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डेली न्यूज़

  • 13 Jul, 2019
  • 31 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चंद्रयान -2 (मून मिशन)

चर्चा में क्यों?

भारत के महत्त्वाकांक्षी अभियान चंद्रयान- 2 (Chandrayaan- 2) मिशन के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। 15, जुलाई 2019 को इसे इसरो द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा। 

लक्ष्य 

  • 53 से 54 दिन के सफर के पश्चात् (6 या 7 सितंबर को) यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। 
  • चंद्रयान-2 की सफल लैंडिंग के साथ ही भारत चंद्रमा की सतह पर पहुँचने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। 
  • दक्षिणी ध्रुव पर पानी मिलने की संभावना सबसे अधिक है, इस मिशन के तहत चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया जाएगा।   

चंद्रयान- 2

Chandrayaan-2

  • चंद्रयान-2 अभियान को श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया जाएगा।
    • यह (चंद्रमा के लिये भारत का दूसरा मिशन) पूरी तरह से स्वदेशी मिशन है। 
    • इस मिशन में तीन घटक ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम), रोवर (प्रज्ञान) को शामिल किया गया है। 
    • GSLV मार्क-3 चंद्रयान-2 आर्बिटर और लैंडर को धरती की कक्षा में स्थापित करेगा, जिसके बाद उसे चंद्रमा की कक्षा में पहुँचाया जाएगा।
    • चंद्रयान-2 के चंद्रमा की कक्षा में पहुँचने के बाद लैंडर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा और रोवर को तैनात करेगा।
    • रोवर पर लगाए गए उपकरण चंद्रमा की सतह का अवलोकन करेंगे और डेटा भेजेंगे, जो चंद्रमा की मिट्टी के विश्लेषण के लिये उपयोगी होगा।

प्रमुख बिंदु 

  • चंद्रयान 2 को भारत के सबसे शक्तिशाली रॉकेट GSLV मार्क- III द्वारा लॉन्च किया जाएगा।  
  • इस मिशन के साथ 13 पेलोड भेजे जाएंगे। इनमें से 8 पेलोड ऑर्बिटर में, 3 लैंडर में और 2 रोवर में रहेंगे।
  • मिशन के तहत निम्नलिखित कार्यों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा: 
    • चंद्रमा की सतह का नक्शा तैयार करना। इससे चंद्रमा के अस्तित्व एवं उसके विकास का पता लगाने में सहायता मिलेगी।
    • चंद्रमा पर ही कुछ खनिजों जैसे- सोडियम, मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम और सिलिकॉन का विश्लेषण किया जाएगा।
    • सूरज की किरणों में मौजूद सोलर रेडिएशन की तीव्रता का पता लगाया जाएगा।
    • चंद्रमा की सतह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें ली जाएगी जिससे वह उपस्थित वस्तुओं का विस्तृत अध्ययन किया जा सकें। 
    • चंद्रमा की सतह पर चट्टान या गड्ढे को पहचानना ताकि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हो।
    • दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी और खनिजों का पता लगाना।
    • ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाना।
  • उल्लेखनीय है कि अब तक सिर्फ अमेरिका ने ही मनुष्य को चंद्रमा पर भेजा है। पूर्व सोवियत संघ तथा चीन के उपकरण चंद्रमा पर मौजूद हैं। इस साल अप्रैल में इज़राइल ने भी प्रयास किया था लेकिन असफल रहा।

इसलिये यदि यह मिशन सफल रहा तो भारत चंद्रमा पर कदम रखने वाला चौथा देश हो सकता है।

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव

  • यह दुनिया का पहला यान है जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जा रहा है। इससे पहले चीन के चांग'ई-4 यान ने दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर लैंडिंग की थी।  
  • हालाँकि अब तक यह क्षेत्र वैज्ञानिकों के लिये अनभिज्ञ है।
  • चंद्रमा के अन्य हिस्सों की तुलना में यहाँ पर अधिक छाया होने के कारण इस क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी होने की संभावना अधिक है। 
  • यदि चंद्रयान-2 यहाँ पर बर्फ की खोज कर लेगा तो भविष्य में यहाँ मानव के रुकने लायक व्यवस्था करने की संभावनाएँ बढ़ जाएंगी। साथ ही यहाँ बेस कैम्प बनाए जा सकेंगे। साथ ही अंतरिक्ष में नई खोज का रास्ता खुलेगा।

