मलप्पुरम : तेज़ी से बढ़ता शहर
प्रीलिम्स के लिये:इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा जारी सूची मेन्स के लिये:शहरीकरण के प्रभाव |
चर्चा में क्यों ?
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (Economist Intelligence Unit : EIU) की रैंकिंग के अनुसार, केरल का शहर मलप्पुरम, विश्व के सबसे तेज़ी से बढ़ते शहरी क्षेत्र में से एक हैं।
अन्य बिंदु :
- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग (United Nations Population Division) के आँकड़ों के आधार पर इस सूची को इसलिये असामान्य माना गया क्योंकि नीति आयोग द्वारा वर्ष, 2016 में जारी आकड़ों के अनुसार केरल में कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFT) 1.8 रही जोकि 2.1 की प्रतिस्थापन दर (Replacement Rate) से कम थी।
- EIU द्वारा प्रदत्त रैंकिंग के अनुसार, केरल के तीन शहर- मलप्पुरम (Malappuram), कोझीकोड (Kozhikode) और कोल्लम (Kollam) जनसंख्या वृद्धि दर के मामले में विश्व के शीर्ष 10 सबसे तेज़ी से बढ़ते शहरी क्षेत्रों में से एक हैं।
- इस सूची में मलप्पुरम को प्रथम, जबकि कोझिकोड को चौथे स्थान पर रखा गया है वहीं कोल्लम 10वें स्थान पर है।
- सूची में केरल के अन्य शहर, त्रिशूर (Thrissur)13वें स्थान पर राजधानी तिरुवनंतपुरम (Thiruvananthapuram) 33वें स्थान पर है।
- तमिलनाडु का तिरुप्पुर (Tiruppur) जिसकी कुल प्रजनन दर 1.6 से भी कम है, 30वें स्थान पर है।
- गुजरात का सूरत 2.2 कुल प्रजनन दर के साथ 27वें स्थान पर है।
- वर्ष 2015 और 2020 के बीच मलप्पुरम की जनसंख्या में वृद्धि परिवर्तन की दर 44.1 रही, कोझीकोड की 34.5 प्रतिशत तथा कोल्लम में जनसंख्या में वृद्धि परिवर्तन की दर 31.1 प्रतिशत रही।
- त्रिशूर की रैंकिंग में वर्ष 2015 और 2020 के बीच 30.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की गई है।
मलप्पुरम (44%), कोझीकोड (34.5%) और कोल्लम (31%) में शहरीकरण के तेज़ी से बढ़ने का कारण:
- इन शहरों में तेज़ी से शहरीकरण बढ़ रहा है जिसका मुख्य कारण शहरी संकुल (Urban Agglomerations) की सीमा में नए क्षेत्रों को शामिल करना है।
- वर्ष 2011 में, मलप्पुरम के भीतर नगर निगमों की संख्या बढ़कर चार की गई और 37 अतिरिक्त सीटें भी शामिल की गई। जिससे शहरी समूह की जनसंख्या मौजूदा शहरी क्षेत्रों में और नए क्षेत्र शामिल होने के कारण एक ही अवधि में लगभग 10 गुना बढ़ गई।
तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या के संदर्भ में शहर की परिभाषा :
- संयुक्त राष्ट्र के शहरी समूह (UA) के अनुसार, तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या के संदर्भ में एक शहरी क्षेत्र वह है जो अपने आसपास के क्षेत्र के साथ-साथ अपनी परिधि से लगे बाहरी इलाकों जैसे- गाँवों या अन्य आवासीय क्षेत्रों या विश्वविद्यालयों, बंदरगाहों आदि के क्षेत्र को भी सम्मलित करता हैं।
शहरी आबादी कैसे बढ़ती है?
