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डेली न्यूज़

  • 12 Aug, 2020
  • 37 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-नेपाल वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव

मेन्स के लिये:

भारत-नेपाल संबंध

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं की समीक्षा के लिये भारत और नेपाल के राजदूत काठमांडू (नेपाल) में मुलाकात कर सकते है। COVID-19 महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से बैठक होने की संभावना है।

प्रमुख बिंदु

  • यह बैठक ‘भारत- नेपाल ओवरसाइट मैकेनिज्म’ का एक हिस्सा होगी। चालू द्विपक्षीय आर्थिक और विकास परियोजनाओं की समीक्षा करने के लिये वर्ष 2016 में इसकी स्थापना की गई थी।

  • बजट 2020-21 में भारत सरकार ने नेपाल में संचालित परियोजनाओं के लिये 800 करोड़ रुपए का आवंटन किया था।
    • इन परियोजनाओं में तराई क्षेत्र में सड़कों का निर्माण, भूकंप (2015) के बाद के पुनर्निर्माण कार्यों में नेपाल की मदद, रेलवे लाइनों का निर्माण, एक पुलिस प्रशिक्षण अकादमी, एक पॉलिटेक्निक कॉलेज, एक तेल पाइपलाइन और सीमा चेक पोस्ट का निर्माण शामिल हैं।
    • हाल ही में काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में एक स्वच्छता सुविधा के निर्माण के लिये भारत और नेपाल के बीच एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किये गए।

Nepal

  • भारत और नेपाल के बीच बढ़ते हाल के तनावों के मद्देनज़र यह बैठक बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होने वाली है।
    • वर्ष 2017 में नेपाल ने चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) पर हस्ताक्षर किये थे, जिससे नेपाल में राजमार्ग, हवाई अड्डे और अन्य बुनियादी ढाँचे के निर्माण का आश्वासन दिया। भारत ने BRI में शामिल होने से इनकार कर दिया और नेपाल के इस कदम को चीन के प्रति झुकाव के रूप में देखा गया।
    • वर्ष 2019 में भारत सरकार ने देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर का विभाजन करते हुए इसे जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख को दो अलग केंद्र शासित प्रदेशों में दर्शाया गया साथ ही उत्तराखंड राज्य में पिथौरागढ़ ज़िले के हिस्से के रूप में कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को भी प्रदर्शित किया गया।
      • भारत और नेपाल के मध्य कालापानी-लिम्पियाधुरा-लिपुलेख त्रिभुज पर भारत-नेपाल और चीन तथा सुस्ता क्षेत्र (पश्चिम चंपारण ज़िला, बिहार) के बीच सीमा विवाद हैं।
    • नेपाल ने भारत के इस नक्शे के खिलाफ कड़ी आपत्ति जताई और इस मुद्दे को बातचीत के माध्यम से हल करने की सलाह दी।
    • इसके अलावा चीनी सीमा के समीप लिपुलेख दर्रे पर (कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये) भारत सरकार द्वारा एक सड़क के उद्घाटन ने दोनों देशों के बीच विरोध को और अधिक बढ़ावा दे दिया।
    • इसके प्रत्युत्तर में नेपाल ने एक नया नक्शा जारी किया जिसमें भारत द्वारा दावा किये गए सभी विवादित क्षेत्र को नेपाल का अंग दर्शाया गया हैं।

आगे की राह

  • भारत और नेपाल, जिनके बीच ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ संबंध हैं, दोनों देशों के बीच उपजे तनाव को दूर करने के लिये मिलकर प्रयास करने चाहिये।
  • चीन के साथ नेपाल की बढ़ती आत्मीयता भारत-चीन संघर्षों के बीच भारत के लिये चिंता का विषय है।
  • जैसा कि भारत ने पड़ोसी प्रथम (नेबरहुड फर्स्ट) की नीति को अपनाया हुआ है, ऐसे राजनीतिक संबंधों के साथ-साथ लोगों के मध्य आपसी जुड़ाव जैसे पक्षों पर भी भारत को नेपाल के साथ अधिक सक्रिय रूप से काम करने की ज़रूरत है। इस संदर्भ में गुजराल सिद्धांत/डॉक्ट्रिन (Gujral Doctrine) जिसने भारत-बांग्लादेश विवाद को सुलझाने में मदद की, बहुत मददगार साबित हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

