डेली न्यूज़ (17 Jun, 2019)



बालसम में समृद्ध पूर्वी हिमालयी क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (Botanical Survey of India) द्वारा प्रकाशित पुस्तक में कई नए रिकॉर्ड सहित नई प्रजातियों का विवरण प्रस्तुत किया गया।

  • इसके अनुसार वर्ष 2010 से 2019 के बीच वनस्पतिविदों और वर्गिकी वैज्ञानिकों ने पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में इम्पेतिंस (Impatiens) जो पौधों का एक समूह है, की लगभग 23 नई प्रजातियों की खोज की।
  • उल्लेखनीय है कि इम्पेतिंस पौधे के समूह को बालसम या ज्वेल-वीड (Balsams or jewel-weeds) के रूप में भी जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • इस विवरण में बालसम की (Balsams) 83 प्रजातियों (Species), एक किस्म (Variety), एक प्राकृतिक प्रजाति (Naturalised species) और दो खेती की जाने वाली प्रजातियों (Cultivated Species) का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
  • इन 83 प्रजातियों में से 45 प्रजातियाँ अरुणाचल प्रदेश में, 24 प्रजातियाँ सिक्किम में एवं 16 प्रजातियाँ दोनों राज्यों में (संयुक्त रूप से) सामान्य रूप सी पाई गई हैं।
  • ये औषधीय गुणों से युक्त तथा उच्च स्थानिक/देशज पौधे हैं, जो वार्षिक एवं बारहमासी दोनों ही रूपों में पाए जाते हैं।
  • अपने चमकीले फूलों के कारण पौधों के ये समूह बागवानी के लिये भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

Balsams

बालसम

  • इसकी अधिकतर प्रजातियाँ औषधीय गुणों से युक्त हैं, इसे गुलमेहंदी भी कहा जाता है।
  • आज़ादी के बाद, पूर्वोत्तर भारत में इम्पेतिंस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। इस पुस्तक के प्रकाशन से पहले पूर्वी हिमालय में बालसम प्रजाति की कुल संख्या लगभग 50 ही थी।
  • भारत में बालसम की लगभग 230 प्रजातियाँ पाई जाती हैं और उनमें से अधिकांश पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाटों में पाई जाती हैं।

आने वाली चुनौतियाँ

  • इम्पेतिंस की अधिकांश प्रजातियाँ उच्च स्थानिक होने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यंत संवेदनशील भी है जो सूर्य के प्रत्यक्ष प्रकाश, लगातार सूखे की स्थिति या अन्य जोखिमों को सहन नहीं कर पाती हैं।
  • परिणामस्वरूप इम्पेतिंस की अधिकांश प्रजातियाँ नमी वाली सड़कों, पानी के आस-पास की जगहों, झरने और नम जंगलों के समीप के क्षेत्रों तक ही सीमित हो गई हैं।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, बालसम की कम-से-कम छह प्रजातियाँ ऐसी हैं जो अरुणाचल प्रदेश में केवल निचली दिबांग घाटी तक ही सीमित है। जो निम्नलिखित हैं-
    • आई. एडामोव्सकिआना (I. adamowskiana)
    • आई. डीबलजेंसिस (I. debalgensis)
    • आई. अल्बोपेटाला (I. albopetala)
    • आई. अशिहोई (I. ashihoi)
    • आई. इडुमिश्मेंनसिस (I. idumishmiensis)
    • आई. रगोसिपेटाला (I. rugosipetala)
  • कुछ प्रजातियाँ को उनकी खूबसूरती और चमकदार फूलों के कारण बड़े बागानों में लगाया जाता हैं। जिनमें प्रमुख हैं-
    • आई. लोहितेंसिस (I. lohitensis)
    • आई. पेथाकियाना (I. pathakiana)
    • आई. स्यूडोलाइविगाटा (I. pseudolaevigata)
  • पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन का इस समूह पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। अतः ऐसे में इसके संरक्षण के संबंध में विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

वैज्ञानिकों के अनुसार, इन नई प्रजातियों की खोज ही पर्याप्त नहीं है, गर्म जलवायु में इसके पनपने हेतु आवश्यक अनुकूलन क्षमता का विकास कर अलग-अलग संकर पौधे बनाने के लिये अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ता डिजिटल लेन-देन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-2019 में डिजिटल लेन-देन की मात्रा में 58.8 प्रतिशत तथा मूल्य मात्रा में 19.5 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज़ की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, यह नगद रहित अर्थव्यवस्था (Cashless Economy) की ओर भारत का मज़बूत कदम है। रिपोर्ट के अनुसार, रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2021 तक डिजिटल लेन-देन में 4 गुना वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

मुख्य बिंदु :

  • RBI के अनुसार, डिजिटल लेन-देन की मूल्य मात्रा में कुल 19.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की गई है जो की पिछले वित्तीय वर्ष में 22.2 प्रतिशत थी।
  • डिजिटल लेन-देन की इस वृद्धि में एक बड़ा हिस्सा RTGS (82.2 प्रतिशत) का है वहीं RTGS (Real Time Gross Settlement System) तथा अंतरबैंक लेन-देन (Interbank Transactions) के अतिरिक्त अन्य घटकों के कारण डिजिटल लेन-देन में 59.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ हुई है।
  • चेक (Cheque) के उपयोग की वर्तमान प्रवृति को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने यह अनुमान लगाया है कि वर्ष 2021 तक चेक आधारित लेन-देन में 2 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है।
  • इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है की वर्ष 2021 तक एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (Unified Payment Interface - UPI) जैसी भुगतान प्रणालियों में सालाना लगभग 100 प्रतिशत औसत वृद्धि दर होने की संभावना है।
  • RBI के अनुसार, बीते कुछ वर्षों में भुगतान तथा निपटान (Payment and Settlement) प्रणालियों में काफी नवीनीकरण हुआ है, मोबाइल वॉलेट्स (Mobile Wallets) ने सभी के लिये बैंकिंग सेवाओं की उपलब्धता को बहुत आसान कर दिया है, इसके अतिरिक्त बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण (Biometric Authentication) ने भी बैकिंग सेवाओं को और अधिक सुरक्षित बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • वित्तीय प्रौद्योगिकी के क्षेत्र को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के उपयोग ने भी एक नई दिशा प्रदान की है, आज इस क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग काफी व्यापक स्तर पर हो रहा है जिसने इसे ओर भी सुविधाजनक बना दिया है।
  • रिपोर्ट में निकट क्षेत्र संचार (Near field Communication - NFC) तकनीक और केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं (Central Bank Digital Currencies - CBDC) को वित्तीय क्षेत्र के अग्रणी नवाचारों के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • RBI के अनुसार, UPI से होने वाले भुगतानों की मात्रा मार्च 2019 में अपने शीर्ष स्तर 799.5 मिलियन पर पहुँच गई है जो मार्च 2018 से 4.5 प्रतिशत अधिक है।
  • वर्ष 2018-2019 में डेबिट कार्ड की आयतन तथा मूल्य मात्रा में क्रमशः 19.5 और 16.3 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
  • हालाँकि क्रेडिट कार्ड की आयतन तथा मूल्य मात्रा में पिछले वर्ष के मुकाबले कम वृद्धि दर्ज़ की गई है। जहाँ पिछले वर्ष इसकी आयतन मात्रा में कुल 29.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, वहीं इस वित्तीय वर्ष यह सिर्फ 25.4 प्रतिशत ही रही और मूल्य मात्रा में इस वर्ष 31.4 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई जबकि यह बीते वर्ष यह 39.7 प्रतिशत थी।

