डेली न्यूज़ (18 Jul, 2019)



चिकित्सा के क्षेत्र में सहयोग हेतु भारत-अमेरिका समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जीवन के लिये अति महत्त्वपूर्ण औषधियों और 3D बायोप्रिंटिंग, नई प्रौद्योगिकि‍यों, वैज्ञानिक विचारों/सूचनाओं एवं प्रौद्योगिकि‍यों के आदान-प्रदान तथा वैज्ञानिक अवसंरचना के संयुक्‍त उपयोग के क्षेत्रों में भारत-अमेरीका के बीच अंतर-संस्‍थागत समझौते को मंज़ूरी दे दी है।

लाभ

  • इस समझौते के अंतर्गत वैज्ञानिकों एवं प्रौद्योगिकीविदों को संयुक्‍त अनुसंधान परियोजनाओं, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, सम्‍मेलनों, सेमिनारों आदि में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। साथ ही वैज्ञानिक योग्‍यता तथा उत्‍कृष्‍टता के आधार पर उन्‍हें आवश्यक सहयोग भी उपलब्ध कराया जाएगा।
  • जीवन के लिये अति महत्त्वपूर्ण औषधियों और 3D बायोप्रिटिंग के क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास में नई बौद्धिक संपदा, कार्यविधि, प्रोटोटाइप अथवा उत्‍पादों को विकसित किया जा सकेगा।
  • इस समझौते के अंतर्गत किये गये सामान्‍य शै‍क्षणिक आदान-प्रदान से कुछ विशेष परियोजनाओं का विस्‍तार होगा, जिनमें से प्रत्‍येक के शैक्षणिक, क्‍लीनिकल और व्‍यावसायिक प्रभाव भी हो सकते है।

प्रमुख विशेषताएँ

  • इस समझौते का उद्देश्‍य शैक्षणिक सहयोग के ज़रिये दोनों संस्‍थानों के अनुसंधान और शिक्षा के विस्‍तार में योगदान करना है।
  • साझा हित के सामान्‍य क्षेत्र जहाँ सहयोग और ज्ञान का आदान-प्रदान किया जा सकता है, उनमें शामिल हैं:
    • प्रशिक्षण, अध्‍ययन एवं अनुसंधान खासतौर से 3D बायोप्रिटिंग के क्षेत्रों के लिये विभाग/निकाय के सदस्‍यों और छात्रों का आदान-प्रदान।
    • संयुक्‍त अनुसंधान परियोजनाओं का निष्‍पादन।
    • सूचना एवं शै‍क्षणिक प्रकाशनों का आदान-प्रदान।

दोनों देशों के बीच मज़बूत एवं दीर्घकालिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आपसी लाभ को महत्त्व दिया जाना चाहिये। इसी संदर्भ में दिसंबर 2018 में भारत सरकार के विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत राष्‍ट्रीय महत्त्व के संस्‍थान श्री चित्र तिरूनल इंस्‍टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेस एंड टेक्‍नोलॉजी, तिरूवनंतपुरम और अमेरिका स्थित उत्‍तरी कैरोलिना के इंस्‍टीट्यूट फॉर रिजनरेटिव मेडिसिन की ओर से वेक फोरेस्‍ट यूनिवर्सिटी हैल्‍थ साइंसेस (Wake Forest University Health Sciences on behalf of its Institute for Regenerative Medicine-WFIRM) के बीच शैक्षणिक सहयोग हेतु एक समझौता किया गया।

स्रोत: पी.आई.बी.


महिलाओं में अंधापन/मोतियाबिंद का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय महिलाओं में लिंग विभेद तथा कुछ जैविक कारकों की वज़ह से पुरुषों की तुलना में अंधेपन (Blindness) की संभावना 35 प्रतिशत अधिक पाई जाती है।

प्रमुख बिंदु

  • ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑपथैल्मोलॉजी (British Journal of Ophthalmology) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक संदर्भ में महिलाओं में मोतियाबिंद (Cataract) बढ़ने की संभावना उनके समकक्ष पुरुषों की तुलना में 69 प्रतिशत अधिक हैं।
  • इस अनुसंधान के लिये अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टरों की एक टीम ने अंधेपन से संबंधित 22 अध्ययनों और मोतियाबिंद सर्जिकल कवरेज (Cataract Surgical Coverage-CSC) की पहुँच का विश्लेषण किया।
  • अध्ययन के अनुसार, अंधापन (35 प्रतिशत) तथा मोतियाबिंद अंधापन (33 प्रतिशत) में लिंग विभेद की प्रमुख भूमिका होती है।
  • आँखों के लेंस को पहनने तथा अधिक रोने से निकलने वाले आंसुओं के कारण मोतियाबिंद होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, मोतियाबिंद की संभावना भी बढ़ती जाती है।
  • महिलाओं के बीच CSC की कम कवरेज के कारण पुरुषों की तुलना में केवल 27 प्रतिशत महिलाओं की सर्जरी हो पाती है।
  • उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान और नाइज़ीरिया में भी इसी तरह की प्रवृत्ति देखी गई।

