विश्व में अल्पपोषण की समस्या
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) द्वारा जारी ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ (The State of Food Security and Nutrition in the World report) नामक एक रिपोर्ट के अनुसार, बीते 3 वर्षों में भूख से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और लगभग 820 मिलियन लोग आज भी अल्पपोषण से प्रभावित हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका के लगभग सभी क्षेत्रों में अल्पपोषण की समस्या विकराल हो गई है और वहाँ की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या इससे प्रभावित है।
- लेटिन अमेरिका के क्षेत्र भी इस समस्या से अछूते नहीं रहे हैं, हालाँकि उन क्षेत्रों में यह आँकड़ा मात्र 7 प्रतिशत ही है।
- पौष्टिक और पर्याप्त भोजन की कमी के कारण ये लोग कुपोषण और खराब स्वास्थ्य जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं।
- रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है कि यदि ऐसे ही चलता रहा तो विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिये वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना काफी मुश्किल हो जाएगा।
- रिपोर्ट में इस बात को भी स्वीकार किया गया है कि लगभग उन सभी देशों, जिनमे वर्ष 2011 से वर्ष 2017 के बीच अल्पपोषण में वृद्धि हुई है, ने अपनी अर्थव्यवस्था में मंदी का सामना किया है।
भारत के संदर्भ में:
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2004-06 के बीच कुपोषितों की कुल संख्या 253.9 मिलियन थी जो वर्ष 2016-18 के बीच घटकर 194.4 मिलियन हो गई।
- यह कहा जा सकता है कि भारत में कुपोषितों की कुल संख्या में कमी तो आई है, परंतु अभी भी भारत के समक्ष यह एक प्रमुख समस्या के रूप में मौजूद है।
- पोषण के संदर्भ में सरकार द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, भारत में उचित आहार प्राप्त करने करने वाले बच्चों की कुल संख्या 10 प्रतिशत से भी कम है।
कुपोषण क्या है?
- कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन अव्यवस्थित रूप से लेने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है और यह एक गंभीर स्थिति है।
- कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा नहीं होती है।
- दरअसल, हम स्वस्थ रहने के लिये भोजन के ज़रिये ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, लेकिन यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण के शिकार हो सकते हैं।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
ब्रॉडबैंड तैयारी सूचकांक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दूरसंचार विभाग (The Department of Telecom-DoT) और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (Indian Council for Research on International Economic Relations-ICRIER) ने देश के राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के लिये ब्रॉडबैंड तैयारी सूचकांक (Broadband Readiness Index-BRI) तैयार करने के उद्देश्य से एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- इस सूचकांक के अंतर्गत प्रथम अनुमान वर्ष 2019 में ही जारी किये जाएंगे और इसके बाद वर्ष 2022 तक इस तरह के अनुमान हर साल जारी किये जाएंगे।
- राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति (National Digital Communication Policy-NDCP) 2018’ में ब्रॉडकास्टिंग एवं विद्युत क्षेत्रों की मौज़ूदा परिसंपत्तियों का उपयोग कर एक सुदृढ़ डिजिटल संचार बुनियादी ढाँचा बनाने की आवश्यकता को चिह्नित किया गया है जिसमें राज्यों, स्थानीय निकायों एवं निजी क्षेत्र के सहयोगात्मक मॉडल/प्रारूप भी शामिल हैं।
- राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति में यह सिफारिश की गई है कि निवेश आकर्षित करने के साथ-साथ देश भर में मार्ग के अधिकार यानी राइट ऑफ वे (Right Of Way) से जुड़ी चुनौतियों से निपटने हेतु राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एक BRI तैयार किया जाना चाहिये।
