डेली न्यूज़ (14 Jun, 2019)



निपाह वायरस और फ्रूट बैट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल में फ्रूट बैट (Fruit Bat)/(एक प्रकार का चमगादड़) की पहचान घातक निपाह वायरस (Nipah Virus) के वाहक के रूप में की गई है।

‘फ्रूट बैट’ क्या है?

  • ‘फ्रूट बैट’ कीटभक्षी चमगादड़ से अलग होते हैं। आहार के लिये ये फलों पर निर्भर रहते हैं। फलों का पता लगाने के लिये ये सूँघने की क्षमता का उपयोग करते हैं, जबकि कीटभक्षी चमगादड़ प्रतिध्वनि (Echo) की सहायता से अपने शिकार का पता लगाते हैं।
  • ‘फ्रूट बैट’ टेरोपोडीडेई परिवार (Pteropodidae family) से संबंधित हैं जो निपाह वायरस के लिये प्राकृतिक वाहक (Natural Hosts) है।
  • ‘फ्रूट बैट’ दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में बड़े पैमाने पर पाए जाते हैं और इन्हें फ्लाइंग फॉक्स (Flying Fox) भी कहा जाता है।

fruit bat

निपाह वायरस और फ्रूट बैट में संबंध

  • निपाह वायरस, बैट/चमगादड़ के शरीर में (बिना किसी बीमारी के) मौज़ूद रहता है।
  • बैट/चमगादड़ जैसे ही किसी स्तनधारी मनुष्य या सुअर के संपर्क में आता है, वैसे ही निपाह वायरस इनमें प्रवेश कर जाते हैं।
  • भारतीय विषाणु विज्ञान संस्थान (National Institute of Virology) के अनुसार, इस वायरस का संक्रमण सर्वप्रथम टेरोपस प्रजाति (Pteropus species) के रूप में चिह्नित फ्रूट बैट से हुआ था।
  • बांग्लादेश में इसके प्रकोप के दौरान शोधकर्त्ताओं ने इंडियन फ्लाइंग फॉक्स में निपाह के रोगप्रतिकारकों (Antibodies) का पता लगाया था।

महत्त्व

  • निपाह संक्रमण के वाहक/स्रोत की पहचान भविष्य में इसे फैलने से रोकने में मदद प्रदान करेगी।

चमगादड़ों से जुड़ी अन्य बीमारियाँ

  • सभी चमगादड़ वायरस के वाहक हो सकते हैं जिनमें से कुछ जानलेवा/घातक भी होते हैं जो इस प्रकार हैं-
    • सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome-SARS) प्रतिरक्षी/रोग प्रतिकारक (Antibodies) कीटभक्षी चमगादड़ (Insectivorous Bats) में पाए गए।
    • इबोला के प्रतिरक्षी ‘हैमर हेडेड बैट’ (Hammer-headed bat) में पाए गए।
    • इंडियन फ्लाइंग फॉक्स 50 से अधिक वायरस का वाहक है।
  • पृथ्वी पर चमगादड़ों की लगभग 1200 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। संख्या के संदर्भ में कुल स्तनधारियों में इनकी भागीदारी लगभग 20 प्रतिशत है।
  • लंबे समय तक उड़ने रहने से चमगादड़ के शरीर का तापमान बढ़ जाता है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने और रोगाणुओं के रोगजनक प्रभाव से बचने में मदद करता है।

गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम/सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम/सार्स
(Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS)

  • यह मनुष्यों में होने वाला एक वायरल श्वसन रोग है, जो सार्स कोरोना वायरस (SARS Corona virus) की वज़ह से होता है। यह अत्यंत गंभीर, निमोनिया का प्राणघातक प्रकार है।
  • सार्स, वर्ष 2002 में दक्षिणी चीन के गुआंग्डोंग प्रांत में पाया गया था। 

क्या है निपाह?

  • हाल ही में केरल ने राज्य में निपाह वायरस के प्रकोप की पुष्टि की है।
  • निपाह, एक वायरल संक्रमण है। इसका मुख्य लक्षण बुखार, खांसी, सिरदर्द, दिमाग में सूजन, उल्टी होना, साँस लेने में तकलीफ होना, आदि हैं।
  • यह वायरस इंसानों के साथ-साथ जानवरों को भी अपनी चपेट में ले लेता है। यह आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँच जाता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, निपाह वायरस एक नई उभरती बीमारी है। इसे 'निपाह वायरस एन्सेफलाइटिस' भी कहा जाता है।
  • निपाह वायरस एक तरह का दिमागी बुखार है। इसका संक्रमण तेज़ी से होता है। यह संक्रमण होने के 48 घंटे के भीतर व्यक्ति को कोमा में पहुँचा देता है।
  • इसका कोई उपचार नहीं है और अब तक न ही इसका कोई टीका उपलब्ध है।
  • वर्ष 1999 में पहली बार मलेशिया में निपाह वायरस की खोज की गई थी।
  • भारत में इसका पहला मामला वर्ष 2001 में सिलीगुड़ी में सामने आया था।
  • वायरस के प्राकृतिक वाहक फ्रूटबैट (Fruit bats) होते हैं, जो व्यापक रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाए जाते हैं।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


