अंतर्राष्ट्रीय संबंध
WTO की बैठक
चर्चा में क्यों?
भारत ने 13 -14 मई तक नई दिल्ली में आयोजित विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) में शामिल विकासशील देशो की अनौपचारिक बैठक की मेज़बानी की।
प्रमुख बिंदु
- आमंत्रित 24 देशों में से 22 देशों ने इस बैठक में भाग लिया और 17 देशों ने बैठक के बाद जारी संयुक्त घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये।
- यह बैठक वर्ष 2020 में कज़ाखस्तान में आयोजित होने वाले विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पहले आयोजित एक महत्त्वपूर्ण बैठक है।
- इस बैठक में निम्नलिखित मुद्दों पर बात की गई:
- विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय निकाय के बारे में-
- अपीलीय निकाय में सदस्यों की संख्या सात से घटकर तीन रह गई है।
i. इस कारणवश वर्तमान में अपीलीय निकाय में किसी अपील पर सुनवाई करने में एक वर्ष का समय लग रहा है, जबकि अपीलों के निपटान के लिये निर्धारित समय 90 दिन है।
ii. फिलहाल मौजूद तीन न्यायाधीशों में से दो न्यायाधीश 10 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, इससे अपीलीय निकाय की कार्यक्षमता प्रभावित होगी।
iii. ध्यातव्य है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने पिछले साल से अपीलीय निकाय में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर रोक लगा दी है।
- विश्व व्यापार संगठन में विकासशील देशों के विशेष और भिन्न उपाय (Special but Differentiated Treatment) का प्रावधान कुछ अन्य देशों के लिये चिंता का विषय बना हुआ है।
विश्व व्यापार संगठन
- विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में हुई थी।
- इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में है। वर्तमान में विश्व के 164 देश इसके सदस्य हैं।
- 29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना।
- सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मलेन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।
विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय
- विश्व व्यापर संघ के अपीलीय निकाय की स्थापना वर्ष 1995 में अंडरस्टैंडिंग ऑफ रूल्स ऑफ डिसिप्लिन (DSU) के नियमों और प्रक्रियाओं पर अनुच्छेद 17 के तहत की गई थी।
- यह सात व्यक्तियों का एक स्थाई निकाय है जो WTO के सदस्यों द्वारा लाए गए विवादों पर पैनलों द्वारा जारी रिपोर्टों के आधार पर अपील की सुनवाई करता है।
- अपीलीय निकाय एक पैनल के कानूनी निष्कर्षों में परिवर्तन सकता है, संशोधन कर सकता है या उन्हें यथावत बनाये रख सकता है।
विशेष और भिन्न उपाय संबंधी प्रावधान
Special and Differential Treatment
- विश्व व्यापार संगठन के समझौते में कुछ खास प्रावधान शामिल हैं जो विकासशील देशों को कुछ विशेष अधिकार देते हैं जिन्हें विशेष और भिन्न उपाय (Special and Differential Treatment) के रूप में जाना जाता हैं। ये प्रावधान विकसित देशों को विश्व व्यापार संगठन के अन्य सदस्यों की तुलना में विकासशील देशों के साथ अधिक अनुकूल व्यवहार की संभावना प्रदान करते हैं।
- विशेष प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं-
i. समझौतों और प्रतिबद्धताओं को लागू करने हेतु लंबा समय
ii. विकासशील देशों हेतु व्यापार के अवसरों को बढ़ाने संबंधी उपाय
iii. विकासशील देशों के व्यापार हितों की सुरक्षा के लिये सभी WTO सदस्यों हेतु आवश्यक प्रावधान।
iv. विकासशील देशों को WTO के काम को पूरा करने, विवादों को हल करने और तकनीकी मानकों को लागू करने में मदद करने हेतु सहायता।
v. सबसे कम विकसित देश (Least-Developed Country- LDC) के सदस्यों से संबंधित प्रावधान।
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विश्व व्यापार संगठन में ‘नए मुद्दे’
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू बिज़नस लाइन, WTO की आधिकारिक वेबसाइट
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सुपरनोवा निर्माण की वज़ह न्यूट्रिनो दोलन
चर्चा में क्यों?
