भारतीय राजव्यवस्था
महामारी के दौर में सहकारी संघवाद
प्रीलिम्स के लियेसहकारी संघवाद, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 मेन्स के लियेसहकारी संघवाद: अर्थ, महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल के दिनों में कई विशेषज्ञों ने केंद्र सरकार पर COVID-19 महामारी के दौर में भारतीय संघवाद को कमज़ोर करने का आरोप लगाया है।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि आज़ादी के पश्चात् भिन्न-भिन्न प्रकार की परिस्थितियों ने भारतीय संघवाद और भारतीय लोकतंत्र का अपने-अपने ढंग से परीक्षण किया और प्रत्येक चुनौती में भारतीय लोकतंत्र ने नए-नए प्रतिमान स्थापित किये, किंतु देश में नवीनतम परिस्थितियों जैसी चुनौती कभी भी देखने को मिली, यह समय न केवल भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली के लिये चुनौतीपूर्ण है बल्कि भारतीय संघीय ढाँचे के लिये भी एक संकट का समय है।
- विश्लेषकों का मत है कि COVID-19 संकट को सक्रिय रूप से हराने में भारत की सफलता पूर्ण रूप से केंद्र-राज्य सहयोग पर टिकी हुई है। यह वास्तव में संघवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता है जो वर्तमान समय में सर्वाधिक तनाव के अधीन है।
संघवाद और सहकारी संघवाद
- ज्ञातव्य है कि संघवाद (Federalism) शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘Foedus’ से हुई है जिसका अर्थ एक प्रकार के समझौते या अनुबंध से होता है। वास्तव में महासंघ दो तरह की सरकारों के बीच सत्ता साझा करने और उनके संबंधित क्षेत्रों को नियंत्रित करने हेतु एक समझौता होता है।
- इस आधार पर कहा जा सकता है कि संघवाद सरकार का वह रूप है जिसमें देश के भीतर सरकार के कम-से-कम दो स्तर मौजूद हैं- पहला केंद्रीय स्तर पर और दूसरा स्थानीय या राज्य स्तर पर। भारत की स्थिति में संघवाद को स्थानीय, केंद्रीय और राज्य सरकारों के मध्य अधिकारों के वितरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- केंद्र और राज्य सरकार के बीच संबंधों के आधार पर संघवाद की अवधारणा को दो भागों में विभाजित किया गया है (1) सहकारी संघवाद (2) प्रतिस्पर्द्धी संघवाद।
- सहकारी संघवाद में केंद्र व राज्य एक-दूसरे के साथ क्षैतिज संबंध स्थापित करते हुए एक-दूसरे के सहयोग से अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हैं। सहकारी संघवाद की इस अवधारणा में यह स्पष्ट किया जाता है कि केंद्र और राज्य में से कोई भी किसी से श्रेष्ठ नहीं है।
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के मध्य संबंध लंबवत होते हैं जबकि राज्य सरकारों के मध्य संबंध क्षैतिज होते हैं। प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में राज्यों को आपस में और केंद्र के साथ लाभ के उद्देश्य से प्रतिस्पर्द्धा करनी होती है।
- ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के संविधान विशेषज्ञ के. सी. व्हेअर (K.C. Wheare) के अनुसार, संघवाद पारंपरिक रूप से क्षेत्र विशिष्ट में एक देश की संघ और राज्य सरकारों की स्वतंत्रता का प्रतीक है।
- जब संविधान सभा के सदस्यों ने अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और स्विटज़रलैंड जैसे अन्य महान संघों के संविधानों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया, तो उन्होंने भारतीय गणतंत्र की आवश्यकता के अनुरूप एक प्रणाली तैयार करने हेतु ‘पिक एंड चूज़’ (Pick and Choose) की नीति अपनाई।
- परिणामस्वरूप, भारत की संविधान सभा ‘सहकारी संघवाद’ को अपनाने के लिये विश्व में पहली बार निर्वाचित निकाय बन गई।
COVID-19 के दौर में सहकारी संघवाद पर संकट
- मौजूदा दौर में कोरोनावायरस (COVID-19) विश्व के लगभग सभी देशों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है, जिसमें समृद्ध और चिकित्सकीय रूप से उन्नत पश्चिमी देश भी शामिल हैं। कोरोनावायरस संक्रमण का आँकड़ा वैश्विक स्तर पर 44 लाख के पार जा चुका है, भारत में भी यह संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है।
- इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं, किंतु देश में कई विशेषज्ञों ने COVID-19 के संबंध में कुछ हालिया घटनाक्रमों के आधार पर केंद्र-राज्य संबंधों में आए तनाव पर चिंता ज़ाहिर की है।
- उदाहरण के लिये केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों का रेड (Red), ऑरेंज (Orange) और ग्रीन (Green) ज़ोन में किये गए वर्गीकरण का विभिन्न राज्य सरकारों ने विरोध किया है। राज्यों ने केंद्र सरकार से इस प्रकार के वर्गीकरण में अधिक स्वायत्तता की मांग की है।
- विदित हो कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 जिसके तहत केंद्र द्वारा राज्यों को COVID-19 संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये जा रहे हैं, केंद्र सरकार के लिये राज्यों के साथ परामर्श को अनिवार्य करता है। किंतु केंद्र के हालिया कई निर्णयों में इस बाध्यता का पालन नहीं किया गया है।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 11 के तहत एक 'राष्ट्रीय योजना' बनाने की परिकल्पना की गई है, साथ ही अधिनियम की धारा 11 (2) इस 'राष्ट्रीय योजना' को तैयार करने से पूर्व राज्य के परामर्श को अनिवार्य करता है।
- हालाँकि, केंद्र सरकार ने अभी तक ‘राष्ट्रीय योजना’ तैयार नहीं की है, इसके स्थान पर COVID-19 का मुकाबला करने के लिये केंद्र सरकार राज्यों को ‘तदर्थ बाध्यकारी दिशा-निर्देशों’ (Ad Hoc Binding Guidelines) जारी कर रही है।
- इस प्रकार के दिशा-निर्देश राज्य के परामर्श के विधायी जनादेश को दरकिनार करते हैं।
- केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि वे निगम जिन्होंने PM-CARES फंड में दान दिया है, CSR छूट का लाभ उठा सकते हैं, किंतु मुख्यमंत्री राहत कोष में दान देने वाले लोग इसका लाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
- इस प्रकार यह निर्णय मुख्यमंत्री राहत कोष में दान को हतोत्साहित करता है और राज्यों को वित्तीय सहायता के लिये केंद्र पर और अधिक निर्भर बनाता है।
