विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस 2019
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस (World Day to Combat Desertification and Drought) का आयोजन किया जाता है। इस बार इस दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित होने वाले समारोह में भारत ने सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर की।
- वर्ष 2019 के लिये इसकी थीम ‘लेट्स ग्रो द फ़्यूचर टुगेदर’ (Let's Grow the Future Together) है।
- इस बार इसमें भूमि से संबंधित तीन प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है- सूखा, मानव सुरक्षा और जलवायु।
- विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस के अवसर पर आयोजित इस समारोह के दौरान भारत ने पहली बार ‘संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन’ (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) से संबंधित पक्षकारों के सम्मेलन के 14वें सत्र (Conference of Parties: COP-14) की मेज़बानी करने की घोषणा की।
- इस बैठक में लगभग 197 देशों के कम-से-कम 5,000 प्रतिनिधियों के भाग लेने का अनुमान है।
- इस बैठक का आयोजन 29 अगस्त से 14 सितंबर, 2019 के बीच और दिल्ली में किया जाएगा।
- इस समारोह के दौरान केन्द्रीय मंत्री ने वन भूमि पुनर्स्थापन (forest landscape restoration) और भारत में बॉन चुनौती (Bonn Challenge) पर अपनी क्षमता बढाने के लिये एक फ्लैगशिप परियोजना (Flagship Project) की शुरुआत की।
- पर्यावरण मंत्री के अनुसार, भूमि के क्षरण से देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 30 प्रतिशत प्रभावित हो रहा है। भारत लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ इस समझौते के प्रति संकल्पबद्ध है।
- मिट्टी के क्षरण को रोकने में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना,प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PKSY), प्रति बूंद अधिक फसल जैसी भारत सरकार की विभिन्न योजनाएँ सहायक हैं।
‘संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन’
(United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD)
- संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत तीन रियो समझौतों (Rio Conventions) में से एक है। अन्य दो समझौते हैं-
1. जैव विविधता पर समझौता (Convention on Biological Diversity- CBD)।
2. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता (United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC)।
- UNCCD एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
- मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इस दिवस को 25 साल पहले शुरू किया गया था।
- तब से प्रत्येक वर्ष 17 जून को ‘विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है।
कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज (COP)
- यह UNFCCC सम्मेलन का सर्वोच्च निकाय है। इसके तहत विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों को सम्मेलन में शामिल किया गया है। यह हर साल अपने सत्र आयोजित करता है।
- COP, सम्मेलन के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक निर्णय लेता है और नियमित रूप से इन प्रावधानों के कार्यान्वयन की समीक्षा करता है।
फ्लैगशिप परियोजना (Flagship Project)
- यह परियोजना 3.5 वर्षों की पायलट चरण की होगी, जिसे हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, नागालैंड और कर्नाटक में साढ़े तीन साल के पायलट चरण के दौरान लागू किया जाएगा।
- परियोजना का उद्देश्य भारतीय राज्यों के लिये उत्तम कार्य प्रणाली और निगरानी प्रोटोकॉल को विकसित करना तथा अनुकूल बनाना और पांच पायलट राज्यों के भीतर क्षमता का निर्माण करना है।
- परियोजना के आगे के चरणों में पूरे देश में इसका विस्तार किया जाएगा।
बॉन चुनौती (Bonn Challenge)
- बॉन चुनौती एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर 2030 तक वनस्पतियां उगाई जायेंगी।
- पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, 2015 में भारत ने स्वैच्छिक रूप से बोन चुनौती पर स्वीकृति दी थी।
- भारत ने 13 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर 2020 तक और अतिरिक्त 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर 2030 तक वनस्पतियाँ उगाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता (UNFCCC)
