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डेली न्यूज़

  • 18 Sep, 2020
  • 71 min read
कृषि

लोकसभा में कृषि विधेयक पारित

प्रिलिम्स के लिये: 

कृषि उत्पाद विपणन समिति, ई-नाम

मेन्स के लिये:

कृषि क्षेत्र में सुधारों के लिये केंद्र सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा में दो कृषि विधेयकों- ‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020’ और ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक, 2020’ को बहुमत से पारित कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि लोकसभा में आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020  [Essential Commodities (Amendment) Bill, 2020] को पहले ही पारित किया जा चुका है।
  • अब इन तीनों विधेयकों को राज्य सभा में प्रस्तुत किया जाएगा, राज्य सभा से पारित होने के बाद  ये विधेयक  कानून बन जाएंगे।
  • ये विधेयक केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु घोषित अध्यादेशों को प्रतिस्थापित करेंगे।  

‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020’

[The Farmers' Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020]: 

पृष्ठभूमि: 

  • वर्तमान में किसानों को अपनी उपज की बिक्री में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, किसानों के लिये अधिसूचित कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) वाले बाज़ार क्षेत्र के बाहर कृषि उपज की बिक्री पर कई तरह के प्रतिबंध थे।
  • किसानों को केवल राज्य सरकारों के पंजीकृत लाइसेंसधारियों को उपज बेचने की बाध्यता भी निर्धारित थी साथ ही राज्य सरकारों द्वारा लागू विभिन्न APMC विधानों के कारण विभिन्न राज्यों के बीच कृषि उपज के मुक्त प्रवाह में भी बाधाएँ बनी हुई थी। 

लाभ:  

  • इस विधेयक के माध्यम से एक नए पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना में सहायता मिलेगी जहाँ किसानों और व्यापारियों को कृषि उपज की खरीद और बिक्री के लिये अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे।
  • यह विधेयक राज्य कृषि उपज विपणन कानून के तहत अधिसूचित बाज़ारों के भौतिक परिसर के बाहर अवरोध मुक्त अंतर्राज्यीय और राज्यंतारिक व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देता है।
  • इस विधेयक के माध्यम से अधिशेष उपज वाले क्षेत्र के किसानों को अपनी उपज पर बेहतर मूल्य प्राप्त होगा और साथ ही कम उपज वाले क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को कम कीमत पर अनाज प्राप्त हो सकेगा।
  • इस विधेयक में कृषि क्षेत्र में  इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग का भी प्रस्ताव किया गया है।
  • इस अधिनियम के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई उपकर या लगान नहीं लिया जाएगा। साथ ही इसके तहत किसानों के लिये एक अलग विवाद समाधान तंत्र की स्थापना का प्रावधान भी किया गया है।
  • सरकार के अनुसार, यह विधेयक भारत में ‘एक देश, एक कृषि बाज़ार’ के निर्माण का मार्ग प्रशस्‍त करेगा। 

मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक, 2020

[The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020]: 

पृष्ठभूमि: 

  • भारतीय किसानों को छोटी जोत, मौसम पर निर्भरता, उत्पादन और बाज़ार की अनिश्चितता के कारण कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन कमज़ोरियों के कारण आर्थिक दृष्टि से कृषि में बहुत अधिक जोखिम होता है

विधेयक के लाभ:

  • यह विधेयक किसानों को बगैर किसी शोषण के भय के प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा।
  • इसके माध्यम से किसान प्रत्यक्ष रूप से विपणन से जुड़ सकेंगे, जिससे मध्यस्थों की भूमिका समाप्त होगी और उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य प्राप्त हो सकेगा।
  • इस विधेयक से कृषि उपज को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँचाने हेतु आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण तथा कृषि अवसंरचना के विकास हेतु निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
  • इसके माध्यम से किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स (Inputs) तक पहुँच भी सुनिश्चित होगी। 

विरोध: 

  • केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में कृषि संबंधी अध्यादेशों के जारी करने के बाद से ही पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा इसका विरोध देखने को मिला है। 
  • इसके विरोध में ‘शिरोमणि अकाली दल’ से जुड़ी केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरन कौर बादल ने सरकार से अपना इस्तीफा दे दिया। 

विरोध का कारण: 

  • हालाँकि ज्यादातर किसान तीनों विधेयकों का विरोध कर रहे हैं परंतु उनकी सबसे बड़ी आपत्ति ‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक’ के"व्यापार क्षेत्र", "व्यापारी", "विवाद समाधान" और "बाज़ार शुल्क" से संबंधित प्रावधानों से है।

1. व्यापार क्षेत्र:  

  • इस विधेयक की धारा 2(m) के अनुसार, व्यापार क्षेत्र की परिभाषा-  ‘कोई भी क्षेत्र या स्थान, उत्पादन, संग्रह और एकत्रीकरण का स्थान (जिसमें फार्म गेट, कारखाना परिसर, कोष्‍ठागार (Silos),  गोदाम,  कोल्ड स्टोरेज या कोई अन्य संरचना या स्थान शामिल है), जहाँ से किसानों की उपज का व्यापार भारत के क्षेत्र में किया जा सकता है।’ 
  • हालाँकि इस परिभाषा में प्रत्येक राज्य एपीएमसी अधिनियम (APMC Act) के तहत गठित बाज़ार समितियों द्वारा संचालित और प्रबंधित परिसर, बाड़ों तथा संरचनाओं जैसे- प्रमुख बाज़ार यार्ड, उप-बाज़ार यार्ड, मार्केट सब-यार्ड एवं लाइसेंस धारक व्यक्तियों द्वारा प्रबंधित निजी किसान-उपभोक्ता बाज़ार यार्ड को शामिल नहीं किया गया है।
  • जिसका अर्थ है कि एपीएमसी अधिनियम के तहत स्थापित मौजूदा मंडियों को नए कानून के तहत व्यापार क्षेत्र की परिभाषा से बाहर रखा गया है।
  • विरोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह प्रावधान एपीएमसी मंडियों को उनकी भौतिक सीमाओं तक सीमित कर देगा और इससे बड़े कॉर्पोरेट खरीदारों को बढ़ावा मिलेगा।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2006 में बिहार राज्य में APMC प्रणाली को समाप्त कर दिया गया था, जिससे कृषि उपज के कारोबार में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है और किसानों को भारी क्षति हुई है। 

2. व्यापारी: 

  • केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, पैन कार्ड धारक व्यापारी, निर्धारित व्यापार क्षेत्र में किसानों की उपज खरीद सकता है। 
  • विधेयक के अनुसार, एक व्यापारी एपीएमसी मंडी और व्यापार क्षेत्र दोनों में काम कर सकता है। हालांकि, मंडी में व्यापार के लिये, व्यापारी को राज्य एपीएमसी अधिनियम के तहत लाइसेंस/पंजीकरण की आवश्यकता होगी। वर्तमान मंडी प्रणाली में, आढ़तियों (कमीशन एजेंटों) को मंडी में व्यापार करने का लाइसेंस प्राप्त करना होता है।
  • विरोधकर्त्ताओं के अनुसार, आढ़तियों की विश्वसनीयता अधिक है क्योंकि लाइसेंस की मंज़ूरी प्रक्रिया के दौरान वित्तीय स्थिति सत्यापित होती है, परंतु नए कानून के तहत किसानो के लिये  एक व्यापारी पर विश्वास करना कठिन होगा।
    • कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में आढ़तिया प्रणाली अधिक प्रभावशाली है, अतः इन राज्यों में अधिक विरोध देखने को मिला है।