- इसके अतिरिक्त देश में लंबे समय तक शराब बिक्री पर रोक लगी रही, जिसके कारण राज्यों का राजस्व काफी कम हो गया है। हालाँकि अब देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में शराब पर प्रतिबंध हटा दिये गए हैं।
- वहीं पेट्रोल और डीज़ल की शून्य बिक्री के कारण भी राज्यों को राजस्व की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- इन सभी कारणों के परिणामस्वरूप राज्यों के लिये वेतन, पेंशन और कल्याणकारी योजनाओं के खर्चों को उठाना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल हो गया है।
निष्कर्ष
- उल्लेखनीय है कि राज्य वे पहली इकाई होते हैं, जो किसी भी आपदा अथवा महामारी (मौजूदा समय में COVID-19) के समय में पहली प्रतिक्रिया देते हैं, इस प्रकार पर्याप्त धन राशि की आपूर्ति करना संकट से प्रभावी ढंग से निपटने की पूर्व आवश्यकता बन जाता है। किंतु मौजूदा समय में केंद्र सरकार द्वारा जिस प्रकार के निर्णय लिये जा रहे हैं, वे स्पष्ट तौर पर इस सिद्धांत का उल्लंघन कर रहे हैं। आवश्यक है कि केंद्र सरकार राज्यों को बराबरी में देखे और स्वयं पर निर्भरता बढ़ाने के स्थान पर उनकी क्षमता को मज़बूत करे।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
बच्चों में कावासाकी रोग जैसे लक्षणों वाली बीमारी के मामलों में वृद्धि
प्रीलिम्स के लियेकावासाकी रोग, COVID-19 मेन्स के लियेCOVID-19 के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियाँ और उनके समाधान के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इटली में किये गए एक अध्ययन में चिकित्सकों ने COVID-19 के संपर्क में आने वाले बच्चों में कावासाकी रोग (Kawasaki disease) जैसे लक्षणों वाली एक असामान्य बीमारी के फैलने के बारे में जानकारी दी है।
प्रमुख बिंदु:
- उत्तरी इटली के बेरगामो (Bergamo) क्षेत्र में चिकित्सकों ने बच्चों में कावासाकी रोग जैसे लक्षणों वाली एक असामान्य बीमारी के मामलों में 30 गुना वृद्धि देखी है।
- फरवरी (वर्ष 2020) के मध्य तक इस बीमारी से क्षेत्र में 5 वर्ष तक के मात्र 19 बच्चों में इस बीमारी की पुष्टि की गई थी परंतु 18 फरवरी से 20 अप्रैल, 2020 के बीच इस बीमारी के 10 नए मामले सामने आए थे।
- चिकित्सकों के अनुसार, 18 फ़रवरी, 2020 के बाद अस्पताल में लाए गए 10 मरीज़ों में से 8 एंटीबॉडी टेस्ट के दौरान COVID-19 से संक्रमित पाए गए थे।
- ऐसे ही कुछ मामले न्यूयार्क और इंग्लैंड के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में भी देखे गए हैं।
क्या है कावासाकी रोग?
- कावासाकी एक असामान्य रोग है जो मुख्यतः 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रभावित करता है।
- इस रोग पीड़ित व्यक्ति के शरीर में रक्त वाहिकाओं में सूजन हो जाती है। बुखार, हाथों-पैरों की सूजन, होंठ और गले में जलन और सूजन आदि इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं।
- यह रोग मरीज़ के शरीर में हृदय को सबसे गंभीर रूप से प्रभावित करता है क्योंकि इस रोग के कारण हृदय को रक्त पहुँचाने वाली धमनियों में सूजन हो जाती है जिससे हृदय की गति प्रभावित होती है।
- कावासाकी रोग को कावासाकी सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है।
- वर्ष 1967 में जापान के एक बाल रोग विशेषज्ञ ‘टोमीसाकू कावासाकी’ (Tomisaku Kawasaki) ने पहली बार इस रोग की पहचान कर इसके बारे में जानकारी उपलब्ध कराई थी।
- वर्ष 1976 में पहली बार जापान से बाहर अमेरिका के ‘हवाई’ (Hawaii) राज्य में इस रोग के कुछ मामले देखे गए थे।
COVID-19 और कावासाकी:
- चिकित्सकों के अनुसार, COVID-19 महामारी के बाद जिन बच्चों में कावासाकी रोग की पुष्टि की गई उनकी आयु आमतौर पर (COVID-19 से पहले) कावासाकी ग्रस्त बच्चों की तुलना में अधिक थी।
- COVID-19 के बाद कावासाकी से ग्रस्त बच्चों में पूर्व (COVID-19 से पहले) की तुलना में इस रोग की गंभीरता और तीव्रता बहुत अधिक थी।
- साथ ही COVID-19 महामारी के बाद कावासाकी से ग्रस्त बच्चों में अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली के लक्षण भी देखे गए हैं।
- हालाँकि इस अध्ययन से जुड़े चिकत्सकों ने माना है कि उनकी रिपोर्ट बहुत ही कम मामलों पर आधारित है और COVID-19 तथा कावासाकी रोग के बीच किसी जुड़ाव की पुष्टि के लिये बड़े अध्ययनों की आवश्यकता होगी।
चुनौतियाँ:
- वर्तमान में कावासाकी रोग के विस्तार के सही आँकड़े जान पाना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि COVID-19 महामारी के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं पर दबाव बढ़ने से अस्पतालों में COVID-19 के अतिरिक्त अन्य मरीज़ों के दाखिलों में गिरावट आई है।
- विश्व के अधिकांश देशों में अस्पतालों में COVID-19 मरीज़ों में वृद्धि के कारण स्वास्थ्य तंत्र का अधिकांश हिस्सा COVID-19 के नियंत्रण में लगा है ऐसे में अन्य रोगों की सही समय पर जाँच कर पाना और उचित उपचार उपलब्ध कराना कठिन हो गया है।
आगे की राह:
- इस शोध से जुड़े एक चिकित्सक के अनुसार, अभी तक COVID-19 से संक्रमित ऐसे बच्चों की संख्या बहुत ही कम हैं जिनमें कावासाकी रोग के लक्षण देखे गए हैं, हालाँकि छोटे बच्चों में इस वायरस के गंभीर प्रभावों को समझाना बहुत ही आवश्यक है, विशेषकर वर्तमान में जब विश्व के अधिकांश देश लॉकडाउन में ढील देने पर विचार कर रहे हैं।
- भारत में कावासाकी रोग के मामलों की संख्या बहुत अधिक नहीं है (वर्ष 2009-14 के बीच चंडीगढ़ में 5 वर्ष आयु के प्रति 1 लाख बच्चों में लगभग 5 मामले) परंतु पिछले दो दशकों में इसके मामलों में तीव्र वृद्धि हुई है, ऐसे में इस महामारी के दौरान बच्चों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना होगा।
- हाल के कुछ दिनों में विश्व के विभिन्न हिस्सों में COVID-19 को कई अन्य बीमारियों से जोड़कर देखा गया है। अतः यह सुनिश्चित करना बहुत ही आवश्यक है कि COVID-19 के उपचार के प्रयासों के साथ ही अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं (टीकाकरण, दवाओं की उपलब्धता आदि) में कमी न हो।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
राष्ट्रीय बायोमेडिकल संसाधन स्वदेशीकरण कंसोर्टियम
प्रीलिम्स के लियेNBRIC, C-CAMP मेन्स के लियेCOVID-19 से लड़ने हेतु किये गए विभिन्न प्रयास |
चर्चा में क्यों?
जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत राष्ट्रीय बायोमेडिकल संसाधन स्वदेशीकरण कंसोर्टियम (National Biomedical Resource Indigenization Consortium-NBRIC) शुरू किया है।
प्रमुख बिंदु
- इसका उद्देश्य COVID-19 के लिये निदान, टीके और चिकित्सा विज्ञान के लिये अभिकर्मकों (Reagents) और संसाधनों का विकास करना है। इससे स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
- NBRIC का नेतृत्त्व सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर प्लेटफॉर्म (Centre for Cellular and Molecular Platform-C-CAMP) द्वारा की जा रही है।
- NBRIC आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा देने की दिशा में बायोमेडिकल अनुसंधान और नवीन उत्पादों के लिये एक ‘मेक इन इंडिया' (Make in India) पहल है।
उद्देश्य
- महत्त्वपूर्ण जैव-चिकित्सा संसाधनों के प्रदाताओं और विनिर्माण उद्यमों की पहचान करना।
- प्रदाताओं और विनिर्माण उद्यमों की वर्तमान क्षमताओं, योग्यताओं और आवश्यकताओं का आकलन करना।
- एक सक्षम वातावरण बनाने और सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के साथ जोड़कर ऐसे उद्यमों का समर्थन करना।
- COVID-19 हेतु निदान और टीके के विकास के लिये जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT), जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Assistance Council-BIRAC) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) आदि से आने वाली फंडिंग के लिये प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करना।
सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर प्लेटफॉर्म (C-CAMP)
- सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर प्लेटफॉर्म (C-CAMP) भारत सरकार के अधीन जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT) की पहल और एक गैर-लाभकारी संगठन है।
- उल्लेखनीय है कि C-CAMP जीव विज्ञान के क्षेत्र में भारत में प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार और उद्यमिता के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण केंद्रों में से एक है।
- C-CAMP की स्थापना अत्याधुनिक जीव विज्ञान अनुसंधान और उद्यमशीलता को सक्षम करने के उद्देश्य से की गई थी।
- C-CAMP के कार्य
- जीव विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीक विकसित करना और उपलब्ध कराना, साथ ही इन प्रौद्योगिकियों पर लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करना।
- नवाचार को प्रोत्साहित करने और जैव-तकनीक उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण।
COVID-19 रिसर्च कंसोर्टियम
- हाल ही में सार्स सीओवी- 2 (SARS-CoV-2) के विरुद्ध जल्द-से-जल्द सुरक्षित एवं प्रभावी जैव-चिकित्सा समाधान विकसित करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) ने COVID-19 रिसर्च कंसोर्टियम (COVID-19 Research Consortium) हेतु आवेदन आमंत्रित किये थे।
- DBT और BIRAC रिसर्च कंसोर्टियम के तहत COVID-19 के नियंत्रण हेतु निदान, टीके विकसित करने, दवाओं के नए उपयोग या अन्य हस्तक्षेप आदि के लिये उद्योग व शिक्षा जगत को समर्थन प्रदान करने के प्रस्तावों का निरंतर मूल्यांकन कर रहे हैं।
- बहुस्तरीय समीक्षा व्यवस्था के माध्यम से उपकरण, निदान, टीके विकसित करने, रोग-चिकित्सा तथा अन्य हस्तक्षेप से संबंधित 70 प्रस्तावों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की सिफारिश की गई है।
- चुने गए प्रस्तावों में टीके के 10 , रोग-निदान उत्पाद के 34, चिकित्सीय विकल्प के 10, दवाओं के नए उपयोग के 02 प्रस्ताव और निवारक हस्तक्षेप के रूप में वर्गीकृत 14 परियोजनाएँ शामिल हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
आंतरिक सुरक्षा
फेक न्यूज़ को रोकने हेतु दिशा-निर्देश
प्रीलिम्स के लिये:ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट मेन्स के लिये:फेक न्यूज़ से उत्पन्न समस्याओं से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
‘पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो’ (Bureau of Police Research and Development-BPRD) ने फेक न्यूज़ और वीडियो की पहचान करने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता हेतु दिशा-निर्देश जारी किया है।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि डिजिटल युग में ‘फेक न्यूज़ या यलो जर्नलिज़्म’ दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। फेक न्यूज़ किसी एजेंसी, इकाई या व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने और आर्थिक या राजनीतिक रूप से लाभ पाने के उद्देश्य से प्रकाशित किये जाते हैं।
- फेक न्यूज़ का उपयोग अक्सर सनसनीखेज, गलत या स्पष्ट रूप से मनगढ़ंत सुर्खियों का उपयोग पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिये भी किया जाता है।
- गौरतलब है कि महामारी के मद्देनज़र, फेक न्यूज़ और वीडियो ने लोगों में दहशत फैलाने के साथ ही घृणा और सांप्रदायिक हिंसा को भी बढ़ावा दिया है।
- साइबर अपराधियों ने फेक यूआरल (Fake URL) का उपयोग कर उन लोगों को गुमराह करने की कोशिश की है जो PM-CARES फंड में दान करना चाहते थे।
प्रमुख दिशा-निर्देश
- जाँच अधिकारियों को ऐसी वेबसाइट और लिंक से सतर्क रहना चाहिये जिनमें वर्तनी की गलतियाँ हों तथा किसी व्यक्ति द्वारा भेजी गई लिंक वास्तविक सामग्री से मेल न खाती हो।
- वायरल फोटो, ऑडियो रिकॉर्डिंग और वीडियो को तुरंत संज्ञान में लेना चाहिये।
- न्यूज़ को सत्यापित करने हेतु विभिन्न विश्वसनीय समाचार स्रोतों का अवलोकन करना चाहिये। यदि विभिन्न समाचार पत्रों में एक ही घटना प्रकाशित की गई हो तो उसके सत्य होने की संभावना अत्यधिक होती है।
- किसी भी समाचार की सत्यता हेतु लेखक की भी पहचान की जानी चाहिये।