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (Tata Institute of Fundamental Research) के एक नए सैद्धांतिक अध्ययन से यह पता चला है कि सुपरनोवा विस्फोट की वज़ह न्यूट्रिनो हो सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के इस अध्ययन के अनुसार, ‘तीव्र न्यूट्रिनो दोलन’ (Fast Neutrino Oscillations) की वज़ह से तारों में विस्फोट के पश्चात् सुपरनोवा का निर्माण होता है।
- न्यूट्रिनो ऐसे उपपरमाण्विक (Subatomic) कण हैं जो एक इलेक्ट्रॉन के समान होते हैं, लेकिन इसमें कोई आवेश नहीं होता है। इसका द्रव्यमान बहुत कम या शून्य भी हो सकता है।
- न्यूट्रिनो ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले कणों में से एक है। चूँकि इनमें द्रव्यमान बहुत कम होता है, इसलिए इनका पता लगा पाना मुश्किल होता है।
- इसके स्रोत-
- पृथ्वी के भीतर प्राथमिक तत्त्वों का क्षय
- सूरज में रेडियोधर्मिता
- वायुमंडल में ब्रह्मांडीय क्रिया इत्यादि
- न्यूट्रीनो तीन प्रकार (Flavours) के होते हैं-
- इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो (Electron Neutrino)
- म्यूऑन न्यूट्रिनो (Muon Neutrino)
- टाऊ न्यूट्रिनो (Tau Neutrino)
- लेप्टान (Leptons) से न्यूट्रिनो (इलेक्ट्रॉन, म्यूऑन और टाऊ) के जुड़ाव की वज़ह से उन्हें ये नाम दिये गए हैं।
न्यूट्रिनो दोलन
- सूर्य से आने वाले न्यूट्रिनो की संख्या को मापते हुए कुछ शोधकर्त्ताओं ने पाया था कि सौर न्यूट्रिनो की कुल संख्या का केवल एक तिहाई हिस्सा ही पृथ्वी को प्राप्त हो रहा है।
- किंतु कुछ समय पश्चात् संख्या में इस कमी की वज़ह न्यूट्रिनो के कम द्रव्यमान को बताया गया है जिसकी सहायता से वे एक से दूसरे रूप में परिवर्तित हो सकते हैं। रूप परिवर्तन की इस घटना को ही न्यूट्रिनो दोलन कहा जाता है।
तीव्र न्यूट्रिनो दोलन
- जब विभिन्न प्रकार के न्यूट्रिनो विभिन्न-2 दिशाओं (एनिसोट्रॉपी) में अलग-अलग तरीके से उत्सर्जित हों तो एक प्रकार के न्यूट्रिनो से दूसरे प्रकार के न्यूट्रिनो में परिवर्तन या दोलन उच्च आवृत्ति पर होता है। इसे ही ‘तीव्र न्यूट्रिनो दोलन’ (Fast Neutrino Oscillations) कहा जाता है और यह माध्यम में न्यूट्रिनो के घनत्व के समानुपाती होता है, न कि न्यूट्रिनो के द्रव्यमान के।
एनिसोट्रॉपी
- एनिसोट्रॉपी (Anisotropy) कुछ पदार्थों का ऐसा गुणधर्म है जिसके कारण विभिन्न आणविक अक्षों (Molecular Axes) पर पदार्थों के विभिन्न भौतिक गुण परिलक्षित होते हैं। यह गुणधर्म क्रिस्टल, तरल क्रिस्टल में तो दिखाई देते हैं किंतु आमतौर पर तरल पदार्थों में ऐसा कम ही देखा जाता है।
सुपरनोवा
- संलयन (Fusion) की समाप्ति (ईंधन खत्म होने पर) के पश्चात् तारे अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण नष्ट (विस्फोट) होने लगते हैं जिसे सुपरनोवा (Supernova) कहते हैं। आमतौर पर सूर्य के द्रव्यमान से आठ गुना अधिक बड़े तारों में यह विस्फोटक घटना होती है।
- तीव्र न्यूट्रिनो दोलन अब नहीं देखे जाते हैं क्योंकि इसके लिये न्यूट्रिनो घनत्व बहुत ज़्यादा और एनिसोट्रॉपी की आवश्यकता होती है। ऐसे हालात जो केवल बड़े तारों, न्यूट्रॉन स्टार टकरावों आदि के केंद्र में ही मिलते हैं।
अध्ययन के निष्कर्ष
इस अध्ययन से पहले, यह माना जाता था कि उच्च घनत्व और एनिसोट्रॉपी की स्थिति में न्यूट्रिनो बिना टकराए सीधी रेखा में गति करते हैं। किंतु इस अध्ययन से पता चलता है कि टकराव उच्च अनिसोट्रॉपी स्थितियाँ पैदा करता है इसके साथ ही यह भी पता चलता है कि टक्करों की वज़ह से तीव्र न्यूट्रिनो दोलन होते हैं।
स्रोत- द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सिकुड़ रही चंद्रमा की सतह
चर्चा में क्यों ?