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है।
- यह समझौता जून, 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया।
- वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों (एनेक्स-1 में शामिल देश) द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।
- UNFCCC की वार्षिक बैठक को कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (COP) के नाम से जाना जाता है।
जैव विविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity- CBD)
- यह अभिसमय वर्ष 1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन के दौरान अंगीकृत प्रमुख समझौतों में से एक है।
- CBD पहला व्यापक वैश्विक समझौता है जिसमें जैवविविधता से संबंधित सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।
- इसमें आर्थिक विकास की ओर अग्रसर होते हुए विश्व के परिस्थितिकीय आधारों को बनाएँ रखने हेतु प्रतिबद्धताएँ निर्धारित की गयी है।
- सीबीडी में पक्षकार के रूप में विश्व के 196 देश शामिल हैं जिनमें 168 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं।
- भारत सीबीडी का एक पक्षकार (party) है।
- इस कन्वेंशन में राष्ट्रों के जैविक संसाधनों पर उनके संप्रभु अधिकारों की पुष्टि किये जाने के साथ तीन लक्ष्य निर्धारित किये गए है-
- जैव विविधता का संरक्षण।
- जैव विविधता घटकों का सतत् उपयोग।
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से प्राप्त होने वाले लाभों में उचित और समान भागीदारी।
स्रोत- PIB
भूटान में पर्यटन : ‘एक समस्या’
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भूटान की पर्यटन परिषद् ने अगले तीन महीने (वर्ष के पीक समय के लिये सभी पर्यटकों का मंदिरों में प्रवेश बंद कर दिया है। साथ ही पर्यटकों की संख्या को विनियमित करने के लिये एक शुल्क भी लगाया जाएगा।
- दशकों तक, भूटान की सरकार ने "उच्च मूल्य, कम मात्रा/प्रभाव" पर्यटन को बढ़ावा दिया है। किंतु अब पर्यटन की तीव्रता भूटान के लिये समस्या पैदा कर रही है।
मुख्य बिंदु
- भूटान में वर्ष 2017 में 2,70000 पर्यटकों का आगमन हुआ था। जिसमें से दो लाख पर्यटक सिर्फ भारत, बांग्लादेश और मालदीव से थे। भूटान पर्यटकों से प्रति दिन के हिसाब से 250 डॉलर का अनिवार्य कवर चार्ज (Cover-charge) लेता है। लेकिन इन देशों को इससे छूट प्राप्त है साथ ही भूटान के सीमावर्ती कस्बे फिहिंत्शोलिंग (Phuentsholing) से प्रवेश पर इन देशों के लोगों को वीजा की आवश्यकता नहीं होती है। इस कारण से इन देशों के पर्यटकों की संख्या सर्वाधिक है।
- भारत, बांग्लादेश और मालदीव के पर्यटकों के आगमन पर 500 ङुल्ट्रम (Ngultrums) जो भारत के 500 रुपए के बराबर है, भूटान को ‘सतत् विकास शुल्क’ के तहत भुगतान करना होगा।
- भूटान के सभी मंदिरों और मठों में जो बौद्ध धर्म से संबंधित हैं, में भी 300 ङुल्ट्रम (ngultrums) (300 रुपए) का शुल्क लगया जाएगा जिससे मंदिरों में बढ़ रही भीड़ को कम किया जा सके।
- भूटान की पर्यटन परिषद (Tourism Council of Bhutan- TCB) का मानना है की यह उपाय उस प्रक्रिया का हिस्सा है जिसके द्वारा अनियंत्रित पर्यटन को विनियमित किया जा सके तथा भूटान जिसे कभी ‘लास्ट शांगरी-ला’ (Last Shangri-La) कहा जाता था के रूप में संरक्षित किया जा सके।
- अधिक से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने की मांग करने वाले कई अन्य देशों के विपरीत भूटान की पर्यटन परिषद् (TCB) ने अपने लक्ष्य को 2023 में पाँच लाख पर्यटकों से कम करके चार लाख कर दिया है।
उच्च मूल्य, कम मात्रा/ प्रभाव पर्यटन
(High value, low volume/Impact tourism)
- यह भूटान की पर्यटन नीति को प्रदर्शित करती है वर्ष 1973 में भूटान ने ‘उच्च मूल्य, कम मात्रा’ की नीति को अपनाया जिसे वर्ष 2008 में बदल कर ‘उच्च मूल्य, कम प्रभाव नीति’ कर दिया गया इन नीतियों के मूल में एक ऐसा पर्यटन बाज़ार विकसित करना था जिसमें भूटान की अर्थव्यवस्था एवं समाज सकारात्मक रूप से प्रभावित हो किंतु पर्यटकों की संख्या एवं सांस्कृतिक प्रभाव सीमित रहे।
‘लास्ट शांगरी-ला’ (Last Shangri-La)
- इसका तात्पर्य ऐसे एक मात्र सुंदर स्थान से है जहाँ का पर्यावरण एवं अन्य सभी चीजें सुखद हैं तथा ऐसा स्थान प्रायः दूर स्थित होता है। इस रूप में भूटान की पहचान ‘लास्ट शांगरी-ला’ के रूप में की जाती है।
भूटान की चिंता
