क्यूबा: एक आतंकवाद प्रायोजक राज्य के रूप में नामित
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के विदेश विभाग ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कृत्यों हेतु बार-बार सहायता प्रदान करने और आतंकवादियों को सुरक्षित बंदरगाह उपलब्ध कराने पर क्यूबा को एक आतंकवाद प्रायोजक राज्य के रूप में नामित किया है।
प्रमुख बिंदु:
देशों पर प्रतिबंधों के लिये प्रावधान:
- संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश विभाग ने किसी भी देश को प्रतिबंधित करने के लिये निम्नलिखित चार श्रेणियाँ निर्धारित की हैं:
- संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विदेशी सहायता पर प्रतिबंध।
- रक्षा निर्यात और बिक्री पर प्रतिबंध।
- दोहरे उपयोग की वस्तुओं के निर्यात पर कुछ नियंत्रण।
- ऐसे देशों और व्यक्तियों पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है जो नामित देशों के साथ व्यापार में संलग्न हैं।
- वर्तमान में इस सूची में चार देश शामिल हैं: सीरिया, ईरान, उत्तर कोरिया और क्यूबा।
- क्यूबा को वर्ष 2015 में इस सूची से हटा दिया गया था परंतु उसे फिर से इस सूची में शामिल कर लिया गया है।
क्यूबा आतंकवाद प्रायोजक राज्य के रूप में नामित: USA ने क्यूबा पर निम्नलिखित आरोप लगाए हैं-
- वेनेजुएला की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप।
- क्यूबा के लोगों का दमन।
- अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का समर्थन करना।
- संयुक्त राज्य अमेरिका की न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप।
यूएसए-क्यूबा संबंध:
- संयुक्त राज्य अमेरिका और क्यूबा के बीच’ 60 वर्षों से अधिक समय तक तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थित सरकार ने वर्ष 1959 में फिदेल कास्त्रो की सरकार का तख्तापलट कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था।
- पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और राउल कास्त्रो ने द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के लिये कई कदम उठाए, जिनमें राजनयिक संबंधों को बहाल करना, राजनयिक यात्राएँ और व्यापार का विस्तार करना शामिल है।
- ट्रंप प्रशासन ने पर्यटन और अन्य वाणिज्यिक क्षेत्रों पर प्रतिबंधों को फिर से लागू करके पिछले समझौतों की शर्तों को उलट दिया है।
हवाना सिंड्रोम:
- वर्ष 2016 के उत्तरार्द्ध में हवाना (क्यूबा की राजधानी) में तैनात USA के राजनयिकों और अन्य कर्मचारियों ने अजीब सी आवाज़ें सुनने तथा शारीरिक संवेदनाओं के बाद इस बीमारी को महसूस किया।
- इस बीमारी के लक्षणों में मितली, तीव्र सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, नींद की समस्या आदि शामिल हैं, जिन्हें हवाना सिंड्रोम (Havana Syndrome) के रूप में जाना जाता है। अमेरिका ने क्यूबा पर इस बीमारी को फैलाने का आरोप लगाया था लेकिन क्यूबा ने इस बीमारी के बारे में किसी भी तरह की जानकारी होने से इनकार कर दिया।
तनावपूर्ण संबंधों के ऐतिहासिक कारण:
- क्यूबा की क्रांति: संयुक्त राज्य अमेरिका-क्यूबा के अशांतप्रिय संबंधों की जड़ें शीत युद्ध से संबंधित हैं। वर्ष 1959 में फिदेल कास्त्रो और क्रांतिकारियों के एक समूह ने हवाना (क्यूबा की राजधानी) की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने संयुक्त राज्य समर्थित फुलगेन्सियो बतिस्ता की सरकार को उखाड़ फेंका।
- क्यूबा मिसाइल संकट:
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 1961 में क्यूबा के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ दिये और फिदेल कास्त्रो शासन को उखाड़ फेंकने के लिये गुप्त अभियान शुरू किया।
- क्यूबा मिसाइल संकट उस समय शुरू हुआ जब अमेरिकी एजेंसियों द्वारा क्यूबा की सरकार का तख्तापलट करने के प्रयास (जिसे 'बे ऑफ पिग्स आक्रमण' के नाम से भी जाना जाता है) के बाद क्यूबा ने सोवियत संघ को गुप्त रूप से अपने द्वीप पर परमाणु मिसाइलों को स्थापित करने की अनुमति दी।
- अंत में निकिता ख्रुश्चेव के नेतृत्त्व में सोवियत संघ ने अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी द्वारा क्यूबा पर आक्रमण न करने और तुर्की से अमेरिकी परमाणु मिसाइलों को हटाने की प्रतिज्ञा के बदले क्यूबा से रूस की मिसाइलों को वापस लाने पर सहमति व्यक्त की।.