चंद्रमा करीब 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व अस्तित्त्व में आया था, तब से लेकर आज तक उसमें होने वाली विवर्तनिक क्रियाओं के कारण उसकी ऊर्जा का धीरे-धीरे ह्रास (अर्थात ठंडा होने से) हो रहा है।
इसी कारण चंद्रमा की सतह लगातार सिकुड़ रही है। यह ठीक वैसे ही है जैसे अंगूर का किशमिश में रूपांतरण होता है। इसके परिणामस्वरूप बीते कई सैकड़ों वर्षों में चंद्रमा की सतह लगभग 150 फीट तक पतली हो चुकी है।
प्रमुख बिंदु
- अमेरिका के नासा संस्थान के चन्द्र टोही कृत्रिम उपग्रह (Lunar Reconnaissance Orbiter-LRO) से ली गई तस्वीरों का विश्लेषण करने पर ज्ञात हुआ कि चंद्रमा तेज़ी से सिकुड़ रहा है। इसका कारण उसकी सतह पर उपस्थित झुर्रियाँ और आने वाले भूकंप है।
- लगभग 12000 से अधिक तस्वीरों का सर्वेक्षण करने से पता चला है कि चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास उपस्थित लूनर बेसिन मारे फ्रिगोरिस (Lunar Basin Mare Frigoris) में दरार पड़ रही है और यह अपनी जगह से खिसक रही है। चंद्रमा पर कई विशाल बेसिनों में से मारे फ्रिगोरिस एक है। भूगर्भीय दृष्टिकोण से इन बेसिनों को मृत माना जाता है।
- हमारे ग्रह (पृथ्वी) की तरह चंद्रमा के नीचे विवर्तनिक प्लेटें (Tectonic Plates) नहीं पाई जाती हैं जिस कारण से चन्द्रमा पर विवर्तनिक क्रियाओं के फलस्वरूप ऊर्जा का ह्रास हो रहा है।
- चन्द्रमा की सतह काफी नाज़ुक हो रही है, साथ ही इस पर घटित होने वाली क्रियाओं से आरोपित बल के कारण इसकी सतह छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर इसकी नजदीकी सतह पर एकत्रित हो रही है जिसके कारण यह सिकुड़ रहा है।
- 1960-70 के दशक में अपोलो के अंतरिक्षयात्री ने सर्वप्रथम चन्द्रमा पर भूकंपीय गतिविधियों का पता लगाया था। एक अध्ययन में उन्होंने पाया कि ऊपरी सतहों की तुलना में आतंरिक सतहों पर बहुत अधिक संख्या में भूकंप आए।
- अपोलो मिशन द्वारा किये गए विश्लेषण को प्राकृतिक भू-विज्ञान ने प्रकाशित किया एवं इसने चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन किया।
- भूगर्भ विज्ञानी एवं मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर निकोलस शिमर ने कहा कि लाखों वर्ष पूर्व घटित होने वाली घटनाओं की पुनरावृत्ति आज भी हो रही हैं।
लूनर रेकांनैस्संस ऑर्बिटर (Lunar Reconnaissance Orbitor-LRO)
LRO भविष्य में चंद्रमा पर भेजे जाने वाले मानवयुक्त मिशन की तैयारी की दिशा में लूनर प्रीकर्सर एंड रोबोटिक प्रोग्राम (Lunar precursor and Robotic program-LPRP) के अंतर्गत चंद्रमा के लिये शुरू किया नासा का एक मिशन है।
उद्देश्य-
- चंद्रमा पर संभावित संसाधनों की पहचान करना।
- चन्द्र की सतह के विस्तृत नक्शे एकत्र करना।
- चंद्रमा के विकिरण स्तरों पर आँकड़े एकत्र करना।
- उन संसाधनों के लिये चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar regions) का अध्ययन करना जो भविष्य के मानवयुक्त मिशन या रोबोटिक सैंपल रिटर्न मिशन (Robotic Sample Return Mission) में इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
- भविष्य के रोबोटिक एक्सप्लोरर्स (Robotic Explorers), ह्यूमन लूनर लैंडिंग साइटों (Human Lunar Landing Sites) को चिह्नित करने तथा भविष्य की चन्द्र मानव अन्वेषण प्रणाली (human exploration of the Moon) हेतु उपयोग किये जा सकने वाले उपायों/तकनीकियों को ग्रहण करने के लिये मानक तय करना।
अपोलो मिशन (Apollo Mission)
- अपोलो नासा का एक कार्यक्रम था जिसका उद्देश्य पृथ्वी के अलावा अंतरिक्ष के अन्य ग्रहों तक पहुँच बढ़ाना था।