भारत में महिलाओं में अंधेपन तथा मोतियाबिंद के कारण

  • वर्ष 1970 के दशक में भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम (National Blindness Control Programme-NBCP) शुरू किया था, लेकिन आज भी इसके कार्यान्वयन में बड़ा अंतराल बना हुआ है। इस कार्यक्रम का लाभ महिलाओं से ज़्यादा पुरुषों को प्राप्त हुआ है।
  • पारंपरिक रूप से स्वास्थ्य सेवाओं के कवरेज़ तक महिलाओं की पहुँच बहुत कम पाई गई, इसका कारण संभवतः यह है कि मोतियाबिंद सर्जरी के लिये गाँव के बाहर जाने की आवश्यकता होती है। ग्रामीण महिलाओं के लिये दैनिक और कृषिगत कार्यों को छोड़कर सर्जरी के लिये शहर के चक्कर लगाना संभव नहीं हो पाता है।
  • इसका एक अन्य कारण यह भी है कि आँखों की सर्जरी को महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि वे परिवार में आजीविका कमाने वाले सदस्य होते हैं और भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक व्यवस्था में उनके स्वास्थ्य को महिलाओं की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • सामाजिक-आर्थिक कारकों के अलावा एस्ट्रोजन की कमी भी महिलाओं में मोतियाबिंद के अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजेन का स्तर कम हो जाता है। इसके कारण उनमें मोतियाबिंद की संभावना बढ़ जाती है।
  • गाँवों में मोतियाबिंद से जुड़े मिथकों के साथ जागरूकता की कमी भी इस जोखिम में अहम् योगदान करती है। अक्सर लोगों के बीच ऐसे मिथक देखने को मिलते है कि मोतियाबिंद के परिपक्व होने तक सर्जरी नहीं करानी चाहिये। डॉक्टरों के मुताबिक, ऐसे मिथक पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज़्यादा प्रभावित करते हैं।

राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम

  • इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1976 में हुई।
  • यह एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है, इसमें पहले से जारी ट्रैकोमा नियंत्रण कार्यक्रम को भी शामिल किया गया था।
  • ट्रैकोमा नियंत्रण कार्यक्रम वर्ष 1963 में शुरू हुआ था।
  • इस कार्यक्रम का लक्ष्य उस समय अंधेपन की व्यापकता को कम करना तथा भविष्य में होने वाले मामलों को रोकने के लिये प्रत्येक वर्ष आधारभूत ढाँचा एवं कार्यक्षमता स्थापित करना है।
  • इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
    • प्रत्येक 5 लाख की आबादी के लिये नेत्र देखभाल सुविधाएँ स्थापित करना।
    • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, उप-ज़िले के सभी स्तरों पर नेत्र देखभाल सेवाओं के लिये मानव संसाधन को विकसित करना।
    • स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना।
    • नागरिक समाज और निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष

अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार, यदि नेत्र स्वास्थ्य देखभाल की पहुँच को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक विस्तारित किया जाता है, तो इससे महिलाओं की स्थिति और अधिक बेहतर हो सकती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अधिक सामाग्रियों/उपकरणों की आवश्यकता भी नहीं होती है।

इसके साथ ही झूठे मिथकों के प्रति लोगों में सूचना, शिक्षा और संचार के माध्यम से जागरूकता लाकर महिलाओं में अंधेपन एवं मोतियाबिंद के स्तर में सुधार लाया जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


तंजानिया में नई प्रजाति के पौधे की खोज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तंजानिया के उसाम्बरा (Usambara) पर्वतीय क्षेत्र में 20 मीटर तक बढ़ने वाले फूल के पौधे की एक नई प्रजाति की खोज की गई है।

Iddi Plants

प्रमुख बिंदु

  • मिशोगिन इडडी पौधे का नामकरण अमानी नेचर रिज़र्व के वनस्पति वैज्ञानिक इडडी रजाबू (Iddi Rajabu) के नाम पर किया गया है।

अमानी नेचर रिज़र्व उष्णकटिबंधीय पूर्वी अफ्रीका में तंजानिया के टांगा राज्य में संरक्षित क्षेत्र है। इसकी स्थापना वर्ष 1997 में उसाम्बरा पर्वत की वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के लिये की गई थी।

  • मिशोगिन इडडी (Mischogyne iddi) पौधों की लम्बाई 20 मीटर और पत्तियों का व्यास 13 से 45 सेंटीमीटर के बीच होता है। इस पौधे की पत्तियाँ इस वंश की अन्य प्रजातियों की तुलना में बड़ी होती हैं।
  • मिशोगिन इडडी पौधा कस्टर्ड ऐप्पल या एनानेसिया परिवार से संबंधित है जिसकी अन्य ज्ञात प्रजातियाँ मिशोगिन इलियटियाना (M. elliotiana), मिशोगिन गैबोनेंसिस (M. gabonensis), मिशोगिन कॉन्सेंसिस (M. congensis) हैं।
  • इस वंश की प्रजातियाँ अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में 1000-4000 मिमी. की वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों से लेकर अंगोला के सूखे तटीय क्षेत्रों तक पाई जाती हैं।
  • IUCN ने इस पौधे को लुप्तप्राय (Endangered) श्रेणी में रखा गया है।
  • कृषि के विस्तार से वन क्षेत्रों का ह्रास हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप कम संख्या वाले ये पौधे संकटग्रस्त की श्रेणी में शामिल होते जा रहे है। इनके उत्पादक क्षेत्र को और अधिक विस्तारित करने और जलवायु परिवर्तन के प्रति इन प्रजातियों की अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिये छोटे-छोटे वन क्षेत्रों को आपस में जोड़ा जाना चाहिये।
  • उसाम्बरा पर्वत, उष्णकटिबंधीय पूर्वी अफ्रीका में स्थित है, जिसकी पूर्वी सीमाएँ आर्क पर्वत को स्पर्श करती हैं। कम सघन वन क्षेत्रों के कारण उसाम्बरा पर्वतों को जलवायु परिवर्तन से खतरा है।
  • आर्क पर्वत पूर्वी अफ्रीका में जैव-विविधता का एक महत्त्वपूर्ण स्थल है। कुछ समय पहले ही इन पहाड़ियों से गिरगिट और पॉलीसेराटोकार्पस आस्कमब्रीयन-इरिंगा (Polyceratocarpus Askhambryan-Iringae) नामक पौधे की नई प्रजातियों की खोज की गई थी।

प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ

(International Union for Conservation of Nature- IUCN)

