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डेली न्यूज़

  • 16 Sep, 2019
  • 67 min read
भारत-विश्व

पैंगोंग त्सो झील: भारत-चीन

चर्चा में क्यों?

कुछ दिनों पहले भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पैंगोंग त्सो झील (Pangong Tso Lake) के समीप लद्दाख में तनाव की स्थिति देखने को मिली। PTI द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार अब इस मुद्दे को सुलझा लिया गया है।

Pangong Tso Lake

  • लगभग दो साल पहले भी पूर्वी लद्दाख के क्षेत्र में इसी तरह की एक घटना हुई थी। इसका कारण यह है कि इस क्षेत्र में वास्तविक रूप से LAC कहाँ है इसे लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति बनी रहती है, LAC के संबंध में अलग-अलग धारणाएँ हैं।

पैंगोंग त्सो

(Pangong Tso)

  • लद्दाखी भाषा में पैंगोंग का अर्थ है समीपता और तिब्बती भाषा में त्सो का अर्थ है झील।
  • पैंगोंग त्सो लद्दाख हिमालय में 14,000 फुट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित एक लंबी संकरी, गहरी, एंडोर्फिक (लैंडलॉक) झील है।
  • पैंगोंग त्सो का पश्चिमी छोर लेह के दक्षिण-पूर्व में 54 किमी. दूर स्थित है।
  • 135 किमी. लंबी यह झील बुमेरांग (Boomerang) के आकार में 604 वर्ग किमी. में फैली हुई है और अपने सबसे विस्तारित बिंदु पर यह 6 किमी. चौड़ी है।
  • खारे पानी की यह झील शीत ऋतु में जम जाती है, यह आइस स्केटिंग (Ice Skating) और पोलो के लिये एक उत्तम स्थान है।
  • इसका जल खारा होने के कारण इसमें मछली या अन्य कोई जलीय जीवन नहीं है। परंतु यह कई प्रवासी पक्षियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल है।
  • इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में स्थित है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में पड़ता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के मध्य से गुज़रती है।
  • 19वीं शताब्दी के मध्य में यह झील जॉनसन रेखा के दक्षिणी छोर पर थी। जॉनसन रेखा अक्साई चीन क्षेत्र में भारत और चीन के बीच सीमा निर्धारण का एक प्रारंभिक प्रयास था।

वर्ष 2017 की घटना

  • 19 अगस्त, 2017 में एक वीडियो ऑनलाइन पोस्ट हुआ था जो पैंगोंग झील के किनारे कुछ भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई कथित हाथापाई की खबरों की पुष्टि करता है।
  • सामान्य तौर पर जब दो गश्ती दल आमने-सामने आते हैं तो एक "बैनर ड्रिल" (Banner Drill) का प्रदर्शन करते हैं जिसमें एक बैनर प्रदर्शित करते हुए दूसरे पक्ष से अपना क्षेत्र खाली करने के लिये कहा जाता है।

रणनीतिक महत्त्व

  • LAC रेखा झील के मध्य से होकर गुजरती है, लेकिन भारत और चीन इसकी सटीक स्थिति के विषय में सहमत नहीं हैं।
  • इस झील का 45 किमी. लंबा पश्चिमी भाग भारतीय नियंत्रण में, जबकि शेष चीन के नियंत्रण में है।
  • दोनों सेनाओं के बीच अधिकांश झड़पें झील के विवादित हिस्से में होती हैं। हालाँकि इसके इतर झील का कोई विशेष सामरिक महत्त्व नहीं है।
  • लेकिन यह झील चुशूल घाटी के मार्ग में आती है, यह एक मुख्य मार्ग है जिसका चीन द्वारा भारतीय-अधिकृत क्षेत्र में आक्रमण के लिये उपयोग किया जा सकता है।
  • वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान यही वह स्थान था जहाँ से चीन ने अपना मुख्य आक्रमण शुरू किया था, भारतीय सेना ने चुशूल घाटी (Chushul Valley) के दक्षिण-पूर्वी छोर के पहाड़ी दर्रे रेज़ांग ला (Rezang La) से वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा था।

रेज़ांग ला

(Rezang La)

  • यह केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख क्षेत्र में चुशूल घाटी के दक्षिण-पूर्व में स्थित एक पहाड़ी दर्रा है।
  • इसकी लंबाई लगभग 2.7 किमी., चौड़ाई 1.8 किमी. और ऊँचाई 16000 फुट है।
  • वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में रेज़ांग ला कुमाऊँ रेजिमेंट के 13 कुमाऊँ दस्ते का अंतिम मोरचा था। इस दस्ते का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह ने किया था। इस युद्ध को 'रेज़ांग ला का युद्ध' नाम से जाना जाता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में चीनियों ने पैंगोंग त्सो के अपनी ओर के किनारों पर सड़कों का निर्माण भी किया है।
  • चीन के निंग्ज़िया हुई (Ningxia Hui) स्वायत्त क्षेत्र की राजधानी यिनचुआन (Yinchuan) के दक्षिण-पश्चिम में मिनिंगज़ेन (Minningzhen) में PLA के हुआंगयांगटन (Huangyangtan) बेस में अक्साई चीन (भारत और चीन के मध्य विवादित क्षेत्र) में इस विवादित क्षेत्र का एक दो-स्तरीय मॉडल भी मौजूद है। यह चीन के लिये इस क्षेत्र के महत्त्व को स्पष्ट रूप से इंगित करता है।

चुशूल घाटी

(Chushul valley)

  • चुशूल केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लेह ज़िले में समुद्र तल से 4,300 मीटर या 15,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित एक गाँव है।
  • यह चुशूल घाटी में अवस्थित है।
  • चुशूल घाटी रेज़ांग ला (दर्रा) और पांगोंग त्सो (झील) के पास स्थित है।

क्षेत्र में विवाद

  • वर्ष 1999 में जब ऑपरेशन विजय के लिये इस क्षेत्र से सेना की टुकड़ी को कारगिल के लिये रवाना किया गया, तो चीन को भारतीय क्षेत्र के अंदर 5 किमी. तक सड़क बनाने का अवसर मिल गया। यह स्पष्ट रूप से चीन की आक्रामकता को इंगित करता है।
  • वर्ष 1999 में चीन द्वारा निर्मित सड़क इस क्षेत्र को चीन के व्यापक सड़क नेटवर्क से जोड़ती है, यह G219 काराकोरम राजमार्ग से भी जुड़ती है।
  • इन सड़कों के माध्यम से चीन की स्थिति भौगोलिक रूप से पैंगोंग झील के उत्तरी सिरे पर स्थित भारतीय स्थानों की उपेक्षा अधिक मज़बूत बनी हुई है।
  • झील के उत्तरी किनारे पर उपस्थित पहाड़ यहाँ एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जिसे सेना "फिंगर्स" (Fingers) के नाम से संबोधित करती है। भारत का दावा है कि LAC फिंगर 8 से जुड़ी है।

चीनी आक्रामकता का क्या कारण है?