India's Space odyssey

GSLV मार्क- III

  • चंद्रयान-2 के लिये चुना गया GSLV मार्क III इसरो द्वारा विकसित तीन-चरणों वाला भारत का सबसे शक्तिशाली प्रमोचक रॉकेट है। इसमें दो ठोस स्‍ट्रैप-ऑन (Solid Strap-Ons), एक क्रोड द्रव बूस्‍टर (Core Liquid Booster) और एक क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (Cryogenic Upper Stage) शामिल है।
  • GSLV मार्क III की विशेषताएँ
    • ऊँचाई : 43.43 मीटर
    • व्यास : 4.0 मीटर
    • ताप कवच का व्यास : 5.0 मीटर
    • चरणों की संख्या : 3
    • उत्थापन द्रव्यमान : 640 टन
  • GSLV मार्क III को भूतुल्‍यकालिक अंतरण कक्षा (Geosynchronous Transfer Orbit- GTO) में 4 टन श्रेणी के उपग्रहों या निम्‍न भू-कक्षा में लगभग 10 टन का वहन करने हेतु डिजाइन किया गया है। उल्लेखनीय है कि GSLV मार्क III की यह क्षमता GSLV मार्क II से लगभग दोगुनी है।
  • GSLV मार्क III का प्रथम विकासात्मक प्रमोचन 05 जून, 2017 को किया गया था जिसके तहत GSLV मार्क III-D1 की सहायता से GSAT-19 उपग्रह को भूतुल्‍यकालिक अंत‍रण कक्षा में सफलतापूर्वक स्‍थापित किया गया था।
  • उल्लेखनीय है कि GSLV मार्क III-D2 ने 14 नवंबर, 2018 को उच्‍च क्षमता वाले संचार उपग्रह GSAT-29 का सफलतापूर्वक प्रमोचन किया था।

Chandrayaan 2

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


प्रौद्योगिकी

रुसी रक्षा प्रणाली (S-400)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तुर्की के रक्षा मंत्रालय ने रूसी मिसाइल रक्षा प्रणाली [Russian missile defense system (S-400)] की पहली खेप तुर्की पहुँचने पर अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाने की आशंका जताई है।

प्रमुख बिंदु 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने तुर्की को चेतावनी दी है कि अगर वह रूसी मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदता है तो उसे आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। साथ ही तुर्की उच्च तकनीकियों से युक्त F-35 फाइटर जेट (F-35 fighter Jets) के उत्पादन संबंधी कार्यक्रमों में भी भाग नहीं ले पाएगा।
  • तुर्की ने प्रतिक्रियास्वरुप अमेरिकी दबाव के सामने झुकने से इनकार करते हुए कहा है कि इस प्रणाली की खरीद राष्ट्र की संप्रभुता के हित में है तथा संप्रभुता से किसी भी परिस्थिति में समझौता नहीं किया जा सकता है।