- शहरी आबादी तब बढ़ सकती है, जब जन्म दर, मृत्यु दर से अधिक हो।
- लोग नौकरियों की तलाश में शहर की ओर पलायन करते हैं।
- जब अधिक क्षेत्र शहर की सीमाओं के भीतर शामिल किये जाते हैं।
- जब मौज़ूदा ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया जाता है।
- केरल में कम प्रजनन दर का मतलब यह नहीं कि प्रजनन की दर बढ़ रही है बल्कि इसका कारण अधिकतम गाँवों को कस्बों में तब्दील किया जाना है, जिससे शहर की सीमाओं का विस्तार हो रहा है।
बढ़ते शहरीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव :
- इस तरह के शहरीकरण का अर्थव्यवस्था पर अच्छे ओर बुरे दोनों ही प्रभाव पड़ते हैं।
- शहरीकरण से शहरों का विकास होता है जिसमे सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं तथा बुनियादी सुविधाएँ शामिल है जैसे अस्पतालों,विश्वविद्यालय इत्यादि का विकास
- शहरीकरण युवाओं के लिए रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान करता हैं, यही वज़ह है कि यह युवाओं और उद्यमियों को आकर्षित करता है ।
- वहीं अनियोजित शहरीकरण लोगों के बहिष्करण का कारण भी हो सकता है, जिसे प्रवासियों के लिये बुनियादी सुविधाएँ एवं सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं की ऊँची कीमतों के कारण विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट
- इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की स्थापना इकोनॉमिस्ट ग्रुप के तहत वर्ष 1946 में की गई थी।
- इसका कार्य पूर्वानुमान और सलाहकारी सेवाएँ प्रदान करना है।
- इसका मुख्यालय लंदन में है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
केंद्रीय दुर्घटना डेटाबेस प्रबंधन प्रणाली
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र मेन्स के लिये:भारत में सड़क दुर्घटना से संबंधित आँकड़े |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने ‘केंद्रीय दुर्घटना डेटाबेस प्रबंधन प्रणाली’ (Central Accident Database Management System) की शुरुआत की है।
मुख्य बिंदु:
- इस प्रणाली की शुरुआत सड़क सुरक्षा में सुधार लाने और सड़क सुरक्षा के संदर्भ में जनसामान्य तथा विशेष रूप से युवाओं में जागरूकता पैदा करने के लिये पूरे देश में 11 से 17 जनवरी, 2020 तक मनाए जा रहे 31वें राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान की गई।
- इसके लिये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास (Indian Institutes of Technology-Madras) ने ‘सड़क दुर्घटनाओं का एकीकृत डेटा बेस’ (Integrated Road Accident Database- IRAD) नामक एक सूचना प्रौद्योगिकी आधारित डेटाबेस तैयार किया है।
- इस प्रणाली को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) द्वारा क्रियान्वित किया जाएगा।
- विश्व बैंक द्वारा समर्थित इस परियोजना की लागत ₹ 258 करोड़ है।
प्रणाली का उद्देश्य:
- IRAD न केवल सड़क सुरक्षा के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों पर आधारित विश्लेषणात्मक क्षमताओं को बढ़ाएगा, बल्कि संबंधित राजमार्ग प्राधिकरणों के माध्यम से दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में सुधारात्मक उपाय करने में भी सहायता करेगा।
- इससे राज्य और केंद्र, सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित जानकारियों को समझने, सड़क दुर्घटनाओं के मूल कारणों का विश्लेषण करने तथा दुर्घटनाओं को कम करने के लिये डेटा-आधारित सड़क सुरक्षा उपायों को विकसित एवं लागू करने में सक्षम होंगे।
