प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 18 Sep, 2018
  • 27 min read
शासन व्यवस्था

वैवाहिक बलात्कार की वैधानिकता पर दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने वैवाहिक जीवन को लेकर महत्त्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि शादी का मतलब यह नहीं कि कोई महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिये हमेशा राज़ी हो और अपना शरीर पति को सौंप दे| साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ज़रूरी नहीं कि बलात्कार के लिये बल प्रयोग ही किया जाए यह किसी भी तरह का दबाव बनाकर किया जा सकता है|

प्रमुख बिंदु 

  • कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की एक खंडपीठ का यह निर्णय तब आया जब पुरुषों के समूह द्वारा संचालित एक गैर-सरकारी संगठन ने तर्क दिया कि विवाहित महिलाओं को अपने पतियों द्वारा यौन हिंसा के खिलाफ कानून के तहत पर्याप्त सुरक्षा दी गई है।
  • एनजीओ ने दावा किया कि यौन उत्पीड़न में  बल प्रयोग या भय उत्पन्न करना अपराध के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं| खंडपीठ ने कहा, "बलात्कार, बलात्कार होता है, क्या ऐसा है कि आप विवाहित हैं, तो यह ठीक है लेकिन यदि आप नहीं हैं, तो यह बलात्कार है?
  • अदालत ने कहा, आईपीसी की धारा 375 के तहत इसे अपवाद क्यों होना चाहिये? बल प्रयोग बलात्कार के लिये एक पूर्व शर्त नहीं है।
  • धारा 375 के अपवाद में कहा गया है कि एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी जिसकी उम्र 15 साल से कम नहीं है के साथ, संबंध बनाना बलात्कार नहीं है|
  • न्यायालय ने कहा, इन दिनों बलात्कार की परिभाषा बदल गई है| पति के द्वारा बलात्कार में यह ज़रूरी नहीं है कि इसके लिये बल प्रयोग किया जाए| यह आर्थिक ज़रुरत, बच्चों और घर की अन्य ज़रूरतों के नाम पर दबाव बनाकर भी किया जा सकता है|
  • यदि महिला ऐसे आरोप लगाकर अपने पति के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करती है तो क्या होगा?

धारा 375 की वैधानिकता को चुनौती 

  • अदालत वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है  जिसका विरोध एनजीओ, मेन कल्याण ट्रस्ट द्वारा किया गया है जिसने दावा किया है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करना बलात्कार नहीं है और यह "असंवैधानिक भी नहीं है" इसे ख़ारिज करने से अन्यायपूर्ण स्थिति पैदा होगी।
  • मेन वेलफेयर ट्रस्ट, एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन तथा एक वैवाहिक बलात्कार पीड़ित द्वारा दायर याचिकाओं का विरोध कर रहा है, जिसने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार की परिभाषा) की संवैधानिकता को चुनौती दी है और कहा है कि यह पतियों द्वारा विवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को प्रदर्शित करता है| 
  • खंडपीठ ने ट्रस्ट के उन प्रतिनिधियों के समक्ष  विभिन्न प्रश्न उठाए, जिन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप किया था और पूछा कि क्या उनका कहना है कि पति  अपनी पत्नी पर संबंध के लिये दबाव डाल सकता है? इसके जवाब में एनजीओ ने  नकारात्मक जवाब दिया| घरेलू हिंसा कानून, विवाहित महिला को घरेलू हिंसा,  अप्राकृतिक संबंध तथा यौन उत्पीड़न के विरुद्ध पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है।
  • हालाँकि, पतियों को ऐसी कोई सुरक्षा नहीं दी जाती है क्योंकि भारत में कानून लिंग विशिष्ट है| 
  • वहीं, केंद्र ने भी मुख्य याचिकाओं का विरोध किया है कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक कृत्य नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने के लिये एक आसान साधन बन सकती है।

इस बारे में और अधिक जानकारी के लिये इन लिंक्स पर क्लिक करें:

धारा 375 का अपवाद (2) असंवैधानिक करार
पत्नी के साथ यौनाचार, बलात्कार नहीं: सुप्रीम कोर्ट


कृषि

स्थानांतरित कृषि पर स्पष्ट नीति हेतु नीति आयोग की पहल

चर्चा में क्यों?

विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में की जाने वाली स्थानांतरित कृषि पर हाल ही में नीति आयोग के प्रकाशन में सिफारिश की गई है कि कृषि मंत्रालय को अंतर-मंत्रालयी अभिसरण सुनिश्चित करने के लिये "स्थानांतरित कृषि पर मिशन" के लिये प्रयास करना चाहिये।

प्रमुख बिंदु

  • ‘स्थानांतरित कृषि पर मिशन: एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की ओर’ नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि “केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार के वन और पर्यावरण विभागों, कृषि तथा संबद्ध विभागों का अक्सर स्थानांतरित कृषि के लिये अलग-अलग दृष्टिकोण होता है और यह ज़मीनी स्तर के श्रमिकों और झूम कृषकों के बीच भ्रम पैदा करता है।”
  • समेकित नीति की मांग करने वाले इस दस्तावेज़ के अनुसार, स्थानांतरित कृषि के लिये उपयोग की जाने वाली भूमि को "कृषि भूमि" के रूप में पहचाना जाना चाहिये जहाँ किसान जंगल भूमि की बजाय खाद्य उत्पादन के लिये कृषि-वानिकी का अभ्यास करते हैं।

कम होता क्षेत्र

  • स्थानीय तौर पर झूम खेती के रूप में प्रचलित इस प्रणाली को अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिज़ोरम, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर जैसे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पर्याप्त जनसंख्या के लिये खाद्य उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण आधार माना जाता है।
  • इस प्रकाशन में कहा गया है कि वर्ष 2000 से 2010 के बीच स्थानांतरित कृषि के तहत भूमि में 70% की कमी आई। यह रिपोर्ट सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा सांख्यिकीय वर्ष पुस्तक -2014 में प्रकाशित भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद के आँकड़ों का उल्लेख करती है। इसके अनुसार, वर्ष 2000 में 35,142 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र झूम कृषि के तहत था जो वर्ष 2010 में कम होकर 10,306 वर्ग किलोमीटर रह गया।
  • इन आँकड़ों की सत्यता और बेहतर डेटा संग्रह की पुष्टि करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है, "वेस्टलैंड एटलस मैप दो वर्षों में उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थानांतरित कृषि में 16,18 वर्ग किमी की तुलना में 8,771.62 वर्ग किमी तक की कमी प्रदर्शित करता है।"

खाद्य सुरक्षा

  • स्थानांतरित कृषि प्रणाली अपनाने वाले समुदायों की आकांक्षाओं में वृद्धि हुई है। जबकि स्थानांतरित कृषि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है, यह परिवारों को पर्याप्त नकदी प्रदान नहीं करती है और इस प्रकार वे नियमित कृषि, विशेष रूप से बागवानी की ओर रूख कर रहे हैं। मनरेगा ने भी स्थानांतरित कृषि पर लोगों की बढ़ती निर्भरता को कम करने में प्रभाव डाला है।
  • अनाज और अन्य बुनियादी खाद्य पदार्थों तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को विस्तारित करके संक्रमण और परिवर्तन के दौरान झूम कृषि में शामिल समुदायों के खाद्य और पोषण सुरक्षा के मुद्दे पर भी इस रिपोर्ट में चर्चा की गई है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है, "यह कार्य पूर्वोत्तर राज्यों में पहले से स्थापित और अच्छी तरह से प्रदर्शन करने वाले स्वयं सहायता समूहों के संघों को स्थापित करके किया जा सकता है।"
  • पहले झूम कृषक परती भूमि पर 10-12 साल बाद लौटते थे, अब वे 3-5 साल में लौट रहे हैं। इसने मिट्टी की गुणवत्ता पर असर डाला है।
  • इस प्रकाशन ने यह भी सुझाव दिया कि स्थानांतरित कृषि की परती भूमि को कानूनी मान्यता दी जानी चाहिये और इसे परती पुनरुद्धार के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये तथा साख सुविधाओं को उन लोगों तक विस्तारित किया जाना चाहिये जो कि स्थानांतरित कृषि करते हैं।

स्थानांतरित कृषि या झूम कृषि क्या है?

