एएसआई द्वारा राखीगढ़ी में उत्खनन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, सिंधु घाटी सभ्यता। मेन्स के लिये:राखीगढ़ी, हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख खोज। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा हड़प्पा सभ्यता के राखीगढ़ी स्थल की खुदाई में कुछ घरों, गलियों और जल निकासी व्यवस्था की संरचना का पता चला है।
- ASI की खुदाई में तांबे और सोने के आभूषण, टेराकोटा के खिलौनों के अलावा हज़ारों मिट्टी के बर्तन और मुहरें भी मिली हैं।
- इस उत्खनन का उद्देश्य राखीगढ़ी के संरचनात्मक अवशेषों का पता लगाना और उन्हें भविष्य के लिये संरक्षित कर राखीगढ़ी के पुरातात्त्विक स्थल को पर्यटकों के लिये सुलभ बनाना है।
- इसके अलावा उत्खनन में मिले दो मानव कंकालों के डीएनए नमूने एकत्र कर उन्हें वैज्ञानिक जाँच के लिये भेजा गया है, इन डीएनए नमूनों की जाँच रिपोर्ट के आधार पर हज़ारों साल पहले राखीगढ़ी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की वंश परंपरा और भोजन की आदतों के बारे में पता लगाया जा सकता है।
राखीगढ़ी:
- राखीगढ़ी भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल है।
- भारतीय उपमहाद्वीप में सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) के अन्य बड़े स्थल पाकिस्तान में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और गनवेरीवाल तथा भारत में धोलावीरा (गुजरात) हैं।
- राखीगढ़ी में इस सभ्यता की शुरुआत का पता लगाने और 6000 ईसा पूर्व (पूर्व-हड़प्पा चरण) से 2500 ईसा पूर्व तक इसके क्रमिक विकास का अध्ययन करने के लिये खुदाई की जा रही है।
- इस स्थल का उत्खनन कार्य ASI के अमरेंद्र नाथ के नेतृत्व में किया गया।
- राखीगढ़ी वर्ष 2020 में बजट भाषण के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा घोषित पाँच प्रतिष्ठित स्थलों में से एक है।
- ऐसे अन्य स्थल उत्तर प्रदेश में हस्तिनापुर, असम में शिवसागर, गुजरात में धोलावीरा और तमिलनाडु में आदिचनल्लूर हैं।
साइट के प्रमुख निष्कर्ष:
- बस्तियांँ:
- पुरातात्त्विक उत्खनन से पता चलता है कि परिपक्व हड़प्पा चरण का प्रतिनिधित्व योजनाबद्ध नगर प्रणाली द्वारा किया गया था जिसमें मिट्टी-ईंट के साथ-साथ पकी हुई ईट के घरों में उचित जल निकासी की व्यवस्था थी।
- मुहरें और मृद्भांड:
- एक बेलनाकार मुहर, जिसके एक ओर पाँच हड़प्पा वर्ण आकृतियांँ तथा दूसरी ओर घड़ियाल का चित्र बना हुआ है, इस स्थल से की गई एक महत्त्वपूर्ण खोज है।
- सिरेमिक उद्योग का प्रतिनिधित्व लाल बर्तनों द्वारा किया जाता था, जिसमें साधारण तश्तरियांँ , फूलदान, छिद्रित जार शामिल थे।
- अनुष्ठान और दाहसंस्कार:
- पुरातात्त्विक उत्खनन में मिट्टी के फर्श पर मिट्टी-ईंट तथा त्रिकोणीय एवं गोलाकार अग्नि-वेदियों के साथ पशु बलि हेतु खोदे हुए गड्ढों के भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जो हड़प्पावासियों की अनुष्ठान प्रणाली को दर्शाता है।
- उत्खनन से कुछ समाधियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जो निश्चित रूप से परवर्ती चरण शायद मध्ययुगीन काल से संबंधित हैं।
- उत्खनन में दो मादा कंकाल मिले जिन्हें मिट्टी के बर्तनों और जैस्पर, सुलेमानी मोतियों तथा खोल की चूड़ियों जैसे आभूषणों के साथ दफनाया गया था।
- अन्य पुरातात्त्विक अवशेष :
- ब्लेड, टेराकोटा और खोल की चूड़ियाँ, अर्द्ध-कीमती पत्थरों के मनके, तांबे की वस्तुएंँ, जानवरों की मूर्तियाँ, खिलौना गाड़ी का फ्रेम और टेराकोटा का पहिया, खुदा हुआ स्टीटाइट सील तथा सीलिंग।
- DNA नमूनों का अध्ययन:
- हरियाणा स्थित हड़प्पा स्थल ‘राखीगढ़ी’ के कब्रिस्तान की खुदाई से निकले कंकाल के DNA (DeoxyriboNucleic Acid) पर किये गए अध्ययन में यह पाया गया कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की एक स्वतंत्र वंशावली है।