- पहली बार वर्ष 1968 में अपोलो मिशन के तहत उड़ान भरी गई। चंद्रमा पर पहला मानवयुक्त अभियान अपोलो 8 था, जिसने क्रिसमस की पूर्व संध्या पर चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगाया था। हालाँकि, अपोलो 8 चंद्रमा पर नहीं उतरा और वापस पृथ्वी पर आ गया था।
- मिशन अपोलो 11 पहली बार 20 जुलाई, 1969 को चंद्रमा की सतह पर उतरा। इस मिशन का नील आर्मस्ट्रोंग भाग थे। वह चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले पहले व्यक्ति थे।
स्रोत- टाइम्स ऑफ़ इंडिया
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सेवा व्यापार प्रतिबंध सूचकांक
चर्चा में क्यों?
भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन द्वारा देशों को उनकी सेवा व्यापार की नीतियों के आधार पर प्रदान की जाने वाली रैंकिंग पक्षपातपूर्ण है।
प्रमुख बिंदु
- हाल ही में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development- OECD) ने सेवा व्यापार प्रतिबंध सूचकांक (Services Trade Restrictiveness Index- STRI) ,2018 प्रस्तुत किया है।
- भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा कराए गए अध्ययन के अनुसार, OECD द्वारा जारी इस इंडेक्स में बड़ी संख्या में समस्याएँ हैं, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण समस्याएँ इसके प्रारूप से संबंधित हैं जिसके कारण यह उपयोग हेतु अव्यावहारिक हो जाता है।
- उदाहरण के तौर पर यह सूचकांक भारतीय सेवा क्षेत्र को सबसे अधिक प्रतिबंधात्मक क्षेत्रों में से एक के रूप में दिखाता है विशेष रूप से विदशी निवेश में, जबकि 1991 के बाद से भारत में सबसे अधिक उदारीकरण इसी क्षेत्र में हुआ है
- इस अध्यनन के पश्चात् ऐसा लगता है कि डेटा मनमाने तरीके से चुना गया है और यह विकसित देशों के पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
समाधान का एक विकल्प
- भारतीय विदेश व्यापार संस्थान ने इसे सुधारने के लिये सेवा व्यापार में प्रतिबंध को मापने का एक नया तरीका विकसित किया है जो अधिक सुसंगत होगा और विकसित या विकासशील देशों के प्रति पूर्वाग्रहग्रसित नहीं होगा।
- भारत ने हाल ही में नई दिल्ली में संपन्न विश्व व्यापार संगठन की वार्ता के दौरान कई विकासशील देशों से संपर्क किया ताकि सेवा क्षेत्र में व्यापार प्रतिबंध को मापने के नए तरीके पर आम सहमति बनाई जा सके।
सेवा व्यापार प्रतिबंध सूचकांक
(Services Trade Restrictiveness Index- STRI)
- इसकी शुरुआत 2014 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन द्वारा की गई थी।
- इसमें साधारणत: 45 देशों को शामिल किया जाता है जिसमें 36 OECD देश एवं बाकी गैर-ओईसीडी देश शामिल हैं।
- यह 22 क्षेत्रों (जैसे- कंप्यूटर सेवा, हवाई परिवहन, कानूनी सेवा, निर्माण) में सेवा व्यापार को प्रभावित करने वाले नियमों की जानकारी प्रदान करता है।
- यह सूचकांक विदेशी निवेश, विदेशों से लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध, प्रतिस्पर्द्धा में बाधाएँ, नियमन में पारदर्शिता को लेकर और अन्य भेदभावपूर्ण नीतियों के आधार पर गणना करता हैं।
- STR सूचकांक में शून्य और एक के बीच अंक प्रदान किया जाता है।
- ‘शून्य’ सेवा व्यापार में सबसे कम प्रतिबंध, जबकि ‘एक’ सबसे अधिक प्रतिबंध को सूचित करता है।
- STRI नीति निर्माताओं का ध्यान नीतियों में सुधार करने की तरफ आकृष्ट कर सकता हैं एवं वैश्विक स्तर पर सर्वोत्तम अभ्यास के लिये मानदंड उपलब्ध कर सकते हैं और उनके संभावित प्रभावों का आकलन कर सकते हैं।
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD)
- स्थापना- 1961
- मुख्यालय- पेरिस (फ्राँस)
- सदस्य देशों की संख्या- 36
- यह एक अंतर-सरकारी आर्थिक संगठन है
