भूगोल
राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन परियोजना
प्रीलिम्स के लिये:
राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन योजना
मेन्स के लिये:
राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन योजना के तकनीकी पक्ष
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय भू-जल बोर्ड (Central Ground Water Board- CGWB) देश में भूमि जलस्तर के मापन के लिये ‘राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन योजना’ (National Aquifer Mapping and Management Programme- NAQUIM) लागू कर रहा है।
NAQUIM के बारे में
- जल एक राज्य सूची का विषय है अतः देश में जल प्रबंधन के क्षेत्र में भूजल संरक्षण और कृत्रिम जल पुनर्भरण संबंधी पहल करना मुख्य रूप से राज्यों की जिम्मेदारी है।
- NAQUIM देश के संपूर्ण भूजल स्तर मापन प्रणालियों के मानचित्रण और प्रबंधन के लिये जल शक्ति मंत्रालय की एक पहल है।
- इस योजना का उद्देश्य सूक्ष्म स्तर पर भूमि जल स्तर की पहचान करना, उपलब्ध भूजल संसाधनों की मात्रा निर्धारित करना तथा भागीदारी प्रबंधन के लिये संस्थागत व्यवस्था करना और भूमि जल स्तर की विशेषताओं के मापन के लिये उपयुक्त योजनाओं का प्रस्ताव करना है।
मानचित्रण की विशेषताएँ
- देश के विभिन्न भागों में लगभग 25 लाख वर्ग किमी के कुल मानचित्रण योग्य क्षेत्र में से अब तक लगभग 11.24 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र के लिये जलभृत प्रबंधन योजना तैयार की जा चुकी है।
- CGWB और राज्य भू-जल विभागों द्वारा संयुक्त रूप से किये गए भूजल संसाधन मूल्यांकन द्वारा देश में 1186 मूल्यांकित इकाइयों (स्थानों) को अति-शोषित स्थान के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें से लगभग 75% इकाइयों में जलभृत मानचित्रण की प्रक्रिया पूरी हो गई है।
स्रोत- पीआइबी
शासन व्यवस्था
आयुध (संशोधन) विधेयक 2019
मेन्स के लिये:
आयुध (संशोधन) विधेयक 2019 तथा इसकी उपयोगिता।
चर्चा में क्यों?
11 दिसंबर, 2019 को आयुध (संशोधन) विधेयक 2019 [Arms (Amendment) Bill, 2019] संसद में पारित हुआ। यह विधेयक आयुध अधिनियम (Arms Act) 1959 में संशोधन करता है।
विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ
बंदूक खरीदने के लिये लाइसेंस:
- आयुध अधिनियम (Arms Act) 1959 के तहत बंदूक खरीदने, उसे रखने या कैरी करने के लिये लाइसेंस लेना आवश्यक होता है। अधिनियम के अनुसार, कोई व्यक्ति केवल तीन बंदूकों का ही लाइसेंस ले सकता है (इसमें कुछ अपवाद हैं, जैसे बंदूकों के लाइसेंसशुदा डीलर्स के लिये)। लेकिन हाल ही में पारित विधेयक बंदूकों की संख्या को तीन से घटाकर एक करता है। इसमें उत्तराधिकार या विरासत के आधार पर मिलने वाला लाइसेंस भी शामिल है।
- विधेयक एक साल की समय-सीमा प्रदान करता है जिस दौरान अतिरिक्त बंदूकों को निकटवर्ती पुलिस स्टेशन के ऑफिसर-इन-चार्ज या निर्दिष्ट लाइसेंसशुदा बंदूक डीलर के पास जमा करना होगा। अगर बंदूक का मालिक सशस्त्र सेना का सदस्य है तो वह यूनिट के शस्त्रागार में बंदूकें जमा करा सकता है। एक वर्ष की अवधि के समाप्त होने के 90 दिनों के भीतर इन बंदूकों का लाइसेंस समाप्त हो जाएगा।
- विधेयक बंदूकों के लाइसेंस की वैधता की अवधि को तीन वर्ष से बढ़ाकर पाँच वर्ष करता है।
प्रतिबंध:
- अधिनियम लाइसेंस के बिना बंदूकों के विनिर्माण, बिक्री, इस्तेमाल, ट्रांसफर, परिवर्तन, जाँच या परीक्षण पर प्रतिबंध लगाता है। यह लाइसेंस के बिना बंदूकों की नली यानी बैरल को छोटा करने या नकली बंदूकों को असली बंदूकों में बदलने पर भी प्रतिबंध लगाता है। इसके अतिरिक्त विधेयक गैर-लाइसेंसशुदा बंदूकों को हासिल करने या खरीदने तथा लाइसेंस के बिना एक श्रेणी की बंदूकों को दूसरी श्रेणी में बदलने पर प्रतिबंध लगाता है।
- विधेयक राइफल क्लब्स या संगठनों को इस बात की अनुमति देता है कि वे टारगेट प्रैक्टिस के लिये किसी भी बंदूक का इस्तेमाल कर सकते हैं। अब तक उन्हें सिर्फ प्वाइंस 22 बोर की राइफल्स या एयर राइफल्स का इस्तेमाल करने की अनुमति थी।
सज़ा में बढ़ोतरी:
- विधेयक अनेक अपराधों से संबंधित सज़ा में संशोधन करता है। अधिनियम में निम्नलिखित के संबंध में सज़ा निर्दिष्ट है:
- गैर लाइसेंसशुदा हथियार की विनिर्माण, खरीद, बिक्री, ट्रांसफर, परिवर्तन सहित अन्य क्रियाकलाप।
- लाइसेंस के बिना बंदूकों की नली को छोटा करना या उनमें परिवर्तन।
- प्रतिबंधित बंदूकों का आयात या निर्यात। इन अपराधों के लिये तीन से सात वर्ष की सज़ा है, साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ता है। विधेयक इसके लिये सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान करता है जिसके साथ जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
- अधिनियम के अंतर्गत लाइसेंस के बिना प्रतिबंधित अस्त्र-शस्त्र (Ammunition) खरीदने, अपने पास रखने या कैरी करने पर पाँच से दस साल की कैद हो सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है। विधेयक इस सज़ा को जुर्माने सहित सात वर्ष से बढ़ाकर 14 वर्ष करता है। न्यायालय कारण बताकर इस सज़ा को सात साल से कम कर सकता है।
- अधिनियम के अंतर्गत लाइसेंस के बिना प्रतिबंधित बंदूकों से डील करने (जिसमें उनकी विनिर्माण, बिक्री और मरम्मत शामिल है) पर सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा है जिसके साथ जुर्माना भी भरना पड़ता है। विधेयक न्यूनतम सज़ा को सात से 10 वर्ष करता है।
- जिन मामलों में प्रतिबंधित हथियारों (आयुध और अस्त्र-शस्त्र) के इस्तेमाल से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उस स्थिति में अपराधी के लिये अधिनियम में मृत्यु दंड का प्रावधान था। विधेयक में इस सज़ा को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास किया गया है, जिसके साथ जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
नए अपराध:
- विधेयक नए अपराधों को जोड़ता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- पुलिस या सशस्त्र बलों से ज़बरन हथियार लेने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा, साथ ही जुर्माना
- समारोह या उत्सव में गोलीबारी करने, जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ती है, पर दो साल तक की सज़ा होगी, या एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा, या दोनों सज़ाएँ भुगतनी पड़ेंगी। समारोह में गोलीबारी का अर्थ है, सार्वजनिक सभाओं, धार्मिक स्थलों, शादियों या दूसरे कार्यक्रमों में गोलीबारी करने के लिये बंदूकों का इस्तेमाल करना।
- विधेयक संगठित आपराधिक सिंडिकेट्स के अपराधों और गैर-कानूनी तस्करी को भी स्पष्ट करता है। ‘संगठित अपराध’ का अर्थ है, सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा आर्थिक या दूसरे लाभ लेने के लिये गैर कानूनी तरीकों को अपनाना, जैसे हिंसा का प्रयोग करके या ज़बरदस्ती, गैर-कानूनी कार्य करना। संगठित आपराधिक सिंडिकेट का अर्थ है, संगठित अपराध करने वाले दो या उससे अधिक लोग।
