भारतीय विरासत और संस्कृति
अजंता और एलोरा की गुफाएँ
प्रीलिम्स के लिये
अजंता और एलोरा की गुफाएँ, सह्याद्रि पर्वतमाला
मेन्स के लिये
भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल की वास्तुकला के मुख्य पहलू
चर्चा में क्यों?
महाराष्ट्र सरकार ने अजंता और एलोरा की गुफाओं में स्थापित दो पर्यटक आगंतुक केंद्रों को बिजली और पानी के बिल (5 करोड़ रुपए) न जमा करने के कारण बंद कर दिया है।
अजंता की गुफाएँ:
- अवस्थिति: ये गुफाएँ महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास वाघोरा नदी के पास सह्याद्रि पर्वतमाला (पश्चिमी घाट) में रॉक-कट गुफाओं की एक श्रृंखला के रूप में स्थित हैं।
- गुफाओं की संख्या: इसमें कुल 29 गुफाएँ (सभी बौद्ध) हैं, जिनमें से 25 को विहार या आवासीय गुफाओं के रूप में जबकि 4 को चैत्य या प्रार्थना हॉल के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।
- गुफाओं का विकास
- गुफाओं का विकास 200 ई.पू. से 650 ईस्वी के मध्य हुआ था।
- वाकाटक राजाओं जिनमें हरिसेना एक प्रमुख था, के संरक्षण में अजंता की गुफाएँ बौद्ध भिक्षुओं द्वारा उत्कीर्ण की गई थीं।
- अजंता की गुफाओं की जानकारी चीनी बौद्ध यात्रियों फ़ाहियान (चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान 380- 415 ईस्वी) और ह्वेन त्सांग (सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 606 - 647 ईस्वी) के यात्रा वृतांतों में पाई जाती है।
- अजंता की गुफाओं में चित्रकारी:
- इन गुफाओं में आकृतियों को फ्रेस्को पेंटिंग का उपयोग करके दर्शाया गया था।
- इन गुफाओं के चित्रों में लाल रंग की प्रचुरता है किंतु नीले रंग की अनुपस्थिति है।
- इन चित्रों में सामान्यतः बुद्ध और जातक कहानियों को प्रदर्शित किया गया है।
- यूनेस्को स्थल: इन गुफाओं को वर्ष 1983 में यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया था।
एलोरा की गुफाएँ:
- अवस्थिति: ये गुफाएँ महाराष्ट्र की सह्याद्रि पर्वतमाला में अजंता की गुफाओं से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित हैं।
- गुफाओं की संख्या: यहाँ 34 गुफाओं का एक समूह है, जिनमें 17 ब्राह्मण, 12 बौद्ध और 5 जैन धर्म से संबंधित हैं।
गुफाओं का विकास:
- इन गुफाओं के समूह को 5वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य विदर्भ, कर्नाटक और तमिलनाडु के विभिन्न शिल्पी संघों द्वारा विकसित किया गया था।
- इनकी शुरुआत राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा की गई थी।
- ये गुफाएँ विषय और स्थापत्य शैली के रूप में प्राकृतिक विविधता को दर्शाती हैं।
यूनेस्को स्थल: इन गुफाओं को वर्ष 1983 में यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया था।
- एलोरा की गुफाओं के मंदिरों में सबसे उल्लेखनीय कैलासा (कैलासनाथ; गुफा संख्या 16) है, जिसका नाम हिमालय के कैलास पर्वत (हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव का निवास स्थान) के नाम पर रखा गया है।
- एलोरा की बौद्ध, ब्राह्मण और जैन गुफाएँ मध्य भारत में पैठण (Paithan) से उज्जैन (Ujjain) जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर बनाई गई थीं।
सह्याद्रि पर्वतमाला
- पश्चिमी घाट को स्थानीय रूप से महाराष्ट्र में सह्याद्री, कर्नाटक और तमिलनाडु में नीलगिरि पहाड़ियों और केरल में अन्नामलाई पहाड़ियों या इलायची पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है।
- पश्चिमी घाट, पहाड़ियों की उत्तर-दक्षिण श्रृंखला है जो दक्कन के पठारी क्षेत्र के पश्चिमी सिरे को चिह्नित करते हैं।
- पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट की तुलना में ऊँचाई में अधिक तथा निरंतरता को बनाए हुए है। उत्तर से दक्षिण तक इसकी औसत ऊँचाई लगभग 1,500 मीटर है।
- अनाइमुदी (2,695 मीटर), प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी पश्चिमी घाट की अन्नामलाई पहाड़ियों पर स्थित है, इसके बाद नीलगिरि पहाड़ियों पर डोडाबेट्टा (2,637 मीटर) स्थित है।
- अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियाँ जैसे कृष्णा, कावेरी का उद्गम पश्चिमी घाट से हुआ है।
स्रोत- द हिंदू
सामाजिक न्याय
ब्रेस्ट मिल्क बैंक
प्रीलिम्स के लिये
ब्रेस्ट मिल्क बैंक
मेन्स के लिये
स्तनपान को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण सरकारी योजनाएँ
संदर्भ:
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में स्तनपान प्रबंधन केंद्रों की स्थापना हेतु राष्ट्रीय दिशा-निर्देश’ (National Guidelines on Establishment of Lactation Management Centres in Public Health Facilities) के तहत ब्रेस्ट मिल्क बैंक्स की स्थापना की गई थी।
मुख्य बिंदु:
इन दिशा-निर्देशों के तहत ब्रेस्ट मिल्क बैंक्स को निम्नलिखित संरचनात्मक अनुक्रम के तहत शामिल किया जाता है।
- व्यापक स्तनपान प्रबंधन केंद्र (Comprehensive Lactation Management Centre-CLMC):
- इनकी स्थापना सरकारी मेडिकल कॉलेज तथा ज़िला अस्पतालों में दानकर्त्ताओं के दूध को इकट्ठा करने एवं परीक्षण, प्रसंस्करण, संरक्षण तथा वितरण हेतु की गई थी ताकि प्रसव के बढ़ते मामलों के बीच नवजात उपचार यूनिट (Newborn Treatment Units) में दूध की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
- स्तनपान प्रबंधन यूनिट (Lactation Management Unit-LMU):
- ज़िला अस्पतालों तथा कम-से-कम 12 बिस्तरों वाले अन्य अस्पतालों में स्थित स्तनपान प्रबंधन यूनिट में माँ के दूध को इकट्ठा एवं संरक्षण करने की व्यवस्था होती है।
- स्तनपान सहायता यूनिट (Lactation Support Units-LSU):
- इनकी स्थापना सभी प्रसव केंद्रों पर स्तनपान सहायता, स्तनपान परामर्श तथा कंगारू मदर केयर (Kangaroo Mother Care-KMC) की सुविधा प्रदान करने के लिये की गई थी।
- KMC एक विधि है जिसके तहत समय से पूर्व जन्म लेने वाले नवजातों की माँ की त्वचा के संपर्क के माध्यम से देख-रेख की जाती है।
भारत में पहले ब्रेस्ट मिल्क बैंक की स्थापना वर्ष 1989 में मुंबई में की गई थी।
स्तनपान के लाभ:
- किसी भी नवजात शिशु के लिये जन्म से छह माह तक के लिये पर्याप्त पोषण का स्रोत होता है।
- यह शिशुओं को डायरिया तथा तीव्र श्वसन संक्रमण (Acute Respiratory Infection) जैसी समस्याओं से बचाता है तथा शिशु मृत्यु दर को कम करता है।
- स्तनपान करने वाली माताओं को स्तन कैंसर, गर्भाशय के कैंसर, टाइप 2 मधुमेह तथा हृदय की बीमारियों से बचाता है।
- यह शिशु की मोटापे संबंधी बीमारियों तथा मधुमेह से रक्षा करता है। इसके अलावा यह उनकी बुद्धि का विकास करता है।
स्तनपान को बढ़ावा देने के लिये सरकार के प्रयास:
- माँ (Mothers Absolute Affection-MAA):
- यह देश में स्तनपान को बढ़ावा देने के लिये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजना है।
- वात्सल्य- मातृ अमृत कोष (Vatsalya – Maatri Amrit Kosh):
- इसके तहत नॉर्वे सरकार की मदद से नेशनल ह्यूमन मिल्क बैंक तथा स्तनपान परामर्श केंद्र की स्थापना की गई है।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय गंगा परिषद
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय गंगा परिषद, नमामि गंगे परियोजना
मेन्स के लिये:
राष्ट्रीय गंगा परिषद तथा संबंधित तथ्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के कानपुर में राष्ट्रीय गंगा परिषद की प्रथम बैठक की अध्यक्षता की।
मुख्य बिंदु:
- इस बैठक में विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों और उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, बिहार के उपमुख्यमंत्री, नीति आयोग के उपाध्यक्ष और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।
- पश्चिम बंगाल से कोई प्रतिनिधि बैठक में उपस्थित नहीं था, जबकि झारखंड राज्य में जारी चुनाव और आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण किसी प्रतिनिधि ने इसमें भाग नहीं लिया।
- प्रधानमंत्री के अनुसार, गंगा का कायाकल्प देश के लिये दीर्घकाल से लंबित चुनौती है।
बैठक से संबंधित प्रमुख बिंदु:
- इस बैठक में ’स्वच्छता’, ‘अविरलता’ और ‘निर्मलता’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए गंगा नदी की स्वच्छता से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर कार्यों की प्रगति की समीक्षा की गई।
- इस बैठक में गंगा के कायाकल्प के लिये ‘सहयोगात्मक संघवाद’ पर अधिक ज़ोर दिया गया।
- इस बैठक में ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ के अंतर्गत किये गए कार्यों जैसे- प्रदूषण उन्मूलन, गंगा का संरक्षण और कायाकल्प, कागज़ मिलों की रद्दी को पूर्ण रूप से समाप्त करने तथा चमड़े के कारखानों से होने वाले प्रदूषण में कमी लाने आदि लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से किये गए विभिन्न सरकारी प्रयासों की एकीकृत गतिविधियों की चर्चा की गई।
