डेली न्यूज़ (12 Feb, 2019)



राजस्थान पंचायत चुनावों में शिक्षा मानदंड खत्म

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान विधानसभा ने दो विधेयकों को पारित किया हैं जिनमें पंचायत और नगर निर्वाचन में उम्मीदवारी हेतु न्यूनतम शिक्षा मानदंड को समाप्त करने की कोशिश की गई है। गौरतलब है कि वर्तमान राजस्थान सरकार ने सत्ता में आते ही न्यूनतम शिक्षा मानदंड को खत्म करने की घोषणा की थी।

प्रमुख बिंदु

  • सदन ने निम्नलिखित विधेयक ध्वनिमत से पारित किये-

♦ राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) विधेयक, 2019
♦ राजस्थान नगर पालिका (संशोधन) विधेयक, 2019

  • पंचायतों और नगर निकायों के चुनाव लड़ने हेतु आवश्यक न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के मानदंड को पिछली सरकार द्वारा निर्धारित किया गया था। इस मानदंड के अनुसार-

♦ ज़िला परिषद या पंचायत चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवार की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता माध्यमिक स्तर की (दसवीं कक्षा) होनी चाहिये।
♦ सरपंच का चुनाव लड़ने के लिये सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार को आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होना चाहिये।
♦ जबकि सरपंच का चुनाव लड़ने के लिये एससी/एसटी श्रेणी के उम्मीदवार को पाँचवीं कक्षा उत्तीर्ण होना चाहिये।

  • गौरतलब है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किये जा चुके सरपंच भी अधिनियम के पिछले प्रावधानों की वज़ह से चुनाव में अयोग्य घोषित हो गए थे।

क्या रही है बहस?

  • न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के मानदंड पर बहस के समय सदन में यह भी तर्क दिया गया कि अधिनियम का कथित प्रावधान संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है क्योंकि समाज को शिक्षा के आधार पर विभाजित नहीं किया जा सकता है।
  • 1928 में साइमन कमीशन को दिये गए ज्ञापन में भारतीय संविधान के जनक बी.आर. अंबेडकर ने भी कहा था, “जो लोग साक्षरता को मताधिकार हेतु परीक्षण के रूप में देखते हैं और इसे एक शर्त के रूप में लागू करने पर ज़ोर देते हैं, मेरी राय में वे दो गलतियाँ करते हैं। पहली गलती, उनका यह विश्वास कि एक अनपढ़ व्यक्ति आवश्यक रूप से मूर्ख होता है। उनकी दूसरी गलती यह मानने में है कि साक्षरता किसी व्यक्ति को आवश्यक रूप से निरक्षर व्यक्ति की तुलना में उच्च स्तर का बुद्धिमान या ज्ञानी बनाती है।”
  • किसी अच्छे राजनेता की परिभाषा अत्यधिक व्यक्तिपरक होती है और किसी व्यक्ति से अपेक्षित गुण भी बहुत अस्पष्ट होते हैं।
  • यदि विभिन्न लोगों से राजनेताओं के अपेक्षित गुणों के बारे में पूछा जाए तो विभिन्न उत्तर प्राप्त होते हैं। इन उत्तरों में से ईमानदारी, विश्वसनीयता, आम लोगों के साथ जुड़ने की क्षमता और संकटों से निपटने की ताकत जैसे गुण सबसे अधिक होते हैं। हालाँकि, क्या यह मानने का कोई कारण है कि आधुनिक, शिक्षित राजनेता बेहतर नेता होंगे, खासकर स्थानीय स्तर पर?

आगे की राह

एक तरफ कई लोगों का यह मानना है कि हालिया निर्णय कई मायनों में स्वागत योग्य है, जबकि वहीं दूसरी तरफ, कई लोग पंचायत चुनावों हेतु न्यूनतम शैक्षणिक मानदंड जैसे नियमों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं। किसी भी देश के राजनेता उस देश के समाज के प्रतिबिंब होते हैं। जैसा कि ‘व्हेन क्राइम पे: मनी एंड मसल इन इंडियन पॉलिटिक्स’ (When Crime Pays: Money And Muscle In Indian Politics by Milan Vaishnav) नामक पुस्तक में लिखा है, “किसी ऐसे देश में जहाँ आपराधिकता को एक चुनावी संपत्ति के रूप में देखा जाता हो, वहाँ लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का खंडन करने की बजाय अपराधियों द्वारा शासित होने से इनकार किया जाना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू, लाइव मिंट


विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन- 2019

चर्चा में क्यों?