  • इसकी स्थापना 5 अक्तूबर, 1948 को फ्राँस में हुई थी, उस समय इसका नाम इंटरनेशनल यूनियन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ नेचर (International Union for Protection of Nature- IUPN) था।
  • वर्ष 1956 में इसका नाम बदल कर इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर (International Union for Conservation of Nature- IUCN) कर दिया गया।
  • इसका मुख्यालय ग्लैंड (स्विट्ज़रलैंड) में अवस्थित है।
  • विज़न- ऐसे संसार का निर्माण करना, जो प्रकृति की कीमत समझने के साथ ही इसका संरक्षण भी करें।
  • मिशन- संसार भर के लोगों को प्रकृति की विविधता बनाए रखने के लिये प्रोत्साहन और सहयोग देना तथा प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रयोग सुनिश्चित करना।
  • यह पौधों और जंतुओं की रेड डेटा बुक भी जारी करता है।
  • प्रत्येक चार वर्ष में एक बार IUCN वर्ल्ड कंज़र्वेशन कॉन्ग्रेस का अयोजन किया जाता है।
  • वैश्विक चुनौतियों से निपटने और प्रकृति संक्षरण के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये सरकार, सिविल सोसाइटी, उद्यमी वर्ग आदि इसमें भाग लेते हैं।
  • भारत में वर्ष 1969 में नई दिल्ली में वर्ल्ड कंज़र्वेशन कॉन्ग्रेस का आयोजन किया गया था।
  • वर्ष 2016 में अमेरिका के हवाई में इसका आयोजन किया गया था।
  • वर्ष 2020 में इसका आयोजन फ्राँस में किया जाएगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विश्वभर में खाद्य असुरक्षा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में UN द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2018 में विश्व के लगभग 700 मिलियन लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे। रिपोर्ट में खाद्य असुरक्षा को विश्व के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी समस्या के रूप में चिन्हित किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य असुरक्षा, भूख और कुपोषण के अतिरिक्त मोटापे का भी एक प्रमुख कारण है। जब पौष्टिक आहार महँगा होता है तो लोग अपनी भोजन संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इसे सस्ते आहार के साथ प्रतिस्थापित करने का प्रयास करते हैं, जो सामान्यतः वसा युक्त होता है और लोगों के मोटापे में वृद्धि करता है।
  • भोजन की उचित मात्रा के साथ-साथ भोजन की उचित गुणवत्ता भी काफी महत्त्वपूर्ण होती है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर के दो अरब से भी अधिक लोगों को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता है, जिसके कारण उनमें भोजन से जनित बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • रिपोर्ट में लिंग असमानता पर चर्चा करते हुए यह कहा गया है कि विश्व के लगभग सभी देशों में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में खाद्य असुरक्षा का प्रचलन अधिक है।
  • निम्न आय वाले देश मध्यम आय वाले देशों की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक खाद्य असुरक्षा की स्थिति का सामना करते हैं।

क्या होती है खाद्य असुरक्षा?

खाद्य असुरक्षा का अभिप्राय पौष्टिक और पर्याप्त भोजन तक अनियमित पहुँच से होता है। खाद्य सुरक्षा को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:

1. मध्यम स्तरित खाद्य असुरक्षा (Moderate Food Insecurity):

मध्यम स्तरित खाद्य असुरक्षा का अभिप्राय उस स्थिति से होता है जिसमें लोगों को कभी-कभी खाद्य की अनियमित उपलब्धता का सामना करना पड़ता हैं और उन्हें भोजन की मात्रा एवं गुणवत्ता के साथ भी समझौता करना पड़ता हैं।

2. गंभीर खाद्य असुरक्षा (Severe Food Insecurity):

गंभीर खाद्य असुरक्षा का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें लोग कई दिनों तक भोजन से वंचित रहते हैं और उन्हें पौष्टिक एवं पर्याप्त आहार उपलब्ध नहीं हो पाता है। लंबे समय तक यथावत बने रहने पर यह स्थिति भूख की समस्या का रूप धारण कर लेती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जलवायु और स्वच्छ वायु संघ

चर्चा में क्यों?

भारत औपचारिक रूप से जलवायु और स्वच्छ वायु संघ (Climate & Clean Air Coalition-CCAC) में शामिल हो गया है।

मुख्य बिंदु:

  • भारत CCAC से जुड़ने वाला विश्व का 65वाँ देश बन गया है।
  • भारत का यह कदम, वायु प्रदूषण से मुकाबला करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार इस संघ का हिस्सा बनने के बाद भारत स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये पर्यावरण के अनुकूल परिवहन, कृषि, उद्योग और अपशिष्ट प्रबंधन को अपनाने के लिये अन्य देशों के साथ मिलकर काम करेगा।
  • इसके साथ-साथ भारत अपने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme-NCAP) के सफल कार्यान्वयन के लिये CCAC के साथ मिलकर काम करने की योजना बना रहा है।
  • भारत लगातार पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकी को अपनाने के प्रयास कर रहा है और इस संदर्भ में यह संघ काफी मददगार साबित हो सकता है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम :

(National Clean Air Programme-NCAP)

  • यह वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिये व्यापक और समयबद्ध रूप से बनाया गया पाँच वर्षीय कार्यक्रम है।
  • इसमें संबंद्ध केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और अन्य हितधारकों के बीच प्रदूषण एवं समन्वय के सभी स्रोतों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • इसका प्रमुख लक्ष्य वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उन्मूलन के लिये कार्य करना है।
  • देश के ज़्यादातर शहरों में गंभीर वायु प्रदूषण से निपटने के लिये पर्यावरण मंत्रालय की इस देशव्यापी योजना के तहत 102 प्रदूषित शहरों की वायु को स्वच्छ करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • इसके तहत वर्ष 2017 को आधार वर्ष मानते हुए वायु में मौजूद PM2.5 और PM10 पार्टिकल्स को 20 से 30 फीसदी तक कम करने का ‘अनुमानित राष्ट्रीय लक्ष्य’ निर्धारित किया गया है।
  • इस योजना के तहत राज्यों को आर्थिक सहायता भी दी जाएगी, ताकि वायु प्रदूषण से निपटने के लिये जो कार्य किये जाने हैं, उनमें पैसे की कमी बाधा न बने।
  • NCAP केवल एक योजना है, यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है तथा इसमें किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई करने या जुर्माना लगाने का प्रावधान शामिल नहीं है।

