जैव विविधता और पर्यावरण
लेपिडोप्टेरा प्रजाति और जलवायु परिवर्तन
प्रिलिम्स के लिये:लेपिडोप्टेरा प्रजाति, अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य, लेपिडोप्टेरा हॉटस्पॉट मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और हिमालय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग’ (Zoological Survey of India) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, हिमालय क्षेत्र में बढ़ते औसत तापमान के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाली लेपिडोप्टेरा (तितलियों और पतंगों) की कई दर्जन प्रजातियाँ पहले की तुलना में उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों में निवास करने लगी हैं।
प्रमुख बिंदु:
- हिमालय भारत में पाए जाने वाले 35% से अधिक लेपिडोप्टेरा प्रजातियों (तितलियों और पतंगों) का निवास स्थल है।
- ZSI द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, पतंगों (Moth) की ऐसी कम-से-कम 49 और तितली की 17 प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनके वर्तमान आवास और पूर्व में दर्ज किये गए आवास स्थल की ऊँचाई में औसतन 1,000 मीटर का अंतराल देखा गया है।
लेपिडोप्टेरा प्रजातियाँ (Lepidoptera Species):
- लेपिडोप्टेरा कीटों का एक क्रम (Order) है जिसमें तितलियाँ (Butterflies), पतंगे (Moths) और स्किप्पेर्स (Skippers) शामिल हैं।
- स्किप्पेर्स तितलियों और पतंगों के मध्यवर्ती एक कीट समूह है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
- अध्ययन के अनुसार, लेपिडोप्टेरा की सात प्रजातियाँ ऐसी पाई गईं जो वर्तमान समय में पिछले आवास स्थल की तुलना में 2,000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर निवास करने लगी हैं।
- इनमें पतंगों की प्रजातियाँ यथा- ट्रेकिआ एरीप्लीना (नोक्टुइडे), एक्टियास विंडब्रचलिनी (सैटर्निडे) और डिप्थीरोकोम फासिआटा (नॉक्टुइडे) आदि शामिल हैं।
- रेड अपोलो (Red Apollo), कॉमन मैप और टेललेस बुशब्लू (Tailless Bushblue) जैसी तितलियाँ जो पहले 2,500 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती थीं उनकी उपस्थिति उत्तराखंड के ‘अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य’ में 3,577 मीटर पर रिकॉर्ड की गई।
- अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में पतंगों के कुछ परिवारों के लिये उपयुक्त क्षेत्र में 91% की गिरावट हो सकती है।
- अध्ययन में लेपिडोप्टेरा प्रजातियों से समृद्ध 2 हॉटस्पॉट केंद्रों की पहचान की गई है:
- एक पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग पहाड़ियों में है, जहाँ 400 से अधिक प्रजातियों के रिकॉर्ड का दस्तावेज़ीकरण किया गया था।
- एक अन्य कुमाऊँ, उत्तराखंड में है, जहाँ 600 से अधिक प्रजातियों के रिकॉर्ड का दस्तावेजीकरण किया गया था।
- अध्ययन के अनुसार, हिमालय में पश्चिमी से पूर्वी हिमालय तक लेपिडोप्टेरा प्रजातियों की जैव विविधता में भी वृद्धि हुई है।
उच्च तुंगता में अधिवास स्थानांतरण के कारण:
- हिमालय क्षेत्र में पानी की कमी और हिम टोपियों एवं ग्लेशियर के पीछे हटने के कारण लेपिडोप्टेरा की प्रजातियाँ ऊँचाई पर विस्थापित हो रही हैं।
- औसत तापमान में वृद्धि से वनस्पति क्षेत्र की ऊँचाई में भी परिवर्तन देखने को मिला है। जो वनस्पतियाँ पहले कम ऊँचाई पर पाई जाती थीं वर्तमान समय में केवल उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में ही अधिक पाई जाती हैं।
- मानव आवास में वृद्धि के कारण भी ये प्रजातियाँ उच्च तुंगता की ओर अधिवासित हो रही हैं।
- अवैध शिकार और बिक्री के कारण भी कम ऊँचाई पर इन प्रजातियों की आबादी में कमी हुई है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
सूचना का अधिकार अधिनियम: महत्त्व और चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लियेकेंद्रीय सूचना आयोग, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 मेन्स के लियेसूचना के अधिकार का महत्त्व, अधिनियम के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2005 में लागू सूचना के अधिकार अधिनियम (Right to Information-RTI) ने अब 15 वर्ष पूरे कर लिये हैं, इस संबंध में जारी एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों में अभी तक लगभग 2.2 लाख मामले लंबित हैं।
