सौर-कलंक सिद्धांत: कारण एवं प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:सौर-कलंक, सोलर फ्लेयर्स, कोरोनल मास इज़ेक्शन्स, ऑरोरा, सौर-चक्र, माउंडर मिनिमम मेन्स के लिये:सौर-कलंक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन' (NASA) की 'सोलर डायनेमिक्स ऑब्ज़र्वेटरी' (Solar Dynamics Observatory- SDO) द्वारा व्यापक सौर-कलंक (Sunspot) समूह- AR2770 को देखा गया।
प्रमुख बिंदु:
- ऐसा माना जा रहा है कि सौर कलंक का 25वाँ चक्र सूर्य के आंतरिक भाग में चल रहा है। हाल ही में कुछ पूर्ण विकसित सौर-कलंक दिखाई देने लगे हैं जिनकी पहचान सौर-कलंक (Sunspot) समूह- AR2770 के रूप मे की गई है।
- AR2770 के अवलोकन से पता चलता है कि सौर-कलंक चक्र का 25वाँ चक्र सौर सतह पर दिखाई देना शुरू हो गया है, जो 25वें सौर-चक्र के प्रारंभ को बताता है।
सौर-कलंक:
- सौर-कलंक सूर्य की सतह का ऐसा क्षेत्र होता है जिसकी सतह आसपास के हिस्सों की तुलना अपेक्षाकृत काली (DARK) होती है तथा तापमान कम होता है। इनका व्यास लगभग 50,000 किमी. होता है।
- ये सूर्य की बाहरी सतह अर्थात फोटोस्फीयर (Photosphere) के ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ किसी तारे का चुंबकीय क्षेत्र सबसे अधिक होता है। यहाँ का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में लगभग 2,500 गुना अधिक होता है।
- सामान्यत: चुंबकीय क्षेत्र तथा तापमान में व्युत्क्रमनुपाती संबंध होता है , अर्थात तापमान बढ़ने पर चुंबकीय क्षेत्र घटता है।
सौर-चक्र (Solar Cycle):
- अधिकांश सौर-कलंक समूहों में दिखाई देते हैं तथा उनका अपना चुंबकीय क्षेत्र होता है, जिसकी ध्रुवीयता लगभग 11 वर्ष में बदलती है जिसे एक ‘सौर चक्र’ (Solar Cycle) कहा जाता है।
- सौर-कलंकों की संख्या में लगभग 11 वर्षों के चक्र के दौरान वृद्धि तथा कमी होती है जिन्हें क्रमशः सौर कलंक के विकास तथा ह्रास का चरण कहा जाता है, वर्तमान में इस चक्र की न्यूनतम संख्या या ह्रास का चरण चल रहा है।
- वर्तमान सौर चक्र की शुरुआत वर्ष 2008 से मानी जाती है जो अपने ’सौर न्यूनतम’ (Solar Minimum) चरण में है।
- ’सौर न्यूनतम’ के दौरान सौर-कलंकों सौर फ्लेयर्स (Solar Flares) की संख्या में कमी देखी जाती है।
सौर-कलंक से जुड़ी घटनाएँ:
सोलर फ्लेयर्स (Solar Flares):
- सोलर फ्लेयर्स सूर्य के निकट चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के स्पर्श, क्रॉसिंग या पुनर्गठन के कारण होने वाली ऊर्जा का अचानक विस्फोट है तथा सोलर फ्लेयर्स उत्पन्न होती है।
- सोलर फ्लेयर्स के विस्फोट से उत्पन्न ऊर्जा वर्ष 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए ’लिटिल बॉय’ परमाणु बम के लगभग होती है।
कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs):
- कोरोनल मास इजेक्शन्स (CME) सूर्य के कोरोना से प्लाज़्मा एवं चुंबकीय क्षेत्र का विस्फोट है जिसमें अरबों टन कोरोनल सामग्री उत्सर्जित होती है तथा इससे पिंडों के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हो सकता है।
ऑरोरा की घटना:
- सौर-पवनों के कारण मैग्नेटोस्फेयर में परिवर्तन होता है, जिससे पृथ्वी के दोनों ध्रुवों अर्थात दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव के आसमान में हरे, लाल और नीले रंग के मिश्रण से प्रकाश उत्पन्न होता है जिसे ऑरोरा या ध्रुवीय ज्योति कहा जाता है।
- ध्रुवीय स्थिति के आधार पर इन्हें उत्तरी ध्रुवीय ज्योति (Aurora Borealis) तथा दक्षिण ध्रुवीय ज्योति (Aurora Australis) के नाम से जाना जाता है।
माउंडर मिनिमम (Maunder Minimum):
- जब न्यूनतम सौर कलंक सक्रियता की अवधि दीर्घकाल तक रहती है तो इसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहते हैं।