- इन दिशा-निर्देशों में अधिकारियों को कुछ वेबसाइटों की सूची भी प्रदान की गई है जो तथ्य/जाँच में मददगार साबित हो सकती हैं।
क्या है इंटरनेट मीडिया:
- आज का दौर ‘ इंटरनेट मीडिया’ का है। बिल जमा करने, नौकरी-परीक्षा के फॉर्म भरने-जमा करने, फोन करने, पढ़ने व खरीदारी आदि के लिये लम्बी लाइनों में लगने की बात अब बीते दौर की बात हो गई है। लोग अब लाइन में खड़े होने के बजाय ऑनलाइन होना ज़्यादा पसंद करते हैं, जो कि सही भी है।
- इंसान अपनी प्रकृति में ही जिज्ञासु होता है, अपने पास-पड़ोस और देश-दुनिया के बारे में जानना उसकी प्रवृत्ति होती है, और आज जब इंटरनेट फ्री अथवा एकदम सस्ता उपलब्ध है, ऐसे में इंटरनेट मीडिया का उदय होना निश्चित था।
इंटरनेट मीडिया के खतरे:
- पहले जब व्यक्ति न्यूज़ पढ़ने के लिये समाचार-पत्रों पर निर्भर था तो वह वैसी ख़बरों से रूबरू होता था जो कई माध्यमों से छनकर उस तक पहुँचती थी लेकिन अब ‘रियल टाइम खबरों’ का दौर है जहाँ कोई भी फेक न्यूज़ लाखों लोगों द्वारा शेयर की जाती है, ट्विट और रि-ट्विट की जाती, कभी-कभी तो किसी का विचार, किसी का निजी प्रोपगेंडा भी सत्य मान लिया जाता है।
पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो
(Bureau of Police Research and Development- BPRD):
- पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो की स्थापना गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) के तहत 28 अगस्त, 1970 को भारत सरकार द्वारा की गई थी।
- इसने पुलिस के आधुनिकीकरण के प्राथमिक उद्देश्य के साथ पुलिस अनुसंधान और सलाहकार परिषद (Police Research and Advisory Council) को प्रतिस्थापित किया था।
- वर्ष 2008 में भारत सरकार ने देश में पुलिस बलों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से BPRD के तहत राष्ट्रीय पुलिस मिशन (National Police Mission) के सृजन का निर्णय लिया था।
आगे की राह:
- फेक न्यूज़ के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं जो राष्ट्र की एकता व अखंडता को बाधित करते हैं तथा सांप्रदायिक दंगों आदि को प्रेरित करते हैं। इसलिये फेक न्यूज़ या गलत सूचना हेतु लोगों को जागरूक किया जाना चाहिये ताकि लोग प्रसारित हो रही सूचनाओं के मूल तथ्यों व इनके पीछे की मंशा को समझने में सक्षम हों।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
आत्मनिर्भर भारत अभियान तथा आर्थिक प्रोत्साहन
प्रीलिम्स के लिये:आत्मनिर्भर भारत अभियान, क्रेडिट गारंटी, MSMEs की नवीन परिभाषा मेन्स के लिये:आत्मनिर्भर भारत अभियान |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा COVID-19 महामारी के दौरान देश को संबोधित करते हुए 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' की चर्चा की गई तथा आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की गई।
प्रमुख बिंदु:
- प्रधानमंत्री ने COVID-19 महामारी से पहले तथा बाद की दुनिया के बारे में बात करते हुए कहा कि 21 वीं सदी के भारत के सपने को साकार करने के लिये देश को आत्मनिर्भर बनाना ज़रूरी है।
- प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि भारत को COVID-19 महामारी संकट को एक अवसर के रूप में देखना चाहिये।
आत्मनिर्भर भारत:
- वर्तमान वैश्वीकरण के युग में आत्मनिर्भरता (Self-Reliance) की परिभाषा में बदलाव आया है। आत्मनिर्भरता (Self-Reliance), आत्म-केंद्रित (Self-Centered) से अलग है।
- भारत 'वसुधैव कुटुंबकम्' की संकल्पना में विश्वास करता है। चूँकि भारत दुनिया का ही एक हिस्सा है, अत: भारत प्रगति करता है तो ऐसा करके वह दुनिया की प्रगति में भी योगदान देता है।
- ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण में वैश्वीकरण का बहिष्करण नहीं किया जाएगा अपितु दुनिया के विकास में मदद की जाएगी।
मिशन के चरण:
- मिशन को दो चरणों में लागू किया जाएगा:
- प्रथम चरण:
- इसमें चिकित्सा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, खिलौने जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि स्थानीय विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।
- द्वितीय चरण:
- इस चरण में रत्न एवं आभूषण, फार्मा, स्टील जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तंभ:
- आत्मनिर्भर भारत पाँच स्तंभों पर खड़ा होगा:
- अर्थव्यवस्था (Economy):
- जो वृद्धिशील परिवर्तन (Incremental Change) के स्थान पर बड़ी उछाल (Quantum Jump) पर आधारित हो;
- अवसंरचना (Infrastructure):
- ऐसी अवसंरचना जो आधुनिक भारत की पहचान बने;
- प्रौद्योगिकी (Technolog):
- 21 वीं सदी प्रौद्योगिकी संचालित व्यवस्था पर आधारित प्रणाली;
- गतिशील जनसांख्यिकी (Vibrant Demography):
- जो आत्मनिर्भर भारत के लिये ऊर्जा का स्रोत है;
- मांग (Demand):
- भारत की मांग और आपूर्ति श्रृंखला की पूरी क्षमता का उपयोग किया जाना चाहिये।
आत्मनिर्भर भारत के लिये आर्थिक प्रोत्साहन:
- प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत निर्माण की दिशा में विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। यह पैकेज COVID-19 महामारी की दिशा में सरकार द्वारा की गई
- पूर्व घोषणाओं तथा RBI द्वारा लिये गए निर्णयों को मिलाकर 20 लाख करोड़ रुपये का है, जो भारत की ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (Gross domestic product- GDP) के लगभग 10% के बराबर है। पैकेज में भूमि, श्रम, तरलता और कानूनों (Land, Labour, Liquidity and Laws- 4Is) पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
आर्थिक पैकेज का विश्लेषण:
- घोषित किया गया पैकेज वास्तविकता में घोषित मूल्य से बहुत कम माना जा रहा है क्योंकि इसमें सरकार के 'राजकोषीय' पैकेज के हिस्से के रूप में RBI द्वारा पूर्व में की गई घोषणाओं को भी शामिल किया गया हैं।
