डेली न्यूज़ (12 Sep, 2018)



विश्व में भूख की समस्या में लगातार तीसरे वर्ष बढ़ोतरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी कि 2030 तक भूख की समस्या को खत्म करने के वैश्विक लक्ष्य को बाधित करते हुए संघर्षों एवं जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप लगातार तीसरे वर्ष 2017 में वैश्विक भूख की समस्या में वृद्धि हुई।

प्रमुख बिंदु

  • खाद्य सुरक्षा और पोषण स्थिति की विश्व 2018 रिपोर्ट के अनुसार, लगभग पूरे अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में भूख की समस्या बढ़ रही है तथा 2017 में नौ में से एक व्यक्ति या 821 मिलियन लोग भूख से ग्रसित रहे।
  • इस बीच, 2014 के 600 मिलियन की तुलना में मौजूदा समय में 672 मिलियन या आठ में से एक से भी अधिक वयस्क मोटापे से ग्रस्त हैं। सदस्य राष्ट्रों द्वारा वर्ष 2015 में अपनाए गए संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि "और अधिक प्रयास किये बिना, 2030 तक भूख उन्मूलन के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त करना अत्यंत मुश्किल है।"
  • यह लगातार तीसरा वर्ष था जब एक दशक तक गिरावट के बाद वैश्विक भूख के स्तर में वृद्धि हुई है। तापमान में बढ़ती विविधता; तीव्र, अनियमित वर्षा और बदलते मौसम आदि ने खाद्य की उपलब्धता और गुणवत्ता को प्रभावित किया है।
  • संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि पिछले वर्ष 51 देशों में लगभग 124 मिलियन लोगों ने संघर्ष और जलवायु आपदाओं से प्रेरित भूख के संकट के स्तर का सामना किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि यमन, सोमालिया, दक्षिण सूडान और अफगानिस्तान जैसे कई राष्ट्र जो लंबे समय से संघर्षों से जूझ रहे हैं, सूखे और बाढ़ जैसे एक या अधिक जलवायु खतरों से भी पीड़ित हैं।
  • हाल ही में चैरिटी सेव द चिल्ड्रेन ने चेतावनी दी कि युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में वित्तपोषण कम होने और युद्धरत दलों द्वारा खाद्य आपूर्ति रोके जाने से 600,000 बच्चे इस वर्ष के अंत तक चरम भूख की वज़ह से मर सकते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि दक्षिण अमेरिका में भूख की बदतर स्थिति, क्षेत्र की मुख्य निर्यातक वस्तुओं - विशेष रूप से कच्चे तेल की कम कीमतों के कारण हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि खाद्य पदार्थों की कमी के कारण अनुमानतः 2.3 मिलियन लोगों ने जून माह में वेनेज़ुएला छोड दिया था।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भोजन की अनिश्चित या अपर्याप्त उपलब्धता मोटापे में भी योगदान देती है क्योंकि सीमित वित्तीय संसाधन वाले लोग सस्ते, ऊर्जा-सघन प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का चयन कर सकते हैं जिसमें वसा, नमक और चीनी की उच्च मात्रा शामिल होती है।
  • भोजन की अनुपलब्धता से मनोवैज्ञानिक और उपापचयी परिवर्तन भी हो सकते हैं। भ्रूणावस्था और प्रारंभिक बाल्यावस्था में भोजन की अनुपलब्धता जीवन में आगे चलकर मोटापे को आमंत्रित करता है।
  • भूख की समस्या का हल गरीबी को समाप्त करने से हो सकता है तथा इसके लिये परिवर्तनकारी निवेश की अत्यंत आवश्यकता है। कुछ बड़े एवं विकसित देश इस दिशा में मानवीय सहायता के रूप में बेहतर कार्य कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास समस्या के मूल कारणों को लक्षित नहीं करते हैं, अतः भूख की समस्या अभी भी विकट बनी हुई है।

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में अगला संकट मुद्रा ऋण की वज़ह से

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने चेतावनी दी है कि भारत के बैंकिंग क्षेत्र में अगला संकट असंगठित सूक्ष्म और लघु व्यवसायों को दिये गए ऋण (जिसे मुद्रा ऋण कहा जाता है) और किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से बढ़ाए गए साख के कारण उत्पन्न हो सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • एनडीए सरकार द्वारा 2015 में लॉन्च की गई प्रधानमंत्री मुद्रा योजना या PMMY के तहत मुद्रा ऋण की पेशकश की जाती है। सूक्ष्म इकाइयों के विकास और पुनर्वित्त एजेंसी (MUDRA) वेबसाइट के आँकड़ों के अनुसार, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सूक्ष्म वित्त संस्थानों द्वारा इस योजना के तहत कुल 6.37 लाख करोड़ रुपए वितरित किये गए हैं।
  • संसद की प्राक्कलन समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के अनुरोध पर बैंकों की गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) पर तैयार किये गए एक नोट में डॉ. राजन ने कहा कि सरकार को महत्वाकांक्षी क्रेडिट लक्ष्यों को स्थापित करने या ऋणों में छूट देने से बचना चाहिये।
  • डॉ. राजन ने अपने 17-पेज के नोट में लिखा, " लोकप्रिय होने के बावजूद मुद्रा ऋण के साथ-साथ किसान क्रेडिट कार्ड दोनों की संभावित क्रेडिट जोखिम के चलते अधिक बारीकी से जाँच की जानी चाहिये।"
  • उन्होंने भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक द्वारा संचालित MSME के लिये क्रेडिट गारंटी योजना को भी सूचित किया और इसे "एक बढ़ती आकस्मिक देयता" कहा जिसे तत्काल परीक्षण की आवश्यकता है।
  • उन्होंने लिखा, "2006-2008 की उस अवधि में बड़ी संख्या में NPA उत्पन्न हुए थे जब आर्थिक विकास मजबूत था। यह ऐसा समय होता है जब बैंक गलतियाँ करते हैं।"
  • छोटे ऋणों की समस्या पर उन्होंने नोट में कहा, '' मुझे इस मोर्चे पर प्रगति की जानकारी नहीं है। यह एक ऐसा मामला है जिस पर तत्काल ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।"
  • डॉ. राजन ने राजनीतिक दलों से आग्रह किया कि वे कृषि ऋण पर छूट न देने के लिये सहमत हों क्योंकि इस तरह के छूट क्रेडिट संस्कृति को खराब करते हैं और अंततः क्रेडिट के प्रवाह को कम करते हैं।
  • उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक के खिलाफ लगे आरोपों का बचाव किया कि एनपीए की गड़बड़ी रिज़र्व बैंक की वज़ह से है। उन्होंने कहा, "सच यह है कि बैंकर, प्रमोटर और परिस्थितियाँ NPA की समस्या पैदा करते हैं। वाणिज्यिक ऋण की प्रक्रिया में आरबीआई मुख्य रूप से एक रेफरी की भूमिका निभाता है, न कि एक खिलाड़ी की।"
  • इसी तरह, उन्होंने इस बात का विरोध किया कि जबरन एनपीए की पहचान ने क्रेडिट और अर्थव्यवस्था में मंदी को आमंत्रित किया है। उन्होंने लिखा, “सबूतों को देखने पर पता चलता है कि यह दावा हस्यास्पद है और उन लोगों द्वारा किया गया है जिन्हें इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है।“

गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ (NPA)

  • गैर-निष्पादनकरी परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets - NPAs) वित्तीय संस्थानों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक ऐसा वर्गीकरण है जिसका सीधा संबंध कर्ज़/ऋण/लोन न चुकाने से होता है|
  • जब ऋण लेने वाला व्यक्ति 90 दिनों तक ब्याज अथवा मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति माना जाता है| दूसरे शब्दों में, एनपीए वैसी परिसंपत्ति होती है जो मूल रूप से वसूली की अनुमानित अवधि तक नकद मौद्रिक प्रवाह का हिस्सा नहीं बनती है|

एचआईवी/एड्स अधिनियम, 2017 को लागू करने हेतु अधिसूचना जारी

चर्चा में क्यों?

स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने ह्यूमन इम्‍यूनो डेफिसीएंसी वायरस तथा एक्‍वायर्ड इम्‍यून डेफिसीएंसी सिंड्रोम (निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 को 10 सितंबर, 2018 से लागू करने के लिये अधिसूचना जारी की है।

अधिनियम का उद्देश्य

  • इस अधिनियम का उद्देश्‍य एचआईवी के शिकार और इससे प्रभावित लोगों को सुरक्षा प्रदान करना है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों में एचआईवी से संबंधित भेदभाव, कानूनी दायित्त्व को शामिल करके वर्तमान कार्यक्रम को मज़बूत बनाना तथा शिकायतों और शिकायत निवारण के लिये औपचारिक व्‍यवस्‍था करना है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्‍य एचआईवी तथा एड्स का निवारण और नियंत्रण,  एचआईवी तथा एड्स के शिकार व्‍यक्तियों के साथ भेदभाव का निषेध है।

प्रमुख बिंदु

  • इस अधिनियम में रोज़गार और स्‍वास्‍थ्‍य सेवा की प्राप्ति के लिये पूर्व शर्त के रूप में एचआईवी परीक्षण का निषेध किया गया है।
  • 18 वर्ष से कम आयु के एचआईवी के शिकार और प्रभावित प्रत्‍येक व्‍यक्ति को घर में साझा रूप से रहने तथा घरेलू की सुविधाएँ लेने का अधिकार है।
  • इस अधिनियम में एचआईवी पॉज़िटिव व्‍यक्तियों के साथ भेदभाव के विभिन्‍न आधारों की सूची दी गई है जिनके आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है। इनमें शामिल हैं - (i) रोजगार, (ii) शिक्षण संस्‍थान, (iii) स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएँ, (iv) आवास या संपत्ति किराए पर देना (v) सावर्जनिक और निजी पद के लिये उम्‍मीदवारी (vi) बीमा प्रावधान से संबंधित इनकार, समाप्ति, अनिरंतरता और अनुचित व्‍यवहार।
  • नोट: मिशन 2030 वर्ष 2016 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक उच्च स्तरीय सभा में भारत ने एचआईवी/एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरे के रूप में प्रस्तुत करते हुए अगले पाँच सालों में इसके संबंध में तेज़ गति से कार्यवाही करने और वर्ष 2030 तक इस महामारी को समाप्त करने का वचन दिया है।
  • इस अधिनियम में एचआईवी पॉज़िटिव लोगों के बारे में गलत सूचना और घृणा भाव फैलाने के लिये किसी व्‍यक्ति द्वारा इस संबंध में किसी प्रकार के प्रकाशन पर निषेध है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, 12 से 18 वर्ष के बीच की आयु के व्‍यक्ति में एचआईवी या एड्स से प्रभावित परिवार के कार्यों को समझने और उनका प्रबंधन करने के लिये पर्याप्‍त परिपक्‍वता होती है और ऐसा व्‍यक्ति शिक्षण संस्‍थान में नामांकन, बैंक खाता प्रबंधन, संपत्ति प्रबंधन, चिकित्‍सा और स्‍वास्‍थ्‍य से संबंधित मामलों में 18 वर्ष से कम आयु के अपने भाई-बहन के अभिभावक के रूप में कार्य करने के लिये सक्षम होगा।
  • इसके अलावा इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, राज्‍य की देख-रेख में रह रहे प्रत्‍येक व्‍यक्ति को एचआईवी निवारण, परीक्षण, इलाज और परामर्श सेवा का अधिकार होगा।

 


नासा के स्पिट्ज़र दूरबीन ने अंतरिक्ष में पूरे किये 15 साल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा के स्पिट्ज़र स्पेस टेलीस्कोप ने अंतरिक्ष में 15 साल पूरे कर लिये हैं। उल्लेखनीय है स्पिट्ज़र को 25 अगस्त, 2003 को सौर कक्षा में लॉन्च किया गया था।

स्पिट्ज़र के बारे में

  • यह नासा के चार ‘ग्रेट ऑब्ज़र्वेटरी’ कार्यक्रमों का आखिरी टेलीस्कोप था। अन्य तीन कार्यक्रम थे- हबल स्पेस टेलीस्कोप, द कॉम्पटन गामा रे ऑब्ज़र्वेटरी व चंद्रा एक्स-रे ऑब्जरवेटरी।
  • शुरुआत में इस दूरबीन को केवल 2.5 वर्ष के लिये निर्धारित किया गया था लेकिन अब यह अपने अपेक्षित जीवन-काल से काफी आगे निकल गया है।
  • स्पिट्ज़र अवरक्त किरणों (infrared light) का पता लगाता है जो प्रायः गर्म वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित उष्मीय विकिरण है। पृथ्वी पर अवरक्त किरणों का उपयोग विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में किया जाता है जिसमें नाइट-विज़न यंत्र आदि शामिल हैं।
  • स्पिट्ज़र ने अपनी अवरक्त दृष्टि (infrared vision) और उच्च संवेदनशीलता के साथ, ज्ञात ब्रह्मांड में कुछ सबसे दूर स्थित आकाशगंगाओं के अध्ययन में योगदान दिया है।
  • स्पिट्ज़र ने इस अवलोकन में लगभग 106,000 घंटे व्यतीत किये हैं।
  • स्पिट्ज़र द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा का उल्लेख 8,000 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में किया गया है।

स्पिट्ज़र द्वारा की गई कुछ प्रमुख खोजें

  • इस अंतरिक्ष दूरबीन ने न केवल ब्रह्मांड में सबसे पुरानी आकाशगंगाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई है बल्कि शनि के चारों ओर एक नए वलय का भी खुलासा किया है। साथ ही, धूलकणों के विशालकाय भंडार के माध्यम से नए सितारों और ब्लैक होल्स का भी अध्ययन किया।
  • स्पिट्ज़र ने हमारे सौरमंडल से परे अन्य ग्रहों की खोज में सहायता की, जिसमें पृथ्वी के आकार वाले सात ग्रह जो TRAPPIST-1 के चारों तरफ प्रक्रिमा कर रहे थे, के बारे में पता लगाना भी शामिल है।

स्पिट्ज़र द्वारा की गई कुछ अन्य खोजें निम्नलिखित है:

  • शनि के चारों ओर एक पतले तथा धुँधले वलय की खोज (जो शनि के व्यास का लगभग 300 गुना है।)
  • एक गैसीय एक्सोप्लेनेट की सतह पर तापमान की विविधता को प्रदर्शित करने वाले पहले एक्सोप्लेनेट  मौसम का मानचित्रण।
  • क्षुद्रग्रह और ग्रहों के टुकड़े।
  • नवजात सितारों की छिपी हुई परतें।
  • अंतरिक्ष में बकीबॉल्स (Buckyballs)। (Buckyballs  अंतरिक्ष में 60 कार्बन परमाणुओं से बनी त्रि-आयामी, गोलाकार संरचनाएँ हैं।)
  • आकाशगंगाओं के विशाल समूह।
  • आकाशगंगा (Milky way) का सबसे व्यापक मानचित्रण।

प्रीलिम्स फैक्ट्स 12 सितंबर 2018

अप्सरा-उन्नत

10 सितंबर, 2018 को ट्रॉम्बे में स्विमिंग पूल के आकार वाले शोध रिएक्टर "अप्सरा-उन्नत" (Apsara-U) का परिचालन शुरू किया गया।

  • उच्च क्षमता वाले इस रिएक्टर को स्थापित करने में पूर्णतः स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जो स्वास्थ्य देखभाल, विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में सुविधाएँ प्रदान करने वाली जटिल संरचना का निर्माण करने में भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की क्षमता को रेखांकित करता है।
  • इसमें निम्न परिष्कृत यूरेनियम (Low Enriched Uranium - LEU) से निर्मित प्लेट के आकार वाले प्रकीर्णन ईंधन (dispersion fuel) का इस्तेमाल किया जाता है।
  • उच्च न्यूट्रॉन प्रवाह के कारण यह रिएक्टर स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रयोग किये जाने वाले रेडियो-आइसोटोप के स्वदेशी उत्पादन में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि करेगा।
  • इसका उपयोग नाभिकीय भौतिकी, भौतिक विज्ञान और रेडियोधर्मी आवरण के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किया जाएगा।
  • एशिया के पहले अनुसंधान रिएक्टर "अप्सरा" का परिचालन अगस्त 1956 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के ट्रॉम्बे परिसर में शुरू हुआ था।
  • पाँच दशक से अधिक समय तक समर्पित सेवा प्रदान करने के बाद इस रिएक्टर को 2009 में बंद कर दिया गया था।
आदर्श परिवर्तनीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (Model- ICTAI)

हाल ही में नीति आयोग, इंटेल और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान ने घोषणा की है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता व अनुप्रयोग आधारित शोध परियोजनाओं के विकास और क्रियान्वयन के लिये परिवर्तनीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता आदर्श अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (Model International Center for Transformative Artificial Intelligence -ICTAI) की स्थापना की जाएगी।

  • यह पहल नीति आयोग के कार्यक्रम ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिये राष्ट्रीय रणनीति’ का एक हिस्सा है। इसका उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित नीतियों तथा मानकों का विकास करना है।
  • बंगलूरू स्थित यह आदर्श ICTAI कृत्रिम बुद्धिमत्ता के आधारभूत ढाँचे को विकसित करने के साथ ही स्वास्थ्य देखभाल, कृषि और गतिशीलता के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित समाधान की तलाश करेगा तथा उनका संचालन करेगा।
  • यह आदर्श केंद्र अनुप्रयोग आधारित शोध को प्रोत्साहन देने के लिये AI तकनीकों का विकास करेगा।
  • आदर्श ICTAI उद्योग जगत की हस्तियों, नवाचार उद्यमियों तथा AI सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोग बढ़ाने पर विशेष ध्यान देगा।
  • इस आदर्श ICTAI द्वारा विकसित ज्ञान और सर्वोत्तम अभ्यासों का उपयोग नीति आयोग पूरे देश में स्थापित होने वाले ICTAI केन्द्रों के निर्माण में करेगा।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्या है?

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी।
  • इसके ज़रिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जनक जॉन मैकार्थी के अनुसार, यह बुद्धिमान मशीनों, विशेष रूप से बुद्धिमान कंप्यूटर प्रोग्राम बनाने का विज्ञान और अभियांत्रिकी है अर्थात् यह मशीनों द्वारा प्रदर्शित बुद्धिमत्ता है। 
  • यह कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह से सोचने वाला सॉफ़्टवेयर बनाने का एक तरीका है। 
‘युद्ध अभ्यास-2018’

भारत-अमेरिका द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के तहत दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘युद्ध-अभ्यास’ के चौदहवें संस्करण का आयोजन 16 से 29 सितंबर, 2018 के बीच उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में रानीखेत के पास चौबटिया में किया जाएगा।

  • इस सैन्य अभ्यास का आयोजन दोनों देशों के बीच बारी-बारी से किया जाता है।
  • ‘युद्ध-अभ्यास-2018’ एक ऐसे परिदृश्य का अनुसरण करेगा जिसमें दोनों देश संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार पहाड़ी इलाके में विद्रोह और आतंकवाद के माहौल के खिलाफ संघर्ष का अभ्यास करेंगे।
  • दो सप्ताह तक चलने वाले इस सैन्य अभ्यास में दोनों देशों से 350-350 सैनिक भाग लेंगे।
  • युद्ध अभ्यास की शुरुआत वर्ष 2004 में हुई थी और इसका आयोजन अमेरिकी सेना के शांति सहभागिता कार्यक्रम के तहत किया जाता है।
भारत का पहला मिसाइल ट्रैकिंग जहाज़

देश की प्रमुख जहाज़ निर्माता कंपनी हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (HSL) भारत के पहले मिसाइल ट्रैकिंग जहाज़ का समुद्री परीक्षण करने के लिये तैयार है।

  • इस जहाज़ निर्माण की नींव 30 जून, 2014 को रखी गई थी।
  • इसका निर्माण राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एक तकनीकी खुफिया एजेंसी जो सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की देखरेख में काम करती है) के लिये किया गया है।
  • इस परियोजना की लागत लगभग 750 करोड़ रुपए है।
  • भारतीय नौसेना में शामिल होने के बाद इसका नामकरण किया जाएगा। फिलहाल, इसे केवल VC 11184 नाम दिया गया है।
  • यह अपनी तरह का पहला महासागर निगरानी जहाज़ होगा।
  • इस जहाज़ के सफल परीक्षण के साथ ही भारत ऐसे देशों के समूह में शामिल हो जाएगा जिनके पास इस तरह का परिष्कृत महासागर निगरानी जहाज़ है।
  • 300 चालक दल वाले इस जहाज़ में उच्च तकनीकी यंत्र और संचार उपकरण लगे हुए हैं, यह  दो डीज़ल इंजनों द्वारा संचालित होता है तथा हेलीकॉप्टर की लैंडिंग के लिये इसमें पर्याप्त स्थान है।
हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड
  • आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में स्थित HSL देश की प्रमुख जहाज़ निर्माण कंपनी है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1941 में भारत में महान उद्योगपति और दूरदर्शी सेठ वालचंद हीराचंद ने ‘सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी लिमिटेड’ के नाम से की थी।
  • वर्ष 1952 में भारत  सरकार ने इस कंपनी के दो तिहाई भाग पर अधिग्रहण प्राप्त किया तथा 21 जनवरी, 1952 को इसे हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड के नाम से निगमित किया गया।
  • जुलाई 1961 में सरकार ने कंपनी का शेष एक-तिहाई हिस्सा हासिल किया और शिपिंग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत यह शिपयार्ड पूरी तरह से भारत सरकार के उपक्रम के रूप में स्थापित हुआ।
  • देश की रणनीतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, यार्ड को 22 फरवरी 2010 को रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया था।
  • कंपनी का पंजीकृत कार्यालय विशाखापत्तनम में तथा क्षेत्रीय कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

भारतीय रेल के ब्रॉड गेज मार्गों का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने भारतीय रेल के उन ब्रॉड गेज (बड़ी लाइन) मार्गों, जो कि अब तक विद्युतीकरण से वंचित, के विद्युतीकरण के प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी है।

प्रस्ताव के महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इन मार्गों को 108 सेक्शन के तहत 13,675 ट्रैक किलोमीटर (16,540 ट्रैक किलोमीटर) का कवरेज किया जाएगा।
  • विद्युतीकरण का कार्य 12,134.50 करोड़ रुपए की लागत से वर्ष 2021-22 तक पूरा किया जाना है।
  • भारतीय रेल नेटवर्क पर बड़े ट्रंक (मुख्य) मार्गों का विद्युतीकरण किया जा चुका है और ये ट्रैक चालू हैं।
  • पूरे नेटवर्क में बाधारहित रेल परिवहन की आवश्यकता पर विचार करते हुए यह आवश्यक है कि परिवर्तन की आवश्यकता से उत्पन्न बाधाएँ दूर की जाएँ।
  • प्रस्तावित विद्युतीकरण मुख्य रूप से उन क्षेत्रों को जोड़ने के लिये किया जाना है जहाँ अब तक विद्युतीकरण और अंतिम गंतव्य तक संपर्क नहीं हो पाया है।
  • इस प्रस्ताव के अनुसार विद्युतीकरण से आयातित जीवाश्म ईंधनों के उपयोग में कमी आएगी, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा में सुधार होगा।
  • नियोजित विद्युतीकरण के बाद प्रतिवर्ष 2.83 बिलियन लीटर हाई स्पीड डीज़ल की खपत में कमी आएगी और जीएचजी उत्सर्जन कम होगा। इससे रेलवे के कारण होने वाले प्रतिकूल पर्यावरण प्रभाव में भी कमी आएगी।
  • अभी भारतीय रेल के लगभग दो-तिहाई माल ढुलाई तथा यात्री परिवहन के आधे से अधिक का संचालन बिजली से हो रहा है। लेकिन बिजली का भारतीय रेल के कुल ऊर्जा व्यय में केवल 37 प्रतिशत का योगदान है।
  • विद्युतीकरण के बाद भारतीय रेल अपने ईंधन बिल में प्रतिवर्ष 13,510 करोड़ रुपए की बचत करेगी और इससे वित्तीय स्थिति में सुधार होगा।
  • प्रस्तावित विद्युतीकरण से निर्माण अवधि के दौरान 20.4 करोड़ मानव दिवसों का प्रत्यक्ष रोज़गार सृजन होगा। इस निर्णय होने वाले अन्य लाभ निम्नलिखित हैं-

क्षमता और गति

  • 100 प्रतिशत विद्युतीकरण से बाधारहित ट्रेन संचालन सुनिश्चित होगा और ट्रैक्शन परिवर्तन यानी डीज़ल से इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रिक से डीज़ल ट्रैक्शन में परिवर्तन के कारण ट्रेनों को रोककर रखने की प्रवृत्ति समाप्त होगी।
  • बिजली चालित इंजनों की उच्च गति तथा उच्च वहन क्षमता के कारण रेलवे को लाइन क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • सुरक्षित व सुधरी हुई सिग्नल प्रणाली से ट्रेन संचालन के दौरान सुरक्षा बढ़ेगी।

ऊर्जा सुरक्षा

  • सरकार की नई ऑटो ईंधन नीति के अनुरूप पूरी तरह बिजली ट्रैक्शन अपनाने से प्रतिवर्ष जीवाश्म ईंधन खपत में लगभग 2.83 बिलियन लीटर की कमी आएगी।
  • पेट्रोलियम आधारित ईंधन की आयात निर्भरता में कमी से देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी।

ऊर्जा बिल बचत

  • ईंधन बिल में संपूर्ण रूप से प्रतिवर्ष 13,510 करोड़ रुपए की बचत होगी।
  • इस निर्णय के अंतर्गत कवर किये गए सेक्शनों के विद्युतीकरण से प्रतिवर्ष 3,793 करोड़ रुपए की बचत होगी।
  • इंजन के रख-रखाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी, क्योंकि बिजली चालित इंजनों की रख-रखाव लागत 16.45 रुपए प्रति हज़ार GTKM है जबकि डीज़ल ईंजनों के रख-रखाव की लागत 32.84 रुपए प्रति हज़ार GTKM है।
  • बिजली इंजनों की पुर्नउत्पादन सुविधा से 15-20 प्रतिशत ऊर्जा की बचत होगी तथा उच्च अश्व शक्ति के कारण इलेक्ट्रिक लोको की आवश्यकता में कमी आएगी।

निरंतरता

  • बिजली के लिये प्रति टन पर्यावरण लागत 1.5 पैसे  होती है और डीज़ल ट्रैक्शन के लिये  5.1 पैसे होती है।
  • COP 21 में भारत की वचनबद्धता के अनुरूप पूरी तरह बिजली ट्रैक्शन अपनाने से वर्ष 2027-28 तक रेलवे के कार्बन उत्सर्जन में 24 प्रतिशत की कमी आएगी।
  • वर्ष 2019-20 तक बिजली ट्रैक्शन के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन डीज़ल से कम होगा और इस तरह यह पर्यावरण अनुकूल विकल्प साबित होगा।

रोज़गार सृजन

  • निर्माण अवधि के दौरान लगभग 20.4 करोड़ मानव दिवसों का प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होगा।
  • उपर्युक्त लाभों के माध्यम से संपूर्ण विद्युतीकरण आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के लिये अग्रदूत का काम करेगा और अधिक आर्थिक लाभ प्रदान करेगा।