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डेली न्यूज़

  • 17 Sep, 2019
  • 43 min read
भारत-विश्व

सैन्‍य चिकित्‍सा सम्‍मेलन

चर्चा में क्यों?

12-13 सितंबर, 2019 को शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation-SCO) के सदस्य देशों के प्रथम सैन्‍य चिकित्‍सा सम्‍मेलन का आयोजन नई दिल्ली में किया गया।

  • वर्ष 2017 में SCO का सदस्य देश बनने के बाद (SCO रक्षा सहयोग योजना वर्ष 2019-2020 के अंतर्गत) भारत द्वारा आयोजित यह पहला सैन्य सहयोग कार्यक्रम (First Military Cooperation Event) है।

SCO

प्रमुख बिंदु

  • सम्मेलन का आयोजन भारतीय सशस्त्र बलों (Indian Armed Forces) द्वारा हेड क्‍वाटर्स इंटीग्रेटेड डिफेंस स्‍टाफ (Headquarters Integrated Defence Staff-HQ IDS) के तत्त्वावधान में किया गया।
  • इसका उद्देश्य सैन्य चिकित्सा के क्षेत्र में सर्वोत्तम कार्यविधियों को साझा करना, क्षमताओं का निर्माण करना और आम चुनौतियों से निपटना है।
  • SCO सदस्य देशों के सैन्य चिकित्सा विशेषज्ञों के बीच युद्ध के दौरान चिकित्सा सहायता प्रदान करने, आपदाओं के दौरान मानवीय सहायता और रोगी सुरक्षा में सुधार के उपायों पर विचार-विमर्श करने के लिये SCO सदस्य देशों के वरिष्ठ सैन्य चिकित्सकों ने भी इस सम्मेलन में भाग लिया।
  • इस सम्‍मेलन में भाग लेने के लिये संवाद सहयोगी नेपाल एवं श्रीलंका ने भी अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे।
  • इस अवसर पर भारतीय रक्षा मंत्री ने SCO देशों के सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं (Armed Forces Medical Services-AFMS) को संबोधित करते हुए कहा कि युद्ध क्षेत्र में लगातार बढ़ते तकनीकों के प्रयोग को ध्यान में रखते हुए सैनिकों के समक्ष आने वाले नए खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये नए तरीके विकसित करने पर बल देना चाहिये।
    • भारत में सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा महानिदेशालय (Directorate General Armed Forces Medical Service-DGAFMS) एक सर्वोच्च संगठन है जो सेना, नौसेना और वायुसेना के बीच चिकित्सा सेवाओं हेतु समन्वय करता है।
    • यह रक्षा मंत्रालय के अधीन आता है एवं इसकी अध्यक्षता एक लेफ्टिनेंट जनरल अथवा नौसेना या वायुसेना के समकक्ष अधिकारी द्वारा की जाती है।
  • सम्मेलन में जैव-आंतकवाद के खतरे से निपटने के लिये निर्माण क्षमताओं के महत्त्व पर भी विशेष बल दिया गया, क्योंकि वर्तमान समय में यह गंभीर खतरा बनता जा रहा है।
    • क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (Regional Anti-Terrorist Structure-RATS) शंघाई सहयोग संगठन का एक स्थायी अंग है जो आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ सदस्य राज्यों के मध्य सहयोग को बढ़ावा देने हेतु कार्य करता है। इसका मुख्यालय ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में है।

जैव आतंकवाद

(Bio-terrorism)

  • जैव-आतंकवाद का आशय उस स्थिति से है जब किसी वायरस, बैक्टीरिया या अन्य कीटाणुओं का जान बूझकर प्रसार किया जाता है, इसके प्रभाव से मनुष्य और जानवर न केवल बीमार पड़ सकते हैं, बल्कि उनकी मृत्यु भी हो सकती हैं, साथ ही इसके कारण फसलों के खराब होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • बैसिलस एन्थ्रेसिस (Bacillus Anthracis), एक प्रकार का बैक्टीरिया है, जिसके कारण एंथ्रेक्स (Anthrax) नामक बीमारी होती है, जैविक हथियार के रूप में इसका सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
  • भारतीय संदर्भ में बात करें तो पाकिस्तान जैसे शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों की उपस्थिति में जैविक युद्ध के खतरे को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है।

भारत की तैयारी

अब तक कई प्रमुख भारतीय मंत्रालयों को जैव आतंकवाद के कारण होने वाली महामारी से निपटने के लिये चिह्नित किया गया है।

