भारत-पुर्तगाल संबंध
प्रीलिम्स के लियेगोवा मुक्ति दिवस मेन्स के लियेभारत-पुर्तगाल संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि |
चर्चा में क्यों?
14 फरवरी 2020 को पुर्तगाल के राष्ट्रपति मार्सेलो रिबेलो डी सूजा (Marcelo Rebelo de Sousa) भारत की यात्रा पर आए। इस बीच भारत और पुर्तगाल के मध्य 14 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए।
प्रमुख बिंदु
- पुर्तगाली राष्ट्रपति का स्वागत करते हुए राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि पुर्तगाल-भारत के संबंध बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। भारत और पुर्तगाल के बीच 500 वर्षों का साझा इतिहास है।
- दोनों देश संस्कृति, भाषा और वंश परंपरा के माध्यम से गोवा तथा मुंबई के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं।
- भारत-पुर्तगाल द्विपक्षीय कार्ययोजना ने कई गुना विस्तार किया है। दोनों देश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, रक्षा, शिक्षा, नवाचार और स्टार्ट-अप, पानी तथा पर्यावरण सहित अन्य विषयों पर सहयोग कर रहे हैं।
- आतंकवाद पूरी दुनिया के लिये गंभीर खतरा है। दोनों देशों को इस वैश्विक खतरे से निपटने के लिये आपसी सहयोग को और मज़बूत करना चाहिये।
- जलवायु परिवर्तन आज एक दबावकारी वैश्विक चुनौती है। भारत निकट भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में पुर्तगाल के शामिल होने की उम्मीद कर रहा है।
- दोनों देशों के बीच समुद्री विरासत, समुद्री परिवहन एवं बंदरगाह विकास, प्रवास तथा गतिशीलता, स्टार्ट-अप, बौद्धिक संपदा अधिकार, उत्पादन, योग, राजनयिक प्रशिक्षण, वैज्ञानिक अनुसंधान, सार्वजनिक नीति, एयरोस्पेस, नैनो-जैव प्रौद्योगिकी और ऑडियो विज़ुअल के क्षेत्र में 14 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- भारत और पुर्तगाल के बीच लगभग 500 वर्षों का साझा इतिहास है। पुर्तगाली नाविक वास्को-डी-गामा ने अफ्रीका महाद्वीप के रास्ते मई 1498 में भारत के कालीकट बंदरगाह पर पहुँचकर यूरोप और दक्षिण एशिया के मध्य प्रत्यक्ष मार्ग स्थापित कर दिया।
- इससे पूर्व वेटिकन और अरब के व्यापारियों द्वारा यूरोप से भारत जाने के लिये भूमध्य सागर से होते हुए अरब सागर का मार्ग चुना जाता था।
- भारत में पुर्तगाली औपनिवेशिक युग का प्रारंभ 1502 ई में हुआ, जब पुर्तगाली साम्राज्य ने कोल्लम (पूर्व में क्विलोन), केरल में पहला यूरोपीय व्यापारिक केंद्र स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने दीव, दमन, दादरा और नगर हवेली सहित भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कई अन्य परिक्षेत्रों का अधिग्रहण किया।
- 1510 ई में गोवा पुर्तगाली साम्राज्य की राजधानी बना।
- भारत और पुर्तगाल के बीच आत्मीय संबंध वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भी अनवरत रूप से ज़ारी हैं, साथ ही दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत वर्ष 1949 में होती है।
गोवा विवाद व स्वतंत्रता
- वर्ष 1946 में समाजवाद के प्रणेता डॉ राम मनोहर लोहिया गोवा पहुँचे, वहाँ पर गोवा की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा हुई। लोहिया ने गोवा में सविनय अवज्ञा आंदोलन किया। आंदोलन का महत्त्व यह था कि गोवा 435 वर्षों में पहली बार स्वतंत्रता के लिये आवाज उठा रहा था।
- स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल ने सभी रियासतों को मिलाकर भारत को एक संघ राज्य का रूप दिया। वे गोवा को भी भारतीय संघ राज्य क्षेत्र में शामिल करना चाहते थे, परंतु ऐसा नहीं हो पा रहा था क्योंकि 1510 ई से गोवा और दमन एवं दीव में पुर्तगालियों का औपनिवेशिक शासन था।
- 27 फरवरी, 1950 को भारत सरकार ने पुर्तगाल से भारत में मौजूद कॉलोनियों के संबंध में बातचीत करने का आग्रह किया। लेकिन पुर्तगाल ने बातचीत करने से साफ इनकार कर दिया। पुर्तगाल का कहना था कि गोवा उसका उपनिवेश नहीं है बल्कि महानगरीय पुर्तगाल का हिस्सा है, इसलिये इसे भारत को नहीं दिया जा सकता। इसके चलते भारत के पुर्तगाल के साथ कूटनीतिक संबंध खराब हो गए।
- वर्ष 1954 में गोवा से भारत के विभिन्न हिस्सों में जाने के लिये वीज़ा लेना ज़रूरी हो गया। इसी बीच गोवा में पुर्तगाल के खिलाफ आंदोलन तेज़ हो गया और वर्ष 1954 में ही दादरा एवं नगर हवेली के कई क्षेत्रों पर भारतीयों ने अपना कब्जा स्थापित कर लिया।