- भारतीय आगंतुकों की अधिक संख्या तथा भूटान में पर्यटन की सीमित अवसंरचना पर्यटकों के लिये कठिनाई पैदा कर सकती है जो भारत भूटान संबंधो की दृष्टि से अच्छा नही है।
- अधिक पर्यटकों का आगमन आर्थिक दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण है लेकिन यह पर्यटकों और भूटान के लोगों के मध्य संघर्ष एवं तनाव को जन्म दे सकता है।
- पर्यटन में अत्यधिक वृद्धि के कारण होटल उद्योग में भी वृद्धि दर्ज की गई है जो आवासों और पानी की कमी जैसी समस्या को जन्म दे सकता है।
- पर्यटकों का दृष्टिकोण एवं व्यव्हार स्थानीय संस्कृति को प्रभावित करता है। भूटान अपनी संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन को अधिक महत्त्व देता है जिसके चलते यह देश अत्यधिक पर्यटकों के आगमन को सही नही मानता है।
- यहाँ आने वाले विदेशी पर्यटकों में यूरोपीय, जापानी तथा अमेरिकी (भारतीय भी) पर्यटक शामिल हैं। इन पर्यटकों का महत्त्व इसलिये है क्योंकि कि इनकी कम संख्या अधिक आर्थिक प्रभाव उत्पन्न करती है। जैसे- होटल उद्योग बैंकिंग ऋण पर आधारित है यदि पर्यटन को सीमित किया जाता है तो होटलों को ऋण चुकाने में परेशानी आ सकती है परिणामतः भूटान की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
स्रोत: द हिंदू
भारत को नाटो सहयोगी देश का दर्जा देने का प्रस्ताव
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में भारत को नाटो (North Atlantic Treaty Organization- NATO) सहयोगी के समान दर्जा देने के लिये अमेरिकी सीनेटरों ने हथियार निर्यात नियंत्रण अधिनियम (Arms export Control Act-AECA) में संशोधन की मांग की है।
मुख्य बिंदु
- नाटो सहयोगी राज्यों के सामान स्थिति के लिये अमेरिका के ‘हथियार निर्यात नियंत्रण अधिनियम’ (AECA) में संशोधन आवश्यक है। इस संशोधन के बाद भारत प्रतिरक्षा से संबंधित अमेरिकी उच्च तकनीक को प्राप्त करने में सक्षम होगा।
- यह संशोधन भारत को अमेरिका का प्रमुख रक्षा साझीदार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
- भारत पहले ही अमेरिका के साथ COMCASA (Communications, Compatibility and Security Agreement) पर हस्ताक्षर कर चुका है तथा BECA (Basic Exchange Cooperation Agreement) पर हस्ताक्षर करने की चर्चा में शामिल है।
- 28-29 जून को मध्य जापान के ओसाका में आयोजित होने वाले G20 सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री एवं अमेरिकी राष्ट्रपति के मध्य वार्ता भी प्रस्तावित है। ऐसे में अमेरिकी सीनेटरों द्वारा इस प्रकार का प्रस्ताव अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- यह प्रस्ताव अमेरिकी राजनीति में भारतीय प्रभाव को दर्शाता है। किंतु प्रस्ताव के पारित होने के लिये इसको सीनेट और कांग्रेस से गुजरना पड़ेगा।
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो)
North Atlantic Treaty Organization (NATO)
यह अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 1949 में की गई थी इसका मुख्यालय बेल्जियम के ब्रुसेल्स में अवस्थित है इस संगठन में अमेरिका तथा यूरोप के सभी प्रमुख देश शामिल है वर्तमान में इसके 29 राज्य सदस्य हैं।
हथियार निर्यात नियंत्रण अधिनियम (Arms export Control Act-AECA)
यह अमेरिकी अधिनियम है जो अमेरिकी राष्ट्रपति को प्रतिरक्षा से संबंधित सामग्रियों और सेवाओं के निर्यात पर नियंत्रण प्रदान करता है।
COMCASA: संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security Agreement -COMCASA)
कूटबद्ध/एन्क्रिप्टेड संचार प्रणाली के हस्तांतरण को सरल बनाता है और उच्च तकनीक वाले सैन्य उपकरणों को साझा करने हेतु यह समझौता अमेरिका की प्रमुख आवश्यकता है।
BECA: मूल विनिमय और सहयोग समझौता (Basic Exchange and Cooperation Agreement)
यह भू-स्थानिक जानकारी के विनिमय को आसान बनाता है।
LEMOA: लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement) पर भारत ने वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किये थे। यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं की एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं तक पहुँच को आसान बनाता है लेकिन यह इसे स्वचालित या अनिवार्य नहीं बनाता है।
GSOMIA: सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (General Security Of Military Information Agreement) पर भारत ने वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किये थे। यह सेनाओं को उनके द्वारा एकत्रित खुफिया जानकारी साझा करने की अनुमति देता है।