नई दिल्ली में विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन- 2019 (World Sustainable Development Summit- 2019) का आयोजन किया जा रहा है।

sustainable


महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस शिखर सम्मेलन का आयोजन भारत के अग्रणी विचार मंच ऊर्जा और संसाधन संस्थान (The Energy and Resources Institute-TERI) द्वारा किया जा रहा है।
  • इस वर्ष TERI ने फिजी में सतत् विकास के लिये फिजी के प्रधानमंत्री, फ्रैंक बैनीमारामा (Frank Bainimarama) को सतत् विकास नेतृत्व पुरस्कार 2019 (Sustainable Development Leadership Award 2019) से सम्मानित किया है।
  • इस शिखर सम्मेलन की थीम है- “Attaining the 2030 Agenda: delivering on our promise.”
  • WSDS 2019 जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के सामने आने वाली कुछ प्रमुख चुनौतियों का सामना करने के लिये एक्शन फ्रेमवर्क बनाने की मांग करता है। इस एक्शन फ्रेमवर्क में स्वच्छ महासागर, परिवहन और गतिशीलता, टिकाऊ कृषि, जलवायु वित्त और ऊर्जा संक्रमण शामिल हैं।
  • इसका मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने के मार्ग में आने वाली प्रणालीगत चुनौतियों, यथा- विकास हेतु वित्तपोषण, नवीकरणीय ऊर्जा, स्थायी मूल्य श्रृंखला और अन्य दूरगामी चुनौतियों का तेज़ी से समाधान करना है।
  • विश्व भर के नीति निर्माताओं शोधकर्त्ताओं, विचारकों, राजनयिकों और कंपनियों सहित 2000 से अधिक प्रतिनिधि इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।

सम्मेलन के बारे में

  • विश्व सतत् विकास शिखर सम्मेलन (WSDS) TERI का एक प्रमुख वार्षिक सम्मेलन है।
  • अपनी 17 वर्षों की अवधि में यह सम्मेलन एक ही मंच पर वैश्विक नेताओं और विभिन्न शोधकर्त्ताओं के एकत्रित होने और व्यापक महत्त्व वाले जलवायु संबंधी मुद्दों पर विचार-विमर्श करने का एक प्रमुख केंद्र बन गया है।
  • WSDS ने दिल्ली सतत् विकास शिखर सम्मेलन (Delhi Sustainable Development Summit-DSDS) की विरासत को जारी रखा है जिसकी शुरुआत वर्ष 2001 में 'सतत् विकास' को विश्व स्तर पर साझा लक्ष्य बनाने के उद्देश्य से की गई थी।

ऊर्जा और संसाधन संस्थान (The Energy and Resources Institute-TERI)

  • ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI) अनुसंधान, नीति, परामर्श और कार्यान्वयन क्षमताओं से युक्त एक स्वतंत्र, बहुआयामी संगठन है।

  • पिछले चार दशकों में TERI ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन और स्थिरता के क्षेत्र में एक प्रमुख विचार मंच और अनुसंधान संस्थान के रूप में उभरकर सामने आया है।
  • 1974 में स्थापित इस संस्थान को पूर्व में टाटा ऊर्जा अनुसंधान संस्थान के नाम से जाना जाता था।

एजेंडा 2030 के तहत संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य

संयुक्त राष्ट्र के इन महत्त्वाकांक्षी सतत् विकास लक्ष्यों का उद्देश्य वर्ष 2030 तक गरीबी और भूख को समाप्त करना तथा लिंग समानता सुनिश्चित करने के अलावा सभी को सम्मानित जीवन जीने का अवसर उपलब्ध कराना है।