  • जल्द पता लगाना: जैव-आतंकवाद की निगरानी करने और उसके प्रकोप का जल्द-से-जल्द पता लगाने के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने का कार्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को सौंपा गया है।
  • खतरे का आकलन: गृह मंत्रालय खतरे के आकलन, खुफिया जानकारी और निवारक तंत्र के कार्यान्वयन हेतु उत्तरदायी मंत्रालय है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (National Disaster Response Force-NDRF) रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु हमलों से निपटने के लिये यह गृह मंत्रालय के तहत गठित एक विशेष बल है।
  • जैव युद्ध (Biowarfare): जैव युद्ध के प्रबंधन का कार्य रक्षा मंत्रालय को सौंपा गया है।
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) को परमाणु, जैविक और रासायनिक युद्ध के खिलाफ सेना के लिये सुरक्षात्मक प्रणालियों एवं उपकरणों को विकसित करने का कार्य दिया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत ने जैविक हथियार कन्वेंशन (Biological Weapons Convention-BWC) पर हस्ताक्षर किये हैं, जो जैविक और विषैले हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, स्थानांतरण, संग्रहण एवं उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
  • भारत ऑस्ट्रेलिया समूह के प्रतिभागियों में भी शामिल है। भारत इस समूह का सदस्य बनने वाला 43वाँ देश है।

क्या है ऑस्ट्रेलिया समूह (Australia Group-AG)?

  • ऑस्ट्रेलिया ग्रुप उन देशों का सहकारी और स्वैच्छिक समूह है जो सामग्रियों, उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के निर्यात को नियंत्रित करते हैं ताकि, रासायनिक और जैविक हथियारों (Chemical and Biological Weapons-CBW) के विकास या अधिग्रहण में इनका प्रयोग ना किया जा सके।
  • इसका यह नाम इसलिये है क्योंकि ऑस्ट्रलिया ने ही यह समूह बनाने के लिये पहल की थी और वही इस संगठन के सचिवालय का प्रबंधन देखता है।
  • ईरान-इराक युद्ध (1984) में जब इराक ने रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया, (1925 जेनेवा प्रोटोकॉल का उल्लंघन) तब रासायनिक व जैविक हथियारों के आयात-निर्यात और प्रयोग पर नियंत्रण के लिये 1985 में इस समूह का गठन किया गया।
  • ऑस्ट्रेलिया समूह का मुख्य उद्देश्य रासायनिक तथा जैविक हथियारों की रोकथाम हेतु नियम निर्धारित करना है। ऑस्ट्रेलिया समूह इन हथियारों के निर्यात पर नियंत्रण रखने के अलावा 54 विशेष प्रकार के यौगिकों के प्रसार पर नियंत्रण रखता है।
  • ऑस्ट्रेलिया समूह के सभी सदस्य रासायनिक हथियार सम्मेलन (Chemical Weapons Convention-CWC) और जैविक हथियार सम्मेलन (Biological Weapons Convention-BWC) का अनुसमर्थन करते हैं।

स्रोत: PIB


आंतरिक सुरक्षा

जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम

चर्चा में क्यों?

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को राज्य के गृह विभाग ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act-PSA) के तहत हिरासत में लिया है।

  • उल्लेखनीय है कि यह अधिनियम राज्य प्रशासन को अधिकार देता है कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा दायर किये 2 वर्षों तक जेल में रख सकता है।

सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम

  • जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 एक निवारक निरोध (Preventive Detention) कानून है, इसके तहत किसी व्यक्ति को ऐसे किसी कार्य को करने से रोकने के लिये हिरासत में लिया जाता है जिससे राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
  • इस अधिनियम के तहत व्यक्ति को 2 वर्षों के लिये हिरासत में लिया जा सकता है।
  • यह कमोबेश राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के समान ही है, जिसका प्रयोग अन्य राज्य सरकारों द्वारा नज़रबंदी के लिये किया जाता है।
  • इस अधिनियम की प्रकृति दंडात्मक निरोध (Punitive Detention) की नहीं है।
  • यह अधिनियम मात्र संभागीय आयुक्त (Divisional Commissioner) या ज़िला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) द्वारा पारित प्रशासनिक आदेश से लागू होता है।

अधिनियम का इतिहास

  • जम्मू-कश्मीर में इस अधिनियम की शुरुआत 1978 में लकड़ी तस्करी को रोकने के लिये की गई थी, क्योंकि लकड़ी की तस्करी उस समय की सबसे बड़ी समस्या थी एवं इसके तहत गिरफ्तार लोग काफी आसानी से छोटी-मोटी सज़ा पाकर छूट जाते थे।
  • विदित है कि इस अधिनियम की शुरुआत फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने की थी।
  • 1990 के दशक में जब राज्य में उग्रवादी आंदोलनों ने ज़ोर पकड़ा तो दंगाइयों को हिरासत में लेने के लिये राज्य सरकार ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम का प्रयोग काफी व्यापक स्तर पर किया।
  • ज्ञातव्य है कि वर्ष 2011 से पूर्व तक जम्मू-कश्मीर के इस अधिनियम में 16 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने का प्रावधान था, परंतु वर्ष 2011 में अधिनियम को संशोधित कर उम्र सीमा बढ़ा दी गई और अब यह 18 वर्ष है।
  • हाल के वर्षों में भी इस अधिनियम का कई बार प्रयोग किया गया है, वर्ष 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की गिरफ्तारी को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान PSA का प्रयोग कर तकरीबन 550 लोगों को हिरासत में लिया गया था।