- यह सूचकांक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के स्तर पर अंतर्निहित डिजिटल बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं की मौजूदा स्थिति के साथ-साथ अन्य संबंधित बातों का आकलन करेगा।
- ब्रॉडबैंड तैयारी सूचकांक के दो हिस्से होंगे। पहले हिस्से में बुनियादी ढाँचागत विकास पर फोकस किया जाएगा जो नौ पैमानों पर आधारित होगा। दूसरे हिस्से में मांग पक्ष से जुड़े पैमाने या मानदंड शामिल होंगे जिन्हें प्राथमिक सर्वेक्षणों के ज़रिये दर्ज किया जाएगा।
- इसमें कई संकेतक जैसे कि इंटरनेट कनेक्शन युक्त कंप्यूटर/लैपटॉप का उपयोग करने वाले परिवारों की संख्या (प्रतिशत में), फिक्स्ड ब्रॉडबैंड कनेक्शन (Fixed Broadband Connection) वाले परिवारों की संख्या (प्रतिशत में), कुल इंटरनेट उपयोगकर्ता या यूज़र (आबादी के प्रतिशत के रूप में) इत्यादि शामिल होंगे। प्राथमिक सर्वेक्षण वर्ष 2022 तक प्रतिवर्ष किया जाएगा।
प्रस्तावित सूचकांक में शामिल संकेतक
- ROW और टॉवर पर राज्य की नीति की उपलब्धता (दूरसंचार विभाग के ROW नियम 2016 पर आधारित)।
- ROW से जुड़े अधिकतर वे मामले जिनमें प्रथम आवेदन के 60 दिनों के भीतर अनुमति दे दी गई है।
- भूमि एवं भवन के स्वामित्व वाले सभी सरकारी प्राधिकरणों में ROW मंज़ूरी के लिये एक केंद्रीकृत IT पोर्टल की उपलब्धता।
- राज्यों द्वारा राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता 2016 (National Building Code 2016) को अपनाना।
- फाइबर युक्त मोबाइल टॉवर (प्रतिशत में)।
- प्रति वर्ग किलोमीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति 100 परिवार फाइबर किलोमीटर की संख्या।
- FTTX (PHCs सहित अस्पताल, पुलिस स्टेशन, स्कूल एवं सीएससी) से जुड़े सार्वजनिक संस्थान/कार्यालय (प्रतिशत में)।
- ग्रिड आपूर्ति प्राप्त करने वाले टावर (प्रतिशत में) (अवधि : शहर 20 घंटे, गांव 12 घंटे)।
- नगरनेट (NagarNet)– शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक वाई-फाई हॉट स्पॉटों की संख्या।
- जन वाई-फाई (Jan Wi-Fi)– ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक वाई-फाई हॉट स्पॉटों की संख्या।
सूचकांक से होने वाले लाभ
- इस तरह के प्रयासों से राज्यों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी से जुड़े कार्यक्रमों में निवेश आकर्षण संबंधी रणनीतिक विकल्पों को समझने में मदद मिलेगी।
- सहकारी संघवाद की भावना के अंतर्गत यह सूचकांक राज्यों को भारत के डिजिटल समावेश एवं विकास के समग्र उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक दूसरे से सीखने और संयुक्त रूप से भागीदारी करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
- इस अनुसंधान के तहत विकसित की गई पद्धति को अपनाने के साथ-साथ हर साल इस्तेमाल में लाया जाएगा, ताकि नई नीति के तहत वर्ष 2022 के लिये लक्ष्यों के रूप में तय किये गए विभिन्न मानदंडों पर राज्यों के प्रदर्शन का सुव्यवस्थित ढंग से आकलन किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की रैंकिंग करने के साथ-साथ उनके प्रदर्शन को सही ढंग से समझना इस कवायद का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हो जाएगा।
स्रोत: PIB
सुबनसिरी बांध
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा लोअर सुबनसिरी जलविद्युत परियोजना (Lower Subansiri Hydroelectric Project- LSHEP) में सुरक्षा मुद्दों को हल करने तक निर्माण कार्य शुरू नहीं करने के आदेश दिये जाने के बावज़ूद हाल ही में इस पर काम करने पर बड़े पैमाने पर सहमति व्यक्त की गई है।
प्रमुख बिंदु
- लोअर सुबनसिरी जलविद्युत परियोजना असम एवं अरुणाचल प्रदेश की सीमा के साथ सुबनसिरी नदी पर एक निर्माणाधीन ग्रेविटी बांध है।
- बांध सुरक्षा और प्रशासनिक मुद्दों पर स्थानीय आंदोलन के कारण इस परियोजना को लंबित रखा गया था:
- LSHEP ने ब्रह्मपुत्र बोर्ड के जल संसाधन विभाग के कार्यों को ब्रह्मपुत्र बोर्ड से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में स्थानांतरित करके ब्रह्मपुत्र बोर्ड अधिनियम 1980 (Brahmaputra Board Act 1980) को समाप्त कर दिया।
- रुड़की के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा बांध निर्माण पर किये गए मूल्यांकन में भूकंपीय जोखिम स्तर में वृद्धि पाई गई।
ग्रेविटी बांध
(Gravity Dam)
- ग्रेविटी बांध का निर्माण कंक्रीट या सीमेंट से किया जाता है।
- क्योंकि इसमें पानी को एकत्रित किया जाता है इसलिये इसे बनाने में भारी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है जो पानी के दबाव को सहन कर सके।
- ग्रेविटी बांध का डिज़ाइन पानी को बाँधने के लिये किया गया है। ताकि बांध का प्रत्येक खंड स्थिर तथा किसी अन्य बांध खंड से स्वतंत्र हो।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2011 में असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा पर स्थित लोअर सुबनसिरी जलविद्युत परियोजना का काम एक स्थानीय आंदोलन के कारण रोक दिया गया था।
- NGT ने दिसंबर 2015 में NHPC लिमिटेड को सुरक्षा मुद्दों के हल करने तक फिर से निर्माण कार्य शुरू करने पर रोक लगा दी थी।
अन्य विवादास्पद बांध
- सरदार सरोवर बांध: यह नवगाम (गुजरात) के पास नर्मदा नदी पर स्थित है।
- इस बांध से गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान को जल एवं बिजली की आपूर्ति की जाती है।
- इस बाँध के निर्माण के कारण लगभग 2.5 लाख ग्रामीणों के विस्थापित किये जाने का आरोप है।
- मुल्लापेरियार बांध: यह केरल के इडुक्की ज़िले में पेरियार नदी पर बना एक ग्रेविटी बांध है लेकिन इसका स्वामित्व एवं संचालन तमिलनाडु सरकार द्वारा किया जाता है।
- बांध की अधिक ऊँचाई को लेकर केरल एवं तमिलनाडु सरकारों के बीच एक विवाद चल रहा है।
- पोलावरम परियोजना: यह आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी पर पश्चिम गोदावरी ज़िले और पूर्वी गोदावरी ज़िले में निर्माणाधीन एक बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय परियोजना है।
- इस परियोजना से ओडिशा और छतीसगढ़ के गावों के जलमग्न होने की आशंका है।
- किशनगंगा पनबिजली संयंत्र एक ‘रन ऑफ रिवर (Run of River-RoR) योजना’- यानी ‘जल भंडारण के बगैर योजना’ है, जिसे किशनगंगा नदी के पानी को झेलम नदी के बेसिन में स्थित बिजली संयंत्र की और प्रवाहित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है
- यह जम्मू एवं कश्मीर में स्थित है।
- विश्व बैंक की मध्यस्थता के बावजूद भारत एवं पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के मुद्दे पर विवाद हल नहीं हो सका है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मानक ब्यूरो अधिनियम 2016
चर्चा में क्यों ?
उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-BIS) को 2016 के अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु निर्देश जारी किये हैं।
भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 2016 के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु महत्त्वपूर्ण कदम-
- वर्ष 2016 के अधिनियम के तहत भारतीय मानक ब्यूरो ने (हॉलमार्किंग) विनियम 2018 जारी किया जिसमे सोने और चांदी के आभूषण और कलाकृतियों को हॉलमार्क के साथ चिह्नित करने के लिये अधिसूचित किया है।
- अनुपालन की स्वघोषणा (Self Declaration Of Conformity) सहित विनियम 2018 में कई अन्य प्रकार के मानकों को भी सरलीकृत किया गया है। जिससे निर्माताओं को मानकों का पालन करने और अनुपालन का प्रमाण पत्र प्राप्त करने में आसानी होगी। अंततः इससे ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) रैंकिंग में भी सुधार होगा।
- भारतीय मानक ब्यूरो की धारा 16 (1) के तहत अनुपालन मूल्यांकन प्रमाणपत्र अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही मूल्यांकन से संबंधित अन्य संस्थाओं के लिये भी दिशानिर्देश जारी किये है।
- मूल्यांकन अनुपालन ठीक से न होने की स्थिति में दंड के प्रावधानों को सख्त कर दिया गया है।