प्रमुख बिंदु
सूचना के अधिकार की मौजूदा स्थिति
- सूचना के अधिकार अधिनियम की 15वीं वर्षगांठ पर ‘सतर्क नागरिक संगठन’ और ‘सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज़’ (Centre for Equity Studies) द्वारा जारी रिपोर्ट में पाया गया है कि महाराष्ट्र में सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के कार्यान्वयन की स्थिति काफी चिंताजनक है, और वहाँ तकरीबन 59,000 मामले अभी लंबित हैं, जो कि अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक हैं।
- महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश का स्थान है, जहाँ अभी कुल 47,923 मामले लंबित हैं। इसके अलावा केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में कुल 35,653 मामले लंबित हैं।
- रिपोर्ट बताती है कि यदि मामलों के निपटान की यही दर रहती है तो ओडिशा को सभी लंबित शिकायतों को निपटाने में 7 वर्ष से भी अधिक का समय लग सकता है।
- कारण: रिपोर्ट के अनुसार, इतनी अधिक मात्रा में लंबित मामलों का मुख्य कारण है कि देश में अधिकांश सूचना आयोग अपनी पूर्ण क्षमता के साथ कार्य नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनमें सूचना आयुक्तों की नियुक्ति ही नहीं की जा रही है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि ओडिशा केवल 4 सूचना आयुक्तों के साथ कार्य कर रहा है, जबकि राजस्थान में केवल 3 सूचना आयुक्त हैं। वहीं झारखंड और त्रिपुरा में कोई भी सूचना आयुक्त कार्य नहीं कर रहा है।
- वहीं केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) बीते कुछ वर्षों से बिना मुख्य सूचना आयुक्त के कार्य कर रहा है। वर्तमान में केंद्रीय सूचना आयुक्त (CIC) में केवल 5 सदस्य कार्य कर रहे हैं।
- जबकि नियम कहते हैं कि प्रत्येक आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 आयुक्त होने अनिवार्य हैं।
- विश्लेषण में पाया गया है कि सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत शायद ही कभी कानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को सज़ा दी गई हो।
- निहितार्थ
- रिपोर्ट में पाया गया है कि सभी सूचना आयोगों द्वारा निपटाए गए कुल मामलों में से केवल 2.2 प्रतिशत मामलो में ही सज़ा/दंड दिया गया है। इस प्रकार सज़ा संबंधी प्रावधानों का सही ढंग से पालन न करना यह नकारात्मक संदेश पहुँचता है कि अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर किसी भी प्रकार की सज़ा नहीं मिलती है।
- सूचना के अधिकार का मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना, सरकार के कामकाज में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार कम करना और सही अर्थों में जीवंत लोकतंत्र विकसित करना है, किंतु इस अधिनियम के सही ढंग से कार्यान्वित न होने के कारण इस उद्देश्य को प्राप्त करना काफी मुश्किल हो गया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम
- सूचना के अधिकार यानी RTI का अर्थ है कि कोई भी भारतीय नागरिक राज्य या केंद्र सरकार के कार्यालयों और विभागों से किसी भी जानकारी (जिसे सार्वजनिक सूचना माना जाता है) को प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता है।
- इसी अवधारणा के मद्देनज़र भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारतीय संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया था।
- विशेषज्ञ इस अधिनियम को भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखते हैं।
- अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
- इस अधिनियम में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी सार्वजानिक अथवा सरकारी प्राधिकरण से किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिये स्वतंत्र है, साथ ही इस अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना को आवेदन की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
- हालाँकि अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत सूचना से संबंधित नहीं होनी चाहिये।
- इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
- इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
- इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा।
क्यों महत्त्वपूर्ण है सूचना का अधिकार?