- इस अध्ययन ने हड़प्पावासियों की वंशावली के स्टेपी क्षेत्र के पशुपालकों या प्राचीन ईरानी किसानों से संबंधित होने की पूर्व अवधारणा को अस्वीकार कर दिया है।
हड़प्पा सभ्यता:
- इसे सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
- यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग (समकालीन पकिस्तान तथा पश्चिमी भारत) में विकसित हुई।
- सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं में से एक थी।
- वर्ष 1920 में भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न: ऋग्वैदिक आर्यों और सिंधु घाटी के लोगों की संस्कृति के बीच अंतर के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: C प्रश्न: निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सिंधु सभ्यता के लोगों की विशेषता/विशेषताएंँ प्रदर्शित करता है/करते हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
ऊपरी और गहन पारिस्थितिकीवाद
चर्चा में क्यों?
जैसा कि भारत लगातार गर्मी की लहरों (लू) से जूझ रहा है, ऐसे में पर्यावरण दर्शन के दो पहलुओं (ऊपरीऔर गहन पारिस्थितिकीवाद) जो प्रकृति और मनुष्य के बीच संबंधों को पुनः स्थापित करते हैं, पर विचार करना प्रासंगिक हो जाता है।
प्रमुख बिंदु
पारिस्थितिकी:
- पारिस्थितिकी (Ecology) मानव सहित जीवित जीवों और उनके भौतिक वातावरण के बीच संबंधों का अध्ययन है।
- यह पौधों, जंतुओं और उनके आसपास के वातावरण के बीच महत्त्वपूर्ण संबंधों को समझने का प्रयास करता है।
- यह पारिस्थितिक तंत्र के लाभों के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है तथा पृथ्वी के संसाधनों का उपयोग किस प्रकार किया जाए जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिये एक स्वस्थ्य पर्यावरण निर्मित हो सके, इस बारे में जानकारी प्रदान करता है।
ऊपरी और गहन पारिस्थितिकीवाद:
- पृष्ठभूमि:
- ऊपरी और गहन पारिस्थितिकीवाद की अवधारणाएँ 1970 के दशक में उभरीं, जब नॉर्वेजियन दार्शनिक अर्ने नेस (Arne Næss) ने पर्यावरणीय क्षरण को संबोधित करने हेतु अपने परिवेश के लोकप्रिय प्रदूषण और संरक्षण आंदोलनों से परे देखने की मांग की।
- पारिस्थितिक चिंताओं से संबंधित अपने अध्ययन में अर्ने नेस प्रकृति में व्यक्ति की भूमिका के साथ संबंधों को व्यस्त है। उनका मानना है कि मानव-केंद्रितता बढ़ने के कारण मनुष्यों ने प्रकृति से खुद को अलग कर लिया है, अर्ने नेस प्रकृति और खुद को प्रतिस्पर्द्धी संस्थाओं के रूप में देख रहे हैं तथा एक मास्टर स्लेव डायनामिक (Master-Slave Dynamic) को स्थापित कर रहे हैं।
- अर्ने नेस द्वारा पर्यावरण संकट के केंद्र में मनुष्य को रखकर पारिस्थितिकीवाद की दो शैलियों के बीच के अंतर को रेखांकित किया गया है।
- ऊपरी पारिस्थितिकीवाद:
- ऊपरी पारिस्थितिकी (Shallow Ecology) दार्शनिक या राजनीतिक स्थिति को संदर्भित करती है कि पर्यावरण संरक्षण का केवल उस सीमा तक अभ्यास किया जाना चाहिये जो मानव हितों को पूरा करता है।
- यह आमूल-चूल परिवर्तन के बजाय प्रदूषण और संसाधनों की कमी के खिलाफ एक शक्तिशाली एवं व्यावहारिक युद्ध की तरह है।
- इस दर्शन के प्रतिपादक हमारी वर्तमान जीवन शैली को जारी रखने में विश्वास करते हैं, लेकिन पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने के उद्देश्य से विशिष्ट बदलाव के साथ।
- इसे कमज़ोर पारिस्थितिकीवाद के रूप में भी जाना जाता है, इसमें ऐसे वाहनों का उपयोग शामिल हो सकता है जो कम प्रदूषण करते हैं या एयर कंडीशनर जो क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) का उत्सर्जन नहीं करते हैं।
- पारिस्थितिकी की यह शाखा मुख्य रूप से विकसित देशों में रहने वालों की जीवनशैली को बनाए रखने का कार्य करती है।
- गहन पारिस्थितिकीवाद:
- गहन पारिस्थितिकीवाद के अनुसार, मनुष्य को प्रकृति के साथ अपने संबंधों को मौलिक रूप से परिवर्तित करना चाहिये।
- इसके समर्थकों ने जीवन के अन्य रूपों से ऊपर मनुष्यों को प्राथमिकता देने के लिये ऊपरी पारिस्थितिकीवाद को अस्वीकार कर दिया और बाद में आधुनिक समाजों में पर्यावरणीय रूप से विनाशकारी जीवनशैली का संरक्षण किया।
- यह मानता है कि ऐसी जीवनशैली की निरंतरता, ऊपरी पारिस्थितिकीवाद के देशों के बीच असमानताओं को और बढ़ाती है।
- उदाहरण के लिये दुनिया की आबादी का केवल 5% होने के बावजूद अमेरिका दुनिया की ऊर्जा खपत के 17% का अकेले उपभोग करता है,और चीन के बाद यह देश बिजली का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- जबकि निम्न व मध्यम आय वाले देशों ने पिछली दो शताब्दियों में संचयी और प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम किया है, वहीं अमेरिका सबसे अमीर देश है ,जो अधिकांश कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है।
गहन पारिस्थितिकीवाद का उद्देश्य:
- यह हमारी जीवनशैली में बड़े पैमाने पर बदलाव करके प्रकृति को बनाए रखने की इच्छा व्यक्त करता है।
- इनमें वन क्षेत्रों को संरक्षित करने के लिये मांस के व्यावसायिक उत्पादन को सीमित करना और जानवरों में कृत्रिम तरीके से वसा को बढ़ाने की प्रक्रिया पर रोक लगाना भी शामिल है।
- परिवहन प्रणालियों को पुन: आकार देना जिसमें आंतरिक दहन इंजनों का उपयोग भी शामिल है।
- जीवनशैली में बदलाव करने के अलावा यह गहन पारिस्थितिकी प्रदूषण और संरक्षण कर मज़बूत नीति निर्माण एवं कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करती है।
- अर्ने नेस के अनुसार, नीति-निर्माण को तकनीकी कौशल और आविष्कारों के पुनर्विन्यास द्वारा नई दिशाओं में सहायता प्रदान की जानी चाहिये जो पारिस्थितिक रूप से ज़िम्मेदार हैं।
- नेस की अनुशंसा के अनुसार, पारिस्थितिकीविदों को सीमित पारिस्थितिक दृष्टिकोण वाले अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले पर्यवेक्षण कार्य को अस्वीकार कर देना चाहिये और उन्हें ऐसी सत्ता के सामने नहीं झुकना चाहिये जो महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक प्राथमिकताओं को मान्यता नहीं देती है।
- इसके अतिरिक्त विभिन्न जीवन रूपों की जटिल समृद्धि को पहचानने के लिये गहन पारिस्थितिकीवाद 'योग्यतम की उत्तरजीविता' सिद्धांत के पुनर्मूल्यांकन की मांग करता है।
- इनका मानना है कि योग्यतम की उत्तरजीविता को प्रकृति के साथ सहयोग करने और सहअस्तित्व की मानवीय क्षमता के माध्यम से समझा जाना चाहिये, न कि शोषण करने या उस पर हावी होने के दृष्टिकोण से।
- इस प्रकार गहन पारिस्थितिकीवाद 'तुम या मैं' के दृष्टिकोण के बजाय 'जियो और जीने दो' के दृष्टिकोण को प्राथमिकता देता है।
गहन पारिस्थितिकीवाद का संवर्द्धन
- समाजवाद:
- गहन पारिस्थितिकीवाद विशेष रूप से समाजवाद से संबंधित है।
- गहन पारिस्थितिकी पर अपने लेखन में दार्शनिक नेस (Næss) का तर्क है कि प्रदूषण और संरक्षण आंदोलनों पर बहुत कम ध्यान दिये जाने के प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। उनका मानना है कि जब परियोजनाओं को केवल प्रदूषण की समस्या का समाधान करने के लिये लागू किया जाता है, तो यह एक अलग तरह की बुराई को जन्म देती है।
- उदाहरण के लिये प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना से जीवन यापन की लागत बढ़ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ग आधारित अंतराल में वृद्धि हो सकती है।
- एक नैतिक रूप से ज़िम्मेदार पारिस्थितिकीवाद वह है जो सभी आर्थिक वर्गों के हित में कार्य करे।
- नीति निर्णयन का विकेंद्रीकरण:
- जब निर्णय स्थानीय हितों को ध्यान में रखने के बजाय बहुमत के शासन से अत्यधिक प्रभावित होते हैं, तो पर्यावरण भी अधिक संवेदनशील हो सकता है।
