट पर मानसून की शुरुआत 1 जून को हुई, जबकि मानसून की शुरुआत प्रायः दो या तीन दिन पहले या बाद में होती रही है।

Raincome

  • इसी प्रकार मानसून के निवर्तन की तिथियों में भी काफी अनियमितताएँ हैं, उदाहरण के लिये पिछले 13 वर्षों में केवल दो बार ही मानसून का निवर्तन सितंबर के पहले सप्ताह में हुआ है।
  • चार महीने की मानसूनी ऋतु में बारिश के पैटर्न में काफी अनियमितताएँ देखी जाती हैं जिससे बारिश की वास्तविक मात्रा के बारे में जानकारी प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  • वर्तमान में मानसून के मौसम में कम दिनों में ही अधिक मात्रा में बारिश हो रही है। जिससे अनेक क्षेत्रों में कुछ दिनों तक बाढ़ जैसे हालत बन जाते हैं।
    • IMD के डेटा के अनुसार, देश के 22 प्रमुख शहरों में मानसून की लगभग 95 प्रतिशत वर्षा सिर्फ 3 से 27 दिनों की अवधि में होती है।
    • उदाहरण के लिये दिल्ली ने अपनी मानसूनी वर्षा का लगभग 95 प्रतिशत केवल 99 घंटों में प्राप्त किया था और मुंबई की मॉनसून की आधी बारिश औसतन सिर्फ 134 घंटों या साढ़े पाँच दिनों में हो गई थी।
  • वर्षा संबंधी क्षेत्रीय विविधताओं के पैटर्न भी बदलाव देखे जा रहे हैं। ध्यातव्य है कि जिन क्षेत्रों में परंपरागत रूप से बहुत अधिक वर्षा होती थी, वे अब प्रायः शुष्क रहते हैं और जिन स्थानों पर बहुत अधिक मानसूनी वर्षा होने की उम्मीद नहीं होती है, वे कभी-कभी बाढ़ से प्रभावित हो जाते हैं। यद्यपि जलवायु परिवर्तन इन अनियमितताओं के कारकों में से एक हो सकता है, लेकिन इसके अन्य कारण भी होंगे।

IMD के इस कदम का क्या असर होगा?

  • यह संशोधन हाल के वर्षों में वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने के लिये है। यह परिवर्तन IMD को मानसून को बेहतर तरीके से ट्रैक करने में मदद करेगा।
  • नई तिथियों से देश के अनेक हिस्सों में किसानों को बारिश की तिथियों और फसलों की बुवाई के समय में समन्वय बनाने में आसानी होगी।
  • कृषि मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे वर्षा के अनुपात-सामयिक वितरण के बारे में जानकारी मिलेगी जो किसानों के कृषि संबंधी कार्यों में सहायक होगी।
  • बारिश की शुरुआत की तिथि भी कृषि के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि मानसून के आने में तीन से चार दिन की भी देरी होती है तो फसल की उपज अपेक्षानुसार नहीं होगी चाहे उसके बाद वर्षा का वितरण कितना भी बेहतर क्यों न हो।
  • फसलें जिन्हें रोपाई की आवश्यकता होती है, जैसे- चावल की फसल के लिये बारिश के आगमन के बारे में अनुमान की आवश्यकता होती है। क्योंकि यदि चावल की पैदावार वाले क्षेत्रों में वर्षा बहुत देर से होती है, तो चावल का प्रत्यारोपण प्रभावित होगा, जो फसल की उपज को प्रभावित कर सकता है। इसलिये IMD के इस कदम से किसान को बारिश की सही जानकारी प्राप्त हो सकेगी।
  • तिथियों में बदलाव से जल संरक्षण को भी प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।
  • उद्योगों के संचालन, बिजली क्षेत्र या शीतलन प्रणाली का उपयोग करने सहित कई अन्य गतिविधियों को भी मानसून के आने की तिथि के अनुसार संपादित किया जा सकता है।
  • अंततः मानसून की शुरुआत और वापसी की सामान्य तिथियों में बदलाव से लोगों को यह समझने में मदद मिलेगी कि कब बारिश होने की उम्मीद है और उसके अनुसार उन्हें अपनी विभिन्न गतिविधियों को संचालित करने में मदद मिलेगी। परिवर्तित तिथियों की घोषणा अप्रैल में होने की उम्मीद है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत मौसम विज्ञान प्रेक्षण, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान का कार्यभार संभालने वाली सर्वप्रमुख एजेंसी है।
  • IMD विश्व मौसम संगठन के छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक है।
  • इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • IMD में उप महानिदेशकों द्वारा प्रबंधित कुल 6 क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र आते हैं।
  • ये चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली और हैदराबाद में स्थित हैं।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