- असल में सूचना उस मुद्रा की तरह होती है, जो कि प्रत्येक नागरिक के लिये समाज के शासन में हिस्सा लेने हेतु आवश्यक होती है।
- कार्यपालिका के प्रत्येक स्तर नियंत्रण, संरक्षण और शक्ति को बनाए रखने के उद्देश्य से सूचना को काफी सीमित कर दिया जाता है।
- इसलिये प्रायः यह माना जाता है कि कार्यपालिका में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये नियमों और प्रक्रिया की स्पष्टता, पूर्ण पारदर्शिता और आम जनता के बीच प्रासंगिक जानकारी का प्रसार काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
- इसलिये अंततः भ्रष्टाचार को समाप्त करने की सबसे प्रभावी प्रणाली वही होगी, जिसमें नागरिकों को राज्य से प्रासंगिक सूचना प्राप्त करने का अधिकार होगा।
- हम कह सकते हैं कि सरकार की प्रणाली और प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करना एक आवश्यक कदम है। जब सरकार की प्रणाली और प्रक्रिया पारदर्शी होती है तो वहाँ भ्रष्टाचार कीसंभावना काफी कम हो जाती है।
पृष्ठभूमि
- सूचना के अधिकार से संबंधित पहला कानून वर्ष 1766 में स्वीडन द्वारा लागू किया गया था, इसके बाद वर्ष 1966 में अमेरिका ने भी इस संबंध में एक कानून अपना लिया, वर्ष 1990 आते-आते सूचना के अधिकार से संबंधी कानून लागू करने वाले देशों की संख्या बढ़कर 13 हो गई थी।
- भारत में इस संबंध में कानून बनाने के लिये आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1987 में तब हुई जब राजस्थान के कुछ मज़दूरों को उनके असंतोषजनक प्रदर्शन का हवाला देते हुए वेतन देने से इनकार कर दिया।
- भ्रष्टाचार की आशंका को देखते हुए मज़दूरों के हक में लड़ रहे मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने स्थानीय अधिकारियों से संबंधित दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की मांग की।
- सार्वजानिक विरोध प्रदर्शन के बाद जब प्रासंगिक दस्तावेज़ उपलब्ध कराए गए तो सरकारी अधिकारियों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार भी सामने आ गया।
- समय के साथ यह आंदोलन और ज़ोर पकड़ता गया और जल्द ही सूचना के अधिकार (RTI) की मांग करते हुए इस आंदोलन ने देशव्यापी रूप ले लिया।
- आंदोलन को बड़ा होते देख सरकार ने सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 पारित कर दिया, जिसने आगे चलकर वर्ष 2005 में सूचना के अधिकार अधिनियम का रूप लिया।
- वर्ष 2005 में पुणे पुलिस स्टेशन को RTI के तहत पहली याचिका प्राप्त हुई थी।
सूचना के अधिकार अधिनियम की चुनौतियाँ
- यह अधिनियम आम लोगों को प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है, किंतु निरक्षरता और जागरूकता की कमी के कारण भारत में अधिकांश लोग इस अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।
- कई लोग मानते हैं कि इस अधिनियम में प्रावधानों का उल्लंघन करने की स्थिति में जो जुर्माना/दंड दिया गया है वह इतना कठोर नहीं है कि लोगों को इस कार्य से रोक सके।
- इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त जन जागरूकता का अभाव, सूचनाओं को संग्रहीत करने और प्रचार-प्रसार करने हेतु उचित प्रणाली का अभाव, सार्वजनिक सूचना अधिकारियों (PIOs) की अक्षमता और नौकरशाही मानसिकता आदि को सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के कार्यान्वयन में बड़ी बाधा माना जाता है।
आगे की राह
- सरकार के कार्यालयों और विभागों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और भ्रष्टाचार से निपटने के लिये सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 एक मज़बूत उपाय साबित हुआ है।
- यह कानून स्वतंत्र भारत मे पारित सबसे सशक्त और प्रगतिशील कानूनों में से एक है।