S-400 रक्षा सैन्य प्रणाली 

  • रूस की अल्माज़ केंद्रीय डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा 1990 के दशक में विकसित यह वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली करीब 400 किलोमीटर के क्षेत्र में शत्रु के विमान, मिसाइल और यहाँ तक कि ड्रोन को नष्ट करने में सक्षम है। 
  • एस-400 प्रणाली एस-300 का उन्नत संस्करण है। 
  • यह मिसाइल प्रणाली रूस में 2007 से सेवा में है और दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रणालियों में से एक मानी जाती है।
  • S-400 को सतह से हवा में मार करने वाला दुनिया का सबसे सक्षम मिसाइल सिस्टम माना जाता है। 
  • सतह से हवा में प्रहार करने में सक्षम S-400 को रूस ने सीरिया में तैनात किया है।
  • S-400 मिसाइल प्रणाली S-300 का उन्नत संस्करण है, जो इसके 400 किमी. की रेंज में आने वाली मिसाइलों एवं पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को नष्ट कर सकता है। इसमें अमेरिका के सबसे उन्नत फाइटर जेट F-35 को भी गिराने की क्षमता है।
  • इस प्रणाली में एक साथ तीन मिसाइलें दागी जा सकती हैं और इसके प्रत्येक चरण में 72 मिसाइलें शामिल हैं, जो 36 लक्ष्यों पर सटीकता से मार करने में सक्षम हैं। 
  • इस रक्षा प्रणाली से विमानों सहित क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों तथा ज़मीनी लक्ष्यों को भी निशाना बनाया जा सकता है।

भारत के संदर्भ में 

  • ध्यातव्य है कि अक्तूबर 2018  में भारत एवं रूस के मध्य रूसी मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद हेतु 5 अरब डॉलर का समझौता हुआ था, जिस पर अमेरिका ने भारत पर भी CAATSA (Countering America's Adversaries Through Sanctions Act) के तहत प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है।

क्या है CAATSA?

  • 2 अगस्त, 2017 को अधिनियमित और जनवरी 2018 से लागू इस कानून का उद्देश्य दंडनीय उपायों के माध्यम से ईरान, रूस और उत्तरी कोरिया की आक्रामकता का सामना करना है।
  • यह अधिनियम प्राथमिक रूप से रूसी हितों, जैसे कि तेल और गैस उद्योग, रक्षा एवं सुरक्षा क्षेत्र तथा वित्तीय संस्थानों पर प्रतिबंधों से संबंधित है। 
  • यह अधिनियम अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों (महत्त्वपूर्ण लेन-देन) से जुड़े व्यक्तियों पर अधिनियम में उल्लिखित 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम से कम पाँच लागू करने का अधिकार देता है।
  • इन दो प्रतिबंधों में से एक निर्यात लाइसेंस प्रतिबंध है जिसके द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति को युद्ध, दोहरे उपयोग और परमाणु संबंधी वस्तुओं के मामले के निर्यात लाइसेंस निलंबित करने के लिए अधिकृत किया गया है।
  • यह स्वीकृत व्यक्ति के इक्विटी या ऋण में अमेरिकी निवेश पर प्रतिबंध लगाता है।
  • इसकी विशेषताएँ अमेरिका के थाड मिसाइल डिफेंस सिस्टम जैसी होंगी और इसे अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल के अलावा हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों और वायु रक्षा के लिये विमानों को अवरुद्ध तथा नष्ट करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। माना जा रहा है कि यह रूसी मिसाइल रक्षा प्रणाली बेहद शक्तिशाली और मारक होगी तथा अमेरिका के अदृश्य लड़ाकू विमान F-22 और F-35 भी इसके सामने नाकाम सिद्ध होंगे।
  • हालिया वर्षों में अमेरिका और भारत के सैन्य संबंधों में आए सुधार के मद्देनज़र अब अमेरिका के उस कानून के प्रावधानों से बचने के तरीके तलाशने की ज़रूरत है, जिसके तहत रूस के रक्षा अथवा खुफिया प्रतिष्ठानों से लेन-देन करने वाले देशों और कंपनियों को दंडित करने की बात कही गई है।

विशेष: वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली S-400

रूस से हथियार खरीदने पर प्रतिबंध से मिलेगी छूट

अनिश्चित विश्व में भारतीय विदेश नीति

स्रोत: द हिंदू 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भूटान और बांग्लादेश के मध्य भारतीय जलमार्ग से व्यापार

चर्चा में क्यों?