- नेस के अनुसार, निर्णयन की प्रक्रिया के विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वायत्तता को मजबूती प्रदान कर इसका समाधान किया जा सकता है।
- स्थानीय बोर्ड, नगरपालिका परिषद, राज्यव्यापी संस्था, राष्ट्रीय सरकारी संस्था, राष्ट्रों का गठबंधन और वैश्विक संस्था से मिलकर बनी शृंखला के स्थान पर एक छोटी शृंखला बनाई जा सकती है जिसमें एक स्थानीय बोर्ड, एक राष्ट्रव्यापी संस्था और एक वैश्विक संस्था शामिल हो।
- एक लंबी निर्णयन शृंखला का कोई लाभ नहीं है क्योंकि इसमें स्थानीय हितों की अनदेखी करने की संभावना होती है।
- क्षेत्रीय मतभेदों को स्वीकार करना:
- नेस मनुष्यों को पर्यावरण संकट के प्रति 'अस्पष्ट, वैश्विक' दृष्टिकोण अपनाने के प्रति सावधान करते हैं।
- संकट के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण वह है जो विकसित तथा अविकसित राष्ट्रों के बीच क्षेत्रीय मतभेदों एवं असमानताओं को स्वीकार करता है।
- नेस इस बात पर ज़ोर देते हैं कि आंदोलनों की राजनीतिक क्षमता को महसूस किया जाए, और सत्तासीन लोगों को इसके लिये जवाबदेह ठहराया जाए। जलवायु संकट को हल करने की ज़िम्मेदारी नीति निर्माताओं पर उतनी ही है जितनी कि वैज्ञानिकों और पारिस्थितिकीविदों पर।
स्रोत: द हिंदू
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) और विदेशी मुद्रा भंडार
प्रिलिम्स के लिये:विदेशी मुद्रा भंडार और उसके घटक, एफपीआई, एफडीआई, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) मेन्स के लिये:विदेशी मुद्रा भंडार रखने का उद्देश्य और इसका महत्त्व, एफपीआई और एफडीआई का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने पिछले छह महीनों में देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में 16.58 टन और अधिक स्वर्ण को शामिल किया है, जिससे देश की सोने की होल्डिंग 700 टन (लगभग 760.42) से अधिक हो गई है।
- RBI द्वारा सोने का अधिग्रहण ऐसे समय में किया गया था जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (Foreign Portfolio Investors- FPIs) की भारत में रुचि समाप्त हो गई थी और विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2021 में 642.45 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से घटकर 29 अप्रैल, 2022 को 597.72 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया था।
- अब भारत नौवांँ सबसे बड़ा स्वर्ण भंडार धारक देश है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI):
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI) में विदेशी निवेशकों द्वारा निष्क्रिय रूप से रखी गई प्रतिभूतियांँ और अन्य वित्तीय परिसंपत्तियांँ शामिल होती हैं। यह निवेशक को वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रत्यक्ष स्वामित्व प्रदान नहीं करता तथा ये बाज़ार की अस्थिरता के आधार पर अपेक्षाकृत तरल होती हैं।
- FPI के उदाहरणों में स्टॉक, बॉण्ड, म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स , अमेरिकन डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स (ADRs) और ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स (GDRs) शामिल हैं।
- FPI किसी देश के पूंजी खाते का हिस्सा होता है और इसके भुगतान संतुलन (Balance of Payments- BOP) में दर्शाया जाता है।
- BOP एक मौद्रिक वर्ष में एक देश से दूसरे देशों में होने वाले धन के प्रवाह की मात्रा को मापता है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा वर्ष 2014 के पूर्ववर्ती FPI विनियमों के स्थान पर नया एफपीआई विनियम, 2019 लागू किया गया।
