भारतीय राजनीति
सूचना का अधिकार और ईवीएम
प्रीलिम्स के लिये:
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, केंद्रीय सूचना आयोग
मेन्स के लिये:
EVM और सूचना का अधिकार अधिनियम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) के उस निर्णय को खारिज कर दिया जिसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (Electronic Voting Machine-EVM) को सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI Act, 2005) के अंतर्गत ‘सूचना’ की परिभाषा में शामिल बताया गया था।
मुख्य बिंदु:
- निर्वाचन आयोग द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्रीय सूचना आयोग के 12 फरवरी के उस आदेश को चुनौती दी गई जिसमें कहा गया था कि आयोग के पास एक वस्तु के रूप में मौजूद ईवीएम आरटीआई एक्ट के तहत एक ‘सूचना’ है।
- निर्वाचन आयोग ने भी यह स्पष्ट किया था कि ईवीएम RTI Act, 2005 के अंतर्गत नहीं आते हैं क्योंकि इनका संबंध मुख्य रूप से दस्तावेज़ी रिकॉर्ड और प्रतिनिधि तंत्र से संबंधित है।
- निर्वाचन आयोग द्वारा बनाए गए ईवीएम का उपयोग क़ानूनी तौर पर पूरे देश में चुनाव संचालन में किया जाता है। इसके अलावा निर्वाचन आयोग अधिकारियों के प्रशिक्षण तथा जागरूकता कार्यक्रमों में कुछ ईवीएम का प्रयोग अपनी सख्त निगरानी में करता है।
- इस वर्ष फरवरी में केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा था कि RTI Act, 2005 के तहत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) ‘सूचना’ की परिभाषा में आती है। आयोग के पास एक वस्तु के रूप में मौजूद ईवीएम RTI Act, 2005 के तहत एक ‘सूचना’ है। इसके बाद 12 फरवरी को निर्वाचन आयोग ने केंद्रीय सुचना आयोग के इस आदेश को अदालत में चुनौती दी थी।
- केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा था कि RTI Act, 2005 की धारा 2 (f) रिकॉर्ड, दस्तावेज़, मेमो, ई-मेल, राय, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, अनुबंध, रिपोर्ट, कागजात आदि किसी भी सामग्री को 'सूचना' के रूप में परिभाषित करती है।
केंद्रीय सूचना आयोग
(Central Information Commission)
- केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत की गई।
- 12 अक्तूबर, 2005 को सूचना का अधिकार अधिनियम कानूनी अधिकार के रूप में आया।
- यह अधिनियम प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कार्यकरण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्त्व की भावना के विकास हेतु लाया गया है।
- यह आयोग एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्तों से मिलकर बनता है।
- मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति एक समिति (प्रधानमंत्री के नेतृत्त्व में, लोकसभा में विपक्ष का नेता व प्रधानमंत्री द्वारा विनिर्दिष्ट संघ मंत्रिमंडल का एक मंत्री) की सिफारिश पर करता है।
- मुख्य सूचना आयुक्त तथा अन्य आयुक्त पद ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र (जो भी पहले हो) तक पदधारण करते हैं।
स्रोत- द हिंदू
सामाजिक न्याय
WHO: ट्रास्टूजुमैब बायोसिमिलर्स
प्रीलिम्स के लिये
ट्रास्टूजुमैब, बायोसिमिलर्स क्या है?