- भारत सरकार ने एक बार पुनः पुर्तगाली सरकार से बातचीत करने का प्रयास किया परंतु वार्ता के विफल रहने पर गोवा में सामान्य जन-जीवन बहाल करने के उद्देश्य से 18 दिसंबर, 1961 को भारत की सेना ने गोवा, दमन और दीव में हमला कर दिया।
- 19 दिसंबर, 1961 को पुर्तगाली सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और गोवा को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। प्रतिवर्ष 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस (Goa Libration Day) के रूप में मनाया जाता है।
वर्तमान स्थिति
- वर्तमान में भारत-पुर्तगाल संबंध आत्मीय व मित्रतापूर्ण हैं। पुर्तगाल बहु क्षेत्रीय मंचों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये अनवरत रूप से समर्थन करता रहा है। पुर्तगाल ने वर्ष 2011-12 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के लिये भी भारत का समर्थन किया था।
- अक्तूबर 2005 में पुर्तगाल ने अबू सलेम और मोनिका बेदी को भारत में प्रत्यर्पित किया। भारत में जघन्य आरोपों का सामना करने वाले व्यक्ति का प्रत्यर्पण कराने वाला पुर्तगाल यूरोपीय संघ का पहला देश बना।
- अक्तूबर 2015 में नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण करने में सहयोग हेतु भारत सरकार के साथ समझौता करने वाला पुर्तगाल यूरोपीय संघ का पहला देश बना।
- नवंबर 2017 में भारत ने लिस्बन में आयोजित वेब समिट में भाग लिया और हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के कार्यान्वयन के लिये रोडमैप पर चर्चा की।
- फरवरी 2018 में जल संरक्षण और कचरा प्रबंधन के विषय पर विमर्श करने के लिये गोवा सरकार का उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल पुर्तगाल की यात्रा पर गया था।
- अक्तूबर 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा (Antonio Costa) भारत की यात्रा पर आए।
स्रोत: PIB
नीदरलैंड की डिजिटल पहचान योजना पर निर्णय
प्रीलिम्स के लिये:सिस्टम रिस्क इंडिकेटर, डेटा संरक्षण विधेयक 2019 मेन्स के लिये:गोपनीयता एवं मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीदरलैंड की एक अदालत ने डेटा गोपनीयता और मानवाधिकारों की चिंता के कारण सिस्टम रिस्क इंडिकेटर (System Risk Indicator- SyRI) नामक एक डिजिटल पहचान तंत्र के खिलाफ फैसला सुनाया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- ऐसे समय जब भारत में पहचान, नागरिकता और गोपनीयता जैसे प्रासंगिक प्रश्न हैं, डच ज़िला न्यायालय का यह फैसला दुनिया के कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली एवं गोपनीयता से संबंधित मुद्दों को संदर्भित करता है।
डिजिटल पहचान योजना क्या थी?
- डच सामाजिक मामलों के मंत्रालय ने वर्ष 2014 में SyRI को उन लोगों के लिये विकसित किया था जो धोखाधड़ी के माध्यम से सरकारी लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
- डच संसद द्वारा पारित इस विधान ने सरकारी एजेंसियों को एक निजी कंपनी के साथ कल्याणकारी डेटा जैसे- कर, भूमि रजिस्ट्री, रोज़गार रिकॉर्ड और वाहन पंजीकरण से संबंधित 17 श्रेणियों के डेटा को साझा करने की अनुमति दी थी।
SYRI की कार्यप्रणाली
- यह एल्गोरिदम पर आधारित है जो सरकार द्वारा प्रदान किये गए डेटा (जैसे कर, भूमि रजिस्ट्रियाँ, रोज़गार रिकॉर्ड आदि) का विश्लेषण करता है और जोखिम स्कोर की गणना करता है।
- गणना किये गए जोखिम स्कोर प्रासंगिक संस्थाओं को भेजे जाते हैं, जो इन्हें अधिकतम दो वर्षों के लिये सरकारी डेटाबेस पर संग्रहीत करता है।
- सरकार इस समयावधि में लक्षित व्यक्ति की जाँच शुरू कर सकती है।
डच ज़िला न्यायालय के तर्क
- डच ज़िला न्यायालय का मानना है कि SyRI यूरोपीय मानवाधिकार कानून के साथ-साथ यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन द्वारा प्रदत्त गोपनीयता की गारंटी का उल्लंघन करता है।
- आलोचकों द्वारा इसकी इस आधार पर आलोचना की गई कि एल्गोरिथमिक व्यवस्था गरीबी और अप्रवासी जैसी स्थितियों को धोखाधड़ी के जोखिम के साथ जोड़ती है।
- डच न्यायालय का मानना था कि इस प्रकार के अपारदर्शी एल्गोरिथमिक निर्णय से नागरिकों को नुकसान हो सकता है जिससे देश की लोकतांत्रिक विशेषताओं को नुकसान होगा।
- न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि SyRI पारदर्शिता और डेटा न्यूनता (Data Minimisation) के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