भूटान और बांग्लादेश के मध्य व्यापार को सहज बनाने के उद्देश्य से भारत ने ब्रह्मपुत्र नदी में आवागमन के लिये एक जलमार्ग खोला है।

प्रमुख बिंदु:

  • दोनों देशों के मध्य इस जलमार्गीय व्यापार को भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterways Authority of India-IWAI) द्वारा पूरा किया जाएगा।
  • हाल ही में ऐसी पहली नौका इसी रास्ते से रवाना भी की गई है, जिसके माध्यम से भूटान से आए क्रश्ड स्टोन (Crushed Stone) को बांग्लादेश भेजा गया है और वापसी में बांग्लादेश से आने वाले जूट और चावल को भूटान को भेजा जाएगा। यह नौका असम के धुबरी रिवरपोर्ट से बांग्लादेश के नारायणगंज के लिये रवाना हुई है।
  • यह प्रथम अवसर है जब किसी भारतीय जलमार्ग का उपयोग दो देशों के बीच माल-परिवहन के लिये पारगमन के रूप में किया जा रहा है।

ब्रह्मपुत्र नदी

  • ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत की मानसरोवर झील के पूर्व तथा सिंधु एवं सतलुज के स्रोतों के काफी समीप से निकलती है। 
  • इसकी लंबाई सिंधु से कुछ अधिक है, परंतु इसका अधिकतर मार्ग भारत से बाहर स्थित है। 
  • यह हिमालय के समानांतर पूर्व की ओर बहती है। 
  • नामचा बारवा शिखर (7,757 मीटर) के पास पहुँचकर यह अंग्रेजी के यू (U) अक्षर जैसा मोड़ बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में गॉर्ज के माध्यम से प्रवेश करती है। 
  • यहाँ इसे दिहाँग के नाम से जाना जाता है तथा दिबांग, लोहित, केनुला एवं दूसरी सहायक नदियाँ इससे मिलकर असम में ब्रह्मपुत्र का निर्माण करती है।
  • ब्रह्मपुत्र को तिब्बत में सांगपो एवं बांग्लादेश में जमुना कहा जाता है।
  • भारतीय जहाज़रानी मंत्रालय के अनुसार, भारत के इस कदम से न केवल लगभग 30 प्रतिशत परिवहन लागत की बचत होगी, बल्कि 8-10 दिनों का समय भी बचेगा।
  • इससे पूर्व भूटान और बांग्लादेश के मध्य यह व्यापार ट्रकों के माध्यम से किया जाता था। भूटान/बांग्लादेश से आने वाले ट्रकों को एक दूसरे के बॉर्डर पर पुनः लोड किया जाता था जिसमें काफी समय लगता था। इसके अतिरिक्त ट्रकों को सीमा शुल्क निकासी की लंबी-लंबी कतारों में भी रुकना पड़ता था, जिससे विलंब की अवधि और अधिक बढ़ जाती थी।
  • IWAI को बांग्लादेश-भूटान के व्यापार से प्रति किलोमीटर प्रति टन 2 पैसे का उपयोगकर्त्ता शुल्क प्राप्त होगा।
  • इस व्‍यवस्‍था से नौवहन क्षेत्र में एक सुनिश्चित मसौदे को बनाए रखने के लिये पूंजी निकर्षण पर बल दिया गया है। 

Bhutan-Bangladesh

  • सरकार अंतर्देशीय जलमार्ग और तटीय नौवहन के माध्‍यम से अधिक मालवाहक पोत परिवहन के उपयोग को बढ़ाने के लिये विभिन्न पहल कर रही है। इन उपायों में जलमार्गों में पानी की सुनिश्चित गहराई, GPS और नदी सूचना प्रणाली जैसे नौवहन सहायक, नियमित अंतराल पर टर्मिनल पर आवश्‍यक मालवाहक सुविधाएँ प्रदान करना शामिल हैं।
  • प्रमुख बंदरगाहों पर स्थित तटवर्ती पोतों की बर्थिंग को न्यूनतम 40% छूट और प्राथमिकता दी जा रही है।
  • मर्चेंट शिपिंग एक्ट 1958 की धारा 406 और 407 के तहत उर्वरकों, कृषि उत्पादों, मत्स्य पालन, बागवानी और पशुपालन उत्पादों, खाली कंटेनरों एवं कंटेनरों को एक बंदरगाह से दूसरे बंदरगाह तक आवागमन के लिये लाइसेंस में छूट दी गई है।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण

(Inland Waterways Authority of India-IWAI)

  • अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास और विनियमन हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) की स्थापना 27 अक्तूबर, 1986 को की गई।
  • IWAI जहाज़रानी मंत्रालय (Ministry of Shipping) के अधीन एक सांविधिक निकाय है।
  • यह जहाज़रानी मंत्रालय से प्राप्त अनुदान के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्गो पर अंतर्देशीय जल परिवहन अवसंरचना के विकास और अनुरक्षण का कार्य करता है।
  • प्राधिकरण का मुख्यालय नोएडा (New Okhla Industrial Development Authority-NOIDA) में, क्षेत्रीय कार्यालय पटना, कोलकाता, गुवाहाटी और कोची में तथा उप-कार्यालय प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद), वाराणसी, भागलपुर, रक्का और कोल्लम में हैं।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 के अनुसार अभी तक 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है।
  • वर्ष 2018 में IWAI ने कार्गो मालिकों एवं लॉजिस्टिक्स संचालकों को जोड़ने हेतु समर्पित पोर्टल ‘फोकल’ (Forum of Cargo Owners and Logistics Operators-FOCAL) लॉन्च किया था जो जहाज़ों की उपलब्धता के बारे में रियल टाइम डेटा उपलब्ध कराता है।
  • 2018 में IWAI ने गंगा नदी पर जलमार्ग विकास परियोजना के लिये विश्व बैंक (World Bank) के साथ एक परियोजना समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसका उद्देश्य वाराणसी से हल्दिया तक राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (गंगा नदी) पर नौवहन (Navigation) की क्षमता में वृद्धि करना है।

भारत के लिये फायदेमंद

  • यह कदम भारत के साथ-साथ भूटान और बांग्लादेश के लिये भी लाभकारी होगा और पड़ोसी देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करेगा। 
  • इस नवीन विकास से न केवल पड़ोसी देशों के साथ हमारे संबंध मज़बूत बनेंगे, बल्कि यह हमारे पूर्वोत्‍तर राज्यों के लिये एक वैकल्पिक मार्ग भी खोलेगा, जिससे देश के अन्य हिस्सों से इन स्थानों तक माल पहुँचाना आसान और सस्ता हो जाएगा

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


जैव विविधता और पर्यावरण

पुरातात्विक स्थलों पर वार्मिंग का खतरा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीनलैंड में जलवायु परिवर्तन केवल पारिस्थितिकी तंत्र के लिये ही खतरा नहीं है, बल्कि इससे पुरातात्विक इमारतों एवं स्थलों को भी क्षति पहुँच रही है।

प्रमुख बिंदु 

  • अध्ययनकर्त्ताओं की एक टीम वर्ष 2016 से विशाल आर्कटिक क्षेत्र की राजधानी नूक (Nuuk) के समीप सात अलग-अलग स्थानों पर परीक्षण कार्य कर रही है।
  • आर्कटिक में 1,80,000 से अधिक पुरातात्विक स्थल हैं, जो हज़ारों वर्ष पुराने हैं और ये प्रकृति में मिट्टी के होने के कारण अभी तक संरक्षित भी थे।
  • नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, चूँकि क्षरण दर मिट्टी में उपस्थित नमी की मात्रा एवं तापमान से नियंत्रित होती है, इसलिये हवा के बढ़ते तापमान, ऐसा मौसम जिसमें ठंड कम हो, अथवा वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो, के कारण पुरातात्विक अवशेषों (लकड़ी, हड्डी और प्राचीन डीएनए जैसे प्रमुख कार्बनिक तत्त्वों) को नुकसान पहुँचता है।
  • अध्ययनकर्त्ताओं द्वारा विभिन्न जलवायु परिवर्तन से प्रभावित परिदृश्यों पर आधारित परिकल्पनाओं के आधार पर भविष्यवाणी करते हुए कहा है कि औसतन तापमान 2.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, जिससे मिट्टी के तापमान में वृद्धि हो सकती है। साथ ही तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से कार्बनिक परतों के भीतर पाए जाने वाले माइक्रोबियल की गतिविधि में भी इज़ाफा हो सकता है।
  • अध्य्यनकर्त्ताओं के अनुसार, जैविक कार्बन (Organic Carbon) के पुरातात्त्विक अंश का 30 से 70% हिस्सा अगले 80 वर्षों तक विघटित हो सकता है। 