3. बाज़ार शुल्क: 

  • इस विधेयक की धारा-6 के तहत व्यापार क्षेत्र के अंदर किसी भी राज्य एपीएमसी अधिनियम या अन्य राज्य कानून के अंतर्गत किसान या व्यापारी पर कोई भी ‘बाज़ार शुल्क या उपकर या लेवी’ लागू करने की अनुमति नहीं है।
  • इस प्रावधान से राज्य सरकार की आय में कमी आएगी और निजी क्षेत्र को लाभ होगा।
  • उदाहरण के लिये: वर्तमान में, पंजाब में एपीएमसी में कर/कमीशन दर 8.5 प्रतिशत है, वर्ष 2019-20 में, पंजाब ने व्यापार शुल्क से राजस्व के रूप में 3,600 करोड़ रुपए एकत्र किये थे।
  •  कृषि उपज की बिक्री से कर या शुल्क के रूप में उत्पन्न राजस्व का उपयोग राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण सड़कों और राज्य मंडियों के साथ संपर्क विकसित करने के लिये किया जाता है। 

4. विवाद निवारण तंत्र:   

  • इस विधेयक की धारा-8 के अनुसार, किसान और व्यापारी के बीच लेन-देन से उत्पन्न विवाद के मामले में वे सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (SDM) को एक आवेदन दाखिल करके सुलह कर सकते हैं।
  • विरोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह विधेयक विवाद के मामलों में किसानों को दीवानी अदालत में जाने की अनुमति नहीं देता और उन्हें भय है कि सुलह की प्रस्तावित प्रणाली का उनके खिलाफ  दुरुपयोग किया जा सकता है। 

सरकार का पक्ष:  

  • सरकार के अनुसार कृषि में निजी क्षेत्र के निवेश के माध्यम से तथा विधेयक में प्रस्तावित अन्य सुधारों से कृषि क्षेत्र में बड़े सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। ‘
  • सरकार के अनुसार, इन सुधारों के बाद भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्राप्त होता रहेगा और राज्य कानूनों के तहत स्थापित मंडियों में भी कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

आगे की राह:

  • कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिये जाने के साथ APMC की पहुँच में विस्तार हेतु आवश्यक सुधार किये जाने चाहिये।
  • सरकार द्वारा ‘ई-नाम’ (e-NAM) जैसे नवीन प्रयासों के माध्यम से कृषि क्षेत्र में ई-ट्रेडिंग (e-Trading) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • कृषि उपज पर MSP के संदर्भ में स्वामीनाथन समिति (Swaminathan Committee) की सिफारिशों को लागू करने का प्रयास किया जाना चाहिये।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

जैव-विविधता के संरक्षण के लिये राजस्थान में आर्द्रभूमियों की पहचान

प्रिलिम्स के लिये 

आर्द्रभूमि, रामसर सम्मेलन, सांभर झील, केवलादेव राष्ट्र्रीय उद्यान, आर्द्रभूमियाँ (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019, सुंदरबन,  प्रोविज़निंग सेवाएँ

मेन्स के लिये 

राजस्थान में आर्द्रभूमियाँ, आर्द्रभूमि का उपयोग एवं महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

आर्द्रभूमियों (Wetlands) की अवसादों और पोषक तत्त्वों  के भंडारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राजस्थान में आर्द्रभूमियों की पहचान की जा रही है। इसके लिये आर्द्रभूमियों की उपयोगिता सुनिश्चित करने, उन पर अतिक्रमण रोकने और स्थानीय अधिकारियों को आर्द्रभूमियों को बनाए रखने के लिये सक्षम बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • राज्य में 6 आर्द्रभूमियों की पहले से ही पहचान की जा चुकी है। 52 और आर्द्रभूमियों को समयबद्व रूप से विकसित करने के लिये चिन्हित किया जा चुका है। पर्यावरण और वन राज्य मंत्री के अनुसार, जलीय क्षेत्रों में वानस्पतिक वृद्धि और जैव विविधता के संरक्षण के लिये आर्द्रभूमियों के विकास को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • किसी भी प्रकार के कचरे को आर्द्रभूमि में फेंकने पर रोक लगाने के साथ ही जल संरक्षण के लिये प्रभावी कदम उठाए जाएंगे। विश्व प्रसिद्ध सांभर झील में अवैध नमक खनन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, जहाँ पिछले वर्ष बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों की मृत्यु हो गई थी।
  • ज़िला स्तर पर पर्यावरण समितियाँ आर्द्रभूमियों और जल निकायों के संरक्षण के लिये कार्य करेंगी।
  • राज्य में अद्वितीय आर्द्रभूमि पारिस्थितिक तंत्र के रूप में विद्यमान मीठे और नमकीन पानी की झीलों को ‘आर्द्रभूमियाँ (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019’ के सख्त कार्यान्वयन के साथ संरक्षित किया जाएगा। 

राजस्थान में आर्द्रभूमियाँ 

रामसर सम्मेलन के अंतर्गत राजस्थान की दो आर्द्रभूमियाँ सम्मिलित हैं- 

  • सांभर झील: 
    • जयपुर से 80 किमी और अजमेर से 65 किमी की दूरी पर अवस्थित खारे पानी की सांभर झील में सामोद, खारी, खंडेला, मेंढा, और रूपनगढ़ नदियाँ आकर मिलती हैं। 
    • झील के अंतर्गत सम्मिलत क्षेत्रफल मौसम के अनुसार परिवर्तित होता रहता है, जो मोटे तौर पर 190 और 230 वर्ग किमी. के मध्य है। झील की गहराई भी मौसम से प्रभावित होती है। ग्रीष्मकाल के दौरान 60 सेमी. तथा वर्षाकाल के दौरान इसकी गहराई 3 मीटर तक हो जाती है। 
    • शीत ऋतु के दौरान फ्लेमिंगोज़ पक्षियों का यहाँ जमघट लगता है। एशिया के उत्तरी और मध्य भाग से प्रवासी पक्षी यहाँ आते हैं। शैवालों और तापमान की अधिकता इन पक्षियों को प्रतिवर्ष भारी संख्या में आकर्षित करती है। 
    • बरेली के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, सांभर झील में प्रवासी पक्षियों की सामूहिक मृत्यु एवियन बॉटुलिज़्म के कारण होती है, जो बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। यह बीमारी इन प्रवासी पक्षियों के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है।
  • केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान: 
    • सघन जनसंख्या वाले राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित केवलादेव आर्द्रभूमि 10 भिन्न आकार की कृत्रिम, मौसमी लैगून्स का मिश्रण है। पूर्व में इसे वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया गया था, लेकिन ततपश्चात् इसे राष्ट्रीय उद्यान में परिवर्तित कर दिया गया।   
    • पानी की कमी तथा चरागाह के अनियंत्रित उपयोग के कारण इसे रामसर सम्मलेन के अंतर्गत मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में सम्मिलित किया गया है। मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की उन आर्द्रभूमियों को सूचीबद्ध किया जाता है जिनमें मानवीय अतिक्रमण और पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण संकट उत्पन्न हो गया है।  
    • यह पक्षी विहार विभिन्न पक्षियों की प्रजातियों और उनकी संख्या के कारण प्रसिद्ध है।  यहाँ अब तक पक्षियों की लगभग 353 प्रजातियों की पहचान की चुकी है। 