- सरकार द्वारा पैकेज के तहत घोषित प्रत्यक्ष उपायों में सब्सिडी, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, वेतन का भुगतान आदि शमिल होते हैं। जिसका लाभ वास्तविक लाभार्थी को सीधे प्राप्त होता है। परंतु सरकार द्वारा की जाने वाली अप्रत्यक्ष सहायता जैसे 'भारतीय रिजर्व बैंक' के ऋण सुगमता उपायों का लाभ सीधे लाभार्थी तक नहीं पहुँच पाता है।
- RBI द्वारा दी जाने वाली सहायता को बैंक ऋण देने के बजाय पुन: RBI के पास सुरक्षित रख सकते हैं। हाल ही में भारतीय बैंकों ने केंद्रीय बैंक में 8.5 लाख करोड़ रुपए जमा किये हैं।
- इस प्रकार घोषित राशि GDP के 10% होने के बावजूद GDP के 5% से भी कम राशि प्रत्यक्ष रूप में लोगों तक पहुँचने होने की उम्मीद है।
उद्योगों क लिये विशेष प्रोत्साहन:
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग’ के लिये क्रेडिट गारंटी:
(Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs)
- हाल ही में MSMEs तथा अन्य क्षेत्रों के लिये सरकार द्वारा विभिन्न क्रेडिट गारंटी योजनाओं की घोषणा की गई।
- क्रेडिट गारंटी:
- बैंकों द्वारा MSMEs को दिया जाने वाला अधिकतर ऋण MSMEs की परिसंपत्तियों (संपार्श्विक के रूप में) के आधार पर दिया जाता है। लेकिन किसी संकट के समय इस संपत्ति की कीमतों में गिरावट हो सकती है तथा इससे MSMEs की ऋण लेने की क्षमता बाधित हो सकती है। अर्थात किसी संकट के समय परिसंपत्तियों की कीमतों में गिरावट होने से बैंक इन उद्यमों की ऋण देना कम कर देते हैं।
- सरकार द्वारा इस संबंध में बैंकों को क्रेडिट गारंटी दी जाती है कि यदि MSMEs उद्यम ऋण चुकाने में सक्षम नहीं होते हैं तो ऋण सरकार द्वारा चुकाया जाएगा। उदारणतया यदि सरकार द्वारा एक फर्म को 1 करोड़ रुपए तक के ऋण पर 100% क्रेडिट गारंटी दी जाती है इसका मतलब है कि बैंक उस फर्म को 1 करोड़ रुपए उधार दे सकता है। यदि फर्म वापस भुगतान करने में विफल रहती है, तो सरकार 1 करोड़ रुपए का भुगतान बैंकों को करेगी।
MSMEs की परिभाषा में बदलाव:
- परिभाषा में बदलाव क्यों?
- MSME की परिभाषा में बदलाव किया गया है क्योंकि ‘आर्थिक सर्वेक्षण’ के अनुसार लघु उद्यम लघु ही बने रहना चाहते हैं क्योंकि इससे इन उद्योगों को अनेक लाभ मिलते हैं। अत: MSME की परिभाषा में बदलाव की लगातार मांग की जा रही है।
- परिभाषा के नवीन मापदंड:
- निवेश सीमा को संशोधित किया गया है।
- कंपनी के टर्नओवर को मापदंड के रूप में जोड़ा गया है।
- निर्माण और सेवा क्षेत्र के बीच अंतर को समाप्त किया गया है।
- हालाँकि नवीन परिभाषा के लिये अभी आवश्यक कानूनों में संशोधन करना होगा।
मौजूदा MSME वर्गीकरण |
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मानदंड: संयंत्र एवं मशीनरी या उपकरण में निवेश
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संशोधित MSME वर्गीकरण |
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समग्र मानदंड (Composite Criteria): निवेश और वार्षिक कारोबार (टर्नओवर)
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नवीन परिभाषा की आलोचना:
- MSMEs की नवीन परिभाषा से उद्यमों को उनके आकार के कारण प्राप्त होने वाले लाभ संबंधी समस्या का समाधान संभव हो पाएगा।
- हालाँकि इस बदलाव की आलोचना की जा रही है, क्योंकि नवीन MSME की परिभाषा वैश्विक स्तर के अनुसार होनी चाहिये। नवीन परिभाषा में 5 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाली कंपनियों को लघु माना जाएगा परंतु वैश्विक स्तर पर 75 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाले उद्यमों को लघु माना जाता है।
भारत में MSMEs की स्थिति:
MSME की ग्रामीण-नगरीय स्थिति:
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
राज्य सरकारों के राजस्व में गिरावट
प्रीलिम्स के लियेगैर-कर राजस्व, COVID-19 मेन्स के लियेभारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COVID-19 की रोकथाम हेतु देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण देश के अधिकांश राज्यों के राजस्व में भारी गिरावट देखने को मिली है।
प्रमुख बिंदु:
- क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ‘इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च (फिच समूह)’ {India Ratings and Research (Fitch Group)} के अनुमान के अनुसार, देश में लागू लॉकडाउन के कारण केवल अप्रैल (वर्ष 2020) माह में ही 21 राज्यों को संयुक्त रूप से कुल 97,100 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है।
- देश में COVID-19 महामारी के कारण केंद्र और राज्य सरकारें की आय में गिरावट हुई है परंतु वर्तमान में COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों और इस महामारी के नियंत्रण पर होने वाले भारी खर्च से राज्यों की समस्याएँ और अधिक बढ़ गई हैं।
राजस्व में आई गिरावट के कारण:
- देश में COVID-19 के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण औद्योगिक गतिविधियों को पूरी तरह बंद करना पड़ा है।
- सार्वजनिक आवाजाही और पर्यटन की गतिविधियों पर रोक से होटल, परिवहन आदि क्षेत्रों से आने वाला राजस्व प्रभावित हुआ है।
- हालाँकि लॉकडाउन के दौरान भी लगभग 40% ‘अतिआवश्यक’ श्रेणी की व्यावसायिक गतिविधियों को चालू रखने की अनुमति दी गई थी, परंतु मज़दूरों के पलायन, आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) और परिवहन के प्रभावित होने आदि कारणों से अपेक्षित राजस्व की प्राप्ति नहीं की जा सकी।
- लॉकडाउन के कारण उन राज्यों पर और अधिक प्रभाव पड़ा है जिनकी अर्थव्यवस्था में स्थानीय राजस्व की भूमिका अधिक थी।
- उदाहरण के लिये गुजरात, तेलंगाना, हरियाणा, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य जिनका 70% से अधिक राजस्व स्थानीय स्रोतों से प्राप्त होता है, उन्हें लॉकडाउन से सबसे अधिक आर्थिक क्षति हुई है।
- इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र और केरल के कुल राजस्व का लगभग 70% भाग स्थानीय स्रोतों से आता है।