कर्मचारी राज्य बीमा

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (Employees’ State Insurance Act) कानून के अंतर्गत एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अंशदान (Contribution) की दर को 6.5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत करने का फैसला किया है।

  • इससे नियोक्ता का अंशदान (Employers’ share) 4.75 प्रतिशत से घटाकर 3.25 प्रतिशत और कर्मचारी का अंशदान (employees’ share) 1.75 प्रतिशत से घटाकर 0.75 प्रतिशत हो जाएगा।
  • घटी हुई दरें 1 जुलाई, 2019 से प्रभावी होंगी।
  • सरकार के इस कदम से 3.6 करोड़ कर्मचारी और 12.85 लाख नियोक्ता लाभांवित होंगे।

प्रभाव:

  • अंशदान की घटी हुई दर से कामगारों को राहत मिलेगी तथा इससे और अधिक कामगारों को ESI योजना के अंतर्गत नामांकित कर पाना तथा ज़्यादा-से-ज़्यादा श्रम बल को औपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत लाना सुगम हो सकेगा।
  • नियोक्ता द्वारा किये जाने वाले अंशदान में कमी होने से प्रतिष्ठानों के वित्तीय उत्तरदायित्व में कमी होगी, जिससे इन प्रतिष्ठानों की व्यावहारिकता में सुधार होगा। इससे कारोबार की सुगमता (Ease of Doing Business) में और अधिक बढ़ोत्तरी होगी।
  • संभवतः ESI अंशदान की दर में कटौती से ESI अधिनियम के बेहतर अनुपालन का मार्ग प्रशस्त होगा।

योजना के विस्तार हेतु सरकार द्वारा पूर्व में किया गया प्रयास

  • सरकार ने अधिक-से-अधिक लोगों को सामाजिक सुरक्षा कवरेज़ प्रदान करने के लिये दिसंबर 2016 से जून 2017 तक नियोक्ता और कर्मचारियों के विशेष पंजीकरण का कार्यक्रम शुरू किया एवं विभिन्न चरणों में योजना का कवरेज़ लाभ देश के सभी ज़िलों तक बढ़ाने का फैसला किया। 1 जनवरी, 2017 से कवरेज़ में वेतन की सीमा 15,000 रुपए प्रतिमाह से बढ़ाकर 21,000 रुपए प्रतिमाह कर दी गई।

कर्मचारी राज्‍य बीमा अधिनियम, 1948

(Employees’ State Insurance Act 1948)

  • सरकार द्वारा कर्मचारी राज्‍य बीमा अधिनियम, 1948 (Employees’ State Insurance Act 1948) रूग्‍णता (Sickness), प्रसूति (Maternity), रोज़गार संबंधी दुर्घटना के कारण अस्‍थायी अथवा स्‍थायी शारीरिक नि:शक्‍तता (जिसके कारण मजदूरी अथवा अर्जन क्षमता समाप्‍त हो गई हो) और मृत्‍यु, जैसी आकस्मिकताओं में कामगार के हित की सुरक्षा करने के उद्देश्य से लागू किया गया।
  • ESI कर्मचारी राज्य बीमा निगम (Employees’ State Insurance Corporation-ESIC) द्वारा प्रशासित है। ESI अधिनियम के अंतर्गत उपलब्ध कराए जाने वाले लाभ नियोक्ताओं और कर्मचारियों द्वारा किये गए अंशदान के माध्यम से वित्तपोषित होते हैं।
  • ESI अधिनियम के अंतर्गत नियोक्ता और कर्मचारी दोनों ही अपना-अपना योगदान देते हैं। श्रम और रोज़गार मंत्रालय (Ministry of Labour & Employment) के ज़रिये सरकार ESI अधिनियम के अंतर्गत अंशदान की दर तय करती है। वर्तमान में अंशदान की दर वेतन का 6.5 प्रतिशत है, जिसमें नियोक्ता का अंशदान 4.75 प्रतिशत और कर्मचारी का अंशदान 1.75 प्रतिशत है। उल्लेखनीय है कि अंशदान की यह दर 1 जनवरी, 1997 से लागू है।

स्रोत: पी.आई.बी.


अपहरण रोधी अधिनियम, 2016

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने अपहरण रोधी अधिनियम, 2016 के तहत एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाने के साथ ही उस पर 5 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है। गौरतलब है कि अपहरण रोधी अधिनियम, 2016 (The Anti Hijacking Act, 2016) के तहत यह पहली सजा है।

पृष्ठभूमि

  • ध्यातव्य है कि मुंबई के इस व्यक्ति ने 30 अक्तूबर, 2017 को जेट एयरवेज़ की मुंबई-दिल्ली फ्लाइट के दौरान टॉयलेट में अपहरण नोट लिखकर छोड़ा था।
  • इस नोट में लिखा गया था कि विमान को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर ले जाया जाए। इस हादसे के पश्चात् विमान अपहरण रोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अपहरण रोधी अधिनियम, 2016