- अधिनियम का उल्लंघन करते हुए सिंडिकेट के सदस्यों द्वारा बंदूक या गोला बारूद रखने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा हो सकती है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। यह सज़ा उन लोगों पर भी लागू होगी, जो कि सिंडिकेट की ओर से गैर-लाइसेंसशुदा बंदूक संबंधी डील करते हैं (इसमें विनिर्माण या बिक्री भी शामिल है), लाइसेंस के बिना बंदूकों में बदलाव करते हैं, या लाइसेंस के बिना बंदूकों का आयात या निर्यात करते हैं।
- विधेयक के अनुसार, अवैध तस्करी में भारत या उससे बाहर उन बंदूकों या गोला-बारूद का व्यापार, उन्हें हासिल करना तथा उनकी बिक्री करना शामिल है जो अधिनियम में चिह्नित नहीं हैं या अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। अवैध तस्करी के लिये 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान है जिसके साथ जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
बंदूकों की ट्रैकिंग: केंद्र सरकार आयुध के अवैध विनिर्माण और तस्करी का पता लगाने, उसकी जाँच तथा आकलन करने के लिये विनिर्माणकर्त्ता से लेकर खरीदार तक बंदूकों एवं अन्य अस्त्र-शस्त्रों को ट्रैक करने के नियम बना सकती है।
स्रोत: पी.आई.बी एवं पी.आर.एस
भारतीय राजव्यवस्था
इनर लाइन परमिट का विस्तार
प्रीलिम्स के लिये
इनर लाइन परमिट, इसमें शामिल क्षेत्र
मेन्स के लिये
इनर लाइन परमिट तथा नागरिकता संशोधन अधिनियम विवाद
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नगालैंड सरकार ने दीमापुर ज़िले को नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 (Citizenship Amendment Bill-CAB) से बाहर रखने के लिये इसे इनर लाइन परमिट प्रणाली के अधीन कर दिया।
मुख्य बिंदु:
- नगालैंड का दीमापुर ज़िला अभी तक इनर लाइन परमिट (Inner Line Permit-ILP) व्यवस्था से बाहर था क्योंकि यह राज्य का एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्यिक शहर है एवं यहाँ मिश्रित जनसंख्या निवास करती है।
- हाल ही में मणिपुर को भी ILP व्यवस्था के दायरे में शामिल किया गया है। इस प्रकार सिक्किम, असम एवं त्रिपुरा के गैर-आदिवासी क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों पर CAB के नियम लागू नहीं होंगे।
- दीमापुर को ILP व्यवस्था में शामिल करने के लिये बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 की धारा 2 (Section-2 of Bengal Eastern Frontier Regulation, 1873) के तहत नगालैंड के राज्यपाल ने आदेश जारी किया।
- इस व्यवस्था के विस्तारित होने के बाद दीमापुर में रहने वाले प्रत्येक गैर-मूल निवासी, जिन्होंने 21 नवंबर, 1979 से पहले ज़िले में प्रवेश किया है, के लिये अनिवार्य होगा कि वह आदेश जारी होने के 90 दिनों के अंदर ILP प्राप्त करे।
- इस व्यवस्था में अपवाद के तौर पर निम्नलिखित श्रेणी में शामिल होने वाले व्यक्तियों को ILP की आवश्यकता नहीं होगी:
- 21 नवंबर, 1979 के बाद दीमापुर में प्रवेश करने वाले गैर-मूल निवासी जिन्होंने इस संबंध में उप अधीक्षक (Deputy Commissioner) से प्रमाण-पत्र हासिल किया हो।
- वे गैर-मूल निवासी जो अपनी यात्रा के दौरान दीमापुर से होकर गुज़र रहे हों तथा उनके पास कोई वैध दस्तावेज़ हो।
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 तथा पूर्वोत्तर भारत:
- ILP व्यवस्था के तहत संरक्षित राज्य- नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर तथा मिज़ोरम को CAB के प्रावधानों से बाहर रखा गया है।
- संविधान की छठी अनुसूची में उल्लिखित राज्य- संपूर्ण मेघालय (शिलॉन्ग को छोड़कर), मिज़ोरम तथा असम एवं त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों को CAB से बाहर रखा गया है।
संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule of the Constitution):
इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिज़ोरम के आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन के लिये विशेष उपबंध किये गए हैं।
इनर लाइन परमिट (Inner Line Permit):
- एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ है जिसे संबंधित राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है। यह भारतीय नागरिकों को देश के अंदर किसी संरक्षित क्षेत्र में निश्चित अवधि के लिये यात्रा की अनुमति देता है।
- इसे बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के आधार पर लागू किया गया था।
- यह अधिनियम पूर्वोत्तर के पहाड़ी आदिवासियों से ब्रिटिश हितों की रक्षा करने के लिये बनाया गया था क्योंकि वे ब्रिटिश नागरिकों (British Subjects) के संरक्षित क्षेत्रों में प्रायः घुसपैठ किया करते थे।
- इसके तहत दो समुदायों के बीच क्षेत्रों के विभाजन के लिये इनर लाइन (Inner Line) नामक एक काल्पनिक रेखा का निर्माण किया गया ताकि दोनों पक्षों के लोग बिना परमिट के एक-दूसरे के क्षेत्रों में प्रवेश न कर सकें।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
गूगल पर मानहानि का केस
प्रीलिम्स के लिये:
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000
मेन्स के लिये:
ऑनलाइन मध्यस्थ इकाइयाँ तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने गूगल को सितंबर 2009 के एक मानहानि मामले में दोषी ठहराया है।
क्या था मामला?
- सितंबर 2009 में एस्बेस्ट्स-सीमेंट शीट बनाने वाली कंपनी विशाका इंडस्ट्रीज़ (Vishaka Industries) ने गूगल इंडिया (Google India) की एक सहयोगी कंपनी पर वर्ष 2008 में उसके उत्पादों के बारे में अपमानजनक लेख प्रकशित करने के आरोप में सर्वोच्च न्यायालय में गूगल इंडिया पर आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया।
- 27 अक्तूबर, 2009 को संसद ने ऑनलाइन मध्यस्थ इकाइयों को किसी तीसरे पक्ष द्वारा प्रकाशित आपराधिक विवादास्पद सामग्री से संरक्षण प्रदान करने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) की धारा 79 में संशोधन किया था।
- संसद ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79 में संशोधन करते हुए कहा कि ‘एक ऑनलाइन मध्यस्थ इकाई किसी तीसरे पक्ष द्वारा दी गई जानकारी, डेटा या संचार लिंक उपलब्ध कराए जाने के लिये उत्तरदायी नहीं होगी।
- इस संशोधन से इन ऑनलाइन मध्यस्थ इकाइयों को भारतीय दंड संहिता की धारा 499/500 (आपराधिक मानहानि) के तहत कानूनी कार्रवाई से लगभग पूर्ण संरक्षण प्राप्त हो गया। \
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, यह सही है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79 ऑनलाइन मध्यस्थ इकाइयों को किसी तीसरे पक्ष द्वारा लिखे गए अपमानजनक लेख या अन्य आपराधिक मानहानि के मामलों में संरक्षण प्रदान करती है, परंतु यह मामला सितंबर 2009 में पंजीकृत हुआ था।
- चूँकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79 में संसद द्वारा 27 अक्तूबर, 2009 को संशोधन किया गया था अतः यह मामला संशोधन तिथि से पहले का है, तथा यह संशोधन भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं होता है। अतः इस मामले में गूगल इंडिया को सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया है।
गूगल इंडिया के तर्क:
- हालाँकि गूगल ने सर्वोच्च न्यायालय में तर्क दिया कि उसे तब तक किसी तीसरे पक्ष द्वारा प्रकशित सामग्री की कोई जानकारी नहीं होती जब तक कि किसी उचित अदालत या सरकारी एजेंसी के आदेश के माध्यम से उसे अधिसूचित नहीं किया जाता है।
- गूगल इंडिया ने सर्वोच्च न्यायालय में तर्क दिया कि कोई भी ऑनलाइन मध्यस्थ इकाई किसी निजी व्यक्ति या संस्था द्वारा प्रकाशित सामग्री पर सेंसरशिप लागू नहीं कर सकती है इससे लोगों को संविधान द्वारा प्रदत्त भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मूल अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
स्रोत- द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
पीएसएलवी की 50वीं उड़ान: पीएसएलवी-C48
प्रीलिम्स के लिये
पीएसएलवी-C48, रीसैट-2BR1
मेन्स के लिये
अंतरिक्ष तकनीक में भारत की भूमिका
चर्चा में क्यों?
11 दिसंबर, 2019 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान-इसरो (Indian Space Research Organisation-ISRO) ने PSLV-C48 रॉकेट की मदद से रीसैट-2BR1 (RISAT-2BR1) नामक सैटेलाइट को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।
मुख्य बिंदु:
- यह PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV) रॉकेट द्वारा किया गया 50वाँ प्रक्षेपण था।
- PSLV रॉकेट की 50वें लॉन्च के मौके पर इसरो द्वारा “PSLV@50” नामक पुस्तक का विमोचन किया गया।
- RISAT-2BR1 के अलावा 9 अन्य वाणिज्यिक सैटेलाइटों को भी निर्धारित कक्षाओं में प्रक्षेपित किया गया जो कि इज़राइल, जापान, अमेरिका तथा इटली के थे।
- इन सैटेलाइटों को इसरो के वाणिज्यिक निकाय (Commercial Body) न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NewSpace India Limited-NSIL) के अधीन प्रबंधित किया गया था।
रीसैट-2BR1
- RISAT-2BR1 एक राडार इमेजिंग सैटेलाइट है तथा इसका वजन 628 किलोग्राम है। इसका प्रयोग कृषि, वानिकी, आपदा प्रबंधन तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये किया जाएगा।
- इस सैटेलाइट मिशन की अवधि पाँच वर्ष है।
PSLV
- PSLV भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है।
- PSLV में ईंधन चार चरणों में होता है तथा यह भारत का पहला प्रक्षेपण यान है जिसमें तरल रॉकेट ईंधन का प्रयोग किया जाता है।
- अभी तक के कुल प्रक्षेपणों में PSLV केवल 2 बार ही असफल रहा है। पहली बार सितंबर 1993 में अपनी पहली ही उड़ान PSLV D1 के दौरान और दूसरी बार अगस्त 2017 में PSLV C-39 की उड़ान के दौरान।
- प्रारंभिक उड़ानों में PSLV की क्षमता मात्र 850 किलोग्राम थी, जबकि वर्तमान में इसकी क्षमता 1.9 टन तक बढ़ गई है।
स्रोत: पी.आई.बी. एवं द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
भारतीय नदियाँ तथा भारी धातु संदूषण
प्रीलिम्स के लिये:
भारतीय मानक ब्यूरो
मेन्स के लिये:
भारतीय नदियों में भारी धातु संदूषण
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission- CWC) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत की प्रमुख नदियों में भारी धातुओं द्वारा संदूषण की स्थिति देखी गई है।
