न्यू ईयर सेल | 50% डिस्काउंट | 28 से 31 दिसंबर तक   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 17 Jun, 2020
  • 42 min read
भूगोल

जल जीवन मिशन और प्रवासी श्रमिक

प्रीलिम्स के लिये

जल जीवन मिशन, मनरेगा

मेन्स के लिये 

प्रवासी श्रमिकों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों को पत्र लिखते हुए कहा है कि कोरोना वायरस (COVID-19) के कारण लागू किये गए लॉकडाउन के परिणामस्वरूप राज्यों में लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission) के तहत कार्य प्रदान किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस कार्य के लिये विशेष तौर पर उन कुशल, अकुशल एवं अर्द्ध-कुशल श्रमिकों को नियुक्त किया जा सकता है, जो इससे पूर्व निर्माण क्षेत्र (Construction Sector) में कार्यरत थे।

आवश्यकता

  • उल्लेखनीय है कि भारत समेत विश्व की तमाम सरकारों द्वारा कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन को एक उपाय के रूप में प्रयोग किया गया था, इस व्यवस्था (लॉकडाउन) के कारण देश में सभी प्रकार की आर्थिक तथा गैर-आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई थीं, जिसके कारण दैनिक अथवा साप्ताहिक आधार पर मज़दूरी प्राप्त करने वाले प्रवासियों के समक्ष आजीविका की एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई थी।
    • आजीविका की इस समस्या को देखते हुए देश भर के लाखों प्रवासी मज़दूर अपने ग्रह राज्य लौटने लगे जिसके कारण ग्रह राज्य की सरकारों के समक्ष वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को उपयुक्त रोज़गार उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बन गई है।

महत्त्व

  • यदि इस व्यवस्था को कार्यान्वित किया जाता है तो यह वर्तमान में बेरोज़गार श्रमिकों को रोज़गार उपलब्ध कराने में मददगार साबित हो सकती है।
  • विभिन्न राज्यों द्वारा किये गए कौशल सर्वेक्षणों में सामने आया है कि लॉकडाउन के प्रभावस्वरूप वापस अपने ग्रह राज्य लौटने वाले अधिकांश प्रवासी श्रमिक निर्माण क्षेत्र से संबंधित हैं। 
  • आँकड़ों के अनुसार, अकेले उत्तर प्रदेश में लौटे कुल 18 लाख प्रवासी श्रमिकों में से 16 लाख निर्माण क्षेत्र से संबंधित हैं।

जल जीवन मिशन

  • जल जीवन मिशन की घोषणा अगस्त 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी, इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में पाइप जलापूर्ति (हर घर जल) सुनिश्चित करना है।
  • जल जीवन मिशन की प्राथमिकता देश भर के सभी भागों में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है।
  • इस मिशन के तहत कृषि में पुन: उपयोग के लिये वर्षा जल संचयन, भू-जल पुनर्भरण और घरेलू अपशिष्ट जल के प्रबंधन हेतु स्थानीय बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर भी ध्यान दिया जाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि जल जीवन मिशन के कार्यान्वयन के लिये जल शक्ति मंत्रालय को नोडल मंत्रालय के रूप में नियुक्त किया गया है।
  • आँकड़े बताते हैं कि भारत में विश्व की कुल आबादी का तकरीबन 16 प्रतिशत हिस्सा मौजूद है, जबकि देश में पीने योग्य जल का मात्र 4 प्रतिशत हिस्सा ही उपलब्ध है। वहीं लगातार गिरता भू-जल और जल स्रोतों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जल संरक्षण में कुछ अन्य चुनौतियाँ हैं, ऐसे में पीने योग्य पानी की मांग और पूर्ति के मध्य संतुलन स्थापित करना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती है।

जल जीवन मिशन: मनरेगा के विकल्प के रूप में

  • कई विशेषज्ञ जल जीवन मिशन को मनरेगा के एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं। साथ ही सरकार भी मौजूदा COVID-19 महामारी के परिदृश्य में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पूंजी निवेश करने के लिये जल जीवन मिशन के उपयोग की ओर अग्रसर दिखाई दे रही है। 
  • जल जीवन मिशन के तहत 2020-21 तक राज्यों को लगभग 30,000 करोड़ उपलब्ध कराए जाएँगे, जिसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक बड़े निवेश के रूप में देखा जा सकता है।
  • वहीं दूसरी ओर एक पक्ष यह भी है कि मनरेगा मौजूदा परिदृश्य में लोगों को उनकी मांग के अनुरूप कार्य उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ईरान के परमाणु कार्यक्रम से संबंधित चिंताएँ

प्रीलिम्स के लिये:

IAEA और उसका जनादेश

मेन्स के लिये:

परमाणु महत्त्वाकांक्षाएँ 

चर्चा में क्यों?