काफी कठोर है यह अधिनियम

  • अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, PSA का प्रयोग कर राज्य के किसी भी व्यक्ति को बिना किसी आरोप या जाँच के नज़रबंद किया जा सकता है या उसे हिरासत में लिया जा सकता है। यह नज़रबंदी 2 साल तक की हो सकती है।
  • PSA उस व्यक्ति पर भी लगाया जा सकता है जो पहले से पुलिस की हिरासत में है या जिसे अदालत से ज़मानत मिल चुकी है। यहाँ तक कि इस अधिनियम का प्रयोग उस व्यक्ति पर भी किया जा सकता है जिसे अदालत ने बरी किया है।
  • महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि सामान्य पुलिस हिरासत के विपरीत, PSA के तहत हिरासत में लिये गए व्यक्ति को हिरासत के 24 घंटों के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • साथ ही हिरासत में लिये गए व्यक्ति के पास अदालत के समक्ष ज़मानत के लिये आवेदन करने का भी अधिकार होता नहीं होता एवं वह इस संबंध में किसी वकील की सहायता भी नहीं ले सकता है।
  • इस प्रशासनिक नज़रबंदी के आदेश को केवल हिरासत में लिये गए व्यक्ति के रिश्तेदारों द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus Petition) के माध्यम से चुनौती दी जा सकती है।
  • उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के पास इस तरह की याचिकाओं पर सुनवाई करने और PSA को समाप्त करने के लिये अंतिम आदेश पारित करने का अधिकार है, हालाँकि यदि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय इस याचिका को खारिज कर देते हैं तो उस व्यक्ति के पास इस संबंध में कोई अन्य रास्ता नहीं बचता है।
  • इस अधिनियम में संभागीय आयुक्त अथवा ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा इस प्रकार के आदेश को पारित करना ‘सद्भाव में किया गया’ (Done in Good Faith) कार्य माना गया है, अतः आदेश जारी करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध किसी भी प्रकार की जाँच नहीं की जा सकती है।
  • उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने इस अधिनियम में संशोधन किया था, जिसके अनुसार इस अधिनियम के तहत हिरासत में लिये गए व्यक्ति को अब राज्य के बाहर भी रखा जा सकता है।

PSA लगने के बाद

  • सामान्यतः इस अधिनियम के तहत जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो गिरफ्तारी के 5 दिनों के भीतर ज़िले का DM उसे लिखित रूप में हिरासत के कारणों के बारे में सूचित करता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में इस कार्य में 10 दिन भी लग सकते हैं।
  • हिरासत में लिये गए व्यक्ति को इस प्रकार की सूचना देना DM के लिये आवश्यक होता है, ताकि उस व्यक्ति को भी पता चल सके की उसे क्यों गिरफ्तार किया गया है एवं वह इस संदर्भ में आगे की रणनीति तैयार कर सके। हालाँकि यदि DM को लगता है कि यह सार्वजनिक हित के विरुद्ध होगा तो उसे यह भी अधिकार है कि वह उन तथ्यों का खुलासा न करे जिनके आधार पर गिरफ्तारी या नज़रबंदी का आदेश दिया गया है।
  • DM को गिरफ्तारी या नज़रबंदी का आदेश सलाहकार बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करना होता है, इस बोर्ड में 1 अध्यक्ष सहित 3 सदस्य होते हैं एवं इसका अध्यक्ष उच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश ही हो सकता है। बोर्ड के समक्ष DM उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व भी करता है और यदि व्यक्ति चाहे तो वह बोर्ड के समक्ष खुद भी अपनी बात रख सकता है।
  • सलाहकार बोर्ड 8 हफ्तों के भीतर अपनी रिपोर्ट राज्य को देता है और रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार यह निर्णय लेती है कि यह नज़रबंदी या गिरफ्तारी सार्वजनिक हित में है या नहीं।

निष्कर्ष

इस अधिनियम की शुरुआत राज्य सरकार द्वारा लकड़ी की तस्करी एवं उग्रवाद से निपटने के लिये की गई थी, परंतु वर्तमान में इस इसका प्रयोग व्यापक स्तर पर मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं, पत्रकारों और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ किया जा रहा है। समस्या के समाधान के लिये निर्मित इस अधिनियम का दुरुपयोग होने के कारण अब यह खुद एक समस्या बन चुका है। अतः आवश्यक है कि इस अधिनियम में जल्द-से-जल्द संशोधन कर इसे पुनः आतंकवाद एवं उग्रवाद के विरुद्ध एक समाधान के रूप में प्रयोग करने हेतु स्थापित किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

नल्लामाला वनों में यूरेनियम खनन पर रोक

चर्चा में क्यों?

