विविध
मेगा फूड पार्क
केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री ने हिमाचल प्रदेश के पहले मेगा फूड पार्क, क्रेमिका मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड का उद्घाटन किया। यह मेगा फूड पार्क 107.34 करोड़ रुपए की लागत से 52.40 एकड़ भूमि में स्थापित किया गया है। इस मेगा फूड पार्क में सेंट्रल प्रोसेसिंग सेंटर, थोक-पैकेजिंग, फ्रोजन स्टोरेज, डीप फ्रीज, ड्राई वेयरहाउस, क्यूसी लेबोरेटरी के साथ अन्य खाद्य प्रसंस्करण सुविधाए उपलब्ध होंगी।
क्या होता है मेगा फ़ूड पार्क?
- मेगा फूड पार्क ‘क्लस्टर’ (cluster) दृष्टिकोण पर आधारित होता है। इसमें पार्कों में सुस्थापित आपूर्ति श्रृंखला के साथ आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण यूनिटों की स्थापना के लिये कृषि/बागवानी क्षेत्र में अत्याधुनिक सहायक अवसंरचना जैसे - संग्रहण केंद्र , केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र , प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र , शीतगृह श्रृंखला (Chain of cold Storage) उपलब्ध होती हैं।
- केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र में सामान्य सुविधाएं और सक्षम बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाता है। प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र और संग्रह केंद्र के रूप में प्राथमिक प्रसंस्करण और भंडारण की सुविधा खेत के पास उपलब्ध कराई जाती है।
- मेगा फूड पार्क परियोजना का कार्यान्वयन एक विशेष प्रयोजन उपाय (Special Purpose Vehicle - SPV) द्वारा किया जाता है।
उद्देश्य
- मेगा फूड पार्क का उद्देश्य ‘खेत से बाज़ार तक’ खाद्य श्रृंखला कायम करने के लिये खाद्य प्रसंस्करण हेतु आधुनिक अवसंरचना सुविधाओं का निर्माण करना है।
- यह किसानों, प्रसंस्करणकर्त्ताओं तथा खुदरा विक्रेताओं को एक साथ लाते हुए कृषि उत्पादन को बाज़ार से जोड़ने के लिये एक तंत्र उपलब्ध कराता है।
- इस के तहत मूल्यसंवर्धन (Value Addition), बर्बादी को न्यूनतमबी करने, किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करने और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार के अवसर सृजित करना की कोशिश की जाती है।
मेगा फूड पार्क योजना के तहत भारत सरकार प्रति मेगा फूड पार्क परियोजना में 50 करोड़ रुपए तक की वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है।
मेगा फूड पार्क, अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र के विकास को गति प्रदान करता है।
स्रोत : पी आई बी, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय
भारतीय इतिहास
कवचुआह रोपुठे विरासत स्थल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु परिवर्तन और मौसम की विषम परिस्थितिओं को देखते हुए विश्व में पानी के लिये बढ़ते संघर्षों को कम करने हेतु मिज़ोरम की एक खोई हुई सभ्यता को अपनाने की बात कही गई है जो चट्टानों को छिपे हुए जलाशयों में बदल कर विषम स्थितियों में जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
- वर्ष 2016 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) द्वारा म्याँमार की सीमा से सटे मिज़ोरम के चम्फाई (Champhai) ज़िले के एक गांव वांगछिया (Vangchhia) में एक ’लिविंग हिस्ट्री मयूज़ियम (Living History Museum)’ की खोज की गई। जिसे कवचुआह रोपुठे विरासत स्थल (Kawtchhuah Ropuithe Heritage Site) नाम दिया गया।
- कवचुआह रोपुठे विरासत स्थल भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के संरक्षित स्मारकों के अंतर्गत मिज़ोरम की पहली साइट है। जो यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा कई पीढ़ियों से पूजनीय है।
