अंतर्राष्ट्रीय संबंध
IBSA और डिजिटल गवर्नेंस रिफॉर्म
प्रिलिम्स के लिये:IBSA फोरम, दक्षिण-दक्षिण सहयोग का संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOSSC), भारत की आधार बायोमेट्रिक आईडी प्रणाली, भारत की G-20 अध्यक्षता। मेन्स के लिये:ग्लोबल डिजिटल गवर्नेंस से संबंधित प्रमुख मुद्दे, IBSA ग्रुप की पहल। |
चर्चा में क्यों?
जिनेवा स्थित डिप्लो फाउंडेशन के अनुसार, भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका ने मिलकर त्रिपक्षीय IBSA फोरम का गठन किया है, जो डिजिटल गवर्नेंस में सुधार की प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
IBSA क्या है?
- परिचय:
- IBSA दक्षिण-दक्षिण सहयोग और विनिमय को बढ़ावा देने के लिये भारत, ब्राज़ील एवं दक्षिण अफ्रीका के बीच एक त्रिपक्षीय, विकासात्मक पहल है।
- संघटन:
- जब 6 जून, 2003 को ब्रासीलिया (ब्राज़ील) में तीन देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई और ब्रासीलिया घोषणापत्र जारी किया गया, तब इस समूह को औपचारिक रूप दिया गया तथा इसका नाम IBSA डायलॉग फोरम रखा गया।
- सहयोग:
- संयुक्त नौसेना अभ्यास:
- IBSAMAR (IBSA समुद्री अभ्यास) IBSA त्रिपक्षीय रक्षा सहयोग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- IBSA कोष:
- 2004 में स्थापित IBSA कोष (भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका में गरीबी एवं भूख के उन्मूलन के लिये सुविधा) एक अनूठा कोष है जिसके माध्यम से सहयोगी विकासशील देशों में IBSA निधिकरण के साथ विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है।
- कोष का प्रबंधन दक्षिण-दक्षिण सहयोग के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOSSC) द्वारा किया जाता है।
- संयुक्त नौसेना अभ्यास:
IBSA वैश्विक डिजिटल गवर्नेंस में कैसे योगदान दे सकता है?
- IBSA की क्षमता:
- डिजिटल समावेशन:
- डिजिटलीकरण IBSA अर्थव्यवस्थाओं में विकास को गति दे रहा है।
- तीनों देशों ने नागरिकों तक सस्ती पहुँच को प्राथमिकता देकर, डिजिटल कौशल के लिये प्रशिक्षण का समर्थन करके और छोटे डिजिटल उद्यमों के विकास के लिये एक कानूनी ढाँचा बनाकर डिजिटल समावेशन का नेतृत्व किया है। जीवंत डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ भारत सबसे आगे है।
- डेटा गवर्नेंस:
- भारत की G-20 अध्यक्षता का उद्देश्य व्यावहारिक पहलों जैसे कि राष्ट्रों के डेटा गवर्नेंस आर्किटेक्चर का स्व-मूल्यांकन, नागरिकों की आवाज़ और वरीयताओं को नियमित रूप से शामिल करने के लिये राष्ट्रीय डेटा सिस्टम का आधुनिकीकरण तथा डेटा को नियंत्रित करने हेतु पारदर्शिता के साथ सिद्धांतों का रणनीतिक नेतृत्त्व करना है।
- IBSA राष्ट्र जिनकी आबादी काफी अधिक है, वे भी डेटा को एक राष्ट्रीय संसाधन के रूप में देखते हैं।
- डिजिटल समावेशन:
- मुद्दे :
- भू राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता:
- उपग्रह टकराव, साइबर सुरक्षा, और अंतरिक्ष सेवाओं की सुरक्षा के साथ-साथ अंतरिक्ष संसाधनों की खोज ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता एवं अंतरिक्ष शस्त्रीकरण की संभावना को बढ़ा दिया है।
