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डेली न्यूज़

  • 13 May, 2019
  • 37 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड

चर्चा में क्यों?

दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC) के तहत अलग-अलग कारणों से कई मामलों में ऋण वसूली में देरी आ रही है।

प्रमुख बिंदु

  • एस्सार स्टील इंडिया लिमिटेड सहित कई मामलों में ऋण समाधान में दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड में निर्धारित समयसीमा से अधिक समय लग रहा है।
  • ज्ञातव्य है कि IBC के तहत आने वाले मामलों को 180 दिनों में पूरा करने के लिये कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (CIRP) होती है, जिसे 90 दिनों तक तक बढ़ाया जा सकता है।
  • यह समयसीमा यह सुनिश्चित करने के लिये निर्धारित की गई थी कि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की वसूली समयबद्ध तरीके से हो और बैंक 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक की तनावग्रस्त परिसंपत्तियों की मात्रा को कम करने में सक्षम हों।

गैर निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets)

वित्तीय संस्थानों से ऋण लेने वाला व्यक्ति जब 90 दिनों तक ब्याज या मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण ‘गैर निष्पादित परिसंपत्ति’ माना जाता है।
आँकड़ें

  • 31 मार्च, 2019 तक IBC के तहत रिज़ॉल्यूशन की प्रक्रिया से गुजर रहे कुल 1143 मामलों में से 548 मामलों में 180 दिन से अधिक समय लगा था।
  • जो यह दर्शाता है कि लगभग 48 प्रतिशत मामलों में 180 दिनों के भीतर ऋण समाधान की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी।
  • कुल 362 मामले या CIRPs के अंतर्गत चल रहे 31.67 प्रतिशत मामलों में समयसीमा IBC में निर्धारित 270 दिनों की सीमा को पार कर गई।

ऋण समाधान में देरी के कारण:

  • टेकओवर कंपनियों के लिये उपयुक्त बोलियों का अभाव
  • ऋणदाताओं के बीच मतभेद
  • मौजूदा प्रमोटरों और परिचालन लेनदारों द्वारा उत्पन्न कानूनी चुनौतियाँ

एस्सार स्टील इंडिया लिमिटेड सहित एनपीए के 12 बड़े मामले बैंकों ने विभिन्न नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) बेंचों को सौंपा।

इसके अंतर्गत अन्य पाँच बड़े मामलों में वसूली दर 17.11 प्रतिशत से लेकर 63.50 प्रतिशत रही है।

लगभग आधे मामलों में देरी के बावजूद IBC ने अब तक स्वीकृत 93 मामलों में वित्तीय लेनदारों को 43 प्रतिशत तक की वसूली दर पेशकश की है।

जिसमें वित्तीय लेनदारों ने 1,73,359 करोड़ रुपए के दावे में से 74,497 करोड़ रुपए की वसूली की।

कई मामलों में देरी के बावजूद ऋण वसूली हेतु मौजूदा न्यायाधिकरणों की प्रणाली और SARFAESI Act की तुलना में IBC प्रक्रिया के अंतर्गत अब तक बेहतर वसूली हुई है।

जिसमें वित्तीय लेनदारों ने 1,73,359 करोड़ के भर्ती दावों में से 74,497 करोड़ रुपए की वसूली की।

जाहिर है IBC ने लेनदार-देनदार संबंध को पूरी तरह से बदल दिया है। कई कंपनियाँ अपनी कंपनियों पर नियंत्रण खोने के डर से अपना बकाया चुकाने के लिये आगे आ रही हैं।

NCLT

  • 1 जून, 2016 को सरकार ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal-NCLT) का गठन किया। 
  • इनका गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के तहत किया गया। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने इनके लिये अधिसूचना जारी की थी
  • NCLT कंपनी अधिनियम 2013 या किसी अन्य कानून के माध्यम से उसे दी गईं शक्तियों के तहत कार्य करेगा
  • इसका अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होगा जो उच्च न्यायालय का जज हो या पाँच वर्षों तक इस पद पर रह चुका हो।

दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड
Insolvency and Bankruptcy Code

  • वर्ष 2016 में पारित दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड का उद्देश्य कॉर्पोरेट और फर्मों तथा व्यक्तियों के दिवालिया होने पर समाधान, परिसमापन और शोधन करने के लिये है।
  • विधेयक में भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड स्थापित करने का प्रावधान किया गया है ताकि पेशेवरों, एजेंसियों और सूचना सेवाओं के क्षेत्र में कंपनियों, संयुक्त फर्म और व्यक्तियों के दिवालिया होने से जुड़े विषयों का नियमन किया जा सके।

IBC की सामान्य कार्य प्रक्रिया

  • अगर कोई कंपनी कर्ज़ नहीं चुकाती तो IBC के तहत कर्ज़ वसूलने के लिये उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
  • इसके लिये NCLT की विशेष टीम कंपनी से बात करती है और कंपनी के मैनेजमेंट के तैयार होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
  • इसके बाद उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्ज़ा हो जाता है और बैंक उस संपत्ति को किसी अन्य कंपनी को बेचकर अपना कर्ज़ वसूल सकता है।
  • IBC में बाज़ार आधारित और समयसीमा के तहत इन्सॉल्वेंसी समाधान प्रक्रिया का प्रावधान है।
  • IBC की धारा 29 में यह प्रावधान किया गया है कि कोई बाहरी व्यक्ति (थर्ड पार्टी) ही कंपनी को खरीद सकता है।

NPA समस्या के समाधान में सहायक IBC

  • IBC के अनुसार, किसी ऋणी के दिवालिया होने पर एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार में लिया जा सकता है।
  • IBC के हिसाब से, यदि 75 प्रतिशत कर्ज़दाता सहमत हों तो ऐसी किसी कंपनी पर 180 दिनों (90 दिन के अतिरिक्त रियायती काल के साथ) के भीतर कार्रवाई की जा सकती है, जो अपना कर्ज़ नहीं चुका पा रही।
  • IBC के लागू होने से ऋणों की वसूली में अनावश्यक देरी और उससे होने वाले नुकसानों से बचा जा सकेगा।
  • कर्ज़ न चुका पाने की स्थिति में कंपनी को अवसर दिया जाएगा कि वह एक निश्चित समयावधि में कर्ज़ चुकता कर दे या स्वयं को दिवालिया घोषित करे।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तरीय बैठक

चर्चा में क्यों?

13 और 14 मई, 2019 के मध्य नई दिल्ली में आयोजित विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) की मंत्रिस्तरीय बैठक में विवाद निपटान संस्था को लेकर गतिरोध और अमीर देशों द्वारा विकासशील देशों को कुछ विशेष व्यापार लाभ देने से इनकार करने जैसे मुद्दों पर विशेष बल दिये जाने की संभावना है। इस बैठक की मेज़बानी भारत द्वारा की जा रही है।

प्रमुख बिंदु

  • यह बैठक वर्ष 2020 में कज़ाखस्तान में आयोजित होने वाले विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पहले आयोजित एक महत्त्वपूर्ण बैठक है।
  • यह बैठक ऐसे समय पर आयोजित की जा रही है जब बहुपक्षीय नियम आधारित व्यापार प्रणाली गंभीर एवं चिंताजनक चुनौतियों का सामना कर रही है।
  • विश्व व्यापार संगठन से जुड़े 16 देश, जो कि मुख्य रूप से विकासशील देश और 6 अल्प -विकसित देश इसका हिस्सा बनेंगे।
  • इस बैठक में बहुत से अहम मुद्दों पर सहमति बनाने का प्रयास किया जाएगा जिनमें डब्ल्यूटीओ में सुधारों के संबंध में आगे की कार्यवाही की योजना के साथ-साथ बहुपक्षीय व्यापार प्रणााली के विषय में भी बात की जाएगी।
  • पिछले दो वर्षों में विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय संस्था में सदस्यों की संख्या सात से घटकर तीन रह गई है।
  • वर्तमान में अपीलीय निकाय में किसी अपील पर सुनवाई करने में एक वर्ष का समय लगता है, जबकि अपीलों के निपटान के लिये निर्धारित समय 90 दिन है।
  • विश्व व्यापार संगठन में विकासशील देशों के विशेष और भिन्न बर्ताव का प्रावधान कुछ अन्य देशों के लिये चिंता का विषय बना हुआ है।