- इस बैठक में प्रधानमंत्री ने गंगा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ‘नमामि गंगे’ को ‘अर्थ गंगा’ जैसे एक सतत् विकास मॉडल में परिवर्तित करने का आग्रह किया।
अर्थ गंगा: एक सतत् विकास मॉडल
(Arth Ganga)
- इस प्रक्रिया में किसानों को टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा, जिसमें शून्य बजट खेती, फलदार वृक्ष लगाना और गंगा के किनारों पर पौध नर्सरी का निर्माण शामिल है।
- इन कार्यों के लिये महिला स्व-सहायता समूहों और पूर्व सैनिक संगठनों को प्राथमिकता दी जा सकती है।
- जल से संबंधित खेलों के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास और शिविर स्थलों के निर्माण, साइकिलिंग एवं टहलने के लिये ट्रैकों आदि के विकास से नदी बेसिन क्षेत्रों में धार्मिक तथा साहसिक पर्यटन जैसी महत्त्वपूर्ण पर्यटन क्षमता बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
- पारिस्थितिक पर्यटन और गंगा वन्यजीव संरक्षण एवं क्रूज पर्यटन आदि के प्रोत्साहन से होने वाली आय को गंगा स्वच्छता के लिये आय का स्थायी स्रोत बनाने में सहायता मिलेगी।
- नमामि गंगे और अर्थ गंगा के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं तथा पहलों की कार्य प्रगति एवं गतिविधियों की निगरानी के लिये प्रधानमंत्री ने एक डिजिटल डैशबोर्ड की स्थापना के भी निर्देश दिये।
- इसके माध्यम से नीति आयोग और जल शक्ति मंत्रालय द्वारा दैनिक रूप से गाँवों और शहरी निकायों की कार्य प्रगति और गतिविधि संबंधित डेटा की निगरानी की जाएगी।
गंगा प्रदूषण रोकने के लिये किये गए क्रमवार प्रयास:
- गंगा एक्शन प्लान: यह पहली नदी कार्ययोजना थी जो 1985 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा लाई गई थी। इसका उद्देश्य जल अवरोधन, डायवर्ज़न और घरेलू सीवेज के उपचार द्वारा पानी की गुणवत्ता में सुधार करना तथा विषाक्त एवं औद्योगिक रासायनिक कचरे (पहचानी गई प्रदूषणकारी इकाइयों से) को नदी में प्रवेश करने से रोकना था।
- राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण: इसका गठन भारत सरकार ने वर्ष 2009 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा -3 के तहत किया था। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। इसने गंगा को भारत की 'राष्ट्रीय नदी' घोषित किया।
- वर्ष 2010 में सरकार द्वारा ‘सफाई अभियान' को यह सुनिश्चित करने के लिये प्रारंभ किया गया था कि वर्ष 2020 तक कोई भी अनुपचारित नगरपालिका सीवेज या औद्योगिक अपवाह नदी में प्रवेश न करे।
- वर्ष 2014 में, ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ को राष्ट्रीय नदी ‘गंगा’ के संरक्षण और कायाकल्प तथा प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिये एक एकीकृत संरक्षण मिशन के रूप में प्रारंभ किया गया था।
- राष्ट्रीय गंगा परिषद: राष्ट्रीय गंगा परिषद की स्थापना वर्ष 2016 में हुई थी। इसने राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण को प्रतिस्थापित किया है। इसे गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण, और प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय कार्यान्वयन परिषद के रूप में भी जाना जाता है। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
- हाल ही में कानपुर में संपन्न हुई राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक इसकी पहली बैठक है।
स्रोत- पीआईबी
सामाजिक न्याय
सुगम्य भारत अभियान
प्रीलिम्स के लिये:
सुगम्य भारत अभियान, संबंधित मंत्रालय तथा विभाग, इंचियोन कार्यनीति, विकलांग व्यक्ति अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन
मेन्स के लिये:
सुगम्य भारत अभियान के घटक, लक्ष्य तथा इस प्रकार के अभियानों का महत्त्व
चर्चा में क्यों?
सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign) की धीमी प्रगति के कारण सरकार ने इसकी समय सीमा मार्च 2020 तक बढ़ा दी है।
अभियान के बारे में
- सुगम्य भारत अभियान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग (Department of Empowerment of Person with Disability) का राष्ट्रव्यापी महत्त्वपूर्ण अभियान है।
- इस अभियान की शुरुआत भारत के प्रधानमंत्री द्वारा 3 दिसंबर, 2015 को विकलांग व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर की गई थी।