मेन्स के लिये
स्तन कैंसर की रोकथाम के उपाय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) ने स्तन कैंसर के इलाज के लिये उपयोग में लाई जाने वाली दवा ट्रास्टूजुमैब (Trastuzumab) के पहले बायोसिमिलर्स (Biosimilars) दवा के वाणिज्यिक प्रयोग की अनुमति प्रदान की।
मुख्य बिंदु:
- वैश्विक स्तर पर महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले प्रायः देखने को मिलते हैं। वर्ष 2018 में लगभग 21 लाख महिलाएँ स्तन कैंसर से पीड़ित थीं। इनमें से 6 लाख 30 हज़ार महिलाओं की मौत इलाज में देरी या आवश्यक उपचार की सुविधा न होने की वजह से हो गई।
- ट्रास्टूजुमैब नामक दवा को WHO द्वारा आवश्यक दवाओं की सूची में वर्ष 2015 में शामिल किया गया था।
- यह दवा स्तन कैंसर के लगभग 20 प्रतिशत मामलों के इलाज में सफल रही है तथा प्रारंभिक एवं कई मामलों में उच्च स्तरीय कैंसर के इलाज में भी काफी प्रभावी साबित हुई है।
- ट्रास्टूजुमैब की वार्षिक औसत कीमत 20,000 डॉलर है। इसके अत्यधिक कीमती होने की वजह से यह विश्व की अधिकांश महिलाओं तथा देशों की स्वास्थ्य व्यवस्था द्वारा वहनीय नहीं है।
- ट्रास्टूजुमैब दवा के बायोसिमिलर्स की कीमत इसकी कीमत से 65 प्रतिशत कम है तथा भविष्य में अन्य दवाएँ भी WHO द्वारा पूर्व-अर्हता (Prequalification) प्राप्त करने हेतु प्रतीक्षा में हैं, जिनके बाज़ार में आने के बाद कीमतों में और अधिक कमी होने की संभावना है।
- इस दवा के बायोसिमिलर्स की जाँच में WHO द्वारा इसकी प्रभावशीलता, सुरक्षा तथा गुणवत्ता का मूल्यांकन किया गया। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं और विभिन्न देशों द्वारा आपूर्ति हेतु अनुसंशित किया गया।
- पिछले पाँच वर्षों में ट्रास्टूजुमैब के कुछ बायोसिमिलर्स विकसित किये गए हैं लेकिन उनमें से किसी को WHO द्वारा पूर्व-अर्हता नहीं प्रदान की गई है। पूर्व-अर्हता प्राप्त करने के बाद देशों को इस बात का आश्वासन दिया जाता है कि वे इन दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
बायोसिमिलर्स (Biosimilars):
- जेनेरिक दवाओं की भाँति ही बायोसिमिलर्स भी मूल बायो-थेराप्यूटिक दवाओं (Biotherapeutic Medicines) का सस्ता रूपांतरण होता है, जबकि इनकी प्रभावशीलता समान होती है।
- कंपनियों द्वारा इनका निर्माण तब किया जाता है जब मूल उत्पाद की पेटेंट (Patent) अवधि समाप्त हो गई हो।
बायो-थेराप्यूटिक दवाएँ
(Biotherapeutic Medicines):
- उन दवाओं को कहा जाता है जो संश्लेषित रसायनों की बजाय जैविक तथा सजीव स्रोतों जैसे- कोशिका, रक्त, रक्त कणिकाएँ, ऊतक तथा अन्य पदार्थों से निर्मित की गई हों।
- अनेक जैविक दवाएँ (Biologic Medicines) विशेषीकृत ड्रग (Specialty Drugs) होती हैं। इनकी कीमत अत्यधिक होती है तथा उन बीमारियों के इलाज के लिये कारगर होती हैं जिनका कोई अन्य इलाज उपलब्ध नहीं होता है। इसमें जीन तथा कोशिका आधारित थेरेपी शामिल है।
- कई बायो-थेराप्यूटिक दवाओं का प्रयोग कैंसर, मधुमेह तथा आर्थराइटिस जैसे रोगों के इलाज में किया जाता है।