विश्व व्यापार संगठन

  • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 1995 में मारकेश संधि के तहत की गई थी।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा में है। वर्तमान में विश्व के 164 देश इसके सदस्य हैं।
  • 29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना था।
  • सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मलेन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।

विशेष और भिन्न बर्ताव प्रावधान

  • विश्व व्यापार संगठन के समझौते में कुछ खास प्रावधान शामिल हैं जो विकासशील देशों को कुछ विशेष अधिकार देते हैं जिन्हें विशेष और भिन्न बर्ताव (Special and Differential Treatment) कहते हैं। ये प्रावधान विकसित देशों को विश्व व्यापार संगठन के अन्य सदस्यों की तुलना में विकासशील देशों के साथ अधिक अनुकूल व्यवहार करने की संभावना व्यक्त करते हैं।
  • विशेष प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं-
  • समझौतों और प्रतिबद्धताओं को लागू करने हेतु लंबा समय।
  • विकासशील देशों हेतु व्यापार के अवसरों को बढ़ाने के उपाय
  • विकासशील देशों के व्यापार हितों की सुरक्षा के लिये सभी डब्ल्यूटीओ सदस्यों हेतु आवश्यक प्रावधान।
  • विकासशील देशों को डब्ल्यूटीओ के काम को पूरा करने, विवादों को हल करने और तकनीकी मानकों को लागू करने में मदद करने हेतु सहायता।
  • सबसे कम विकसित देश (Least-Developed Country- LDC) के सदस्यों से संबंधित प्रावधान।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड


विविध

SC/ST वर्ग के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण

चर्चा में क्यों?

10 मई के अपने एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार के उस कानून की वैधता को बरकरार रखा जिसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों की  पदोन्नति एवं वरिष्ठता के क्रम में आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

प्रमुख बिंदु

    • कर्नाटक में सरकारी सेवकों (राज्य की सिविल सेवा में पदों के लिये) को परिणामी वरिष्ठता में आरक्षण अधिनियम, 2017  के आधार पर पदोन्नत किया गया।
    • इस अधिनियम को  पिछले वर्ष राष्ट्रपति ने सहमति प्रदान की थी और 23 जून, 2018 को यह राजपत्र में प्रकाशित हुआ था।
    • 6 मार्च, 2019 को जस्टिस यू.यू. ललित एवं डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने प्रोन्नति संबंधी याचिकाओं की श्रृंखला पर अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था।
    • यह निर्णय महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उच्चतम न्यायालय की खंडपीठ  ने सितंबर 2018 में वर्ष 2006 के एक आदेश को संशोधित किया जिसमें राज्यों को सार्वजनिक क्षेत्र के रोज़गारों में पदोन्नति प्रदान करने के लिये अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के "पिछड़ेपन" को साबित करने हेतु मात्रात्मक आँकड़ों को दिखाना आवश्यक था।
    • तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली खंडपीठ द्वारा सितंबर में दिये गए फैसले ने सरकारी सेवा में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लोगों को "परिणामी वरिष्ठता के आधार पर  त्वरित पदोन्नति" प्रदान करने के प्रयासों का समर्थन करते हुए सरकार को बड़ी राहत दी थी। साथ ही यह माना गया कि 2006 का एम नागराजन वाद का फैसला सीधे तौर पर इंदिरा साहनी मामले में नौ जजों की बेंच (संवैधानिक पीठ) के फैसले के विपरीत था।
  • संवैधानिक पीठ- जिस पीठ में पाँच या इससे अधिक न्यायाधीश शामिल हों उसे संवैधानिक पीठ कहते है।
  • इंदिरा साहनी वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति पर लागू नहीं किया जा सकता है।
  • ज्ञातव्य है कि अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत रोज़गार में पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जा सकता है एवं इसमें वर्णित पिछड़ापन मूलतः सामाजिक है।

