डेली न्यूज़ (13 Apr, 2019)



वेदांता लिमिटेड की याचिका रद्द

हाल ही में वेदांता लिमिटेड ने तूतीकोरन (तमिलनाडु) में स्थित कंपनी स्टरलाइट कॉपर के रखरखाव कार्य की अनुमति प्राप्त करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

  • गौरतलब है कि स्टरलाइट कंपनी के खिलाफ क्षेत्र में प्रदूषण फैलाने को लेकर लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया था। इस पर कार्रवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा मई 2018 में इसे बंद करने का आदेश दिया गया था।

भारत के संविधान में अनुच्छेद 136

  • संविधान के अनुच्छेद 136 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत के राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किये गए या दिये गए किसी निर्णय, डिक्री, अवधारण, दंडादेश या आदेश के विरुद्ध अपील करने की विशेष आज्ञा दे सकता है।

♦ लेकिन अनुच्छेद 136 (1) के अनुसार सशस्त्र बलों से संबंधित या किसी भी कानून के तहत गठित किसी भी अदालत या न्यायाधिकरण द्वारा पारित या बनाए गए किसी भी निर्णय, निर्धारण, वाक्य या आदेश पर यह SLP लागू नहीं होगा।

  • SLP के किसी भी मामले में सर्वोच्च न्यायालय को अपने विवेक से ही निर्णय लेना होगा कि उस विशेष आज्ञा के अनुरोध को स्वीकार करना है या खारिज़ करना है।
  • जब SLP पर चर्चा की जाती है तो अंतर-राज्य जल विवाद (Inter-State Water Disputes- ISWD) ट्रिब्यूनल के निर्णयों के संबंध में इसकी स्थिति को समझना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • अंतर-राज्य जल विवाद अधिनियम 1956 और संविधान का अनुच्छेद 262 (2) सर्वोच्च न्यायालय को अंतर-राज्य जल विवाद (ISWD) ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ किसी भी अपील को सुनने या निर्णय लेने से सर्वोच्च न्यायालय को रोकता है।
    हालाँकि अनुच्छेद 136 में ‘भारत के अधिकार क्षेत्र में कोई न्यायालय या ट्रिब्यूनल’ का संदर्भ अंतर-राज्य जल विवाद (ISWD) ट्रिब्यूनल को इस अनुच्छेद के दायरे में लाता हुआ प्रतीत होता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी तर्क दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 136 (Special Leave Petition) के तहत बताए गए उपाय एक संवैधानिक अधिकार हैं। इसलिये अंतर-राज्य जल विवाद (ISWD) ट्रिब्यूनल को संविधान के अनुच्छेद 32, 131 और 136 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के दायरे में लाया जा सकता है।

स्रोत- बिज़नेस लाइन (द हिंदू)


केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO) ने दवा निर्माताओं से सामान्य रूप से उपयोग में आने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों की जानकारी आम जनता के लिये उपलब्ध कराने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत के फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम (Pharmacovigilance Programme of India- PvPI) के राष्ट्रीय समन्वय केंद्र ने CDSCO को कुछ सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं से उत्पन्न होने वाले प्रतिकूल प्रभावों की जानकारी दी थी।
  • इसी के परिप्रेक्ष्य में CDSCO ने दवा निर्माताओं को निर्देश दिया है कि इन दवाओं से होने वाले दुष्प्रभाव (Side Effect) की जानकारी दवाओं में संलग्न पत्रक में उपलब्ध कराई जाए।
  • CDSCO ने दवा निर्माताओं को लिखा है निम्नलिखित सात यौगिकों के संभावित दुष्प्रभावों की जानकारी आम आदमी के लिये उपलब्ध कराई जाए:

nusena

  • सभी ज़ोनल और सब- ज़ोनल अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे इन यौगिकों के निर्माताओं को निर्देश दें कि वे दवा के पैकेट में संलग्न पत्रक में इनके प्रतिकूल प्रभाव का उल्लेख करें।

CDSCO

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (NRA) है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • देश भर में इसके छह ज़ोनल कार्यालय, चार सब-ज़ोनल कार्यालय, तेरह पोर्ट ऑफिस और सात प्रयोगशालाएँ हैं।
  • विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
  • मिशन: दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता बढ़ाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा तय करना।
  • ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 एंड रूल्स 1945 (The Drugs & Cosmetics Act,1940 and rules 1945) के तहत CDSCO दवाओं के अनुमोदन, क्लिनिकल परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।