- यह अभियान विकलांगता के सामाजिक मॉडल के इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी व्यक्ति की सीमाओं और अक्षमताओं के कारण नहीं बल्कि सामाजिक व्यवस्था के तरीके के कारण विकलांगता है।
उद्देश्य
- इस अभियान का उद्देश्य देशभर में दिव्यांगजनों के लिये बाधा रहित और सुखद/अनुकूल वातावरण तैयार करना है।
विज़न/दृष्टिकोण:
- अभियान का दृष्टिकोण एक समावेषी समाज की परिकल्पना है जिसमें दिव्यांग व्यक्तियों की प्रगति और विकास के लिए समान अवसर उपलब्ध हों ताकि वे उत्पादक, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जी सकें।
सुगम्य भारत अभियान घटक
- भौतिक वातावरण में सुगम्यता को बढ़ाना।
- सार्वजनिक परिवहन की सुगम्यता तथा उपयोग में बढ़ोत्तरी।
- सूचना तथा संचार सेवाओं की सुगम्यता और उपयोग में बढ़ोत्तरी।
घटकों के आधार पर निर्धारित लक्ष्य
लक्ष्य 1 : सरकारी भवनों में सुगम्यता अनुपात में वृद्धि
- एक सुगम्य सरकारी भवन वह होता है जहाँ एक विकलांग व्यक्ति बिना किसी बाधा के इसमें प्रवेश कर सके और इसमें उपलब्ध सुविधाओं का इस्तेमाल कर सके। इसमें निम्नलिखित निर्मित वातावरण शामिल हैं- सेवाएँ, सीढि़याँ तथा रैंप्स, प्रवेश द्वार, आकस्मिक निकास, पार्किंग के साथ-साथ लाईटिंग, साईनेजिस, अलार्म सिस्टम तथा प्रसाधन जैसी आंतरिक तथा बाह्य सुविधाएँ।
लक्ष्य 2: हवाई अडडो के सुगम्यता अनुपात में वृद्धि
- किसी एयरपोर्ट को तभी सुगम्य माना जाता है जब कोई भी विकलांग व्यक्ति इसमें बिना किसी बाधा के प्रवेश कर सके और इसकी सभी सुविधाओं एवं' बोर्डिंग तथा जहाज़ से उतरने जैसी सभी सुविधाओं का प्रयोग कर सके।
लक्ष्य 3: रेलवे स्टेशनों के सुगम्यता अनुपात में वृद्धि।
लक्ष्य 4: सार्वजनिक परिवहन के सुगम्यता अनुपात में वृद्धि।
लक्ष्य 5: सुगम्य और प्रयोग योग्य सार्वजनिक दस्तावेज़ और वेबसाइट जो अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सुगम्यता मानकों को पूरा करती हैं की सुगम्यता अनुपात में वृद्धि।
लक्ष्य 6ः संकेत भाषा द्विभाषियों के पूल को बढ़ाना।
लक्ष्य 7ः सार्वजनिक टेलिविजन समाचार कार्यक्रमों की दैनिक कैप्शनिंग और सांकेतिक भाषा व्याख्या के अनुपात को बढ़ाना।
दिव्यांगों के अधिकारों का संरक्षण:
- विकलांगजन (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 की धारा 44, 45 एवं 46 के अंतर्गत क्रमश: परिवहन, सड़क और निर्मित वातावरण में स्पष्ट तौर पर गैर-भेदभाव का प्रावधान किया गया है।
- ध्यातव्य है कि विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम, 2016 ; विकलांग व्यक्ति अधिनियम,1995 का संशोधित रूप है।
- भारत, विकलांग व्यक्ति अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities-UNCRPD) का एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है। UNCRPD का अनुच्छेद 9, सभी हस्ताक्षकर्त्ता सरकारों को विकलांग व्यक्तियों को अन्य व्यक्तियों की तरह ही समान आधार पर, भौतिक वातावरण, परिवहन, सूचना तथा संचार में समुचित उपाय सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपता है। ये उपाय जिनमें, सुगम्यता हेतु, अवरोधों और बाधाओं की पहचान एवं उन्मूलन शामिल हैं, अन्य बातों के साथ-साथ निम्न पर लागू होंगे-
- स्कूलों, आवासों, चिकित्सा सुविधाओं तथा कार्य स्थलों सहित, भवनों, सड़कों, परिवहन और अन्य आंतरिक तथा बाहरी सुविधाएँ।
- इलेक्ट्रॉनिक्स सेवाओं तथा आकस्मिक सेवाओं सहित, सूचना, संचार तथा अन्य सेवाएँ।
UNCRPD द्वारा सभी सरकारों को निम्न समुचित उपाय करने का अधिदेश भी प्रदान किया गया है:
- सार्वजनिक रुप से उपलब्ध सेवाएँ को प्रदान करने के लिए सुविधाओं तक पहुँच हेतु, न्यूनतम मानक दिशा निर्देशों के कार्यान्वयन को विकसित, प्रचारित और मॉनिटर करना।
- निजी संगठन जो सार्वजनिक रुप से सुविधाएँ तथा सेवाएँ प्रदान कराते हैं, विकलांग व्यक्तियों हेतु सुगम्यता के सभी पहलुओं को सुनिश्चित करवाना।
- दिव्यांगजनों के समक्ष आने वाले सुगम्यता संबंधी मुद्दों पर स्टेकहोल्डर्स को प्रशिक्षण प्रदान करना।
- भवनों में, सार्वजनिक रुप से उपलब्ध सुविधाओं को दिव्यांग्जनों के अनुकूल बनाना तथा ऐसे संकेतक उपलब्ध कराना जिन्हें पढ़ने और समझने में आसानी हो।
- भवनों में सुगम्यता और सार्वजनिक रुप से उपलब्ध अन्य सुविधाओं को सुसाधक बनाने के लिये, दिशा-निर्देश, रीडर्स तथा पेशेवर सांकेतिक भाषा दुभाषियों सहित, प्रत्यक्ष और मध्यवर्ती प्रकार की सहायता उपलब्ध कराना।