- भारतीय मानक ब्यूरो की मुख्य गतिविधियों जैसे मानक निर्माण, प्रमाणन, हॉलमार्किंग, प्रयोगशाला परीक्षण, उपभोक्ता मामले और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आदि की समीक्षा प्रक्रिया में सुधार किया जा किया जा है।
- इसके अलावा सरकार शिकायतों के आसान निवारण तंत्र, अनिवार्य प्रमाणीकरण और प्रचार के माध्यम से उपभोक्ता के विश्वास को बढ़ाने की दिशा में भी कार्य कर रही है।
भारतीय मानक ब्यूरो
(Bureau of Indian Standards-BIS)
- BIS वस्तुओं के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन जैसी गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिये बी.आई.एस. अधिनियम 2016 के तहत स्थापित भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय (National Standard Body of India) है।
- इसके अतिरिक्त यह संस्था उक्त विषयों से जुड़े आकस्मिक या अतिरिक्त मामलों को नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिये भी उत्तरदायी है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
स्रोत : PIB
व्हाइट लेबल एटीएम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्हाइट लेबल एटीएम (White Label ATMs-WLAs) की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने व्हाइट लेबल ATM संचालकों/ऑपरेटर्स (WLAOs) को RBI तथा मुद्रा कोष से थोक में नकदी खरीदने की अनुमति दी है।
- इस अनुमति से व्हाइट लेबल एटीएम को कार्यक्षमता प्राप्त होगी, क्योंकि इनमें हमेशा नकदी की कमी होती है। इन ATMs में नकदी कम होने का मुख्य कारण बैंकों द्वारा स्वस्थापित ATMs को वरीयता दिया जाना है।
- अब तक WLAs में नकदी के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी प्रायोजक बैंक की होती थी।
- WLAO को RBI से सीधे नकदी प्राप्त करने की अनुमति देकर देश भर में और अधिक WLATM खोलने के लिये प्रोत्साहित करेगा जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा
‘व्हाइट लेबल ATM’
- गैर-बैंक संस्थाओं द्वारा स्वामित्व एवं संचालित ATM को ‘व्हाइट लेबल एटीएम’ (WLA) कहा जाता है।
- कंपनी अधिनियम 1956 के तहत भारत में शामिल गैर-बैंक संस्थाओं को WLAs के संचालन की अनुमति है।
- भुगतान और निपटान प्रणाली (Payment and Settlement Systems- PSS) अधिनियम 2007 के तहत RBI से प्राधिकरण प्राप्त करने के बाद गैर-बैंक संस्थाओं को भारत में WLAs स्थापित करने की अनुमति है।
- इस तरह की गैर-बैंक संस्थाओं का न्यूनतम नेटवर्थ 100 करोड़ रुपए होना चाहिये।
- टाटा कम्युनिकेशंस पेमेंट सॉल्यूशंस लिमिटेड (Tata Communications Payment Solutions Limited- TCPSL) देश में व्हाइट लेबल एटीएम खोलने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिकृत पहली कंपनी थी। इसे 'इंडिकैश' (Indicash) नाम से लॉन्च किया गया था।
- WLAs सामान्य ATM की तरह ही होते हैं। हालाँकि WLA में नकद जमा या नकद स्वीकृति की सुविधा नहीं है।
- ये मशीनें आमतौर पर गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (Non-Banking Financial Institutions- NBFC) द्वारा लगाई जाती हैं।
ब्राउन लेबल एटीएम
- यह ATM लागत को साझा करने की अवधारणा पर आधारित है।
- जब बैंक अपने ATM संबंधी कामकाज किसी तीसरे पक्ष को सौंप देते हैं, तो उस तीसरे पक्ष द्वारा लगाए गए ATM ब्राउन लेबल ATM कहलाते हैं। इन ATM को नकदी उसी बैंक द्वारा ही मुहैया कराई जाती है।
- इस ATM पर उसी बैंक का लोगो भी लगा होता है जिसने उस तीसरे पक्ष को काम सौंपा है।
स्रोत: द हिंदू
घटता लिंग अनुपात और प्रजनन दर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General Of India) के नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System-SRS) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, देश में जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth-SRB) वर्ष 2017 के अंत तक तीन वर्ष की अवधि में घटकर 898 रह गया।
प्रमुख बिंदु