वियना स्थित अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने अपनी दो अप्रकाशित रिपोर्टों में ईरान द्वारा चार महीनों से अधिक समय से दो संदिग्ध स्थानों के निरीक्षणों को रोके जाने के बाद गंभीर चिंता व्यक्त की है। 

प्रमुख बिंदु

  • हालांकि IAEA ने सार्वजनिक रूप से इन स्थलों का नाम घोषित नहीं किया, लेकिन यह माना जा रहा है कि ईरान के संवर्द्धित यूरेनियम भंडार की सीमा तय सीमा को पार कर चुकी है।
  • IAEA के अनुसार, ईरान ने वर्ष 2003 में यूरेनियम अयस्क के रूपांतरण और प्रसंस्करण हेतु इन स्थलों का उपयोग किया होगा। 

यूरेनियम संवर्द्धन  (Uranium Enrichment)

  • यूरेनियम संवर्द्धन एक संवेदनशील प्रक्रिया है जो परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिये ईंधन का उत्पादन करती है। 
  • सामान्यतः इसमें यूरेनियम-235 और यूरेनियम-238 के आइसोटोप का प्रयोग किया जाता है। यूरेनियम संवर्द्धन  के लिये सेंट्रीफ्यूज (Centrifuges) में गैसीय यूरेनियम को शामिल किया जाता है। 
  • संवर्द्धन  से पहले,  पहले यूरेनियम ऑक्साइड को फ्लोराइड में बदलने के लिये कम तापमान पर रखा जाता है।
  • परमाणु संयंत्रों में ऊर्जा का उत्पादन इन आइसोटोपों के विखंडन से होता है। 
  • ईरान ने इन रिपोर्टों का खंडन करते हुए कहा है कि ये प्रश्न खुफिया सेवाओं से प्राप्त जानकारी के आधार पर उठाए जा रहे हैं।
  • ईरान ने अपने कार्यक्रमों को शांतिपूर्ण बताते हुए हमेशा इस बात से इनकार किया है कि उसने कभी परमाणु हथियार विकसित करने का प्रयास किया है।
  • ये रिपोर्टें ऐसे समय में आई हैं जब ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका बढ़ते तनावों के कारण वर्ष 2015 के अंतर्राष्ट्रीय समझौते से बाहर निकल चुके हैं।

परमाणु समझौता, 2015

  • वर्ष 2015 में बराक ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्राँस और जर्मनी के साथ मिलकर ईरान ने परमाणु समझौता किया था। 
  • इस समझौते को ‘ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन’ (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) नाम दिया गया। 
  • इस समझौते के अनुसार, ईरान को संबंधित यूरेनियम के भंडार में कमी करते हुए अपने परमाणु संयंत्रों की निगरानी के लिये अनुमति प्रदान करनी थी। इसके बदले ईरान पर आरोपित आर्थिक प्रतिबंधों में रियायत दी गई थी।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी

(International Atomic Energy Agency- IAEA)

  • IAEA परमाणु क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा परमाणु सहयोग केंद्र है। इसकी स्थापना वर्ष 1957 में की गई थी। 
  • यह संगठन परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिये परमाणु हथियारों के प्रयोग को रोकने का कार्य करता है।
  • IAEA विश्व भर में परमाणु प्रौद्योगिकी और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग हेतु एक अंतर-सरकारी मंच के रूप में भी कार्य करता है।
  • हालाँकि एक अंतर्राष्ट्रीय संधि (International Treaty) के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसकी स्थापना की गई थी लेकिन यह संगठन संयुक्त राष्ट्र के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं आता है। 
  • IAEA, संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) और सुरक्षा परिषद (Security Council) दोनों को रिपोर्ट करता है।
  • इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के विएना (Vienna) में है।