- आइज़ॉल से 260 किमी. की दूरी पर स्थित यह साइट लगभग 45 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत है, जिसमें बड़े पत्थर के स्लैब, मेनहिर (Menhirs - बड़े और खड़े पत्थर) और एक नेक्रोपोलिस (Necropolis - एक बड़ा कब्रिस्तान) तथा कलाकृतियों के बीच में चित्रित चित्रलेख मिले हैं।
- यह क्षेत्र निचले हिमालय का हिस्सा है और इसमें हल्के भूरे व काले रंग के विभिन्न प्रकार के बलुआ पत्थरों की पहाड़ियों की कतारें हैं।
जल संग्रहण की संभावित कला
- ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन समय में वांगछिया के लोगों ने अपनी बस्ती के लिये इन चट्टानों पर नक्काशी की थी। मुख्य खुदाई वाली जगह पर ऐसे 15 इलाके प्राप्त हुए हैं।
- पुरातत्त्वविदों द्वारा की गई सबसे महत्त्वपूर्ण खोजों में यहाँ पाए गए पत्थरों के बीच पानी के पैवेलियन (पत्थरों को काट कर बनाए गए एक फीट से लेकर एक मीटर तक के छेद) हैं, जो कई बलुआ पत्थर की ढलानों पर फैले हुए हैं।
- ASI के शोधकर्त्ताओं ने बताया कि ग्रे सैंडस्टोन (Grey Sandstone) छिद्रों के लिये उपयुक्त होती है, जबकि कठोर काली चट्टान (Black Rock) का उपयोग मेन्हिरों के लिये किया जाता है।
- शोधकर्त्ताओं द्वारा विगत वर्षों में वांगछिया साइट पर किये गए अध्ययन के अनुसार, यह क्रियाविधि कई शताब्दियों पहले सिद्ध की गई जल संचयन हेतु साधारण विज्ञान प्रतीत हो रही है जिसे स्थानीय आबादी कम-से-कम एक वर्ष तक इस्तेमाल कर सकती है।
- सबसे उल्लेखनीय विषय यह है कि कैसे उन लोगों द्वारा बारिश के पानी को ढलान से बहते हुए यहाँ चट्टानों में रोक दिया गया है, ताकि चट्टानों के अंदर पानी जमा हो सके।
- अभी तक पुरातत्त्वविद वांगछिया बस्ती के बारे में सही-सही पता नहीं लगा पाए हैं क्योंकि तीन साल पहले जब इस जगह की खुदाई की गई तो यहाँ मिले खंडहरों को 15वीं शताब्दी के होने का अनुमान लगाया गया। बाद में बीरबल साहनी संस्थान ने इसे 6वीं शताब्दी का बताया।
निष्कर्ष
- अभी हाल ही में ASI की टीम द्वारा पहले के अनुत्तरित प्रश्नों के जवाब के तलाश में वांगछिया के पास नवपाषाण गुफाओं की खोज की गई जो यह दर्शाती है कि यह खोई हुई सभ्यता और भी अधिक पुरानी हो सकती है।
- मिज़ोरम चैप्टर ऑफ इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (Mizoram Chapter of Indian National Trust for Art and Cultural Heritage (INTACH) के संयोजक ने बताया कि ये पुरातात्विक अवशेष वांगछिया या चम्फाई ज़िले तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि कम-से-कम चार और प्रमुख साइटें हैं - फ़ार्कन, डुंग्ट्लंग, लियानपुई और लुनघुनियान। जहाँ अब तक सैकड़ों मेनहिर और चित्रलेखों के साथ बड़े पैमाने पर खुदाई की जा रही है जो कि एक भुला दिए गए अतीत की कहानियों को बताते हैं।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण
(Archaeological Survey of India-ASI)
- संस्कृति मंत्रालय के अधीन यह राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासतों के पुरातत्त्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिये एक प्रमुख संगठन है।
- इसका मुख्य कार्य राष्ट्रीय महत्त्व के प्राचीन स्मारकों तथा स्थलों और भग्नावशेषों का रख-रखाव करना है।
- प्राचीन स्मारक और पुरातात्त्विक अधिनियम,1958 के प्रावधान ASI का मार्गदर्शन करते हैं।
- पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 द्वारा ASI अपने कामकाज को दिशा देता है।
- ASI राष्ट्रीय महत्त्व के प्रमुख पुरातात्त्विक स्थलों की बेहतर देखभाल के लिये संपूर्ण देश को 24 मंडलों में बाँटता है।
स्रोत – द हिंदू
विविध
'विंडरश स्कीम'
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'विंडरश स्कीम' के तहत सैकड़ों भारतीयों की ब्रिटेन के नागरिक होने की पुष्टि की गई है। इसे पिछले साल ‘Windrush Scandal’ के मद्देनज़र स्थापित किया गया था।
क्या है Windrush Scandal?