तेलंगाना विधानसभा ने नल्लामाला (Nallamala) वनों में यूरेनियम खनन रोकने के लिये प्रस्ताव पारित किया है।

यूरेनियम खनन के प्रभाव:

  • यूरेनियम खनन के कारण नल्लामाला वनों की समृद्ध जैव विविधता को गंभीर खतरा हो सकता है।
  • नल्लामाला की पहाड़ियाँ और घाटियाँ कृष्णा नदी के जलग्रहण क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं। यूरेनियम खनन से कृष्णा नदी के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता साथ ही पानी में यूरेनियम का निक्षालन होने के प्रभावस्वरूप समुद्री और स्थलीय जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
  • इस क्षेत्र में चेन्चू आदिवासी निवास करते हैं खनन गतिविधियों से उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता।

चेन्चू जनजाति (Chenchu Tribe):

  • चेन्चू जनजाति तेलंगाना के साथ ही आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा में भी पाई जाती है। यह जनजाति अभी भी जीवनयापन के लिये केवल शिकार पर ही निर्भर हैं, यह कृषि कार्य नहीं करती है।
  • चेन्चू जनजाति चेन्चू भाषा बोलती है, जो द्रविड़ परिवार की एक उपभाषा है।
  • इन वनों में समृद्ध औषधीय वनस्पतियांँ पाई जाती हैं और यहाँ बाघ, तेंदुआ, भालू तथा चित्तीदार हिरण आदि जीव निवास करते हैं।
  • अमराबाद टाइगर रिज़र्व में यूरेनियम खनन हेतु दो ब्लॉकों की पहचान की गई थी लेकिन गैर-सरकारी संगठनों, पर्यावरणविदों और स्थानीय नागरिकों द्वारा खनन कार्य का लगातार विरोध किया जा रहा है। इस प्रकार के खनन से पौधों और जीवों के साथ-साथ कृषि, वायु तथा पीने के पानी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता।

यूरेनियम खनन की आवश्यकता

  • भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ती विकास दर के साथ ही ऊर्जा आवश्यकताएँ भी तेज़ी से बढ़ रही हैं इसी के परिप्रेक्ष्य में ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये यूरेनियम खनन पर ज़ोर दिया जा रहा है।
  • कोयले के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन की अपेक्षा यूरेनियम द्वारा उत्पादित ऊर्जा की लागत कम होती है, साथ ही कोयले की तुलना में यूरेनियम की क्षमता भी अधिक होती है।
  • कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था में यूरेनियम द्वारा उत्पादित ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसलिये सरकार के द्वारा यूरेनियम खनन का प्रयास किया जा रहा है।
  • विदेशों से यूरेनियम के आयात पर बड़ी मात्रा में धन खर्च होता है, इसके आयात समझौतों के साथ और भी कई प्रकार के समझौते (जैसे नागरिक परमाणु करार) करने होते हैं, जिसका भारत की भू-राजनीतिक नीतियों पर भी प्रभाव पड़ता है, इसलिये सरकार स्थानीय स्तर पर यूरेनियम खनन को बढ़ावा दे रही है।

यूरेनियम खनन के विकल्प:

  • सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाना सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है।
  • भू-तापीय ऊर्जा की भारत में अपार संभावनाएँ है इसलिये इसके प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • यूरेनियम खनन के लिये मानवीय निवास से दूर और पर्यावरण की दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण स्थलों का चयन किया जाए।