आगे की राह

  • वर्ष 2015 के समझौते में शामिल सभी देशों को रचनात्मक रूप से संलग्न होना चाहिये और सभी मुद्दों को शांति तथा आपसी वार्ता के माध्यम से हल करना चाहिये।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान दोनों को ही रणनीतिक संयम के साथ कार्य करना चाहिये क्योंकि पश्चिम एशिया में कोई भी संकट न केवल इस क्षेत्र को प्रभावित करेगा बल्कि वैश्विक मामलों पर भी हानिकारक प्रभाव डालेगा। 

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

एडिप योजना

प्रीलिम्स के लिये:

ADIP Scheme, ALIMCO

मेन्स के लिये:

केंद्र एवं राज्यों द्वारा अति संवेदनशील वर्गों के लिये चलाई गईं कल्याणकारी योजनाएँ, निकाय, क्रियान्वयन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice & Empowerment) द्वारा पंजाब के फिरोजपुर में एडिप योजना (ADIP Scheme) के तहत पहली बार वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से दिव्यांगजनों को सहायक यंत्रों व उपकरणों का वितरण किया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

  • योजना की शुरुआत- 
    • सहायक यंत्रों/उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिये विकलांग व्‍यक्तियों को सहायता योजना-एपिड (Assistance to Disabled persons for purchasing/fitting of aids/appliances scheme- ADIP) की शुरुआत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा की गई थी तथा इसे 1 अप्रैल, 2017 से लागू किया गया था।
  • योजना के उद्देश्य-
    • इस योजना `का उद्देश्य विकलांगों के टिकाऊ, परिष्कृत और वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक, मानक सहायता और उपकरणों को खरीदने में ज़रूरतमंद दिव्यांगजनों की सहायता करना है। 
    • इससे दिव्यांगजनों की दिव्यांगता के प्रभाव को कम करने के साथ- साथ उनकी समाजिक और शारीरिक क्षमता को बढ़ाकर उनका आर्थिक विकास किया जा सकता है।
  • कार्यान्वयन एजेंसी- 
    • इस योजना का कार्यान्वयन गैर-सरकारी संघटनों (NGOs), सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय संस्थानों तथा भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम- एलिम्को (ALIMCO) जैसी एजेंसियों के माध्यम से किया जाता है।

ALIMCO: 

  • एलिम्को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन एक गैर लाभकारी  निगम है। 
  • इसकी स्थापना दिव्यांगजनों के लाभ के लिये पुनर्वास साधन और कृत्रिम अंग घटकों के निर्माण और आपूर्ति के लिये वर्ष 1972 में की गई थी तथा वर्ष 1976 में उत्पादन शुरु किया गया था।
  • लाभार्थियों की पात्रता: 
    • ADIP योजना के अंतर्गत निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करने वाले दिव्यांगजन सहायता के पात्र होंगे-
      • वह किसी उम्र का भारतीय नागरिक हो।
      • उसके पास 40 प्रतिशत या अधिक का दिव्यांगता प्रमाण पत्र हो।
      • मासिक आय 20000 रुपए से अधिक न हो।
      • आश्रितों के मामले में, माता-पिता / अभिभावकों की आय 20,000 रुपये प्रति माह से अधिक नहीं होनी चाहिए।
      • इसके अलावा ऐसे व्यक्ति जिन्हें पिछले 3 वर्षों के दौरान सरकार, स्थानीय निकायों और गैर-सरकारी संगठनों से इस तरह की कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई है। हालांकि, 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये यह सीमा 1 वर्ष होगी।

योजना का महत्त्व:

  • जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लगभग 2.68 करोड़ व्यक्ति दिव्यांग हैं इसके अलावा 14 वर्ष से कम आयु के लगभग 3 प्रतिशत बच्चों का विकास देरी से होता है। 
  • इनमें से अनेक बच्चे मानसिक मंदता (Intellectual Disability) और प्रमस्तिष्क पक्षाघात (Cerebral Palsy) से पीड़ित हैं जिन्हें स्वयं की देखभाल तथा स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने के लिये सहायक यंत्रों/उपकरणों की आवश्यकता होती है।
  • यह योजना दिव्यांगजनों को न्यूनतम लागत पर सहायक यंत्र और उपकरण प्रदान करके उनका सामाजिक, आर्थिक विकास तथा व्यावसायिक पुनर्वास करने में सहायक सिद्ध होगी।

स्रोत: PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

परमाणु हथियारों में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये-  

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट, SIPRI ईयरबुक 2020, न्यू स्टार्ट संधि