- ब्रिटेन में रहने वाले राष्ट्रमंडल के सैकड़ों लोग, जो 1971 से पहले ब्रिटिश जहाज़ एम्पायर ‘Windrush’ से ब्रिटेन आ गए थे तथा स्थायी रूप से यू.के. में रहने और काम करने के हकदार थे, को गलत तरीके से अवैध अप्रवासी माना जा रहा था। इसे ही 'विंडरश कांड' ( Windrush Scandal ) के रूप में जाना जाता है।
- एक राष्ट्रमंडल नागरिक (Commonwealth Citizen) राष्ट्रमंडल के सदस्य राज्य का नागरिक होता है। राष्ट्रमंडल नागरिकों को यूनाइटेड किंगडम में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हो सकते हैं।
क्या है Windrush scheme?
- ‘विंडरश योजना’ (Windrush Scheme) ऐसे ही अप्रवासी (Immigrants) को सहायता प्रदान करने के लिये ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया कदम है।
- इस योजना के अंतर्गत एक अलग टास्कफोर्स का गठन किया गया है, जो Windrush Scheme के तहत आवेदन करने वाले अप्रवासी की मदद करेंगी।
- विंडरश स्कीम के तहत आवेदन यू.के. में रहने वाले आवेदकों के लिये ‘GOV.UK’ पर - “Windrush Scheme application (UK)” तथा यू.के. के बाहर रहने वाले आवेदकों के लिए” Windrush Scheme application (Overseas)” पर किया जा सकता है।
स्रोत : THE HINDU, THE TIMES OF INDIA, GOV.UK
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
शरीर के अंदर पहला जीन संपादन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में किये गए कुछ परीक्षणों के बाद वैज्ञानिकों को ऐसा लग रहा है कि उन्होंने शरीर के अंदर प्रथम जीन संपादन के मुकाम को हासिल कर लिया है। गौरतलब है कि इन परीक्षणों के तहत वयस्कों के डीएनए में बदलाव कर बीमारी का इलाज करने की कोशिश की गई।
प्रमुख बिंदु
- प्रारंभिक परिणामों से पता चला है कि दुर्लभ बीमारी वाले दो पुरुषों के जीन में सुधार देखा जा रहा है। हालाँकि यह सुधार बहुत ही कम स्तर पर है जो चिकित्सकीय इलाज़ को सफल बनाने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकता है फिर भी यह परिणाम भविष्य में इस क्षेत्र में सफलता दिला सकता है।
- जीन संपादन क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि यह सफलता एक बड़ी उपलब्धि है।
- जीन एडिटिंग का उद्देश्य जीन थेरेपी है जिससे खराब जीन को निष्क्रिय किया जा सके या किसी अच्छे जीन के लापता होने की स्थिति में उसकी आपूर्ति की जा सके।
जीन एडिटिंग के अनुप्रयोग (Applications of Gene Editing)
- वैज्ञानिक अनुसंधान में पहले से ही व्यापक रूप से इसका उपयोग किया जाता है, क्रिस्पर-कैस 9 को HIV, कैंसर या सिकल सेल रोग जैसी बीमारियों के लिये संभावित जीनोम एडिटिंग उपचार हेतु एक आशाजनक तरीके के रूप में भी देखा गया है।
- इस तरह इसके माध्यम से चिकित्सकीय रूप से बीमारी पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय किया जा सकता है या आनुवंशिक उत्परिवर्तन को सही कर सकते हैं। क्रिस्पर जीन एडिटिंग जेनेटिक हेरफेर के लिये एक टूलबॉक्स प्रदान करती है।
- उल्लेखनीय है कि क्रिस्पर सिस्टम पहले से ही मौलिक बीमारी अनुसंधान, दवा जाँच और थेरेपी विकास, तेजी से निदान, इन-विवो एडिटिंग (In Vivo Editing) और ज़रूरी स्थितियों में सुधार के लिये बेहतर आनुवंशिक मॉडल प्रदान कर रहा है।