- इसके अतिरिक्त अर्द्धचालक के रूप में यूएस-चीन के मध्य वैश्विक भू-राजनीतिक संघर्ष केंद्रित है।
- उपग्रह टकराव, साइबर सुरक्षा, और अंतरिक्ष सेवाओं की सुरक्षा के साथ-साथ अंतरिक्ष संसाधनों की खोज ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता एवं अंतरिक्ष शस्त्रीकरण की संभावना को बढ़ा दिया है।
- संप्रभुता बनाम एकता:
- बुनियादी तौर पर यह माना जाता है कि कई देशों को वैश्विक अर्थव्यवस्था में डेटा संप्रभुता और उसके एकीकरण को संतुलित करना होगा।
- छोटे और निर्यातोन्मुख अर्थव्यवस्थाओं के लिये डेटा का मुक्त प्रवाह आवश्यक होगा।
- भू राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता:
डिजिटल गवर्नेंस में भारत की प्रगति:
- आधार: भारत के आधार कार्यक्रम द्वारा उपयोग की जाने वाली बायोमेट्रिक आईडी प्रणाली को व्यापक रूप से डिजिटल पहचान बनाने में एक अग्रणी प्रयास माना जाता है जो अन्य देशों की प्रणालियों के समान है।
- MyGov प्लेटफॉर्म: इसने एक साझा डिजिटल प्लेटफार्म प्रदान कर देश में नागरिक संलग्नता एवं भागीदारी शासन की सुदृढ़ नींव रखी है, जहाँ नागरिक सरकारी कार्यक्रमों एवं योजनाओं के संबंध में अपने विचार साझा कर सकते हैं।
- यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI): यूपीआई एक रीयल-टाइम भुगतान प्रणाली है जिसे वर्ष 2016 में पेश किया गया, यह मोबाइल डिवाइस का उपयोग करके बैंक खातों के बीच तत्काल धन हस्तांतरण को सक्षम बनाता है।
- UPI ने भारत में भुगतान के तरीके को बदल कर इसे तीव्र, अधिक सुविधाजनक और अधिक सुरक्षित बना दिया है। UPI की सफलता ने अन्य देशों को भारत के साथ गठजोड़ करने तथा समान भुगतान प्रणाली को अपनाने के लिये प्रेरित किया है।
- डिजिटल इंडिया अधिनियम: भारत सरकार ने डिजिटल इंडिया अधिनियम 2023 का प्रस्ताव दिया है, जिसका उद्देश्य सुरक्षा, विश्वास और जवाबदेही के मामले में भारतीय नागरिकों की रक्षा करते हुए अधिक नवाचार एवं स्टार्टअप को सक्षम कर भारतीय अर्थव्यवस्था हेतु उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना है।
आगे की राह
- अन्य देशों और संगठनों के साथ सहयोग: IBSA देशों को डिजिटल गवर्नेंस, डेटा सुरक्षा और साइबर सुरक्षा हेतु वैश्विक मानक विकसित करने के लिये अन्य देशों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
- साझा रणनीति का विकास: IBSA देशों को डिजिटल गवर्नेंस पर एक आम रणनीति विकसित करनी चाहिये, साथ ही वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था के साझा दृष्टिकोण की दिशा में काम करना चाहिये जो डिजिटल समावेशन, डेटा गोपनीयता एवं सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
- यह रणनीति उनके साझा मूल्यों और सिद्धांतों जैसे- मानवाधिकारों, लोकतंत्र एवं कानून के शासन पर आधारित होनी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
केंद्र द्वारा क्रिप्टो को PMLA के अधीन लाया गया
प्रिलिम्स के लिये:क्रिप्टो करेंसी, PMLA, ईडी, आभासी डिजिटल परिसंपत्ति(VDA)। मेन्स के लिये:मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत क्रिप्टो। |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा एक गजट नोटिफिकेशन के ज़रिये आभासी डिजिटल परिसंपत्ति (VDA) या क्रिप्टो करेंसी को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत लाया गया है।ज़ि