मेन्स के लिये-

परमाणु शस्त्रों की निगरानी और परमाणु हथियारों एवं सामग्रियों के प्रसार को रोकने की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित SIPRI ईयर बुक (SIPRI Yearbook) 2020 के अनुसार, भारत, पाकिस्तान और चीन ने विगत वर्ष में अपने परमाणु हथियार संग्रहण में वृद्धि की है साथ ही जिन देशों के पास पहले से ही परमाणु हथियार उपलब्ध हैं वे उनका आधुनिकीकरण कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • SIPRI ईयर बुक स्वीडिश थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute (SIPRI) द्वारा जारी की जाती है। 
    • SIPRI एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निशस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिये समर्पित है। इसकी स्थापना वर्ष 1966 में की गई थी। 
    • SIPRI ईयर बुक का प्रथम संस्करण वर्ष 1969 में जारी किया गया था।
    • SIPRI ट्रेंड्स इन वर्ल्ड मिलिट्री एक्सपेंडिचर (Trends in World Military Expenditure) नामक वार्षिक रिपोर्ट भी जारी करता है और वर्ष 2019 में, भारत सैन्य खर्च करने वाले शीर्ष तीन देशों में शामिल था।

  • डेटा विश्लेषण
    • अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इज़राइल तथा उत्तरी अमेरिका विश्व के 9 परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। 
      • परमाणु हथियारों की ’अत्यधिक अनिश्चित’ संख्या के कारण रिपोर्ट में उत्तर कोरिया के पास उपलब्ध परमाणु हथियारों की संख्या को गणना में शामिल नहीं किया गया है।

Nuclear-Forces

  • इन देशों में परमाणु हथियारों की कुल संख्या वर्ष 2019 के 13,865 से घटकर वर्ष 2020 में 13,400 हो गई है।
    • समग्र संख्या में गिरावट रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा न्यू स्टार्ट (New START) संधि के तहत पुराने परमाणु हथियारों का विघटन किये जाने के कारण हुई है। उल्लेखनीय है कि इन देशों देशों के पास उपलब्ध परमाणु हथियारों की संख्या (संयुक्त रूप से) विश्व भर में उपलब्ध कुल परमाणु हथियारों के 90% से अधिक है।
    • रूस और अमेरिका द्वारा पहले ही अपने परमाणु हथियारों और डिलीवरी सिस्टम को बदलने तथा आधुनिक बनाने के लिये व्यापक योजनाओं की घोषणा भी की गई है।
  • भारत, पाकिस्तान और चीन ने अपने परमाणु भंडार में वृद्धि की है तथा अपने शस्त्रागार का आधुनिकीकरण कर रहे हैं।
    • चीन और पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु हथियारों का संग्रहण भारत की तुलना में अधिक है।
    • भारत और पाकिस्तान अपने परमाणु बलों के आकार और विविधता में धीरे-धीरे वृद्धि कर रहे हैं।
    • चीन पहली बार एक तथाकथित परमाणु त्रयी (Neclear Triad) विकसित कर रहा है, जो भूमि और समुद्र-आधारित नई मिसाइलों तथा परमाणु-सक्षम विमानों से मिलकर बना है।

  • कम पारदर्शिता:
    • रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि परमाणु-हथियारों की स्थिति और परमाणु-सशस्त्र राज्यों की क्षमताओं पर विश्वसनीय जानकारी की उपलब्धता में व्यापक भिन्नता होती है क्योंकि सरकारें अपने शस्त्रागार से संबंधित जानकारी का पूरी तरह से खुलासा करने में संकोच करती हैं।
      • रिपोर्ट के अनुसार, भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने अपने कुछ मिसाइल परीक्षणों के बारे में बताया लेकिन अपने शस्त्रागार की स्थिति या आकार के बारे में बहुत कम जानकारी प्रदान की।
      • वर्ष 2019 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी सार्वजनिक रूप से अपने शस्त्र भंडार के आकार का खुलासा करने की प्रथा को समाप्त कर दिया था।
  • न्यू स्टार्ट (New START)
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस ने नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि (Strategic Arms Reduction Treaty-START) 2010 के तहत अपने परमाणु शस्त्रागार में कमी की है लेकिन यह संधि फरवरी 2021 में व्यपगत (Lapse) होगी यदि दोनों पक्ष इसकी अवधि को बढ़ाने के लिये सहमत नहीं होते।
    • लेकिन इसके विस्तार पर चर्चा ने अब तक कोई प्रगति नहीं की है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका का मानना है कि चीन को भविष्य में परमाणु हथियार कटौती वार्ता में शामिल होना चाहिये और चीन ने स्पष्ट रूप से इस प्रकार की वार्ता में शामिल होने से इनकार कर दिया है।
    • न्यू स्टार्ट पर गतिरोध और वर्ष 2019 में इंटरमीडिएट-रेंज और शॉर्टर-रेंज मिसाइलों के उन्मूलन पर सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संधि (INF संधि 1987) की समाप्ति इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में द्विपक्षीय परमाणु हथियार नियंत्रण समझौते समाप्त हो सकते हैं।
    • दोनों देशों ने अपनी सैन्य योजनाओं और सिद्धांतों में परमाणु हथियारों को नई या विस्तारित भूमिकाएँ प्रदान की हैं, जो कि परमाणु हथियारों के क्रमिक सीमांकन की दिशा में शीत युद्ध के बाद की प्रवृत्ति में एक महत्त्वपूर्ण व्युत्क्रमण को दर्शाता है।