- सहायता के अन्य समुचित प्रकारों का संवर्द्धन और विकलांग व्यक्तियों को सूचना तक पहुँच सुनिश्चित कराने में सहायता प्रदान करना।
- इंटरनेट सहित, विकलांग व्यक्तियों को नई जानकारी तथा संचार प्रौद्योगिकियों और प्रणाली तक पहुँच का संवर्द्धन करना।
इंचियोन कार्यनीति (Incheon Strategy):
- भारत सरकार ने रिपब्लिक ऑफ कोरिया सरकार द्वारा आयोजित उच्च स्तरीय अंतर-सरकारी बैठक में मंत्रालयी उद्घोषणा और एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र में विकलांग व्यक्तियों हेतु ‘‘अधिकारों को साकार करना’’ (Make the Right Real) हेतु इंचियोन कार्यनीति को अपनाया है।
- इंचियोन कार्यनीति में एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र और विश्व में क्षेत्रीय आधार पर सहमत समावेशी विकास लक्ष्यों का प्रावधान है।
- कार्यनीति में 10 उद्देश्य 27 लक्ष्य और 62 संकेतक निहित हैं।
इस प्रकार के अभियान की आवश्यकता:
- शारीरिक, सामाजिक, संरचनात्मक और व्यवहार संबंधी बाधाएँ सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों में दिव्यांगजनों को समान रूप से भागीदारी करने से रोकती हैं। बाधारहित वातावरण के निर्माण से दिव्यांगजनों के लिये सभी गतिविधियों में समान प्रतिभागिता की सुविधा होगी और इससे स्वतंत्र और सम्मानजनक तरीके से जीवन जीने के लिये उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP) का 25वाँ सत्र संपन्न
प्रीलिम्स के लिये:
COP-25
मेन्स के लिये:
COP-25 तथा संबंधित तथ्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के अंतर्गत शीर्ष निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP) के 25वें सत्र का आयोजन 2-13 दिसंबर, 2019 तक स्पेन की राजधानी मैड्रिड (Madrid) में किया गया।
मुख्य बिंदु:
- स्पेन में आयोजित इस सम्मेलन की अध्यक्षता चिली सरकार द्वारा की गई क्योंकि चिली ने देश में आंतरिक कारणों के चलते विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए इस सम्मेलन के आयोजन में असमर्थता जताई थी।
- यह जलवायु वार्ता जलवायु परिवर्तन के एजेंडे में शामिल महत्त्वपूर्ण मुद्दों के बारे में बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गई।
COP-25 में उठाए गए कदम:
- COP-25 के अंत में लगभग 200 देशों के प्रतिनिधियों ने उन गरीब देशों की मदद करने के लिए एक घोषणा का समर्थन किया जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहे हैं, हालाँकि उन्होंने ऐसा करने के लिये किसी धन का आवंटन नहीं किया।
- COP-25 की अंतिम घोषणा में 2015 के ऐतिहासिक पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप पृथ्वी पर वैश्विक तापन के लिये उत्तरदायी ग्रीनहाउस गैसों में कटौती के लिये "तत्काल आवश्यकता" का आह्वान किया गया।
- वार्ताकारों ने वर्ष 2020 में ग्लासगो में होने वाले COP-26 के लिये कई जटिल मुद्दों को अनुत्तरित छोड़ दिया।
- इस वार्ता में विकासशील देशों द्वारा बढ़ते तापमान के कारण होने वाली हानि के लिये उत्तरदायित्त्व संबंधी मुद्दों पर ज़ोर दिया गया जिसका संयुक्त राज्य अमेरिका ने विरोध किया।
- पेरिस समझौते के अंतर्गत एक नए कार्बन बाज़ार के लिये नियमों को अगले वर्ष के लिये स्थानांतरित करने के साथ मैड्रिड वार्ता का कोई विशेष परिणाम प्राप्त नहीं हुआ।
- कुछ देश, विशेष रूप से बेहद संवेदनशील छोटे द्वीपीय देशों को वैश्विक तापन के चलते बढ़ते हुए समुद्र जल स्तर के कारण डूब जाने का डर है, उन्होंने सभी देशों को उनके द्वारा जलवायु कार्रवाई योजनाओं को अद्यतन करने के लिये की जा रही वास्तविक प्रक्रियाओं को प्रतिबिंबित करने पर ज़ोर दिया।
- इस तरह की मांगों का मुख्य रूप से चीन, भारत और ब्राज़ील जैसे बड़े विकासशील देशों ने विरोध करते हुए तर्क दिया कि किसी भी नई प्रतिबद्धता को तय करने से पहले विकसित देशों द्वारा अपने अतीत और वर्तमान में किये गए वादों को पूरा किया जाए।
- इन विकासशील देशों ने बार-बार इस ओर ध्यान दिलाया कि वर्तमान की यह स्थिति विकसित देशों द्वारा किये गए अंधाधुंध विकास का एक परिणाम है, जो वर्ष 2020 के पूर्व की अवधि के लिये तय अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं कर रहे हैं।
- उन्होंने जलवायु कार्रवाई पर विकसित देशों के प्रदर्शन का आकलन करने की मांग की है, जिसमें उनका विकासशील देशों के लिये वित्त तथा प्रौद्योगिकी प्रदान करने का दायित्व भी शामिल है।
कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP) क्या है?