- SRS द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में देश में कुल प्रजनन दर 2.3 थी वहीं 2017 में यह घटकर 2.2 ही रह गई है, जोकि देश की कुल प्रतिस्थापन दर 2.1 के काफी करीब है।
- यह प्रवृत्ति संयुक्त राष्ट्र द्वारा जनसंख्या अनुमानों के अनुरूप है, जिन्हें हाल के वर्षों में नीचे की ओर संशोधित किया गया है।
- जिस वर्ष भारत जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल जाएगा, उसे वर्ष 2022 (2015 की रिपोर्ट के अनुसार) से बढ़ाकर वर्ष 2027 (2019 के अनुसार) कर दिया गया है।
- यह प्रवृत्ति इस ओर भी इशारा करती है कि भारतीय अब कम बच्चे चाहते हैं लेकिन उसमें भी उनकी आकाँक्षा पुत्र प्राप्ति की होती हैं। आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) 2017-18 में भी संतान के रूप में बेटे की प्राथमिकता को प्रमुखता से दर्शाया गया है।
- हाल के वर्षों में तेलंगाना, दिल्ली और केरल के साथ-साथ बिहार में भी जन्म के समय लिंगानुपात में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई।
- यद्यपि इस असमानता के लिये लिंग-निर्धारण तकनीकों के प्रयोग को सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है लेकिन बिहार जैसे राज्यों में खराब लिंगानुपात के पीछे एक कारण और है कि अमीर परिवार दोषपूर्ण सामाजिक और आर्थिक कारणों से बेटों को अधिक पसंद करते हैं।
- SRS द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों में यह भी प्रदर्शित किया गया है कि भारत में आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी (15-59 वर्ष) के साथ-साथ बुज़ुर्गों की आबादी (60+ वर्ष) का अनुपात बढ़ रहा है। जहाँ एक ओर वर्ष 2017 में आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी का प्रतिशत 65.4 था वहीं दूसरी ओर इसी अवधि में बुज़ुर्ग आबादी 8.2% थी।
नमूना पंजीकरण प्रणाली (The Sample Registration System-SRS)
- SRS एक दोहरी रिकॉर्ड प्रणाली पर आधारित है और इसकी शुरुआत गृह मंत्रालय के अधीन अंतर्गत आने वाले रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय द्वारा वर्ष 1964-65 में जन्म और मृत्यु के आँकड़ों को पंजीकृत करने के उद्देश्य से की गई थी।
- तब से SRS नियमित रूप से आँकड़े उपलब्ध करा रहा है।
- SRS के तहत एक अंशकालिक गणक (गणना करने के लिये नियुक्त व्यक्ति) द्वारा गाँवों/शहरों के जन्म और मृत्यु के नमूनों की निरंतर गणना की जाती है और एक पूर्णकालिक गणक द्वारा अर्द्धवार्षिक पूर्वव्यापी सर्वेक्षण किया जाता है।
- इन दोनों स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों का मिलान किया जाता है। बेमेल और आंशिक रूप से सुमेलित आँकड़ों को फिर से सत्यापित किया जाता है ताकि सही एवं स्पष्ट गणना की जा सके और वैध आँकड़े प्राप्त हो सकें।
- हर दस साल में नवीनतम जनगणना के परिणामों के आधार पर SRS नमूना में संशोधन किया जाता है।
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
पर्यावरण गतिविधियों पर नासा और UNEP के बीच समझौता
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में नासा और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environmental Programme- UNEP) ने ग्लोब (GLOBE) कार्यक्रम और अन्य पर्यावरण गतिविधियों के संयुक्त क्रियान्वयन हेतु एक समझौता किया है।
प्रमुख बिंदु:
- इस समझौते के तहत GLOBE और UNEP पर्यावरण शिक्षा और प्रशिक्षण, नागरिक विज्ञान (Citizen Science) और पर्यावरण डेटा के संग्रहण और वितरण में एक दूसरे का सहयोग करेंगे।
GLOBE ( Global Learning and Observations to Benefit the Environment):
- GLOBE कार्यक्रम नासा द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन (National Science Foundation-NSF), राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (National Oceanic and Atmospheric Administration-NOAA) के सहयोग से संचालित किया जाता है।
- इसकी रूपरेखा वर्ष 1994 में तैयार की गई थी और इसे व्यापक रूप से वर्ष 1995 में शुरू किया गया था।
- वर्तमान में इस कार्यक्रम में 121 देश शामिल हैं ।