निष्कर्ष

बढ़ते हुए भू-राजनीतिक तनावों के समय में परमाणु शस्त्रों की निगरानी और परमाणु हथियारों एवं सामग्रियों के प्रसार को रोकने के लिये पर्याप्त उपाय किये जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन का आकलन

प्रीलिम्स के लिये:

एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ, प्रतिनिधि संकेंद्रण मार्ग या RCP की अवधारणा 

मेन्स के लिये:

भारतीय उपमहाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान' (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM)- पुणे,  द्वारा एक जलवायु पूर्वानुमान मॉडल विकसित किया है,  जो आने वाली शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप पर वैश्विक तापन के प्रभाव को समझने में मदद करेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • IIT-M द्वारा विकसित जलवायु पूर्वानुमान मॉडल  भारतीय उपमहाद्वीप पर वैश्विक तापन के प्रभाव को दर्शाने वाला प्रथम 'राष्ट्रीय पूर्वानुमान मॉडल' है।
  • यह पूर्वानुमान मॉडल, 'जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल' (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की अगली रिपोर्ट; जो वर्ष 2022 तक तैयार होने की उम्मीद है, का एक भाग है।
  • यह पूर्वानुमान मॉडल इस अवधारणा पर आधारित है कि वैश्विक समुदाय द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किये गए तो जलवायु परिवर्तन की क्या स्थिति होगी।

जलवायु मॉडल के प्रमुख पूर्वानुमान:

  • जलवायु पूर्वानुमान मॉडल के आधार पर निम्नलिखित प्रमुख निष्कर्ष निकाले गए हैं:
  • औसत तापमान में वृद्धि:
    • वर्ष 1986-2015 के बीच की अवधि में सबसे गर्म दिन तथा सबसे ठंडी रातों के तापमान में क्रमशः 0.63°C और 0.4°C की वृद्धि हुई है।
    • 21 वीं सदी के अंत तक दिन तथा रात के तापमान में वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में लगभग 4.7 °C और 5.5°C वृद्धि होने का अनुमान है।
    • वर्ष 2040 तक, वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में तापमान में 2.7 °C  और इस सदी के अंत तक तापमान में 4.4 °C वृद्धि होने का अनुमान है।
    •  'प्रतिनिधि संकेंद्रण मार्ग' (Representative Concentration Pathway 8.5- RCP 8.5) जो प्रति वर्ग मीटर में विकिरण प्रभाव की गणना करता है, के अनुसार, भविष्य के गर्म दिन तथा गर्म रातों की संख्या वर्ष 1976-2O05 की संदर्भ अवधि के सापेक्ष क्रमशः 55% और 70% तक बढ़ने का अनुमान है।

प्रतिनिधि संकेंद्रण मार्ग (RCP):

  • प्रतिनिधि संकेंद्रण मार्ग (RCP), IPCC द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के संकेंद्रण को दर्शाने वाला प्रक्षेप वक्र है। RCP को IPCC द्वारा 'पाँचवी आकलन रिपोर्ट' (Assessment Report- AR5) में अपनाया गया था। 
  • भविष्य के ग्रीनहाउस गैस संकेंद्रण को चार प्रक्षेप वक्रों के माध्यम से दर्शाया गया। इन प्रक्षेप वक्रों का निर्धारण भविष्य में संभावित ग्रीनहाउस गैसों के संकेंद्रण के आधार पर किया गया है। 
  • इसमें RCP- 2.6, RCP- 4.5, RCP- 6 और RCP 8.5 प्रक्षेप वक्र बनाए गए हैं।