- इसकी स्थापना आर्थिक प्रगति और विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने हेतु की गई थी।
- अधिकांश OECD सदस्य उच्च आय वर्ग की अर्थव्यवस्थाएँ हैं, जिनका मानव विकास सूचकांक (HDI) बहुत उच्च है, और ये विकसित देशों के रूप में जाने जाते हैं।
स्रोत: द हिंदू
विविध
GFDRR के परामर्शदाता समूह की अध्यक्षता करेगा भारत
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्तीय वर्ष 2020 के लिये भारत को सर्वसम्मति से ग्लोबल फैसिलिटी फॉर डिज़ास्टर रिडक्शन एंड रिकवरी (Global Facility for Disaster Reduction and Recovery-GFDRR) के सलाहकार समूह (Consultative Group-CG) के सह-अध्यक्ष के रूप में चुना गया है।
प्रमुख बिंदु
- ऐसा पहली बार है जब भारत को GFDRR के सलाहकार समूह की बैठक की सह-अध्यक्षता का अवसर प्रदान किया गया है। इससे भारत को आपदा जोखिम न्यूनीकरण एजेंडे को आगे बढ़ाने की दिशा में एक केंद्रित योगदान प्रदान करने के साथ-साथ GFDRR के सदस्य देशों और संगठनों के साथ मिलकर काम करने का मौका भी मिलेगा।
- भारत का उद्देश्य एक केंद्रीय एजेंडे के साथ आगे बढ़ना और GFDRR की वर्तमान में संचालित गतिविधियों के साथ तालमेल स्थापित करना है।
- GFDRR भागीदारों और हितधारकों के मध्य डिज़ास्टर रेज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (Disaster Resilient Infrastructure- DRI) एक केंद्रीय विषय होगा।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2015 में भारत GFDRR के सी.जी. का सदस्य बना था। GFDRR में भारत की उम्मीदवारी को देश में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Resilient Infrastructure-DRI) में लगातार प्रगति और आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे पर एक गठबंधन बनाने संबंधी अपनी महत्त्वपूर्ण पहलों के कारण समर्थन प्रदान किया गया।
- सलाहकार समूह (CG), GFDRR का प्राथमिक निर्णयन एवं परामर्शदात्री निकाय है। सदस्यों और पर्यवेक्षकों से मिलकर बना सी.जी. GFDRR के दीर्घकालिक रणनीतिक उद्देश्यों और अपेक्षित परिणामों की देख-रेख करता है।
- CG जो कि विश्व बैंक समूह का प्रतिनिधि होता है, में एक अध्यक्ष और एक सह-अध्यक्ष होता है।
ग्लोबल फैसिलिटी फॉर डिज़ास्टर रिडक्शन एंड रिकवरी
Global Facility for Disaster Reduction and Recovery
- GFDRR एक वैश्विक साझेदारी है जो विकासशील देशों को प्राकृतिक खतरों और जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी भेद्यता को बेहतर ढंग से समझने एवं नुकसान को कम करने में सहायता प्रदान करती है।
- यह विश्व बैंक द्वारा प्रबंधित अनुदान पोषित तंत्र है, जो दुनिया भर में आपदा जोखिम प्रबंधन परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करता है।
- GFDRR की स्थापना सितंबर 2006 में विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और द्विपक्षीय दाताओं की एक वैश्विक साझेदारी के रूप में हुई थी।
इसके निम्नलिखित मिशन हैं:
- देश की विकास रणनीतियों में आपदा शमन और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन (Climate Change Adaptation-CCA) तथा आपदा न्यूनीकरण (International Strategy for Disaster Reduction-ISDR) प्रणाली हेतु अंतर्राष्ट्रीय रणनीति के तहत विभिन्न हितधारकों के बीच वैश्विक एवं क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना एवं मज़बूती प्रदान करना।
- देश की विकास रणनीतियों में आपदा न्यूनीकरण और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (CCA) को शामिल करना,