- भ्रष्टाचार से मुकाबले के लिये एक कारगर उपाय होने के बावजूद यह कानून कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना कर रहा है, और इस कानून की प्रभावशीलता बनाए रखने के लिये इन समस्याओं और चुनौतियों को जल्द-से-जल्द संबोधित करना आवश्यक है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस रिपोर्ट, विश्व बैंक मेन्स के लिये:COVID-19 और सामाजिक असमानता, शिक्षा क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक (World Bank) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण लंबे समय तक स्कूलों के बंद रहने से भारत में भविष्य की आय में भारी गिरावट देखी जा सकती है।
प्रमुख बिंदु:
- विश्व बैंक द्वारा जारी ‘बीटन ऑर ब्रोकन? इंफोर्मैलिटी एंड COVID-19’ (Beaten or Broken? Informality and Covid-19) के नाम से जारी दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस (South Asia Economic Focus) रिपोर्ट में COVID-19 महामारी के दौरान स्कूलों के बंद होने से अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों की समीक्षा की गई है।
- विश्व बैंक द्वारा इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि COVID-19 महामारी के कारण दक्षिण एशिया में लगभग 55 लाख बच्चे स्कूलों से बाहर हो सकते हैं।
- विश्व बैंक के अनुसार, इस महामारी के दौरान स्कूलों में पंजीकृत बच्चों के लिये सीखने के अवसरों में भारी नुकसान के साथ स्कूली तंत्र से बाहर हुए बच्चों के कारण दक्षिण एशिया को भविष्य की आय और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 622 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्षति हो सकती है।
- गौरतलब है कि यूनेस्को (UNESCO) द्वारा जारी ‘वैश्विक शिक्षा निगरानी-2020’ (Global Education Monitoring- GEM) रिपोर्ट में COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक शिक्षा अंतराल में वृद्धि की बात कही गई थी।
कारण:
- COVID-19 महामारी के कारण स्कूलों का संचालन पूरी तरह से रुक गया है और स्कूलों के बंद रहने के दौरान बच्चों को पढ़ाने का प्रयास चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है।
- COVID-19 महामारी के कारण लगभग 391 मिलियन छात्रों की प्राथमिक और माध्यमिक स्कूली शिक्षा बाधित हुई है, इस नई चुनौती ने शिक्षा संकट के समाधान हेतु किये जा रहे प्रयासों को अधिक जटिल बना दिया है।
- विश्व बैंक के अनुसार, छात्रों के सीखने के स्तर में गिरावट के कारण इसका प्रभाव आगे चलकर उत्पादकता में गिरावट के रूप में देखने को मिलेगा।
- दक्षिण एशियाई देशों की सरकारों द्वारा प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर प्रतिवर्ष मात्र 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किया जाता है, जिसके कारण आर्थिक उत्पादन में होने वाली क्षति काफी ज़्यादा होगी।
अन्य चुनौतियाँ:
- इस महामारी के कारण बच्चे लगभग पिछले 5 माह से स्कूल नहीं जा पाए हैं। इतने लंबे समय तक स्कूल से बाहर रहने का अर्थ है कि बच्चे न केवल नई चीज़ों को सीखना बंद कर देते हैं, बल्कि वे पहले से सीखी गई चीज़ों में से भी बहुत कुछ भूल जाते हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के अनेक प्रयासों के बावजूद बच्चों को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से जोड़े रख पाना काफी चुनौतीपूर्ण रहा है।
- रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा और प्रशिक्षण में अवरोध के अतिरिक्त COVID-19 महामारी के कारण श्रम उत्पादकता पर पिछली किसी भी प्राकृतिक आपदा से अधिक प्रभाव देखने को मिलेगा।
अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव:
- वैश्विक अर्थव्यवस्था के बढ़ते एकीकरण के कारण COVID-19 संक्रमण के प्रसार में वृद्धि हुई है।
- संक्रमण के प्रसार को रोकने हेतु सोशल डिस्टेंसिंग जैसे प्रयासों के कारण आतिथ्य क्षेत्र (होटल आदि) के संचालन हेतु बड़े बदलावों की आवश्यकता होगी जिसमें काफी समय लग सकता है।
