डेली न्यूज़ (12 Sep, 2019)



महाराष्ट्र में आपदा प्रबंधन उपकरण

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र सरकार, संयुक्त राज्य व्यापार और विकास एजेंसी (United States Trade and Development Agency-USTDA) की मदद से 140 करोड़ रुपए की लागत से आपदा प्रबंधन उपकरण लगाने का प्रयास कर रही है ताकि राज्य में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।

प्रमुख बिंदु:

  • ज्ञातव्य है कि हाल ही में पश्चिमी महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों ने भारी बाढ़ का सामना किया, जिससे वहाँ जान-माल का काफी नुकसान हुआ था।
  • USTDA जो कि अमेरिका स्थिति विशेषज्ञों का एक समूह है, ने मुंबई महानगर क्षेत्र (Mumbai Metropolitan Region-MMR) में बाढ़ से होने वाले नुकसान का आकलन किया है, जिसके अनुसार बीते एक दशक में 4,355 वर्ग किमी. के क्षेत्र में लगभग 2 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
  • USTDA द्वारा राज्य सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 2005 से वर्ष 2015 के बीच मुंबई महानगर क्षेत्र में बाढ़ से लगभग 3,000 से अधिक लोग मारे गए थे, जबकि 150000 से अधिक लोग बाढ़ के बाद बीमार पड़ गए।
  • महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में कोल्हापुर, सांगली और सतारा में आई बाढ़ में 6,813 करोड़ रुपए की क्षति का अनुमान लगाया है। साथ ही केंद्र सरकार से पीड़ितों को मुआवज़ा देने में सहायता करने का भी आग्रह किया है।

रिपोर्ट में निहित चिंताएँ:

  • रिपोर्ट में क्षेत्र विशेष के अंतर्गत बाढ़ प्रबंधन की कमी को इंगित किया गया है।
  • साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नई परियोजनाओं को मंज़ूरी देते समय प्राकृतिक आपदाओं मुख्यतः बाढ़ और भूकंप को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है, इसके अतिरिक्त प्रशासन की अन्य खामियों को भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है।

USTDA का सुझाव

  • USTDA ने आँकड़े एकत्रित एवं प्रसारित करने हेतु एक प्लेटफॉर्म की व्यवस्था किये जाने का सुझाव दिया है, इस प्लेटफॉर्म की सुविधा आपदा के दौरान एवं आपदा के बाद भी जारी रहेगी, साथ ही इसके तहत डिज़ास्टर वल्नेरेबिलिटी रिस्क इंडेक्स (Disaster Vulnerability Risk Index) भी तैयार किया जाएगा।
    • उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के उपकरण को प्रारंभिक चेतावनी और पूर्वानुमान के लिये जीआईएस-आधारित बाढ़ मानचित्र और ज़ोनिंग (GIS-based Flood Maps and Zoning) के आधार पर ब्राज़ील और थाईलैंड में तैयार किया गया था।
    • इसे सर्वप्रथम थाईलैंड की चाओ फ्राया नदी (Thailand Chao Phraya) पर स्थापित किया गया था, जहाँ 1,60,000 वर्ग किमी. क्षेत्र के बाढ़ प्रबंधन में काफी सुधार देखने को मिला है।
    • यह प्रणाली छोटी और मध्यम अवधि की बाढ़ का पूर्वानुमान प्रदान करती है, जिससे बाढ़ के दौरान नुकसान कम होता है।

स्रोत: द हिंदू


जीवन कौशल

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 11 सितंबर, 2019 को नई दिल्ली में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा डिज़ाइन जीवन कौशल (Life Skills) संबंधी पाठ्यक्रम लॉन्च किया।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान समय में परीक्षाओं में केवल अंक अर्जित करने की अवधारणा विद्यमान है। इस तरह की अवधारणा से समाज में संचालित शिक्षा में मात्र रटने की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिलता है। अंततः इससे वास्तविक शिक्षा के स्तर में कमी आती है।
  • जीवन कौशल पर आधारित इस नए पाठ्यक्रम के माध्यम से देश के युवा वर्ग की कार्य कुशलता और सामूहिक दक्षता में सुधार होगा।
  • भारत में रोज़गारपरक उत्पादन के लिये कौशल और गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की आवश्यकता है, इसीलिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इस कार्यक्रम के अधिदेश तथा इसके उद्देश्य जारी किये हैं।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्नातक स्तर के जीवन कौशल पाठ्यक्रम में संचार कौशल (Communication Skill), अन्तर्वैयक्तिक कौशल (Interpersonal Skill), समय प्रबंधन, समस्या सुलझाने की क्षमता, निर्णयन क्षमता और नेतृत्व क्षमता जैसे रोज़गारपरक विषयों को शामिल किया गया है।
  • जीवन कौशल पाठ्यक्रम, किसी व्यक्ति को कक्षा में अनुभव के माध्यम से सीखने हेतु प्रेरित करता है जिससे मानव जीवन की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं से निपटा जा सके।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