सिंकहोल

प्रीलिम्स के लिये:

सिंकहोल

मेन्स के लिये:

सिंकहोल निर्माण प्रक्रिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन के शिनिंग (Xining) शहर में सिंकहोल की घटना देखी गई, इस घटना में एक बस और कुछ पैदल यात्री लापता हो गए।

Sinkhole

सिंकहोल के बारे में:

  • सिंकहोल ज़मीन में निर्मित एक डिप्रेशन (गड्ढा) होता है। इस डिप्रेशन (गड्ढा) का निर्माण तब होता है जब पृथ्वी की सतह की परतें गुफाओं के रूप में परिवर्तित होने के बाद ढहने लगती हैं।
  • यह स्थिति अचानक और बिना किसी पूर्व चेतावनी के बन सकती है क्योंकि पृथ्वी के सतह के नीचे की ज़मीन तब तक अक्षुण्ण/यथावत् रहती है, जब तक कि इसका आकार बड़ा नहीं हो जाता।
  • इनके निर्माण में प्राकृतिक एवं मानव दोनों ही प्रकार की गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
  • सिंकहोल की घटनाएँ मुख्यतः चूना पत्थर, जिप्सम या कार्बोनेट चट्टानों वाले क्षेत्रों में सबसे अधिक पाई जाती हैं। क्योंकि ऐसे स्थानों पर जब वर्षा का पानी रिसकर ज़मीन में चला जाता है, तो पृथ्वी की सतह के नीचे की चट्टानें शीघ्र ही घुलने लगती हैं, जिससे सिंकहोल का निर्माण होता है।
  • सिंकहोल निर्माण की प्रक्रिया धीमी और क्रमिक होती है तथा कभी-कभी इसके बनने में सैकड़ों या हज़ारों वर्ष भी लग जाते हैं।
  • मानव गतिविधियों के कारण भी सिंकहोल का निर्माण हो सकता है। जैसे- अवनलिकाएँ (Broken Land Drains), पानी के मुख्य तथा सीवरेज पाइप में लीकेज़ के कारण, अत्यधिक वर्षा, तूफान की घटनाओं, अंतर्निहित चूना पत्थर और पानी के बहाव को मोड़ना आदि ।
  • जर्नल एन्वायरनमेंटल जियोलॉजी में प्रकाशित वर्ष 1997 के पत्र के अनुसार, चीन में कार्स्ट क्षेत्रों (karst areas) में कोयला, जस्ता, सीसा और लौह अयस्क के भंडारों का खनन जैसी मानव गतिविधियाँ सिंकहोल के निर्माण से जुड़ी हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

पंजाब राइट टू बिज़नेस बिल, 2020

प्रीलिम्स के लिये:

पंजाब राइट टू बिज़नेस बिल, 2020

मेन्स के लिये:

पंजाब राइट टू बिज़नेस बिल, 2020 का महत्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब मंत्रिमंडल द्वारा पंजाब राइट टू बिज़नेस बिल, 2020 (Punjab Right to Business Bill, 2020) को मंज़ूरी दे दी गई है।

मुख्य बिंदु:

  • इस बिल का मुख्य उद्देश्य माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजे़ज़ (Micro, Small and Medium Enterprises-MSME) क्षेत्र के लिये व्यापार में आसानी सुनिश्चित करना है।
  • नए कानून के तहत, उद्योग निदेशक के नेतृत्व में राज्य नोडल एजेंसी के मार्गदर्शन में काम करने के लिये उपायुक्त (Deputy Commissioner) की अध्यक्षता में ज़िला ब्यूरो ऑफ एंटरप्राइज़ से ‘इन-प्रिंसिपल’(In-Principle) की मंज़ूरी के बाद ही कोई MSME इकाई स्थापित की जा सकती है।

इन-प्रिंसिपल:

  • यह उन व्यक्तियों के लिये एक त्वरित व्यापार ऋण पोर्टल है जो अपने मौजूदा व्यवसाय का विस्तार करना चाहते हैं।
  • इन-प्रिंसिपल के तहत MSME इकाइयाँ 1 लाख से 5 करोड़ रुपए तक का ऋण सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) से 59 मिनटों में प्राप्त कर सकती हैं।
  • स्वीकृत औद्योगिक पार्कों में इकाइयों को स्थापित करने के लिये तीन कार्य दिवसों में मंज़ूरी दे दी जाएगी।
  • अनुमोदित औद्योगिक पार्कों के बाहर नए उद्यमों को स्थापित करने के लिये इन-प्रिंसिपल अप्रूवल (In-Principle Approval) प्रमाण पत्र पर निर्णय ज़िला स्तरीय नोडल एजेंसी द्वारा 15 कार्य दिवसों के भीतर जाँच समिति की सिफारिशों के आधार पर लिया जाएगा।

नए उद्यम स्थापित करने हेतु यूनिट मालिकों के लिये समय-सीमा एवं दिशा-निर्देश:

  • यूनिट स्थापित करने के बाद यूनिट मालिकों को साढ़े तीन साल की अवधि में तीन विभागों से सात अनुमोदन प्राप्त करने होगें, जिनमें शामिल हैं-

1. निर्माण योजनाओं की मंज़ूरी प्राप्त करना।
2. इमारतों के लिये पूर्णता/व्यवसाय प्रमाण पत्र जारी कराना।
3. पंजाब नगर अधिनियम, 1911 और पंजाब नगर निगम अधिनियम, 1976 के तहत नये व्यापार लाइसेंसों का पंजीकरण कराना।
4. पंजाब क्षेत्रीय और नगर नियोजन तथा विकास अधिनियम, 1995 के तहत भूमि उपयोग में परिवर्तन।
5. पंजाब अग्नि निवारण और अग्नि सुरक्षा अधिनियम, 2004 के तहत अनापत्ति प्रमाण-पत्र के लिये आवेदन करना।
6. पंजाब कारखाना नियम, 1952 के तहत कारखाना निर्माण योजना के लिये अनुमोदन प्राप्त करना।
7. पंजाब दुकानें और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1958 के तहत दुकानों/प्रतिष्ठानों का पंजीकरण कराना।

  • खतरनाक प्रक्रियाओं को शामिल करने वाले उद्योगों को यूनिट स्थापित करने से पहले अग्नि शमन विभाग से अनुमति पत्र प्राप्त करना होगा तथा कारखाना निर्माण योजना के लिये भी अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
  • सभी औद्योगिक इकाइयों को यूनिट स्थापित करने से पहले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करनी होगी।

कार्यकारी आदेश के बजाय कानून की आवश्यकता क्यों ?

पंजाब सरकार के अनुसार, इस अधिनियम से विभिन्न विभागों के विभिन्न अधिनियमों पर अधिकार प्राप्त हो सकेंगे, जो छोटी और मध्यम इकाइयों की स्थापना से पहले अनुमोदन के लिये आवश्यक होते हैं तथा जिन्हें कार्यकारी आदेश द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

न्यूमोकोकल वैक्सीन

प्रीलिम्स के लिये:

न्यूमोकोकल वैक्सीन

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India) द्वारा विकसित न्यूमोकोकल वैक्सीन ‘न्यूमोसिल’ (PNEUMOSIL) को आरंभिक स्तर पर स्वीकृति प्रदान कर दी है।

प्रमुख बिंदु

  • PNEUMOSIL एक संयुक्त वैक्सीन है जो एक कमज़ोर एंटीजन के प्रति मज़बूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का निर्माण करती है।
  • इस वैक्सीन की प्रभावकारिता का परीक्षण पहले से ही स्वीकृत न्यूमोकोकल वैक्सीन (Synflorix) के प्रति किया गया था।
  • वैक्सीन को तीसरे चरण के परीक्षण (मानव नैदानिक परीक्षण का अंतिम चरण) के परिणामों के आधार पर यह स्वीकृति दी गई। ध्यातव्य है कि तीसरे चरण का परीक्षण पश्चिम अफ्रीकी देश गाम्बिया में 2,250 बच्चों पर किया गया था। पहले और दूसरे चरण के परीक्षण भारत में किये गए थे।
  • निमोनिया पैदा करने वाले बैक्टीरिया (Streptococcus pneumoniae) के लगभग 90 सीरोटाइप हैं तथा इस रोग का सीरोटाइप एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होता है। इस न्यूमोकोकल वैक्सीन के लिये 10 सीरोटाइप को चुना गया है जो भारत सहित लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में निमोनिया के लिये व्यापक रूप से ज़िम्मेदार है।
  • नवंबर 2019 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने नवजात शिशुओं में निमोनिया से होने वाली मौतों को कम करने के लिये साँस (Social Awareness and Action to Neutralise Pneumonia Successfully-SAANS) नामक अभियान की शुरुआत की।