भारतीय रिज़र्व बैंक :

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल, 1935 को हुई थी।
  • यद्यपि प्रारंभ में यह निजी स्वमित्व वाला था, वर्ष 1949 में RBI के राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।
  • रिज़र्व बैंक का कामकाज केंद्रीय निदेशक बोर्ड द्वारा शासित होता है। भारत सरकार के भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अनुसार इस बोर्ड की नियुक्ति चार वर्षों के लिये होती है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्य :
    • मौद्रिक प्रधिकारी
    • वित्तीय प्रणाली का विनियामक और पर्यवेक्षक
    • विदेशी मुद्रा प्रबंधक
    • मुद्रा जारीकर्त्ता
    • सरकार का बैंकर
    • बैंकों के लिये बैंकर

एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) क्या है?

  • यह एक ऐसी प्रणाली है जो एक मोबाईल एप्लीकेशन के माध्यम से कई बैंक खातों का संचालन, विभिन्न बैंकों की विशेषताओं को समायोजित, निधियों का निर्बाध आवागमन और एक ही छतरी के अंतर्गत व्यापरियों का भुगतान कर सकता है।
  • यह "पीयर टू पीयर" अनुरोध को भी पूरा करता है जिसे आवश्यकता और सुविधा के अनुसार निर्धारित कर भुगतान किया जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि UPI का पहला संस्करण अप्रैल 2016 में लॉन्च किया गया था।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


घाना का डबल ट्रैक सिस्टम (Double Track System)

संदर्भ

घाना में माध्यमिक शिक्षा को सभी के लिये उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा मुफ्त सीनियर हाई स्कूल (Free Senior High School- Free SHS) नीति अपनाई गई थी जिसके तहत घाना की सरकार ने डबल ट्रैक सिस्टम (Double Track System) का प्रयोग किया था। घाना सरकार की यह पहल उस समय काफी अधिक चर्चा में रही। इस नीति को लगभग 2 साल पूरे होने वाले हैं और इन दो सालों में नीति के परिणामों को देखते हुए इसके समर्थक और आलोचक दोनों ही सामने आ गए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • घाना द्वारा प्रयोग किये जाने वाले डबल ट्रैक सिस्टम (Double Track System) में विद्यार्थियों को दो टोलियों (ग्रीन और गोल्ड) में पढ़ाने की योजना बनाई गई है।
  • इस प्रणाली में जब एक टोली को पढ़ाया जाता है तो दूसरी टोली के लिये स्कूल बंद कर दिया जाता है।
  • घाना सरकार द्वारा इस प्रणाली के पक्ष में यह तर्क दिया गया है कि इस प्रणाली से क्लास रूम में बच्चों की संख्या में कमी आएगी जिसके परिणामस्वरूप शिक्षक सभी बच्चों पर उचित ध्यान केंद्रित कर पाएंगे और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  • परंतु उपरोक्त तथ्य के अतिरिक्त इस नीति के आलोचक (जो मुख्यतः अभिभावक ही हैं) यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि वे बच्चे, जिन्हें इस प्रणाली के अनुपालन के कारण घर में बैठना पड़ता हैं, तुलनात्मक रूप से पढ़ाई में पीछे छूट सकते हैं और यदि ऐसा होता है तो इस शिक्षा नीति का क्या महत्त्व रहेगा?
  • हालाँकि घाना सरकार ने यह भी कहा है कि यह नीति स्थायी नहीं है और सरकार जल्द ही सभी विद्यार्थियों के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की व्यवस्था करेगी ताकि पुनः एकल ट्रैक सिस्टम (Single Track System) को लागू किया जा सके।
  • ज्ञातव्य है कि मुफ्त SHS नीति के कारण वर्ष 2018 में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाले घाना के 83 प्रतिशत विद्यार्थी माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये पंजीकृत हुए, जबकि वर्ष 2016 में यह संख्या मात्र 67 प्रतिशत ही थी।

स्पष्ट रूप से इस संबंध में घाना सरकार द्वारा जल्द-से-जल्द कोई निर्णायक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में देश के बहुमूल्य मानव संसाधन के रूप में तैयार होने वाली युवा पीढ़ी के लिये बेहतर शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ आवश्यक सुविधाओं की भी व्यवस्था की जा सकें।

स्रोत- द हिंदू


महासागरीय प्लास्टिक कचरे से निपटने हेतु नया कार्यान्वयन ढाँचा

चर्चा में क्यों?

28-29 जून को पश्चिमी जापान के ओशाका में आयोजित होने वाले जी 20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) से पहले टोक्यो के उत्तर-पश्चिम में स्थित करुइज़ावा (Karuizawa) शहर में पर्यावरण और ऊर्जा मंत्रियों की एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में वैश्विक स्तर पर समुद्री प्लास्टिक कचरे से निपटने हेतु एक नए कार्यान्वयन ढाँचे को अपनाने पर सहमति व्यक्त की गई।