  • 2016 का यह अधिनियम, अपहरण रोधी अधिनयम 1982 (The Anti Hijacking Act, 1982) को प्रतिस्थापित करता है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य ‘हेग हाइजैकिंग कन्वेंशन’ (Hague Hijacking Convention) और ‘बीजिंग प्रोटोकॉल सप्लीमेंट्री- 2010’ (Beijing Protocol Supplementary-2010) को लागू करना है।
  • यह अधिनियम तब भी लागू होगा जब ऐसी कोई घटना भारत के बाहर घटित हो किंतु विमान भारत में पंजीकृत हो या किसी भारतीय व्यक्ति द्वारा विमान पट्टे पर लिया गया हो या अपराधी अवैध रूप से भारत में रहता हो (जैसे कि कोई अवैध बांग्लादेशी प्रवासी) या भारतीयों को क्षति पहुँचाने का प्रयास किया गया हो।
  • इस नए अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित बदलाव किये गए हैं-
    • विमान अपहरण की गलत सूचना की अपवाह फैलाने पर मृत्युदंड और उम्रकैद
    • विमान ‘In Service’ की व्यापक परिभाषा

विमान अपहरण

  • अपहरण रोधी अधिनियम, 2016 की धारा 3(1) के तहत हाइजैकिंग के अपराध को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति बलपूर्वक या किसी अन्य प्रकार की धमकी से या किसी भी तकनीकी माध्यम से किसी सेवारत विमान के नियंत्रण पर कब्ज़ा करता है/संचालन को बाधित करता है तो उसे हाईजैकिंग अपराध माना जाएगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


RBI के ऋण समाधान मानक

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकिंग क्षेत्र में गैर-निष्पादित संपत्ति अथवा (Non Performing Assets- NPA) से निपटने के लिये एक नया मानक जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • संकल्प योजनाएँ जैसे- कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन योजना, रणनीतिक ऋण पुनर्गठन योजना, स्वामित्व में परिवर्तन, तनावग्रस्त संपत्तियों की स्थायी संरचना, संयुक्त ऋणदाता मंच और मौजूदा दीर्घकालिक ऋणों की लचीली संरचना आदि को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा वापस ले लिया गया है और इनके स्थान पर संशोधित मापदंड जारी किये गये हैं।
  • ये नए मानदंड बैंकों के अलावा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, लघु वित्त बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों पर भी लागू होंगे।

संशोधित मानदंड:

  • संशोधित मानदंडों के अनुसार, ऋणदाताओं को संकल्प रणनीति का ढाँचा तैयार करने के लिये 30 दिनों की समीक्षा अवधि दी जाएगी, इसके विपरीत पुराने मानदंड ऋणदाताओं को डिफाल्टर के संदर्भ में संकल्प रणनीति तैयार करने के लिये मजबूर करते थे चाहे डिफ़ॉल्ट एक दिन पुराना ही क्यों न हो।
  • किसी भी संपत्ति के डिफ़ॉल्ट होने पर ऋणदाताओं को उस ऋण खाते से होने वाले प्रभाव की पहचान उसे कुछ विशेष उल्लेख खातों (Special Mention Accounts - SMA) में वर्गीकृत करके करनी होगी:
    • SMA-0: यदि कोई व्यक्ति/कंपनी 0-30 दिनों के भीतर लिये हुए ऋण के मूलधन या ब्याज को चुकाने में विफल रहता है तो उसे SMA-0 में वर्गीकृत किया जाएगा और इस श्रेणी के डिफॉल्टर पर दिवालिया संकल्प लागू किया जा सकता है।
    • SMA-1: यदि कोई व्यक्ति/कंपनी 31-60 दिनों के भीतर लिये हुए ऋण के मूलधन या ब्याज को चुकाने में विफल रहता है तो उसे SMA-1 में वर्गीकृत किया जाएगा और इस श्रेणी में डिफॉल्टर पर Insolvency and Bankruptcy Code (IBC) के तहत कार्यवाही की जाएगी।
    • SMA-3: यदि कोई व्यक्ति/कंपनी 31-60 दिनों के भीतर लिये हुए ऋण के मूलधन या ब्याज को चुकाने में विफल रहता है तो उसे SMA-3 में वर्गीकृत किया जाएगा और इस श्रेणी में डिफॉल्टर के विरुद्ध नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Company Law Tribunal-NCLT) में मुकदमा चलाया जाएगा।
  • नए मापदंडों के अनुसार किसी भी संपत्ति के स्वामित्व में परिवर्तन, जिसकी कुल जोख़िम मात्रा 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक है, के लिये रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किसी भी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (Credit Rating Agencies-CRAs) से स्वतंत्र क्रेडिट मूल्यांकन (Independent Credit Evaluation-ICE) करवाना आवश्यक होगा।
    • ऐसे ऋण खाते जिनकी कुल जोख़िम मात्रा 500 करोड़ रुपए या उससे अधिक है, को नए मापदंडों के अनुसार ऐसे 2 स्वतंत्र क्रेडिट मूल्यांकन (independent credit evaluation- ICE) करने अनिवार्य हैं।
  • ऋणदाताओं को 5 करोड़ रुपए से अधिक कुल जोखिम वाले उधारकर्त्ताओं के डिफाॅल्टर होने की स्थिति में रिज़र्व बैंक को हर हफ्ते एक साप्ताहिक रिपोर्ट देनी होगी।
  • दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही में देरी होने के कारण अतिरिक्त प्रावधान के रूप में दंडात्मक कार्रवाई की व्यवस्था:
    • इस संदर्भ में अतिरिक्त प्रावधान बैंकों द्वारा बचे हुए ऋण के अनुपात में बनाए जाएंगे।
    • यदि समीक्षा अवधि की समाप्ति के 180 दिनों के भीतर संकल्प पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाता है तो बैंकों को इसके लिये कुल 20 प्रतिशत अतिरिक्त प्रावधान बनाने होंगे।
    • यदि समीक्षा अवधि की समाप्ति के 365 दिनों के भीतर भी संकल्प पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाता है तो बैंकों को इसके लिये कुल अतिरिक्त 15 प्रतिशत प्रावधान (जिसका कुल योग 35 प्रतिशत होगा) बनाने होंगे।
  • यदि ऋणदाताओं द्वारा किसी उधारकर्त्ता के ऋण खातों की वास्तविक स्थिति को छुपाने के उद्देश्य से कुछ कार्यवाही की जाती है तो यह कार्यवाही उच्चतर प्रावधान के निर्माण तथा ऋणदाता पर मौद्रिक दंड की उत्तरदायी होगी।
  • ऋणदाताओं को संकल्प परियोजना लागू करने के लिये समीक्षा अवधि के दौरान एक आंतरिक लेनदार समझौते (inter creditor agreement- ICA) पर हस्ताक्षर करने होंगे, जो संकल्प परियोजना के अंतिम रूप और कार्यान्वयन के लिये नियम बनाएगा।

