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डेली न्यूज़

  • 11 Jul, 2019
  • 48 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत एवं वैश्विक स्तर पर उच्च और निम्न आय वालों के मध्य असमानता

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation - ILO) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में सबसे ज़्यादा आय अर्जित करने वाले 10 प्रतिशत भारतीयों ने देश में मज़दूरी से प्राप्त आय का कुल 69 प्रतिशत हिस्सा अर्जित किया, वहीं दूसरी ओर सबसे कम आय वाले 10 प्रतिशत भारतीयों को मज़दूरी से प्राप्त आय का मात्र 0.25 प्रतिशत हिस्सा ही मिला।

मुख्य बिंदु :

  • भारत में यह स्थिति वर्ष 2004 से लगातार बनी हुई है, उस समय सबसे शीर्ष पर रहने वाले लोगों ने कुल आय का 70 प्रतिशत हिस्सा अर्जित किया था और सबसे कम आय वाले 10 प्रतिशत भारतीयों का हिस्सा सिर्फ 0.30 प्रतिशत ही था।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सबसे कम आय वाले श्रमिकों ने प्रतिमाह 22 डॉलर की आय प्राप्त की, जबकि सबसे शीर्ष पर रहने वाले लोगों ने प्रतिमाह 7,475 डॉलर की आय प्राप्त की।
  • इस प्रकार वैश्विक स्तर पर सबसे कम आय वाले लोगों में शामिल कोई श्रमिक यदि सबसे अधिक आय वाले 10 प्रतिशत लोगों में शामिल होना चाहता है तो उसे आने वाली 3 सदियों तक काम करना होगा।
  • वर्ष 2004-2017 के मध्य 13 सालों में वैश्विक स्तर पर तो यह असमानता कम हुई, लेकिन भारत में यह अभी भी वैसी ही बनी हुई है।

Labour Income Distribution

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

(International Labour Organization - ILO)

  • यह ‘संयुक्त राष्ट्र’ की एक विशिष्ट एजेंसी है, जो श्रम संबंधी समस्याओं/मामलों, मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक, सामाजिक संरक्षा तथा सभी के लिये कार्य अवसर जैसे मामलों को देखती है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियों से इतर एक त्रिपक्षीय एजेंसी है, अर्थात् इसके पास एक ‘त्रिपक्षीय शासी संरचना’ (Tripartite Governing Structure) है, जो सरकारों, नियोक्ताओं तथा कर्मचारियों का (सामान्यतः 2:1:1 के अनुपात में) इस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करती है।
  • यह संस्था अंतर्राष्ट्रीय श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं के खिलाफ शिकायतों को पंजीकृत तो कर सकती है, किंतु यह सरकारों पर प्रतिबंध आरोपित नहीं कर सकती है।
  • इस संगठन की स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् ‘लीग ऑफ नेशन्स’ (League of Nations) की एक एजेंसी के रूप में वर्ष 1919 में की गई थी। भारत इस संगठन का एक संस्थापक सदस्य है।
  • इस संगठन का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।
  • वर्तमान में 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं, जिनमें से 186 देश संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से हैं तथा एक अन्य दक्षिणी प्रशांत महासागर में अवस्थित ‘कुक्स द्वीप’ (Cook's Island) है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1969 में इसे प्रतिष्ठित ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ भी प्रदान किया गया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

मछली पालन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (National Institute of Rural Development and Panchayati Raj- NIRDPR) एक नई प्रणाली विकसित कर रहा है जो मछलियों के पालन में सहायक होगा।

प्रमुख बिंदु

  • NIRDPR द्वारा विकसित इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य भारतीय किसानों की आय दोगुनी करने में मदद करना है जिसमें किसान खेती के साथ-साथ आय अर्जित करने हेतु अन्य व्यवसायों को अपना सकें।
  • ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क (हैदराबाद) में स्थापित बैकयार्ड री-सर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (Backyard Re-circulatory Aquaculture System) राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (National Fisheries Development Board) द्वारा वित्तपोषित है।
  • यह प्रणाली कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विकसित की गई है।
  • इस प्रणाली में एक तालाब में छोटे-छोटे पिंजरों में विभिन्न किस्म व आकार की मछलियों को संग्रहीत किया जाएगा। इसके अंतर्गत इन छोटे- छोटे पिंजरों में मछलियों को उच्च घनत्व (High Density) में संग्रहीत करने अथवा एक साथ अधिक संख्या में मत्स्य पालन में सहायता मिलेगी।
  • मछलियों के कुछ प्रकारों/किस्मों जैसे- तिलपिया (Tilapia), पंगासियस (Pangasius), मुरेल (Murrel) और पर्लस्पॉट (Pearlspot) का इस प्रणाली के अंतर्गत पालन किया जा सकता है।
  • चूँकि इस प्रणाली से बनाये गए तालाब में पानी कम होता है इसलिये मछलियों को निकालना आसान होगा।