महासागर प्लास्टिक कचरा: एक प्रमुख मुद्दा

  • महासागर प्लास्टिक कचरा इस बैठक का प्रमुख मुद्दा था क्योंकि प्लास्टिक कचरे से सटे समुद्री तटों और मृत जानवरों के शरीर में पाई जाने वाली प्लास्टिक की तस्वीरें पूरी दुनिया में महासागरीय प्लास्टिक कचरे की वीभत्सता को प्रदर्शित करती है। यही कारण है कि कई देशों ने प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर प्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंध लगा दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • यद्यपि वर्ष 2017 में जर्मनी के हैम्बर्ग में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन (G20 Hamburg Summit) में ‘समुद्री कूड़े पर G20 कार्य योजना’ (G20 action plan on marine litter) को अपनाया गया, इस नए कार्यान्वयन ढाँचे का उद्देश्य समुद्री कचरे से निपटने के लिये एक ठोस कार्रवाई को आगे बढ़ाना है।
  • नए ढाँचे के अंतर्गत, G20 सदस्य विभिन्न उपायों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से महासागरों को प्लास्टिक कूड़े के निर्वहन को रोकने एवं कम करने के लिये एक व्यापक जीवन-चक्र दृष्टिकोण को बढ़ावा देंगे।
  • ये देश महासागरीय कचरे से निपटने के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करेंगे, नवाचार को बढ़ावा देंगे और वैज्ञानिक निगरानी एवं विश्लेषणात्मक तरीकों को भी बढ़ावा देंगे।
  • उल्लेखनीय है कि जापान G20 देशों के पर्यावरण मंत्रियों की G20 संसाधन दक्षता संवाद (G20 Resource Efficiency Dialogue) के दौरान नई रूपरेखा के तहत पहली बैठक की मेज़बानी कर सकता है।

महासागरीय कचरे पर जी 20 कार्रवाई योजना

(The G20 Action Plan on Marine Litter)

इस कार्रवाई योजना/एक्शन प्लान में सात उच्च स्तरीय नीतिगत सिद्धांत शामिल हैं:

1. समुद्री कचरे पर प्रतिबंध लगाने हेतु नीतियों की स्थापना के सामाजिक-आर्थिक लाभों को बढ़ावा देना।

2. अपशिष्ट रोकथाम और संसाधन दक्षता को बढ़ावा देना।

3. स्थायी कचरा प्रबंधन को बढ़ावा देना।

4. प्रभावी अपशिष्ट जल उपचार और तूफान जल प्रबंधन को बढ़ावा देना।

5. जागरूकता फैलाना, शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देना।

6. निवारण और सुधारात्मक गतिविधियों का समर्थन करना।

7. हितधारकों के साथ संबंधों को मज़बूती प्रदान करना।

प्लास्टिक प्रदूषण

  • प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज़ डेरिवेटिव में हुई थी। प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।
  • फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।
  • यहाँ यह स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्त्व होते हैं। इनका आकार 5 मिमी. से अधिक नहीं होता है।
  • इनका इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। ये खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं। जब पक्षी एवं मछलियाँ इनका सेवन करती हैं तो यह उनके शरीर में चले जाते हैं।
  • अधिकांशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पन्न किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हज़ारों साल तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण के विषय में गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किये जाने की आवश्यकता है।

समुद्री जीवों पर संकट

  • इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के तकरीबन 90 फीसदी समुद्री जीव-जंतु एवं पक्षी किसी न किसी रूप में अपने शरीर में प्लास्टिक ले रहे हैं। प्लास्टिक की यह मात्रा न केवल पर्यावरण के लिये खतरनाक है बल्कि इन जीवों के लिये भी जानलेवा साबित हो रही है।
  • आर्कटिक सागर के विषय में किये गए एक शोध के अनुसार, अगर यही स्थिति रहती है तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक कचरा नज़र आएगा।
  • आर्कटिक सागर के जल में 100 से 1200 टन के बीच प्लास्टिक मौजूद होने की संभावना है जो विभिन्न प्रकार की धाराओं के ज़रिये समुद्र में एकत्रित होता जा रहा है।
  • स्पष्ट रूप से यदि जल्द ही समुद्र में प्रवेश करने वाले इस कचरे पर रोक नहीं लगाई गई तो आगामी तीन दशकों में समुद्री जीव-जंतुओं के साथ-साथ पक्षियों की बहुत बड़ी तादाद खतरे में आ जाएगी।
  • आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच अवस्थित तस्मानिया सागर का क्षेत्र प्लास्टिक प्रदूषण के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
  • हाल ही में पी.एन.ए.एस. नामक एक जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, 1960 के दशक में पक्षियों के आहार में केवल पाँच फीसदी प्लास्टिक की मात्रा पाई गई थी, जबकि 2050 तक तकरीबन 99 फीसदी समुद्री पक्षियों के पेट में प्लास्टिक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

G20 संसाधन दक्षता संवाद

(G20 Resource Efficiency Dialogue)

  • G20 देशों ने वर्ष 2017 में आयोजित हैम्बर्ग शिखर सम्मेलन में G20 संसाधन दक्षता संवाद स्थापित करने का निर्णय लिया था।
  • यह संवाद प्राकृतिक संसाधनों के कुशल और दीर्घकालिक उपयोग को G20 वार्ता का मुख्य घटक बनाता है।

और पढ़ें

कैसे कचरा मुक्त होंगे हमारे महासागर?

स्रोत- द हिंदू


असम में विदेशी अधिकरण और एन.आर.सी.

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने असम में 1000 अतिरिक्त विदेशी अधिकरणों की स्थापना को मंज़ूरी दी है।

विदेशी

विदेशी अधिनियम (Foreigners Act), 1946 के तहत वह व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है, विदेशी माना जाता है।

अवैध प्रवासी

यूनेस्को (UNESCO) के अनुसार, आमतौर पर ऐसे लोगों को अवैध प्रवासी कहते हैं जो रोज़गार के लिये अन्य देशों में बिना अनुमति और आवश्यक दस्तावेज़ों के प्रवेश करते हैं।

Aasam & Banglades

अतिरिक्त विदेशी अधिकरणों की आवश्यकता क्यों ?

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त (RGCCI) ने 30 जुलाई, 2018 को असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों को अलग करने के लिये NRC की अंतिम मसौदा सूची प्रकाशित की।
  • यह सूची ऐसे लोगों को अपवर्जित करने के लिये तैयार की गई, जिन्होंने 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से अवैध रूप से असम राज्य में प्रवेश किया था।
  • लगभग 40 लाख लोगों को अंतिम मसौदे से बाहर रखा गया था। इनमें से 4 लाख लोगों ने अपवर्जित किये जाने के खिलाफ आवेदन नहीं किया। इन लोगों की उचित सुनवाई के लिये असम में अधिक अधिकरणों की आवश्यकता है।

वर्तमान में असम में अधिकरणों की संख्या

  • वर्तमान में असम में 100 विदेशी अधिकरण (Foreigners tribunal) कार्यरत हैं, प्रारंभ में 11 अवैध प्रवासी (निर्धारण) ट्रिब्यूनल थे। किंतु वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध प्रवासी (निर्धारण) अधिनियम (IMDT), 1983 को रद्द करने के बाद इन ट्रिब्यूनलों को विदेशी अधिकरणों में परिवर्तित कर दिया गया।

अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम (IMDT), 1983

  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस अधिनियम को वर्ष 2005 में रद्द कर दिया गया। क्योंकि यह अधिनियम बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उनको निर्वासित करने में एक बड़ी बाधा बना हुआ था।

विदेशी अधिकरण

  • ये अधिकरण अर्द्ध-न्यायिक (Quasi-judicial) प्रकृति के होते हैं। इनके सदस्यों की नियुक्ति विदेशी ट्रिब्यूनल अधिनियम, 1941; विदेशी अधिकरण आदेश 1984 तथा समय-समय पर केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के तहत की जाती है।
  • ये सदस्य असम न्यायिक सेवा अथवा सेवानिवृत्त सिविल सेवक हो सकते हैं, जो सचिव और अतिरिक्त सचिव पद से नीचे के न हों।
  • सदस्यों को असम (असमिया, बांग्ला, बोडो और अंग्रेज़ी) की आधिकारिक भाषाओं और विदेशियों के मुद्दे को जन्म देने वाली राज्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उचित ज्ञान होना भी आवश्यक है।

अधिकरणों की कार्यप्रणाली

  • असम पुलिस सीमा संगठन, राज्य पुलिस के अंग के रूप में कार्य करता है। इसका कार्य राज्य में कथित रूप से रह रहे अवैध प्रवासियों का पता लगाना और उनको पकड़ना है।
  • पकड़े गए लोगों को अधिकरणों के समक्ष पेश किया जाता है। अधिकरण कथित अवैध प्रवासियों की वैधता की जाँच करती है और निर्णय देती है।

विदेशी (अधिकरण) संशोधन आदेश 2019

[Foreigners (Tribunals) Amendment Order 2019]

  • गृह मंत्रालय द्वारा जारी नए आदेश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ज़िला मजिस्ट्रेटों को ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार देता है।
  • विदेशी (अधिकरण) आदेश, 1964 के तहत इससे पहले ऐसी शक्तियाँ सिर्फ केंद्र सरकार के पास थीं। किंतु ऐसे अधिकरण सिर्फ असम में होने के कारण इस संशोधन की प्रासंगिकता सिर्फ असम के संदर्भ में है।

भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)

  • NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे वर्ष 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों का विवरण शामिल था।
  • इसमें केवल उन भारतीयों के नामों को शामिल किया जा रहा है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। उसके बाद राज्य में पहुँचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
  • NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। NRC की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।

स्रोत- द हिन्दू , इकॉनमिक टाइम्स


सेलेनियम-ग्रैफीन उत्प्रेरक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत की एक बहु-संस्थागत टीम (Multi-Institutional Team) ने सेलेनियम-ग्रैफीन-आधारित उत्प्रेरक (Selenium-Graphene–based catalyst) विकसित किया है। उल्लेखनीय है कि यह उत्प्रेरक प्लैटिनम (Platinum) आधारित उत्प्रेरक की तुलना में उच्च कोटि का है तथा अत्यधिक प्रभावी है एवं इसकी लागत भी कम है।

शोध में शामिल संस्थान

1. इस कार्य में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, हैदराबाद (Tata Institute of Fundamental Research, Hyderabad-TIFR-H);

2. हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad); और

3. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (Indian Institute of Science Education and Research-IISER), तिरुवनंतपुरम

इस शोध को अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (American Chemical Society): एप्लाइड एनर्जी मैटेरियल्स (Applied Energy Materials) नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस सोसाइटी का लक्ष्य रसायन विज्ञान के क्षेत्र में ऊर्जा रुपांतरण के माध्यम से लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना है।

selenium graphene

प्रमुख बिंदु

  • आधुनिक ऊर्जा तकनीक के अंतर्गत ऐसे अच्छे उत्प्रेरक (जैसे- हाइड्रोजन ईंधन आधारित कारों में ईंधन सेल जिनका व्यावसायिक उपयोग किया जाता है) की आवश्यकता होती है जिनकी उत्पादकता एवं लागत उचित हो।
  • सामान्यतः ईंधन सेल में बहुमूल्य प्लैटिनम का प्रयोग किया जाता है, शुरुआत में महंगी धातु-आधारित प्रौद्योगिकियाँ कुशलतापूर्वक कार्य करती है लेकिन थोड़े-ही समय पश्चात् धीरे-धीरे इनकी उत्पादकता कम हो जाती है।
  • ईंधन सेल्स ऑक्सीजन अपचयन अभिक्रिया के आधार पर कार्य करती हैं तथा ग्रैफीन (Graphene) इस अभिक्रिया में ऋणात्मक-उत्प्रेरक (Negative Catalyst) की भूमिका निभाता है।
  • इस प्रकार ऑक्सीजन के अपचयन की अभिक्रिया दो चरणों में संपन्न होती है एवं प्रत्येक चरण में दो इलेक्ट्रॉनों का उपभोग होता है, जो न तो मेटल-एयर बैटरियों (Metal-Air Batteries) और न ही ईंधन सेल्स के लिये उपयुक्त है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, अक्सर प्लेटिनम का उपयोग ऑक्सीजन अपचयन अभिक्रिया को उत्प्रेरित करने के लिये किया जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए अनुसंधानकर्त्ताओं ने इसे प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया। इसमें ग्रैफीन के परमाणुओं को अल्प मात्रा में सेलेनियम परमाणुओं के साथ प्रतिस्थापित करके जो नया संकर उत्प्रेरक बनता है। वह भी प्लैटिनम उत्प्रेरक की तरह व्यवहार करता है।
  • अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार, न तो सेलेनियम और न ही ग्रैफीन एकल रूप से उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकते है, लेकिन इनका संयोजन (मिश्रण) एक अच्छे उत्प्रेरक की भाँति कार्य करता है। जब सेलेनियम की थोड़ी मात्रा के साथ उच्च मात्रा में कार्बन युक्त ग्रेफीन को मिलाया जाता है तो एक उच्च श्रेणी का उत्प्रेरक प्राप्त होता है, जो सस्ता भी है और उपयोगी भी।

विषाक्त प्रतिरोधी (Poisoning-Resistant)