- यह UNFCCC सम्मेलन का सर्वोच्च निकाय है।
- इसके तहत विभिन्न प्रतिनिधियों को सम्मेलन में शामिल किया गया है।
- यह हर साल अपने सत्र आयोजित करता है।
- COP, सम्मेलन के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक निर्णय लेता है और नियमित रूप से इन प्रावधानों के कार्यान्वयन की समीक्षा करता है।
पेरिस जलवायु समझौता:
- इस ऐतिहासिक समझौते को वर्ष 2015 में ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन फ्रेमवर्क’ (UNFCCC) की 21वीं बैठक में अपनाया गया, जिसे COP-21 के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौते को वर्ष 2020 से लागू किया जाना है। इसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि सभी देशों को वैश्विक तापमान को औद्योगिकीकरण से पूर्व के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है (दूसरे शब्दों में कहें तो 2 डिग्री सेल्सियस से कम ही रखना है) और 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये सक्रिय प्रयास करना है।
- पहली बार विकसित और विकासशील देश दोनों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (INDC) को प्रस्तुत किया, जो प्रत्येक देश का अपने स्तर पर स्वेच्छा से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक विस्तृत कार्रवाइयों का समूह है।
स्रोत- द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में चीतों की विलुप्ति का कारण
प्रीलिम्स के लिये
प्रोजेक्ट चीता
मेन्स के लिये
भारत में चीतों की विलुप्ति का कारण तथा सरकार द्वारा उनके संरक्षण हेतु प्रयास
चर्चा में क्यों?
सितंबर 2019 में नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification-UNCCD COP 14) में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य की तरफ से यह कहा गया कि चीतों की विलुप्ति का मुख्य कारण मरुस्थलीकरण है।
- इसके बाद चीता की विलुप्ति के कारणों पर चर्चा तेज़ हो गई तथा पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा कहा गया कि चीता की विलुप्ति का मुख्य कारण उसका शिकार होना था।
मुख्य बिंदु:
- विशेषज्ञों के अनुसार, चीता भारतीय जीवन से अभिन्न रूप से जुड़ा वन्यप्राणी है। यह संभवत: एकमात्र स्तनपायी जंतु है जिसे पूरे विश्व में चीता कह कर बुलाया जाता है। चीता शब्द संस्कृत के 'चित्राकु' शब्द का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है धब्बेदार।
- वन क्षेत्रों से जुड़े हुए चरागाहों में रहने वाला संसार का यह सबसे तेज़ गति का प्राणी मानव जाति के लालच का शिकार हुआ। अपनी खूबसूरत और आकर्षक खाल के लिए यह शुरू से ही शिकारियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है।
चीतों की विलुप्ति का कारण:
- चीतों की विलुप्ति के दो विशेष कारण थे। पहला- जानवरों के शिकार के लिये चीता को पालतू बनाया जाना तथा दूसरा- कैद में रहने पर चीता प्रजनन नहीं करते।
- अपनी तेज़ गति तथा बाघ व शेर की तुलना में कम हिंसक होने की वजह से इसको पालना आसान था। तत्कालीन राजाओं और ज़मीदारों द्वारा इसका प्रयोग अक्सर शिकार के लिये होता था जिसमें ये अन्य जानवरों को पकड़ने में उनकी मदद करते थे।
- चीते को पालने का मुख्य कारण इनका सहज स्वभाव था और ये कुत्तों की भाँति आसानी से पाले जा सकते थे। बाघ, शेर तथा तेंदुए के विपरीत यह कम उग्र जानवर है।
ऐतिहासिक स्रोतों में चीते का उल्लेख :
- इतिहास में पहली बार चीता पालने का साक्ष्य संस्कृत ग्रंथ मनसोल्लास में मिलता है।
- मनसोल्लास 1129 ई. में रचित महत्त्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथ है। इसके रचयिता चालुक्यवंश के राजा सोमेश्वर तृतीय थे। इसे 'अभिलाषितार्थचिन्तामणि' भी कहते हैं।
- ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने 49 वर्षों के शासनकाल के दौरान अपने शाही चिड़ियाघर में लगभग 9000 चीते रखे थे।
- वर्ष 1613 में मुगल सम्राट जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहाँगीरी में कैद में रखे गए किसी चीता द्वारा शावक को जन्म देने का दुर्लभ वर्णन किया है। यह अब तक का पहला तथा अंतिम साक्ष्य है जिसमें किसी ऐसी घटना का वर्णन किया गया है।
- मध्यकालीन भारत में शिकार के लिये चीता का प्रयोग पूरे प्रायद्वीप में लोकप्रिय था तथा इसका प्रयोग काले हिरणों (Black Bucks) के शिकार के लिये किया जाने लगा। इसके अलावा कई साक्ष्यों से पता चलता है कि उस समय चीतों को पकड़ने तथा प्रशिक्षित करने के लिये अनेक सेवक मौजूद रहते थे।
- किसी जंगल से पकड़ कर लाए गए चीते को छह महीने के अंदर प्रशिक्षित किया जा सकता था। इनको पिंजड़ों में रखने की बजाय ज़ंजीर से बांध कर रखा जाता था।
