डेली न्यूज़ (19 Nov, 2019)



आसियान के रक्षामंत्रियों की छठी बैठक

प्रीलिम्स के लिये-

ADMM Plus

मेन्स के लिये-

ASEAN

चर्चा में क्यों?

हाल ही में थाईलैंड की राजधानी बैंकाॅक में आसियान के रक्षामंत्रियों की छठी बैठक (ASEAN Defence Minister’s Meeting Plus- ADMM Plus) आयोजित की गई।

ADMM

प्रमुख बिंदु

  • ADMM Plus आसियान के सदस्य देशों के सुरक्षा सम्बन्धी रणनीतिक संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त मंच प्रदान करता है।
  • इस वर्ष बैठक की थीम- स्थायी सुरक्षा (Sustainable Security) है।
  • बैठक में भारत द्वारा वर्ष 2025 तक ड्राफ्ट डिफेंस प्रोडक्शन पॉलिसी 2018 ’के तहत, रक्षा निर्यात का लक्ष्य 5 बिलियन डॉलर और रक्षा वस्तुओं एवं सेवाओं में 10 बिलियन डॉलर का निवेश निर्धारित किया गया है।
  • भारत ने म्याँमार के साथ मिलकर आसियान के लिये सैन्य चिकित्सा पर हैंडबुक (Handbook on Military medicine for ASEAN) भी जारी किया।

आसियान रक्षामंत्रियों की बैठक

(ASEAN Defence Ministers’ Meeting- ADMM)

  • 10वें आसियान शिखर सम्मेलन में ASEAN द्वारा सुरक्षा समुदाय योजना (ASEAN Security Community- Plan of Action) अपनाई गई, जिसके तहत वार्षिक ADMM के गठन की योजना बनाई गई।
  • ADMM की पहली बैठक 9 मई, 2006 को कुआलालंपुर में आयोजित की गई थी।
  • ASEAN के सभी सदस्य देश ADMM के सदस्य हैं।
  • इसका उद्देश्य ASEAN देशों में रक्षा के क्षेत्र में बातचीत और सहयोग के माध्यम से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना है।

आसियान रक्षामंत्रियों की बैठक- प्लस

(ASEAN Defence Ministers’ Meeting Plus- ADMM Plus)

  • वर्ष 2007 में सिंगापुर में आयोजित ADMM की दूसरी बैठक में ADMM Plus के गठन की बात की गई।
  • ADMM-Plus में आसियान के सदस्य देशों के अलावा आठ वार्ता साझेदार (Dialogue partners) देशों को शामिल किया गया।
  • इसकी पहली बैठक वर्ष 2010 में हनोई (वियतनाम) में आयोजित की गई।
  • इस नए तंत्र के तहत रक्षा के क्षेत्र में सहयोग के पाँच क्षेत्रों- समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी, मानवीय सहायता और आपदा राहत, शांति व्यवस्था और सैन्य चिकित्सा पर सहमति व्यक्त की गई।
  • इन क्षेत्रों में सहयोग के लिये अलग से विशेषज्ञ कार्यदल (Expert’s Working Group-EWG) स्थापित किये गए।
  • वर्तमान समय में ADMM Plus में सदस्य देशो के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, दक्षिणी कोरिया , रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

स्रोत- द हिंदू


ओडिशा में विधानपरिषद

प्रीलिम्स के लिये:

विधानपरिषद

मेन्स के लिये:

ओडिशा में विधानपरिषद से संबंधित सभी पारंपरिक मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा सरकार ने केंद्र सरकार से ओडिशा में एक विधानपरिषद की स्थापना के लिये राज्यसभा में एक प्रस्ताव लाने का आग्रह किया है।

मुख्य बिंदु:

  • ओडिशा विधानसभा ने 7 सितंबर, 2018 को विधानपरिषद की स्थापना के लिये एक प्रस्ताव पारित किया था।
  • ओडिशा सरकार के अनुसार, ओडिशा में विकास की गति में वृद्धि के लिये विधानपरिषद के माध्यम से व्यापक परामर्श की आवश्यकता है।

विधानपरिषद:

विधानपरिषद का गठन एवं विघटन

(Creation and Abolition of Legislative Council):

  • संविधान का अनुच्छेद 171 किसी राज्य में विधानसभा के अलावा एक विधानपरिषद के गठन का विकल्प भी प्रदान करता है। राज्यसभा की तरह विधानपरिषद के सदस्य सीधे मतदाताओं द्वारा निर्वाचित नहीं होते हैं।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 168 राज्य में विधानमंडल का प्रावधान करता है। अनुच्छेद 169 के अनुसार, किसी राज्य में विधानपरिषद के गठन तथा उत्सादन/समाप्ति (Abolition) के लिये राज्य विधानसभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से विधान परिषद के गठन तथा उत्सादन का संकल्प पारित कर संसद के पास भेजा जाता है। तत्पश्चात् संसद उसे साधारण बहुमत से पारित कर दे तो विधानपरिषद के निर्माण व उत्सादन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
  • हालाँकि इस प्रकार के संशोधन से संविधान में परिवर्तन आता है किंतु इसे अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान संशोधन नहीं माना जाता है।

विधानपरिषद की संरचना

(Composition of Legislative Council):

  • संविधान के अनुच्छेद 171 के अनुसार, विधानपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी, किंतु यह सदस्य संख्या 40 से कम नहीं चाहिये।
  • राज्यसभा सांसद की ही तरह विधानपरिषद सदस्य का कार्यकाल भी 6 वर्ष का होता है, जहाँ प्रत्येक दो वर्ष की अवधि पर इसके एक-तिहाई सदस्य कार्यनिवृत्त हो जाते हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद 171(3) के अनुसार, विधानपरिषद के एक-तिहाई सदस्य राज्य के विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं, एक-तिहाई सदस्य एक विशेष निर्वाचक-मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं जिसमें नगरपालिकाओं, ज़िला बोर्डों और अन्य स्थानीय प्राधिकारों के सदस्य शामिल होते हैं, इसके अतिरिक्त, सदस्यों के बारहवें भाग का निर्वाचन राज्य के हायर सेकेंडरी या उच्च शिक्षा संस्थाओं में कम-से-कम 3 वर्ष से पढ़ा रहे शिक्षकों के निर्वाचक-मंडल द्वारा और एक अन्य बारहवें भाग का निर्वाचन पंजीकृत स्नातकों के निर्वाचक-मंडल द्वारा किया जाता है, जो कम-से-कम तीन वर्ष पहले स्नातक कर चुके हैं।
  • ⅙ सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किये जाते हैं जो कि राज्य के कला, विज्ञान, साहित्य, समाजसेवा एवं सहकारिता से जुड़े होते हैं।

सदस्यता हेतु अर्हताएँ

(Qualifications for Membership):