  1. गरीबी के सभी रूपों की पूरे विश्व से समाप्ति।

  2. भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण तथा टिकाऊ कृषि को बढ़ावा।
  3. सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा।

  4. समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना।
  5. लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना।
  6. सभी के लिये स्वच्छता और पानी का सतत् प्रबंधन सुनिश्चित करना।
  7. सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  8. सभी के लिये निरंतर समावेशी और सतत् आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोज़गार और बेहतर कार्य को बढ़ावा देना।
  9. लचीले बुनियादी ढाँचे, समावेशी और सतत् औद्योगीकरण को बढ़ावा।
  10. देशों के बीच और देश के भीतर असमानता को कम करना।
  11. सुरक्षित, लचीले और टिकाऊ शहर तथा मानव बस्तियों का निर्माण।
  12. स्थायी खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित करना।
  13. जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई करना।
  14. स्थायी सतत् विकास के लिये महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग।
  15. सतत् उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों, जंगलों का संरक्षण तथा भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना।
  16. सतत् विकास के लिये शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को बढ़ावा देने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेह बनाना ताकि सभी के लिये न्याय सुनिश्चित हो सके।
  17. सतत् विकास के लिये वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्त कार्यान्वयन हेतु साधनों को मज़बूत बनाना।

(टीम दृष्टि इनपुट)


स्रोत- TERI वेबसाइट


नई सेंटीपीड प्रजातियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रजातियों के बीच संबंधों का अध्ययन करने के लिये जीवाश्म और उन्नत आनुवंशिक विधियों (Fossils and Advanced Genetic Methods) का प्रयोग किया गया जिसमें यह तथ्य सामने आया कि महाद्वीपीय विस्थापन (Continental Drift) के कारण उष्णकटिबंधीय सेंटीपीड/कनखजूरा की नई प्रजातियों का जन्म हुआ है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • जीवाश्म एवं उन्नत आनुवंशिक विधि (Fossils and Advanced Genetic Method) से किये गए अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले महाद्वीपीय विस्थापन (Continental Drift) ने दुनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली एथेस्टिग्मस सेंटीपीड्स (Ethmostigmus Centipedes) की कई प्रजातियों की उत्पत्ति की।
  • BMC इवोल्यूशनरी बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय प्रायद्वीप में ये सेंटीपीड्स प्रजातियाँ सबसे पहले दक्षिणी और मध्य पश्चिमी घाट में उत्पन्न हुई और फिर धीरे-धीरे यहाँ की सीमाओं में फैल गई।

प्रजातियों की विविधता

  • भारत में मूलतः 6 प्रकार के बड़े आकार वाले एथेस्टिगमस सेंटीपीड्स की प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें पश्चिमी घाट में चार, पूर्वी घाट में एक और उत्तर-पूर्व भारत में एक पाया जाता है।
  • एथेस्टिग्मस सेंटीपीड की अन्य प्रजातियाँ अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं।

प्रायद्वीपीय भारत और महाद्वीपों में प्रजातियों की विविधता में वितरण क्या बताता है?

  • प्रायद्वीपीय भारत और महाद्वीपों में प्रजातियों की विविधता के वितरण का पता लगाने के लिये वैज्ञानिकों ने इनकी आनुवंशिकी पर अध्ययन किया।
  • इन्होंने पहले के प्रकाशित अध्ययनों से एथेस्टिग्मस सेंटीपीड के आनुवंशिक आँकड़ों का उपयोग करते हुए इन प्रजातियों के लिये एक 'टाइम-ट्री' (Time-Tree) का निर्माण किया जो प्रजातियों के एक-दूसरे के साथ संबंधों को दर्शाता है।
  • इस अध्ययन में अन्य नई प्रजातियाँ सामने आईं जिसमें से नौ प्रजातियाँ प्रायद्वीपीय भारत के बाहर अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती हैं।
  • वैज्ञानिकों ने सेंटीपीड के डीएनए की जाँच करने के लिये तीन जीवाश्म सेंटीपीड का इस्तेमाल किया, जिससे इन्हें सेंटीपीड के पाए जाने के अनुमानित स्थान का पता चला, जो कि प्रजाति की उत्पत्ति के बारे में बतलाता है।