हिंदू महिलाओं के विरासत अधिकारों पर SC का निर्णय

प्रिलिम्स के लिये:

मिताक्षरा तथा दयाभाग कानून के बारे में, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, कॉपर्सनर/सहदायक, संपत्ति का अधिकार 

मेन्स के लिये

पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय तथा इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अपने एक हालिया एक निर्णय में पुरुष उत्तराधिकारियों के समान शर्तों पर हिंदू महिलाओं के पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकारी और सहदायक (संयुक्त कानूनी उत्तराधिकारी) के अधिकार का विस्तार किया है। यह निर्णय हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम (Hindu Succession (Amendment) Act), 2005 से संबंधित है।

प्रमुख बिंदु

  • SC का निर्णय:
    • SC के निर्णय के अनुसार, एक हिंदू महिला को पैतृक संपत्ति में संयुक्त उत्तराधिकारी होने का अधिकार जन्म से प्राप्त है, यह इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि उसका पिता जीवित हैं या नहीं।
    • SC ने अपने इस निर्णय में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में वर्ष 2005 में किये गए संशोधनों का विस्तार किया, इन संशोधनों के माध्यम से बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार देकर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 में निहित भेदभाव को दूर किया गया था ।
    • इसने उच्च न्यायालयों को छह माह के भीतर इस मामले से जुड़े मामलों को निपटाने का भी निर्देश दिया।
  • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act), 1956:
    • हिंदू कानून की मिताक्षरा धारा को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया, संपत्ति के वारिस एवं उत्तराधिकार को इसी अधिनियम के तहत प्रबंधित किया गया, जिसने कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में केवल पुरुषों को मान्यता दी।
    • यह उन सभी पर लागू होता है जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं। बौद्ध, सिख, जैन और आर्य समाज, ब्रह्म समाज के अनुयायियों को भी इस कानून के तहत हिंदू माना गया हैं।

    • एक अविभाजित हिंदू परिवार में, कई पीढ़ियों के संयुक्त रूप से कई कानूनी उत्तराधिकारी मौजूद हो सकते हैं। कानूनी उत्तराधिकारी परिवार की संपत्ति की संयुक्त रूप से देख-रेख करते हैं।
  • हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम [Hindu Succession (Amendment) Act], 2005:
    • 1956 के अधिनियम को सितंबर 2005 में संशोधित किया गया और वर्ष 2005 से संपत्ति विभाजन के मामले में महिलाओं को सह्दायक/कॉपर्सेंनर के रूप में मान्यता दी गई।
      • अधिनियम की धारा 6 में संशोधन करते हुए एक कॉपर्सेंनर की पुत्री को भी जन्म से ही पुत्र के समान कॉपर्सेंनर माना गया।
      • इस संशोधन के तहत पुत्री को भी पुत्र के समान अधिकार और देनदारियाँ दी गई।
    • यह कानून पैतृक संपत्ति और व्यक्तिगत संपत्ति में उत्तराधिकार के नियम को लागू करता है, जहाँ उत्तराधिकार को कानून के अनुसार लागू किया जाता है, न कि एक इच्छा-पत्र के माध्यम से।
    • संशोधन का आधार:
      • विधि आयोग की 174वीं रिपोर्ट में हिंदू उत्तराधिकार कानून में सुधार की सिफारिश की गई थी।
      • वर्ष 2005 के संशोधन से पहले आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने कानून में यह बदलाव कर दिया था। केरल ने वर्ष 1975 में ही हिंदू संयुक्त परिवार प्रणाली को समाप्त कर दिया था।
  • सरकार का पक्ष:
    • भारत के महान्यायवादी/सॉलिसिटर जनरल ने महिलाओं को समान अधिकारों की अनुमति देने के लिये कानून का व्यापक संदर्भ में अध्ययन किये जाने का तर्क प्रस्तुत किया। 
    • सॉलिसिटर जनरल ने मिताक्षरा कॉपर्सनरी (Mitakshara coparcenary 1956) कानून की आलोचना की क्योंकि यह कानून लैंगिक आधार पर भेदभाव करता है और भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18) के लिये दमनकारी और नकारात्मक भी है।