एक्वाकल्चर प्रणाली

Aquaculture System

  • इस प्रणाली के तहत एक प्राकृतिक या कृत्रिम झील में, ताजे पानी वाले तालाब में या समुद्र में, उपयुक्त तकनीक और उपकरणों की आवश्यकता होती है।
  • इस तरह की खेती में जलीय जंतुओं जैसे- मछली एवं मोलस्क का विकास, कृत्रिम प्रजनन तथा संग्रहण का कार्य किया जाता है।
  • एक्वाकल्चर एक ही प्रजाति के जंतुओं की बड़ी मात्रा, उनके मांस या उप-उत्पादों के उत्पादन में सक्षम बनाता है।
  • मत्स्य पालन इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

उपयोगिता

  • एकीकृत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देकर किसानों की आय दोगुनी की जा सकती है। इस तरह की स्मार्ट खेती युवाओं को व्यवसाय के लिये प्रोत्साहित करेगी।
  • एक्वाकल्चर प्रणाली कम पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर सकता है।
  • मत्स्य पालन में रुचि रखने वाले किसानों, स्वयं सहायता समूह (SHG) व युवाओं के लिये NIRDPR स्थित ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क में इस प्रणाली से संबंधित जरूरी जानकारी दिये जाने की व्यवस्था है।

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान

National Institute of Rural Development and Panchayati Raj- NIRDPR

  • NIRDPR केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन है।
  • यह ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के क्षेत्र में एक शीर्ष राष्ट्रीय उत्कृष्ट केंद्र है।
  • यह संस्थान प्रशिक्षण, अनुसंधान और परामर्श जैसे परस्पर क्रियाकलापों द्वारा ग्रामीण विकास के पदाधिकारियों, पंचायती राज के निर्वाचित प्रतिनिधियों , बैंकरों, गैर सरकारी संगठनों की ग्रामीण विकास की क्षमता को बढ़ाता है।
  • यह संस्थान हैदराबाद (तेलंगाना) में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


जैव विविधता और पर्यावरण

बंदरगाह के समुद्री स्तर में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के मुहाने पर स्थित डायमंड हार्बर बंदरगाह (Diamond Harbour Port) के निकट समुद्री जल स्तर में अधिकतम वृद्धि दर्ज की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, चार बंदरगाहों क्रमशः डायमंड हार्बर, कांडला, हल्दिया, तथा पोर्ट ब्लेयर के तटों पर समुद्री जल स्तर में वैश्विक औसत की तुलना में उच्चतर वृद्धि दर्ज की गई है।
  • यद्यपि हालिया अध्ययनों में पिछले 40-50 वर्षों के दौरान भारत के समुद्री स्तर में 1.3 मिमी/वर्ष की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया गया है लेकिन डायमंड हार्बर के जल स्तर में प्रतिवर्ष 5.16 मिमी की वृद्धि हुई जो अनुमानित वृद्धि का लगभग पाँच गुना है।
  • डायमंड हार्बर के समुद्री जल स्तर में औसत वृद्धि का आकलन वर्ष 1948 से 2005 की अवधि में दर्ज आँकड़ों के आधार पर किया गया है।
  • डायमंड हार्बर के बाद क्रमशः गुजरात स्थित कांडला बंदरगाह के जल स्तर में वर्ष 1950 से 2005 के बीच प्रतिवर्ष 3.18 मिमी., पश्चिम बंगाल स्थित हल्दिया बंदरगाह पर वर्ष 1972 से 2005 के मध्य समुद्र स्तर में प्रतिवर्ष 2.89 मिमी. तथा पोर्ट ब्लेयर के तट पर वर्ष 1916-1964 के बीच प्रतिवर्ष 2.20 मिमी. की वृद्धि हुई।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय समिति (International Panel on Climate Change) की पाँचवीं रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री जल स्तर में वृद्धि का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है। वैश्विक स्तर पर पिछली एक शताब्दी में औसतन 1.8 मिमी. की दर से समुद्री जल स्तर में बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
  • चेन्नई और मुंबई के तटों पर जल स्तर में क्रमशः 0.33 मिमी. प्रतिवर्ष (वर्ष 1916-2005) और 0.74 मिमी (वर्ष 1878-2005) की वृद्धि दर्ज की गई जो कि वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर औसत वृद्धि की तुलना में काफी कम था।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, समुद्र के बढ़ते जल स्तर से तटीय क्षेत्रों में तूफानी लहर, सुनामी, बाढ़, ऊँची लहरों और निचले तटीय इलाकों में तटीय क्षरण की घटनाएँ बढ़ सकती हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि पश्चिम बंगाल में अधिक है। ताज़े पानी और खारे पानी के मिश्रण के कारण ही सुंदरबन डेल्टा में विशेष रूप से तलछट का जमाव होता है।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के विशेषज्ञों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण केवल बर्फ और ग्लेशियर ही नहीं पिघलते बल्कि इससे महासागरों के जल का भी आंतरिक विस्तार होता है और इस प्रकार समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होती है।
  • पृथ्वी मंत्रालय के अनुसार, भारी बारिश और दिनोंदिन तापमान में तीव्र वृद्धि के साथ ही ग्रीष्म लहरें और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में विस्थापन आदि की घटनाएँ जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी हो सकती हैं।