इंदिरा साहनी वाद

सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में अनुच्छेद 16 (4) के संदर्भ में निर्णय देते हुए कहा कि अनुच्छेद 16 (4) में दिया गया आरक्षण केवल आरंभिक नियुक्ति तक है, प्रोन्नति में नहीं।

अतः इंदिरा साहनी वाद में यह स्पष्ट कहा गया है कि आरक्षण प्रोन्नति में नहीं दिया जा सकता।

SC/ST के प्रोन्नति में आरक्षण हेतु संविधान संशोधन

  • इसके लिये 77वाँ संविधान संशोधन किया गया और संविधान में अनुच्छेद 16 (4A) जोड़ा गया जिसके अनुसार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रोन्नति में दिया गया आरक्षण जारी रहेगा।
  • 85वें संविधान संशोधन के द्वारा SC/ST को प्रोन्नति में परिणामी वरिष्ठता प्रदान करने की बात कही गई है।

नागराजन वाद

वर्ष 2007 में नागराजन वाद में 77वें और 85वें संविधान संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई लेकिन न्यायालय ने इन संशोधनों को वैध कहा और प्रोन्नति में आरक्षण को  स्वीकार कर लिया गया। परंतु न्यायपालिका ने कहा कि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजातियों के पिछड़ेपन, सेवाओं की कुशलता तथा उनकी सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आँकड़े प्रस्तुत करना आवश्यक होगा।


विविध

खाद्य मुद्रास्फीति

चर्चा में क्यों?

पिछले कुछ महीनों के दौरान कृषि वस्तुओं की कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। गौरतलब है कि इसकी वज़ह पश्चिम और दक्षिण भारत के हिस्सों में सूखे की मार और समयपूर्व ग्रीष्मकालीन परिस्थितियाँ रही हैं।

प्रमुख बिंदु

  • प्रभाव:
  • खाद्य मुद्रास्फीति से किसानों को लाभ हो सकता है क्योंकि उन्हें उपज के बदले अच्छी कीमतें प्राप्त होंगी, जबकि उपभोक्ताओं को नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि पिछले साल की तुलना में उच्च कीमतों का भुगतान करना होगा।

खाद्य मुद्रास्फीति

  • खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति भारत में हेडलाइन मुद्रास्फीति के घटकों में से एक है।
  • हेडलाइन इन्फ्लेशन, जैसा कि नाम से ही पता चलता है, किसी विशिष्ट अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति होती है, जिसमें कई वस्तुएँ शामिल होती हैं।
  • कोर मुद्रास्फीति में अस्थिर वस्तुएँ शामिल नहीं होती हैं। इन अस्थिर वस्तुओं में मुख्य रूप से खाद्य और पेय पदार्थ (सब्जियाँ सहित) तथा ईंधन एवं बिजली (कच्चे तेल) शामिल होते हैं।
  • कोर मुद्रास्फीति= हेडलाइन मुद्रास्फीति- खाद्य तथा ईंधन मुद्रास्फीति

मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपाय

  • सरकार ने मुद्रास्फीति के नियंत्रण हेतु कई उपाय किये हैं-
  • अनिवार्य वस्तुओं, खासकर दालों के मूल्य में अस्थिरता को नियंत्रित करने हेतु बजट में मूल्य स्थिरता कोष में बढ़ा हुआ आवंटन।
  • बाज़ार में समुचित दखल हेतु 20 लाख टन दालों का अफार स्टॉक रखने का अनुमोदन।
  • अनिवार्य वस्तु अधिनियम के अंतर्गत दालों, प्याज, खाद्य तेलों और खाद्य तेल के बीजों हेतु स्टॉक सीमा लागू करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अधिकृत करना।
  • उत्पादन को प्रोत्साहित कर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बढ़ाने हेतु, ताकि मूल्यों में सुधार हो।
  • उच्चतर मूल्य की घोषणा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

केरल के आपदा प्रबंधन के नए प्रोटोकॉल

चर्चा में क्यों?