- हाल ही में अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में 1325 महिलाओं पर किये गए एक अध्ययन के अनुसार स्तन कैंसर की शुरूआती पहचान के बावजूद एक वर्ष तक 227 (17%) महिलाओं का इलाज संभव नहीं हो सका। इन आँकड़ों से पता चलता है कि कैंसर के उपचार में इलाज का खर्च एक बड़ी बाधा है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की अंतर्राष्ट्रीय कैंसर शोध एजेंसी के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2040 तक स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं की संख्या लगभग 31 लाख तक पहुँच जाएगी।
आगे की राह:
- स्तन कैंसर की समस्या से निजात पाने के लिये आवश्यक है कि बायोसिमिलर्स की उपलब्धता बढ़ायी जाए। इससे इनकी कीमतों में और कमी होने की संभावना है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अधिक नवाचार होंगे और इन दवाओं की पहुँच विस्तृत होगी।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
मधुमेह संबंधी मामले
प्रीलिम्स के लिये:
अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (International Diabetes Federation), मधुमेह और उसके प्रकार
मेन्स के लिये:
बच्चों में स्वास्थ्य की चुनौतियाँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (IDF) द्वारा जारी IDF मधुमेह एटलस के 9वें संस्करण में भारतीय बच्चों और युवाओं में हर वर्ष तेज़ी से बढ़ते मधुमेह के मामलों को चिंताजनक बताया गया है। इस रिपोर्ट के नए संस्करण के अनुसार, विश्व भर मे मधुमेह के मामले 51% बढ़े हैं जबकि दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में मधुमेह के मामलों में 74% की वृद्धि देखी गई है।
क्या है मामला?
- IDF की रिपोर्ट में जारी आँकड़ों के अनुसार, दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में केवल 2019 में ही मधुमेह के 8.8 करोड़ नए मामले पंजीकृत किये गए।
- IDF के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2045 तक इनकी संख्या बढ़ कर 15.3 करोड़ हो सकती है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में विश्व में 46.3 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और 2030 तक इनकी संख्या बढ़कर 57.8 करोड़ तथा 2045 तक 70 करोड़ हो सकती है।
- इस रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में वर्ष 2019 में 14 वर्ष की उम्र के बच्चों में मधुमेह (टाइप-1) के 95,600 पुराने मामलों के अलावा 15,900 नए मामले दर्ज किये गए।
- वर्तमान में विश्व के ज़्यादातर देशों में मधुमेह को लेकर कोई राष्ट्रीय योजना नहीं है तथा विश्व की लगभग आधी आबादी मधुमेह के सही और अनिवार्य उपचार से वंचित है, ऐसे में यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि ज़्यादातर देश WHO के “2025 तक टाइप-2 मधुमेह मुक्त विश्व” के लक्ष्य का साथ देने में असफल रह रहे हैं।”
मधुमेह
मधुमेह एक गैर-संचारी (Non-Communicable Disease) रोग है जो किसी व्यक्ति में तब पाया जाता है जब मानव अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन (एक हार्मोन जो रक्त शर्करा या ग्लूकोज को नियंत्रित करता है) का उत्पादन नहीं करता है, या जब शरीर प्रभावी रूप से उत्पादित इंसुलिन का उपयोग करने में असफल रहता है।
मधुमेह के प्रकार: मधुमेह तीन प्रकार का होता है-