जलवायु और स्वच्छ वायु संघ

(Climate & Clean Air Coalition-CCAC)

  • CCAC विश्व के 65 देशों (भारत सहित), 17 अंतर सरकारी संगठनों, 55 व्यावसायिक संगठनों, वैज्ञानिक संस्थाओं और कई नागरिक समाज संगठनों की एक स्वैच्छिक साझेदारी है।
  • इस संघ का प्राथमिक उद्देश्य मीथेन, ब्लैक कार्बन और हाइड्रो फ्लोरोकार्बन जैसे पर्यावरणीय प्रदूषकों को कम करना है।
  • CCAC की 11 प्रमुख पहलें (Initiatives) हैं जो जागरूकता बढ़ाने, संसाधनों को एकत्रित करने और प्रमुख क्षेत्रों में परिवर्तनकारी कार्यों का नेतृत्व करने के लिये कार्य कर रही हैं।

एक अनुमान के मुताबिक, CCAC की ये पहलें हर साल वायु प्रदूषण के कारण होने वाली 2.5 मिलियन मौतों की रोकथाम में मददगार साबित हो सकती हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


बांध सुरक्षा विधेयक

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (Union Cabinet Committee on Economic Affairs-CCEA) द्वारा मंज़ूरी दिये जाने के बाद केंद्र सरकार अब बांध सुरक्षा विधेयक, 2019 को संसद में पेश करने की तैयार कर रही है।

मुख्य बिंदु :

  • इस विधेयक का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत के 5,600 बांधों को सुरक्षित बनाए रखा जाए।
  • वर्ष 2010 से इस विधेयक के विभिन्न संस्करण संसद में पेश किये गए थे, परंतु राज्यों के भारी विरोध के कारण कोई भी सफलतापूर्वक पास नहीं हो पाया।
  • कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे राज्यों ने इस विधेयक का यह कहते हुए विरोध किया था कि यह विधेयक राज्यों की, उनके बांधों को सुरक्षित रखने की, संप्रभुता पर अतिक्रमण करता है।
  • CCEA ने बहुउद्देशीय परियोजना (जोकि भारत की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है) के लिये भी 1,600 करोड़ रुपए के पूर्व-निवेश व्यय को भी मंज़ूरी दी है।

बांध सुरक्षा विधेयक

(Dam Safety Bill)

  • बांध सुरक्षा विधेयक, 2018 के प्रावधानों से केंद्र और राज्यों में बांध सुरक्षा की संस्थागत व्यवस्थाओं को शक्तियाँ प्राप्त होंगी और इससे पूरे देश में मानकीकरण एवं बांध सुरक्षा व्यवस्था में सुधार करने में मदद मिलेगी।
  • विधेयक में बांध सुरक्षा संबंधी सभी विषयों को शामिल किया गया है। इसमें बांध का नियमित निरीक्षण, आपात कार्य-योजना, विस्‍तृत सुरक्षा के लिये पर्याप्‍त मरम्‍मत और रख-रखाव कोष, इंस्‍ट्रूमेंटेशन तथा सुरक्षा मैनुअल शामिल हैं।
  • इसमें बांध सुरक्षा का दायित्‍व बांध के स्‍वामी पर है और विफलता के लिये दंड का प्रावधान भी है।

स्रोत: द हिंदू


विश्व में 2 करोड़ बच्चे जीवन रक्षक टीकों की पहुँच से बाहर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) तथा यूनिसेफ (Unicef) द्वारा जारी आँकड़ों से यह तथ्य सामने आया है कि वर्ष 2018 में 20 मिलियन बच्चों तक जीवन रक्षक टीके/वैक्सीन (Vaccines) की पहुँच नहीं थी।

मुख्य बिंदु

  • इन संगठनों द्वारा जारी आँकड़ों से यह भी इंगित होता है कि वैश्विक टीकाकरण कवरेज़ में सुधार करके 1.5 मिलियन मौतों को रोका जा सकता है।
  • वर्ष 2018 में खसरा, डिप्थीरिया तथा टिटनेस जैसी बीमारियों से बचाव के लिये जीवन रक्षक टीकाकरण से विश्व में 20 मिलियन बच्चे छूट गए।
  • वर्ष 2018 में वैश्विक स्तर पर लगभग 19.4 मिलियन नवजात बच्चे DTP के टीकाकरण से वंचित थे। इन नवजातों में 60 प्रतिशत बच्चे केवल 10 देशों से थे। ये देश हैं- अंगोला, ब्राज़ील, डी.आर.कांगो., इथोपिया, भारत, इंडोनेशिया, नाइज़ीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस तथा वियतनाम।

खसरा का प्रकोप

  • विश्व में टीकाकरण की पहुँच में गंभीर असमानता है। यह न सिर्फ देशों के मध्य बल्कि किसी देश के विभिन्न हिस्सों में भी विद्यमान है। यह स्थिति खसरे के प्रकोप के विश्व में फैलने का महत्त्वपूर्ण कारण है। इसमें ऐसे देश भी शामिल हैं जहाँ टीकाकरण की दर उच्च है।
  • वर्ष 2018 के दौरान विश्व में 3.5 लाख खसरे के मामले सामने आए। ये आँकड़े वर्ष 2017 की तुलना में दोगुने थे। खसरा को एक संकेतक के रूप में माना जाता है जिससे यह समझने में सहायता मिलती है कि निवारक रोगों से लड़ने के लिये अभी और क्या-क्या प्रयास करने की आवश्यकता है।

“खसरा एक संक्रामक बीमारी है इसके माध्यम से विश्व के विभिन्न आर्थिक समूहों की स्वास्थ्य की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। साथ ही यह भी समझने में सहायक है कि टीकाकरण कवरेज़ में लोगों को किस प्रकार की बाधाओं (जैसे- पहुँच, उपलब्धता, वहनीयता, आदि) का सामना करना पड़ रहा है।”