आर्द्रभूमि पारितंत्र  के बारे में 

  • रामसर कन्वेंशन के अनुसार, दलदल (Marsh), पंकभूमि (Fen), पीटभूमि या जल, कृत्रिम या प्राकृतिक, स्थायी या अस्थायी, स्थिर जल या गतिमान जल तथा ताजा, खारा व लवणयुक्त जल क्षेत्रों को आर्द्रभूमि कहते हैं। 
  • इसके अंतर्गत सागरीय क्षेत्रों को भी सम्मिलित किया जाता है। जहाँ निम्न ज्वार के समय भी गहराई 6 मीटर से अधिक नहीं होती है।

आर्द्रभूमि का उपयोग एवं महत्त्व 

  • प्रोविज़निंग सेवाएँ: इसके अंतर्गत आर्द्रभूमि से उपलब्ध उत्पादों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे- भोजन, स्वच्छ पानी, ईंधन एवं फाइबर, आनुवंशिक संसाधन, बायो-केमिकल उत्पाद आदि।
  • विनियमन सेवाएँ: आर्द्रभूमि पारितंत्र को विनियमित करने से कई लाभ होते हैं, जैसे- जलवायु नियमन, हाइड्रोलॉजिकल रिज़ीम्स, मृदा अपरदन से सुरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा, प्रदूषण नियंत्रण आदि। 
  • सांस्कृतिक सेवाएँ: इसके अंतर्गत आध्यात्मिकता एवं प्रेरणा, मनोरंजन, सौंदर्य, शैक्षिक, परंपरागत जीवन निर्वाह एवं ज्ञान आदि सम्मिलित हैं।
  • सहायक सेवाएँ: ये दूसरे पारितंत्र के लिये आवश्यक सेवाएँ होती हैं, जैसे- मृदा निर्माण, पोषक तत्वों का चक्रण, प्राथमिक उत्पादन, परागण, जैव विविधता एवं खतरे में पड़ी जातियों के लिये आवास आदि 

आर्द्रभूमियों पर रामसर सम्मेलन 

  • वर्ष 1971 में आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिये रामसर (ईरान) में एक अंतरसरकारी और बहुउद्देशीय सम्मेलन हुआ, जिसमें आर्द्रभूमियों व उनके संसाधनों के संरक्षण और युक्तियुक्त उपयोग के लिये राष्ट्रीय कार्यवाही और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की रूपरेखा तय की गई।
  • रामसर सम्मेलन एकमात्र ऐसा सम्मेलन है जो किसी विशेष पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित वैश्विक वातावरणीय संधि है। वर्ष 1975 में लागू इस समझौते में भारत वर्ष 1982 में शामिल हुआ।
  • इसमें आर्द्रभूमियों को अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की सूची में नामांकित करना, जहाँ तक संभव हो सके आर्द्रभूमियों का उनके क्षेत्रों में बुद्धिमानीपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग  को बढ़ावा देना और आर्द्रभूमि रिज़र्व का निर्माण करना आदि सम्मिलित हैं।
  • विश्व आर्द्रभूमि दिवस प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को मनाया जाता है। वर्ष 1971 में इसी दिन रामसर कन्वेंशन को अपनाया गया था। हालांकि पहला विश्व आर्द्रभूमि दिवस वर्ष 1997 में मनाया गया था।

भारत में आर्द्रभूमि का वितरण 

  • भारत का आर्द्रभूमि के अंतर्गत क्षेत्रफल भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 4.7% है। भारत में आंतरिक आर्द्रभूमि का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल तटीय आर्द्रभूमि के भौगोलिक क्षेत्रफल से अधिक है।
  • सर्वाधिक आर्द्रभूमि क्षेत्रफल वाला राज्य गुजरात है। भारत वर्ष 1982 में जब रामसर समझौते का सदस्य बना, उस समय केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान तथा चिल्का झील को आर्द्रभूमि  सूची में सम्मिलित किया गया था। जनवरी, 2019 में सुंदरबन क्षेत्र को 27वें आर्द्रभूमि क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया। जनवरी, 2020 में 10 और आर्द्रभूमियों को सम्मिलित करने से वर्तमान में रामसर सम्मेलन के अंतर्गत आर्द्रभूमियों की कुल संख्या 37 हो गई हैं। 

आर्द्रभूमियाँ (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019 

आर्द्रभूमियाँ (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019 को लागू करने के लिये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दिशा-निर्देश अधिसूचित किये हैं। ये नियम आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिये  विभिन्न निकायों का गठन और उनकी शक्तियों और कार्यों को परिभाषित करते हैं।

  • ये नियम आर्द्रभूमियों के भीतर उद्योगों की स्थापना/विस्तार और कचरे के निपटान पर रोक लगाते हैं। 
  • प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश को एक प्राधिकरण की स्थापना करनी होगी जो अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आर्द्रभूमि के संरक्षण और इनके बुद्धिमानीपूर्ण उपयोग के लिये रणनीतियों को परिभाषित करेगा। प्राधिकरण इन नियमों के प्रकाशन की तारीख से तीन माह के भीतर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सभी आर्द्रभूमियों की एक सूची तैयार करेगा। 
  • मंत्रालय ने इन आर्द्रभूमि नियमों के कार्यान्वयन के बारे में जानकारी साझा करने के लिये एक वेब पोर्टल का भी निर्माण किया है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-अमेरिका की आगामी 2+2 मंत्री स्तरीय वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

2+2 मंत्री स्तरीय वार्ता, क्वाड 

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका 2+2 मंत्री स्तरीय वार्ता का महत्त्व, भारत-चीन तनाव में अमेरिकी सहयोग की भूमिका

चर्चा में क्यों?

अमेरिका द्वारा भारत-अमेरिका की आगामी 2+2 मंत्री स्तरीय वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच ‘भू-स्थानिक सहयोग के लिये बुनियादी विनिमय तथा सहयोग समझौते’ (Basic Exchange and Cooperation Agreement for Geo-Spatial cooperation- BECA) पर हस्ताक्षर की इच्छा ज़ाहिर की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत-अमेरिका की आगामी 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता का आयोजन अक्तूबर माह के अंत तक किये जाने का अनुमान है। 
  • भारत द्वारा इस संदर्भ में अपने सुझावों के साथ BECA का एक मसौदा अमेरिका को भेज दिया गया है। 
  • BECA, भारत को स्वचालित हार्डवेयर सिस्टम और हथियार जैसे क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइलों से सटीक हमले के लिये अमेरिकी भू-स्थानिक मानचित्रों का उपयोग करने की अनुमति प्रदान करेगा। 
  • गौरतलब है कि भारत-अमेरिका मंत्रिस्तरीय 2+2 वार्ता में दोनों देशों के विदेश मंत्री  और रक्षा मंत्री भाग लेते हैं। 

अन्य महत्वपूर्ण समझौते

  • भारत और अमेरिका के बीच एक अन्य समुद्री सूचना समझौते को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • अमेरिका के साथ इस समझौते के लागू होने के बाद भारत द्वारा क्वाड (QUAD) के अन्य देशों ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भी ऐसा समझौता लागू किया जाएगा। 

भारत अमेरिका रक्षा साझेदारी:

वर्ष 2016 के बाद से भारत और अमेरिका में तीन महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

  • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement- LEMOA):  
    • भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 2016 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे, यह समझौता दोनों देशों के रक्षा बलों को एक-दूसरे की सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति देता है। साथ ही उनके लिये रसद और सेवाओं की पहुंच को आसान बनाता है। 
  • संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security Agreement- COMCASA): 
    • भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 2018 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे, यह समझौता अमेरिका द्वारा भारत को उन्नत संचार उपकरण स्थानांतरित करने की अनुमति देता है। ये उपकरण दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच डेटा और वास्तविक समय की जानकारी के सुरक्षित प्रसारण की सुविधा प्रदान करते हैं।  
  • सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (General Security Of Military Information Agreement- GSMIA):
    • भारत और अमेरिका के बीच GSMIA पर वर्ष 2002 में ही हस्ताक्षर किये जा चुके थे परंतु दोनों देशों के बीच आयोजित पिछली 2+2 वार्ता के दौरान इससे जुड़े औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध (Industrial Security Annex- ISA) पर हस्ताक्षर किये गए।
      • ISA भारतीय और अमेरिकी रक्षा उद्योग के बीच गोपनीय सैन्य सूचनाओं के आदान-प्रदान और संरक्षण के लियेएक ढाँचा प्रदान करता है।

नौसैनिक  सहयोग :   

  • भारत और अमेरिका के सैन्य संपर्क में वृद्धि के प्रयासों के तहत अमेरिका द्वारा भारतीय नौसेना के सूचना संलयन केंद्र- हिंद महासागर क्षेत्र [Information Fusion Centre for Indian Ocean Region (IFC-IOR)] पर एक सूचना अधिकार की नियुक्ति की गई है।
  • भारत द्वारा हाल ही में बहरीन स्थित अमेरिकी नौसेना के मध्य कमान में एक संपर्क अधिकारी को तैनाती की गई है, साथ ही यू. एस. इंडो-पैसिफिक कमांड (U.S. Indo-Pacific Command -USINDOPACOM) और  ‘यू. एस. स्पेशल ऑपरेशंस कमांड’ (U.S. Special Operations Command- USSOCOM) में संपर्क अधिकारियों की तैनाती के अमेरिकी अनुरोध पर भी विचार किया जा रहा है।

आगामी 2+2 वार्ता का महत्त्व: 

  • भारत-चीन तनाव में वृद्धि के बीच हाल के वर्षों में कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत और अमेरिका के बीच सहयोग में वृद्धि हुई है,  इसी क्रम में आगामी 2+2 वार्ता में भी अन्य क्षेत्र के साथ रक्षा क्षेत्र के कई महत्त्वपूर्ण समझौते हो सकते हैं।    
  • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत-चीन तनाव और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढती सक्रियता के अलावा पनडुब्बी रोधी युद्ध, एंटी मिसाइल डिफेंस, नेटवर्क सेंट्रल वारफेयर आदि इस बैठक के प्रमुख मुद्दे होंगे।
  • इस बैठक के दौरान दोनों पक्षों के बीच COMCASA पर भी व्यापक चर्चा की उम्मीद है।
  • बैठक के प्रमुख मुद्दों में हाल ही में हुए संयुक्त अरब अमीरात-बहरीन-इज़राइल समझौते, पश्चिम एशिया में बढ़ती अशांति, हिंद-प्रशांत क्षेत्र, क्वाड, मानव रहित हवाई वाहन (UAV) का संयुक्त विकास आदि को शामिल किया जा सकता है।  
  • इस बैठक के दौरान अमेरिकी प्रशासन से ‘एकीकृत वायु रक्षा हथियार प्रणाली’ (Integrated Air Defense Weapon System- IADWS) की बिक्री हेतु अनुमति-प्रत्र प्राप्त होने की भी उम्मीद है इस अनुमति पात्र के मिलने के बाद अमेरिका के रेथियॉन कॉरपोरेशन और कोंग्सबर्ग डिफेंस और एयरोस्पेस  से वार्ता शुरू हो जाएगी। 
  • भारत-चीन तनाव को देखते हुए अमेरिका स्थित जनरल एटॉमिक्स से 30 UAV के लंबित सौदे पर भी वार्ता हो सकती है।
  • गौरतलब है कि आगामी 2+2 वार्ता से पहले  9 सितंबर को आयोजित एक वर्चुअल बैठक में दोनों पक्षों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच COVID​​-19, आतंकवाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुशासन और सतत् विकास का समर्थन तथा दक्षिण एशिया के साथ कई अन्य महत्त्वपूर्ण  द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गई थी। 

चुनौतियाँ:

  • अक्तूबर के अंत में संभावित आगामी 2+2 वार्ता के दौरान BECA को लागू किये जाने के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि अभी भी इस समझौते पर पूरी बातचीत समाप्त नहीं हुई है। 
  • इसके साथ ही इस वार्ता का समय नवंबर में आयोजित होने वाले अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति चुनावों के बिलकुल पास है परंतु अभी भी इसकी तिथि का निर्धारण नहीं किया गया है।

आगे की राह:   

  • हाल के वर्षों में भारतीय सीमा पर पाकिस्तान और चीन की आक्रामकता में वृद्धि को देखते हुए भारत के लिये अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि करना बहुत ही आवश्यक है।
  • भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती चुनौती के खिलाफ सामान विचारधारा वाले देशों को साथ लाने का प्रयास करना चाहिये साथ ही क्वाड जैसे मंचों के माध्यम से अन्य क्षेत्रों के साथ नौसैनिक सहयोग को बढ़ाया जाना चाहिये।
  • अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने में भारत के लिये रूस के साथ संबंध संतुलन को बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है, अतः भारत को इस दिशा में भी ध्यान देना होगा।

स्रोत:  द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गिलगित-बाल्टिस्तान: पूर्ण प्रांत का विवाद

प्रिलिम्स के लिये

गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक अवस्थिति, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा 

मेन्स के लिये

गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांत का दर्जा देने का निर्णय और इसके निहितार्थ, गिलगित-बाल्टिस्तान की कानूनी स्थिति संबंधी विवाद और इस पर भारत की स्थिति

चर्चा में क्यों?

पाकिस्तान के एक वरिष्ठ मंत्री के बयान का हवाला देते हुए दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान सरकार गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को एक पूर्ण प्रांत का दर्जा देने पर विचार कर रही है।

प्रमुख बिंदु

  • पाकिस्तान सरकार में कश्मीर एवं गिलगित-बाल्टिस्तान मामलों के मंत्री अली अमीन के मुताबिक सभी हितधारकों से विमर्श के बाद संघ सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान को संवैधानिक अधिकार देने का फैसला किया है, इसके साथ ही गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान की नेशनल असेंबली समेत सभी संवैधानिक निकायों में भी पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व दिया जाएगा। विदित हो कि पाकिस्तान सरकार ने अभी तक इस संबंध में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है।
  • वहीं भारत के कई अवसरों पर पाकिस्तान को स्पष्ट तौर पर कहा है कि कानूनी तौर पर संपूर्ण जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग हैं और इस लिहाज़ से पाकिस्तान को इनकी स्थिति में बदलाव का कोई अधिकार नहीं है।

