डेली न्यूज़ (14 Sep, 2018)



HIV और LGBTQ+ समुदाय सहित सभी मरीज़ों का बिना भेदभाव के समान रूप से चिकित्सा उपचार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पेश किये गए एक चार्टर का लक्ष्य है कि एचआईवी रोगियों और LGBTQ+ समुदाय सहित सभी मरीज़ों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से चिकित्सा सुबिधा उपचार प्राप्त हो।

चार्टर संबंधी प्रमुख बिंदु

  • मरीज़ों के अधिकारों से संबंधित यह चार्टर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा तैयार किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि विभिन्न हितधारकों की टिप्पणियों पर विचार करने के बाद मसौदे को अंतिम रूप देने हुए स्वास्थ्य मंत्रालय इसे राज्य सरकारों के माध्यम से लागू करने की योजना बना रहा है।
  • इस चार्टर का उद्देश्य चिकित्सकीय प्रतिष्ठानों द्वारा LGBTQ+ समुदाय और एचआईवी रोगियों समेत सभी मरीज़ों को उचित स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
  • इस चार्टर के मुताबिक, अस्पताल प्रबंधन का यह कर्त्तव्य है कि अस्पताल से प्राप्त होने वाली सुविधाओं में किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार न हो।

क्यों महत्त्वपूर्ण है चार्टर?

  • समलैंगिक पुरुष और ट्रांसजेंडर, भारत में एचआईवी/एड्स से प्रभावित महत्त्वपूर्ण समूहों में से हैं।
  • इसके अलावा LGBTQ + समुदाय और एचआईवी रोगियों को सामाजिक भेदभाव का शिकार होना पड़ता है जो स्वास्थ्य देखभाल के अपने अधिकार को भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
  • लगभग डेढ़ साल तक PLHIVs (एचआईवी ग्रसित लोग) समुदायों ने स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं, अस्पतालों या क्लीनिकों द्वारा सकारात्मक परीक्षण किये जाने के बाद भी कई चुनौतियों का सामना किया है।
  • आज भी LGBTQ + समुदाय PLHIVs समुदाय, का हिस्सा होने के दोहरे कलंक का सामना कर रहा है।
  • उनके इस कलंक को दूर करने और उन्हें सर्वोत्तम चिकित्सा उपचार प्रदान करने की सख्त आवश्यकता थी, अतः सरकार LGBTQ+ समुदाय और एचआईवी/एड्स रोगियों के स्वास्थ्य देखभाल अधिकारों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

एचआईवी और एड्स सिंड्रोम (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017  के बारे में

  • हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने एचआईवी और एड्स सिंड्रोम (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 के प्रवर्तन की घोषणा की है।

अधिनियम का उद्देश्य

  • इस अधिनियम का उद्देश्‍य एचआईवी के शिकार और प्रभावित लोगों को सुरक्षा प्रदान करना है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों में एचआईवी से संबंधित भेदभाव, कानूनी दायित्त्व को शामिल करके वर्तमान कार्यक्रम को मज़बूत बनाना तथा शिकायतों और शिकायत निवारण के लिये औपचारिक व्‍यवस्‍था करना है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य एचआईवी/एड्स के प्रसार को रोकना और नियंत्रित करना है।
  • यह अधिनियम एचआईवी और एड्स से पीड़ित व्यक्तियों को उनके उपचार के संबंध में सूचित करने के साथ ही गोपनीयता प्रदान करता है और अपने अधिकारों की रक्षा के लिये प्रतिष्ठानों को उनके दायित्वों के लिये उत्तरदायी ठहराता है।
  • उल्लेखनीय है कि इस अधिनियम को 20 अप्रैल, 2017 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई थी।


10 महीने के निचले स्तर पर पहुँची खुदरा मुद्रास्फीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistical Organisation- CSO) ने अगस्‍त, 2018 के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) पर आधारित महँगाई दर के आँकड़े जारी किये।