  • संविधान के अनुच्छेद 173 के अनुसार, विधानपरिषद सदस्यता के लिये निम्नलिखित अर्हताएँ होनी चाहिये-
    • भारत का नागरिक हो।
    • 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
    • मानसिक रूप से विकृत न हो अर्थात् न्यायालय द्वारा उसे पागल या दिवालिया न घोषित किया गया हो।

विधानपरिषद वाले राज्य

(States with Legislative Council):

  • वर्तमान में छह राज्यों में विधानपरिषद अस्तित्व में हैं।
  • जम्मू-कश्मीर में भी इसके विभाजन (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश) के पूर्व विधानपरिषद मौजूद थी।
  • तमिलनाडु की तत्कालीन सरकार ने विधानपरिषद गठित करने के लिये एक अधिनियम पारित किया था, लेकिन वर्ष 2010 में सत्ता में आई नई सरकार ने इसे वापस ले लिया।
  • वर्ष 1958 में गठित आंध्र प्रदेश विधानपरिषद को वर्ष 1985 में समाप्त कर दिया गया था। वर्ष 2007 में इसका पुनर्गठन किया गया।
  • ओडिशा विधानसभा ने वर्ष 2018 में विधानपरिषद के गठन के लिये संकल्प पारित किया है।
  • राजस्थान और असम में विधानपरिषद के गठन के प्रस्ताव संसद में लंबित हैं।

विधानपरिषद की सीमाएँ:

(Limitations of Legislative Council):

  • विधानपरिषद की शक्तिविहीन और प्रभावहीन भूमिका के कारण विशेषज्ञों द्वारा इस सदन की आलोचना की जाती रही है।
  • आलोचक इसको द्वितीयक चैंबर, सफेद हाथी, खर्चीला सदन आदि की संज्ञा देते हैं।
  • यह ऐसे व्यक्तियों की शरणस्थली है जिनकी सार्वजनिक स्थिति कमज़ोर होती है तथा जो लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं होते हैं अथवा जनता द्वारा नकार दिये जाते हैं ऐसे लोगों को सरकार में शामिल करने अर्थात् मुख्यमंत्री या मंत्री बनाने हेतु इस सदन का उपयोग किया जाता है।

स्रोत-द इंडियन एक्सप्रेस


भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण पहल

प्रीलिम्स के लिये-

IHCI

मेन्स के लिये-

भारत में स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं का विश्लेषण 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल के चार ज़िलों में शुरू की गई भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण (प्रबंधन) पहल (India Hypertension Control Initiative-IHCI)  35% लोगों में उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में प्रभावी साबित हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • केरल में IHCI के तहत कुल 2.23 लाख लोगों का पंजीकरण किया गया।
  • जिनमें से तिरुवनंतपुरम में 72460, त्रिशूर में 74909, कन्नूर में 58818, और वायनाड में 19,009 पंजीकरण हुए।
  • राज्य में गैर-संचारी रोग (Non Communicable Desease) क्लीनिकों के बेहतर बुनियादी ढाँचे के कारण IHCI पहल का सबसे सकारात्मक प्रभाव केरल में देखने को मिला।

India Hypertension Control Initiative

पृष्ठभूमि 

  • भारत में प्रत्येक चार वयस्क में से एक वयस्क उच्च रक्तचाप से ग्रस्त है। कुल प्रभावित लोगों में 50% लोगों की ही यह समस्या समय पर पहचान में आ पाती है उनमें भी केवल दस प्रतिशत वयस्कों का ही रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। 
  • इस समस्या से निदान के लिये भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Medical Reasearch- ICMR) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और स्वास्थ्य एवं  परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर देश भर में भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण (प्रबंधन) पहल (IHCI) प्रारम्भ करने का निर्णय लिया। 
  • इस पहल की शुरुआत नवंबर 2017 में की गई। यह पाँच वर्षीय पहल है।
  • इसे सबसे पहले पंजाब, मध्यप्रदेश, केरल, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुल 25 ज़िलों में लागू किया गया।
  • इस पहल के अंतर्गत पाँच वर्षों में कुल 15 करोड़ जनसंख्या को कवर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • इस पहल के अंतर्गत उपयुक्त उपचार प्रोटोकॉल का प्रावधान बनाया गया है, जिसमें प्राथमिक इलाज की गुणवत्तापरक सुविधाएँ उपलब्ध कराना, सही गुणवत्ता वाले उपकरणों और दवाओं का प्रयोग शामिल है।

हाइपरटेंशन क्या है?

  • शरीर में ऑक्सीजन और ऊर्जा के प्रवाह के लिये रक्त पम्प करना ह्रदय का प्रमुख कार्य है।
  • धमनियों के ज़रिये रक्त के प्रवाह के लिये दबाव की एक निश्चित मात्रा की आवश्यकता होती है। 
  • यदि रक्त प्रवाह का यह दबाव सामान्य से अधिक होता है, तो यह धमनियों की दीवार पर अतिरिक्त तनाव डालता है। इसे हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) कहते हैं।  

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद्

(Indian Council of Medical Reasearch- ICMR)

  • ICMR जैव चिकित्सा अनुसंधान में शोध, समन्वय और संवर्धन के लिये भारत का शीर्ष निकाय है तथा विश्व के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है।
  • ICMR को भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय पोषण कृषि कोष (BPKK)

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय पोषण कृषि कोष तथा इससे संबंधित मंत्रालय

मेन्स के लिये:

भारतीय पोषण कृषि कोष, इसका उद्देश्य तथा कुपोषण की समस्या से निपटने में इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

18 नवंबर, 2019 को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) ने भारतीय पोषण कृषि कोष (Bharatiya Poshan Krishi Kosh-BPKK) की शुरुआत की।

BPKK

उद्देश्य

इसका उद्देश्‍य कुपोषण को दूर करने के लिये बहुक्षेत्रीय ढाँचा विकसित करना है जिसके तहत बेहतर पोषक उत्‍पाद हेतु 128 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विविध फसलों पर ज़ोर दिया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • महिला और बाल विकास मंत्रालय इस परियोजना को बिल एंड मेलिंडा फाउंडेशन के सहयोग से चलाएगा।
  • देश को सामान्यतः कृषि जलवायु विशेषताओं, विशेष रूप से मिट्टी के प्रकार, तापमान और वर्षा सहित जलवायु एवं इसकी विविधता तथा जल संसाधनों के आधार पर पंद्रह कृषि क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
  • हार्वर्ड चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (Harvard Chan School of Public Health) भारत में स्थित अपने शोध केंद्र तथा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (Bill & Melinda Gates Foundation) के साथ मिलकर भारत के विभिन्‍न भौगोलिक क्षेत्रों में खान-पान की आदतों का एक दस्‍तावेज तैयार करेंगे और उसका मूल्‍याकंन करेंगे।
  • इसके अलावा ये दोनों (हार्वर्ड चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ तथा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन) देश की क्षेत्रीय कृषि खाद्य प्रणाली का एक नक्‍शा भी बनाएंगे।
  • महिला और बाल विकास मंत्रालय तथा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के परामर्श से, परियोजना टीम लगभग 12 ऐसे राज्यों का चयन करेगी जो भारत की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और संरचनात्मक विविधताओं का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। 
  • प्रत्येक राज्य या राज्यों के समूह में परियोजना टीम एक स्थानीय साझेदार संगठन की पहचान करेगी, जिसके पास सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (Social and Behavior Change Communication-SBCC) तथा नक्‍शा तैयार करने के लिये पोषक आहारों का आवश्‍यक अनुभव हो।