गिलगित-बाल्टिस्तान 

  • गिलगित-बाल्टिस्तान जम्मू-कश्मीर के उत्तर-पश्चिमी में स्थित अत्यधिक ऊँचाई वाला एक  पहाड़ी क्षेत्र है। यह क्षेत्र जम्मू और कश्मीर की पूर्ववर्ती रियासत का एक हिस्सा था, किंतु वर्ष 1947 में कश्मीर पर पाकिस्तानी सेना के आक्रमण के बाद से यह क्षेत्र पाकिस्तान के नियंत्रण में है।
  • पाकिस्तान के नियंत्रण में आने के बाद इस क्षेत्र को उत्तरी (शुमाली) इलाका अर्थात् नॉर्दन एरियाज़ कहा गया और इसे इस्लामाबाद के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा गया। 
  • पाक अधिकृत कश्मीर (POK) और गिलगित-बाल्टिस्तान दोनों अलग-अलग इलाके हैं, जबकि भारत इन्हें जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा मानता है। 
  • अगस्त 2009 में पाकिस्तानी सरकार द्वारा इस उत्तरी इलाके के लिये ‘गिलगित-बाल्टिस्तान सशक्तीकरण और स्वशासन आदेश’ लागू किया गया और इसके पश्चात् इस क्षेत्र को गिलगित-बाल्टिस्तान के रूप में जाना जाने लगा।

विवाद और इतिहास 

  • दरअसल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) के विपरीत पाकिस्तान को गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र का अधिकार दो ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों की मिलीभगत के कारण प्राप्त हुआ था।
  • वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के पूर्व जम्मू-कश्मीर की रियासत में कुल पाँच क्षेत्र शामिल थे: जम्मू, कश्मीर घाटी, लद्दाख, गिलगित वज़रात और गिलगित एजेंसी।
  • ब्रिटिश भारत की उत्तरी सीमाओं पर गिलगित एजेंसी के रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए वर्ष 1935 में अंग्रेज़ों ने जम्मू-कश्मीर रियासत के तहत इस क्षेत्र को जम्मू-कश्मीर के महाराजा से 60 वर्ष के लिये लीज़ पर ले लिया और वहाँ प्रशासक के तौर पर एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई, जबकि गिलगित वज़रात में ब्रिटिश अधिकारियों ने पहले ही एक एजेंट की नियुक्त कर रखी थी। 
  • वहीं संयुक्त गिलगित क्षेत्र (गिलगित वज़रात और गिलगित एजेंसी) के प्रशासन का कार्य ‘गिलगित स्काउट्स’ (Gilgit Scouts) नाम से सैन्य बल द्वारा किया जा रहा है, जिसकी कमान अंग्रेज़ अधिकारियों के हाथ में थी।
  • वर्ष 1947 में भारत छोड़ने से पूर्व ब्रिटिश सरकार ने लीज़ को रद्द कर दिया और इस क्षेत्र को वापस जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा को सौंप दिया, हालाँकि वैकल्पिक व्यवस्था आने तक ब्रिटिश अधिकारियों ने इस क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था को यथावत बनाए रखा। 
  • अक्तूबर 1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी पर आक्रमण किया, तब गिलगित स्काउट्स के दो ब्रिटिश अधिकारियों, मेजर डब्ल्यू. ए. ब्राउन और कप्तान ए. एस. मैथिसन ने वहाँ के एक प्रभावशाली सूबेदार मेजर बाबर खान की मदद से विद्रोह कर दिया।
  • विद्रोहियों ने इस क्षेत्र के लिये जम्मू-कश्मीर की रियासत के महाराज द्वारा नियुक्त गवर्नर की हत्या कर दी और साथ ही कुछ सिख तथा गोरखा सैनिकों के एक छोटे समूह को मार दिया गया।
  • हालाँकि तब तक जम्मू-कश्मीर के महाराज ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे और जम्मू-कश्मीर कानूनी तौर पर भारत का हिस्सा बना गया था।
  • 2 नवंबर, 1947 को ब्रिटिश अधिकारी मेजर ब्राउन ने गिलगित स्काउट्स के मुख्यालय में आधिकारिक रूप से पाकिस्तानी झंडा फहराया और यह घोषणा कर दी कि संयुक्त गिलगित क्षेत्र (गिलगित वज़रात और गिलगित एजेंसी) पाकिस्तान के नियंत्रण में है।
  • तकरीबन दो सप्ताह बाद पाकिस्तान सरकार ने सरदार मोहम्मद आलम को इस क्षेत्र के लिये राजनीतिक एजेंट नियुक्त किया और इस क्षेत्र को पाकिस्तान के नियंत्रण में ले लिया गया। 
  • इस प्रकार यह पूरा विवाद दो ब्रिटिश अधिकारियों की गलती की वजह से शुरुआत हुआ। 

गिलगित-बाल्टिस्तान की मौजूदा स्थिति

  • वर्ष 1974 में पाकिस्तान ने एक अधिसूचना के माध्यम से जम्मू-कश्मीर के महाराजा द्वारा वर्ष 1927 में लागू किये गए एक कानून को खारिज कर दिया, जिसमें बाहरी लोगों को संपत्ति के स्वामित्त्व से वंचित किया गया था। कानूनी बाधाओं के समाप्त होने के बाद पाकिस्तान ने सुन्नी मुस्लिमों को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से लाकर यहाँ बसाना शुरू कर दिया, जिसके कारण इस क्षेत्र में सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत हो गई, जो कि आज तक जारी है।
  • वर्तमान में गिलगित-बाल्टिस्तान के पास सीमित शक्तियों वाली एक विधानसभा है, जो कि पाकिस्तान सरकार में कश्मीर एवं गिलगित-बाल्टिस्तान मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रशासित की जाती है।
  • इसके अलावा इस क्षेत्र की वास्तविक शक्तियाँ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक परिषद में निहित हैं। 

संयुक्त गिलगित क्षेत्र से गिलगित-बाल्टिस्तान तक

  • पाकिस्तान द्वारा कब्ज़ा किये जाने के बाद वर्ष 1970 तक संयुक्त गिलगित क्षेत्र (गिलगित वज़रात और गिलगित एजेंसी) और पाकिस्तान द्वारा कब्ज़ा किया गया कश्मीर एक ही इकाई के रूप में मौजूद रहे, किंतु धीरे-धीरे पाकिस्तान को संयुक्त गिलगित क्षेत्र के प्रशासन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि यह क्षेत्र सुन्नी और पंजाबी बहुल पाकिस्तान के विपरीत बहु-भाषी शिया बहुल क्षेत्र था।
  • वर्ष 1971 की लड़ाई में अपमानित होने के बाद पाकिस्तान ने संयुक्त गिलगित क्षेत्र को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) से अलग कर दिया, और इसे पाकिस्तान का उत्तरी क्षेत्र या नॉर्दन एरियाज़ नाम दे दिया गया और यह प्रत्यक्ष रूप से संघ सरकार के नियंत्रण में आ गया।
  • वर्ष 2009 में इस क्षेत्र का नाम ‘नॉर्दन एरियाज़’ से बदलकर गिलगित-बाल्टिस्तान कर दिया गया।

इस क्षेत्र पर भारत की स्थिति

  • भारत गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्ज़ा किये गए भारतीय क्षेत्र के हिस्से के रूप में देखता है। 
  • भारत का तर्क है कि दोनों ब्रिटिश अधिकारियों को संयुक्त गिलगित क्षेत्र (गिलगित वज़रात और गिलगित एजेंसी) के संबंध में कोई कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं था, इस प्रकार उनके द्वारा यह क्षेत्र पाकिस्तान को देना पूर्णतः गैर-कानूनी था और इसलिये यह क्षेत्र कानूनी तौर पर भारत का अभिन्न अंग है। 
  • दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान के संविधान में गिलगित-बाल्टिस्तान का कहीं भी कोई ज़िक्र नहीं मिलता है, जिसके कारण पाकिस्तान इस क्षेत्र की स्थिति को लेकर अस्पष्टता बनाए रखता है। 
  • वर्ष 1994 में भारतीय संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर यह दोहराया था कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान दोनों जम्मू-कश्मीर के अभिन्न हिस्से हैं। 
  • वहीं वर्ष 2017 में ब्रिटिश संसद ने भी एक प्रस्ताव पारित करते हुए यह कहा था कि गिलगित-बाल्टिस्तान कानूनी रूप से भारत का हिस्सा है।

