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डेली न्यूज़

  • 19 Jul, 2019
  • 56 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

जापान व UN पर्यावरण के बीच मरकरी समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जापान और UNEP ने पारे (मरकरी) के प्रभाव को रोकने के लिये एक नई परियोजना की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस परियोजना के तहत एशिया और प्रशांत क्षेत्र में एक क्षेत्रीय पारा निगरानी प्रयोगशाला नेटवर्क स्थापित किया जाएगा और इस क्षेत्र के आस-पास के देशों के लिये क्षमता निर्माण करने के साथ-साथ आवश्यक प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया जाएगा।
  • पारे से होने वाली मिनामाता नामक गंभीर बीमारी का प्रभाव जापान में लंबे समय तक देखा गया। इसके बाद जापान ने मिनामाता की रोकथाम के लिये गुणात्मक काम किया। वैश्विक स्तर पर भी जापान ने इस बीमारी के प्रभाव को सीमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • हाल ही में UNEP ने वैश्विक स्तर पर पारे के खतरे को कम करने के लिये एक कार्यक्रम शुरू किया है।
  • जापान ने वैश्विक पारा प्रदूषण की निगरानी हेतु विज्ञान आधारित नीति-निर्माण के लिये नई परियोजना शुरू की है, जिसके बोर्ड में सभी हितधारकों को शामिल करने पर बल दिया जा रहा है।
  • पारे का उपयोग विभिन्न प्रकार के प्रयोगों में किया जाता है। यह औद्योगिक उत्सर्जन और सोने के खनन जैसे माध्यमों से पर्यावरण में प्रवेश करता है।
  • पर्यावरण में प्रवेश के बाद कुछ प्रजातियों द्वारा पारे को संचित किया जाता है। मनुष्यों द्वारा इन प्रजातियों का सेवन किये जाने से मनुष्यों में मिनामाता रोग हो जाता है।
  • वैश्विक स्तर पर पारे की खपत और उत्सर्जन का लगभग आधा हिस्सा एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र से संबंधित होता है।
  • वैश्विक निगरानी नेटवर्क और क्षमता निर्माण के लिये वैज्ञानिक डेटाबेस का निर्माण किया जा रहा है जिससे सरकार और संस्थान प्रभावी पारा प्रबंधन के लिये बेहतर रणनीतियाँ बना सकें।

मिनामाता के उन्मूलन हेतु जापान के प्रयास:

  • जापान के पर्यावरण मंत्रालय ने वर्ष 2013 में मिनामाता अभिसमय को लागू करने में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिये मोवाई (MOYAI) पहल की शुरुआत की।
  • यह कार्यक्रम मिनामाता से संबंधित सुचना के प्रसार को भी बढ़ावा देता है।
  • पहल के तहत पारा संबंधी सूचनाओं के नेटवर्क का निर्माण करना, विकासशील देशों में स्थिति के आकलन का समर्थन करना, जापान की उन्नत तकनीकों का उपयोग करके पारा प्रबंधन क्षमता को मज़बूत करना, जैसी गतिविधियों को शामिल किया गया है।

UNEP (United Nation Environment Programme):

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी।
  • इस संगठन का उद्देश्य मानव पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना तथा पर्यावरण संबंधी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है।
  • UNEP पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। UNEP अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।
  • इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

फिल्म व टेलीविज़न उद्योग में श्रम नियमों का उल्लंघन

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने फिल्म और टेलीविज़न उद्योग में हो रहे बाल श्रम नियमों के उल्लंघन पर चिंता ज़ाहिर की है।

मुख्य बिंदु:

  • हाल ही में श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को एक पत्र लिखा, जिसमें बाल तथा किशोर श्रम (रोकथाम और नियमन) कानून, 1986 के उल्लंघन की बात कही गई।
  • मंत्रालय द्वारा यह मांग की गई थी कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय इस उद्योग में बाल श्रम नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए।
  • श्रम मंत्रालय से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार, जल्द ही सूचना और प्रसारण मंत्रालय इस संदर्भ में सभी निर्माताओं एवं प्रसारकों को एक सूचना जारी करेगा।
  • बाल एवं किशोर श्रम (रोकथाम और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2017 के अनुसार, बाल कलाकारों से एक दिन में 5 घंटे से अधिक कार्य नहीं कराया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सभी बाल कलाकारों से बिना ब्रेक लिये लगातार 3 घंटे से अधिक कार्य नहीं करवाया जा सकता है।
  • इस संदर्भ में अन्य प्रावधान:
    • नियम के अनुसार, किसी भी बाल कलाकार से कार्य कराने के लिये ज़िलाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) की अनुमति आवश्यक है।
    • बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक व्यक्ति (अधिकतम पाँच बच्चों पर) की तैनाती भी आवश्यक है।
    • कोई भी बाल कलाकार कार्य करने के लिये 27 दिनों से अधिक स्कूल से छुट्टी नहीं ले सकता है।
    • इसके अतिरिक्त नियमानुसार, सभी बच्चों की कुल आय का 20 प्रतिशत हिस्सा सावधि जमा के रूप में रखा जाना आवश्यक है।
  • यदि कोई भी बच्चा फिल्म में शामिल होता है तो फिल्म निर्माताओं के लिये यह सूचना प्रसारित करना आवश्यक है कि ‘फिल्म में यह सुनिश्चित करने का पूरा प्रयास किया गया है कि बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार तथा शोषण न हो’।

निष्कर्ष:

फिल्म और टेलीविज़न उद्योग में हो रहा नियमों का उल्लंघन प्रशासन के समक्ष काफी चिंताजनक विषय है और इस पर ध्यान दिया जाना भी आवश्यक है। हमें न केवल इस संदर्भ में नए और सख्त नियमों का निर्माण करना होगा बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पूर्व में निर्मित नियमों का सख़्ती से पालन हो।

स्रोत: द हिंदू


भारत-विश्व

कुलभूषण जाधव मामले पर ICJ का फैसला

चर्चा में क्यों?