- यह डेटाबेस ‘वैज्ञानिक सड़क सुरक्षा प्रबंधन’ (Scientific Road Safety Management) की दिशा में पहला कदम है।
- IRAD एक व्यापक वेब-आधारित आईटी समाधान होगा जो पुलिस, लोक निर्माण विभाग, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण जैसी विभिन्न एजेंसियों को जाँच संबंधी, सड़क इंजीनियरिंग, वाहन स्थिति और सड़क दुर्घटनाओं के विवरण को साझा करने में सक्षम बनाएगा।
- इस प्रकार IRAD पर प्राप्त विवरणों के माध्यम से विभिन्न प्राधिकारी भारत में सड़क दुर्घटनाओं की गतिशीलता को समझकर प्रवर्तन, इंजीनियरिंग, शिक्षा और आकस्मिकता के क्षेत्र में लक्षित उपायों को लागू कर सकेंगे ताकि देश में सड़क सुरक्षा स्थिति में सुधार लाया जा सके।
प्रणाली का क्रियान्वयन:
- यह प्रणाली पहले छह राज्यों-कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में प्रारंभ की जाएगी क्योंकि इन राज्यों में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों की संख्या सर्वाधिक है।
- IRAD के परीक्षण के आधार पर इसमें सुधार किया जाएगा तथा इसके बाद इसे देश भर में लागू किया जाएगा।
- सड़क दुर्घटनाओं के आँकड़े एकत्र करने के लिये राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस विभाग को 30 हज़ार से ज़्यादा टैबलेट उपलब्ध कराए जाएंगे।
- IRAD मोबाइल एप्लिकेशन पुलिस कर्मियों को फोटो और वीडियो के साथ सड़क दुर्घटना के विवरण को दर्ज करने में सक्षम बनाएगा, जिसके बाद उस घटना के लिये एक यूनिक आईडी (Unique ID) बनाई जाएगी।
- इसके बाद लोक निर्माण विभाग या स्थानीय निकाय के इंजीनियर को अपने मोबाइल डिवाइस पर अलर्ट (Alert) प्राप्त होगा।
- वह व्यक्ति दुर्घटना स्थल पर जाएगा तथा उसकी जाँच करके आवश्यक विवरण जैसे-सड़क का डिज़ाइन आदि जानकारियों एकत्रित करेगा।
- इस प्रकार एकत्र किये गए डेटा का भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास में एक टीम द्वारा विश्लेषण किया जाएगा, जो सुझाव देगा कि क्या सड़क डिज़ाइन में सुधारात्मक उपाय किए जाने की आवश्यकता है या नहीं?
- इसके अतिरिक्त 1 अप्रैल 2020 से सड़क उपयोगकर्त्ताओं द्वारा भी सड़क दुर्घटनाओं का डेटा अपलोड किये जाने की सुविधा के लिये एक मोबाइल एप्लिकेशन के लॉन्च किये जाने की उम्मीद है।
अन्य तथ्य:
- भारत विश्व में सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाओं से प्रभावित देश है।
- वर्ष 2018 में देश में सड़क दुर्घटनाओं में 1.5 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई।
- वर्ष 2018 में सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए कुल व्यक्तियों में से 48% व्यक्ति 18-35 वर्ष के आयु वर्ग के थे।
- कुल दुर्घटनाओं में से 60% दुर्घटनाएँ ओवरस्पीडिंग के कारण घटित हुईं।
स्रोत- द हिंदू
हाथ से मैला ढोने की प्रथा
प्रीलिम्स के लिये:मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 मेन्स के लिये:हाथ से मैला ढोने की प्रथा से संबंधित विधिक उपाय |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अनुसार, हाथ से मैला ढोने वाले व्यक्तियों की सीवर की सफाई के दौरान होने वाली मौतों के संदर्भ में महाराष्ट्र और गुजरात राज्य ने सबसे कम संख्या में मुआवज़ा प्रदान किया है।
मुख्य बिंदु:
- भारत में वर्ष 1993 से 31 दिसंबर, 2019 तक हाथ से मैला ढोने वाले व्यक्तियों की सीवर की सफाई के दौरान होने वाली 926 मौतों में से 172 पीड़ितों के परिवारों को अभी तक मुआवज़ा नहीं मिला है।