- वर्ष 1645-1715 के बीच की अवधि में सौर कलंक परिघटना में विराम देखा गया जिसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहा जाता है। यह अवधि तीव्र शीतकाल से युक्त रही, अत: सौर कलंक अवधारणा को जलवायु परिवर्तन के साथ जोड़ा जाता है।
सौर-कलंक के प्रभाव:
- सौर-कलंक से उत्पन्न सोलर फ्लेयर्स के कारण रेडियो संचार, ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) प्रणाली, ऊर्जा-ग्रिड तथा उपग्रह आधारित संचार प्रणाली बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।
- सौर-कलंक के कारण 'भू-चुंबकीय तूफान’ (Geomagnetic Storms) उत्पन्न हो सकते हैं।
- 'भू-चुंबकीय तूफान' सौर-तूफ़ानों के कारण पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर में उत्पन्न अव्यवस्था है जिससे पृथ्वी की इन खतरनाक विकिरणों से प्राप्त सुरक्षा प्रभावित होती है।
- माउंडर मिनिमम अर्थात न्यूनतम सौर कलंक सक्रियता के समय धरातलीय सतह तथा उसके वायुमंडल का शीतलन, जबकि अधिकतम सौर कलंक सक्रियता काल के समय वायुमंडलीय उष्मन होता है।
- ‘अल नीनो’ और ‘ला नीना’ की घटना को भी वैज्ञानिकों द्वारा सौर-कलंक के साथ संबंधित करने का प्रयास किया जा रहा है, यद्यपि यह अनेक दोषों से युक्त है।
स्रोत: द हिंदू
इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2020
प्रिलिम्स के लिये:इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2020 के प्रमुख बिंदु, भारतीय मानक ब्यूरो, PM 10 तथा PM2.5 मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण, मानव स्वास्थ एवं अर्थव्यवस्था के संदर्भ में नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicles-EV) नीति, 2020 को अधिसूचित किया गया है। इस नीति में इलेक्ट्रिक वाहनों के द्वारा निजी चार पहिया वाहनों के बजाय दोपहिया वाहनों, सार्वजनिक परिवहन तथा साझा वाहनों एवं माल-वाहको के प्रतिस्थापन करने पर ज़ोर दिया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- विशेषताएँ:
- इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2020, मौजूदा ऑटो रिक्शा तथा ई-ऑटो एवं ई-बसों के साथ राज्य द्वारा संचालित बसों के प्रतिस्थापन को बढ़ावा देती है। नीति में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि शहर में संचालित डिलीवरी-आधारित सेवाएँ ई-मोबिलिटी से जुड़ी हों।
- यह नीति ईंधन आधारित वाहनों के लिये रोड टैक्स बढ़ाने तथा शहर के कुछ हिस्सों में भीड़ शुल्क (Congestion Fee)लगाने की बात करती है जिनमें इलेक्ट्रिक वाहनों को इस शुल्क से छूट मिलेगी।
- इस नीति में उन लोगों के लिये एक ‘स्क्रेपिंग इंसेंटिव’ (Scrapping Incentive) है, जो इलेक्ट्रिक वाहन खरीदते समय पुराने ईंधन आधारित वाहन का आदान-प्रदान करना चाहते हैं, जिससे वाहन लागत में कमी आएगी।
- सरकार वाणिज्यिक इलेक्ट्रिक वाहनों को खरीदने के इच्छुक लोगों को कम-ब्याज दर पर ऋण प्रदान करेगी।
- यह पॉलिसी राजधानी में खरीदे गए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये सब्सिडी, रोड टैक्स तथा पंजीकरण शुल्क से छूट प्रदान करती है।
- वर्तमान में, सड़क कर, वाहन की लागत का 4% से 10% तक है, जबकि पंजीकरण शुल्क की कीमत भी बढ़ सकती है।
- इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरी की क्षमता 5,000 किलोवाट प्रति घंटे (kilowatt-hour- kWh) के आधार पर 30,000 रुपए सब्सिडी दी जाएगी।
- पहले 1,000 ई-कारों या इलेक्ट्रिक चार पहिया वाहनों की खरीद पर 10,000 रुपए प्रति kWh के हिसाब से सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
- यह सब्सिड़ी केंद्र सरकार द्वारा अपनी FAME इंडिया फेज 2 योजना के तहत दी जाने वाली सब्सिडी के अतिरिक्त होगा, जो विशेष रूप से इलेक्ट्रिक दोपहिया, इलेक्ट्रिक भारी यात्री तथा माल वाहनों की खरीद पर एक समान राशि प्रदान करती है।
- इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2020 के सभी खर्चों को शामिल करते हुए एक राज्य इलेक्ट्रिक वाहन फंड (State Electric Vehicles fund) स्थापित किया जाएगा। नीति के प्रभावी कार्यान्वयन एवं निधि के प्रबंधन के लिये एक राज्य इलेक्ट्रिक वाहन बोर्ड (State Electric Vehicle Board) का गठन भी किया जाएगा। इसके अलावा, एक समर्पित इलेक्ट्रिक वाहन सेल का भी गठन किया जाएगा।
इलेक्ट्रिक वाहन नीति के उद्देश्य:
- वायु प्रदूषण को कम करना तथा मांग को तीव्र करके अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करना।
- बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में हर वर्ष एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल का अनुभव किया जाता है, जो एक आवर्तक वार्षिक संकट बन गया है।
- COVID-19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान, राजधानी में PM 10 तथा PM2.5 के स्तर में भारी कमी देखी गई।
- दोनों समस्याओं का समाधान करना, जिसमें खरीद की उच्च लागत तथा पर्याप्त चार्जिंग बुनियादी ढाँचे की कमी शामिल।
- आने वाले पाँच वर्षों में दिल्ली में कम से कम 5,00,000 EVs का पंजीकरण करना।
डिलीवरी-आधारित तथा राइड-हेलिंग सेवाएँ:
- राइड-हेलिंग सेवा (Ride-hailing Service) प्रदाताओं को परिवहन विभाग द्वारा जारी किये जाने वाले दिशा-र्देशों के तहत संचालन करने के लिये इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर टैक्सियों को संचालित करने की अनुमति दी जाएगी।
- यह उम्मीद की जा रही है कि नीति के तहत मिलने वाली राशि से एलेट्रिक दोपहिया वाहनों के प्रयोग से खाद्य वितरण, ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स प्रदाताओं तथा कोरियर सेवाओं के सेवा प्रदाताओं को प्रोत्साहन मिलेगा।
- सभी वितरण सेवा प्रदाताओं को 31 मार्च 2023 तक दिल्ली में संचालित अपने वाहनों के समूह के 50% को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने का अनुमान है जो 31 मार्च 2025 तक 100% होने की उम्मीद है।
- डिलीवरी सेवा प्रदाता जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध हैं, वे दिल्ली वित्त निगम से वित्तपोषण सहायता के पात्र होंगे।
ऑटोरिक्शा:
- ऑटो रिक्शा की खरीद हेतु प्रोत्साहन राशि 30,000 रुपए प्रति वाहन होगी जो नए इलेक्ट्रिक ऑटो के उपयोग से संबंधित होगा।
- वैलिड मोटो व्हीकल ड्राइविंग लाइसेंस (Valid Light Motor Vehicle Driving Licences) तथा पब्लिक सर्विस व्हीकल बैज (Public Service Vehicle Badge) के साथ पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर परमिट प्रदान करने के लिये एक खुली परमिट प्रणाली रखी जाएगी।
- दिल्ली में ई-ऑटो को जारी किये गए परमिट पर कोई उच्चतम सीमा निर्धारित नहीं होगी क्योंकि वे शून्य उत्सर्जन वाहन हैं।
- वर्तमान में, सीएनजी से चलने वाले ऑटो रिक्शा की संख्या की एक निश्चित सीमा है है, जिन्हें शहर में चलाने की अनुमति प्राप्त है।
बसें:
- नीति में कहा गया है कि अगले तीन वर्षों में खरीदी जाने वाली राज्य की आधी बसें पूर्ण इलेक्ट्रिक बसें होंगी।
- वर्ष 2020 तक 1,000 पूर्ण इलेक्ट्रिक बसों को शामिल किया जाएगा।
इलेक्ट्रिक वाहनों के संदर्भ में केंद्र सरकार की पहल:
- सरकार द्वारा वर्ष 2030 तक कुल कारों एवं दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों के 30% की बिक्री का लक्ष्य रखा गया है।
- एक स्थायी इलेक्ट्रिक वाहन पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये, भारत में ‘राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान’ (National Electric Mobility Mission Plan- NEMMP) एवं ‘फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक वाहन’ ( Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid &) Electric Vehicles in India-FAME India) जैसी पहलें शुरू की गई हैं।