17 जुलाई, 2019 को हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान में मिली मौत की सज़ा पर रोक लगाते हुए पाकिस्तान को एक बार फिर से इस फैसले पर विचार करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इस मामले की सुनवाई करने वाले कुल 16 न्यायाधीशों में एक भारतीय और एक पाकिस्तानी न्यायाधीश भी शामिल थे। उल्लेखनीय है कि 16 में से 15 न्यायाधीशों ने भारत के पक्ष में फैसला दिया जबकि केवल एक न्यायाधीश (पाकिस्तान से) द्वारा इसका विरोध किया गया।
  • मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने भी माना कि कुलभूषण जाधव को इतने दिनों तक कानूनी सहायता उपलब्ध नहीं कराना वियना संधि के अनुच्छेद 36 (1B) का उल्लंघन है।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत का पक्ष अधिवक्ता हरीश साल्वे ने जबकि पाकिस्तान का पक्ष खावर कुरैशी ने रखा।

न्यायालय का आदेश

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान को यह आदेश जारी किया है कि वह जाधव को कांसुलर एक्सेस (भारतीय राजनयिकों से मिलने की इज़ाजत) दे।
  • न्यायालय ने पाकिस्तान को यह आदेश भी दिया है कि वह जाधव को दी गई सज़ा की समीक्षा करे।

कितना बाध्यकारी है अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला?

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर (United Nations Charter) के अनुच्छेद 94 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश न्यायालय के उस फैसले को स्वीकार करेंगे जिसमें वह स्वयं पक्षकार (Party) हैं। ऐसी स्थिति में न्यायालय का फैसला अंतिम होगा और इस पर कोई अपील नहीं की जा सकेगी। लेकिन अगर निर्णय की किसी पंक्ति या शब्द के अर्थ को लेकर किसी प्रकार की आशंका हो या उसके एक से अधिक अर्थ संभव हों तो संबंधित पक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष उसकी पुनः व्याख्या की अपील की जा सकती है।
  • मामले से संबंधित देशों/देश अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले को लागू करने के लिये बाध्य हैं लेकिन ऐसे भी मामले देखे गए हैं जब देशों ने न्यायालय के फैसले कू मानने से इनकार किया है। उदाहरण के लिये वर्ष 1991 में निकारागुआ ने अमेरिका के खिलाफ ICJ में शिकायत की थी कि अमेरिका ने एक विद्रोही संगठन की मदद कर उसके खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ दिया है। हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय ने इस मामले पर निकारागुआ के पक्ष में फैसला दिया था लेकिन अमेरिका ने वीटो पॉवर का इस्तेमाल करते हुए इसके फैसले को मानने से इनकार कर दिया था।
  • ICJ के पास अपने फैसलों को लागू करने के लिये कोई प्रत्यक्ष शक्ति नहीं है ऐसे में इसके फैसले को मानने के संबंध में आशंका और भी बढ़ जाती है।

पाकिस्तान द्वारा ICJ का फैसला न मानने पर भारत के लिये विकल्प

  • यदि पकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के इस फैसले को लागू करने के मामले में अनिच्छा व्यक्त करता है या फैसले को मानने से इनकार करता है तो ऐसी स्थिति में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) से अपील कर सकता है कि वह पकिस्तान से इस फैसले को लागू करने को कहे।
  • लेकिन चीन UNSC का स्थायी सदस्य है और भारत तथा चीन के बीच संबंधों एवं पाकिस्तान के साथ चीन की निकटता को देखते हुए ऐसा संभव है कि चीन पाकिस्तान द्वारा इस फैसले को मानने के संदर्भ में अपनी वीटो पॉवर का प्रयोग करे जैसा कि अमेरिका द्वारा निकारागुआ मामले में किया गया था।

जाधव मामले में फैसला देने वाले न्यायाधीश

न्यायाधीश का नाम देश
पीटर टॉमका स्लोवाकिया
अब्दुलकवी अहमद यूसुफ (ICJ अध्यक्ष) सोमालिया
शू हानकिन, (ICJ उपाध्यक्ष) चीन
रॉनी अब्राहम फ्राँस
दलवीर भंडारी भारत
एंटोनियो ऑगस्टो ट्रिनडाडे ब्राज़ील
जेम्ल रिचर्ड क्रॉफोर्ड ऑस्ट्रेलिया
मोहम्मद बेनौना मोरक्को
जोआन ई. डोनोह्यू अमेरिका
जॉर्जिओ गजा इटली
पैट्रिक लिप्टन रॉबिंसन जमैका
जूलिया सेबुटिंडे युगांडा
किरिल गेवोर्जिअन रूसी संघ
तस्सदुक हुसैन गिलानी (एड-हॉक न्यायाधीश) पाकिस्तान
नवाज़ सलाम लेबनॉन
यूजी इवसावा जापान