महासागर विकास विभाग

(Department of Ocean Development- DOD)

  • महासागर विकास विभाग की स्‍थापना जुलाई 1981 में प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री के नियंत्रण में मंत्रिमंडल सचिवालय के भाग के रूप में की गई थी और मार्च 1982 में यह एक अलग विभाग के रूप में अस्‍तित्‍व में आया।
  • पूर्व में महासागर विकास विभाग देश में महासागर से जुडी विकासात्‍मक गतिविधियों के समन्‍वय और उन्हें बढ़ावा देने वाले नोडल मंत्रालय के रूप में कार्य करता था।
  • फरवरी 2006 में सरकार ने विभाग को महासागर विकास मंत्रालय के रूप में अधिसूचित किया।
  • इसके अतिरिक्‍त भारत सरकार ने महासागर विकास मंत्रालय का पुर्नगठन किया और 12, जुलाई, 2006 को राष्‍ट्रपति की अधिसूचना के माध्‍यम से एक नए मंत्रालय पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) की स्‍थापना की गई।
  • इसके तहत भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department), भारतीय उष्‍णदेशीय मौसम विज्ञान संस्‍थान (Indian Institute of Tropical Meteorology) और राष्‍ट्रीय मध्‍यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र National Centre for Medium Range Weather Forecasting) को प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया। सरकार ने अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा आयोग (Space Commission and Atomic Energy Commission) की तर्ज़ पर पृथ्‍वी आयोग (Earth Commission) की स्‍थापना को भी अनुमोदन प्रदान कर दिया है।

स्रोत:- द हिंदू


शासन व्यवस्था

GER में वृद्धि का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने वर्ष 2024 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio - GER) को 40 प्रतिशत तक बढ़ाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।

मुख्य बिंदु:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, इसे प्राप्त करने का एकमात्र तरीका पिछड़े ज़िलों में कॉलेज खोलना और सामाजिक तथा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगों को अध्ययन के लिये वहाँ दाख़िला देना ही है।
  • जहाँ एक ओर वर्तमान में देश का GER लगभग 25.8 प्रतिशत है, वहीं दूसरी ओर जातिगत आँकड़ों कि बात करें तो SC के लिये यह 21.8 प्रतिशत और ST के लिये यह 15.9 प्रतिशत है।
  • यदि भारत की तुलना वैश्विक स्तर पर की जाए तो भारत का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है।
  • ब्रिक्स राष्ट्रों की बात करें तो रूस में GER 81.8 प्रतिशत, ब्राज़ील में 50.5 प्रतिशत और चीन में 50.0 प्रतिशत है।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) ने अगले पाँच वर्षों में इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये 30,338 करोड़ रुपए का निवेश करने का प्रस्ताव किया है।
  • इस संदर्भ में मंत्रालय द्वारा जारी किये गए दस्तावेज़ में GER को 40 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिये एक चहुँमुखी रणनीति का सुझाव दिया गया है।

सरकार की चहुंमुखी रणनीति :

  • आर्थिक रूप से कमज़ोर 16 लाख युवाओं को शिक्षा से जोड़ने और आवासीय सुविधा प्रदान करने के लिये 8000 समरस हॉस्टलों (Samras Hostels) का निर्माण किया जाएगा।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों को सहायता करने के लिये 1000 करोड़ रुपए के निवेश से फिनिशिंग स्कूलों (Finishing Schools) का निर्माण किया जाएगा।
  • मंत्रालय द्वारा पिछड़े ब्लॉकों के 500 डिग्री कॉलेजों को व्यावसायिक डिग्री कॉलेज (Vocational Degree Colleges - VCD) में बदलने का भी प्रस्ताव रखा गया है।
  • बिना डिजिटल पहुँच वाले ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाना एक और बड़ी चुनौती है, जिससे निपटने के लिये सरकार वहाँ पर ‘कन्वेंशनल स्टडी सेंटर’ (Conventional Study Centres) स्थापित करेगी।

प्रस्तुत दस्तावेज़ से संबंधी महत्त्वपूर्ण पहलू :

  • यह दस्तावेज़ 10 विशेषज्ञों द्वारा विचार विमर्श के बाद तैयार किया गया है।
  • विशेषज्ञों के इस समूह की अध्यक्षता गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के चांसलर हसमुख अधिया ने की थी।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया


शासन व्यवस्था

अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अतंर्राज्यीय नदियों के जल और नदी घाटी से संबंधित विवादों के न्यायिक निर्णय के लिये अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक [Inter-State River Water disputes(Amendment) Bill] 2019 को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • यह विधेयक अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (Inter State River Water Disputes Act, 1956) में संशोधन का प्रावधान करता है।
  • इसका उद्देश्य अतंर्राज्यीय नदी जल विवादों के न्यायिक निर्णय को सरल और कारगर बनाना और मौजूदा संस्थागत ढाँचे को मज़बूत बनाना है।
  • प्रभाव:
  • न्यायिक निर्णय के लिये सख्त समय सीमा निर्धारण और विभिन्न बैंचों के साथ एकल न्यायाधिकरण के गठन से अतंर्राज्यीय नदियों से संबंधित विवादों तथा न्यायाधिकरण को सौंपे गए जल विवादों का तेज़ी से समाधान करने में मदद मिलेगी।
  • इस विधेयक में संशोधनों से न्‍यायिक निर्णय में तेज़ी आएगी।