- NEMMP को वर्ष 2013 में देश में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रीय ईंधन सुरक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। वर्ष 2020 के बाद से वर्ष दर वर्ष हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों की 6-7 मिलियन बिक्री करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है।
- FAME India को हाइब्रिड/EV मार्केट डेवलपमेंट तथा मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम को सपोर्ट करने के उद्देश्य से वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। इस योजना में 4 फोकस क्षेत्र शामिल हैं- प्रौद्योगिकी विकास (Manufacturing Ecosystem), मांग निर्माण (Demand Creation), पायलट परियोजनाएँ (Pilot projects) और चार्ज बुनियादी ढाँचा (Charging Infrastructure) ।
- भारतीय मानक ब्यूरो ( Bureau of Indian Standards- BIS), भारी उद्योग विभाग, ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया जैसे संगठन इलेक्ट्रिक वाहनों तथा इलेक्ट्रिक व्हीकल सप्लाई इक्विपमेंट इक्विपमेंट (Electric Vehicle Supply Equipment- EVSEs) के डिज़ाइन और विनिर्माण मानकों को तैयार करने का कार्य रहे हैं।
आगे की राह:
- इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के तीन स्तंभों यथा- शहरी नियोजन, परिवहन एवं बिजली क्षेत्र के मध्य सही समन्वय स्थापित करना जो इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग को व्यवस्थित रूप प्रदान करने में सहायक होंगे।
- इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग तेज़ी से बढ़ने वाले उद्योग है जो सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को गति प्रदान करने में सहायक होगा।
स्रोत: द हिंदू
भुगतान शेष: अर्थ और महत्त्व
प्रिलिम्स के लियेभुगतान शेष, चालू खाता, पूंजी खाता, वित्तीय खाता मेन्स के लियेभुगतान शेष: अर्थ, महत्त्व और उसके घटक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि इस वर्ष निर्यात में महत्त्वपूर्ण सुधार आने और आयात में कमी होने के कारण देश के भुगतान शेष (Balance of Payments-BoP) की स्थिति काफी मज़बूत रहने की उम्मीद है।
प्रमुख बिंदु
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था में रिकवरी के अच्छे संकेत दिखाई दे रहे हैं और निर्यात में भी महत्त्वपूर्ण सुधार आया है।
- भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ, फिक्की (FICCI) के वेबिनार को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि ‘इस वर्ष जुलाई माह में पिछले वर्ष जुलाई माह के 91 प्रतिशत निर्यात स्तर को हासिल किया जा चुका है, वहीं इस वर्ष आयात जुलाई 2019 के स्तर के 70 से 71 प्रतिशत के बीच ही रहा है।
- इस वर्ष जून माह में भारत के निर्यात में लगातार चौथी बार गिरावट दर्ज की गई है, क्योंकि पेट्रोलियम और कपड़ा जैसे प्रमुख क्षेत्रों के शिपमेंट में गिरावट देखी गई है, हालाँकि भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पहली बार अधिशेष की स्थिति दर्ज की गई है, क्योंकि आयात में 47.59 प्रतिशत की गिरावट आई है।
- आँकड़ों के अनुसार, भारत में इस वर्ष जून माह में 0.79 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष दर्ज किया गया है।
- केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार घरेलू स्तर पर विनिर्माण और घरेलू उद्योग को समर्थन और बढ़ावा देने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठा रही है।
भुगतान शेष का अर्थ?