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (National Commission for Safai Karamcharis- NCSK) के आँकड़ों के अनुसार, गुजरात में ऐसे सर्वाधिक मामले (48) पाए गए जहाँ राशि का भुगतान या तो किया नहीं गया या अपुष्ट (Unconfirmed) था। जबकि महाराष्ट्र में ऐसे 32 मामले पाए गए।
अन्य तथ्य:
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013) के अंतर्गत गठित केंद्रीय निगरानी समिति ( Central Monitoring Committee) की एक बैठक में उपर्युक्त कानून के क्रियान्वयन की समीक्षा की गई।
- इस बैठक के दौरान हाथ से मैला ढोने वाले के पुनर्वास में पिछड़ने वाले राज्यों को भी अनुपालन करने के लिये कहा गया।
- तमिलनाडु में इस तरह की मौतों की संख्या सर्वाधिक थी, इन 234 मामलों में से सात को छोड़कर सभी मामलों में मुआवज़े का भुगतान किया गया था।
- गुजरात राज्य में दर्ज 162 मैला ढोने वालों की मौतों में से 48 में भुगतान करना या भुगतान की पुष्टि करना बाकी था और 31 मामलों में मुआवज़ा पाने वाले कानूनी उत्तराधिकारी का पता नहीं लगाया जा सका।
हाथ से मैला ढोने की प्रथा से संबंधित तथ्य:
- NCSK द्वारा वर्ष 2018 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार, हाथ से मैला ढोने में लगे कुल 53,598 व्यक्तियों में से 29,923 अकेले उत्तर प्रदेश के थे।
- 35,397 मामलों में एकमुश्त नकद सहायता का वितरण किया गया था जिनमें से 19,385 व्यक्ति केवल उत्तर प्रदेश से थे।
- 1,007 और 7,383 मैला ढोने वाले व्यक्तियों को क्रमशः सब्सिडी पूंजी और कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया गया था।
क्या है हाथ से मैला ढोने की प्रथा?
- किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के हाथों से मानवीय अपशिष्टों (Human Excreta) की सफाई करने या सर पर ढोने की प्रथा को हाथ से मैला ढोने की प्रथा या मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) कहते हैं।
मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013
(Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013):
- यह अधनियम हाथ से मैला ढोने वाले व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे किसी भी कार्य या रोज़गार का निषेध करता है।
- यह हाथ से मैला साफ करने वाले और उनके परिवार के पुनर्वास की ज़िम्मेदारी राज्यों पर आरोपित करता है।
- इस अधिनियम के तहत हाथ से मैला ढोने वाले व्यक्तियों को प्रशिक्षण प्रदान करने, ऋण देने और आवास प्रदान करने की भी व्यवस्था की गई है।
- इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार 21 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में जिला निगरानी समिति, 21 राज्यों में राज्य निगरानी समिति और 8 राज्यों में राज्य सफाई कर्मचारी आयोग का निर्माण किया गया है।
गौरतलब है कि महात्मा गाँधी और डॉ. अंबेडकर, दोनों ने ही हाथ से मैला ढोने की प्रथा का पुरजोर विरोध किया था। यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 38 और 42 के प्रावधानों के भी खिलाफ है। आज़ादी के 7 दशकों बाद भी इस प्रथा का जारी रहना देश के लिये शर्मनाक है और जल्द से जल्द इसका अंत होना चाहिये।
स्रोत- द हिंदू
रायसीना डायलॉग: एक बहुपक्षीय सम्मेलन
प्रीलिम्स के लिये:रायसीना डायलॉग मेन्स के लिये:रायसीना डायलॉग के उद्देश्य और महत्त्व |
चर्चा में क्यों ?