चक्रवात 'ओखी' और वर्ष 2018 में आई बाढ़ से सबक लेते हुए केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Kerala State Disaster Management Authority-KSDMA) ने मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedures-SOP), आपदा प्रबंधन की ऑरेंज बुक और आपातकालीन सहायता कार्य योजना को अपडेट किया है। केरल राज्य में आपदा प्रबंधन के लिये नए प्रोटोकॉल 'मानसून की तैयारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना' को अपनाया गया।

प्रमुख बिंदु

  • ऑरेंज बुक में बाढ़, चक्रवात, सुनामी, उच्च लहरों (प्रफुल्लित लहरें, तूफानी महोर्मि, 'कल्ला कदल'), पेट्रोकेमिकल दुर्घटनाओं और यहाँ तक की अंतरिक्ष मलबे के कारण होने वाली दुर्घटनाओं हेतु मानक संचालन प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया है। ऑरेंज बुक में राज्य भर में उपलब्ध आपातकालीन प्रतिक्रिया परिसंपत्तियों से संबंधित सूचनाएँ निहित हैं।
  • ’मानसून की तैयारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना’ मौसम-विशिष्ट योजना है और दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्वी मानसून के मौसम (जून से दिसंबर) के दौरान इसका सख्ती से अनुपालन किया जाता है।
  • यह राज्य के आपातकालीन संचालन केंद्र, केंद्रीय एजेंसियों, ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों आदि की भूमिकाओं को सूचीबद्ध करता है। इससे पहले किसी भी दस्तावेज़ में सरकारी विभागों की ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट नहीं किया गया था।
  • मानसून तैयारी योजना, आपदा प्रबंधन की ऑरेंज पुस्तक की एक मौसम-विशिष्ट गतिशील उप-योजना है। मानसून पर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का पहला दीर्घावधि पूर्वानुमान प्राप्त करने के बाद इसे हर साल अपडेट किया जाएगा।

राज्य आपदा प्रबंधन आयोग

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 23 में यह प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य के लिये एक आपदा प्रबंधन योजना बनाई जाएगी। यह धारा इस बात को रेखांकित करती है कि योजना के व्यापक कवरेज के साथ-साथ राज्य योजनाओं के संदर्भ में तैयारी हेतु परामर्श की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया जाएगा।
  • यह राज्य योजना की वार्षिक समीक्षा एवं उन्हें अद्यतन किये जाने का भी प्रावधान करता है।
  • साथ ही इसके अंतर्गत राज्य की योजनाओं को वित्तपोषण प्रदान किये जाने की भी व्यवस्था की गई है।
  • यह राज्य सरकार के विभागों को अपनी-अपनी योजनाएँ तैयार करने की भी सुविधा प्रदान करता है।

ज़िला आपदा प्रबंधन योजना

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के खंड 31 के अनुसार, देश के प्रत्‍येक ज़िले का आपदा प्रबंधन विभाग ज़िला आपदा प्रबंधन योजना तैयार करेगा जिसे राज्य आपदा प्रबंधन योजना द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।
  • इस योजना की समीक्षा तथा अपडेशन का कार्य प्रतिवर्ष किया जाएगा।
  • ज़िला आपदा प्रबंधन योजना में किसी आपदा के घटने की स्थिति में मोचन योजनाएँ तथा प्रक्रियाएँ भी शामिल होंगी जिसमें ज़िला ‍‍स्तर पर सरकारी विभागों और ज़िले में‍‍ स्थानीय प्राधिकारियों को उत्तरदायित्त्व का आवंटन; आपदा के प्रति शीघ्र मोचन तथा उससे संबंधित राहत; अनिवार्य संसाधनों की अधिप्राप्ति; संचार सूत्रों की स्थापना आदि के भी प्रावधान किये जाएंगे।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एन.डी.एम.ए.)
National Disaster Management Authority (NDMA)