    • सामान्यतः ईंधन सेल्स के रूप में मेथेनॉल सेल्स का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसमें विषाक्त प्रभाव पाया जाता है जिसमें मेथनॉल, अभिक्रिया के दौरान ऋणात्मक इलेक्ट्रोड (Negative Electrode) पर जमा होने लगता है, इस कारण इलेक्ट्रोड कुछ समय पश्चात् अप्रभावी हो जाता है।
    • विशेषज्ञों की मानें तो एकल-परमाणु उत्प्रेरक की अवधारणा कोई नई नहीं है। पहले इनके स्थान पर प्लैटिनम, पैलेडियम और सोने, जैसी भारी धातुओं का प्रयोग किया जाता था। लेकिन इस समूह द्वारा सेलेनियम का प्रयोग करना एक असाधारण विचार है।
    • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, इस प्रकार के उत्प्रेरक को धातु-एयर बैटरी जैसे अन्य क्षेत्रों में भी प्रयोग किया जा सकता है तथा बैटरियों में उच्च ऊर्जा घनत्व वाले उपकरणों के विकास एवं प्रयोग हेतु अनुसंधान जारी है, जो मौजूदा लिथियम आयन-बैटरी से बेहतर होंगे।
  • उत्प्रेरक- वे पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया के दौरान रासायनिक एवं मात्रात्मक रूप में बिना परिवर्तित हुए रासायनिक अभिक्रिया की दर में वृद्धि करते हैं, उत्प्रेरक कहलाते हैं एवं इस परिघटना को उत्प्रेरण कहते हैं।

सेलेनियम

  • सेलेनियम एक अधात्विक रासायनिक तत्त्व है, जो आवर्त सारणी के समूह XVI का सदस्य है।
  • इसके रासायनिक और भौतिक गुणों की प्रवृत्ति सल्फर और टेल्यूरियम जैसी होती है।
  • सेलेनियम में अच्छे फोटोवोल्टिक और फोटोकॉन्डक्टिव गुण होते हैं, तथा इसका उपयोग फोटोसेल, लाइट मीटर एवं सौर सेल जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स में बड़े पैमाने पर किया जाता है।

ग्रैफीन

  • यह एक षट्कोणीय जाली में व्यवस्थित कार्बन परमाणुओं की एक मोटी परमाणु परत होती है। यह ग्रेफाइट के निर्माण-खंड है (जिसका उपयोग अन्य चीजों के अलावा पेंसिल में भी किया जाता है)।

स्रोत: द हिंदू


हॉन्गकॉन्ग प्रोटेस्ट

चर्चा में क्यों?

पिछले कुछ समय से हॉन्गकॉन्ग में अव्यवस्था की स्थिति देखने को मिल रही है। हाल ही में प्रस्तावित नए प्रत्यर्पण कानून के खिलाफ एक बार फिर हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारियों ने पूरे शहर का चक्का जाम कर दिया।

  • उल्लेखनीय है कि इस प्रस्तावित कानून में आरोपितों और संदिग्धों पर मुकदमा चलाने के लिये उन्हें चीन में प्रत्यर्पित करने का प्रावधान किया गया है।
  • इस संबंध में विशेषज्ञों का मानना है कि इस कानून के अनुपालन से हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता और यहाँ रहने वाले लोगों के मानवाधिकार खतरे में आ जाएंगे।

प्रमुख बिंदु

  • हॉन्गकॉन्ग के आंतरिक मामलों में चीन के कम्युनिस्ट शासन के हस्तक्षेप और उसकी दमनकारी नीतियों ने हाल के दिनों में स्वायत्तता के लिये विभिन्न लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है।
  • हॉन्गकॉन्ग में होने वाला इस तरह का सामूहिक प्रदर्शन शहर के अब तक के इतिहास में सबसे बड़े प्रदर्शन में से एक है जो नागरिक स्वतंत्रता को कम किये जाने पर बढ़ते भय और क्रोध का एक आश्चर्यजनक प्रदर्शन है।
  • इससे पहले वर्ष 1997 में हॉन्गकॉन्ग को चीन को सौंपे जाने पर सबसे बड़ा प्रदर्शन हुआ था।
  • प्रदर्शनकारियों ने सरकार से प्रत्यर्पण कानून की अपनी योजना को वापस लेने की मांग की। इसके लिये हॉन्गकॉन्ग में बहुत बड़े पैमाने पर भारी भीड़ जमा हो गई।
  • प्रदर्शनकारियों में इस बात का भय है कि यदि चीन मनमाने ढंग से कुछ लोगों को मुख्य भू-भाग में प्रत्यर्पित करता है तो इससे हॉन्गकॉन्ग में रहने वाले लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित होगा, साथ ही इनकी अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पडेगा।

freedoms in Hong-Kong

अंब्रेला आंदोलन

  • यह पहली बार नहीं है जब हॉन्गकॉन्ग में इतने बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। इससे पहले भी ऐसी ही भीड़ हॉन्गकॉन्ग में सड़कों पर उतकर प्रदर्शन कर चुकी है।
  • इस बार के प्रदर्शन में बस इतना अंतर है कि पिछले सबसे बड़े प्रदर्शन के मुकाबले इस बार करीब दोगुने लोग सड़कों पर उतरे थे।
  • वर्ष 2014 में हुए एक आंदोलन 'अंब्रेला आंदोलन' में कुछ हज़ार लोग सड़कों पर उतरे थे लेकिन यह आंदोलन नाकाम हो गया था क्योंकि इसे नागरिकों के बड़े वर्ग का समर्थन नहीं मिल पाया था।
  • उल्लेखनीय है कि 2014 का 'अंब्रेला आंदोलन' भी लोकतंत्र के बचाव के नाम पर किया गया था। इस बार प्रत्यर्पण कानून मसौदे के खिलाफ हुए आंदोलन को भी 'प्रो डेमोक्रेसी' कहा गया है।

हॉन्गकॉन्ग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1842 में चीन राजवंश के प्रथम अफीम युद्ध में पराजित होने के बाद चीन ने बिटिश साम्राज्य को हॉन्गकॉन्ग द्वीप सौंप दिया था, उसके बाद हॉन्गकॉन्ग का (एक अलग भू-भाग) आस्तित्व सामने आया।
  • लगभग 6 दशक के दौरान चीन के लगभग 235 अन्य द्वीप भी ब्रिटेन के कब्जे में आ गए और हॉन्गकॉन्ग अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र बन गया।
  • 20वीं सदी के प्रारंभ में यहाँ भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन हुआ जिनमें चीनी लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा थी।
  • बड़ी संख्या में प्रवासियों के आगमन ने हॉन्गकॉन्ग के लिये एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में एक नई भूमिका निभाने में मदद की।
  • चीन की अर्थव्यवस्था एवं भौगोलिक स्थिति के प्रभाव के कारण वर्तमान में हॉन्गकॉन्ग सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था के साथ-साथ दुनिया के सबसे बड़े बाज़ारों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार बन गया है।
  • वर्ष 1997 तक हॉन्गकॉन्ग ब्रिटिश साम्राज्य के नियंत्रण में था।
  • 'वन कंट्री, टू सिस्टम्स' (One Country, Two Systems) के सिद्धांत के तहत, हॉन्गकॉन्ग 1 जुलाई, 1997 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (Special Administrative Region-SAR) बन गया।
  • इस व्यवस्था से शहर को अपनी पूँजीवादी व्यवस्था को बनाए रखने के लिये स्वायत्तता, स्वतंत्र न्यायपालिका और कानून का शासन, मुक्त व्यापार एवं बोलने की स्वतंत्रता, आदि की अनुमति मिलती है।