- राजाओं, ज़मीदारों तथा बाद में अंग्रेज़ अफसरों के शिकार के लिये चीता तथा उनके शावक बड़ी संख्या में जंगलों से लाए जाने लगे एवं यह सिलसिला 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अपने चरम पर पहुँच गया।
- औपनिवेशिक-कालीन स्रोतों की मानें तो एक प्रशिक्षित चीते की कीमत 150 रुपए से 250 रुपए के बीच थी तथा जंगल से पकड़े गए किसी चीते की कीमत 10 रुपए से ऊपर कुछ भी हो सकती थी।
- चीता के हमले से किसी इंसान की मृत्यु का साक्ष्य वर्ष 1880 में मिलता है। जब विशाखापत्तनम के गवर्नर के एजेंट ओ. बी. इरविन की मृत्यु शिकार के दौरान एक चीते के हमले से हो गई थी जो कि विजयानगरम के राजा का पालतू चीता था।
- इसके बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा चीते को हिंसक जानवर घोषित किया गया तथा इसको मारने वालों को पुरस्कार दिया जाने लगा।
- आधिकारिक तौर पर माना जाता है कि वर्ष 1947 में छत्तीसगढ़ की एक छोटी रियासत कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंह ने भारत के अंतिम तीन चीतों का शिकार किया था।
- वर्ष 1951-52 में भारत सरकार द्वारा चीता को विलुप्त मान लिया गया था परंतु उसके बाद भी कोरिया तथा सरगुजा में चीतों के होने के प्रमाण मिले थे।
- भारत के बाहर एशियाई चीते पाकिस्तान के बलूचिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान आदि क्षेत्रों में पाए गए। लेकिन वर्तमान में एशियाई चीतों की एक छोटी संख्या ईरान के ठंडे रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाती है।
- चीतों की दूसरी प्रजाति अफ्रीका में भी पाई जाती है। भारत के चीते जहाँ झाड़ियों, जंगलों तथा अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में रहते थे, वहीं अफ्रीकी चीते विशाल मैदानी हिस्सों में रहते हैं।
चीतों के पुनर्स्थापन के लिये सरकार के प्रयास:
- वर्ष 1970 में भारत सरकार ने ईरान से चीतों को मंगाने की पेशकश की थी और बदले में ईरान को बाघ तथा एशियाई शेर देने का वादा किया था।
- लेकिन प्रारंभिक बातचीतों के बावजूद यह समझौता नहीं हो सका क्योंकि ईरान में चीतों की संख्या बेहद कम थी तथा ये हज़ारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए थे।
- हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने चीतों की संख्या बढ़ाने की इच्छा प्रदर्शित की है। इसके लिये सरकार अफ्रीकी प्रजाति के चीतों को भारत लाने पर विचार कर रही है। इस परियोजना को प्रोजेक्ट चीता (Project Cheetah) नाम दिया गया है।
- प्रोजेक्ट चीता के तहत मध्य प्रदेश के कूनों पालपुर वन्यजीव अभयारण्य और नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य के अलावा राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में शाहगढ़ का चयन किया गया है। इन अभयारण्यों में अफ्रीकी प्रजाति के चीते लाए जाएंगे। इनके लिये नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से बात चल रही है।
- भारत के संकटप्राय घास के मैदानों, सवाना तथा शुष्क क्षेत्रों में जैव-पारिस्थितिकी को पुनर्जीवित करने के लिये चीते की प्रजाति को पुनर्स्थापित करना आवश्यक है।
स्रोत: द हिंदू
विविध
RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (16 दिसंबर, 2019)
राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस
पूरे देश में 14 दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य ऊर्जा दक्षता एवं संरक्षण में भारत की उपलब्धियों को दर्शाना और जलवायु परिवर्तन में कमी लाकर राष्ट्र के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करना है। ऊर्जा दक्षता एवं संरक्षण के महत्त्व के बारे में आम जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिये ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने 9 से 14 दिसंबर, 2019 तक ‘राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण सप्ताह’ मनाया। भारत में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम वर्ष 2001 में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो द्वारा निष्पादित किया गया था, जो ऊर्जा का उपयोग कम करने के लिये नीतियों और रणनीतियों के विकास में मदद करता है। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो का मिशन ऐसी नीतियाँ एवं रणनीतियाँ विकसित करने में सहायता प्रदान करना है, जिनसे इस व्यापक ऊर्जा मांग में कमी करने में मदद मिलेगी। यह ऊर्जा दक्षता उपायों को बड़े पैमाने पर अपनाने के लिये आवश्यक प्रोत्साहन दिये जाने से ही संभव हो सकता है।
44 हज़ार वर्ष पुराना भित्तिचित्र
इंडोनेशिया के द्वीप में दो साल पहले खोजी गई सुलावेसी की एक गुफा में 44 हज़ार साल पुराना एक भित्तिचित्र मिला है। शोधकर्त्ताओं का दावा है, 4.5 मीटर चौड़ा यह दुर्लभ भित्तिचित्र दुनिया के इतिहास में सबसे पुराना है। इस कलाकृति में गुफा की दीवार पर गहरे लाल रंग से एक सींग वाला जानवर बनाया गया है, जिसका एक शिकारी पीछा कर रहा है।