जुलाई की तुलना में CPI आधारित महँगाई दर

  • अगस्त 2018 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के लिये CPI आधारित महँगाई दर 3.41 फीसदी (अनंतिम) रही, जो अगस्‍त 2017 में 3.22 फीसदी थी।
  • इसी तरह शहरी क्षेत्रों के लिये CPI आधारित महँगाई दर अगस्‍त, 2018 में 3.99 फीसदी (अनंतिम) आँकी गई, जो कि अगस्‍त 2017 में 3.35 फीसदी थी।
  • उल्लेखनीय है कि जुलाई 2018 में ये दरें क्रमशः 4.11 तथा 4.32 फीसदी (अंतिम) थीं।
  • CSO के अनुसार, महँगाई दर में कमी का कारण दालों, सब्जियों तथा चीनी जैसे खाद्य पदार्थों के मूल्यों में कमी है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI)

  • किसी अर्थव्यवस्था के उपभोग व्यय का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तुओं और सेवाओं के कीमत परिवर्तन का आकलन करने वाली व्यापक माप को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक कहा जाता है।
  • इसमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें खुदरा मूल्य के रूप में ली जाती हैं।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ( CPI ) में मुद्रास्फीति की माप खुदरा स्तर पर की जाती है जिससे उपभोक्ता प्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहते हैं। यह पद्धति आम उपभोक्ता पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को बेहतर तरीके से मापती है।
  • इसे मासिक आधार पर ज़ारी किया जाता है।
  • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने उपभोक्ता‍ मूल्य सूचकांक (CPI) के लिये आधार वर्ष को 2010=100 से संशोधित करके 2012=100 कर दिया है।

उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) पर आधारित महँगाई दर

  • केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने अगस्‍त 2018 के लिये उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index- CFPI) पर आधारित महँगाई दर के आँकड़े भी जारी किये।
  • इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के लिये CFPI आधारित महँगाई दर 1.22 फीसदी (अनंतिम) रही, जो अगस्‍त 2017 में 1.38 फीसदी थी।
  • इसी तरह शहरी क्षेत्रों के लिये CFPI आधारित महँगाई दर अगस्‍त 2018 में (-) 1.21 फीसदी (अनंतिम) आँकी गई, जो अगस्‍त 2017 में 1.67 फीसदी थी।
  • ये दरें जुलाई 2018 में क्रमशः 2.18 तथा (-) 0.36 फीसदी (अंतिम) थीं।

उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index-CFPI)

  • उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) को देश की आबादी द्वारा उपभोग किये गए खाद्य पदार्थों के खुदरा मूल्यों में परिवर्तन के रूप में मापा जाता है।
  • CFPI के तहत ग्रामीण, शहरी और अखिल भारतीय आधार पर खाद्य मूल्य स्तर में आने वाले परिवर्तन की जानकारी दी जाती है।
  • CFPI का आधार वर्ष 2012 है।

शहरी तथा ग्रामीण दोनों के लिये समग्र आँकड़े

  • यदि शहरी एवं ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों पर समग्र रूप से गौर किया जाए तो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित महँगाई दर अगस्‍त 2018 में 3.69 फीसदी (अनंतिम) आँकी गई है, जो अगस्‍त 2017 में 3.28 फीसदी (अंतिम) थी। वहीं, CPI पर आधारित महँगाई दर जुलाई 2018 में 4.17 फीसदी (अंतिम) थी।
  • इसी तरह यदि शहरी एवं ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों पर समग्र रूप से गौर करें तो उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) पर आधारित महँगाई दर अगस्‍त 2018 में 0.29 फीसदी (अनंतिम) रही है, जो अगस्‍त 2017 में 1.52 फीसदी (अंतिम) थी। वहीं, CFPI पर आधारित महँगाई दर जुलाई 2018 में 1.30 फीसदी (अंतिम) थी।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक जुलाई 2018