एम. एस. स्‍वामिनाथन का सुझाव

इस कोष की शुरुआत के अवसर पर कृषि वैज्ञानिक डा. एम एस स्‍वामिनाथन भारत को पोषण के मामले में सुरक्षित बनाने के लिये पांच सूत्री कार्य येाजना लागू करने का सुझाव दिया जो इस प्रकार हैं:

  • महिलाओं,गर्भवती महिलाओं तथा बच्‍चों के लिये कैलोरी से भरपूर आहार सुनिश्चित करना।
  • महिलाओं और बच्‍चों में मुखमरी खत्‍म करने के लिये भोजन में समुचित मात्रा में दालों के रूप में प्रोटीन का शामिल किया जाना।
  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों (जैसे-विटामिन A, विटामिन B, आयरन तथा जिंक) की कमी की वजह से होने वाली भूख को खत्‍म करना।
  • पीने के लिये स्‍वच्‍छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  • प्रत्येक गाँव में पोषण साक्षरता का प्रसार विशेष रूप से उन महिलाओं को पोषण के बारे में जागरुक बनाना जिनके बच्चों की 100 दिन से कम है।

एम. एस. स्‍वामिनाथन द्वारा सुझाई गई यह पाँच सूत्री कार्य योजना विभिन्न सतत् विकास लक्ष्यों जैसे- SDG-2 (शून्य भूख), SDG-3 (अच्छा स्वास्थ्य) और SDG-6 (शुद्ध जल और स्वच्छता) के भी अनुरूप है।

आगे की राह

बेहतर पोषण की दिशा में भारत सरकार पोषण युक्‍त आहार उपलब्‍ध कराने तथा ऐसे ही अन्य आपूर्ति योजनाओं को लागू करने का प्रयास कर रही है। लेकिन स्वस्थ आहार की आदतों को बढ़ावा देने के लिये सरकार के प्रयासों के लिये पूरक के तौर पर दो और बातें आवश्‍यक हैं: 

  • पहला यह कि इतने बड़े पैमाने पर कुपोषण की चुनौती से निपटने के लिये सामाजिक, व्यावहारिक और सांस्कृतिक प्रथाओं की एक बुनियादी समझ ज़रूरी है।
  • दूसरा, ज़िले में प्रासंगिक कृषि-खाद्य प्रणाली के आँकड़ों को जोड़ने वाले ऐसा डेटा बेस तैयार करना जिसका उद्देश्य ऐसी देशी फसलों की किस्मों की विविधता का मानचित्र बनाना है जो लंबे समय तक कम लागत वाली बनी रहें तथा टिकाऊ रह सकें।

निष्कर्ष:

भारत को सतत् विकास लक्ष्य (SDG) हासिल करने के लिये अब संचार के वैज्ञानिक तरीकों को कार्यान्वयन विज्ञान के साथ जोड़ना होगा ताकि स्वच्छता और स्वच्छ पेयजल के साथ ही पोषण भी राजनीतिक और प्रशासनिक एजेंडे में शामिल हो सके। महिलाओं, गर्भवती महिलाओं और बच्‍चों में कुपोषण की समस्‍या का निराकरण देश के विकास में अभूतपूर्व बदलाव लाएगा और सतत् विकाल लक्ष्‍यों को हासिल करने में देश की मदद करेगा। 

स्रोत: पी.आई.बी


वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक

प्रीलिम्स के लिये: 

वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक,  IEA, IRENA

मेन्स के लिये: 

नवीकरणीय ऊर्जा का महत्त्व

र्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) द्वारा जारी वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक (World Energy Outlook- WEO) में वर्ष 2040 तक सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता को 495 GW से बढ़ाकर 3142 GW करने का अनुमान लगाया गया है।

निष्कर्ष:

  • वैश्विक स्तर पर आशावादी नीतिगत परिवर्तनों के कारण अब सौर ऊर्जा के मज़बूत विकास का अनुमान लगाया जा रहा है।
  • चीन द्वारा सब्सिडी बढ़ाने का निर्णय, भारत का वर्ष 2030 तक 450 GW का लक्ष्य और अमेरिका द्वारा पोर्टफोलियो मानकों को मज़बूत करने जैसे प्रयासों से नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में बढ़ोतरी का अनुमान व्यक्त किया गया है।
  • एक अन्य अनुमान के अनुसार, CO2 उत्सर्जन दशकों तक जारी रहने की संभावना है क्योंकि   अभी भी कुल ऊर्जा में से 30% ऊर्जा उत्पादन कोयला आधारित संयंत्रों के माध्यम से होता है।
  • सौर ऊर्जा के उत्पादन में बढ़ोतरी के बावजूद IEA ने अन्य ऊर्जा थिंकटैंक जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency- IRENA) के अनुमानों की तुलना में कम उत्पादन का अनुमान रखा है।
  • हाल ही में IRENA द्वारा जारी 'फ्यूचर ऑफ सोलर फोटोवोल्टिक' (Future of Solar Photovoltaic) रिपोर्ट में वर्ष 2040 तक 6,000 GW से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन का अनुमान लगाया गया।

जलवायु परिदृश्य

IEA की रिपोर्ट में तीन नीतिगत परिदृश्यों के बारे में बताया गया है।

  1. नीति परिदृश्य (Policy Scenario): इसके अंतर्गत यदि विश्व पहले से स्थापित नियमों के अनुसार कार्य करेगा तो वर्ष 2040 तक ऊर्जा मांग प्रतिवर्ष 1.3% बढ़ सकती है।
  2. देशों के स्तर पर नीति परिदृश्य (Stated Policy Scenario) इसमें सरकार नीतियों के माध्यम से ऊर्जा की मांग में प्रतिवर्ष 1.0% की वृद्धि कर अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को सीमित करने का प्रयास करेंगी।
  3. सतत् विकास परिदृश्य (Sustainable Development Scenario- SDS) इसके अंतर्गत पेरिस समझौते के तहत प्रतिबध्य 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे वैश्विक तापमान को बनाए रखते हुए इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों का अनुसरण किये जाने की बात कही गई है।