शोधकर्त्ताओं का मानना है कि यूरोप की गुफाओं में भी चारकोल से बने भित्तिचित्र मिले हैं, लेकिन इंडोनेशिया में पाई गईं रॉक पेंटिंग यूरोप के भित्तिचित्रों से हज़ारों साल पहले की है। दावा किया जाता है कि यूरोप की गुफाओं में पाई गईं रॉक पेंटिंग्स को 14 हज़ार से लेकर 21 हज़ार साल के बीच की होने का दावा किया जाता है। अब तक इन्हें दुनिया की सबसे पुरानी कलाकृति का दर्जा हासिल था। ये प्रागैतिहासिक काल के भित्तिचित्र हैं। इससे पहले इंडोनेशिया के ही बोर्नियो द्वीप में 40 हज़ार साल पुराने एक और चित्र की खोज हुई थी। इन भित्तिचित्रों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हज़ारो साल पहले भी कलाकारी कितनी उन्नत थी।
ज़मीन पर सबसे गहराई वाली जगह की खोज
शोधकर्त्ताओं ने अंटार्कटिका का नवीनतम भौगोलिक मानचित्र जारी किया है। इसे बेडमशीन परियोजना द्वारा विकसित किया गया है। बेडमशीन अंटार्कटिका की बर्फ की चादर का नया मानचित्र है, जिसे सबसे ज़्यादा दुरुस्त माना जाता है। शोधकर्त्ताओं ने यह जगह अंटार्कटिका के डेनमान ग्लेशियर में खोजी है जो समुद्रतल से 3500 मीटर नीचे है। यह खोज अंटार्कटिका का नवीनतम भौगोलिक मानचित्र बनाने के बाद हुई। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में UCI की एक टीम के शोधकर्त्ताओं ने अंटार्कटिका की बर्फ की चादर के नीचे की भूमि की आकृति का अभी तक का सबसे सटीक चित्र बनाया है। नए निष्कर्षों से शोधकर्त्ताओं को पर्यावरण बदलावों के प्रभावों का अनुमान लगाने में मदद मिलेगी। हालाँकि ज़मीन पर दुनिया की सबसे गहरी घाटी पूर्वी अंटार्कटिका में डेमन ग्लेशियर के नीचे पाई गई थी। पिछले अध्ययनों के अनुसार घाटी को उथला माना जाता था, लेकिन नए अध्ययन ने इसकी वास्तविक गहराई को उजागर किया है। वैज्ञानिकों ने छिपी हुई घाटी की गहराई का पता लगाने के लिये उसमें भरी हुई बर्फ की मात्रा और लॉ ऑफ कंज़र्वेशन का सहारा लिया है। वैसे दुनिया की सबसे गहरी ज्ञात जगह प्रशांत महासागर में 'मारियाना ट्रेंच' है।
लिसिप्रिया कंगुजम
केवल आठ साल की उम्र में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली भारतीय लड़की लिसिप्रिया कंगुजम ने अपनी चिंताओं से दुनिया को झकझोर दिया है। मणिपुर की इस नन्ही पर्यावरण कार्यकर्त्ता ने स्पेन की राजधानी मैड्रिड में CoP25 जलवायु शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेताओं से अपनी धरती और उन जैसे मासूमों के भविष्य को बचाने के लिये तुरंत कदम उठाने का आह्वान किया। इतनी छोटी उम्र में इतने अहम मसले पर बात रखने के कारण लिसिप्रिया स्पेन के अखबारों की सुर्खियाँ बन गईं। स्पेनिश अखबारों ने उन्हें भारतीय ग्रेटा थनबर्ग बताते हुए उनकी जमकर तारीफ की। लिसिप्रिया अब तक 21 देशों का दौरा कर चुकी हैं और जलवायु परिवर्तन मसले पर विविध सम्मेलनों में अपनी बात रख चुकी हैं। वह दुनिया में सबसे कम उम्र की पर्यावरण कार्यकर्त्ता बताई जा रही हैं। केवल छह साल की उम्र में लिसिप्रिया को वर्ष 2018 में मंगोलिया में आपदा मसले पर हुए मंत्री स्तरीय शिखर सम्मेलन में बोलने का अवसर मिला था। मंगोलिया से लौटने के बाद लिसिप्रिया ने अपने पिता की मदद से 'द चाइल्ड मूवमेंट' नामक संगठन बनाया। वह इस संगठन के ज़रिये वैश्विक नेताओं से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने की अपील करती हैं।
भारत का सिक्सर किंग
भारतीय टीम के ओपनर रोहित शर्मा ने छक्कों के मामले में इतिहास रच दिया है। वेस्टइंडीज़ के खिलाफ मुंबई के मैदान पर दूसरे टी-20 इंटरनेशनल मैच में अपनी पारी का पहला छक्का जड़ते ही रोहित शर्मा ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपने कॅरियर का 400वाँ छक्का जड़ा। ऐसा करने वाले वे भारत के पहले खिलाड़ी बन गए हैं। यह उनके टी-20 अंतर्राष्ट्रीय कॅरियर का 116वाँ छक्का था। वर्ल्ड क्रिकेट में दाएँ हाथ के बल्लेबाज़ रोहित शर्मा से पहले पाकिस्तान के दिग्गज ऑलराउंडर शाहिद अफरीदी (476 छक्के) और वेस्टइंडीज़ के क्रिस गेल (534 छक्के) ने यह उपलब्धि अपने नाम की थी। रोहित शर्मा से पहले महेंद्र सिंह धौनी (359 छक्के) इस उपलब्धि को अपने नाम कर सकते थे, लेकिन वह फिलहाल अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से दूर हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में रोहित शर्मा ने महज 360वीं पारी में यह 400वाँ छक्का लगाया है, जबकि शाहिद अफरीदी ने 437 पारियों में 400 छक्के लगाए थे। हालाँकि उस दौरान टी-20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट बहुत कम हुआ करता था।