- FPI को अक्सर "हॉट मनी" के रूप में संदर्भित किया जाता है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में किसी भी प्रकार के संकट की स्थिति में सबसे पहले भागने वाले संकेतों की प्रवृत्ति को दर्शाता है। एफपीआई अधिक तरल और अस्थिर होता है, इसलिये यह FDI की तुलना में अधिक जोखिम भरा है।
FPIs के लाभ:
- अंतर्राष्ट्रीय ऋण तक पहुँच:
- निवेशक विदेशों में ऋण की बढ़ी हुई राशि तक पहुँचने में सक्षम हो सकते हैं, जिससे निवेशक अधिक लाभ प्राप्त और अपने इक्विटी निवेश पर उच्च रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं।
- यह घरेलू पूंजी बाज़ारों की तरलता को बढ़ाता है:
- जैसे-जैसे बाज़ार में तरलता बढ़ती जाती हैं, बाज़ार अधिक गहन और व्यापक होते जाते हैं, फलस्वरूप अधिक व्यापक श्रेणी के निवेशों को वित्तपोषित किया जा सकता है।
- नतीजतन, निवेशक यह जानकर विश्वास के साथ निवेश कर सकते हैं कि यदि आवश्यकता हो तो वे अपने पोर्टफोलियो का शीघ्र प्रबंधन कर सकते हैं या अपनी वित्तीय प्रतिभूतियों को बेच सकते हैं।
- यह इक्विटी बाज़ारों के विकास को बढ़ावा देता है:
- वित्तपोषण के लिये बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा बेहतर प्रदर्शन, संभावनाओं और कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार करती है।
- जैसे-जैसे बाज़ार की तरलता और कार्यक्षमता विकसित होती है, इक्विटी की कीमतें निवेशकों के लिये उचित व प्रासंगिक बन जाती हैं और अंततः ये बाज़ार की दक्षता को बढ़ावा देती हैं।
FPI और FDI में अंतर:
- अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं के लिये FPI और FDI दोनों ही वित्तपोषण के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) एक देश में एक फर्म या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक गतिविधियों में किया गया निवेश है। FDI एक निवेशक को विदेश में प्रत्यक्ष व्यापारिक गतिविधियों में भागीदारी करने की सुविधा प्रदान करता है।
- उदाहरण: एक निवेशक कई तरह से FDI के अंतर्गत निवेश कर सकता है। किसी अन्य देश में सहायक कंपनी स्थापित करना, किसी मौजूदा विदेशी कंपनी का अधिग्रहण करना या उनमें विलय करना, या किसी विदेशी कंपनी के साथ संयुक्त-उद्यम साझेदारी शुरू करना इसके कुछ सामान्य उदाहरण हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार:
- विदेशी मुद्रा भंडार एक केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित संपत्ति है, जिसमें बाँड, ट्रेज़री बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल हो सकती हैं।
- अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में है।
- भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल हैं:
- विदेशी मुद्रा संपत्ति
- स्वर्ण भंडार
- विशेष आहरण अधिकार (SDR)
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास रिजर्व ट्रेंच
- विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का महत्त्व:
- सरकार के लिये बेहतर स्थिति: विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही बढ़ोतरी भारत के बाहरी और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार तथा रिज़र्व बैंक को बेहतर स्थिति प्रदान करती है।
- संकट प्रबंधन: यह आर्थिक मोर्चे पर भुगतान संतुलन, (BoP) संकट की स्थिति से निपटने में मदद करता है।
- रुपए का अभिमूल्यन (Rupee Appreciation): बढ़ते भंडार ने डॉलर के मुकाबले रुपए को मज़बूत करने में मदद की है।
- बाज़ार में विश्वास: यह भंडार बाज़ारों और निवेशकों को विश्वास का स्तर प्रदान करेगा कि एक देश अपने बाहरी दायित्वों को पूरा कर सकता है।
- नीति निर्माण में भूमिका:
- मौद्रिक और विनिमय दर प्रबंधन के लिये नीतियों में समर्थन और विश्वास बनाए रखना।