energy

ऊर्जा मिश्रण में परिवर्तन

  • IEA का अनुमान है कि यदि नीतियों और लक्ष्य के बीच समन्वय बना रहा तो वर्ष 2035 तक कुल ऊर्जा में सौर ऊर्जा का योगदान कोयले आधारित ऊर्जा उत्पादन से अधिक हो  जाएगा।
  • वर्तमान में कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन 30% है जिसके वर्ष 2026 तक घटकर 26% होने की संभावना है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी एक स्वायत्त संगठन है, जो अपने 30 सदस्य देशों और 8 सहयोगी देशों  के साथ वैश्विक स्तर पर विश्वसनीय, सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित करने हेतु काम करती है।
  • इसकी स्थापना (1974 में) 1973 के तेल संकट के बाद हुई थी जब ओपेक कार्टेल ने तेल की कीमतों में भारी वृद्धि के साथ दुनिया को चौंका दिया था।
  • IEA के मुख्य क्षेत्र हैं-
    • ऊर्जा सुरक्षा
    • आर्थिक विकास
    • पर्यावरण जागरूकता
    • वैश्विक संबद्धता  (Engagement Worldwide)
  • भारत वर्ष 2017 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का एक सहयोगी सदस्य बना।
  • इसका मुख्यालय फ्राँस के पेरिस में है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


भारत में निगरानी कानून

प्रीलिम्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000

मेन्स के लिये:

भारत में निगरानी कानूनों से जुड़े अन्य मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़रायली स्पाइवेयर (Spyware) पेगासस (Pegasus) द्वारा व्हाट्सएप के माध्यम से की गई जासूसी का शिकार भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्त्ता, वकील और पत्रकार जासूसी का शिकार हुए हैं।

संदर्भ:

पेगासस स्पाइवेयर को विकसित करने वाली कंपनी एनओएस NOS ने कहा है कि वह अपनी सेवाएँ केवल सरकारों तथा उनकी एजेंसियों को बेचती है।

भारत में निगरानी तंत्र:

  • भारत में इस प्रकार की निगरानी करने हेतु भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 (Indian Telegraph Act, 1885) तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) प्रमुख कानूनी प्रावधान हैं।
  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 कॉल अवरोधन (Interception of Calls) तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 डेटा अवरोधन (Interception of Data) से संबंधित है।
  • इन दोंनों अधिनियमों के तहत केवल सरकार को कुछ परिस्थितियों में निगरानी करने की अनुमति है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 43 और 66 द्वारा क्रमशः सिविल और आपराधिक डेटा चोरी तथा हैकिंग को प्रतिबंधित किया गया है।
  • धारा 66 (B) चुराए गए कंप्यूटर संसाधन तथा इसके संचार को गलत उद्देश्य से ग्रहण करने पर दंड का प्रावधान करती है।

निगरानी कानूनों की व्यापकता:

  • वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की कमी बताते हुए कुछ दिशा-निर्देश दिये, जिन्हें वर्ष 2007 में नियमों में संहिताबद्ध किया गया था। इसमें एक विशिष्ट नियम शामिल किया गया कि संचार के अवरोधन पर आदेश केवल गृह मंत्रालय के सचिव द्वारा जारी किये जाएंगे।
  • अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में (जस्टिस के.एस. पुत्तास्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स) सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया।
  • वर्ष 2018 के गृह मंत्रालय के आदेश के अनुसार, 10 केंद्रीय एजेंसियों को यह अधिकार मिला है कि वे किसी भी कंप्यूटर संसाधन में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना की जाँच, सूचना को इंटरसेप्ट, सूचना की निगरानी और इसे डिक्रिप्ट कर सकती हैं। इन 10 केंद्रीय एजेंसियों में इंटेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व आसूचना निदेशालय, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी, रॉ, सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय (केवल जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिये) तथा पुलिस आयुक्त, दिल्ली शामिल हैं।
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के बाद सरकार की आलोचना की गई कि सरकार एक 'निगरानी राज्य' (surveillance state) का निर्माण कर रही है तथा इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।

जस्टिस बी.एन. श्रीकृष्णा समिति

(Justice B.N. Shrikrishna Committee):

  • वर्ष 2017 में सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में डेटा सुरक्षा पर एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी।
  • इस समिति ने वर्ष 2018 में एक डेटा संरक्षण कानून का मसौदा पेश किया, हालाँकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह मसौदा निगरानी कानून संबंधी सुधारों को पर्याप्त रूप से लागू नहीं करता है।

सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000

(Information Technology Act, 2000)

सूचना प्रौद्योगिकी कानून (IT Act), 2000 को इलेक्‍ट्रोनिक लेन-देन को प्रोत्‍साहित करने, ई-कॉमर्स और ई-ट्रांजेक्‍शन के लिये कानूनी मान्‍यता प्रदान करने, ई-शासन को बढ़ावा देने, कम्‍प्‍यूटर आधारित अपराधों को रोकने तथा सुरक्षा संबंधी कार्य प्रणाली और प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करने के लिये अमल में लाया गया था। यह कानून 17 अक्‍तूबर, 2000 को लागू किया गया।

भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885

(Indian Telegraph Act, 1885)

  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम काफी पुराना है।
  • यह कानून एक अक्तूबर 1885 को लागू किया गया था हालांकि इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं।
  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत केंद्र सरकार या राज्य सरकार को आपातकाल में या लोक-सुरक्षा के हित में फोन संदेश को प्रतिबंधित करने एवं उसे टेप करने तथा उसकी निगरानी का अधिकार हासिल है।

स्रोत-द हिंदू


नाइट्रस ऑक्साइड का बढ़ता स्तर

प्रीलिम्स के लिये:

N2O, GAINS, CO2, CH4, ग्रीनहाउस गैस

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित एक नए शोध के अनुसार, नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) के स्तर में वर्ष 2000-2005 और वर्ष 2010-2015 के बीच 10% वृद्धि हुई।

निष्कर्ष:

  • यह शोध यूरोप और अमेरिका के कई संस्थानों जैसे-इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (International Institute for Applied Systems Analysis- IIASA) और नॉर्वेजियन इंस्टीट्यूट फॉर एयर रिसर्च (Norwegian Institute for Air Research- NILU) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया।
  • इसके स्तर में वृद्धि का निरपेक्ष मूल्य (Absolute Value) 1.6 TgN प्रतिवर्ष रहा।
  • इस शोध द्वारा जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) के N2O स्तरों के अनुमान में विसंगति को भी चिह्नित किया गया। वर्तमान शोध में अनुमान कारक 2.2 (+/- 0.6) % व्यक्त किया गया, यह IPCC द्वारा अनुमानित 1.375% से अधिक है।
  • IIASA ने ग्रीनहाउस गैस और वायु प्रदूषण इंटरैक्शन और सिनर्जी (Greenhouse Gas and Air Pollution Interactions and Synergies- GAINS) मॉडल के डेटा का प्रयोग किया।

GAINS:

  • GAINS कम-से-कम लागत पर वायु प्रदूषकों और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने तथा मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिक तंत्र एवं जलवायु परिवर्तन पर उनके नकारात्मक प्रभावों को कमी के लिये पारगमन रणनीतियों का आकलन करने हेतु ऑनलाइन उपकरण है।
  • इसकी मेज़बानी वाशिंगटन स्थित विश्व संसाधन संस्थान (World Resource Institute) द्वारा की जाती है।
  • शोधपत्र में वर्ष 1998 से 2016 तक तीन वैश्विक वायुमंडलीय व्युत्क्रम फ्रेमवर्क (Global Atmospheric Inversion Framework) से प्राप्त N2O उत्सर्जन अनुमानों को एक साथ स्पष्ट किया गया, इस डेटा के लिये वैश्विक नेटवर्क से N2O अवलोकन डेटा का भी प्रयोग किया गया।

नाइट्रस ऑक्साइड के बारे में?

  • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन (CH4) के बाद N2O तीसरी सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है। इसमें CO2 की तुलना में 300 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता होती है।

नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर बढ़ने का कारण:

  • वैश्विक स्तर पर उर्वरकों और खाद (Manure) का उपयोग की सीमा से अधिक प्रयोग, नाइट्रस ऑक्साइड के बढ़ते स्तर के लिये सबसे अधिक उत्तरदायी है।
  • नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलों {जैसे तिपतिया (Clover) घास, सोयाबीन, अल्फाल्फा, ल्यूपिन (Lupins), मूँगफली} की व्यापक खेती।
  • जीवाश्म और जैव ईंधन का दहन।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


वन अधिनियम, 1927

प्रीलिम्स के लिये:

वन अधिनियम, 1927

मेन्स के लिये:

वन अधिनियम 1927 में संशोधन का मसौदा तथा वन निवासियों पर इसका प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वन अधिनियम 1927 (Forest Act of 1927) में संशोधन के लिये लाए गये एक मसौदे में कुछ खामियाँ होने के कारण उसे वापस लेने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • मार्च 2019 में इस मसौदे के प्रस्तावित किये जाने के बाद से ही कुछ पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं और राज्य सरकारों द्वारा इस प्रस्तावित कानून का विरोध किया जा रहा था।
  • केंद्र सरकार ने मसौदा वापस लेने का फैसला किया है ताकि जनजातीय लोगों और वनवासियों के अधिकार छीने जाने के बारे में किसी भी तरह की आशंका को दूर किया जा सके।

Green Concern

वन अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन 

  • भारतीय वन अधिनियम (Indian Forest Act) 2019 की परिकल्पना भारतीय वन अधिनियम, 1927 में संशोधन के रूप में की गई है।
  • यह भारत के वनों की समकालीन चुनौतियों का समाधान करने का एक प्रयास है।
  • इसमें वन अपराध को रोकने के लिये हथियारों आदि का उपयोग करते हुए वन-अधिकारी को क्षतिपूर्ति प्रदान करने का प्रस्ताव दिया गया है।
  • संशोधन मसौदा के अनुसार, वन अधिकारी (जिसका पद रेंजर के पद से नीचे न हो) के पास वन अपराधों की जाँच करने और दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure-CrPC), 1973 के तहत तलाशी करने करने या तलाशी संबंधी वारंट जारी करने की शक्ति होंगी।
  • कोई भी वन-अधिकारी, वनपाल या उससे बड़े पद पर पदस्थ अधिकारी, किसी भी समय अपने क्षेत्राधिकार के अंदर किसी भी भूमि में प्रवेश कर सकता है और निरीक्षण कर सकता है।
  • इस अधिनियम में वनों से प्राप्त खनन उत्पादों और सिंचाई या उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले पानी के आकलित मूल्य का 10% तक वन विकास उपकर के रूप में प्रस्तावित किया गया था। यह राशि एक विशेष कोष में जमा की जाती और इसका उपयोग विशेष रूप से वनीकरण; वन संरक्षण और वृक्षारोपण, वन विकास और संरक्षण से जुड़े अन्य सहायक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किया जाना था।

क्यों विवादास्पद था यह अधिनियम?

  • नए मसौदे के अनुसार, वन अधिकारियों को "कानूनों के उल्लंघन" करने वाले आदिवासियों को गोली मारने का पूर्ण अधिकार दिया गया था।
  • किसी फॉरेस्ट गार्ड द्वारा "अपराधी" को मारे जाने की स्थिति में राज्य सरकार तब तक उस मामले पर अभियोजन शुरू नहीं कर सकती थी जब तक कि किसी कार्यकारी मजिस्ट्रेट के अधीन इस मामले की जाँच शुरू न हो।
  • नए संशोधन के तहत, वन विभाग किसी भी जंगल को आरक्षित घोषित करने और वनों में निवास करने वाले समुदायों को उनकी पैतृक भूमि से अलग करने का अधिकार दिया गया था।
  • इससे अपने जीवन-यापन के लिये वनों पर निर्भर जनजातीय आबादी बहुत अधिक प्रभावित होती।

स्रोत: द हिंदू एवं पी.आई.बी.


उभयचर पालतू जानवरों का बढ़ता वैश्विक व्यापार

प्रीलिम्स के लिये:

उभयचर प्रजातियाँ, CITES

मेन्स के लिये:

जानवरों के व्यापार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि उभयचर जानवरों की लगभग 450 प्रजातियों का  वैश्विक स्तर पर व्यापार किया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • पिछले कुछ दशकों में पालतू जानवरों का व्यापार तेजी से बढ़ा है।
    • अमेरिकन पेट प्रोडक्ट्स एसोसिएशन (American Pet Products Association) के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिका में वर्ष 2012 में लगभग 5.6 मिलियन घरों में एक उभयचर या सरीसृप की उपस्थिति थी।
  • दक्षिण अफ्रीका के स्टेलनबोश विश्वविद्यालय (Stellenbosch University) के वैज्ञानिकों द्वारा यह पता लगाने की भी कोशिश की गई कि इन उभयचरों में ऐसे कौन-से विशेष लक्षण हैं जो इन्हें व्यापार योग्य बनाते हैं।
  • इसके अलावा इन्हें पालने वाले लोग आक्रामक प्रजातियों से अपनी रक्षा के कौन से उपाय अपनाते हैं तथा उनमें होने वाले रोगों के प्रसार को कैसे रोकते हैं, इन कारकों को जानने का भी प्रयास किया गया।

व्यापार किये जाने वाली प्रजातियाँ:

  • अध्ययन में पाया गया कि 6 उभयचर वर्ग की प्रजातियों का सबसे ज़्यादा व्यापार किया जाता है।
  • इनमें सैलामैंडर (Salamanders), मेंढक तथा टोड्स, इसके बाद कैसिलियन (Caecilians) अर्थात पादरहित उभयचर जो सांप की तरह दिखते हैं, शामिल हैं।
  • अमेरिका में आयात की गई शीर्ष प्रजातियों में पंजे वाले पश्चिमी बौने मेंढक (Western Dwarf Clawed Frog), ओरिएंटल फायर-बेलिड टॉड (Oriental fire-bellied toad), पंजे वाले अफ्रीकी मेंढक (African clawed frog) शामिल हैं।
  • इसके अलावा ऐसी प्रजातियाँ, जिनका पालन सुगम हो या जिन्हें आसानी से रखा जा सके, भी इस सूची में शामिल हैं।

frog

व्यापार के लिये उभयचर ही क्यों?