अध्य्यनकर्त्ताओं के अनुसार, पिछले सर्वेक्षणों के साथ जब वर्तमान निष्कर्षों की तुलना की गई, तो यह पाया गया कि कुछ स्थानों पर हड्डियों अथवा लकड़ी के अवशेष नहीं मिले, इसका एक प्रमुख कारण यह है कि पिछले कुछ दशकों में इनके क्षरण की घटनाएँ सामने आई हैं। उदाहरण के तौर पर, अलास्का जैसे क्षेत्रों में, प्राचीन कलाकृतियाँ बढ़ते तापमान के कारण पर्माफ्रॉस्ट थाॅ के रूप में उभर रही हैं।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (13 July)

  • राष्ट्रमंडल देशों के विदेश मंत्रियों की 19वीं बैठक लंदन में आयोजित की गई। इसमें भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने किया। बैठक में इस समूह की भविष्य की रणनीति पर चर्चा हुई, जिसमें राष्ट्रमंडल के अन्य 52 सदस्य देशों के विदेश मंत्री भी शामिल हुए। इसकी अध्यक्षता ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेरेमी हंट ने की। लंदन के मार्लबोरो हाउस में आयोजित इस बैठक में भारत ने मालदीव को राष्ट्रमंडल में फिर से शामिल करने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये कहा। मालदीव ने 53 सदस्यीय संगठन से अपने संबंध वर्ष 2016 में तोड़ लिये थे औैर पिछले वर्ष देश के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के नेतृत्व में फिर से इसमें शामिल होने के लिये आवेदन किया था। विदित हो कि राष्ट्रमंडल का मौजूदा अध्यक्ष होने के नाते इसकी अध्यक्षता की बारी इस बार ब्रिटेन की है। विदेश मंत्रियों की इस बैठक में राष्ट्रमंडल की भविष्य की रणनीति और दिशा पर भी चर्चा हुई। इस साल की बैठक की मुख्य थीम मीडिया की स्वतंत्रता रखी गई थी। इसके अलावा इस वर्ष राष्ट्रमंडल समूह की 70वीं वर्षगाँठ भी मनाई जा रही है।
  • ओडिशा सरकार ने केंद्र की गवाह संरक्षण योजना 2018 को लागू कर दिया है और इस योजना को लागू करने वाला वह देश का पहला राज्य बन गया है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष दिसंबर में केंद्र सरकार की गवाह सुरक्षा योजना को मंज़ूरी दी थी और और संसद द्वारा कानून बनाए जाने तक सभी राज्यों को इसका पालन करने का निर्देश दिया था। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) और पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD) से परामर्श के बाद गवाह संरक्षण योजना के मसौदे को अंतिम रूप दिया गया और गवाहों को खतरे के आकलन के आधार पर तीन श्रेणियों में रखा गया है:

1. श्रेणी A: जहाँ जाँच, परीक्षण या उसके बाद गवाह या परिवार के सदस्यों के जीवन पर खतरा हो।

2. श्रेणी B: ​​जहाँ जाँच या परीक्षण के दौरान गवाह या परिवार के सदस्यों की सुरक्षा, प्रतिष्ठा या संपत्ति पर खतरा हो।

3. श्रेणी C: जाँच, परीक्षण या उसके बाद गवाह या परिवार के सदस्यों, प्रतिष्ठा या संपत्ति के उत्पीड़न का खतरा।