जल-विवाद न्यायाधिकरण का गठन

  • जब किसी राज्य सरकार से अतंर्राज्यीय नदियों के बारे में जल विवाद के संबंध में कोई अनुरोध अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत प्राप्त हो और केंद्र सरकार का यह मत हो कि बातचीत के द्वारा जल विवाद का समाधान नही हो सकता तो केंद्र सरकार जल विवाद के न्यायिक निर्णय के लिये जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन करती है।

नदी जल विवाद से जुड़े संवैधानिक प्रावधान

  • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के निपटारे हेतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 262 में प्रावधान है।
  • अनुच्छेद 262(2) के तहत सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले में न्यायिक पुनरावलोकन और सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है।
  • अनुच्छेद 262 संविधान के भाग 11 का हिस्सा है जो केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रकाश डालता है।
  • अनुच्छेद 262 के आलोक में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 का आगमन हुआ।
  • इस अधिनियम के तहत संसद को अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के निपटारे हेतु अधिकरण बनाने की शक्ति प्रदान की गई, जिसका निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बराबर महत्त्व रखता है।
  • इस कानून में खामी यह थी कि अधिकरण के गठन और इसके फैसले देने में कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई थी।
  • सरकारिया आयोग (1983-88) की सिफरिशों के आधार पर 2002 में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में संशोधन कर अधिकरण के गठन में विलंब वाली समस्या को दूर कर दिया गया।

निष्कर्ष

जल एक सीमित संसाधन है और इसकी मांग मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ बढ़ती ही जा रही है। घटते जल-स्रोत और बढ़ती आवश्यकता, मांग-आपूर्ति के संतुलन को बिगाड़ते हैं जिससे नदी जल विवाद पैदा होता है। देश में कई नदी जल विवाद विभिन्न राज्यों के बीच लंबे समय से चल रहे हैं, जो एक गंभीर विषय है। अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के निपटारे हेतु बने नियम-कानूनों की अस्पष्टता और शिथिलता भी नदी जल विवाद के राजनीतिकरण को बढ़ावा देती है जिससे यह समस्या सुलझने की बजाय उलझती ही चली जाती है और नदी जल विवाद का कारण बनती है।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

द्वितीय भारत-रूस सामरिक आर्थिक वार्ता

चर्चा में क्यों?

नई दिल्ली में द्वितीय ‘भारत-रूस रणनीतिक आर्थिक संवाद (Second India-Russia Strategic Economic Dialogue-IRSED) का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • भारत-रूस रणनीतिक आर्थिक संवाद की दूसरी बैठक सहयोग के निम्नलिखित 6 प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित थी-

1. परिवहन अवसंरचना एवं प्रौद्योगिकियों का विकास (Development of Transport Infrastructure and Technologies)

2. कृषि एवं कृषि-प्रसंस्‍करण क्षेत्र का विकास (Development of Agriculture and Agro-Processing sector)

3. लघु एवं मझोले व्‍यवसाय को सहयोग (Small and Medium Business support)

4. डिजिटल रूपांतरण एवं उद्भव (फ्रंटियर) प्रौद्योगिकियाँ (Digital Transformation and Frontier Technologies)

5. व्‍यापार, बैंकिंग, वित्त एवं उद्योग क्षेत्र में सहयोग (Cooperation in Trade, Banking, Finance, and Industry)

6. पर्यटन एवं कनेक्टिविटी (Tourism & Connectivity)

  • ‘भारत-रूस रणनीतिक आर्थिक संवाद’ के दौरान समानांतर रूप से गोलमेज बैठकें आयोजित की गईं जिसमें सहयोग के क्षेत्रों के साथ-साथ उपर्युक्‍त प्रमुख क्षेत्रों में भावी वार्ताओं की ठोस रूपरेखा पर विचार-विमर्श किया गया।

परिवहन अवसंरचना एवं प्रौद्योगिकियों का विकास

  • परिवहन अवसंरचना एवं प्रौद्योगिकियों के विकास पर गोलमेज बैठक में परिवहन के विभिन्न साधनों जैसे- रेलवे में रेलों की गति को अद्यतन बनाने, यात्रियों की सुरक्षा और सहूलियत, भारत और रूस के बीच दोहरे बंदरगाहों के सृजन, पोत निर्माण और नदी नौवहन, अनुसंधान एवं विकास तथा समस्त परिवहन गलियारों में लागत की पूर्वानुमेयता में सहयोग पर चर्चा की गई।