  • मानव पैपीलोमा विषाणु (HPV) के टीकाकरण से संबंधित आँकड़े प्रथम बार प्रकाशित किये गए हैं। यह टीकाकरण लड़कियों को उनके जीवन के अंतिम दौर में गर्भाशय के कैंसर (Cervical Cancer) को रोकने में सहायक है। वर्ष 2018 में 90 देशों (इन देशों में विश्व की एक-तिहाई लड़कियाँ निवास करती हैं) में HPV के वैक्सीन को राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया गया है। किंतु यह चिंता का विषय है कि इन देशों में सिर्फ 13 ही निम्न आय वाले देश हैं जबकि इस प्रकार की बीमारी प्रमुख रूप से निम्न आय वाले देशों से ही संबंधित है।
  • ऐसे रोग जिनको टीकाकरण द्वारा रोकना संभव है, के लिये टीकाकरण एक ज़रूरी माध्यम है लेकिन विश्व को ऐसी बीमारियों से सुरक्षित करने के लिये वैश्विक स्तर पर टीकाकरण की 95 प्रतिशत कवरेज़ की आवश्यकता है। किंतु विश्व के ऐसे बच्चे जो वैक्सीन कवरेज़ से अभी भी दूर हैं। इनमें से आधी जनसंख्या ऐसे समुदायों या देशों में स्थित है जो सबसे गरीब या अपने समाज में हाशिये पर स्थित है। इसमें वे देश भी शामिल हैं जो घरेलू स्तर पर हिंसा या राजनीतिक संकट का सामना कर रहे हैं। ये देश अफगानिस्तान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, डी.आर.कांगो, इथोपिया, दक्षिणी सूडान, इराक, सीरिया आदि हैं।

स्रोत: द हिंदू


कांगो में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) ने कांगो में दो मिलियन लोगों के घातक इबोला वायरस से ग्रसित होने पर इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • दूसरे सबसे घातक इबोला वायरस प्रकोप के कारण अगस्त 2018 से अभी तक 1,600 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
  • अत्यधिक घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इस प्रकोप के प्रमुख कारक हैं-
    • संक्रमण का नियंत्रण और रोकथाम की कमज़ोर स्थिति
    • राजनीतिक परिस्थितियाँ
    • समुदायों में व्याप्त विमुखता (Reluctance)
    • अस्थिर सुरक्षा स्थितियाँ
  • वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा में अक्सर वैश्विक स्तर पर सभी राष्ट्रों का ध्यान आकर्षित होता है एवं उनका सहयोग भी मिलता है।
  • WHO की रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह का आपातकाल पाँचवी बार लागू हुआ है। इससे पहले जो आपातकाल लागू किये गए उनमें पश्चिम अफ्रीका में इबोला वायरस, अमेरिका में ज़ीका वायरस के प्रकोप, स्वाइन फ्लू, पोलियो उन्मूलन शामिल थे।
  • WHO वैश्विक आपातकाल को एक "असाधारण घटना" के रूप में परिभाषित करता है जो अन्य देशों के लिये एक जोखिम की स्थिति होती है और इससे निपटने हेतु एक समन्वित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
  • जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर (Georgetown University Law Center) के विशेषज्ञों के अनुसार, इबोला के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने की मांग बहुत पहले से की जा रही थी। इस घोषणा से प्रभावित क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर हर संभव सहायता मिलेगी।
  • साथ ही विशेषज्ञों के अनुसार यदि कोई भी देश प्रभावित क्षेत्र की यात्रा एवं व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है तो इससे प्रभावित क्षेत्र में वस्तुओं एवं स्वास्थ्यकर्मियों का प्रवाह बाधित हो सकता है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव वहाँ की जनता और स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़ता है।
  • इस तरह के प्रतिबंधों के डर से भविष्य में जिस भी क्षेत्र में इस तरह के आपातकाल की घोषणा की जाएगी उसे एक दंड के रूप में देखा जाएगा। इसके परिणामस्वरुप कोई भी देश किसी प्रकार की महामारी से पीड़ित की स्थिति में भी संबंधित जानकारी को उजागर नहीं करेगा, जो न केवल महामारी के प्रसार और जोखिम की स्थिति में वृद्धि करेगा बल्कि इससे जान-माल की क्षति का भारी क्षति एवं अन्य देशों में उसके प्रसार का खतरा भी बढ़ जाएगा।
  • इबोला वायरस के लिये गठित आपातकालीन समिति ने अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (2005) (International Health Regulations-IHR) के अंतर्गत WHO के महानिदेशक को औपचारिक अस्थायी सिफारिशें जारी करने का सुझाव दिया जो निम्नलिखित हैं:

प्रभावित देशों के लिये सिफारिश

  • निरंतर सामुदायिक जागरूकता, सहभागिता और भागीदारी को मज़बूत बनाते हुए ऐसे क्षेत्र जहाँ जोखिम की संभावना बहुत अधिक है एवं ऐसे सांस्कृतिक मानदंडों एवं विश्वासों की पहचान करना जो सामुदायिक भागीदारी को बाधित करते हैं।
  • सीमा पार स्क्रीनिंग और मुख्य आंतरिक सड़कों पर भी लगातार स्क्रीनिंग जारी रखी जाए। साथ ही दोनों निगरानी टीमों के बीच सूचना के बेहतर आदान-प्रदान की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • संयुक्त राष्ट्र और उसके सहयोगियों के साथ समन्वय स्थापित कर सुरक्षा जोखिमों को कम करना, एक सक्षम वातावरण बनाना जिससे रोग-नियंत्रण के प्रयासों को तेज़ी से आगे बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
  • मज़बूत एवं प्रभावी निगरानी के माध्यम से सामुदायिक मौतों को कम करने और वायरस का पता लगाने एवं इस वायरस के आनुवांशिक अनुक्रमण (genetic sequencing) द्वारा बीमारी के फैलने की गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिलेगी।
  • WHO के रणनीतिक सलाहकार समूह द्वारा अनुशंसित इष्टतम वैक्सीन रणनीतियाँ जो इस वायरस के प्रकोप को कम करने में सहायक हैं को शीघ्रातिशीघ्र लागू करना।