हिंदू कानून से संबंधित विधियाँ/नियम

मिताक्षरा कानून

दयाभाग कानून 

मिताक्षरा पद की उत्पत्ति याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर द्वारा लिखित एक टीका के नाम से हुई है।

दयाभाग पद जिमुतवाहन द्वारा लिखी गई, समान नाम की पुस्तक से लिया गया है।

भारत के सभी भागों में इसका प्रभाव देखने को मिलता है और यह बनारस, मिथिला, महाराष्ट्र एवं द्रविड़ शैली में उप-विभाजित है।

बंगाल और असम में इसका प्रभाव देखने को मिलता है। 

जन्म से ही संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति में पुत्र की हिस्सेदारी होती है।

पुत्र का संपत्ति पर जन्म से कोई स्वत: स्वामित्व/अधिकार नहीं होता है, परंतु वह अपने पिता की मृत्यु के बाद स्वतः ही इस अधिकार को प्राप्त कर लेता है।

एक पिता के संपूर्ण जीवनकाल के दौरान परिवार के सभी सदस्य को कॉपर्सनरी का अधिकार प्राप्त होता है।



पिता के जीवनकाल में पुत्र को कॉपर्सनर का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।

इसमें कॉपर्सनर का भाग परिभाषित नहीं है और इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है।

प्रत्येक कॉपर्सनर के हिस्से को परिभाषित किया गया है और इसे समाप्त किया जा सकता है।

पत्नी बँटवारे की मांग नहीं कर सकती है लेकिन उसे अपने पति और पुत्रों के बीच किसी भी बँटवारे में हिस्सेदारी का अधिकार प्राप्त है।

यहाँ महिलाओं के लिये समान अधिकार मौजूद नहीं है क्योंकि पुत्र बँटवारे की मांग नहीं कर सकता हैं और यहाँ पिता ही पूर्ण मालिक होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

जम्मू-कश्मीर में परीक्षण के आधार पर इंटरनेट बहाली

प्रिलिम्स के लिये

अनुच्छेद 370 तथा अन्य संबंधित प्रावधान

मेन्स के लिये 

इंटरनेट शटडाउन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

जम्मू-कश्मीर में 4G इंटरनेट सेवाओं की बहाली को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष समिति ने सुरक्षा स्थिति पर प्रभाव का आकलन करने के लिये एक विशिष्ट सीमित क्षेत्र में परीक्षण के आधार पर उच्च गति इंटरनेट शुरू करने की सिफारिश की है।

प्रमुख बिंदु

  • शुरुआत के तौर पर समिति ने 15 अगस्त के बाद जम्मू और कश्मीर डिवीज़न के एक-एक ज़िले में उच्च गति के इंटरनेट की बहाली की सिफारिश की है।

जम्मू-कश्मीर में 4G निलंबन

  • बीते वर्ष 5 अगस्त के ही दिन केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाकर राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में कर दिया था। 
  • इसी के साथ जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान रद्द हो गया था और वहाँ भारतीय संविधान लागू हो गया था। वहीं जम्मू-कश्मीर के अलग झंडे की अवधारणा भी समाप्त हो गई।
  • साथ ही क्षेत्र विशिष्ट में इंटरनेट सेवाएँ भी पूरी तरह से बंद कर दी गई थीं और हज़ारों की संख्या में लोगों को हिरासत में ले लिया गया था।
  • इंटरनेट सेवाओं को बंद करते हुए सरकार ने तर्क दिया था कि इस निर्णय का उद्देश्य अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में होने वाली हिंसा को रोकना है।