  • यदि जल शक्ति के संदर्भ में बात करें तो कुछ वर्ष पहले तक इस क्षेत्र में चीन की स्थिति अधिक मज़बूत थी, लेकिन करीब सात साल पहले भारत ने बेहतर गति एवं तकनीक वाली नौकाएँ खरीदी हैं, ताकि इस क्षेत्र में अधिक तेज़ी से आक्रामक प्रतिक्रिया की जा सके।
  • हालाँकि दोनों ओर से गश्ती नौकाओं के विस्थापन के लिये बेहतर ड्रिल की व्यवस्था मौजूद है, पिछले कुछ वर्षों में जल के मुद्दों पर टकराव के कारण भी तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है।
  • उच्च गति वाली नौकाओं के शामिल होने से स्पष्ट रूप से चीनियों के व्यवहार में अधिक आक्रामकता आई है, जिसके चलते पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में अधिक तनाव की स्थिति देखने को मिली है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नवजात ब्लैकहोल में गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने में कामयाबी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में Physical Review Letters नामक एक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पहली बार वैज्ञानिकों ने एक नवजात ब्लैकहोल (Newly Born Black Hole) में गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने में सफलता प्राप्त की है।

प्रमुख बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं ने पाया कि इन तरंगों का रिंगिंग पैटर्न ब्लैक होल के द्रव्यमान और घूर्णन गति के विषय में जानकारी प्रदान करता है जो आइंस्टीन के जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी यानी सापेक्षता के सिद्धांत (Einstein’s General Theory of Relativity) और अधिक प्रमाणित करती है। 

आइंस्टीन का अनुमान

  • दो बड़े ब्लैक होल की टक्कर से निर्मित होने वाला नवजात ब्लैक होल टक्कर के पश्चात् किसी घंटी की तरह ‘रिंग’ करना चाहिये, जो कई आवृत्तियों वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों का उत्सर्जन करता है।
  • आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के अनुसार, किसी निश्चित द्रव्यमान तथा घूर्णन वाले ब्लैक होल द्वारा उत्सर्जित गुरुत्वाकर्षण तरंगों की पिच और उनका क्षय भी निश्चित होता हैं।

Blackhole

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह अध्ययन

  • शोधकर्त्ताओं की टीम ने नवजात ब्लैक होल से प्राप्त गुरुत्वाकर्षण तरंगों और आइंस्टीन के समीकरणों का उपयोग कर ब्लैक होल के द्रव्यमान तथा घूर्णन की माप की। 
  • शोधकर्त्ताओं ने पाया कि यह माप और पूर्व में विभिन्न तरीकों से की गई माप दोनों लगभग समान हैं जो यह प्रदर्शित करता है कि आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी सही है।
  • इससे पहले वैज्ञानिकों द्वारा आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के सही होने की संभावना व्यक्त की जाती थी, यह पहली बार है जब इसकी पुष्टि की गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार आइंस्टीन के सिद्धांत का सीधे परीक्षण करने वाला यह पहला प्रायोगिक अध्ययन था।
  • अध्ययन की सफलता से इस बात की संभावना और बढ़ गई है कि ब्लैक होल केवल तीन अवलोकनीय गुणों मसलन द्रव्यमान, घूर्णन (स्पिन) और विद्युत् आवेश को प्रदर्शित करता है। 
  • उक्त तीनों गुणों की विशेषता यह है कि इनका अवलोकन किया जा सकता है, जबकि अन्य सभी गुण ब्लैक होल में ही समा जाते हैं।

पूर्व की खोज

  • इससे पहले भी वैज्ञानिकों ने दो स्पायरलिंग ब्लैक होल में गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाया था, जो बाद में आपस में टकराने के बाद एक ब्लैक होल में समा गए थे।
  • इस दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि जब दोनों ब्लैक होल एक-दूसरे से टकराए तो उस समय गुरुत्वीय तरंगों की गति सबसे अधिक तीव्र हो गई थी।

ब्लैक होल क्या है?

ब्लैक होल (कृष्ण छिद्र/कृष्ण विवर) शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिकी भौतिकविद् जॉन व्हीलर ने 1960 के दशक के मध्य में किया था।

  • ब्लैक होल्स अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता।
  • चूँकि इनसे प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता, अतः हमें ब्लैक होल दिखाई नहीं देते, वे अदृश्य होते हैं।
  • हालाँकि विशेष उपकरणों से युक्त अंतरिक्ष टेलिस्कोप की मदद से ब्लैक होल की पहचान की जा सकती है।
  • ये उपकरण यह बताने में भी सक्षम हैं कि ब्लैक होल के निकट स्थित तारे अन्य प्रकार के तारों से किस प्रकार भिन्न व्यवहार करते हैं।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (SSR) नीति

चर्चा में क्यों?

भारत संभवतः कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility-CSR) की तर्ज पर वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (Scientific Social Responsibility-SSR) नीति को लागू करने वाला विश्व का पहला देश बनने जा रहा है। विज्ञान को समाज से जोड़ने और वैज्ञानिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Science and Technology-S&T) आधारित संस्थानों एवं वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिये यह कदम उठाया जा रहा है।

SSR की परिभाषा

  • मसौदा में SSR को "विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में स्वेच्छा से, सेवा और पारस्परिक जागरूकता की भावना के साथ समाज में व्यापक स्तर पर हितधारकों तक पहुँच बनाने के लिये ज्ञान श्रमिकों द्वारा अपने ज्ञान और संसाधनों का योगदान करने हेतु एक नैतिक दायित्व” के रूप में परिभाषित किया गया है।

उद्देश्य

  • इस नीति का उद्देश्य विज्ञान एवं समाज के बीच संबंधों को मज़बूत करने और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिवेश को जीवंत बनाने के लिये वैज्ञानिक समुदाय की अव्यक्त क्षमता का उपयोग करना है।
  • इसका उद्देश्य वैज्ञानिक ज्ञान तक पहुँच को सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र विकसित करना, सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विज्ञान के लाभों को स्थानांतरित करना, समस्याओं की पहचान करने और उनका समाधान तैयार करने हेतु सहयोग को बढ़ावा देना है।

संबंधित विभाग

  • नई नीति का एक प्रारूप विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) द्वारा सार्वजनिक टिप्पणी के लिये अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया है।

क्रियान्वयन

  • SSR को लागू करने के लिये DST में एक केंद्रीय एजेंसी की स्थापना की जाएगी।
  • अन्य मंत्रालयों को भी SSR को लागू करने के लिये स्वयं की योजना बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • नीति के कार्यान्वयन के लिये एक राष्ट्रीय पोर्टल विकसित किया जाएगा ताकि वैज्ञानिक हस्तक्षेपों की आवश्यकता वाली सामाजिक ज़रूरतों को पूरा किया जा सकें, यह कार्यान्वयनकर्त्ताओं तथा SSR गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिये एक मंच के रूप में कार्य करेगा।

नीति का प्रसार क्षेत्र

  • यह मसौदा नीति पहले की नीतियों; वैज्ञानिक नीति संकल्प (Scientific Policy Resolution) 1958, प्रौद्योगिकी नीति वक्तव्य (Technology Policy Statement) 1983, विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति (Science and Technology Policy) 2003, विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति (Science Technology and Innovation Policy) 2013 पर आधारित है।