  • CSO द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र द्वारा संचालित औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में जुलाई 2018 के दौरान 6.6% की वृद्धि हुई।
  • जुलाई 2017 की तुलना में IIP में केवल 1% की वृद्धि हुई। उल्लेखनीय है यह IIP जून 2018 की IIP 6.8% से कम थी।
  • जुलाई में विनिर्माण क्षेत्र में 7% की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि उपभोक्ता टिकाऊ क्षेत्र में 14.4% की वृद्धि दर्ज की गई। इसी तरह, समीक्षाधीन माह के दौरान पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में 3% की वृद्धि हुई।
  • उद्योगों के संदर्भ में, विनिर्माण क्षेत्र के 23 उद्योग समूहों में से 20 ने जुलाई 2018 के दौरान सकारात्मक वृद्धि दर्शाई, जिसमें 'फर्नीचर निर्माण' श्रेणी में 42.7% की उच्च वृद्धि के साथ, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑप्टिकल उत्पादों के निर्माण में 30.8% और तंबाकू उत्पादों के निर्माण की श्रेणी में 28.4% की वृद्धि हुई।
  • 'पेपर और पेपर उत्पादों का निर्माण' एवं 'रिकॉर्डिंग मीडिया के मुद्रण और प्रसारण' जैसे उद्योग समूहों ने क्रमशः 2.7% और 0.9% की नकारात्मक वृद्धि दर्शाई।

औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (Index of Industrial Production-IIP)

  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) एक ऐसा सूचकांक है जो अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे- खनन, विद्युत, विनिर्माण आदि के लिये संवृद्धि (growth) का विवरण प्रस्तुत करता है।
  • 14 स्रोत एजेंसियों से प्राप्‍त आँकड़ों के आधार पर आईआईपी का आकलन किया जाता है। इन एजेंसियों में औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय और उर्वरक विभाग को शामिल किया जाता है।
  • केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा जारी किया जाने वाला यह सूचकांक किसी चयनित अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादों की एक बास्केट के उत्पादन की मात्रा में अल्पावधि में होने वाले परिवर्तनों का मापन करता है।
  • CSO ने अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों को ग्रहण करने वाले सूचकांकों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये IIP हेतु आधार वर्ष को 2004-05 के बदले 2011-12 कर दिया।

किसानों के पास बचत या निवेश हेतु नकद की कमी : NAFIS

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित नाबार्ड अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (NAFIS) 2016-17 की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015-16 में भारत में 10 ग्रामीण परिवारों में से एक के पास कोई निवेश योग्य अधिशेष नहीं था। सर्वेक्षण के मुताबिक लोगों ने भौतिक संपत्तियों में काफी हद तक निवेश किया है, लेकिन वित्तीय प्रपत्रों में यह निवेश 3% से भी कम था।