1. टाइप (Type)-1: इसे ‘किशोर-मधुमेह’ के रूप में भी जाना जाता है (क्योंकि यह ज़्यादातर 14-16 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करता है), टाइप-1 मधुमेह तब होता है जब अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने में विफल रहता है। टाइप-1 मधुमेह वाले लोग इंसुलिन पर निर्भर होते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें जीवित रहने के लिये रोज़ाना कृत्रिम (इंजेक्शन द्वारा) इंसुलिन लेना पड़ता है।
2. टाइप (Type)-2: यह मानव शरीर के इंसुलिन के उपयोग के तरीके को प्रभावित करता है। इस अवस्था में टाइप-1 के विपरीत अग्नाशय में इंसुलिन तो बनाता है लेकिन शरीर की कोशिकाएँ इस बने इन्सुलिन का स्वस्थ शरीर की तरह प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाती (प्रतिक्रिया नहीं देती हैं)।
- टाइप-2 मधुमेह ज़्यादातर 45 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों में पाया जाता है।
- यह लोगों में तेज़ी से बढ़ते मोटापे (Obesity) का कारण बनता है।
3. गर्भावस्था के दौरान मधुमेह: यह गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में तब होता है जब कभी-कभी गर्भावस्था के कारण शरीर अग्नाशय में बनने वाले इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील हो जाता है। गर्भकालीन मधुमेह सभी महिलाओं में नहीं होता है और आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद यह समस्या दूर हो जाती है।
- मधुमेह लम्बे समय तक बगैर उपचार या सही रोकथाम के रहने पर गुर्दे, हृदय, रक्त वाहिकाएं, तंत्रिका तंत्र और आँखें (रेटिना) आदि से संबंधित रोगों का कारण बनता है।
मधुमेह की रोकथाम में भारत सरकार की पहल:
- मधुमेह के मरीजों की सुविधा के लिये mDiabetes app
- स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण (Ministry of Health and Family Welfare) ने WHO के राष्ट्रीय कार्यालय (भारत) तथा कई अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर इस क्षेत्र में जनहित योजनाएँ चलायी हैं।
- नेशनल हेल्थ पोर्टल द्वारा मधुमेह से संबंधित जानकारियों से जनता को जागरूक करना।
- हर वर्ष 14 नवंबर के दिन विश्व मधुमेह दिवस मनाया जाता है, इस वर्ष का विषय था “परिवार और मधुमेह” (Family and Diabetes)।
- 14 नवंबर, 1891 को जन्मे “सर फ्रेडरिक बैंटिंग” ने “चार्ल्स बेस्ट” के साथ मिलकर वर्ष 1922 में इन्सुलिन की खोज की थी।
क्या है अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ?
- अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ की स्थापना नीदरलैंड की राजधानी अम्स्टर्डाम (Amsterdam) में वर्ष 1950 में हुई थी।
- वर्ष 1985 में IDF का कार्यकारी मुख्यालय ब्रसेल्स, बेल्जियम में स्थानांतरित हो गया।
- भारत के डॉ. ज़सबीर सिंह बजाज़ (पद्म विभूषण,1982) 1985 से 1988 तक इस संघ के अध्यक्ष रहे।
- यह संगठन विश्व के लगभग 170 देशों तथा 230 से अधिक संगठनों के साथ मिलकर मधुमेह के उपचार, शोध एवं जागरूकता आदि पर काम करता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग
प्रीलिम्स के लिये
फेनी नदी विवाद, फेनी नदी की भौगोलिक स्थिति
मेन्स के लिये
भारत-बांग्लादेश संबंधों में नदी जल विवाद
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत-बांग्लादेश के बीच होने वाली संयुक्त नदी आयोग (Joint River Commission- JRC) की बैठक को बांग्लादेश द्वारा निरस्त कर दिया गया। यह बैठक भारत बांग्लादेश सीमा पर स्थित फेनी नदी के जल के बँटवारे से संबंधित थी।