नीति के प्रमुख बिंदु

  • प्रस्तावित नीति के तहत, समाज में वैज्ञानिक ज्ञान के आदान-प्रदान के लिये वैज्ञानिकों अथवा ज्ञान कार्यकर्त्ताओं को व्यक्तिगत स्तर पर प्रति वर्ष कम-से-कम 10 दिन SSR हेतु समर्पित करने होंगे।
  • यह आवश्यक बजटीय समर्थन के साथ आउटरीच (सीमा से अधिक) गतिविधियों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता को भी चिह्नित करता है।
  • इस नीति के अंतर्गत ज्ञान कार्यकर्त्ताओं/वैज्ञानिकों को उनके वार्षिक प्रदर्शन के मूल्यांकन और निरूपण में व्यक्तिगत SSR गतिविधियों के लिये श्रेय देने का भी प्रस्ताव भी शामिल है। किसी भी संस्थान को अपनी SSR गतिविधियों और परियोजनाओं को पूरा करने के लिये बाहरी सहायता लेने या उप-अनुबंध करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

जब अधिकतर शोध कार्य करदाताओं के पैसे का उपयोग करके किये जा रहे हैं, तो वैज्ञानिक समुदाय का भी यह नैतिक दायित्व बनता है कि बदले में वह भी समाज के लिये कुछ करें। SSR केवल समाज पर वैज्ञानिक प्रभाव को ही इंगित नहीं करता है बल्कि यह विज्ञान पर समाजिक प्रभाव के विषय में भी है। इस प्रकार SSR ज्ञान आदृत परिवेश को सशक्त बनाएगा और समाज के लाभ के लिये विज्ञान के उपयोग में दक्षता को भी बढ़ावा देगा, जैसा कि मसौदा नीति में कहा गया है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

भारतीय सर्वेक्षण विभाग (SoI)

चर्चा में क्यों?

भारत का सबसे प्राचीन वैज्ञानिक विभाग ‘भारतीय सर्वेक्षण विभाग’ (Survey of India-SoI) पहली बार देश का मानचित्र तैयार करने के लिये ड्रोन (Drone) पर निर्भर रहेगा।

इस प्रकार के प्रयास का उद्देश्य

  • इसका उद्देश्य आगामी दो वर्षों में भारत के 75% भौगोलिक भाग अर्थात् कुल 3.2 मिलियन वर्ग किमी. में से लगभग 2.4 मिलियन वर्ग किमी. का नक्शा तैयार करना है।
  • इस विशालकाय कार्य को समय से पूरा करने के लिये विभाग ने लगभग 300 ड्रोनों की खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया है, अभी तक विभाग को करीब 30 ड्रोन ही प्राप्त हुए हैं।
  • हालाँकि इस नक्शे को तैयार किये जाने के दौरान वनों, पहाड़ियों और रेगिस्तानों को कवर न किये जाने की संभावना बनी हुई है।
  • ड्रोन द्वारा मैप किये गए प्रत्येक वर्ग मील को 2500 चित्रों के माध्यम से समझाया जाएगा अर्थात् उनके बारे में स्पष्ट किया जाएगा, इस प्रकार यह डिजिटल डेटा के एक भाग के रूप में तैयार होगा।

सटीक मानचित्रण के लिये

  • सर्वेक्षण से जुड़े अधिकारियों के अनुसार, गाँवों में भूमि के उच्च रिज़ॉल्यूशन वाले मानचित्रों का निर्माण करने से उनके डिजिटलीकरण में आसानी होगी।
  • वर्तमान में सर्वश्रेष्ठ SoI मानचित्रों का रिज़ॉल्यूशन 1:250000 है, जिसका अर्थ है कि मानचित्र पर 1 सेमी. ज़मीन के 2500 सेमी. का प्रतिनिधित्व करता है।
  • परियोजना से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, तैयार किये जा रहे नक्शे 1: 500 रिज़ॉल्यूशन के होंगे, अर्थात् 1 सेमी. 500 सेमी. का प्रतिनिधित्व करेगा।

ग्रामीण मुद्दों का समाधान करना

  • ड्रोन-आधारित अभ्यास का एक प्रमुख परिणाम ग्रामीण आवासों (जिसे कानूनी भाषा में आबादी क्षेत्र कहा जाता है) का मानचित्रण करना होगा।
  • सटीक मानचित्रों की उपलब्धता के आधार पर, निवासियों को अंततः संपत्ति कार्ड के साथ-साथ उनकी ज़मीनों के लिये उचित कानूनी अधिकार भी प्राप्त हो सकेंगे।

भारतीय सर्वेक्षण विभाग

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत देश अक राष्ट्रीय सर्वेक्षण एवं मानचित्रण संगठन, भारतीय सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार का सबसे प्राचीन वैज्ञानिक विभाग है। इसका गठन वर्ष 1767 में हुआ था।
  • इसका मुख्यालय देहरादून में स्थित है।
  • भारतीय सर्वेक्षण विभाग स्थलाकृतिक, भौगोलिक एवं अन्य सार्वजनिक श्रृखंला के मानचित्रों/डेटा के उत्पादन एवं रख-रखाव के साथ ही ज्योडेटिक डेटा के उत्पादन का कार्य भी कर रहा है।

कार्य

भारतीय सर्वेक्षण विभाग सभी सर्वेक्षण कार्यों अर्थात् ज्योडेसी, फोटोग्राममिति, मानचित्रण और पुनरूत्पादन आदि में भारत सरकार के सलाहकार के रूप में कार्य कर रहा है। तथापि भारतीय सर्वेक्षण विभाग के मुख्य कार्य और उत्तरदायित्व निम्न हैं-

  • सभी ज्योडीय नियंत्रण (क्षैतिज और उर्ध्वाधर) ज्योडीय और भौगोलिक सर्वेक्षण।
  • भारत की सीमाओं के अंतर्गत सभी स्थलाकृतिक नियंत्रण, सर्वेक्षण और मानचित्रण।
  • भौगोलिक मानचित्रों और वैमानिकीय चार्टों का मानचित्रण और पुनरुत्पादन करना।
  • विकासात्मक परियोजनाओं का सर्वेक्षण, बड़े पैमाने के नगरों, मार्गदर्शी मानचित्र और भू-कर (कैडेस्ट्रल) सर्वेक्षण, इत्यादि।
  • विशेष उददेश्यों वाले मानचित्रों का सर्वेक्षण और मानचित्रण।
  • भौगोलिक नामों की वर्तनी (स्पैलिंग्स) सुनिश्चित करना।
  • भारत की बाह्य सीमाओं का सीमांकन और देश में प्रकाशित मानचित्रों पर उनका चित्रण करना तथा अंतर्राजीय सीमाओं के सीमांकन के संबंध में परामर्श देना।
  • भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों, अन्य केंद्रीय और राज्य सरकार के कर्मचारियों तथा विदेशों से सर्वेक्षण एवं मानचित्रण की शिक्षा ग्रहण करने के लिये आने वाले विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देना।
  • अंकीय मानचित्रण कला, मुद्रण, ज्योडेसी, फोटोग्राममिति, स्थलाकृतिक सर्वेक्षण का अनुसंधान और विकास करना तथा स्वदेशीकरण करना।
  • 14 विदेशी बंदरगाहों सहित 44 बंदरगाहों पर ज्वार-भाटे से संबंधित भविष्यवाणी (पूर्वानुमान) करना और नौवहन कार्यकलापों की सहायता के लिये एक वर्ष पहले ही ज्वार-भाटा तालिका प्रकाशित करना।
  • निजी प्रकाशकों सहित अन्य अभिकरणों द्वारा प्रकाशित मानचित्रों पर भारत गणराज्य की बाह्य सीमाओं और तटरेखाओं की संवीक्षा करना और प्रमाणित करना।