समिति की सिफारिशें 

  • समिति के अनुसार, 4G इंटरनेट सेवाओं की बहाली से आंतरिक सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने हेतु जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों को परीक्षण के आधार पर अंशांकित (Calibrated) तरीके से उच्च गति इंटरनेट तक पहुँच प्रदान की जा सकती है।
  • समिति की सिफारिशों के मुताबिक जम्मू और कश्मीर डिविज़न के एक-एक ज़िले में इंटरनेट को बहाल किया जा सकता है।
  • हालाँकि इन ज़िलों का चयन करते समय यह ध्यान रखा जाएगा कि वे अंतर्राष्ट्रीय सीमा या नियंत्रण रेखा से दूर हों, और इनमें आतंकवादी गतिविधियों की तीव्रता कम हो।
  • इसके अलावा राज्य स्तरीय समिति द्वारा 4G इंटरनेट से संबंधित इस परीक्षण का समय-समय पर मूल्यांकन भी किया जाएगा।
  • साथ ही केंद्रीय समिति दो माह की अवधि के पश्चात् अथवा उससे पूर्व ही परीक्षण के परिणामों की समीक्षा करेगी।
  • खतरे की स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए ये नियम 15 अगस्त, 2020 के बाद लागू होंगे।

प्रतिबंध हटाने का प्रभाव

  • ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में अधिकांश वाणिज्यिक गतिविधियाँ उच्च गति इंटरनेट पर निर्भर करती हैं।
  • 4G इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने से क्षेत्र के लोग ई-कॉमर्स जैसी सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे और साथ ही GST तथा आयकर रिटर्न भी दाखिल कर सकेंगे।
  • इसके माध्यम से स्थानीय राजस्व में भी बढ़ोतरी करने में भी मदद मिल सकेगी।

इंटरनेट शटडाउन का मुद्दा

  • सरल शब्दों में कहें तो समय की एक निश्चित अवधि के लिये सरकार द्वारा एक या एक से अधिक इलाकों में इंटरनेट पर पहुँच को अक्षम करना’ इंटरनेट शटडाउन कहलाता है।
  • इंटरनेट शटडाउन की इस परिभाषा से मुख्यतः दो घटक सामने आते हैं, पहला यह कि इंटरनेट शटडाउन हमेशा सरकार द्वारा किया जाता है। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को किसी क्षेत्र विशेष में इंटरनेट सेवाओं को बंद करने का आदेश सरकार की एक निश्चित एजेंसी द्वारा दिया जाता है।
  • दूसरा यह कि इंटरनेट शटडाउन सदैव किसी विशेष क्षेत्र में लागू किया जाता है, जहाँ एक क्षेत्र विशेष के सभी लोग इंटरनेट का प्रयोग नहीं कर पाते हैं। साथ ही यह एक निश्चित अवधि के लिये ही लागू किया जा सकता है, न कि सदैव के लिये।
  • इंटरनेट स्वतंत्रता के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं द्वारा एकत्रित आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के बीच देश भर के तमाम क्षेत्रों में तकरीबन 419 बार इंटरनेट शटडाउन देखा गया।
  • वर्ष 2019 में भारत में कुल 106 बार इंटरनेट शटडाउन दर्ज किया गया, जिसमें से 56 प्रतिशत तो जम्मू-कश्मीर में ही था।
  • जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद से अब लगभग एक वर्ष बीत चुका हैं, परंतु अब तक यहाँ इंटरनेट की सेवाएँ पूरी तरह से बहाल नहीं की गई हैं।