पृष्ठभूमि

  • कुलभूषण जाधव महाराष्ट्र के सांगली के निवासी हैं। 3 मार्च, 2016 को पाकिस्तान ने इस बात का खुलासा किया कि उसने भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी को जासूसी के मामले में पाकिस्तान के बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया है। इसके बाद भारत ने यह तो स्वीकार किया कि कुलभूषण भारतीय नागरिक हैं लेकिन उनके जासूस होने की बात से इनकार किया। भारत सरकार के अनुसार, कुलभूषण ईरान से कानूनी तरीके से अपना कारोबार चला रहे थे और भारत द्वारा उनके अपहरण की आशंका जताई गई।
  • 25 मार्च, 2016 को पकिस्तान ने भारतीय प्रशासन को प्रेस रिलीज़ के ज़रिये जाधव की गिरफ़्तारी के बारे में सूचित किया। पाकिस्तान ने एक वीडियो जारी किया जिसमें कुलभूषण को यह कहते हुए दिखाया गया कि वो वर्ष 1991 में भारतीय नौसेना में शामिल हुए थे और वर्ष 2013 से रॉ के लिये काम कर रहे हैं।
  • 30 मार्च, 2016 को भारतीय विदेश मंत्रालय का जवाब आया कि कुलभूषण जाधव को प्रताड़ित किया जा रहा है। 26 अप्रैल 2017 को पाकिस्तान ने जाधव को कॉन्सुलर एक्सेस का भारत का निवेदन 16वीं बार खारिज कर दिया।
  • 10 अप्रैल, 2017 को पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग (ISPR) ने एक प्रेस रिलीज़ के ज़रिये सूचित किया कि जाधव को एक सैन्य अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई है।
  • कॉन्सुलर एक्सेस के 16 बार निवेदन ठुकराए जाने के बाद 8 मई, 2017 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र में याचिका दाखिल की। भारत ने इसे विएना संधि का उल्लंघन बताया।
  • 9 मई, 2017 को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने जाधव की मौत की सज़ा पर सुनवाई पूरी होने तक रोक लगा दी। 17 जुलाई, 2018 को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अपना जवाब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को सौंपा। 17 अप्रैल, 2018 को ही भारत ने भी दूसरे दौर का जवाब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को सौंपा।

वियना संधि (Vienna Convention)

  • स्वतंत्र और संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक संबंधों के विषय पर सर्वप्रथम वर्ष 1961 में वियना अभिसमय/कन्वेंशन हुआ। इस अभिसमय में एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया जिसमें राजनियकों को विशेष अधिकार दिये जा सकें। इसी के आधार पर राजनियकों की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का प्रावधान किया गया।
  • इस संधि के तहत कोई भी मेज़बान देश अपने यहाँ रहने वाले दूसरे देशों के राजनयिकों को खास दर्जा देता है। इस संधि का ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन (International Law Commission) द्वारा तैयार किया गया था और वर्ष 1964 में यह संधि लागू हुई।
  • फरवरी 2017 तक इस संधि पर विश्व के कुल 191 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।
  • इस संधि में कुल 54 अनुच्छेद हैं।
  • इस संधि में किये गए प्रमुख प्रावधानों के अनुसार कोई भी देश दूसरे देश के राजनयिकों को किसी भी कानूनी मामले में गिरफ्तार नहीं कर सकता है। साथ ही राजनयिक के ऊपर मेज़बान देश में किसी तरह का कस्टम टैक्स भी नहीं लगाया जा सकता है।
  • वर्ष 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस संधि के समान ही एक और संधि का प्रावधान किया जिसे ‘वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस’ (Vienna Convention on Consular Relations) के नाम से जाना जाता है।
  • इस संधि के अनुच्छेद 31 के तहत मेज़बान देश किसी दूतावास में नहीं घुस सकता है तथा उसे दूतावास की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी उठानी होती है।
  • संधि के अनुच्छेद 36 के तहत अगर किसी विदेशी नागरिक को कोई देश अपनी सीमा के भीतर गिरफ्तार करता है तो संबंधित देश के दूतावास को बिना किसी देरी के तुरंत इसकी सूचना देनी होगी।
  • गिरफ्तार किये गए विदेशी नागरिक के आग्रह पर पुलिस को भी संबंधित दूतावास या राजनयिक को फैक्स करके इसकी सूचना देनी होगी।
  • इस फैक्स में पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति का नाम, गिरफ्तारी की जगह और गिरफ्तारी की वजह भी बतानी होगी। यानी गिरफ्तार विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुँच देनी होगी।
  • भारत ने वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए जाधव का मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाया था।

पकिस्तान द्वारा जाधव को कॉन्सुलर एक्सेस न देने के पीछे तर्क

  • उपर्युक्त प्रावधानों के अलावा वियना संधि में एक प्रावधान यह भी है कि जासूसी या आतंकवाद आदि जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में गिरफ्तार किये गए विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुँच नहीं भी दी जा सकती है। विशेष रूप से उस स्थिति में जब दो देशों ने इस मामले पर आपस में कोई समझौता किया हो।
  • भारत और पाकिस्तान ने वर्ष 2008 में इसी तरह का एक समझौता किया था और पाकिस्तान जाधव मामले में बार-बार इसका हवाला दे रहा है। इसी समझौते हवाला देते हुए पाकिस्तान ने जाधव को राजनयिक पहुँच देने से इनकार किया था

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

(International Court of Justice)

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रधान न्यायिक अंग है।
  • इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा 1945 में की गई थी और अप्रैल 1946 में इसने कार्य करना प्रारंभ किया था।
  • इसका मुख्यालय (पीस पैलेस) हेग (नीदरलैंड) में स्थित है।
  • इसके प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वहन किया जाता है।
  • इसकी आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेज़ी और फ्रेंच हैं।
  • ICJ में 15 जज होते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा नौ वर्षों के लिये चुने जाते हैं। इसकी गणपूर्ति संख्या (कोरम) 9 है।
  • ICJ में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति पाने के लिये प्रत्याशी को महासभा और सुरक्षा परिषद् दोनों में ही बहुमत प्राप्त करना होता है।
  • इन न्यायाधीशों की नियुक्ति उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर न होकर उच्च नैतिक चरित्र, योग्यता और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर उनकी समझ के आधार पर होती है।
  • एक ही देश से दो न्यायाधीश नहीं चुने जा सकते हैं।
  • ICJ में प्रथम भारतीय मुख्य न्यायाधीश डा.नगेन्द्र सिंह थे।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार इसके सभी 193 सदस्य देश इस न्यायालय से न्याय पाने का अधिकार रखते हैं। हालाँकि जो देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं है वे भी यहाँ न्याय पाने के लिये अपील कर सकते हैं।
  • न्यायालय द्वारा सभापति तथा उप-सभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है।
  • मामलों पर निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है तथा इस पर पुनः अपील नहीं की जा सकती है, परंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, बी.बी.सी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अंटार्कटिका में कृत्रिम बर्फ की चादर

चर्चा में क्यों?

