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डेली न्यूज़

  • 19 Sep, 2018
  • 30 min read
प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स :19 सितंबर

अखिल भारतीय पेंशन अदालत
(All India Pension Adalat)
  • भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के पेंशन एवं पेंशनभोगी कल्‍याण विभाग द्वारा किया ‘पेंशन अदालत’ की शुरुआत की गई।
  • इसके साथ विभागों के लिये संस्‍थागत स्‍मृति को संयोजित करने के कार्य में उल्‍लेखनीय योगदान देने के लिये 6 पेंशनभोगियों को ‘अनुभव’ पुरस्‍कार, 2018 से भी सम्मानित किया गया।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आव्हान पर वर्ष 2015 में ‘अनुभव योजना’ की शुरुआत की गई थी।
  • इसके माध्यम से पेंशनभोगियों को ‘जीवन निर्वाह में सुगमता’ का अधिकार सुनिश्चित करने का कार्य किया गया है। वस्तुतः इसकी सहायता से पेंशनभोगियों को अपनी शिकायतों के निवारण के लिये बाधा मुक्‍त प्रशासनिक प्रणाली सुलभ कराए जाने का प्रयास किया गया है।
उद्देश्य
  • पेंशन अदालतों को विभिन्न मामलों जैसे - असंतुष्ट पेंशनभोगी, संबंधित विभाग, बैंक या CGHS (Central Government Health Scheme) प्रतिनिधि, अर्थात् जहाँ भी प्रासंगिक हो, को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया है, ताकि संबंधित मामलों का मौजूदा नियमों के भीतर निपटारा किया जा सके।
  • पेंशन अदालत के अलावा, अगले 6 महीनों में सेवानिवृत्त होने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों को पूर्व-सेवानिवृत्ति परामर्श (Pre-Retirement Counselling - PRC) प्रदान करने का कार्य भी किया जाता है।
  • PRC कार्यशाला का उद्देश्य न केवल सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों में उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करना है, बल्कि उन्हें चिकित्सा सुविधाओं और स्वैच्छिक गतिविधियों में भागीदारी सहित अग्रिम योजना के विषय में शिक्षित करना भी है।

सी-डैक सूचना मीडिया सर्वर
(C-DAC Information Media Server)

  • इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सुशासन के लिये सी-डैक सूचना मीडिया सर्वर (CIMS) लॉन्च किया है।
  • सी-डैक सूचना मीडिया सर्वर (CIMS) एक कंप्यूटर उपकरण है जिसमें मांग के आधार पर ऑडियो और वीडियो उपलब्ध कराने वाला विशेष एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर होता है।
  • कम लागत वाली यह किफायती प्रणाली शक्तिशाली और ऊर्जा कुशल मल्टीकोर प्रोसेसर वाले सिंगल बोर्ड कंप्यूटर के साथ तैयार की गई है।
  • इसे किसी विशेष इंटरनेट सेवा प्रदाता या डेटा कनेक्टिविटी की आवश्यकता नहीं है। इसमें ऑफलाइन रहने की स्थिति में वीडियो देखने या डाउनलोड करने के लिये टेक्स्ट प्रदर्शित करने, तस्वीरें देखने, वीडियो स्ट्रीमिंग, ई-ब्रोशर जैसी सामान्य विशेषताओं को शामिल किया गया है।
  • CIMS को स्थापित करना काफी सरल है, इसे संसद, (मौजूदा राज्यसभा, सदस्यों के विवरण), शिक्षण संस्थानों (ई-बुक्स, समय सारिणी, दिन की खबरों, सूचनाओं), रेलवे स्टेशनों (ट्रेन चलने की जानकारी, स्टेशन लेआउट मैपिंग), अस्पतालों (ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर, रोगियों के रिकार्ड) जैसी जगहों पर आसानी से संचालित किया जा सकता है।
  • कोई भी उपयोगकर्त्ता किसी भी स्मार्ट डिवाइस के माध्यम से वाई-फाई के साथ कनेक्ट हो सकता है और उपलब्ध जानकारी को मुफ्त में प्राप्त कर सकता है।
परिवर्तनीय ऊर्जा साइक्लोट्रॉन केंद्र
(Variable Energy Cyclotron Centre)
  • कैंसर देखभाल में नैदानिक और चिकित्सकीय उपयोग हेतु साइक्लोट्रॉन का उपयोग रेडियोआइसोटोप का उत्पादन करने के लिये किया जाता है।
  • साइक्लोन -30, भारत का सबसे बड़ा साइक्लोट्रॉन है। जैसे ही 30 एमवी बीम पहली बार फैराडे कप (Faraday Cup) तक पहुँचने में सक्षम होगा, उसी के साथ यह इस माह (सितंबर) से परिचालित हो गया।
  • इसके बाद इस केंद्र के माध्यम से बीम का उपयोग 18 एफ (फ्लूराइन -18 आइसोटोप) के उत्पादन के लिये किया गया।
  • आपकी जानकारी के लिये बता दें कि 18 FlFluorodeoxyglucose (FDG), बीआरआईटी (Board of Radiation & Isotope Technology - BRIT) द्वारा उपयोग किये जाने वाला एक रेडियो-फार्मास्यूटिकल है।
  • यह केंद्र सहायक परमाणु प्रणालियों और नियामक मंज़ूरी प्राप्त होने के बाद अगले वर्ष के मध्य तक नियमित रूप से उत्पादन कार्य शुरू कर देगा।
  • VECC, कोलकाता में स्थित साइक्लोन -30 परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy - DAE) की एक इकाई है, इसके अंतर्गत बहुत-सी अद्वितीय विशेषताएँ निहित हैं।
  • Cyclone-30 (commissioning re-emphasises the capability of Indian scientists and engineers to deliver at the highest level of science and technology) यह केंद्र देश भर के लिये और विशेष रूप से पूर्वी भारत के लिये किफायती रेडियो आइसोटोप और संबंधित रेडियो फार्मास्यूटिकल्स उपलब्ध कराएगा।
  • इसके साथ-साथ यह जर्मेनियम-68/गैलियम-68 जनरेटर के लिये स्व:स्थाने  (in-situ) पैलेडियम-103 एवं गैलियम-68 आइसोटोप की उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि करेगा।
  • इन आइसोटोपस का इस्तेमाल स्तन कैंसर के निदान और पौरुष ग्रंथि कैंसर (prostate cancer) के उपचार के लिये किया जाता है।
  • साइक्लोन -30 के परिचालन से जहाँ एक ओर भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की क्षमता में वृद्धि होगी, वहीं दूसरी ओर, देश को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्चतम स्तर पर पहुँचने में भी सहायता मिलेगी।
ई-सहज पोर्टल

देश के कुछ विशेष संवेदनशील क्षेत्रों में कारोबार शुरू करने से पहले सुरक्षा संबंधी मंज़ूरी को आसान करने के लिये सरकार ने ‘ई-सहज’ नमक एक पोर्टल  शुरू किया है। 

  • इससे सुरक्षा मंज़ूरी की प्रक्रिया में पारदर्शिता तथा तेज़ी आएगी। 
  • कुछ विशेष संवेदनशील क्षेत्रों में कंपनियों, बोलीदाताओं और व्यक्तियों को लाइसेंस/परमिट/मंज़ूरी/कॉन्ट्रैक्ट आदि देने से पहले सुरक्षा संबंधी मंज़ूरियाँ प्रदान करने हेतु गृह मंत्रालय एक नोडल मंत्रालय है।
उद्देश्य
  • राष्ट्रीय सुरक्षा मंज़ूरी का उद्देश्य आर्थिक खतरों सहित संभावित सुरक्षा खतरों का मूल्यांकन करना और प्रमुख क्षेत्रों में निवेश और परियोजना प्रस्तावों को मंज़ूरी देने से पहले जोखिम का मूल्यांकन प्रदान करना है।
  • इसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा की अनिवार्यताओं को पूरा करना और व्यापार में आसानी लाने तथा देश में निवेश को बढ़ावा देने के बीच स्वस्थ संतुलन स्थापित करना है।

सामाजिक न्याय

दुनिया भर में हर 5 सेकंड में 15 साल से कम उम्र के एक बच्चे की मृत्यु : यूएन रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग तथा विश्व बैंक समूह, विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा यूनिसेफ इंटर एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मोर्टेलिटी एस्टीमेशन (IGME) ने शिशु मृत्यु दर अनुमान पर रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में 15 वर्ष से कम आयु के 6.3 मिलियन या प्रत्येक 5 सेकंड में 1 बच्चे की मृत्यु हुई है।