इंटरनेट शटडाउन: पक्ष

  • कुछ मौकों पर इंटरनेट शटडाउन को लेकर सरकार का यह फैसला सही भी नज़र आता है। इतिहास में ऐसी कई घटनाएँ याद की जा सकती हैं, जहाँ यदि सरकार द्वारा सही समय पर इंटरनेट बंद का निर्णय नहीं लिया गया तो संभवतः हिंसा और भी विकराल हो सकती थी।
  • धार्मिक समूहों में अफवाह के कारण टकराव की संभावना को टालने के लिये भी ऐसा करना अनिवार्य प्रतीत होता है।

इंटरनेट शटडाउन: विपक्ष

  • विशेषज्ञों के अनुसार, इंटरनेट पर रोक लगाने से देश को आर्थिक नुकसान तो होता ही है, साथ ही इससे देश के नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी खतरे में आ जाता है।
  • यह समय का वह दौर है, जब व्यावसायिक से लेकर निजी रिश्ते तक डिजिटल कम्युनिकेशन पर निर्भर करते हैं। ऐसे में इंटरनेट बंद होना न सिर्फ असुविधा का कारण बनता है, बल्कि बहुत से मौकों पर सुरक्षा को खतरे में डालने वाला भी साबित हो सकता है।
  • साथ ही प्रदेश में 4G इंटरनेट पर प्रतिबंध के कारण बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा काफी हद तक प्रभावित हो रही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक

मेन्स के लिये

भारत के विकास के बारे में गणना करने हेतु IIP कितना उपयोगी है।

चर्चा में क्यों?

नवीनतम आँकड़े बताते हैं कि इस वर्ष जून माह में भारत के औद्योगिक उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज की गई है, हालाँकि मई माह की तुलना में इस गिरावट की दर अपेक्षाकृत कम रही है, जो कि विनिर्माण गतिविधियों के सामान्यीकरण का संकेत दे रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा जारी आँकड़े बताते हैं कि अप्रैल-जून तिमाही में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में संचयी रूप से बीते वर्ष इसी अवधि की तुलना में 35.9 प्रतिशत का संकुचन हुआ, जबकि वर्ष 2019 की अप्रैल-जून तिमाही में इसमें 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। 
    • आँकड़े बताते हैं कि इस वर्ष अप्रैल-जून तिमाही में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (67.6 प्रतिशत), पूंजीगत वस्तुओं (64.3 प्रतिशत) और विनिर्माण (40.7 प्रतिशत) में सबसे अधिक संकुचन देखने को मिला।
  • उपभोक्ता गैर-टिकाऊ (Consumer Non-Durables) वस्तुओं को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों पर कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और उसके कारण लागू किये गए लॉकडाउन का प्रभाव देखने को मिला है।
  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के अनुसार, जून माह में विनिर्माण क्षेत्र में 17.1 प्रतिशत की कमी देखने को मिली, जबकि इसी वर्ष मई माह में यह 38.4 प्रतिशत था।
  • जून 2020 में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में 35.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि मई माह में यह गिरावट 69.4 प्रतिशत के आस-पास थी।
  • वहीं पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में जून माह में बीते वर्ष जून 2019 की अपेक्षा 36.9 प्रतिशत की कमी देखने को मिली, जबकि मई माह में यह कमी 65.2 प्रतिशत थी।

कारण: 

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुसार, कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनज़र मार्च 2020 के अंत से ही औद्योगिक क्षेत्र के कई संस्थान अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य नहीं कर पा रहे हैं।
  • इसका स्पष्ट प्रभाव लॉकडाउन की अवधि के दौरान औद्योगिक संस्थाओं द्वारा किये जाने वाले उत्पादन पर पड़ा है।

निहितार्थ:

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अपने आधिकारिक दस्तावेज़ में कहा है कि कोरोना वायरस (COVID-19) और उसके बाद के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) संबंधी आँकड़ों की तुलना कोरोना वायरस (COVID-19) से पूर्व के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) संबंधी आँकड़ों से करना न्यायसंगत नहीं होगा, क्योंकि वर्तमान परिस्थितियाँ पूरी तरह से अलग हैं।
  • कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हालाँकि देश में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से आर्थिक गतिविधियों में कुछ बढ़ोतरी देखने को मिली है, किंतु अगस्त माह में इसमें फिर से कमी होने की उम्मीद है, क्योंकि वायरस के बढ़ते प्रसार के कारण देश भर के राज्यों ने अपने-अपने स्तर पर पर स्थानीय लॉकडाउन लागू कर दिया है।
  • विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में जैसे-जैसे स्थितियाँ सामान्य होती जाएंगी, वैसे-वैसे ही औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) और अन्य आर्थिक सूचकांकों में सुधार होता रहेगा।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP)

  • यह सूचकांक अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के विकास का विवरण प्रस्तुत करता है, जैसे कि खनिज खनन, बिजली, विनिर्माण आदि।
    • इसे अर्थव्यवस्था के विनिर्माण क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक संकेतक माना जाता है।
  • वर्तमान में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) की गणना वित्तीय वर्ष 2011-2012 को आधार वर्ष मान कर की जाती है।
  • इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
  • IIP एक समग्र संकेतक है जो कि प्रमुख क्षेत्र (Core Sectors) एवं उपयोग आधारित क्षेत्र के आधार पर आँकड़े उपलब्ध कराता है।

सूचकांक का महत्त्व और प्रयोग

  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) का उपयोग वित्त मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक  (RBI) जैसी सरकारी एजेंसियों और निजी फर्मों तथा विश्लेषकों द्वारा विश्लेषणात्मक उद्देश्यों के लिये किया जाता है।
  • चूँकि 1 वर्ष के प्रोजेक्ट के लिये केवल 1 माह के आँकड़ों को आधार नहीं बनाया जा सकता, इसलिये यह पूरे वर्ष का होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन से बढ़ता आयात

प्रिलिम्स के लिये:

सहेली कार्यक्रम, भारत की आयात-निर्यात नीति  

मेन्स के लिये: 

वर्तमान समय में भारत चीन के मध्य होने वाले आयात-निर्यात में परिवर्तन के कारण  

चर्चा में क्यों?

चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स (General Administration of Customs-GAC) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत के सबसे बड़े व्यापर भागीदारी देश चीन के साथ जून और जुलाई माह के बाद से भारत में चीन से आयातित वस्तुओं में वृद्धि हो रही है।

प्रमुख बिंदु

  • महामारी एवं लॉकडाउन के कारण चीन से भारत का आयात अप्रैल और मई के दोनों माह में 3.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक गिर गया था।
  • जून के माह में आयात 4.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर और जुलाई में 5.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया जो पूर्व-लॉकडाउन स्तर (मार्च माह) जो लगभग 5.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, पर वापस आ गया है।
    • यह मुख्य रूप से चीन से चिकित्सा आपूर्ति के बढ़ते आयात के कारण हुआ है।
    • भारत में चीन विरोधी भावनाओं के वातावरण के बावजूद ऑनलाइन दुकानदार चीनी मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को पसंद कर रहे हैं।
    • अमेज़न के प्राइम डे 2020 बिक्री डेटा के अनुसार, दिग्गज ई-कॉमर्स, वनप्लस, ओप्पो, हुआवेई  ऑनर तथा शाओमी भारत में सबसे अधिक बिकने वाले स्मार्टफोन ब्रांडों में से एक रहे हैं।
  • वर्ष 2020 के सात महीनों के लिये, चीन से भारत का आयात 32.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। हालाँकि अप्रैल और मई में रिकॉर्ड मंदी के कारण यह 24.7% कम रहा है।
  • दोनों देशों के बीच दो-तरफा व्यापार 43.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर  है जो चीन के पक्ष में बना हुआ है। भारतीय निर्यात 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • जुलाई में चीन का कुल निर्यात  7.2% बढ़ा है जो अनुमानों के अनुसार वर्ष दर वर्ष 1.4% नीचे आया है।
  • इसके पीछे प्रमुख कारण चिकित्सा आपूर्ति और घरेलू उपकरणों के निर्यात का बढ़ना रहा है।