- राज्य सरकारों की आय का एक बड़ा स्रोत पेट्रोलियम पदार्थों और शराब जैसे उत्पादों पर लगने वाले कर से आता है परंतु लॉकडाउन के दौरान अधिकांश उत्पादों की मांग में गिरावट या बिक्री न होने से राज्यों को आर्थिक क्षति हुई है।
राज्य सरकारों के राजस्व के मुख्य स्रोत:
- राज्य का अपना कर राजस्व
- गैर-कर राजस्व
- केंद्रीय कर में राज्य का हिस्सा
- केंद्र से प्राप्त अनुदान
राज्य सरकारों के राजस्व का अधिकांश भाग 7 प्रमुख स्रोतों से प्राप्त होता है:
- राज्य वस्तु एवं सेवा कर (State Goods and Service Tax-SGST)
- राज्यों द्वारा लागू ‘मूल्य वर्द्धित कर’ (Value Added Tax- VAT), मुख्यतः पेट्रोलियम उत्पादों से
- राज्य उत्पाद शुल्क
- स्टांप और पंजीकरण शुल्क,वाहन कर, विद्युत कर और राज्य के अपने गैर कर राजस्व
आगे की राह:
- COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई स्थितियों ने राज्यों को कड़े कदम उठाने और राजस्व बढ़ाने के नए उपायों पर विचार करने पर विवश किया है।
- हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन में छूट दिये जाने और उद्यमों के लिये आर्थिक सहायता की घोषणा से वर्तमान स्थिति में कुछ सुधार होने का अनुमान है।
- कुछ राज्य सरकारों ने शराब और पेट्रोलियम जैसे उत्पादों पर VAT में वृद्धि कर तात्कालिक रूप से राजस्व का प्रबंध करने का प्रयास किया है।
- लॉकडाउन में छूट के साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) के नियमों का पालन करते हुए चरणबद्ध तरीके से औद्योगिक गतिविधियों को शुरू कर राज्य सरकारों के घाटे को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
दिव्यांगजन/बुजुर्ग की सहायता हेतु प्रौद्योगिकी
प्रीलिम्स के लिये:टेक्नोलॉजी इंटरवेंशन डिसेबल्ड एंड एल्डर्ली कार्यक्रम मेन्स के लिये:दिव्यांगजनों और बुजुर्गों की सहायता हेतु प्रौद्योगिकी से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
‘साइंस फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट’ (Science for Equity Empowerment and Development) द्वारा COVID-19 से निपटने हेतु सहायक विभिन्न उपकरणों, प्रौद्योगिकियों और तकनीकों को विकसित करने में संस्थानों की सहायता की जा रही है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि ‘साइंस फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट’ द्वारा ‘टेक्नोलॉजी इंटरवेंशन फॉर डिसेबल्ड एंड एल्डर्ली’ (Technology Interventions for Disabled and Elderly-TIDE) कार्यक्रम के माध्यम से यह सहायता की जा रही है।
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ई-टूल (e-Tool):
- ‘टेक्नोलॉजी इंटरवेंशन फॉर डिसेबल्ड एंड एल्डर्ली’ कार्यक्रम के अंतर्गत राजलक्ष्मी इंजीनियरिंग कॉलेज (Rajalakshmi Engineering College), चेन्नई ने COVID-19 से उत्पन्न समस्याओं से निपटने हेतु ई-टूल (e-Tool) विकसित किया है।
- ई-टूल के माध्यम से दिव्यांगजनों और बुजुर्गो के अकेलेपन को दूर करने हेतु शिक्षा, मनोरंजन के साथ-साथ स्वास्थ्य तथा स्वच्छता से संबंधित जानकारी एवं जागरूकता प्रदान की जाएगी।
- यह ई-टूल व्यक्तियों को टैब और मोबाइल के माध्यम से किसी भी कार्य को सीखने (मनोरंजन के साथ) में सहायक साबित होगा। इस टूल को अन्य स्वदेशी भाषाओं में भी परिवर्तित किया जा सकता है
- ई-टूल के बीटा संस्करण का उपयोग 200 विशेष-दिव्यांग बच्चों द्वारा किया जा रहा है।
- सेंसर डिवाइस:
- पीएसजी कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, कोयंबटूर (PSG College of Technology, Coimbatore) द्वारा एक पहनने वाला सेंसर डिवाइस विकसित किया गया है।
- इस सेंसर डिवाइस की मदद से बुजुर्गों और दिव्यांगजनों के क्वारंटाइन या आइसोलेशन वार्ड में होने की स्थिति में उनकी गतिविधियों पर दूर से ही नजर रखी जा सकती है।
- यह उपकरण पूर्वानुमान भी बताता है और बुजुर्गों के स्वास्थ्य में गिरावट तथा कमज़ोरी के स्तर की भी जानकारी देता है।
- इस उपकरण की कीमत थोक उत्पादन की स्थिति में 1,500 रुपए है।
- हाथ में पहना जा सकने वाला बैंड:
- मोटर फंक्शन से पीड़ित बुजुर्गों हेतु रियल टाइम निगरानी और पुनर्वास निर्देशित प्रोटोकॉल के माध्यम से फीडबैक प्रक्रिया से युक्त एक बैंड विकसित किया गया है।
- यह उपकरण के पुनर्वास के दौरान मांसपेशियों की शक्ति, लचीलापन और उनकी सहनशीलता में सुधार लाने की दिशा में उपयुक्त तथा मात्रात्मक परिणाम को प्राप्त करने में मदद करेगा।
- भारत सरकार के दिव्यांग सशक्तिकरण विभाग (Department of Empowerment of Persons with Disabilities) को शामिल करते हुए इन उपकरणों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने हेतु एक कार्य योजना की भी शुरूआत की गई है।
टेक्नोलॉजी इंटरवेंशन फॉर डिसेबल्ड एंड एल्डर्ली
(Technology Interventions for Disabled and Elderly-TIDE):
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) के अंतर्गत ‘साइंस फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट’ (Science for Equity Empowerment and Development) ने ‘‘टेक्नोलॉजी इंटरवेंशन फॉर डिसेबल्ड एंड एल्डर्ली’ नामक कार्यक्रम की शुरुआत की थी।
- इस कार्यक्रम के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- दिव्यांगजनों और बुजुर्गों के सशक्तिकरण हेतु प्रौद्योगिकियों पर ‘अनुसंधान और विकास’ को बढ़ावा देना।
- शैक्षणिक संस्थान, प्रतिष्ठित प्रयोगशाला, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित स्वैच्छिक संगठन, इत्यादि को अनुसंधान हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- दिव्यांगजनों और बुजुर्गों का सामाजिक समावेशन करना।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम
प्रीलिम्स के लियेस्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम मेन्स के लियेभारत में बिजली उपभोग और बिजली चोरी की समस्या |
चर्चा में क्यों?