क्रेडिट रेटिंग (Credit Rating)

क्रेडिट रेटिंग किसी भी देश, संस्था या व्यक्ति की ऋण लेने या उसे चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन होती है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को एएए, बीबीबी, सीए, सीसीसी, सी, डी श्रेणियों में रेटिंग दी जाती है। इन श्रेणियों के निहितार्थ हैं:

एएए: सबसे मज़बूत सबसे बेहतर।

एए: वादों को पूरा करने में सक्षम।

ए: वादों को पूरा करने की क्षमता, पर विपरीत परिस्थितियों का पड़ सकता है असर।

बीबीबी: वादों को पूरा करने की क्षमता, लेकिन विपरीत परिस्थितियों से आर्थिक स्थितियाँ प्रभावित होने की संभावना अधिक।

सीसी: वर्तमान में बहुत कमज़ोर।

डी: ऋण लौटाने में असफल।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ (Credit Rating Agencies- CRAs)

  • ऐसी स्वतंत्र कंपनियाँ जो देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिये क्रेडिट रेटिंग जारी करें, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ कहलाती हैं। जैसे- फिच, मूडीज़ और एस एंड पी इत्यादि।

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Company Law Tribunal - NCLT)

  • नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 18 के तहत किया गया था।
  • नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो भारतीय कंपनियों से संबंधित मुद्दों पर निर्णय देती है।
  • NCLT में कुल ग्यारह बेंच हैं जिसमें नई दिल्ली में दो (एक प्रमुख) तथा अहमदाबाद, इलाहाबाद, बंगलूरू, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में एक-एक है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


अरुणाचल प्रदेश में सुनहरी बिल्ली की नई प्रजातियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन (Zoological Society of London- ZSL), ICC (International Conservation Charity) और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (University College London-UCL) के भारतीय वैज्ञानिकों ने अरुणाचल प्रदेश की दिबांग घाटी (Dibang Valley) में गोल्डन कैट/सुनहरी बिल्ली के छह रंगों की खोज की है।

प्रमुख बिंदु

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, यह एक दुर्लभ पारिस्थितिक परिघटना है जो जंगली बिल्लियों के आवास, सुरक्षा एवं जीवन की अनुकूलता में सहायक है।  
  • गोल्डन कैट/सुनहरी बिल्ली के इन छह रंग रूपों में से एक रंग-रूप पूरी तरह से नया है।
  • भूटान और चीन में सुनहरी बिल्ली के दो प्रकार पाए जाते हैं- एक दालचीनी के रंग का (Colour of Cinnamon) तथा दूसरा ओसेलट (Ocelot) के समान निशान वाला, इसके साथ ही एक छोटी जंगली बिल्ली अमेरिका में भी पाई जाती है। इसके अतिरिक्त इनमें टाईटली रोस्टेड (Tightly-Rosetted), मेलेनिस्टिक (Melanistic), ग्रे (Gray) और गोल्डन (Golden) बी शामिल हैं।
  • रंग-रूप को यादृच्छिक आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Random Genetic Mutations) से उत्पन्न होने और प्राकृतिक चयन (Natural selection) के माध्यम से जंगली आबादी के बीच पकड़ बनाने के संदर्भ में जाता है।
  • ZSL के वैज्ञानिकों के अनुसार, बिल्ली के आवरण में प्रदर्शित अलग-अलग भिन्नताएँ उन्हें कई पारिस्थितिक लाभ प्रदान करती हैं, जैसे कि अलग-अलग ऊँचाई पर विभिन्न आवासों (नम उष्णकटिबंधीय तराई वाले जंगलों से लेकर अल्पाइन झाड़ियों) में रहने तथा तीतर और खरगोशों का शिकार करने के लिये छिपने में सहायता मिलती है।  
  • दिबांग घाटी में दुनिया की सबसे विविध श्रेणी की जंगली बिल्लियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा सिर्फ इस दुर्लभ पारिस्थितिक घटना का अध्ययन किया जा रहा है।  
  • इस रंग-रूप के विकासवादी सिद्धांत के अध्ययन से वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलने की संभावना है कि ये प्रजातियाँ बदलते परिवेश में कितनी जल्दी अनुकूलित और विकसित हो सकती हैं।