मुख्य बिंदु:
- भारत और बांग्लादेश आपस में 54 नदियाँ साझा करते हैं। ध्यातव्य है कि इस विषय पर एक द्विपक्षीय संयुक्त नदी आयोग (JRC) है जो दोनों देशों के मध्य स्थित नदियों से परस्पर लाभ प्राप्त करने तथा समय-समय पर नदी संबंधी मुद्दों पर चर्चा करने के लिये बैठकें करता है।
- अक्तूबर 2019 में दोनों देशों के मध्य JRC की बैठक हुई जिसमें दोनों देशों के जल संसाधन सचिव शामिल हुए। इसके माध्यम से दोनों देशों के बीच स्थित सात नदियों- मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमटी, धरला, दूधकुमार तथा फेनी के जल संबंधी आँकड़े एकत्रित करने और जल-साझेदारी से संबंधित समझौतों पर सहमति हुई।
- नवंबर, 2019 में दोनों देशों के मध्य एक समझौता हुआ था। इसके तहत भारत फेनी नदी के 1.82 क्यूसेक (क्यूबिक फीट प्रति सेकंड) जल को त्रिपुरा के सबरूम शहर में पेय जल मुहैया कराने के लिये प्रयोग में ला सकता है।
- उपरोक्त समझौतों को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से 18 दिसंबर 2019 को दोनों देशों के मध्य JRC की बैठक होना तय किया गया था।
फेनी नदी विवाद
(Feni River Dispute):
- यह नदी भारत बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है। इसका उद्गम दक्षिणी त्रिपुरा ज़िले में स्थित है।
- यह नदी त्रिपुरा के सबरूम शहर से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- इस नदी के जल के बँटवारे का विवाद काफी समय से लंबित है। वर्ष 1958 में इसके लिये नई दिल्ली में सचिव स्तर की बैठक हुई थी।
- बांग्लादेश की तरफ से यह आरोप लगाया जाता है कि फेनी नदी का पानी काफी समय से भारत की ओर से पंपों द्वारा निकला जाता है।
- सबरूम त्रिपुरा के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक शहर है। यह शहर पेयजल की समस्या से ग्रस्त है तथा इस क्षेत्र के भू-जल में लौह तत्त्व अत्यधिक मात्रा में मौजूद है।
- त्रिपुरा के जल संसाधन विभाग के अनुसार, बांग्लादेश द्वारा आपत्ति व्यक्त किये जाने के बाद फेनी नदी से जुड़ी 14 परियोजनाएँ वर्ष 2003 से ही रुकी हुई हैं जिसके कारण इस क्षेत्र के गाँवों में सिंचाई प्रभावित हो रही है।
संयुक्त नदी आयोग
(Joint River Commission-JRC):
- इस आयोग की स्थापना वर्ष 1972 में इंडो-बांग्लादेश शांति संधि के तहत दोनों देशों के मध्य स्थित नदियों के जल के बँटवारे हेतु की गई थी।
- इसका उद्देश्य था कि परस्पर सहयोग द्वारा दोनों देशों के मध्य पड़ने वाली नदियों के जल का अधिकतम उपयोग किया जा सके।
- JRC के प्रमुख दोनों देशों के जल संसाधन मंत्री होते हैं।
स्रोत: द हिंदू
विविध
RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (19 दिसंबर, 2019)
डा. श्रीराम लागू
प्रसिद्ध अभिनेता डा. श्रीराम लागू का 17 दिसंबर, 2019 को पुणे में निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। वे पिछले कुछ समय से बीमार थे। श्रीराम लागू का जन्म 16 नवंबर, 1927 को सतारा (महारष्ट्र) में हुआ था। वे हिंदी फिल्मों के एक जाने-माने अभिनेता थे। उन्होंने लगभग 100 से अधिक हिंदी और 40 से अधिक मराठी फिल्मों में काम किया। उनकी प्रसिद्ध फिल्मों में 'आहट: एक अजीब कहानी', 'पिंजरा', 'मेरे साथ चल', 'सामना', 'दौलत' आदि शामिल हैं। वे सिनेमा के अतिरिक्त मराठी, हिंदी और गुजराती रंगमंच से भी जुड़े रहे। वे पेशे से नाक, कान, गले के सर्जन थे। 42 साल की उम्र में उन्होंने अभिनय की दुनिया में प्रवेश किया। वर्ष 1978 में फिल्म ‘घरौंदा’ के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2019