न्यूमोकोकल वैक्सीन क्या है?

  • न्यूमोकोकल टीकाकरण एक विशिष्ट प्रकार के फेफड़ों के संक्रमण (निमोनिया) को रोकने की विधि है जो न्यूमोकोकस (Streptococcus pneumonia) नामक जीवाणु के कारण होता है।
  • न्यूमोकोकस बैक्टीरिया के 80 से अधिक प्रकारों में से 23 को वैक्सीन द्वारा उपचारित किया जाता है।
  • शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करने के लिये इस वैक्सीन को शरीर में इंजेक्ट किया जाता है और इससे एंटीबॉडी का उत्पादन होता है। यह एंटीबॉडी न्यूमोकोकस बैक्टीरिया से प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
  • यह न्यूमोकोकस बैक्टीरिया के अलावा अन्य रोगाणुओं के कारण होने वाले निमोनिया से सुरक्षा प्रदान नहीं करता है।

न्यूमोकोकल वैक्सीन की आवश्यकता

  • वर्ष 2018 में निमोनिया के कारण भारत में 1,27,000 मौतें हुईं, जो विश्व में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के मामले में दूसरी सबसे बड़ी संख्या है।
  • निमोनिया और डायरिया भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु के सबसे प्रमुख कारणों में शामिल हैं।
  • वर्ष 2017 में न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन को भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme- UIP) के अंतर्गत शामिल किया गया था।

निमोनिया फेफड़े का एक संक्रमण है और सामान्यतया बैक्टीरिया एवं वायरस द्वारा सभी उम्र के लोगों में यह रोग उत्पन्न हो सकता है। टीकाकरण द्वारा बच्चों को इस रोग से सुरक्षित रखा जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

अपना यूरिया सोना उगले

प्रीलिम्स के लिये:

अपना यूरिया सोना उगले

मेन्स के लिये:

हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड द्वारा यूरिया संयंत्रों के पुनरुद्धार से लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय (Ministry of Chemicals & Fertilizers) द्वारा हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (Hindustan Urvarak & Rasayan Limited- HURL) का लोगो और सूत्र वाक्य ‘अपना यूरिया सोना उगले’ (APNA UREA - Sona Ugle) जारी किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने जैविक सामग्री और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों सहित उर्वरकों के संतुलित उपयोग पर ज़ोर दिया है।

HURL तथा यूरिया उत्पादन:

  • देश को यूरिया उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सरकार ने वर्ष 2016 में गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी में स्थित तीन रुग्ण यूरिया संयंत्रों के पुनरुद्धार की स्वीकृति दी।
  • इन तीनों रुग्ण यूरिया संयंत्रों के पुनरुद्धार का कार्य HURL द्वारा किया जा रहा है।
  • भारत के प्रधान मंत्री द्वारा कुल पाँच प्रमुख रुग्ण/बंद उर्वरक संयंत्रों का पुनरुद्धार किये जाने की बात कही गई थी जिनमें से तीन इकाइयों (गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी) का पुनरुद्धार HURL द्वारा किया जा रहा है।
  • बाकी दो इकाइयों- रामागुंडम (तेलंगाना) और तालचर (ओडिशा) में भी जल्द परिचालन प्रारंभ होने की उम्मीद है।

रुग्ण इकाइयों का पुनरुद्धार:

  • वर्ष 2021 में तीन बंद इकाइयों में परिचालन प्रारंभ होने की संभावना के कारण यूरिया बाज़ार में HURL को एक प्रमुख उभरते हुए केंद्र के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि इन इकाइयों में प्रतिवर्ष नीम कोटेड यूरिया (Neem Coated Urea) की कुल स्थापित उत्पादन क्षमता 38.1 लाख मीट्रिक टन है।
  • HURL इन तीन स्थानों पर अत्याधुनिक, पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा कुशल प्राकृतिक गैस आधारित नए उर्वरक परिसरों की स्थापना एवं संचालन करेगी जिनमें नीम लेपित यूरिया की वार्षिक स्थापित उत्पादन क्षमता 1.2 लाख मीट्रिक टन होगी।
  • HURL की इन तीन इकाइयों में से एक इकाई (गोरखपुर) की फरवरी 2021 में प्रारंभ होने की संभावना है जबकि दो इकाइयों (सिंदरी और बरौनी) मई 2021 से परिचालन शुरू हो सकता है।
  • इन संयंत्रों को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति गेल (Gas Authority of India Limited- GAIL) द्वारा ‘पूल्ड प्राइस मैकेनिज्म’ (Pooled Price Mechanism) के अंतर्गत की जाएगी।
  • अन्य दो इकाइयों में रामागुंडम इकाई का पुनरुद्धार ‘रामागुंडम फर्टिलाइज़र्स एंड केमिकल्स लिमिटेड’ (Ramagundam Fertilizers & Chemicals Limited- RFCL) द्वारा राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटेड (National Fertilizers Limited), इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (Engineers India Ltd- EIL) और फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Fertilizer Corporation of India Limited- FCIL) के साथ संयुक्त रूप से किया जाएगा।
  • वहीं तलचर इकाई का पुनरुद्धार ‘तलचर फर्टिलाइज़र्स लिमिटेड’ (Talcher Fertilizers Limited- TFL) द्वारा राष्ट्रीय रसायन और उर्वरक लिमिटेड (Rashtriya Chemicals & Fertilizers Limited-RCF), कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited- CIL), GAIL और FCIL के संयुक्त प्रयास से किया जा रहा है।

संयंत्रों के पुनः प्रारंभ होने से लाभ:

  • उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थित तीन इकाइयों (गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी) में परिचालन प्रारंभ होने से देश के पूर्वी क्षेत्र में आर्थिक व व्यावसायिक गतिविधियों का विस्तार होगा।
  • इससे देश के पूर्वी भाग में आय और रोज़गार सृजन के नए मार्ग खुलेंगे।
  • भारत का औसत यूरिया आयात 63.12 लाख मीट्रिक टन है क्योंकि देश में यूरिया का औसत उत्पादन लगभग 241 लाख मीट्रिक टन है और कुल खपत (बिक्री) लगभग 305.48 लाख मीट्रिक टन है।
  • उत्पादन और खपत के बीच के इस अंतर की पूर्ति आयात के माध्यम से पूर्ण की जाती है। इन पाँच इकाइयों के प्रारंभ होने के बाद यूरिया का कुल उत्पादन प्रतिवर्ष लगभग 63.5 लाख मीट्रिक टन बढ़ जाएगा और भारत यूरिया के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा।

स्रोत- पीआईबी


सामाजिक न्याय

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ सख्त कदम

प्रीलिम्स के लिये:

महिलाओं का यौन उत्‍पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013

मेन्स के लिये:

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये कानूनी प्रावधान

चर्चा में क्यों:

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के उद्देश्य से कानूनी ढाँचे को मज़बूत करने के लिये गृह मंत्री की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के समूह (Group of Ministers- GoM) ने अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप दे दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • इन सिफारिशों के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) में नए प्रावधानों को शामिल करने की बात कही गई है। साथ ही इन सिफारिशों को जनता की राय के लिये सार्वजनिक किया जाएगा।

मंत्रियों के समूह का गठन:

  • GoM का गठन पहली बार ‘मी टू’ अभियान (#MeToo Movement) के परिणामस्वरूप अक्तूबर 2018 में किया गया था जिसके तहत कई चर्चित महिलाओं ने सोशल मीडिया पर अपने कटु अनुभव साझा किये थे।
  • इसे जुलाई 2019 में गृह मंत्री की अध्यक्षता में पुनर्गठित किया गया।
  • GoM के अन्य सदस्यों में केंद्रीय वित्त मंत्री, मानव संसाधन एवं विकास मंत्री और महिला एवं बाल विकास मंत्री भी शामिल हैं।