एशियाई गोल्डन कैट

  • एशियाई गोल्डन कैट/सुनहरी बिल्ली का वैज्ञानिक नाम कैटोपुमा टेम्मिनकी (Catopuma Ttemminckii) है।
  • इसे IUCN रेड लिस्ट में निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि यह बिल्ली उत्तर- पूर्वी भारत, इंडोनेशिया तथा पूर्वी नेपाल में पाई जाती है।

दिबांग घाटी

  • दिबांग घाटी अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। इसका नाम दिबांग नदी के नाम पर रखा गया है।
  • दिबांग नदी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है। इसकी उत्तरी दिशा में दिबांग घाटी ज़िला, पूर्व में लोहित और मैक मोहन लाईन, पश्चिम में पूर्वी सियांग एवं दक्षिण में असम का तिनसुकिया स्थित है।

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प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ

(International Union for Conservation of Nature- IUCN)

  • इसकी स्थापना 5 अक्तूबर, 1948 को फ्राँस में हुई थी, उस समय इसका नाम  इंटरनेशनल यूनियन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ नेचर (International Union for Protection of Nature- IUPN) था।
  • वर्ष 1956 में इसका नाम बदल कर इंटरनेशनल यूनियन  फॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर (International Union for Conservation of Nature- IUCN) कर दिया गया।
  • इसका मुख्यालय ग्लांड (स्विट्ज़रलैंड) में अवस्थित है।
  • विज़न- ऐसे संसार का निर्माण करना, जो प्रकृति की कीमत समझने के साथ ही इसका संरक्षण भी करें।
  • मिशन- संसार भर के लोगों को प्रकृति की विविधता बनाए रखने के लिये प्रोत्साहन और सहयोग देना तथा प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रयोग सुनिश्चित करना।
  • यह पौधों और जंतुओं की रेड डेटा बुक भी जारी करता है।
  • प्रत्येक चार वर्ष में एक बार IUCN वर्ल्ड कंज़र्वेशन कॉन्ग्रेस का अयोजन किया जाता है।
  • वैश्विक चुनौतियों से निपटने और प्रकृति संक्षरण के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये सरकार, सिविल सोसाइटी, उद्यमी वर्ग आदि इसमें भाग लेते हैं।   
  • भारत में वर्ष 1969 में नई दिल्ली में वर्ल्ड कंज़र्वेशन कॉन्ग्रेस का आयोजन किया गया था।
  • वर्ष 2016 में अमेरिका के हवाई में इसका आयोजन किया गया था।
  • वर्ष 2020 में इसका आयोजन फ्राँस में किया जाएगा।

स्रोत- द हिंदू


चाँद का एटकेन क्रेटर

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में एक विसंगति की खोज की है, जिसकी वजह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद एटकेन (पूरे सौर मंडल में मौजूद सबसे बड़ा संरक्षित क्रेटर) के नीचे मैन्टल (Mantle) में भारी मात्रा में धातु की मौजूदगी 

विसंगति की संभावित व्याख्या:  

  • इस क्रेटर का निर्माण करने वाले क्षुद्रग्रह से निष्काषित धातुएँ अभी भी चंद्रमा की सतह में गहराई में प्रवेश करने के बजाय चंद्रमा के मेंटल में अंतर्निहित है। इसमें एस्टेरॉयड के धात्विक तत्त्व हो सकते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा ऐसी आंशका व्यक्त की जा रही हैं कि यह एस्टेरॉयड अथवा क्षुद्रग्रह कभी चंद्रमा से टकराया होगा जिसके कारण इस क्रेटर का निर्माण हुआ।
  • एक अन्य संभावना यह भी हो सकती है कि यह घने ऑक्साइड के साथ चंद्रमा के मैग्मा की जमी हुई अंतिम अ‍व‍स्था का एक महासागर हो जिसके सम्मिश्रण से इस विशाल पिंड का निर्माण हुआ होगा। यह चंद्रमा का सबसे बड़ा संरक्षित क्रेटर है।
  • यह नई परिकल्पना नासा के ग्रेविटी रिकवरी एंड इंटीरियर लेबोरेटरी (GRAIL) और लूनर रिकॉनेनेस ऑर्बिटर मिशन (Lunar Reconnaissance Orbiter missions) के डेटा पर आधारित है।