पड़ोसी देशों के लिये

  • जोखिम वाले देशों को अपने सहयोगियों के साथ मिलकर आयातित मामलों का पता लगाने और उनके प्रबंधन हेतु तैयारियों को बेहतर करने के लिये तात्कालिक रूप से काम करना चाहिये, जिसमें स्वास्थ्य सुविधाओं को उन्नत बनाना एवं बिना रिपोर्टिंग के सक्रिय निगरानी जैसे पक्ष शामिल है।
  • विशेष रूप से प्रभावित क्षेत्र में प्रवेश के बिंदुओं पर जोखिम संबंधी संचार और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

सभी देशों के लिये

  • राष्ट्रीय अधिकारियों को सभी एयरलाइनों और अन्य परिवहन एवं पर्यटन उद्योगों के साथ मिलकर काम करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सकें कि अंतर्राष्ट्रीय यातायात पर WHO के दिशा-निर्देशों का सही से पालन हो।

Ebola Virus

इबोला वायरस रोग क्या है?

  • इबोला वायरस एक फाइलोवायरस है, जिसकी पाँच भिन्‍न-भिन्‍न प्रजातियाँ हैं। मौजूदा प्रकोप में जिस विशेष वायरस को अलग किया गया है वह जायर इबोला वायरस है।
  • इबोला वायरस रोग एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है जिससे पीड़ित लोगों में 90% तक लोगों की मृत्यु हो जाती है।
  • अफ्रीका में फ्रूट बैट चमगादड़ इबोला वायरस के वाहक हैं जिनसे पशु (चिम्पांजी, गोरिल्ला, बंदर, वन्य मृग) संक्रमित होते हैं। मनुष्यों को या तो संक्रमित पशुओं से या संक्रमित मनुष्यों से संक्रमण होता है, जब वे संक्रमित शारीरिक द्रव्यों या शारीरिक स्रावों के निकट संपर्क में आते हैं। इसमें वायु जनित संक्रमण नहीं होता है।
  • मौज़ूदा प्रकोप के दौरान अधिकांश रोग मानव से मानव को होने वाले संक्रमण से फैला है। इबोला वायरस के संक्रमण होने तथा रोग के लक्षण प्रकट होने के बीच की अवधि 2-21 दिन होती है जिसके दौरान प्रभावित व्यक्तियों से संक्रमण होने का खतरा नहीं रहता है।

लक्षण

  • बुखार (Fever)
  • थकान (Fatigue)
  • मांसपेशियों में दर्द (Muscle pain)
  • सिरदर्द (Headache)
  • गले में खराश (Sore throat)
  • उल्टी दस्त (Vomiting Diarrhoea)
  • आंतरिक और बाहरी रक्तस्राव (internal and external bleeding)
  • वृक्क एवं यकृत का ठीक प्रकार कार्य न करना, आदि।

निदान:

इबोला को मलेरिया, टाइफाइड और मेनिन्जाइटिस जैसे अन्य संक्रामक रोगों से अलग करना मुश्किल होता है, लेकिन इबोला वायरस के संक्रमण की पहचान निम्नलिखित नैदानिक विधियों का उपयोग करके की जा सकती हैं:

  • एलिसा (ELISA-Antibody-capture enzyme-linked immunosorbent assay)
  • एंटीजन-कैप्चर डिटेक्शन टेस्ट (Antigen-capture detection tests)
  • सीरम न्यूट्रीलाईजेसन टेस्ट (Serum neutralization test)
  • रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (RT-PCR) एस्से (Reverse Transcriptase Polymerase Chain Reaction (RT-PCR) Assay)
  • इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (Electron microscopy)
  • वायरस आइसोलेशन बाई सेल कल्चर (Virus isolation by cell culture)

स्रोत: द हिंदू


ब्राज़ील का ग्रीन बॉण्ड

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में ब्राज़ील ने लंदन क्लाइमेट एक्शन वीक (Climate Action Week) में वैश्विक स्तर पर पहली बार सोयाबीन के सतत् उत्पादन के लिये ग्रीन बॉन्ड प्रस्तुत किया ।

प्रमुख बिंदु :

  • ब्राज़ील ने ग्रीन बॉण्ड सोयाबीन और मक्का का उत्पादन करने वाले किसानो को रेसपोंसिबल कमोडिटी फैसिलिटी (Responsible Commodities Facility-RCF) प्रदान करने के लिये लंदन स्टॉक एक्सचेंज में जारी किया है।
  • वैश्विक स्तर पर सोयाबीन की माँग के कारण किसान इसके उत्पादन को लेकर उत्साहित हैं। एक अनुमान के अनुसार, अगले दशक तक केवल सेराडो क्षेत्र में ही लगभग 18 मिलियन हेक्टेयर चरागाह भूमि को सोयाबीन उत्पादन के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है, जो वर्तमान की तुलना में तीन गुना अधिक है। इतने बड़े क्षेत्र में खेती होने से जैवविविधता का क्षरण होगा। ब्राज़ील के सवाना घास प्रदेश को सेराडो क्षेत्र कहा जाता है।
  • RCF निवेश के माध्यम से सीमित कृषि क्षेत्रों के आकार को न बढ़ाते हुए उत्पादन को बढ़ाया जाएगा जिससे चरगाहों,घास के मैदानों और वनों को संरक्षित किया जा सकेगा।
  • ब्राज़ील की महत्त्वाकांक्षा 1.5 मिलियन हेक्टेयर के सवाना घास के प्राकृतिक क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करने की है, इन वनों के कारण कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 250 मिलियन टन की कमी आने का अनुमान लगाया गया है।

रेसपोंसिबल कमोडिटी फैसिलिटी (Responsible Commodities Facility-RCF) के लाभ:

  • उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी किये बिना उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करके प्राकृतिक आवासों की हानि को कम किया जा सकता है और इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी आने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
  • ब्राज़ील ने वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कमी करने का वादा किया है। RCF जैसे तंत्रों के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। साथ ही इससे ब्राज़ील अपने पर्यावरण कानूनों (वन कोड) का अनुपालन आसानी से कर पाएगा।
  • RCF के माध्यम से प्राकृतिक आवासों की हानि को कम किया जा सकता है। साथ ही इससे जैव-विविधता को भी सुनिश्चित किया जा सकता है। ब्राज़ील इस प्रकार के तंत्रों के माध्यम से अपनी जैव-विविधता और प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखकर सतत् विकास लक्ष्यों की ओर अग्रसर होगा।
  • RCF के तहत वित्त की सुविधा उत्पादकों को सेराडो क्षेत्र के वनस्पति की रक्षा और राष्ट्रीय कानून के अनुपालन के लिये प्रतिबद्धताओं के आधार पर दी जाएगी। प्रतिबद्धताओं का पालन संबंधी सत्यापन बाहरी कंपनियों द्वारा स्वतंत्र रूप से किया जाएगा और प्रतिबद्धताओं की देखरेख एक पर्यावरण समिति द्वारा की जाएगी जिसमें उत्पादक, खरीददार, गैर सरकारी संगठन एवं वित्तीय संगठन शामिल होंगे।
  • रेस्पोंसेबल कमोडिटीज़ रजिस्ट्री (Responsible Commodities Registry) उत्पादन के आँकडों और स्रोतों का रिकॉर्ड रखेगी। साथ ही आपूर्ति शृंखला में इन वस्तुओं के स्वामित्व का पता भी लगाएगी।
  • RCF को UK सरकार के वनों के लिये साझेदारी के कार्यक्रम (Partnerships for Forests -P4F) के समर्थन से स्थापित किया जा रहा है।
  • RCF, UNEP के साथ भी प्रभावी सामाजिक और पर्यावरणीय शासन तथा निगरानी ढाँचे को विकसित करने के लिये भी सहयोग ले रहा है।
  • सतत् निवेश प्रबंधन (Sustainable Investment Management-SIM), 50 सिविल सोसाइटी संगठनों और 150 उपभोक्ता वस्तु कंपनियों के साथ सोयाबीन उत्पादन क्षेत्र को स्थिर रखते हुए उत्पादन की मात्रा बढ़ाने वाले सेराडो मैनिफेस्टो का समर्थन करता है।

ब्राज़ील के कृषि उत्पादन को अतिरिक्त वनों की कटाई या प्राकृतिक आवासों के क्षरण के बिना ही बढ़ाना इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है।

सतत् निवेश प्रबंधन

(Sustainable Investment Management- SIM)

  • SIM, बैंकिंग, वस्तु व्यापार (commodities trading) और पर्यावरण वित्त के पेशेवरों द्वारा बनाई गई एक पर्यावरण वित्तीय फर्म (Environment finance firm) है।
  • SIM, RCF के प्रबंधन में भागीदार है।
  • सोयाबीन के उत्पादन और व्यापार के लिये उपयुक्त परिस्थितियाँ निर्मित करने के लिये SIM वित्तीय सेवाओं एवं गतिविधियों के विभिन्न स्रोतों का एकीकृत प्रबंधन करेगा।

वनों के लिये भागीदारी

(Partnerships for Forests -P4F)

  • UK सरकार द्वारा समर्थित 5 साल का कार्यक्रम है।
  • यह विश्व स्तर पर 4 महत्त्वपूर्ण वन क्षेत्रों पूर्वी अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया तथा पश्चिम और मध्य अफ्रीका में कार्य करता है।
  • P4F भूमि-उपयोग के क्षेत्र में वित्त अनुदान, तकनीकी सहायता और विशेषज्ञों की एक टीम के माध्यम से सहायता प्रदान करता है।
  • P4F सार्वजनिक क्षेत्र और समुदायों के साथ में निजी क्षेत्र की भागीदारी का समर्थन करता है। साथ ही ऐसी वस्तुओं को प्रोत्साहित करता है जो वनों संसाधनों पर कम दबाव पैदा करती हो।
  • पैलेडियम (Palladium), मैकिन्से एंड कंपनी (McKinsey & Company) और सिस्टमआईक्यू (SYSTEMIQ) इस कार्यक्रम के लिये तकनीकी सहायता एवं अनुदान की सुविधा का प्रबंधन करने वाले प्रमुख भागीदार हैं।

UNEP (United Nation Environment Programme)

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी।
  • इस संगठन का उद्देश्य मानव पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण संबंधी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है।
  • UNEP पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। UNEP अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।
  • इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (18 July)