- GLOBE एक अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान और शिक्षा कार्यक्रम है जो छात्रों और नागरिकों को डेटा संग्रहण और वैज्ञानिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।
- यह कार्यक्रम पृथ्वी और वैश्विक पर्यावरण को समझने में भी योगदान देता है।
- GLOBE और UNEP द्वारा वैश्विक संसाधन सूचना केंद्र और अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान समुदाय के सहयोग से GLOBE डेटा का प्रयोग करते हुए जागरूकता का प्रसार किया जा रहा है ताकि पर्यावरण से संबंधित शोधों को और आगे बढ़ाया जा सके।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण क्षेत्रीय कार्यालय, GLOBE देशों के साथ निकट सहयोग स्थापित करेगा और पर्यावरण शिक्षा तथा प्रशिक्षण गतिविधियों का भी साझा कार्यान्वयन करेंगे।
- नासा, GLOBE और UNEP अपने भू-स्थानिक डेटा को एक-दूसरे के साथ साझा करेंगे जिससे पर्यावरण के विश्लेषण हेतु समृद्ध जानकारी की उपलब्धता को बढ़ावा मिलेगा।
- UNEP की इस प्रकार की रणनीतियाँ विशेष रूप से युवाओं और हमारे साझे भविष्य पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगी, साथ ही सतत् विकास लक्ष्यों, शांति और सुरक्षा के लिये भी ठोस मानवीय कदम साबित होगी।
UNEP ( United Nation Environment Programme ):
- यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी।
- इस संगठन का उद्देश्य मानव पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण संबंधी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है।
- UNEP पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। UNEP अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।
- इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है।
स्रोत: द हिंदू
रोटावायरस वैक्सीन
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार सितंबर 2019 तक सभी राज्यों में रोटावायरस टीकाकरण अभियान लागू करने की योजना बना रही है।
प्रमुख बिंदु
- रोटावायरस के उन्मूलन हेतु इस टीकाकरण योजना का कार्यान्वयन सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme-UIP) के तहत किया जाएगा।
- रोटावायरस वैक्सीन (rotavirus vaccine) को भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunisation Programme-UIP) में शामिल किया गया है।
- UIP में निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (Inactivated Polio Vaccine-IPV), Haemophilus Influenzae type b (Hib), मीजल्स, रूबेला वैक्सीन (Measles, Rubella (MR) vaccine), वयस्क जापानी इंसेफेलाइटिस वैक्सीन (Adult Japanese Encephalitis (JE) vaccine), तपेदिक (Tuberculosis), डिप्थीरिया (Diphtheria), काली खाँसी (Pertussis), हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B), न्यूमोनिया (Pneumonia) और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (Haemophilus Influenzae type b-Hib) के कारण होने वाले मेनिनजाइटिस (Meningitis) रोग पहले से ही शामिल हैं।
- नि:शुल्क टीकाकरण के माध्यम से हर साल लगभग 2.6 करोड़ बच्चे (नवजात) लाभान्वित होंगे यह टीकाकरण उन्हें डायरिया से बचाएगा।
- यह टीकाकरण कार्यक्रम केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा निर्धारित तीन 100-दिवसीय लक्ष्यों में से एक है।
- वर्तमान में यह टीकाकरण कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, त्रिपुरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में संचालित किया जा रहा है।
- सितंबर 2019 तक, सभी 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस कार्यक्रम के तहत कवर किया जाएगा।
- मंत्रालय द्वारा निर्धारित अन्य दो 100-दिवसीय लक्ष्यों के अंतर्गत देश के प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम एक मेडिकल कॉलेज या स्नातकोत्तर चिकित्सा संस्थान में (सार्वजनिक या निजी) यह कार्यक्रम लागू करना है। फिलहाल यह प्रस्ताव मंज़ूरी के लिये व्यय वित्त समिति (Expenditure Finance Committee) के पास है।
रोटावायरस क्या है?