‘एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज़ लिमिटेड’ (Energy Efficiency Services Limited-EESL) ने घोषणा की कि देश में बिजली उपभोक्ताओं की सुविधा को बढ़ाने और बिजली खपत को तर्कसंगत बनाने के लिये ‘स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम’ (Smart Meter National Programme-SMNP) के तहत अब तक कुल 1.2 मिलियन से अधिक स्मार्ट मीटर स्थापित किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि EESL के इस निर्णय से मौजूदा लॉकडाउन के दौरान बिजली वितरण कंपनियों (DISCOM) को स्मार्ट मीटर के उपयोग के माध्यम से 95 प्रतिशत बिलिंग दक्षता प्राप्त करने में मदद मिली है, जिससे उनके प्रति उपभोक्ता मासिक राजस्व में औसतन 15-20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- EESL द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, उत्तरप्रदेश (984,000 स्मार्ट मीटर), हरियाणा (123,000 स्मार्ट मीटर), दिल्ली (57,000 स्मार्ट मीटर) और बिहार (28,000 स्मार्ट मीटर) जैसे राज्यों में सर्वाधिक स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं।
- ध्यातव्य है कि नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (New Delhi Municipal Council-NDMC) अपने क्षेत्र में 100 प्रतिशत स्मार्ट मीटरिंग समाधान को लागू करने वाला भारत का पहला नगरपालिका परिषद था।
- उल्लेखनीय है कि स्मार्ट मीटर की मदद से उक्त राज्यों में संकट के समय में भी डिस्कॉम अपने परिचालन को सुचारू रूप से चलाने में सक्षम हो गया है।
- हालाँकि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में स्मार्ट मीटर की स्थापना के बावजूद बिजली की बकाया राशि के संग्रह की चुनौती का सामना कर रहा है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में तकरीबन 4 लाख स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
COVID-19 के दौर में स्मार्ट मीटर
- वर्तमान स्थिति में स्मार्ट मीटर काफी आवश्यक हो गए हैं, क्योंकि ये COVID-19 जनित देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद भी दूर से ही मीटर की निगरानी और रीडिंग एकत्र करने की क्षमता के कारण डिस्कॉम को सुचारू रूप से कार्य करने में मदद कर रहे हैं।
- स्मार्ट मीटर के माध्यम से डिस्कॉम को अपने वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार करने, ऊर्जा संरक्षण को प्रोत्साहित करने, बिल भुगतान की सुगमता को बढ़ाने और बिलिंग सटीकता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
- इसके अलावा, स्मार्ट मीटर के माध्यम से उपभोक्ताओं को अपने उपयोग को ट्रैक करने और मोबाइल फोन के माध्यम से आसानी से अपने बिलों का भुगतान करने की सुविधा मिलती है। इस प्रकार यह बेहतर शिकायत प्रबंधन तथा विश्वसनीयता और पारदर्शिता के माध्यम से उपभोक्ता संतुष्टि को बढ़ाता है।
स्मार्ट मीटर और स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम (SMNP)
- ध्यातव्य है कि ‘स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम’ (Smart Meter National Programme-SMNP) पूरे भारत में तकरीबन 25 करोड़ पारंपरिक मीटरों को स्मार्ट मीटर के साथ बदलने की दिशा में कार्य कर रहा है।
- स्मार्ट मीटर विद्युत मीटर का एक उन्नत रूप है। अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित स्मार्ट मीटर की कार्य-प्रणाली एक छोटे से कंप्यूटर के जैसी ही होती है।
- विदित हो कि सभी स्मार्ट मीटर केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप ही स्थापित किये जा रहे हैं।
- जिस उपभोक्ता के यहाँ स्मार्ट मीटर लगाया जाएगा, उसे मीटर से संबंधित पूरी जानकारी मीटर स्क्रीन पर हर समय मिलती रहती है। स्मार्ट मीटर लगने के पश्चात् उपभोक्ता को अपना बिल जानने, बिल भुगतान करने या फिर किसी अन्य जानकारी के लिये इधर-उधर नहीं भटकना होगा। यह सारी जानकारी उपभोक्ता स्मार्ट मीटर की स्क्रीन पर आराम से पढ़ सकता है।
- विदित हो कि ये मीटर इंटरनेट से जुड़े हुए और सेंसरयुक्त है, इस प्रकार जैसे ही इनमें छेड़-छाड़ की कोशिश कि जाएगी नेटवर्किंग कंपनियों के माध्यम से विद्युत् आपूर्तिकर्त्ता तक सूचना पहुँच जाएगी। इस प्रकार बिजली चोरी की समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है।
एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज़ लिमिटेड(Energy Efficiency Services Limited-EESL)
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स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
‘एकीकृत युद्ध समूह' का शीघ्र परिचालन संभव
प्रीलिम्स के लिये:एकीकृत युद्ध समूह मेन्स के लिये:कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन |
चर्चा में क्यों?
भारत के सेना प्रमुख ने सेना की दक्षिण पश्चिमी कमान को संबोधित करते हुए बताया कि भारतीय सेना ‘समग्र बदलाव’ (Overall Transformation) की दिशा में शीघ्र ही 'एकीकृत युद्ध समूह' (Integrated Battle Groups- IBG) का परिचालन किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
- भारतीय सेना ने युद्ध में बेहतर प्रदर्शन और दुश्मन पर त्वरित आक्रमण करने की अपनी क्षमता में वृद्धि करने के लिये ‘एकीकृत युद्ध समूह’ (Integrated Battle Groups-IBG) को अपनाने का निर्णय लिया है।
- IBG का गठन सेना की ‘कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन’ (Cold Start Doctrine) के एक भाग के रूप में किया जा रहा है।
ब्रिगेड (Brigade):
- कमांड एक परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र में फैली सेना की सबसे बड़ी स्थैतिक इकाई (Static Formation) होती है, जबकि वाहिनी (Corps) सबसे बड़ी गतिशील इकाई (Mobile Formation) होती है।
- सामान्यत: प्रत्येक वाहिनी (Corps) में तीन डिवीज़न होते हैं और प्रत्येक डिवीज़न में तीन ब्रिगेड होते हैं।
एकीकृत युद्ध समूह (IBG):
- IBG का आकार ब्रिगेड के आकार के समान होता है जो एक दक्ष और आत्मनिर्भर युद्ध व्यवस्था है जो युद्ध की स्थिति में शत्रु के विरुद्ध त्वरित आक्रमण करने में सक्षम है।
IBG का गठन:
- प्रत्येक IBG का गठन संभावित खतरों (Threat), भू-भाग (Terrain) एवं कार्यो (Task) के निर्धारण के आधार पर किया जाएगा और इन्हीं तीन आधारों (3Ts) पर IBG को संसाधनों का आवंटन भी किया जाएगा।
- IBG कार्यवाही करने हेतु अपनी अवस्थति के आधार पर 12 से 48 घंटों के भीतर संगठित होने में सक्षम होंगे।
IBG की कार्यप्रणाली:
- IBG आक्रामक और रक्षात्मक दोनों प्रकार की होंगे। जहाँ एक ओर आक्रामक IBG तीव्रता से कार्यवाही करते हुए दुश्मन के क्षेत्र में हमला करने में सक्षम होंगे, वहीं दूसरी ओर रक्षात्मक IBG दुश्मन के संभावित हमले के प्रति सुभेद्य क्षेत्रों की सुरक्षा करेंगे।