ग्रेविटी रिकवरी एंड इंटीरियर लेबोरेटरी

Gravity Recovery and Interior Laboratory (GRAIL)

ग्रेविटी रिकवरी और इंटीरियर लेबोरेटरी (GRAIL) एक दोहरा अंतरिक्ष यान मिशन था, जिसमें चंद्रमा की आंतरिक संरचना के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये इसके चारों ओर की कक्षा में दो समान स्पेसक्राफ्ट (क्रमशः "Ebb" और "Flow" को GRAIL-A और GRAIL-B के नाम से) शामिल किया गया था।

  • नासा के डिस्कवरी प्रोग्राम (NASA’s Discovery Program) के तहत वर्ष 2011 में इस मिशन को लॉन्च किया गया था।
  • वर्ष 1992 में शुरू हुए नासा के डिस्कवरी प्रोग्राम का लक्ष्य कम संसाधनों और कम विकास के समय का उपयोग करके छोटे मिशन को शुरू करके उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त करना है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य ग्रहों, उनके चंद्रमाओं और छोटे पिंडों जैसे धूमकेतु एवं क्षुद्रग्रहों की खोज करके सौर प्रणाली की हमारी समझ को बढ़ाना है।

लूनर रेकांनैस्संस ऑर्बिटर  (Lunar Reconnaissance Orbitor-LRO)

LRO भविष्य में चंद्रमा पर भेजे जाने वाले मानवयुक्त मिशन की तैयारी की दिशा में लूनर प्रीकर्सर एंड रोबोटिक प्रोग्राम (Lunar precursor and Robotic program-LPRP) के अंतर्गत चंद्रमा के लिये शुरू किया नासा का एक मिशन है।

उद्देश्य:

  • चंद्रमा पर संभावित संसाधनों की पहचान करना।
  • चन्द्र की सतह के विस्तृत नक्शे एकत्र करना।
  • चंद्रमा के विकिरण स्तरों पर आँकड़े एकत्र करना।
  • उन संसाधनों के लिये चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar regions) का अध्ययन करना जो भविष्य के मानवयुक्त मिशन या रोबोटिक सैंपल रिटर्न मिशन (Robotic Sample Return Mission) में इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
  • भविष्य के रोबोटिक एक्सप्लोरर्स (Robotic Explorers), ह्यूमन लूनर लैंडिंग साइटों (Human Lunar Landing Sites) को चिह्नित करने तथा भविष्य की  चन्द्र मानव अन्वेषण प्रणाली (human exploration of the Moon) हेतु उपयोग किये जा सकने वाले उपायों/तकनीकियों को ग्रहण करने के लिये मानक तय करना।

स्रोत: द हिंदू


हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने स्वदेशी रूप से विकसित हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle- HSTDV) का पहला सफल परीक्षण किया है।
  • यह परीक्षण बालासोर, ओडिशा स्थित डॉ. अब्दुल कलाम द्वीप के एकीकृत परीक्षण रेंज (आइटीआर) से किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • HTDV प्रोजेक्ट DRDO की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है और इसका उद्देश्य कई सैन्य और नागरिक लक्ष्यों को सेवाएँ प्रदान करना है।
  • यह हाइपरसोनिक गति से उड़ान भरने वाला मानव रहित स्क्रैमजेट प्रदर्शन विमान है, इसकी गति ध्वनि की गति से 6 गुना अधिक होने के साथ ही यह आसमान में 20 सेकेंड में लगभग 32.5 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँच जाता है।
  • इस विमान का उपयोग क्रूज़ मिसाइलों को लॉन्च करने हेतु किया जा सकता है तथा  यह कम लागत पर उपग्रहों को लॉन्च करने में भी सक्षम है।
  • इस परियोजना के तहत ऐसा हाइपरसोनिक वाहन तैयार किया जा रहा है जिसमें स्क्रैमजेट इंजन का प्रयोग किया गया है।
  • निकट भविष्य में इस वाहन द्वारा लंबी दूरी की क्रूज़ मिसाइलों जैसे- ब्रह्मोस-2 को प्रक्षेपित करने में सहायकता मिलने की संभावना है।
  • इस वाहन को DRDO द्वारा इज़राइल, ब्रिटेन और रूस जैसे देशों की सहायता से तैयार किया जा रहा है।
  • इस परीक्षण के साथ ही भारत हाईपरसोनिक टेक्नोलॉजी से युक्त विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया है। अभी तक यह तकनीकी केवल अमेरिका, रूस, चीन, फ्राँस और इंग्लैंड के पास ही उपलब्ध थी।

स्क्रैमजेट इंजन टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर (Scramjet Engine Technology Demonstrator)