- भुगतान शेष (Balance Of Payment-BoP) का अभिप्राय ऐसे सांख्यिकी विवरण से होता है, जो कि एक निश्चित अवधि के दौरान किसी देश के निवासियों के विश्व के साथ हुए मौद्रिक लेन-देनों के लेखांकन को रिकॉर्ड करता है।
- जब भुगतान शेष (BoP) में सभी तत्वों को सही ढंग से समावेशित किया जाता है तो एक आदर्श परिदृश्य में सभी मदों का योग शून्य होता है।
- इसका अर्थ होता है कि धन का अंतर्वाह (Inflows) और बहिर्वाह (Outflows) एक समान है, किंतु वास्तविक और व्यावहारिक परिदृश्य में सदैव ऐसा नहीं होता है।
- किसी देश का भुगतान शेष (BoP) विवरण यह बताता है कि उस देश में शेष विश्व के साथ व्यापार अधिशेष है अथवा व्यापार घाटा।
- उदाहरण के लिये जब किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक होता है, तो उसके BoP में व्यापार अधिशेष होता है, वहीं जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है तो उसे (BoP) में व्यापार घाटे के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
किसी देश के लिये भुगतान शेष (BoP) का महत्त्व
- किसी देश का भुगतान शेष (BoP) विवरण उस देश की वित्तीय और आर्थिक स्थिति का सटीक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
- भुगतान शेष (BoP) विवरण को यह निर्धारित करने के लिये एक संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है कि किसी देश की मुद्रा का अभिमूल्यन (Appreciation) हो रहा है अथवा मूल्यह्रास (Depreciating)।
- साथ ही भुगतान शेष (BoP) विवरण देश की सरकार को अपनी राजकोषीय और व्यापार संबंधी नीति को लेकर महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद करता है।
- यह दूसरे देशों के साथ किसी एक देश के आर्थिक व्यवहार का विश्लेषण करने और उसे समझने हेतु महत्त्वपूर्ण सूचना प्रदान करता है।
- भुगतान शेष (BoP) विवरण और इसके घटकों का बारीकी से अध्ययन करके उन रुझानों की पहचान करना काफी आसान हो जाता है जो किसी देश की अर्थव्यवस्था के विकास के लिये फायदेमंद या हानिकारक हो सकते हैं, जिसके पश्चात् इन रुझानों का उचित उपयोग कर देश की अर्थव्यवस्था के विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है।
भुगतान शेष के मुख्य घटक
- चालू खाता
चालू खाते का उपयोग देशों के बीच माल एवं सेवाओं के अंतर्वाह और बहिर्वाह की निगरानी के लिये किया जाता है। इस खाते में कच्चे माल तथा निर्मित वस्तुओं के संबंध में किये गए सभी भुगतानों और प्राप्तियों को शामिल किया जाता है। चालू खाता के अंतर्गत मुख्यत: तीन प्रकार के लेन-देन, जिसमें पहला वस्तुओं व सेवाओं का आयात-निर्यात और दूसरा कर्मचारियों व विदेशी निवेश से प्राप्त आय एवं खर्च तथा तीसरा विदेशों से प्राप्त अनुदान राशि, उपहार एवं विदेश में बसे कामगारों द्वारा भेजी जाने वाली विप्रेषण (Remittance) की राशि, को शामिल किया जाता है। - पूंजी खाता
देशों के बीच सभी पूंजीगत लेन-देनों की निगरानी पूंजी खाते के माध्यम से की जाती है। पूंजीगत लेन-देन में भूमि जैसी गैर-वित्तीय संपत्तियों की खरीद और बिक्री को शामिल किया जाता है। पूंजी खाते के मुख्यतः तीन तत्त्व हैं, (1) विदेश में स्थित निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों से लिया गया सभी प्रकार का ऋण, (2) गैर-निवासियों द्वारा कॉर्पोरेट शेयरों में किये गए निवेश की राशि और (3) अंततः विनिमय दर के नियंत्रण हेतु देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखा गया विदेशी मुद्रा भंडार। - वित्तीय खाता
रियल एस्टेट, व्यावसायिक उद्यम, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आदि में विभिन्न निवेशों के माध्यम से विदेशों से/को होने वाले धन के प्रवाह पर वित्तीय खाते के माध्यम से निगरानी की जाती है। यह खाता घरेलू परिसंपत्तियों के विदेशी स्वामित्त्व और विदेशी संपत्ति के घरेलू स्वामित्त्व में परिवर्तन को मापता है। इसका विश्लेषण करने से यह ज्ञात किया जा सकता है कि कोई देश अधिक संपत्ति बेच रहा है या प्राप्त कर रहा है।
स्रोत: द हिंदू
भारत छोड़ो आंदोलन
प्रिलिम्स के लिये:भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में मेन्स के लिये:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत छोड़ो आंदोलन की भूमिका एवं महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