विवादों का निपटान

भारतीय सर्वेक्षण विभाग और अन्य व्यक्तियों के मध्य दिशा-निर्देशों के अनुप्रयोज्यता या विवेचना पर कोई विवाद होने की स्थिति में मामले को सचिव, भारत सरकार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को भेजा जाएगा, जिसका निर्णय दोनों पक्षकारों के लिये बाध्यकारी होगा।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

सोशल मीडिया अकाउंट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (National Intelligence Grid- NATGRID) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष सोशल मीडिया अकाउंट को केंद्रीय डेटाबेस से जोड़ने का प्रस्ताव पेश किया है।

प्रमुख बिंदु

  • NATGRID ने सोशल मीडिया अकाउंट, बैंकिंग, टेलीफोन और भारत में प्रवेश करने वाले यात्रियों संबंधी रिकॉर्ड को केंद्रीय डेटाबेस से जोड़ने का प्रस्ताव रखा है।
  • NATGRID द्वारा वर्ष 2017 में जारी रुचि की अभिव्यक्ति (Expression of Interest- EOI) के अनुसार, वह एक एंटिटी एक्सट्रैक्शन, विज़ुअलाइज़ेशन और एनालिटिक्स (Entity Extraction, Visualization and Analytics- EVA) सिस्टम स्थापित करने का प्रयास करेगा। यह सिस्टम विभिन्न डेटा स्रोतों द्वारा उपलब्ध सूचनाओं का संग्रहण और विश्लेषण करेगा।
  • NATGRID ने हाल ही में EOI को पुन शुरू करते हुए सिस्टम इंटीग्रेटर (System Integrator- SI) के चयन की दिशा में प्रयास किया। यह SI सॉफ्टवेयर सोल्युशन, हार्डवेयर का विवरण उपलब्ध करवाने के साथ ही समग्र EVA समाधानों को एकीकृत और कार्यान्वित करेगा।

सिस्टम इंटीग्रेटर

(System Integrator-SI)

सिस्टम इंटीग्रेटर कोई व्यक्ति या कंपनी होती है जो किसी कंपनी या संस्था के उद्यम संबंधी IT (Information Technology) अनुप्रयोगों को लागू करता है।

ट्रोजन हमला (Trojan Attack)

  • ट्रोजन एक प्रकार का मालवेयर है यह अक्सर वैध सॉफ्टवेयर के रूप में दिखाई देता है।
  • इंटरनेट व कंप्यूटर के माध्यम से उपयोगकर्त्ताओं के सिस्टम तक पहुँच बनाने की कोशिश में लगे साइबर- हैकर्स द्वारा ट्रोजन का प्रयोग किया जाता है।
  • ट्रोजन केवल एक कंप्यूटर उपयोगकर्त्ता की सहायता से किसी भी सॉफ्टवेयर को संक्रमित कर सकता हैं।
  • अज्ञात व्यक्ति के ईमेल के साथ जुड़ी हुई फाइल पर क्लिक करने, बिना स्कैनिंग के USB का प्रयोग करने और असुरक्षित URL खोलने जैसे तरीकों से ट्रोजन कंप्यूटर को क्षति पहुँचाते हैं।

चिंता के बिंदु:

  • सोशल मीडिया अकाउंट को केंद्रीय डेटा से लिंक करने पर संवेदनशील सरकारी डेटा के हैकिंग एवं ट्रोजन हमलों (Trojan Attacks) के प्रति सुभेद्य होने की आशंका है।
  • सोशल मीडिया अकाउंट धारकों की निजी व गोपनीय जानकारी लीक हो सकती है।
  • यह केंद्रीय डेटाबेस है जो राज्य पुलिस व इंटेलिजेंस एजेंसी की पहुँच से बाहर रहेगा।
  • इससे पूर्व में विकीलिक्स का उदाहरण उपलब्ध है जिसने विभिन्न देशों के सेंट्रल ग्रिड तक पहुँच बनाकर गोपनीय सूचनाओं व व्यक्तियों की निजता का उल्लंघन किया था।

आगे की राह

  • देश में यह डिजिटल क्रांति का दौर है जिसके लिये परिष्कृत तकनीक को अपना कर राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान समय में आतंकवादी घटनाओं की जाँच व आसूचना के लिये पारंपरिक तरीके पर्याप्त नहीं रह गए हैं। इसलिये आतंकवादी घटनाओं को रोकने के लिये जाँच एजेंसियों की रियल टाइम डेटा तक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID)

  • NATGRID आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिये एक कार्यक्रम है।
  • यह संदिग्ध आतंकवादियों को चिह्नित करने और आतंकवादी हमलों को रोकने के लिये विभिन्न खुफिया तथा प्रवर्तन एजेंसियों से प्राप्त डेटा का अध्ययन एवं विश्लेषण करने हेतु बिग डेटा तकनीक का उपयोग करेगा।
  • 26/11 के बाद इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर NATGRID की स्थापना की गई।
  • NATGRID बिग डेटा और एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग करते हुए बड़ी मात्रा में डेटा का अध्ययन एवं विश्लेषण करता है।
  • नागरिक डेटा स्रोतों में बैंक खाता विवरण, टेलीफोन रिकॉर्ड, पासपोर्ट डेटा, वाहन पंजीकरण विवरण, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register-NPR), आव्रजन, वीज़ा, विदेशी पंजीकरण तथा ट्रैकिंग प्रणाली (the Immigration, Visa, Foreigners Registration and Tracking System- IVFRT) आदि शामिल हैं।
  • इन 12 एजेंसियों को नैटग्रिड की सुविधा उपलब्ध होगी: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT); केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI); रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA); राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI); प्रवर्तन निदेशालय (ED); इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB); नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB); राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA); रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW); असम, जम्मू-कश्मीर क्षेत्रों की मिलिट्री इंटेलिजेंस और गृह मंत्रालय।

यह विभिन्न चरणों में डेटा प्रदान करने वाले संगठनों और उपयोगकर्त्ताओं के समन्वय के साथ ही एक कानूनी संरचना विकसित करता है, इन सूचनाओं के माध्यम से कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ संदिग्ध गतिविधियों की जाँच करती हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

निर्यात और रियल एस्टेट सेक्टर के प्रोत्साहन हेतु प्रयास

चर्चा में क्यों?

अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती से निपटने के लिये वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ नए उपायों की घोषणा की है।

  • सुस्ती से निपटने हेतु की गई इन घोषणाओं में निर्यात और रियल एस्टेट सेक्टर पर मुख्य रूप से ध्यान दिया गया है।
  • साथ ही वित्त मंत्री ने कहा है कि देश में मुद्रास्फीति की दर 4 प्रतिशत से कम बनी हुई है एवं निवेश दर में भी वृद्धि हुई है और उद्योग जगत में भी सुधार के संकेत दिखाई दे रहे हैं।

रियल एस्टेट संबंधी मुख्य घोषणाएँ

  • अधूरे पड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को पूरा करने हेतु वित्तपोषण के लिये एक स्पेशल विंडो (Special Window) की व्यवस्था की जाएगी।
    • इस स्पेशल विंडो के लिये 10000 करोड़ रुपए की राशि का निवेश सरकार द्वारा किया जाएगा, जबकि इतनी ही राशि के निवेश की आशा अन्य निवेशकों जैसे- LIC, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या FDI से की जा रही है।
    • उल्लेखनीय है कि इस फंड के तहत राशि केवल उन्ही परियोजनाओं को मिलेगी जो NPA या गैर-निष्पादित परिसंपत्ति और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Company Law Tribunal-NCLT) के तहत नहीं आती हैं।
    • सरकार के इस कदम का उद्देश्य सस्ती और मध्यम-वर्ग से संबंधित आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना है। अनुमानतः इस योजना से लगभग 3.5 लाख घर खरीदारों को फायदा होगा।
  • रिज़र्व बैंक के परामर्श पर प्रधानमंत्री आवास योजना (Pradhan Mantri Awas Yojana-PMAY) के तहत घर खरीदारों को किफायती ऋण उपलब्ध कराने हेतु बाह्य वाणिज्यिक उधार (External Commercial Borrowing-ECB) से संबंधित नियमों में भी छूट दी जाएगी।
    • बाह्य वाणिज्यिक उधार: इसका अभिप्राय उस ऋण या उधार से होता है जो भारतीय कंपनी द्वारा किसी विदेशी कंपनी से लिया जाता है। इस प्रकार का ऋण भारतीय मुद्रा में भी हो सकता है एवं विदेशी मुद्रा में भी। ECB के माध्यम से कोई भी भारतीय कंपनी रियायती दर पर किसी विदेशी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त कर सकती है।
  • भवन निर्माण पर ऋण की ब्याज दरों को भी कम करने का प्रयास किया जाएगा।
    • वित्त मंत्री के अनुसार, सरकार के इस कदम से सरकारी कर्मचारियों को काफी फायदा मिलेगा, क्योंकि देश में घरों या आवासों की सर्वाधिक मांग उन्ही के द्वारा की जाती है।

निर्यात को बढ़ावा देने हेतु मुख्य घोषणाएँ

  • 1 जनवरी, 2020 से निर्यात किये जाने वाले उत्पादों को निर्यात शुल्क और कर में छूट (Remission of Duties or Taxes on Export Product-RoDTEP) देने के लिये योजना की शुरुआत की जाएगी, जो कि मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (Merchandise Exports from India Scheme-MEIS) का स्थान लेगी।
    • वित्त मंत्री के अनुसार, इस योजना की अनुमानित लागत लगभग 50,000 करोड़ रुपए है।
  • वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) में इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credits-ITC) के लिये पूर्णतः स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक रिफंड मार्ग सितंबर 2019 से कार्यान्वित होगा।
  • मार्च 2020 में देश भर की 4 जगहों पर वार्षिक मेगा शॉपिंग फेस्टिवल का आयोजन।
  • निर्यात ऋण बीमा योजना (Export Credit Insurance Scheme-ECIS) के क्षेत्र का विस्तार किया जाएगा। निर्यात के लिये कार्यशील पूंजी देने वाले बैंकों को उच्च बीमा कवर प्रदान किया जाएगा, जिससे बैंकों को अधिक-से-अधिक सुरक्षा मिलेगी और वे निर्यातकों को अधिक ऋण प्रदान कर पाएंगे।
  • हस्तशिल्प कारीगरों और हस्तशिल्प सहकारी समितियों को ई-कॉमर्स पोर्टल से जोड़ा जाएगा, ताकि इस क्षेत्र को एक नया आयाम देकर निर्यात को बढ़ाया जा सके।

सुस्ती से निपटने का तीसरा प्रयास

  • उल्लेखनीय है कि उपरोक्त घोषणाएँ भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी की स्थिति से उबारने हेतु तीसरे चरण की घोषणाएँ हैं। इससे पूर्व भी बीते महीने वित्त मंत्री ने दो चरणों में भिन्न-भिन्न घोषणाएँ की थीं।
  • आर्थिक गति को बढ़ाने के पहले प्रयास में वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि घरेलू व विदेशी निवेशकों पर लगने वाले अधिभार (Surcharge) को समाप्त कर दिया जाएगा। पहले चरण में ऑटोमोबाइल सेक्टर की सहायता के लिये भी कई महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ की गई थीं।
  • इसी प्रकार दूसरे चरण में सरकार ने देश के 10 बैंकों का 4 बैंकों विलय में करने की घोषणा की थी। सरकार के इस कदम के परिणामस्वरूप देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कुल संख्या 18 से घटकर 12 रह गई है।

क्यों हो रहे हैं प्रयास?

  • हाल ही में वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही को लेकर कुछ आँकड़े जारी किये गए थे, जिनके अनुसार इस अवधि में देश की GDP वृद्धि दर 5.0 प्रतिशत पर पहुँच गई है।
  • ज्ञातव्य हो कि GDP वृद्धि की यह दर विगत 6 वर्षों में सबसे कम है। इससे पूर्व वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में यह आँकड़ा सबसे कम 4.3 प्रतिशत पहुँचा था।
  • भारत में कमज़ोर आर्थिक स्थिति का सबसे अधिक प्रभाव ऑटोमोबाइल सेक्टर पर देखने को मिला है, जहाँ घरेलू यात्री वाहनों की बिक्री में कुल 31.57 फीसदी की कमी देखने को मिली है।
  • हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था उम्मीद से अधिक धीमी गति से विकास कर रही है।

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

ऋण माफी और उसका आर्थिक प्रभाव

संदर्भ

हाल के वर्षो में कई राज्य सरकारों ने किसानों के कृषि ऋणों को माफ किया है, जिसके कारण ऋण माफी सदैव ही विशेषज्ञों के मध्य चर्चा का विषय रही है। हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने भी इस संदर्भ में अपने आंतरिक कार्य दल (Internal Working Group-IWG) की रिपोर्ट साझा की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि किस प्रकार कृषि ऋण माफी ने राज्य सरकारों को आर्थिक मोर्चे पर प्रभावित किया है, साथ ही रिपोर्ट में सरकारों को ऋण माफी का सहारा लेने से बचने का सुझाव दिया गया है।

ऋण माफी का इतिहास

  • सर्वप्रथम वर्ष 1990 में वी.पी. सिंह की सरकार ने पूरे देश में किसानों का तकरीबन 10 हज़ार करोड़ रुपए का ऋण माफ किया था। जिसके बाद UPA सरकार ने भी वित्तीय वर्ष 2008-09 के बजट में करीब 71 हज़ार करोड़ रुपए की ऋण माफी का एलान किया।
  • वर्ष 2014-15 से कई बार बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं एवं विमुद्रीकरण से प्रभावित किसानों को राहत देने हेतु राज्य सरकारों द्वारा ऋण माफी की गई है।
  • कई बार RBI तथा अन्य आर्थिक समीक्षकों ने वोट बटोरने के लिये ऋण माफी का प्रयोग न करने की चेतावनी दी है।