  • अभी तक कृत्रिम उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करने हेतु जिन बहु-मंचित उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों (Multi-staged Satellite Launch Vehicles) द्वारा प्रक्षेपित किया जाता है, ये प्रक्षेपण वाहन प्रणोद उत्पन्न करने के लिये ईंधन के साथ-साथ दहन हेतु ऑक्सीडाइज़र का प्रयोग करते हैं।
  • एक बार इस्तेमाल के लिये डिज़ाइन किये प्रमोचन वाहन महँगे होते हैं और उनकी क्षमता कम होती है, क्योंकि वे अपने उत्थापन द्रव्यमान (lift-off mass) का केवल 2-4% ही वहन कर सकते हैं। इसलिये दुनिया भर में लॉन्च लागत को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • प्रक्षेपण वाहन द्वारा ले जाए जाने वाले ऑक्सीडाइज़र में लगभग 70% प्रणोदक (ईंधन ऑक्सीडाइज़र के संयोजन) होते हैं। इसलिये अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण वाहन की प्रणोदन प्रणाली को इसप्रकार विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है जो वायुमंडल से उड़ान के दौरान वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग करेंगे, जिससे कि उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिये अपेक्षित कुल प्रणोदक की मात्रा बहुत ही कम होगी।
  • इसके अलावा, अगर उन वाहनों को पुनःउपयोगी बनाया जाए, इससे उपग्रहों के प्रमोचन के लागत में और कमी आएगी।
  • इस प्रकार, वायुश्वसन प्रणोदन के साथ-साथ भविष्य में पुनःउपयोगी प्रक्षेपण यान अवधारणा से, कम कीमत पर अंतरिक्ष में नियमित पहुंच, एक रोमांचक बात है।
  • विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा तीन प्रकार के एयर ब्रीदिंग इंजनों अर्थात् वायुश्वसन इंजनों (Air Breathing Engines): रैमजेट (Ramjet), स्क्रैमजेट (Scramjet) और डुअल मोड रैमजेट (Dual Mode Ramjet-DMRJ) को विकसित किया जा रहा है।
  • रैमजेट इंजन, एयर ब्रीदिंग इंजन का ही एक रूप है जो वाहन की अग्र गति (forward motion) का उपयोग कर आने वाली हवा को बिना घूर्णन संपीडक (rotating compressor) के दहन (combustion) के लिये संपीड़ित करता है। ईंधन को दहन कक्ष में अंतक्षेपण किया जाता है जहाँ वह गर्म संपीड़ित हवा के साथ मिलकर प्रज्वलित होता है।

ramjets

  • एक रैमजेट-संचालित वाहन को भी एक रॉकेट की भाँति टेक-ऑफ करने की  आवश्यकता होती है इसलिये रैमजेट इंजन इस वाहन को त्वरित गति प्रदान करने में मदद करता है।

1 मैक (Mach) = 1,192.68 km/h

  • रैमजेट 3 मैक (ध्वनि की गति से तीन गुना) के आसपास सुपरसोनिक गति पर सबसे कुशलता से काम करते हैं और अधिकतम मैक 6 की गति तक इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • जब वाहन हाइपरसोनिक गति पर पहुँच जाता है तो रैमजेट इंजन की दक्षता कम होने लगती है।
  • स्क्रैमजेट इंजन, रैमजेट इंजन की तुलना में अत्यधिक कुशल है क्योंकि यह हाइपरसोनिक गति से कुशलतापूर्वक संचालित होता है और सुपरसोनिक गति से ईधन के दहन की अनुमति देता है। इसलिये इसे सुपरसोनिक दहन रैमजेट (Supersonic Combustion Ramjet) या स्क्रैमजेट कहते है।

Dual Modes Ramjet

  • डुअल मोड रैमजेट (DMRJ) एक जेट इंजन है, जिसमें  रैमजेट मैक 4-8 की गति के बाद स्क्रैमजेट में परिवर्तित हो जाता है, जिसका अर्थ है कि यह इंजन सबसोनिक और सुपरसोनिक मोड दोनों में कुशलतापूर्वक काम कर सकता है।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO)

  • DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation-DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment-TDEs) और तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद हुई।
  • DRDO रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के तहत काम करता है।
  • यह रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ-साथ तीनों क्षेत्रों के रक्षा सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है।
  • DRDO सैन्य प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है, जिसमें वैमानिकी, शस्त्र, युद्धक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, मिसाइलें, नौसेना प्रणालियाँ, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन और जीवन विज्ञान शामिल है।

स्रोत: द हिंदू, इसरो को आधिकारिक वेबसाईट


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (14 June)