स्रोत: द हिंदू, www.cdsco.gov.in


उन्नत भारत अभियान

संदर्भ
गौरतलब है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय के साथ मिलकर ग्रामीण विकास प्रक्रियाओं युक्त सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को ‘उन्नत भारत अभियान’ (Unnat Bharat Abhiyan) के अंतर्गत लाने पर अपनी सहमति व्यक्त की है|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • ध्यातव्य है कि उक्त विषय के संबंध में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय के मध्य 12 जनवरी 2017 को एक समझौता हुआ था जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की विकासात्मक योजनाओं के निर्माण और वितरण में महत्त्वपूर्ण सुधार करना है|
  • यह परिकल्पित है कि इस अभियान के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधि स्थानीय निकायों और कुछ चुनिन्दा ग्रामीण समुदायों से प्रत्यक्ष रूप से परिचित हो सकेंगे तथा उन्हें ग्राम पंचायतों के विकास योजनाओं से संबंधित आवश्यक जानकारी भी प्राप्त होगी|
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा इस योजना का मसौदा तैयार किया गया है| इतना ही नहीं देश के कई भागों में इसके प्रथम चरण को लागू भी किया जा चुका है|
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संचालित सभी उच्च शिक्षण संस्थानों तथा नियामकीय निकायों द्वारा स्वीकृत सभी सस्थानों को पिछड़े ग्राम पंचायतों एवं गाँवों को अपने संज्ञान में लेने तथा उनके ज्ञान और विशेषज्ञता का प्रयोग ग्राम पंचायतों के अवसंरचनात्मक ढाँचे में सुधार करने का सुझाव दिया है|
  • ध्यातव्य है कि इन सभी संस्थाओं को चुनी हुई पंचायतों के साथ सहयोग बढ़ाने तथा ग्रामीण विकास और पंचायती राज के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया गया है|
  • उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम को अगले दो वर्षों में लागू किया जाएगा| वर्तमान में देश के सभी ज़िलों को कवर करने के लिये कोई भी समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है|

तीन प्रमुख मंत्रालयों की भूमिका 

  • इस अभियान के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय को यह देखने का कार्य सौंपा गया है कि चुने हुए उच्च शिक्षण संस्थान ज़िला मजिस्ट्रेटों के परामर्श से पंचायतों को अपनाए और अपने ज्ञान का उपयोग ग्रामीण समुदायों के द्वारा सामना की जाने वाली बुनियादी जरूरतों और आजीविका अवसर के समाधान हेतु उचित रूप में करें|
  • त्रिपक्षीय समझौते के अंतर्गत ग्रामीण विकास मंत्रालय का कार्य ग्राम पंचायत विकास योजना की तैयारी में ज़िला कलेक्टरों, डी.आर.डी.ए. और अन्य प्राधिकरणों की प्रभावी भागीदारी को बढ़ावा देना है|
  • पंचायती राज मंत्रालय का कार्य जी.पी.डी.पी. (Gram Panchayat Development Plan) प्रक्रिया में ज्ञानवर्द्धक संस्थाओं की भागीदारी से संबंधित सुझाव सभी राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों को जारी करना है ताकि वे चुनिन्दा समूहों की गुणवत्तापूर्ण जी.पी.डी.पी. तैयारी के हित में संगठनों के मध्य समन्वय स्थापित कर सके|
  • इसके अतिरिक्त कुछ निजी शिक्षण संस्थाओं और डीम्ड विश्वविद्यालयों को भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत शामिल किया गया हैं|

तटीय आर्द्रभूमि पर CMFRI-ISRO समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute- CMFRI) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization- ISRO) ने तटीय आर्द्रभूमि को संरक्षित करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है।

प्रमुख बिंदु

इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र और CMFRI ने एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया है।