8 अगस्त, 2020 को भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के 78 वर्ष पूरे हो गए हैं, जिसे अगस्त क्रांति (August Kranti) के नाम से भी जाना जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए तथा भारत छोड़ो आंदोलन की भावना को पुनर्जीवित करते हुए प्रधान मंत्री द्वारा महात्मा गांधी के ‘करो या मरो’ (Do or Die) के नारे के स्थान पर एक नया नारा ‘करेंगे और करके रहेंगे’ (karenge Aur karake Rahenge) दिया गया जिसका उद्देश्य भारत को वर्ष 2022 तक ‘न्यू इंडिया’ (New India) बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
- आंदोलन के बारे में: 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी द्वारा भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिये एक स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया जिसके तहत मुंबई में अखिल भारतीय काँन्ग्रेस समिति (All-India Congress Committee) के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया गया ।
- गाँधीजी ने ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक मैदान में दिये गए अपने भाषण में ‘करो या मरो’ का नारा दिया, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान (August Kranti Maidan) के नाम से जाना जाता है।
- अरुणा आसफ अली को स्वतंत्रता आंदोलन में 'ग्रैंड ओल्ड लेडी' के रूप में जाना गया जिन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिये जाना जाता है।
- ‘भारत छोड़ो’ का नारा यूसुफ मेहरली द्वारा तैयार किया गया था, जो एक समाजवादी एवं ट्रेड यूनियनवादी थे इन्होने मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था, इनके द्वारा ‘साइमन गो बैक’ (Simon Go Back) के नारे को भी गढ़ा गया था।
भारत छोड़ो आंदोलन के कारण:
- आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति/ मिशन के किसी अंतिम निर्णय पर न पहुँचना था।
- द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का ब्रिटिश को बिना शर्त समर्थन करने की मंशा को भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस द्वारा सही से न समझा जाना।
- ब्रिटिश-विरोधी भावना तथा पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने भारतीय जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली थी।
- अखिल भारतीय किसान सभा, फारवर्ड ब्लाक आदि जैसे काँन्ग्रेस से संबद्ध विभिन्न निकायों के नेतृत्त्व में दो दशक से चल रहे जन आंदोलनों ने इस आंदोलन के लिये पृष्ठभूमि निर्मित कर दी थी।
- द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी खराब हो गई थी।
आंदोलन की मांग:
- फासीवाद के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग पाने के लिये भारत में ब्रिटिश शासन को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की मांग की गई।
- भारत से अंग्रेजों के जाने के बाद एक अंतरिम सरकार बनाने की मांग।
आंदोलन के चरण:
आंदोलन के मुख्यत: तीन चरण थे-
- प्रथम चरण:
- आंदोलन के प्रथम चरण में शहरी विद्रोह, बहिष्कार एवं धरना प्रदर्शन इत्यादि का सहारा लिया गया, जिसे जल्दी ही दबा दिया गया।
- पूरे देश में हड़तालें एवं प्रदर्शन किये गए और श्रमिकों द्वारा कारखानों में काम न करके समर्थन किया गया।
- गांधीजी को शीघ्र ही पुणे के आगा खान पैलेस में कैद कर लिया गया तथा लगभग सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- द्वितीय चरण:
- आंदोलन के द्वितीय चरण का मुख्य केंद्र बिंदु ग्रामीण क्षेत्र रहा।
- इस चरण की परिणीति किसान आंदोलन, संचार प्रणालियों को नष्ट करना जैसे- रेलवे ट्रैक एवं स्टेशन, टेलीग्राफ तार तथा खंभे, सरकारी भवनों पर हमले इत्यादि के रूप में हुई।
- तृतीय या अंतिम चरण:
- यह चरण देश के विभिन्न हिस्सों में समानांतर सरकारों के गठन का साक्षी बना जिनमें बलिया, तामलुक, सतारा इत्यादि की समानांतर सरकारें शामिल हैं।
- स्वतः स्फूर्त हिंसा घटनाएँ: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ स्थानों पर हिंसा देखी गई जो पूर्व नियोजित नहीं थी।
- भविष्य के नेता: राम मनोहर लोहिया, जे. पी. नारायण, अरुणा आसफ अली, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी आदि नेताओं द्वारा भूमिगत गतिविधियाँ की गईं, जो बाद में प्रमुख नेताओं के रूप में सामने आए।