डच सरकार के तर्क
- सरकार का तर्क था कि इस नई तकनीक ने धोखाधड़ी को रोकने में सफलता पाई है और यह अंतिम निर्धारण के बजाय आगे की जाँच के लिये केवल एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में कार्य करता है।
- डच सामाजिक मामलों के मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है कि वह संपूर्ण निर्णय का अध्ययन करेगा तथा उनके सिस्टम को पूरी तरह से हटाया नहीं जाएगा।
न्यायालय के निर्णय का महत्त्व
- यह निर्णय सरकारी निगरानी के खिलाफ डेटा संरक्षण विनियमन का उपयोग करने का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
- ध्यातव्य है कि स्वीडन और फ्राँस में छात्रों पर फेसिअल रिकॉग्निशन प्रणाली के उपयोग सहित अन्य यूरोपीय तकनीकी पहलों को यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन द्वारा रोक दिया गया है।
- यह निर्णय वैश्विक स्तर पर एक मिसाल कायम करता है, ध्यातव्य है कि वैश्विक स्तर पर यह पहला मामला है जब डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उपयोग एवं मानवाधिकारों के आधार पर सरकारी अधिकारियों द्वारा डिजिटल जानकारी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
- उक्त निर्णय यह भी प्रदर्शित करता है कि विधायी नियमों को सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में प्रौद्योगिकी के उपयोग और नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण हेतु संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
नीदरलैंड के न्यायालय का निर्णय एवं भारत
- इसी प्रकार गोपनीयता संबंधी मुद्दे पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आधार (Aadhar) आईडी के उपयोग को सीमित किया था, जिस प्रकार हेग के न्यायालय ने व्यक्तिगत गोपनीयता के साथ सामाजिक हित को संतुलित करने का प्रयास किया। हालाँकि आधार निर्णय एल्गोरिथमिक निर्णय लेने से संबंधित नहीं था बल्कि यह डेटा संग्रह से संबंधित था।
- भारत के प्रस्तावित डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 में कई खामियाँ हैं जिनका अमेरिका के कानून की तरह फायदा उठाया जा सकता है। इस प्रकार इस निर्णय से सीख ली जा सकती है और विधेयक में व्याप्त खामियों को दूर किया जा सकता है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
दो बच्चों की नीति: समय की आवश्यकता
प्रीलिम्स के लियेनिजी विधेयक या गैर सरकारी विधेयक मेन्स के लियेदो बच्चों की नीति के पक्ष व विपक्ष में तर्क |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा के एक सदस्य द्वारा दो बच्चों की नीति से संबंधित एक निजी विधेयक या गैर सरकारी विधेयक (Private Member Bill) सदन में प्रस्तुत किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- इस संविधान संशोधन विधेयक में उन लोगों के लिये कराधान, शिक्षा और रोज़गार के प्रोत्साहन का प्रस्ताव है जो अपने परिवार का आकार दो बच्चों तक सीमित रखते हैं।
- विधेयक में संविधान के भाग-IV में एक नए प्रावधान को शामिल करने की मांग की गई है, जो ऐसे लोगों से सभी रियायतें वापस लेने से संबंधित हैं और जो ‘छोटे-परिवार’ के मानदंड का पालन करने में विफल रहते हैं।
- विधेयक संविधान में अनुच्छेद-47 के बाद अनुच्छेद-47A के सम्मिलन का प्रस्ताव करता है।
- प्रस्तावित अनुच्छेद 47A के अनुसार “राज्य, बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने की दृष्टि से छोटे परिवार को बढ़ावा दें। जो लोग अपने परिवार को 2 बच्चों तक सीमित रखते हैं उन्हें कर, रोज़गार और शिक्षा आदि में प्रोत्साहन देकर बढ़ावा दिया जाए और जो लोग इस नीति का पालन न करें उनसे सभी तरह की छूट वापस ले ली जाए।
- इससे पूर्व मार्च 2018 में दो बच्चों की नीति की आवश्यकता पर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि नीति निर्माण न्यायालय का कार्य नहीं है। यह संसद से संबंधित मामला है और न्यायालय इसमें दखल नहीं दे सकता।
निज़ी विधेयक से तात्त्पर्य
- इसे गैर सरकारी विधेयक के नाम से भी जाना जाता है। यह संसद के किसी भी सदन में मंत्रिपरिषद के सदस्य के अलावा सदन के किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
- यह किसी सार्वजनिक महत्त्व के मामले पर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिये प्रस्तुत किया जाता है।