  • झूम कृषि के तहत पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है| इसके बाद साफ की गई भूमि की पुराने उपकरणों (लकड़ी के हलों आदि) से जुताई करके बीज बो दिये जाते हैं। फसल पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर होती है और उत्पादन बहुत कम हो पाता है।
  • कुछ वर्षों (प्रायः दो या तीन वर्ष) तक जब तक मृदा में उर्वरता बनी रहती है, इस भूमि पर खेती की जाती है। इसके पश्चात् इस भूमि को छोड़ दिया जाता है, जिस पर पुनः पेड़-पौधे उग आते हैं। अब अन्यत्र वन भूमि को साफ करके कृषि के लिये नई भूमि प्राप्त की जाती है और उस पर भी कुछ ही वर्ष तक खेती की जाती है। इस प्रकार झूम कृषि स्थानानंतरणशील कृषि है, जिसमें थोड़े-थोड़े समयांतराल पर खेत बदलते रहते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकार ने तीन सार्वजनिक बैंकों के विलय का लिया फैसला

चर्चा में क्यों?

हाल में वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के तीन बड़े बैंकों देना बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा तथा विजया बैंक के विलय का फैसला लिया। इन बैंकों के विलय के साथ ही देश का तीसरा बड़ा बैंक अस्तित्व में आ जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • सरकार के इस फैसले का उद्देश्य एक ऐसे बड़े बैंक की स्थापना करना है जो टिकाऊ हो तथा उसकी ऋण क्षमता बहुत अधिक हो।
  • यह निर्णय एक वैकल्पिक तंत्र जिसका गठन सरकार ने अक्तूबर, 2017 में राज्य संचालित बैंकों के विलय संबंधी प्रस्तावों को मंज़ूरी प्रदान करने के लिये किया था, की बैठक में लिया गया।
  • अनुमानतः इन बैंकों का संयुक्त व्यापार 14.82 लाख करोड़ रुपए का होगा।
  • यह निर्णय बैंकों की क़र्ज़ देने की क्षमता बढ़ाने, बैंकिंग प्रणाली को दुरुस्त करने तथा आर्थिक वृद्धि को गति देने के सरकार के प्रयासों का हिस्सा है।
  • विलय के बाद भी ये बैंक स्वतंत्र रूप से कार्य करते रहेंगे।
  • उल्लेखनीय है कि देना बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई ढाँचे के तहत ऋण देने से प्रतिबंधित किया गया है, शेष दो बैंकों में से केवल विजया बैंक ने 2017-18 में लाभ प्रदर्शित किया था।

पूर्व में भी हुआ बैंकों का विलय

  • वर्ष 2017 में भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी पाँच अनुषंगी (subsidiary) इकाइयों का स्वयं में विलय किया था इसके अलावा, महिलाओं के लिये गठित भारतीय महिला बैंक का भी विलय किया गया था।

विलय प्रक्रिया

  • इस विलय प्रस्ताव को पहले तीनों बैंकों के निदेशकों से मंज़ूरी मिलना आवश्यक है।
  • निदेशकों की मंज़ूरी के बाद सरकार इन बैंकों के एकीकरण की संपूर्ण योजना तैयार करेगी।
  • सरकार द्वारा तैयार योजना को सबसे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल और उसके बाद संसद की मंज़ूरी मिलना आवश्यक है।

विलय से होने वाले लाभ

  • वित्त मंत्रालय के अनुसार, विलय से ये बैंक मज़बूत होंगे तथा इनकी क़र्ज़ देने की क्षमता में भी वृद्धि होगी।
  • बैंकिंग गतिविधियों में वृद्धि तथा बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार होगा।
  • बैंकों की संख्या कम होगी और उन्हें बेहतर तरीके से पूंजी उपलब्ध कराई जा सकेगी जिसके परिणामस्वरूप ये बैंक निजी क्षेत्र के बैंकों से प्रतिस्पर्द्धा कर सकेंगे।
  • परिचालन दक्षता और ग्राहकों को दी जाने वाली सेवा बेहतर होगी।

इन तीन बैंकों का ही चयन क्यों किया गया?