  • उभयचर एक प्रकार के आकर्षक जीव होते हैं जो जीवन के विविध रुपों जैसे- तैराक, कूदनेवाले, ऊँचाई पर चढ़ने, आदि से आते हैं। 
  • बड़े स्तनधारियों की तुलना में इनका पालन/संरक्षण आसान होता है। 

व्यापार से संबंधित मुद्दे:

  • कुछ लोग इन उभयचरों को खरीदने के बाद दयालुता के भाव से इन्हें जंगल में छोड़ देते हैं। 
  • ये प्रजातियाँ अपनी प्राकृतिक भौगोलिक सीमा से अलग स्थानों में प्रवेश करने  पर देशज प्रजातियों को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
    • इसके कारण कई प्रकार की नई बीमारियों का प्रसार हो सकता है।

प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित कन्वेंशन

(The Convemtion On International Trade in Endengered Species of Wild Fauna and Flora- CITES)

  • CITES सरकारों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। 
  • इसका उद्देश्य जंगली जानवरों और पौधों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सुनिश्चित करना है जिससे उनके अस्तित्व पर संकट पैदा न हो। 

स्रोत: द हिंदू


जर्मनी का जलवायु संरक्षण अधिनियम

प्रीलिम्स के लिये:

जर्मनी का जलवायु संरक्षण अधिनियम

चर्चा में क्यों?

15 नवंबर 2019 को जर्मनी की संसद ने जलवायु संरक्षण अधिनियम (Climate Protection Act) पारित किया।

प्रमुख बिंदु

  • जर्मनी द्वारा यह अधिनियम वर्ष 2030 तक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयास के रूप में पारित किया गया है।
  • यह जर्मनी का पहला जलवायु कार्रवाई कानून होगा।
  • इस विधेयक के तहत, जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विभिन्न उपायों के साथ-साथ परिवहन क्षेत्रकों तथा ऊष्मन को बढ़ावा देने वाले अन्य क्षेत्रकों (Heating Sectors) द्वारा होने वाले कार्बन उत्सर्जन शुल्क अध्यारोपित किया जाएगा।
  • इस अधिनियम के तहत उड़ान टिकटों की कीमतों में वृद्धि का भी प्रावधान किया गया है।

अधिनियम की विशेषताएँ

  • विधेयक में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों जैसे- परिवहन, ऊर्जा और आवास के लिये उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं।
  • इसके अतिरिक्त, उड़ान यात्राओं को भी पहले की तुलना में अधिक महंगा बना दिया जाएगा।
  • इसके विपरीत, लंबी दूरी की ट्रेन यात्रा पर मूल्य वर्द्धि कर (Value Added Tax-VAT) की वर्तमान दर 19 प्रतिशत से घटकर 7 प्रतिशत हो जाएगी।
  • जर्मनी की संसद जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विभिन्न उपायों के साथ-साथ एक विधायी पैकेज भी अपनाना चाहती है जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन पर शुल्क आरोपित करना।
  • जर्मनी द्वारा इस प्रकार का कदम उठाने का कारण यह है कि यह वर्ष 2030 तक अपने जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ ही वर्ष 1990 के मुकाबले अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 55 प्रतिशत से अधिक की कमी करना चाहता है।

न्यूजीलैंड भी उठा चुका है ऐसा कदम

  • इससे पहले, न्यूजीलैंड भी पेरिस जलवायु समझौते के अनुपालन और वर्ष 2050 तक कार्बन-उदासीन राष्ट्र (Carbon-Neutral Nation) बनने के लिये शून्य-कार्बन कानून (Zero-Carbon Law) पारित कर चुका है।
  • लेकिन जहाँ न्यूजीलैंड में कानून को पूर्ण समर्थन के साथ पारित किया गया था, वहीं जर्मनी में कुछ लोगों ने इसके खिलाफ मतदान किया था।

आलोचना

  • जर्मनी की संसद में विपक्ष द्वारा इस अधिनियम का विरोध किया गया क्योंकि उनका मानना था कि जलवायु पैकेज इतने पर्याप्त नहीं थे जिनसे लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकें।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


स्पेस इंटरनेट

प्रीलिम्स के लिये

स्टारलिंक नेटवर्क, स्पेस इंटरनेट क्या है

मेन्स के लिये

सूचना और प्रौद्योगिकी के विकास में स्पेस इंटरनेट की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की प्रमुख निजी कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) ने स्पेस इंटरनेट (Space Internet) की सुविधा मुहैया कराने के लिये 60 सैटेलाइटों के एक समूह को निम्न भू-कक्षा (Low Earth Orbit-LEO) में स्थापित किया।

मुख्य बिंदु:

  • स्पेसएक्स की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना का नाम स्टारलिंक नेटवर्क (Starlink Network) है। इसके माध्यम से यह कंपनी वर्ष 2020 तक संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा में स्पेस इंटरनेट की सुविधा देना प्रारंभ कर देगी।
  • वर्ष 2021 तक इसका लक्ष्य पूरी पृथ्वी पर कम कीमत में नॉन-स्टॉप स्पेस इंटरनेट की सुविधा प्रदान करना है।
  • इस परियोजना के पहले चरण में 12,000 सैटेलाइटों को निम्न भू-कक्षा (Low Earth Orbit) में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद दूसरे चरण में 30,000 सैटेलाइटें भी इसी कक्षा में स्थापित की जाएंगी।

स्पेस इंटरनेट की आवश्यकता

  • स्पेस इंटरनेट की मुख्य विशेषता इसकी विश्वसनीयता तथा अबाध रूप से इंटरनेट प्रदान करने की क्षमता है। इंटरनेट आज विश्व में लोगों की बुनियादी ज़रूरत बन चुका है तथा लोक सेवाओं की बेहतर पहुँच के लिये आवश्यक है।
  • वर्तमान में विश्व की आधी जनसंख्या (लगभग 4 बिलियन लोग) इंटरनेट की पहुँच से बाहर हैं जिसके प्रमुख कारणों में इंटरनेट प्रदान करने के पारंपरिक तरीके जैसे फाइबर ऑप्टिक्स केबल (Fibre Optics Cable) तथा ताररहित नेटवर्क (Wireless Network) आदि का प्रयोग किया जाना शामिल हैं।
  • दूर दराज के वे इलाके जहाँ भूमि उबड़-खाबड़ हो या टावर तथा केबल (Cable) लगाना संभव न हो, वहाँ इंटरनेट प्रदान करने के ये माध्यम सफल नहीं हैं। स्पेस इंटरनेट इन कमियों को दूर कर सकता है।