कृषि और कृषि-प्रसंस्करण

  • कृषि और कृषि-प्रसंस्करण पर गोलमेज बैठक में दोनों देशों ने कृषि, मवेशी पालन और खाद्य प्रसंस्करण की गतिशील प्रकृति और सहयोग के क्षेत्र में अपार अवसरों को चिह्नित किया।
  • इस दौरान की गई सिफारिशों में सहयोग के प्रयासों को सुगम बनाने के लिये दोनों देशों के कृषि मंत्रालयों के मध्य सकारात्‍मक संवाद स्थापित करना शामिल था।
  • प्रमाणीकरण की स्वीकृति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) आधारित फ्रंटलाइन प्रौद्योगिकियों और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने पर भी चर्चा की गई।

लघु और मझोले व्यवसायों के बीच गठबंधन और सहयोग

  • भारत और रूस में लघु और मझोले व्यवसायों के बीच गठबंधन और सहयोग बढ़ाने हेतु गोलमेज बैठक में दोनों देशों के बीच प्रमुख बिंदुओं पर बातचीत करने की सिफारिश की गई।
  • वित्त तक पहुँच, डिजिटल बैंकिंग, ई-मार्केट तक पहुँच और समस्त क्षेत्रों में व्यापक आधार पर सहभागिता सुनिश्चित करने पर भी चर्चा की गई।

डिजिटल रूपांतरण एवं उद्भव (फ्रंटियर) प्रौद्योगिकियाँ

  • डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन और फ्रंटियर प्रौद्योगिकियों पर हुई गोलमेज बैठक में डिजिटल स्पेस और फ्रंटियर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत और रूस के बीच सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • रूस द्वारा विकसित प्लेटफार्मों का भारत किस प्रकार लाभ उठा सकता है तथा भारत द्वारा विकसित विभिन्न प्लेटफॉर्मों का रूस किस प्रकार लाभ उठा सकता है तथा भविष्य में विभिन्न क्षेत्रों जैसे- पेमेंट प्लेटफॉर्म, संयुक्त स्टार्ट-अप व्यवस्था, जैसे-शिक्षा, निर्माण और कौशल विकास में डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग में सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा की गई।

औद्योगिक व्यापार और सहयोग पर गोलमेज बैठक

  • औद्योगिक व्यापार और सहयोग पर गोलमेज बैठक में ऊर्जा, वित्त और बिज़नेस टू बिज़नेस (Business to Business) सहयोग एवं भागीदारी पर चर्चा की गई।
  • इसमें निवेश के अवसरों के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच जागरूकता के बढ़ने पर ज़ोर दिया गया।

पर्यटन और कनेक्टिविटी

  • पर्यटन और कनेक्टिविटी पर गोलमेज बैठक में द्विपक्षीय पर्यटन बढ़ाने और आर्थिक एवं वाणिज्यिक साझेदारी के लिये प्राकृतिक मार्ग तलाशने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में सुधार तथा सरकार और उद्योग के बीच सहयोग में सुधार लाने की दिशा में भी चर्चा की गई।

पृष्ठभूमि

  • 5 अक्तूबर, 2018 को नई दिल्ली में वार्षिक भारत—रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन (Annual India-Russia Bilateral Summit) के 19वें संस्करण के दौरान नीति आयोग (NITI Aayog) और रूस के आर्थिक विकास मंत्रालय के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के बाद IRSED की स्थापना की गई।
  • ‘भारत-रूस रणनीतिक आर्थिक संवाद’ की प्रथम बैठक 25-26 नवंबर, 2018 को सेंट पीटर्सबर्ग में हुई थी।

निष्कर्ष

  • वार्ता के दौरान हुए विचार-विमर्श के नतीजों से दोनों देशों के बीच रणनीतिक आर्थिक सहयोग बढ़ाने में मदद मिलेगी। भविष्‍य में संयुक्‍त रूप से ठोस कदम उठाने के लिये आवश्‍यक विचार-विमर्श के साथ-साथ विशिष्‍ट प्रस्‍ताव प्रस्तुत किये जाने चाहिये। साथ ही ऐसे आर्थिक संबंध स्थापित करने चाहिये जो दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाओं को प्रतिबिंबित करे।

स्रोत: PIB


सामाजिक न्याय

बच्‍चों से जुड़े यौन अपराधों के लिये सख्त दंडात्‍मक प्रावधान

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में मंत्रिमंडल ने बच्‍चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के संदर्भ में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए बाल यौन अपराध संरक्षण कानून 2012 (पोक्‍सो) में संशोधन (Amendments in the Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012) को मंज़ूरी दे दी है।

  • प्रमुख बिंदु:
  • इस संशोधन में बच्‍चों से जुड़े यौन अपराधों के लिये मृत्‍युदंड सहित सख्‍त दंडात्‍मक प्रावधान किये गए हैं।
  • कानून में संशोधन के ज़रिये कड़े दंडात्‍मक प्रावधानों के फलस्वरूप बच्‍चों से जुड़े यौन अपराधों में कमी आएगी।
  • विपरीत परिस्थिति में फंसे बच्‍चों के हितों की रक्षा की जा सकेगी साथ ही उनकी सुरक्षा एवं सम्‍मान भी सुनिश्चित हो सकेगा।
  • इस संशोधन का लक्ष्‍य बच्‍चों से जुड़े अपराधों के मामले में दंडात्‍मक व्‍यवस्‍थाओं को अधिक स्‍पष्‍ट करना है।