- विनिर्माण, बैंकिंग और व्यवसाय जैसे क्षेत्र जहाँ इस महामारी का प्रत्यक्ष प्रभाव कम रहा है, वहाँ भी COVID-19 महामारी के प्रसार को कम करने के लिये लागू प्रतिबंधों के बीच उपलब्ध क्षमता के न्यून उपयोग के कारण उत्पादन में भारी गिरावट आई है।
- वर्तमान में लोगों की आय में भारी गिरावट के बीच प्रशिक्षण, स्कूली शिक्षा और अन्य शिक्षा में आए व्यवधान का प्रभाव लॉकडाउन के प्रतिबंधों के हटने के बाद भी लंबी अवधि में मानव पूंजी एवं श्रम उत्पादकता में कमी के रूप में देखने को मिलेगा
- इस रिपोर्ट में COVID-19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिये लागू लॉकडाउन के कारण व्यवसायों को हुई क्षति, उपभोग के तरीकों और गरीब तथा कमज़ोर परिवारों (विशेषकर शहरी प्रवासियों एवं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों से संबंधित) के लिये उत्पन्न सामाजिक कठिनाइयों के अतिरिक्त इसके दूरगामी परिणामों की चेतावनी दी गई है।
भारत और दक्षिण एशिया पर प्रभाव:
- रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशियाई देशों में स्कूलों की बंदी का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव भारत पर होगा, हालाँकि अन्य देशों की जीडीपी पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलेगा।
- COVID-19 महामारी के दौरान स्कूलों के बंद रहने से भारत में भविष्य की आय में 420-600 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट देखने को मिल सकती है।
- दक्षिण एशिया में एक औसत बच्चे के श्रम बाज़ार में प्रवेश करने के बाद उसे अपनी जीवन भर की कमाई में 4,400 अमेरिकी डॉलर की क्षति हो सकती है।
आगे की राह:
- COVID-19 महामारी की वैक्सीन का सफल परीक्षण और बड़े पैमाने पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित होने तक इस महामारी के प्रसार में कमी हेतु अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के नए विकल्पों को अपनाना होगा।
- COVID-19 महामारी के दौरान ई-लर्निंग के माध्यम से शिक्षा को जारी रखने का प्रयास किया गया परंतु इस दौरान अधिकांश विकासशील देशों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगों के लिये ई-लर्निंग की पहुँच एक बड़ी चुनौती बनी रही जो समाज में फैली व्यापक असमानता को रेखंकित करता है।
- COVID-19 की चुनौती से सीख लेते हुए शिक्षण में तकनीकी के उपयोग को बढ़ावा देने के साथ ही सभी तक शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान देना होगा। केंद्र सरकार द्वारा जारी नई शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित बदलाव इस दिशा में एक सकारात्मक पहल है।
- सरकार को प्राथमिक शिक्षा के साथ उच्च शिक्षा को सभी के लिये सुलभ और वहनीय बनाने पर विशेष ध्यान देना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
भारतमाला परियोजना
प्रिलिम्स के लियेभारतमाला परियोजना मेन्स के लियेभारत में राजमार्गों की स्थिति और भारतमाला परियोजना का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (The Ministry of Road Transport and Highways) ने राष्ट्रीय राजमार्गों के नेटवर्क की विस्तृत समीक्षा की है और भारतमाला परियोजना की चरण I योजना के अंतर्गत लगभग 34,800 किमी.राजमार्ग (10,000 किमी. राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के अवशिष्ट भाग सहित) के विकास के लिये अनुमानित परिव्यय 5,35,000 करोड़ रुपए के समग्र निवेश की स्वीकृति प्रदान की है।
प्रमुख बिंदु:
- अगस्त 2020 तक 12,413 किमी. की लंबाई वाली कुल 322 परियोजनाओं को भारतमाला योजना के तहत प्रारंभ किया गया है। इसके अलावा परियोजना के तहत अब तक 2921 किमी. राजमार्गों का निर्माण किया जा चुका है।
भारतमाला परियोजना (Bharatmala Pariyojana):