प्रमुख बिंदु
- आवश्यकता:
- क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े लेन-देन अपारदर्शी बने हुए हैं और इसके बारे में जानकारी करना मुश्किल हो रहा है।
- यह क्रिप्टोकरेंसी व्यापार में पारदर्शिता लाने के लिये क्रिप्टोकरेंसी बाज़ारों की ज़िम्मेदारी को बढ़ाता है।
- वित्त के डिजिटल युग में न केवल निवेशकों बल्कि राष्ट्र के हितों की रक्षा के लिये इसका अनुपालन आवश्यक है। इस संबंध में क्रिप्टो उद्योग का महत्त्व बढ़ रहा है क्योंकि दुनिया भर के नियामक और सरकारें इस तेज़ी से विकसित हो रहे बाज़ार पर अधिक ध्यान दे रही हैं।
- इस उपाय से जाँच एजेंसियों को क्रिप्टो फर्मों के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
- क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े लेन-देन अपारदर्शी बने हुए हैं और इसके बारे में जानकारी करना मुश्किल हो रहा है।
- मानदंड:
- VDA सेवा प्रदाता/व्यवसाय अब PMLA अधिनियम के तहत 'रिपोर्टिंग संस्था' बन गए हैं और उन्हें अन्य विनियमित संस्थाओं जैसे- बैंकों, प्रतिभूति मध्यस्थों, भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों आदि के समान रिपोर्टिंग मानकों एवं केवाईसी मानदंडों का पालन करना होगा।
- PMLA के अंतर्गत आने वाली गतिविधियांँ:
- आभासी डिजिटल संपत्ति (VDAs) और फिएट मुद्राओं (Fait Currencies) के बीच आदान-प्रदान।
- VDAs के एक या अधिक रूपों के बीच आदान-प्रदान।
- VDAs का स्थानांतरण।
- VDA या VDAs पर नियंत्रण को सक्षम करने वाले उपकरणों की सुरक्षा या प्रशासन।
- किसी जारीकर्त्ता के VDA की पेशकश और बिक्री से संबंधित वित्तीय सेवाओं में भागीदारी एवं प्रावधान।
संबंधित चिंताएंँ क्या हैं?
- अधिसूचना नए मानदंडों का पालन करने के लिये संस्थाओं को पर्याप्त समय प्रदान नहीं करती है। क्रिप्टो उद्योग भी चिंतित है कि एक केंद्रीय नियामक की अनुपस्थिति में क्रिप्टो संस्थाएंँ प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सीधे व्यवहार कर सकती हैं।
- 17 मिलियन उपयोगकर्त्ता फरवरी 2022 में केंद्रीय बजट में कर प्रणाली की घोषणा के बाद से भारतीय VDA उपभोक्ता घरेलू, केंद्रीकृत VDA एक्सचेंजों से विदेशी समकक्षों में स्थानांतरित हो गए हैं।
- भारतीय क्रिप्टो व्यापारियों ने स्थानीय एक्सचेंजों से अंतर्राष्ट्रीय क्रिप्टो प्लेटफॉर्मों पर ट्रेडिंग वॉल्यूम में 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की बढ़ोतरी की है।
- इससे कर राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है, साथ ही लेन-देन का पता लगाने की क्षमता में कमी आएगी, जो मौजूदा नीति संरचना के दो केंद्रीय लक्ष्यों को असफल करता है।
- VDA टैक्स आर्किटेक्चर के नकारात्मक प्रभाव से पूंजी के बहिर्वाह में और तेज़ी आने एवं अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के निवेश की संभावना कम है।
भारत में क्रिप्टो की कानूनी स्थिति:
- केंद्रीय बजट 2022-23 में सरकार ने क्रिप्टोकरेंसी हेतु टैक्स की घोषणा की है, लेकिन अभी तक कोई नियम नहीं बनाया गया है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा अनुशंसित पूर्व निषेध को सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले द्वारा रद्द कर दिया गया था।
- वित्त मंत्री ने जुलाई 2022 में संसद को सूचित किया कि RBI की चिंताओं के जवाब में किसी भी सफल विनियमन या क्रिप्टोकरेंसी के निषेध के लिये "अंतर्राष्ट्रीय सहयोग" आवश्यक होगा।
- अप्रैल 2022 से भारत ने क्रिप्टोकरेंसी से हुए लाभ पर 30% का आयकर लगाया है।
- जुलाई 2022 में क्रिप्टोकरेंसी पर स्रोत पर 1% कर कटौती के नियम लागू हुए।
आगे की राह
- अगर क्रिप्टो लॉन्ड्रिंग के खिलाफ कानून और दिशा-निर्देश हैं, तो निवेशकों को दंडित किये जाने का डर होगा। चीज़ों को और अधिक सुव्यवस्थित बनाने के लिये भारत में एक्सचेंजो को एक कर वर्ष के भीतर निवेशकों द्वारा निश्चित राशि से अधिक के किये गए हस्तांतरण का पता लगाना चाहिये और कर अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट करनी चाहिये।
- VDA टैक्स निर्माण के प्रभाव को दूर करने के लिये सरकार को अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप अल्पकालिक और दीर्घकालिक लाभ के लिये विभेदित दरों के साथ एक प्रगतिशील कर संरचना को अपनाना चाहिये।
- 2022 में VDA से संबंधित एक नई कर व्यवस्था की घोषणा की गई, जो उपयोगकर्त्ताओं को घरेलू से अंतर्राष्ट्रीय समकक्षों में बदलती है, जिसने पूंजी के बहिर्वाह को आगे बढ़ाया।
स्रोत: दैनिक जागरण
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सऊदी अरब-ईरान राजनयिक संबंध बहाल करने हेतु सहमत
प्रिलिम्स के लिये:यमन में हूती विद्रोही, मध्य-पूर्वी देशों की भौगोलिक स्थिति, पश्चिम एशिया। मेन्स के लिये:सऊदी अरब-ईरान संबंधों में भारत की भूमिका, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सऊदी अरब और ईरान के अधिकारियों ने द्विपक्षीय वार्ता की जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2016 से समाप्त राजनयिक संबंधों को बहाल करने हेतु एक समझौता हुआ। बीजिंग में चीन द्वारा महत्त्वपूर्ण राजनयिक उपलब्धि हासिल की गई।
- यह समझौता तब हुआ जब राजनयिक रूप से यमन में लंबे युद्ध को समाप्त करने की कोशिश हो रही है, एक ऐसा संघर्ष जिसमें ईरान और सऊदी अरब दोनों ही अत्यधिक उलझे हुए हैं।
प्रमुख बिंदु
- ये दोनों देश तेहरान और रियाद में अपने-अपने दूतावास फिर से खोलने की योजना बना रहे हैं।
- उन्होंने देशों की संप्रभुता का सम्मान करने और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की भी शपथ ली।
- वे वर्ष 2001 के सुरक्षा सहयोग समझौते के साथ-साथ वर्ष 1998 में हस्ताक्षरित एक सामान्य अर्थव्यवस्था, व्यापार और निवेश समझौते को सक्रिय करने पर भी सहमत हुए।
ईरान और सऊदी अरब के बीच विवाद:
- धार्मिक कारक:
- सऊदी अरब में कुछ दिनों पहले एक प्रमुख शिया धर्मगुरु की हत्या के बाद प्रदर्शनकारियों ने सऊदी राजनयिक चौकियों पर हमला किया था, जिसके बाद सऊदी अरब ने वर्ष 2016 में ईरान के साथ संबंध समाप्त कर दिये थे।
- सऊदी अरब ने लंबे समय से खुद को दुनिया के अग्रणी सुन्नी राष्ट्र के रूप में चित्रित किया है, जबकि ईरान ने खुद को इस्लाम के शिया अल्पसंख्यक के रक्षक के रूप में प्रदर्शित किया है।