  • यह भारत में आपदा प्रबंधन के लिये एक सर्वोच्च निकाय है, जिसका गठन ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ के तहत किया गया था।
  • यह आपदा प्रबंधन के लिये नीतियों, योजनाओं एवं दिशा-निर्देशों का निर्माण करने के लिये ज़िम्मेदार संस्था है, जो आपदाओं के वक्त समय पर एवं प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।
  • भारत के प्रधानमंत्री द्वारा इस प्राधिकरण की अध्यक्षता की जाती है।

उद्देश्य

  • इस संस्था का उद्देश्य एक समग्र, प्रो-एक्टिव, प्रौद्योगिकी संचालित टिकाऊ विकास रणनीति के माध्यम से सुरक्षित और डिजास्टर रेसिलिएंट भारत का निर्माण करना है, जिसमें सभी हितधारकों को शामिल किया गया है।
  • यह आपदा की रोकथाम, तैयारी एवं शमन की संस्कृति को बढ़ावा देता है।

राष्‍ट्रीय आपदा मोचन बल

  • राष्‍ट्रीय आपदा मोचन बल द्वारा 19 जनवरी को अपना 13वाँ स्थापना दिवस मनाया गया। भारत में NDRF का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल के रूप में प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के दौरान विशेष प्रतिक्रिया के उद्देश्य से किया गया है।
  • वर्तमान में, एनडीआरएफ में 12 बटालियन हैं, जिनमें BSF और CRPF से तीन-तीन और CISF, SSB और ITBP से दो-दो बटालियन हैं।

आपदा प्रबंधन में NDRF की भूमिका

  • मानवीय और प्राकृतिक आपदा के दौरान विशेषज्ञ प्रतिक्रिया उपलब्ध करना, जिससे बचाव एवं राहत कार्य का प्रभावी निष्पादन संभव हो सके।
  • राष्ट्रीय आपदा मोचन बल आपदाओं के दौरान चलाए जाने वाले राहत कार्यों में अधिकारियों की मदद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • राष्ट्रीय आपदा मोचन बल की तैनाती संभावित आपदाओं के दौरान भी की जाती है।
  • आपदाओं में बचाव या राहत कार्य के दौरान अन्य संलग्न एजेंसियों के साथ समन्वय कर यह बल बचाव या राहत कार्य को संपूर्णता प्रदान करता है।
  • NDRF की सभी बटालियन तकनीकी दक्षता से युक्त हैं और विभिन्न प्रकार की विशेषज्ञ योग्यताओं से सुसज्जित हैं।
  • प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के साथ-साथ यह बल अपनी चार टुकड़ियों के माध्यम से रेडियोलॉज़िकल, जैविक, नाभिकीय और रासायनिक आपदाओं से निपटने में भी सक्षम है।

स्रोत- द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (13 May)