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017-18 से भारतमाला कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की महत्त्वाकांक्षी ‘भारतमाला परियोजना’ के प्रथम चरण के तहत 5,35,000 करोड़ रुपए की लागत से 34,800 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का49-* निर्माण किया जाएगा।
- इसके अंतर्गत आर्थिक कॉरिडोर, फीडर कॉरिडोर और इंटर कॉरिडोर, राष्ट्रीय कॉरिडोर, तटवर्ती सड़कें, बंदरगाह संपर्क सड़कें आदि का निर्माण किया जाएगा।
- इस कार्यक्रम की अवधि वर्ष 2017-18 से वर्ष 2021-22 तक है। चरण-1 में कुल 34,800 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया जाना है, जिसमें शामिल हैं:
- 5,000 किलोमीटर राष्ट्रीय कॉरिडोर।
- 9,000 किलोमीटर आर्थिक कॉरिडोर।
- 6,000 किलोमीटर फीडर कॉरिडोर और इंटर कॉरिडोर।
- 2,000 किलोमीटर सीमावर्ती सड़कें।
- 2,000 किलोमीटर तटवर्ती सड़कें एवं बंदरगाह संपर्क सड़कें।
- 800 किलोमीटर हरित क्षेत्र एक्सप्रेस वे।
- 10,000 किलोमीटर अधूरे सड़क निर्माण कार्य।
- इस परियोजना के तहत निर्माण कार्य करने वाली मुख्य एजेंसियाँ इस प्रकार हैं:
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग और औद्योगिक विकास निगम तथा लोक निर्माण विभाग।
लाभ:
- पूरे देश में सड़क संपर्क में सुधार।
- आर्थिक गलियारों से कार्गो की त्वरित आवाजाही में वृद्धि।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि।
- निवेश में तेज़ी एवं रोज़गार सृजन में वृद्धि होने की संभावना।
स्रोत- पीआईबी
सामाजिक न्याय
अर्थव्यवस्था का बदलता स्वरूप और सामाजिक सुरक्षा
प्रिलिम्स के लिये:BRICS मेन्स के लिये:डिजिटल अर्थव्यवस्था और श्रम सुधार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘ब्रिक्स’ (BRICS) देशों द्वारा मंत्रिस्तरीय 'आभासी बैठक' का आयोजन किया गया, जिसमें ‘श्रम और रोज़गार राज्य मंत्री’ द्वारा भागीदारी की गई।
प्रमुख बिंदु:
- ब्रिक्स देशों के 'श्रम और रोज़गार मंत्रियों' के मध्य 'आभासी बैठक' का आयोजन रूस की अध्यक्षता में किया गया।
- आभासी बैठक में ब्रिक्स देशों में एक 'सुरक्षित कार्य संस्कृति' (Safe Work Culture) बनाने के दृष्टिकोण सहित श्रम से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई।
- आभासी बैठक में भारत सरकार द्वारा श्रम सुधारों की दिशा में उठाए गए कदमों की भी चर्चा की गई।
श्रम से संबंधित उभरते मुद्दे:
- डिजिटल अर्थव्यवस्था और श्रम:
- 'डिजिटल अर्थव्यवस्था', अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। 'डिजिटल अर्थव्यवस्था' से तात्पर्य उन सभी आर्थिक प्रक्रियाओं, लेन-देन, इंटरैक्शन और गतिविधियों से है जो डिजिटल प्रौद्योगिकियों पर आधारित हैं।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था के नवीन क्षेत्रों यथा- टेलीमेडिसिन, लॉजिस्टिक अवसंरचना, ऑनलाइन भुगतान, दूरस्थ शिक्षा और मनोरंजन जैसे प्रौद्योगिकी नवाचार के क्षेत्र में भारत वैश्विक तथा स्थानीय व्यवसायों के लिये एक आकर्षक अवसर के साथ-साथ रोज़गार के नवीन अवसर पैदा करता है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स जैसे डिजिटलीकरण और तकनीकी प्रगति बाज़ार को सीधे प्रभावित करते हैं। आभासी बैठक में 'एक डिजिटल अर्थव्यवस्था में कार्य के भविष्य' विषय पर चर्चा की गई।
- ‘अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण’ श्रम कानूनों के अनुपालन तंत्र और कार्यान्वयन को सरल बनाने में भी मदद करता है। श्रम बाज़ार प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये एक ऑनलाइन निरीक्षण प्रणाली तथा औद्योगिक विवादों के निपटारे की शुरुआत की गई है।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था, कार्य की दशाओं को पूरी तरह से बदल रही है। ब्रिक्स नेटवर्क रिसर्च इंस्टीट्यूट्स द्वारा इस दिशा में निरंतर शोध कार्य किया जाएगा, जिससे भविष्य में कार्य के पहलुओं की बेहतर समझ और नीति निर्माण में मदद मिलेगी।
- श्रम का बदलता स्वरूप और सामाजिक सुरक्षा :