प्रमुख बिंदु 

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्येक जगह बच्चों के लिये जीवन की सबसे जोखिम भरी अवधि उसके जन्म का पहला महीना होता है।
  • रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 के पहले महीने में 2.5 मिलियन नवजात शिशुओं की मृत्यु हो गई, जबकि 5.4 मिलियन मौतें जीवन के पहले पाँच वर्षों में हुईं जो कुल नवजात शिशु मृत्यु के करीब आधे हिस्से के बराबर है।
  • इसके अलावा  उप-सहारा अफ्रीका या दक्षिण एशिया में पैदा हुए बच्चे की उच्च आय वाले देश में पैदा हुए बच्चे की तुलना में पहले महीने में मृत्यु होने की संभावना नौ गुना अधिक थी।
  • रिपोर्ट के अनुसार, 1990 से लेकर अब तक पाँच वर्ष से कम उम्र के नवजात शिशुओं को बचाने की प्रगति धीमी रही है।
  • 5 वर्ष से कम उम्र के अधिकांश बच्चों की मृत्यु निमोनिया, दस्त मलेरिया तथा नवजात शिशु संबंधी रोग (neonatal sepsis) के कारण उत्पन्न जटिलताओं की रोकथाम के अभाव या समय पर इलाज नहीं होने के कारण हो जाती है।
  • इस आयु वर्ग में क्षेत्रीय भिन्नताएँ मौजूद हैं, उप-सहारा अफ्रीका के बच्चों की मृत्यु का जोखिम यूरोप की तुलना में 15 गुना अधिक है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि देशों के भीतर भी असमानताएँ दिखाई देती हैं। पाँच वर्ष की आयु के शिशुओं की मृत्यु दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में 50% अधिक है।
  • इसके अलावा, अशिक्षित माताओं के बच्चों की मृत्यु की संभावना उच्च शिक्षित माताओं से पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में दोगुने से अधिक होती है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि तत्काल कोई कदम नहीं उठाया गया तो 2030 तक पाँच साल से कम उम्र के 56 मिलियन बच्चों की मृत्यु हो जाएगी जिसमें आधे नवजात शिशु होंगे।

भारत की स्थिति  

  • UN IGME की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2017 में 6,05,000 नवजात शिशुओं की मौत हुई, जबकि पाँच से 14 साल आयु वर्ग के 1,52,000 बच्चों की मृत्यु हुई।  रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल भारत में करीब 8,02,000 बच्चों की मौत हुई।
  • यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि यासमीन अली हक के मुताबिक शिशु मृत्यु दर की रोकथाम के मामले में भारत में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है। ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत में जन्म से लेकर पाँच वर्ष की आयु वर्ग तक के बच्चों की मृत्यु दर इसी आयु वर्ग के जन्म दर के समान है।
  • अस्पतालों में प्रसव कराए जाने में वृद्धि, नवजात शिशुओं के देखभाल के लिये सुविधाओं का विकास और टीकाकरण की बेहतर व्यवस्था होने से शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। 
  • नवजात शिशु मृत्यु दर 2016 के 8.67 लाख के मुकाबले कम होकर 2017 में 8.02 लाख हो गई| 2016 में भारत में शिशु मृत्यु दर 44 शिशु प्रति 1,000 थी।
  • यदि लैंगिक आधार पर शिशु मृत्यु दर की बात करें तो 2017 में लड़कों के मामले में यह प्रति 1,000 बच्चों पर 30 थी, जबकि लड़कियों में यह प्रति 1,000 पर 40 थी।
  • सबसे अच्छी बात यह है कि पिछले पाँच वर्षों में लिंगानुपात में सुधार आया है, साथ ही बालिकाओं के जन्म और जीवन प्रत्याशा दर में वृद्धि हुई है।
  • पोषण’ अभियान के तहत जरूरी पोषक तत्त्व मुहैया कराने और देश को 2019 तक खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) कराने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे अभियानों से भी फर्क पड़ेगा।