(University Grants Commission- UGC)

  • तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने 28 दिसंबर, 1953 को औपचारिक तौर पर विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग नींव रखी थी।
  • विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग विश्‍वविद्यालयी शिक्षा के मापदंडों के समन्‍वय, निर्धारण और अनुरक्षण हेतु वर्ष 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा स्‍थापित एक स्‍वायत्त संगठन है।
  • पात्र विश्‍वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के अतिरिक्‍त आयोग केंद्र तथा राज्‍य सरकारों को उच्‍चतर शिक्षा के विकास हेतु आवश्‍यक उपायों पर सुझाव भी देता है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलूरू में हैं।

स्रोत: PIB


आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं पर पहली रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

भारत में आकाशीय बिजली (तड़ित) गिरने संबंधी घटनाओं पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष अप्रैल से जुलाई के बीच की चार महीने की अवधि में आकाशीय बिजली के गिरने के कारण कम-से-कम 1,311 लोगों की मौत हुई हैं। इन घटनाओं में उत्तर प्रदेश (224 मौतें) शीर्ष पर है, इसके बाद बिहार (170), ओडिशा (129) और झारखंड (118) का स्थान है।

रिपोर्ट के विषय में

  • इस रिपोर्ट को क्लाइमेट रेज़िलिएंट ओब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल (Climate Resilient Observing Systems Promotion Council-CROPC) द्वारा तैयार किया गया है, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है, यह भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के साथ मिलकर काम करता है।

रिपोर्ट में क्या जानकारी प्राप्त हुई?

  • इस चार महीने की अवधि के दौरान भारत में 65.55 लाख आकाशीय बिजली की घटनाएँ सामने आई, जिनमें से 23.53 लाख (36 प्रतिशत) घटनाएँ क्लाउड-टू-ग्राउंड लाइटनिंग की है।
  • अन्य 41.04 लाख (64 प्रतिशत) इन-क्लाउड लाइटनिंग की रही।
  • ओडिशा में आकाशीय बिजली गिरने (दोनों प्रकार) की 9 लाख से अधिक घटनाएँ दर्ज की गईं।

रिपोर्ट के निष्कर्ष महत्त्वपूर्ण क्यों हैं?

  • यह रिपोर्ट एक डेटाबेस बनाने के प्रयास का एक हिस्सा है जो आकाशीय बिजली के गिरने के संबंध में एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने, जागरूकता फैलाने और इससे होने वाली मौतों को रोकने में मदद कर सकता है। देश में हर साल 2,000 से 2,500 लोग इन घटनाओं के कारण मौत के शिकार हो जाते हैं।
  • इस संबंध में यह प्रयास किया जा रहा है कि एक ऐसी प्रणाली को विकसित किया जाए जिसकी सहायता से घटना के घटित होने के तकरीबन 30-40 मिनट पहले इस विषय में भविष्यवाणी की जा सके। इन-क्लाउड लाइटिंग स्ट्राइक के अध्ययन और निगरानी के माध्यम से ऐसी भविष्यवाणी संभव है।
  • 16 राज्यों में एक पायलट प्रोजेक्ट को पूरा किये जाने के बाद, IMD ने इस वर्ष से बिजली के पूर्वानुमान और चेतावनी के संबंध में मोबाइल पर संदेश भेजने शुरू कर दिये हैं। हालाँकि अभी यह सुविधा देश के सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं है और लोगों के बीच इस विषय में पर्याप्त जागरूकता भी नहीं है कि यदि IMD द्वारा किसी प्रकार का अलर्ट जारी किया जाता है तो उन्हें किस प्रकार की कार्रवाई करनी चाहिये।

Most strikes

आकाशीय बिजली/तड़ित का निर्माण कैसे होता है?