  • 13 जून को विश्वभर में अंतर्राष्ट्रीय रंगहीनता जागरूकता दिवस (International Albinism Awareness Day) मनाया गया। हमारी पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रंगों के लोग पाए जाते हैं, इनमें से कुछ प्राकृतिक रूप से काले या सफेद होते हैं तो कुछ किसी तत्त्व की कमी के कारण अजीब से रंगों के हो जाते हैं। लैटिन शब्द ऐल्बस यानी (सफेद) से इसकी उत्पत्ति हुई है। इसे ऐक्रोमिया, ऐक्रोमेसिया या ऐक्रोमेटोसिस (वर्णांधता या अवर्णता) भी कहा जाता है। यह मेलेनिन के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव या दोष की वजह से त्वचा, बाल और आँखों में रंजक या रंग के संपूर्ण या आंशिक अभाव द्वारा चिह्नित किया जाने वाला एक जन्मजात विकार है। यह मानव सहित सभी रीढ़धारियों को प्रभावित करता है। यह एक प्रकार का रोग है जिसमें त्वचा में पिगमेंट की कमी हो जाती है और इसकी वज़ह से त्वचा का रंग हल्का हो जाता है। गौरतलब है कि 18 दिसंबर, 2014 को रंगहीनता के शिकार लोगों के साथ विश्व में होने वाले भेदभाव के विरुद्ध जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 13 जून को इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने की थी।
  • 12 जून को भारत ने ओडिशा में बालासोर तट के निकट एक बेस से हाइपरसोनिक गति से उड़ान के लिये देश में विकसित Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle (HSTDV) का पहला सफल परीक्षण किया। यह विमान हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली विकसित करने संबंधी देश के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम का एक अहम हिस्सा है। DRDO ने बंगाल की खाड़ी में डॉ. अब्दुल कलाम द्वीप से HSTDV का यह परीक्षण किया। जो विमान 6126 से 12251 किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ता है, उसे हाइपरसोनिक विमान कहते हैं। भारत का यह HSTDV परीक्षण 20 सेकंड से भी कम समय का था। इसमें सफलता मिल जाने के बाद भारत ऐसी तकनीक हासिल करने वाले देशों के चुनिंदा क्लब में शामिल हो जाएगा। चीन, अमेरिका और रूस भी हाइपरसोनिक विमान का परीक्षण कर चुके हैं। इस विमान का उपयोग मिसाइल और सैटेलाइट लॉन्च करने के लिये किया सकता है।
  • इसरो ने चंद्रमा पर जाने के लिये भारत के स्पेस मिशन चंद्रयान-2 के लॉन्च का ऐलान कर दिया है। इसरो के चेयरमैन डॉ. के. सिवान ने बेंगलुरु में बताया कि 15 जुलाई को सुबह 2 बजकर 51 मिनट पर चंद्रयान-2 को लॉन्च किया जाएगा। इसमें तीन हिस्से होंगे- लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर। रोवर एक रोबोटिक आर्टिकल है, जिसका वज़न 27 किलो और लंबाई 1 मीटर है। लैंडर का वज़न 1.4 टन और लंबाई 3.5 मीटर है। ऑर्बिटर का वज़न 2.4 टन और लंबाई 2.5 मीटर है। लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर को कंपोज़िट बॉडी कहा गया है। इस कंपोज़िट बॉडी को GSLV Mk lll से लॉन्च किया जाएगा और सही समय पर लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा। लैंडर अपने प्रोपल्शन का इस्तेमाल कर चंद्रमा से 30 किमी. दूर वहाँ के साउथ पोल पर लैंड करेगा। इसरो के इस मिशन स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल लोगों की सुरक्षा और क्वॉलिटी ऑफ लाइफ को बेहतर बनाने के लिये किया जाएगा।
  • संयुक्त राष्ट्र में भारत ने पहली बार किसी प्रस्ताव को लेकर इज़राइल का पक्ष लिया है। संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद में भारत ने इज़राइल के उस प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया जिसमें फिलिस्तीन के एक गैर-सरकारी संगठन शाहेद को सलाहकार का दर्जा देने की बात कही गई गई थी। अपने प्रस्ताव में इज़राइल ने कहा कि इस संगठन ने हमास के साथ अपने संबंधों का खुलासा नहीं किया था। इज़राइल के मसौदा प्रस्ताव ‘एल-15’ के पक्ष में 28 मत पड़े जबकि 15 देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया। वहीं 5 देशों ने मत-विभाजन में भाग नहीं लिया। प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने वाले देशों में ब्राज़ील, कनाडा, कोलंबिया, फ्राँस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, जापान, कोरिया, यूक्रेन, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। आपको बता दें कि अब तक भारत ने कभी भी फिलीस्तीन या उसकी किसी संस्था के खिलाफ जाकर इज़राइल के पक्ष में वोट नहीं किया था।
  • अंग्रेज़ी के प्रख्यात साहित्यकार अमिताव घोष को वर्ष 2018 के लिये 54वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वह अंग्रेज़ी के पहले लेखक हैं। देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में उन्हें पुरस्कार स्वरूप 11 लाख रुपए की राशि, वाग्देवी की प्रतिमा और प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया। उन्हें यह पुरस्कार गोपाल कृष्ण गांधी ने दिया। आपको बता दें कि दिसंबर 2018 प्रतिभा रॉय की अध्यक्षता में आयोजित ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया था। अंग्रेज़ी को तीन साल पहले ही ज्ञानपीठ पुरस्कार की भाषा के रूप में शामिल किया गया था। अमिताव घोष साहित्य अकादमी और पद्मश्री सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘द सर्किल ऑफ रीजन’, ‘दे शेडो लाइन’, ‘द कलकत्ता क्रोमोसोम’, ‘द ग्लास पैलेस’, ‘द हंगरी टाइड’, ‘रिवर ऑफ स्मोक’ और ‘फ्लड ऑफ फायर प्रमुख हैं। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम लेखक जी. शंकर कुरूप को प्रदान किया गया था।