- रोटावायरस एक संक्रामक रोग है जो छोटे बच्चों में आसानी से फैलता है।
- रोटावायरस मुख के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है एवं यह फैलता है:
- जब कोई व्यक्ति किसी रोटावायरस से ग्रसित रोगी के मल के संपर्क में आता है और फिर अपने स्वयं के मुख को स्पर्श करता है। उदाहरण के लिये, रोटावायरस तब फैलता है जब रोटावायरस से ग्रसित बच्चा पेशाब/शौच के पश्चात् अपने हाथ ठीक से नहीं धोता है और फिर भोजन या अन्य वस्तुओं को स्पर्श करता है।
- डायरिया रोग, रोटावायरस के कारण होता है, इस रोग में शरीर में जल की कमी (Dehydration) हो जाती है।
लक्षण
- गंभीर दस्त (Severe diarrhea)
- उल्टी (Throwing up)
- डिहाइड्रेशन (Dehydration)
- बुखार (Fever)
- पेट दर्द (Stomach pain)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) के अनुसार रोटावायरस वैक्सीन की पहली खुराक 6 सप्ताह की उम्र के बाद जितनी ज़ल्दी हो सके, DTP (डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस) के टीके के साथ ही दी जानी चाहिये।
- WHO ने उन देशों के राष्ट्रीय अनुसूची में रोटावायरस वैक्सीन को शामिल करने की सिफारिश की है जहाँ पाँच वर्ष तक की उम्र के बच्चों की मौतों में से 10% से अधिक के लिये डायरिया ज़िम्मेदार है।
- वर्तमान में रोटावायरस से बचाव के लिये दो वैक्सीन उपलब्ध हैं-
- रोटारिक्स (ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन) [Rotarix (GlaxoSmithKline)]: यह एकल संयोजक वैक्सीन (Monovalent Vaccine) है जो 6-12 सप्ताह में दो खुराकों में मौखिक रूप से दिया जाता है।
- रोटा टेक (मर्क) [Rota Teq (Merck)]: यह एक पेंटावैलेंट वैक्सीन (Pentavalent Vaccine) 6-12 सप्ताह की उम्र में तीन खुराकों में मौखिक रूप से दी जाती है।
मोनोवैलेंट वैक्सीन और पेंटावैलेंट वैक्सीन
(Monovalent vaccine and Pentavalent vaccine)
- मोनोवैलेंट वैक्सीन एक एकल प्रतिजन (Single Antigen) या एकल सूक्ष्मजीव (Single Microorganism) के विरुद्ध टीकाकरण करने हेतु बनाये जाते हैं।
- पेंटावैलेंट वैक्सीन (Pentavalent vaccine ) बच्चों को पाँच जानलेवा बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है डिप्थीरिया, काली खाँसी, टेटनस, हेपेटाइटिस बी और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (Hib)।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (17 July)
- उत्तर प्रदेश के विधि आयोग ने मॉब लिंचिंग की बढ़ रही घटनाओं के मद्देनज़र ऐसे मामलों में शामिल आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा देने की सिफारिश की है। राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस आदित्यनाथ मित्तल ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 128 पृष्ठों की एक रिपोर्ट भेजी है। काफी अध्ययन के बाद राज्य विधि आयोग द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि किस तरह से इन घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है और आरोपियों को किस आधार पर उम्रकैद की सज़ा देनी चाहिये। वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश पर तैयार इस रिपोर्ट में मॉब लिंचिंग की कई घटनाओं और कोर्ट के फैसलों के बारे में भी बताया गया है। इस रिपोर्ट के आधार पर जो कानून बनेगा उसे उत्तर प्रदेश कॉम्बेटिंग ऑफ मॉब लिंचिंग एक्ट के नाम से जाना जाएगा। कमीशन ने रिपोर्ट में यह भी कहा है कि आरोपियों को सज़ा दिलाने की ज़िम्मेदारी पुलिस अधिकारियों और ज़िला मजिस्ट्रेट की रहेगी। यदि वे इस काम में असफल रहते हैं, तो उन पर भी कार्रवाई होनी चाहिये। कानून के तहत पीड़ित के परिजन को जान-माल के नुकसान के आधार पर मुआवज़ा भी दिया जाएगा। गौरतलब है कि वर्ष 2018 में मणिपुर ने मॉब लिंचिंग रोकने के लिये प्रोटेक्शन फ्रॉम मॉब वायलेंस एक्ट, 2018 बनाया था, इसके तहत यदि भीड़ द्वारा किसी की जान ली जाती है तो दोषियों को आजीवन कारावास और पीड़ित परिवार को 5 लाख रुपए तक की मदद दी जाएगी। यह देश में अपनी तरह का यह पहला कानून है।