अमराबाद टाइगर रिज़र्व (Amrabad Tiger Reserve): अमराबाद टाइगर रिज़र्व, तेलंगाना के महबूबनगर और नलगोंडा ज़िलों में 2,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। अमराबाद टाइगर रिज़र्व पहले नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व का हिस्सा था, लेकिन आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व के उत्तरी भाग को तेलंगाना राज्य में अमराबाद टाइगर रिज़र्व नाम से सम्मिलित कर दिया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ताइवान और सोलोमन द्वीपसमूह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सोलोमन द्वीपसमूह ने ताइवान (Taiwan) के साथ अपने राजनीतिक संबंधों की समाप्ति की घोषणा की, साथ ही अब वह चीन के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • अब विश्व भर में केवल 16 देश ही ताइवान को एक देश के रूप में मान्यता प्रदान कर रहे हैं, जिसमें से प्रशांत महासागर के पाँच छोटे द्वीपीय देश शामिल हैं। भारत ताइवान को अलग देश के रूप में मान्यता नही प्रदान करता है।
  • मार्शल आइलैंड्स (Marshall Islands) और पलाऊ (Palau) के अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध हैं तथा उनके द्वारा ताइवान को मान्यता देते रहने की संभावना बनी हुई है, वहीं विश्लेषकों के अनुसार नौरू (Nauru), किरिबाती (Kiribati) एवं तुवालु (Tuvalu) देशों द्वारा जल्द ही ताइवान को दी गई मान्यता रद्द करने की संभावना बढ़ गई है।
  • चीन ने सोलोमन द्वीपसमूह द्वारा एक चीन सिद्धांत (One China Principle) को मान्यता देने के फैसले की सराहना की गई है।
  • 660,000 की जनसंख्या के साथ सोलोमन द्वीपसमूह प्रशांत क्षेत्र में ताइवान का सबसे बड़ा राजनीतिक सहयोगी था।
  • इस देश की अर्थव्यवस्था कृषि, मछलीपालन और वानिकी पर निर्भर करती है तथा इस देश में अविकसित खनिज संसाधन मौज़ूद हैं।
  • सोलोमन द्वीपसमूह ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच स्थित है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान युद्ध स्थल था। इसकी राजधानी होनियारा (Honiara) है।

एक चीन सिद्धांत (One China Principle):

  • एक चीन सिद्धांत के अनुसार ताइवान, चीन का ही भाग है यदि कोई देश ताइवान के साथ राजनीतिक संबंध बनाता है तो उसे चीन के साथ राजनीतिक संबंध समाप्त करने होंगे।
  • इस सिद्धांत के तहत अधिकांश देशों के औपचारिक संबंध ताइवान के बजाय चीन के साथ हैं। चीन, ताइवान को अपना एक अलग प्रदेश मानता है, इसलिये संभावना व्यक्त करता है कि एक दिन ताइवान का चीन में विलय हो जाएगा।
  • ताइवान की सरकार का यह मानना है कि यह एक स्वतंत्र देश है जो औपचारिक रूप से रिपब्लिक ऑफ चाइना (Republic of China) नाम से जाना जाता है, लेकिन एक चीन सिद्धांत के कारण ताइवान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पृथक हो गया है।
  • वर्ष 1949 में चीनी गृहयुद्ध में हार के पश्चात् राष्ट्रवादी पार्टी (Kuomintang- कुओमितांग) द्वारा मुख्य भूमि से अलग ताइवान में च्यांग काई शेक (Chiang Kai-Shek) के नेतृत्व में रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम से सरकार की स्थापना की गई थी। इसी समय से चीन में स्थापित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (Peoples Republic of China) की साम्यवादी सरकार ने इस सिद्धांत की घोषणा की और स्वयं को चीन का वास्तविक प्रतिनिधि बताया।
  • शुरुआत में अमेरिका समेत कई देश साम्यवादी चीन के बजाय ताइवान को प्रमुखता देते रहे लेकिन बदलती भू-राजनीति के फलस्वरूप वर्ष 1970 के बाद सभी देश चीन की सरकार को मान्यता देने लगे।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

इलेक्ट्रॉनिक सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन

चर्चा में क्यों?

16 सितंबर, 2019 को केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने नई दिल्ली में इलेक्ट्रॉनिक सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन (Certificates of Origin-CoO) जारी करने के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च किया।

  • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार निदेशालय (Directorate General of Foreign Trade-DGFT) और RMTR (Regional & Multilateral Trade Relations) ने कॉमन डिजिटल प्लेटफॉर्म को डिज़ाइन किया है और इसे विकसित किया है।

विशेषताएँ

  • सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन को इलेक्ट्रॉनिक रूप से जारी किया जाएगा।
  • यदि सहयोगी देश सहमत होते हैं तो इसके लिये पेपरलेस रूप अपनाया जाएगा।
  • सहयोगी देश वेबसाइट पर प्रमाण-पत्रों की प्रमाणिकता का सत्यापन कर सकते हैं।
  • निर्यातक इस प्लेटफॉर्म पर पंजीयन कर सकते हैं और सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन के लिये आवेदन कर सकते हैं।
  • इस प्लेटफॉर्म को चरणबद्ध तरीके से FTA के लिये लाइव बनाया जाएगा।
  • भारत–चिली अधिमान्य व्यापार समझौते (Preferential Trade Agreement-PTA) के साथ इसकी शुरुआत होगी।
  • यदि सहयोगी देश इलेक्ट्रॉनिक डेटा आदान-प्रदान के लिये सहमत होता है तो सहयोगी देश के कस्टम विभाग के पास सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेज दिया जाएगा।