  • बिजली/तड़ित वातावरण में बिजली का एक बहुत तीव्रता से और बड़े पैमाने पर निर्वहन है। इसका कुछ भाग पृथ्वी की ओर निर्देशित होता है। यह बादल के ऊपरी हिस्से और निचले हिस्से के बीच विद्युत आवेश के अंतर का परिणाम है। बिजली उत्पन्न करने वाले बादल आमतौर पर लगभग 10-12 किमी. की ऊँचाई पर होते हैं, जिनका आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी. ऊपर होता है। शीर्ष पर तापमान -35 डिग्री सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
  • चूँकि जल वाष्प ऊपर की ओर उठने की प्रवृत्ति रखता है, यह तापमान में कमी के कारण जल में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे जल के अणु और ऊपर की ओर गति करते हैं। जैसे-जैसे वे शून्य से कम तापमान की ओर बढ़ते हैं, जल की बूंदें छोटे बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती हैं। चूँकि वे ऊपर की ओर बढ़ती रहती हैं, वे तब तक एक बड़े पैमाने पर इकट्ठा होती जाती हैं, जब तक कि वे इतने भारी न हो जाए कि वे नीचे गिरना शुरू कर दें।
  • यह एक ऐसी प्रणाली की ओर गति करती है जहाँ बर्फ के छोटे क्रिस्टल ऊपर की ओर जबकि बड़े क्रिस्टल नीचे की ओर गति करते हैं। इसके चलते इनके मध्य टकराव होता है और इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं, यह विद्युत स्पार्क के समान कार्य करता है। गतिमान मुक्त इलेक्ट्रॉनों में और अधिक टकराव होता जाता है और इलेक्ट्रॉन बनते जाते हैं; यह एक चेन रिएक्शन का निर्माण करता है।

lighting

  • इस प्रक्रिया से एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें बादल की ऊपरी परत धनात्मक रूप से चार्ज हो जाती है जबकि मध्य परत नकारात्मक रूप से चार्ज होती है। दो परतों के मध्य विद्युत तनाव का बहुत बड़ा (करीब अरबों वोल्ट का) अंतर विद्यमान है।
  • थोड़े समय में ही दोनों परतों के बीच एक विशाल विद्युत धारा (लाखों एम्पीयर) बहने लगती है। इससे ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे बादल की दोनों परतों के बीच मौजूद वायु गर्म होने लगती है। इस ऊष्मा के कारण दोनों परतों के बीच वायु का खाका बिजली के कडकने के दौरान लाल रंग का नज़र आता है। गर्म हवा विस्तारित होती है और आघात उत्पन्न करती है जिसके परिणामस्वरूप गड़गड़ाहट की आवाज़ आती है।

पृथ्वी पर बिजली कैसे गिरती है?

  • तड़ित झंझा के बादलों में विद्युत आवेश उत्पन्न होता है। इन बादलों की निचली सतह ऋणावेशित और ऊपरी सतह धनावेशित होती है, जिससे भूमि पर धनावेश उत्पन्न होता है।
  • धन और ऋण एक-दूसरे को चुम्बक की तरह अपनी ओर आकर्षित करते हैं, किंतु वायु के एक अच्छा संवाहक न होने के कारण विद्युत आवेश में बाधाएँ आती हैं। अतः बादल की ऋणावेशित निचली सतह को छूने का प्रयास करती धनावेशित तरंगे भूमि पर गिर जाती हैं।
  • पृथ्वी विद्युत की सुचालक है। यह बादलों की मध्य परत की तुलना में अपेक्षाकृत धनात्मक रूप से चार्ज होती है। परिणामस्वरूप, बिजली का अनुमानित 20-25 प्रतिशत प्रवाह पृथ्वी की ओर निर्देशित हो जाता है। यह विद्युत प्रवाह जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुँचाता है।

आकाशीय बिजली के प्रकार

  • इंट्रा-क्लाउड (Intra-Cloud): यह सबसे आम प्रकार की आकाशीय बिजली/तड़ित है। यह पूरी तरह से बादल के अंदर उत्पन्न होती है, बादल के विभिन्न आवेशित भागों में प्रवाहित होती है। कभी-कभी इसे शीट लाइटनिंग भी कहा जाता है क्योंकि इसके चमकने से आकाश प्रकाश की 'चादर' के समान जगमगा जाता है।
  • क्लाउड टू क्लाउड (Cloud to Cloud): वह तड़ित जो दो या दो से अधिक बादलों के बीच उत्पन्न होती है।
  • क्लाउड टू ग्राउंड (Cloud to Ground): वह तड़ित जो बादल और भूमि के बीच उत्पन्न होती है।
  • क्लाउड टू एयर (Cloud to Air): ऐसी आकाशीय बिजली जो तब उत्पन्न होती है जब धनात्मक रूप से आवेशित बादलों के चारों ओर उपस्थित वायु नकारात्मक रूप से आवेशित वायु तक पहुँचती है।
  • बोल्ट फ्रॉम द ब्लू (Bolt from the blue): आकाशीय बिजली का एक प्रकार, जो तूफान के दौरान वायु की ऊपर उठती धाराओं के भीतर उत्पन्न होती है। कई मील तक क्षैतिज रूप से यात्रा करने के बाद ज़मीन से टकराती है।
  • एनविल लाइटनिंग (Anvil Lightning): ऐसी आकाशीय बिजली, जो एनविल या तड़ितझंझा/थंडरस्टॉर्म वाले बादलों के ऊपर विकसित होती है और ज़मीन से टकराने के लिये आम तौर पर सीधे नीचे की ओर जाती है।
  • हीट लाइटनिंग (Heat Lightning): तड़ित झंझा अथवा आंधी से उत्पन्न हुई बिजली की गड़गड़ाहट जो बहुत दूर तक सुनाई देती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


लद्दाख को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने की सिफारिश

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ( National Commission for Scheduled Tribes- NCST) ने गृह मंत्रालय से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक आदिवासी क्षेत्र घोषित करने की सिफारिश की है।

प्रमुख बिंदु:

  • जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत कारगिल और लेह ज़िलों को मिलाकर एक केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख का सृजन किया गया।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का मानना है कि इस प्रकार के कदम से लद्दाख क्षेत्र में प्रशासन को और विकेंद्रीकृत करने के साथ ही जनजातीय लोगों की सभ्यता तथा संस्कृति को अधिक स्थायित्व प्रदान किया जा सकेगा।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि नव-सृजित केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख पहले से ही देश में जनजातियों की अधिकता वाला एक क्षेत्र है।
  • अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या लेह में 66.8 प्रतिशत, नुब्रा में 73.35 प्रतिशत, खलस्ती में 97.05 प्रतिशत, कारगिल में 83.49 प्रतिशत, सांकू में 89.96 प्रतिशत और ज़ांस्कर क्षेत्रों में 99.16 प्रतिशत है।
  • लद्दाख क्षेत्र में निम्नलिखित अनुसूचित जनजातियांँ हैं-
  1. बलती (Balti)
  2. बेडा (Beda)
  3. बॉट (Bot), बोटो (Boto)
  4. ब्रोकपा (Brokpa), ड्रोकपा (Drokpa), डार्ड (Dard), शिन (Shin)
  5. चांगपा (Changpa)
  6. गर्रा (Garra)
  7. मोन (Mon)
  8. पुरीगपा (Purigpa)
  • हालांँकि इस क्षेत्र के सुन्नी मुसलमानों सहित कई समुदायों को अधिकारिक आँकड़ो में शामिल नहीं किया गया है, जो कि अनुसूचित जनजाति के दर्जे के लिये दावा कर रहे हैं।
  • केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख के सृजन से पहले लद्दाख क्षेत्र के लोगों को कुछ अधिकार प्राप्त थे, जिनमें भूमि का अधिकार शामिल था।
  • जिसके तहत देश के अन्य हिस्सों के लोगों के लिये लद्दाख में जमीन खरीदना अथवा अधिग्रहित करना प्रतिबंधित था।
  • इसी प्रकार लद्दाख क्षेत्र में ड्रोकपा (Drokpa), बलती (Balti) और चांगपा (Changpa) आदि समुदायों की कई विशिष्ट सांस्कृतिक विरासतें विद्यमान है, जिन्हें संरक्षित करने तथा बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद निम्नलिखित फायदें होंगे:
  1. शक्तियों का लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  2. क्षेत्र की विशिष्ट संस्कृति का संरक्षण और प्रोत्साहन
  3. भूमि अधिकारों सहित कृषि अधिकारों का संरक्षण
  4. लद्दाख क्षेत्र के तीव्र विकास के लिये धन की उपलब्धतता

छठी अनुसूची (Sixth Schedule): संविधान की छठी अनुसूची (भाग 10 और अनुच्छेद 244) में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधानों का वर्णन किया गया है।

संविधान की छठी अनुसूची की विशेषताएँ:

  • असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजातीय क्षेत्रों में संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकार के तहत ही स्वशासी ज़िलों का गठन किया जाएगा।
  • राज्यपाल स्वशासी ज़िलों को स्थापित या पुनर्स्थापित और उनके नाम में परिवर्तन कर सकता है।
  • प्रत्येक स्वशासी ज़िले के लिये एक 30 सदस्यीय ज़िला परिषद होगी जिसके 4 सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित किये जाएंगे जबकि 26 सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
  • निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा।
  • ज़िला परिषद अपने अधीन क्षेत्रों के लिये भूमि, वन, नहर, कृषि, ग्राम प्रशासन, विवाह, तलाक और सामाजिक रुढ़ियों से संबंधित विधि बना सकती है।
  • ज़िला परिषदें अपने अधीन क्षेत्रों में जनजातियों के आपसी मामलों के निपटारे हेतु ग्राम परिषद या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं।
  • ज़िला परिषदों को भू-राजस्व का आकलन व संग्रहण करने का अधिकार है।
  • सामान्यतः संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम इन स्वशासी ज़िलों पर लागू नहीं होते हैं।
  • अगर ये अधिनियम लागू होते हैं तो इसमें विशेष अपवाद और उन क्षेत्रों के लिये प्रथमिकताएँ जुड़ी होती हैं।

स्रोत: pib & द हिंदू


जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मरुस्थलीकरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Desertification, COP-14) को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने वैश्विक समुदाय को बताया कि भारत ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (Zero Budget Natural Farming-ZBNF) पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) में भी ZBNF के पारिस्थितिक लाभ और मृदा की उर्वरता एवं जल संरक्षण संबंधी लाभों को उजागर किया गया है।
  • राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (National Academy of Agricultural Sciences- NAAS) ने ZBNF के वैज्ञानिक प्रमाणीकरण के पश्चात ही देश में खेती की इस पद्यति को बढ़ावा न देने का सुझाव दिया है।
  • NAAS ने ZBNF के मसौदे और इसके दावों के परीक्षण तथा चर्चा करने के लिये पिछले महीने वैज्ञानिकों की एक बैठक आयोजित की थी।
  • NAAS के अनुसार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) व नीति आयोग (Niti Aayog) NAAS से इनपुट लिये बिना ही ZBNF को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
  • यदपि NAAS 100% रसायन आधारित कृषि से बचने का समर्थन करती है परंतु इसने ZBNF के दीर्घकालिक प्रभावों के मद्देनज़र वैज्ञानिक परीक्षण एवं प्रमाणीकरण का सुझाव दिया है।
  • NAAS के अनुसार, ZBNF पर किये जा रहे ये वैज्ञानिक परीक्षण उत्पादकता, उपज की गुणवत्ता तथा मृदा पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करने में सहायक होंगे।

ज़ीरो बज़ट नेचुरल फार्मिंग

First wheel

  • ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग मूल रूप से महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर द्वारा विकसित रसायन मुक्त कृषि (Chemical-Free Farming) का एक रूप है। यह विधि कृषि की पारंपरिक भारतीय प्रथाओं पर आधारित है।
  • इस विधि में कृषि लागत जैसे कि उर्वरक (Fertilisers), कीटनाशक (Pesticides) और गहन सिंचाई (Intensive Irrigation) की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
  • इस विधि के तहत चाहे किसी भी फसल का उत्पादन किया जाए उसकी लागत मूल्य ज़ीरो होनी चाहिये।
  • कृषि कार्य हेतु आवश्यक सभी संसाधन घर में ही उपलब्ध होने चाहिये।
  • देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। खेत में इनका उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक घटकों का भी विस्तार होता है।

ZBNF के घटक

  • बीजामृत- यह प्रथम चरण होता है जिसमें गाय के गोबर, गोमूत्र तथा चूना व खेत की मृदा से बीज शोधन किया जाता है।
  • जीवामृत- गाय के गोबर, गोमूत्र व अन्य जैविक पदार्थों का एक घोल तैयार कर किण्वन किया जाता है। किण्वन के पश्चात् प्राप्त इस पदार्थ को उर्वरक व कीटनाशक के स्थान पर प्रयोग में लाया जाता है।
  • मल्चिंग: इसमें जुताई के स्थान पर फसल के अवशेषों को भूमि पर आच्छादित कर दिया जाता है।
  • वाफसा: इसमें सिंचाई के स्थान पर मृदा में नमी एवं वायु की उपस्थिति को महत्त्व दिया जाता है।

भारत के संदर्भ में

  • वर्ष 2015 में शुरू किये गए कुछ पायलट कार्यक्रमों की सफलता से प्राप्त अनुभवों को आंध्र प्रदेश में व्यवहार में लाया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि यह ZBNF नीति को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया।
  • ZBNF को लागू करने वाली एजेंसी रिथु स्वाधिकार द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इस कार्यक्रम को विभिन्न चरणों में क्रियान्वित किया जाएगा।
  • प्रत्येक मंडल में कम-से-कम एक पंचायत को इस नई विधि में स्थानांतरित करने की दिशा में काम किया जाएगा। 2021-22 तक इस कार्यक्रम का प्रसार राज्य की प्रत्येक पंचायत में करने की योजना है, ताकि 2024 तक पूर्ण कवरेज के साथ इसे लागू किया जा सके।
  • कर्नाटक के किसान संगठन, कर्नाटक राज्य रायथा संघ (Karnataka Rajya Raitha Sangha-KRRS) के द्वारा ZBNF को बढ़ावा दिया जा रहा है।

राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी

(National Academy of Agricultural Sciences-NAAS)

  • राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी की स्थापना वर्ष 1990 में की गई।
  • यह अकादमी पशुपालन, मत्स्यपालन, कृषि वानिकी और कृषि-विज्ञान सहित कृषि एवं कृषि-उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा देने आदि क्षेत्रों में कार्यरत है।

उद्देश्य

  • पारिस्थितिकी आधारित टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना।
  • कृषि के अलग-अलग क्षेत्र में वैज्ञानिकों की उत्कृष्टता को बढ़ावा देना।
  • देश के भीतर और दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय के साथ विभिन्न संस्थाओं तथा संगठनों के अनुसंधानरत लोगों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।

स्रोत: द हिंदू


मलेरिया उन्मूलन

चर्चा में क्यों?

लांसेट कमीशन (Lancet Commission) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, सही रणनीति एवं पर्याप्त वित्त आवंटन के माध्यम से वर्ष 2050 तक विश्व से मलेरिया का उन्मूलन संभव है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2000 के बाद से वैश्विक स्तर पर मलेरिया के मामलों और इससे होने वाली मृत्यु दर में क्रमशः 36 और 60 प्रतिशत की गिरावट आई है।
  • वर्ष 2017 में विश्व के 86 देशों में मलेरिया के 219 मिलियन मामले दर्ज किये जबकि वर्ष 2000 में दर्ज 262 मिलियन दर्ज किये गए थे।
  • रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के 55 देशों में मलेरिया के मामलों में वृद्धि हो रही है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, मलेरिया के मामलों में असमानता विद्यमान है, वर्ष 2017 में विश्व के 29 देशों में सबसे अधिक मामले दर्ज किये गए जिनमें 27 देश अफ्रीका के हैं। कुल वैश्विक मामलों में से 36% मामले नाइज़ीरिया (Nigeria) व कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (Democratic Republic of Congo) में दर्ज किये गए।

अफ्रीका में ही मलेरिया के अधिक मामले क्यों?

  • अफ्रीकी वेक्टर प्रजातियों की उत्तरजीविता अधिक होती है जिसकी वज़ह से प्लास्मोडियम परजीवी को वेक्टर प्रजाति में विकसित होने के लिये पर्याप्त समय मिल जाता है।
  • संक्रमण जलवायु परिस्थितियों जैसे- वर्षा का पैटर्न, तापमान और आर्द्रता आदि पर भी निर्भर करता है क्योंकि ये परिस्थितियाँ मच्छरों की संख्या और उनके अस्तित्व को प्रभावित कर सकती हैं।

मलेरिया

  • यह प्लास्मोडियम परजीवियों (Plasmodium Parasites) के कारण होने वाला मच्छर जनित रोग है।
  • यह परजीवी संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छर (Anopheles Mosquitoes) के काटने से फैलता है।
  • यह रोग मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • वेक्टर नियंत्रण (Vector Control) मलेरिया संचरण को रोकने और कम करने का मुख्य तरीका है।

मलेरिया के संदर्भ में भारत की स्थिति

  • वर्ष 2018 में WHO द्वारा जारी विश्व मलेरिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में मलेरिया के लगभग 9.5 मिलियन मामले दर्ज किये गए जो कि वर्ष 2016 की तुलना में 3 मिलियन (24%) कम है।
  • विश्व भर में दर्ज किये जाने वाले मलेरिया के कुल मामलों के सिर्फ 4% मामले भारत में दर्ज होते हैं।
  • भारत में दर्ज किये जाने वाले कुल मामलों में से लगभग 50% ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ व पश्चिम बंगाल में दर्ज किये गए है।

आगे की राह:

लांसेट कमीशन द्वारा जारी की गई यह रिपोर्ट वर्ष 2050 तक मलेरिया उन्मूलन हेतु 3 सुझाव देती है-

  1. वैश्विक स्तर पर मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में सुधार करना।
  2. मलेरिया उन्मूलन के लिये जैविक चुनौतियों (Biological Challenges) को दूर करने हेतु नए उपकरणों को विकसित करना।
  3. मलेरिया से प्रभावित देशों और दानदाताओं द्वारा आवश्यक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP)

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने पशुओं में खुरपका-मुंहपका रोग (Foot-and-mouth disease-FMD) और ब्रूसेलोसिस (Brucellosis) के नियंत्रण तथा उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Animal Disease Control Programme-NADCP) की शुरुआत की है।

  • यह कार्यक्रम पूर्णतः केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित है एवं इसकी कुल व्यय राशि 12652 करोड़ रुपए आंकी गई है।

खुरपका-मुंहपका रोग

(Foot-and-mouth disease-FMD)

  • FMD गाय, भैंस और हाथी आदि में होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह खासकर दूध देने वाले जानवरों के लिये अधिक हानिकारक होता है।
  • रोग के लक्षण
    • पशुओं के जीभ और तलवे पर छालों का होना जो बाद में फट कर घाव में बदल जाते हैं।
    • इसके पश्चात् जानवरों के दुग्ध उत्पादन में भी लगभग 80 प्रतिशत तक की गिरावट आ जाती है।

ब्रूसेलोसिस

(Brucellosis)

  • ब्रूसेलोसिस एक जीवाणु संक्रामक रोग है जो जानवरों के साथ-साथ इंसानों को भी प्रभावित करता है। ब्रूसेलोसिस आम तौर पर तब फैलता है जब लोग दूषित भोजन जैसे- कच्चा मांस और अस्वास्थ्यकर दूध का उपभोग करते हैं।

NADCP के उद्देश्य

  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मवेशियों की सेहत में सुधार कर किसानों को अधिक-से-अधिक लाभ पहुँचाना है।
  • कार्यक्रम का एक अन्य उद्देश्य FMD से बचाव हेतु 500 मिलियन से अधिक पशुओं, जिनमे भैंस, भेड़, बकरी और सूअर शामिल हैं, का टीकाकरण करना है।
  • कार्यक्रम में ब्रूसेलोसिस बीमारी को नियंत्रित एवं समाप्त करने हेतु सालाना 36 मिलियन मादा गोजातीय बछड़ों (Bovine Calves) का टीकाकरण करना भी शामिल है।

कार्यक्रम के लक्ष्य

  • वर्ष 2025 तक उपरोक्त रोगों पर नियंत्रण
  • वर्ष 2030 तक रोगों का उन्मूलन

कार्यक्रम की आवश्यकता

  • उपरोक्त दोनों ही रोगों का दूध और अन्य पशुधन उत्पादों के व्यापार पर प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • यदि कोई गाय या भैंस FMD से संक्रमित हो जाती है, तो वह दूध देना लगभग बंद कर सकती है और यह रोग 4 से 6 महीने तक रह सकता है। इसके प्रभाव से किसान को काफी नुकसान हो सकता है।
  • केंद्र सरकार की इस कार्यक्रम को किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के साथ भी जोड़ कर देखा जा रहा है।

स्रोत: पी.आई.बी.


Rapid Fire करेंट अफेयर्स 12 सितंबर, 2019

  • धारा 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर दो अलग-अलग केंद्रशासित क्षेत्रों में विभाजित हो गया है- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। लेकिन इन दोनों के लिये एक साझा उच्च न्यायालय रहेगा। राज्य न्यायिक अकादमी के निदेशक से मिली जानकारी के अनुसार, दोनों केंद्रशासित प्रदेशों पर 108 केंद्रीय कानून लागू होंगे जबकि राज्य के 166 कानून लागू रहेंगे एवं 164 कानून निष्प्रभावी हो जाएंगे। विदित हो कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को समाप्त कर दिया था। संसद ने इस संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी थी और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने से संबंधित विधेयक को भी पारित कर दिया था। अब प्रश्न यह उठता कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 का जम्मू-कश्मीर के कानूनों और लंबित मामलों पर क्या असर पड़ेगा? केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का गठन होगा, लेकिन केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में कोई विधानसभा नहीं होगी और इसे सीधे तौर पर केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेशों के लिये साझा उच्च न्यायालय होगा। उच्च न्यायालय में वकालत के लिये नियम और प्रक्रियाएँ पूर्ववत ही रहेंगी।
  • राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आइसलैंड, स्विट्जरलैंड और स्लोवेनिया की अपनी यात्रा के पहले चरण में 9 सितंबर को आइसलैंड की राजधानी रेक्याविक पहुँचे। भारत ने जलवायु परिवर्तन, समुद्री कचरे और पर्यावरण संबंधी अन्य मुद्दों पर आइसलैंड के साथ पूर्ण रूप से सहयोग करने पर सहमति जताते हुए सतत् मत्स्य पालन, समुद्री अर्थव्यवस्था, जहाज़रानी, ​​हरित विकास, ऊर्जा, निर्माण और कृषि क्षेत्रों में आइसलैंड की क्षमता का लाभ उठाने की इच्छा जताई है। जबकि भारतीय कंपनियां फार्मा, हाई-एंड आईटी सर्विसेज़, बायोटेक्नोलॉजी, ऑटोमोबाइल, इनोवेशन और स्टार्ट-अप के क्षेत्र में आइसलैंड को अवसर प्रदान कर सकती हैं। इसके बाद भारत और आइसलैंड ने राजनयिक और आधिकारिक पासपोर्ट धारकों के लिये मत्स्य पालन सहयोग, सांस्कृतिक सहयोग और वीज़ा माफी के क्षेत्र में तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किये। ज्ञातव्य है कि आइसलैंड ने मई 2019 में आर्कटिक काउंसिल के अध्यक्ष का पदभार संभाला है तथा भारत इसका एक पर्यवेक्षक सदस्य देश है। यह वर्ष 2005 में डॉ. कलाम की यात्रा के बाद किसी भी भारतीय राष्ट्रपति का यह पहला आइसलैंड दौरा है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर गठित यू.के. सिन्हा समिति ने सिफारिश की है कि जहाँ तक संभव हो स्टार्ट-अप के लिये तेलंगाना के अभिनव मॉडल का मूल्यांकन अन्य राज्यों के संदर्भ में भी किया जाना चाहिये। स्टार्टअप्स और इनक्यूबेटर्स के लिये विभिन्न प्रोत्साहन रिपोर्टों में भी इसका उल्लेख किया गया है। तेलंगाना का स्टार्टअप मॉडल पाँच प्रमुख घटकों पर आधारित है:
  1. भौतिक अवसंरचना विकास।
  2. कार्यक्रम प्रबंधन क्षमताओं का विकास।
  3. स्थायी फंडिंग मॉडल।
  4. मानव पूंजी के विकास और प्रयोग को बढ़ावा देना।
  5. प्रारंभिक शिक्षा से नवाचार।

इसके अलावा तेलंगाना में स्टार्टअप्स के लिये कई प्रोत्साहन और पहलों का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इनके तहत स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स को स्टांप शुल्क में 100 प्रतिशत छूट (प्रतिपूर्ति) और पंजीकरण शुल्क के लिये पहले लेन-देन पर भुगतान किये गये शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट आदि शामिल हैं। वित्तीय लाभों के अलावा तेलंगाना की स्टार्टअप नीति स्टार्टअप और इनक्यूबेटरों को भी निर्धारित प्रारूपों में स्व-प्रमाणन की सुविधा देती है।

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्‍य की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए अपनी पहली कृषि निर्यात नीति की घोषणा की है। राज्‍य सरकार ने वर्ष 2024 तक कृषि उत्‍पादों का निर्यात दोगुना करने का लक्ष्‍य रखा है। इसके लिये किसानों और उद्यमियों को प्रोत्‍साहन देने के लिये अनेक कदम उठाए जाएंगे। राज्‍य सरकार ने अनुबंधित कृषकों और बटाईदार किसानों से कुछ शर्तों के साथ धान खरीदने की अनुमति भी दे दी है। अब किसानों के उत्पाद विश्व बाज़ार मानकों के अनुरूप तैयार कराए जाएंगे। निर्यात में कोई कठिनाई न हो, इसके लिये किसानों के क्लस्टर बनाए जाएंगे। गुणवत्तापरक उत्पाद पैदा करने के लिये सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। 100 हेक्टेयर कृषि भूमि वाले क्लस्टर को 10 लाख रुपए, 150 हेक्टेयर तक 16 लाख रुपए और 200 हेक्टेयर पर 22 लाख रुपए प्रोत्साहन राशि अनुमति के योग्य है। इसके अलावा सर्वोच्च न्‍यायालय के निर्देश के अनुपालन में भीड़ की हिंसा के शिकार लोगों को मुआवज़ा देने पर भी सहमति जताई गई है।
  • नृपेंद्र मिश्र के कार्यमुक्त होने के बाद प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव के रूप में डॉ. प्रमोद कुमार मिश्रा की नियुक्ति की गई है। डॉ. मिश्रा को कृषि, आपदा प्रबंधन, ऊर्जा क्षेत्र, ढाँचागत संरचना, वित्तीय प्रबंधन और नियामक मामलों से संबंधित कार्यक्रमों के प्रबंधन का लंबा अनुभव है। अनुसंधान, नीति निर्माण, कार्यक्रम-परियोजना प्रबंधन और प्रकाशन में उनका अच्छा प्रदर्शन रहा है। डॉ. मिश्रा प्रधानमंत्री के अपर मुख्य सचिव, कृषि और सहयोग के सचिव राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन के पदों पर कार्य कर चुके हैं। कृषि व सहयोग सचिव के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय कृषि विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय सुरक्षा मिशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही में डॉ. मिश्रा को संयुक्त राष्ट्र सासाकावा पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया गया है। आपदा प्रबंधन में यह सबसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है। गौरतलब है कि इसी वर्ष जून के महीने में प्रधानमंत्री मोदी के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्र को दोबारा इसी पद पर नियुक्त किया गया था। इसके साथ ही उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था। नृपेन्द्र मिश्रा को वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री का प्रमुख सचिव बनाया गया था।