- सऊदी अरब पर हमले:
- ईरान के परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने के बाद से ईरान को वर्ष 2019 में सऊदी अरब के तेल उद्योग को लक्षित करने सहित कई हमलों हेतु दोषी ठहराया गया था।
- पश्चिमी देशों और विशेषज्ञों ने ईरान पर हमले का आरोप लगाया है, हालाँकि ईरान ने हमलों से इनकार किया है।
- ईरान के परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने के बाद से ईरान को वर्ष 2019 में सऊदी अरब के तेल उद्योग को लक्षित करने सहित कई हमलों हेतु दोषी ठहराया गया था।
- क्षेत्रीय शीत युद्ध: सऊदी अरब और ईरान जैसे दो शक्तिशाली पड़ोसी क्षेत्रीय प्रभुत्त्व हेतु संघर्षशील हैं।
- अरब में विद्रोह (वर्ष 2011 के अरब स्प्रिंग के बाद) पूरे क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता का कारण बना है।
- ईरान और सऊदी अरब ने अपने प्रभाव का विस्तार करने हेतु इस अस्थिरता का फायदा विशेष रूप से सीरिया, बहरीन और यमन के संदर्भ में उठाया, जिसने आपसी संदेह को और बढ़ा दिया।
- इसके अलावा सऊदी अरब और ईरान के बीच संघर्ष को बढ़ाने में अमेरिका एवं इज़रायल जैसी बाहरी शक्तियों की प्रमुख भूमिका है।
- परोक्ष युद्ध: ईरान और सऊदी अरब सीधे युद्ध नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वे क्षेत्र के चारों ओर विभिन्न प्रकार से परोक्ष रूप से युद्धों (संघर्षों में जहाँ वे प्रतिद्वंद्वी पक्षों और मिलिशिया का समर्थन करते हैं) में रत हैं।
- उदाहरण के लिये यमन में हूति विद्रोही। ये समूह अधिक क्षमताएँ हासिल कर सकते हैं जो क्षेत्र में और अस्थिरता पैदा करेगा। सऊदी अरब ने ईरान पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया है।
- इस्लामी दुनिया काका नेतृत्त्वकर्त्ता: ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब एक राजशाही और इस्लाम का जन्मस्थान, खुद को मुस्लिम दुनिया के नेता के रूप में देखता था।
- हालाँकि इसे 1979 में ईरान में हुई इस्लामी क्रांति ने चुनौती दी थी जिसने इस क्षेत्र में एक नए राज्य का निर्माण किया, एक प्रकार का क्रांतिकारी लोकतंत्र- जिसका स्पष्ट लक्ष्यइस मॉडल को अपनी सीमाओं से परे पहुँचाना था।
वैश्विक प्रभाव
- प्रतिबंधों के माध्यम से ईरान को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के अमेरिकी नेतृत्त्व के प्रयास इस सौदे के निहितार्थ हो सकते हैं क्योंकि यह सौदा ईरान के अंदर संभावित सऊदी निवेश की सुविधा प्रदान कर सकता है।
- यमन में सऊदी-ईरानी समर्थित हूति विद्रोहियों के खिलाफ आठ साल के गृहयुद्ध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन ओमान हूतियों के साथ निजी वार्ता आयोजित करके युद्ध को समाप्त करने का रास्ता तलाश रहा है।
- सऊदी अरब को यह उम्मीद है कि ईरान देश पर हूती ड्रोन और मिसाइल आक्रमणों को रोक देगा और ईरान हूतियों के साथ सऊदी वार्ता में मदद करेगा।
- यह समझौता उन कई इज़रायली राजनेताओं के बीच चिंता पैदा करेगा जिन्होंने अपने कट्टर दुश्मन ईरान के लिये वैश्विक अलगाव की मांग की है। इज़रायल ने समझौते को "गंभीर और खतरनाक" विकास के रूप में वर्णित किया।
भारत पर इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं?