पृष्‍ठभूमि:

  • POCSO, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) का संक्षिप्त नाम है।
  • संभवतः मानसिक आयु के आधार पर इस अधिनियम का वयस्क पीड़ितों तक विस्तार करने के लिये उनकी मानसिक क्षमता के निर्धारण की आवश्यकता होगी। इसके लिये सांविधिक प्रावधानों और नियमों की भी आवश्यकता होगी, जिन्हें विधायिका अकेले ही लागू करने में सक्षम है।
  • POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्‍पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था।
  • इस अधिनियम ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्‍यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और बच्‍चे का शारीरिक, भावनात्‍मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये हर चरण को ज्‍यादा महत्त्व देते हुए बच्‍चे के श्रेष्‍ठ हितों और कल्‍याण का सम्‍मान करता है। इस अधिनियम में लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination) नहीं है।

“हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है कि 16 वर्ष की आयु के बाद सहमति से यौनिक, शारीरिक संबंध या इस प्रकार के अन्य कृत्यों को POCSO अधिनियम के दायरे से बाहर कर देना चाहिये।”

मद्रास उच्च न्यायालय के सुझाव

  • POCSO अधिनियम के खंड 2(d) के अंतर्गत चाइल्ड/बालक को 18 वर्ष से कम आयु के बजाय 16 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में पुनः परिभाषित किया जा सकता है।
  • अधिनियम में कुछ उपयुक्त संशोधन किये जा सकते हैं ताकि 16 वर्ष से अधिक आयु की लड़की और 16 से 21 वर्ष की आयु के बीच के लड़के के बीच के संबंधों पर सख्त प्रावधान लागू न हों।
  • यदि सहमति से बने यौन संबंधों के मामले में 16 वर्ष या उससे अधिक आयु की पीड़िता से अपराध करने वाले व्यक्ति की आयु पाँच वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिये। इस प्रकार अपरिपक्व आयु की लड़की का किसी परिपक्व व्यक्ति द्वारा लाभ उठाए जाने से रोका जा सकेगा।

विभिन्न अधिनियमों के अंतर्गत निर्धारित आयु वर्ग के तहत चाइल्ड/बालक की परिभाषा

  • POCSO अधिनियम: 18 वर्ष से कम
  • बाल मज़दूर (निषेध एवं विनियमन)अधिनियम 1986: 14 वर्ष से कम
  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: 14 वर्ष से कम
  • कंपनी अधिनियम, 1948: 15 वर्ष से कम

आयु की सहमति प्रदान करने पर वैश्विक कानून

  • बहुत से देशों में 16 साल या उससे कम आयु वर्ग को चाइल्ड/बालक की श्रेणी में रखा गया है।
  • अमेरिका के बहुत से देश, यूरोप, जापान, कनाडा ऑस्ट्रेलिया चीन और रूस भी इस श्रेणी में शामिल है।

POCSO के अंतर्गत निर्धारित आयु में कमीं की माँग

  • डिज़िटल तकनीकी के नवाचार के इस दौर में बच्चों को ज़्याद- से-ज़्यादा जानकारियाँ प्राप्त हैं। वे POCSO द्वारा निर्धारित आयु से बहुत पहले ही किसी भी रिश्ते के प्रति वयस्क और परिपक्व हो रहे हैं।
  • 16-18 आयु वर्ग के बच्चों द्वारा पाए गए यौन शोषण के मामले जो लड़की के माता-पिता या अभिभावकों के अनुरोध पर दर्ज़ किये जाते हैं, सामान्यतः सहमति पर आधारित होते हैं। ऐसे बहुत से मामले न्यायालय में लंबित हैं जिनमें POCSO प्रावधान का लाभ उठाकर इसका दुरूपयोग किया जा रहा है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

व्‍यावसायिक सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और कार्यस्‍थल स्थिति विधेयक, 2019 संहिता

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने व्‍यावसायिक सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और कार्यस्‍थल स्थिति विधेयक, 2019 संहिता (Code on Occupational Safety, Health and Working Conditions Bill, 2019) को संसद में पेश करने की मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • इसके माध्‍यम से विधेयक में श्रमिकों की सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और कार्यस्‍थल की स्थितियों से संबंधित व्‍यवस्‍थाओं को वर्तमान की तुलना में कई गुना बेहतर बनाया जा सकेगा।
  • नई संहिता के माध्‍यम से महत्त्वपूर्ण केंद्रीय श्रम कानूनों की निम्‍नलिखित व्‍यवस्‍थाओं को एक साथ मिलाकर, सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है:

1. कारखाना अधिनियम 1948 (The Factories Act, 1948)

2. खदान अधिनियम 1952; बंदरगाह श्रमिक (सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और कल्‍याण) कानून, 1986