इस MoU के अनुसार,

♦ दोनों संस्थान आर्द्रभूमि की पहचान, उनके सीमांकन का कार्य और तटीय क्षेत्रों में उपयुक्त आजीविका विकल्पों के माध्यम से आर्द्रभूमि की पुनर्स्थापना करेंगे।
♦ साथ ही इसमें तटीय क्षेत्रों में छोटे आर्द्र प्रदेशों का नक्शा बनाना, उन्हें सत्यापित और संरक्षित करना भी शामिल है।
♦ दोनों संस्थान एक मोबाइल एप और एक केंद्रीकृत वेब पोर्टल विकसित करेंगे, जिसका उपयोग आर्द्रभूमि की वास्तविक समय में निगरानी और हितधारकों तथा तटीय क्षेत्र के लोगों को सलाह देने के लिये किया जाएगा।
♦ इस एप में देश भर के 2.25 हेक्टेयर से छोटी आर्द्रभूमियों का एक व्यापक डेटाबेस होगा, इस तरह की छोटी आर्द्रभूमियाँ देश भर में पाँच लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर करती हैं। सिर्फ केरल में ही 2,592 छोटी आर्द्रभूमियाँ हैं।

  • यह कदम CMFRI की परियोजना ‘जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार’ (National Innovations in Climate Resilient Agriculture) द्वारा विकसित ‘मत्स्य पालन और आर्द्रभूमि के लिये राष्ट्रीय ढाँचा‘ (National Framework for Fisheries and Wetlands) के अंतर्गत उठाया गया है।
  • इस परियोजना का उद्देश्य समुद्री मत्स्य पालन और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना है।

CMFRI

  • केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, भारत सरकार द्वारा 3 फरवरी, 1947 को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत स्थापित किया गया था। यह 1967 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में शामिल हो गया।
  • यह दुनिया में एक प्रमुख उष्णकटिबंधीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान है।
  • CMFRI का मुख्यालय कोच्चि, केरल में है।

CMFRI

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स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन


भारत में शुरू होगी हाइपरलूप परिवहन तकनीक

चर्चा में क्यों?

दुनिया की पहली वर्जिन हाइपरलूप वन (VHO) वाणिज्यिक परियोजना 2025 तक मुंबई और पुणे के बीच शुरू हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्जिन हाइपरलूप वन (VHO) के अनुसार, यदि सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो दुनिया की पहली हाइपरलूप वन परियोजना भारत में होगी।
  • महाराष्ट्र सरकार ने भी इस परियोजना को आधिकारिक अवसंरचना घोषित कर दिया है।
  • वर्जिन हाइपरलूप वन (VHO) के अनुसार, हाइपरलूप वन परियोजना भारत जैसे देशों में ही व्यवहार्य है क्योंकि भारत में प्रतिवर्ष लगभग 8-19 करोड़ लोग दो शहरों के बीच यात्रा करते हैं।