- 'सुरक्षित कार्य वातावरण और स्वस्थ कार्यबल' का एक महत्त्वपूर्ण घटक 'आकस्मिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज' की उपलब्धता है जो आकस्मिकताओं के समय में वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इस दिशा में भारत सरकार द्वारा 'सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा' के लिये एक रूपरेखा प्रदान की गई है।
- असंगठित श्रमिकों, प्रवासी श्रमिकों, स्वरोज़गार वालों को सामाजिक सुरक्षा कवरेज प्रदान करने के साथ ही इस दिशा में रोज़गार के नवीन स्वरूपों यथा-गिग़ और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को भी शामिल किया गया है।
- गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम और श्रम सुधार:
- श्रम सुधार और गरीबी उन्मूलन के मुद्दे परस्पर संबंधित हैं। अत: गरीबी उन्मूलन के लिये बहुआयामी रणनीति को अपनाए जाने की आवश्यकता है।
- भारत सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत बुनियादी सेवाएँ उपलब्ध कराने, वित्तीय समावेशन उपायों को अपनाने, सबसे कमज़ोर नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान करके गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच प्रदान करने, खाना बनाने के लिये स्वच्छ ईंधन प्रदान करने जैसे बहुआयामी रणनीति गरीबी उन्मूलन उपायों को अपनाया गया है।
श्रम सुधारों की दिशा में प्रमुख पहल:
- भारत सरकार भविष्य में कार्य को अधिक समावेशी बनाने के लिये श्रम बाज़ार में समान पहुँच, समान काम के लिये समान वेतन, समाज के सभी वर्गों की समान भागीदारी और सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के दृष्टिकोण पर आधारित है।
- कार्यस्थल पर व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रदान करने की दिशा में एक प्रगतिशील और प्रभावी ढाँचा प्रदान करने के लिये हाल ही में संसद द्वारा ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी परिस्थितियों पर संहिता' (Code on Occupational Safety, Health and Working Conditions)- 2020 को पारित किया गया है।
- ज़रूरतमंद लोगों को रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में कई योजनाएँ यथा- 'राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना', 'राष्ट्रीय आजीविका मिशन', स्वरोज़गार को बढ़ावा देने के लिये संपार्श्विक मुक्त ऋण सुविधा का विस्तार आदि को प्रारंभ किया गया है।
- COVID-19 महामारी दुनिया में व्यापक पैमाने पर नवीन चुनौतियाँ लेकर आई है, अत: महामारी के प्रतिकूल प्रभावों से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के तहत कई राहत उपाय किये गए।
- भारत सरकार ‘सतत् विकास लक्ष्य’- 8 ‘सभी के लिये निरंतर समावेशी और सतत् आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोज़गार तथा बेहतर कार्य को बढ़ावा देना।’ , को प्राप्त करने के अनुरूप अपनी नीतियों का निर्माण कर रही है।
आगे की राह:
- 'फ्यूचर ऑफ वर्क' के लिये एकजुटता और जोखिम साझाकरण के सिद्धांतों के आधार पर एक मज़बूत और उत्तरदायी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की आवश्यकता होती है, जो लोगों के जीवन चक्र की ज़रूरतों का समर्थन करती है।
- जनसांख्यिकी में बदलाव के कारण दुनिया के कुछ हिस्सों में युवा आबादी में वृद्धि हो रही है वहीं दूसरी ओर अनेक देशों में वृद्धजनों की आबादी बढ़ने से यह श्रम बाज़ारों और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर दबाव डाल सकती है, अत: इसके अनुरूप श्रम नीतियों को अपनाए जाने की आवश्यकता है।
स्रोत: पीआइबी
शासन व्यवस्था
COVID-19 संक्रमण मुक्त लोगों की संख्या में वृद्धि
प्रिलिम्स के लियेकोरोना वायरस, विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोविशील्ड मेन्स के लियेमहामारी से निपटने के लिये भारत की तैयारी |
चर्चा में क्यों?