3. भवन और अन्‍य निर्माण कार्य (रोजगार का विनियमन और सेवा शर्तें) कानून 1996

4. बागान श्रम अधिनियम 1951

5. संविदा श्रम (विनियमन और उन्‍मूलन) अधिनियम, 1970

6. अंतर्राज्‍यीय प्रवासी श्रमिक (रोजगार का विनियमन और सेवा शर्तें) अधिनियम 1979

7. श्रमजीवी पत्रकार और अन्‍य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें और अन्‍य प्रावधान) अधिनियम 1955

8. श्रमजीवी पत्रकार (निर्धारित वेतन दर) अधिनियम 1958

9. मोटर परिवहन कर्मकार अधिनियम 1961

10. बिक्री संवर्धन कर्मचारी (सेवा शर्त) अधिनियम 1976

11. बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोजगार शर्तें) अधिनियम 1966

12. सिनेमा कर्मचारी और सिनेमा थिएटर कर्मचार (अधिनियम 1981)

  • नई संहिता के लागू होने के साथ ही उपरोक्‍त सभी अधिनियम इस संहिता में समाहित हो जाएंगे और अलग से उनका कोई अस्तित्‍व नहीं रह जायेगा।
  • देश के कार्यबल के लिये स्‍वस्‍थ और सुरक्षित कामकाज की स्थितियाँ उपलब्‍ध कराने के उद्देश्‍य से नई श्रम संहिता का दायरा मौजूदा बड़े औ़द्योगिक क्षेत्रों से बढ़ाकर उन सभी औद्योगिक प्रतिष्‍ठानों तक कर दिया गया है जहाँ 10 या उससे अधिक लोग काम करते हैं।

लाभ

  • सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएँ और कार्यस्‍थलों में कामकाज की बेहतर स्थितियाँ श्रमिकों के कल्‍याण के साथ ही देश के आर्थिक विकास के लिये भी पहली शर्त है क्योंकि इनसे देश का स्‍वस्‍थ कार्यबल ज़्यादा उत्‍पादक होगा और कार्यस्‍थलों में सुरक्षा के बेहतर इंतजाम होने से दुर्घटनाओं में कमी आएगी जो कर्मचारियों के साथ ही नियोक्‍ताओं के लिये भी फायदेमंद होगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (11 July)