राज्य के वित्त पर ऋण माफी का प्रभाव

  • RBI के आंतरिक कार्य दल की रिपोर्ट बताती है कि सामान्यतः सभी राज्यों की ऋण माफी में एक ही प्रकार का पैटर्न देखा गया है। सभी राज्य ऋण माफी के तीन से चार वर्षों मे अपने राज्य बजट में उसे स्थान देना बंद कर देते हैं।
  • वर्ष 2014-15 से वर्ष 2018-19 के बीच विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा घोषित कुल कृषि ऋण माफी 2.36 ट्रिलियन रुपए थी, जिसमे से केवल 1.5 ट्रिलियन रुपए का ऋण ही अब तक माफ किया गया है।
  • बीते पाँच वर्षों में केवल कुछ ही राज्यों ने मिलकर वर्ष 2008-09 में केंद्र सरकार द्वारा माफ की गई राशि, जो कि 0.72 ट्रिलियन रुपए थी का तीन गुना माफ कर दिया है।
  • वर्ष 2017-18 में ऋण माफी अपनी चरम सीमा पर थी और इसी दौरान राज्यों का राजकोषीय घाटा लगभग 12 प्रतिशत तक पहुँच गया था।

ऋण माफी का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • संक्षेप में, कृषि ऋण माफी का अर्थ सरकार द्वारा उस निजी ऋण का निपटान करना है जो किसानों द्वारा बैंकों से लिया जाता है, लेकिन ऐसा करने से सरकार के संसाधनों में कमी आती है, जिसके प्रभाव से या तो संबंधित सरकार का राजकोषीय घाटा (अर्थात् बाज़ार से कुल उधारी) बढ़ जाता है या सरकार को व्यय में कटौती करनी पड़ती है।
  • उच्च राजकोषीय घाटे का अर्थ यह कि है कि बाज़ार में निजी व्यवसायों को उधार देने के लिये उपलब्ध धनराशि कम होगी एवं ब्याज दर अधिक होगी जिससे बाज़ार में ऋण महंगा हो जाएगा और इसका स्पष्ट प्रभाव नई कंपनियों के निर्माण पर पड़ेगा तथा रोज़गार सृजन में कमी आएगी।
  • यदि राज्य सरकार बाज़ार से पैसा उधार नहीं लेना चाहती है और अपने वित्तीय घाटे के लक्ष्य पर बनी रहती है, तो उसे खर्च में कटौती करने के लिये मज़बूर होना पड़ेगा।
  • इस स्थिति में अधिकतर देखा गया है कि राज्य सरकारें राजस्व व्यय जैसे- वेतन और पेंशन आदि पर होने वाले व्यय के साथ पर पूंजीगत व्यय जैसे- सड़कें, भवन, स्कूल आदि के निर्माण पर किये जाने वाला व्यय में कटौती करती हैं।
  • पूंजीगत व्यय में कटौती से भविष्य में उत्पादन को बढ़ाने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है।
  • कृषि ऋण माफी को कभी भी विवेकपूर्ण नहीं माना जा सकता है, क्योंकि इसके कारण अर्थव्यवस्था में ऋण संस्कृति पूर्णतः बर्बाद हो जाती है एवं समग्र आर्थिक विकास को चोट पहुँचती है, क्योंकि इससे डिफॉल्टर को प्रोत्साहन मिलता है और यह उन लोगों के लिये यह दंड के समान होता है जो अपने ऋण का भुगतान समय पर करते हैं।

भारत की व्यापक आर्थिक स्थिति के लिये राज्य की अर्थव्यवस्था कितनी महत्त्वपूर्ण है?

  • आमतौर पर जब भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया जाता है तो केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति को ही ध्यान में रखा जाता है लेकिन वर्तमान स्थिति इसके काफी विपरीत है।
  • राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (National Institute of Public Finance and Policy-NIPFP) के आँकड़े बताते हैं कि देश की सभी राज्य सरकारें मिलकर एक साथ केंद्र से लगभग 30 प्रतिशत अधिक खर्च करती हैं।
  • दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता और भविष्य के आर्थिक विकास के लिये राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी की केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

कॉलेजियम व्यवस्था

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा किये गए स्थानांतरण के फैसले पर पुनर्विचार के अनुरोध के बाद इस्तीफा दे दिया।

कॉलेजियम व्यवस्था (Collegium System) की पृष्ठभूमि:

  • सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम व्यवस्था एक न्यायालयी नवाचार है, इसका संविधान में वर्णन नहीं किया गया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
  • 1970 के दशक में भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति और कुछ न्यायाधीशों के स्थानांतरण संबंधी मामलों के बाद न्यायपालिका की स्वायत्तता संबधी खतरा महसूस किया जाने लगा था।
  • इसी के मद्देनज़र प्रथम न्यायाधीश मामले में वर्ष 1981 के तहत फैसला सुनाया गया कि नियुक्तियों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ पूर्ण और प्रभावी परामर्श होना चाहिये। इस मामले के तहत परामर्श का तात्पर्य सहमति नहीं बल्कि विचारों का आदान प्रदान है।
  • द्वितीय न्यायाधीश मामले में वर्ष 1993 में कहा गया कि परामर्श से तात्पर्य सहमति है लेकिन मुख्य न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से राय दी जाएगी। न्यायाधीशों द्वारा दी गई राय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी बना दी गई।
  • तीसरे न्यायाधीश मामले में वर्ष 1998 के अनुसार राष्ट्रपति को दिया गया परामर्श बहुसंख्यक न्यायाधीशों का परामर्श माना जाएगा, इस परामर्श में मुख्य न्यायाधीश के साथ सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श शामिल होंगे।

कॉलेजियम व्यवस्था (Collegium System) की आलोचना:

  • इस व्यवस्था को न तो संविधान सभा और न ही संसद द्वारा बनाया गया है अतः इस प्रणाली की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैं।
  • इस व्यवस्था में अस्पष्टता, पारदर्शिता की कमी के साथ ही भाई-भतीजावाद की संभावना भी व्यक्त की जाती रही है।

कॉलेजियम व्यवस्था (Collegium System) और स्थानांतरण:

  • कॉलेजियम व्यवस्था द्वारा मुख्य न्यायाधीशों और अन्य न्यायाधीशों के स्थानांतरण की सिफारिश की जाती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 222 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण का प्रावधान है।
  • स्थानांतरण के समय दोनों उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की राय ली जाती है और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का परामर्श निर्धारक होता है, साथ ही स्थानांतरित किये जाने वाले न्यायाधीश की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • न्यायाधीशों का स्थानांतरण केवल अपवादस्वरूप और लोक कल्याण को ध्यान में रखकर ही किया जा सकता है।

विदित है कि कॉलेजियम व्यवस्था को बदलने हेतु वर्ष 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission) अधिनियम पारित किया गया था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये खतरा बताते हुए रद्द कर दिया गया था।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

समान नागरिक संहिता

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकार समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने में असफल रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्र ने अभी तक अपने नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास नहीं किया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के संस्थापकों ने उम्मीद जताई थी कि एक दिन राज्य समान नागरिक संहिता की अपेक्षाओं को पूरा करेंगे और नियमों का एक समान सेट प्रत्येक धर्म के रीति-रिवाजों जैसे- विवाह, तलाक आदि के अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों की जगह लेगा।
  • वर्ष 1956 में हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध कर दिया गया था, लेकिन देश के सभी नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता लागू करने का गंभीर प्रयास नहीं किया गया है।

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) क्या है?