भौगोलिक अवस्थिति

  • चीन के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित, पर्ल नदी डेल्टा और दक्षिण चीन सागर पर स्थित।
  • अपनी भौगोलिक स्थिति की रणनीतिक विशेषता के कारण यह दुनिया के सबसे संपन्न और महानगरीय शहरों में से एक है।
  • अपनी भौगोलिक अवस्थिति, विभिन्न एतिहासिक परम्पराओं, विविध संस्कृतियों और पूर्व-पश्चिम का सम्मिश्रण ही इसकी प्रमुख विशेषता है।

HongkongHongkong Asia

स्रोत- डिस्कवर हॉन्गकॉन्ग वेबसाइट, बीबीसी वेबसाइट


स्पेक्ट्रम-रॉन्टजेन-गामा दूरबीन

चर्चा में क्यों?

जर्मनी तथा रूस के वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम स्पेक्ट्रम-रॉन्टजेन-गामा (Spectrum-Roentgen-Gamma- SRG) नामक अंतरिक्ष दूरबीन लॉन्च करने की योजना बना रही है। यह दूरबीन ब्रह्मांड का त्रि-आयामी (Three-Dimensional-3D) एक्स-रे मानचित्र का निर्माण करेगी और अज्ञात विशालकाय कृष्ण छिद्रों, डार्क एनर्जी एवं सितारों के रहस्यों को सुलझाने में मदद करेगी।

Telescope

  • SRG टेलीस्कोप का उद्देश्य आकाशगंगा के 3 मिलियन से अधिक विशालकाय कृष्ण छिद्रों की पहचान करना है।
  • इस दूरबीन को रूस निर्मित रॉकेट प्रोटॉन-एम (Proton-M ) के ज़रिये कज़ाकिस्तान के बैकोनूर कोस्मोड्रोम (Baikonur Cosmodrome) से अंतरिक्ष में उतारा जाएगा।
  • इस चार वर्षीय मिशन में पूरे आकाश का आठ बार सर्वेक्षण किया जाएगा तथा ब्रह्मांड और डार्क एनर्जी के विकास से संबंधित जानकारी एकत्र की जाएगी।
  • यह ऐसी पहली दूरबीन नहीं है जो शक्तिशाली एक्स-किरणों के प्रति संवेदनशील होगी, बल्कि यह ऐसी पहली दूरबीन होगी जो वर्णक्रम के इस हिस्से में आकाश का नक्शा तैयार करेगी।
  • इस मिशन में दो स्वतंत्र दूरबीनें शामिल होंगी:
    • जर्मनी द्वारा निर्मित eROSITA (Extended Roentgen Survey with an Imaging Telescope Array)
    • रूस द्वारा निर्मित ART-XC (Astronomical Roentgen Telescope X-ray Concentrator)
  • इन दोनों दूरबीनों में अपेक्षाकृत उच्च ऊर्जा वाली एक्स-रे बैंड को शामिल किया गया है।

एक्स किरणें (X-Rays)

  • एक्स-किरणें उच्च-ऊर्जा वाले विद्युत चुंबकीय विकिरण का एक रूप है। वर्ष 1895 में जर्मन वैज्ञानिक विल्हेम रॉन्टजेन (Wilhelm Rontgen) ने इनकी खोज की थी इसलिये एक्स-विकिरण को रॉन्टजेन विकिरण के रूप में भी जाना जाता है।

सॉफ्ट तथा हार्ड एक्स-किरणें

  • एक्स-रे को आमतौर पर उनकी अधिकतम ऊर्जा द्वारा वर्णित किया जाता है, जिसका निर्धारण इलेक्ट्रोड के बीच स्थित वोल्टेज द्वारा किया जाता है।
  • उच्च फोटोन ऊर्जा (5–10 keV से अधिक) वाली एक्स-किरणों को शक्तिशाली एक्स-किरणें या हार्ड एक्स-किरणें कहा जाता है।
  • अपनी भेदन क्षमता के कारण हार्ड एक्स-किरणों का उपयोग व्यापक रूप से अपारदर्शी दिखने वाली वस्तुओं के अंदर की छवि को देखने के लिये किया जाता है।
    • निम्न ऊर्जा (और उच्च तरंगदैर्ध्य) वाली एक्स-किरणों को सॉफ्ट एक्स-किरणें कहा जाता है।

पूर्व मिशन

  • वर्ष 1990 के दशक में जर्मनी का ROSAT मिशन केवल सॉफ्ट ’एक्स-किरणों’ (जिनकी ऊर्जा लगभग 2 keV थी) के प्रति संवेदनशील था।
  • नासा की चंद्र एक्स-रे वेधशाला (Chandra X-ray Observatory) और NuSTAR, उच्च-ऊर्जा विकिरण का अवलोकन करने और ब्रह्मांडीय संरचनाओं से संबंधित छोटे विवरणों का विश्लेषण करने में सक्षम है। लेकिन यह केवल आकाश के एक छोटे हिस्से को देखने में ही सक्षम है।
  • SRG को पहली बार वर्ष 1987 में रूसी खगोलविदों द्वारा प्रस्तावित किया गया था, लेकिन वर्ष 1991 में सोवियत संघ के पतन के कारण इस योजना को रद्द कर दिया गया।
  • वर्ष 2004 में इसे फिर से शुरू किया गया, लेकिन वर्ष 2011 में नासा द्वारा अपने अंतरिक्ष-शटल कार्यक्रम (Space-Shuttle Programme) को समाप्त किये जाने के कारण अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर एक्स-रे दूरबीन भेजने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया था।
  • तत्पश्चात् वर्ष 2009 में जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी और रोस्कोस्मोस (Roscosmos) ने इस संयुक्त परियोजना को मंज़ूरी दी।