पूर्ण प्रांत बनाने के निहितार्थ और भारत की चिंताएँ

  • वर्तमान में बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा, पंजाब और सिंध, पाकिस्तान के चार प्रांत हैं, इस प्रकार यदि गिलगित-बाल्टिस्तान को पूर्ण प्रांत बनाने की घोषणा की जाती है तो यह पाकिस्तान का 5वाँ प्रांत होगा।
  • इस क्षेत्र के महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) इसी इलाके से होकर बनाया जा रहा है और चूँकि यह क्षेत्र भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित है कि, इसलिये भविष्य में इस परियोजना के समक्ष समस्याएँ आ सकती हैं।
  • किसी भी प्रकार के कानूनी विवाद से बचने के लिये पाकिस्तान इस क्षेत्र को पूर्ण प्रांत का दर्जा देना चाहता है, क्योंकि इससे इस क्षेत्र पर पाकिस्तान की कानूनी स्थिति और मज़बूत हो जाएगी। 
  • भारत के लिये चिंता का विषय यह है कि गिलगित-बाल्टिस्तान का इलाका पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से लगा हुआ है और अपनी भौगोलिक स्थिति की वज़ह से यह भारत के लिये सामरिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। 

निष्कर्ष

गिलगित-बाल्टिस्तान भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र है, हालाँकि ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह क्षेत्र कानूनी तौर पर भारत का हिस्सा है, किंतु पाकिस्तान ने इस क्षेत्र की स्थिति पर पूर्णतः अस्पष्टता बना रखी है, आवश्यक है कि इस क्षेत्र की कानूनी स्थिति में कोई भी बदलाव करने से पूर्व इससे संबंधित क्षेत्रीय विवाद को हल किया जाए, इस क्रम में कूटनीतिक मंच का प्रयोग किया जा सकता है, हालाँकि यहाँ भी गिलगित-बाल्टिस्तान के स्थानीय लोगों का प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित करना आवश्यक होगा, क्योंकि इस मामले का प्रत्यक्ष प्रभाव अंततः उन्ही पर पड़ेगा।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक

प्रिलिम्स के लिये

ब्रिक्स समूह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और सहयोग में ब्रिक्स देशों की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिक्स (BRICS) समूह के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) ने आतंकवाद विरोधी रणनीति के मसौदे पर चर्चा की, जिसे ब्रिक्स के आगामी शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत किया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु

  • आशंकाओं के विपरीत बैठक के दौरान वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन के बीच गतिरोध की पृष्ठभूमि में भारत और चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) ने कोई द्विपक्षीय चर्चा नहीं की, हालाँकि यह एक वर्चुअल बैठक थी और इसमें द्विपक्षीय वार्ता आयोजित करना संभव नहीं था।

बैठक के दौरान चर्चित मुद्दे

  • रूस द्वारा आयोजित एक वर्चुअल बैठक में शामिल होने वाले पाँच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) ने वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चुनौतियों और खतरों पर भी चर्चा की।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) ने जैविक सुरक्षा सहयोग और सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी सुरक्षा पर भी चर्चा की।
  • इस बैठक के दौरान प्रतिभागियों ने ईरान, वेनेज़ुएला और सीरिया के आसपास तनाव बढ़ने पर चिंता व्यक्त की।
  • इसके अलावा इस बैठक के दौरान अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती, अन्य देशों की अंतरिक्ष संपत्ति पर बल के प्रयोग और सैन्य अभियानों के लिये बाहरी अंतरिक्ष के उपयोग से संबंधित अमेरिका की योजनाओं पर भी चर्चा की गई।
  • बैठक के दौरान सभी सहभागियों ने प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और मंचों, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र (UN) के साथ समन्वय पर कार्य करने के लिये सहमति व्यक्त की है।

आतंकवाद विरोधी रणनीति का मसौदा

  • रूस द्वारा इस संबंध में जारी किये गए बयान के मुताबिक पाँच देशों ने संयुक्त तौर पर एक आतंकवाद विरोधी रणनीति का मसौदा तैयार किया है, जिसे आगामी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान अनुमोदन के लिये प्रस्तुत किया जाएगा।
  • आतंकवाद विरोधी रणनीति का यह मसौदा ब्रिक्स देशों के बुनियादी पहलुओं जैसे- आंतरिक मामलों में संप्रभुता और गैर-हस्तक्षेपता का सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय कानून का अनुपालन और सुरक्षा मामलों में संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका की मान्यता आदि को प्रतिबिंबित करता है।

क्या है ब्रिक्स?BRICS

  • ब्रिक्स (BRICS) दुनिया की पाँच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
  • ब्रिक्स कोई अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन नहीं है, न ही यह किसी संधि के तहत स्थापित हुआ है। इसे बस पाँच देशों का एकीकृत प्लेटफॉर्म कहा जा सकता है।
  • ब्रिक्स देशों की जनसंख्या दुनिया की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत है और इसका वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत है।
  • इसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक इंजन के रूप में देखा जाता है और यह एक उभरता हुआ निवेश बाज़ार तथा वैश्विक शक्ति है।
  • असल में इसकी शुरुआत सबसे पहले वर्ष 2001 में हुई थी, जब ब्रिटिश अर्थशास्त्री  जिम ओ’ नील ने ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये ’BRIC’ शब्द का प्रयोग किया था। दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया और तब से इसे ‘ब्रिक्स’ कहा जाने लगा।

आगे की राह

  • ध्यातव्य है कि आतंकवाद भारत के लिये एक बड़ा खतरा है और यदि आगामी शिखर सम्मेलन में आतंकवाद विरोधी रणनीति का मसौदा ब्रिक्स सदस्यों देश द्वारा अपनाया जाता है, तो यह भारत के लिये आतंकवाद से मुकाबला करने में काफी मददगार साबित होगा। 
  • यद्यपि लद्दाख में भारत-चीन गतिरोध पर भारत और चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) के बीच कोई चर्चा नहीं की गई, किंतु ब्रिक्स दोनों देशों के लिये कूटनीतिक दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण मंच हो सकता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक प्रक्रिया का पुनर्जीवन

प्रिलिम्स के  लिये

‘मिट्टी के बर्तन बनाने का काम’, ‘मधुमक्खी पालन गतिविधि’ योजना 

मेन्स के लिये

मिट्टी के बर्तन निर्माण कला विकसित करने के उपाय, मधुमक्खी पालन योजना में किये गए उपाय 

चर्चा में क्यों? 