RCP graph

  • उष्ण लहरों की आवर्ती में वृद्धि: 
    • 21वीं सदी के अंत तक भारत में उष्ण-लहरों की बारंबारता (Frequency) तीन से चार गुना अधिक होने का अनुमान है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जलवायु में तेज़ी से परिवर्तन के कारण देश की प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि उत्पादकता और जल संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।
  • एयरोसोल की मात्रा में वृद्धि:
    • रिपोर्ट के अनुसार, वायु मे एयरोसोल अर्थात कणकीय पदार्थों की मात्रा में जीवाश्म ईंधन दहन, उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि तथा कुछ प्राकृतिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप काफी वृद्धि हुई है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, ‘एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ’ Aerosol Optical Depth- AOD) में मौसम के साथ परिवर्तनशीलता देखने को मिलती है। दिसंबर-मार्च के शुष्क महीनों के दौरान AOD में वृद्धि की दर बहुत अधिक होती है। 

एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (Aerosol optical depth- AOD):

  • एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ कणकीय पदार्थों तथा धुंध के कारण सौर किरण की कमी को मापने का एक मापक है। वायुमंडल में उपस्थित कणकीय पदार्थ (धूल, धुआँ, प्रदूषण) प्रकाश को अवशोषित, विकर्णित अथवा परावर्तित कर सकते हैं। AOD हमें बताता है कि इन एयरोसोल कणों द्वारा सूर्य के प्रत्यक्ष प्रकाश की कितनी मात्रा को पृथ्वी पर पहुँचने से रोका गया है।
  • AOD का मान यदि 0.01 का हो तो यह अत्यंत स्वच्छ वातावरण को जबकि 0.4 का मान बहुत धुंधली स्थिति को दर्शाता है।
  • वर्षा के प्रतिरूप में बदलाव:
    • वर्षा के पैटर्न में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हुई है लेकिन वर्षा-अंतराल में लगातार वृद्धि हुई है। अरब सागर से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक गंभीर चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
  • समुद्र स्तर में वृद्धि:
    • ग्लेशियर पिघलने तथा महासागरीय तापमान में वृद्धि से हिंद महासागर के स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है।
    • मुंबई तट के साथ समुद्र स्तर में प्रति दशक में 3 सेमी. की वृद्धि जबकि कोलकाता तट के साथ प्रति दशक में 5 सेमी. की वृद्धि दर्ज की गई है।

निष्कर्ष:

  •  'भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान'  द्वारा विकसित 'जलवायु पूर्वानुमान मॉडल' 'राष्ट्रीय जलवायु मूल्यांकन' (National Climate Assessment) की दिशा में उठाया गया महत्त्वपूर्ण कदम है। यह मॉडल भारत को वैश्विक तापन, मानसूनी वर्षा, बाढ़, सूखा तथा ग्लेशियरों पर जलवायु के प्रभावों को समझने में मदद करेगा।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डेक्सामेथासोन दवा के प्रयोग से COVID-19 के रोगियों में सुधार

प्रीलिम्स के लिये:

डेक्सामेथासोन दवा

मेन्स के लिये:

डेक्सामेथासोन दवा

चर्चा में क्यों?

इंग्लैंड के शोधकर्त्ताओं के अनुसार,  COVID-19 मरीज़ों पर ‘डेक्सामेथासोन’ (Dexamethasone) दवा के उपयोग से गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों की मृत्यु दर में एक तिहाई तक की कमी हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • इसी अध्ययन दल ने कुछ समय पूर्व यह पता लगाया था कि है कि मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) COVID-19 महामारी के खिलाफ काम नहीं कर रही है।
  • इस अध्ययन में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के 11,000 से अधिक रोगियों को शामिल किया गया।
  • अध्ययन के लिये 2,104 COVID-19 रोगियों पर डेक्सामेथासोन दवा का परीक्षण किया गया तथा इन रोगियों की 4,321 रोगियों से तुलना की गई जिनकी केवल सामान्य मानक देखभाल की जा रही थी।

डेक्सामेथासोन (Dexamethasone):

  • यह एक प्रकार का स्टेरॉयड है जिसका उपयोग गठिया, अस्थमा सहित अन्य स्थितियों में सूजन को कम करने के लिये  किया जाता है।
  • यह दवा बहुत ही सस्ती है तथा इसकी निर्माण प्रक्रिया बहुत आसान होने से इसका व्यापक पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। 