- सोवियत संघ से व्यापार: क्यूबा की क्रांति के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने फिदेल कास्त्रो की सरकार को मान्यता दी परंतु नए प्रशासन द्वारा सोवियत संघ के साथ व्यापार में वृद्धि, अमेरिकी स्वामित्व वाली संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण और संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात पर करों में वृद्धि किये जाने के कारण अमेरिका ने क्यूबा पर आर्थिक दंड लगाना शुरू कर दिया।
- कैनेडी सरकार द्वारा लागू प्रतिबंध (1962): क्यूबा से चीनी (Sugar) आयात में कटौती करने के बाद अमेरिका ने क्यूबा के लिये अपने सभी निर्यातों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा पूर्ण आर्थिक प्रतिबंध में बदल दिया गया, इसमें कठोर यात्रा प्रतिबंध भी शामिल थे।
भारत का रुख:
- आर्थिक नाकेबंदी को समाप्त करने का समर्थन: हाल ही में जब अमेरिका ने वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में क्यूबा की सदस्यता का विरोध किया, तो संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में उन सभी देशों के साथ भारत भी खड़ा हुआ जिन्होंने क्यूबा के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका की अन्यायपूर्ण और लंबे समय से चली आ रही आर्थिक नाकेबंदी को समाप्त करने की मांग की थी।
- अमेरिकी नाकेबंदी की आलोचना: संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा क्यूबा के खिलाफ इस घेराबंदी का निरंतर बने रहना वैश्विक जनमत के खिलाफ है और यह बहुपक्षवाद तथा संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता को कमज़ोर करता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा का रुख:
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने क्यूबा के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाई गई आर्थिक, वाणिज्यिक और वित्तीय नाकेबंदी को समाप्त करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए इस संदर्भ में वर्ष 1992 से प्रतिवर्ष एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।
आगे की राह
- द्विपक्षीय वार्ता को फिर से शुरू करना: वाशिंगटन द्वारा क्यूबा के खिलाफ नाकाबंदी को फिर से शुरू करना किसी भी देश के खिलाफ लागू एकतरफा प्रतिबंधों की सबसे अन्यायपूर्ण और लंबी प्रणाली प्रतीत होती है। द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने की तत्काल आवश्यकता है।
- लोकतंत्र की आत्मा का सम्मान करना: क्यूबाई आप्रवासियों (Immigrant) और लोगों की एक बड़ी आबादी की मूल जड़ें संयुक्त राज्य अमेरिका में हैं, अतः दोनों देश लोकतंत्र और अंतर्राष्ट्रवाद की भावना के लिये सुलह की दिशा में प्रयास करें।
- भारत के लिये: भारत के संबंध दोनों देशों के साथ अच्छे हैं। अगर अमेरिका और क्यूबा के बीच तनाव बढ़ता है तो भारत के लिये रिश्तों को तर्कसंगत रूप से संतुलित बनाए रखना ज़रूरी है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अनाज निर्यात और भारत
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट ‘अनाज: विश्व बाज़ार और व्यापार’ में कहा है कि आने वाले समय में भारत से गेहूँ और चावल का निर्यात बढ़ने की संभावना है।
प्रमुख बिंदु
निष्कर्ष
- गेहूँ के निर्यात में बढ़ोतरी: हाल ही में अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) ने वर्ष 2020-21 के लिये भारतीय गेहूँ के निर्यात के पूर्वानुमान को 1 मिलियन टन से बढ़ाकर 1.8 मिलियन टन कर दिया था।
- चावल के निर्यात में बढ़ोतरी: USDA के अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2020 में भारत के चावल निर्यात का रिकॉर्ड 14.4 मिलियन टन तक पहुँचने की उम्मीद है।
गेहूँ के निर्यात में बढ़ोतरी का कारण