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे निचले स्तर पर औद्योगिक प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने के लिये प्रयासरत है। कुछ समय पूर्व MSME मंत्रालय ने अगरबत्ती निर्माण में रुचि रखने वाले कारीगरों के लिये आर्थिक सहायता में वृद्धि कर इसे दोगुना करने की घोषणा की थी। इसी क्रम में मंत्रालय ने दो और योजनाओं- ‘मिट्टी के बर्तन बनाने का काम (Pottery Activity)’ और 'मधुमक्खी पालन गतिविधि' के संदर्भ में दिशा निर्देश जारी किये हैं। 

प्रमुख बिंदु:

मिट्टी के बर्तन निर्माण 

मिट्टी के बर्तन निर्माण कार्य के लिये सरकार चॉक, क्ले ब्लेंजर और ग्रेनुलेटर जैसे उपकरणों की सहायता प्रदान करेगी। इसके अलावा स्वयं सहायता समूहों (पारंपरिक तथा गैर-पारंपरिक बर्तन कारीगर) के लिये व्हील पॉटरी, प्रेस पॉटरी और जिगर जॉली पॉटरी निर्माण के लिये प्रशिक्षण की सुविधा भी प्रदान की जाएगी।

उद्देश्य

  • उत्पादन में वृद्धि करने के लिये मिट्टी के बर्तनों के कारीगरों के तकनीकी ज्ञान में वृद्धि करना और कम लागत पर नवीन उत्पादों का विकास करना।
  • प्रशिक्षण और आधुनिक/स्वचालित उपकरणों के माध्यम से मिट्टी के बर्तनों के कारीगरों की आय में वृद्धि, बर्तनों के नवीन डिज़ाइन तैयार करने तथा मिट्टी के सजावटी उत्पाद बनाने के लिये स्वयं सहायता समूहों के कारीगरों को कौशल विकास की सुविधा प्रदान करना।
  • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन योजना (Prime Ministers Employment Generation Programme-PMEGP) के अंतर्गत इकाई स्थापित करने के लिये पारंपरिक रूप से मिट्टी के बर्तन निर्माण करने वाले कारीगरों को प्रोत्साहित करना। 
  • निर्यात और बड़ी खरीदार कंपनियों के साथ संबंध स्थापित करके आवश्यक बाज़ार संपर्क विकसित करने के साथ ही देश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मिट्टी के बर्तन बनाने के लिये नए उत्पाद और नए तरह के कच्चे माल की व्यवस्था करना।  
  • मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों को शीशे के बर्तन बनाने में भी दक्षता प्रदान करना और मास्टर प्रशिक्षक के रूप में काम करने की इच्छा रखने वाले बर्तन निर्माण के कुशल कारीगरों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करवाना। 

 कला विकसित करने के लिये उपाय

  • मिट्टी के बर्तन निर्माण में शामिल स्वयं सहायता समूहों के कारीगरों के लिये बगीचों में रखे  जाने वाले गमले, खाना पकाने वाले बर्तन, कुल्हड़, पानी की बोतलें, सजावटी उत्पाद जैसे उत्पादों पर केंद्रित कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करवाना।
  • नई योजना का मुख्य बल उत्पाद की मात्रात्मक और गुणात्मक वृद्धि करने तथा उत्पादन की लागत को कम करने के लिये बर्तनों के कारीगरों की तकनीकी दक्षता तथा उनके द्वारा स्थापित भट्टियों की क्षमता में वृद्धि करने पर है।
  • इस योजना से मिट्टी के बर्तनों के कुल 6,075 पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कारीगर/ग्रामीण गैर-नियोजित युवा/प्रवासी मज़दूर लाभान्वित होंगे।
  • MGIRI, वर्धा; CGCRI, खुर्जा; VNIT, नागपुर और उपयुक्त आईआईटी/एनआईटी/एनआईएफटी आदि के मिलकर साथ 6,075 कारीगरों की मदद तथा तथा उत्पाद विकास, अग्रिम कौशल कार्यक्रम और उत्पादों के गुणवत्ता मानकीकरण पर वर्ष 2020-21 के लिये वित्तीय सहायता के रूप में  19.50 करोड़ रुपए  की राशि खर्च की जाएगी।
  • मंत्रालय की स्फूर्ति (Scheme of Fund for Regeneration of Traditional Industries-SFURTI)  योजना के अंतर्गत टेराकोटा और लाल मिट्टी के बर्तनों के निर्मांण करने, पॉटरी से क्रॉकरी बनाने की क्षमता विकसित करने तथा टाइल सहित अन्य नवीन मूल्यवर्द्धित उत्पादों के निर्माण के लिये क्लस्टर्स विकसित किये जाएंगे। इसके लिये 50 करोड़ रूपए का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है।

मधुमक्खी पालन गतिविधि

‘मधुमक्खी पालन गतिविधि'  योजना के अंतर्गत सरकार ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोज़गार योजना’ के तहत मधुमक्खी के बक्से, टूल किट आदि की सहायता प्रदान करेगी। लाभार्थियों को निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार 5 दिनों का मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण भी विभिन्न प्रशिक्षण केंद्रों/राज्य मधुमक्खी पालन विस्तार केंद्रों/मास्टर ट्रेनरों के माध्यम से प्रदान किया जाएगा।

उद्देश्य

  • मधुमक्खी पालकों/किसानों के लिये स्थायी रोज़गार पैदा कर मधुमक्खी पालकों/किसानों के लिये पूरक आय प्रदान करना।
  • शहद और शहद से बने उत्पादों के बारे में जागरूकता पैदा करना तथा कारीगरों को मधुमक्खी पालन एवं प्रबंधन के वैज्ञानिक तरीके अपनाने में सहायता करना।
  • मधुमक्खी पालन में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना और मधुमक्खी पालन गतिविधि में परागण के लाभों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना। 
  • मंत्रालय के अनुसार,  इस योजना के अंतर्गत अतिरिक्त आय के स्रोत सृजित करने के अलावा, इसका अंतिम उद्देश्य देश को इन उत्पादों के संदर्भ में आत्मनिर्भर बनाना है।

मधुमक्खी पालन योजना में किये गए उपाय 

  • कारीगरों की आय में वृद्धि करने के उदेश्य से प्रस्तावित शहद उत्पादों के लिये अतिरिक्त मूल्य की व्यवस्था करना और मधुमक्खी पालन तथा प्रबंधन के लिये वैज्ञानिक उपायों को अपनाने की सुविधा प्रदान करना।
  • शहद आधारित उत्पादों की निर्यात वृद्धि में सहायता करना।
  • वर्ष 2020-21 के दौरान योजना में प्रस्तावित तौर पर जुड़ने वाले 2050 मधुमक्खी पालक/उद्यमी/किसान/ बेरोज़गार युवा/आदिवासी इन परियोजनाओं/कार्यक्रमों से लाभान्वित होंगे। 
  • इसके लिये 2050 कारीगरों (स्वयं सहायता समूहों के 1,250 व्यक्ति और 800 प्रवासी कामगारों) को सहायता देने के लिये वर्ष 2020-21 के दौरान 13 करोड़ रुपये के वित्तीय समर्थन का प्रावधान किया गया है।
  • साथ ही CSIR/आईआईटी या अन्य शीर्ष स्तर के संस्थानों के साथ मिलकर सेंटर फॉर एक्सीलेंस (Centre of Excellence-CoE) शहद आधारित नए मूल्यवर्द्धित उत्पादों का विकास करेगा।
  • मंत्रालय की ‘SFURTI’ योजना’ के अंतर्गत हनी क्लस्टर्स के विकास के लिये अतिरिक्त 50 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

निष्कर्ष  

इन दोनों कार्यक्रमों से देश में खपत की जाने वाली इन वस्तुओं/सामानों की घरेलू स्तर पर ही आपूर्ति होने से ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के क्रम में सहायता मिलेगी। प्रशिक्षण, कच्चे माल की आपूर्ति, विपणन और वित्तीय समर्थन के माध्यम से कारीगरों को सहयोग देने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कारीगर, स्वयं सहायता समूह और ‘प्रवासी कामगार’ लाभान्वित होंगे। ये कार्यक्रम स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसरों में वृद्धि के अलावा उत्पादों के ‘निर्यात बाज़ार’ विकास में भी सहायक  सिद्ध होंगे।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

बड़े ब्लैक होल की जाँच करने का एक नया तरीका

प्रिलिम्स के लिये

ज्वारीय विघटन घटना, अभिवृद्धि डिस्क/चक्र

मेन्स के लिये

भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित अन्वेषण एवं तकनीकी विकास 

चर्चा में क्यों?