- आपदा न्यूनीकरण (ISDR) प्रणाली के लिये अंतर्राष्ट्रीय रणनीति के तहत विभिन्न हितधारकों के बीच वैश्विक और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना एवं मज़बूती प्रदान करना।
- आपदा जोखिम प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को विकास रणनीतियों और निवेश कार्यक्रमों में एकीकृत करने तथा आपदाओं से जल्द एवं प्रभावी ढंग से उबरने में देशों की मदद करके GFDRR आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction) के कार्यान्वयन में योगदान करता है।
सेंदाई फ्रेमवर्क क्या है?
- सेंदाई फ्रेमवर्क एक प्रगतिशील ढाँचा है और इस महत्त्वपूर्ण फ्रेमवर्क का उद्देश्य वर्ष 2030 तक आपदाओं के कारण महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को होने वाले नुकसान एवं प्रभावित लोगों की संख्या को कम करना है।
- यह 15 वर्षों के लिये स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी समझौता है, जिसके अंतर्गत आपदा जोखिम को कम करने के लिये राज्य की भूमिका को प्राथमिक माना जाता है, लेकिन यह ज़िम्मेदारी अन्य हितधारकों समेत स्थानीय सरकार एवं निजी क्षेत्र के साथ साझा की जानी चाहिये।
सात वैश्विक लक्ष्य
- वर्ष 2030 तक 2005-2015 की अवधि के मुकाबले 2020-2030 के दशक में औसत वैश्विक मृत्यु दर को प्रति 100,000 तक कम करना।
- वर्ष 2030 तक 2005-2015 की अवधि की तुलना में 2020-2030 के दशक में वैश्विक रूप से आपदा प्रभवित लोगों की औसत संख्या को प्रति 100,000 तक कम करने का लक्ष्य है।
- वर्ष 2030 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के संबंध में प्रत्यक्ष आपदा से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करना।
- वर्ष 2030 तक आपदा से होने वाली क्षति तथा साथ ही स्वास्थ्य और शैक्षिक सुविधाओं एवं महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और बुनियादी सेवाओं में व्यवधान को कम करना।
- वर्ष 2020 तक राष्ट्रीय और स्थानीय आपदा जोखिम में कमी की रणनीति अपनाने वाले देशों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि करना।
- वर्ष 2030 तक इस फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन के लिये अपने राष्ट्रीय कार्यों की पूर्ति हेतु पर्याप्त और सतत् समर्थन के माध्यम से विकासशील देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- वर्ष 2030 तक मल्टी-हज़ार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम, आपदा जोखिम की जानकारी तथा आकलन की उपलब्धता में पर्याप्त वृद्धि करके लोगों की इन तक पहुँच सुनिश्चित करना।
चार प्रमुख कार्य
- आपदा जोखिम का अध्ययन।
- आपदा जोखिम प्रबंधन में सुधार करना।
- ढाँचागत और गैर-ढाँचागत उपायों के ज़रिये आपदा जोखिम को कम करने के लिये निवेश करना।
- आपदा का सामना करने के लिये तैयारी, पूर्व सूचना एवं आपदा के बाद बेहतर पुनर्निर्माण कार्य करना।
- उल्लेखनीय है कि सेंदाई फ्रेमवर्क को ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (HFA) 2005-2015 के बाद लाया गया है।
- ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन आपदाओं में कमी लाने के लिये राष्ट्रों और समुदायों के बीच लचीलेपन का व्यवहार किये जाने के साथ क्षेत्रों में सभी अलग-अलग लोगों को आवश्यक कार्यों को समझाने, वर्णन करने एवंविस्तार करने संबंधी पहली योजना है।
- UNISDR, सेंदाई फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन, अनुवर्ती (फॉलो अप) और समीक्षा का कार्य करता है।
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (15 May)
- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) ने कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र की स्टार्टअप कंपनियों में इक्विटी निवेश के लिये 700 करोड़ रुपए के उद्यम पूंजी कोष बनाने की घोषणा की। नाबार्ड अभी तक अन्य कोषों में योगदान करता रहा है और यह पहली बार है कि जब उसने अपना कोष पेश किया है। नाबार्ड की अनुषंगी कंपनी नैबवेंचर्स ने यह कोष पेश किया है। इसके लिये 500 करोड़ रुपए की पूंजी का प्रस्ताव किया गया है। साथ ही ओवर-सब्सक्रिप्शन के लिये 200 करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी का भी विकल्प है। यह कोष कृषि, खाद्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में काम करने वाली स्टार्टअप कंपनियों में निवेश करेगा। इस कोष से भारत में कृषि, खाद्य एवं ग्रामीण आजीविका जैसे क्षेत्रों में निवेश तंत्र को लाभ मिलने की उम्मीद है। ज्ञातव्य है कि नाबार्ड ने अब तक 16 वैकल्पिक निवेश कोषों में 273 करोड़ रुपए का योगदान किया है।
- अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर कम होने के बजाय और बढ़ गया है। अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले 200 अरब डॉलर के सामानों पर आयात शुल्क 10 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया है और यह 10 मई से लागू हो गया है। अमेरिका का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब चीन का प्रतिनिधिमंडल इस मसले के समाधान के लिये अमेरिका में है, जिसके प्रमुख चीन के उप-प्रधानमंत्री हैं। ज्ञातव्य है कि विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच पिछले 10 महीने से ट्रेड वॉर की स्थिति बनी हुई है और इस गतिरोध को दूर करने के लिये अमेरिका और चीन के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। अमेरिका के कस्टम एवं बॉर्डर प्रोटेक्शन विभाग ने चीन के 5,700 से अधिक प्रभावित उत्पादों की श्रेणियों पर शुल्क 10 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करने की घोषणा की है। इसके बाद चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिका से आने वाले 60 अरब डॉलर के विभिन्न प्रकार की वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाकर क्रमश: 25, 20 और 10 फीसदी करने का फैसला किया है, जो 1 जून से लागू होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज देने के लिये राज़ी हो गया है। दोनों के बीच इसे लेकर एक समझौता हुआ है जिसके तहत IMF पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिये तीन वर्षों में 6 अरब डॉलर (लगभग 42 हज़ार करोड़ रुपए) देगा। यह समझौता वाशिंगटन में IMF बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की औपचारिक मंज़ूरी मिलने के बाद अमल में आएगा। इस बेलआउट पैकेज के लिये पाकिस्तान ने IMF की उन कड़ी शर्तों पर सहमति जताई है जिनमें सरकार को महँगाई, अत्यधिक कर्ज़ और सुस्त विकास की समस्याओं से निपटने की ज़रूरत को स्वीकार करना शामिल है। गौरतलब है कि पाकिस्तान 1950 में IMF का सदस्य बना था, जिसके बाद से अब तक वह 21 बार बेलआउट पैकेज ले चुका है और यह उसका 22वाँ बेलआउट पैकेज होगा। इस बेलआउट पैकेज के लिये पाकिस्तान को अपने वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नर को भी हटाना पड़ा था।
- दुनिया से प्लास्टिक कचरे की समस्या को खत्म करने के लिये 187 देशों ने तय किया है कि अमीर देशों से गरीब देशों में प्लास्टिक कचरा नहीं भेजा जाएगा। इन देशों ने स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में हुए कार्यक्रम में एक संधि पर हस्ताक्षर किये हैं। इस संधि के तहत दूषित प्लास्टिक वेस्ट को किसी देश के पास भेजने से पहले उस देश की अनुमति ली जाएगी। अमेरिका ने इस संधि में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। गौरतलब है कि इन देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से लड़ने के लिये बेसेल कन्वेंशन (Basel Convention) में प्लास्टिक समस्या को जोड़ने का फैसला लिया है। बेसेल कन्वेंशन वह संधि है जो एक देश से दूसरे देश को भेजे जाने वाले हानिकारक पदार्थों के आवागमन को नियंत्रित करती है। World Wide Fund (WWF) के मुताबिक PE, PP और PET प्लास्टिक कचरे को इससे छूट दी गई है।