भारतीय दंड संहिता का पुनरीक्षण:

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA) वर्ष 1860 में अंग्रेज़ों द्वारा लागू की गई IPC का पुनरीक्षण करने के लिये एक योजना पर काम कर रहा है।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ मौजूदा कानूनों में बदलाव IPC के प्रावधानों के पूर्ण अवलोकन के बाद ही किया जाएगा।
  • ‘ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट’ (Bureau of Police Research and Development- BPR&D) द्वारा IPC और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- Cr.PC) के विभिन्न प्रावधानों में संशोधन के लिये कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, कानूनवेत्ताओं और राज्य सरकारों से परामर्श किया जा रहा है।
  • अगर IPC में बदलाव किया जाता है तो महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों से संबंधित प्रावधानों में भी संशोधन किया जाएगा।

अन्य कानूनी प्रावधान:

Workplace woes

  • प्रस्तावित संशोधन काफी हद तक वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित उन विशाखा दिशा-निर्देशों (Vishaka Guidelines) पर आधारित होंगे जिन पर ‘महिलाओं का यौन उत्‍पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013 आधारित था।
  • इस अधिनियम ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये नियोक्ता को ज़िम्मेदार बनाया।
  • वर्ष 2013 के अधिनियम में आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee-ICC) के सदस्यों की कानूनी पृष्ठभूमि की आवश्यकता को तय किये बिना इस समिति को सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्रदान करने जैसी कमियाँ विद्यमान थीं।
  • इस अधिनियम का अनुपालन न करने वाले नियोक्ताओं पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया।
  • इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि यदि कोई महिला जाँच संपन्न होने के बाद दोषी के खिलाफ IPC के तहत शिकायत दर्ज करना चाहती है तो नियोक्ता द्वारा महिला को सहायता प्रदान की जाएगी।

GoM द्वारा किये गए अन्य अवलोकन:

  • GoM ने वर्ष 2012 में निर्भया गैंगरेप और हत्या की वीभत्स घटना के संदर्भ में गठित न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति की रिपोर्ट का भी निरीक्षण किया।
  • वर्मा समिति ने आंतरिक शिकायत समिति के स्थान पर एक रोज़गार न्यायाधिकरण (Employment Tribunal) की स्थापना की सिफारिश की थी, जिससे घरेलू स्तर पर ऐसी शिकायतों का निपटान किया जा सके।

कार्यस्थल पर यौन शोषण की घटनाओं से संबंधित आँकड़े:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के अनुसार, ‘कार्यस्थल या कार्यालय परिसर’ में IPC की धारा 509 (किसी शब्द, इशारे या किसी कृत्य द्वारा एक महिला के शील या सम्मान को चोट पहुँचाना) के तहत वर्ष 2017 और 2018 में क्रमशः 479 और 401 मामले दर्ज किये गए।
  • वर्ष 2018 में ऐसे सबसे ज्यादा मामले दिल्ली (28), बंगलुरु (20), पुणे (12) और मुंबई (12) में दर्ज किए गए।
  • वर्ष 2018 में सार्वजनिक स्थानों, शेल्टर होम और अन्य स्थानों पर यौन उत्पीड़न के कुल 20,962 मामले दर्ज किये गए।
  • दिसंबर 2018 में गृह मंत्रालय ने ‘महिलाओं का यौन उत्‍पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013’ के तहत आंतरिक शिकायत समिति के गठन और पुलिस विभागों को इसके संदर्भ में अधिसूचित करने के लिये सभी राज्यों को सूचित किया था।

स्रोत- द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ब्‍लॉकचेन टेक्‍नोलॉजी उत्‍कृष्‍टता केंद्र

प्रीलिम्स के लिये:

ब्‍लॉकचेन टेक्‍नोलॉजी उत्‍कृष्‍टता केंद्र, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, ब्‍लॉकचेन टेक्‍नोलॉजी, राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क

मेन्स के लिये:

भारत में ब्लॉकचेन तकनीक, ब्लॉकचेन तकनीक का सरकारी तंत्र को पारदर्शी बनाने में योगदान, डिजिटलीकरण में ब्लॉकचेन तकनीक का योगदान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Center- NIC) द्वारा बंगलूरू में स्थापित ब्‍लॉकचेन टेक्‍नोलॉजी उत्‍कृष्‍टता केंद्र (Centre of Excellence in Blockchain Technology) का उद्घाटन केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा किया गया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इसका उद्देश्‍य सेवा के रूप में ब्‍लॉकचेन (Blockchain as a Service- BaaS) प्रदान करना है।
  • यह तकनीक सभी हितधारकों को साझा शिक्षण, अनुभवों और संसाधनों से लाभान्वित करके ई-शासन प्रणाली में पारदर्शिता और विश्वास बढ़ाने में मदद करती है।
  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा स्थापित यह केंद्र डेटा-केंद्रित मॉडल के माध्यम से प्रभावी रूप से ई-गवर्नेंस सेवाएँ प्रदान कर लोगों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने में मदद करेगा।
  • यह केंद्र भारत सरकार के विभिन्न विभागों को प्रौद्योगिकी क्षमता को समझने में मदद करेगा।
  • सरकार में ब्लॉकचेन के नए अप्रत्याशित अनुप्रयोगों से ई-गवर्नेंस सिस्टम में पारदर्शिता, पारगम्यता और विश्वास बढ़ने की उम्मीद है।
  • उत्कृष्टता केंद्र ने इस प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदान किये जाने वाले संभावित लाभों की समझ विकसित करने के लिए एवं चुनिंदा सरकारी उपयोग के मामलों के लिए ब्लॉकचेन आधारित प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट (Proof of Concept- PoCs) विकसित किया है।

राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) के बारे में

  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत सरकार का प्रमुख विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान है। गौरतलब है कि यह संस्थान केंद्रीय संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1976 में सरकारी क्षेत्र में बेहतर पद्धतियों, एकीकृत सेवाओं तथा ई-सरकार/ई-शासन संबंधी समाधानों को प्रदान करने के लिये की गयी थी।
  • ध्यातव्य है कि NIC भारत सरकार के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information & Communication Technology- ICT) समाधानों के कार्यान्वयन तथा उनके सक्रिय संवर्द्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • NIC राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र नेटवर्क (National Informatics Center Network- NICNET), राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (National Knowledge Network- NKN) की स्थापना तथा महत्त्वपूर्ण ई-गवर्नेंस समाधानों के विकास में अग्रणी संस्था है।

ब्‍लॉकचेन टेक्‍नोलॉजी के बारे में

  • ब्लॉकचेन एक ऐसी तकनीक है जिसे वित्तीय लेन-देन (Financial Transactions) रिकॉर्ड करने के लिये एक प्रोग्राम के रूप में तैयार किया गया है।
  • स्‍वास्‍थ्‍य, वित्‍त, कृषि तथा विभिन्‍न अन्‍य क्षेत्रों में इसे अपनाने से सरकार को विभिन्‍न कार्यक्रमों के कार्यान्‍वयन में आसानी होगी।
  • विकेंद्रीकरण और पारदर्शिता ब्लॉकचेन तकनीक की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है, जिसकी वजह से यह तेज़ी से लोकप्रिय और कारगर साबित हो रही है।
  • यह एक डिजिटल सिस्टम है, जिसमें इंटरनेट तकनीक बेहद मज़बूती के साथ अंतर्निहित है।
  • इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि ब्लॉकचेन सिस्टम में यदि कोई कंप्यूटर खराब भी हो जाता है तो भी यह सिस्टम काम करता रहता है।
  • इसका उपयोग सूचना प्रौद्योगिकी और डेटा प्रबंधन, सरकारी योजनाओं का लेखा-जोखा, सब्सिडी वितरण, कानूनी कागज़ात रखने, बैंकिंग एवं बीमा, भू-रिकॉर्ड विनियमन, डिजिटल पहचान तथा प्रमाणीकरण, स्वास्थ्य आँकड़े, साइबर सुरक्षा, क्लाउड स्टोरेज, ई-गवर्नेंस, स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट, शैक्षणिक जानकारी, ई–वोटिंग इत्यादि क्षेत्रों में किया जा सकता है।

राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (National Knowledge Network- NKN)