मुख्य बिंदु:
- भारत की कई प्रमुख नदियों में स्थित जल गुणवत्ता केंद्रों से एकत्रित किये गए दो-तिहाई जल के नमूनों में भारी धातुओं की उपस्थिति मिली है, जिनकी मात्रा भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से अधिक है।
- ये निष्कर्ष मई 2014 से अप्रैल 2018 तक केंद्रीय जल आयोग द्वारा किये गए एक नदी जल परीक्षण के तीसरे संस्करण से संबंधित रिपोर्ट का हिस्सा हैं।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु:
- इस परीक्षण में केवल एक-तिहाई जल गुणवत्ता केंद्रों से प्राप्त जल के नमूने ही सुरक्षित थे बाकी लगभग 65% (287) जल के नमूनों को भारी धातुओं से संदूषित पाया गया।
- 101 जल गुणवत्ता केंद्रों से प्राप्त जल के नमूनों में दो भारी धातुओं की उपस्थित पाई गई, वहीं 6 जल गुणवत्ता केंद्रों से प्राप्त जल के नमूनों में तीन भारी धातुओं की उपस्थिति पाई गई।
- 156 जल गुणवत्ता केंद्रों से प्राप्त जल के नमूनों में सुरक्षित सीमा से अधिक पाई गई धातुओं में सर्वाधिक मात्रा लौह धातु की थी।
- इस परीक्षण के दौरान लिये गए जल के नमूनों में लौह के अलावा लेड (Lead), निकिल (Nickel), क्रोमियम (Chromium), कैडमियम (Cadmium) तथा कॉपर (Copper) संदूषक का भी पता चला।
- गैर-मानसून अवधि में सीसा, कैडमियम, निकिल, क्रोमियम और तांबे के कारण अधिक संदूषण पाया गया, जबकि मानसून की अधिकांश अवधि में लोहा, सीसा, क्रोमियम और तांबा द्वारा अधिक संदूषण पाया गया।
- आर्सेनिक और जस्ता ऐसी दो विषाक्त धातुएँ थीं जिनकी सांद्रता अध्ययन की अवधि में हमेशा सुरक्षित सीमा के अंदर पाई गई।
- आर्सेनिक संदूषण एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा है यह भूजल को अधिक प्रभावित करता है परंतु केंद्रीय जल आयोग द्वारा किया गया परीक्षण सतही जल तक ही सीमित था।
- इस परीक्षण में सभी नदियों से समान रूप से नमूने नहीं लिये गए। कई नदियों से केवल एक ही स्थान से नमूने एकत्रित किये गए जबकि गंगा, यमुना और गोदावरी जैसी प्रमुख नदियों से कई स्थानों से नमूने एकत्रित किये गए।
- मौसम के आधार पर भी संदूषण के स्तर में काफी भिन्ना पाई गई। उदाहरण के लिये मानसून के दौरान गंगा में लोहे द्वारा संदूषण लगातार बना रहा लेकिन गैर-मानसून अवधि के दौरान इसमें काफी गिरावट आई।
- इस परीक्षण के लिये मानसून-पूर्व, मानसून तथा उत्तर-मानसून अवधि में नमूने एकत्रित किये गए।
संदूषित जल के प्रभाव:
- हालाँकि पीने योग्य जल में कुछ मात्रा में धातुओं की उपस्थिति अच्छे स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है परंतु जब जल में इन धातुओं की मात्रा सुरक्षित सीमा से ऊपर पहुँच जाती है तो यह विभिन्न शारीरिक विकारों का कारण बनती है।
- एक लंबी अवधि तक भारी धातुयुक्त जल पीने के परिणामस्वरूप अल्ज़ाइमर (Alzheimer), पार्किंसन (Parkinson) रोग से ग्रसित होने का खतरा बढ़ने के साथ-साथ शारीरिक, मांसपेशीय, और तंत्रिका संबंधी अपक्षयी प्रक्रियाओं में भी धीरे-धीरे वृद्धि हो सकती है।
जल के भारी धातु से संदूषित होने के कारण:
- नदी जल के भारी धातु से संदूषित होने का मुख्य कारण खनन, कबाड़ उद्योग तथा धातु सतह परिष्करण उद्योग हैं जो पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की ज़हरीली धातुओं को मुक्त करते हैं।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों में नदी के पानी और तलछटों में भी इन भारी धातुओं की सांद्रता तेज़ी से बढ़ी है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, नदी जल संदूषण का प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ कृषि तथा औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि है।
केंद्रीय जल आयोग
(Central Water Commission- CWC):
- केंद्रीय जल आयोग जल संसाधन के क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख तकनीकी संगठन है और वर्तमान में यह जल शक्ति मंत्रालय के अधीन कार्य कर रहा है।
- केंद्रीय जल आयोग (तत्कालीन केंद्रीय जलमार्ग, सिंचाई एवं नौसंचालन आयोग- Central Waterways, Irrigation and Navigation Commission-CWINC) की स्थापना वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य डॉ. बी.आर. अंबेडकर की सलाह पर वर्ष 1945 में हुई थी।
- डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने न सिर्फ इस निकाय की अवधारणा और आवश्यकता पर बल दिया बल्कि इसके उद्देश्यों, संगठनात्मक संरचना और इसके कार्यक्रमों को भी निर्धारित किया।
- CWINC की स्थापना का अंतिम प्रस्ताव सिंचाई विभाग के परामर्शदाता इंजीनियर राय बहादुर ए.एन. खोसला द्वारा तैयार किया गया था।
- डॉ. ए.एन. खोसला को CWINC के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।
स्रोत- द हिंदू
विविध
RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (12 दिसंबर, 2019)
यूनिसेफ स्थापना दिवस
प्रतिवर्ष 11 दिसंबर को यूनिसेफ (UNICEF) का स्थापना दिवस मनाया जाता है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसी दिन वर्ष 1946 में इसकी स्थापना की थी। इसकी स्थापना का प्रमुख उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध में तबाह हुए देशों में बच्चों और माताओं को आपातकालीन स्थिति में भोजन और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना था। वर्ष 1950 में यूनिसेफ के दायरे को विकासशील देशों में बच्चों और महिलाओं की दीर्घकालिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विस्तारित किया गया। वर्ष 1953 में यह संयुक्त राष्ट्र का एक स्थायी हिस्सा बन गया और इस संगठन के नाम में से ‘अंतर्राष्ट्रीय’ एवं ‘आपातकालीन’ शब्दों को हटा दिया गया। अब इसका नाम संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund) है, किंतु मूल संक्षिप्त नाम ‘यूनिसेफ’ को बरकरार रखा गया। पूर्व में इसे संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (United Nations International Children's Emergency Fund) कहा जाता था। यूनिसेफ का वित्तपोषण विभिन्न सरकारों, निजी समूहों और व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। यह अनुमान लगाया जाता है कि यूनिसेफ के राजस्व का 92 प्रतिशत सेवा कार्यक्रम के लिये वितरित किया जाता है। यूनिसेफ को वर्ष 1965 में नोबेल शांति पुरस्कार, वर्ष 1989 में इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार और वर्ष 2006 में प्रिंस ऑफ अस्तुरियस अवॉर्ड मिला था।
विक्टोरिया फाल्स