हाइपरलूप परिवहन तकनीक

  • वर्तमान में कई कंपनियों द्वारा विकसित की जा रही हाइपरलूप ज़मीनी यातायात का एक नया रूप है।
  • हाइपरलूप परिवहन की एक ऐसी तकनीक है जिसमें बड़े-बड़े पाइपों के अंदर वैक्यूम या निर्वात जैसा माहौल तैयार कर वायु की अनुपस्थिति में पॉड जैसे वाहन में बैठकर 1000 से लेकर 1300 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से यात्रा की जा सकती है।
  • ट्यूब्स के अंदर निर्वात पैदा करने से वायु द्वारा उत्पन्न प्रतिरोध (air friction) समाप्त हो जाता है, जिससे पॉड को तेज़ गति से चलाया जा सकता है।
  • इन ट्यूब्स के अंदर ट्रेन या पॉड को लेविटेशन (उत्तोलन) तकनीक के सहारे आगे बढ़ाया जाता है।
  • लेविटेशन तकनीक के अंतर्गत ट्रेन को बड़े-बड़े इलेक्ट्रिक चुंबकों के ऊपर चलाया जाता है। इसमें चुंबकीय शक्ति के प्रभाव से ट्रेन थोड़ी ऊपर उठ जाती है और तेज़ गति से ट्रैक के ऊपर चलती है।
  • इस तकनीक में अग्रणी विभिन्न कंपनियों ने भारत में विभिन्न मार्गों पर हाइपरलूप के निर्माण का प्रस्ताव रखा है। जैसे- डिनक्लिक्स ग्राउंडवर्क्स कंपनी ने दिल्ली-मुंबई मार्ग पर, ऐकॉम बंगलूरू-चेन्नई मार्ग पर हाइपरलूप के निर्माण में रुचि दिखाई है।
  • यह तो निश्चित है कि इस तकनीक को परिवहन ढाँचे में समाविष्ट करके यात्रा की अवधि को बहुत कम किया जा सकता है। यह देश के व्यस्ततम रेलवे और वायुमार्गों पर दबाव को कम करेगा।
  • भारतीय परिप्रेक्ष्य में हाइपरलूप से सबंधित कुछ चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं- इस परियोजना के लिये वित्त की व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इसकी लागत अरबों डॉलर में होगी तथा भारतीय परिवहन व्यवस्था में इसे बिना सब्सिडी प्रदान किये चला पाना भी संभव नहीं होगा।
  • अभी इस तकनीक की टेस्टिंग पूरी तरह से संपन्न नहीं हो पाई है, अतः इसमें सुरक्षित परिवहन पर अब भी कुछ संदेह है।
  • भारत में यात्रियों की बड़ी संख्या मौजूद है। हाइपरलूप कुछ ही लोगों को सुविधा दे पाएगा। यात्रा के समय में कटौती और तीव्र परिवहन समय की मांग है।
  • भारत को अपनी क्षमता के अनुसार तथा उस तकनीक की भारतीय परिप्रेक्ष्य में उपयोगिता को ध्यान में रखकर ही आगे कदम बढ़ाना चाहिये।
  • फिलहाल भारत में नीति-निर्माताओं की प्राथमिकता हाई-स्पीड ट्रेनों और बुलेट ट्रेन पर आधारित रेलवे परिवहन के विकास की है।

स्रोत- बिज़नेस लाइन


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (13 April)