- महिला भागीदारी: महिलाओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से कार्य किया। उषा मेहता जैसी महिला नेताओं ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित करने में मदद की जिसके कारण आंदोलन के बारे में लोगों में जागृति आई।
आंदोलन को प्राप्त समर्थन:
- मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं हिंदू महासभा द्वारा आंदोलन का समर्थन नहीं किया गया। भारतीय नौकरशाही से भी आंदोलन को समर्थन प्राप्त नहीं हुआ।
- मुस्लिम लीग देश के विभाजन से पहले भारत छोड़ो आंदोलन के पक्ष में नहीं थी।
- कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा भी ब्रिटिशों का समर्थन किया गया क्योंकि वे सोवियत संघ के साथ संबद्ध थे।
- हिंदू महासभा ने भारत छोड़ो आंदोलन का खुलकर विरोध किया इसे आशंका थी कि आंदोलन आंतरिक अव्यवस्था पैदा करेगा तथा युद्ध के दौरान देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।
- इस बीच, सुभाष चंद्र बोस ने देश के बाहर से भारतीय राष्ट्रीय सेना और आज़ाद हिंद सरकार का गठन किया हालाँकि सी. राजगोपालाचारी पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में नहीं थे जिसके कारण उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
क्रिप्स मिशन:
- दक्षिण-पूर्व एशिया में जापानी की बढ़ी आक्रामकता, युद्ध में भारत की पूर्ण भागीदारी को सुरक्षित करने के लिये ब्रिटिश सरकार की उत्सुकता, ब्रिटेन पर चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बढ़ते दबाव के कारण ब्रिटेन की लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा मार्च 1942 में भारत में क्रिप्स मिशन को भेजा गया।
- इस मिशन को स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में भारत में एक नए संविधान एवं स्वशासन के निर्माण से संबंधित प्रश्न को हल करने के लिये भेजा गया था।
मिशन के मुख्य प्रस्ताव/बिंदु इस प्रकार हैं-
- एक भारतीय संघ का निर्माण जिससे एक प्रभुत्त्व राष्ट्र का दर्जा प्राप्त होगा तथा इसे राष्ट्रमंडल के साथ अपने संबंधों को तय करने और संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों में भाग लेने के लिये स्वतंत्रता प्राप्त होगी।
- युद्ध के बाद एक संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया जाएगा जिसमे ब्रिटिश प्रांतों के चुने हुए प्रतिनिधि तथा देशी रियासतों से चुने हुए प्रतिनिधि शामिल होंगे।
- कोई भी प्रांत जो संविधान को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं है, उसे, भारतीय संघ के समान पूर्ण दर्जा प्रदान किया जाएगा इस प्रावधान के द्वारा मुस्लिम लीग के लिये पाकिस्तान के निर्माण के लिये आह्वान किया गया था।
- संविधान बनाने वाली संस्था तथा ब्रिटिश सरकार सत्ता के हस्तांतरण को प्रभावित करने और नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिये एक संधि पर बातचीत करेगी।
- हालाँकि भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस, क्रिप्स मिशन से सहमत नहीं थी क्योंकि इसमे काँन्ग्रेस की तत्काल पूर्ण स्वतंत्रता की माँग को अस्वीकार कर दिया गया था।
- महात्मा गांधी द्वारा युद्ध के बाद डोमिनियन स्टेटस के क्रिप्स प्रस्ताव के प्रावधान को ‘दिवालिया होने वाले बैंक का दिनांकित चेक’ (Post-Dated Cheque Drawn on a Failing Bank) बताया गया।
परिणाम:
- अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन को हिंसक तरीके से दबाया गया जिसमे लोगों पर गोलियाँ चलाई गई, लाठीचार्ज किया गया तथा गाँवों को जला दिया गया और भारी जुर्माना लगाया गया।
- आंदोलन के दौरान 100000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा सरकार द्वारा आंदोलन को कुचलने के लिये हिंसा का सहारा लिया गया ।
- अंग्रेजों द्वारा भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस को गैरकानूनी संघ घोषित कर दिया गया।
- आंदोलन ने अंग्रेज़ों के साथ राजनीतिक वार्ता की प्रकृति को बदल दिया जिसने अंततः भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
राज्य बनाम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