- ऐसे प्रस्ताव को सदन में पेश करने के लिये 1 माह पूर्व नोटिस देना आवश्यक है।
नीति के पक्ष में तर्क
- जनसंख्या बढ़ने से बेरोज़गारी, गरीबी, अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य और प्रदूषण जैसी समस्याएँ उत्पन्न होंगी। इसलिये दो बच्चों की नीति इस दिशा में एक कारगर उपाय सिद्ध होगा।
- वर्ष 2050 तक देश की शहरी आबादी दोगुनी हो जाएगी, जिसके चलते शहरी सुविधाओं में सुधार और सभी को आवास उपलब्ध कराने की चुनौती होगी, साथ ही पर्यावरण को भी मद्देनज़र रखना ज़रूरी होगा।
- आय का असमान वितरण और लोगों के बीच बढ़ती असमानता अत्यधिक जनसंख्या के नकारात्मक परिणामों के रूप में सामने आएगा।
- जहाँ एक ओर जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है तो वहीं दूसरी ओर कृषि योग्य भूमि तथा खाद्य फसल के उत्पादन में कमी हो रही है जिससे लोगों के समक्ष खाद्यान्न का संकट उत्पन्न हो रहा है।
नीति के विपक्ष में तर्क
- नीति के क्रियान्वयन में बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी और गर्भपात जैसे उपाय अपनाए जाने की आशंका है।
- इस नीति से वृद्ध लोगों की जनसंख्या बढ़ती जाएगी तथा वृद्ध लोगों को सहारा देने के लिये युवा जनसंख्या में कमी आ जाएगी।
- इस नीति से हम जनसांख्यिकीय लाभांश की अवस्था को खो देंगे।
जनसंख्या नियंत्रण के अन्य उपाय
- आयु की एक निश्चित अवधि में मनुष्य की प्रजनन दर अधिक होती है। यदि विवाह की आयु में वृद्धि की जाए तो बच्चों की जन्म दर को नियंत्रित किया जा सकता है।
- शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार तथा लोगों के अधिक बच्चों को जन्म देने के दृष्टिकोण को परिवर्तित करना।
- भारतीय समाज में किसी भी दंपत्ति के लिये संतान प्राप्ति आवश्यक समझा जाता है तथा इसके बिना दंपत्ति को हेय दृष्टि से देखा जाता है, यदि इस सोच में बदलाव किया जाता है तो यह जनसंख्या में कमी करने में सहायक होगा।
आगे की राह
- जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है किंतु इसके नियंत्रण के लिये क़ानूनी तरीका एक उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। भारत की स्थिति चीन से पृथक है तथा चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में निर्णय लेने का अधिकार है।
- भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय अपनाकर जनसंख्या नियंत्रण के लिये प्रयास करना चाहिये।
- परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये तथा ऐसे परिवार जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं अपनाया है उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
यूएसटीआर, विकासशील देशों की सूची और भारत
प्रीलिम्स के लिये:युएसटीआर, काउंटर वेलिंग ड्यूटी (Countervailing Duty-CVD) मेंस के लिये:भारत अमेरिका व्यापार और अमेरिकी संरक्षणवाद |
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी वाणिज्य मामलों की एजेंसी यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेन्टेटिव (United States Trade Representative- USTR) ने विकासशील एवं अल्प विकसित देशों की नई सूची जारी की है।
मुख्य बिंदु:
- USTR द्वारा जारी की गई इस सूची के अंतर्गत शामिल देशों को ‘काउंटर वेलिंग ड्यूटी’ इन्वेस्टीगेशन के संदर्भ में रियायत दी जाती है।
क्या है काउंटर वेलिंग ड्यूटी (CVD)?
- यह आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला एक कर है जिसका प्रयोग आयातित वस्तुओं पर दी जाने वाली सब्सिडी के प्रभाव को न्यून करने के लिये होता है।
- इस कर का उद्देश्य आयातित वस्तु के संदर्भ में किसी समान प्रकृति के घरेलू उत्पाद को मूल्य प्रतिस्पर्द्धा में पिछड़ने से बचाना है।
- यह एक प्रकार का एंटी-डंपिंग टैक्स होता है। डंपिंग अर्थात् जब कोई वस्तु/उत्पाद किसी देश द्वारा दूसरे देश को उसके सामान्य मूल्य से कम कीमत पर निर्यात किया जाता है। यह एक अनुचित व्यापार अभ्यास है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर एक विकृत प्रभाव डाल सकता है।
पृष्ठभूमि:
- ध्यातव्य है कि अमेरिकी एजेंसी USTR ने वर्ष 1998 में विश्व व्यापार संगठन के सब्सिडी व काउंटर वेलिंग ड्यूटी से संबंधित अनुबंधों के आलोक में विभिन्न देशों को उनके विकास स्तर के अनुसार सूचीबद्ध किया था।
- इस सूची के प्रयोग से USTR यह तय करता है कि किन देशों को रियायत दी जाएगी और कौन से देश काउंटर वेलिंग ड्यूटी के अंतर्गत शामिल होंगे।