  • रूस ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने का ऐलान किया है। यह अवार्ड उन लोगों को प्रदान किया जाता है जो रूस के साथ संबंधों को मज़बूत बनाने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योगदान करते हैं। नरेंद्र मोदी को संयुक्त अरब अमीरात के सर्वोच्च नागरिक अवार्ड ‘जायद मेडल’ से सम्मानित किये जाने के कुछ ही समय बाद यह अवार्ड देने की घोषणा की गई है। भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी को तेज़ी के साथ आगे बढ़ाने के लिये उन्हें ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल से सम्मानित किया जाएगा। यह सम्मान पाने वाले नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे, जबकि इससे पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को यह सम्मान मिल चुका है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें चुनावी बॉण्ड के ज़रिये दिये जाने वाले राजनीतिक चंदे पर रोक की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे दानदाताओं की पहचान और उनके खातों में मौजूद धनराशि का ब्योरा 30 मई तक एक सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंप दें। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉण्ड की वैधता को चुनौती देने वाली उस याचिका की सुनावाई की जा रही थी, जिसमें कहा गया था कि इससे कालेधन को बढ़ावा मिल रहा है तथा यह दानकर्त्ता की पहचान गुप्त रखने की अनुमति देता है। इस पर केंद्र ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि मतदाताओं को दानकर्त्ताओं की पहचान जानने की ज़रूरत नहीं है। कोर्ट ने अगले आदेश तक चुनाव आयोग से भी कहा कि वह कानून में किये गए बदलावों का विस्तार से परीक्षण करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि संतुलन किसी दल के पक्ष में न झुका हो।
  • देश की नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में पहल करते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने केंद्रीय निगरानी कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी देश भर की 350 से अधिक नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये एक योजना तैयार करेगी। इस कमेटी में नीति आयोग के प्रतिनिधि, जल संसाधन, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा अभियान के महानिदेशक, शहरी विकास और पर्यावरण मंत्रालयों के सचिव तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन शामिल किये जाएंगे। यह कमेटी राज्यों की नदी पुनरुर्द्धार कमेटियों के साथ सामंजस्य स्थापित कर कार्ययोजना के क्रियान्वयन की निगरानी करेगी। NGT ने कमेटी से 31 जुलाई तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा है।
  • केंद्र सरकार ने 24 घंटे बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु नागरिकों के लिये जागरूक नाम का एप तैयार किया है, जिसके ज़रिये उपभोक्ता आपूर्ति में बाधा, कम वोल्टेज जैसी शिकायतें तुरंत दर्ज करा सकेंगे। नेशनल इनफॉरमेटिक्स सेंटर (NEC) द्वारा तैयार किया गया यह एप बिजली आपूर्ति और उपलब्धता को लेकर उपभोक्ताओं का फीडबैक लेने का काम करेगा और शिकायतों के निवारण पर अधिकारी रियल टाइम में नज़र रख सकेंगे। कई राज्यों में 24 घंटे बिजली की आपूर्ति प्रक्रिया पूरी तरह शुरू होने के बाद डेटा इंटिग्रिटी के तहत इस एप को शुरू किया गया है। इसके अलावा जागरूक एप के ज़रिये बिजली आपूर्ति का डेटा स्वचालित तरीके से इकट्ठा किया जाएगा। इसका पायलट प्रोजेक्ट जल्द ही बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड और असम के साथ कुछ केंद्रशासित प्रदेशों में शुरू किया जाएगा।
  • थाईलैंड में हाल ही में वाटर फेस्टिवल का आयोजन किया गया। प्रतिवर्ष सोंगक्रान (संक्रांति) के मौके पर थाईलैंड के अयुत्या में मनाए जाने वाले इस उत्सव में हाथियों के साथ पानी से जश्न मनाया जाता है। ऋतु परिवर्तन के प्रतीक रूप में मनाए जाने वाले इस उत्सव में देशभर में विभिन्न प्रकार के आयोजन किये जाते हैं तथा इस दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। माना जाता है कि ‘सोंगक्रान’ संस्कृत के शब्द ‘संक्रांति’ से बना है। यह उत्सव 5 दिन तक चलता है।
  • मानव मस्तिष्क की गुत्थी सुलझाने के क्रम में चीन के वैज्ञानिकों ने इंसानी दिमाग वाले बंदर तैयार किये हैं। इसके लिये मानव मस्तिष्क के MCPH1 जींस को 11 बंदरों में प्रयारोपित किया गया है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के साथ चीन के कनमिंग इंस्टीट्यूट ऑफ जूलॉजी तथा चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज़ के शोधकर्त्ताओं ने प्रयोग के दौरान पाया कि मानव मस्तिष्क के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला यह जीन जब बंदरों के दिमाग में प्रत्यारोपित किया गया तो उन्हें विकसित होने में अधिक समय लगा। इन बंदरों ने किसी बात पर प्रतिक्रिया देने में भी तेज़ी दिखाई तथा शॉर्ट टर्म मेमोरी में भी बेहतर प्रदर्शन किया।
  • अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने IDAct प्रणाली का विकास किया है जिसकी सहायता से हर छोटी-बड़ी चीज़ को इंटरनेट की दुनिया से जोड़ा जा सकेगा। एक अनुमान के अनुसार फिलहाल 1420 करोड़ स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इंटरनेट से जुड़े हुए है, लेकिन IDAct प्रणाली की सहायता से सैकड़ों करोड़ अन्य चीज़ों को इंटरनेट से जोड़ना संभव हो सकेगा। रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) को पढ़ने में सक्षम तथा बिना बैटरी के इस उपकरण (Tag) की कीमत बेहद कम है और इसे किसी भी वस्तु के साथ जोड़ा जा सकता है। IDAct प्रणाली में यह क्षमता है कि वह कमरे के भीतर रह रहे किसी व्यक्ति की मौज़ूदगी और उसकी हर गतिविधि पर नज़र रख सकेगा।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जामिया मिलिया इस्लामिया के इतिहास में पहली बार एक महिला कुलपति प्रो. नज़मा अख्तर की नियुक्ति की है। उन्हें जामिया ही नहीं, बल्कि दिल्ली स्थित किसी भी केंद्रीय विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रो. नज़मा के पास चार दशक के लंबे शैक्षणिक नेतृत्व का अनुभव है तथा वह NIPA में 130 देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक प्रशासक पाठ्यक्रम का 15 वर्षों तक सफल नेतृत्व करने के लिये जानी जाती हैं। उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) में कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के डिस्टेंस एजुकेटर कैपेसिटी बिल्डिंग पाठ्यक्रमों की अगुवाई भी की है। वह विकसित व विकाशशील देशों के कई साझा अनुसंधान कार्यों में भी शामिल रही हैं।