स्थानीय उद्यमियों का समर्थन करने हेतु पहल:

  • अमेज़न कारीगर स्टोर:
    • वर्ष 2019 में, 7 अगस्त राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Handloom Day), की पूर्व संध्या पर अमेज़न ने कारीगर स्टोर शुरू करने की घोषणा की जिसमें 55,000 से अधिक उत्पादों का प्रदर्शन किया गया, जिसमें 20 राज्यों के 270 से अधिक कला और शिल्प को शामिल किया गया है।
    • यह भारतीय बुनकरों एवं कारीगरों को ग्राहकों के लिये ‘मेड इन इंडिया ’उत्पादों के प्रदर्शन के लिये सक्षम करेगा तथा भारत की हस्तशिल्प विरासत को प्रमुखता देगा।
  • सहेली कार्यक्रम:
    • नवंबर 2017 में, अमेज़न ने इस कार्यक्रम को भारतीय महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने तथा  देश भर में अपने उत्पादों को बेचने के उद्देश्य से शुरु किया था।
    • महिलाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देना इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य है।
    • इसे गैर-सरकारी सामाजिक सेवा संस्थाओं जैसे कि स्व-रोज़गार महिला उद्यम (Self-Employed Women Enterprise- SEWA) और आवेग सामाजिक उद्यम (Impulse Social Enterprise) के साथ साझेदारी में शुरु किया गया था।
  • अमेज़न लॉन्चपैड:
    • यह बाज़ार के भीतर का बाज़ार है यह मूल्य निर्माण के लिये दो स्तरों पर कार्य करता है पहला- अमेज़न दुकानदार दूसरा आने वाले ब्रांड ।
    • नई कंपनियों को अपने व्यवसाय को स्थापित करने एवं अपने उत्पादों की अधिक उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये समय और मार्गदर्शन प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, जबकि दुकानदार नवीनतम स्टार्टअप के माध्यम से नए उत्पादों तक जल्दी पहुँच का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
    • चूंकि स्टार्टअप के पास सीमित समय और संसाधन होते हैं, इसलिये उन्हें अक्सर अपने उत्पादों को बाज़ार में चलाने के लिये तथा अपने व्यवसाय को ज़मीनी स्तर पर करने के लिये अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है।

महत्त्व:

  • भारत और चीन के बीच COVID-19 महामारी और बढ़ते तनाव को ध्यान में रखते हुए, स्थानीय बाज़ार को बढ़ावा देना तथा अर्थव्यवस्था की आयात पर निर्भरता को कम करने की ज़रूरत है।
  • स्थानीय उद्यमियों और प्रतिभा को बढ़ावा देने से, उनके पेशे और अधिक लाभदायक होंगे जो उन्हें बेहतर जीवन जीने में सक्षम बनाता है।
  • कम आयात और मज़बूत टिकाऊ घरेलू बाज़ार से देश को भी लाभ होगा, जिससे अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना एवं लॉकडाउन

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना,COVID-19

मेन्स के लिये:

लॉकडाउन के कारण प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना एवं अन्य स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना पॉलिसी ब्रिफ (8): पीएमजेएवाई अंडर लॉकडाउन: एविडेंस ऑन यूटिलाइज़ेशन ट्रेंड’ (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana Policy Brief (8): PMJAY Under Lockdown :Evidence on Utilization Trends) के अनुसार, देश भर में लॉकडाउन के कारण प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana) का लाभ उठाने वाले मरीज़ों की देखभाल पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस विश्लेषण में 1 जनवरी से 2 जून 2020 तक 22 सप्ताह के डेटा को शामिल किया गया । संपूर्ण  देश में  25 मार्च से लॉकडाउनको शुरू हुआ जो 1 जून तक था।
  • यह विश्लेषण प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना ट्रांज़ेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (Transaction Management System- TMS) से लिये गए आँकड़ों पर आधारित है।
  • इस प्रक्रिया में, नियोजित सर्ज़री जैसे-मोतियाबिंद के ऑपरेशन और संयुक्त प्रतिस्थापन (Joint Replacements) में 90% से अधिक की कमी देखी गई है , जबकि हेमोडायलिसिस (जिसे डायलिसिस भी कहा जाता है जो रक्त को शुद्ध करने की एक प्रक्रिया है) में केवल 20% की कमी आई है।
  • कुल मिलाकर, लॉकडाउन के 10 सप्ताह के दौरान औसत साप्ताहिक दावा परिणाम (Weekly Claim Volumes) लॉकडाउन से पहले 12 सप्ताह के साप्ताहिक औसत से 51% कम रहा है।
  • इस योजना के लाभार्थियों की संख्या में असम में सबसे अधिक कमी (75% से अधिक) देखी गई, उसके बाद महाराष्ट्र और बिहार में, जबकि उत्तराखंड, पंजाब और केरल में बहुत कम गिरावट, लगभग 25% या उससे कम देखी गई है।
  • बच्चों के जन्म तथा ऑन्कोलॉजी (ट्यूमर का अध्ययन और उपचार) के लिये अस्पतालों में भर्ती होने वालों की संख्या में महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई है।
    • नवजात शिशुओं के संदर्भ में 24% की गिरावट देखी गई है।
    • नवजात शिशुओं की देखभाल के संदर्भ में सार्वजनिक से निजी अस्पतालों में थोड़ा परिवर्तन देखा गया है जिसके तहत तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों में सर्वाधिक परिवर्तन रहा है।
    • संपूर्ण देश के कुछ राज्यों में ऑन्कोलॉजी के परिणामों (Oncology Volumes) में 64% की कमी देखी गई है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र जो PMJAY के तहत ऑन्कोलॉजी देखभाल में एक छोटी भूमिका निभाता है, जिसमे महाराष्ट्र में 90% एवं तमिलनाडु में 65% की कमी आई है।
    • हाँलाकि, लॉकडाउन के दौरान घर पर ही रहकर चिकित्सा सुविधाओं का लाभ प्राप्त करना या चिकित्सा सुविधाओं तक पहुँच कुछ अपवादों में से एक थी फिर भी इस अवधि में देखभाल एवं स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित प्रावधान निम्न कारणों से काफी प्रभावित हुए:

आपूर्ति पक्ष:

  • अस्पतालों को COVID-19 महामारी के लिये पहले से ही तैयार किया गया है जिसके चलते Non COVID-19 मामलों के लिये अस्पतालों में कम चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध रही हैं।
  • निजी अस्पतालों द्वारा इस भय से कि स्वास्थ्य कर्मियों के बीच संक्रमण न फैल जाए जिसके कारण सेवाओं को कम किया गया है।

मांग पक्ष:

  • किसी अस्पताल में संक्रमण के डर से PMJAY लाभार्थियों को देरी या उपचार में देरी हो सकती है।
  • वे सार्वजनिक परिवहन बंद होने तथा उनकी उपलब्धता की कमी के कारण अस्पतालों तक पहुँचने में असमर्थ हो सकते हैं।
  • आर्थिक संकट देखभाल की मांग से संबंधित वित्तीय विचारों को प्रभावित कर सकता है।
    • स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि प्रमुख स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर कम से कम संभव प्रभाव सुनिश्चित करना एक सतत् चुनौती होगी जिसे निरंतर निगरानी की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


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