  • इन तीन बैंकों को विलय के लिये चुने जाने के पीछे निहित कारणों में से एक कारण यह हो सकता है कि ये तीनों बैंक एक ही कोर बैंकिंग प्रणाली का उपयोग करते हैं, जो प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्मों और बैक-एंड का विलय करने के कार्य को अपेक्षाकृत आसान बनाता है।

आगे की राह

  • तीनों बैंकों में से प्रत्येक के व्यक्तिगत बोर्ड को इस विलय को मंज़ूरी देनी होगी। यह भी देखना होगा कि क्या यह विलय बैड लोन के भारी दबाव को खत्म करने में प्रभावी होगा जो वर्तमान में लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रदर्शन में कमी को दर्शाता है। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (जो NPA या बैड लोन की समस्या से ग्रस्त हैं) के लिये समान रणनीति का विस्तार करेगी।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विश्व आर्थिक मंच ने जारी की ‘द फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2018’ रिपोर्ट

चर्चा में क्यों

तकनीकी में उन्नयन और नवाचार के साथ ही मानव कौशल से जुड़े कामों में मशीनों की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है। हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट ‘द फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2018’ में यह दावा किया गया है कि 2025 तक आधे से अधिक नौकरियों पर मशीनों का कब्ज़ा होगा। स्वचालित रोबोटों के इस्तेमाल से काम का स्वरुप तथा मानव श्रम का तरीका भी बदल जाएगा। विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने कामों के मशीनीकरण की रफ़्तार तथा उसमें आने वाले बदलाव का विश्लेषण करते हुए यह अनुमान लगाया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • ‘द फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2018’ रिपोर्ट में उद्योग क्षेत्रों की विस्तृत श्रृंखला से 300 से अधिक वैश्विक कंपनियों को शामिल किया गया है।
  • इस सर्वे में 1.5 करोड़ से अधिक कर्मचारी और 20 विकसित तथा उभरती अर्थव्यवस्थाएँ शामिल थीं जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 70 प्रतिशत धारण करती हैं।
  • वर्तमान में कुल कार्य का 71 फ़ीसदी हिस्सा मानव श्रम द्वारा होता है।
  • 2022 तक आते-आते यह हिस्सा 58 तक रह जाएगा, वहीं 2025 तक यह हिस्सेदारी 48 पर सिमट जाएगी।
  • विश्व आर्थिक मंच ने अपनी रिपोर्ट ‘द फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2018’ में यह दावा किया है।
  • नौकरियों में व्यापक स्तर पर छटनी किये जाने के बावजूद कंप्यूटर प्रोग्राम वाली मशीनें, रोबोट मानव रोज़गार पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
  • चूँकि इसी रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि रोबोट क्रांति यानी ऑटोमेशन की इस प्रक्रिया के दौरान अगले पाँच सालों में 5 करोड़ 80 लाख नई नौकरियों का सृजन होगा।

चुनौतियाँ क्या हैं?

  • एक तरफ रोज़गार के अवसरों में सकारात्मक वृद्धि होने का अनुमान है तो वहीं दूसरी तरफ, इससे मानव श्रम की नई भूमिकाओं की गुणवत्ता, स्थान, स्वरुप और स्थायित्व में महत्त्वपूर्ण बदलाव आएंगे।
  • कंप्यूटर प्रोग्राम वाली मशीनों, रोबोटों की गति के साथ तालमेल बिठाते हुए मानव श्रम के कौशल को निखारना होगा।
  • यह वाकई आलोचनात्मक है कि ज़्यादातर उद्योग अपने मौजूदा मानव संसाधन के कौशल को विकसित करने में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते हैं।
  • ऐसे उद्योग जो गतिशील, औरों से अलग तथा प्रतिस्पर्द्धी बने रहना चाहते हैं उन्हें अपने मानव संसाधनों में भी निवेश करना ही होगा।
  • मशीनी औद्योगिक क्रांति के इस चरण में मानव संसाधन में निवेश करना आर्थिक तथा नैतिक आधारों पर अनिवार्य है।

