टेक कंपनियों पर बाल श्रम कराने का आरोप
प्रीलिम्स के लिये
कोबाल्ट की विशेषता तथा प्रयोग
मेन्स के लिये
बाल श्रम कानूनों के उल्लंघन के मामले
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी टेक कंपनियों टेस्ला (Tesla), एप्पल (Apple), अल्फाबेट (Alphabet), डेल (Dell) तथा माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) के विरुद्ध बाल श्रम के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- विश्व की इन पाँच सबसे बड़ी तकनीकी कंपनियों के खिलाफ दायर इस मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि ये कंपनियाँ कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (Democratic Republic of the Congo-DRC) में स्थित कोबाल्ट (Cobalt) की खदानों में बच्चों से ज़बरन काम कराती हैं।
- हाल ही में DRC की एक कोबाल्ट की खदान के धँसने से 14 बच्चे दब गए जिसमें छह बच्चों की मौत हो गई तथा अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
- इस घटना के बाद घायल बच्चों के परिवारों की तरफ से अमेरिकी मानवाधिकार संस्था इंटरनेशनल राइट्स एडवोकेट्स (International Rights Advocates) ने इन कंपनियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।
- संस्था का मानना है कि DRC की खदानों में हो रहे अवैध खनन, मानवाधिकारों का उल्लंघन तथा भ्रष्टाचार की जानकारी इन कंपनियों को थी।
- इन खदानों में काम करने वाले बच्चे 2-3 डॉलर प्रतिदिन के हिसाब से मज़दूरी करते हैं तथा गरीबी व पारिवारिक दबाव के कारण वे स्कूल छोड़कर खदानों में काम करने को मजबूर होते हैं।
- गौरतलब है कि तकनीकी कंपनियों द्वारा कोबाल्ट का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग मुख्यतः मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट, इलेक्ट्रिक कारों व अन्य तकनीकी यंत्रों में लिथियम-आयन बैटरी (Lithium-ion Battery), इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) तथा मिश्रधातुओं (Alloys) के निर्माण में होता है।
कोबाल्ट (Cobalt):
- कोबाल्ट एक संक्रमण धातु (Transition Metal) है तथा यह अपने अनूठे भौतिक-रासायनिक गुणों की वजह से अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों में प्रयोग में लाया जाता है जिसे किसी अन्य पदार्थ द्वारा विस्थापित नहीं किया जा सकता।
- कोबाल्ट की प्रमुख विशेषता इसकी कठोरता, जंग-रोधी (Corrosion Resistant), ऑक्सीकरण-रोधी (Oxidation Resistant), ऊष्मा-रोधी (Heat Resistant), लौह-चुंबकीय (Ferromagnetic) तथा विद्युत का सुचालक (Conductor of Electricity) होना है।
- इन विशेषताओं की वजह से कोबाल्ट की वैश्विक बाज़ारों में अत्यधिक मांग है तथा कुल वैश्विक कोबाल्ट के लगभग 60 प्रतिशत का उत्पादन अकेले DRC करता है।
- वाक फ्री (Walk Free) तथा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) द्वारा यह कहा गया कि वर्तमान में लगभग 4 करोड़ से अधिक लोग आधुनिक दासत्व (Modern Slavery) के शिकार हैं जिन्हें बलात् श्रम या ज़बरन विवाह द्वारा बंधक बना कर रखा गया है।
स्रोत: द हिंदू
राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड अभियान
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड अभियान की विशेषताएँ
मेन्स के लिये:
ग्रामीण भारत के डिजिटल सशक्तीकरण हेतु भारत सरकार की पहलें
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संचार मंत्रालय (Ministry of Communications) द्वारा राष्ट्रीय मीडिया केंद्र, नई दिल्ली में राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड अभियान (National Broadband Mission) की शुरुआत की गई।
प्रमुख बिंदु:
- यह अभियान, राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 (National Digital Communications Policy, 2018) का हिस्सा है।
- अभी तक भारतनेट (BharatNet) कार्यक्रम के माध्यम से ब्रॉडबैंड सेवाएँ 142,000 गाँवों के ब्लॉकों तक पहुँच चुकी हैं।
विज़न:
- राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड अभियान का विज़न डिजिटल संचार ढाँचे का त्वरित विकास, डिजिटल अंतर की समाप्ति, डिजिटल सशक्तीकरण तथा समावेश पर आधारित है।
उद्देश्य:
- इस अभियान का उद्देश्य तीन सिद्धांतों पर आधारित है:
- सभी के लिये ब्रॉडबैंड की उपलब्धता
- गुणवत्तायुक्त सेवा
- किफायती सेवा।
लक्ष्य:
- ग्रामीण व सुदूर क्षेत्रों समेत पूरे देश में वर्ष 2022 तक ब्रॉडबैंड सेवा को उपलब्ध कराना।
- वर्ष 2024 तक टावर घनत्व प्रति एक हजार की आबादी पर 0.42 से बढ़ाकर 1.0 करना।
- मोबाइल और इंटरनेट सेवा की गुणवता बेहतर करना।
- राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों के साथ मिलकर कार्य करने के लिये राइट ऑफ वे (Right of Way- RoW) मॉडल विकसित किया जाएगा।
- यह मॉडल ऑप्टिक फाइबर बिछाने समेत डिजिटल अवसंरचना के विस्तार संबंधी नीतियों के लिये सहायक होगा।
- राज्य / केंद्रशासित प्रदेश में उपलब्ध डिजिटल संचार अवसंरचना और अनुकूल नीति ईको-सिस्टम को मापने के लिए ब्रॉडबैंड रेडीनेस इंडेक्स (Broadband Readiness Index- BRI) विकसित किया जाएगा।
- पूरे देश के लिये डिजिटल फाइबर मानचित्र तैयार किया जाएगा। इसमें संचार नेटवर्क व अवसंरचना, आप्टिक फाइबर केबल, टावर आदि को शामिल किया जाएगा।
- डिजिटल अवसंरचना और सेवाओं के निर्माण तथा विस्तार को गति प्रदान करने के लिये नीतिगत एवं नियामक संबंधी नियमों में बदलाव करना।
- हितधारकों द्वारा 100 बिलियन डॉलर का निवेश। इसमें यूनिवर्सल सर्विस आब्लिगेशन फंड (Universal Service Obligation Fund- USOF) का 70,000 करोड़ रुपए का निवेश शामिल है।
- अभियान में निवेश के लिये संबंधित मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों समेत सभी हितधारकों के साथ कार्य करना।
यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड
(Universal Service Obligation Fund- USOF)
- यह ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में लोगों तक वहन योग्य कीमतों पर गैर-भेदभावपूर्ण गुणवत्तापूर्ण सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करता है।
- इसका गठन वर्ष 2002 में दूरसंचार विभाग के तहत किया गया था।
- इस फंड के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होती है और इसे भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) अधिनियम, 2003 के तहत वैधानिक समर्थन प्राप्त है।
स्रोत: PIB
वैश्विक शरणार्थी मंच
प्रीलिम्स के लिये:
वैश्विक शरणार्थी मंच
मेन्स के लिये:
वैश्विक शरणार्थी मंच एवं वर्तमान स्थितियाँ
चर्चा में क्यों?
17-18 दिसंबर, 2019 को वैश्विक शरणार्थी मंच (Global Refugee Forum) की पहली बैठक का आयोजन जिनेवा में हो रहा है।
मुख्य बिंदु:
- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तईप एर्दोगन तथा कोस्टारिका, इथियोपिया और जर्मनी के नेताओं को शरणार्थियों की सुरक्षा एवं भलाई के संदर्भ में उनकी अनुकरणीय भूमिका के लिये मंच के सह-संयोजक के रूप में आमंत्रित किया गया है।
- 21वीं सदी में शरणार्थियों पर पहली बड़ी बैठक के रूप में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees- UNHCR), संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी एवं स्विट्ज़रलैंड की सरकार द्वारा संयुक्त रूप से 17-18 दिसंबर, 2019 को जिनेवा में आयोजित किया जा रहा है।
पाकिस्तान का पक्ष:
- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने एक बार फिर भारत के आंतरिक मामलों पर गंभीर और अनुचित टिप्पणी करके अपने संकीर्ण राजनीतिक एजेंडे का परिचय दिया।
- पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने भारत के NRC मुद्दे की तुलना म्याँमार के रोहिंग्या संकट से की तथा कश्मीर के मुद्दे पर विश्व से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया।
- इस बैठक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कश्मीर मुद्दे और नागरिकता संशोधन अधिनियम के संदर्भ में भारत की आलोचना की।
- पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत द्वारा हाल ही में उठाए गए कदमों का उद्देश्य कश्मीर में मुस्लिमों को बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक में बदलना है।
भारत का पक्ष:
- भारत ने पाकिस्तान को अपने देश में अल्पसंख्यकों की देखभाल करने तथा उन्हें पीड़ित न करने की सलाह दी।
- पिछले 72 वर्षों में पाकिस्तान ने अपने सभी अल्पसंख्यकों को लगातार प्रताड़ित किया है, जिसमें से अधिकांश को भारत का रुख करना पड़ा।
- भारत ने कहा कि पाकिस्तानी सेना ने वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के साथ बहुत बुरे तरीके से बर्ताव किया था।
वैश्विक शरणार्थी मंच के बारे में:
- वैश्विक शरणार्थी मंच अंतर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्त्वों के सिद्धांत को ठोस कार्रवाई के रूप में बदलने का अवसर प्रदान करने के लिये ‘वैश्विक शरणार्थी समझौते’ (Global Compact on Refugees) द्वारा निर्देशित एक मंच है।
- यह मंच विभिन्न देशों के मध्य शरणार्थियों की समस्या के निदान के लिये प्रभावशाली योगदानों तथा प्रतिज्ञाओं को प्रस्तुत करता है और पूर्व में किये गए अच्छे कार्यों का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- यह UNHRC द्वारा प्रबंधित एक मंच है जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में राजनीतिक इच्छाशक्ति जुटाकर ‘वैश्विक शरणार्थी समझौते’ के उद्देश्यों को आगे बढ़ाता है तथा विभिन्न देशों के समर्थन के आधार को व्यापक बनाता है।
स्रोत- द हिंदू
डिब्बा-बंद खाद्य पदार्थों का स्वास्थ्य पर प्रभाव
प्रीलिम्स के लिये
अनुशंसित आहार भत्ता (RDA), लाल अष्टभुज (Red Octagon)
मेन्स के लिये
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में खाद्य सुरक्षा एवं मानक विनियम की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment-CSE) ने फास्टफूड्स में नमक (Salt) तथा फैट (Fat) की मात्रा पर एक अध्ययन किया। इसमें भारतीय बाज़ारों में बिकने वाले खाद्य पदार्थों में इनकी मात्रा आवश्यकता से अधिक पाई गई।
मुख्य बिंदु:
- CSE द्वारा किये गए अध्ययन में 33 लोकप्रिय जंकफूड्स के नमूनों को शामिल किया गया था तथा इनमें नमक, फैट, ट्रांसफैट एवं कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा की जाँच की गई।
- इन खाद्य पदार्थों की उपयुक्तता की जाँच हेतु CSE ने अनुशंसित आहार भत्ता (Recommended Dietary Allowance-RDA) को आधार माना।
“एक स्वस्थ व्यक्ति द्वारा प्रतिदिन की पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु लिये जाने वाले आहार में पोषकों की औसत मात्रा को RDA कहा जाता है। भारत में RDA की मात्रा का निर्धारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) तथा राष्ट्रीय पोषण संस्थान (National Institute of Nutrition-NIN) द्वारा किया जाता है।”
- RDA के अनुसार, एक वयस्क को प्रतिदिन 5 ग्राम नमक, 60 ग्राम फैट, 300 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स तथा 2.2 ग्राम ट्रांसफैट से अधिक पोषकों को ग्रहण नहीं करना चाहिये।
- नमूने में शामिल जंकफूड्स की प्रति 100 ग्राम मात्रा में नमक, फैट, ट्रांसफैट तथा कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा RDA के तहत अनुशंसित मात्रा से कहीं अधिक पाई गई।
नियंत्रण के उपाय:
- भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI) द्वारा प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा एवं मानक विनियम [Food Safety and Standards (Labelling and Display) Regulations] के मसौदे के तहत डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की निर्माता कंपनियों के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
- निर्माता कंपनियों के लिये अनिवार्य होगा कि वे खाद्य सामग्री की कैलोरी, संतृप्त वसा, ट्रांस फैट, एडेड शुगर तथा सोडियम की मात्रा को पैक के आगे की तरफ प्रदर्शित करें।
- इसके अलावा कंपनियों को फूड प्रोडक्ट्स पर लगे लेबल में खाद्य सामग्री में उपस्थित पोषक तत्त्वों की मात्रा को RDA के प्रतिशत में दिखाना होगा।
- CSE ने इस मसौदे के तहत सुझाव दिया है कि पेरू (Peru) तथा चिली (Chile) की तर्ज पर भारत में भी सभी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के पैक पर लाल अष्टभुज (Red Octagon) का निशान होना चाहिये जिसके माध्यम से चेतावनी संबंधी निर्देश दिये गए हों।
- जैसे- लाल अष्टभुज का निशान पैक के अगले हिस्से में हो तथा उस पर यह प्रदर्शित किया जाए कि कोई सामग्री RDA द्वारा निर्धारित मात्रा की तुलना में कितनी अधिक डाली गई है।
लाल अष्टभुज (Red Octagon):
- यह वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला एक प्रतीक चिह्न है। इसके माध्यम से खाद्य सामग्रियों में शामिल पोषकों की अधिकता को प्रदर्शित करने हेतु चेतावनी दी जाती है।
- उदाहरण के तौर पर किसी खाद्य पदार्थ में मीठे की मात्रा अधिक होने पर लाल अष्टभुज के अंदर निर्देश में “हाई इन शुगर” (High in Sugar) या कैलोरी की मात्रा अधिक होने पर “हाई इन कैलोरी” (High in Calorie) लिखा जाएगा।
- इस प्रकार के चिह्नों के प्रयोग से खाद्य पदार्थों में शामिल सामग्रियों की कैलोरी की गणना नहीं करनी होगी बल्कि चिह्नों के माध्यम से इसे आसानी से दर्शाया जा सकेगा।
- चिली में यह व्यवस्था वर्ष 2016 में लागू की गई थी। इसके एक वर्ष बाद कार्बोनेटेड पेय पदार्थों (Carbonated Beverages) की प्रति व्यक्ति खपत में 24.9 प्रतिशत की कमी आई।
स्रोत: द हिंदू, डाउन टू अर्थ
अल्पसंख्यकों की पहचान
प्रीलिम्स के लिये:
अल्पसंख्यकों से संबंधित प्रावधान
मेन्स के लिये:
अल्पसंख्यकों की पहचान से संबंधित वर्तमान मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य के आधार पर अल्पसंख्यकों की पहचान संबंधी याचिका को खारिज कर दिया।
याचिका के बारे में:
- याचिकाकर्त्ता ने केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2(C) के अंतर्गत 23 अक्तूबर, 1993 को जारी एक अधिसूचना के विरोध में याचिका दायर की थी।
- इस अधिसूचना में केंद्र सरकार ने मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया था। याचिकाकर्त्ता ने कहा कि सरकार ने यह अधिसूचना अल्पसंख्यक की परिभाषा तय किये बिना तथा इस संबंध में कोई भी निर्देश दिये बिना जारी की थी।
- याचिकाकर्त्ता ने टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन मामले का जिक्र करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक का दर्जा निर्धारित करने वाली इकाई में राज्य को भी आधार बनाया गया है।
टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002):
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अल्पसंख्यक वर्ग की पहचान हेतु दो आधार बताए गए थे- राष्ट्रीय व प्रांतीय
- याचिकाकर्त्ता ने कहा कि हिंदू आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं, अतः उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा प्रदान किया जाना चाहिये।
सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार भाषा को राज्य आधारित माना जाता है परंतु धर्म को अखिल भारतीय स्तर पर माना जाना चाहिये क्योंकि धर्म को राज्य की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता।
- सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता से पूछा कि मुस्लिमों को कश्मीर में बहुसंख्यक तथा अन्य स्थानों पर अल्पसंख्यक मानने में क्या समस्या है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का पक्ष:
- यह याचिका नवंबर 2017 को दायर की गई थी तथा सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से संपर्क करने के लिये कहा था।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने कहा कि कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है और केवल केंद्र ही ऐसा कर सकता है।
- याचिकाकर्त्ता ने यह तर्क दिया कि लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं तथा असम, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार में इनकी काफी आबादी है फिर भी वे अल्पसंख्यक दर्जे का लाभ उठा रहे हैं लेकिन जो समुदाय वास्तव में अल्पसंख्यक हैं, उन्हें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा न दिये जाने के कारण वे अपना वैध हिस्सा नहीं पा रहे हैं।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
(National Commission for Minorities):
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन वर्ष 1993 में किया गया था।
- यह अधिनियम ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं करता किंतु केंद्र सरकार को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करे।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष व 5 अन्य सदस्य होते हैं।
- अध्यक्ष सहित पाँच सदस्यों का अल्पसंख्यक समुदाय से होना आवश्यक है।
- अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
- प्रमुख कार्य:
- अल्पसंख्यकों की प्रगति का मूल्यांकन करना।
- अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये केंद्र व राज्य सरकार को प्रभावी उपायों की सिफारिश करना।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस
(National Minorities Right Day):
- अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिये हर वर्ष 18 दिसंबर को भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है।
- यह दिवस 1992 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा’ को अपनाने का प्रतीक है।
- यह दिन अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों और उनकी सुरक्षा के बारे में लोगों में बेहतर समझ विकसित करने तथा उन्हें शिक्षित करने पर केंद्रित है।
स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
प्रीलिम्स के लिये:
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
मेन्स के लिये:
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना से संबंधित विवाद
चर्चा में क्यों?
अखिल भारतीय मातृत्व लाभ कार्यक्रम ‘प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना’ (The Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana-PMMVY) की अपवर्जनात्मक प्रकृति के लिये आलोचना की गई है।
अपवर्जनात्मक प्रकृति के कारण:
- इस योजना का लाभ किसी महिला को केवल पहले बच्चे के जन्म के आधार पर मिलता है।
- इस योजना में पंजीकरण के लिये आवेदक महिला को अपने पति का आधार संबंधी विवरण प्रदान करना होता है जिससे एकल महिलाएँ, अविवाहित माताएँ, अभित्यक्त पत्नियाँ और विधवा महिलाएँ इस योजना का लाभ उठाने से वंचित रह जाती हैं।
- इस योजना में आवेदन करने की न्यूनतम आयु 19 वर्ष है अतः 18 वर्ष से कम आयु की नवविवाहिता इस योजना का लाभ उठाने से वंचित रह जाती हैं।
- पहले शिशु को जन्म देने वाली लगभग 30-35% महिलाएँ 18 वर्ष से कम आयु की हैं।
- नवजात के माता-पिता से अलग-अलग यह प्रमाण लिया जाता है कि वह उस महिला और उसके पति से पहला जीवित बच्चा है।
- लाभार्थी महिला को अपने वैवाहिक घर का पता संबंधी दस्तावेज़ प्रस्तुत करना पड़ता है, अतः यह नवविवाहित महिलाओं के लिये चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान सामान्यतः उन्हें घर में रहने तथा आराम करने की आवश्यकता होती है।
- दस्तावेज़ीकरण की जटिल प्रक्रिया के कारण हाशिये पर रहने वाली महिलाओं जैसे- यौनकर्मी, हिरासत में रहने वालीं महिलाएँ, प्रवासी और संघर्ष के बाद की स्थितियों में रहने वालीं महिलाएँ इस योजना का लाभ नहीं उठा पाती हैं।
- एक महिला कार्यकर्त्ता के अनुसार, महिलाओं को आवेदन प्रक्रिया के दौरान भारी रिश्वत देनी पड़ती है।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
(The Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana):
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना की शुरुआत 1 जनवरी, 2017 को देश भर में गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के कल्याण हेतु की गई थी।
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा संचालित किया जा रहा है।
- इस योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को सीधे उनके बैंक खाते में नकद लाभ प्रदान किया जाता है ताकि बढ़ी हुई पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा किया जा सके और वेतन हानि की आंशिक क्षतिपूर्ति की जा सके।
- लक्षित लाभार्थी: सभी गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ, जिन्हें केंद्र सरकार या राज्य सरकारों या सार्वजनिक उपक्रमों में नियमित रूप से रोज़गार पर रखा गया है या जो किसी भी कानून के तहत समान लाभ प्राप्त कर रही हैं।
- PMMVY के तहत सभी पात्र लाभार्थियों को तीन किश्तों में 5,000 रुपए दिये जाते हैं और शेष 1000 रुपए की राशि जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत मातृत्व लाभ की शर्तों के अनुरूप संस्थागत प्रसूति करवाने के बाद दी जाती है। इस प्रकार औसतन एक महिला को 6,000 रुपए प्राप्त होते हैं
इस योजना में बच्चों की संख्या का प्रावधान समाप्त कर सभी महिलाओं, चाहे वे औपचारिक या अनौपचारिक क्षेत्र, वेतन या अवैतनिक कार्य में संलग्न हों, को शामिल किया जाना चाहिये तथा इन प्रतिबंधों को हटाकर इस योजना को सार्वभौमिक बनाने की आवश्यकता है। ज़मीनी स्तर की कार्यकर्ताओं को संबंधित महिलाओं की समस्याओं तथा चिंताओं को सरकार तक पहुँचाने में सहायता करनी चाहिये।
स्रोत- द हिंदू
भारत में इंटरनेट का निलंबन
प्रीलिम्स के लिये:
SFLC , ICRIER
मेन्स के लिये:
नागरिकता संशोधन विधेयक, इंटरनेट बंद होने के आर्थिक परिणाम
चर्च में क्यों?