प्लेटफॉर्म के लाभ:

नया प्लेटफॉर्म वर्तमान प्रक्रिया
जारी करने की प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिक, पेपरलेस और पारदर्शी होगी। वर्तमान प्रक्रिया के तहत निर्यातक को प्रत्येक प्रमाण-पत्र के लिये तीन बार कार्यालय आना पड़ता है।
उत्पाद के स्तर पर, देश के स्तर पर FTA उपयोग की वास्तविक समय पर निगरानी। वास्तविक समय पर निगरानी संभव नहीं क्योंकि डेटा विभिन्न एजेंसियों के बीच बटा रहता है।
सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन को इलेक्ट्रॉनिक रूप में जारी किया जाता है। सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन को दस्तावेज़ के रूप में जारी किया जाता है।
सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन का सदस्य देशों के साथ आदान-प्रदान संभव। सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन का सदस्य देशों के साथ आदान-प्रदान संभव नहीं।
निर्यातकों के लिये लागत और समय की बचत। वर्तमान प्रक्रिया में लागत और समय अधिक लगता है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत का 15 देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement-FTA) और अधिमान्य व्यापार समझौता (PTA) है। इनके लिये लगभग सात लाख प्रमाण-पत्र जारी किये जाते हैं।
  • इससे यह साबित होता है कि निर्यात की गई वस्तुओं का निर्माण भारत में हुआ है।
  • इस डिजिटल प्लेटफॉर्म से निर्यातकों, FTAs/PTAs तथा सभी संबंधित एजेंसियों को एक ही स्थान पर सुविधाएँ मिलेंगी।

सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन (CoO) जारी करने वाली एजेंसियाँ

  • सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिजिन जारी करने वाली कुछ एजेंसियाँ हैं–
    • निर्यात निरीक्षण परिषद (Export Inspection Council-EIC)
    • विदेश व्यापार निदेशालय (Directorate General of Foreign Trade-DGFT)
    • समुद्री उत्पाद निर्यात प्राधिकरण (Marine Products Export Development Authority-MPEDA)
    • वस्त्र समिति और तंबाकू बोर्ड (Textile Committee and Tobacco Board)

निर्यात निरीक्षण परिषद

  • यह भारत का आधिकारिक निर्यात-प्रमाणन निकाय है जो भारत से निर्यातित उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • भारत सरकार द्वारा निर्यात (गुणवत्ता नियंत्रण और निरीक्षण) अधिनियम, 1963 की धारा 3 के तहत EIC की स्थापना की गई।
  • इसका मुख्य यह यह सुनिश्चित करना है कि निर्यात (गुणवत्ता नियंत्रण और निरीक्षण) अधिनियम 1963 के तहत अधिसूचित उत्पाद गुणवत्ता और सुरक्षा के संबंध में आयातित देशों की आवश्यकताओं को पूरा करें।
  • निर्यात निरीक्षण परिषद दिल्ली में स्थित है।
  • EIC विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे- मछली और मत्स्य उत्पादों, डेयरी उत्पाद, शहद, मांस, जिलेटिन (Gelatine), ओस्सीन (Ossein) तथा अन्य खाद्य पदार्थों के लिये अनिवार्य प्रमाणन प्रदान करता है जबकि अन्य खाद्य और गैर-खाद्य उत्पादों को स्वैच्छिक आधार पर प्रमाणित किया जाता है।
  • निर्यात निरीक्षण एजेंसियाँ मुंबई, कोलकाता, कोच्चि, दिल्ली और चेन्नई में स्थित हैं।

विदेश व्‍यापार महानिदेशालय

  • यह वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय का एक संबद्ध कार्यालय है तथा विदेश व्‍यापार महानिदेशक (Director General of Foreign Trade) इसका अध्‍यक्ष होता है।
  • वर्ष 1991 में इसकी शुरूआत की गई, तब से यह संगठन विनियमन के माध्‍यम से विदेश व्‍यापार को विनियमित करने एवं बढ़ावा देने के कार्य में संलग्नित है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्‍ली में है।
  • यह भारत के निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य के साथ विदेश व्‍यापार नीति के कार्यान्‍वयन के लिये उत्तरदायी है।
  • यह निर्यातकों को लाइसेंस जारी करता है तथा 36 क्षेत्रीय कार्यालयों तथा इंदौर में एक विस्‍तार काउंटर के नेटवर्क के माध्‍यम से उनकी तदनुरूपी बाध्‍यताओं की निगरानी भी करता है।

समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण

  • इसकी स्थापना MPEDA (Marine Products Export Development Authority) अधिनियम, 1972 की धारा (4) के तहत की गई थी, यह 20 अप्रैल, 1972 से कार्य कर रहा है।
  • यह वाणिज्य विभाग के तहत एक सांविधिक निकाय (statutory body) है।
  • MPEDA समुद्री उत्पाद उद्योग के विकास, विशेष रूप से निर्यात के संदर्भ में, के लिये उत्तरदायी है।
  • इसका मुख्यालय कोच्चि में है और इसके कई क्षेत्रीय एवं उप-क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं।

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

लीप और अर्पित, 2019

चर्चा में क्यों?