14-16 जनवरी 2020 के मध्य रायसीना डायलॉग के पाँचवे संस्करण का आयोजन नई दिल्ली में किया जा रहा है।
- विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित होने वाले इस तीन दिवसीय सम्मेलन में 100 देशों के 700 से ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं।
प्रमुख बिंदु:
- रायसीना डायलॉग 2020 की थीम- ‘नेविगेटिंग द अल्फा सेंचुरी’ (Navigating the Alpha Century) है।
- वैश्विक रूप से प्रतिष्ठित कूटनीतिक संवाद कार्यक्रम रायसीना डायलॉग के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अफगानिस्तान, न्यूज़ीलैंड, कनाडा, स्वीडन, डेनमार्क, भूटान और दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्र प्रमुख इस सत्र में विश्व की मौज़ूदा चुनौतियों पर विचार साझा करेंगे।
- इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, अमेरिका के उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और जर्मनी सहित कई देशों के राज्यमंत्री भी सम्मेलन में अपने विचारों को रखेंगे।
- इस वर्ष रूस, ईरान, डेनमार्क, हंगरी, मालदीव, दक्षिण अफ्रीका और एस्टोनिया सहित 12 देशों के विदेश मंत्री इसमें हिस्सा लेंगे जो वैश्विक कूटनीतिक पटल पर भारत की बढ़ती साख को प्रदर्शित करता है। इसके अतिरिक्त शंघाई सहयोग संगठन और संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव भी इस सम्मेलन में शामिल होंगे।
- इस सम्मेलन में वैश्वीकरण से जुड़ी चुनौतियों, एजेंडा 2030, आधुनिक विश्व में प्रौद्योगिकी की भूमिका, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद का मुकाबला जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे।
- इस सम्मेलन के दौरान इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर एक विशेष सत्र आयोजित किया जा रहा है जिसमें ‘क्वाड समूह (Quad Group)’ ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के सैन्य या नौसैन्य प्रमुखों के अतिरिक्त फ्राँस के रक्षा अधिकारी भी सम्मिलित हो रहे हैं।
रायसीना डायलॉग:
- रायसीना डायलॉग का प्रारंभ वर्ष 2016 में किया गया था।
- यह भू-राजनीतिक एवं भू-आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने हेतु एक वार्षिक सम्मेलन है जिसका आयोजन भारत के विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (Observer Research Foundation- ORF) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।
- यह एक बहु-हितधारक, क्रॉस-सेक्टरल बैठक है जिसमें नीति-निर्माताओं एवं निर्णयकर्त्ताओं, विभिन्न राष्ट्रों के हितधारकों, राजनेताओं, पत्रकारों, उच्चाधिकारियों तथा उद्योग एवं व्यापार जगत के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है।
- इसके अंतर्गत विभिन्न देशों के विदेश, रक्षा और वित्त मंत्रियों को शामिल किया जाता है।
- ORF की स्थापना वर्ष 1990 में की गई। यह नई दिल्ली में स्थित है जो एक स्वतंत्र थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है।
उद्देश्य:
- रायसीना डायलॉग का मुख्य उद्देश्य एशियाई एकीकरण के साथ-साथ शेष विश्व के साथ एशिया के बेहतर समन्वय हेतु संभावनाओं एवं अवसरों की तलाश करना है।
- रायसीना डायलॉग एक बहुपक्षीय सम्मेलन है जो वैश्विक समुदाय के सामने आने वाले चुनौतीपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- व्यापक अंतर्राष्ट्रीय नीतिगत मामलों पर चर्चा करने के लिये नीतिगत, व्यापार, मीडिया और नागरिक समाज से संबंधित वैश्विक नेताओं को प्रति वर्ष रायसीना डायलॉग में आमंत्रित किया जाता है।
नाम रायसीना डायलॉग क्यों पड़ा ?
- भारत के विदेश मंत्रालय का मुख्यालय रायसीना पहाड़ी (साउथ ब्लॉक), नई दिल्ली में स्थित है, इसलिये इसे रायसीना डायलॉग के नाम से जाना जाता है।
रायसीना डायलॉग से भारत को लाभ
- रायसीना डायलॉग सरकार को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विभिन्न स्थितियों और मुद्दों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने हेतु एक मंच प्रदान करता है।
- रायसीना डायलॉग से सरकार की कूटनीतिक क्षमता में वृद्धि हुई है।
स्रोत: द हिंदू
काजीरंगा में दूसरी आर्द्रभूमि पक्षी गणना
प्रीलिम्स के लिये:
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, आर्द्रभूमि पक्षी गणना के महत्त्वपूर्ण बिंदु मेन्स के लिये:आर्द्र-भूमि पक्षी गणना का महत्त्व |
चर्चा में क्यों ?