आगे की राह

सबसे पहले हमें रोबोट क्रांति के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभावों के संबंध में एक समग्र अध्ययन करना होगा। लेकिन एक ही दशक में मध्य देश का एक बड़ा तबका नौकरियों से हाथ धो बैठेगा। अतः ऑटोमेशन को लेकर सरकार को सतर्क रहना होगा।  मशीनीकरण के माध्यम से आए बदलावों से सर्वाधिक प्रभावित वे समूह होते हैं जो अपने कौशल क्षमता में निश्चित समय के भीतर आवश्यक सुधार लाने में असमर्थ होते हैं। अतः सरकार तथा उद्योगों को चाहिये कि ऐसे लोगों को प्रशिक्षण के लिये पर्याप्त समय के साथ-साथ संसाधन भी उपलब्ध कराए।  तकनीकों के इस बदलते दौर में ज़रूरत इस बात की है कि विशेषज्ञतापूर्ण कार्यों के लिये लोगों को कौशल प्रशिक्षण दिया जाए और इसके लिये अवसंरचना का भी विकास किया जाए।


प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स 18 सितंबर 2018

उज़्बेक मकोम फोरम

प्राच्य मकोम कला को व्यापक रूप से बढ़ावा देने, युवा पीढ़ी के बीच इसकी स्वीकृति दिलवाने और राष्ट्रीय शास्त्रीय संगीत में रुचि बढ़ाने के उद्देश्य के साथ इस इंटरनेशनल फोरम का आयोजन उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्जियॉयव की पहल पर किया गया है।

  • मकोम पूरे एशिया में तार और आघात वाद्य यंत्रों द्वारा बजाई जाने वाली संगीत की प्राच्य प्रणाली है।
  • भारत के उस्ताद इकबाल अहमद खान को एकल श्रेणी में उनके प्रदर्शन के लिये द्वितीय पुरस्कार दिया गया।
  • भारतीय शास्त्रीय संगीत की 50 से अधिक वर्षों से सेवा करने वाले, दिल्ली घराना के गायक उस्ताद इकबाल अहमद खान अपनी बहुमुखी प्रतिभा और मुखर अभिव्यक्ति के लिये जाने जाते हैं।
  • ख्याल, ठुमरी, दादरा, भजन, गज़ल जैसी संगीत की कई विधाओं में विशेषज्ञता उनकी सीमा को व्यापक बनाती है। शास्त्रीय गायन की उनकी शैली ने उन्हें बेहद सम्मान और प्रशंसा दिलवाई है।
  • वह शास्त्रीय संगीत में अपने योगदान के लिये संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं, जिसे भारतीय संगीत के दिल्ली घराने के खलीफा या प्रमुख के रूप में जाना जाता है।
  • उज़्बेकिस्तान में पहली बार मकोम आर्ट के इंटरनेशनल फोरम का आयोजन किया गया है। यह कार्यक्रम हर दो साल में आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम के समन्वय की ज़िम्मेदारी उज़्बेकिस्तान के संस्कृति मंत्रालय और अन्य हितधारकों के हाथों में है।
  • यह फोरम यूनेस्को के संरक्षण में आयोजित किया गया है।

फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (Financial Action Task Force)

फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ पाकिस्तान की हालिया कार्रवाई को, खासतौर पर "कानूनी" मोर्चे पर (जैसे परिसंपत्तियों को ज़ब्त करना, वित्त की ज़ब्ती, आतंकवादी समूह के बुनियादी ढाँचे को नष्ट करना इत्यादि) असंतोषजनक पाया है। 

फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स

  • फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स वर्ष 1989 में जी-7 की पहल पर स्थापित एक अंतः सरकारी संस्था है।
  • इसका उद्देश्य ‘टेरर फंडिंग’, ‘ड्रग्स तस्करी’ और ‘हवाला कारोबार’ पर नज़र रखना है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स?

  • फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स किसी देश को निगरानी सूची में डाल सकती है और उसके बावजूद कार्रवाई न होने पर उसे ‘खतरनाक देश’ घोषित कर सकती है।
  • उत्तर कोरिया, ईरान और युगांडा को भी इस सूची में डाला गया है।
  • उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग सिस्टम और अमेरिका जैसे देश इसकी रिपोर्ट का कड़ाई से पालन करते हैं।

भारत पर्यटन मार्ट

17 सितंबर, 2018 को भारत के पहले पर्यटन मार्ट (India Tourism Mart- ITM 2018) की शुरुआत की गई।

  • ‘भारत पर्यटन मार्ट’ का आयोजन पर्यटन मंत्रालय राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों तथा भारतीय पर्यटन व अतिथि सत्कार परिसंघ (FAITH) के सहयोग से कर रहा है। ITM 2018 में विश्‍व भर, जैसे कि उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, पूर्वी एशिया, लैटिन अमेरिका, कॉमनवेल्थ देशों इत्‍यादि से लगभग 225 मेज़बान अंतर्राष्‍ट्रीय खरीदार एवं मीडियाकर्मी भाग ले रहे हैं।
  • इस आयोजन से पर्यटन व अतिथि सत्कार से जुड़े सभी हितधारकों को विचार-विमर्श करने का मौका मिलेगा और उन्हें व्यापार से जुड़े अवसरों की जानकारी मिलेगी।
  • ITM 2018 के माध्यम से भारत पूरे विश्व, खासकर चीन, लैटिन अमेरिका, जापान आदि को अपने उन गंतव्यों की जानकारी दे सकता है जिनके बारे में पर्यटकों के पास जानकारी उपलब्ध नहीं होती।
शीतलता कार्ययोजना पर दस्तावेज़ तैयार करने वाला भारत पहला देश

विश्व ओज़ोन दिवस (16 सितंबर) के अवसर पर सरकार, उद्योग, उद्योग संघ और सभी हितधारकों के बीच सक्रिय सहयोग पर बल देते हुये पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शीतलता कार्ययोजना पर दस्तावेज़ जारी किया गया। उल्लेखनीय है कि भारत पहला देश है जिसने शीतलता कार्ययोजना पर दस्तावेज़ तैयार किया है। इस कार्ययोजना के प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार हैं:

  • अगले 20 वर्षों तक सभी क्षेत्रों में शीतलता से संबंधित आवश्यकताओं इससे जुड़ी माँग तथा ऊर्जा की आवश्यकता का आकलन।
  • शीतलता के लिये उपलब्ध तकनीकों की पहचान के साथ ही वैकल्पिक तकनीकों, अप्रत्यक्ष उपायों और अलग प्रकार की तकनीकों की पहचान करना।
  • सभी क्षेत्रों में गर्मी से राहत दिलाने तथा सतत् शीतलता प्रदान करने वाले उपायों के बारे सलाह देना।
  • तकनीशियनों के कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
  • घरेलू वैकल्पिक तकनीकों के विकास हेतु ‘शोध एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र’ को विकसित करना।
अंतर्राष्ट्रीय ओज़ोन दिवस के बारे में
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉलपर हस्ताक्षर होने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के अनुक्रम में 1995 के बाद से प्रतिवर्ष 16 सितंबर को ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय ओज़ोन दिवस का आयोजन किया जाता है।
  • यह आयोजन मुख्यतः ओज़ोन परत के क्षरण के बारे में लोगों को जागरूक करने और इसके बचाव हेतु संभव समाधान की खोज करने के लिये मनाया जाता है।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को इतिहास में सबसे सफल अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि के रूप में जाना जाता है।
  • वर्ष 2018 के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस की थीम “शीतलता बनाए रखो और प्रगति करो” (Keep Cool and Carry On) है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow