संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण मंच में प्लास्टिक पर चर्चा
चर्चा में क्यों?
पृथ्वी के पर्यावरणीय संकट पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण मंच की पाँच दिवसीय वार्षिक बैठक का आयोजन नैरोबी में किया जा रहा है जिसमें दुनिया भर के देशों से हज़ारों प्रतिनिधि, व्यापारी, नेता और प्रचारक भाग ले रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- इस बैठक में दुनिया भर के देशों ने प्लास्टिक कचरे, दीर्घकालिक प्रदूषण के स्रोत और महासागर की खाद्य श्रृंखला को हानि पहुँचाने के खिलाफ प्रदूषण को रोकने के लिये अपनी प्रतिबद्धता तय की।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अलग-अलग देशों को अपने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार प्लास्टिक के उत्पादन को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करना है, जिसमें 2015 के पेरिस समझौते से प्रेरित एक लक्ष्य के अंतर्गत वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की स्वैच्छिक कटौती करना है।
- इस बैठक में पहली बार संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता एवं सहमति बनाने का प्रयास किया जा रहा है जिसके तहत बड़े पैमाने पर प्लास्टिक और रासायनिक कचरे से पारिस्थितिक तंत्र को होने वाले खतरे की चेतावनी के रूप में शामिल किया जा सकता है।
- वर्तमान में दुनिया भर में प्रतिवर्ष 300 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है तथा महासागरों में कम-से-कम पाँच ट्रिलियन प्लास्टिक के टुकड़े तैर रहे हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक्स सबसे गहरी समुद्री खाइयों से लेकर पृथ्वी की सबसे ऊँची चोटियों तक पाया जाते हैं, साथ ही प्लास्टिक की खपत साल-दर-साल बढ़ रही है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
- रिपोर्ट के अनुसार, प्लास्टिक टिकाऊ, लचीला और हल्का होता है, इसका निपटान करने के बजाय यथासंभव लंबे समय के लिये इसे सर्वश्रेष्ठ बनाकर सकारात्मक रूप में उपयोग करना चाहिये।
- इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिकूल रिपोर्ट आई है, जिसमें स्पष्ट रूप से मानव जाति द्वारा लापरवाही से किये जाने वाले उपयोग के कारण मानव जाति को ही नुकसान पहुँचाने को संदर्भित किया गया है।
- हालाँकि जलवायु, पर्यावरण, अपशिष्ट ये सभी चीजें परस्पर एक-दुसरे से जुड़ी हुई हैं।
- एक अध्ययन के अनुसार, 1995 के बाद से कृषि, वनों की कटाई और प्रदूषण के माध्यम से पारिस्थितिक तंत्र के नुकसान की लागत $ 20 ट्रिलियन से कहीं ज़्यादा पाई गई।
स्रोत - द हिंदू
स्पार्क पहल के तहत IIT-मंडी के प्रस्तावों का चयन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘अकादमिक और अनुसंधान सहयोग संवर्द्धन योजना’ (Scheme for Promotion of Academic and Research Collaboration-SPARC) पहल के तहत IIT-मंडी के 7 अनुसंधान प्रस्तावों का चयन किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- ये अनुसंधान परियोजनाएँ निम्नलिखित क्षेत्रों को शामिल करती हैं-
♦ ऊर्जा और सतत् जल उपलब्धता,
♦ उन्नत सेंसर, इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार,
♦ संक्रामक रोग और नैदानिक अनुसंधान,
♦ मानविकी और सामाजिक विज्ञान,
♦ नैनो प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग,
♦ उन्नत कार्यक्षमता और मेटा मैटेरियल
♦ बेसिक साइंसेज़
- परियोजना के भागीदार देशों हेतु नोडल संस्थानों (भारत से ही) को चिह्नित किया गया है।
♦ IIT मंडी जर्मनी के लिये नोडल संस्थान होगा।
क्या होंगे लाभ?
- स्पार्क (SPARC) द्वारा दिया जाने वाला अनुदान अमेरिका, फ्राँस, जर्मनी, ब्रिटेन और ताइवान (रिपब्लिक ऑफ चाइना) जैसे देशों के अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ IIT-मंडी को जोड़ने में मदद करने के साथ-साथ संयुक्त अनुसंधान करने हेतु दुनिया भर के शोधकर्ताओं की मदद भी करेगा।
- IIT-मंडी इन क्षेत्रों में छात्रों को अल्पावधि पाठ्यक्रम भी प्रदान कर सकेगा।
स्पार्क (SPARC)
- ‘स्पार्क’ का लक्ष्य भारतीय संस्थानों और विश्व के सर्वोत्तम संस्थानों के बीच अकादमिक एवं अनुसंधान सहयोग को सुगम बनाकर भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान परिदृश्य को बेहतर बनाना है।
- इस योजना के तहत 600 संयुक्त शोध प्रस्ताव दो वर्षों के लिये दिये जाएंगे, ताकि कक्षा संकाय में सर्वोत्तम माने जाने वाले भारतीय अनुसंधान समूहों और विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालयों के प्रख्यात अनुसंधान समूहों के बीच उन क्षेत्रों में शोध संबंधी सुदृढ़ सहयोग संभव हो सके।
- देश के लिये उभरती इसकी प्रासंगिकता और अहमियत के आधार पर ‘स्पार्क’ के तहत सहयोग हेतु पाँच महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों (मौलिक शोध, प्रभाव से जुड़े उभरते क्षेत्र, सामंजस्य, अमल-उन्मुख अनुसंधान और नवाचार प्रेरित) के साथ-साथ प्रत्येक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के अंतर्गत उप-विषय से संबंधित क्षेत्रों की भी पहचान की गई है।
- समाज की प्रगति के लिये सामाजिक विज्ञान में अनुसंधान अनिवार्य है और इस कार्यक्रम के अंतर्गत किये गए अनुसंधान का इस्तेमाल उन समस्याओं के समाधान के लिये किया जाएगा, जिनका सामना समाज को करना पड़ रहा है।
पृष्ठभूमि
- भारत सरकार ने अगस्त 2018 में 418 करोड़ रुपए की कुल लागत से 31 मार्च, 2020 तक कार्यान्वयन के लिये ‘अकादमिक और अनुसंधान सहयोग के संवर्द्धन हेतु योजना (स्पार्क)’ को मंज़ूरी दी थी।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर ‘स्पार्क’ के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय समन्वयकारी संस्थान है।
बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)
- परियोजना के दौरान विकसित होने वाले IPR का निर्धारण भाग लेने वाले संस्थानों के मानदंडों के अनुसार किया जाएगा।
- भारतीय संस्थानों को पेटेंट/रॉयल्टी के द्वारा लाभ प्राप्त होगा।
- सभी विवादों का समाधान भारतीय क्षेत्राधिकार में होगा। किसी भी विशेष भटकाव का समाधान MHRD द्वारा स्पार्क सेल के माध्यम से किया जाएगा और अनुमोदन का अधिकार शीर्ष समिति के पास होगा।
स्रोत- द हिंदू बिज़नेस लाइन
सरकार द्वारा आयात शुल्क में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने अप्रैल 2020 से देश में आयात किये जाने वाले इलेक्ट्रिक/विद्युत यात्री वाहनों (Electric Passenger Vehicles) के कुछ पुर्जों में बुनियादी सीमा शुल्क में वृद्धि हेतु अधिसूचना जारी की है।
गौरतलब है कि सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles) के घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह अधिसूचना जारी की है।
प्रमुख बिंदु
- यह अधिसूचना चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (Phased Manufacturing Programme-PMP) के तहत रोड-मैप का एक हिस्सा है।
- वर्तमान में, इलेक्ट्रिक बसों, यात्री इलेक्ट्रिक वाहनों, इलेक्ट्रिक दोपहिया, तिपहिया और इलेक्ट्रिक ट्रकों में पूरी तरह से नॉक-डाउन किट (Knock-Down Kits) पर मूल आयात शुल्क 10 प्रतिशत है, जो अप्रैल 2020 से बढ़ाकर 15 प्रतिशत किया जाएगा।
- अप्रैल 2021 के बाद विनिर्माण में उपयोग किये जाने वाले पुर्जों जैसे AC या DC चार्जर, मोटर और मोटर नियंत्रक, पॉवर कंट्रोल यूनिट पर सीमा शुल्क शून्य से बढ़ाकर 15% कर दी जाएगी।
इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम
- इस चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम का उद्देश्य देश के भीतर मूल्य संवर्धन और क्षमता निर्माण में तीव्र वृद्धि करना है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण में प्रयुक्त होने वाली बैटरी के आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी करते हुए अप्रैल 2021 के बाद 5 से 15 प्रतिशत कर दिया जाएगा।
- केंद्र सरकार FAME-II जैसी योजनाओं के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों के बड़े पैमाने पर अंगीकरण को भी बढ़ावा दे रही है।
स्रोत - इकोनॉमिक टाइम्स
हड़प्पा सभ्यता
चर्चा में क्यों?
केरल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं और छात्रों के एक समूह द्वारा कच्छ (गुजरात) में किये गए पुरातात्विक उत्खनन ने हड़प्पा सभ्यता के शुरुआती चरण के दौरान प्रचलित अंत्येष्टि रिवाजों पर प्रकाश डाला है।
प्रमुख बिंदु
- कच्छ के खटिया गाँव में इस 47 सदस्यीय दल ने एक-डेढ़ महीने के लिये डेरा डाला और कब्रिस्तान जैसी जगह, जहाँ हड़प्पा सभ्यता के लोग शव को दफनाते थे, से कंकालों के नमूनों का अध्ययन किया।
- उन्होंने अलग-अलग दिखने वाली 300 कब्रों में से 26 की खुदाई की। इन सभी आयताकार कब्रों को भिन्न-भिन्न पत्थरों का उपयोग करके बनाया गया था तथा कंकालों को एक विशिष्ट तरीके से रखा गया था।
- शवों के सिर पूर्व दिशा की ओर थे और पश्चिम दिशा में पैरों के बगल में, पुरातत्वविदों को मिट्टी के बर्तन और अन्य कलाकृतियाँ मिली, जिसमें शंख-चूड़ी, पत्थर और टेराकोटा से बने मोती, कई लिथिक उपकरण और पीसने वाले पत्थर शामिल थे।
- शव के बगल में सामान संभवतः मृत्यु के पश्चात् जीवन की अवधारणा को प्रस्तुत करता है।
- खुदाई की गई 26 कब्रों में से सबसे बड़ी 6.9 मीटर लंबी और सबसे छोटी 1.2 मीटर लंबी थी।
- उनमें से अधिकांश में मानव के कंकाल के अवशेष विघटित पाए गए। मनुष्यों के साथ जानवरों के कंकालों की उपस्थिति भी कुछ कब्रों में दर्ज की गई थी।
- रोचक बात यह है कि शोधकर्ताओं ने दफनाने के तरीके को असमान पाया। प्राथमिक दफन और माध्यमिक दफन (जब प्राथमिक दफन के अवशेषों को किसी अन्य कब्र में ले जायाजाए) के उदाहरण पाए गए।
- उत्खनन टीम एक पूर्ण मानव कंकाल को प्राप्त करने में कामयाब रही, जिसे महाराजा स्याजिराव विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य कांति परमार की सहायता से प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी एक बॉक्स में रखा गया था।
- बरामद कंकाल और कलाकृतियों को केरल विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में प्रदर्शन के लिये रखा जाएगा।
- अन्य कंकालों को विभिन्न प्रयोगशालाओं में आयु, लिंग, परिस्थितियों को समझने के लिये तथा डीएनए की मुख्य विशेषताओं के परीक्षण लिये भेजा जाएगा।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (12 March)
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये संयुक्त रूप से बांग्लादेश में कई विकास परियोजनाओं का उदघाटन किया। इन परियोजनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण है पानी साफ करने वाले प्लांट्स जो बांग्लादेश के हज़ारों घरों में शुद्ध पेयजल पहुँचाएंगे। इसके अलावा, कई सामुदायिक अस्पतालों का उदघाटन किया गया, जिनसे लगभग 2 लाख लोग लाभान्वित होंगे। इनके अलावा भारत से बांग्लादेश को बसों और ट्रकों की आपूर्ति की जाएगी, जिससे वहाँ सस्ता परिवहन उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।
- भारत सरकार ने तेल एवं गैस खोज के क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये इससे जुड़ी नीति में अहम बदलाव किये हैं। अब कम खोज वाले ब्लॉक में निवेशक द्वारा तेल एवं गैस उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में उससे होने वाले लाभ में सरकार को हिस्सा नहीं देना होगा। सभी अवसादी बेसिनों के लिये एक समान अनुबंध व्यवस्था की ढाई दशक पुरानी नीति में बदलाव करते हुए नई नीति में अलग-अलग क्षेत्रों के लिये अलग-अलग नियम बनाए गए हैं। इसके तहत बेसिन की स्थिति पर विचार किये बिना उत्पादकों को भविष्य में बोली दौर में तेल एवं गैस के लिये विपणन और कीमत के मामले में आज़ादी होगी। इसके अलावा, भविष्य में सभी तेल एवं गैस क्षेत्र या ब्लॉक का आवंटन प्राथमिक रूप से खोज कार्यों को लेकर जताई गई प्रतिबद्धता के आधार पर किया जाएगा। नए नियमों के तहत कंपनियों को श्रेणी-1 के अंतर्गत आने वाले अवसादी बेसिन से होने वाली आय का एक हिस्सा सरकार को देना होगा। इसमें कृष्णा गोदावरी, मुंबई अपतटीय, राजस्थान तथा असम शामिल हैं, जहाँ वाणिज्यिक उत्पादन पहले से हो रहा है। वहीं कम खोज वाले श्रेणी-2 और 3 के बेसिन में तेल एवं प्राकृतिक गैस पर केवल मौजूदा दर पर रायल्टी ली जाएगी।
- भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने 5 से 7 मार्च तक पराग्वे का दौरा किया। उपराष्ट्रपति ने पराग्वे के राष्ट्रपति मारियो अब्दो बेनितेज़, उपराष्ट्रपति ह्यूगो वेलाज़क्वेज़ और सीनेट के अध्यक्ष सिल्वियो ओवेलर के साथ मुलाकात की तथा भारत-पराग्वे बिज़नेस फोरम को भी संबोधित किया। पराग्वे ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर एक विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया। इसके अलावा, पराग्वे की राजनयिक और दूतावास अकादमी तथा भारत के विदेश सेवा संस्थान के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। इसके बाद उपराष्ट्रपति ने 7 से 9 मार्च तक कोस्टा रिका का दौरा किया और वहाँ के राष्ट्रपति एच.ई. कार्लोस अल्वाराडो क्यूसादा से मुलाकात की। दोनों देशों ने दो महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर भी किये। इनमें से एक समझौता भारत और कोस्टा रिका के बीच डिप्लोमैटिक और राजनयिक पासपोर्ट धारकों के लिये वीज़ा की आवश्यकता को समाप्त करने के लिये किया गया तथा दूसरा समझौता जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग करने के लिये किया गया। आपको बता दें कि यह भारत की ओर से इन दोनों देशों की पहली उच्च-स्तरीय यात्रा थी।
- राजस्थान सरकार ने जवाबदेही कानून को अध्यादेश के ज़रिये मंज़ूरी दे दी है। अब सरकारी अधिकारियों को बताना होगा कि फाइल क्यों रुकी ? पेंशन जारी क्यों नहीं हुई? सेवा में विलंब क्यों हुआ? गली-मोहल्ले में बिजली गुल क्यों हुई?आदि...इत्यादि। इस तरह के जवाबदेही कानून को धरातल पर उतारने वाला राजस्थान संभवतया देश का पहला राज्य है। राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के बाद किसान कर्ज़ माफी, बेरोज़गारी भत्ता, निःशुल्क दवा योजना और वृद्धावस्था एवं विकलांगों की पेंशन में बढ़ोतरी के बाद अब जवाबदेही कानून लाया गया है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने जवाबदेही कानून के प्रावधानों की समीक्षा के लिये उच्च अधिकारियों की एक समिति का गठन किया था । इसके बाद राज्य के प्रशासनिक सुधार विभाग ने जनता से सुझाव मांगे थे।
- महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में अटल आहार योजना शुरु की है। इस योजना के प्रथम चरण में लगभग 20 हज़ार श्रमिकों को 5 रुपए की दर से भरपेट भोजन उपलब्ध कराया जाएगा। इस योजना का मुख्य उद्देश्य निर्माण कार्यों में लगे श्रमिकों को बेहद कम खर्च में पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है। इस योजना का लाभ लेने के लिये श्रमिक होने के साथ राज्य का स्थायी निवासी होना भी ज़रूरी है। निर्माण कार्यों में लगे श्रमिकों को उनके कार्यस्थल पर भोजन उपलब्ध कराया जाएगा और इसके लिये आवेदक की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होना ज़रूरी है।
- उत्तराखंड में मुख्यमंत्री आँचल अमृत योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत सरकार आँगनवाड़ी केंद्रों में पढ़ने वाले बच्चों को सप्ताह में दो बार मुफ्त दूध (100 मिली.) प्रदान करेगी। इस पहल के माध्यम से लगभग 2.5 लाख बच्चों को उचित पोषण मिलेगा जिससे कुपोषण के खतरे को रोकने में मदद मिलेगी। उत्तराखंड में लगभग 20 हज़ार आँगनवाड़ी केंद्र हैं और इन केंद्रों पर 3 से 6 साल की उम्र के बच्चों को मुफ्त दूध मिलेगा। इस अभियान से आँगनवाड़ी केंद्रों में पढ़ रहे कुपोषित बच्चों को आगामी वर्षों में उचित पोषण प्रदान किया जाएगा। आँगनवाड़ी केंद्रों में लगभग 2.5 लाख से अधिक बच्चे पढ़ने आते हैं और इनमें से अधिकांश समाज के वंचित वर्गों से आते हैं।
- जापानी वास्तुकार अराता इसोजाकी को 2019 का प्रित्ज़कर आर्किटेक्चर प्राइज़ (Pritzker Architecture Prize) देने का एलान किया गया है। लगभग छह दशकों से इस क्षेत्र में कार्यरत अराता इसोजाकी ने एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, मध्य-पूर्व, ऑस्ट्रेलिया में कई बेहतरीन भवनों का आर्किटेक्चर तैयार किया है। वह आठवें जापानी आर्किटेक्ट हैं जिन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। फ्राँस के शैटॉ डि वर्सेल्स में दिये जाने वाले इस पुरस्कार के तहत एक लाख डॉलर की धनराशि और ब्रोंज मैडल प्रदान किया जाता है। 1979 में हयात फाउंडेशन द्वारा स्थापित किया गया प्रित्ज़कर एनुअल प्राइज़ वास्तुकला के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति को दिया जाता है।
- जीव विज्ञानियों ने इंडोनेशिया के एक द्वीप में बीटल्स (Beetles) की 103 नई प्रजातियों की खोज की है। इनके नाम जीव विज्ञानियों और ग्रीक पौराणिक पात्रों के नाम पर तो रखे ही गए हैं, साथ ही इनमें से एक का नाम स्टारवार्स के कैरेक्टर ‘योडा’ के नाम पर रखा गया है। कुछ बीटल्स के नाम फ्रेंच कॉमिक्स ‘एडवेंचर ऑफ एस्टेरिक्स’ के पात्रों के नाम पर रखे गए हैं। इन बीटल्स की खोज इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर हुई, जो अपने रहस्यपूर्ण जीवों के लिये दुनियाभर में जाना जाता है। अब तक इस प्रजाति (जीनस ट्रिगोनोप्टेरस) के केवल एक कीट के बारे में जानकारी थी।