स्रोत: nature.com


कैंसर कोशिकाओं में विकिरण संवेदनशीलता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च (Jawaharlal Nehru Centre for Advanced Scientific Research- JNCASR), बेंगलुरु के शोधकर्त्ताओं ने एक आणविक तंत्र का अनावरण किया है जो एक ऐसा ऑटोफैगी मार्ग है (Autophagy Pathway, एक ऐसी क्रिया जिसके द्वारा अनावश्यक या बेकार कोशिका घटकों को पुन: चक्रित किया जाता है।) जो मानव कोशिकाओं को पराबैंगनी विकिरण के प्रतिरोधी बनाता है। उल्लेखनीय है कि शीघ्र ही कैंसर रोगियों पर इसका प्रयोग किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • मॉलीक्यूलर बायोलॉजी एंड जेनेटिक्स यूनिट (Molecular Biology and Genetics Unit) के संरक्षण में JNCASR के अनुसंधानकर्त्ताओं ने पाया कि एक विशेष प्रोटीन Positive Co-Activator 4 (PC4) की अनुपस्थिति या कमी ही मूल रूप से Autophagy के लिये ज़िम्मेदार है।
  • जब कोई कोशिका प्रतिकूल स्थिति में विकृत होती है, तो उसका डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है। ऐसी कोशिकाएँ या तो मर जाती हैं या फिर ऑटोफैगी मार्ग (Autophagy Pathway) को सक्रिय करके क्षतिग्रस्त कोशिकीय घटकों का पुनर्चक्रण कर और अधिक समय तक जीवित रह सकती हैं।
  • मूल कोशिकाओं में PC4 प्रोटीन (PC4 protein) की कमी से इनका केन्द्रक अनियमित आकार का हो जाता है और इनका गुणसूत्र वितरण (Chromosome Distribution) भी अनिश्चित हो जाता है। हालाँकि इन परिवर्तनों से कोशिका की मृत्यु नहीं होती है, लेकिन इससे ऑटोफैगी को बढ़ावा मिलता है।
  • ऑटोफैगी का बढ़ा हुआ स्तर कोशिकाओं को गामा विकिरण के विरुद्ध कोशिकाओं की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, PC4 प्रोटीन की कमी वाली कोशिकाओं को 24 घंटे के लिये गामा विकिरण के संपर्क में रखा गया, तो आटोफैगी में तीव्र वृद्धि देखी गई। ऑटोफैगी की वैधता की जाँच करने हेतु जिन कोशिकाओं में PC4 प्रोटीन की कमी थी, उनमें ऑटोफैगी मार्ग को अवरुद्ध करने के लिये अवरोधकों का प्रयोग किया गया। इसके बाद ये कोशिकाएँ गामा विकिरण के संपर्क में आने के बाद नष्ट होने लगी। जब निष्कर्षों को पुनर्सत्यापित करने के लिये ऑटोफैगी प्रेरण के लिये ज़िम्मेदार जीन को निष्क्रिय किया गया तो इसमें तेज़ी से गिरावट दर्ज की गई।
  • अध्ययन में ऐसा पहली बार पाया गया कि जीनोम संगठन ही कोशिकाओं में सीधे तौर पर ऑटोफैगी के लिये ज़िम्मेदार है जो कैंसर कोशिकाओं में अपेक्षाकृत कम आक्रामक होते हैं, उनमें PC4 का स्तर सामान्य होता है और ऑटोफैगी भी कम होता है। लेकिन ऐसी कोशिकाओं में यदि PC4 कम हो जाता है, तो कोशिकाएँ अत्यधिक आक्रामक हो जाती हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, कैंसर रोगी की कुछ कोशिकाओं में ही में ऐसी वृद्धि देखने को मिलती है, अन्य सामान्य कोशिकाओं में नहीं।

स्रोत: द हिंदू


एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन 2019

चर्चा में क्यों?

मीडिया और प्रसारण उद्योग से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिये कंबोडिया के सिएम रीप प्रांत में 16 वें एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन 2019 (Asia Media Summit- AMS 2019) का आयोजन किया गया।

  • इस शिखर सम्मेलन की थीम ‘मीडिया डिजिटलाइजेशन फोकसिंग ऑन डेवलपिंग मार्केट्स’ (Media Digitalization Focusing on Developing Markets) थी तथा इस शिखर सम्मेलन का आयोजन कंबोडिया के सूचना मंत्रालय द्वारा एशिया प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान (Asia-Pacific Institute for Broadcasting Development- AIBD) के साथ मिलकर किया किया था।

शिखर सम्मेलन के बारे में

  • एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन, एशिया प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान (Asia-Pacific Institute for Broadcasting Development- AIBD) द्वारा अपने सहयोगियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से आयोजित होने वाला वार्षिक सम्मेलन है।
  • सम्मेलन में एशिया, प्रशांत, अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अमेरिका से समाचार एवं प्रोग्रामिंग के निर्णय निर्माता, मीडिया पेशेवर, विद्वान तथा हितधारक भाग लेते हैं।
  • एशिया मीडिया समिट ब्रॉडकास्टिंग और सूचना पर अपने विचारों को साझा करने हेतु इस क्षेत्र में प्रसारकों के लिये एक अनूठा अवसर प्रदान करता है, यह सभी क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण यूनियनों तथा संघों द्वारा समर्थित है।

AIBD के बारे में

  • एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (AIBD) की स्थापना वर्ष 1977 में यूनेस्को के तत्त्वावधान में की गई थी।
  • AIBD एक अद्वितीय क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास के क्षेत्र में UN-ESCAP (United Nations Economic and Social Commission for Asia and the Pacific) के देशों की सेवा उपलब्ध कराता है।
  • इसका सचिवालय कुआलालंपुर (Kuala Lumpur) में स्थित है और मलेशिया सरकार द्वारा इसकी मेज़बानी की जाती है।

उद्देश्य:

  • नीति और संसाधन विकास के माध्यम से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक जीवंत और सामंजस्यपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वातावरण प्राप्त करने के लिये AIBD का अनुपालन अनिवार्य है।

संस्थापक सदस्य:

  • अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union-ITU),
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme-UNDP)
  • संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific Cultural Organisation-UNESCO) और
  • एशिया प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान/एशिया-पेसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (Asia-Pacific Broadcasting Union-ABU) संस्थान के संस्थापक संगठन हैं और ये आम सभा के गैर-मतदाता सदस्य भी हैं।

पूर्ण सदस्यता:

  • भारत सहित एशिया प्रशांत क्षेत्र के 26 देशों के प्रसारक (Broadcasters) संगठन के पूर्ण सदस्य हैं।
  • भारत को दो साल की अवधि के लिये वर्ष 2018 में एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (Asia-Pacific Institute for Broadcasting Development- AIBD) के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।

स्रोत : AIBD वेबसाइट


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (17 June)