- वैज्ञानिक इस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं कि क्रिस्पर का उपयोग शरीर की टी-कोशिकाओं (T-Cells) के कार्य को बढ़ावा देने में किया जा सके ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर को पहचानने और नष्ट करने में बेहतर हो तथा रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार और अन्य संभावित बीमारियों को लक्षित किया जा सके।
- कैलिफ़ोर्निया में विश्व के पहले जीन-एडिटिंग परीक्षण में HIV के लगभग 80 रोगियों के खून से HIV प्रतिरक्षा कोशिकाओं को (Zinc-finger nucleases) ZFNs नामक एक अलग तकनीक का प्रयोग कर हटाया गया। चीन में शोधकर्त्ताओं ने मानव भ्रूण के एक दोषपूर्ण जीन को सही करने की कोशिश के लिये संपादित किया जो विरासत में रक्त विकार का कारण बनता है।
- वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने मलेरिया को दूर करने के लिये भी जीन एडिटिंग का उपयोग किया था जिससे मलेरिया का प्रतिरोध किया जा सकता है। किसानों द्वारा भी फसलों को रोग प्रतिरोधी बनाने के लिये क्रिस्पर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। चिकित्सकीय क्षेत्र में, जीन एडिटिंग संभावित आनुवंशिक बीमारियों का इलाज कर सकती है, जैसे हृदय-रोग और कैंसर के कुछ रूप या एक दुर्लभ विकार जो दृष्टिबाधा या अंधेपन का कारण बन सकता है।
- कृषि क्षेत्र में यह तकनीक उन पौधों को पैदा कर सकती है जो न केवल उच्च पैदावार में कारगर होंगे, जैसे कि लिप्पमैन के टमाटर, बल्कि यह सूखे और कीटों से बचाव के लिये फसलों में विभिन्न परिवर्तन कर सकते हैं ताकि आने वाले सालों में चरम मौसमी बदलावों में भी फसलों को हानि से बचाया जा सके।
नैतिक चिंताएँ (Ethical Concerns)
- दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग पर चिंता जताते हुए इसे विज्ञान और नैतिकता के खिलाफ बताया है क्योंकि इससे भविष्य में ‘डिजाइनर बेबी’ के जन्म की अवधारणा को और बल मिलेगा। यानी बच्चे की आँख, बाल और त्वचा का रंग ठीक वैसा ही होगा, जैसा उसके माता-पिता चाहेंगे।
- इसके अलावा, मानव भ्रूण एडिटिंग अनुसंधान को पर्याप्त रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जीन-एडिटेड बच्चों को बनाने के लिये विभिन्न प्रयोगशालाओं को बढ़ावा मिल सकता है।
- इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा आशंका जताई गई है कि इस तकनीक का संभावित दुरुपयोग आनुवंशिक भेदभाव पैदा करने के लिये भी हो सकता है।
क्रिस्पर Cas9 तकनीक
- क्रिस्पर-कैस 9 (CRISPR-Cas9) एक ऐसी तकनीक है जो वैज्ञानिकों को अनिवार्य रूप से डीएनए काटने और जोड़ने की अनुमति देती है, जिससे रोग के लिये आनुवंशिक सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।
- क्रिस्पर (Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats) डीएनए के हिस्से हैं, जबकि कैस-9 (CRISPR-ASSOCIATED PROTEIN9-Cas9) एक एंजाइम है। हालाँकि, इसके साथ सुरक्षा और नैतिकता से संबंधित चिंताएँ जुड़ी हुई हैं।
स्रोत- द हिंदू
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (11 February)