साइंस एडवांसेज़ (Science Advances) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यदि पश्चिमी अंटार्कटिक क्षेत्र में ‘कृत्रिम बर्फ’ की चादरें स्थापित की जाएँ तो वहाँ की बर्फ की चादरों को समुद्र में फिसलने से रोका जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • वैज्ञानिकों ने समुद्र की सतह पर पवन टर्बाइनों (Wind Turbines) का उपयोग करके ‘कृत्रिम बर्फ’ की चादरें स्थापित करने की परिकल्पना व्यक्त की है, ताकि वास्तविक बर्फ की चादर के भार का अनुमान लगाते हुए इसे और अधिक ढहने/फिसलने से रोका जा सके।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण दक्षिणी ध्रुव पर उपस्थित बर्फ की विशाल चादरें इतनी ज़्यादा पिघल चुकी हैं कि अब ये विघटित होने की स्थिति में है, यदि ऐसा होता है तो समुद्र का जलस्तर कम-से-कम तीन मीटर (10 फीट) तक बढ़ जाएगा।
  • हालाँकि सबसे ज़रूरी प्राथमिकता वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करते हुए आवश्यक कार्बन उत्सर्जन में तेज़ी से कटौती करना है।
  • वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि यदि सभी देश पेरिस जलवायु समझौते का सही से पालन करते हैं तो भी समुद्र का जलस्तर अंततः पाँच मीटर तक बढ़ सकता है।
  • फिलहाल पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की चादरों में आने वाली गिरावट का असर सैकड़ों वर्षों बाद सामने आएगा लेकिन तब तक परिस्थियाँ काफी विषम हो चुकी होंगी।
  • अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से समुद्र के जल स्तर में होने वाली वृद्धि हैम्बर्ग, शंघाई, न्यूयॉर्क और हांगकांग जैसे शहरों को जलमग्न कर देगी।
  • कार्बन उत्सर्जन से ग्रीनलैंड क्षेत्र में बर्फ की चादरों के पिघलने, आर्कटिक और दुनिया भर में कम होते ग्लेशियर आने वाले समय में इस समस्या को और बढ़ा देंगे।
  • वैज्ञानिकों के कंप्यूटर मॉडल आँकड़ों के अनुसार, पाइन द्वीप (Pine Island) और थवाइट्स ग्लेशियरों (Thwaites glaciers) के आस-पास 10 वर्षों में न्यूनतम 7,400 गीगाटन कृत्रिम बर्फ जमा करके वेस्ट अंटार्कटिक बर्फ की चादरों को स्थिर किया जा सकता है।

पेरिस जलवायु समझौता

(Paris Agreement on Climate Change)

  • इस ऐतिहासिक समझौते को वर्ष 2015 में ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन फ्रेमवर्क’ (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) की 21वीं बैठक में अपनाया गया, जिसे COP21 (Conference of Parties21- COP21) के नाम से जाना जाता है। इस समझौते को वर्ष 2020 से लागू किया जाना है।
  • इसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि सभी देशों द्वारा वैश्विक तापमान को औद्योगिकीकरण से पूर्व के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है (दूसरे शब्दों में कहें तो 2 डिग्री सेल्सियस से कम ही रखना है) और 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये सक्रिय प्रयास करना है।
  • पहली बार विकसित और विकासशील देश, दोनों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) को प्रस्तुत किया, जो प्रत्येक देश का अपने स्तर पर स्वेच्छा से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक विस्तृत कार्रवाइयों का समूह है।
  • पेरिस समझौते का मुख्य सार इसके 27 में से 6 अनुच्छेदों में निहित है। ये इस प्रकार हैं-
    1. 'बाज़ार तंत्र' (Market Mechanism) (A-6): यह एक देश को किसी दूसरे देश में हरित परियोजनाओं को वित्तपोषित करने और क्रेडिट खरीदने की अनुमति देता है।
    2. 'वित्त' (Finance) (A-9)
    3. 'प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण' (Technology Development and Transfer) (A-10);
    4. 'क्षमता निर्माण' Capacity Building (A-11);
    5. 'पारदर्शिता ढाँचा' (Transparency Framework) (A-13), यह प्रत्येक देश के कार्यों की रिपोर्टिंग से संबंधित है;
    6. 'ग्लोबल स्टॉक-टेक' (Global Stock-Take) (A-14), यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने में प्रत्येक देश की प्रतिबद्धता और उसकी कार्रवाई की आवधिक समीक्षा करता है तथा उसमें सुधार की मांग करता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