सर्वेक्षण से संबंधित प्रमुख बिंदु

  • सर्वेक्षण के मुताबिक, ग्रामीण परिवारों के आधे से अधिक (51%) ने वर्ष 2015-16 दौरान कुछ पैसे बचाए और केवल 2.3% परिवारों ने सावधि जमा या दीर्घकालिक बैंक जमा के रूप में पैसा निवेश किया है।
  • साथ ही वर्ष 2015-16 में 10% से भी कम ग्रामीण परिवारों ने कोई निवेश किया।
  • बैंक जमा के रूप में निवेश बहुत कम है और इससे पता चलता है कि ग्रामीण परिवारों के पास दीर्घकालिक निवेश हेतु वित्त नहीं है।
  • NAFIS रिपोर्ट में उल्लेखित है कि "कम आय के बावज़ूद कुछ व्यक्तियों ने बचत की है, जो उन्हें आकस्मिकताओं और कठिन परिस्थितियों से जूझने में मदद देगी।"
  • सबसे छोटी जोत की भूमि रखने वाले वे कृषक वर्ग, जिन्होंने निवेश किया, उनके द्वारा लगभग आधी राशि बैंक में या डाकघर में  जमा की गई थी।
  • गौरतलब है कि यह डेटा केवल उन घरों से संबंधित है जो निवेश करते हैं और इसलिये यह डेटा भूमि वर्ग, विशेष रूप से छोटे भूमि मालिकों का पूरी तरह से प्रतिनिधित्त्व नहीं करता है।
  • इसके अलावा, इस सर्वेक्षण के परिणामों की सावधानी के साथ व्याख्या किया जाना चाहिये क्योंकि हाल के वर्षों में इस वर्ग द्वारा सूखे के कारण सबसे खराब स्थिति का सामना भी किया गया था।
  • सर्वेक्षण के मुताबिक केवल बैंक खातों तक पहुँच ही उच्च बचत या निवेश का कारण नहीं हो सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015-16 में 10 ग्रामीण घरों में से नौ के बैंक खाता होने की सूचना दी गई थी, जबकि बैंक में धन जमा करने वालों में केवल एक अधिसूचित अल्पसंख्यक निवेश करता है।
  • इसके अलावा, ग्रामीण परिवारों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा ऋण के लिये अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर है।
  • सर्वेक्षण के मुताबिक लगभग एक-तिहाई (32%) ग्रामीण परिवार, जिन्होंने कोई ऋण लिया है, गैर-संस्थागत स्रोतों के माध्यम से लिया, जबकि 9% ने औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों पर भरोसा किया।
  • इस प्रकार वर्ष 2015-16 में उधार लेने वाले 41% ग्रामीण परिवारों ने अनौपचारिक स्रोतों जैसे - उधारकर्त्ताओं, स्थानीय मकान मालिकों, दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार लिया।
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण (ALDLS) के  अनुसार, यह आँकड़ा 60% ग्रामीण परिवारों से कम है, जिन्होंने 2012 में अनौपचारिक उधारदाताओं को ऋणी होने की सूचना दी थी।
  • सर्वेक्षण के मुताबिक, छोटे भूमि मालिकों की औपचारिक क्रेडिट तक पहुँच अभी भी एक चुनौती है।
  • अतः इस सर्वेक्षण के नतीज़े बताते हैं कि अधिक भूमि मालिकों की अपेक्षाकृत कम ब्याज दरों पर औपचारिक क्रेडिट तक पहुँच है, जिससे ग्रामीण इलाकों में असमानता कायम रखती है।
  • साथ ही बड़े भूमि मालिक उत्पादक संपत्तियों जैसे - कृषि उपकरण या पशुधन में अधिक निवेश करने में सक्षम हैं और अपनी आय में आगे बढ़ रहे हैं।

पीएसबी द्वारा जब्त संपत्तियों के लिये प्रस्तावित एक साझा ई-नीलामी मंच

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) से कहा है कि वे विभिन्न चूककर्त्ताओं से जब्त संपत्तियों की नीलामी हेतु एक साझा मंच स्थापित करें। जब्त की गई संपत्तियों के लिये साझा ई-नीलामी प्लेटफॉर्म के इस वर्ष परिचालित होने की उम्मीद है।

क्या है योजना?

  • ऐसी संपत्तियों हेतु वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित एक "ई-नीलामी बाज़ार" बोली लगाने वालों के लिये एक अच्छा आधार और बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करेगा।
  • मंत्रालय ने राज्य द्वारा संचालित बैंकों से भारतीय बैंक एसोसिएशन के साथ मिलकर इस मंच को सुविधाजनक बनाने के लिये अपनी वेबसाइटों को फिर से डिज़ाइन करने के लिये कहा है।
  • योजना के अनुसार, संपत्तियों का विवरण, उनकी तस्वीरें, संपत्ति शीर्षक, नीलामी राशि और अन्य सूचनाएँ इस प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होंगी और इसका उपयोग संभावित बोली लगाने वालों द्वारा किया जा सकेगा।

क्यों है एक साझा मंच की आवश्यकता?