- आमतौर पर जिन देशों को इन विशिष्ट श्रेणियों में नहीं रखा जाता है वे काउंटर वेलिंग ड्यूटी से अपेक्षाकृत कम सुरक्षित रहते हैं।
- आयात बहुत कम होने या आयात पर मिलने वाली सब्सिडी अति-न्यून होने की स्थिति में CVD को समाप्त किया जा सकता है।
- 10 फरवरी, 2020 तक भारत USTR के विकासशील देशों की सूची में शामिल था जिसकी वजह से उसे आयात पर नियत सीमा से अधिक छूट प्राप्त थी किंतु सूची से बाहर होने के कारण अब भारतीय उत्पादों को आयात और सब्सिडी से संबंधित रियायतें नहीं दी जाएंगी।
- नई सूची में 36 विकासशील और 44 अल्पविकसित देश शामिल किये गए हैं।
- यदि कोई देश किसी वस्तु का 3% से कम आयात (अमेरिका में उस वस्तु के कुल आयात का) करता है तो इसे उस वस्तु का नगण्य आयात माना जाएगा। विशेष परिस्थितियों में यह सीमा 4% है।
- किसी वस्तु का अमेरिका में विभिन्न देशों का कुल आयात 7% होने पर उसे नगण्य आयात की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा।
- कोई देश कम आय वाले देशों की श्रेणी में रखा जाएगा या नहीं इसका निर्धारण USTR निम्नलिखित बिंदुओं के आलोक में करता है ।
- प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय या GNI
- विश्व व्यापार में हिस्सेदारी
- अन्य कारक जैसे आर्गेनाईजेशन फॉर इकोनोमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की सदस्यता या सदस्यता के लिये आवेदन, यूरोपियन यूनियन की सदस्यता या G20 की सदस्यता।
- भारत, ब्राज़ील, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम को इस सूची से बाहर कर दिया गया है। जहाँ इन सभी देशों की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी कम-से-कम 0.5% है, वहीं सकल राष्ट्रीय आय 12,375 डॉलर (विश्व बैंक के द्वारा उच्च आय वाले देशों की सीमा) से कम है।
- USTR के अनुसार, G20 का सदस्य होने के कारण भारत को विकासशील देशों की सूची में स्थान नहीं दिया गया है।
- USTR के अनुसार, G20 का आर्थिक प्रभाव और विश्व व्यापार में हिस्सेदारी सदस्य देशों का विकसित होना सुनिश्चित करती है।
भारत पर प्रभाव:
- अब तक भारत के लिये भारत-अमेरिका व्यापार संबंध काफी फ़ायदेमंद रहा है। वर्ष 2018 में अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार (कुल निर्यात का तक़रीबन 16.0%) था। तथाकथित नियमों में बदलाव के कारण भारतीय निर्यात प्रभावित होगा।
अमेरिका पर प्रभाव:
- USTR के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत और अमेरिका के बीच 142.6 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ इसमें अमेरिकी निर्यात 58.7 बिलियन डॉलर का तथा भारतीय आयात 83.9 बिलियन डॉलर मूल्य का था जिसके कारण अमेरिका का भारत से व्यापार घाटा वर्ष 2018 में 25.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- अमेरिका के द्वारा व्यापारिक नियमों में बदलाव कर व्यापार घाटे को कम करने की कोशिश की जा रही है।
आगे की राह:
- भारत और अमेरिका के बीच चल रहे द्विपक्षीय व्यापार मतभेदों का हल निकालने के लिये दोनों देशों की तरफ से प्रयास किये जा रहे हैं।
- भारत और अमेरिका एशिया में एक बड़े सामरिक साझीदार बनकर उभर रहे हैं ऐसे में भारत के द्वारा चीन को काउंटर करने के लिये अमेरिका के साथ संबंधों का बेहतर होना बेहद ज़रूरी है।
क्या है USTR?
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका की एक एजेंसी है, जिसकी स्थापना सन 1962 ई. में स्पेशल ट्रेड रिप्रेजेन्टेटिव के रूप में हुई थी।
- यह एजेंसी संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये व्यापार नीति विकसित करने और इस संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति से सिफारिश करने के लिये उत्तरदायी है तथा इसके द्वारा ही द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर व्यापार वार्ता आयोजित की जाती है ।
नासा के चार प्रस्तावित अंतरिक्ष अनुसंधान मिशन
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन, डेविंसी प्लस, आयो वॉल्केनो ऑब्ज़र्वर, ट्राईडेंट, वेरिटस मेन्स के लिये:नासा के चार अंतरिक्ष अनुसंधान मिशन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration-NASA) ने घोषणा की है कि उसने नए संभावित मिशनों की अवधारणा संबंधी अध्ययन के लिये चार अनुसंधान कार्यक्रमों का चयन किया है।
मुख्य बिंदु:
- NASA ने चार आगामी मिशनों का प्रस्ताव रखा है जिनमें से दो मिशनों को शुक्र ग्रह और एक-एक मिशन का प्रस्ताव बृहस्पति के उपग्रह आयो (Io) और वरुण के उपग्रह ट्राइटन (Triton) के परीक्षण के लिये रखा है।
- इन मिशनों का अंतिम चयन वर्ष 2021 में किया जाएगा।
NASA के प्रस्तावित अंतरिक्ष अनुसंधान मिशन:
- डेविंसी प्लस (DAVINCI+):
- NASA द्वारा प्रस्तावित इस मिशन का उद्देश्य शुक्र ग्रह पर उपस्थित नोबल गैसों, इसके रासायनिक संगठन, इमेजिंग प्लस (दृश्यों के माध्यम से शुक्र की आतंरिक सतह का परीक्षण) तथा वायुमंडलीय सर्वेक्षण करना है।
- इस मिशन के माध्यम से शुक्र के वायुमंडल तथा इसके गठन और विकास का विश्लेषण किया जाएगा तथा इस ग्रह पर पूर्व में महासागर की उपस्थिति की जाँच की जाएगी।
- यह मिशन स्थलीय ग्रहों के गठन की समझ को विकसित करने में सहायता करेगा।
- आयो वॉल्केनो ऑब्ज़र्वर (Io Volcano Observer-IVO):
- NASA द्वारा प्रस्तावित IVO मिशन का उद्देश्य बृहस्पति के उपग्रह आयो का परीक्षण करना है, जिस पर कई सक्रिय ज्वालामुखी उपस्थित हैं।
- इस मिशन के माध्यम से यह पता लगाने की कोशिश भी की जाएगी कि ज्वारीय बल ग्रहों की आकृति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
- इस मिशन द्वारा प्राप्त निष्कर्षों से सौरमंडल में चट्टानों, स्थलीय निकायों और बर्फीले महासागरों के गठन और विकास के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकेगी।
- ट्राईडेंट (TRIDENT):
- इसका उद्देश्य वरुण ग्रह के बर्फीले उपग्रह ट्राइटन (Triton) का अवलोकन करना है ताकि वैज्ञानिक सौरमंडल में रहने योग्य ग्रहों के विकास को समझ सकें।
- वेरिटस (VERITAS):
- इस मिशन का विस्तृत नाम ‘वीनस एमिसिविटी, रेडियो साइंस, इनसार, टोपोग्राफी एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी’ (Venus Emissivity, Radio Science, InSAR, Topography, and Spectroscopy) है।
- इस मिशन का उद्देश्य शुक्र ग्रह की सतह का अध्ययन करके यह पता लगाना है कि शुक्र ग्रह की विशेषताएँ पृथ्वी से अलग क्यों हैं।
संभावित लाभ:
- इन अभियानों से सौरमंडल के कुछ सबसे सक्रिय और जटिल तथ्यों के बारे में मानव समझ को बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
- नासा ने चार मिशनों में से प्रत्येक मिशन के लिये $ 3 मिलियन का प्रावधान किया है जो सौरमंडल के अनुसंधान संबंधी मानवीय स्वप्नों को वास्तविकता प्रदान करेंगे।
भारत की स्थिति:
- भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अनुसंधान की शुरुआत से लेकर अब तक के छोटे से काल और सीमित संसाधनों में कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं।
- वर्तमान भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो कम लागत में जटिल कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिये विश्व भर में प्रसिद्ध है।
- भारत की यह विरासत भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत को योग्य बनाती है।
- ऐसे में भारत अपने सीमित संसाधनों का कुशल उपयोग और सही तकनीकों का निर्माण करके आने वाली चुनौतियों से निपट सकता है तथा NASA की तरह अन्य ग्रहों संबंधी मिशनों को भी संचालित कर सकता है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
म्युनिसिपल बॉण्ड्स डेवलपमेंट कमेटी
प्रीलिम्स के लिये:भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, म्युनिसिपल बॉण्ड्स मेन्स के लिये:म्युनिसिपल बॉण्ड्स डेवलपमेंट कमेटी के गठन का उद्देश्य तथा कार्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बाज़ार नियामक ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ [Securities and Exchange Board of India-(SEBI-सेबी)] ने म्युनिसिपल बॉण्ड्स डेवलपमेंट कमेटी (Municipal Bonds Development Committee) का गठन किया है।
मुख्य बिंदु:
- म्युनिसिपल बॉण्ड्स डेवलपमेंट कमेटी का गठन सेबी के कार्यकारी निदेशक सुजीत प्रसाद की अध्यक्षता में किया गया है।
- सितंबर 2019 में सेबी ने स्मार्ट शहरों के साथ-साथ नगर नियोजन और शहरी क्षेत्रों के विकास के कार्यों को करने वाली संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं को ऋण प्रतिभूतियों के माध्यम से धन जुटाने में मदद देने के लिये 'मुनी बॉण्ड' (Municipal Bond) जारी करने के नियमों में ढील प्रदान की थी।
क्या है मुनी बॉण्ड/म्युनिसिपल बॉण्ड?