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:

  • गंभीर रूप से बीमार COVID-19 रोगियों में से वे रोगी जिन्हे उपचार के लिये श्वसन मशीनों की आवश्यकता थी, उनकी मृत्यु दर में 35% तक की कमी देखी है गई जबकि वे रोगी जिन्हें श्वसन के लिये पूरक ऑक्सीजन की आवश्यकता थी उनकी मृत्यु दर में 20% तक की कमी देखी गई।
  • डेक्सामेथासोन उन रोगियों के लिये सबसे अधिक मददगार रही है जिन्हें जीवित रहने के लिये ऑक्सीजन उपचार प्रणाली की आवश्यकता थी।

दवा की कार्यप्रणाली:

  • COVID-19 रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर हो जाती है तथा रक्त वाहिकाओं में सूजन या जाता है। क्योंकि COVID-19 के संक्रमण के दौरान रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली कभी-कभी अत्यधिक प्रतिक्रिया करती है। स्टेरॉयड दवाएँ इस सूजन को कम करने का कार्य करती हैं।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली की अतिरिक्त प्रतिक्रिया कभी-कभी प्राणघातक भी हो सकती है इसलिये डॉक्टर ऐसे रोगियों में स्टेरॉयड और अन्य सूजन कम करने वाली दवाओं का परीक्षण कर रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीमारी के प्रारंभिक चरण में स्टेरॉयड का उपयोग न करने की सलाह दी है,  क्योंकि ये रोगी की प्रतिरोधक क्षमता की कार्य प्रणाली को धीमा कर देते हैं।

शोधकर्त्ताओं की मांग:

  • COVID-19 के गंभीर रोगियों के  उपचार के लिये डेक्सामेथासोन को एक मानक दवा का दर्जा दिया जाने चाहिये।
  • डेक्सामेथासोन को अब दुनिया भर के हज़ारों गंभीर रूप से बीमार COVID-19 रोगियों के उपचार के लिये उपलब्ध कराया जाना चाहिये।

भारत की प्रतिक्रिया:

  • भारतीय डॉक्टरों ने शोध का स्वागत किया है। इससे पहले, ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (Indian Council for Medical Research- ICMR) द्वारा कुछ COVID-19 रोगियों के लिये रेमेडिसविर (Remdesivir) टोकिलिज़ुमाब (Tocilizumab) और कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी (CPT) के उपयोग की अनुमति दी गई थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 17 जून, 2020

शहीद जवानों की वित्तीय सहायता में बढ़ोतरी

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने तीनों रक्षा सेनाओं और अर्द्ध-सैनिक बलों के शहीदों के परिवारों को मिलने वाली वित्तीय सहायता में दोगुनी वृद्धि की है, नए नियमों के अनुसार यदि उत्तर प्रदेश से कोई भी सैनिक शहीद होता है तो राज्य सरकार उसके परिजनों को 50 लाख रुपए प्रदान करेगी, जो कि पहले 25 लाख रुपए था। नियमों के अनुसार, यदि शहीद विवाहित है और उसके माता-पिता में से एक या दोनों जीवित हैं, तो शहीद की पत्नी एवं बच्चों को 35 लाख रुपए तथा माता-पिता अथवा उनमें से जो भी जीवित है को 15 लाख रुपए की धनराशि प्रदान की जाएगी। वहीं यदि माता-पिता जीवित नहीं हैं, तो संपूर्ण राशि पत्नी को दी जाएगी, जबकि यदि शहीद अविवाहित है, तो 50 लाख रुपए की संपूर्ण राशि माता-पिता को प्रदान की जाएगी। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, भले ही यह निर्णय सैनिकों के त्याग के समान नहीं है, किंतु इससे अर्द्ध सैन्यबलों एवं सेना के अधिकारियों तथा कर्मचारियों के मनोबल पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। एक अन्य निर्णय में उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने मिर्ज़ापुर में एक केंद्रीय विद्यालय स्थापित करने हेतु केंद्र सरकार को भूमि हस्तांतरित करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है। केंद्रीय विद्यालय स्थापित होने से अर्द्ध सैन्यबलों एवं सेना के अधिकारियों तथा कर्मचारियों समेत सभी सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को शिक्षा की सुविधा प्राप्त हो सकेगी। इस प्रस्ताव के तहत कुल 6.50 एकड़ भूमि हस्तांतरित की जाएगी।