  • यूनेस्को के एक प्रतिनिधिमंडल ने उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू को भारत की शिक्षा स्थिति 2019- दिव्यांग बच्चे रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में 10 अनुशंसाएँ की गई हैं, जिसमें शिक्षा का अधिकार अधिनियम को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के साथ जोड़ा जाना शामिल है। रिपोर्ट में दिये गए सुझावों पर सरकार गंभीरता से विचार करेगी, क्योंकि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विचार-विमर्श चल रहा है। देश में समावेशी शिक्षा को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है और सरकार दिव्यांग बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रही है। यूनेस्को ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेंज़ के साथ मिलकर यह रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें दिव्यांग बच्चों की शिक्षा की वर्तमान स्थिति तथा इसे और बेहतर बनाकर दिव्यांग बच्चों की शिक्षा को आगे बढ़ाए जाने के उपाय सुझाए गए हैं।
  • भारत सरकार ने देश के कई सिख संगठनों से विचार-विमर्श के बाद न्यूयार्क से संचालित होने वाले खालिस्तान समर्थक संगठन सिख फॉर जस्टिस को गैर-कानूनी घोषित करते हुए उसे पाँच साल के लिये प्रतिबंधित कर दिया है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अनुसार, यह संगठन खालिस्तान के नाम पर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था, जिससे खासतौर पर पंजाब के हालात बिगड़ रहे थे। अलगाववादी एजेंडे के चलते इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया है, क्योंकि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI द्वारा इस संगठन के ज़रिये पंजाब में माहौल बिगाड़ने की घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। भारतीय रक्षा एजेंसियों ने इस संगठन पर 11 अलग- अलग मामले दर्ज किये हैं। यह संगठन 20-20 रिफरेंडम के लिये ऑनलाइन समर्थकों को जुटा रहा था। ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और आस्ट्रेलिया जैसे देशों के सिख बहुल इलाकों में खालिस्तान के समर्थन में यह संगठन काफी सक्रिय है।
  • लघु वीडियो साझा करने वाले प्रसिद्ध प्लेटफॉर्म ‘टिकटॉक’ ने विश्व युवा कौशल दिवस 2019 के मौके पर राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के साथ साझेदारी की है। इसके लिये टिकटॉक ने अपने एप पर skills4all अभियान शुरू किया है। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम ने इस प्लेटफॉर्म का लाभ उठाने के लिये भारत में टिकटॉक के लगभग 20 करोड़ यूज़र्स को शिक्षित करने के लिये एक आधिकारिक स्किल इंडिया ऑफिशियल टिकटॉक अकाउंट बनाया है। इसका उद्देश्य भारत में पहली बार इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों को शिक्षित करना तथा उन्हें सरकार के कौशल कार्यक्रमों और देश में प्रोफेशनल ट्रेनिंग के अवसरों के बारे में जानकारी देना है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2015 से 15 जुलाई का दिन दुनियाभर में विश्व युवा कौशल दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम Learning to Learn for Life & Work रखी गई है।
  • भारत की फर्राटा धाविका दुती चंद इटली के नेपोली में 30वें विश्व यूनिवर्सिटी खेलों (Summer Universiade) में 100 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला ट्रैक और फील्ड खिलाड़ी बन गई हैं। दुती चंद ने 11.32 सेकंड का समय निकालकर यह रेस जीती, जबकि स्विट्जरलैंड की डेल पोंटे 11.33 सेकंड का समय निकालकर दूसरे स्थान पर रही और जर्मनी की लीज़ा क्वायी ने तीसरा स्थान हासिल किया। इस प्रकार ओडिशा की दुती चंद विश्व यूनिवर्सिटी खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय खिलाड़ी बन गई। उनसे पहले इंदरजीत सिंह ने 2015 में पुरुषों के शॉटपुट में स्वर्ण पदक जीता था। विदित हो कि दुती चंद ने वर्ष 2018 में हुए एशियाई खेलों में 100 और 200 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता था।

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