- भारत में विभिन्न स्तरों पर सरकारें कार्य करती हैं।
- केंद्र, राज्यों और स्थानीय निकायों को अपने व्यय के वित्तपोषण के लिये धन की आवश्यकता होती है।
- इन तीनों में केंद्र के पास अपने बजटीय वित्तपोषण के लिये राजस्व और उधार के विभिन्न स्रोत होते हैं।
- इसी तरह राज्य सरकारों के लिये राज्य विकास ऋण होता है, जो बॉण्ड का ही एक रूप है जिसे बाज़ार में बेचा जाता है।
- स्थानीय निकायों जैसे-नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिये केवल सीमित राजस्व स्रोत और बाज़ार से उधार लेने के लिये बहुत सीमित विकल्प होते हैं।
- ऐसे समय जब स्थानीय निकायों को अपने मुख्य विकास कार्यों को वित्त प्रदान करने हेतु अधिक धन की आवश्यकता होती है तो ऐसी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये ही सेबी ने वर्ष 2015 में शहरी स्थानीय निकायों को मुनी बॉण्ड के माध्यम से पैसा जुटाने हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये थे।
- मुनी बॉण्ड शहरी स्थानीय निकायों द्वारा जारी किये गए बॉण्ड हैं, इनके माध्यम से विशेष रूप से नगरपालिका और नगर निगम (नगर निकाय के स्वामित्व वाली संस्थाएं) संरचनात्मक परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु धन जुटाती हैं।
म्युनिसिपल बॉण्ड्स डेवलपमेंट कमेटी का कार्य:
- नगरपालिका ऋण प्रतिभूतियों के प्राथमिक और द्वितीयक बाज़ार के विनियमन और विकास से संबंधित मुद्दों पर सेबी को सलाह देना।
- प्राथमिक और द्वितीयक बाज़ार की प्रणालियों और प्रक्रियाओं में सरलीकरण तथा पारदर्शिता लाने के लिये कानूनी ढाँचे में परिवर्तन हेतु आवश्यक मामलों पर सेबी को सलाह देना।
- नगरपालिकाओं को नगरपालिका ऋण प्रतिभूति जारी करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के उपायों पर सेबी को सिफारिश करना।
- प्राथमिक और द्वितीयक बाज़ार में निवेशक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मध्यस्थों के विनियमन से संबंधित मामलों पर सेबी को सलाह देना।
- नगरपालिका ऋण प्रतिभूति बाज़ार के विकास से संबंधित नीतिगत मामलों पर सिफारिश करना।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड:
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
- इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है।
- इसकी प्रस्तावना (Preamble) के अनुसार इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
- प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
- प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।
स्रोत- बिज़नेस स्टैण्डर्ड
टॉक्सिक एयर: द प्राइस ऑफ फॉसिल फ्यूल रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:जीवाश्म ईंधन, वायु प्रदूषण एवं प्रदूषक, वायु प्रदूषण पर ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की रिपोर्ट मेन्स के लिये:वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दे, नवीकरणीय ऊर्जा बेहतर भविष्य का विकल्प, जीवाश्म ईंधन की उपयोगिता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया (Greenpeace Southeast Asia) नामक संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण होने वाले वायु प्रदूषण से नुकसान की लागत का आकलन किया गया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया एवं सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air- CREA) ने “टॉक्सिक एयर: द प्राइस ऑफ फॉसिल फ्यूल (Toxic Air: The Price of Fossil Fuels)” नामक रिपोर्ट में तेल, गैस और कोयले से होने वाले वायु प्रदूषण से नुकसान का आकलन किया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान की वैश्विक लागत प्रतिवर्ष लगभग 2.9 ट्रिलियन डॉलर या प्रतिदिन 8 बिलियन डॉलर है। ध्यातव्य है कि यह लागत वैश्विक जीडीपी (Global GDP) का लगभग 3.3% है।
- वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष होने वाले नुकसान की लागत चीन में लगभग 900 बिलियन डॉलर तथा अमेरिका में 600 बिलियन डॉलर है।
- भारत में वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष होने वाले नुकसान की लागत लगभग 150 बिलियन डॉलर या देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 5.4 % है। ध्यातव्य है कि वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान की लागत के मामले में भारत चीन व अमेरिका के बाद तीसरे पायदान पर है।
- वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण हर साल 4.5 मिलियन लोगों की अकाल मृत्यु होने का अनुमान है। वैश्विक स्तर पर PM2.5 के कारण लगभग 3 मिलियन मौतें होती हैं, जो दिल्ली सहित उत्तरी भारतीय शहरों में प्रमुख प्रदूषकों में से एक है।
- जीवाश्म ईंधन के उपयोग से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न PM 2.5 और ओज़ोन से प्रतिवर्ष 7.7 मिलियन लोग में अस्थमा से पीड़ित होते हैं, जबकि केवल PM 2.5 के कारण लगभग 2.7 मिलियन लोग अस्थमा से प्रभावित होते हैं।
- वायु प्रदूषण कम आय वाले देशों में बच्चों के स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा खतरा है। ध्यातव्य है कि PM2.5 प्रदूषक के संपर्क में आने के कारण दुनिया भर में अनुमानतः 40,000 बच्चे अपने पाँचवें जन्मदिन से पहले मर जाते हैं।