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics) के वैज्ञानिकों ने बहुत बड़े ब्लैक होल की जाँच करने का एक नया तरीका खोजा है, जिससे उसके द्रव्यमान एवं घूर्णन जैसी विशेषताओं का पता लगाकर यह पता लगाया जा सके कि वे तारों को कैसे भेदते हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • जाँच मॉडल:
    • वैज्ञानिकों ने एक मॉडल तैयार किया है जिससे ब्लैक होल के द्रव्यमान एवं घूर्णन के बारे में जानकारी हासिल कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कुछ ब्लैक होल बड़ी आकाशगंगाओं के केंद्र में पाए जाने वाले उच्च गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में खगोलीय पिंडों के आसपास आने पर तारों को कैसे भेदते हैं।
  • ज्वारीय विघटन घटना (Tidal Disruption Events- TDE): 
    • अधिकांश ब्लैक होल अलग-थलग होते हैं जिससे उनका अध्ययन करना असंभव होता है। खगोलविद् इन ब्लैक होल के आसपास के तारों एवं गैस पर प्रभावों को देखकर उनका अध्ययन करते हैं। 
    • जब ब्लैक होल का ज्वारीय गुरुत्त्वाकर्षण तारों के अपने गुरुत्वाकर्षण से अधिक हो जाता है तो तारे विघटित हो जाते हैं और इस घटना को ज्वारीय विघटन घटना (Tidal Disruption Events) कहा जाता है।
  • बड़े ब्लैक होल अपनी गुरुत्वाकर्षण क्षमता के भीतर परिक्रमा करने वाले तारों की गति को नियंत्रित करते हैं और उनकी ज्वारीय शक्तियाँ उनके आसपास आने वाले तारों को अलग या भेद सकती हैं।
  • भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के वैज्ञानिक जो पहले विघटन की दर एवं उसके आँकड़ों की गणना कर चुके थे, उन्होंने अपने नए अध्ययन में एक दिये गए तारकीय विघटन घटना (Stellar Disruption Event) के अवलोकन पर ध्यान केंद्रित किया और ब्लैक होल द्रव्यमान, तारों का द्रव्यमान और तारे की कक्षा के निकटतम दृष्टिकोण बिंदु का अनुमान लगाया।
  • शोधकर्त्ताओं ने ज्वारीय विघटन घटना (Tidal Disruption Events) में अभिवृद्धि एवं बहिर्वाह की गतिशीलता का एक विस्तृत अर्द्ध-विश्लेषणात्मक मॉडल विकसित किया।  उनका यह शोध न्यू एस्ट्रोनॉमी- 2020 (New Astronomy- 2020) में प्रकाशित हुआ था।

अभिवृद्धि डिस्क (Accretion Disk) का निर्माण:

  • एक आकाशगंगा में तारों को नियंत्रित कर लाखों वर्षों में लगभग कई बार भेदा जाता है। बाधित मलबा केप्लरियन कक्षा (Keplerian Orbit) का अनुसरण करता है और यह समय के साथ घटने वाली द्रव्यमान दर में गिरावट के साथ लौटता है। 
  • अतिक्रमण करने वाले मलबे का बाहरी मलबे से संपर्क होता है जिसके परिणामस्वरूप गोलाकार (Circularization) और एक अभिवृद्धि डिस्क का निर्माण होता है। 
    • अभिवृद्धि डिस्क, ब्लैक होल के अंदर जाने से पहले ब्लैक होल के बाहर पदार्थ का अस्थायी संचयन है। यह एक्स-रे से विभिन्न वर्णक्रमीय बैंडों (Spectral Bands) से निकलने वाला प्रकाश है जिसमें ऑप्टिकल से लेकर अवरक्त तरंगदैर्ध्य तक का विकिरण होता है।
  • अभिवृद्धि डिस्क/चक्र किसी बड़ी खगोलीय वस्तु के इर्द-गिर्द बहुत तेज़ी से परिक्रमा कर रहे ब्रह्माण्ड के सबसे चमकीले पदार्थों का समूह होता है। अप्रैल 2019 में इवेंट होराइज़न टेलीस्कोप (Event Horizen Telescope) द्वारा ली गई तस्वीर में ब्लैक होल के चारों ओर एक धुँधला प्रभामंडल (Halo) दिखाई दिया जिसे अभिवृद्धि डिस्क/चक्र कहा गया।
  • अभिवृद्धि चक्र लगभग हमेशा ब्लैक होल के अभिविन्यास के कोण (जिसे ब्लैक होल के भूमध्यरेखीय तल के रूप में भी जाना जाता है) पर झुका होता है।

इस मॉडल का मुख्य विशेषताएँ:

  • इस मॉडल का मुख्य आकर्षण सभी आवश्यक तत्वों का समावेश है जिनमें अभिवृद्धि, फॉल बैक एवं हवा, स्व-निरंतरता (Self-consistently) शामिल हैं जो एक सूत्रीकरण में संख्यात्मक रूप से तेज़ी से क्रियान्वित होता है और पहले की स्थिर संरचना अभिवृद्धि मॉडल की तुलना में निगरानी के लिये अच्छा है।
  • यह समय-निर्भर मॉडल, प्रकाश का अनुकरण करता है जो ज्वारीय विघटन के लिये तारों को नियंत्रित करने की दर, ब्लैक होल डेमोग्राफिक्स (ब्रह्माण्ड में ब्लैक होल का संख्या वितरण) और सर्वेक्षण मिशन के साधन विनिर्देश के साथ विघटन की अपेक्षित दर का परिणाम देता है।
    • अवलोकन से पता लगाने की दर के साथ अपेक्षित पहचान दर की तुलना करके कोई ब्लैक होल डेमोग्राफिक्स की जाँच कर सकता है।
  • प्रेक्षणों के अनुरूप तारे एवं ब्लैक होल के मानदंड मिलते हैं जो सांख्यिकीय अध्ययन के लिये उपयोगी होते हैं और ब्लैक होल डेमोग्राफिक्स का निर्माण करते हैं।

महत्त्व: 

  • इस मॉडल के द्वारा तारे के ज्वारीय विघटन के बाद उसका अवलोकन किया जा सकता है और यह ब्लैक होल द्रव्यमान एवं तारकीय द्रव्यमान (Stellar Mass) के मूल्यवान आँकड़ों के निर्माण के अलावा भौतिकी के बारे में हमारी समझ का विस्तार करने में मदद करेगा।
  • ज्वारीय विघटन की घटनाएँ महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी हैं जो अर्द्ध-आकाशगंगाओं में बड़े ब्लैक होल के द्रव्यमान का पता लगाने एवं भविष्यवाणी करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, अतिक्रमण करने वाला मलबा एक मूल अभिवृद्धि डिस्क का निर्माण करता है जो ब्लैक होल एवं वायु से बड़े पैमाने पर नुकसान के कारण विकसित होता है किंतु मलबे के गिरने से बड़े पैमाने पर लाभ होता है।

स्रोत: पीआईबी  


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