9-10 जनवरी, 2020 को काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (Kaziranga National Park) में दूसरी आर्द्रभूमि पक्षी गणना संपन्न हई।
महत्त्वपूर्ण बिंदु :
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 96 प्रजातियों (Species) तथा 80 परिवारों (Families) से संबंधित पक्षियों की कुल संख्या 19,225 दर्ज की गई।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 की प्रथम आर्द्रभूमि पक्षी गणना में पक्षियों की संख्या 10,412 दर्ज की गई थी।
- पक्षी गणना के दौरान उद्यान को चार श्रेणियों में बाँटा गया:
- अगोराटोली (Agoratoli)
- बागोरी (Bagori)
- कोहोरा (Kohora)
- बुरपहर (Burapahar)
- पक्षियों की आधे से अधिक संख्या (9924) और 96 प्रजातियों में से 85 प्रजातियाँ अगोराटोली क्षेत्र में पायी गईं। इसका मुख्य कारण काजीरंगा के 92 बारहमासी आर्द्र भूमि क्षेत्रों में से सबसे बड़े आर्द्र भूमि क्षेत्र सोहोला (Sohola) का अगोराटोली रेंज में शामिल होना है क्योंकि 34% से अधिक पक्षी सोहोला में ही पाये गए हैं।
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में बार-हेडेड हंस (Bar-Headed Goose ) की 6181 प्रजाति, इसके बाद कॉमन टी (Common Tea) की 1557 और नोर्दन पिंटेल (Northern Pintail) की 1359 प्रजातियाँ गणना में पाई गई।
- पक्षियों की अन्य प्रजातियों में बड़ी संख्या में गडवाल (Gadwall), कामन कूट (Common Coot), लेस व्हिस्लिंग डक (Lesser Whistling Duck), इंडियन स्पॉट-बिल्ड डक (Indian Spot-Billed Duck), टफटेड डक (Tufted Duck), यूरेशियन कबूतर (Eurasian Pigeon), एशियन ओपनबिल (Asian Openbill), नोर्थन लैपविंग (Northern Lapwing) रूडी शेल्ड (Ruddy Shelduck)और स्पॉट-बिल पेडलिकन (Spot-Billed Pelican) शामिल थे।
प्रथम आर्द्रभूमि पक्षी गणना-2018
- वर्ष 1985 में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल होने के बाद वर्ष 2018 में यहाँ पहलीआर्द्रभूमि पक्षी गणना का आयोजन किया गया ।
- वर्ष 2018 में,की गई गणना में पक्षियों के विचरण वाले क्षेत्रों को ब्लॉकों में विभाजित किया गया था ताकि गणना में कम से कम त्रुटियाँ हों।
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के बारे में:
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान असम राज्य में स्थित है।
- उद्यान में लगभग 250 से अधिक मौसमी जल निकाय (Water Bodies)हैं, इसके अलावा डिपहोलू नदी (Dipholu River ) इसके मध्य से बहती है।
- विश्व के दो-तिहाई एक सींग वाले गैंडे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ही पाए जाते हैं ।
- काजीरंगा में संरक्षण प्रयासों का अधिकांश ध्यान 'बड़ी चार' प्रजातियों- राइनो (Rhino), हाथी (Elephant), रॉयल बंगाल टाइगर (Royal Bengal Tiger) और एशियाई जल भैंस (Asiatic Water Buffalo)पर केंद्रित है।
- उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और कर्नाटक में बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान के बाद भारत में धारीदार बिल्लियों की तीसरी सबसे ज़्यादा जनसंख्या काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाती है ।
पक्षी गणना का महत्त्व :
पक्षियों की गणना से प्राप्त डेटा विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आर्द्रभूमि, काजीरंगा के पारिस्थितिकी तंत्र को पोषण देती है। पक्षियों की संख्या में किसी भी प्रकार की वृद्धि या कमी पार्क के स्वास्थ्य का संकेतक है।
स्रोत: द हिंदू