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में ईटानगर के समीप होल्लोंगी में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे के निर्माण की आधारशिला रखी और साथ ही तेज़ू में एक उन्नत एवं पुन:संयोजित (Retrofitted) हवाई अड्डे का उद्घाटन किया। तेजू हवाई अड्डा गुवाहाटी, जोरहाट और होल्लोंगी को जोड़ेगा। इसके अलावा सेला सुरंग और संपर्क मार्ग की आधारशिला भी रखी गई। 13,700 फुट की ऊँचाई पर सेला दर्रे पर इस सुरंग के बन जाने से चीन की सीमा से सटे अरुणाचल प्रदेश के तवांग तक सैनिकों की तीव्र आवाजाही सुनिश्चित हो सकेगी। सेला दर्रा अरुणाचल प्रदेश के तवांग और पश्चिम कामेंग ज़िलों के बीच सीमा पर स्थित एक बेहद ऊँचा पर्वतीय दर्रा है और इसे रणनीतिक दृष्टि से अहम माना जाता है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्रेटर नोएडा स्थित इंडिया एक्सपो सेंटर में तीन दिन तक चलने वाले 13वें पेट्रोटेक-2019 (अंतर्राष्ट्रीय तेल और गैस सम्मेलन) का उद्घाटन किया। भारत के तेल और गैस क्षेत्र में हाल के बाज़ार और निवेशकों के अनुकूल विकास को इसमें दर्शाया गया है। इंटरनेशनल ऑयल एंड गैस कॉन्फ्रेंस की पेट्रोटेक सीरीज़ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के लिये तेल और गैस उद्योग में विचारों के आदान-प्रदान और ज्ञान, विशेषज्ञता तथा अनुभवों को साझा करने वाला एक द्विवार्षिक मंच है। भारतीय हाइड्रोकार्बन क्षेत्र के इस प्रमुख कार्यक्रम का 12वाँ पेट्रोटेक सम्मेलन 5 दिसंबर, 2016 को आयोजित किया गया था।
- कपड़ा मंत्रालय और केंद्रीय रेशम बोर्ड द्वारा नई दिल्ली में मेगा सिल्क इवेंट का आयोजन किया गया। इस मौके पर कई गतिविधियों का आयोजन किया गया। इवेंट में रेशम कीट के बीज के क्षेत्र में गुणवत्ता प्रमाणन के लिये मोबाइल एप ई-कोकून भी लॉन्च किया गया। गौरतलब है कि चीन के बाद भारत रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत की रेशम उत्पादन क्षमता 32 हज़ार टन वार्षिक के वर्तमान स्तर से 2020 तक लगभग 38,500 टन तक पहुँचने की उम्मीद है।
- असम सरकार ने अरुंधती योजना शुरु की है। यह योजना राज्य की सभी लड़कियों के लिये शुरू की गई है, जिसके तहत यदि किसी लड़की का विवाह होता है तो उसे विवाह के समय सरकार 10 ग्राम सोना उपहार में देगी। इस योजना का लाभ केवल उन लड़कियों को मिलेगा जिनके परिवार की वार्षिक आय 5 लाख रुपए से कम है। इसके अलावा, असम का मूल निवासी होना भी अनिवार्य है तथा विवाह को विशेष विवाह (असम) नियम, 1954 के तहत पंजीकृत कराना भी अनिवार्य है। इसका एक अन्य उद्देश्य राज्य में विभिन्न समुदायों की प्रथागत परंपराएँ पूरा करने तथा उन्हें समाज में सम्मान के साथ जीवन जीने में सक्षम बनाना भी है।
- हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने Law, Justice and Judicial Power Justice PN Bhagwati's Approach नामक पुस्तक का अनावरण किया। उन्होंने नई दिल्ली दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के हाथों इस पुस्तक की पहली प्रति प्राप्त की। यह पुस्तक पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी.एन. भगवती के जीवन और उनके कार्य से संबंधित आलेखों का संग्रह है। न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती को देश में जनहित याचिका की शुरुआत करने वाला माना जाता है।उन्होंने जनहित याचिका (PIL) की परिकल्पना उन गरीबों के लिये एक औज़ार के रूप में की थी, जो लंबी अवधि तक चलने वाली न्यायिक प्रक्रिया का खर्च उठाने में असमर्थ रहते हैं।