  • चार दिन की वियतनाम यात्रा पर गए भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने बुद्ध वैश्विक नेतृत्व से आह्वान किया कि शांति, साहचर्य, स्थिर विकास और परस्पर समन्वय वाली विश्व व्यवस्था के लिये बुद्ध के बताए मार्ग का अनुसरण करना होगा। 12 मई को वेंकैया नायडू 16वें संयुक्त राष्ट्र वेसाक दिवस के अवसर पर वियतनाम के विश्व प्रसिद्ध तामचुक पगोड़ा में आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस समारोह में वियतनाम बौद्ध संघ के प्रमुख और वेसाक समारोह 2019 संयुक्त राष्ट्र दिवस के अध्यक्ष डॉ. थिक थिएन न्हून, म्यांमार के राष्ट्रपति विन म्यिंट, नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली, वियतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुक सहित दुनियाभर से बड़ी संख्या में बौद्ध धर्मावलंबी और अनेक देशों के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल शामिल हुए। वेसक एक उत्सव है जो विश्वभर के बौद्धों द्वारा मनाया जाता है। यह उत्सव बुद्ध पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो विभिन्न देशों के पंचांग के अनुसार अलग-अलग दिन पड़ता है। भारत में इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा 18 मई को मनाई जानी है। इसके अलावा भारत और वियतनाम रक्षा, सुरक्षा, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग और बाहरी अंतरिक्ष, तेल एवं गैस तथा नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्रों में अपने संबंध और भी मज़बूत करने के लिये सहमत हुए।
  • भारत के चुनाव आयोग ने 17वीं लोकसभा के चल रहे आम चुनावों का अवलोकन करने के लिये 65 से अधिक प्रतिनिधियों को नई दिल्ली आमंत्रित किया। इनमें 20 देशों- ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, बोस्निया और हर्ज़ेगोविना, फिजी, जॉर्जिया, केन्या, दक्षिण कोरिया, किर्गिस्तान, मलेशिया, मेक्सिको, म्यांमार, रोमानिया, रूस, श्रीलंका, सूरीनाम, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान और ज़िम्बाब्वे तथा इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (IEDEA) के चुनाव प्रबंधन निकायों (EMB) के प्रमुख और प्रतिनिधि नई दिल्ली आए। चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने विदेशी प्रतिनिधियों को भारत के चुनाव आयोग की भूमिका और ज़िम्मेदारियों से अवगत कराने और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावों की योजना बनाने और उन्हें प्रबंधित करने की राह में आने वाली विभिन्न चुनौतियों को लेकर प्रस्तुति दी। इस अवसर पर चुनाव आयोग द्वारा अपनी त्रैमासिक पत्रिका 'माई वोट मैटर्स' के दूसरे अंक का विमोचन भी किया गया। इस पत्रिका का प्रथम अंक मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के मौके पर 25 जनवरी को भेंट किया था।
  • अमेरिका के बोइंग उत्पादन केंद्र में 10 मई को प्रथम AH-64E(I)-अपाचे गार्जियन हेलीकॉप्टर औपचारिक रूप से भारतीय वायुसेना को सौंप दिया गया। ज्ञातव्य है कि भारतीय वायुसेना ने सितंबर 2015 में अमेरिकी सरकार और बोइंग लिमिटेड के साथ 22 अपाचे हेलीकॉप्टरों के लिये एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे। इन हेलीकॉप्टरों के पहले जत्थे को इस वर्ष जुलाई तक भारत भेजने की योजना है। इस हेलीकॉप्टर का भारतीय वायुसेना के हेलीकाप्टर बेड़े में शामिल हो जाना भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस हेलीकॉप्टर को भारतीय वायुसेना की भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया गया है, खासतौर पर पहाड़ी इलाकों में इसकी क्षमता महत्त्वपूर्ण होगी। इस हेलीकॉप्टर में सीमाओं पर सटीक हमले करने और ज़मीन से होने वाले खतरों के साथ-साथ हवाई क्षेत्र में शत्रुतापूर्ण कार्यवाही से निपटने की अपार क्षमता है। इन हेलिकॉप्टरों के माध्यम से युद्ध की तस्वीर प्राप्त करने और भेजने के साथ-साथ डेटा नेटवर्किंग के माध्यम से हथियार प्रणालियों को संचालित भी किया जा सकता है। भारतीय वायुसेना और थल सेना के चयनित कर्मियों ने अलबामा में अमेरिकी सेना के बेस फोर्ट रकर में इसका प्रशिक्षण लिया है। प्रशिक्षण प्राप्त ये कर्मी भारतीय वायुसेना में अपाचे बेड़े का संचालन करेंगे।