साहित्य अकादमी ने 23 भाषाओं में अपने वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा की। कविता की सात पुस्तकों के लिये डॉ. फूकन चौधरी बसुमतारी (बोडो), डॉ. नंद किशोर आचार्य (हिंदी), श्री नीलबा ए. खांडेकर (कोंकणी), श्री कुमार मनीष अरविंद (मैथिली), श्री वी मधुसूदनन नायर (मलयालम), श्रीमती अनुराधा पाटिल (मराठी) और प्रो. पन्ना मधुसूदन (संस्कृत) को पुरस्कार प्रदान किया गया। चार उपन्यासों के लिये डॉ. जयश्री गोस्वामी महंत (असमिया), श्री एल. बीरमंगल सिंह (बेरिल थंगा) (मणिपुरी), श्री चौधरी धर्मन (तमिल) और श्री बंदी नारायण स्वामी (तेलुगू) को पुरस्कार दिये गए। छह लघु कथाओं के लिये श्री अब्दुल अहद हज़िनी (कश्मीरी), श्री तरुण कांति मिश्रा (ओडिया), श्री कृपाल कजाक (पंजाबी), श्री रामस्वरूप किसान (राजस्थानी), श्री काली चरण हेम्ब्रम (संथाली) और श्री ईश्वर मुरजानी (सिंधी) को पुरस्कार प्रदान किये गए। डॉ. शशि थरूर (अंग्रेज़ी), डॉ. विजया (कन्नड़) और प्रो. शफी किदवई (उर्दू) को क्रमशः गैर काल्पनिक कथा, आत्मकथा और जीवनी के लिये साहित्य पुरस्कार दिये गए। निबंध की तीन पुस्तकों के लिये डॉ. चिन्मय गुहा (बांग्ला), श्री ओम शर्मा जंदरीयारी (डोगरी) और श्री रतिलाल बोरिससागर (गुजराती) को पुरस्कार दिये गए।
साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित साहित्य उत्सव के दौरान 25 फरवरी, 2020 को इन लेखकों को ये पुरस्कार प्रदान किये जाएंगे। पुरस्कार के रूप में तांबे की पट्टिका का, एक शॉल और एक लाख रुपए नकद भेंट दी जाएगी।
साहित्य अकादमी पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार भारत में एक साहित्यिक सम्मान है। साहित्य अकादमी द्वारा यह पुरस्कार प्रतिवर्ष दिया जाता है। यह अकादमी प्रतिवर्ष मान्यता प्रदत्त प्रमुख भाषाओं में प्रकाशित सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक कृति को पुरस्कार प्रदान करती है। इन पुरस्कारों की शुरुआत वर्ष 1955 में की गई थी।
अभ्यास अपहरण
कोस्टल पोर्ट ट्रस्ट और अन्य सभी संबंधित हितधारकों के साथ मिलकर भारतीय नौसेना ने 18-19 दिसंबर, 2019 को कोच्चि बंदरगाह पर एंटी हाइजैकिंग एक्सरसाइज का आयोजन किया। ‘अपहरण’ नामक इस अभ्यास का उद्देश्य प्रतिक्रिया तंत्र/तैयारी को कारगर बनाना था, ताकि देश विरोधी तत्त्वों द्वारा किसी व्यापारी जहाज़ को हाईजैक करने या किसी अपहृत जहाज़ को ज़बरन प्रवेश कराने के प्रयासों को विफल किया जा सके।
तटीय सुरक्षा के संदर्भ में व्यापारी पोत का अपहरण एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है, जिसकी प्रतिक्रिया के लिये राज्य सरकार सहित सभी हितधारकों के संसाधनों, परिसंपत्तियों और प्रयासों के मध्य तालमेल स्थापित करने की आवश्यकता होती है।
रॉय जॉर्जन स्वेनिंगसेन
हाल ही में कनाडा के रॉय जॉर्जन स्वेनिंगसेन ‘अंटार्कटिक आइस मैराथन’ को पूरा करने वाले अब तक के सबसे उम्रदराज़ व्यक्ति बन गए हैं। स्वेनिंगसेन की आयु 84 वर्ष है। उन्होंने इस दौड़ को 11 घंटे, 41 मिनट और 58 सेकेंड में पूरा किया।