  • वर्तमान में कई राज्य संचालित बैंक सरफेसी अधिनियम के तहत देश भर में जब्त की गई संपत्तियों की नीलामी करते हैं। हालाँकि, नीलामी के समय बैंक अधिक संख्या में बोली लगाने वालों को आमंत्रित नहीं कर पाते हैं और बोली लगाने वालों के बीच व्यावसायिक समूहन होने के जोखिम का भी सामना करते हैं, जो कि जान-बूझकर कीमतें कम करवाने का प्रयास करते हैं।
  • बिक्री योग्य संपत्तियों के डेटाबेस डिज़ाइन में कोई समानता नहीं है और नीलामी की जानकारी राज्य संचालित बैंकों की वेबसाइटों पर आसानी से उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा, प्रत्येक राज्य संचालित बैंक नीलामी के लिये अपनी लागत स्वयं वहन करता है।

बैंक कैसे लाभान्वित होंगे?

  • इस मंच के द्वारा संपत्तियों के लिये बैंकों को बेहतर मूल्य मिलेगा। बोली लगाने वालों के द्वारा इन संपत्तियों की जानकारी एक ही स्थान पर प्राप्त होने के कारण यह ऐसी संपत्तियों की नीलामी में बोली लगाने वालों की निम्न स्तर की रुचि में सुधार करेगा।
  • इस मंच के माध्यम से बैंक संभावित बोली लगाने वालों की बड़ी संख्या तक पहुँच प्राप्त कर सकेंगे। यह बड़े पैमाने पर मितव्ययता के माध्यम से नीलामी वाली संपत्तियों की लागत में कटौती कर सकता है।
  • वर्तमान में यदि नीलामी की घोषणा पर कमज़ोर प्रतिक्रिया प्रदर्शित होती है, तो बैंकों को नीलामी की हर बोली के साथ आरक्षित मूल्य में कटौती करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। साझा मंच उपलब्ध होने से इसका समाधान हो जाएगा।

कौन से अन्य उपाय वसूली में सुधार कर सकते हैं?

  • कई बैंकों ने तनावग्रस्त संपत्तियों के लिये कार्यक्षेत्र स्थापित किये हैं। दिवालिया अदालतों में ऐसे मामलों की सुनवाई के बावजूद, अपनी फर्मों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिये ऋण चुकाने का प्रयास कर रहे प्रमोटरों के प्रति बैंक आशान्वित रहते हैं।
  • ऋण वसूली ट्रिब्यूनल (डीआरटी) में दायर मामलों के लिये न्यूनतम ऋण डिफ़ॉल्ट सीमा 20 लाख रुपए तक बढ़ाने का केंद्र का प्रयास और डीआरटी प्रक्रिया को ऑनलाइन स्थानांतरित करने से संबंधित मसले को हल करने से इसमें मदद मिलेगी। यह बैंकों के लिये उच्च मूल्य वाले मामलों में त्वरित निर्णय सुनिश्चित करेगा।

प्रीलिम्स फैक्ट्स 14 सितंबर 2018

न्‍यायमूर्ति रंजन गोगोई होंगे भारत के 46वें मुख्‍य न्‍यायाधीश

राष्‍ट्रपति ने न्‍यायमूर्ति रंजन गोगोई को भारत का अगला मुख्‍य न्‍यायाधीश नियुक्‍त किया है। वह देश के वर्तमान मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति दीपक मिश्रा के सेवानिवृत्‍त होने के बाद 3 अक्‍तूबर, 2018 को भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश का पद भार ग्रहण करेंगे।