  • 11 जुलाई को दुनियाभर में विश्व जनसंख्या दिवस का आयोजन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास कार्यक्रम के तहत वर्ष 1989 से विश्व जनसंख्या दिवस मनाने की शुरुआत हुई। बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये यह दिवस मनाया जाता है। वैश्विक जनसंख्या मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों के तहत इसमें परिवार नियोजन, लिंग समानता, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य और मानव अधिकारों के महत्त्व की जानकारी लोगों को दी जाती है। संयुक्त राष्ट्र परिषद हर साल विश्व जनसंख्या दिवस की थीम निर्धारित करती है, लेकिन वर्ष 2019 में किसी विशिष्ट विषय का चयन नहीं किया गया। इसके बजाय जनसंख्या और विकास पर वर्ष 1994 के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अधूरे एजेंडे को पूरा करने पर विश्व का ध्यान आकृष्ट किया गया।
  • भारत और रूस के बीच दूसरे दौर की रणनीतिक-आर्थिक वार्ता (IRSED) 10 जुलाई को नई दिल्ली में हुई। इस वार्ता में परिवहन सुविधा एवं प्रौद्योगिकियों का विकास; कृषि एवं कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र का विकास; लघु एवं मध्यम कारोबार सहायता; डिजिटल सुधार एवं अग्रणी प्रौद्योगिकियाँ; व्यापार, बैंकिंग, वित्त एवं उद्योग के क्षेत्र में सहयोग तथा पर्यटन एवं संपर्कता जैसे क्षेत्रों में सहयोग के 6 प्रमुख क्षेत्रों पर जोर दिया गया। ज्ञातव्य है कि 5 अक्तूबर, 2018 को नीति आयोग और रूसी संघ के आर्थिक विकास मंत्रालय के बीच 19वें वार्षिक भारत-रूस द्विपक्षीय सम्मेलन के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर के बाद IRSED की स्थापना की गई थी। भारत और रूस के बीच पहले दौर की रणनीतिक-आर्थिक वार्ता 25-26 नवंबर, 2018 को सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित की गई थी।
  • 9 जुलाई को नई दिल्ली में भारत-आसियान त्रिगुट (Trokia) व्‍यापार मंत्रियों की बैठक आयोजित की गई, जिसका उद्देश्‍य वर्तमान में जारी क्षेत्रीय व्‍यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) पर अनौपचारिक सलाह-मशविरा करना था। भारत RCEP को अपनी ‘एक्‍ट ईस्‍ट’ नीति का एक तार्किक विस्तार मानता है, जिसमें आर्थिक विकास एवं स्‍थायित्‍व के लिये व्‍यापक संभावनाएँ हैं। हाल ही में मेलबर्न में विशेषज्ञ स्‍तर पर RCEP वार्ताओं का 26वाँ दौर आयोजित हुआ था, जिसमें सदस्‍य देशों ने कुछ हद तक लचीलापन एवं सामंजस्‍यपूर्ण रुख दर्शाया। भारत ने भी ऐसा करते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में समु‍चि‍त सामंजस्‍य बैठाने में मदद की। लेकिन भारतीय वस्‍तुओं के मामले में, विशेषकर चीन के साथ बाज़ार पहुँच से जुड़े मुद्दे काफी जटिल हैं। भारत यह भी मानता है कि पिछले मुक्‍त व्‍यापार समझौतों के प्रभाव को लेकर भारत में अनेक आशंकाएं हैं क्योंकि भारत ने वस्‍तुओं के मामले में जितनी रियायतें दी हैं उनके मुकाबले उसे अपेक्षाकृत कम छूट प्राप्‍त हुई है।
  • नई दिल्ली में ही उपरोक्त बैठक से इतर भारत और इंडोनेशिया के व्यापार मंत्रियों की द्विस्तरीय बैठक का आयोजन हुआ। इस बैठक में वाणिज्‍य एवं उद्योग तथा रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इंडोनेशिया में भारतीय वाहन और वाहन उपकरण उद्योग के आयात कोटा प्रतिबंधों की चिंता को रेखांकित किया। इन प्रतिबंधों से भारतीय निर्यात पर विपरीत असर पड़ा है। द्विपक्षीय FTA व्‍यवस्‍था के कारण भारतीय वाहन निर्माताओं की तुलना में अन्‍य प्रतियोगियों को बेहतर सुविधा मिली हुई है। भारत ने इंडोनशिया के साथ व्‍यापार को लेकर भी चिंता जताई। भारत यह मानता है कि कृषि, वाहन, इंजीनियरिंग उत्‍पाद, सूचना प्रौद्योगिकी, औषधि, जैव प्रौद्योगिकी और स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल क्षेत्रों में व्‍यापार विस्‍तार की पर्याप्त संभावनाएं हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्‍यापार वर्ष 2018-19 के दौरान 21.13 बिलियन डॉलर रहा और इस दौरान व्‍यापार संतुलन (10.57) बिलियन डॉलर इंडोनेशिया के पक्ष में रहा। गौरतलब है कि आसियान क्षेत्र में इंडोनेशिया भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्‍यापार सहयोगी है। पहले स्‍थान पर सिंगापुर है।
  • 9 और 10 जुलाई को नई दिल्ली में नशीली दवाओं की तस्‍करी और इससे संबंधित मुद्दों को लेकर भारत के नारकोटिक्‍स नियंत्रण ब्‍यूरो और म्‍यांमार में नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर नियंत्रण के लिये केंद्रीय समिति के बीच चौथी महानिदेशक स्‍तर की वार्ता का आयोजन किया गया। इस द्विपक्षीय बैठक का उद्देश्य दोनों देशों के बीच नशीली दवाओं की तस्‍करी के खिलाफ समन्वित और ठोस कार्रवाई करना था। बैठक में दोनों पक्षों ने नशीली दवाओं की समस्‍या के संबंध में आपसी चिंताओं को साझा किया तथा नशीली दवाइयों और इनकी तस्‍करी से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी के आदान-प्रदान का संकल्‍प लिया। ज्ञातव्य है कि म्यांमार में खसखस की अवैध खेती और हेरोइन उत्पादन की प्रवृत्ति, म्यांमार से भारत में हेरोइन की तस्करी, भारत-म्यांमार सीमा पर एफेड्रिन/श्‍यूडो-इफेड्रिन भारत के लिये चिंता का एक बड़ा कारण है।
  • इंग्लैंड के मैनचेस्टर में 9-10 जुलाई को खेले गए ICC विश्व कप क्रिकेट के वर्षा बाधित सेमीफाइनल मैच में न्यूज़ीलैंड ने भारत को 18 रन से पराजित कर दिया। भारत के सामने जीत के लिये 240 रनों का लक्ष्य था, लेकिन उसकी पारी 49.3 ओवर में 221 रनों पर सिमट गई। न्यूज़ीलैंड के मैट हेनरी ने 37 रन देकर तीन विकेट लिये और उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया। इस प्रकार न्यूज़ीलैंड लगातार दूसरी बार फाइनल में जगह बनाने में सफल रहा। न्यूज़ीलैंड वर्ष 2015 में भी फाइनल में पहुँचा था, जहाँ उसे ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। ज्ञातव्य है कि पाँचवीं बार इंग्लैंड और वेल्स में आयोजित ICC विश्व कप क्रिकेट का यह 12वाँ संस्करण था। इस बार का विश्व कप राउंड रोबिन पद्धति पर खेला गया जिसमें सभी टीमें आपस में एक-दूसरे के साथ मैच खेलती हैं। पहला विश्व कप (प्रूडेंशियल कप) वर्ष 1975 में इंग्लैंड और वेल्स में आयोजित किया गया था, जिसमें वेस्ट इंडीज ने ऑस्ट्रेलिया को क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स के मैदान में खेले गए फाइनल में 17 रनों से हराया था।

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