सेंटीपीड की उत्पत्ति

  • आनुवंशिक अध्ययन से पता चलता है कि सेंटीपीड के एक पूर्वज द्वारा गोंडवाना (एक बड़ा महाद्वीप जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और प्रायद्वीपीय भारत सहित एकल भूभाग शामिल है) में सभी एथेस्टिगमस सेंटीपीड की उत्पत्ति हुई।
  • बाद में गोंडवाना में विस्थापन के कारण इसके अलग होकर कई भूखंडो के रूप में अलग-अलग दिशाओं में जाने से एथेस्टिग्मस के प्रारंभिक विकासवादी इतिहास को आकार मिला।

भारतीय सेंटीपीड

Centipede

  • प्रायद्वीपीय भारत में अद्भुत प्रकार का एथेस्टिगमस पाया गया है।
  • इसका विकास उस समय शुरू हुआ जब प्रायद्वीपीय भारत दक्षिण एशिया की ओर विस्थापित हो रहा था।
  • लगभग 72 मिलियन साल पहले एथेस्टिग्मस (ई. ट्रिस्टिस) का विस्तार दक्षिणी और मध्य पश्चिमी घाटों में शुरू हुआ था। इसके बाद इसका विस्तार पूर्वी घाटों एवं दक्षिणी पश्चिमी घाटों तक फैल गया। एथेस्टिग्मस सेंटीपीड्स दक्षिण-मध्य घाटों से भी उत्तरी घाटों तक पहुँचे और बाद में फिर से वहाँ से वापस केंद्रीय घाटों में पहुंच गए।
  • वर्तमान में सभी भारतीय एथेस्टिग्मस सेंटीपीड केवल दलदली भूमि वाले जंगलों में रहते हैं। इन जंगलों का निर्माण इनके फैलाव को बढ़ा सकता है।

BMC इवोल्यूशनरी बायोलॉजी

  • 2001 में स्थापित BMC इवोल्यूशनरी बायोलॉजी, बायोमेड सेंट्रल द्वारा प्रकाशित BMC पत्रिकाओं की एक श्रृंखला का हिस्सा है।
  • BMC इवोल्यूशनरी बायोलॉजी सहकर्मियों की एक समीक्षात्मक वैज्ञानिक पत्रिका है, जिसमें विकासवादी जीवविज्ञान के सभी क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
  • इसमें वर्गानुवंशिकी (Phylogenetics) और जीवाश्मिकी (Palaeontology) शामिल हैं।

स्रोत – द हिंदू


जीवाणुओं की बढ़ती प्रतिरोधकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए एक शोध में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) पर पाए गए सूक्ष्म जीवाणुओं एवं पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवाणुओं के जीन के एक दूसरे से अलग होने का पता चला है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • शोध के अनुसार, यह परिवर्तन जो कि 'सुपरबग्स' की एक नई पीढ़ी का निर्माण करता है चिंता बढ़ा दी है इससे यह प्रतीत होता है कि जीवाणुओं में पाया जाने वाला यह अंतर बैक्टीरिया की रोगजनक क्षमता बढ़ाने के बजाय अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों का सामना करने में उन्हें सक्षम बना रहा है।
  • बहुत से जीवाणु अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में अंतरिक्ष यात्रियों के कपड़ों एवं सामानों में देखे जा सकते हैं, इनमें से हज़ारों सूक्ष्म जीवों के ISS से लिये गए जीवाणुओं के नमूने के जीनोमिक आँकड़ों को ‘नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन पब्लिक डेटाबेस’ में संग्रहित किया गया है।
  • अमेरिका में लोगों की अंतरिक्ष यात्रा के लिये लोगों की बढ़ती संख्या के साथ ही उनकी रूचि इस बात को समझने के प्रति बढ़ रही है कि ISS पर कठिन परिस्थितियों में, जहाँ उच्च स्तर का विकिरण, सूक्ष्म गुरुत्व और वेंटिलेशन की कमी है इस वातावरण में सूक्ष्म जीव कैसे व्यवहार करते है।
  • वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि यदि ऐसी विषम परिस्थिति में ये सूक्ष्म जीव जीवित रहते हैं तो इनसे सुपरबग का विकास हो सकता है, जिसमें जीवित रहने की अधिक क्षमता होती है।