कोरोना वायरस महामारी से मुकाबले में भारत ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की है और देश में संक्रमण से मुक्त होने वाले लोगों की संख्या 60 लाख के पार पहुँच गई है।
प्रमुख बिंदु
- देश भर में विस्तृत स्वास्थ्य सुविधाओं, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा केंद्र के मानक उपचार प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के साथ-साथ चिकित्सकों, सहायक-चिकित्सा कर्मियों और ‘फ्रंटलाइन’ पर कार्य कर रहे अग्रणी स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के संपूर्ण समर्पण तथा उनकी प्रतिबद्धता के कारण प्रतिदिन होने वाली मौतों की संख्या में लगातार कमी आ रही है और संक्रमण से मुक्त लोगों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।
- ध्यातव्य है कि बीते आठ दिनों में कोरोना वायरस संक्रमण के कारण होने वाली मौतों की संख्या 1000 से भी कम रही है। वहीं देश में बीते 24 घंटे में मौत के मात्र 918 मामले दर्ज किये गए हैं।
भारत में महामारी की मौजूदा स्थिति
- सरकार के आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, देश में कोरोना वायरस से संक्रमित कुल लोगों की संख्या तकरीबन 8,67,496 है।
- वर्तमान में देश में राष्ट्रीय संक्रमण मुक्ति दर बढ़कर 86.17 प्रतिशत हो गई है।
- संक्रमण मुक्त लोगों की संख्या बढ़ने के साथ ही संक्रमण से मुक्त होने वाले लोगों के मामले में भारत विश्व में अग्रणी स्थान पर पहुँच गया है।
- देश भर में तकरीबन 10 राज्यों– महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में 80 प्रतिशत लोग संक्रमण से मुक्त हुए हैं।
महामारी के विरुद्ध भारत की तैयारी
- कोरोना वायरस के लिये एक निश्चित उपचार की अनुपस्थिति के चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा रोकथाम और निवारक उपायों की वकालत की जा रही है।
- इन्हीं उपायों के हिस्से के तौर पर भारत में मार्च माह में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी और इस रोकथाम और निवारक उपाय ने शुरुआती दौर में भारत में महामारी के प्रकोप को रोकने में काफी सहायता की थी।
- देशव्यापी लॉकडाउन की अवधि के दौरान सरकार ने व्यापक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार किया और वेंटिलेटर, मास्क तथा व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर दिया।
- वर्तमान में हम व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) किट आयात करने के चरण से निर्यात करने के चरण में पहुँच चुके हैं। इसी प्रकार संक्रमित लोगों की पहचान करने के लिये अब भारत में प्रतिदिन 11 लाख से अधिक परीक्षण किये जा रहे है।
- कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये परीक्षण को एक महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि एक बार संक्रमित व्यक्ति की पहचान के बाद उसे आसानी से आइसोलेट किया जा सकता है।
- वर्तमान में भारत में कुल तीन COVID -19 टीकों का नैदानिक परीक्षण किया जा रहा है, जो कि अलग-अलग चरणों में हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कोविशील्ड (Covishield) वैक्सीन भारत में अपने तीसरे एवं अंतिम चरण में है और भारत में इसका निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा किया जा रहा है।
आगे की राह
- भारत में कोरोना वायरस संक्रमण से मुक्त होने वाले लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है, जो कि स्पष्ट तौर पर एक अच्छा संकेत है।
- हालाँकि संक्रमण से मुक्त होने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। इसका मुख्य कारण अभी भी लोगों के बीच वायरस की गंभीरता को लेकर जागरूकता का अभाव है।
- कई स्थानों पर सामान्य रोकथाम और निवारक नियमों जैसे- सोशल डिस्टेंसिंग और सार्वजनिक स्थानों पर मास्क का उपयोग आदि का पालन नहीं किया जा रहा है।
- आवश्यक है कि लोगों के बीच सामान्य रोकथाम और निवारक उपायों के संबंध में जागरूकता पैदा की जाए और उन्हें नियमों का पालन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
- कई जानकार महामारी के संबंध में आवश्यक डेटा की कमी को भी एक बड़ी समस्या के रूप में देख रहे हैं। उदाहरण के लिये मई माह के अंत तक भारत में आधिकारिक तौर पर कुल 1.9 लाख मामले दर्ज किये गए थे, किंतु बाद में किये गए सीरो सर्वेक्षण में सामने आया था कि इस अवधि के दौरान वायरस से संक्रमित लोगों की कुल संख्या अपेक्षाकृत काफी अधिक थी।