- चीन द्वारा भंडारण: गेहूँ की वैश्विक कीमतों में बदलाव का प्रमुख कारक चीन है। अपने अधिक भंडारण के कारण वह वैश्विक कीमतों को काफी अधिक प्रभावित करता है। अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) के मुताबिक, चीन की इसी प्रवृत्ति के कारण भारत के निर्यात में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।
- वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी: वैश्विक कीमतों में हो रही बढ़ोतरी के कारण भी भारत के निर्यात में वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिये रूस की सरकार ने उच्च घरेलू कीमतों का मुकाबला करने के लिये गेहूँ पर निर्यात कर अधिरोपित किया है। इस प्रकार बांग्लादेश जो कि रूस से गेहूँ का एक बड़ा आयातक है, अपनी खरीद के लिये भारत जैसे अन्य विकल्प तलाश रहा है।
- अत्यंत कम ब्याज़ दर पर प्राप्त राशि को तेज़ी से कृषि उत्पाद बाज़ारों में निवेश किया जा रहा है, जिससे उत्पादकता में भी वृद्धि हो रही है।
- कोरोना वायरस महामारी के मद्देनज़र अमेरिका, भारत और रूस जैसे देश अपनी ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं।
- उदाहरण: बैंक ऑफ इंग्लैंड की वर्तमान बैंक दर 0.1 प्रतिशत है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक का वर्तमान रेपो रेट 4 प्रतिशत है।
चावल के निर्यात में वृद्धि का कारण:
- सूखे का प्रभाव:
- चावल निर्यात के क्षेत्र में भारत के निकटतम प्रतिद्वंद्वी थाईलैंड और वियतनाम को चावल की उत्पादकता में कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- बांग्लादेश में मांग में वृद्धि।
निर्यात में वृद्धि की संभावित चुनौतियाँ:
- भारतीय गेहूँ अभी भी सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 19,750 रुपए प्रति टन के कारण प्रतिस्पर्द्धी नहीं है। इसके अलावा पोर्ट की सफाई, बैगिंग, लोडिंग और परिवहन की अतिरिक्त लागत जैसे विभिन्न कारक निर्यात को हतोत्साहित करते हैं।
- समाधान: उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र में MSP से कम मूल्य वाले गेहूँ का भंडारण करना, जिसकी सरकारी खरीद नहीं हो पाती है।
महत्त्व:
- इन निर्यातों में वृद्धि का अनुमान फायदेमंद होगा क्योंकि भारत का चावल और गेहूँ का घरेलू उत्पादन वित्तीय वर्ष 2019-20 में क्रमशः 118.43 मिलियन टन और 107.59 मिलियन टन के उच्च स्तर पर पहुँच गया है।
- सरकारी एजेंसियों द्वारा भी वित्तीय वर्ष 2019-20 में उच्च स्तरीय खरीद की गई। इस कारण से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ गया।
भारत का अनाज निर्यात:
- भारत विश्व में अनाज का सबसे बड़ा निर्यातक होने के साथ-साथ सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है।
- महत्त्वपूर्ण अनाजों में गेहूँ, धान, सोरगम, जुआर (बाजरा), जौ और मक्का शामिल हैं।
- इससे पहले वर्ष 2008 में भारत ने घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लिये चावल और गेहूँ आदि के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था।
- भारत में अधिशेष उत्पादन और वैश्विक बाज़ार में भारी मांग को देखते हुए सरकार ने गेहूँ के सीमित निर्यात की अनुमति दी।
- भारत के कुल अनाज निर्यात में चावल (बासमती और गैर-बासमती सहित) वर्ष 2019-20 में प्रमुख हिस्सेदारी (95.7%) रखता है, जबकि भारत से निर्यात किये गए कुल अनाज में गेहूँ सहित अन्य अनाजों की वर्ष 2019-20 में केवल 4.3% की हिस्सेदारी थी।
- भारत से गेहूँ का अधिकांश निर्यात (2019-20) नेपाल, बांग्लादेश, UAE, सोमालिया को किया गया।
- भारत से गैर-बासमती चावल का अधिकांश निर्यात (2019-20) नेपाल, बेनिन, संयुक्त अरब अमीरात, सोमालिया को हुआ।
- भारत से बासमती चावल का अधिकांश निर्यात (2019-20) ईरान, सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात को किया गया।