जीनोमिक विश्लेषण

  • वैज्ञानिकों की टीम द्वारा ‘सिविल एंड एन्वायरमेंट इंजीनियरिंग विभाग, नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी’ अमेरिका में स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus aureus) और बेसिलस सेरेस (Bacillus cereus) के जीनोम की तुलना अंतरिक्ष स्टेशन पर पाए गए जीवाणुओं से की गई। विश्लेषण में ISS से लाये गए जीवाणुओं तथा पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवाणुओं के जीन अलग पाए गए।
  • विश्लेषण में सबसे महत्त्वपूर्ण जानकारी यह सामने आई कि यह आनुवंशिक अंतर बैक्टीरिया की रोगजनकता को नहीं बढ़ाएगा या उन्हें मानव स्वास्थ्य के लिये अधिक हानिकारक बना देगा। यह परिवर्तन सिर्फ विषम वातावरण में रहने वाले बैक्टीरिया की प्रतिक्रियाओं को दर्शाता हैं।
  • जीनोमिक विश्लेषण के आधार पर ऐसा लगता है कि यह बैक्टीरिया जीवित रहने के लिये अनुकूल हैं, बीमारी पैदा करने के लिये नहीं।
  • यह खोज कि अंतरिक्ष में विषम परिस्थिति से बैक्टीरिया खतरनाक नहीं हो रहे हैं, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी सुपरबग अंतरिक्ष यात्रियों और संभावित अंतरिक्ष पर्यटकों के लिये एक अच्छी खबर है, लेकिन यह संभव है कि संक्रमित व्यक्ति अंतरिक्ष स्टेशनों एवं अंतरिक्ष में बीमारी फैला सकते हैं।

स्रोत – द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (12 February)