मैट पूरे

हाल ही में न्यूज़ीलैंड के प्रसिद्ध बल्लेबाज मैट पूरे (Matt Poore) का 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है।  ध्यातव्य है कि मैट पूरे उस दौर में न्यूज़ीलैंड की टीम का हिस्सा थे, जब टीम ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया था। मैट पूरे का जन्म 1 जून, 1930 को हुआ था। मैट पूरे ने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच 13 मार्च, 1953 को दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध खेला था, वहीं उन्होंने अपना अंतिम 06 जनवरी, 1956 को भारत के विरुद्ध खेला था। मैट पूरे न्यूज़ीलैंड के लिये टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले 63वें खिलाड़ी थे। उल्लेखनीय है कि मैट पूरे ने अपने 23 वर्षीय लंबे कैरियर में मात्र 14 मैच ही खेले, चूँकि उस समय केवल टेस्ट ही खेला जाता था, इसीलिये खिलाड़ियों को खेलने के लिये काफी कम समय मिलता था। मैट पूरे ने अपने संपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय कैरियर में कुल 355 रन बनाए थे, वहीं इस दौरान उन्होंने एक गेंदबाज़ के तौर पर कुल 9 विकेट लिये थे। इसके अतिरिक्त मैट पूरे ने वर्ष 1950 से वर्ष 1956 तक कैंटरबरी (Canterbury) के लिये प्रथम श्रेणी क्रिकेट भी खेला था। 

खेलो इंडिया स्टेट सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस

युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय ‘खेलो इंडिया कार्यक्रम’ (Khelo India Programme) के तहत ‘खेलो इंडिया स्टेट सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस’ (Khelo India State Centres of Excellence) की स्थापना करेगा। इस पहल के तहत संपूर्ण देश में एक मज़बूत खेल पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने के प्रयास के तहत प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में इस प्रकार का एक सेंटर चिन्हित किया जाएगा। पहले चरण में, मंत्रालय ने आठ राज्यों यथा- कर्नाटक, ओडिशा, केरल और तेलंगाना तथा अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम और नागालैंड में सरकारी स्वामित्त्व वाले ऐसे खेल सुविधा केंद्रों की पहचान की है जिन्हें ‘खेलो इंडिया स्टेट सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस’ के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इस पहल का प्रमुख उद्देश्य राज्यों में खेल सुविधाओं को मज़बूत करना है। उल्लेखनीय है कि इन खेल सुविधा केंद्रों की पहचान एक सरकारी समिति द्वारा गहन विश्लेषण के बाद की गई है। इस प्रकार के केंद्रों में खेल प्रतिभाओं की पहचान कर उन्हें इस तरह से प्रशिक्षित करने का कार्य किया जा सकेगा जिससे वे सभी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्द्धाओं विशेष रूप से ओलंपिक खेलों में देश के लिये पदक जीत सकें। राज्य और केंद्रशासित प्रदेश इन केंद्रों संचालन करेंगे और इनकी क्षमता बढ़ाकर इन्हें विश्व स्तरीय खेल सुविधा केंद्रों में बदलने का कार्य करेंगे। इन केंद्रों के प्रबंधन का उत्तरदायित्त्व भी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर ही होगा।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) की दक्षिणी पीठ ने केरल के वन विभाग को जंगल की आग को रोकने के लिये उठाए गए कदमों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने और राज्य में वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना को लागू करने के लिये एक माह का समय दिया है। NGT की पीठ द्वारा जारी आदेश के अनुसार, वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिये उठाए गए कदमों को लेकर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु तिरुवनंतपुरम में प्रधान महा वनसंरक्षक और वन रक्षा बल के प्रमुख को निर्देश दिये हुए कुल तीन माह बीत चुके हैं, किंतु अब तक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है। ध्यातव्य है कि इस वर्ष फरवरी माह में कोट्टमबथुर (त्रिशूर) में वनाग्नि के कारण तीन वन रक्षकों की मृत्यु हो गई थी जिसके बाद NGT ने यह आदेश पारित किया था। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) पर्यावरण संरक्षण तथा वनों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी एवं शीघ्र निपटान के लिये हेतु गठित एक विशिष्ट निकाय है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना वर्ष 2010 में की गई थी। NGT के लिये किसी भी दाखिल मामले का 6 माह के भीतर निपटान करना अनिवार्य है।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2