- अबू धाबी ने हिंदी को अपनी अदालतों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल कर लिया है। न्याय तक पहुँच बढ़ाने के लिहाज़ से यह कदम उठाया गया है। अब तक अरबी और अंग्रेज़ी को ही वहाँ की अदालतों में आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला हुआ था। अबू धाबी न्याय विभाग के इस ऐतिहासिक कदम का मकसद प्लान 2021 के तहत हिंदी भाषी लोगों को मुकदमे की प्रक्रिया, उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जानने में मदद करना है। आपको बता दें कि संयुक्त अरब अमीरात की आबादी का करीब दो-तिहाई हिस्सा विदेशों के प्रवासी लोग हैं। संयुक्त अरब अमीरात में भारतीयों की संख्या 26 लाख है जो देश की कुल आबादी का 30 फीसदी है और यह वहाँ का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है।
- अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोइंग ने भारतीय वायु सेना को चार चिनूक सैन्य हेलीकॉप्टर सौंप दिये हैं। CH47F(I) चिनूक एक बहुद्देशीय, वर्टिकल लिफ्ट प्लेटफॉर्म वाला हेलीकॉप्टर है, जिसका इस्तेमाल सैनिकों, हथियारों, उपकरण और ईंधन को ढोने में किया जाता है। इसका इस्तेमाल मानवीय और आपदा राहत अभियानों में भी किया जाता है। राहत सामग्री पहुंचाने तथा बड़ी संख्या में लोगों को बचाने में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। भारतीय वायु सेना ने बोइंग से 15 चिनूक सैन्य हेलीकॉप्टर खरीदने का सौदा किया है, जिसकी चार हेलीकॉप्टरों की पहली खेप वायु सेना को मिली है। चिनूक पर्वतीय ढाल के सहारे चलने वाली गर्म व शुष्क पवन है जो USA मे चलती है। यह पवन रॉकी पर्वत की पूर्वी ढाल में कोलारेडो से उत्तर में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया तक चलती है।
- इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (EIL) को मंगोलिया में 15 लाख टन की ऑयल रिफाइनरी के लिये परियोजना प्रबंधन सलाहकार का कॉन्ट्रैक्ट मिला है। इसके लिये EIL और मंगोलिया सरकार की मंगोल रिफाइनरी LLC ने पेट्रोटेक सम्मेलन से इतर एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। गौरतलब है कि भारत ने 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंगोलिया यात्रा के दौरान मंगोलिया को एक अरब डॉलर का ऋण दिया था। प्रस्तावित रिफाइनरी परियोजना इसी ऋण सुविधा से तैयार हो रही है। पिछले वर्ष जून में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगोलिया में इस रिफाइनरी परियोजना का शिलान्यास किया था।
- इथोपिया में हुई एक बैठक में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी अफ्रीकन यूनियन के चेयरमैन निर्वाचित हुए। उन्होंने रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे का स्थान लिया है। आपको बता दें कि अफ्रीकन यूनियन के चेयरमैन का कार्यकाल केवल एक वर्ष का होता है। अफ्रीकन यूनियन का गठन 2001 में इथोपिया की राजधानी अदिस अबाबा में हुआ था और इसने अफ्रीकी एकता संगठन (OAU) का स्थान लिया था। संस्था के महत्त्वपूर्ण फैसले साल में दो बार होने वाली एसेंबली में लिये जाते हैं जिसमें सभी सदस्य देशों के राज्य व सरकार प्रमुख मिलते हैं। अफ्रीकन यूनियन का सचिवालय अफ्रीकन कमीशन कहलाता है और इसका मुख्यालय इथोपिया की राजधानी अदिस अबाबा में है।