प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा समूह भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल है? (2013) (a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) और विदेशों से ऋण। उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी इसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020) (a) यह अनिवार्य रूप से एक सूचीबद्ध कंपनी में पूंजीगत साधनों के माध्यम से किया गया निवेश है। उत्तर: (b)
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
‘भारत टैप’ पहल
प्रिलिम्स के लिये:जल संरक्षण की आवश्यकता, स्वच्छ भारत मिशन, कायाकल्प और परिवर्तन के लिये अटल मिशन (अमृत), अमृत 2.0, जल संरक्षण से संबंधित पहल। मेन्स के लिये:जल संरक्षण, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री ने 'प्लम्बेक्स इंडिया' प्रदर्शनी में भारत टैप पहल की शुरुआत की। यह प्रदर्शनी प्लम्बिंग, जल और स्वच्छता उद्योग से संबंधित उत्पादों एवं सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से लगाई गई है।
- प्रदर्शनी में राष्ट्रीय रियल एस्टेट विकास परिषद (NAREDCO) माही के 'निर्मल जल प्रयास' पहल की भी शुरुआत की गई।
भारत टैप पहल:
- 'भारत टैप' के तहत कम बहाव वाले टैप और ‘फिक्स्चर’ के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
- यह बड़े पैमाने पर कम प्रवाह वाले सेनेटरी सामग्री प्रदान करेगा और इस तरह स्रोत पर पानी की खपत को काफी कम कर देगा।
- इससे लगभग 40% पानी की बचत होने का अनुमान है, परिणामस्वरूप जल और ऊर्जा की बचत होगी जिससे पंपिंग, जल के परिवहन और शुद्धिकरण के लिये भी कम ऊर्जा की आवश्यकता होगी।
- इस पहल को देश में शीघ्रता से स्वीकार किया जाएगा, फलस्वरूप जल संरक्षण के प्रयासों पर नए सिरे से प्रयास किया जा सकता है।
राष्ट्रीय रियल एस्टेट विकास परिषद माही:
- यह वैश्विक जल संकट की समस्या को हल करने में मदद करता है, वित्तीय बाधाओं को दूर करता है और ज़रूरतमंद लोगों को सुरक्षित जल एवं स्वच्छता तक पहुँच प्रदान करता है।
- ‘निर्मल जल प्रयास’ पहल भूजल मानचित्रण पर कार्य करेगी क्योंकि यह भूमिगत जल को बचाने के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है और इससे प्रतिवर्ष लगभग 500 करोड़ लीटर जल का संरक्षण किया जायेगा।
- वर्ष 2021 NAREDCO की महिला शाखा ,महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने और रियल एस्टेट क्षेत्र व संबद्ध क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से स्थापित की गई थी।
- यह एक ऐसे वातावरण के निर्माण का प्रयास करता है जहाँ रियल एस्टेट क्षेत्र में महिलाएँ अनुभव साझा करने, अपने कौशल का उपयोग करने, संसाधनों को आकर्षित करने, प्रभावित करने और स्थायी परिवर्तन लाने के लिये एक साथ आ सकें।
- जल संरक्षण में इस तरह की पहल बेहद महत्त्वपूर्ण होगी।
जल संरक्षण की आवश्यकता:
- जल की मांग में वृद्धि: घरेलू, औद्योगिक और कृषि ज़रूरतों तथा सीमित भू-जल संसाधनों के चलते पानी की मांग में वृद्धि हुई है।
- सीमित भंडारण: कठोर चट्टानी इलाकों के कारण सीमित भंडारण सुविधाएँ, साथ ही मध्य भारतीय राज्यों में वर्षा में कमी आदि।
- भूजल का अति-दोहन: हरित क्रांति ने सूखाग्रस्त/पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल-गहन फसलों को उगाने में सक्षम बनाया, जिससे भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ।
- संदूषण: लैंडफिल, सेप्टिक टैंक, भूमिगत गैस टैंक और उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अति प्रयोग से होने वाले प्रदूषण के मामले में जल प्रदूषण के कारण जल संसाधनों की क्षति और इनमें कमी आती है।
- अपर्याप्त विनियमन: जल का अपर्याप्त विनियमन तथा इसके लिये कोई दंड न होना जल संसाधनों की समाप्ति को प्रोत्साहित करता है।
- वनों की कटाई और अवैज्ञानिक तरीके: वनों की कटाई, कृषि के अवैज्ञानिक तरीके, उद्योगों से रासायनिक अपशिष्ट और स्वच्छता की कमी के कारण भी जल प्रदूषण होता है, जिससे यह अनुपयोगी हो जाता है।