16 सितंबर, 2019 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई दिल्ली में पंडित मदन मोहन मालवीय नेशनल मिशन ऑन टीचर्स एंड टीचिंग (Pandit Madan Mohan Malviya National Mission on Teachers and Teaching-PMMMNMTT) के तहत लीप और अर्पित, कार्यक्रम 2019 को लॉन्च किया।

लीडरशिप फॉर अकादमीशियंस प्रोग्राम (लीप)

(Leadership for Academicians Programme-LEAP), 2019

  • मौजूदा उच्च शिक्षा के दिग्‍गजों और प्रशासकों की प्रबंधकीय क्षमताओं को और बेहतर बनाने तथा उच्च शिक्षा प्रणालियों के प्रबंधन में नई प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिये यह पहल शुरू की गई है।
  • इसका लक्ष्य उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) के नेतृत्‍व विकास की संरचित योजना तैयार करना है। इसका मुख्य उद्देश्य दूसरे स्‍तर के शैक्षणिक प्रमुख तैयार करना है जो भविष्य में नेतृत्व की भूमिकाएँ संभालने की क्षमता रखते हो।
  • यह तीन सप्‍ताह का नेतृत्‍व प्रशिक्षण कार्यक्रम है। इसमें दो सप्‍ताह का घरेलू एक सप्‍ताह का विदेशी प्रशिक्षण शामिल है।

एनुअल रीफ्रेशर प्रोग्राम इन टीचिंग (अर्पित)

(Annual Refresher Programme in Teaching-ARPIT), 2019

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दिसंबर, 2018 में शिक्षण में वार्षिक रिफ्रेशर कार्यक्रम लॉन्च किया था।
  • अर्पित (एनुअल रिफ्रेशर प्रोग्राम इन टीचिंग) एक ऑनलाइन पहल है जिसके द्वारा MOOCs (Massive Open Online Courses) प्लेटफॉर्म स्वयं का उपयोग करके 15 लाख उच्च शिक्षा के शिक्षक ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
  • इसके लिये राष्ट्रीय संसाधन केंद्रों (National Resource Centers-NRCs) की पहचान की गई जो ऑनलाइन प्रशिक्षण सामग्री को तैयार करने में सक्षम है।

स्रोत: PIB


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (17 September)

  • राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने तीन देशों की यात्रा के अंतिम चरण में दक्षिण-मध्‍य यूरोपीय देश स्‍लोवेनिया पहुँचे। स्लोवेनिया की राजधानी लुबियाना (Ljubljana) में उन्होंने अपने समकक्ष बो‍रूत पाहोर से मुलाकात की। इसके बाद दोनों देशों के बीच आपसी हितों के क्षेत्रों में सहयोग के 11 समझौतों पर हस्‍ताक्षर किये गए। भारतीय राष्ट्रपति ने भारत-स्लोवेनिया बिज़नेस इवेंट में भी हिस्सा लिया। विदित हो कि वर्ष 1991 में स्‍लोवेनिया की स्‍वतंत्रता के बाद किसी भारतीय राष्‍ट्रपति की यह पहली यात्रा है। मध्य यूरोप में आल्प्स पर्वत के निकट स्थित स्लोवेनिया भूमध्य सागर की सीमा से लगा देश है। इसके पश्चिम में इटली, दक्षिण-पश्चिम में एड्रियाटिक सागर, दक्षिण और पूर्व में क्रोएशिया उत्तर-पूर्व में हंगरी और उत्तर में ऑस्ट्रिया स्थित है।
  • सेना सेवा कोर की एक्वा स्टेलियन व्हाइटवॉटर राफ्टिंग टीम ने लेह में जांस्कर नदी को पार करने का पिछला 10 घंटे 10 मिनट का रिकार्ड तोड़ दिया। राफ्टिंग दल के 24 सदस्यों को 3 सितंबर को लेह से रवाना किया था। इस दल ने लद्दाख में जांस्कर नदी पर पदम से निम्मू तक की 160 किलोमीटर की दूरी को 7 घंटे 51 मिनट में पूरा किया।
  • 8 सितंबर को दुनियाभर में विश्व साक्षरता दिवस का आयोजन किया गया। वर्ष 1966 में यूनेस्को ने शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और दुनियाभर के लोगों का ध्‍यान इस तरफ आकर्षित करने के लिये हर साल 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाने का निर्णय लिया था। विश्व साक्षरता दिवस मनाने को लेकर पहली बार वर्ष 1965 में 8 से 19 सितंबर के बीच ईरान के तेहरान में शिक्षा के मंत्रियों के विश्व सम्मेलन के दौरान चर्चा की गई थी। इस सम्मेलन के दौरान विश्व साक्षरता दिवस मनाने का एलान किया। वर्ष 2018 में जारी मानव संसाधन विकास मंत्रालय की शैक्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की साक्षरता दर 69.1% (गाँव और शहर दोनों को मिलाकर) है। ग्रामीण भारत में साक्षरता दर 64.7% है जिसमें महिलाओं भागीदारी 56.8% है और पुरुषों की 72.3%। शहरी भारत में साक्षरता दर 79.5% है जिसमें 74.8% महिलाएँ हैं और 83.7 पुरुष। वर्ष 2019 के विश्व साक्षरता दिवस की थीम Literacy and Multilingualism (साक्षरता और बहुभाषावाद) रखी गई है।
  • 16 सितंबर को दुनियाभर में विश्व ओज़ोन दिवस का आयोजन किया गया। इसी सप्ताह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की 32वीं वर्षगांठ भी मनाई जा रही है। इसे अब तक का सबसे सफल पर्यावरणीय समझौता माना जाता है। इस संधि पर 16 सितंबर, 1987 को हस्ताक्षर किये गए थे। इस संधि के तहत ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये सभी देशों के द्वारा स्वीकृत एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं। हर साल ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये एक अलग थीम तैयार करके लोगों को इसके महत्त्व के बारे में जानकारी दी जाती है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की वर्षगांठ या विश्व ओज़ोन दिवस मनाने का उद्देश्य ओज़ोन परत को हानिकारक क्लोरोफ्लोरो कार्बन जैसी गैसों से बचाना है। ओज़ोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। इस वर्ष विश्व ओज़ोन दिवस 2019 की थीम 32 years and Healing रखी गई है।
  • खेल जगत में भारतीय खिलाड़ियों को सफलता मिलने का सिलसिला जारी है।
    • भारत के युवा बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन ने बेल्जियन इंटरनेशनल चैलेंज टूर्नामेंट के पुरुष सिंगल्स का खिताब डेनमार्क के विक्टर स्वेंड्सन को हराकर जीता। एक अन्य भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी कौशल धरमामेर ने इंडोनेशिया के केरोनो केरोनो को हराकर म्याँमार इंटरनेशनल सीरीज़ में पुरुष सिंगल्‍स का खिताब जीत लिया। वियतनाम ओपन में भी भारत के बैडमिंटन खिलाड़ी सौरभ वर्मा ने पुरूषों के सिंगल्स के फाइनल में चीनी खिलाड़ी सुन फेई जियांग को हराकर खिताब जीता।
    • भारतीय एथलीट मयंक वैद ने दुनिया की सबसे कठिन रेस एंडुरोमन ट्रायथलन को रिकॉर्ड समय 50 घंटे 24 मिनट में जीत लिया। उन्होंने पिछले वर्ल्ड रिकॉर्ड को 2 घंटे 6 मिनट के बड़े अंतर से तोड़ा। इससे पहले बेल्जियम के जूलियन डेनेयर का 52 घंटे 30 मिनट का रिकॉर्ड था। मयंक यह रेस जीतने वाले एशिया के पहले और दुनिया के 44वें एथलीट बन गए हैं। इस रेस को दुनिया की सबसे कठिन पॉइंट टू पॉइंट ट्रायथलन रेस माना जाता है।
    • कोलंबो के आर. प्रेमदासा स्टेडियम में खेले गए फाइनल में पहले बल्लेबाजी करते हुए 32.4 ओवरों में सिर्फ 106 रन बनाने के बावजूद भारतीय टीम ने बांग्लादेश को 5 रन से हराकर अंडर-19 एशिया कप क्रिकेट का खिताब जीत लिया लिया। भारत ने सातवीं बार अंडर-19 एशिया कप का खिताब जीता है। भारत वर्ष 1989, 2003, 2012, 2013-14, 2016, 2018 में भी यह खिताब जीत चुका है।
    • भारत के शीर्ष क्यू (बिलियर्ड्स तथा स्नूकर) खिलाड़ी पंकज आडवाणी ने म्याँमार के स्थानीय खिलाड़ी नाए थावे ओ को हराकर आईबीएसएफ विश्व बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप का खिताब जीत लिया। पंकज आडवाणी ने लगातार चौथा फाइनल जीता है। यह उनके करियर का 22वाँ तथा बिलियर्ड्स के शॉर्ट फॉर्मेट में पिछले 6 वर्षों में पाँचवां वर्ल्ड टाइटल है।

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