जैविक हल्दी
प्रीलिम्स के लिये:जैविक हल्दी की कृषि से संबंधित क्षेत्र मेन्स के लिये:जैविक कृषि तथा उसके लाभ |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में ओडिशा के मलकानगिरी ज़िला प्रशासन ने जैविक हल्दी को एक लाभदायक नकदी फसल के रूप में बढ़ावा देकर क्षेत्र के आदिवासियों को अवैध मादक पदार्थ (मारिजुआना) की कृषि से मुक्त करने के लिये इसे एक परियोजना के रूप में प्रारंभ किया है।
प्रमुख बिंदु:
- ओडिशा के मलकानगिरी ज़िले के स्वाभिमान अंचल के दूरदराज के क्षेत्रों में अवैध मादक पदार्थ (मारिजुआना) की कृषि को स्थानांतरित कर वहाँ जैविक हल्दी की कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- इस क्षेत्र में संचार व्यवस्था की कमी तथा अत्यधिक गरीबी के कारण मारिजुआना की अवैध रूप से कृषि की जा रही थी।
- मलकानगिरी ज़िला प्रशासन द्वारा वर्ष 2019 में किये गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इस क्षेत्र में लगभग सभी आदिवासी परिवार अपने उपभोग के लिये हल्दी की कृषि कर रहे हैं।
- लेकिन उपयुक्त जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद व्यावसायिक रूप से इसकी कृषि नहीं की गई है ।
- सर्वेक्षण के अनुसार ऐसी परिस्थिति में आदिवासियों के आर्थिक विकास तथा मारिजुआना की कृषि के विकल्प के तौर पर जैविक हल्दी की कृषि को एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- सर्वेक्षण के अनुसार प्रति एकड़ जैविक हल्दी की कृषि से 70,000 से 80,000 रूपए की आय प्राप्त की जा सकती है।
- जैविक हल्दी की कृषि के प्रति इच्छुक किसान पहले ही वैज्ञानिक प्रशिक्षण के लिये अपना पंजीकरण करा चुके हैं।
जैविक कृषि (Organic Farming)
- जैविक कृषि से अभिप्राय कृषि की ऐसी प्रणाली से है, जिसमें रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग न कर उसके स्थान पर जैविक खाद या प्राकृतिक खाद का प्रयोग किया जाए।
- यह कृषि की एक पारंपरिक विधि है, जिसमें भूमि की उर्वरता में सुधार होने के साथ ही पर्यावरण प्रदूषण भी कम होता है।
- जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने से धारणीय कृषि, जैव विविधता संरक्षण आदि लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिये किसानों को प्रशिक्षण देना महत्त्वपूर्ण है।
जैविक कृषि के लाभ:
- जैविक कृषि पद्धति को अपनाने से यह कृषि में कीटनाशकों के उपयोग को कम कर देगा जिससे खेतों में काम करने वाले लोगों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव बहुत कम पड़ेगा।
- कृषि में जैविक पद्धतियों को अपनाने से किसानों की आय और लाभप्रदता दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिन किसानों ने भी इसे अपनाया है उनकी कृषि उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई है।
- इसके साथ ही कृषि भूमि की उर्वरता और उत्पादकता भी बढ़ रही है।
- भारत में जैविक कृषि की सफलता प्रशिक्षण और प्रमाणन पर निर्भर करती है। किसानों को त्वरित गति से रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम कर अपनी पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपनाना होगा।
- किसानों को उर्वर मिट्टी के निर्माण, कीट प्रबंधन, अंतर-फसल और खाद एवं कम्पोस्ट निर्माण जैसे पहलुओं पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