15वें वित्त आयोग के कार्यकाल के विस्तार को मंज़ूरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15वें वित्त आयोग (Fifteenth Finance Commission-FFC) का कार्यकाल 30 नवंबर, 2019 तक बढ़ाने का निर्णय लिया है। इससे वित्त आयोग सुधार कार्यक्रमों को ध्यान में रखते हुए वित्तीय अनुमानों के लिये विभिन्न तुलना योग्य अनुमानों पर विचार कर सकेगा।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 280 की धारा (1) तथा वित्त आयोग (विविध प्रावधान) अधिनियम, 1951 का उपयोग करते हुए 27 नवंबर, 2017 को 15वें आयोग का गठन किया था।
  • आयोग को अपने कार्य क्षेत्र के आधार पर 1 अप्रैल, 2020 से प्रारंभ 5 वर्षों की अवधि के लिये 30 अक्तूबर, 2019 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी।
  • केंद्र सरकार द्वारा पिछले 4 वर्षों में किये गए प्रमुख वित्तीय/बजट सुधारों को ध्यान में रखते हुए आयोग का गठन किया गया है।
  • इन सुधारों में योजना आयोग को समाप्त करना और उसकी जगह नीति आयोग लाना, गैर-योजना तथा योजना व्यय के बीच भेद को समाप्त करना, बजट कैलेंडर को एक महीना आगे बढ़ाना और पहली फरवरी को नया वित्त वर्ष प्रारंभ होने से पहले पूर्ण बजट पारित करना, जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू करना, उधारी तथा वित्तीय घाटा उपाय के साथ नया FRBM ढाँचा बनाना शामिल है।

15वें वित्त आयोग की संरचना

  • अनुच्छेद 280(1) के तहत उपबंध है कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त्त किये जाने वाले एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्यों से मिलकर वित्त आयोग बनेगा।
  • 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2020-25 तक होगा। अभी तक 14 वित्त आयोगों का गठन किया जा चुका है। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के लिये वैध हैं।

वित्त आयोग के सदस्यों हेतु अर्हताएँ

संसद द्वारा वित्त आयोग के सदस्यों की अर्हताएँ निर्धारित करने हेतु वित्त आयोग (प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम,1951 पारित किया गया है। इसका अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जो सार्वजनिक तथा लोक मामलों का जानकार हो। अन्य चार सदस्यों में उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की अर्हता हो या उन्हें प्रशासन व वित्तीय मामलों का या अर्थशास्त्र का विशिष्ट ज्ञान हो।

वित्त आयोग के कार्य दायित्व

  • भारत के राष्ट्रपति को यह सिफारिश करना कि संघ एवं राज्यों के बीच करों की शुद्ध प्राप्तियों को कैसे वितरित किया जाए एवं राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन।
  • अनुच्छेद 275 के तहत संचित निधि में से राज्यों को अनुदान/सहायता दी जानी चाहिये।
  • राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के संसाधनों की आपूर्ति हेतु राज्य की संचित निधि में संवर्द्धन के लिये आवश्यक कदमों की सिफारिश करना।
  • राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त अन्य कोई विशिष्ट निर्देश, जो देश के सुदृढ़ वित्त के हित में हों।
  • आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा संसद के दोनों सदनों में रखवाया जाता है।
  • प्रस्तुत सिफारिशों के साथ स्पष्टीकरण ज्ञापन भी रखवाया जाता है ताकि प्रत्येक सिफारिश के संबंध में हुई कार्यवाही की जानकारी हो सके।
  • वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशें सलाहकारी प्रवृत्ति की होती हैं, इसे मानना या न मानना सरकार पर निर्भर करता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

भाँग के संबंध में सामाजिक हित याचिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक सामाजिक हित याचिका (social cause litigation) में यह दावा किया गया है कि भारत में ऐसा कोई भी दस्तावेज़ मौजूद नहीं है जो यह दर्शाता हो कि भांग का सेवन मानव शरीर के लिये घातक है।

प्रमुख बिंदु

  • बेंगलुरु स्थित कैनबिस एडवोकेसी समूह ग्रेट लीगलाइजेशन मूवमेंट इंडिया (Great Legalisation Movement India) ने अपनी याचिका में नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances-NDPS) अधिनियम और नियमों के विभिन्न भागों को चुनौती दी है जो भांग की खेती, कब्जे और उपयोग को अपराध की श्रेणी में शामिल करते हैं।
  • दो न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें नशीली दवाओं के दुरुपयोग के मामलों पर चिंता जताते हुए इसके नियंत्रण के पहलूओं पर विस्तार से जानकारी मांगी है।
  • इस समूह ने यह दावा किया कि भारत में भाँग पर प्रतिबंध वर्ष 1985 के NDPS अधिनियम के पारित होने के बाद लागू हुआ।
  • साथ ही यह भी तर्क दिया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) और भारतीय गांजा औषधि आयोग (Indian Hemp Drugs Commission-IHDC) (1894) द्वारा प्रकाशित विभिन्न वैज्ञानिक शोध-पत्र में इसके औषधीय लाभों को भी दर्शाया गया हैं।

Disputed Drug

भारतीय भाँग औषधि आयोग की रिपोर्ट

(Indian Hemp Drugs Commission Report)

  • उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश भारत में भाँग के प्रयोग से बड़ी संख्या में भारतीय लोगों के मानसिक संतुलन खोने की जानकारी मिली। इसी को ध्यान में रखकर भारतीय गांजा औषधि आयोग की स्थापना की गई।
  • भाँग का व्यापक रूप से प्रयोग फार्माकोपिया के क्षेत्र में होता था तथा सरकार को इससे काफी राजस्व प्राप्त होता था। इस आयोग को भाँग के उपयोग से होने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों का निर्धारण करने का कार्य सौंपा गया, विशेष रूप से मानसिक बीमारी से संबंधित जोखिमों का।
  • साथ ही याचिका में यह तर्क भी दिया गया है कि संसद द्वारा मादक पदार्थों की अवैध तस्करी एवं युवाओं में नशे की लत जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने के लिये 23 अगस्त, 1985 को लोकसभा में NDPS विधेयक पेश किया गया, जिसे केवल चार दिनों की विधायी बहस के बाद पारित कर दिया गया। स्पष्ट रूप से इस विधेयक के संदर्भ में बहुत अधिक चर्चा अथवा अध्ययन नहीं किया गया। भाँग के गुणों और इसके उपयोग को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • याचिका में तर्क दिया गया है कि सरकार भाँग के औषधीय लाभों पर ध्यान केंद्रित करने में भी असफल रही है, इसमें दर्दनाशक (analgesic) के रूप में इसके इस्तेमाल, कैंसर से लड़ने में इसकी भूमिका, मतली को कम करना तथा HIV रोगियों में भूख बढ़ाने जैसे गुण शामिल हैं। इस याचिका में कहा गया है कि IHDC के निष्कर्षों के आधार पर इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना आवश्यक नहीं है क्योंकि इसका प्रयोग दवाईयाँ बनाने में भी किया जाता है।
  • इसके अलावा भाँग के अपार औद्योगिक अनुप्रयोग हैं, बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक, फाइबर और अन्य वस्तुओं को बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।

भांग या गांजा या चरस

  • इसका वैज्ञानिक नाम Cannabis Indica है। यह एक प्रकार का पौधा होता है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है।
  • भांग विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में प्रचुरता में पाई जाती है।
  • भांग के पौधे 3-8 फुट ऊँचे होते हैं। इसके पत्ते एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं।
  • भांग के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग तैयार की जाती है जबकि इसके मादा पौधों की पुष्प मंजरियों को सुखाकर गांजा तैयार किया जाता है।
  • भांग की शाखाओं एवं पत्तों पर जमे राल के समान पदार्थ को चरस कहा जाता है। एक समय में पहाड़ की लोक कला में भांग से निर्मित वस्त्रों की कला बहुत प्रसिद्ध थी, परंतु वर्तमान में इसका चलन कम हो गया है।
  • इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया कि अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और नीदरलैंड जैसे देशों ने भाँग के औषधीय एवं औद्योगिक उपयोग को देखते हुए इसके उत्पादन एवं खेती को वैध कर दिया है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वॉयस ऑफ ओशियन अभियान

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में UNEP ने सचरमैन (Schurmann) परिवार के साथ समुद्री प्रदूषण के संबंध में जागरूकता के लिये वॉयस ऑफ ओशियन अभियान में साझेदारी हेतु समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु:

ब्राज़ील के सचरमैन परिवार और UNEP के बीच वॉयस ऑफ ओसियन के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं। सचरमैन परिवार हमेशा से क्लीन सीज़ अभियान (Clean Seas campaign) का समर्थक रहा है।

वॉयस ऑफ ओशिसियन (Voice of the Oceans):

  • यह परियोजना समुद्री प्रदूषण के प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने का कार्य करती है। साथ ही समुद्र को लेकर परिवारों के अनुभव और निष्कर्षों के रिकॉर्ड को भी साझा करती है।
  • इस अभियान की शुरुआत सर्फाइडर फाउंडेशन यूरोप (Surfrider Foundation Europe- SFE) द्वारा तटीय और महासागरीय प्रदूषण को कम करने हेतु बेल्ज़ियम, बुल्गारिया, फ्राँस, पुर्तगाल और स्पेन के लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिये की गई थी।
  • वर्तमान में वॉयस ऑफ ओशियन अभियान में विश्व के 59 देश भाग ले रहे हैं।
  • SFE, UNESCO के साथ 5 जून को आयोजित होने वाले वैश्विक सम्मेलन का भी हिस्सा होता है।

सचरमैन (Schurmann) परिवार:

  • सचरमैन परिवार एक पालनौका (Sailboat) से विश्व भ्रमण करने वाला पहला लैटिन अमेरिकी परिवार है।
  • यह परिवार समुद्री प्रदूषण को समाप्त करने के लिये जागरूकता अभियान चलाता है।
  • यह परिवार ऑनलाइन स्कूल कार्यक्रमों, फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों जैसे- रेडे ग्लोबो (Rede Globo), नेशनल जियोग्राफिक (National Geographic) के माध्यम से विश्व भर में जागरूकता अभियानों में सक्रिय है।
  • सचरमैन परिवार 12 दिसंबर, 2019 को ब्राज़ील से 18 महीने के वॉयस ऑफ द ओशियन के विश्व भ्रमण पर पालनौका (Sailboat) से रवाना होगा। इस अभियान में सचरमैन परिवार UNEP की सहायता से समुद्री प्रदूषण की स्थिति को रिकॉर्ड करेगा।
  • अनुमान के अनुसार, हर वर्ष 8 से 13 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में पहुँचता है। इस कचरे से जल प्रदूषण के अलावा प्रतिवर्ष 100,000 समुद्री जानवरों और 1 मिलियन पक्षियों की मृत्यु हो जाती है।
  • इस अभियान का मुख्य उद्देश्य समुद्री प्रदूषण के संभावित समाधानों की पहचान करना, सरकार, निजी क्षेत्रों और जनता को समुद्रों की सफाई हेतु प्रेरित करना एवं प्लास्टिक से समुद्र को मुक्त करने संबंधी नवाचारों को प्रेरित करना है।
  • वॉयस ऑफ द ओशियन पृथ्वी के 40 रणनीतिक स्थानों को कवर करेगा, जिसमें ब्राज़ील के फर्नांडो डी नोरोन्हा (Fernando de Noronha), न्यूयॉर्क के मैनहट्टन (Manhattan), न्यूज़ीलैंड के ऑकलैंड (Auckland) और प्रशांत महासागर के ड्यूकी द्वीप (Ducie Island) जैसे स्थान शामिल हैं।
  • यह अभियान गीयर (Gyres) का भी अध्ययन करेगा। गीयर (Gyres) वह क्षेत्र होता है, जहाँ पर समुद्री धाराएँ प्लास्टिक कचरे के मलबों का संग्रह कर क्लस्टर बनाती हैं।