दक्षिण अफ्रीका में स्थित दुनिया के सबसे बड़े जल-प्रपातों में से एक विक्टोरिया फॉल्स तेज़ी से सूख रहा है. इसे स्थानीय भाषा मे मोसी-ओआ-तुन्या (Mosi-oa-Tunya) कहा जाता है। जाम्बिया और जिम्बॉब्वे के बीच सीमारेखा का काम करने वाले इस प्रपात का पानी 50 फीसदी तक सूख चुका है। जाम्बिया के राष्ट्रपति एडगर चगवा लुंगू ने ग्लोबल वार्मिंग को इसका ज़िम्मेदार बताया है। विक्टोरिया फॉल 355 फीट ऊँचा प्राकृतिक रूप से बना जल प्रपात है जिसे देखने हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। कभी इस प्रपात से पानी की चौड़ी धारा गिरती थी और उसके गिरने की आवाज 12 किलोमीटर दूर तक सुनी जाती थी, लेकिन पिछले 25 वर्षों से यह लगातार सूख रही है।
सुनील शेट्टी
अभिनेता सुनील शेट्टी को नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी नाडा (National Anti Doping Agency-NADA) का ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया है। NADA ने उम्मीद जताई है कि उन्हें ब्रांड एम्बेसडर बनाया जाना डोपिंग खत्म करने में मददगार साबित होगा। ध्यातव्य है कि देश में इस साल 150 से ज़्यादा एथलीट्स डोप टेस्ट में फेल हुए हैं। इनमें एक-तिहाई से ज़्यादा पावर गेम्स से संबंधित वेटलिफ्टर्स तथा बॉडी-बिल्डर्स हैं। चूँकि इस साल की शुरुआत में वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (WADA-वाडा) ने नाडा को सस्पेंड कर दिया था, इसलिये नाडा ने एथलीट्स के जो सैंपल इकट्ठे किये हैं, उनकी जाँच देश से बाहर होगी।
नाडा क्या है?: वर्ष 2009 में स्थापित राष्ट्रीय एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) देश में अपने सभी रूपों में खेलों में डोपिंग कंट्रोल प्रोग्राम को बढ़ावा देने, समन्वय और निगरानी करने के लिए ज़िम्मेदार राष्ट्रीय संगठन है। इसके प्रमुख दायित्वों में विश्व एंटी डोपिंग कोड के अनुरूप एंटी डोपिंग नियमों और नीतियों को अपनाना तथा कार्यान्वित करना, खेल संगठनों और अन्य डोपिंग विरोधी संगठनों के साथ सहयोग करना, राष्ट्रीय डोपिंग विरोधी संगठनों के बीच पारस्परिक परीक्षण को प्रोत्साहित करना तथा एंटी डोपिंग अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा देना शामिल है।
दक्षिण एशियाई खेल
नेपाल में हाल ही में संपन्न हुए 13वें दक्षिण एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने रिकॉर्ड 312 पदक जीते, जिसमें 174 स्वर्ण, 93 रजत और 45 कांस्य पदक रहे। इस बार हालाँकि स्वर्ण पदकों की संख्या पिछली बार से 15 कम है। भारत ने गुवाहाटी और शिलॉन्ग (2016) में हुए पिछले खेलों में 189 स्वर्ण सहित कुल 309 पदक जीते थे। मेज़बान नेपाल 206 पदकों के साथ दूसरे और श्रीलंका 251 पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा।
मेज़बान देश के रूप में नेपाल ने कुल तीन बार दक्षिण एशियाई खेलों का आयोजन किया है। गौरतलब है कि भारत वर्ष 1984 में शुरू हुए इन खेलों की हमेशा पदक तालिका में शीर्ष पर रहा है। अफगानिस्तान को छोड़कर अन्य सात दक्षिण एशियाई देशों ने इन खेलों में भाग लिया।
आयरन यूनियन
संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका की थलसेनाओं के बीच आयरन यूनियन-12 नाम का संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू हो गया है। संयुक्त अरब अमीरात व अमेरिका के बीच चल रहा यह संयुक्त अभ्यास राष्ट्रपति शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान की दृष्टि के अनुरूप है, जिसके तहत यूएई लगातार युद्ध और सामरिक कौशल बढ़ा रहा है। संयुक्त अरब अमीरात भ्रातृ और मैत्रीपूर्ण देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करता है, जिसका लक्ष्य सशस्त्र बलों का क्षेत्र के सामने आने वाले सभी खतरों और चुनौतियों के खिलाफ मज़बूती से खड़ा होना है।