स्पेस इंटरनेट के तकनीकी पक्ष

  • स्पेस आधारित इंटरनेट का प्रयोग अभी भी होता है लेकिन ये केवल कुछ निजी अंतरिक्ष संस्थाओं या सरकारों के हाथ में है। वर्तमान में कार्यरत इन सभी इंटरनेट प्रदान करने वाली सैटेलाइटों को भू-स्थैतिक कक्षा (Geo-Stationary Orbit-GEO) में स्थापित किया गया है।
  • ये सैटेलाइटें पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर 35,786 किमी. की ऊँचाई पर GEO में स्थापित हैं।
  • यहाँ उपस्थित सैटेलाइट 11,000 किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करती हैं। इनके द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा में लगा समय तथा पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन में लगा समय समान होता है इसलिये पृथ्वी से देखने पर ये स्थिर प्रतीत होती हैं।
  • अधिक ऊँचाई पर होने की वजह से GEO में स्थापित एक सैटेलाइट पृथ्वी के लगभग एक तिहाई हिस्से को सिग्नल संप्रेषित कर सकती है तथा इसी कक्षा में स्थापित 3 या 4 सैटेलाइट मिलकर पृथ्वी के प्रत्येक हिस्से को सिग्नल संप्रेषित कर सकती हैं।
  • GEO में उपस्थित सैटेलाइटों की मुख्य कमी यह है कि पृथ्वी से अधिक दूरी पर स्थित होने की वजह से ये डेटा के वास्तविक समय में सम्प्रेषण (Real Time Data Transmission) करने में सक्षम नहीं हैं। डेटा के सम्प्रेषण में हुई इस देरी को टाइम लैग (Time Lag) या लेटेंसी (Latency) कहा जाता है।
  • GEO में उपस्थित सैटेलाइटों में लेटेंसी 600 मिली. सेकंड की होती है जबकि LEO में स्थापित सैटेलाइटों में यह घटकर 20-30 मिली. सेकंड तक रह जाती है।
  • LEO का विस्तार पृथ्वी की सतह के ऊपर 200 किमी. से 2,000 किमी. तक है। स्पेसएक्स अपनी सभी सैटेलाइटों को इसी कक्षा में 350 किमी. से 1,200 किमी. की ऊँचाई में स्थापित करेगा।
  • कम ऊँचाई पर स्थापित होने की वजह से ये सैटेलाइट पृथ्वी के सीमित क्षेत्र तक ही डेटा संप्रेषित कर सकती हैं। अतः पूरी पृथ्वी पर डेटा के संप्रेषण के लिये स्पेसएक्स अधिक संख्या में सैटेलाइट स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
  • LEO में स्थापित होने के कारण इन सैटेलाइटों को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव को कम करने के लिये GEO में उपस्थित सैटेलाइटों की तुलना में दोगुनी रफ्तार से परिक्रमा करनी होगी।

स्पेस इंटरनेट से संभावित हानियाँ

  • अंतरिक्ष में सैटेलाइटों की बढ़ती संख्या से अंतरिक्ष में मलबा (Space Debries) बढ़ रहा है, इससे अंतरिक्ष में उपस्थित सैटेलाइटों में टकराव हो सकता है।
  • वर्तमान में अंतरिक्ष में लगभग 2000 सैटेलाइट मौजूद हैं तथा वर्ष 1957 में प्रारंभ हुए अंतरिक्ष युग (Space Age) से अभी तक लगभग 9000 सैटेलाइटें भेजी जा चुकी हैं। इनमें से अधिकांश निचली कक्षाओं में मौजूद हैं।
  • वैज्ञानिकों तथा खगोलशास्त्रियों का मानना है कि मानव निर्मित सैटेलाइटों के प्रेक्षण से प्रकाश प्रदूषण (रात में मानवजनित गतिविधियों द्वारा आकाश में अत्यधिक प्रकाश) का खतरा उत्पन्न हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (19 नवंबर)

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस

  • 19 नवंबर को प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस (International Men's Day) का आयोजन किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य मुख्य रूप से पुरुषों और लड़कों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना तथा पुरुष रोल मॉडल्स के महत्त्व को उजागर करना है।
  • इसके अलावा यह दिन मुख्य रूप से पुरुषों को भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न, हिंसा और असमानता से बचाने और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिये भी मनाया जाता है।
  • विदित हो कि 80 देशों में 19 नवंबर को इसे मनाया जाता है और इसे यूनेस्को का भी सहयोग प्राप्त है।
  • इस बार अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस की थीम- मेकिंग अ डिफरेंस फॉर मेन एंड बॉयज (Making a Difference for Men & Boys) रखी गई है।
  • इस दिवस को मनाने की शुरुआत 7 फरवरी, 1992 को थॉमस ओस्टर ने की थी।
  • भारत में इस दिवस को मनाने की शुरुआत वर्ष 2007 से हुई।

‘वन नेशन-वन पे डे’ सिस्टम

  • औपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे लोगों, खासतौर पर कामकाजी वर्ग (Working Class) के कर्मचारियों के हित में केंद्र सरकार वन नेशन-वन पे डे सिस्टम पर विचार कर रही है।
  • यदि यह सिस्टम लागू हो जाता है तो पूरे देश में औपचारिक क्षेत्र के सभी कर्मचारियों को एक ही दिन वेतन मिलेगा।
  • सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट सिक्युरिटी इंडस्ट्री की ओर से सिक्युरिटी लीडरशिप समिट 2019 में इस बात पर बल दिया गया कि विभिन्न क्षेत्रों के कर्मचारियों को समय पर वेतन भुगतान के लिये पूरे देश में हर महीने एक दिन वेज-डे के लिये निश्चित होना चाहिये। सरकार इस कानून को जल्द पारित चाहती है।
  • इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के लिये न्यूनतम वेतन (Minimum Wages) तय करने की दिशा में काम चल रहा है।
  • श्रम कानूनों में सुधार की प्रक्रिया लगातार जारी है। इसके तहत 44 जटिल श्रम कानूनों में सुधार का कार्य किया गया है।
  • केंद्र सरकार ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड और कोड ऑन वेजेस को लागू करने पर काम कर रही है। संसद पहले ही इन कानूनों को पास कर चुकी है। कोड ऑन वेजेस को लागू करने के लिये सरकार ने फ्रेमवर्क जारी कर दिया है।
  • प्राइवेट सिक्युरिटी आज एक बड़ी रोज़गार प्रदाता इंडस्ट्री है। मौजूदा समय में करीब 90 लाख लोग इस इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं।