क्लीन सीज़ अभियान (Clean Seas campaign):

  • क्लीन सीज़ अभियान की शुरुआत UN पर्यावरण द्वारा इंडोनेशिया के बाली में इकोनॉमिस्ट वर्ल्ड ओशियन समिट के दौरान हुई।
  • यह अभियान सरकारों से उत्पादन और पैकेजिंग में प्लास्टिक के उपयोग को कम करने संबंधी नीतियों हेतु प्रेरित करता है।
  • यह अभियान लोगों से भी समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण को हतोत्साहित करने के लिये आग्रह करता है।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन से जुड़ा पलाउ

चर्चा में क्यों?

पलाउ (Palau) ने सतत् विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देने के भारतीय प्रयासों की सराहना करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA) फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • पलाउ, ISA फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला 76वाँ देश बन गया है।
  • इस दौरान पलाउ के राष्ट्रपति टॉमी रेमेंग्साऊ (Tommy Remengesau) ने सतत् विकास की दिशा में भारतीय प्रयासों की सराहना की और ISA को सतत् ऊर्जा के लिये शुरू की गई एक महत्त्वपूर्ण पहल के रूप में परिभाषित किया।
  • गौरतलब है कि पलाउ वर्ष 2020 में आयोजित होने वाले ‘Our Oceans’ सम्मेलन की मेजबानी करेगा। इस सम्मेलन के प्रमुख उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, सतत् मत्स्य पालन और समुद्री प्रदूषण जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है।

पलाउ

  • पलाउ को आधिकारिक रूप से पलाउ गणराज्य के नाम से जाना जाता है।
  • 47 वर्षों तक अमेरिका द्वारा प्रशासित पलाउ को वर्ष 1994 में स्वतंत्र प्राप्त हुई थी।
  • पलाउ की राजधानी का नाम ञुरूलमुड है।
  • पलाउ के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहे समुद्री जल स्तर से वह पूरा डूब सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन:

(International Solar Alliance-ISA)

  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सौर ऊर्जा से संपन्न देशों का एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन (Treaty-Based International Intergovernmental Organization) है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत भारत और फ्राँस ने 30 नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्‍मेलन के दौरान की थी।
  • इसका मुख्यालय गुरुग्राम (हरियाणा) में है।
  • ISA के प्रमुख उद्देश्यों में 1000 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता की वैश्विक तैनाती और 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिये लगभग $1000 बिलियन की राशि को जुटाना शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया था।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


शासन व्यवस्था

परामर्श योजना

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission-UGC) की ‘परामर्श’ योजना का शुभारंभ किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (National Accreditation and Assessment Council-NAAC) द्वारा मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों को परामर्श देना है।
  • UGC की यह योजना लगभग 1000 उच्च शिक्षण संस्थाओं को लक्षित करती है।

संभावित लाभ:

  • इस योजना से शिक्षण संस्थाओं की समग्र गुणवत्ता में वृद्धि होगी तथा उनके अनुसंधान, शिक्षण और सीखने की तरीकों में भी सुधार आएगा।
  • यह NAAC मान्यता प्राप्त करने में भी संस्थाओं की मदद करेगा।
  • यह संस्थानों में अनुसंधान सहयोग को बढ़ाने के लिये ज्ञान और सूचनाओं को साझा करने की सुविधा भी प्रदान करेगा।
  • यह उन 3.6 करोड़ छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में भी मदद करेगा जो वर्तमान में भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में पंजीकृत हैं।

राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद

(National Accreditation and Assessment Council)

  • इसकी स्थापना वर्ष 1994 में UGC की एक स्वायत्त संस्था के रूप में की गई थी।
  • वर्तमान में इसका मुख्यालय बंगलूरु में स्थित है।
  • NAAC का प्रमुख उद्देश्य गुणवत्ता आश्वासन को HEI के कामकाज का अभिन्न अंग बनाना है।
  • यह उच्च शिक्षा या इसके बाद के संस्थानों अथवा विशिष्ट शैक्षणिक कार्यक्रमों या परियोजनाओं के आवधिक मूल्यांकन और मान्यता की व्यवस्था करती है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

(University Grants Commission)

  • 28 दिसंबर, 1953 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने औपचारिक तौर पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नींव रखी थी।
  • विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग, विश्‍वविद्यालय शिक्षा के मापदंडों के समन्‍वय, निर्धारण और अनुरक्षण हेतु 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा स्‍थापित एक स्‍वायत्‍त संगठन है।
  • पात्र विश्‍वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के अतिरिक्‍त आयोग केंद्र और राज्‍य सरकारों को उच्‍चतर शिक्षा के विकास हेतु आवश्‍यक उपायों पर सुझाव भी देता है।
  • इसका मुख्यालय देश की राजधानी नई दिल्ली में अवस्थित है। इसके छः क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलूरु में हैं।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (19 July)