- पर्यावरण संबंधी लाभ के साथ-साथ स्वच्छ, स्वस्थ, गैर-रासायनिक उपज किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये लाभदायक है। जैविक कृषि भारतीय कृषि क्षेत्र के विकास के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 जनवरी, 2020
ढाका विश्वविद्यालय में हिंदी पीठ की स्थापना
बांग्लादेश स्थित ढाका विश्वविद्यालय जल्द ही देश के विधार्थियों के लिये ऑनर्स स्तर के अध्ययन की सुविधा हेतु एक हिंदी पीठ की स्थापना करेगा। ढाका में विश्व हिंदी दिवस पर बांग्लादेश में भारत की उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद जल्द ही एक हिंदी शिक्षक की नियुक्ति करेगी, जिसके बाद बांग्लादेश में उच्च अध्ययन के लिये हिंदी ऑनर्स का शिक्षण शुरू हो सकेगा। इसके अलावा दुनिया भर में बढ़ती हिंदी की लोकप्रियता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भी हिंदी में साप्ताहिक शुक्रवार बुलेटिन की शुरुआत की है।
दुबई में भारतीय दूतावास पर तत्काल पासपोर्ट की सुविधा
दुबई में भारतीय दूतावास तत्काल योजना के तहत कुछ शर्तों के साथ उसी समय पासपोर्ट जारी करने की सुविधा प्रदान करेगा। प्रवासी भारतीय दिवस समारोह के अवसर पर दुबई में भारत के महावाणिज्य दूत द्वारा यह घोषणा की गई। इस योजना का लाभ उठाने के लिये आवेदकों को दोपहर से पूर्व आवेदन करना होगा और इसके लिये अतिरिक्त शुल्क भी लिया जाएगा। आवेदक को पासपोर्ट शाम तक उपलब्ध करा दिया जाएगा। यह घोषणा उन लोगों के लिये काफी लाभदायक साबित हो सकती है जिन्हें आपातकालीन स्थिति में यात्रा करनी पड़ती है।
7.35 प्रतिशत है खुदरा महँगाई दर
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) ने दिसंबर, 2019 के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित महँगाई दर के आँकड़े जारी किये हैं। आँकड़ों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में CPI आधारित महँगाई दर 7.26 प्रतिशत रही, जो दिसंबर 2018 में 1.50 प्रतिशत थी। इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों के लिये CPI आधारित महँगाई दर दिसंबर, 2019 में 7.46 प्रतिशत आँकी गयी, जो दिसंबर 2018 में 2.91 प्रतिशत थी। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) की स्थापना मई 1951 में विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों एवं राज्य सरकारों की सांख्यिकीय गतिविधियों के मध्य समन्वयन एवं सांख्यिकीय मानकों के संवर्द्धन हेतु की गई थी।
CRPF के नए महानिदेशक
वरिष्ठ IPS अधिकारी ए.पी. माहेश्वरी को केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) का महानिदेशक नियुक्त किया गया। वर्ष 1984 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के IPS अधिकारी ए.पी. माहेश्वरी वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्रालय में विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। कार्मिक मंत्रालय के अनुसार, उन्हें उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख 28 फरवरी, 2021 तक के लिये CRPF का महानिदेशक बनाया गया है। ज्ञात हो कि CRPF के मौज़ूदा महानिदेशक आर.आर. भटनागर के 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने के बाद से CRPF के महानिदेशक का पद खाली था। क्राउन रिप्रेजेन्टेटिव्स पुलिस के रूप में 27 जुलाई, 1939 को CRPF अस्तित्व में आया। जिसके पश्चात् 28 दिसंबर, 1949 को CRPF अधिनियम द्वारा इसे केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के रूप में जाना जाने लगा। ज्ञात हो कि आंतरिक सुरक्षा के लिये यह भारत का प्रमुख केंद्रीय पुलिस बल है।