- ऊर्जा सुरक्षा:
- ईरान और सऊदी अरब विश्व के दो प्रमुख तेल उत्पादक देश हैं और उनके बीच किसी भी तरह के संघर्ष से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
- इन दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने से तेल की वैश्विक कीमतों को स्थिर करने और भारत को तेल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
- व्यापार:
- ईरान और सऊदी अरब दोनों ही भारत के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हैं। उनके बीच संबंधों को सामान्य बनाने से व्यापार और निवेश के नए रास्ते खुल सकते हैं, जिससे भारत के लिये आर्थिक अवसरों में वृद्धि होगी।
- क्षेत्रीय स्थिरता:
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) सहित मध्य-पूर्व में भारत के मज़बूत आर्थिक और रणनीतिक हित हैं।
- ईरान भारत के विस्तारित पड़ोस का हिस्सा है। इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की अस्थिरता के भारत के लिये दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों को सामान्य बनाने से क्षेत्र अधिक स्थिर हो सकता है, जिससे संघर्ष एवं आतंकवाद के जोखिम को कम किया जा सकता है।
- भू-राजनीति:
- ईरान और सऊदी अरब दोनों के साथ भारत का सौहार्दपूर्ण संबंध है तथा क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने में भूमिका निभाता है। इन दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने से क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों में मदद मिल सकती है।
- हालाँकि ईरान और सऊदी के बीच चीन की मध्यस्थता भारत के लिये चुनौतियाँ पैदा करेगी क्योंकि यह क्षेत्र में चीन के प्रभाव को बढ़ाने में योगदान करेगी।
आगे की राह
- भारत इन दोनों देशों के मध्य संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने में रचनात्मक भूमिका निभा सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता हासिल करने में मदद मिल सकती है।
- भारत को इस क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव से सतर्क रहने और मध्य पूर्व में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस दक्षिण-पश्चिम एशियाई राष्ट्र की भू-सीमा भूमध्य सागर से नहीं लगती है? (2015) (a) सीरिया उत्तर : (b) प्रश्न . निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016) (a) ईरान उत्तर: (a) प्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का क्या महत्त्व है? (2017) (a) अफ्रीकी देशों के साथ भारत के व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। उत्तर : (c) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
MSME प्रतिस्पर्द्धी (LEAN) योजना
प्रिलिम्स के लिये:लीन मैन्युफैक्चरिंग, उद्यम प्लेटफॉर्म, MSME प्रदर्शन (RAMP) योजना को बढ़ाना और तीव्रता प्रदान करना, सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट फंड (CGTMSE), ब्याज सब्सिडी पात्रता प्रमाणपत्र (ISEC), नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये योजना (ASPIRE), ज़ीरो डिफेक्ट, ज़ीरो इफेक्ट (ZED)। मेन्स के लिये:भारत के लिये सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र का महत्त्व, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र से संबंधित वर्तमान चुनौतियाँ, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम से संबंधित हालिया सरकारी पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ने भारत के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रोडमैप प्रदान करने के लिये MSME प्रतिस्पर्द्धी (LEAN) योजना शुरू की।
- इसका उद्देश्य गुणवत्ता, उत्पादकता, प्रदर्शन और निर्माताओं की मानसिकता को बदलने तथा उन्हें विश्व स्तर के निर्माताओं में बदलने की क्षमता में सुधार करना है।
लीन मैन्युफैक्चरिंग क्या है?
- परिचय: लीन मैन्युफैक्चरिंग या लीन उत्पादन, जिसे केवल लीन के रूप में जाना जाता है, एक उत्पादन अभ्यास है, जो अंतिम ग्राहक के लिये मूल्य के निर्माण के अलावा किसी भी लक्ष्य हेतु संसाधनों के व्यय को व्यर्थ मानता है और इसलिये इसे समाप्त कर देना चाहिये।