समाधान 

  • हालाँकि दुनिया भर में 1990 से लेकर अब तक बच्चों के जीवन को बचाने के लिये उल्लेखनीय प्रगति हुई है लेकिन अभी भी लाखों बच्चे मर रहे हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि दवाओं, स्वच्छ जल, बिजली तथा टीकों जैसे सरल समाधानों के साथ बच्चों के जीवन को बचाया जा सकता है। 
  • वैश्विक स्तर पर  2017 में  उप-सहारा अफ्रीका में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मृत्यु का आँकड़ा उनकी कुल संख्या का आधा हिस्सा था, जबकि दक्षिणी एशिया में यह 30% अधिक था।
  • रिपोर्ट के अनुसार, इन चुनौतियों के बावजूद दुनिया भर में प्रतिवर्ष मरने वाले बच्चों की संख्या में कमी आ रही है।
  • पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत का आँकड़ा जबरदस्त रूप से 1990 के 12.6 मिलियन से घटकर 2017 में 5.4 मिलियन हो गया है।
  • 5 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों की मौत के मामले में यह संख्या इसी अवधि में 1.7 मिलियन से घटकर दस लाख हो गई है।

UN IGME के बारे में

  • यूएन इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मोर्टेलिटी एस्टीमेशन या UN IGME को वर्ष 2004 में बाल मृत्यु दर पर डेटा साझा करने तथा संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर अनुमानों को सुसंगत बनाने के लिये गठित किया गया था।
  • यह बाल मृत्यु दर अनुमान लगाने के लिये विधियों में सुधार, बाल अस्तित्व के लक्ष्यों की प्रगति पर रिपोर्ट तथा बाल मृत्यु दर का उचित मूल्यांकन कर देशों की क्षमता में वृद्धि करने का काम करता है। 
  • UN IGME का नेतृत्व यूनिसेफ द्वारा किया जाता है और इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक समूह और यूनाइटेड नेशन पापुलेशन डिविजन ऑफ़ द डिपार्टमेंट ऑफ़ इकॉनोमिक एंड सोशल अफेयर्स शामिल हैं।

सामाजिक न्याय

हाथ से मैला ढोने वालों से संबंधित आधिकारिक रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