मानव अंतरिक्ष मिशन के लिये 12 पायलटों का चयन

  • भारत के अंतरिक्ष में मनुष्य को भेजने के पहले मिशन 'गगनयान' के लिये फाइनल ट्रेनिंग हेतु रूसी विशेषज्ञों की मदद से भारतीय वायु सेना (IAF) के 12 पायलटों को चुना गया है। इन सभी को 60 पायलटों में से चुना गया है।
  • ये सभी रूस में यूरी गगारिन/गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में 45 दिनों के शुरुआती अभ्यास के लिये गए थे। इनमें से 7 अपनी ट्रेनिंग पूरी कर चुके हैं और अगले चरण के कठिन अभ्यास के लिये भारत लौटेंगे।
  • इस प्रक्रिया के पूरी होने के बाद तीन अंतरिक्ष यात्रियों का चयन किया जाएगा जो भारत के वर्ष 2022 के मिशन का हिस्सा होंगे। इन 'गगनयात्रियों' की ट्रेनिंग अगले साल रूस के गगारिन सेंटर में शुरू होगी। हालाँकि यह स्वास्थ्य मानकों पर की जाने वाली चयन प्रक्रिया के परिणाम पर निर्भर करेगा।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2018 में रूस के साथ हुए समझौते के तहत भारत के पहली बार मानव को अंतरिक्ष में भेजने के मिशन में रूस मदद कर रहा है। इसमें चयन से लेकर ट्रेनिंग और तकनीकी जानकारी तथा सुविधाएँ उपलब्ध कराना भी शामिल है।

फेक न्यूज़ की रोकथाम के लिये FACT चेक मॉड्यूल

  • सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर ‘फेक न्यूज़’ (Fake News) के बढ़ते मामलों मद्देनज़र भारत सरकार इनसे निपटने के लिये सूचना-प्रसारण मंत्रालय के तहत फैक्ट चेकिंग मॉड्यूल का गठन करने जा रही है।
  • इस मॉड्यूल का काम ऐसे मामलों की पहचान कर आवश्यक कदम उठाना होगा। प्रधानमंत्री कार्यालय और सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इन फर्ज़ी खबरों से निपटने के लिये तत्काल कोई मैकेनिज्म बनाए जाने की ज़रूरत पर बल दिया है।
  • सरकार द्वारा गठित किये जा रहे फैक्ट चेक मॉड्यूल को शुरुआत में भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों द्वारा संचालित किये जाएगा। इस मॉड्यूल में चार मुख्य सिद्धांतों- खोज (Find), आकलन (Assess), क्रिएट (Create) और टारगेट (Target) यानी FACT पर काम किया जाएगा।
  • यह मॉड्यूल 24x7 काम करेगा और ऑनलाइन न्यूज सोर्स के साथ ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सभी सोशल मीडिया पोस्ट की निगरानी करेगा।
  • विदित हो कि पारंपरिक मीडिया संस्थानों पर लागू होने वाले कायदे-कानून ऑनलाइन मीडिया पर लागू नहीं होते। ऐसे में ऑनलाइन माध्यमों में भ्रामक सूचनाएँ अधिक फैलने की आशंका रहती है।
  • इसके लिये FACT की टीम उन स्टोरीज़ की पहचान कर आवश्यक कदम उठाएगी, जिनमें सरकार अथवा उसकी एजेंसियों से संबंधित फर्जी सूचनाओं को बढ़ावा दिया गया हो।
  • फिलहाल इस फैक्ट चेक मैकेनिज्म का फोकस ऑनलाइन और डिजिटल कंटेंट पर होगा, बाद में इसका विस्तार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी किया जाएगा।

फेक न्यूज़ क्या है?: फेक न्यूज़ के तहत किसी के पक्ष में गलत प्रचार करना व झूठी खबर फैलाने जैसे कृत्य आते हैं। किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को नुकसान पहुँचाने या लोगों को उसके खिलाफ झूठी खबर के ज़रिये भड़काने की कोशिश करना फेक न्यूज़ कहलाता है। सनसनीखेज और झूठी खबरों, बनावटी हेडलाइन के ज़रिये अपनी रीडरशिप और ऑनलाइन शेयरिंग बढ़ाकर क्लिक रेवेन्यू बढ़ाना भी फेक न्यूज़ की श्रेणी में आते हैं। आज दुनियाभर में फेक न्यूज़ एक बड़ी समस्या बन चुकी है। इसके ज़रिये कोई भी अफवाह फैलाई जा सकती है, किसी की भी छवि को नुकसान पहुँचाया जा सकता है।


वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप

  • भारत ने वर्ल्ड पैरा एथेलटिक्स चैंपियनशिप-2019 में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। भारत इस चैंपियनशिप में 24वें स्थान पर रहा।
  • दुबई में हुई वर्ल्ड पैरा एथेलटिक्स चैंपियनशिप में भारत ने दो स्वर्ण, दो रजत और पाँच कांस्य पदक हासिल किये। इसके बाद भारत के कई खिलाड़ी चौथे स्थान पर आकर पदक से भी चूके।
  • भारत ने इस विश्व चैंपियनशिप से कुल 13 टोक्यो पैरालम्पिक-2020 कोटा हासिल किये।
  • भारत के जेवेलिन थ्रोअर संदीप चौधरी ने एफ-44 कैटेगरी में विश्व रिकॉर्ड बना स्वर्ण पदक हासिल किया। उन्होंने 64 कैटेगरी में भी अपना सर्वश्रेष्ठ 65.08 मीटर का थ्रो फेंक सोने का तमगा हासिल किया। इसी इवेंट में भारत के सुमित अंटिल ने 62.88 मीटर की थ्रो के साथ रजत पदक जीता।
  • एफ-46 में सुंदर सिंह गुर्जर ने 61.22 मीटर की थ्रो फेंक अपना विश्व खिताब बचाए रखा। ऊँची कूद (टी63) में शरद कुमार और टी मरियप्पन ने रजत और कांस्य पदक जीतकर अगले साल होने वाले टोक्यो पैरालंपिक के लिये क्वॉलिफाई किया।
  • चीन 25 स्वर्ण सहित कुल 59 पदक लेकर शीर्ष पर रहा। उसके बाद ब्राज़ील (39) और ग्रेट ब्रिटेन (28) क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे।
  • इससे पहले भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन लंदन 2017 में था जहाँ देश के पैरा खिलाड़ियों ने एक स्वर्ण सहित पाँच पदक हासिल किये थे और टीम तालिका में 34वें स्थान पर रही थी।

आपको बता दें कि पैरालंपिक खेल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली मल्टी-स्पोर्ट्स प्रतियोगिता है, जिसमें शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमज़ोर खिलाड़ी भाग लेते हैं। इसमें शीतकालीन और समर पैरालाम्पिक खेल होते हैं, जो इन ओलंपिक खेलों के तुरंत बाद आयोजित किये जाते हैं। सभी पैरालम्पिक गेम्स अंतर्राष्ट्रीय पैरालम्पिक कमेटी द्वारा संचालित होते हैं।