  • भारतीय संविधान के भाग 4 (राज्य के नीति निदेशक तत्त्व) के तहत अनुच्छेद 44 के अनुसार भारत के समस्त नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता होगी। इसका व्यावहारिक अर्थ है कि, भारत के सभी धर्मों के नागरिकों के लिये एक समान धर्मनिरपेक्ष कानून होना चाहिये। संविधान के संस्थापकों ने राज्य के नीति निदेशक तत्त्व के माध्यम से इसको लागू करने की ज़िम्मेदारी बाद की सरकारों को हस्तांतरित कर दी थी।
  • समान नागरिकता संहिता के अंतर्गत व्यक्तिगत कानून, संपत्ति संबंधी कानून और विवाह, तलाक तथा गोद लेने से संबंधित कानूनों में मतभिन्नता है।

नोट: भारत में अधिकतर व्यक्तिगत कानून धर्म के आधार पर तय किये गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के व्यक्तिगत कानून हिंदू विधि से संचालित किये आते हैं, वहीं मुस्लिम तथा ईसाई धर्मों के अपने अलग व्यक्तिगत कानून हैं। मुस्लिमों का कानून शरीअत पर आधारित है, जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानून भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानून पर आधारित हैं। अब तक गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ पर समान नागरिक संहिता लागू है।

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का पक्ष:

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता शब्द को प्रविष्ट किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान का उद्देश्य भारत के समस्त नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर किसी भी भेदभाव को समाप्त करना है लेकिन वर्तमान समय तक समान नागरिक संहिता के लागू न हो पाने के कारण भारत में एक बड़ा वर्ग अभी भी धार्मिक कानूनों की वजह से अपने अधिकारों से वंचित है।
  • मूल अधिकारों में विधि के शासन की अवधारणा विद्यमान है लेकिन इन्हीं अवधारणाओं के बीच लैंगिक असमानता जैसी कुरीतियाँ भी व्याप्त हैं। विधि के शासन के अनुसार, सभी नागरिकों हेतु एक समान विधि होनी चाहिये लेकिन स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अपने मूलभूत अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहा है। इस प्रकार समान नागरिक संहिता का लागू न होना एक प्रकार से विधि के शासन और संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघन है।
  • सामासिक संस्कृति के सम्मान के नाम पर किसी वर्ग की राजनीतिक समानता का हनन करना संविधान के साथ-साथ संस्कृति और समाज के साथ भी अन्याय है क्योंकि प्रत्येक संस्कृति तथा सभ्यता के मूलभूत नियमों के तहत महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त होता है लेकिन समय के साथ इन नियमों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर असमानता उत्पन्न कर दी जाती है।
  • धार्मिक रुढ़ियों की वजह से समाज के किसी वर्ग के अधिकारों का हनन रोका जाना चाहिये साथ ही विधि के समक्ष समता की अवधारणा के तहत सभी के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिये ।
  • वैश्वीकरण के वातावरण में महिलाओं की भूमिका समाज में महत्त्वपूर्ण हो गई है, इसलिये उनके अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता में किसी प्रकार की कमी उनके व्यक्तित्त्व तथा समाज के लिये अहितकर है।
  • राजनीतिक लाभ के कारण कई बार सरकारें इन धार्मिक मुद्दों में छेड़छाड़ से बचती हैं इसलिये सरकारों को भी ऐसे मामलों को धार्मिक मुद्दों के बजाय व्यक्तिगत अधिकारों की दृष्टि से देखना चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शाहबानो मामले में दिये गए निर्णय को तात्कालीन राजीव गांधी सरकार ने धार्मिक दबाव में आकर संसद के कानून के माध्यम से पलट दिया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने संपत्ति पर समान अधिकार और मंदिर प्रवेश के समान अधिकार जैसे न्यायिक निर्णयों के माध्यम से समाज में समता हेतु उल्लेखनीय प्रयास किया है इसलिये सरकार तथा न्यायालय को समान नागरिक संहिता को लागू करने के समग्र एवं गंभीर प्रयास करने चाहिये।

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का विपक्ष:

  • समान नागरिक संहिता का मुद्दा किसी सामाजिक या व्यक्तिगत अधिकारों के मुद्दे से हटकर एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, इसलिये जहाँ एक ओर कुछ राजनीतिक दल इस मामले के माध्यम से राजनीतिक तुष्टिकरण कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई राजनीतिक दल इस मुद्दे के माध्यम से धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास कर रहे हैं।
  • हिंदू या किसी और धर्म के मामलों में बदलाव उस धर्म के बहुसंख्यक समर्थन के बगैर नहीं किया गया है, इसलिये राजनीतिक तथा न्यायिक प्रक्रियाओं के साथ ही धार्मिक समूहों के स्तर पर मानसिक बदलाव का प्रयास किया जाना आवश्यक है।
  • सामासिक संस्कृति की विशेषता को भी वरीयता दी जानी चाहिये क्योंकि समाज में किसी धर्म के असंतुष्ट होने से अशांति की स्थिति बन सकती है।

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के मुद्दे पर विधि आयोग (Law Commission) का पक्ष:

  • विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में समान नागरिक संहिता से संबंधित मुद्दों के समग्र अध्ययन हेतु विधि आयोग का गठन किया गया।
  • विधि आयोग ने कहा कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा मूलाधिकारों के तहत अनुच्छेद 14 और 25 के बीच द्वंद्व से प्रभावित है।
  • भारतीय बहुलवादी संस्कृति के साथ ही महिला अधिकारों की सर्वोच्चता के मुद्दे को इंगित किया।
  • पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा की जा रही कार्यवाहियों के मद्देनज़र विधि आयोग ने कहा कि महिला अधिकारों को वरीयता देना प्रत्येक धर्म और संस्थान का कर्तव्य होना चाहिये।
  • विधि आयोग के अनुसार, समाज में असमानता की स्थिति उत्पन्न करने वाली समस्त रुढ़ियों की समीक्षा की जानी चाहिये। इसलिये सभी निजी कानूनी प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करने की ज़रूरत है जिससे उनसे संबंधित पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी तथ्य सामने आ सकें।
  • वैश्विक स्तर पर प्रचलित मानवाधिकारों की दृष्टिकोण से सर्वमान्य व्यक्तिगत कानूनों को वरीयता मिलनी चाहिये।
  • लड़कों और लड़कियों की विवाह की 18 वर्ष की आयु को न्यूनतम मानक के रूप में तय करने की सिफारिश की गई जिससे समाज में समानता स्थापित की जा सके।