स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)
भारत में जनसंख्या विस्फोट
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) द्वारा हाल ही में जनसंख्या आधारित एक अध्ययन की रिपोर्ट जारी की गई है, जिसके अनुसार वर्ष 2050 तक पृथ्वी पर मानव की कुल आबादी 9.7 बिलियन हो जाएगी और वर्ष 2100 तक यह संख्या 11 बिलियन तक पहुँच जाएगी। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है की मात्र 8 वर्षों (यानि वर्ष 2027) में भारत चीन को जनसंख्या के मामले में पीछे छोड़ देगा और विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा।
मुख्य बिंदु :
- भारत सहित नाइज़ीरिया, पाकिस्तान, कांगो, इथियोपिया, तंज़ानिया, इंडोनेशिया, मिस्र और अमेरिका जैसे तमाम देश उन देशों की सूची में हैं जो भविष्य में बहुत अधिक जनसंख्या वृद्धि अनुभव करेंगे। इस सूची में भारत शीर्ष स्थान पर है।
- रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 से 2050 के बीच भारत की जनसंख्या में 273 मिलियन वृद्धि होने की संभावना है।
- UN के अनुसार वर्ष 2050 तक विश्व की 16 प्रतिशत जनसंख्या 65 वर्ष से अधिकम उम्र की होगी जबकि अभी यह सिर्फ 9 प्रतिशत ही है।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2050 में विश्व के 426 मिलियन लोग 80 वर्ष की उम्र से अधिक होंगे जबकि वर्तमान में केवल 143 मिलियन लोग ही ऐसे हैं जिनकी उम्र 80 वर्ष से अधिक है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 से 2019 के बीच प्रजनन दर में भी लगभग 78 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली है। जहाँ एक ओर वर्ष 1990 में यह दर 3.2 थी वहीं वर्ष 2019 में यह 2.5 दर्ज की गई है। शोधकर्त्ताओं का मानना है कि वर्ष 2050 तक इस दर में और अधिक गिरावट आएगी।
- अध्ययन के अनुसार बांग्लादेश, नेपाल और फिलीपींस जैसे देशों में होने वाले जनसंख्या परिवर्तन का मुख्य कारण बाहरी पलायन है।
- हालाँकि रिपोर्ट में इस बात को भी स्पष्ट किया गया है कि विश्व जनसंख्या की वृद्धि दर 2 साल व्यक्त किये गए पूर्वानुमान से कम होगी। ज्ञातव्य है कि UN ने 2 साल पहले वर्ष 2017 में भी ऐसी ही एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमे यह दावा किया गया था कि वर्ष 2050 में विश्व की कुल जनसंख्या 7.7 बिलियन होगी और वर्ष 2100 में 11.2 बिलियन।
संयुक्त राष्ट्र (United Nations - UN)
- संयुक्त राष्ट्र एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1945 में की गई थी।
- अपने आरंभिक दौर में संयुक्त राष्ट्र के केवल 51 सदस्य देश थे लेकिन आज 193 देश इसके सदस्य बन चुके हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के कार्य इसके चार्टर में तय किये गए हैं। लेकिन इसका मुख्य कार्य दुनियाभर में शांति बनाए रखना और विश्व के विकास के प्रयास करना है।
- संयुक्त राष्ट्र में अलग-अलग काउंसिल जैसे- सिक्योरिटी काउंसिल, इकोनॉमिक और सोशल काउंसिल बने हुए हैं जो अलग-अलग कार्यों को देखते हैं।
- इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क में है। इसके अलावा इसके मुख्य ऑफ़िस जिनेवा, नैरोबी और वियना में भी है।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
रोहिंग्या संकट और संयुक्त राष्ट्र
चर्चा में क्यों?
म्याँमार में रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र (United Nations - UN) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट जारी है जिसके अंतर्गत इस विषय के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र की ही भागीदारी पर नाराज़गी व्यक्त की गई है। UN ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस विषय पर हमारे द्वारा कई गलतियाँ की गई और एक समान योजना के स्थान पर खंडित रणनीति के कारण हमने कई अच्छे अवसर गँवा दिये।
मुख्य बिंदु :
- संयुक्त राष्ट्र ने म्याँमार में रोहिंग्या विषय पर अपनी भागीदारी पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं और उस पर नाराज़गी भी व्यक्त की है।
- UN ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस मुद्दे में UN महासचिव और संस्था से जुड़े देश के वरिष्ठ अधिकारियों की भागीदारी के बाद भी म्याँमार के अधिकारियों के साथ सहयोग के माध्यम से नकारात्मक रूझानों में परिवर्तन करने के प्रयास अपेक्षाकृत असफल रहें हैं।
- रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने इस घटना में अपने प्रयासों को अपनी असफलता के रूप में परिभाषित किया है।
- रोहिंग्या संकट से निपटने के दौरान कुछ संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों तथा व्यक्तिओं के बीच हुई आपसी प्रतिस्पर्द्धा को भी संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में दर्शाया है।
- संयुक्त राष्ट्र ने अपनी असफलता का मुख्य कारण हेडक्वाटर (मुख्यालय) और फील्ड (Headquarters and Field) के बीच तालमेल एवं उपयुक्त संचार के अभाव को बताया है।
- रिपोर्ट में आगे कहा गया कि अधिकारियों और कर्मचारियों के मध्य बढे ध्रुवीकरण का मुख्य कारण म्याँमार में घटित होने वाली भयानक घटनाओं से उत्पन्न हुई भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ थीं।
रोहिंग्या संकट :
- दरअसल म्याँमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है, जबकि रोहिंग्याओं को मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। हालाँकि लंबे समय से वे म्याँमार के रखाइन प्रांत में रहते आ रहे हैं।
- दरअसल बौद्धों का मानना यह है कि बांग्लादेश से भागकर आए रोहिंग्याओं को वापस वहीं चले जाना चाहिये।
- रोहिंग्याओं और बौद्धों के बीच होने वाले छिटपुट टकराव को हवा तब मिली जब वर्ष 2012 में रखाइन प्रांत में हुए भीषण दंगों में लगभग 200 लोग मारे गए, जिनमें ज़्यादातर रोहिंग्या मुसलमान थे।
- ये दंगे तब शुरू हुए, जब एक बौद्ध महिला की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई और इसका आरोप तीन रोहिंग्याओं पर लगाया गया। इसके बाद अल्पसंख्यक रोहिंग्याओं और बहुसंख्यक बौद्धों के बीच कई बार हिंसक टकराव हुआ, लेकिन ज़्यादातर जान गँवाने वाले रोहिंग्या ही बताए जाते हैं।
- म्याँमार के सुरक्षा बलों ने भी जब इन्हें सताना शुरू कर दिया तो इनके लिये म्याँमार में रहना कठिन हो गया। इन परिस्थितियों में हज़ारों की संख्या में रोहिंग्याओं को म्याँमार छोड़कर भागना पड़ा। ये नौकाओं में सवार होकर समुद्र में निकल तो जाते थे, लेकिन कोई भी देश उन्हें लेने को तैयार नहीं होता था।
- ऐसे में हज़ारों लोग समंदर में ही फँसे रहते थे, कुछ की नौकाएँ डूब जाती थी, कुछ बीमारियों की भेंट चढ़ जाते थे, जबकि कई मानव तस्करों के चंगुल में फँस जाते थे।
- किसी तरह सीमा पार कर भारत में बड़ी संख्या में रोहिंग्या आ बसे थे। भारत में इनकी कुल संख्या 10 से 12 हज़ार बताई गई, हालाँकि गृह मंत्रालय के पास जो अन्य आँकड़े मौजूद हैं उनके अनुसार भारत में रह रहे रोहिंग्याओं की संख्या लगभग 40 हज़ार है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
ई-वाहनों को प्रोत्साहन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं के निकाय ‘सोसाइटी ऑफ मैन्युफेक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स’ (Society Of Manufacturers Of Electric Vehicles-SMEV) ने विनिर्माण हेतु एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देने के अलावा प्रदूषणकारी वाहनों पर 'ग्रीन सेस' (Green Cess) लगाने की मांग की।
ग्रीन सेस (Green Cess)
ग्रीन सेस एक प्रकार का कर है जो पेट्रोल एवं डीज़ल से चलने वाले वाहनों पर प्रदूषण फैलाने के एवज़ में लगाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- सोसाइटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (SMEV) के अनुसार, सरकार को बज़ट सूची में 'स्वच्छ हवा' अभियान हेतु एक निर्धारित बज़ट आवंटित किया जाना चाहिये जिसे स्वच्छ भारत मिशन के तहत एकीकृत किया जा सकता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के उपकर से उत्पन्न धन सरकारी खजाने पर बोझ कम करने में मदद कर सकता है। इस फंड का उपयोग ग्राहकों को प्रोत्साहन देने और इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की कीमतों में सब्सिडी देने में किया जा सकता है, जिससे ई- वाहनों को प्रोत्साहन मिलेगा।
- स्वच्छ वायु अभियान के अंतर्गत लोगों में बड़े पैमाने पर जागरूकता बढ़ाने के साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को लेकर उन्हें इस विचार से भी अवगत कराया जाएगा कि ई-वाहनों के प्रयोग से हमारे देश में प्रदूषण कम होगा एवं नागरिक स्वस्थ रहेंगे।
- ई-वाहनों को बढ़ावा देने के लिये सरकार उन लोगों को एक विशेष अवधि के लिये करों से छूट दे सकती है जो ई-वाहनों का प्रयोग कर पर्यावरण को बचाने में अपना योगदान देते हैं।
इलेक्ट्रिक वाहन क्या है ?