  • यह एक अखिल भारतीय मल्टी-गीगाबिट नेटवर्क है जो भारत में कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास और अनुसंधान को बढ़ावा देता है तथा अगली पीढ़ी के एप्लीकेशन्स और सेवाओं के निर्माण में सहायता देता है।
  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre-NIC) इसे लागू करने वाली एजेंसी है।
  • वर्ष 2010 में राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क की स्थापना के साथ ही इसे 10 साल की अवधि के लिये शुरू किया गया था।
  • वर्तमान में इसे डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के तहत ही क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • परमाणु, अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान में अग्रणी मिशन उन्मुख एजेंसियाँ भी NKN का ​​हिस्सा हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 जनवरी, 2020

एस. के. सैनी- सेना के नए उपप्रमुख

भारतीय सेना के दक्षिणी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एस. के. सैनी को भारतीय सेना के नए उपप्रमुख के रूप में चुना गया है। लेफ्टिनेंट जनरल एस. के. सैनी आगामी गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले यानी 25 जनवरी को पदभर संभालेंगे। इससे पूर्व जनरल मनोज मुकुंद नरवणे इस पद पर कार्यरत थे, जिन्हें हाल ही में सेना प्रमुख के पद पर नियुक्त कर दिया गया। कपूरथला में सैनिक स्कूल और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के पूर्व छात्र लेफ्टिनेंट जनरल सैनी को जून 1981 में जाट रेजिमेंट में कमीशन किया गया था। अपनी अब तक की कार्यावधि के दौरान उन्हें वीरता और विशिष्ट सेवा के लिये कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

भारतीय तीरंदाजी संघ के नए अध्यक्ष

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को भारतीय तीरंदाजी संघ (AAI) के नए अध्यक्ष के रूप में चुना गया है। इसी के साथ AAI में लंबे समय से चली आ रही तनातनी पर भी विराम लग गया है। ज्ञात हो कि इसी तनातनी के कारण ही AAI पर विश्व तीरंदाजी (World Archery) ने प्रतिबंध लगा रखा है जिसके कारण भारतीय खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में तटस्थ खिलाड़ियों के तौर पर हिस्सा लेना पड़ता था। अर्जुन मुंडा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1980 से की थी और अपने राजनीतिक जीवन में वे कुल तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए।

प्रिंस हैरी और मेघन मार्कल ने छोड़ा शाही परिवार

ब्रिटेन के प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेघन मार्कल ने शाही परिवार को छोड़ने के औपचारिक समझौते पर हस्‍ताक्षर कर दिये हैं। इसके परिणामस्‍वरूप उन्‍हें अपने हिज़ और हर रॉयल हाइनेस का सम्‍मान छोड़ना होगा और साथ ही उन्हें उन्‍हें करदाता के राजस्‍व से धन नहीं मिलेगा। इस समझौते के प्रभावी होने के परिणामस्‍वरूप वे आधिकारिक तौर पर महारानी का प्रतिनिधित्‍व नहीं कर पाएंगे।

दिव्‍यांगजनों के लिये स्टॉल

उत्तर प्रदेश सरकार दिव्‍यांगजनों के कल्‍याण हेतु राज्‍य के प्रमुख स्‍थलों पर दिव्‍यांगों को दुकानों के लिये स्‍टॉल उपलब्‍ध कराएगी। प्रदेश के परिवहन मंत्री अशोक कटारिया के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान के पूर्व छात्रों द्वारा चलाए जा रहे गैर सरकारी संगठन की मदद से 100 बस स्टैंडों पर यह स्‍टॉल उपलब्‍ध कराएगी। इसका उद्देश्‍य दिव्‍यांगों को आत्‍मनिर्भर बनाना और सम्‍मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करना है।

लोकगायिका सुनंदा पटनायक का निधन

मशहूर लोकगायिका सुनंदा पटनायक का 19 जनवरी, 2020 को निधन हो गया। 85 वर्षीय सुनंदा पटनायक ने उड़िया संगीत की दुनिया में विशेष स्थान बनाया था। प्रसिद्ध उड़िया कवि बैकुंठनाथ पटनायक की बेटी सुनंदा पटनायक का जन्म 7 नवंबर, 1934 को हुआ था और वर्ष 1948 में 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने कटक के ऑल इंडिया रेडियो से गायन में अपने कॅरियर की शुरुआत की थी।


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