  • न्‍यायमूर्ति रंजन गोगोई का जन्‍म 18 नवंबर, 1954 को हुआ और वह 1978 में एक अधिवक्‍ता के रूप में नामांकित हुए।
  • 28 फरवरी, 2001 को उन्हें गुवाहाटी उच्‍च न्‍यायालय में स्थायी न्‍यायाधीश नियुक्‍त किया गया।
  • 9 सितंबर, 2010 को उनका स्थानांतरण पंजाब एवं हरियाणा उच्‍च न्‍यायालय में किया गया तथा 12 फरवरी, 2011 को उन्‍हें पंजाब एवं हरियाणा उच्‍च न्‍यायालय का मुख्‍य न्‍यायाधीश नियुक्‍त किया गया।
  • 23 अप्रैल, 2012 को उन्‍हें भारत के सर्वोच्‍च न्‍यायालय के एक न्‍यायाधीश के रूप में नियुक्‍त किया गया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति अन्य न्यायधीशों एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह पर करता है।
मुख्य न्यायाधीश के लिये अर्हताएँ
  • उसे भारत का नागरिक होना चाहिये।
  • उसे किसी उच्च न्यायालय का कम-से-कम पाँच साल के लिये न्यायाधीश होना चाहिये या
  • उसने उच्च न्यायालय या विभिन्न न्यायालयों में कुल मिलाकर 10 वर्ष तक वकील के रूप में कार्य किया हो या
  • राष्ट्रपति के मत से उसे सम्मानित न्यायवादी होना चाहिये।
कार्यकाल
  • संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों का कार्यकाल तय नहीं किया गया है लेकिन वह 65 वर्ष की आयु तक इस पद पर बना रह सकता है।
न्यायाधीश को पद से हटाना
  • वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र दे सकता है।
  • संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है।
  • इस आदेश को संसद के दोनों सदनों का विशेष बहुमत (अर्थात् सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा सदन में उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) समर्थन प्राप्त होना चाहिये।
  • न्यायाधीश जाँच अधिनियम (1968) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है।
पहला आदिवासी परिपथ

छत्तीसगढ़ के गंगरेल में पहले ‘आदिवासी परिपथ’ विकास परियोजना की शुरुआत की गई। उल्लेखनीय है कि स्वदेश दर्शन योजना के तहत शुरू की जाने वाली यह देश की दूसरी परियोजना है। इस योजना के तहत शुरू की जाने वाली पहली परियोजना ‘पूर्वोत्तर सर्किट विकासः इम्फाल और खोंगजोंग’  परियोजना है।

  • 21 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना को पर्यटन मंत्रालय ने फरवरी 2016 में मंज़ूरी प्रदान की थी।
  • इस योजना के दायरे में छत्तीसगढ़ के जशपुर, कुंकुरी, माइनपत, कमलेशपुर, महेशपुर, कुरदार, सरोदादादर, गंगरेल, कोंडागाँव, नाथिया नवागाँव, जगदलपुर, चित्रकूट और तीर्थगढ़ शहर आते हैं।
स्वदेश दर्शन के बारे में
  • स्वदेश दर्शन पर्यटन मंत्रालय की सबसे अहम परियोजनाओं में से एक है जिसके अंतर्गत एक विषय पर आधारित पर्यटन परिपथों का योजनाबद्ध ढंग से विकास किया जाना है।
  • इस योजना को 2014-15 में आरंभ किया गया था और अभी तक मंत्रालय ने 31 राज्यों एवं संघीय क्षेत्रों में 5997.47 करोड़ रुपए की लागत की 74 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है।
  • आदिवासियों एवं आदिवासी संस्कृति के विकास पर पर्यटन मंत्रालय विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहा है और स्वदेश दर्शन योजना के तहत इन क्षेत्रों में पर्यटन के ढांचे का विकास कर रहा है।
  • आदिवासी परिपथ विषय के तहत मंत्रालय ने नगालैण्ड, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में 381.47 करोड़ रुपए की लागत से 4 योजनाओं को मंज़ूरी दी है।
नेशनल स्‍कॉलरशिप पोर्टल मोबाइल एप

हाल ही में केंद्रीय अल्‍पसंख्‍यक मामलों के मंत्रालय ने देश का पहला नेशनल स्‍कॉलरशिप पोर्टल मोबाइल एप (NSP Mobile App) लॉन्च किया।