- जिस तरह पारंपरिक वाहनों में विभिन्न प्रकार की प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध हैं, ठीक उसी प्रकार प्लग-इन इलेक्ट्रिक व्हीकल (जिन्हें इलेक्ट्रिक कार या EVs के रूप में भी जाना जाता है) में भी विभिन्न क्षमताएँ विद्यमान हैं। EVs की एक प्रमुख विशेषता यह है कि ड्राइवर इन्हें एक ऑफ-बोर्ड इलेक्ट्रिक पावर स्रोत से चार्ज कर सकते हैं।
- EVs दो प्रकार के होते हैं:
1. पूर्ण इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (All-Electric Vehicles-AEV)
2. प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (Plug-in Hybrid Electric Vehicles- PHEVs)।
- ऑल-इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (AEV) केवल बिजली से चलते हैं। इनकी अधिकतम रेंज 80 से 100 मील होती हैं, जबकि कुछ लक्ज़री मॉडल की 250 मील तक की सीमा होती है।
- जब बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है, तो इसे रिचार्ज करने में 30 मिनट (फास्ट चार्जिंग के साथ) का समय लगता है।
- जबकि PHEV, बिजली से 6 से 40 मील तक की ही दूरी तय कर पाते हैं और बैटरी डिस्चार्ज होने पर गैसोलीन ईंधन पर चलने वाले आंतरिक दहन इंजन पर स्विच कर सकते हैं।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्रमुख चुनौतियाँ
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या देश इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिये पूरी तरह से तैयार है? देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की राह में कुछ बड़ी चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
बेसिक प्लेटफॉर्म और अवसंरचना: केवल इलेक्ट्रिक वाहन बनाने से काम नहीं चलने वाला इसको इस्तेमाल करने के लिये बेसिक प्लेटफॉर्म/अवसंरचना की बेहद आवश्यकता है जो फिलहाल भारत में नहीं है। इस तरफ सरकार को विशेष ध्यान देना होगा।
चार्जिंग स्टेशनों की कमी: देश में एक तरफ जहाँ इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग स्टेशन लगभग न के बराबर हैं, जिस वज़ह से लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियों को खरीदने से कतराते हैं। यह सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती है। पेट्रोल/डीज़ल और CNG की तरह ही इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग स्टेशन भी अधिक-से-अधिक संख्या में होने चाहिये।
ज़्यादा चलने वाली बैटरी: देश में ऐसी इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ बनाई जानी चाहिये जो कम बैटरी खर्च कर ज़्यादा चलें। मेट्रो सिटीज़ में ट्रैफिक अधिक होने की वज़ह से माइलेज कम मिलता है, इसलिये इलेक्ट्रिक गाड़ियों की माइलेज तो ज़्यादा होनी ही चाहिये, साथ ही इनमें लगी बैटरी भी लंबे समय तक चलने वाली हो तो बेहतर होगा।
टॉप स्पीड में कमी: आजकल जितने भी इलेक्ट्रिक वाहन आ रहे हैं, चाहे दोपहिया हों या चार पहियों वाले, इन सभी की टॉप स्पीड काफी कम रहती है। पहले इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की स्पीड 25 किलोमीटर अधिकतम होती थी, लेकिन अब कुछ मॉडल 50 किलोमीटर टॉप स्पीड वाले आने लगे हैं लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है।
अधिक कीमत: पेट्रोल और डीज़ल से चलने वाले वाहनों की कीमत इलेक्ट्रिक वाहनों के मुकाबले कम होती है। ऐसे में सरकार को ऑटो कंपनियों के साथ मिलकर सस्ते इलेक्ट्रिक वाहन बनाने पर ज़ोर देना होगा ताकि कम कीमत की वज़ह से लोग इन्हें अपनाने के लिये प्रोत्साहित हों।
भारत सरकार की फेम (FAME) इंडिया योजना
- हाल ही में सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण और उनके अधिकतम इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये फेम इंडिया योजना के दूसरे चरण को मंज़ूरी दी है।
- कुल 10 हज़ार करोड़ रुपए लागत वाली यह योजना 1 अप्रैल, 2019 से तीन वर्षों के लिये शुरू की गई है।
- यह योजना मौजूदा ‘फेम इंडिया वन’ का विस्तारित संस्करण है, जो 1 अप्रैल, 2015 को लागू की गई थी।
प्रमुख उद्देश्य
- इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में तेज़ी से इलेक्ट्रिक और हाईब्रिड वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है।
- इसके लिये लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद में शुरुआती स्तर पर सब्सिडी देने तथा ऐसे वाहनों की चार्जिंग के लिये पर्याप्त आधारभूत संरचना विकसित करना आवश्यक है।
- यह योजना पर्यावरण प्रदूषण और ईंधन सुरक्षा जैसी समस्याओं का समाधान करेगी।
फेम इंडिया की प्रमुख विशेषताएँ
- बिजली से चलने वाली सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर ज़ोर।