  • नीदरलैंड्स के द हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) ने 2 साल 2 महीने तक चली सुनवाई के बाद 17 जुलाई को 15-1 के बहुमत से भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की फाँसी की सज़ा पर रोक को बरकरार रखा और पाकिस्तान से इस पर पुनर्विचार करने को कहा। साथ ही पाकिस्तान से कुलभूषण जाधव को कॉन्सुलर एक्सेस देने के लिये भी कहा। लेकिन उसकी सज़ा रद्द करने, बरी करने, रिहा करने या वापस भारत भेजने को लेकर न्यायालय ने कुछ नहीं कहा। विदित हो कि पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने कुलभूषण जाधव को जासूसी के मामले में मृत्युदंड की सज़ा सुनाई थी। पाकिस्तानी अदालत के इस फैसले को भारत ने मई 2017 में चुनौती दी थी, जिसके बाद जुलाई 2018 में सज़ा पर रोक लगा दी गई। द हेग के पीस पैलेस में प्रेसीडेंट ऑफ द कोर्ट न्यायाधीश अब्दुलकावी अहमद यूसुफ ने सार्वजनिक सुनवाई के दौरान फैसला सुनाया। इस बहुचर्चित मामले में न्यायाधीश यूसुफ के नेतृत्व में न्यायालय की 15 सदस्यीय पीठ ने भारत और पाकिस्तान की मौखिक दलीलें सुनने के बाद 21 फरवरी को आदेश सुरक्षित रख लिया था। ज्ञातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा जून 1945 में की गई थी और इसने अप्रैल 1946 में काम करना शुरू किया था। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश अदालत के उस फैसले को मानेंगे, जिसमें वह स्वयं पक्षकार हैं। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में भारत के दलवीर भंडारी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश हैं। वे न्यायाधीश के तौर पर वे 27 अप्रैल, 2012 को चुने गए थे। इसके बाद नवंबर 2017 में वे दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुने गए।
  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (UNFAO) ने 15 जुलाई को एक रिपोर्ट जारी की। इसके मुताबिक वर्ष 2018 में 82.10 करोड़ लोग हर रात भूखे सोने के लिये मजबूर थे। वर्ष 2017 में यह संख्या 81.10 करोड़ थी। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में दुनिया के 14.9 करोड़ बच्चे भूख की समस्या का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2030 तक इस समस्या को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा है, ताकि लोगों का शारीरिक-मानसिक विकास हो सके। रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन और युद्ध जैसे हालात के कारण विश्व में कुपोषण और भुखमरी की समस्या बढ़ी है। वर्तमान में खाद्य सुरक्षा की स्थिति बहुत खराब है और इससे उत्पन्न कुपोषण की समस्या को मज़बूत अर्थव्यवस्था और पुख्ता सामाजिक योजनाओं के बिना खत्म नहीं किया जा सकता। अफ्रीकी देशों में कुल जनसंख्या के लगभग 20% लोग कुपोषण से ग्रस्त हैं, वहीं एशिया में यह 12% है। लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों में कुल जनसंख्या के 7% लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं। उत्तर अमेरिका और यूरोप में 8% लोग कुपोषण से ग्रस्त हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रमुख डेविड बैसली के मुताबिक, वर्ष 2030 तक शून्य भुखमरी का लक्ष्य हासिल कर पाना बहुत मुश्किल है।
  • फ्राँस के मोंट-डे-मारसन में 1 से 12 जुलाई तक भारत और फ्राँस के बीच द्विपक्षीय युद्धाभ्यास गरुड़-4 आयोजित किया गया। इस युद्धाभ्यास में भारत की ओर से चार SU-30 MKI, फ्यूल रिफिलर IL-78, C-17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट के साथ कुल 120 वायु सैनिकों ने हिस्सा लिया, जिसमें गरुड़ कमांडो का दस्ता भी शामिल था। यह गरु़ड़ युद्धाभ्यास का छठा संस्करण था, पाँचवां संस्करण जून 2014 में जोधपुर वायुसेना स्टेशन में आयोजित किया गया था। फ्राँस की वायुसेना की तरफ से अन्य विमानों के अलावा राफेल विमान ने भी युद्धाभ्‍यास में हिस्सा लिया। विदित हो कि भारत ने फ्राँस से वर्ष 2016 में 36 राफेल युद्धक विमानों का सौदा किया था, जिसकी पहली खेप इसी वर्ष सितंबर में मिलने की आशा है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस ए.के. सीकरी सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालय (SICC) में अंतर्राष्ट्रीय जज नियुक्त किये गए हैं। उनका कार्यकाल 4 जनवरी 2021 तक होगा। आपको बता दें कि SICC सिंगापुर हाईकोर्ट की एक डिवीजन और देश के सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा है। इसका कार्य अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों का निपटारा करना है। वर्तमान में 16 अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधीश इसमें शामिल हैं। जस्टिस सीकरी इसी वर्ष 6 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए थे और इससे पहले वह पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तथा दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। कुछ समय पूर्व उन्हें न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) ने न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंड‌र्ड्स अथॉरिटी (NBSA) का चेयरपर्सन बनाया था।
  • संगीत नाटक अकादमी ने वर्ष 2018 के लिये उस्ताद बिस्मिल्लाह खां युवा पुरस्‍कारों की घोषणा कर दी है। नृत्य, संगीत, पारंपरिक/लोक/जनजातीय संगीत/नृत्‍य/थियेटर और कठपुतली क्षेत्र में 8-8 कलाकारों को पुरस्कृत किया जाना है, जबकि थियेटर के क्षेत्र में 7 पुरस्‍कार दिये जाने हैं। उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां युवा पुरस्‍कार कला प्रदर्शन के विविध क्षेत्रों में उत्‍कृष्‍ट युवा प्रतिभाओं की पहचान करने, उन्‍हें प्रोत्‍साहन देने और शीघ्र राष्‍ट्रीय मान्‍यता देने के उद्देश्‍य से 40 वर्ष से कम आयु के कलाकारों को प्रदान किया जाता है। इस पुरस्‍कार में 25 हज़ार रुपए की नकद राशि दी जाती है। आपको बता दें कि संगीत नाटक अकादमी, संगीत, नृत्‍य और नाटक की राष्‍ट्रीय अकादमी है तथा यह देश में कला प्रदर्शन का शीर्ष निकाय भी है। इसके साथ ही संगीत नाटक अकादमी पुरस्कारों की भी घोषणा की गई है। वर्ष 2018 के लिये संगीत नाटक अकादमी की आम परिषद ने कुल 44 कलाकारों का चयन किया है। इनमें संगीत के क्षेत्र में 11, नृत्‍य के क्षेत्र में 9, रंगमंच के क्षेत्र में 9 तथा पारंपरिक/लोक/ जनजातीय संगीत/नृत्य/रंगमंच और कठपुतली कला के क्षेत्र में 10 कलाकारों को चुना गया है। अकादमी पुरस्‍कार 1952 से दिया जा रहा है। यह सम्‍मान न केवल उत्‍कृष्‍टता और उपलब्धियों के सर्वोच्‍च मानक का प्रतीक है, बल्कि निरंतर व्‍यक्तिगत कार्य और योगदान को मान्‍यता प्रदान करता है। अकादमी फैलो को 3 लाख रुपए और अकादमी पुरस्‍कार के रूप में ताम्रपत्र और अंगवस्‍त्रम के अलावा एक लाख रुपए दिये जाते हैं।