  • भारत और रूस पहली बार डिग्री और डिप्लोमा की मान्यता के लिये समझौता करने जा रहे हैं। दोनों देशों के संसदीय मैत्री समूह इसके लिये बिंदुवार चर्चा कर रहे हैं। गौरतलब है कि बहुत से ऐसे भारतीय जो खासतौर से मेडिकल की पढ़ाई करने रूस जाते हैं, उनका भविष्य दोनों देशों के बीच डिग्री और डिप्लोमा की मान्यता को लेकर कोई समझौता न होने से प्रभावित हो जाता है। इसके लिये दोनों देश पिछले कई वर्षों से बातचीत कर रहे हैं, लेकिन इसे समझौते का रूप नहीं दिया जा सका। अब दोनों देशों की सरकारों के प्रतिनिधि मसौदे पर बिंदुवार चर्चा कर रहे हैं जिससे समझौते को अंतिम रूप दिया जा सके।
  • भारत सहित कई अन्य देशों के शोधकर्त्ताओं ने मिलकर एक ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस प्रोग्राम बनाया है, जिसकी सहायता से अतिसूक्ष्म समुद्री जीवों की प्रजातियों की पहचान कर उनके बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। इस प्रोग्राम को रोबोटिक सिस्टम में फिट किया जाएगा जिससे महासागरों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में आसानी होगी। इससे वर्तमान और प्रागैतिहासिक अतीत के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। माना जाता है कि समुद्र में अभी भी बहुत से ऐसे जीव हैं जिनके बारे में मनुष्यों को कुछ पता नहीं है।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने उत्तराखंड में गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार से होकर विश्व प्रसिद्ध  जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की जंगल सफारी के अनुमति दे दी है। इसके लिये कोटद्वार के पाखरो गेट को मंज़ूरी मिली है, जो जिम कॉर्बेट की जंगल सफारी का नया इको-टूरिज़्म ज़ोन होगा। पाखरो का यह बफर ज़ोन 1771.50 हेक्टेयर का होगा और इसमें गुज्जर स्रोत, धौलखंड, कालू शहीद का पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र शामिल है। इससे कॉर्बेट पार्क के कोर क्षेत्र पर पर्यटकों का दबाव कम होगा और उत्तराखंड के रामनगर से होने वाले प्रवेश के अलावा एक अन्य वैकल्पिक प्रवेश द्वार मिल जाएगा।
  • प्रख्यात भारतीय इतिहासकार संजय सुब्रमण्यम को इज़राइल के प्रतिष्ठित डेन डेविड पुरस्कार के लिये चुना गया है। प्रारंभिक आधुनिक युग के दौरान एशियाई, यूरोपीय और उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका के लोगों के बीच अंतर-सांस्कृतिक संपर्क पर काम करने के लिये उन्हें 2019 के डेन डेविड पुरस्कार के लिये चुना गया है। उन्होंने वृहद् इतिहास में अपने काम के लिये ‘अतीतकालीन आयाम’ श्रेणी में यह अवॉर्ड जीता है। संजय सुब्रमण्यम इस अवार्ड को शिकागो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर केनेथ पोमेरांज के साथ साझा करेंगे। इस अवार्ड के साथ इतिहासकारों को 10 लाख डॉलर भी दिये जाते हैं। महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय एवं मानवतावादी उपलब्धियाँ हासिल करने वालों को अंतर्राष्ट्रीय डेन डेविड पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
  • माइक्रोसॉफ्ट के ग्लोबल कम्पटीशन में 17 देशों की सैकड़ों टीमों को पीछे छोड़ते हुए जो 12 टीमें फाइनल में पहुँची हैं उनमें तीन भारतीय टीमें हैं। Most Original Technology Solutions पेश करने के लिये एक लाख डॉलर इनामी राशि वाले कम्पटीशन का फाइनल अमेरिका में होगा। पुरस्कार राशि के साथ ‘इमेजिन कप’ नामक ट्रॉफी भी दी जाएगी। एशियाई क्षेत्र के लिये कम्पटीशन का फाइनल सिडनी में हुआ था। इस कम्पटीशन की शुरुआत में 20 लाख भागीदार शामिल थे।
  • मेक्सिको के फिल्म निर्माता अल्फोंसो कुरों की फिल्म रोमा और योर्गोस लांथइमोस की फिल्म द फेवरेट ने 72वें British Academy Film & Television Arts (BAFTA-बाफ्टा) पुरस्कार समारोह में कई अवार्ड अपने नाम किये। ‘द फेवरेट’ को 12 श्रेणियों में नामित किया गया था और इस फिल्म में काम करने वाली ओलिविया कॉलमैन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार तथा रेचल विस्ज को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाज़ा गया। इसके अलावा इसे बेहतरीन ब्रिटिश फिल्म का अवॉर्ड भी मिला। दूसरी तरफ 1970 के दशक की पृष्ठभूमि वाली कहानी पर बनी फिल्म ‘रोमा’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के पुरस्कार के साथ सर्वश्रेष्ठ निर्देशन और सर्वश्रेष्ठ सिनेमेटोग्राफी का पुरस्कार भी ‘मिला। गौरतलब है कि यह एकमात्र ऐसा अवॉर्ड है जिसके लिये आम लोग वोट करते हैं।
  • मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर के बाहरी इलाके पुलाउ केरी में परंपरागत वार्षिक पूजा अनुष्ठान ‘पूजा पंतई’ का आयोजन हुआ। जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के लिये मह मेरि (Mah Meri) जनजाति के लोग समुद्र देवता से प्राथना करते हैं। इस जनजाति के लोग खुद को समुद्र में रहने वालों का वंशज मानते हैं। इनका मानना है कि समुद्र में संपदा के विपुल भंडार हैं, जिससे पृथ्वी पर रहने वाले करोड़ों लोगों का उपकार होता है। मह मेरि एक जातीय समूह है जो प्रायद्वीपीय मलेशिया के पश्चिमी भाग के मूल निवासी हैं। यह मलेशियाई सरकार द्वारा नामित 18 ओरंग असली (Orang Asli) समूहों में से एक हैं।