हाल ही में नागरिकता संशोधन विधेयक,2019 के संसद में पारित होने के पश्चात देश के विभिन्न भागों में इस विधेयक का विरोध शुरू हो गया। परिणामस्वरूप सरकार द्वारा सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए देश के विभिन्न भागों में इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया। पिछले कई दिनों में सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (SFLC) में इंटरनेट बंद होने से संबंधित अनेकों सूचनाओं से भरा पड़ा है। गौरतलब है कि सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर विश्व में इंटरनेट बंद होने की घटनाओं को ट्रैक करता है।
इंटरनेट बंद के कारण :
- चूँकि भारत विश्व का सबसे बड़ा एवं विकासशील इंटरनेट बाज़ार है और इंटरनेट के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान करना अत्यंत आसान होता है जिसका प्रयोग देश के भीतर दंगे भड़काने और विभिन्न हिंसक प्रतिक्रियाओं के लिये भी किया जाता है। फलतः आपातकालीन स्थिति में सूचनाओं के संप्रेषण को रोकने हेतु इंटरनेट बंद किया जाता है।
- जब किसी क्षेत्र में अफवाहों,फेक न्यूज़ या अन्य कारणों से सरकार या प्रशासन को कानून के प्रवर्तन में समस्या आती है तो प्रारंभिक और निवारक प्रतिक्रिया के रूप में सरकार द्वारा इंटरनेट बंद कर दिया जाता है।
इंटरनेट बंद का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- भारत में इंटरनेट बंद की लागत बहुत अधिक है। अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर भारतीय अनुसंधान परिषद (Indian Council Research for International Economic Relation-ICRIER) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में लगभग 16000 घंटे इंटरनेट बंद रहा जिसकी लागत लगभग 3 बिलियन डॉलर के आसपास होने का अनुमान है।
भारत में 2019 में इंटरनेट बंद होने की घटनाएँ :
- हाल ही में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को संसद में पारित किया गया जिसके विरोध में जनांदोलन एवं विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं फलतः कानून व्यवस्था का कारण बताकर पश्चिम बंगाल के हावड़ा, मुर्शिदाबाद, मालदा इत्यादि स्थानों, उत्तरप्रदेश के अलीगढ़, मेरठ और सहारनपुर जिलों तथा जम्मू-कश्मीर,असम एवं मेघालय के विभिन्न हिस्सों में इंटरनेट बंद कर दिया गया।
- बीते नवंबर महीने में उच्चतम न्यायालय द्वारा जब अयोध्या मामले पर फैसला सुनाया गया तब भी देश के विभिन्न हिस्सों में तनाव और हिंसा की आशंका के चलते प्रतिबंधात्मक उपाय के रूप में इंटरनेट बंद की घटनाएँ व्यापक स्तर पर देखी गई थी।
- 5 अगस्त 2019 को जब संसद द्वारा संविधान में उल्लिखित अस्थायी धारा 370 जो कि जम्मू-कश्मीर के संबंध में विशेष उपबंध करती है, के निरसन और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन विधेयक को पारित किया गया था तब जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा कारणों से इंटरनेट सेवा को प्रतिबंधित कर दिया गया था जो कि जम्मू-कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों में आज भी प्रतिबंधित है।
- गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में पिछले 135 दिनों से इंटरनेट सेवा बंद है जो भारत में इंटरनेट बंद के संदर्भ में एक रिकॉर्ड है। इसके पहले 2017 में दार्जिलिंग में 100 दिनों तक दूरसंचार सेवाओं को प्रतिबंधित किया गया था।
ऐसे राज्य जिनमें सर्वाधिक इंटरनेट बंद की घटनाएँ हो चुकी हैं :
इंटरनेट बंद की घटनाओं की आवृत्तियों के अनुसार, सर्वाधिक इंटरनेट सेवा बंद करने वाले राज्य निम्नलिखित हैं :-
- जम्मू-कश्मीर : SFLC (softwere freedom law center) के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2012 से लगभग 180 बार इंटरनेट बंद की घटनाएँ हो चुकी हैं। यहाँ इंटरनेट बंद का मुख्य कारण सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़,बड़े सर्च अभियान.गोलीबारी और CRPF के जवानों पर हमला इत्यादि हैं।
- राजस्थान : राजस्थान में वर्ष 2015 से लगभग 67 बार इंटरनेट बंद की घटनाएँ हो चुकी हैं जिसका मुख्य कारण अफ़वाहों को रोकना और सांप्रदायिक हिंसा के संदर्भ में बंद का आयोजन किया जाना है।
- उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश में वर्ष 2015 से लगभग 19 बार इंटरनेट बंद की घटनाएँ हो चुकी हैं। जिसका मुख्य कारण सांप्रदायिक एवं आपराधिक घटनाओं के बाद कानून व्यवस्था को सुदृढ़ बनाए रखना था।
इंटरनेट बंद से संबंधित कानून :
- दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन ( लोक आपात या लोक सुरक्षा ) नियम, 2017 के अंतर्गत देश के गृह मंत्रालय के सचिव या राज्य के सक्षम पदाधिकारी को दूरसंचार सेवाओं के निलंबन का अधिकार दिया गया है।
- भारतीय टेलिग्राफ अधिनियम,1885 की धारा 5(2) के तहत केंद्र एवं राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे लोक संकट या जन सुरक्षा या भारत की संप्रभुता और अखंडता तथा राज्य की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए संदेश सेवा (Messaging) को प्रतिबंधित कर सकती हैं।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 144 के अंतर्गत भी दूरसंचार सेवाओं को प्रतिबंधित किया जा सकता है। धारा 144 जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा अधिकार प्राप्त अधिकारी को सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए दूरसंचार सेवाओं के निलंबन का अधिकार देती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाइड्रोजन सेल तकनीकी आधारित कारें
प्रीलिम्स के लिये
ईंधन सेल, हाइड्रोजन सेल तकनीकी क्या है?
मेन्स के लिये
जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में ईंधन सेल की भूमिका
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2020 में टोक्यो ओलंपिक से पहले जापान हज़ारों हाइड्रोजन सेल तकनीकी (Hydrogen Cell Technology) या ईंधन सेल (Fuel Cell) आधारित कारों को बाज़ार में लाने के लिये तैयार है।
- जापान ईंधन सेल तकनीकी के प्रयोग के क्षेत्र में एक अग्रणी देश है। वायु प्रदूषण के नियंत्रण के संदर्भ में यह आवश्यक है कि भारत स्वच्छ उर्जा के प्रयोग हेतु जापान की तकनीक से सीख ले।
हाइड्रोजन ईंधन सेल कैसे कार्य करता है?
- ईंधन सेल विद्युत वाहन (Fuel Cell Electric Vehicles-FCEV) एक ऐसा यंत्र है जो कि ईंधन स्रोत के तौर पर हाइड्रोजन तथा एक ऑक्सिकारक के प्रयोग से विद्युत-रासायनिक प्रक्रिया (Electrochemical) द्वारा विद्युत का निर्माण करता है।
- ईंधन सेल हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन को समिश्रित कर विद्युत धारा का निर्माण करता है तथा इस प्रक्रिया में जल उपोत्पाद (Byproduct) होता है।
- परंपरागत बैटरियों की भाँति ही हाइड्रोजन ईंधन सेल भी रासायनिक उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करता है परंतु FCEV लंबे समय तक वहनीय है तथा भविष्य की इलेक्ट्रिक कारों के लिये एक आधार है।
क्या FCEV एक परंपरागत वाहन या विद्युत वाहन है?
- हालाँकि ईंधन सेल भी एक साधारण बैटरी की भाँति रासायनिक उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करता है परंतु यह उर्जा को संचय नहीं करता।
- इसके विपरीत यह आतंरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine-IC Engine) की भाँति, जिसमें लगातार पेट्रोल, डीज़ल तथा ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन की आपूर्ति पर निर्भर है।
- लेकिन आतंरिक दहन इंजन की भाँति ईंधन सेल के अंदर कोई गतिमान (Movable) हिस्सा नहीं होता तथा इसमें कोई आतंरिक दहन नहीं होता। इस लिहाज़ से यह परंपरागत IC-Engine से अधिक दक्ष और विश्वसनीय है।
- अभी तक इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles-EV) को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जाता है जो कि इस प्रकार है:
- बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (Battery Electric Vehicles-BEV): ये वाहन पूर्ण रूप से रिचार्जेबल बैटरी द्वारा जनित विद्युत उर्जा से चलते हैं।
- हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (Hybrid Electric Vehicle-HEV): इन परंपरागत वाहनों में आतंरिक दहन इंजन के साथ ही विद्युत प्रणोदन प्रणाली (Electric Propulsion System) का उपयोग किया जाता है।
- इस प्रकार के हाइब्रिड इंजन में IC-Engine के कार्य करने के दौरान बैटरी चार्ज होती रहती है। इस प्रकार के वाहन में ईंधन की बचत होती है।
- प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (Plug-in Hybrid Vehicles-PHEV): इन वाहनों में भी HEV की भाँति IC-Engine तथा बैटरी द्वारा जनित इलेक्ट्रिक पॉवर का प्रयोग होता है लेकिन इसमें बैटरी को किसी बाहरी स्रोत (चार्जिंग पॉइंट) से चार्ज किया जाता है।
- इलेक्ट्रिक वाहन तकनीक में FCEVs एक नई पीढ़ी की शुरुआत है। इसके अंतर्गत इलेक्ट्रिक मोटर को चलाने के लिये हाइड्रोजन का प्रयोग किया जाता है।