  • ‘नेशनल स्‍कॉलरशिप पोर्टल मोबाइल एप’ निर्धन एवं कमज़ोर वर्ग के छात्रों को एक सुगम, आसान और बाधा मुक्‍त छात्रवृत्ति प्रणाली सुनिश्चित करेगा।
  • सभी छात्रवृत्तियाँ नेशनल स्‍कॉलरशिप पोर्टल के माध्‍यम से प्रत्‍यक्ष लाभ हस्‍तांतरण (DBT) के तहत ज़रूरतमंद छात्रों के बैंक खातों में सीधे दी जा रही हैं जिसने यह सुनिश्चित किया है कि दुहराव एवं राजस्व चोरी की कोई गुंजाइश न रहे।
  • नेशनल स्‍कॉलरशिप पोर्टल मोबाइल एप छात्रों के लिये लाभदायक साबित होगा एवं छात्रवृत्तियों हेतु एक पारदर्शी तंत्र को सुदृढ़ बनाने में सहायता करेगा।
  • छात्र अपने मोबाइल एप पर विभिन्‍न छात्रवृत्तियों के बारे में सभी प्रकार की सूचनाएँ प्राप्‍त कर सकेंगे, वे अपने घर में ही बैठकर छात्रवृत्तियों के लिये आवेदन कर सकेंगे, छात्र इस मोबाइल एप पर अपने लिये सभी आवश्‍यक दस्‍तावेज़ अपलोड कर सकेंगे, छात्र अपने आवेदन, छात्रवृत्तियों के संवितरण आदि की स्थिति की जानकारी भी ले सकेंगे।
  • दूरदराज़ के क्षेत्रों, पहाड़ी क्षेत्रों, पूर्वोत्‍तर के छात्रों को इससे सबसे अधिक लाभ पहुँचेगा।
हिंदी दिवस

14 सितंबर को पूरे देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि विश्व हिंदी दिवस प्रतिवर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है।

  • 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया था और संविधान के भाग-17 में इससे संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रावधान किये गए।
  • इस दिन के ऐतिहासिक महत्त्व के कारण 1953 से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है।
  • हिंदी को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से इस दिवस के आयोजन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस अवसर पर हिंदी के प्रोत्साहन हेतु कई पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं, जैसे- राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार।
  • कीर्ति पुरस्कार ऐसे विभाग को दिया जाता है जिसने वर्षभर हिंदी में कार्य को बढ़ावा दिया हो, जबकि राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार तकनीकी-विज्ञान लेखन हेतु दिया जाता है।
फॉल आर्मीवार्म

इस खरीफ सीज़न में कर्नाटक के किसानों के सामने फॉल आर्मीवार्म या स्पोडोप्टेरा फ्रुजाईपेर्डा (Spodoptera frugiperda) नामक एक नई समस्या ने दस्तक दी है।

  • वर्तमान में यह कीट मक्का की फसल को नुकसान पहुँचा रहा है और वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह कीट जल्दी ही अन्य क्षेत्रों में फ़ैल सकता है तथा दूसरी फसलों को भी नुकसान पहुँचा सकता है।
  • यह कीट भारतीय मूल का नहीं है। भारत में पहली बार इसकी उपस्थिति कर्नाटक में चिकबल्लापुर ज़िले के गौरीबिंदपुर के पास दर्ज की गई थी।
  • यह कीट आमतौर पर उत्तरी अमेरिका से लेकर कनाडा, चिली और अर्जेंटीना के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है।
  • वर्ष 2017 में इस कीट के दक्षिण अफ्रीका में फैलने के कारण वहाँ की फसलों को भारी नुकसान हुआ था।
  • ये कीट पहले पौधे की पत्तियों पर हमला करते हैं तथा इनके हमले के बाद पत्तियाँ ऐसी दिखाई देती हैं जैसे उन्हें कैंची से काटा गया हो।
  • ये कीट एक बार में 900-1000 अंडे दे सकते हैं।