- PM 2.5 के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 2 मिलियन बच्चों का जन्म समय से पहले या अपरिपक्व अवस्था में होता है। गौरतलब है कि इन 2 मिलियन अपरिपक्व बच्चों में लगभग 981,000 बच्चों का जन्म भारत में और लगभग 350,000 से अधिक बच्चों का जन्म चीन में होता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) भी बच्चों में अस्थमा के लगभग 350,000 नए मामलों का कारण है। ध्यातव्य है कि NO2 जीवाश्म ईधन के दहन से निकलने वाला उप-उत्पाद है और NO2 से वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 350 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण होने वाला वायु प्रदूषण लगभग 490 मिलियन कार्य दिवसों के नुकसान का कारण है।
लागत को कम करने के उपाय
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर नवीकरणीय ऊर्जा की ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। ध्यातव्य है कि नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा-संचालित जन परिवहन प्रणाली न केवल विषाक्त वायु प्रदूषण को कम करती है, बल्कि वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
- ध्यातव्य है कि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को इतनी जल्दी कम नहीं किया जा सकता है, इसलिये जब तक पूर्ण रूप से नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग संभव न हो तब तक जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा के दुरुपयोग को कम करके एवं ऊर्जा संरक्षण के अन्य उपायों के माध्यम से भी जीवाश्म ईंधन की खपत को कम किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य संबंधी अवसंरचनाओं को भी सुदृढ़ किये जाने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने हेतु वैश्विक स्तर पर विकसित एवं विकासशील देशों को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। साथ ही जलवायु परिवर्तन पर पेरिस सम्मेलन के दिशा-निर्देशों के अनुसार वैश्विक एवं राष्ट्रीय नीतियाँ बनाई जानी चाहिये।
- वायु प्रदूषण एवं इसके दुष्प्रभावों तथा ऊर्जा संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किये जाने की आवश्यकता है, ताकि सैद्धांतिक रूप से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप से भी वायु प्रदूषण को कम किया जा सके।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 फरवरी, 2020
पुलेला गोपीचंद
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने भारतीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद को 2019 कोच लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया है। पुलेला गोपीचंद को पुरुष वर्ग में ‘ऑनरेबल मेंशन’ से नवाजा गया है। वे इस सम्मान को पाने वाले पहले भारतीय हैं। IOC कोच ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ विश्व भर के ऐसे कोचों की उत्कृष्ट उपलब्धियों को पहचानने में योगदान देता है, जिन्होंने ओलंपिक खेलों में खिलाड़ियों को विकसित करने तथा प्रोत्साहित करने हेतु कार्य किया है।
आर. के. पचौरी
पर्यावरणविद और द एनर्जी ऐंड रिसोर्स इंस्टिट्यूट (टेरी) के संस्थापक डॉ. आर. के. पचौरी का 13 फरवरी, 2020 को निधन हो गया। पचौरी IPCC के वर्ष 2002 से 2015 तक चेयरमैन भी रहे हैं। उनके कार्यकाल के दौरान वर्ष 2007 में IPCC को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
राष्ट्रीय महिला दिवस
भारत में हर साल 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि भारत में (आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत) पहली महिला राज्यपाल सरोजनी नायडू के जन्दिवास को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में महिलाओं के विकास के लिये सरोजनी नायडू द्वारा किये गए योगदान को मान्यता देने के लिये उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। इस दिवस को मनाने का प्रस्ताव भारतीय महिला संघ और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के सदस्यों द्वारा किया गया था। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय महिला दिवस 13 फरवरी को जबकि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है।
डैन डेविड पुरस्कार
हाल ही में भारत की गीता सेन ने प्रतिष्ठित डैन डेविड पुरस्कार जीता। गीता सेन पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की निदेशक हैं। गीता सेन को ‘वर्तमान– लैंगिक समानता’ श्रेणी में ब्राज़ील की देबोरा दिनीज़ के साथ संयुक्त रूप से यह पुरस्कार दिया गया है। डैन डेविड पुरस्कार तेल अवीव विश्वविद्यालय में स्थित डैन डेविड फाउंडेशन द्वारा दिया जाता है इस पुरस्कार का नामकरण प्रसिद्ध परोपकारी तथा बिजनेसमैन डैन डेविड के नाम पर रखा गया है। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष तीन श्रेणियों: वर्तमान, भूतकाल तथा भविष्य, में प्रदान किया जाता है। ‘भूतकाल: सांस्कृतिक संरक्षण व जीर्णोधार’ श्रेणी में यह पुरस्कार अमेरिका के लोनी जी. बंच III तथा बारबरा किर्शेनब्लाट-गिम्ब्लेट को पुरस्कार प्रदान किया गया जबकि ‘भविष्य– आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ श्रेणी में यह पुरस्कार यूनाइटेड किंगडम के देमिस हैसाबिस और प्रोफेसर अमनोन शाशुआ को प्रदान किया गया।
मनप्रीत सिंह:
हाल ही में भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह को अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ (FIH) प्लेयर ऑफ द ईयर चुना गया। मनप्रीत पहले भारतीय हैं जिन्हें FIH द्वारा प्लेयर ऑफ ईयर चुना गया है। इस पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 1999 में हुई थी। मनप्रीत को सबसे अधिक 35.2 प्रतिशत वोट के साथ विश्व चैंपियन बेल्जियम के विक्टर वेगनेज और आर्थर वान डोरेन, ऑस्ट्रेलिया के अरान जालेवस्की और अर्जेंटीना के लुकास विला को पीछे छोड़ा।