- लीन सिद्धांत: लीन मैन्युफैक्चरिंग में सिद्धांतों का एक सम्मुच्य शामिल होता है, जिसे लीन विचारक काइज़न के माध्यम से अपशिष्ट को खत्म करके उत्पादकता, गुणवत्ता और समयसीमा में सुधार के लिये उपयोग करते हैं। लीन मैन्युफैक्चरिंग के सिद्धांत हैं:
- मूल्य पहचान: निर्धारित करना कि ग्राहक के दृष्टिकोण से मूल्य का क्या अर्थ है। इसमें यह समझना शामिल है कि ग्राहक क्या चाहता है, उसकी आवश्यकता क्या है और क्या वह इसके लिये भुगतान करने को तैयार है।
- मूल्य शृंखला में चरणों का मानचित्रण: मूल्य शृंखला का एक मानचित्र तैयार करना, जो किसी उत्पाद के उत्पादन या सेवा प्रदान करने के लिये आवश्यक चरणों का अनुक्रम हो। यह अपशिष्ट और अक्षमता के क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करता है।
- प्रवाह सुनिश्चित करना: मूल्य शृंखला के माध्यम से कार्यों का एक सहज, निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करना। इसमें प्रक्रिया को धीमा करने वाली बाधाओं और रुकावटों को समाप्त करना शामिल है।
- ग्राहक पूल स्थापित करना: एक पूल प्रणाली लागू करना जो ग्राहक की मांग के आधार पर उत्पादों का उत्पादन केवल तभी करता है जब उनकी आवश्यकता होती है। यह इन्वेंट्री (वस्तु-सूची) और कचरे को कम करने में मदद करता है।
- पूर्णता हेतु प्रयास करना: कचरे की पहचान और उन्मूलन, प्रक्रियाओं में सुधार तथा गुणवत्ता सुनिश्चित कर पूर्णता के लिये निरंतर प्रयास करना।
नोट:
- काइज़न एक जापानी शब्द है जिसका अनिवार्य रूप से अर्थ है "बेहतर के लिये परिवर्तन" या अच्छा परिवर्तन।
- इसका लक्ष्य ग्राहक को जब इसकी आवश्यकता हो और जितनी मात्रा में आवश्यकता हो, एक दोष मुक्त उत्पाद या सेवा प्रदान करना है।
योजना के प्रमुख बिंदु:
- उद्देश्य:
- लीन (LEAN) के माध्यम से MSMEs क्षति को काफी हद तक कम कर सकते हैं, उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, सुरक्षित रूप से काम कर सकते हैं, अपने बाज़ारों का विस्तार कर सकते हैं तथा अंततः प्रतिस्पर्धी एवं लाभदायक बन सकते हैं।
- उपकरण:
- इस योजना के तहत MSME बेसिक, इंटरमीडिएट और एडवांस जैसे लीन स्तरों को प्राप्त करने के लिये प्रशिक्षित एवं सक्षम लीन सलाहकारों के कुशल मार्गदर्शन में 5एस, काइज़न, कानबन, दृश्य कार्यस्थल, पोका योका आदि जैसे लीन मैन्युफैक्चरिंग उपकरणों को लागू करेंगे।
- शासकीय सहायता:
- कार्यान्वयन सहायता और परामर्श व्यय की लागत का 90% सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
- पूर्वोत्तर में जो क्षेत्र महिलाओं, SC (अनुसूचित जाति) या ST (अनुसूचित जनजाति) के स्वामित्त्व में हैं और जो स्फूर्ति क्लस्टर के सदस्य हैं, उन्हें MSMEs की ओर से 5% का अतिरिक्त योगदान मिलेगा।
- सभी स्तरों को पूरा करने के बाद उद्योग संघों/समग्र उपकरण निर्माण (OEM) संगठनों के माध्यम से पंजीकरण कराने वाले MSME को 5% का अतिरिक्त योगदान प्राप्त होगा।
- इस विशेष सुविधा का उद्देश्य OEM और उद्योग संघों से आग्रह करना है कि वे अपने आपूर्ति शृंखला विक्रेताओं को कार्यक्रम में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करें।
MSME से संबंधित हालिया सरकारी पहल:
- एमएसएमई के प्रदर्शन को बेहतर और तेज़ करने यानी RAMP (Rising and Accelerating MSME Performance) योजना
- सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट फंड (CGTMSE)
- ब्याज सब्सिडी पात्रता प्रमाण पत्र (ISEC)
- नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु योजना (ASPIRE)
- प्रौद्योगिकी उन्नयन हेतु क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी (CLCSS)
- ज़ीरो डिफेक्ट, ज़ीरो इफेक्ट (ZED)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न.1 विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन सरकार के समावेशी विकास के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. श्रम-प्रधान निर्यातों के लक्ष्य को प्राप्त करने में विनिर्माण क्षेत्र की विफलता के कारण बताइये। पूंजी-प्रधान निर्यात की अपेक्षा अधिक श्रम-प्रधान निर्यात के लिये उपायों को सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2017) |