‘कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन’ (Cold Start Doctrine):
- भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले (वर्ष 2001) के बाद भारतीय सेना को आक्रामक प्रतिक्रिया करने में बहुत अधिक समय लगा। संसद पर हमले के बाद सैनिकों की 'तीव्र आक्रामक गतिशीलता' (Swift Offensive Mobilisation) बढ़ाने की दिशा में भारतीय सेना द्वारा 2004 में 'कोल्ड स्टार्ट' के सिद्धांत को तैयार किया।
- तात्कालिक जनरल विपिन रावत द्वारा वर्ष 2017 में पहली बार 'कोल्ड स्टार्ट' के अस्तित्त्व को स्वीकार किया गया, लेकिन अतीत में इसके अस्तित्त्व को लगातार नकार दिया गया था।
- यह डॉक्ट्रिन भारतीय सेना को दुश्मन के क्षेत्र में प्रवेश कर तीव्रता से कार्यवाही करने का लक्ष्य प्रदान करती है।
स्रोत: द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 मई, 2020
किसानों को फसल उगाने के निर्देश देगा तेलंगाना
हाल ही में तेलंगाना सरकार ने पायलट परियोजना के एक हिस्से के रूप में खेती को विनियमित करने के उद्देश्य से किसानों को फसल उगाने के संबंध में आवश्यक निर्देश देने की घोषणा की है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव द्वारा इस संबंध में जारी आदेश के अनुसार, राज्य सरकार धान की फसल उगाने को 50 लाख एकड़ भूमि तक सीमित कर देगी। वहीं राज्य में लाल चने की खेती को भी 10 लाख एकड़ तक सीमित कर दिया जाएगा। तेलंगाना सरकार के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा जल्द ही इस संबंध में घोषणा की जाएगी कि राज्य के किस क्षेत्र में कौन सी फसल उगाई जाएगी। साथ ही राज्य सरकार ने इन नियमों का पालन करना भी अनिवार्य बना दिया है। आधिकारिक सूचना के अनुसार, जो किसान इन नियमों का पालन नहीं करेंगे, उन्हें राज्य सरकार की रयथू बंधु योजना और न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price-MSP) का लाभ प्राप्त नहीं होगा। राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश के अनुसार, फसलों की खेती को विनियमित करने का मुख्य उद्देश्य किसानों को लाभ पहुँचाना है, क्योंकि इससे किसानों की उपज की मांग सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। राज्य सरकार राज्य में फसलों की मांग के आधार पर किसानों को यह सुझाव देगी कि किन क्षेत्रों में कौन-सी फसल अथवा सब्ज़ियाँ उगाई जाएँ।
वी. विद्यावती
वरिष्ठ IAS अधिकारी वी. विद्यावती को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) का नया महानिदेशक (Director General) नियुक्त किया गया है। ध्यातव्य है कि उनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति के आदेश के माध्यम से की गई है। वी. विद्यावती 1991 बैच की कर्नाटक कैडर की IAS अधिकारी हैं। इस संबंध में जारी आदेश के अनुसार, IAS वी. विद्यावती भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव के पद पर कार्यरत रहेंगी। संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्यरत भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासतों के पुरातत्त्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण हेतु एक प्रमुख संगठन है। ASI का प्रमुख कार्य राष्ट्रीय महत्त्व के प्राचीन स्मारको तथा पुरातत्त्वीय स्थलों एवं अवशेषों का रखरखाव करना है। साथ ही यह प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्त्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार, देश में सभी पुरातत्त्वीय गतिविधियों को भी विनियमित करता है।
CO2 उत्सर्जन में कमी
हाल ही में कार्बन ब्रीफ (Carbon Brief) नामक एक वेबसाइट द्वारा प्रकाशित विश्लेषण के अनुसार, कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के दौरान गत 40 वर्षों में पहली बार भारत के कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) में कमी दर्ज की गई है। विश्लेषण के अनुसार, मार्च माह में कार्बन उत्सर्जन में कुल 15 प्रतिशत की गिरावट आई है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, कोयला आधारित बिजली उत्पादन मार्च माह में 15 प्रतिशत और अप्रैल माह के प्रथम तीन हफ्तों में 31 प्रतिशत तक गिर गया है। वहीं इसके विपरीत नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) के उत्पादन में मार्च माह में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और अप्रैल माह के पहले तीन हफ्तों में 1.4 प्रतिशत की कमी आई है। ध्यातव्य है कि मौजूदा समय में संपूर्ण विश्व कोरोनावायरस महामारी की चुनौती का सामना कर रहा है और संक्रमण तथा मृत्यु के आँकड़े दिन-प्रति-दिन बढ़ते जा रहे हैं। सर्वाधिक चिंता का विषय यह है कि इस वायरस से बचाव के लिये अभी तक कोई भी चिकित्सकीय उपाय नहीं खोजा जा सका है। ऐसे में विश्व के अधिकांश देशों द्वारा कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन को एक उपाय के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। भारत में भी विभिन्न चरणों में लॉकडाउन लागू किया गया है, इस लॉकडाउन के माध्यम से भारत में न केवल लाखों लोगों को संक्रमित होने से बचाया गया है, बल्कि इसके कारण पर्यावरण को भी काफी फायदा पहुँचा है।
वर्ल्ड एयरपोर्ट अवार्ड्स
बंगलुरू स्थित केंपेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे (Kempegowda International Airport) को भारत और मध्य एशिया का सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय हवाईअड्डा (Best Regional Airport) चुना गया है। बंगलुरू स्थित इस हवाईअड्डे का परिचालन बंगलुरू इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (Bangalore International Airport Ltd.) द्वारा किया जाता है। बंगलुरू इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड के अनुसार, गत चार वर्षों में यह तीसरी बार है जब बंगलुरू के केंपेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे को वर्ल्ड एयरपोर्ट अवार्ड्स (World Airport Awards) में भारत और मध्य एशिया का सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय हवाईअड्डा चुना गया है। उल्लेखनीय है कि वर्ल्ड एयरपोर्ट अवार्ड्स, हवाईअड्डों के उपयोगकर्त्ताओं से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर प्रदान किये जाते हैं। इसके लिये वैश्विक स्तर पर सर्वेक्षण किया जाता है और इस सर्वेक्षण में 550 से अधिक हवाईअड्डे शामिल होते हैं। वर्ष 2020 के लिये सिंगापुर के चांगी हवाईअड्डे (Changi Airport) को लगातार आठवीं बार वर्ल्ड एयरपोर्ट अवार्ड्स में विश्व का सबसे सर्वश्रेष्ठ हवाईअड्डा चुना गया है।