  • निवेशकों की सहूलियत और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार नया श्रम विधेयक पेश करने की योजना बना रही है, जिसमें 44 पुराने श्रम कानूनों को वेतन, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा एवं कल्याण और औद्योगिक संबंध, इन चार श्रेणियों के कानूनों में मिलाकर संहिता का रूप दिया जाएगा। 1. कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम, कर्मचारी राज्य बीमा निगम अधिनियम, मातृत्व लाभ अधिनियम, भवन और अन्य निर्माण अधिनियम के साथ-साथ कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम जैसे सामाजिक सुरक्षा सबंधी कानूनों को मिलाकर एक सामाजिक सुरक्षा संहिता बनाई जाएगी। 2. फैक्ट्रीज़ एक्ट, माइंस एक्ट, डॉक वर्कर्स (सेफ्टी, हेल्थ एंड वेलफेयर) एक्ट जैसे कुछ औद्योगिक सुरक्षा और कल्याण कानूनों को मिलाकर एक नया कानून बनाया जाएगा। 3. न्यूनतम मज़दूरी कानून, मज़दूरी भुगतान अधिनियम, बोनस भुगतान कानून, समान पारितोषिक अधिनियम और कुछ अन्य संबंधित कानूनों को मिलाया जाएगा। 4. औद्योगिक विवाद कानून, 1947 एवं ट्रेड यूनियंस एक्ट, 1926 और इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट (स्टैंडिंग ऑर्डर) एक्ट, 1946 को लेबर कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशंस में समाहित किया जाएगा।
  • इंटरनेट ट्रेंड्स पर मैरी मीकर रिपोर्ट 2019 के मुताबिक भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट यूज़र बन गया है। वैश्विक स्तर पर भारत सभी इंटरनेट यूज़र्स की मामले में 12% का योगदान देता है। इस रिपोर्ट में इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी रिलायंस जियो को अमेरिका से बाहर सबसे ज़्यादा नवोन्मेषी इंटरनेट कंपनी बताया गया है, जो 30.7 करोड़ मोबाइल ग्राहकों के साथ रिलायंस जियो ई-कॉमर्स के लिये ऑफलाइन पहुँच का विस्तार कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कि 3.9 अरब इंटरनेट यूज़र्स दुनिया की आधी से अधिक आबादी है और चीन के पास वैश्विक स्तर पर सभी इंटरनेट यूज़र्स का सबसे बड़ा आधार 21% है। अमेरिका में वैश्विक इंटरनेट यूज़र्स का 8% आधार है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक इंटरनेट यूज़र्स की वृद्धि अपेक्षाकृत धीमी है। 2018 में यह वृद्धि 6% थी, जो उससे पिछले वर्ष 7% थी, इस प्रकार से इसमें 1% की कमी आई है।
  • 12 जून को कंबोडिया के सीएम रीप (Siem Reap) में तीन दिवसीय 16वाँ एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन 2019 शुरू हुआ। इस वर्ष इसकी थीम मीडिया के डिजिटलीकरण पर रखी गई। इस शिखर सम्मेलन में 42 देशों के 600 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस शिखर सम्मेलन का आयोजन कंबोडिया के सूचना मंत्रालय ने एशिया-प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान के साथ मिलकर किया। ज्ञातव्य है कि एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण कार्यक्रमों में से एक है तथा इसमें मीडिया की गुणवत्ता को बेहतर बनाने तथा चुनौतियों का सामना करने पर चर्चा की जाती है। गौरतलब है कि 15वें एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन का आयोजन नई दिल्ली में 10 से 12 मई 2018 तक भारतीय जनसंचार संस्थान और ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कन्सलटेंट इंडिया लिमिटेड ने मिलकर किया था।
  • ब्रिटेन की सरकार ने एक मसौदा कानून पेश किया है जिसमें समग्र कार्बन उत्सर्जन को वर्ष 2050 तक घटाकर शून्य करने का लक्ष्य बनाया गया है। ऐसा कदम उठाने वाला ब्रिटेन विश्व की पहली बड़ी अर्थव्यवस्था है। पूरे देश में कार्बन उत्सर्जन समाप्त करने के लिये ब्रिटेन को ठोस कदम उठाने की ज़रूरत पड़ेगी। वैसे ब्रिटेन में 2008 में पारित जलवायु परिवर्तन कानून के तहत इस दौरान कार्बन उत्सर्जन में 80 प्रतिशत तक की कटौती की जानी है। ब्रिटेन की जलवायु परिवर्तन समिति के अनुसार, समय-सीमा में यह लक्ष्य हासिल करने के लिये नई नीतियाँ बनानी होंगी, जिसमें वर्ष 2035 तक सभी नई कारों और वैन को इलेक्ट्रिक मोड पर लाना और कम कार्बन उत्सर्जन वाला बिजली उत्पादन चार गुना बढ़ाना शामिल होगा।
  • रॉयल बोटैनिकल गार्डन, केव और स्टॉकहोम विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि पिछले 250 वर्षों में पौधों की 500 से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। यह आँकड़ा विलुप्त हो चुके पौधों की वर्तमान सूची से चार गुना अधिक है। इस अध्ययन में यह बताया गया है कि इस अवधि में पौधों की कितनी प्रजातियाँ कहाँ विलुप्त हुई हैं। विलुप्त हुए पौधों की प्रमुख प्रजातियों में बैंडेड ट्रिनिटी, चिली संडलवुड और सेंट हेलेना ओलिव आदि शामिल हैं। इन प्रजातियों के विलुप्त होने की एक बड़ी वज़ह मानवीय हस्तक्षेप को माना गया है। कई देशों में जंगलों को काटकर भूमि का इस्तेमाल कृषि कार्यों के लिये किया जाने लगा है। इसके अलावा ऐसे भी कुछ पौधे हैं, जो औषधियों और भोजन के रूप में अधिक इस्तेमाल होने की वज़ह से विलुप्त हो गए हैं।
  • 16 जून को पारिवारिक प्रेषण का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Family Remittances) मनाया गया। इस दिवस को प्रवासी श्रमिकों द्वारा अपने परिवारों को और उनके माध्यम से अपने मूल देशों के सतत विकास के लिये किए गए महत्त्वपूर्ण वित्तीय योगदान की सराहना करने के लिये मनाया जाता है। आपको बता दें कि 16 जून को IFD की गवर्निंग काउंसिल द्वारा वर्ष 2015 में पारिवारिक प्रेषण के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया गया था। यह दिन दुनियाभर में अपने लगभग 800 मिलियन परिवार के सदस्यों के जीवन को बेहतर बनाने लिये 200 मिलियन से अधिक प्रवासियों के योगदान को मान्यता देता है। इस दिवस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य उन प्रभावों के बारे में जागरूकता लाना है जो इन योगदानों से लाखों परिवारों, समुदायों, देशों और क्षेत्रों पर भी पड़ता है।