  • आयरलैंड की संसद ने देश में जलवायु आपातकाल घोषित कर दिया है। ब्रिटेन के बाद ऐसा कदम उठाने वाला वह विश्व का दूसरा देश बन गया है। आयरलैंड ने संसदीय रिपोर्ट में एक संशोधन करके जलवायु आपातकाल घोषित किया। साथ ही आयरिश सरकार से आह्वान किया गया कि वह किस तरह से जाँच कर जैवविविधता को होने वाले नुकसान के मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया में सुधार कर सकती है। यह संशोधन बिना मतदान के स्वीकार कर लिया गया। ज्ञातव्य है कि ब्रिटेन ने यह कदम लंदन में हुए आंदोलन के बाद उठाया था। यह आंदोलन एक्सटिंशन रिबेलियन एन्वायरनमेंटल कैम्पेन समूह ने चलाया था। इस समूह का लक्ष्य वर्ष 2025 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की सीमा शून्य पर लाने और जैवविविधता के नुकसान को समाप्त करना है।
  • चाइनीज अकेडमी ऑफ साइंसेज़ के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्यों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण का असर समुद्र की गहराई में अनुमान से कहीं अधिक तेज़ी से पहुँच रहा है। इन वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की सबसे गहरी समुद्री गर्त मानी जाने वाली मारियाना ट्रेंच के जीवों में रेडियोएक्टिव कार्बन (कार्बन-14) की मौजूदगी पाई है। पश्चिमी प्रशांत महासागर में मारियाना द्वीपसमूह से 200 किलोमीटर पूर्व में स्थित इस मारियाना ट्रेंच की गहराई करीब 11 किलोमीटर है। यह रेडियोएक्टिव कार्बन पिछली सदी में किये गए परमाणु परीक्षणों के कारण वातावरण में फैला था। वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र की सतह पर रहने वाले जीव वातावरण में होने वाले प्रदूषण से सीधे प्रभावित होते हैं। मरने के बाद ये जीव समुद्र तल तक पहुँच जाते हैं। वहाँ समुद्री गर्त में रहने वाले जीवों के लिये यही मृत जीव भोजन होते हैं। इसी खाद्य श्रृंखला के जरिये वातावरण का प्रदूषण उम्मीद से कहीं ज्यादा जल्दी समुद्री गर्त तक पहुँच जाता है। कार्बन-14 एक रेडियोएक्टिव कार्बन है तथा वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन से आकाशीय किरणों का संपर्क होने से प्राकृतिक तौर पर इसका निर्माण होता है। प्रकृति में सामान्य कार्बन की तुलना में इसकी उपस्थिति बेहद कम है। हालाँकि लगभग हर जैविक तत्त्व में इसका अंश होता है। विभिन्न पुरातत्त्व व भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों के दौरान वैज्ञानिक इसी कार्बन की मदद से उनके काल का पता लगाते हैं।
  • वित्तीय संकट में फँसी रिलायंस कम्युनिकेशंस (RComm) के ऋणदाताओं ने राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLAT) से नए निपटान पेशेवर की नियुक्ति करने और ऋणदाताओं की समिति (COC) गठित करने की अपील की है। यह अनिल अंबानी समूह की कंपनी के लिये दिवाला प्रक्रिया शुरू करने की दिशा में पहला कदम है। इस कंपनी पर भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई वाले 31 बैंकों के गठजोड़ का 50 हज़ार करोड़ रुपए बकाया है। RComm को करीब दो साल पहले अपना परिचालन बंद करना पड़ा था। कंपनी ने रिलायंस जियो को स्पेक्ट्रम बेचकर दिवाला प्रक्रिया से बचने का प्रयास किया, लेकिन लंबी कानूनी प्रक्रिया तथा सरकार की ओर से मंजूरियों में देरी से इसमें बाधा आई। इसके अलावा कंपनी सार्वजनिक रूप से रियल एस्टेट और स्पेक्ट्रम संपत्तियों के मौद्रीकरण के ज़रिये बैंकों का पैसा लौटाने के सार्वजनिक तौर पर किये गए वादे को भी पूरा नहीं कर पाई।

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