स्वच्छता श्रमिकों के कल्याण के लिये संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित वैधानिक निकाय, सफाई कर्मचारियों के राष्ट्रीय आयोग (NCSK) द्वारा एकत्रित आँकड़ों के अनुसार, देश भर में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय, औसत पाँच दिनों में एक व्यक्ति की मौत हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • यह आँकड़ा, जो अख़बार की रिपोर्टों और कुछ राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों पर आधारित है, सीवर और सेप्टिक टैंक क्लीनर की मौतों के लिये ज़िम्मेदार पहला ऐसा आधिकारिक प्रयास है।
  • NCSK के अनुसार, जनवरी 2017 के बाद से हाथ से मैला ढोने वाले खतरनाक कार्यों में नियोजित 123 लोगों ने काम पर रहते हुए अपनी जान गवाँ दी। पिछले एक हफ्ते में अकेले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कुल छह मौतें देखी गई हैं। हालाँकि, इस अभ्यास में शामिल अधिकारियों ने स्वीकार किया कि आँकड़ों की कमी को देखते हुए भी यह संख्या सकल अनुमान से अधिक हो सकती है।
  • सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई में नियोजित लोगों की कोई निश्चित संख्या उपलब्ध नहीं है। आँकड़ों को संकलित करने के सभी पिछले और जारी अभ्यासों को सूखे शौचालयों, खुली नालियों और गाँवों में एकल गड्ढे वाले शौचालयों से मानव उत्सर्जन को हटाने वालों के लिये लेखांकन तक ही सीमित किया गया है।
  • मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में ज़हरीले सीवरेज सिस्टम में प्रायः प्रवेश करने के घातक कार्य को शामिल करने वाले अधिक खतरनाक रूपों को आधिकारिक रूप से इसमें दर्ज नहीं किया गया है। यह इसके बावजूद है कि भारत में 1993 के अधिनियम के तहत हाथ से सफाई करने को गैरकानूनी घोषित किया गया था, उसे 2013 में संशोधित किया गया और सीवर तथा सेप्टिक टैंक की सफाई को भी इसमें शामिल किया गया।
  • NCSK के पास उपलब्ध आँकड़ों में 28 राज्यों और सात केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हुई मौतों की सूचना है।
  • यह आंकड़े दर्ज किये गए उन उदाहरणों से स्पष्ट है जो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और गुजरात में सर्वाधिक मामलों की संख्या के आधार पर इसी क्रम में हैं। दूसरी तरफ, NCSK के आँकड़े महाराष्ट्र में इस अवधि में सिर्फ दो मौतें को दर्शाते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) 2011 के अनुसार, अकेले महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में 65,181 परिवार हैं जिनमें कम-से-कम एक व्यक्ति हाथ से मैला ढोने के कार्य में नियोजित है, जो कि देश में सर्वाधिक है और ग्रामीण भारत के कुल 1.82 लाख परिवार जो इस कार्य में लगे हैं, का 35 प्रतिशत है।
  • SECC डेटा में भारत के शहरी क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है जहाँ सीवर की सफाई अधिक बार होती है। SECC के अनुसार, मध्य प्रदेश अपने गाँवों में 23,105 की संख्या के साथ हाथ से मैला ढोने वालों की सर्वाधिक संख्या वाला दूसरा राज्य है लेकिन यह NCSK के आँकड़ों में कोई मौत नहीं दर्शाता है।
  • NCSK के आँकड़ों के अनुसार, हाथ से मैला ढोने वालों की मौतों के मामले में कानून के तहत अनिवार्य 10 लाख रुपए का मुआवज़ा 123 मामलों में से केवल 70 मामलों में ही चुकाया गया है।
  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के नेतृत्व में अंतर-मंत्रालयी टास्क फोर्स द्वारा किये जा रहे एक अभ्यास में हाथ से मैला ढोने वाले कार्यों में शामिल लोगों की गणना में आँकड़ों की कमी स्पष्ट देखी जा सकती है । यह गणना 18 राज्यों में केवल 170 ज़िलों तक ही सीमित है। पुनः यह शहरी क्षेत्रों में सीवर साफ करने वालों के साथ-साथ हाथ से मैला ढोने वालों के किसी भी रूप को पूरी तरह से शामिल नहीं करती है।
  • गणना प्रक्रिया ज़िलों में सर्वेक्षण शिविर लगाकर केंद्र सरकार की टीमों द्वारा आयोजित की गई, जहाँ हाथ से मैला ढोने में लगे लोग स्व-घोषणा प्रक्रिया के तहत अपना नाम दर्ज करा सकते थे। इसके बाद, राज्यों को पहचान की गई संख्या की पुष्टि करना था।
  • हालाँकि जून के अंत तक इस अभ्यास को समाप्त किया जाना था, अधिकारियों ने पुष्टि की कि इसमें इसलिये देर हुई क्योंकि केंद्र सरकार की टीमों और राज्य सरकारों ने अब तक लगभग 50,000 लोगों में से केवल 20,000 लोगों को ही हाथ से मैला ढोने वाले लोगों के रूप में स्वीकार किया है।
  • सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) द्वारा तैयार किये गए आँकड़ों और पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, इस कार्य में लगे लोगों की मौतों की वास्तविक संख्या जनवरी 2017 से अब तक लगभग 300 है।

क्या है हाथ से मैला ढोना (मैनुअल स्केवेंजिंग)?

  • किसी व्यक्ति द्वारा शुष्क शौचालयों या सीवर से मानवीय अपशिष्ट (मल-मूत्र) को हाथ से साफ करने, सिर पर रखकर ले जाने, उसका निस्तारण करने या किसी भी प्रकार की शारीरिक सहायता से उसे संभालने को हाथ से मैला ढोना या मैनुअल स्केवेंजिंग कहते हैं।
  • इस प्रक्रिया में अक्सर बाल्टी, झाड़ू और टोकरी जैसे सबसे बुनियादी उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इस कुप्रथा का संबंध भारत की जाति व्यवस्था से भी है जहाँ तथाकथित निचली जातियों द्वारा इस काम को करने की उम्मीद की जाती थी।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति की उत्तर कोरिया यात्रा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्योंगयोंग की यात्रा पर गए दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन की राष्ट्रपति के रूप में उत्तर कोरिया की यह पहली यात्रा है।