- भारत में हैदराबाद के राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को दुनिया के टॉप-10 हवाई अड्डों में शामिल किया गया है। इसे टॉप 10 में आठवाँ स्थान मिला है। एयरहेल्प ने 2019 के लिये वार्षिक रेटिंग जारी की है जिसके अनुसार कतर, जापान और ग्रीस के हवाई अड्डे क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं, लेकिन टॉप-10 हवाई अड्डों की सूची में अमेरिका और चीन का एक भी हवाई अड्डा शामिल नहीं है। एयरहेल्प ने अपने और कई अन्य औद्योगिक वेंडरों के डेटाबेस के आधार पर यह रैंकिंग जारी की है। साथ ही इसने 40 देशों के 40 हज़ार यात्रियों से हवाई अड्डों के सुविधा संबंधी सवालों के आधार पर रैंकिंग दी है। नियत समय पर उड़ान, गुणवत्तापूर्ण भोजन व खरीदारी की सुविधा आदि के आधार पर भी रैंकिंग का निर्धारण किया गया।
- विश्व स्तर पर चर्चित और प्रसिद्ध कान फिल्म समारोह 14 से 25 मई तक फ्राँस के शहर कान (Cannes) में आयोजित किया जा रहा है। कान फिल्म समारोह का यह 72वाँ संस्करण है। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (IFFI) के 50 साल पूरे होने के अवसर पर भारत इस समारोह में एक विशेष पोस्टर जारी करेगा तथा IFFI के गोल्डन जुबली संस्करण का प्रचार करेगा। IFFI का आयोजन इस साल के आखिर में गोवा में होगा। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय प्रोडक्शन हाउसेज़ के साथ फिल्मों में सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत को एक ‘पोस्ट-प्रोडक्शन’ केंद्र के तौर पर भी पेश किया जाएगा।
- गृह मंत्रालय ने गैर-सरकारी संगठन (NGO) इन्फोसिस फाउंडेशन के खिलाफ विदेशी चंदा प्राप्त करने के नियमों के कथित उल्लंघन के मामले में कार्रवाई करते हुए उसका रजिस्ट्रेशन निरस्त कर दिया है। ज्ञातव्य है कि सरकारी संगठनों को विदेशी चंदा (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत रजिस्ट्रेशन कराना होता है तथा ऐसे किसी चंदे का हिसाब-किताब संगठन को हर साल वित्त वर्ष समाप्त होने के बाद नौ माह के भीतर सरकार को देना होता है। दूसरी तरफ वर्ष 1996 से शिक्षा, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य सेवा, कला और संस्कृति आदि क्षेत्रों में काम कर रहे इन्फोसिस फाउंडेशन का कहना है कि FCRA में 2016 में किये गए संशोधन के बाद उनका संगठन इस अधिनियम के दायरे में नहीं आता। गृह मंत्रालय ने पिछले वर्ष 1755 गैर-सरकारी संगठनों को नोटिस दिये थे, जिसमें कुछ कंपनियाँ भी शामिल हैं।
- कई नामी फिल्म कलाकारों को अभिनय की ABC सिखाने वाले एक्टिंग गुरु रोशन तनेजा का 87 वर्ष की आयु में मुंबई में निधन हो गया। रोशन तनेजा ने हिंदी फिल्म जगत के शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह, जया बच्चन, अनिल कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे कलाकारों को एक्टिंग की ट्रेनिंग दी थी। वह 1960 के दशक से एक्टिंग की ट्रेनिंग देते आ रहे थे, जिसकी शुरुआत FTII, पुणे से हुई थी। FTII की शुरुआत 1961 में हुई थे जहाँ उन्होंने 1963 में एक्टिंग विभाग की स्थापना की थी इसके बाद 1975 में वहाँ से इस्तीफा देकर उन्होंने मुंबई में रोशन तनेजा स्कूल ऑफ एक्टिंग की शुरुआत की।