- मेघालय देश में जल नीति पेश करने वाला पहला राज्य बन गया है। इस नीति का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के साथ-साथ सतत विकास और जल संसाधनों का इस्तेमाल करना है। इस नीति से स्वास्थ्य और आजीविका में सुधार होगा और लोगों के बीच भेदभाव नहीं होगा। यह एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन और पर्यावरणीय स्थिरता के ज़रिये वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिये सुशासन भी सुनिश्चित करेगा। इस नीति में जलग्रहण क्षेत्रों के संरक्षण और नदी प्रदूषण जैसे मुद्दों को भी रेखांकित किया गया है। जीवनयापन हेतु पानी के इस्तेमाल एवं जल निकायों का कैसे संरक्षण किया जाए जैसे मुद्दों को इस नीति में जगह दी गई है। इसमें गाँव के स्तर पर जल स्वच्छता ग्राम परिषद का गठन कर इस नीति को लागू करने में सामुदायिक भागीदारी को भी शामिल किया गया है। ज्ञातव्य है कि पहाड़ी राज्य होने के कारण मेघालय में पर्याप्त वर्षा होती है, लेकिन यह पानी ठहरता नहीं है और बिना रुके बांग्लादेश पहुँच जाता है।
- 15 जुलाई को पाकिस्तान ने अपने हवाई क्षेत्र को भारत की सभी तरह की असैन्य उड़ानों के लिये खोल दिया। इसका सबसे अधिक लाभ एयर इंडिया को होगा, क्योंकि फरवरी से अब तक अपनी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों, खासतौर से अमेरिका और यूरोप जाने वाली उड़ानों को दूसरे रास्ते से ले जाने के कारण कंपनी को करीब 491 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। अब भारतीय विमानन कंपनियाँ पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से होते हुए अपने सामान्य रूट से उड़ानें शुरू करेंगी। गौरतलब है कि इसी वर्ष 26 फरवरी को भारत द्वारा की गई बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने भारतीय विमानों के लिये अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया था। उसके बाद से पाकिस्तान ने हवाई क्षेत्र के ज्ञात 11 रूटों में से सिर्फ दो खोले थे जो देश के दक्षिणी हिस्से से होकर गुज़रते थे। मार्च में पाकिस्तान ने आंशिक रूप से अपना हवाई क्षेत्र खोला था, लेकिन भारतीय विमानों को अपने हवाई क्षेत्र में उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी थी। पाकिस्तान के प्रतिबंध के बाद सभी यात्री उड़ानों को भारत के वैकल्पिक मार्गों की ओर मोड़ दिया गया था। हवाई क्षेत्र बंद होने का सबसे ज़्यादा असर यूरोप से दक्षिण-पूर्व एशिया की उड़ानों पर पड़ा। इससे पाकिस्तान को भी काफी नुकसान हो रहा था क्योंकि कोई भी देश अपने हवाई क्षेत्र से गुज़रने वाले विमानों से एक निश्चित शुल्क वसूलता है। यह शुल्क उस देश के संबंधित विमानन प्राधिकरण को देना होता है। हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने हेतु शुल्क के लिये हर देश के अपने नियम होते हैं। यह शुल्क विमान के प्रकार और उसके द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर तय होता है।
- 14 जुलाई को फ्राँस ने अपना राष्ट्रीय दिवस मनाया, जिसे बेस्टाइल डे कहा जाता है। यह ‘बेस्टाइल’ कारागार में जनता द्वारा 14 जुलाई 1789 को धावा बोलने की वषर्गांठ के रूप में मनाया जाता है। जुलाई 1789 में इसी दिन से फ्रेंच क्रांति की शुरुआत हुई थी। बेस्टाइल कारागार 16वें लुई की निरंकुश सत्ता का प्रतीक था, जिस पर कब्ज़ा कर लोगों ने यह जाहिर किया कि राजा की सत्ता अब निरंकुश नहीं है। राष्ट्रीय दिवस पर फ्राँस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ऐलान किया कि देश की वायुसेना में स्पेस कमांड बनाया जाएगा। चूँकि साइबर स्पेस और वायुमंडल से बाहर के क्षेत्र में टकराव के नए क्षेत्र बन गए हैं, इसलिये नया अंतरिक्ष सैन्य सिद्धांत बनाने की ज़रूरत है। इससे फ्राँस अंतरिक्ष में अपने हितों की रक्षा कर सकेगा। 1 सितंबर से यह कमांड बनाने का काम शुरू होगा तथा 2019-25 के दौरान अंतरिक्ष सुरक्षा पर फ्राँस चार अरब डॉलर खर्च करेगा।