- यद्यपि FCEVs को इलेक्ट्रिक वाहन ही माना जाता है परंतु उनमें ईंधन भरने की प्रक्रिया तथा उनकी दूरी तय करने की क्षमता पारंपरिक कारों और ट्रकों के सामान ही है।
- हाइड्रोजन तकनीकी के विकास से यातायात तथा विद्युत ऊर्जा के निर्माण में मदद मिलेगी। इसके अलावा विश्व में हाइड्रोजन के निर्माण के लिये आवश्यक तत्त्वों की उपलब्धता भी पर्याप्त मात्रा में है।
- जापान द्वारा हाइड्रोजन ईंधन सेल को दो रूपों में विकसित किया जा रहा है जिसके माध्यम से स्वच्छ तथा विश्वसनीय उर्जा का विकास किया जा सके। इसके तहत अस्पतालों, बैंकों तथा हवाई अड्डों पर स्थैतिक ईंधन सेल (Stationary Fuel Cell) तथा वाहनों में वहनीय ईंधन सेल (Portable Fuel Cell) का प्रयोग किया जाएगा।
ईंधन सेल के लाभ:
- पारंपरिक दहन आधारित तकनीकी के विपरीत ये अत्यंत कम मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं तथा इनके द्वारा उत्सर्जित वायु से स्वास्थ्य को भी कोई नुकसान नहीं होता है।
- ईंधन सेल में प्रयोग किये गए हाइड्रोजन से ऊष्मा तथा उतोत्पाद के तौर पर जल का निर्माण होता है और ये पारंपरिक दहन इंजनों से अधिक दक्ष हैं।
- अन्य बैटरी द्वारा संचालित वाहनों के विपरीत FCEVs को किसी चार्जिंग पॉइंट की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इनमें ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन भरी जाएगी तथा एक बार पूरा टैंक भरने पर ये 300 किलोमीटर की दूरी तय कर सकेंगे।
ईंधन सेल की समस्याएँ:
- हालाँकि FCEVs किसी ऐसी गैस का उत्सर्जन नहीं करते जिससे भूमंडलीय ऊष्मन (Global Warming) की समस्या उत्पन्न हो परंतु हाइड्रोजन के निर्माण में जीवाश्म ईंधन का प्रयोग किया जाता है जो कि परोक्ष रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ावा देगा।
- सुरक्षा के लिहाज़ से भी हाइड्रोजन को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं क्योंकि हाइड्रोजन पेट्रोल से भी अधिक ज्वलनशील होता है तथा इसके कारण विस्फोट होने की संभावना जताई जाती है।
- इसके अलावा हाइड्रोजन आधारित वाहनों की कीमत पारंपरिक वाहनों की कीमत से काफी अधिक होगी तथा इसके लिये ईंधन केंद्र भी मात्र कुछ ही स्थानों पर मौजूद हैं।
भारत में ईंधन सेल का भविष्य:
- भारत इलेक्ट्रिक कारों के मामले में अभी शुरूआती स्तर पर है तथा इलेक्ट्रिक वाहनों की श्रेणी में केवल BEV को ही शामिल किया जाता है।
- BEV इलेक्ट्रिक वाहनों पर सरकार द्वारा 12 प्रतिशत टैक्स निर्धारित किया गया है लेकिन अन्य HEV तथा FCEVs पर IC-Engine वाले वाहनों की भाँति ही 43 प्रतिशत टैक्स लागू है।
- भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय उर्जा मंत्रालय के अंतर्गत कई संस्थानों के साथ मिलकर विभिन्न शोध कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा आई.आई.टी. बॉम्बे तथा अलौह पदार्थ तकनीकी विकास केंद्र, हैदराबाद के नेतृत्त्व में दो हाइड्रोजन स्टोरेज नेटवर्क का समर्थन किया गया है। इस परियोजना में 10 अन्य संस्थान शामिल हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (18 दिसंबर, 2019)
परवेज़ मुशर्रफ को फाँसी की सज़ा
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ को राजद्रोह के मामले में मौत की सज़ा सुनाई गई है। पाकिस्तान की विशेष अदालत ने पूर्व सैन्य शासक को दोषी करार देते हुए मौत की सज़ा सुनाई। पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ मामले की सुनवाई पेशावर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद सेठ के नेतृत्व वाली विशेष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने की। परवेज़ मुशर्रफ पर 3 नवंबर, 2007 को देश में आपातकाल लगाने के मामले में देशद्रोह का मामला चल रहा है। पाकिस्तान की पूर्व मुस्लिम लीग (नवाज़) सरकार ने यह मामला दर्ज कराया था और वर्ष 2013 से यह लंबित चल रहा था। दिसंबर 2013 में उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद 31 मार्च, 2014 को मुशर्रफ को आरोपी करार दिया गया और उसी साल सितंबर में अभियोजन ने सारे साक्ष्य विशेष अदालत के सामने रखे। अपीलीय मंचों पर याचिकाओं के कारण पूर्व सैन्य शासक के मुकदमे में देरी हुई तथा वह शीर्ष अदालतों और गृह मंत्रालय की मंज़ूरी के बाद मार्च 2016 में पाकिस्तान से बाहर चले गए।
राजस्थान में देश का चौथा भालू अभयारण्य
जल्दी ही राजस्थान में भालू अभयारण्य (Bear Sanctuary) बनाया जाएगा। यह प्रदेश का पहला और देश का चौथा भालू अभयारण्य होगा। इसे जालोर के सुंधा माता क्षेत्र (Sundha Mata Area) में विकसित किया जाएगा। प्रदेश में पहली बार भालुओं के लिये अभयारण्य बनाया जा रहा है। यह भालू अभयारण्य सिरोही ज़िले की माउंट आबू सेंक्चुअरी के 326.1 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र और जालोर के सुंधा माता कंज़रवेशन रिज़र्व के 117.49 वर्ग किलोमीटर के जंगल को मिलाकर बनाया जाएगा। यह पूरा इलाका प्रदेश के तीनों टाइगर रिज़र्व से अलग है। इस इलाके में जंगल भी घना है और यहाँ भालुओं की आबादी भी अच्छी है। यहाँ उनके के लिये भोजन की भी कमी नहीं है।
वन्यजीव गणना के मुताबिक, माउंट आबू के संरक्षित क्षेत्र के जंगलों में 352 भालू हैं, जबकि संरक्षित क्षेत्र के बाहर जालोर ज़िले में 58 और सिरोही ज़िले में मांउट आबू के बाहर भी 63 भालू हैं। इन दोनों इलाकों में भालू के अलावा पैंथर, भेड़िये, लकड़बग्घा, साही और चिंकारा की संख्या भी अच्छी खासी है। हालाँकि राजस्थान के तीनों टाइगर रिज़र्व में से रंणथंभौर और मुकंदरा हिल्स में भी भालुओं की संख्या अच्छी खासी है, लेकिन उसके बावजूद भालुओं का गढ़ माउंट आबू को ही माना जाता है।
भारतीय शांति रक्षक पुरस्कृत
दक्षिण सूडान में तैनात लगभग 850 भारतीय शांति सैनिकों को समर्पण और बलिदान के लिये संयुक्त राष्ट्र का प्रतिष्ठित पदक प्रदान किया गया है। दक्षिण सूडान में शांति बनाए रखने में भारतीय शांति सैनिकों ने उत्कृष्ट योगदान दिया है। उन्होंने स्थानीय समुदायों की सहायता करने के लिये अपने कर्त्तव्य से भी बढ़कर काम किया। भारत संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सबसे ज़्यादा सैनिकों का योगदान करने वाले देशों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों के अंतर्गत इस समय भारत के 2342 जवान और 25 पुलिसकर्मी तैनात हैं। ध्यातव्य है कि पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन में इंजीनियर और चिकित्साकर्मियों के रूप में सेवारत कुल 323 भारतीय शांति सैनिकों को विशिष्ट सेवाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र पदक से सम्मानित किया गया था।
मिस वर्ल्ड
लंदन में आयोजित मिस वर्ल्ड ब्यूटी पेजेंट 2019 का खिताब भारतीय मूल की जमैका की टोनी एन सिंह ने जीता। भारत की सुमन राव ने प्रतियोगिता में तीसरा स्थान (Second Runner-up) हासिल किया। राजस्थान की 20 वर्षीय सुमन राव ने जून में मिस इंडिया 2019 का खिताब जीता था। जबकि फ्रांस की Ophely Mezino दूसरे स्थान पर रही।
जमैका ने लंबे समय के बाद मिस वर्ल्ड का खिताब अपने नाम किया है। इससे पहले वर्ष 1993 में लीजा हेन्ना ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीता था। उनके पहले वर्ष 1963 और वर्ष 1976 में जमैका की सुंदरियों ने मिस वर्ल्ड के खिताब पर अपना कब्ज़ा जमाया था।
बी.एस. सिरपुरकर
हैदराबाद गैंग रेप और हत्या तथा उसके बाद हुए आरोपियों के एनकाउंटर की सच्चाई का पता लगाने के लिये जाँच को आवश्यक बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश बी.एस. सिरपुरकर की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग गठित की है। जाँच आयोग के अन्य सदस्यों में बंबई उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रेखा संदूर बाल्डोटा और CBI के पूर्व निदेशक डी.आर. कार्तिकेयन शामिल हैं। आयोग को छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपनी होगी तथा इसके साथ ही तेलंगाना उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में इस घटना के संबंध में लंबित कार्यवाही पर रोक लगा दी गई है। 6 दिसंबर की घटना की जाँच करने के लिये जाँच आयोग को कानून के तहत सभी अधिकार प्राप्त होंगे।
प्रवीर कुमार
पूर्व IAS प्रवीर कुमार को उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (Uttar Pradesh Subordinate Services Selection Commission- UPSSSC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उनके अलावा रचना पाल व ओम नारायण सिंह को आयोग के सदस्य घोषित किया गया हैं। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में एक अध्यक्ष और आठ सदस्य होते हैं। आयोग में अब कुल सात सदस्य हो गए हैं। ध्यातव्य है कि UPSSSC के अध्यक्ष का पद एक वर्ष से खाली था। वर्तमान सरकार में आयोग के अध्यक्ष नियुक्त किये गए रिटायर्ड IAS सी.बी. पालीवाल ने 11 दिसंबर, 2018 को निजी कारणों से इस्तीफा दे दिया था। तभी से आयोग के सदस्य रिटायर्ड IAS अरुण सिन्हा कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य देख रहे थे।