जल संरक्षण के लिये केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- स्वच्छ भारत मिशन:
- अतीत के निर्माण या आपूर्ति आधारित कार्यक्रमों (केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम) के विपरीत SBM एक मांग-केंद्रित मॉडल है। इसका उद्देश्य भारत में खुले में शौच की समस्या को समाप्त करना अर्थात् संपूर्ण देश को खुले में शौच करने से मुक्त (ओ.डी.एफ.) घोषित करना, हर घर में शौचालय का निर्माण, जल की आपूर्ति और ठोस व तरल कचरे का उचित तरीके से प्रबंधन करना है।
- कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT):
- अमृत मिशन को हर घर में पानी की सुनिश्चित आपूर्ति और सीवरेज कनेक्शन के साथ सभी की नल तक पहुँच को सुनिश्चित करने के लिये जून 2015 में शुरू किया गया था।
- AMRUT 2.0:
- अमृत 2.0 का लक्ष्य लगभग 4,700 ULB (शहरी स्थानीय निकाय) में सभी घरों में पानी की आपूर्ति के मामले में 100% कवरेज प्रदान करना है।
- यह स्टार्टअप्स और एंटरप्रेन्योर्स (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) को प्रोत्साहित करके आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देना चाहता है।
- राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM):
- इस योजना का उद्देश्य सूक्ष्म स्तर पर भूमि जल स्तर की पहचान करना, उपलब्ध भूजल संसाधनों की मात्रा निर्धारित करना तथा भागीदारी प्रबंधन के लिये संस्थागत व्यवस्था करना और भूमि जल स्तर की विशेषताओं के मापन के लिये उपयुक्त योजनाओं का प्रस्ताव करना है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम:
- इसका उद्देश्य भूजल संचयन में सुधार करना, जल संरक्षण और भंडारण तंत्र का निर्माण करना है तथा सरकार को अधिनियम के तहत जल संरक्षण को एक परियोजना के रूप में पेश करने में सक्षम बनाना है।
- जल क्रांति अभियान
- ब्लॉक स्तरीय जल संरक्षण योजनाओं के माध्यम से गाँवों और शहरों में क्रांति लाने का सक्रिय प्रयास।
- उदाहरण के लिये इसके तहत जल ग्राम योजना का उद्देश्य जल संरक्षण और पानी की कमी वाले क्षेत्रों में दो आदर्श गाँवों का विकास करना है।
- राष्ट्रीय जल मिशन:
- एकीकृत जल संसाधन विकास और प्रबंधन के माध्यम से पानी का संरक्षण, अपव्यय को कम करना और राज्यों में एवं राज्यों के भीतर अधिक समान वितरण सुनिश्चित करना है।
- नीति आयोग का समग्र जल प्रबंधन सूचकांक:
- पानी के प्रभावी उपयोग का लक्ष्य।
- जल शक्ति मंत्रालय और जल जीवन मिशन:
- जल से संबंधित मुद्दों से समग्र रूप से निपटने हेतु जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया था।
- जल जीवन मिशन का लक्ष्य वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण परिवारों को पाइपलाइन के माध्यम से पानी उपलब्ध कराना है।
- अटल भूजल योजना:
- जल प्रयोक्ता संघों के गठन, जल बजट, ग्राम पंचायतवार जल सुरक्षा योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन आदि के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल के सतत् प्रबंधन हेतु केंद्रीय क्षेत्र की योजना।
- जल शक्ति अभियान:
- जुलाई 2019 में देश में जल संरक्षण और जल सुरक्षा के अभियान के रूप में शुरू किया गया।
- राष्ट्रीय जल पुरस्कार:
- जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग द्वारा आयोजित।
- देश भर में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा किये गए अच्छे कार्यों और प्रयासों तथा जल समृद्धि भारत के पथ हेतु सरकार के दृष्टिकोण पर ध्यान देना
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):प्रश्न: अगर राष्ट्रीय जल मिशन को ठीक से और पूरी तरह से लागू किया जाता है तो इसका देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (2012)
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