- इलेक्ट्रिक बसों के संचालन पर होने वाले खर्च के लिये मांग आधारित प्रोत्साहन राशि मॉडल अपनाना, ऐसे खर्च के लिये धन राज्य और शहरी परिवहन निगमों द्वारा दिया जाना।
- सार्वजनिक परिवहन सेवाओं और वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिये पंजीकृत 3 वॉट और 4 वॉट श्रेणी वाले इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्रोत्साहन राशि।
- 2 वॉट श्रेणी वाले इलेक्ट्रिक वाहनों के सम्बन्ध में मुख्य ध्यान निजी वाहनों पर केंद्रित करना।
- इस योजना के तहत 2 वॉट वाले 10 लाख, 3 वॉट वाले 5 लाख, 4 वॉट वाले 55 हज़ार वाहनों और 7000 बसों हेतु वित्तीय प्रोत्साहन राशि देने की योजना है।
- नवीन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन राशि का लाभ केवल उन्हीं वाहनों को दिया जाएगा, जिनमें अत्याधुनिक लिथियम आयन या ऐसी ही अन्य नई तकनीक वाली बैटरियाँ लगाई गई हों।
- योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग के लिये पर्याप्त आधारभूत ढाँचा उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है। इसके तहत महानगरों, 10 लाख से ज़्यादा की आबादी वाले शहरों, स्मार्ट शहरों, छोटे शहरों और पर्वतीय राज्यों के शहरों में तीन किलोमीटर के अंतराल में 2700 चार्जिंग स्टेशन बनाने का प्रस्ताव है।
- बड़े शहरों को जोड़ने वाले प्रमुख राजमार्गों पर भी चार्जिंग स्टेशन बनाने की योजना है। ऐसे राजमार्गों पर 25 किलोमीटर के अंतराल पर दोनों तरफ चार्जिंग स्टेशन लगाने की योजना है।
आगे की राह
- पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ऐसे शहरों, राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्यों की पहचान करनी होगी जहाँ सिटी बसों और कमर्शियल टैक्सियों को शत-प्रतिशत इलेक्ट्रिक मोड पर चलाया जा सके। इसके लिये तकनीकी और आर्थिक व्यवहार्यता दोनों को दृष्टि में रखना होगा।
- पायलट प्रोजेक्ट्स की पहचान हो जाने के बाद सबसे बड़ी ज़रूरत होगी इन वाहनों के लिये चार्जिंग पॉइंट बनाने की, जहाँ तेज़ी से इन वाहनों को चार्ज करने की सुविधा होनी चाहिये। इसके बिना परिवहन व्यवस्था के छोटे से हिस्से को भी इलेक्ट्रिक मोड पर लाने की कल्पना करना बेईमानी होगा।
- इसके अलावा इन वाहनों पर दी जाने वाली सब्सिडी नीति पर भी नज़र रखनी होगी। शहर में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के तहत चलने वाले वाहनों को इसमें वरीयता दी जानी चाहिये। साथ ही निजी दोपहिया वाहनों और कारों की अनदेखी भी नहीं होनी चाहिये।
- लेकिन ये सभी उपाय तभी सफल हो पाएंगे जब इलेक्ट्रिक वाहनों को संपूर्ण रूप से मेक इन इंडिया की तर्ज़ पर देश में ही बनाने की व्यवस्था की जाए। अभी ऐसे वाहनों का एक बड़ा हिस्सा आयातित उपकरणों पर निर्भर है।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (18 June)
- भारत सरकार ने अमेरिका में उत्पादित या वहाँ से आयात किये जाने वाले बादाम, अखरोट और दालों सहित 28 विनिर्दिष्ट वस्तुओं पर प्रशुल्क (Tariff) बढ़ा दिया है और यह 16 जून से लागू हो गया है। अमेरिका ने पिछले साल मार्च में भारत से निर्यात होने वाले स्टील पर 25% और एल्युमीनियम उत्पादों पर 10% आयात शुल्क लगा दिया था। शुल्क बढ़ाए जाने के बाद भारत सरकार ने अमेरिका के खिलाफ यह कार्रवाई करने का निर्णय गत वर्ष 21 जून को लिया था, पर इसे कई बार टाल दिया गया। अब इसे अमेरिका के खिलाफ भारत की जवाबी व्यापारिक कार्रवाई माना जा रहा है। इसके लिये केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने 30 जून, 2017 की अपनी पुरानी अधिसूचना में संशोधन किया है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 जून को हुई नीति आयोग की संचालन परिषद की पाँचवीं बैठक में कृषि क्षेत्र में ढांचागत सुधार के लिये मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों का उच्चस्तरीय कार्यबल बनाने की घोषणा की। यह कार्यबल कृषि क्षेत्र में बुनियादी सुधारों पर 2-3 महीने में अपनी रिपोर्ट देगा और इसमें कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे। नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक में कृषि क्षेत्र पर ध्यान देने की आवश्यकता बताते हुए कईं मुख्यमंत्रियों ने कृषि प्रसंस्करण और निवेश पर ध्यान देने पर ज़ोर दिया। इसके अलावा बैठक में देश में सूखे की स्थिति के मद्देनज़र आपदा राहत के नियमों की समीक्षा किये जाने पर जोर दिया गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर भी विस्तृत विचार-विमर्श किया गया। नीति आयोग की संचालन परिषद की पहली बैठक 8 फरवरी, 2015; दूसरी बैठक 15 जुलाई, 2015; तीसरी बैठक 23 अप्रैल, 2017 और चौथी बैठक 17 जून, 2018 को हुई थी।
- सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में 10 उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ मिलकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) संचालित डिजिटल लैब लॉन्च कर दी है। इंटेलीजेंट क्लाउड हब नामक इस कार्यक्रम में BITS पिलानी, SRM इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और ट्राइडेंट एकेडमी ऑफ टेक्नोलॉजी सहित कई संस्थान शामिल हैं। इस तीन वर्षीय कार्यक्रम में माइक्रोसॉफ्ट चुने गए संस्थानों को श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ बुनियादी ढाँचे, पाठ्यक्रम और सामग्री, क्लाउड तक पहुँच, AI सेवाओं के साथ-साथ डेवलपर समर्थन भी मुहैया कराएगा। इसके अलावा कंपनी कोर AI इन्फ्रास्ट्रक्चर और इंटरनेट ऑफ थिंग्स हब की स्थापना के साथ-साथ माइक्रोसॉफ्ट Cognitive सेवाएँ, Azure मशीन लर्निंग और बॉट जैसी सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला तक पहुँच की भी सुविधा प्रदान करेगा। फैकल्टी के लिये डिज़ाइन किये गए प्रशिक्षण कार्यक्रमों में क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा विज्ञान, AI और IOT पर कार्यशालाएँ शामिल होंगी।
- ब्रिटेन की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी, ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी तथा अमेरिका की मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी की टीम ने एक अध्ययन में यह पता लगाया है कि 21वीं शताब्दी में हमारे जलचक्र कैसे काम करते हैं। इस प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझने के लिये शोधकर्त्ताओं ने एक नया डायग्राम तैयार किया है। पृथ्वी के बदलते जलचक्र के मद्देनज़र दुनियाभर की पाट्य-पुस्तकों में पढ़ाए जाने वाले पृथ्वी के जलचक्रों के प्रतिरूपों को अपडेट करने का सुझाव दिया गया है, क्योंकि इसमें मानवीय हस्तक्षेप के प्रभाव शामिल नहीं हैं। नए डायग्राम में मानवीय हस्तक्षेप के कारण पड़ने वाले प्रभावों को भी शामिल किया गया है। इसमें ग्लेशियरों के पिघलने, बाढ़ की विभीषिका, प्रदूषण और बढ़ते समुद्री जलस्तर को शामिल किया गया है।
- चीन ने दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ एवं बीजिंग में भारतीय राजदूत के तौर पर तैनात रह चुके विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ काम कर चुके सुन वीदोंग को भारत में अपना नया राजदूत नियुक्त किया है। चीन और दक्षिण एशिया के संबंधों में विशेषज्ञता रखने वाले सुन वीदोंग ने भारतीय विदेश मंत्री के साथ उस समय निकटता से मिलकर काम किया था जब एस. जयशंकर वर्ष 2009-2013 के बीच भारतीय राजदूत के तौर पर बीजिंग में नियुक्त थे और सुन वीदोंग उस समय उपमहानिदेशक थे। पाकिस्तान में चीन के राजदूत के तौर पर काम कर चुके सुन वीदोंग चीनी विदेश मंत्रालय के नीति एवं योजना विभाग के महानिदेशक रहे हैं। इससे पहले भारत में चीन के राजदूत लुओ जाओहुई थे, जिन्हें विदेश मामलों का उपमंत्री नियुक्त किया गया है।
- लंबे समय तक कज़ाकिस्तान के शासक रहे नूरसुल्तान नज़रबायेव के उत्तराधिकारी के रूप में चुने गए कासिम-जोमार्ट टोकायेव ने राष्ट्रपति का पदभार संभाल लिया है। वह देश के दूसरे निर्वाचित राष्ट्रपति बने हैं। सोवियत काल से शासन करने के बाद 78 वर्षीय नूरसुल्तान नज़रबायेव ने इस वर्ष मार्च में पद छोड़ दिया था। राजधानी नूर-सुल्तान में शपथ ग्रहण के लिये आयोजित कार्यक्रम के दौरान टोकायेव ने शपथ ली कि ‘राय अनेक, राष्ट्र एक’ उनके राष्ट्रपति पद का नारा होगा। गौरतलब है कि कज़ाकिस्तान में चुनाव अगले वर्ष होने थे, लेकिन नए राष्ट्रपति ने इसी वर्ष जून में चुनाव कराने का फैसला किया था।
- 15 जून को ज़ुज़ाना कैपुतोवा ने स्लोवाकिया की पहली महिला राष्ट्रपति के तौर पर पदभार संभाल लिया। इसी वर्ष मार्च में हुए चुनावों में कैपुतोवा को 58 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी उच्चस्तरीय राजनयिक और सत्तासीन पार्टी के उम्मीदवार मारकोस सेफ्कोविक को 42 प्रतिशत वोट मिले थे। गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली कैपुतोवा को भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से पहचान मिली। ज्ञातव्य है कि स्लोवाकिया के राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की नियुक्ति के अधिकार के साथ वरिष्ठ अभियोजकों और न्यायाधीशों की नियुक्ति में वीटो पावर प्राप्त है। कैपुतोवा प्रोग्रेसिव स्लोवाकिया पार्टी की सदस्य हैं और स्लोवाकिया की संसद में इस पार्टी का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।