  • केंद्र सरकार ने 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल एक महीना और बढ़ाकर 30 नवंबर तक करने का फैसला किया है। इसके साथ ही वित्त आयोग की सिफारिशों का दायरा बढ़ाकर इसमें रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिये कोष को भी शामिल किया गया है। आयोग को इस साल 30 अक्तूबर तक अपनी रिपोर्ट देनी थी। इसे अन्य मुद्दों के अलावा 1 अप्रैल, 2020 से पाँच साल के लिये केंद्र द्वारा राज्यों को कोष के बँटवारे का फॉर्मूला सुझाना है। सरकार ने 27 नवंबर, 2017 को एन.के. सिंह की अध्यक्षता वाले 15वें वित्त आयोग को अधिसूचित किया था। आपको बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 280 में वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है और प्रथम वित्त आयोग का गठन के.सी. नियोगी की अध्यक्षता में 1951 में किया गया था। राज्य वित्त आयोगों का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243(1) के तहत किया जाता है।
  • डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ने इन पर लगने वाले सभी शुल्कों को हटाने का फैसला किया है। अब इंटरनेट या मोबाइल पर NEFT और RTGS से लेनदेन पर कोई शुल्क नहीं लगेगा। बैंक ने यह कदम भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इन शुल्कों को खत्म करने के बाद उठाया है। इसके अलावा बैंक ने तत्काल भुगतान सेवा IMPS (Immediate Payment Service) से लेनदेन करने पर भी शुल्क हटाने का निर्णय किया है। ज्ञातव्य है कि बड़ी राशि के लेनदेन के लिये RTGS (Real Time Gross Settlement) और दो लाख रुपए तक के लेनदेन के लिये NEFT (National Electric Funds Transfer) प्रणाली का उपयोग किया जाता है। अभी तक बैंक NEFT पर एक से पाँच रुपए और RTGS पर पाँच से 50 रुपए तक का शुल्क लेता रहा है। बैंक ने शाखा पर जाकर NEFT और RTGS का उपयोग करने वाले ग्राहकों से लिये जाने वाले शुल्क में 20 प्रतिशत की कटौती की है। गौरतलब है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने बीते दिनों डिजिटल लेन-देन को मज़बूत बनाने के इरादे से धन अंतरण (लेनदेन) के लिये बैंकों पर लगने वाले शुल्क समाप्त करने की घोषणा की थी और बैंकों को इसका लाभ ग्राहकों को देने को कहा था।
  • भारत और इटली ने एक-दूसरे के यहाँ अपनी कंपनियों और निवेशकों को आगे बढ़ाने के लिये फास्‍ट ट्रैक प्रणाली बनाने का फैसला किया है। उद्योग और आंतरिक व्‍यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) इन्‍वेस्‍ट इंडिया के साथ सहयोग करके भारत में इस प्रणाली के भारतीय पक्ष का प्रतिनिधित्‍व करेगा। DPIIT अन्‍य महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों और प्राधिकारों की भागीदारी बढ़ाएगा तथा इन्‍वेस्‍ट इंडिया अलग-अलग मामलों को जारी रखने और उनकी निगरानी के लिये ज़िम्‍मेदार एजेंसी होगी। DPIIT द्वारा इसकी लगातार समीक्षा की जाएगी। फास्‍ट ट्रैक प्रणाली का मुख्‍य उद्देश्‍य भारत में इतालवी कंपनियों और निवेशकों के सामने उनके कार्य में आने वाली समस्‍याओं की पहचान कर उनके समाधान का मार्ग प्रशस्‍त करना है। यह प्रणाली भारत में कारोबार में सुगमता के संबंध में इतालवी कंपनियों और निवेशकों के नज़रिये से मिलने वाले सामान्‍य सुझावों पर विचार-विमर्श के लिये एक मंच के रूप में काम करेगी। भारत में इटली का दूतावास इतालवी व्‍यापार एजेंसी और इटली में महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों के सहयोग से भारत में इस प्रणाली के भारतीय पक्ष का प्रतिनिधित्‍व करेगा। दोनों पक्षों द्वारा इस फास्‍ट ट्रैक प्रणाली की वर्ष में दो बार समीक्षा की जाएगी।
  • राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुसुइया उइके को छत्तीसगढ़ का राज्यपाल नियुक्त किया है। कुछ समय से मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास छत्तीसगढ़ के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार था। इसके साथ विश्वभूषण हरिचंदन को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। उन्होंने ई.एस.एल. नरसिम्हन का स्थान लिया है जो 10 वर्ष से प्रदेश के राज्यपाल थे। इससे पहले राष्ट्रपति ने कलराज मिश्र को हिमाचल प्रदेश का नया राज्यपाल नियुक्त किया, जबकि वहाँ के राज्यपाल आचार्य देबब्रत को गुजरात का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। विदित हो कि कलराज मिश्र को वर्ष 2014 से 2019 के पहले कार्यकाल में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया था। हालाँकि, उन्होंने 75 वर्ष की उम्र पार करने पर वर्ष 2017 में ही मंत्री पद छोड़ दिया था। विदित हो कि राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 155 के तहत राज्यपालों की नियुक्ति केंद्र सरकार की सलाह से की जाती है, लेकिन राज्य में राज्यपाल केंद्र के अधीनस्थ नहीं है, यह एक स्वतंत्र संवैधानिक पद है।
  • पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के ननकाना साहिब में सिख धर्म के संस्थापक बाबा गुरु नानक देव के नाम पर एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा। इसे बनाने के लिये लगभग एक दशक पहले प्रस्ताव आया था और हाल ही में इसका शिलान्यास किया गया। यह विश्वविद्यालय 10 एकड़ क्षेत्र में बनेगा और इस पर लगभग 258 करोड़ रुपए का खर्च आएगा, लेकिन इसका निर्माण पूरा होने के लिये कोई अनुमानित समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। गौरतलब है कि गुरु नानक देव जी का जन्म ननकाना साहिब में हुआ था और पहली बार उन्होंने यहीं पर उपदेश देना शुरू किया था। लाहौर से लगभग 80 किमी. दूर स्थित ननकाना साहिब सिखों के लिये उच्च ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व का शहर है।

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