प्रिलिम्स के लियेविश्वविद्यालय अनुदान आयोग मेन्स के लियेराज्य बनाम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विवाद, ऑनलाइन परीक्षाएँ आयोजित करने संबंधी चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि परीक्षाओं का संचालन पूरी तरह से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) के क्षेत्राधिकार के भीतर आता है और राज्य किसी भी स्थिति में परीक्षाओं को रद्द नहीं कर सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य अपने स्तर पर इस तरह परीक्षाएँ रद्द नहीं कर सकते हैं और उनके लिये आयोग द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में COVID-19 महामारी के बीच राज्य के विश्वविद्यालयों की अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द करने के दिल्ली और महाराष्ट्र सरकारों के निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये निर्णय नियमों के विरुद्ध है।
विश्वविद्यालय परीक्षाओं की वर्तमान स्थिति
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ को सूचित किया था कि देश के 800 से अधिक विश्वविद्यालयों में से 209 ने परीक्षाएँ सफलतापूर्वक संपन्न कर ली हैं, जबकि लगभग 390 विश्वविद्यालय परीक्षा आयोजित करने की प्रक्रिया में हैं।
विवाद
- गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ देश भर के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के लिये 6 जुलाई, 2020 को UGC द्वारा जारी निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें COVID-19 महामारी के बीच 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ आयोजित करने का निर्देश दिया गया था।
- ध्यातव्य है कि 31 जुलाई, 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।
- बीते दिनों विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने इस संबंध में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा सितंबर 2020 तक ऑफलाइन अथवा ऑनलाइन या मिश्रित (ऑनलाइन और ऑफलाइन) मोड में आयोजित की जानी चाहिये।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का पक्ष
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष UGC का पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि राज्य, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों में बदलाव नहीं कर सकते क्योंकि डिग्री प्रदान करने संबंधित नियमों को निर्धारित करने का अधिकार केवल UGC के पास है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने तर्क दिया कि परीक्षा का आयोजन न करना छात्रों के हित में नहीं होगा और यदि राज्य सरकारें एकतरफा कार्रवाई करेंगी तो UGC राज्य विशिष्ट के छात्रों की डिग्री को मान्यता नहीं देगा।
याचिकाकर्त्ताओं का पक्ष
- इस संबंध में याचिकाकर्त्ताओं ने दावा किया है कि परीक्षाएँ आयोजित करने को लेकर 6 जुलाई, 2020 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा जारी दिशा-निर्देश न तो कानूनी है और न ही संवैधानिक रूप से मान्य हैं।
- इसके अलावा छात्रों के बीच ऑनलाइन परीक्षा को आयोजित कराने को लेकर भी भय की स्थिति है।
- ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी अभी भी एक बड़ी समस्या है। वर्तमान में इंटरनेट कनेक्टिविटी ऑनलाइन परीक्षा के संचालन की एक बड़ी चुनौती है।
- देश भर के कई छात्र इस विषय को लेकर भी ऑनलाइन परीक्षाओं का विरोध का रहे हैं, क्योंकि परीक्षाओं में शामिल होने लेने के लिये उनके पास आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं है।
आगे की राह
- ऑनलाइन परीक्षाओं को लेकर छात्रों की चिंताएँ पूरी तरह से न्यायसंगत हैं, भारत आज भी इंटरनेट कनेक्टिविटी के मामले में तमाम तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- हालाँकि इस संबंध में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का तर्क भी सही है कि राज्य सरकारों को विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के संबंध में किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पूर्व UGC के साथ विचार-विमर्श करना चाहिये, क्योंकि इस विषय को लेकर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार UGC के पास ही है।
- आवश्यक है कि राज्य सरकारें विद्यार्थियों की चिंताओं को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के समक्ष प्रस्तुत करें, और UGC इस विषय संबंधी कोई निर्णय लेने से पूर्व छात्रों की समस्याओं को भी संबोधित करने का प्रयास करे।