प्रमुख बिंदु

  • उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन ने हाल ही में कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ सिंगापुर में उनकी ऐतिहासिक शिखर वार्ता ने क्षेत्रीय सुरक्षा को स्थापित किया है और उन्होंने भविष्य में दोनों कोरियाई देशों के मध्य अवरुद्ध पड़ी परमणु कूटनीति पर प्रगति की भी उम्मीद की।
  • कोरियाई नेताओं की यह मुलाकात भविष्य में होने वाली एक अन्य मुलाकात का भी परीक्षण करेगी जो अभी कुछ दिनों पहले दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच हुई मुलाकात के दौरान प्रस्तावित की गई है।
  • इसमें उत्तर कोरिया के परमाणु निःशस्त्रीकरण पर एक कार्य-योजना बनाने और 1950-53 से चले आ रहे कोरियाई युद्ध को समाप्त करने की बात की गई है।
  • वार्ता का पहला सत्र जो 2 घंटे चला, इसमें उत्तर कोरिया की वर्कर पार्टी के उपाध्यक्ष किम योंग-चूल और किम जोंग-उन की बहन किम यो-जोंग के साथ दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार चुंग यूई-योंग और खुफिया प्रमुख सुह हून ने भाग लिया।
  • बाद में नेताओं की दूसरे दौर की वार्ता संपन्न होगी जिसके बाद संयुक्त बयान जारी किया जाएगा और एक सैन्य समझौते की भी घोषणा की उम्मीद है जो दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के उद्देश्य से किया जाएगा।
  • इससे पहले मई माह में हुई मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने परमाणु निःशस्त्रीकरण पर संयुक्त प्रयास किये जाने पर सहमति जताई थी।

भारतीय राजनीति

सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सबसे प्रभावशाली निर्णय

चर्चा में क्यों?

भारत के सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आम कानून व्यवस्था में न्याय देने के लिये आधार का कार्य करने के साथ ही, एक उदाहरण स्थापित करने का भी कार्य करता है। इसी संदर्भ में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर के मामले और धारा 377 पर दिये गए फैसले को निस्संदेह इतिहास में ऐतिहासिक निर्णय के रूप में गिना जाएगा और यह भविष्य के कई मामलों को प्रभावित भी करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख प्रगतिशील निर्णय

  • मेनका गांधी मामले ने 1970 के दशक के अंत में कानूनी न्यायशास्त्र में बदलाव का जिक्र किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अधिक सक्रिय भूमिका निभाई और आपातकाल के बाद अपनी वैधता पर ज़ोर देने की कोशिश की।
मेनका गांधी बनाम संघ 1978
  • वर्ष 1977 में मेनका गांधी (वर्तमान महिला और बाल विकास मंत्री) का पासपोर्ट वर्तमान सत्तारूढ़ जनता पार्टी सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था।
  • इसके जवाब में उन्होंने सरकार के आदेश को चुनौती देने के लिये सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की।
  • हालाँकि, कोर्ट ने इस मामले में सरकार का पक्ष न लेते हुए एक अहम फैसला सुनाया।
  • यह निर्णय सात न्यायाधीशीय खंडपीठ द्वारा किया गया, जिसमें इस खंडपीठ द्वारा संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को दोहराया गया, जिससे यह फैसला मौलिक अधिकारों से संबंधित मामलों के लिये एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण बना।
केशवानंद भारती मामला 1973
  • वर्ष 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की अब तक की सबसे बड़ी संविधान पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि भारत में संसद नहीं बल्कि संविधान सर्वोच्च है।
  • साथ ही, न्यायपालिका ने टकराव की स्थिति को खत्म करने के लिये संविधान के मौलिक ढाँचे के सिद्धांत को भी पारित कर दिया। इसमें कहा गया कि संसद ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सकती है जो संविधान के मौलिक ढाँचे को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित करता हो।
  • न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार के तहत न्यायपालिका संसद द्वारा किये गए संशोधन की जाँच संविधान के मूल ढाँचे के आलोक में करने के लिये स्वतंत्र है।  
  • इसी तरह, केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने संसद को अपनी 'मूल संरचना' को बदलने से रोका, जो भारतीय राज्य को अपने कई दक्षिण एशियाई समकक्षों (चाहे अधिनायकवादी शासन हो या अन्य अतिरिक्त संवैधानिक माध्यमों से) के समान गिरने से बचाने के लिये व्यापक रूप से जाना जाता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट एक अभिलेखीय अदालत होगी और इस तरह की अदालत को सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जिसमें स्वयं की अवमानना ​​के लिये दंडित करने की शक्ति भी शामिल है।
  • अभिलेख न्यायालय से आशय उस उच्च न्यायालय से है, जिसके ‘निर्णय’ सदा के लिये लेखबद्ध होते हैं और जिसके अभिलेखों का प्रमाणित मूल्य होता है। 
  • उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में प्रक्रियात्मक मुद्दों से निपटने के लिये सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित उदाहरण महत्त्वपूर्ण हैं।

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