आगे की राह: समाज की प्रगति और सौहार्द्रता हेतु उस समाज में विद्यमान सभी पक्षों के बीच समानता का भाव होना अत्यंत आवश्यक है। इसलिये अपेक्षा की जाती है कि बदलती परिस्थितियों के मद्देनज़र समाज की संरचना में परिवर्तन होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (16 September)

  • देश में प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर का दिन अभियन्ता (Engineers) दिवस के रूप में मनाया जाता है। अभियन्ता दिवस भारत के सुविख्यात इंजीनियर डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिन्हें आधुनिक भारत के विश्वकर्मा के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष उनकी 159 जयंती मनाई जा रही है। उनका जन्म 15 सितंबर, 1861 में मैसूर में हुआ था। भारत सरकार ने वर्ष 1968 में उनकी जन्म तिथि को ‘अभियंता दिवस’ घोषित किया था। डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को सिंचाई डिज़ाइन के मास्टर के रूप में भी जाना जाता है। उनकी सबसे उल्लेखनीय परियोजनाओं में से एक कृष्णा राजा सागर झील और बांध है, जो कर्नाटक में स्थित है। उस समय भारत में वह सबसे बड़ा जलाशय था। वर्ष 1955 में उनकी अभूतपूर्व तथा जनहितकारी उपलब्धियों के लिये उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया। जब वह 100 वर्ष के हुए तो भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया।
  • दुनियाभर में 15 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस का आयोजन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाने के लिये 15 सितंबर का दिन तय किया था। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार लोकतंत्र समावेश, समान व्यवहार और भागीदारी पर बनाया गया है। यह शांति, सतत् विकास और मानवाधिकारों के लिये एक बुनियाद है। यह फैसला 8 नवंबर, 2007 को लिया गया था। उसके बाद से प्रतिवर्ष यह दिन अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहली बार वर्ष 2008 में अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया गया था। इसे नए बहाल लोकतंत्रों के पहले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की 20वीं वर्षगांठ के रूप में चिह्नित किया गया। इसने दुनियाभर में लोगों को आगे आने, प्रोत्साहित करने और लोकतंत्र को मज़बूत करने का अवसर दिया। अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस 2019 की थीम भागीदारी (Participation) रखी गई है।
  • केंद्र सरकार ने आयकर विभाग की महत्त्वाकांक्षी ई-आकलन योजना को अधिसूचित कर दिया है। इससे आयकर आकलन के दौरान करदाता आयकर अधिकारियों के सीधे संपर्क में नहीं आ पाएंगे। इस योजना के तहत राष्‍ट्रीय ई-आकलन केंद्र बनाया जाएगा, जो करदाताओं को उनसे संबद्ध मुद्दों पर जानकारी मांगेगा। जानकारी मिलने के 15 दिन बाद कंप्यूटर आधारित प्रणाली से आकलन के लिये इसे आयकर अधिकारी के पास भेज दिया जाएगा। इस प्रक्रिया के तहत किसी भी व्यक्ति को स्वयं अथवा उसके द्वारा प्राधिकृत प्रतिनिधि के ज़रिये आयकर प्राधिकरण के समक्ष या फिर राष्ट्रीय ई-आकलन केंद्र अथवा इस योजना के तहत तैयार की गई किसी भी इकाई के समक्ष उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है। यदि कोई करदाता अथवा उनका प्राधिकृत प्रतिनिधि व्यक्तिगत तौर पर आयकर अधिकारियों के समक्ष अपनी बात रखना चाहता है तो वह किसी भी आयकर इकाई में ऐसा कर सकते हैं। यह सुनवाई विशिष्ट तौर पर वीडियो लिंक अथवा इसी तरह की किसी अन्य सुविधा के ज़रिये ही की जा सकेगी। यह पूरी प्रक्रिया इलेक्ट्रानिक प्रणाली के ज़रिये होगी और इसे इस वर्ष में चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने इस बारे में चुनिंदा शहरों में पायलट परियोजनाओं पर काम किया है।
  • आदिवासी युवाओं के विकास के लिये 462 एकलव्य विद्यालयों की शुरुआत की जा रही है। सभी को सशक्त बनाने के लिये प्रधानमंत्री ने इनकी शरुआत की। इन विद्यालयों में जनजातीय छात्रों को अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान की जाएगी तथा स्थानीय कलाओं और संस्कृति के साथ-साथ खेल एवं कौशल विकास की सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई जाएंगी। इन विद्यालयों में प्रत्येक जनजातीय छात्र पर सरकार हर साल एक लाख रुपए से अधिक की राशि खर्च करेगी। नवोदय विद्यालयों की तर्ज पर इन एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों की स्थापना की जाएगी। अगले तीन वर्षों में पूरे देश में प्रखंड स्तर पर ऐसे 462 एकलव्य मॉडल विद्यालय खोले जाएंगे। इन विद्यालयों को संचालित करने के लिये सरकार एक स्वायत्त समिति का गठन करेगी। इस समय देश में 284 विद्यालय हैं, जिसमें से 219 कार्यान्वित हैं।
  • भारत की पाँच महिला पुलिस अधिकारियों को दक्षिण सूडान में संयुक्‍त राष्‍ट्र मिशन में उत्‍कृष्‍ट सेवाओं के लिये सम्‍मानित किया गया है। ये पुरस्‍कार दक्षिण सूडान के जूबा में संयुक्‍त राष्‍ट्र मिशन में परेड के दौरान दिये गए। संयुक्‍त राष्‍ट्र पदक से जिन भारतीय महिलाओं को सम्‍मानित किया गया है उनमें चंडीगढ़ पुलिस में इंस्‍पेक्‍टर रीना यादव, महाराष्‍ट्र पुलिस में डी.एस.पी. गोपिका जहाँगिरदार, गृह मंत्रालय में डी.एस.पी. भारती समांत्रे, गृह मंत्रालय में इंस्‍पेक्‍टर रागिनी कुमारी और राजस्‍थान पुलिस में ए.एस.पी. कमल शेखावत शामिल हैं। इन भारतीय महिला अधिकारियों को युद्धग्रस्‍त दक्षिण सूडान में नागरिकों की रक्षा के लिये संयुक्‍त राष्‍ट्र के आदेश के पालन हेतु सम्‍मानित किया गया है। ये सभी महिलाएँ सामुदायिक, प्रशासनिक, परिचालन कर्त्तव्यों और स्थानीय अधिकारियों के क्षमता निर्माण में लगी हुई हैं। ये महिलाएँ व्यावसायिकता, अखंडता और विविधता के लिये सम्मान के संयुक्त राष्ट्र के मूल उद्देश्यों के साथ काम कर रही हैं। इसके अलावा हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन के तहत दक्षिणी सूडान में तैनात भारत के 17 शांति दूतों को भी सम्मानित किया गया है। इन भारतीय पुलिस अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र और दक्षिणी सूडान के लोगों की करीब एक साल तक सेवा की। यहाँ उनकी ड्यूटी में विस्थापित नागरिकों की सुरक्षा करना, समुदाय स्तर पर व्यवस्था बनाना और स्थानीय पुलिस के कौशलों का विकास करना शामिल था।

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